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नौकरियों की भरमार, यहां करें एप्लाई

क्या आप नरेंद्र मोदी सरकार के लिए काम करना चाहते हैं? अगर हां, तो आपके लिए मौका है. केंद्र सरकार अब आम नागरिकों से रेज्युमे मांग रही है. इन्हें केंद्रीय मंत्रालयों में अलग-अलग पोजिशंस में 'एक्सपर्ट' के तौर पर काम करने के लिए जोड़ा जा सकता है. फिलहाल सरकार को एडिटोरियल राइटर्स, सीनियर मैनेजमेंट प्रफेशनल्स, सॉफ्टवेयर डिवेलपर, रिसर्चर, डेटा साइंटिस्ट, ग्राफिक डिजाइनर्स, डिजिटल कॉन्टेंट स्क्रिप्ट राइटर, ऐड प्रफेशनल, अकैडमिक एक्सपर्ट, सोशल मीडिया एक्सपर्ट और ऐप्लिकेशन डिवेलपर्स की जरूरत है. यह गवर्नंस के साथ लोगों को जोड़ने की अपनी तरह की पहली कवायद है.

प्रधानमंत्री के MyGov पोर्टल ने सरकार और नागरिकों के इंटरफेस को आगे बढ़ाने के लिए यह प्रयोग शुरू किया है. MyGov पोर्टल ने मंगलवार की एक पोस्ट में कहा है, 'MyGov का अलग-अलग वरिष्ठता क्रम और विशेषज्ञता वाले रेज्युमे का डेटा बैंक तैयार करने का प्रस्ताव है. सरकार मंत्रालयों, विभागों, संस्थानों और विशेषज्ञ इकाइयों में अलग-अलग पदों पर कॉन्ट्रैक्ट सर्विस के तहत सिटिजन एक्सपर्ट्स को जोड़ने की खातिर समय-समय पर इस डेटा बैंक का इस्तेमाल कर सकती है.

MyGov पोर्टल ने पोस्ट में कहा है, 'MyGov की तरफ से रेज्युमे की स्क्रूटनी की जाएगी और शॉर्टलिस्ट लोगों को आगे विचार-विमर्श और इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा. इसमें पे-पैकेज पर भी बातचीत होगी. हालांकि, इस फोरम में रेज्युमे दाखिल करना रोजगार या आपसे काम लेने की गारंटी नहीं है. एडिटोरियल राइटर्स के लिए सरकार को मास कम्युनिकेशन-जर्नलिजम या इकनॉमिक्स या सोशल साइंसेज में मास्टर्स डिग्री रखने वालों की जरूरत है. उनके पास प्रमुख मीडिया प्लैटफॉर्म पर लिखने का भी अनुभव होना चाहिए.

वहीं सीनियर मैनेजमेंट पोस्ट के लिए सरकार को सीनियर लेवल के प्रफेशनल्स मसलन यूनिवर्सिटी, हॉस्पिटल्स, आर्म्ड फोर्सेज, सिविल सर्विसेज और पुलिस से रिटायर्ड लोगों की जरूरत है, जिन्हें प्रफेशनल्स की बड़ी टीमों को संभालने का अनुभव हो. अकैडमिक एक्सपर्ट्स के लिए पीएचडी होना जरूरी है. साथ ही, उन्हें यूनिवर्सिटीज, कॉलेजों में पढ़ाने का अनुभव हो या वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाली यूनिवर्सिटीज के रिटायर्ड प्रफेसर हों. सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स की जॉब के लिए सरकार को ऐसे लोगों की तलाश है, जिन्हें टि्वटर, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन और वॉट्सऐप में कॉन्टेंट तैयार करने और सोशल मीडिया प्रोफाइल्स को सफलतापूर्वक चलाने का अनुभव हो. साथ ही, वे ब्लॉग साइट चला रहे हों.

साल का सबसे बड़ा वेडिंग सॉन्ग ‘नच दे ने सारे’ रिलीज

फिल्म ‘बार-बार देखो’ के मेकर्स ने एक और नया  गाना “नच दे ने सारे” रिलीज किया है. पंजाबी-हिंदी बोल के इस गाने को शानदार तरीके से फिल्माया गया है. शादी के माहौल सा यह गाना शादी के सेट पर ही शूट किया गया है. एक टिपिकल इंडियन वेडिंग में शादी के पहले जितने भी रूप होते हैं, उन्हें इस गाने ने जस्टिफाइ किया है. चाहे वो मस्ती हो, हल्की-फुल्की छेड़छाड़, पैग का दौर या फिर लेडीज संगीत. गाने को मस्ती के मूड में गाया और फिल्माया गया है और इसके स्टेप्स तो वाकई टिपिकल शादी वाले ही हैं.

‘बार-बार देखो’ की जोड़ी कैट्रीना कैफ-सिद्दार्थ मल्होत्रा के साथ सहायक कलाकर रोहन जोशी, सयानी, राम कपूर, ताह शाह और सारिका ने नच ने सारे…में जमकर ठुमका लगाया है और स्क्रीन पर इस गाने को जिया है.

जब किसी मौके पे नाचने का माहौल बनाना होता है, तो आपको सही गीत-संगीत चाहिए होता है. नच दे ने सारे, यही माहौली गाना है जो आपके कदमों  को थिरकने के लिए मजबूर कर देगा. यकीन मानिए इस साल का यह सबसे बड़ा वेडिंग सॉन्ग है.

“नच दे ने सारे” गाने के बारे में एक बात और बता दें कि यह फिल्म में तब आता है जब जय और दिया ( सिद्दार्थ-कैट्रीना ) की शादी हो रही होती है और उससे पहले परिवार के सारे लोग शादी के माहौल में मशगूल रहते हैं. गाने को जैसलीन रॉयल, हर्षदीप कौर और सिद्दार्थ महादेवानंद ने गाया है. कलाकारों को इस गाने पर गणेश आचार्या ने थिरकाया है.

तेरा काला चश्मा…पार्टी गाने से दर्शकों को झकझोर देने के बाद रोमांटिक सॉन्ग सौ आसमां और अब नच दे ने सारे… फिल्म मेकर्स ने यह बता दिया है कि फिल्म अपने गीत-संगीत से भी भरपूर है. बार-बार देखो के ट्रेलर को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया है. इस फिल्म में कैट्रीना और सिद्दार्थ के कैमेस्ट्री और उनके फ्रेशनेस की चर्चा बी-टॉउन से लेकर सभी जगह है.

9 सितंबर को रिलीज होनी वाली फिल्म बार-बार देखो का निर्माण एक्सेल एंटरटेंमेंट व धर्मा प्रोडक्शन ने किया है और नित्या मेहरा ने निर्देशित किया है.

रियो: मेडल से चूके, अब मिलेगी सजा!

नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन रियो ओलंपिक में अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन से खुश नही हैं. खबर है कि जोंग मेडल से चूकने वाले खिलाड़ियों को सजा भी दे सकते हैं. सूत्रों की मानें तो जोंग की अपेक्षा थी कि उनके देश के खाते में कम से कम 5 गोल्ड समेत 17 मेडल्स आएं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. इस ओलंपिक में नॉर्थ कोरिया के खाते में 7 मेडल्स ही आ सके.

नॉर्थ कोरिया ने रियो ओलंपिक में कुल 31 ऐथलीट्स को भेजा था. रियो ओलंपिक में नॉर्थ कोरिया के खाते में कुल 7 मेडल ही आ सके, जिनमें 2 गोल्ड, 3 सिल्वर और 2 ब्रॉन्ज मेडल शामिल हैं. नॉर्थ कोरिया का प्रदर्शन इससे पहले लंदन ओलंपिक में रियो से बेहतर था. लंदन ओलंपिक में नॉर्थ कोरिया ने 4 गोल्ड मेडल जीते थे.

नॉर्थ कोरिया के खिलाड़ी ओलंपिक के दौरान काफी दबाव में थे. उन्हें डर था कि किम जोंग उन की अपेक्षा के मुताबिक प्रदर्शन न कर पाने पर उन्हें रहने की अच्छी सुविधा, पर्याप्त राशन से हाथ धोना पड़ेगा और यहां तक कि उन्हें कोयले की खदानों में काम करने भी भेजा जा सकता है. वहीं दूसरी ओर मेडल जीतने वालों को ये सभी सुविधाएं बेहतर ढंग से मुहैया कराई जाएंगी और पुरस्कृत भी किया जाएगा.

इससे पहले भी इस तरह की खबरें आ चुकी हैं कि नॉर्थ कोरिया की फुटबॉल टीम को लाइव टीवी पर सजा दी गई थी. उन्हें यह सजा 2010 वर्ल्ड कप में पुर्तगाल से 7-0 के स्कोर से हारने की वजह से दी गई थी. उस दौरान भी कुछ खिलाड़ियों को सजा के तौर पर खदानों में काम करने के लिए भेज दिया गया था.

सूत्रों के मुताबिक, इस ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन न कर पाने वाले खिलाड़ियों के साथ भी ऐसा हो सकता है. हालांकि, अनाधिकारिक सूत्रों का कहना है कि ऐथलीट्स का देश वापसी पर स्वागत होगा. मेडल जीतने वालों को पुरस्कृत किया जाएगा, लेकिन अन्य को किसी प्रकार की सजा नहीं दी जाएगी.

गांव में स्मार्टफोन से बदल रही है जिंदगी

पिछले 10 सालों में गांवदेहातों में रहने वालों की जिंदगी में सब से बड़ा बदलाव पहले मोबाइल फोन, फिर स्मार्टफोन के रूप में सामने आया है. साल 2011 की जनगणना के सामाजिक और माली आंकडे़ इस बात के गवाह हैं. तमाम तरह की परेशानियों और गरीबी के बाद भी गांवदेहात में तेजी से मोबाइल फोन का इस्तेमाल बढ़ा है. गरीब प्रदेशों में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवों में रहने वाले 88 फीसदी और 84 फीसदी घरों में आज मोबाइल फोन का इस्तेमाल होने लगा है. ये प्रदेश राष्ट्रीय औसत 68 फीसदी से कहीं आगे हैं. गांवों में इस्तेमाल होने वाले दूसरे संसाधनों से भी तुलना करें, तो मोबाइल फोन का इस्तेमाल सब से ज्यादा किया जा रहा है. कच्चे घरों और झोंपडि़यों में रहने वाले लोग भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं. एक ओर गांवों में बिजली न आने से वहां बिजली से चलने वाले उपकरणों का इस्तेमाल घट रहा है, तो दूसरी ओर बिजली से चार्ज होने वाले मोबाइल फोन पर बिजली न होने का कोई ज्यादा असर नहीं हो रहा है.

आज के समय में मोबाइल फोन केवल बात करने तक सीमित नहीं रह गया है. स्मार्टफोन आने के बाद मोबाइल फोन मनोरंजन का सब से बड़ा साधन बन गया है. स्मार्टफोन में मनपसंद गानों के वीडियो देखे जा सकते हैं. इस के जरीए फेसबुक और ह्वाट्सएप जैसे सोशल मीडिया के साधनों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. आज 2 हजार रुपए तक की कीमत से स्मार्टफोन मिलना शुरू हो जाता है. गांव के लोगों को स्मार्टफोन में सब से ज्यादा 2 चीजें पसंद आती हैं, वीडियो पर गाने देखना और सुनना. वे चाहते हैं कि फोन का म्यूजिक सिस्टम तेज हो, जिस से आवाज को दूर तक सुना जा सके. वे अब अपनी जिंदगी के हसीन पलों को कैमरे में कैद करना चाहते हैं, इसलिए कैमरा वाला फोन पसंद करते हैं.

गांवों के बाजार में कम कीमत वाले स्मार्टफोन की मांग है, इसलिए ज्यादातर कंपनियां गांव के बाजार को ध्यान में रख कर फोन बनाने लगी हैं. पहले नोकिया और अब माइक्रोसौफ्ट और सैमसंग जैसी बड़ी कंपनियां गांव के बाजार में अपना कब्जा जमाने में केवल इसलिए पीछे रह गईं, क्योंकि इन के स्मार्टफोन महंगे थे. इन कंपनियों ने पहले गांव के लिए सस्ते मोबाइल फोन बनाए थे, जिन में रेडियो बजता था, पर गांव के लोग अपने मनपसंद गाने या वीडियो डाउनलोड कर के नहीं सुन सकते थे.  सस्ते फोन बनाने वाली कंपनियों ने गांव के बाजार की बदलती पसंद को पकड़ लिया और कम कीमत पर स्मार्टफोन बना कर गांव के बाजार से बड़ी कंपनियों को बाहर कर दिया. गांव देहात के बाजार में बिकने वाले 70 फीसदी फोन सस्ते किस्म के लोकल ब्रांड वाली कंपनियों के होते हैं. बड़ी कंपनियों के पुराने मोबाइल फोन ही यहां खरीदे जाते हैं. ब्रांडेड कंपनियों के मोबाइल फोन इसलिए भी नहीं पसंद किए जाते, क्योंकि इन में गाने धीमी आवाज में सुनाई देते हैं. इन का म्यूजिक सिस्टम तेज आवाज वाला नहीं होता है.  

बदलाव की हकीकत

गांव में रोजीरोजगार की कमी है. ऐसे में बहुत सारे लोग कामधंधे की तलाश में दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों और विदेशों तक में मेहनतमजदूरी करने जाते हैं. ये लोग स्मार्टफोन से अपने घरपरिवार और करीबी लोगों से जुड़े रहना चाहते हैं. स्मार्टफोन इस में सब से बड़ा रोल अदा कर रहा है. अब रेल का टिकट लेना हो या ट्रेन का टाइम पता करना हो, इंटरनैट के जरीए यह आसान काम हो गया है, खासकर ट्रेन में टिकट का रिजर्वेशन कराना फोन के जरीए आसान हो गया है.

कई गांवों में यह रोजगार का साधन बन गया है. इस के अलावा स्मार्टफोन मनोरंजन का सब से बड़ा साधन बन गया है. इस में वीडियो डाउनलोड कर के मनपसंद गानों व फिल्मों को देखा और सुना जा सकता है. स्मार्टफोन में लगने वाले मैमोरी कार्ड में गाने और फिल्म को बाजार से भी डाउनलोड कराया जा सकता है. इस के जरीए कम पैसे में गानों और फिल्मों का मजा लिया जा सकता है. यही नहीं, शादी और दूसरे मौकों के वीडियो तक इस स्मार्टफोन के जरीए बनाए जाने लगे हैं. गंदी फिल्मों का शौक रखने वाले लोगों के लिए स्मार्टफोन वरदान जैसा हो गया है. वे गुपचुप तरीके से इन का भरपूर मजा लेने लगे हैं. यही वजह है कि गांव के बाजारों में बिकने वाली बेहूदा और कहानी टाइप की किताबों की बिक्री बंद हो गई है. 20 से 25 रुपए खर्च कर के मैमोरी कार्ड में 3 से 5 फिल्में लोड हो जाती हैं. इतना खर्च कर के केवल 1 या 2 किताबें ही मिल पाती थीं. ऐसी किताबों को दूसरों की नजरों से छिपाना मुश्किल काम होता था, जबकि मोबाइल फोन में कैद इन फिल्मों को छिपाना मुश्किल नहीं है.

स्मार्टफोन के बढ़ने से गांव के मनोरंजन में प्रयोग होने वाले दूसरे साधन भी बंद हो गए हैं. आज मनोरंजन के बाजार में गानों के कैसेट और टेपरैकौर्डर गायब हो गए हैं. इसी तरह से रेडियो भी गांव के बाजार से गायब हो गया है. कुलमिला कर देखा जाए, तो स्मार्टफोन गांव में बातचीत करने के साथसाथ मनोरंजन का भी बड़ा साधन बन कर उभरा है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने गांवगांव अपनी बात को पहुंचाने के लिए मोबाइल फोन का सहारा लिया था. उस ने बड़ी तादाद में एसएमएस के जरीए अपना प्रचार किया. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव आ रहे हैं. चुनाव लड़ने वाले लोग स्मार्टफोन के जरीए अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कम समय में पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं.  कई जुझारू किस्म के नौजवानों ने स्मार्टफोन का सहारा ले कर ऐसी वीडियो क्लिप बनाईं, जिन्हें देख कर पुलिस और प्रशासन को कार्यवाही करने के लिए मजबूर होना पड़ा. थाना और तहसील की हकीकत को मोबाइल फोन में कैद कर के शहर के बडे़ अफसरों तक पहुंचाने का काम भी गांव के लोग करने लगे हैं, जिस से वहां के सरकारी नौकर गलत काम करने से पहले सौ बार सोचने पर मजबूर होने लगे हैं. अगर सरकारी लैवल पर इन साधनों को बढ़ावा दिया जाए और इस तरह से मिलने वाली शिकायतों को गंभीरता से लिया जाए, तो ये फोन गांव के लोगों के लिए बड़े मददगार साबित हो सकते हैं.                    

मोबाइल फोन पर इन की राय

जिस तरीके से सरकारी व्यवस्था कंप्यूटर के हवाले हो रही है, सरकार ईगवर्नैंस पर जोर दे रही है, उस से आने वाले दिनों में स्मार्टफोन का इस्तेमाल बढ़ने ही वाला है. इस से गांव के लोग अपनी शिकायत ऊपर के अफसरों तक पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं. वे इसे मनोरंजन का बेहतर साधन बना रहे हैं. इस के जरीए वे सीधे तमाम लोगों से जुडे़ रहते हैं. जिन लोगों के पास पैसा कम है, गरीब हैं, वे भी मिस काल मार कर अपनी बात को पहुंचाने का जरीया खोज ही लेते हैं. परिवार के लोग भी नातेरिश्तेदारों के संपर्क में पहले से ज्यादा रहने लगे हैं. स्मार्टफोन के चलन में आने के बाद गांव में चिट्ठी से खबरों का आदानप्रदान बंद सा हो गया है. आज लोगों में पढ़ाईलिखाई का लैवल भी बढ़ रहा है. गांव के बच्चे भी मोबाइल फोन चलाना सीख चुके हैं.

– शशिभूषण, समाजसेवी, पानी संस्थान.

पहले मेरे गाने कैसेट पर आते थे. लोगों को सुनने के लिए टेपरैकौर्डर रखना पड़ता था. जब से मोबाइल फोन में गानों को डाउनलोड कर सुनने का तरीका आ गया है, लोग मेरे गानों को मोबाइल फोन पर डाउनलोड कर लेते हैं. इस तरह से लोग जब चाहे गानों को सुन सकते हैं. कुछ समय से लोगों की यह डिमांड होने लगी कि गाने यूट्यूब पर डाले जाएं. जिस से वहां से फोन पर सीधे डाउनलोड किए जा सकें. कई गानों को वीडियो के साथ देखा जाता है.

स्मार्टफोन आने के बाद से गांव के लोगों की मनोरंजन की दुनिया ही बदल गई है. जब हम कहीं जाते हैं, तो लोग हमारे फोटो अपने मोबाइल फोन से ही लेना चाहते हैं. कुछ लोग तो पूरा वीडियो शूट कर लेते हैं. गांव के लोगों में स्मार्टफोन के प्रति लगाव बढ़ा है. यह अब इन के लिए जरूरत की चीज बन गई है. यह बात गांव में रहने वालों को समझ आ चुकी है.                        

– खुशबू उत्तम, भोजपुरी गायिका

जरूरत एक की, मिलते एक हजार

मोबाइल फोन के बाजार में भी शहर और गांव का अंतर देखने को मिलता है. गांव के लोगों को केवल एक मोबाइल फोन की जरूरत होती है. इस के बावजूद गांव के बाजार में एक हजार किस्म के मोबाइल फोन मिलते हैं. अलगअलग नामों से बिकने वाले ये फोन करीबकरीब एकजैसी कीमत और फीचर्स वाले होते हैं. ज्यादातर फोन चाइनीज ब्रांड के सस्ते होते हैं. कुछ लोकल फोन भी गांव के बाजार में अपना प्रचारप्रसार करते हैं. सब से ज्यादा फोन उसी कंपनी के बिकते हैं, जो कंपनी दुकानदार को ज्यादा सुविधाएं और कमीशन देती है. गांव के लोग जब मोबाइल फोन खरीदने दुकानदार के पास जाते हैं, तो दुकानदार अपनी बातों से उन को वही मोबाइल खरीदने के लिए मजबूर कर देता है, जो वह बेचना चाहता है. अगर ग्राहक किसी दूसरे ब्रांड का मोबाइल फोन मांगता भी है, तो दुकानदार कहता है कि इस फोन की जिम्मेदारी उस की नहीं है.

ऐसे में ग्राहक वही मोबाइल लेता है, जो दुकानदार कहता है. अगर मोबाइल कंपनियां अपने ब्रांड का सही प्रचारप्रसार गांव के लोगों के बीच कर सकें, तो ग्राहक को अपनी जरूरत के हिसाब वाला मोबाइल फोन लेने में सुविधा हो सकेगी. गांव के लोगों को मोबाइल फोन ऐसा चाहिए, जिस से सही तरीके से बात हो सके. इस के लिए जरूरी है कि मोबाइल फोन नैटवर्क को ठीक से पकड़े. गांव में बिजली की परेशानी रहती है, इसलिए मोबाइल फोन की बैटरी लंबे समय तक चलने वाली हो. यह जल्द चार्ज होने वाली होनी चाहिए. मोबाइल फोन में अब इंटरनैट का प्रयोग बढ़ रहा है. ऐसे में मोबाइल फोन पर इंटरनैट सही से चलना चाहिए. मोबाइल फोन में कीपैड होना चाहिए. क्योंकि टच स्क्रीन चलना थोड़ा मुश्किल होता है. वीडियो फिल्म और गानों को पसंद करने वाले लोग मोबाइल फोन की बड़ी स्क्रीन पसंद करते हैं. ये लोग चाहते हैं कि मोबाइल फोन में पड़ने वाला मैमोरी कार्ड ज्यादा कैपेसिटी का हो, जिस से ज्यादा से ज्यादा गाने और वीडियो लोड हो सकें

दुकानदार पर निर्भर हैं ग्राहक

बाजार में जरूरत से ज्यादा मोबाइल फोन मुहैया होने से ग्राहक दुकानदार पर निर्भर हो गए हैं. इस के अलावा गांव के बाजार में बिकने वाले मोबाइल फोन अपना प्रचारप्रसार नहीं करते, जिस से ग्राहक उन के फोन की खासीयत को समझ सकें. गांव के ग्राहकों को मोबाइल फोन के संबंध में बहुत जानकारी नहीं होती है. ऐसे में वे दुकानदार की बताई बात को मानने को मजबूर होते हैं. कई बार वे अपने आसपास के लोगों के फोन को देख कर फोन खरीदने की कोशिश भी करते हैं, तो दुकानदार उन्हें गारंटी न देने का डर दिखा कर रोक देते हैं. ग्राहकों को चाहिए कि वे मोबाइल फोन खरीदने से पहले अपनी जरूरतों को समझ लें. मोबाइल फोन की कीमत उस में मौजूद फीचर्स से घटतीबढ़ती है. केवल एक दुकान पर देख कर ही मोबाइल फोन न खरीदें.  मोबाइल फोन को खरीदने के पहले आसपास की दुकानों को देख लें. अगर गांव से शहर ज्यादा दूर न हो, तो शहर की दुकान से मोबाइल फोन खरीद सकते हैं. हर मोबाइल कंपनी अपने फोन की वारंटी देती है. फोन लेने से पहले उस की वारंटी जरूर देख लें. फोन का पक्का बिल भी लें. कई बार पक्का बिल न होने की दशा में दुकानदार अपनी कही बात से मुकर जाता है. मोबाइल फोन लेने के बाद उस की सिक्योरिटी का खास ध्यान रखें, खासकर स्मार्टफोन पानी वगैरह में गिर जाने से जल्दी खराब हो जाते हैं. इन की स्क्रीन जल्दी खराब हो सकती है. कई बार स्क्रीन पर कुछ लगने से वह टूट जाती है. स्क्रीन को महफूज रखने के लिए स्क्रीन गार्ड जरूर लगवा लें.

जेल से बड़ा जुर्म

52 साल के सत्यपाल शर्मा को गांव में हर कोई जानता था. वे उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद के गांव सिंघावली अहीर के रहने वाले थे और नजदीक के ही एक गांव खिंदौड़ा में बने आदर्श प्राइमरी स्कूल में हैडमास्टर  थे. गांव में उन की खेतीबारी भी थी. उन के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा एक बेटा सोनू व एक बेटी सीमा थी. 23 अप्रैल, 2016 की सुबह सत्यपाल शर्मा रोजाना की तरह मोटरसाइकिल से स्कूल गए थे. सुबह के तकरीबन पौने 10 बजे थे. लंच ब्रेक का समय था. सत्यपाल शर्मा स्कूल के बरामदे में कुरसी डाल कर बैठे हुए थे, तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार 3 नौजवान स्कूल परिसर में आ कर रुके. उन में से एक नौजवान मोटरसाइकिल के पास ही खड़ा रहा, जबकि 2 नौजवान पैदल चल कर सत्यपाल शर्मा के नजदीक पहुंच गए. उन्होंने नमस्कार किया, तो सत्यपाल शर्मा ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

उन में से एक नौजवान ने पूछा, ‘‘क्या आप ही मास्टर सत्यपाल हैं?’’

‘‘जी हां, मैं ही हूं. आप लोग कहां से आए हैं?’’

‘‘हम तो नजदीक के गांव से ही आए हैं मास्टरजी.’’

सत्यपाल शर्मा ने उन्हें बैठने का इशारा किया, तो वे पास रखी कुरसियों पर बैठ गए. इस बीच तीसरा नौजवान भी टहलता हुआ वहां आ गया. सत्यपाल शर्मा उन नौजवानों को पहचानते नहीं थे. वे कुछ जानसमझ पाते कि उस से पहले ही कुरसी पर बैठे दोनों नौजवान बिजली की सी फुरती से खड़े हुए और उन्होंने अपने हाथों में तमंचे निकाल लिए. सत्यपाल शर्मा सकते में आ गए. पलक झपकते ही एक नौजवान ने उन्हें निशाना बना कर गोली दाग दी. गोली उन के पेट में लगी और खून का फव्वारा छूट गया. सत्यपाल शर्मा समझ गए थे कि वे नौजवान उन के खून के प्यासे हैं. वे जान बचाने के लिए चिल्लाते हुए परिसर में तेजी से भागे, लेकिन तकरीबन 50 मीटर ही भाग पाए थे कि बदमाशों ने उन पर 2 और फायर झोंक दिए. इस से वे लहूलुहान हो कर जमीन पर गिर पड़े. गोलियां चलने से स्कूल के टीचरों व बच्चों में चीखपुकार और भगदड़ मच गई. स्कूल चूंकि गांव के बीच में था, इसलिए आसपास के गांव वाले भी इकट्ठा होना शुरू हो गए.

यह देख कर गोली मारने वाले बदमाशों के पैर उखड़ गए. घिरने का खतरा देख कर मोटरसाइकिल वाला बदमाश अकेला ही भाग गया, जबकि एक बदमाश दीवार कूद कर खेतों की तरफ और तीसरा बदमाश गांव के रास्ते की तरफ भाग निकला. जो बदमाश गांव की तरफ भागा था, गांव वालों ने उस का पीछा कर कुछ ही दूर जा कर उसे पकड़ लिया था. गांव वालों ने पीटपीट कर उसे लहूलुहान कर दिया. उधर बदमाशों की गोली से घायल सत्यपाल शर्मा की मौके पर ही मौत हो गई. इस सनसनीखेज वारदात की सूचना पा कर थाना सिंघावली अहीर के थाना प्रभारी सुभाष यादव अपने दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए. हत्या की इस वारदात से गांव वालों में भारी गुस्सा था. लिहाजा, एसपी रवि शंकर छवि, कलक्टर हृदय शंकर तिवारी, एएसपी अजीजुलहक, सीओ कर्मवीर सिंह व दूसरे थानों का पुलिस बल भी वहां आ पहुंचा. पुलिस को मौके से एक तमंचा व खाली कारतूस बरामद हुए.

उधर सत्यपाल शर्मा की मौत की खबर से उन के परिवार में कुहराम मच गया था. उन की पत्नी उर्मिला व बेटा सोनू भी वहां आ पहुंचे थे. थाना पुलिस को गांव वालों के आरोपों के साथ विरोध का सामना करना पड़ रहा था. इस विरोध की भी वजह थी. लोगों का आरोप था कि कुछ दिनों पहले कुछ बदमाशों ने सत्यपाल शर्मा पर उन के घर पर हमला किया था. उन्होंने इस की शिकायत थाने में की थी और जान का खतरा बता कर सिक्योरिटी की मांग की थी, लेकिन थाना प्रभारी सुभाष यादव ने इस मामले में घोर लापरवाही दिखाते हुए नजरअंदाज कर दिया था. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि सत्यपाल शर्मा की जमीन को ले कर अपने ही परिवार के लोगों से रंजिश चली आ रही थी. इस रंजिश का शिकार हुए अपने बेटे सतीश के लिए सत्यपाल शर्मा इंसाफ की जंग लड़ रहे थे, इसीलिए उन की भी हत्या कर दी गई थी.

गांव वालों का गुस्सा पकड़े गए बदमाश पर उतर रहा था. वह अधमरी हालत में पहुंच गया था. पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो उस ने अपना नाम सोनू बताया, जबकि अपने साथियों के नाम गौरव व रोहित बताए. सोनू गांव निरपुड़ा का रहने वाला था, जबकि गौरव उस का चचेरा भाई था और रोहित शेरपुर लुहारा गांव का रहने वाला था. पुलिस सोनू को अस्पताल में दाखिल कराती, उस से पहले ही उस की मौत हो गई. पुलिस ने सत्यपाल शर्मा व बदमाश सोनू की लाशों का पंचनामा कर के पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस मामले में पुलिस ने सत्यपाल शर्मा के बेटे सोनू की तरफ से मारे गए व भागे बदमाशों के साथ ही विरोधी पक्ष के राजकरण, उस के भाई रामकिशन व आनंद, राजकरण के 2 बेटों पंकज पाराशर, दीपक, आनंद के बेटों मोहित, रोहित, बेटी पूजा, आनंद की पत्नी बबली, राजकरण की पत्नी कौशल्या, राजकरण के बेटे ईशान व रामकिशन के बेटे महेश के खिलाफ धारा 302 व 120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया गया. मामला बेहद गंभीर था. एसपी रवि शंकर छवि ने थाना प्रभारी सुभाष यादव को तत्काल प्रभाव से सस्पैंड कर दिया और थाने का प्रभार चंद्रकांत पांडेय को सौंप दिया. उन्होंने आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश देने के साथ ही हत्या की साजिश का खुलासा करने के निर्देश भी दिए.

पुलिस ने सत्यपाल शर्मा की पत्नी उर्मिला व बेटे सोनू के साथसाथ गांव वालों से भी पूछताछ की. मामला सीधेतौर पर रंजिश का था. दरअसल, सत्यपाल शर्मा की राजकरण व आनंद से जमीन की डोलबंदी को ले कर तकरीबन 10 साल से रंजिश चली आ रही थी. इसी रंजिश में 4 जुलाई, 2014 को सत्यपाल शर्मा के  जवान बेटे सतीश की सुबह तकरीबन 8 बजे उस वक्त गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जब वह खेत में काम करने के लिए गया था. सत्यपाल शर्मा ने इस मामले में 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने इस मामले में आनंद व उस के बेटे मोहित को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. आनंद के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल किया गया तमंचा व कारतूस भी बरामद हुए थे, जबकि बाकी आरोपियों को पुलिस ने जांच के दौरान क्लीनचिट दे दी थी. इस मामले में पुलिस मिलीभगत के आरोपों का सामना कर रही थी. बेटे सतीश की मौत से दुखी हो कर सत्यपाल शर्मा ने सोच लिया था कि वे उस के कातिलों को सजा दिला कर रहेंगे, इसलिए वे आएदिन कचहरी जा कर मुकदमे को मजबूत करने के लिए पैरवी करते थे. उन की पैरवी का ही नतीजा था कि जेल में बंद आरोपियों को जमानत नहीं मिल पा रही थी.

सत्यपाल शर्मा की इसी पैरवी से चिढ़ कर 26 मार्च की रात उन पर उस समय हमला किया गया था, जब वे घर पर थे. बदमाश गोली चला कर भाग गए थे. सत्यपाल शर्मा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. जब उन्होंने जान का खतरा बता कर पुलिस से सिक्योरिटी मांगी थी, तब थाना पुलिस ने न जाने किन वजहों से अपने फर्ज से मुंह मोड़ लिया था. पुलिस दोनों पक्षों की रंजिश से वाकिफ थी. बाद में इस मामले में सत्यपाल शर्मा की तहरीर पर राजकरण व रोहित के खिलाफ धारा 452 व 523 के तहत मुकदमा तो लिख लिया गया था, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई थी. इस के बाद सत्यपाल शर्मा की हत्या हो गई थी. पुलिस सत्यपाल शर्मा के हत्यारों की तलाश में जुट गई. अगले दिन पुलिस ने इस मामले में नामजद रोहित व उस की बहन पूजा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ की गई, तो एक चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ कि इस हत्या की योजना लाखों रुपए की सुपारी के बदले मेरठ जेल में बनाई गई थी. पुलिस ने जरूरी सुराग हासिल कर के उन दोनों को जेल भेज दिया और दूसरे आरोपियों की तलाश में लग गई. 26 अप्रैल, 2016 को पुलिस ने एक शूटर गौरव व एक औरत किरन को गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ हुई, तो पुलिस भी चौंक गई, क्योंकि आरोपी परिवार की औरतों से ले कर गिरफ्तार की गई औरत ने भी हत्या की इस साजिश में अहम भूमिका निभाई थी. पूछताछ में सत्यपाल शर्मा की हत्या का हैरान करने वाले सच सामने आया.

दरअसल, सत्यपाल शर्मा अपने बेटे सतीश की हत्या की जिस तरह से पैरवी कर रहे थे, उस से आनंद व उस के बेटे मोहित को चाह कर भी जमानत नहीं मिल पा रही थी. उन्होंने अपनी जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील कर दी थी. 31 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में उन की जमानत पर सुनवाई होनी थी. सत्यपाल शर्मा इस का कानूनी तरीके से विरोध कर रहे थे. आरोपियों को लगने लगा था कि सत्यपाल शर्मा के रहते उन्हें कभी जमानत नहीं मिल पाएगी और उन्हें सजा हो कर रहेगी. सत्यपाल शर्मा के पैरवी बंद कर देने से उन की राह आसान हो सकती थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था. आनंद की पत्नी बबली अपने पति व बेटे से अकसर जेल में मुलाकात के लिए जाती थी. उस ने आनंद व मोहित को उकसाया कि वे किसी भी तरह सत्यपाल का कोई इलाज करें. जितने रुपए कोर्टकचहरी में खर्च हो रहे हैं, उतने में तो उसे मरवाया जा सकता था. आनंद और मोहित को बबली की बात ठीक लगी. जेल की बदहाल जिंदगी से वे पहले ही परेशान थे. बबली अपनी जेठानी कौशल्या से इस संबंध में अकसर बात करती थी.

आनंद ने जेल में रहते बदमाश अमरपाल उर्फ कालू व अनिल से बात की. अमरपाल बागपत के ही छपरौली थाना क्षेत्र के शेरपुर लुहारा गांव का रहने वाला था, जबकि अनिल सूप गांव का बाशिंदा था. वे दोनों भी हत्या के मामले में मेरठ जेल में बंद थे. दोनों के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे. आनंद व उस का परिवार सत्यपाल शर्मा को रास्ते से हटाना चाहता था. दोनों बदमाशों ने इस काम के लिए हामी भर ली. साढ़े 6 लाख रुपए में उन का सौदा तय हो गया. अमरपाल ने इस मामले में अपने ही गांव के रोहित को जेल में बुलवा कर उस से बात की. उस से रुपयों के बदले में सत्यपाल शर्मा की हत्या करना तय हो गया. रोहित ने इस काम के लिए अपने दोस्तों सोनू राणा उर्फ शिशुपाल उर्फ अमरीकन व उस के चचेरे भाई गौरव को भी तैयार कर लिया. अमरपाल जेल में जरूर था, लेकिन उस के गैरकानूनी कामों को उस की पत्नी किरन उर्फ बाबू पूरा करती थी. इस मामले में भी अमरपाल ने सुपारी के लेनदेन से ले कर हथियार मुहैया कराने  तक की जिम्मेदारी किरन को ही सौंप दी और उस की मुलाकात आनंद की पत्नी बबली से करा दी. सुपारी की रकम हत्या के बाद दी जानी थी.

11 अप्रैल को किरन, रोहित, गौरव व सोनू जेल में जा कर अमरपाल व अनिल से मिले. आनंद व उस की पत्नी बबली की भी उन से मुलाकात हुई और हत्या का प्लान तैयार कर लिया गया. इस के बाद रोहित अपने साथियों के साथ किरन के संपर्क में रहने लगा. हत्या के लिए किरन ही उन्हें हथियार देने वाली थी. हत्या किस तरह करनी है, इस की पूरी कमान अब बबली व किरन ने संभाल ली थी. किरन अपने मायके मुजफ्फरनगर जिले के टयावा गांव में रह रही थी. अमरपाल के कई साथी, जो जेल से बाहर थे, किरन उन के संपर्क में थी. उन से बात कर के उस ने 3 तमंचों और कारतूसों का इंतजाम कर लिया था. 14 अप्रैल को रोहित, गौरव व सोनू बबली से उस के घर जा कर मिले. बबली ने उन्हें खर्च के लिए 10 हजार रुपए दिए. तीनों ने बबली व कौशल्या से सत्यपाल शर्मा के बारे में जानकारियां जुटा लीं. इस के बाद किरन ने उन्हें 3 तमंचे व 17 कारतूस सत्यपाल शर्मा की हत्या के लिए दे कर ताकीद कर दिया कि वह किसी भी सूरत में बचना नहीं चाहिए. इस के बाद कई दिनों तक उन्होंने रेकी कर के सत्यपाल शर्मा की पहचान के साथसाथ स्कूल आनेजाने का समय भी पता कर लिया.

23 अप्रैल को उन्होंने योजना को आखिरी रूप देने का फैसला किया. 22 अप्रैल की शाम को वे मोटरसाइकिल से बबली के घर पहुंच गए. किसी को शक न हो, इसलिए उन के सोने का इंतजाम एक ट्यूबवैल पर कर दिया गया. बबली और उस के बेटेबेटी ने उन के खानेपीने व सोने का भी इंतजाम किया था. 23 अप्रैल की अलसुबह वे वहां से निकल गए. उन्होंने सत्यपाल शर्मा को रास्ते में ही स्कूल जाते वक्त मारने की योजना बनाई. वे खिंदौड़ा वाले रास्ते की एक पुलिया पर खड़े हो गए. सत्यपाल शर्मा अपनी मोटरसाइकिल पर तेजी से आए और निकल गए, इसलिए उन का प्लान चौपट हो गया. इस के बाद वे तीनों बदमाश इधरउधर टहलते रहे. बाद में उन्होंने स्कूल जा कर ही सत्यपाल शर्मा की हत्या करने का मन बनाया. सत्यपाल शर्मा को मारने में गलती न हो, इसलिए सोनू व रोहित ने पहले उन से नाम पूछा और इस के बाद उन तीनों ने गोली मार कर उन की हत्या कर दी. शोरशराबा होने पर वे घबरा गए और मजबूरन उन्हें अलगअलग रास्ते से भागना पड़ा. सोनू भीड़ के गुस्से का शिकार हो गया. पुलिस ने गौरव की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हुआ तमंचा व मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. इस के साथ ही पुलिस ने मुकदमे में किरन, उस के हिस्ट्रीशीटर पति अमरपाल व दूसरे बदमाश अनिल का नाम भी बढ़ा दिया.

एसपी रवि शंकर छवि ने किरन व गौरव को मीडिया के सामने पेश कर के हत्याकांड का खुलासा किया. उन दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

कन्हैया की बढ़ती हैसियत, चमकती सियासत

बिहार की राजधानी पटना से 120 किलोमीटर दूर बसा है बेगुसराय शहर. वहां से तकरीबन 14 किलोमीटर दूर तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र में एक ब्लौक है बीहट. वामपंथियों का पुराना गढ़ होने की वजह से बेगुसराय को ‘बिहार का लेनिनग्राद’ कहा जाता है, जबकि बीहट को ‘मिनी मास्को’ के नाम से पुकारा जाता है. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्र संघ का अध्यक्ष कन्हैया झा बिहार के बेगुसराय जिले के बरौनी थाने के बीहट ब्लौक के मसलनपुर टोला गांव का रहने वाला है.

अपने गांव से पटना के रास्ते दिल्ली तक का सफर तय करने में कन्हैया ने काफी पापड़ बेले हैं. पढ़ाई के साथसाथ वह थिएटर करता रहा और साल 2002 में उस ने वाम छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडैंट फैडरेशन जौइन किया था. पिछले दिनों देश विरोधी भाषणबाजी के आरोप में कन्हैया झा की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में पैदा हुई सियासी आग की गरमाहट बिहार तक पहुंच गई है. हर पार्टी अपनेअपने फायदे के हिसाब से इस मामले को भुनाने में लगी हुई है. इस से कन्हैया झा की भी सियासत चमक उठी हैं. पिछले दिनों कन्हैया झा ने पटना आर्ट कालेज के छात्रों के आंदोलन में कूद कर बिहार की राजनीति में भी अपने पैर जमाने की कवायद शुरू कर दी. बिहार में कन्हैया झा की हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बेगुसराय के बीएसएस कोलेजिएट स्कूल कैंपस में उस के कार्यक्रम की सिक्योरिटी में उपविकास आयुक्त और अपर पुलिस अधीक्षक की अगुआई में बिहार पुलिस के 5 सौ जवानों की तैनाती की गई थी. कन्हैया झा के पिता का नाम जयशंकर सिंह है और वे लकवे से पीडि़त हैं. परिवार के खर्च का बोझ कन्हैया झा और उस के भाइयों के कंधों पर है.

कन्हैया झा की मां मीना देवी आंगनबाड़ी सहायिका का काम करती हैं और उन्हें 3 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. उस का बड़ा भाई मणिकांत असम में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है. छोटा भाई राजकुमार यूपीएससी की तैयारी में लगा हुआ है. एक एकड़ खेत है, जिस से समूचे परिवार के लिए दो जून के खाने का अनाज पैदा हो जाता है. कन्हैया झा की मां मीना देवी कन्हैया को देशद्रोही कहे जाने पर गुस्से में भर उठती हैं और उस के बाद वे फूटफूट कर रोने लगती हैं. वे कहती हैं कि अगर उन का बेटा देशद्रोही होता, तो देश का कोई भी आदमी उस का साथ नहीं देता, पर उस के साथ आज लाखों लोग खड़े हैं. इस से साबित होता है कि वह गलत नहीं है. जब कन्हैया झा को देशद्रोह के आरोप में जेल में ठूंसा गया था, तो गांव में उस के घर पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया था, पर उस के पिता ने पुलिस को वापस भेज दिया था.

मीना देवी कहती हैं कि वे देशद्रोही की मां नहीं हैं, जो उन्हें किसी से खतरा होगा. समाज और उन के पड़ोसी ही उन की सिक्योरिटी करेंगे. कन्हैया के पिता ने कहा कि उन का बेटा बेकुसूर है और वह जल्द ही सारे आरोपों से बच कर निकलेगा. कन्हैया का बड़ा भाई मणिकांत और छोटा भाई पप्पू सिंह और राजकुमार भी कहते हैं कि उन के परिवार को कभी भी किसी तरह की सिक्योरिटी की कोई जरूरत नहीं पड़ी है. देश का कानून उन के भाई के साथ इंसाफ करेगा. वाम दलों का गढ़ कही जाने वाली बेगुसराय विधानसभा सीट पर साल 1972 के चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के भोला सिंह ने जीत कर कांग्रेस के किले पर कब्जा जमा लिया था. उस के बाद के चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा अपना किला फतेह कर लिया, पर 1990 में भाकपा के वासुदेव सिंह ने कांग्रेस को शिकस्त दे डाली. उस के बाद साल 1995 के विधानसभा चुनाव में भाकपा के ही राजेंद्र प्रसाद सिंह इस सीट से विधायक बने. उस के बाद 5 विधानसभा चुनावों में भाजपा की इस सीट पर कब्जा रहा. साल 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा और वाम दलों को तगड़ी चुनौती देते हुए एक बार फिर अपनी पुरानी सीट पर कब्जा कर लिया है.

बीहट भूमिहार बहुल गांव है. कन्हैया भूमिहार जाति का है. ‘लाल झंडा’  और ‘लाल सलाम’ इस गांव की पहचान है. इस गांव में ही भाकपा का सांगठनिक आधार रहा है. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल औफ इंटरनैशनल स्टडीज से सोशल ट्रांसफौर्मेशन इन साउथ एशिया (1994-2015) विषय पर पीएचडी कर रहे कन्हैया झा ने गांव के ही स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की. उस ने बरौनी के आरकेसी स्कूल से मैट्रिक पास की. आगे की पढ़ाई के लिए उस ने पटना के कालेज औफ कौमर्स, मगध यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. बीए की पढ़ाई के दौरान ही कन्हैया झा आल इंडिया स्टूडैंट फैडरेशन का अध्यक्ष बना था. उस के बाद उस ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से डिस्टैंस एजूकेशन के जरीए एमए की डिगरी हासिल की. उस के बाद वह पीएचडी की पढ़ाई करने के लिए जेएनयू गया. कन्हैया झा ‘दिनकर’, नागार्जुन और दुष्यंत कुमार की कविताओं का दीवाना है और डफली बजाने का शौकीन है. राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ का गीत ‘दिल का हाल सुने दिल वाला, सीधी सी बात न मिर्चमसाला…’ उस का पसंदीदा गीत है.

पिछले दिनों पटना और बेगुसराय में कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पहुंचे कन्हैया झा का मानना है कि आज देश में संघिस्तान बनाम हिंदुस्तान की लड़ाई चल रही है. आज हालात ये हो गए हैं कि नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के खिलाफ बोलने वालों को जेल भेजा जा रहा है. बड़ी तेजी से सभी शिक्षा संस्थानों के भगवाकरण की साजिश चल रही है. कन्हैया झा ने इस बात पर जोर दिया कि किसी को भी देशद्रोही करार देने का हक संविधान के पास है, संघ यह तय नहीं कर सकता है.

अपने ऊपर लगे देशद्रोह के आरोप के जवाब में वह कहता है कि बेगुसराय की मिट्टी राष्ट्रद्रोही नहीं, बल्कि राष्ट्रकवि पैदा करती है. गौरतलब है कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ बेगुसराय के ही रहने वाले थे. कन्हैया ने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह रोहित वेमुला की राह पर चलने वालों में से हैं, न कि अफजल गुरु की. अपनी इस बात के साथ ही कन्हैया झा ने यह सवाल भी दागा कि अगर अफजल गुरु आतंकवादी था, तो महात्मा गांधी को मारने वाले गोडसे के बारे में क्या कहा जाएगा?

सोना तो सोना है

गहने हर औरत की सुरक्षा की गारंटी भी होते हैं व उस के सौंदर्य और व्यक्तित्व की पहचान भी. जब सोने का दाम कम हुआ था तो लगा था कि उस की मांग बढ़ेगी पर जब सरकार ने इस पर टैक्स लगा दिया और खरीदने पर पैन नंबर देना जरूरी कर दिया तो यह धंधा लगभग चौपट हो गया. हाल ही में जब ब्रिटेन ने यूरोपीयन यूनियन से बाहर जाने का फैसला किया तो सोने का दाम और बढ़ गया, जबकि भारत में मांग घट गई. सोने के प्रति भारतीय महिलाओं का मोह असीम है. असल में यह उन की संपन्नता की निशानी है. औरत अपने पति या पिता की सफलता को गहनों से ही प्रदर्शित कर सकती है और इसीलिए सदियों से सोने का व्यापार चल रहा है. सोने को न खा सकते हैं, न पहन कर सर्दीगरमी से बच सकते हैं पर फिर भी राजाओं से ले कर गरीबों तक में सोने का मोह कभी खत्म नहीं हुआ.

सोने के व्यापार पर ज्यादा अंकुश लगाना सरकारों की बेवकूफी है. सोने में लगा पैसा एक अजीब आत्मविश्वास देता है और परिवार के उत्साह को एक छिपा हुआ बल देता है. इसे कमतर नहीं आंका जाना चाहिए. यह न अमीरी का ढिंढोरा है और न आदमी की मेहनत की बरबादी. नागरिकों की मेहनत तो असल में सरकारी दफ्तरों, सरकारी कार्यक्रमों, मंदिरों, मसजिदों में कहीं ज्यादा बरबाद होती है, जो न सरकार को बल देती है न भक्त को. सरकार को टैक्स लगा कर सोने की खपत को कम करने की जगह उसे खुद के खर्चों को नियंत्रित करना चाहिए जो समाज के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होगा.

इन के जज्बे को सलाम

जयललिता और ममता बनर्जी के बाद उत्तर प्रदेश में अनुमान लगने लगा है कि अगले साल के चुनावों में बाजी मायावती के हाथों में रहेगी. मायावती जीतेंगी या नहीं, यह तो बात दूसरी है पर एक बात इन तीनों में सामान्य है कि ये तीनों ही किसी पुरुष के समर्थन की मुहताज नहीं हैं. होने को तो कई महिला मुख्यमंत्री हुई हैं और आज भी हैं वसुंधरा राजे पर वे अकेले अपने दमखम पर नहीं हैं. ममता बनर्जी, जयललिता और मायावती तीनों ने सिद्ध किया है कि वे बिना पुरुष छत्रछाया के राजनीति जैसे दुरूह और पैतरे वाले क्षेत्र में भी सफल हो सकती हैं और वह भी बिना यह कहे कि वे आधी आबादी औरतों पर निर्भर हैं. इन तीनों की राजनीति अन्य पुरुष राजनीतिबाजों की तरह नीतियों और फैसलों पर चलती है और ये रोजमर्रा के आक्रमणों, रोज की समस्याओं, टूटतेजुड़ते लोगों के हेरफेर को सहन कर लेती हैं.

इन तीनों को गद्दियां विरासत में नहीं मिलीं, इन्होंने छीनी हैं. इन्होंने अरसे से चल रही पार्टियों को हरा कर जीत हासिल की है. ये जब सत्ता से बाहर थीं तो भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पगपग पर खतरों का सामना करा. यह कहानी अब घरघर में दोहराई जा सकती है. लाखों घर ऐसे हो गए हैं, जिन्हें औरतें अपने बल पर चला रही हैं. वे इन तीनों महिला नेताओं की तरह पुरुष शक्ति से लड़ कर सुखी जीवन जी रही हैं बेचारगी का नहीं. उन्हें अब भाई, पिता या बेटों का सहारा नहीं चाहिए. आधुनिक शिक्षा की सब से बड़ी देन यही हुई है कि अब औरतों को वह सब पता है, जो आदमियों को पता है और वे हर उस जगह जा सकती हैं जहां आदमी जाते हैं. केवल इसलामी देशों को छोड़ कर दुनिया भर की औरतें आज मायावती की तरह सत्ता की डोर पाने को तैयार हैं. फिर चाहे सत्ता की हो, घर की हो, दुकान की हो, व्यवस्था की हो, पूरे राज्य की हो अथवा देश की.

जरमनी की ऐंजेला मार्केल अपने बलबूते यूरोप की सब से शक्तिशाली नेता हैं. हिलेरी क्लिंटन अगर राष्ट्रपति बनती हैं, तो बिल क्लिंटन की वजह से नहीं बनेंगी, उन के बावजूद बनेंगी. जरूरत हिम्मत की है, जरूरत संकल्प की है, जो हर स्त्रीपुरुष में बराबर हो सकता है. जरूरत सामाजिक गठन है, जो स्त्रीपुरुष पर बंधन नहीं लगाता या बराबर का बंधन लगाता है. जैंडर आज के युग में निरर्थक होता जा रहा है. मायावती और हिलेरी क्लिंटन जीतें या न जीतें, उन का नाम रेस में पहले नंबर पर होना ही काफी है.

रणबीर कपूर फोड़ेंगे दही हांडी

दही हांडी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश व कई तरह की बंदिशें से मुंबई वासी काफी नाखुश थे. मगर अब मुंबई वासियों के लिए खुशखबरी यह है कि इस बार 25 अगस्त को मुंबई में अभिनेता रणबीर कपूर दही हांडी फोड़ेंगे.

जी हां! ‘‘मुंबई सिटी फुटबाल क्लब’’ की तरफ से मुंबई के अंधेरी इलाके में स्थित ‘‘शाहजी राजे भोसले क्रीड़ा केंद’’ यानी कि अंधेरी स्पोर्ट्स क्लब में दही हांडी का आयोजन किया गया है, जहां शाम पांच बजे दही हांडी फोड़ने का काम अभिनेता रणबीर कपूर करने वाले हैं.

अनमोल पल (भाग-1)

‘‘मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से पाना चाहता हूं. इस तरह कि मुझे लगे कि मैं ने तुम्हें पा लिया है. अब चाहे तुम इसे कुछ भी समझो. पुरुषों का प्रेम ऐसा ही होता है, जिसे वे प्यार करते हैं उस के मन के साथसाथ तन को भी पाना चाहते हैं. तुम इसे वासना समझती हो तो यह तुम्हारी सोच है. पाना तो स्त्री भी चाहती है, लेकिन कह नहीं पाती. पुरुष कह देता है. तुम इसे पुरुषों की बेशर्मी समझो तो यह तुम्हारी अपनी समझ है, लेकिन जिस्मानी प्रेम प्राकृतिक है. इसे नकारा नहीं जा सकता. यदि तुम मुझ से प्रेम करती हो और तुम ने अपना मन मुझे दिया है तो तन के समर्पण में हिचक कैसी?

‘‘मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हम एकांत में मिलें, जैसे कि मिलते आए हैं और एकदूसरे को चूमतेसहलाते हद से गुजर जाएं फिर बाद में एहसास हो कि हम ने यह ठीक नहीं किया. हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. अच्छा है कि इस बार हम मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. वैसे भी कितनी बार हम एकांत के क्षणों में हद से गुजर जाने को बेचैन से रहे हैं, लेकिन मिलने के वे स्थान सार्वजनिक थे, व्यक्तिगत नहीं.

‘‘भले ही उन सार्वजनिक स्थानों पर दुरम्य पहाडि़यों पर उस समय कोई न रहा हो. क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं? क्या मुझे पाने की तुम्हारी इच्छा नहीं होती, जैसे मेरी होती है. शायद होती हो, लेकिन तुम कह नहीं पा रही हो, तो चलो, मैं ने कह दिया.

‘‘इस बार हम मिलने से पहले मानसिक रूप से तैयार हो कर मिलें. दो जवां जिस्म बने ही एकदूसरे में समा जाने के लिए होते हैं. मैं ने अपने मन की बात तुम से कह दी. तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा है.’’

टुकड़ोंटुकड़ों में विदित ने अपनी बात एसएमएस के जरिए सुहानी तक पहुंचा दी. अब उसे सुहानी के उत्तर की प्रतीक्षा थी. विदित ने सुहानी को एसएमएस करने से पहले कई बार सोचा कि ऐसा कहना ठीक होगा या नहीं. कहीं सुहानी इस का गलत अर्थ तो नहीं निकालेगी. लेकिन वह क्या करता? कब तक इच्छाओं को मन में दबा कर रखता. कितनी बार दोनों एकांत में मिले. कितनी बार दोनों तरफ से प्रगाढ़ आलिंगन हुए. कितनी बार दोनों बहुत दूर तक निकले और वापस आ गए. वापस आने की पहल भी विदित ने की. सुहानी तो तैयार थी उस रोमांचक यात्रा के लिए. खैर, जो भी हो, अब लिख दिया तो लिख दिया. वही लिखा जो उस के मन में था, दिमाग में था. दोनों की मुलाकात फेसबुक के माध्यम से हुई. विदित ने उस की पोस्ट को हर बार लाइक किया. कमैंट्स बौक्स में जा कर जम कर तारीफ की.

सुहानी भी चौंकी. इतनी रुचि मुझ में कौन ले रहा है, जबकि मैं दिखने में भी साधारण हूं. फेसबुक पर मेरा ओरिजनल फोटो है. मेरा पूरा विवरण भी दर्ज है. कमैंट्स और लाइक तो उसे और भी मिले थे, लेकिन ये कौन जनाब हैं, जो इतना इंट्रस्ट ले रहे हैं. जवाब में उस ने मैसेज भेजा, ‘‘मेरे बारे में सबकुछ जान लीजिए. यदि आप कुछ उम्मीद कर रहे हैं तो.’’ दूसरी तरफ से भी उत्तर आया, ‘‘मैं सबकुछ जान चुका हूं. यदि आप का स्टेटस सही है तो. हां, आप मेरे बारे में जरूर जान लें. मैं ने कुछ छिपाया नहीं. पारिवारिक विवरण, फोटो सभी के बारे में जानकारी है.’’

‘‘मैं ने भी कुछ नहीं छिपाया,’’ मैं ने भी जवाब दिया.

दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना और यह भी जाना कि विदित शादीशुदा था. उस की उम्र 40 साल थी. वह स्वास्थ्य विभाग में अकाउंटैंट था. उस के 2 बच्चे थे, जो प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे थे. विदित की पत्नी कुशल गृहिणी थी. फिर भी विदित जीवन में कुछ खालीपन महसूस कर रहा था. सुहानी 35 वर्ष की अविवाहित महिला थी, जो एक बड़ी कंपनी में अकाउंटैंट थी. उस के घर पर बुजुर्ग मातापिता थे. 2 बहनों की शादी उस ने अपनी नौकरी के बल पर की थी. पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभातेनिभाते न उस ने किसी की तरफ ध्यान दिया, न उस की तरफ किसी ने. उसे लगा मुझ साधारण दिखने वाली युवती पर कौन ध्यान देगा. फिर अब तो विवाह की उम्र भी निकल चुकी है. मातापिता भी नहीं चाहते थे कि कमाऊ लड़की उन्हें छोड़ कर जाए. यह किसी ने नहीं सोचा कि उस की भी कुछ इच्छाएं हो सकती हैं.

‘‘क्या हम कहीं मिल सकते हैं?’’ विदित ने फेसबुक मैसेंजर पर मैसेज भेजा.

‘‘क्यों मिलना चाहते हैं आप मुझ से?’’ सुहानी ने रिप्लाई किया.

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं.’’

‘‘आप परिवार वाले हैं.’’

‘‘परिवार वाले का दिल नहीं होता क्या?’’

‘‘वह दिल तो आप की पत्नी का है.’’

विदित ने मैसेज नहीं किया. सुहानी को लगा, ‘शायद यह नहीं लिखना चाहिए था, हो सकता है मात्र मिलने की चाह हो. शादी का मतलब यह तो नहीं कि वह किसी से बात ही न करे. मिल न सके. किसी ने तो उसे पसंद किया. उस के सोशल साइड के स्टेटस को, जिस में निराशा भरे चित्रों की भरमार थी. उदास गजलें और गीत थे. किसी ने भी आज तक उसे व्यक्तिगत जीवन और न ही सोशल साइट्स पर इतना पसंद किया था. फिर मिलने में, बात करने में क्या हर्ज है? वह भी तो पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति से मिल रही है जो उस से मिलना चाह रहा था.’ सुहानी ने मैसेज किया, ‘‘व्यक्तिगत बात के लिए व्हाट्सऐप ठीक है,’’ अपने व्हाट्सऐप से सुहानी ने विदित के व्हाट्सऐप पर मैसेज किया. अब बातचीत व्हाट्सऐप पर होने लगी.

‘‘मैं आप को क्यों अच्छी लगी?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘पता नहीं, लेकिन आप को देख कर लगा कि मैं आप को तलाश रहा था,’’ विदित ने जवाब दिया.

‘‘माफ कीजिए और आप का परिवार?’’

‘‘परिवार अपनी जगह है. उस का स्थान कोई नहीं ले सकता. वैसे ही जैसे आप की जगह कोई नहीं ले सकता.’’

‘‘मैं कल दोपहर औफिस लंच के समय आप को रीगल चौराहे के पास वाले कौफी हाउस में मिल सकती हूं,’’ सुहानी ने बताया.

‘‘मैं वहां पहुंच जाऊंगा.’’

सुहानी सोचती रही, ‘मिलना चाहिए या नहीं. एक शादीशुदा, बालबच्चेदार व्यक्ति से मिल कर भविष्य के कौन से सपने साकार हो सकते हैं? वैसे भी क्या हो रहा है अभी? फिर मिलना ही तो है. कितनी अकेली रह गई हूं मैं. साथ की सहेलियां शादी कर के अपने ससुराल व परिवार में मस्त हैं. मैं ही रह गई हूं अकेली. घर पर कब किस ने मेरे बारे में, मेरी इच्छाओं के बारे में सोचा है. क्या मैं अपनी मरजी से किसी से मिल भी नहीं सकती? चलो, आगे कुछ न सही लेकिन किसी को कुछ तो पसंद आया मुझ में.’

दोनों तरफ एक उमंग थी. वह नियत समय पर कौफी हाउस में मिले. दोनों को एकदूसरे की यह बात पसंद आई कि जैसा सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस व फोटो डाला है, वैसे ही थे दोनों, अन्यथा लोग होते कुछ और हैं और दिखाते कुछ और हैं. कौफी की चुसकियां लेते दोनों एकदूसरे को देखते रहे. आंखों से तोलते रहे. सुहानी सोच रही थी कि क्या बात करूं? कैसे बात करूं? तभी विदित ने कहा, ‘‘आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘इस उम्र में शादी,’’ सुहानी ने निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया.

‘‘अभी कौन सी आप की उम्र निकल गई. ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो 40 के आसपास विवाह करते हैं.’’

‘‘मैं ने सब की तरफ ध्यान दिया लेकिन मेरी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘तो अब ध्यान दिए देता हूं,’’ विदित ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप दिखने में अच्छी हैं. अपने पैरों पर खड़ी हैं. कौन आप से शादी करने से इनकार कर सकता है. अच्छा बताइए, आप को कैसा लड़का पसंद है?’’

सुहानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस उम्र में शादी के लिए लड़का नहीं पुरुष ढूंढ़ना पड़ेगा, वह भी अधेड़.’’

‘‘मेरी तरह,’’ विदित बोला.

‘‘हां, खैर ये सब छोडि़ए. आप अपनी सुनाइए. मिल कर कैसा लगा? क्या चाहते हैं आप मुझ से,’’ एक ही सांस में सुहानी कह गई.

‘‘देखिए, मैं ने अपने बारे में कुछ नहीं छिपाया आप से. सुनते हुए अजीब तो लगेगा आप को लेकिन क्या करूं, दिल के हाथों मजबूर हूं. आप मुझे अच्छी लगीं.’’

‘‘आमनेसामने भी,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘जी, आमनेसामने भी?’’ विदित बोला.

‘‘मुझे भी आप की ईमानदारी अच्छी लगी. आप ने भी कुछ नहीं छिपाया.’’

‘‘मेरे मन में कोई चोर नहीं है, तो छिपाऊं क्यों? हां, मैं शादीशुदा हूं, 2 बच्चे हैं मेरे, लेकिन यह कोई गुनाह तो नहीं. फिर यह किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा व्यक्ति को कोई अच्छा लगे तो वह उसे अच्छा भी न कह सके. कोई उसे पसंद आए तो वह उस पर जाहिर भी न कर सके,’’ विदित ने अपनी बात रखते हुए कहा.

‘‘हां, हम अच्छे दोस्त भी तो हो सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा तो विदित चुप रहा. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए, जो पहले से ही सोशल साइट्स से उन को मालूम थे.

‘‘हमें मोबाइल पर ही बात करनी चाहिए. चाहे तो एसएमएस के जरिए भी बात कर सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत बातें सोशल साइट्स पर बिलकुल नहीं,’’ सुहानी ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘आप ठीक कह रही हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आप मुझ से आगे बात करेंगी.’’

‘‘हां, बात करने में क्या बुराई है?’’

‘‘और मिलने में?’’

‘‘मिल भी सकते हैं, लेकिन मैं देर रात तक घर से बाहर नहीं रह सकती. कमाती हूं तो क्या? हूं तो महिला ही न. घर पर जवाब देना पड़ता है. शादी नहीं हुई तो क्या? पूछने को मातापिता, नजर रखने को अड़ोसपड़ोस तो है ही,’’ सुहानी बोली.

‘‘हां, मैं भी आप से ऐसे समय मिलने को नहीं कहूंगा जिस में आप को समस्या हो,’’ विदित ने कहा.

 सुहानी का लंच टाइम खत्म हो चुका था. वह दफ्तर जाने के लिए खड़ी हो गई.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ सुहानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मुझे भी,’’ विदित खुशी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘आज मेरी एक इच्छा पूरी हो गई. आगे न जाने कब दोबारा मिलना होगा.’’

‘‘कल ही,’’ सुहानी मुसकराते हुए बोली.

‘‘क्या, सच में?’’ विदित ने खुशी से कहा.

‘‘हां, यहीं मिलते हैं,’’ सुहानी ने वादा किया.

‘‘थैंक्स,’’ विदित ने धन्यवाद भरे भाव से कहा.

‘‘और बात करनी हो तो मोबाइल पर?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘कभी भी.’’

‘‘मैं रात 10 बजे के बाद अपने कमरे में आ जाती हूं. आप के साथ तो पत्नी व बच्चे होते होंगे,’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘नहीं, बच्चे तो अपनी मां के साथ अलग कमरे में सोते हैं. मांबेटों के बीच मुझे कौन पूछता है?’’ निराशा भरे स्वर में विदित बोला.

‘‘मैं अकेला सोता हूं कमरे में. आप बात कर सकती हैं,’’ और वे विदा हो गए. दूसरे दिन वे फिर मिले. दोनों मिलने के लिए इतने बेकरार थे कि बड़ी मुश्किल से दिन व रात कटी. ऐसा लगा जैसे दूसरा दिन आने में वर्षों लग गए हों. बात कैसे शुरू करें? क्या कहें एकदूसरे से. सो राजनीति, साहित्य, सिनेमा, संगीत की बातें होती रहीं.

‘‘तुम्हारे फेसबुक अकाउंट पर मुकेश के दर्द भरे गीतों का बड़ा संकलन है,’’ विदित ने सुहानी से कहा.

‘‘हां, मुझे दर्द भरे गीत बहुत पसंद हैं,  खासकर मुकेश के और तुम्हें?’’

‘‘मेरी तो समझ में आता है मेरा एकांत, मेरा अकेलापन, इसलिए ये गीत मुझे खुद से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं. लेकिन आप को क्यों पसंद हैं?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘शायद दर्द मेरा पसंदीदा विषय है,’’ विदित ने कहा.

‘‘लेकिन तुम से मिलने के बाद मुझे प्रेम भरे गीत भी अच्छे लगने लगे हैं,’’ सुहानी ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं. आप घर पर दर्द भरे गीत सुनते हैं?’’

‘‘नहीं, अब नहीं सुनता. पत्नी को लगता है कि मुझे अपना कोई पुराना प्रेमप्रसंग याद आता है. तभी मैं ऐसे गाने सुनता हूं और फिर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में कुछ सुननेपढ़ने का समय ही कहां मिलता है?’’ विदित ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘आप की पत्नी से बनती नहीं है क्या?’’ सुहानी ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. पहले सब ठीक था, लेकिन अब वह मां पहले है, पत्नी बाद में. मैं ने पिछली बार जिक्र किया था अकेले सोने के विषय में. बच्चे मां के बिना नहीं सोते. दोनों बच्चे मां के अगलबगल लिपट कर सोते हैं. पत्नी दिन भर घर के कामकाज और दोनों बच्चों की जिम्मेदारियां संभालते हुए इतनी थक जाती है कि सोते ही गहरी निद्रा में चली जाती है.

‘‘एकदो बार मैं ने उस से प्रणय निवेदन भी किया, तो पत्नी का जवाब था कि अब मैं 2 बच्चों की मां हूं, बच्चों को छोड़ कर आप के पास आना ठीक नहीं लगता. बच्चे जाग गए तो क्या असर पड़ेगा उन पर? आप दूसरे कमरे में सोइए. आप कहेंगे तो मैं बच्चों को सुला कर थोड़ी देर के लिए आ जाऊंगी. वह आई भी थकीहारी तो बस मुरदे की तरह पड़ी रही. उस ने कहा जो करना है, जल्दीजल्दी करो. शारीरिक संबंध पूर्ण होते ही वह तुरंत बच्चों के पास चली गई. कभीकभी ऐसा भी हुआ कि हम संभोग की मुद्रा में थे, तभी बच्चे जाग गए और वह मुझे धकियाती हुई कपड़े संभालती बच्चों के पास तेजी से चली गई. बस, फिर धीरेधीरे इच्छाएं मरती रहीं. तुम्हें देखा तो इच्छाएं फिर जाग उठीं. एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं, कहो,’’ सुहानी बोली.

‘‘फेसबुक पर जब तुम से बात होने लगी तो मेरे दिलोदिमाग में तुम समा चुकी थीं. एक बार पत्नी को कुछ जबरन सा कमरे में ले कर आया. संबंध बनाए, लेकिन दिलदिमाग में तुम्हारी ही तसवीर थी. अचानक मुंह से तुम्हारा नाम निकल गया.

‘‘पत्नी ने दूसरे दिन समझाते हुए कहा, ‘यह सुहानी कौन है? रात को उसी को याद कर के मेरे साथ संभोग कर रहे थे आप. जमाना अब पहले जैसा नहीं रहा. किसी ऐसीवैसी लड़की के चक्कर में मत फंस जाना, जो संबंध बना कर ब्लेकमैल करे. न मानो तो जेल भिजवा दे. फिर इस परिवार का, इस घर का, बच्चों का क्या होगा? समाज में बदनामी होगी सो अलग. सोचसमझ कर कदम उठाना. मैं पत्नी हूं आप की, मेरा अधिकार तो कोई नहीं छीन सकता, लेकिन अपनी हवस के कारण किसी जंजाल में मत उलझ जाना.’’

‘‘मैं ऐसी नहीं हूं,’’ सुहानी ने कहा. उसे लगा कि विदित उसे सुना कर ये सब कह रहा है.

‘‘अरे… मैं तो तुम्हें सिर्फ पत्नी की बात बता रहा हूं. मुझे तुम पर भरोसा है. हम ने ईमानदारी से अपना सच एकदूसरे को बताया है. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा है.’’

‘‘आजमा कर देख लो,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा. लंच टाइम खत्म हो चुका था. उन्हें मजबूरन अपनी बात समाप्त कर के उठना पड़ा. इस वादे के साथ कि वे फिर मिलेंगे. वे फिर मिले. उन की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया. मुलाकातों के स्थान भी बदलने लगे. कभी वे पार्क में टहलते तो कभी किसी रेस्तरां में साथ बैठ कर भोजन करते. कभी साथ मूवी देखते.

‘‘मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अकेले में जहां हम दोनों के अलावा कोई तीसरा न हो,’’ विदित ने कहा.

‘‘मेरी एक सहेली कंपनी के काम से बाहर गई है. उस के फ्लैट की चाबी मेरे पास है. हम थोड़े समय के लिए वहां जा सकते हैं,’’ सुहानी ने कहा.

‘‘किसी ने हमें देख लिया तो,’’ विदित ने शंका व्यक्त की.

‘‘मैं किसी की परवा नहीं करती,’’ सुहानी ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘कब चलना है?’’ विदित ने पूछा.

‘‘आज, अभी. 1 घंटे का लंच है. बात करेंगे, चाय पीएंगे और जो कहना है कह लेना.’’ कौफी हाउस से टैक्सी ले कर वे सीधे फ्लैट पर पहुंचे.  सुहानी ने चाय बनाई और विदित को दी. विदित ने सुहानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ विदित ने सुहानी को अपने शरीर से सटा लिया. दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए थे. सांसों में तेजी आ गई थी, विदित ने सुहानी के माथे पर अपने होंठ रख दिए. सुहानी ने स्वयं को विदित को सौंप दिया. दोनों एकदूसरे में समाने का प्रयास करने लगे.            

 – क्रमश:

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