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500वें टेस्ट में जीत के साथ ही नंबर1 बन सकती है टीम इंडिया

न्यूजीलैंड के खिलाफ कानपुर में खेले गए पहले टेस्ट में टीम इंडिया ने 197 रन से जीत दर्ज की. आखिरी दिन जीत के लिए मिले 434 रनों के टारगेट का पीछा करने उतरी न्यूजीलैंड की टीम 236 रन पर ऑल आउट हो गई.

न्यूजीलैंड की दूसरी पारी में ल्यूक रोंची ने सबसे ज्यादा 80 और मिशेल सेंटनर ने 71 रन बनाए. अश्विन ने दूसरी पारी में 6 विकेट लिए. इस तरह कानपुर टेस्ट में उनके कुल 10 विकेट हो गए. जडेजा ने इस टेस्ट मैच में 6 विकेट लिए. उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया है. चेतेश्वर पुजारा और मुरली विजय ने दोनों पारियों में अर्द्धशतक जड़े.

अपने ऐतिहासिक 500वें टेस्ट में शानदार जीत के साथ ही भारत का टेस्ट रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंचना करीब-करीब तय हो गया है. अब टीम इंडिया को इस सीरीज में मिली बढ़त को बनाए रखना जरूरी है. यानी टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन पर पहुंचने के लिए भारत को यह मैच 1-0 से जीतना होगा. नियमों के मुताबिक मैच नहीं, सीरीज के बाद रैंकिंग का ऐलान होता है.

500वां टेस्ट जीतने वाली तीसरी टीम

टीम इंडिया अपना 500वां टेस्ट मैच जीतने वाली दुनिया की तीसरी टीम बन गई है. इससे पहले ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज यह मुकाम पार कर चुके हैं.

ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज ने अपना-अपना 500वां टेस्ट जीता था. जबकि, इंग्लैंड का 500वां टेस्ट ड्रॉ रहा था.

आंकड़ों में कानपुर टेस्ट

टेस्ट में टीम इंडिया की यह 130वीं जीत है और होम ग्राउंड पर 88वां जीत.

न्यूजीलैंड के खिलाफ यह 19वीं जीत है. रन के मामले में न्यूजीलैंड के खिलाफ तीसरी बड़ी जीत.

विराट के पास ‘चौके’ का मौका

कप्तान विराट कोहली के पास इस सीरीज में जीत का चौका लगाने का मौका है जो और मजबूत हो गया. कप्तान बनने के बाद से वो श्रीलंका, साउथ अफ्रीका और वेस्ट इंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीत चुके हैं.

न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज जीतकर विराट के पास जीत का चौका लगाने का गोल्डन चांस हैं. फिलहाल टीम इंडिया 1-0 से आगे है.

दीपिका के बाद करण जौहर ने कबूली डिप्रेशन की बात

बौलीवुड में जितनी तेजी से सफलता मिलती है, उतनी ही तेजी से असफलता भी हाथ लगती है, जिसे संभाल पाना हर इंसान के लिए मुश्किल होता है. परिणामतः ज्यादातर लोग डिप्रेशन मे चले जाते हैं. मगर इस बात को कबूल करने का साहस ‘शो बिजनेस’ से जुडे़ लोगों के लिए हमेशा असंभव रहा है. मगर लगभग एक साल पहले इस बात को दीपिका पादुकोण ने कबूल किया था और अब तो दीपिका पादुकोण एक एनजीओ भी चला रही हैं, जो कि  डिप्रेशन के शिकार लोगों को डिप्रेशन से मुक्ति पाने में मदद करता है.

दीपिका के बाद अब एक टीवी चैनल से बात करते हुए फिल्मकार करण जौहर ने भी कबूल किया है कि वह भी डिप्रेशन का शिकार हुए थे. उन्होंने टीवी चैनल के पत्रकार से कहा-‘‘मैने लोगों को डिप्रेशन पर खुलकर बातें करते सुना है. मेरी जिंदगी में भी एक ऐसा ही पड़ाव आया था. करीबन दो ढाई साल तक मैं क्लीनिकल डिप्रेशन का शिकार रहा. मैं एक मीटिंग में था. तभी अचानक मुझे लगा कि मुझे हृदयाघात हो रहा है. मैने लोगों से माफी मांगी और डाक्टर के पास पहुंचा. पता चला कि यह हार्ट अटैक नहीं, बल्कि डिप्रेशन का मसला है. उसके बाद मैंने मनोवैज्ञानिक डाक्टर से संपर्क किया. फिर मुझे अहसास हुआ कि मुझे अपने कुछ आंतरिक मुद्दों को हल करने चाहिए. मेरी राय में डिप्रेशन कोई दिमागी बीमारी नही है. लोगों को इस पर खुलकर बात करना चाहिए.’’

करण जौहर ने आगे कहा- ‘‘मनोवैज्ञानिक डाक्टर के यहां मैंने मेडीटेशन करके बहुत कुछ बदलाव महसूस किया.’’

गलतफहमी में बर्खास्त हुये थे गायत्री प्रजापति

अखिलेश सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे अधिक चर्चा का विषय गायत्री प्रजापति का बर्खास्त और बहाल होना था. मंत्री पद पर बहाल होने के बाद जिस तरह से गायत्री ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पैर छुये, वो अलग सीन बन गया था. पैर छूने के विषय में गायत्री ने कहा ‘मुलायम और अखिलेश जमीन से जुडे नेता हैं. उन तक पहुंचना सरल है. देश में ऐसे नेता भी हैं जो मंच पर केवल अपने लिये ही कुर्सी रखते हैं. कुछ बड़े नेता आम कार्यकर्ताओं से इतनी दूरी रखते हैं कि उन तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है.’ राजनीति में पैर छूने की संस्कृति नई नहीं है. अलग अलग समय पर अलग अलग नेता चर्चा में रहे हैं. नेताओं को खुश करने के लिये हर उपाय लोग करते हैं.

समझने वाली बात यह थी कि गायत्री प्रजापति कैसे बर्खास्त किये गये थे? गायत्री प्रजापति को हटाने का मुद्दा जब विवादों में आया, मीडिया ने सवाल किया तो हर बार मुख्यमंत्री ने कहा कि गायत्री को हटाने की जानकारी नेता जी को थी. बात यह उठती थी कि अगर नेता जी यानि मुलायम सिंह यादव के कहने पर जब गायत्री हटाये गये, तो नेता जी दोबारा उनको मंत्री बनाने के लिये क्यों कह रहे हैं? मुख्यमंत्री इस बात को हमेशा टाल जाते थे. समाजवादी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि नेता जी और मुख्यमंत्री जी के बीच बातचीत के दौरान गलत फहमी हो गई थी जिसकी बजह से गायत्री बर्खास्त हो गये थे.

घटना क्रम कुछ इस तरह था कि मुख्यमंत्री और नेताजी के बीच टेलीफोन पर बातचीत हो रही थी. जिसमें गायत्री की बात आई. नेता जी ने कहा कि गायत्री का विभाग बदल दो. मुख्यमंत्री जी को यह समझ आया कि नेताजी कह रहे है कि गायत्री को निकाल दो. ‘बदल दो’ और ‘निकाल दो’ की गलत फहमी में गायत्री बर्खास्त कर दिये गये. बर्खास्त करने के बाद कुछ ही देर में उनको वापस मंत्रिमंडल में शामिल करना मुश्किल था.ऐसे में समय का इंतजार जरूरी था.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की 10 अहम बातें

अमेरिका में आज राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहा है और यहां पर मुख्य मुकाबला डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के बीच में होता है. अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव में तमाम अन्य देशों की तरह केवल अमेरिकी नागरिक ही मतदान कर सकते हैं, लेकिन पूरी दुनिया पर पड़ने वाले इसके दूरगामी प्रभावों के कारण दुनियाभर की निगाहें इन चुनावों पर लगी होती हैं.

अमेरिकी राजनीति को समझने परखने वाले विशेषज्ञों की नजर में राष्ट्रपति पद के चुनाव सालों से केवल दो ही पार्टियों डेमोकेट्रिक और रिपब्लिक के इर्द गिर्द ही घूमते रहे हैं, लेकिन वहां की चुनाव प्रक्रिया बेहद उलझाउ प्रतीत होती है जो प्राइमरी, कन्वेंशन, अर्ली पोल और इनोगरेशन तक फैली है. यह प्रक्रिया राष्ट्रपति चुनाव की औपचारिक तिथि से करीब दो साल पहले से शुरू हो जाती है.

प्रमुख अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक कार्नेजी एनडोवमेंट फोर इंटरनेशनल पीस द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव दो चरणों में बंटा होता है : प्राइमरी और आम चुनाव. विभिन्न राज्यों में प्राइमरी चुनाव के जरिए पार्टियां अपने सबसे प्रबल दावेदार का पता लगाती हैं.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फोर कैनेडियन, यूएस एंड लैटिन अमेरिकन्स स्टडीज की प्रमुख प्रोफेसर के पी विजयलक्ष्मी ने बताया कि प्राइमरी के बाद प्रमुख राजनीतिक दल अपने अपने कन्वेंशन का आयोजन करते हैं, जिसमें पार्टी राष्ट्रपति पद के लिए आधिकारिक उम्मीदवार का फैसला करती है.

इसके बाद उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला 538 सदस्यीय इलेक्टोरेल कालेज के हाथों में चला जाता है, जो राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन करते हैं. जनसंख्या के आधार पर हर राज्य को कुछ वोट दिए जाते हैं जिससे साफ जाहिर है कि अधिक आबादी वाले राज्यों के पास अधिक वोट होंगे. सबसे अधिक आबादी वाले कैलिफोर्निया राज्य के पास 55 वोट हैं और सबसे कम आबादी वाले व्योमिंग के पास मात्र तीन वोट हैं.

अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव चार साल में एक बार होता है और यहां की चुनाव प्रक्रिया जटिल होने के साथ दिलचस्प भी है, आइए जानते हैं इस चुनाव की 10 अहम बातें…

1. अमेरिका की जनता राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती है बल्कि जनता के द्वारा एक निर्वाचक मंडल का चुनाव किया जाता है जो राष्ट्रपति को चुनने में अहम भूमिका अदा करते हैं.

2. अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए 3 स्तरों पर चुनाव होता है, राष्ट्रपति चुनाव के पहले पार्टी प्राथमिक चुनाव में चुने गये प्रतिनिधि को दूसरे दौर में अपना प्रत्याशी बनाती है.

3. अमेरिकी राष्ट्रपति पुद का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता 35 वर्ष की आयु है इसके अलावा पिछले 14 सालों से जो व्यक्ति अमेरिका में रह रहा हो, वो अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी मैदान में उतर सकता है.

4. रिपब्लिकन पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है जबकि डेमोकेटिक पार्टी का चुनाव चिन्ह गधा है. 1853 के बाद अभी तक कभी ऐसा नहीं हुआ है जब राष्ट्रपति रिपब्लिकन पार्टी या डेमोकेटिक पार्टी के अलावा किसी अन्य दल का कोई व्यक्ति राष्ट्रपति बना हो.

5. अंतिम चरण में इलेक्टोरल कॉलेज के 538 सदस्य वोटिंग में भाग लेते हैं और राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत जरुरी होते हैं.

6. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही उपराष्ट्रपति पद का चुनाव भी होता है और यहां पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के लिए चार साल तक पद पर बने रहने का प्रावधान हैं.

7. अमेरिका में राष्ट्रपति को पुर्ननिर्वाचित होने का प्रावधान है लेकिन कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक अमेरिका में राष्ट्रपति नहीं चुना जा सकता है.

8. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव को जनरल इलेक्शन कहा जाता है जबकि इसके अलावा जिस चुनाव में राष्ट्रपति का निर्वाचन के लिए मतदान नहीं होता है उसे मिड टर्म इलेक्शन कहा जाता है.

9. अमेरिका में अर्ली वोटिंग का भी प्रावधान है अर्थात यहां पर विशेष परिस्थितिओं में चुनाव के दिन के पूर्व भी मतदान का कराया जा सकता है.

10. अमेरिका से बाहर रह रहे अमेरिकी नागरिक और सेना में कार्यरत कर्मचारी डाक के माध्यम से भी अपना मत दे सकते हैं.

सौंदर्य निखारने का अनोखा प्रोडक्ट

अपनी खूबसूरती को निखारने के लिए महिलाएं कई जतन करती है. कभी घरेलू नुसखे कभी ब्यूटी प्रोडक्ट्स का प्रयोग कर के अपनी सुंदरता को बढ़ाती हैं. पर अब आप को जान कर आश्चर्य होगा कि कई बीमारियों में खाई जाने वाली दवाई ‘एस्प्रिन’ हमारे सौंदर्य के लिए बहुत फायदेमंद है, वे ऐसे…

फैसपैक बनाने की विधि

ऐस्प्रिन को एक कागज पर रख कर महीन पीस लें. एक छोटे कटोरे में एक चम्मच दही और शहद ले कर अच्छी तरह से मिलाएं फिर उस में ऐस्प्रिन का पाउडर डाल कर मिला कर पेस्ट तैयार कर लें. फेस पर पैक लगाने से पहले फेस को हलके कुनकुने पानी से साफ कर लें या गरम पानी से निचोड़ी हुई टौवल कुछ देर फेस पर रख लें. जिस से फेस के पोर्स खुल जाएं. फिर फेस पैक लगाएं. ऐसा करने से इस फेसपैक का असर बेहतर होगा. ब्रश की सहायता से आंख के आसपास की ऐरिया और होठों को छोड़ कर पूरे फेस पर इस पैक को लगा कर आधा घंटा छोड़ दें. सूखने पर इसे कुनकुने पानी से ही हटाएं. पैक को हटाते ही फेस पर एक नई ताजगी आ जाएगी.

ऐस्प्रिन फेस पैक के फायदे

ऐस्प्रिन फेस पैक को फेस पर लगाने से फेस तो क्लीन होता ही है साथ ही स्किन संबंधी बीमारियां भी दूर होती हैं. इस से फेस पर निखार, कसावट भी आती है और फेस दिखता है सनशाइन ब्यूटी…

तो देर किस बात की अपनी ब्यूटी को निखारें ऐस्प्रिन से जो आप के स्किन में एक जान डाल दे और आप दिखें हसीन और जवां…

प्यार के स्वस्थ और खूबसूरत फायदे

कहते हैं लाख दुखों की दवा है प्यार, जब किसी को किसी से प्यार होता है तो वह उस व्यक्ति में कमियां होते हुए भी पौजिटिव चीजें देखता है. दुनिया में शायद ही कोई हो जो प्यार की खुमारी में डूबना पसंद न करता हो, क्योंकि जब आप प्यार में पड़ते हैं तो आप काल्पनिक दुनिया में ही रहते हैं. बातबात पर जहां चारों तरफ खुशी ही खुशी दिखाई पड़ती है. जिंदगी से निराशाओं के बादल छंट जाते हैं. जहां प्यार खुशहाल जिंदगी जीने का जज्बा देता है वहीं वह इंसान को जिंदगी के माने भी सिखा देता है. एक रिसर्च के मुताबिक ‘‘प्यार इंसान के सैल्फ कौंफिडेंस को बढ़ाने का काम करता है. इस के साथ ही प्यार में पड़ा शख्स दूसरों की अपेक्षा ज्यादा खुश रहता है.’’

सच्चा प्यार

सच्चा प्यार कभी भी किसी को देखते ही नहीं होता है यह धीरेधीरे दूसरे व्यक्ति के दिल में अपनी जगह बनाता है. इस में एक ठहराव होता है एकदूसरे की रिस्पैक्ट और अंडरस्टैंडिंग होती है. प्यार जहां एक कमिटमैंट है वहीं वह जिम्मेदारी का अहसास भी कराता है. प्यार में पड़ा व्यक्ति जिंदादिल भी होता है पर क्या आप जानते हैं इतनी सब चीजें होने के साथ प्यार हमारी सेहत और सौंदर्य को बहु फायदा पहुंचाता है तो आइए जानते हैं प्यार के खास फायदे जो आप की सेहत और खूबसूरती से जुड़े हैं.

प्यार के फायदे अनेक

कुछ अध्ययनों से ये बात सामने आई है कि जिम में कसरत करने के मुकाबले अगर रोजाना प्यार करने का टाइम निकाला जाए तो ज्यादा फायदे में रहेंगेः

लव मेकिंग सेशन में योग या वाक के मुकाबले 150 कैलोरी तक घटाते हैं.

  • प्यार के पलों में एडोर्फिन्स रिलीज होते हैं और आप की त्वचा विटामिन डी से भरपूर होती है जिस से त्वचा खिलीखिली होती है.
  • प्यार में रहने से आप की बौडी में एस्ट्रोजन हार्मोन बनते हैं. जिस से त्वचा मुलायम और बाल चमकदार होते हैं.
  • प्यार में होने से आप युवा दिखते हैं और चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं दिखती इस का कारण खुशी के स्तर का बढ़ना.
  • प्यार में होने से दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है. वैज्ञानिक भी मानते हैं प्यार में पड़ना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है.
  • प्यार ब्लडप्रैशर से जुड़ी बीमारियों से आप को सुरक्षित रखता है क्योंकि प्यार में रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.
  • अगर आप प्यार में हैं तो आप की बौडी में एडे्रनेलाइन तैयार होता है जो भूख बढ़ाता है.
  • प्यार मूड फ्रेश करने के साथ हर बड़ी बीमारी से लड़ने के लिए तैयार करता है.
  • प्यार तनाव को दूर करता है और आप सकारात्मक सोच रखते हैं.
  • प्यार में रहने वाला व्यक्ति खुश होने के साथ जिंदादिल होता है उसे अपने लुक को संवारने का सलीका आ जाता है जो उस की खूबसूरती को बढ़ाता है.

प्यार में इतने सारे गुण होने की वजह से क्यों ना कुछ पल प्यार में गुजार लिए जाएं जिस से सेहत और खूबसूरती दोनों ही आप की मुट्ठी में हो और आप रहे हरदम खुश.

भुगता रेल की छत को आंगन बनाने का खमियाजा

बिहार में पटना से सटे मसौढ़ी इलाके के लखनौर गांव का रहने वाला 30 साला जितेंद्र रविदास पिछले 10 सालों से रोज सुबह पटना आ कर मजदूरी करता था और शाम को वापस गांव लौट जाता था. एक महीने पहले ही उस ने अपने 3 बच्चों को स्कूल में दाखिल कराया था. जितेंद्र रविदास की बीवी फुमतिया देवी रोते हुए कहती है कि अब उन की देखभाल कौन करेगा? वजह, ट्रेन के ओवरहैड वायर की चपेट में आने से जितेंद्र रविदास की मौत जो हो गई है.

हरवंशपुर गांव का रहने वाला 50 साला नरेश प्रसाद अपने 3 बेटों के साथ मजदूरी करने रोज पटना जाता था. रोज की तरह वह अपने एक बेटे नीतीश के साथ मजदूरी करने पटना पहुंचा था. शाम को घर लौटते समय ट्रेन में काफी भीड़ होने की वजह से वह ट्रेन की छत पर जा बैठा. उस के साथ सैकड़ों दूसरे मुसाफिर भी ट्रेन की छत पर बैठे हुए थे.

नरेश प्रसाद को ट्रेन की छत पर बैठने का खमियाजा अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा. इस हादसे में उस का बेटा नीतीश बच गया, क्योंकि वह डब्बे के अंदर बैठा हुआ था. नालंदा जिले के हिलसा ब्लौक के दामोदरपुर गांव का रहने वाला 32 साला विजय कुमार 10 दिनों से पटना में अपनी बहन के घर पर रह रहा था. वह अपने बहनोई रवींद्र बिंद के साथ मजदूरी करने जाता था. वह अपने बहनोई के साथ ट्रेन की छत पर बैठा हुआ था. हाई वोल्टेज करंट लगने से विजय ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, जबकि उस का बहनोई बुरी तरह से झुलस गया. विजय की बीवी फुलमंती देवी पेट से है और वह गांव में ही रहती है. अब उस की जिंदगी में घोर अंधेरा छा गया है और उस का बेटा इस दुनिया में आने से पहले ही अनाथ हो गया है.

पटनागया रेलखंड पर 14 जुलाई, 2016 की रात पटनागया ममू ट्रेन में करंट दौड़ने से 3 मुसाफिरों की मौके पर ही मौत हो गई और 24 बुरी तरह से झुलस गए. चारों तरफ चीखपुकार और रोनाधोना मच गया. अंधेरा होने की वजह से पहले तो लोगों की समझ में कुछ नहीं आया कि माजरा क्या है. ट्रेन की छत से गिरतेकूदते लोगों को देख प्लेटफार्म पर खड़े लोगों में भगदड़ मच गई नीमा हाल्ट के पास मोरहर नदी के पास ट्रेन का पेंटो ओवरहैड वायर में फंस कर ट्रेन की छत पर गिर गया, जिस से ट्रेन में सवार मुसाफिर हाई वोल्टेज करंट की चपेट में आ गए. ट्रेन पोटही स्टेशन से चली थी और नदवां स्टेशन की ओर जा रही थी. मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि ओवरहैड वायर के टूटने से ट्रेन की छत पर बैठे लोग इस की चपेट में आ गए. इस से पूरी ट्रेन में करंट दौड़ गया. ट्रेन में सवार मुसाफिर इधरउधर भागने लगे और अफरातफरी मच गई. रेलवे के मुताबिक, शाम के तकरीबन सवा 7 बजे ट्रेन के इंजन को बिजल सप्लाई करने वाला पेंटो टूट गया. इस का पता चलने पर ट्रेन के ड्राइवर

सी. कुंजूर उसे अगले हाल्ट पर ले जाने लगे, ताकि उस की मरम्मत की जा सके. इसी दौरान ट्रेन की छत पर सवार लोग ओवरहैड वायर की चपेट में आ गए.

इतने बड़े हादसे के बाद वारदात वाली जगह पर कुहराम मचा हुआ था और हादसे के बारे में रेलवे पुलिस और रेलवे के अफसर अलगअलग बयान देने में लगे रहे. रेलवे पुलिस का कहना है कि ट्रेन जब मोरहर नदी के पास पहुंची, तो पहले से झुका हुआ ओवरहैड वायर टूट कर गिर गया, जिस से हादसा हुआ. वहीं रेल अफसरों का कहना है कि मुसाफिर ओवरहैड वायर की चपेट में आए, जिस से खंभे पर लगे विटी इंसुलेटर को हैवी अर्थ मिला, जिस से वह टूट गया.

सीनियर सैक्शन इंजीनियर हरेंद्र सिंह के मुताबिक, इंसुलेटर के टूटने की तेज आवाज को सुन कर ड्राइवर ने ट्रेन रोकने की कोशिश की और टैंटोग्राफ को नीचे किया गया. हादसे के खौफनाक मंजर को सुनते हुए कई मुसाफिरों के रोंगटे खडे़ हो जाते हैं. हादसे के समय ट्रेन में सवार मंगतू यादव ने बताया कि तकरीबन 4-5 मिनट तक ट्रेन में करंट दौड़ता रहा और मुसाफिर झटका दर झटका खाते रहे. हाई वोल्टेज तार ट्रेन के पीछे की 3 बोगियों में सटा हुआ था.

करंट के झटकों से किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक क्या हो गया? लोग इधरउधर भागने लगे. डब्बे के अंदर भी चीखपुकार मची हुई थी. हल्ला सुन कर ड्राइवर ने गाड़ी रोकी, तो लोग बदहवास गाड़ी से उतर कर भागने लगे, जिस से कई लोग गिर कर चोट खा बैठे. ट्रेन की छतों से कई सवारियां पके हुए फलों की तरह दनादन गिरने लगीं. पटना जंक्शन के 10 नंबर प्लेटफार्म से पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं और किसी भी पैसेंजर ट्रेन के प्लेटफार्म पर लगते ही सैकड़ों मुसाफिर धड़ाधड़ डब्बों की छतों पर चढ़ने लगते हैं. मीठापुर रेल ओवरब्रिज के नीचे भी मुसाफिरों में छतों पर चढ़ने को ले कर अफरातफरी सी मची रहती है. यह रोज का वाकिआ है. मुसाफिरों को छतों पर बैठने से रोकने वाला कोई नहीं होता है. रेलवे पुलिस के जवान और अफसर देख कर भी अनदेखा कर चलते बनते हैं.

मुसाफिरों का कहना है कि पटना से ज्यादातर पैसेंजर ट्रेनें शाम 6 बजे से 7 बजे के बीच खुलती हैं. उस समय पटना के आसपास के 100-120 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले लोगों को घर लौटने की जल्दबाजी होती है. डब्बे के अंदर ज्यादा भीड़ होने की वजह से ज्यादातर मुसाफिर छतों पर सवार हो जाते हैं. ट्रेनों में डेढ़ हजार मुसाफिरों के लिए ही जगह होती है और रोजाना उस में भेड़बकरियों की तरह ठूंस कर साढ़े

3 हजार से ज्यादा मुसाफिर सफर करते हैं. ऐसे में डब्बों के भीतर जगह मिलना नामुमकिन होता है. नतीजतन, सैकड़ों मुसाफिर जान पर खेल कर ट्रेन की छतों और 2 डब्बों के जौइंट पर बैठ कर सफर करते हैं. सीनियर कमांडैंट संतोष कुमार कहते हैं कि ऐसी वारदात दोबारा न हो, इस के लिए पंचायतों के मुखिया के साथ मिल कर जागरूकता मुहिम चलाई जाएगी. मुखिया अपनीअपनी पंचायतों के लोगों को समझाएंगे कि ट्रेन की छतों पर सफर न करें. ट्रेन के दरवाजे पर लटकना, बेवजह चेन खींच कर ट्रेन को जहांतहां रोक देना गैरकाननी के साथसाथ जानलेवा भी है. उन्होंने दावा किया कि 1 जुलाई, 2016 से 15 जुलाई, 2016 के बीच ट्रेन की छत पर चढ़ कर सफर करने वाले 33 लोगों को पटना रेलवे स्टेशन पर पकड़ा गया था.

एक प्रेमिका का हैरतअंगेज खेल

आज एक की बांहों में, तो कल दूसरे की बांहों में. इस तरह के कई प्रेमी देखने को मिल जाएंगे, पर कई लड़कों से इश्क लड़ा कर उन के पैसों पर ऐश करने का शौक रखने वाली लड़कियां कम ही मिलती हैं. विदिशा, मध्य प्रदेश की स्वीटी (बदला हुआ नाम) उन में से एक थी. उसे बौयफ्रैंड बनाने का शौक था. वह आएदिन नएनए बौयफ्रैंड बनाती थी. जिस की जेब उसे तंग लगने लगती, वह उस को अपनी जिंदगी से दूर कर देती थी. हाल ही में स्वीटी ने गोपाल रैकवार को अपने हुस्न के जाल में फंसाया. कुछ समय तक उस के पैसों पर खूब ऐश की. जब उस ने महसूस किया कि गोपाल की जेब तंग हो रही है, तो उस ने एक बकरा काट कर बेचने वाले मोटे आसामी अकरम को हुस्न का चारा दिखा कर अपना आशिक बना लिया और उसे हलाल करने लगी. इस बात का पता गोपाल को चला. वह स्वीटी को अकरम से दूर रखने की कोशिश करने लगा.

स्वीटी कम होशियार नहीं थी. उस ने दोनों हाथों में लड्डू हासिल करने के लिए अपने प्रेमियों के सामने दिल्ली सरकार के ईवनऔड वाले फार्मूले की तरह तारीख को आपस में बांट लेने का औफर रखा. गोपाल को स्वीटी का औफर पसंद नहीं आया, तो उस की लाश शहर के बाहर एक कुएं में मिली. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के लोहांगीपुरा की रहने वाली 19 साला स्वीटी दिखने में काफी खूबसूरत थी. उस के पिता की मौत कई साल पहले हो गई थी. उस की विधवा मां बच्चों की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पा रही थी. वह मंडी में मजदूरी कर के अपने तीनों बच्चों का पेट पाल रही थी. कहते हैं कि गरीब की बेटी जल्दी ही जवान हो जाती है. ऐसा ही स्वीटी के साथ भी हुआ. अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उस ने अपने हुस्न को ही चारा बना लिया. उस ने खातेपीते घरों के लड़कों को पटाना शुरू किया.

स्वीटी के हुस्न को पाने के लालच में कई लड़के बहुतकुछ लुटाने को तैयार थे. वह उन्हें हुस्न का स्वाद चखाती, इस के बदले में उन से मोटी रकम लेती. उस रकम से वह ऐश करती. स्वीटी को मोटरसाइकिल चलाने का शौक था.  विदिशा और बीना की भीड़ भरी सड़कों पर तेज स्पीड में मोटरसाइकिल चला कर वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी. गोपाल खातेपीते घर से था. वह स्वीटी की खूबसूरती के जाल में फंस कर उस से प्यार करने लगा. वह उस पर मनमाना खर्च भी करने लगा. जब भी वे दोनों मोटरसाइकिल पर शहर में घूमने निकलते, तो स्वीटी गोपाल को पीछे बिठा कर मोटरसाइकिल खुद चलाती थी. उस वक्त गोपाल स्वीटी की कमर को कस कर पकड़ लेता था.

पूरे शहर में दोनों के प्यार की चर्चा हो रही थी. यह बात गोपाल के घर वालों तक भी पहुंच गई. उन्हें स्वीटी का स्वभाव बिलकुल भी पसंद नहीं था. वे स्वीटी को चालू किस्म की लड़की मानते थे. गोपाल के परिवार वालों ने समझाते हुए उसे स्वीटी से दूर रहने की हिदायत दी, पर गोपाल पर स्वीटी के प्यार का नशा बुरी तरह से चढ़ा हुआ था. इधर स्वीटी ने महसूस किया कि गोपाल का हाथ कुछ तंग होता जा रहा है. ऐसे में वह दूसरे प्रेमी की तलाश में लग गई. एक दिन स्वीटी की मुलाकात 28 साला अकरम से हुई. वह मांस बेचने का धंधा करता था. उस की कमाई अच्छी थी. स्वीटी ने उसे अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया. वह उस पर दिल खोल कर खर्च करने लगा. स्वीटी इस बात का ध्यान रखती थी कि उस की और अकरम की दोस्ती की खबर गोपाल को न लगे. इस के लिए वह गोपाल से भी मिलती रही.

गोपाल से स्वीटी और अकरम की दोस्ती की खबर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने स्वीटी पर अपना हक जताते हुए उसे अकरम से दूर रहने की हिदायत दी. स्वीटी ने गोपाल से कहा, ‘‘तुम मेरे मामले में दखलअंदाजी मत करो. मैं किस से मिलूंगी या नहीं मिलूंगी, यह मेरा पर्सनल मामला है. तुम अगर चाहते हो कि मेरा प्यार तुम्हें भी बराबर मिलता रहे, तो मेरे पास एक फार्मूला है. तुम दिल्ली सरकार के ईवनऔड फार्मूले की तरह तारीख तय कर लो. मैं उस दिन तुम्हारे पास रहूंगी और अगले दिन अकरम के साथ.’’ गोपाल को उस की बात पसंद नहीं आई. वह स्वीटी को हमेशा अपनी बांहों में रखना चाहता था. उस ने स्वीटी के फार्मूले को मानने से इनकार कर दिया.

इधर गोपाल स्वीटी को रोकने में लगा था कि वह अकरम से न मिले. साथ ही, अकरम को भी वह बारबार मोबाइल कर के स्वीटी से दूर रहने की हिदायत देता रहा था. अकरम ने स्वीटी को फोन कर के कहा, ‘‘अपने आशिक गोपाल को संभाल ले, वरना मैं उसे ऊपर पहुंचा दूंगा.’’ स्वीटी को गोपाल अब सिरदर्द लगने लगा था, क्योंकि वह काफी टोकाटाकी करने लगा था. स्वीटी ने अकरम से कहा, ‘‘रोजरोज के झगड़े से अच्छा है कि गोपाल को निबटा ही दें.’’

अपनी प्रेमिका का आदेश मिलते ही अकरम ने 28 मार्च, 2016 की रात को गोपाल को अपनी दुकान पर बुलाया. अपने नौकर सुरेश पाल के साथ मिल कर उस ने गोपाल को जम कर शराब पिलाने के बाद उस की हत्या कर दी. अकरम ने यह सूचना स्वीटी को दे दी. गोपाल की हत्या की खबर सुन कर स्वीटी काफी खुश हुई. वह अकरम की दुकान पर पहुंच गई. वहां तीनों ने जम कर शराब पी और जश्न मनाया. बाद में पुलिस ने हत्या के आरोप में अकरम, उस के नौकर सुरेश पाल व स्वीटी को गिरफ्तार कर लिया. इस केस की जांच कर रहे अधिकारी राजेश तिवारी का कहना है, ‘‘जवानी के जोश में नौजवानों को किसी बात का होश ही नहीं रहता है. लड़के खेलीखाई लड़की से मेलजोल बढ़ाते वक्त उस पर भरोसा न रखें, क्योंकि ऐसी लड़की अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है.’

कम उम्र में शादी, जिंदगी की बरबादी

शादी करने का चलन तो बहुत पुराने जमाने से चला आ रहा है. लेकिन आज भी कई राज्यों में बालविवाह व कम उम्र की शादियों का चलन है. कई लोगों का यह मानना है कि बच्चे ऊपर वाले का रूप होते हैं और वे बालविवाह को इसलिए बढ़ावा देते हैं कि बच्चों की शादी कराना ऊपर वाले की शादी कराने जैसा है. पंडेपुजारी भी बालविवाह को ज्यादा अहमियत देते हैं. वे ऐसी शादियों को ले कर तेजी दिखाते हैं. गांवसमाज में बालविवाह के लिए पंडेपुजारी भी ज्यादा जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि पहले तो वे धार्मिक प्रथाओं से लोगों को ऐसी शादियों के लिए उकसाते हैं और जब शादी तय हो जाती है, तब रीतिरिवाजों के नाम पर ढेर सारी दानदक्षिणा भी वसूल करते हैं.

लेकिन ऐसी शादियों को ले कर ज्यादातर लोग यह भूल जाते हैं कि वे जिन बच्चों की शादियां करा रहे हैं,  उन की जिंदगी पर कितना बुरा असर  पड़ेगा. अकसर लड़कियां 12 साल की उम्र के बाद से ही अंडाणु बनाने शुरू कर देती हैं और उन की शारीरिक बनावट में भी कई बदलाव आने शुरू हो जाते हैं. पर यह कोई जरूरी नहीं है कि इसी उम्र में उन की शादी कर दी जाए. अगर लड़कियों की शादी इसी उम्र में होती है, तो उन्हें कई परेशानियों से दोचार होना पड़ सकता है. इस उम्र में वे जो अंडाणु पैदा करती हैं, वे पूरी तरह से पुष्ट व विकसित नहीं होते. अगर वे बच्चा पैदा करने की ताकत भी रखती हैं, तो वह बच्चा कमजोर भी हो सकता है. ऐसे में उस में कई जिस्मानी व दिमागी कमजोरियां भी आ सकती हैं, क्योंकि इस उम्र में लड़कियां खुद ही अपने जिस्मानी बदलावों से गुजर रही होती हैं. झारखंड के गिरिडीह जिले की रीना महज 15 साल की उम्र में ही मां बन गई थी, क्योंकि उस की शादी 14 साल की उम्र में हो गई थी.

रीना को बचपन से ही पढ़नेलिखने का शौक था, पर शादी हो जाने के बाद उस की वह इच्छा भी जाती रही. अब तो वह कई जिस्मानी व दिमागी बदलावों के चलते खुद को काफी बीमार महसूस करती है. बिहार के गया जिले के कमरू तूरी की उम्र महज 18 साल है, लेकिन वह 2 बच्चों का पिता है. उस की शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी. उस की पत्नी की उम्र महज 16 साल है. अब कमरू हमेशा अपने बीवीबच्चों के लिए मजदूरी करता है. जिस उम्र में उसे पढ़नेलिखने व कुछ करगुजरना था, उस उम्र में उस के ऊपर बीवीबच्चों की जिम्मेदारी आ पड़ी थी  कमरू और रीना की तरह ऐसे कई नाबालिग जोड़े हैं, जो ऐसी परेशानियों का बोझ उठा रहे हैं. बिहार के कटिहार जिले के कविता व प्रकाश ने भी अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी की थी. दरअसल, उस वक्त वे दोनों नाबालिग थे, इसलिए घर से भाग कर उन्होंने शादी करने का फैसला किया था.

शादी के बाद भी जब प्रकाश व कविता के घर वाले राजी नहीं हुए, तो वे दोनों रांची श?हर में आ कर रहने लगे. इस बीच कविता जुड़वां बच्चों की मां बन गई थी, इसलिए अब वे दोनों मेहनतमजदूरी करने को मजबूर हैं. झारखंड के सोमलाल मुर्मू व मीना की भी शादी तकरीबन 14 साल की उम्र में हो गई थी. शादी के एक साल बाद ही मीना मां बन गई थी. लेकिन उस का बच्चा बेहद कमजोर था. तमाम इलाज के बाद भी बच्चे को बचाया नहीं जा सका. 2 साल बाद मीना जब दोबारा मां बनी, तो उस की कमजोर बच्चेदानी की वजह से वह अकसर बीमार रहने लगी. वैसे, सरकार ने लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की 21 साल से कम उम्र वाली शादियों पर रोक लगा रखी है. लेकिन क्या सरकार इस पहलू पर ठोस कदम उठा पाई है? देखा जाए, तो शहरों के बजाय गांवदेहातों में ऐसी शादियां अकसर देखी जाती हैं. शहर के लोग जहां ऐसी शादियों से बचते हैं, वहीं गांवदेहात के लोगों का मानना है कि लड़के व लड़कियां नासमझी की वजह से  गलत कदम उठा लेते हैं, इसलिए वे उन का बालिग होने का इंतजार नहीं करते.

कुछ नाबालिग जोड़े तो 16 साल की उम्र से ही सारी सीमाएं लांघ रहे हैं. उन में जवानी भी उफान मारने लगती है. अब 18 साल की उम्र की लड़कियों को बालिग मानना सरकार के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है, क्योंकि ऐसी कई नाबालिग लड़कियां आप के शहर के पार्कों, सिनेमाघरों, रैस्टोरैंटों और बड़े होटलों के बंद कमरों में सबकुछ करते हुए मिल सकती हैं. इस नए दौर में लड़केलड़कियों में कई बदलाव आने शुरू हो गए हैं. इन बदलावों से कई लोगों की सोच बदल सकती है और वे सरकार का कानून तोड़ कर नाबालिग शादियों पर मुहर लगा सकते हैं. पर ये शादियां कितनी कारगर होंगी, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा.

उस का दुख

टैक्सी हिचकोले खा रही थी. कच्ची सड़क पार कर पक्की सड़क पर आते ही मैं ने अपने माथे से पंडितजी द्वारा कस कर बांधा गया मुकुट उतार दिया. पगड़ी और मुकुट पसीने से चिपचिपे हो गए थे. बगल में बैठी सिमटीसिकुड़ी दुलहन की ओर नजर घुमा कर देखा, तो वह टैक्सी की खिड़की की ओर थोड़े से घूंघट से सिर निकाल कर अपने पीछे छोड़ आए बाबुल के घर की यादें अपनी भीगी आंखों में संजो लेने की कोशिश कर रही थी.

मैं ने धीरे से कहा, ‘‘अभी बहुत दूर जाना है. मुकुट उतार लो.’’

चूडि़यों की खनक हुई और इसी खनक के संगीत में उस ने अपना मुकुट उतार कर वहीं पीछे रख दिया, जहां मैं ने मुकुट रखा था.  चूडि़यों के इस संगीत ने मुझे दूर यादों में पहुंचा दिया. मुझे ऐसा लगने लगा, जैसे मेरे अंदर कुछ उफनने लगा हो, जो उबाल आ कर आंखों की राह बह चलेगा. आज से 15 साल पहले मैं इसी तरह नंदा को दुलहन बना कर ला रहा था. तब नएपन का जोश था, उमंग थी, कुतूहल था. तब मैं ने इसी तरह कार में बैठी लाज से सिकुड़ी दुलहन का मौका देख कर चुपके से घूंघट उठाने की कोशिश की थी. वह मेरा हाथ रोक कर और भी ज्यादा सिकुड़ गई थी.

मैं ने उसे अभी तक देखा ही नहीं था. मैं ने चाचाजी की पसंद को ही अपनी पसंद मान लिया था. अब उसे देखने के लिए मन उतावला हो रहा था. नंदा को पा कर मैं फूला नहीं समा रहा था. वह भी खुश थी. भरेपूरे परिवार में वह जल्दी ही हिलमिल गई. मां उस की तारीफ करते नहीं अघाती थीं. घर में जो भी औरतें आतीं, वे अपनी बहू से उन्हें जरूर मिलाती थीं. अपने 5 बेटों और बड़ी बहू का वे उतना ध्यान नहीं रखतीं, जितना उस का रखती थीं. सासससुर की देखरेख, देवरननदों की पढ़ाई की सुविधा जुटाना, मुझे कालेज में जाने के लिए कपड़े, जूते, किताबें तैयार कराना, नौकरचाकरों को अपनी देखरेख में काम कराना उस के जिम्मे लगने लगा था. अगर मैं कभीशहर घूम आने या अपने दोस्तों के यहां चलने के लिए कहता, तो वह धीरे से कह देती, ‘ससुरजी को दवा देनी है. नौकरों से सब्जी की गुड़ाई करानी है. जानवरों के सानीपानी देना है. जेठानीजी अकेले कहां करा पाएंगी इतना सारा काम? मैं चली जाऊंगी, तो सासूमां को तकलीफ उठानी पड़ेगी. आज नहीं, फिर कभी.’

उस की ऐसी दलीलों को सुन कर मन मसोस कर मुझे चुप रह जाना पड़ता. जोशीजी की पत्नी ताना दे कर कहतीं, ‘‘मास्टरजी, कभी बहू को तो यहां लाया करो. आप ने तो उन्हें ऐसे छिपा लिया है, जैसे हम नजर लगा देंगे.’’ कालेज से जब घर लौटता, तो थक कर चूर हो जाता था. कभीकभी तो आठों पीरियड पढ़ाने पड़ जाते थे. मेरी तकलीफ नंदा जानती थी. समय निकाल कर जिद कर के वह मालिश करने लग जाती. एक दिन वह मुझ से नाराज थी. रात को बिना खाए ही सो गई. बात यह थी कि उस ने उस दिन मेरे पास आ कर कहा था, ‘‘पतिजी, एक बात कहूं? अगर आप मानोगे, तो तब कहूंगी,’’ वह बड़ी ही मासूमियत से बोली थी. वह अकेले में मुझे ‘पतिजी’ कहती थी.

मैं ने प्यार से कहा, ‘‘कहो तो सही.’’

‘‘पहले मानूंगा कहो,’’ वह बोली.

‘‘अच्छा बाबा, मानूंगा,’’ मैं बोला.

‘‘मुझे कुछ ज्यादा पैसे चाहिए,’’ उस ने कहा.

‘‘किसलिए चाहिए, यह तो बताओ?’’

‘‘अभी यह मत पूछो. तुम्हें अपनेआप पता चल जाएगा. मुझे 3 सौ रुपए की जरूरत है,’’ वह बोली.

‘‘जब तक तुम वजह नहीं बताओगी, पैसे नहीं मिलेंगे,’’ मैं ने भी अपना फैसला सुना दिया. इस के बाद वह रात को मुझ से नहीं बोली. सब को खाना खिला कर वह बिना खाए ही सो गई. दूसरे दिन मांजी को नंदा से कहते हुए सुना, ‘‘क्या बात है, जसौद हरीश व हंसी को साथ ले कर नैनीताल नंदा देवी देखने ले जाने वाला था, अभी तक तैयार नहीं हुए?’’

‘‘पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया मांजी. अगर आप थोड़ा पैसों की मदद कर दें, तो मैं उन से मांग कर आप को दे दूंगी, नहीं तो बच्चों का दिल टूट जाएगा. वे एक हफ्ते से कितने बेचैन हैं?’’ कहते हुए वह मांजी की ओर याचना भरी नजरों से देख रही थी.

‘‘ऐसा था, तो अभी तक क्यों नहीं कहा… मैं तो सोच रही थी कि शायद तुम्हारे जाने का प्रोग्राम बदल गया है,’’ मां बोलीं.

‘‘मांजी, मैं ने सोचा कि उन से कह कर…’’ मुझे देख कर वह चुप हो गई. मैं कालेज जाने की तैयारी कर रहा था. सासबहू की बातें मेरे कानों में पड़ीं, तो मैं उन के पास पहुंचा और जेब से पैसे निकाल कर नंदा को थमाते हुए बोला, ‘‘अरे भई, पहले ही कह दिया होता. वजह तो मैं पूछ ही रहा था. मैं ने कभी मना किया है तुम्हें?’’

वह मुसकराते हुए पैसे ले कर अंदर की ओर चल दी. वह देवरननद को यह खुशखबरी देने की बेचैनी अपने में नहीं रोक सकी. देवर व ननद से इतना लगाव देख कर मुझे उस से और भी प्यार हो आया. हमारी खुशहाल जिंदगी के 2 साल बीत गए. इस बीच हमारी गोद में एक नन्हा मुन्ना भी आ गया. बच्चे की जिम्मेदारी मांजी ने अपने ऊपर ले ली थी. वे ही उसे नहलातींधुलातीं, देखरेख करतीं. नंदा केवल अपना दूध पिलाने और रात को पास में ही सुलाने की ड्यूटी निभाती. सब ठीक ही चल रहा था. बोझ का एहसास तो तब हुआ, जब 4 साल और 2 साल के फर्क में 2 लड़कियां और चली आईं. उस दिन मेरा बेटा नवीन मेरे पलंग पर आ कर सो गया था. बड़ी बेटी मां के पास सो रही थी. छोटी बेटी को नंदा थपकी दे कर अपनी चारपाई पर सुला रही थी. मैं ने नंदा के मन को टटोलने के लिए पूछ लिया, ‘‘आधा दर्जन पूरा होने में 3 ही अदद की तो कमी रह गई. तुम्हारा क्या विचार है?’’

वह झुंझला कर बोली, ‘‘तुम भी कैसी बात करते हो जी? इन 2 लड़कियों की फिक्र ही मेरा दिमाग चाट रही है. 2-1 और हो जाएं, तो घर का भट्ठा ही बैठ जाएगा. ब्याहने के लिए कहां से लाओगे इतने पैसे?’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो. वह तो मैं ने तुम्हारे विचार जानने के लिए कहा था. सोच रहा हूं कि इस आने वाले जाड़ों में परिवार नियोजन करा लूं.’’

यह सुन कर वह चौंक पड़ी. कुछ देर वह मेरी ओर ताकती रही, फिर मेरे पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘तुम इतने कमजोर हो. कहीं तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं क्या करूंगी? मैं तो कहीं की नहीं रहूंगी. मुझे ही फैमिली प्लानिंग करा लेने दो. तुम जब कहो, तब मैं अस्पताल चल दूंगी.’’

मैं खीझ उठा, ‘‘तुम्हारी सोच तो बस जिद करने की आदत है. तुम यह क्यों नहीं समझतीं कि मर्द को फैमिली प्लानिंग में ज्यादा मुश्किल नहीं होती. औरत के लिए दिक्कत होती है. अस्पताल में कम से कम 2 दिन रुकना पड़ता है. दूसरा कोई आसान तरीका अभी नहीं निकला है. तुम निश्चिंत रहो. मुझे कुछ नहीं होने वाला है.’’

‘‘नहीं, तुम यह कभी मत करना. मैं ने सुना है कि मर्द कमजोर हो जाते हैं. मैं सारी तकलीफ झेलने को तैयार हूं, पर तुम्हें आपरेशन नहीं कराने दूंगी.’’

उस के मासूम चेहरे को देख कर मुझे ‘हां’ कहने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखा.

3 महीने भी नहीं गुजरे थे कि सरकारी आदेश आ गया. 2 बच्चों से ज्यादा जिन के बच्चे हैं, तुरंत नसबंदी कराने के सख्त आदेश कर दिए. उन दिनों इमर्जैंसी चल रही थी. चमचों और पिछलग्गुओं की बन आई थी. नेताओं को खुश करने के लिए, सरकार को खुश करने के लिए जनता पर जीतोड़ कहर ढाया जा रहा था. तब प्रिंसिपल भी भला पीछे क्यों रहें. उन के तो दोनों हाथ में लड्डू थे. सरकार को भी खुश करो और दर्जनभर केस दिलवा कर एक इंक्रीमैंट और जुड़वा लो. मैं ने आपरेशन कराने से पहले नंदा की रजामंदी ले लेना ठीक समझा, वरना उसे मनाना मुश्किल होगा. इन दिनों वह बच्चों को ले कर रामगढ़ गई हुई थी. जब उसे मालूम हुआ कि मैं आपरेशन कराने वाला हूं, वह दौड़ीदौड़ी चली आई. मेरे समझाने पर भी वह नहीं मानी. आपरेशन की ड्रैस पहना कर जब नर्सें उसे आपरेशन रूम में ले जा रही थीं, तब मेरा कलेजा काटने को आ रहा था. मैं अपने को धिक्कार रहा था कि मैं उसे क्यों अस्पताल ले आया? क्यों उस की बात मानी?

आपरेशन रूम से बाहर लाने में तकरीबन आधा घंटा लगा होगा. मुझे वे पल घंटों लंबे लगे. स्ट्रेचर पर सफेद कपड़ों में उसे बेहोश देख कर मुझे एकबारगी रोना सा आ गया. गला ऐसा भर आया, मानो कोई गला घोंटने लगा हो. बेहोशी में कराह के बीच उस का पहला साफ शब्द था, ‘‘पतिजी…’’ 3 साल बाद शादी की 13वीं सालगिरह की मनहूस आखिरी रील चल रही थी. इस रील के प्रमुख पात्र थे. मैं नायक था, नायिका नंदा थी और खलनायक खुद ऊपर वाला. खलनायक को नंदा का मेरे पास रहना अब नागवार सा लगा. फिर क्या था, उस ने उसे मुझ से छीनने की साजिश रच डाली. चिनगारी बुझने से पहले खूब रोशनी करती है न, ऊपर वाले ने नंदा की जिंदगी का भी यही सब से अच्छा सुनहरा साल चला दिया.

उस का छोटा भाई अपनी दीदी से मिलने आया था. नंदा अपनी खुशी को नहीं संभाल पा रही थी. अंदरबाहर इधरउधर वह तितली सी फुदक रही थी. रात को जब सब लोग मेरे बैडरूम में रेडियो के गानों के बीच गपशप में मशगूल थे, तो नंदा ने मुझ से अपनी तकलीफ जाहिर की, ‘‘आज मैं खाना नहीं खा सकी. मेरे जबड़े में बहुत तेज दर्द हो रहा है.’’

‘‘ज्यादा बोलती है न, इसलिए जबड़ा दर्द करेगा ही,’’ मैं ने बात हंसी में टाल दी. सुबह अपने भाई को विदा कर वह मेरे पास आ रही थी. आते ही वह सिसकियों से भर गई. आखिर इतना दुख वह कब से अपने में रोके थी? मैं हैरान रह गया. शायद भाई की जुदाई हो. पर ऐसी कोई बात न थी. उस का रोना शारीरिक दुख था. वह अपना मुंह पूरी तरह नहीं खोल पा रही थी. जबड़े दर्द के साथसाथ कसते चले जा रहे थे. मात्र उंगली डालने लायक जगह बची थी. मैं सहम गया.

उस ने मुझे छुट्टी ले कर अस्पताल चलने को कहा. मैं तुरंत उसे ले कर डाक्टर मेहरा के प्राइवेट अस्पताल को चल दिया. राधा भाभी को भी अपने साथ ले लिया.

डाक्टर मेहरा ने देखा और पूछा, ‘‘कहीं चोट तो नहीं लगी है?’’

नंदा ने सिर हिला कर जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’

‘‘कहीं कील या ब्लेड तो नहीं चुभा था?’’

जवाब था, ‘‘नहीं.’’

‘‘इधर महीनेभर के अंदर कोई ऐसी बात याद करो कि तुम्हारे शरीर से खून निकला हो या शरीर में कुछ चुभा हो या फिर तुम ने किसी पिन, सूई जैसी किसी चीज से दांत खुरचा हो?’’

कुछ देर सोचने के बाद उस ने ही कहा, ‘‘कुछ याद नहीं पड़ता.’’

मैं डाक्टर के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था. डाक्टर के चेहरे पर हैरानी और उतारचढ़ाव साफ जाहिर हो रहा था. डाक्टर बोला, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. जरूर कुछ न कुछ हुआ होगा, जो तुम याद नहीं कर पा रही हो. बिना चोट के तो यह मुमकिन ही नहीं है.’’ फिर डाक्टर ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘मुझे टिटनैस का डर लग रहा है. आप इन्हें जितनी जल्दी हो सके, सरकारी अस्पताल में भरती करा दें.’’

बीमारी का नाम सुनते ही मेरे पैरों की जमीन खिसकने लगी. मैं घबरा गया और उन से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, कहीं खतरा तो नहीं है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. अगर समय पर टिटनैस के इंजैक्शन लग जाएंगे, तो ठीक हो जाएंगी.’’ मुझे याद नहीं कि मैं ने कब परचा लिया और कब हम तीनों सरकारी अस्पताल पहुंच गए. हम में से किसी को होश नहीं था. खतरे का डर सब को हो गया था, क्योंकि इस बीमारी की भयंकरता सब ने सुन रखी थी. डाक्टर ने देखा, जांचा, परखा, पूछा आखिर में पहले डाक्टर की बात का समर्थन करते हुए नंदा को स्पैशल वार्ड में दाखिल कर दिया. एटीएस के 50,000 पावर के इंजैक्शन का इंतजाम भी मुझे ही करना था. वह इंजैक्शन अस्पताल में नहीं था. देर करना खतरनाक था. नंदा के पास भाभी को छोड़ कर मैं सब्र से काम लेने के लिए कह कर जाने लगा, तो वे दोनों मुंह दबा कर फफक कर रो उठीं.

मैं ने अपने को भरसक संभाला. लगा, जैसे सीना फट जाएगा. समय गंवाना ठीक न समझ कर मैं शहर को चल दिया. घंटेभर बाद इंजैक्शन का भी इंतजाम हो गया. घर में सूचना देते समय मेरा गला भर गया, आंखें बरसने लगीं. सारे घर में अजीब सा सन्नाटा छा गया. पहली रात हलकीहलकी कराहने की आवाजें आती रहीं. मैं उस के साथ था. मैं उस के माथे को सहला रहा था. उस ने अपना पर्स, कानों के कनफूल, मंगलसूत्र सब मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘पतिजी, इन्हें रख लो. अपना खयाल रखना. बच्चों का खयाल रखना,’’ वह आगे कुछ न कह सकी. आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

मैं ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करो, तुम बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ हम दोनों को ही एहसास हो चुका था कि अलविदा का समय नजदीक आ चुका है. शायद रातभर में हम इतना ही बोले थे. दूसरे दिन तक सारे गांव, इलाके, रिश्तेदारों तक को सूचना मिल गई थी. अस्पताल में भीड़ रोके नहीं रुक रही थी. अब नंदा का रूम डार्करूम बना दिया गया था. आंखों पर पट्टी रख दी गई थी. उस के आसपास आवाज करने की मनाही कर दी गई थी.

अगले दिन उस के पैरों में जकड़न चालू हो गई. पीठ में दर्द, ऐंठन बढ़ गई. दांत आपस में भिंच गए. धीरेधीरे जकड़न व ऐंठन सारे बदन में दाखिल हो गई. हलकेहलके झटके भी पड़ने चालू हो गए.

जब झटके पड़ते, ऐंठन होती, तो हम लोग उस के हाथ, पैर, सीना हलके से मलते. ग्लूकोज की बोतलों में तरहतरह की दवाओं का मिश्रण उसे दिया जा रहा था. एटीएस का तब तक दूसरा भी 50,000 पावर का इंजैक्शन लगा दिया गया था.

एकएक दिन खिसक रहे थे और उस की हालत दिनबदिन खराब होती जा रही थी. उस का शरीर इंजैक्शनों से छलनी हो गया था. पानी के बिना वहां सूखी पपडि़यां तड़क आई थीं. दांत कसने से खून बह रहा था. जूस व पानी के लिए वह संकेत करती, लेकिन डाक्टर की इजाजत नहीं थी. दिल मसोस कर रह जाना पड़ता. फट आए होंठों में ग्रीसलीन लगा कर तर करने की कोशिश की. पानी की 2-4 बूंदें तो दरारों में ही समा जाती थीं. इधर झटके तेज होते गए. दौरों की लंबाई भी बढ़ती गई. दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए उसे नींद के इंजैक्शन दिए जा रहे थे, पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था.

अब ग्लूकोज को भी शरीर ने खींचना छोड़ दिया था. निराशा में सब का दिल डूबने लगा. अभी छठे दिन की पौ नहीं फटी थी. रात को बारिश के बाद धुंधला सा उजाला होने लगा था. नर्स नींद का इंजैक्शन दे कर चली गई. कुछ समय बाद मैं दूसरे लोगों की देखरेख में नंदा को सौंप कर नहानेधोने चला गया. जब लौट कर आया, तब तक नंदा नहीं रही थी. अब न कोई झटके थे. न दौरे थे. न दर्द था. न कराहें थीं. थीं तो बस घर वालों की, दोस्तों की घुटती सिसकियां. मेरा सबकुछ लुट गया था. मैं खोयाखोया सा रहने लगा. छोटी बच्चियां जब टकटकी लगा कर मेरी ओर देखतीं, कलेजा मुंह में आने को हो जाता. थपकियां दिला कर, सीने से लगाए उन्हें सुला देता. नवीन ने चुप्पी साध ली थी. चुपचाप आ कर पुस्तक पढ़ने लग जाता. अब मांजी ही बच्चों की परवरिश कर रही थीं. धीरेधीरे 2 साल निकल गए. मांजी बच्चों की खातिर दोबारा शादी करने की बात छेड़तीं, तो मैं टाल जाता था. ससुराल वालों ने भी शादी के लिए कहना शुरू कर दिया. कई जगह से रिश्ते भी आने शुरू हो गए, लेकिन मैं साफ मना कर देता. भला पराए बच्चों को कौन नवेली अपना लेगी?

सासजी को शादी के लायक हो आई अपनी बेटी खुशी की उतनी चिंता न थी, जितनी मेरी और मेरे बच्चों की. मैं ने खुशी के लिए योग्य लड़का तलाश कर सूचना भेजी, तो जवाब आया कि खुशी ने इसलिए इनकार कर दिया है कि जब तक जीजाजी शादी नहीं कर लेंगे, वह भी शादी नहीं करेगी. बात बिगड़ती देख ससुराल वालों ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न खुशी से ही मेरी शादी कर दी जाए. खुशी ने भी अपनी दीदी के बच्चों की खातिर अपना त्याग स्वीकार कर लिया. लेकिन मैं इसे कैसे स्वीकार कर लेता?

मैं ने उसे समझाया, ‘‘खुशी, तुम यह क्या कर रही हो? जरा सोचो तो… मेरी उम्र का 38वां साल पार होने जा रहा है, जबकि तुम अभी 20 साल की होगी. फिर मैं 3 बच्चों का पिता भी हूं. मेरी खातिर अपनी जिंदगी क्यों बरबाद करने पर तुली हो? यह सही नहीं है.’’

वह धीरे से बोली, ‘‘आप मेरी चिंता न करें. सब सोचसमझ कर ही तो मैं ने हां की है. उम्र की क्या कहते हैं? माथे में उम्र लिखी होती, तो दीदी यों ही हमें छोड़ कर चली थोड़े ही जातीं? बच्चे मुझ से हिलेमिले हैं. मां का दुख भूल जाएंगे.

‘‘दीदी पर जितना हक आप का था, क्या मेरा हक नहीं? मुझे भी तो उस का दुख उतना ही है, जितना आप को,’’ उस के अंदर अपनापन और त्याग की भावना साफ झलक रही थी. बहुत समझाने पर भी उस ने अपना इरादा नहीं बदला, तब मुझे भी सहमति देनी पड़ी. आखिर किसकिस का मुंह संभालता? टैक्सी ने हिचकोला खाया, तो मेरी पिछली यादें टूट गईं. मैं अपनी यादों में इतना खो गया था कि मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि मैं वर बना बैठा हूं. एक दुलहन भीगी पलकों से मुझे ही निहार रही है. मुझे पढ़ रही है. समझ रही है. शायद तब तक मेरी आंखों के रास्ते कुछ बह कर सूख गया था. वह मुझ पर लुढ़क गई और मेरी गोदी में सो गई.

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