बिहार में पटना से सटे मसौढ़ी इलाके के लखनौर गांव का रहने वाला 30 साला जितेंद्र रविदास पिछले 10 सालों से रोज सुबह पटना आ कर मजदूरी करता था और शाम को वापस गांव लौट जाता था. एक महीने पहले ही उस ने अपने 3 बच्चों को स्कूल में दाखिल कराया था. जितेंद्र रविदास की बीवी फुमतिया देवी रोते हुए कहती है कि अब उन की देखभाल कौन करेगा? वजह, ट्रेन के ओवरहैड वायर की चपेट में आने से जितेंद्र रविदास की मौत जो हो गई है.

हरवंशपुर गांव का रहने वाला 50 साला नरेश प्रसाद अपने 3 बेटों के साथ मजदूरी करने रोज पटना जाता था. रोज की तरह वह अपने एक बेटे नीतीश के साथ मजदूरी करने पटना पहुंचा था. शाम को घर लौटते समय ट्रेन में काफी भीड़ होने की वजह से वह ट्रेन की छत पर जा बैठा. उस के साथ सैकड़ों दूसरे मुसाफिर भी ट्रेन की छत पर बैठे हुए थे.

नरेश प्रसाद को ट्रेन की छत पर बैठने का खमियाजा अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा. इस हादसे में उस का बेटा नीतीश बच गया, क्योंकि वह डब्बे के अंदर बैठा हुआ था. नालंदा जिले के हिलसा ब्लौक के दामोदरपुर गांव का रहने वाला 32 साला विजय कुमार 10 दिनों से पटना में अपनी बहन के घर पर रह रहा था. वह अपने बहनोई रवींद्र बिंद के साथ मजदूरी करने जाता था. वह अपने बहनोई के साथ ट्रेन की छत पर बैठा हुआ था. हाई वोल्टेज करंट लगने से विजय ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, जबकि उस का बहनोई बुरी तरह से झुलस गया. विजय की बीवी फुलमंती देवी पेट से है और वह गांव में ही रहती है. अब उस की जिंदगी में घोर अंधेरा छा गया है और उस का बेटा इस दुनिया में आने से पहले ही अनाथ हो गया है.

पटनागया रेलखंड पर 14 जुलाई, 2016 की रात पटनागया ममू ट्रेन में करंट दौड़ने से 3 मुसाफिरों की मौके पर ही मौत हो गई और 24 बुरी तरह से झुलस गए. चारों तरफ चीखपुकार और रोनाधोना मच गया. अंधेरा होने की वजह से पहले तो लोगों की समझ में कुछ नहीं आया कि माजरा क्या है. ट्रेन की छत से गिरतेकूदते लोगों को देख प्लेटफार्म पर खड़े लोगों में भगदड़ मच गई नीमा हाल्ट के पास मोरहर नदी के पास ट्रेन का पेंटो ओवरहैड वायर में फंस कर ट्रेन की छत पर गिर गया, जिस से ट्रेन में सवार मुसाफिर हाई वोल्टेज करंट की चपेट में आ गए. ट्रेन पोटही स्टेशन से चली थी और नदवां स्टेशन की ओर जा रही थी. मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि ओवरहैड वायर के टूटने से ट्रेन की छत पर बैठे लोग इस की चपेट में आ गए. इस से पूरी ट्रेन में करंट दौड़ गया. ट्रेन में सवार मुसाफिर इधरउधर भागने लगे और अफरातफरी मच गई. रेलवे के मुताबिक, शाम के तकरीबन सवा 7 बजे ट्रेन के इंजन को बिजल सप्लाई करने वाला पेंटो टूट गया. इस का पता चलने पर ट्रेन के ड्राइवर

सी. कुंजूर उसे अगले हाल्ट पर ले जाने लगे, ताकि उस की मरम्मत की जा सके. इसी दौरान ट्रेन की छत पर सवार लोग ओवरहैड वायर की चपेट में आ गए.

इतने बड़े हादसे के बाद वारदात वाली जगह पर कुहराम मचा हुआ था और हादसे के बारे में रेलवे पुलिस और रेलवे के अफसर अलगअलग बयान देने में लगे रहे. रेलवे पुलिस का कहना है कि ट्रेन जब मोरहर नदी के पास पहुंची, तो पहले से झुका हुआ ओवरहैड वायर टूट कर गिर गया, जिस से हादसा हुआ. वहीं रेल अफसरों का कहना है कि मुसाफिर ओवरहैड वायर की चपेट में आए, जिस से खंभे पर लगे विटी इंसुलेटर को हैवी अर्थ मिला, जिस से वह टूट गया.

सीनियर सैक्शन इंजीनियर हरेंद्र सिंह के मुताबिक, इंसुलेटर के टूटने की तेज आवाज को सुन कर ड्राइवर ने ट्रेन रोकने की कोशिश की और टैंटोग्राफ को नीचे किया गया. हादसे के खौफनाक मंजर को सुनते हुए कई मुसाफिरों के रोंगटे खडे़ हो जाते हैं. हादसे के समय ट्रेन में सवार मंगतू यादव ने बताया कि तकरीबन 4-5 मिनट तक ट्रेन में करंट दौड़ता रहा और मुसाफिर झटका दर झटका खाते रहे. हाई वोल्टेज तार ट्रेन के पीछे की 3 बोगियों में सटा हुआ था.

करंट के झटकों से किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक क्या हो गया? लोग इधरउधर भागने लगे. डब्बे के अंदर भी चीखपुकार मची हुई थी. हल्ला सुन कर ड्राइवर ने गाड़ी रोकी, तो लोग बदहवास गाड़ी से उतर कर भागने लगे, जिस से कई लोग गिर कर चोट खा बैठे. ट्रेन की छतों से कई सवारियां पके हुए फलों की तरह दनादन गिरने लगीं. पटना जंक्शन के 10 नंबर प्लेटफार्म से पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं और किसी भी पैसेंजर ट्रेन के प्लेटफार्म पर लगते ही सैकड़ों मुसाफिर धड़ाधड़ डब्बों की छतों पर चढ़ने लगते हैं. मीठापुर रेल ओवरब्रिज के नीचे भी मुसाफिरों में छतों पर चढ़ने को ले कर अफरातफरी सी मची रहती है. यह रोज का वाकिआ है. मुसाफिरों को छतों पर बैठने से रोकने वाला कोई नहीं होता है. रेलवे पुलिस के जवान और अफसर देख कर भी अनदेखा कर चलते बनते हैं.

मुसाफिरों का कहना है कि पटना से ज्यादातर पैसेंजर ट्रेनें शाम 6 बजे से 7 बजे के बीच खुलती हैं. उस समय पटना के आसपास के 100-120 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले लोगों को घर लौटने की जल्दबाजी होती है. डब्बे के अंदर ज्यादा भीड़ होने की वजह से ज्यादातर मुसाफिर छतों पर सवार हो जाते हैं. ट्रेनों में डेढ़ हजार मुसाफिरों के लिए ही जगह होती है और रोजाना उस में भेड़बकरियों की तरह ठूंस कर साढ़े

3 हजार से ज्यादा मुसाफिर सफर करते हैं. ऐसे में डब्बों के भीतर जगह मिलना नामुमकिन होता है. नतीजतन, सैकड़ों मुसाफिर जान पर खेल कर ट्रेन की छतों और 2 डब्बों के जौइंट पर बैठ कर सफर करते हैं. सीनियर कमांडैंट संतोष कुमार कहते हैं कि ऐसी वारदात दोबारा न हो, इस के लिए पंचायतों के मुखिया के साथ मिल कर जागरूकता मुहिम चलाई जाएगी. मुखिया अपनीअपनी पंचायतों के लोगों को समझाएंगे कि ट्रेन की छतों पर सफर न करें. ट्रेन के दरवाजे पर लटकना, बेवजह चेन खींच कर ट्रेन को जहांतहां रोक देना गैरकाननी के साथसाथ जानलेवा भी है. उन्होंने दावा किया कि 1 जुलाई, 2016 से 15 जुलाई, 2016 के बीच ट्रेन की छत पर चढ़ कर सफर करने वाले 33 लोगों को पटना रेलवे स्टेशन पर पकड़ा गया था.

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