Download App

हम भी मर्द हैं, आखिर लड़की को ऐसे ही थोड़े छोड़ देंगे

कब बंद होगी कैब में छेड़छाड़? कहीं चलती कार में रेप, कभी चूमने की कोशिश

देश की सरकार महिलाओं सशक्तिकरण की बात करती है, लेकिन क्या वाकई महिलाए सशक्त है. महिलाओं के साथ आए दिन होने वाली छेड़छाड़ और रेप की घटनाएं कुछ और ही दास्तां बंया करती है. देश की राजधानी दिल्ली में हाल सबसे बुरा है. राजधानी में कैब में लड़कियों और महिलाओं से छेड़छाड़ के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. कुछ समय पहले ऊबर कैब के ड्राइवर ने चलती कार में युवती का रेप कर दिया था. इस मामले ने दिल्ली समेत पूरे देश हाहाकर मचा दिया था. उस समय बात उठी क्या अब महिलाएं कैब में भी सुरक्षित नहीं है. तो क्या वो रात को काम करना और बाहर निकलना छोड़ दें.

काफी समय तक इसको लेकर चर्चाएं रहीं, सरकार ने सुरक्षा के तमाम दावे किए, पर एक प्रश्न जो आज भी जस का तस बना हुआ है कि क्या आज महिलाएं सेफ हैं. हाल ही में विदेशी महिला के साथ ओला कैब ड्राइवर की ओर से की गई छेड़खानी तो किसी ओर ही तरह इशारा करती हैं. आइए हम आपको बताते कैब से जुड़े अपराध की घटनाओं के बारे में.

सुषमा स्वराज ने की एलजी से बात

शनिवार 7 मई 2016 को एप आधारित टैक्सी सेवा ओला से सफर कर रही एक विदेशी महिला से कैब चालक ने छेड़छाड़ की. विरोध करने पर उसने विदेशी महिला को बीच रास्ते ही उतारकर फरार हो गया. पुलिस ने महिला की शिकायत पर आरोपी कैब ड्राइवर को गिरफ्तार उसे 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है. इस पूरे मामले पर संज्ञान लेते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से बात की. चित्तरंजन पार्क थाने मे दर्ज एफआईआर के मुताबिक 23 साल की बेल्जियम की रहने वाली युवती ने गुरुग्राम से दिल्ली के चित्तरंजन पार्क आने के लिए ओला कैब बुक की थी.

बहाने से बगल वाली सीट में बैठाकर की चुमने की कोशिश

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रांसलेटर का काम करने वाली पीड़िता की स्थानीय दोस्त के  मुताबिक, उसकी दोस्त सफर के दौरान जीपीएस के जरिए रास्ते पर नजर रखे हुए थी लेकिन हौजखास इलाके के बाद कैब ड्राइवर गलत रास्ते पर जाने लगा. मेरी दोस्त ने मुझे कई बार फोन भी किया लेकिन ड्राइवर भरोसा दिलाता रहा कि वो उसे सही जगह पहुंचा देगा. इस बीच ड्राइवर ने अपना जीपीएस बंद होने का बहाना बनाकर मेरी दोस्त को आगे की सीट पर बैठने के लिए मजबूर किया और आगे की सीट पर बिठाने के बाद चूमने और छेड़छाड़ की कोशिश की.

मोबाइल फोन छीन कर डिलीट की बुकिंग

ड्राइवर ने मेरी दोस्त का फोन छीनकर ओला कैब की बुकिंग से जुड़ी जानकारियां भी मिटा दी. लड़की ने जब इसका ज्यादा विरोध किया तो आरोपी ड्राइवर लडक़ी को बीच रास्ते में ही उतारकर फरार हो गया. जैसे तैसे महिला पुलिस थाने पहुंची और आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया. पुलिस ने  आरोपी ड्राइवर राजसिंह को गिरफ्तार करने के साथ साथ हरियाणा नंबर की ओला कैब को भी बरामद कर लिया है. वहीं इस मामले में ओला ने सफाई दी है कि हमने कथित ड्राइवर को ओला प्लेटफॉर्म से हटा दिया है. हम जांच अधिकारियों से इस मामले से जुड़ी हर जरूरी जानकारी साझा कर रहे है.

दिल्ली और भोपाल में पहले भी हुई शर्मनाक घटना

वहीं दिल्ली में 15 दिसंबर 2014 की रात उबेर कैब के ड्राइवर ने भी चलती कार में महिला के साथ शर्मनाक हरकत को अंजाम दिया. गुड़गांव में काम करने वाली एक लड़की ने वसंत विहार से नॉर्थ दिल्ली के इंद्रलोक स्थित अपने घर जाने के लिए मोबाइल ऐप के जरिए उबेर कैब से टैक्सी बुक कराई थी. पीड़िता ने अपने बयान में कहा था कि कैब में बैठने के बाद उसे नींद आ गई थी. कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि कैब ड्राइवर शिवकुमार उसके साथ छेड़छाड़ कर रहा है.

चिल्लाने पर सरिया घुसाने की दी धमकी

पीड़िता ने बाहर निकलने की कोशिश की लेकिन कार लॉक्ड थी. शिवकुमार ने उसके साथ मारपीट की. धमकी दी कि अगर वह चिल्लाई तो वह उसके अंदर सरिया घुसा देगा. इसके बाद उसने रेप किया और बाद में फरार हो गया. घटना के दो दिन बाद 7 दिसंबर 2014 को यूपी के मथुरा से उसे अरेस्ट किया गया. इस मामले में तीस हजारी कोर्ट ने आरोपी ड्राइवर को उम्रकैद की सजा सुनाई. आरोपी तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा है.

पुलिस ने ड्राइवर को किया गिरफ्तार

वहीं 30 जनवरी 2016 को भोपाल में ओला कैब में एक महिला के साथ रेप का मामला सामने आया था. 30 साल की महिला ने ओला कैब के ड्राइवर को फोन करके बुलाया और ड्राइवर उसे एयरपोर्ट के रास्ते ले गया और उसने कैब खड़ी करके महिला के साथ ज्यादती की. महिला के शिकायत करने के कुछ दिन बाद ही पुलिस ने ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया.

बेर को किया था बैन

वहीं इस घटना के बाद कैब संचालक कंपनी उबेर को देश के कई राज्यों में बैन कर दिया गया था. जिसे कुछ माह दोबारा अपनी सवाएं देने के लिए अनुमति दी गई.

एंड्रायड के सामने फेल हुआ ऐप्पल!

बात जब विश्वसनीयता और परफॉर्मेंस की आती है तो ऐप्पल के आईफोन और आईपैड एंड्रायड स्मार्टफोन के मुकाबले कहीं ज्यादा खराब होते हैं. एक अध्ययन से यह खुलासा हुआ है. वैश्विक डेटा सुरक्षा कंपनी बलांक्को टेक्नॉलजी समूह के मुताबिक आईओएस (ऐप्पल) पर आधारित डिवाइस की खराब होने की दर साल 2016 की दूसरी तिमाही में 58 फीसदी रही, जबकि एंड्रायड के स्मार्टफोन की विफलता दर इस दौरान 35 फीसदी रही.

सॉफ्टपीडिया डॉट कॉम ने इस अध्यन के हवाले से कहा कि पहली बार ऐप्पल के डिवाइसों का परफॉमेंस एंड्रायड से कमतर देखा गया है. आईफोन 6 की खराब होने की दर सबसे अधिक 29 फीसदी है, जिसके बाद आईफोन 6s और आईफोन 6s प्लस की बारी है. इस अध्ययन में ऑपरेटिंग सिस्टम, निर्माता, मॉडल और क्षेत्र के आधार पर विफलता दर निकाली गई.

साल 2016 की पहली तिमाही में एंड्रायड डिवाइसों की विफलता दर 44 फीसदी रही. इस अध्ययन में बताया गया, “सैमसंग, लेनोवो और लीटीवी के फोन सबसे ज्यादा विफल रहे. सैमसंग की विफलता दर 26 फीसदी थी तो मोटोरोला की विफलता दर केवल 11 फीसदी थी.”

आईओएस के डिवाइस सबसे ज्यादा नार्थ अमेरिका और एशिया में विफल पाए गए. इन देशों में बेचे गए फोन की गुणवत्ता भी इसका एक प्रमुख कारण हो सकता है. आईओएस के साथ सबसे प्रमुख समस्या वाई-फाई नेटवर्क से कनेक्ट नहीं होना, कनेक्शन कट जाना, कम स्पीड और गलत पासवर्ड का बार-बार संकेत देना रहा.

वहीं, एंड्रायड फोन में कैमरा की खराबी, बैटरी चार्जिग की खराबी, टचस्क्रीन की खराबी और एप का क्रैश होना प्रमुख विफलता रही.इस अध्यययन के निष्कर्षों के मुताबिक, आईओएस के 50 फीसदी एप्लिकेशन क्रैश हुए जबकि एंड्रायड के महज 23 फीसदी एप ही क्रैश हुए.

आईओएस डिवाइसों में सबसे ज्यादा फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट एप में खराबी आई.

योगेश्वर की हो गई चांदी!

रियो ओलंपिक से भले ही पहलवान योगेश्वर दत्त को खाली हाथ लौटना पड़ा हो. लेकिन उनके लिए एक बेहद ही अच्छी खबर आई है. भारत के इस स्टार पहलवान ने 2012 लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था, वो अब सिल्वर में अपग्रेड हो सकता है.

लंदन ओलंपिक में पहलवान योगेश्वर दत्त तीसरे नंबर पर रहे थे. जिसकी वजह से उन्हें ब्रॉन्ज मेडल मिला था. जिस रूसी पहलवान को लंदन ओलंपिक में सिल्वर मिला था, उनका डोप टेस्ट पॉजिटिव पाया गया है, ऐसे में अब उनका मेडल वापस लिया जाएगा, और तीसरे नंबर रहे योगेश्वर को मेडल अपग्रेड कर सिल्वर मेडल दिया जाएगा.

2012 लंदन ओलंपिक में जीता था ब्रॉन्ज मेडल

लंदन ओलंपिक में फ्रीस्टाइल के 60 किलोग्राम वर्ग में रूसी पहलवान बेसिक कुदुखोल ने सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया था, और इसी इवेंट में योगेश्वर को ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा था. लेकिन रूसी पहलवान बेसिक कुदुखोल चार साल बाद डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए. जिसके चलते उनका सिल्वर मेडल योगेश्वर को मिलने वाला है. योगेश्वर का ब्रॉन्ज चौथे नंबर पर रहे खिलाड़ी को दिया जाएगा. कुदुखोव की सिर्फ 27 साल की उम्र में साल 2013 में एक कार दुर्घटना में मौत हो चुकी है.

रूसी पहलवान डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने लंदन ओलंपिक के दौरान इक्ठ्ठा किए सैंपलों का फिर से परीक्षण किया था. ये एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस के तौर पर किया जाता है और ऐसे सैंपलों को 10 साल तक सुरक्षित रखा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कोई आधुनिक दावाओं के इस्तेमाल से डोप टेस्ट में बाच गया है, तो उसे पकड़ा जा सके. ये टेस्ट बेहद एडवांस्ड तरीकों से जाते हैं.

सिल्वर मेडल की नहीं हुई है पुष्टि

योगेश्वर को सिल्वर मिलने की आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं हुई है, लेकिन डोप टेस्ट में बेसिक कुदुखोव के फेल होने के बाद ये तय माना जा रहा है कि, अपग्रेड की घोषणा होने के बाद योगेश्‍वर भी लंदन में सिल्‍वर मेडल विजेता माने जाएंगे. लंदन ओलंपिक में पहलवान सुशील कुमार और शूटर विजय कुमार ने सिल्वर मेडल जीता था.

विवाह कानून में परिवर्तन हो, पर व्यावहारिक नजरिए से

यह खेद की बात है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार समान व्यक्तिगत कानून पर विचार करने को तैयार नहीं है. भगवा मंडली का यह पुराना एजेंडा है कि व्यक्तिगत कानून एकजैसे हों ताकि वे मुसलमानों से तलाक, मेहर व 4 पत्नियां रखने तक का हक छीन सकें. लेकिन इन कट्टरपंथियों को यह नहीं मालूम कि समान व्यक्तिगत कानून में हिंदू विवाह कानून और हिंदू संयुक्त परिवार भी पिस जाएंगे.

आज हिंदू विवाह पाखंडों का एक बड़ा जखीरा है. शुभ मुहूर्त, साए, कुंडली, पंडितों की घंटों की पूजा, अग्नि पूजा, देवताओं का आह्वान, फेरे, छोटीमोटी रस्में आदि हिंदू विवाह का हिस्सा हैं और कुछ कानून के दायरे में आती हैं, कुछ नहीं. यदि समान विवाह कानून विरासत, गोद बने तो सारी पंडिताई धराशाई हो सकती है.

भाजपा को सरकार में आने के बाद जब कानून का मसौदा तैयार करना पड़ा तो उसे यह एहसास हो गया होगा कि पार्टी के आधार, धर्म को यह समान कानून निरर्थक कर देगा.

समान विवाह कानून का अर्थ होगा कि सभी धर्मों के लोग आपस में बिना लागलपेट विवाह कर सकेंगे और विवाह या तो अदालतों में होंगे या फिर किसी कानून के अंतर्गत नियुक्त पब्लिक नोटरी टाइप लोगों के द्वारा. कुंडली देख कर पंडितों को विवाह कराने के जो मोटे पैसे मिलते हैं और रात भर लोगों से फेरों में जगने की जो जबरदस्ती की जाती है, वह बंद हो जाएगी.

मुसलिम कानून में जो परिवर्तन होंगे वे उतने महत्त्व के न होंगे, जितने हिंदू कानूनों में होंगे, क्योंकि मुसलिम व्यक्तिगत कानून कुछ हद तक औरत की रजामंदी पर निर्भर है, जबकि हिंदू विवाह कानून में उसे वर को दान के रूप में दिया जाता है.

मुसलिम विवाह कानून परिवर्तन मांगता है पर जो हौआ दिखाया जाता है कि वे 5 के 25 हो रहे हैं, गलत है. यह भी गलत है कि हर मुसलिम पुरुष 4 पत्नियां रखता है, क्योंकि फिर औरतों की जनसंख्या में पुरुष व महिला का अनुपात 1:4 का होता होगा यानी 4 गुना औरतें उपलब्ध होनी चाहिए.

समान व्यक्तिगत कानून का हौआ केवल चुनावी जुमला है, जैसा अच्छे दिन आने या 15 लाख प्रति व्यक्ति काला धन विदेश से लाने पर देने का. विवाह कानूनों में परिवर्तन हो पर उसे राजनीतिक चश्मे से न देख कर व्यावहारिक रूप दिया जाए. हिंदूमुसलिम दोनों समाजों में व्यक्तिगत कानूनों में बहुत परिवर्तनों की आवश्यकता है ताकि औरतों को अदालतों के गलियारों में वर्षों चप्पलें न घिसनी पड़ें.          

गर्भ मेरा मरजी मेरी

बलात्कार की शिकार एक गरीब औरत को 20 सप्ताह की कानूनी इजाजत की हद के बाहर 24वें सप्ताह में गर्भपात कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. गनीमत है कि उस का मामला हजारों मामलों की तरह दबा नहीं रह गया और 2 दिन में ही फैसला हो गया, जिस से उसे अनचाहे गर्भ से छुटकारा मिल गया.

पर देश की हजारों औरतें हर साल इस तरह से पीडि़त होती हैं. बलात्कार या मरजी से हुए गर्भ को गिराने का फैसला अबोध किशोरियां व युवतियां हफ्तों तक नहीं ले पातीं. कुछ को तो मालूम ही नहीं होता कि सैक्स के कारण वे गर्भवती हो गई हैं. जब तक घर वालों को पता चलता है, तब तक देर हो चुकी होती है और डाक्टर गर्भपात करने से मना कर देते हैं. ऐसे में मोटी फीस दे कर चुपचाप गर्भपात कराना होता है या फिर नौसिखियों के हवाले खुद को छोड़ देना होता है.

कुछ औरतें बारबार गर्भपात कराती हैं, क्योंकि या तो वे खुद उन्मुक्त सैक्स चाहती हैं या फिर बिंदास हो चुकी होती हैं और गर्भपात को मासिक क्रम सा समझने लगती हैं.

गनीमत है कि भारत उन देशों में से है, जहां गर्भपात का कानून काफी उदार है. अमेरिका आज भी आधुनिक होते हुए गर्भपात पर नाकभौं चढ़ाता रहता है और वहां का शक्तिशाली चर्च प्रोलाइफ यानी गर्भ के बच्चे के जीवन के हक की बात जोरशोर से सड़कों, विधान सभाओं और अदालतों में करता रहता है.

गर्भ में जो है उस की मालकिन औरत और सिर्फ औरत है. उस गर्भ पर न तो धर्म, न समाज न सरकार और न ही उस पुरुष की जिस की वजह से गर्भ हुआ, कोई हक है. यह फैसला उस औरत का अपना है चाहे जो भी जोखिम हो. गर्भ में पल रहे भू्रण का कानूनी दर्जा क्या है या लिंग क्या है, यह जानने का भी उसे ही हक है और जब तक वह खुली हवा में सांस नहीं ले लेता उस औरत की संपत्ति है, उस युवती का फैसला है.

सुप्रीम कोर्ट के पास तो अवसर था कि बजाय डाक्टरों का पैनल बनवाने के वह आदेश देती कि हर मामले में फैसला केवल औरत और उस के डाक्टरों का होगा और डाक्टर अपनी सुविधा के लिए अल्ट्रासाउंड मशीनें लगाएं या सक्शन मशीन, यह उन की अपनी मरजी है. डाक्टर को गलती के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, गर्भपात करने या गर्भ में भू्रण के लिंग को पहचानने के लिए नहीं. औरतों ने नाहक ही धर्म या मानवता की आड़ में अपने हक कमजोर कराए हैं.

आईफोन 7 का इंतजार अब होगा खत्म

कई महीनों तक चले अटकलों के दौर के बाद ऐप्पल ने आखिरकार अपना नया आईफोन लाने का ऐलान कर दिया है. कंपनी ने 7 सितंबर के एक इवेंट के इनवाइट भेजे हैं, जिसमें आईफोन 7 से पर्दा उठाएगा जाएगा. इस इवेंट में नई ऐप्पल वॉच भी लॉन्च की जा सकती है.

इनवाइट में लिखा है, 'आपसे 7 तारीख को मिलते हैं. कृपया 7 सितंबर, बुधवार सुबह 10 बजे सैन फ्रैंसिस्को के बिल ग्राहम सिविक ऑडिटोरियम में इन्विटेशन-ओनली इवेंट में शिरकत करें.' इस इनवाइट में ब्लैक बैकग्राउंड में ऐप्पल का लोगो बनाया गया है.

जैसा कि इस इनवाइट से साफ है, यह इवेंट बिल ग्राहम सिविक ऑडिटोरियम में होगा. इसी जगह से ऐप्पल अपने महत्वपूर्ण प्रॉडक्ट्स को लॉन्च करता रहा है. कंपनी ने यहीं पर अपनी इस साल की वर्ल्ड वाइड डिवेलपर्स कॉन्फ्रेंस भी आयोजित की थी, जिसमें उसने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम iOS 10, macOS Sierra और watchOS2 लॉन्च किए थे.

अब तक आईफोन 7 को लेकर कई लीक्स सामने आ चुके हैं. कयास लग रहे हैं कि इसमें 3.5mm जैक नहीं होगा और लाइटनिंग कनेक्टर के जरिए ऑडियो आउटपुट मिलेगी. माना जा रहा है कि इससे अगला आईफोन और पतला हो सकता है.

चुनाव और अपने ब्रांड की मार्केटिंग

कांग्रेस मुक्त भारत के बयान से भाजपा पलट गयी है. वजह है, और दोनों ही वजह जायज हैं. सोनिया गांधी का रोड-शो सफल रहा. उम्मीद से ज्यादा सफल रहा. और राज्य सभा ने जीएसटी विधेयक को पारित कर दिया, जहां कांग्रेस के बिना संविधान में संशोधन का प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता था.

भाजपा ने किस पर इनायत की और किस पर रहम किया? यह बाद में समझ में आयेगा. आयेगा जरूर. यदि मैडम गांधी बनारस में बीमार पड़ने के बजाये कुछ बोल पातीं तो अच्छा होता.

2 अगस्त 2016 का ‘रोड-शो‘ बनारस में अब तक का सबसे बड़ा और सबसे सफल रोड-शो नजर आया. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी छा गईं. नरेन्द्र मोदी का रचा हुआ मोहजाल अब इकलौता नहीं है. 32 साल बाद सत्ता में वापस होने की उम्मीदों ने कांग्रेसियों को एकजुट किया या नहीं? लेकिन संघ और भजपा के आक्रामक तेवर ने दलितों एवं अल्पसंख्यकों में जितनी असुरक्षा की भावना भर दी है, उसकी वजह से कांग्रेस उन्हें भाजपा से बेहतर नजर आने लगी है. वैसे अपने संसदीय क्षेत्र में मोदी जी ने इतना फेंका है, कि लोगों ने लपेटना ही बंद कर दिया. अब चारों ओर योजनाओं और वायदों के मोदी छाप धागे बिखरे पड़े हैं.

वैसे पतंग अभी कटी नहीं है, ना ही भरम पूरी तरह टूटा है, धर्म एवं जातीय समीकरण के आधार पर भाजपा का वोट बैंक अभी है, लेकिन ‘265 प्लस‘ और सरकार बनाने का सवाल है. सपा अंधेरे में है, और बसपा अपने खिसकते आधार को बचाने में है. परिदृश्य यही है, और गलत मुद्दे उछल रहे हैं. दीवारों पर लिखे भाजपा के नारे मुंह चिढ़ा रहे हैं. अभद्र और गलत बयानी प्रदर्शन, दबिश, हिरासत और अदालतों का चक्कर लगा रहे हैं. किसी को खास अफसोस नहीं है, ना ही लिहाज या खयाल है. वाम और वैकल्पिक मोर्चे का पता-ठिकाना नहीं है.

‘मिशन 2017‘ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, भाजपा का बहुप्रचारित मिशन है, जिस पर 2014-15 से ही काम चल रहा है. भाजपा के तेवर और तैयारियां दोनों ही आक्रामक हैं, कुछ ऐसा कि ‘जीत तो हमारी ही होगी‘, सपा के सिर पर ठीकरा फोडेंगे, बसपा का जनाधार खिसकेगा और कांग्रेस को उसने दौड़ से बाहर मान लिया था. बिहार की मात का असर नहीं होगा. धर्म, सम्प्रदाय और जाति का मुद्दा है ही. हवा देना है, तो मीडिया जेब में है. मोदी का क्रेज बरकरार रहेगा.

मिशन-2017 भाजपा के लिये चाहे जो महत्व रखता हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हो रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में, जिस प्रशांत किशोर ने नरेंद्र मोदी को पीएम मोदी बनाया, उसी प्रशांत किशोर ने 2017 में कांग्रेस के रणनीतिकार की भूमिका संभाल ली है. आगाज देख कर कहा जा सकता है, कि भारतीय चुनावी समर में उनके टक्कर का रणनीतिकार कोई नहीं है. भाजपा के खिलाफ बिहार चुनाव में उन्होंने लालू-नीतीश की जीत को सुनिश्चित किया. धंधा चल पड़ा है. चुनाव अपने ब्राण्ड की मार्केटिंग है. खुले तौर पर अपने ब्राण्ड के लिये बाजार में जगह बनाना है.

भाजपा बड़ी मुश्किल से सरकार बनी है, इसलिये चाहती है, कि राजनीति के बाजार में उनके अलावा कोई न बचे. मोनोपोली का व्यापार ही उसे सुरक्षित लग रहा है. सोच फासिस्ट है इसलिये रवैया भी गैर लोकतांत्रिक होता जा रहा है. लोकतांत्रिक तहजीब भाजपा की विवशता है. ‘कांग्रेस मुक्त भारत‘ के सपने को गहरा झटका लगा है. यह पक्षाघात है? दिल का दौरा है? या कुछ और है? संघ और भाजपा के नामी-गिरामी चिंतकों, नीति निर्धारकों और मोदी-शाह की जोड़ी को तय करने दें. बाहरहाल कांग्रेस के 9 घंटे का बनारस रोड-शो भले ही 8 घंटा चला, कांग्रेस अध्यक्ष बीमार हो गयी, मगर कांग्रेस फायदा बटोर रही है. कांग्रेस के मरियल दावे में दम आ गया है. यह मानी हुई बात है, कि यदि कांग्रेस के दावे में दम आता है, अल्पसंख्यकों और दलितों के वोटों का प्रोलाईजेशन होता है, तो सपा और बसपा को ही नहीं भाजपा को भी भारी नुकसान होगा. वैसे इतना तय है, कि लोकसभा चुनाव में जो करिश्मा भाजपा दिखा चुकी है, उसे दोहराना अब संभव नहीं है.

यदि भाजपा यह समझ गयी कि भारतीय लोकतंत्र में ‘कांग्रेस मुक्त भारत‘ का खयाल खयाली पुलाव है, तो वह यह भी समझ जायेगी कि आने वाला कल चुनाव के नाम पर दो दलों का खेल और खिलवाड़ है. इसलिये भाजपा है, तो कांग्रेस जरूरी है, और कांग्रेस है, तो भाजपा जरूरी है. यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह विकल्प उभर आयेगा, जिसे न भाजपा पसंद करती है, ना ही कांग्रेस को खास पसंद है. जिसके उभरने की संभावनायें भारतीय राजनीति में अभी कम हैं. चुनाव में अपने ब्राण्ड की मार्केटिंग राजनीति का व्यावसायिकरण है.

हिन्दी क्यों नहीं बनती पेट की भाषा

हिन्दी की दुर्दशा को अब बजाय किसी भूमिका या प्रस्तावना के इसे आंकड़ों और तथ्यों के जरिये समझने की जरूरत है कि यह पेट की भाषा क्यों नहीं बन पा रही. पिछले साल भोपाल में आयोजित हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  हिन्दी भाषियों को हिन्दी के भविष्य को लेकर यह कहते हुए आश्वस्त किया था कि चिंता या घबराहट की कोई बात नहीं हम सबसे बड़ा बाजार है और हर कोई  हमारा मोहताज है.

बात में दम था इसलिए वह पसंद की गई थी लेकिन एक साल गुजरते गुजरते हिन्दी भाषियों को फिर समझ आ रहा है कि हमारे पास विलाशक थोड़ा बहुत पैसा है और हम दुनिया के बड़े उपभोक्ता सही लेकिन इससे हमें सिवाय स्वांत: सुखाय के क्या हासिल हो रहा है. पैसा तो अंग्रेजी बोलने वाले को ज्यादा मिल रहा है जो आज के प्रतिस्पर्धा के दौर की पहली जरूरत है. आत्मसम्मान और स्वाभिमान से सर तो गर्व से ऊँचा होता है लेकिन पेट पिचकता जा रहा है. हिन्दी भाषी अब भी ग्लानि, कुंठा और आत्महीनता के शिकार इसलिए हैं कि हिन्दी का रोजगार और पेट से कोई संबंध नहीं.

आंकड़े चिंताजनक ओर हैरान कर देने वाले हैं कि देश में धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलने महज 5 फीसदी हैं लेकिन उनकी कमाई हिन्दी भाषियों से लगभग 40 फीसदी ज्यादा है. इतना ही नहीं जो लोग कामचलाऊ अंग्रेजी यानि टूटे फूटे वाक्य बोल लेते हैं वे भी हिन्दी बोलने वालों से 15 प्रतिशत ज्यादा कमा रहे हैं.

देश में हिन्दी बोलने वालों की संख्या 45 करोड़ के लगभग है इनमे से भी 25 करोड़ अंग्रेजी नहीं बोल पाते जाहिर हे वे पिछड़े गंवार और अर्धशिक्षित हैं. इनका पेशा मेहनत मजदूरी और कृषि है. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी अनिवार्य है अगर किसी को उच्चतम न्यायालय के फैसले समझना है तो उसे अंग्रेजी आना चाहिए, संसदीय ब्यौरे और मसौदे अंग्रेजी में ज्यादा छपते हैं, बैंकों की भाषा कमोवेश अभी भी अंग्रेजी ही है.

उलट इसके 55 लाख करोड़ की हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधे से ज्यादा बाजार हिन्दी पर टिका है, रोजाना कोई 20 करोड़ अखबार हिन्दी के निकलते हैं और हर साल हिन्दी की औसतन 600 फिल्में बनती हैं जो लगभग 12 हजार करोड़ रुपये का व्यवसाय करती हैं. टेलीविजन का व्यवसाय अब 20 हजार करोड़ रुपये का आकंड़ा छू रहा है. पर बावजूद इस आर्थिक आधिपत्य के पैसे का बड़ा हिस्सा अंग्रेजी बोलने वालों के खीसे में जा रहा है.

यानि अंग्रेजी की आर्थिक अनिवार्यता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता फिर ऐसे में हिन्दी के प्रचार प्रसार और प्रोत्साहन के माने क्या यह बात सिरे से ही समझ से परे है. हिन्दी में किताबें सबसे ज्यादा छप रही हैं पर बिकती अंग्रेजी की चुनिंदा किताबें हैं क्योंकि नई पीढ़ी बतौर फैशन इन्हें खरीद कर पढ़ती है. सरकारी विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा अंग्रेजी अखबारों और पत्रिकाओं को जाता है जबकि उनके पाठकों की संख्या हिन्दी पाठकों के मुकाबले 90 फीसदी कम है.

ऐसे में अगर हिन्दी भाषियों को अंग्रेजी मुनाफे की जुबान लगती है तो बात हैरत की नहीं है. भविष्य और कैरियर के लिहाज से तमाम अभिभावक चाहते हैं कि बच्चा अंग्रेजी स्कूल में पढ़े, अंग्रेजी लिखना पढऩा-बोलना सीखे जिससे पेट पाल सके. जब हिन्दी से पेट नहीं भरा जा सकता तो हिन्दी दिवस को धार्मिक त्यौहारों की तरह मनाने का कोई औचित्य नहीं रह गया है. हिन्दी अब घरों और समाज में संवादों के आदान प्रदान का काम कर रही है वह भी इसलिए कि यह नेक काम अंग्रेजी में सभी नहीं कर सकते यानि अंग्रेजी नहीं बोल सकते.

सरकार को कोस लें, अंग्रेजी को दोषी ठहरा दें लेखकों और साहित्यकारों को कटघरे में खड़ा कर खुश हो लें पर इस सब से पहले यह सोचें कि हिन्दी को रोजगार की भाषा कैसे बनाएं. हिन्दी दिवस पर दिन भर कर्मकाण्ड कर उसे देर रात वैचारिक समुद्र में विसर्जित कर देने का फैशन यूं ही चलता रहा तो तय है हिन्दी से हो रही कमाई अंग्रेजी बोलने वाले हिन्दी भाषी देसी गिरमिटिये डकारते रहेंगे.

तो क्या अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ फ्रेंच फिल्म ‘टेकन’ की कॉपी है?

बौलीवुड में फिल्मकार मौलिक काम करने से क्यों बचते रहते हैं, यह समझ से परे है? ‘एक्शन जैक्सन’, ‘हे ब्रो’, जैसी लगातार कई असफल फिल्मों की वजह से असफलता के दौर से गुजर रहे अभिनेता अजय देवगन ने अपने करियर को नई गति देने के मकसद से बतौर निर्माता व निर्देशक फिल्म ‘शिवाय’ बना रहे हैं, जिसमें उन्होंने खुद ही एक नई अदाकारा के साथ मुख्य भूमिका निभायी है. इतना ही नहीं उनका दावा है कि इस फिल्म की कहानी भी अजय देवगन ने खुद ही लिखी है.

मगर एक अंग्रेजी दैनिक का दावा है कि अजय देवगन ने शिवाय 2008 में प्रदर्शित फ्रेंच फिल्म ‘टेकन’ की कहानी को चुराकर बनायी  है. इससे यह बात उभर कर आती है कि चोरी करन में बौलीवुड में कोई पीछे नहीं रहना चाहता.

सूत्रों के अनुसार अजय देवगन दिवाली के मौके पर प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्म शिवाय के साथ दर्शकों को जोड़ने के लिए फिल्म के एक दो नहीं पूरे चार प्रोमो/ ट्रेलर बाजार में लेकर आने वाले हैं. अजय देवगन अपनी फिल्म की कहानी को छिपाकर रखते हुए पहला ट्रेलर लेकर आए हैं. पर शिवाय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि फिल्म शिवाय में अजय देवगन का किरदार वर्तमान समय में भगवान शंकर के विनाशकारी रूप जैसा है.

पहला ट्रेलर देखकर जो कहानी समझ में आती है,वह यह है कि अजय देवगन की एक बेटी का अपहरण हो चुका है, यह वह बेटी है, जो कि अपनी मां व सौतेले पिता के साथ विदेश में रहती है और अब वह अपनी बेटी को छुड़ाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. उनके रास्ते में जो भी आता है, उसका विनाश करते देते हैं.

इस कहानी से साबित होता है कि अजय देवगन ने अपनी फिल्म शिवाय की कहानी पिएरे मोरेल निर्देषित फ्रेंच एक्शन फिल्म टेकन से चुरायी है. 2008 में प्रदर्शित इस फिल्म को लुक बेसेन और रॉबर्ट मार्क कामेन ने मिलकर लिखा है. फिल्म टेकन में भी एक पिता अपनी बेटी व उसकी सहेली का अपहरण

होने के बाद उन्हे छुड़ाने के लिए निकलता है. यह कहानी है ब्रायन मिल्स की है,जो कि अपनी बेटी किम के साथ संबंध बनाना चाहता है जो कि अपनी मां व सौतेले पिता के साथ रह रही है. ब्रायन मिल्स चाहता है कि किम संगीत के क्षेत्र में अपना करियर बनाए. पर किम कहती है कि वह करियर शुरू करने से पहले अपनी सहेली के साथ पेरिस की यात्रा पर जाना चाहती है. ब्रायन न चाहते हुए भी उसे इस बात की इजाजत दे देता है. पेरिस पहुंचने पर इन दोनों का अपहरण हो जाता है. अब ब्रायन इन्हे छुड़ाने के प्रयास में लग जाता है. किम बेची जाती, उससे पहले ही ब्रायन उसे छुड़ा लेता है. फ्रांस की यात्रा करते समय ब्रायन ह्यूमन ट्राफीकिंग व सेक्स गुलामी जैसी समस्या से भी परिचित होता है. इस फिल्म ने सफलता के कई रिकार्ड बनाए थे. इस फिल्म के दो सिक्वल ‘टेकेन 2’ और ‘टेकन 3’ बन चुके हैं.

मगर अभी भी अजय देवगन का दावा है कि उनकी फिल्म शिवाय एक्शन के अलावा इमोश्नल ड्रामा वाली फिल्म है. उनके दिमाग में इस फिल्म की कहानी का ख्याल एक वास्तविक घटनाक्रम को पढ़कर आया. अजय देवगन का दावा है कि उनकी फिल्म किसी भी दूसरी फिल्म से प्रेरित नहीं है. खैर,फिल्म के रिलिज होने पर तो सच सबके सामने होगा.

“रियो में मुक्केबाजों की नाकामी की जिम्मेदारी लेता हूं”

रियो ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों के पदक नहीं जीत पाने की नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह संधू ने कहा कि पिछले चार साल से चला आ रहा प्रशासनिक गतिरोध भी उस खेल की दुर्दशा के लिये जिम्मेदार है जो कभी तेजी से प्रगति कर रहा था.

संधू ने कहा कि मैं निजी तौर पर आहत हूं और इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं. लेकिन मेरा मानना है कि मौजूदा हालात में मेरे लड़कों का प्रदर्शन संतोषजनक था. उन्हें काफी कठिन ड्रॉ मिले थे. पिछले चार साल से क्या हो रहा है, मैं जानता हूं लेकिन मुझे लगता रहा कि हालात सुधरेंगे.

बीजिंग में विजेंदर सिंह के कांस्य पदक और लंदन ओलंपिक में एमसी मेरीकॉम को मिले कांस्य पदक के बाद मुक्केबाजी को भारत की पदक उम्मीद माना जा रहा था. रियो ओलंपिक में भारत के तीन मुक्केबाजों में से कम से कम एक पदक की उम्मीद थी लेकिन वे नाकाम रहे.

संधू ने कहा कि किस्मत ने हमारा साथ नहीं दिया. मेरे सभी लड़के पदक विजेताओं से हार गए. मैं किसी को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा लेकिन हमें यथार्थवादी होना होगा. ड्रॉ काफी कठिन थे.

शिवा थापा (56 किलो) को क्यूबा के रोबेइसी रामिरेज ने हराया जिसने बाद में स्वर्ण पदक जीता. वहीं मनोज कुमार (64 किलो) भी स्वर्ण पदक विजेता उजबेकिस्तान के फजलीददीन गेइबनाजारोव से हारे. विकास कृष्णन को रजत पदक विजेता बेक्तेमिर मेलिकुजेव ने हराया.

उन्होंने कहा कि मैं गुजारिश करता हूं कि हमारे मुक्केबाजों की स्थिति को समझें. हमें अपने अहम को भूलना होगा. सबसे पहले सक्रिय राष्ट्रीय महासंघ का होना जरूरी है क्योंकि उसके बिना हम अनाथ हैं. संधू ने कहा कि मजबूत नींव के बिना कुछ नहीं हो सकता. किसी भी खेल के लिये सक्रिय महासंघ होना बहुत जरूरी है. महासंघ के बिना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आवाज नहीं सुनी जायेगी और तकनीकी प्रतिनिधित्व भी नहीं होगा.

पिछले दो दशक से अधिक समय से राष्ट्रीय टीम से जुड़े संधू ने कहा कि मुक्केबाजों को तैयारी के लिये सारी सुविधायें मिली लेकिन प्रतिस्पर्धी विदेशी अनुभव नहीं मिल सका.

उन्होंने कहा कि मैंने इस तरह की सुविधायें पहले कभी नहीं देखी. उन्हें सब कुछ मिला और साइ महानिदेशक इंजेती श्रीनिवास ने काफी सहयोग किया लेकिन निलंबन के कारण हमें कजाखस्तान या उजबेकिस्तान या क्यूबा में अभ्यास सह प्रतिस्पर्धाओं में बुलाया नहीं गया जहां हमारे मुक्केबाजों को दबाव के बिना सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों के खिलाफ खेलने का अच्छा अभ्यास मिलता.

उन्होंने कहा कि इसलिए मैं बार बार कह रहा हूं कि हमें मजबूत महासंघ की जरूरत है. हमें भारत को फिर विश्व मुक्केबाजी सीरीज में लाना होगा. ओलंपिक में उन्हीं मुक्केबाजों का दबदबा रहा जो ये सीरीज और अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ की पेशेवर लीग में खेले.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें