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औनलाइन ऐजुकेशन: आप की सुविधा, आप की डिग्री

अब वह समय बीत गया जब लोगों के पास उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाना ही एकमात्र विकल्प था. इंटरनैट के इस युग में उच्च शिक्षा प्राप्त करना बहुत सरल और सहज है. बिना किसी भागदौड़ और परेशानी के सिर्फ कुछ घंटे की पढ़ाई रोज कर के आप अपनी पसंद की डिग्री हासिल कर सकते हैं, वह भी विश्व के किसी भी कोने में बैठ कर औनलाइन ऐजुकेशन के माध्यम से. औनलाइन ऐजुकेशन सब के लिए फायदेमंद है. लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, तो आइए, देखते हैं औनलाइन ऐजुकेशन के दोनों पहलुओं को :

औनलाइन शिक्षा परंपरागत शिक्षा से सस्ती

औनलाइन ऐजुकेशन में बचत ही बचत है, क्योंकि न तो रोज कालेज जाने का खर्च होता है और न ही तरहतरह की फीस देनी पड़ती है. साथ ही पढ़ाई के साथ होने वाले घूमनेफिरने, खानेपीने के अनावश्यक खर्च से भी राहत मिलती है.

सुविधा और सहजता

अगर आप फुलटाइम जौब कर रहे हैं या फिर आप को घर के कामों से ही फुरसत नहीं मिलती है तो औनलाइन ऐजुकेशन आप के लिए ही है, क्योंकि इस में मुश्किल से एक सप्ताह में 10-12 घंटे का समय देना पड़ता है जो कामकाजी लोगों के लिए निकालना असंभव नहीं होगा.

समय अनुसार परिवर्तन

औनलाइन शिक्षा में लकीर के फकीर की तरह पुराने और रटेरटाए विषय नहीं पढ़ने पड़ते बल्कि उन में समय की मांग को देखते हुए परिवर्तन किया जाता है.

वर्तमान में भविष्य की तैयारी

औनलाइन ऐजुकेशन उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ाती है, आप सबकुछ एक डिजिटल तकनीक से समझते हैं. किसी भी प्रश्न के उत्तर के लिए आप को अगले दिन का इंतजार नहीं करना पड़ता. इंटरनैट सब को एकसाथ जोड़ कर रखता है यानी वर्चुअल तकनीक ने जमीनी दूरियां मिटा दी हैं.

अपनी स्किल रखें अपटूडेट

परंपरागत शिक्षा में बहुत तेजी से बदलाव हो रहे हैं. ऐसे में एक बार डिग्री मिल जाने के बाद भी अपने ज्ञान को निरंतर आगे बढ़ाना एक मुश्किल काम है और यहीं पर औनलाइन ऐजुकेशन आप की मदद करती है आप को अपटूडेट रखने में. लेकिन इन विशेषताओं के बावजूद औनलाइन ऐजुकेशन की कुछ सीमाएं हैं जो इस प्रकार हैं :

अनुभव की कमी

जब आप कालेज जाते हैं तो वहां सब के साथ मिल कर पढ़ाई करते हैं, चीजें शेयर करते हैं. रिलेशन मैंटेन करते हैं जो पढ़ाई के साथसाथ बहुत जरूरी है, लेकिन औनलाइन ऐजुकेशन में यह संभव नहीं है.

नैटवर्क का न होना

जब आप रोजाना कालेज जाते हैं, तो आप का वहां लोगों से एक अलग रिलेशन मैंटेन होता है, जिस में कालेज के प्रोफैसर्स से ले कर स्टूडैंट्स तक होते हैं जो कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद भी आप के लिंक में रहते हैं और आप के काम भी आते हैं, लेकिन औनलाइन ऐजुकेशन में ऐसा संभव नहीं है.

हर पढ़ाई के लिए उपयुक्त नहीं

जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, दंत चिकित्सा, नर्सिंग जैसे क्षेत्रों में अनुभव हासिल करने के लिए आप को कुछ सुविधाओं और उपकरणों की आवश्यकता होगी, जो औनलाइन ऐजुकेशन के साथ संभव नहीं है.

नौकरी में मुश्किल

औनलाइन ऐजुकेशन ज्यादा चलन में न होने के कारण डिग्री मिलने के बाद भी शायद आप को नौकरी आसानी से और अच्छी न मिले, अभी भी बहुत से नियोक्ताओं के लिए ऐसी डिग्री की कोई अहमियत नहीं है और वे ऐसे डिग्रीधारियों को नौकरी देने में भी कोई रुचि नहीं दिखाते.

शारीरिक और मानसिक तनाव

लगातार कई घंटे तक कंप्यूटर पर काम करने का असर बुरा ही होता है और वह तनाव और शारीरिक कमजोरी के रूप में सामने आता है, लोगों में बेचैनी, चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट के कारण परेशानियां बढ़ जाती हैं जो पढ़ाई में भी बाधा डालती हैं.

अंधविश्वास का वाहक बनता सोशल मीडिया

देश के विकास में सूचना और संचार क्रांति के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. अब लोगों ने फेसबुक, व्हाट्सऐप और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स के माध्यम से अपने महत्त्वपूर्ण विचारों व डौक्यूमैंट्स को आदानप्रदान का जरिया बना लिया है. ऐसे में अंधविश्वास, पोंगापंथ, झाड़फूंक व धर्म की दुकान चलाने वाले लोगों ने भी अपना ट्रैंड बदलना शुरू कर दिया है. धूर्त किस्म के बाबा सोशल साइट्स पर मौजूद करोड़ों लोगों को अपना निशाना बना कर ठगी का काम कर रहे हैं. इंटरनैट के माध्यम से ये बाबा बिना मेहनत के लोगों को गुमराह कर अपनी ठगी के जाल में फंसा रहे हैं.

पाखंडी बाबा दूर बैठ कर इंटरनैट के जरिए अपनी चमत्कारी शक्तियों से लोगों की समस्याओं के समाधान का दावा करने का वादा करते हैं और औनलाइन माध्यमों से अपने खाते में पैसा ट्रांसफर करवाते हैं.

लोगों को जब तक यह पता चलता है कि वे ठगी का शिकार हो चुके हैं तब तक वे काफी धन गंवा चुके होते हैं. ऐसे में बाबाओं द्वारा ठगी का शिकार व्यक्ति चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता.

फेसबुक, व्हाट्सऐप पर ठगी

पहले जहां लोग परचे छाप कर बंटवाते थे. उस में लिखा होता था कि अमुक मात्रा में परचे बांटने से अमुक का बिगड़ा काम बन गया और जिस ने नहीं बांटे उस का भारी नुकसान हो गया. कुछ इसी तरह का ट्रैंड आजकल फेसबुक और व्हाट्सऐप पर भी देखने को मिल रहा है.

कुछ लोग तमाम देवीदेवताओं के फोटो अपलोड कर उन्हें अधिक से अधिक शेयर व लाइक करने की सलाह देते हैं. साथ ही ऐसा न करने पर पोस्ट पढ़ने वाले का भारी नुकसान होगा, ऐसी बातें भी लिखी होती हैं.

इस तरह के फोटो अपलोड करने के पीछे ठगी करने वालों का हाथ होता है. जब लोगों द्वारा फोटो शेयर करने पर उन की समस्याओं का समाधान नहीं होता तो लोग कमैंट में अपनी प्रतिक्रियाएं देना शुरू करते हैं और पोस्ट पर घात लगाए बैठे धूर्त बाबा उन की समस्याओं का हल चमत्कारी शक्तियों व वस्तुओं से करने का दावा करते हैं. इन चमत्कारी बाबाओं के चंगुल में फंसने के बाद व्यक्ति लुटता रहता है और जब उसे ठगे जाने का एहसास होता है तो वह शर्म और बेइज्जती के मारे किसी से कह भी नहीं पाता.

मेरे एक मित्र जिन की शादी को 10 साल हुए थे, ने एक दिन अपनी समस्या फेसबुक पर लिखी. जिस के कुछ घंटे बाद बाबा भूसा बंगाली के नाम से एक कमैंट मिला, जिस में लिखा था कि बाबा की कृपा से मात्र एक माह में आप की बीवी की गोद भर जाएगी. फिर उन्होंने उन के इनबौक्स में जा कर उपाय पूछा तो बाबा ने पूजाअनुष्ठान के नाम पर 21 हजार रुपए की मांग की.

उस के लिए उन्होंने बाकायदा एक पता दिया जिस पर मनीऔर्डर भेजा जाना था. मित्र ने विश्वास कर 21 हजार रुपए का मनीऔर्डर भेज दिया. फिर 2 माह इंतजार किया, लेकिन उन की पत्नी को गर्भ नहीं ठहरा. उन्होंने उस बाबा से फेसबुक से संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. बाबा द्वारा दिए गए पते पर पत्र भेजा, लेकिन वहां से वह पत्र भी वापस आ गया. लिखा था कि बाबा 2 माह पहले ही इस किराए के मकान को छोड़ चुके हैं.

जब उन्हें अपने ठगे जाने का एहसास हुआ तो वह हाथ मलते रह गए, लेकिन यह बात उन्होंने किसी को नहीं बताई. एक दिन मुझे किसी से इस घटना का पता चला तो मैं ने मित्र से पूछा. पहले तो वे टालमटोल करते रहे, बाद में उन्होंने सारी घटना बताई. मैं ने जब इन बाबाओं की वास्तविकता बताई तो वे पछताने लगे.

सोशल मीडिया पर चूंकि सब से ज्यादा युवा ही सक्रिय हैं. इन की तमाम तरह की समस्याएं भी होती हैं, जिन में पढ़ाई में फेल होने से ले कर भारीभरकम डिग्री होने के बावजूद नौकरी न मिलना, प्यार में धोखा, बच्चे पैदा न होना जैसी तमाम समस्याएं होती हैं.

पढ़ेलिखे युवा भी निराशा की दशा में फेसबुक व व्हाट्सऐप वाले बाबाओं के चंगुल में फंस जाते हैं. ये बाबा भी इसी पढे़लिखे युवावर्ग से होते हैं. चूंकि फेक आईडी के पीछे कौन बैठा है यह पता नहीं चल पाता, ऐसे में इन की चिकनीचुपड़ी बातों में फंस कर सीधेसादे युवक अपना धन गंवा बैठते हैं.

कभीकभी फेसबुक पर मौजूद युवतियां इन बाबाओं की हवस का शिकार भी हो जाती हैं. एक ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में प्रकाश में आया था, जिस में एक युवती का फेसबुक पर बाबा से संपर्क हुआ. उस बाबा ने उस युवती को बीएससी में अच्छे मार्क्स लाने का वादा कर गोरखपुर बुलाया. जहां उस ने उस की इज्जत लूटने की कोशिश की, लेकिन वह युवती समझदार निकली और बाबा को थप्पड़ मार कर उस ने पुलिस थाने में शिकायत करने की धमकी दी. बाबा 32 साल का नौजवान था. उस ने उस युवती से भविष्य में ऐसा न करने का वादा भी किया.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप जैसी सोशल साइट्स पर किस तरह की सावधानी बरती जाए, जिस से इन बाबाओं से लोगों को बचाया जा सके. इस मसले पर सोशल साइट्स के जानकार नितेश शर्मा का कहना है कि जब आप के फेसबुक या व्हाट्सऐप पर फ्रैंड रिक्वैस्ट आए तो उस की प्रोफाइल जरूर चैक करें. अगर वह आप का जानकार नहीं है तो उस की फ्रैंड रिक्वैस्ट डिलीट व ब्लौक कर दें.

अफवाह फैलाने का माध्यम

फेसबुक व व्हाट्सऐप के जरिए अंधविश्वास फैलाने वाले अफवाहें भी तेजी से फैलाते हैं जो कुछ ही मिनटों में करोड़ों लोगों तक पहुंच जाती हैं. ये अफवाहें धर्म की दुकान चलाने वाले लोगों द्वारा फैलाई जाती हैं. बस्ती जिले में फेसबुक के जरिए यह अफवाह फैली कि शहर के विष्णुपुरवा महल्ले में हनुमान मंदिर का घंटा अपनेआप बज रहा है. देखते ही देखते यह अफवाह फेसबुक, व्हाट्सऐप के जरिए पूरे जिले में फैल गई. फिर क्या था मंदिर में लोगों का तांता लग गया. जब तक लोग सच जान पाते, तब तक लाखों का चढ़ावा अफवाह फैलाने वाले बटोर चुके थे.

कुछ इसी तरह की अफवाह फेसबुक, व्हाट्सऐप पर नेपाल में आए भूकंप के दौरान फैली थी कि चंद्रमा उलटा हो गया है और जमीन का पानी जहरीला हो गया है. ऐसे में लोगों द्वारा दानदक्षिणा देने पर यह संकट टलेगा. लोगों ने यह अफवाह सुनते ही दानदक्षिणा देनी शुरू कर दी, लेकिन किसी ने वास्तविकता जांचने की कोशिश नहीं की. लोगों को जब तक वास्तविकता का पता चलता, अफवाह फैलाने वाले अच्छीखासी रकम इकट्ठी कर चुके थे.

सोशल मीडिया पर अफवाह फैलने के मसले पर सोशल मीडिया के जानकार भृगुनाथ त्रिपाठी पंकज का कहना है कि अकसर ढोंगीपाखंडियों द्वारा उन के पाखंड का धंधा मंदा पड़ने पर अफवाहों का सहारा लिया जाता है. ऐसे में सोशल मीडिया से अफवाहें फैलाना बेहद आसान होता है, क्योंकि इस पर करोड़ों लोग सक्रिय हैं.

शिक्षक आलोक शुक्ल का कहना है कि आज का प्रत्येक युवा सोशल मीडिया का किसी न किसी रूप में उपयोग कर रहा है. इसलिए युवाओं को चाहिए कि वह सोशल मीडिया पर अंधविश्वास को फैलने से रोकने में अपनी भूमिका निभाएं और बाबाओं की आईडी व अफवाहें फैलाने वाले लोगों के खिलाफ सोशल मीडिया कंपनियों को शिकायत करें. इस से इन के अकाउंट को इन कंपनियों द्वारा ब्लौक कर रोक लगा दी जाती है.               

चुनावी चक्कर

उत्तर प्रदेश के अगले चुनावों में मजेदार लड़ाई होगी, क्योंकि लगभग चारों पार्टियों लंगड़ाती सी चुनाव में उतर रही हैं. 2014 में लोकसभा में 543 सीटों में से 282 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी की शान अब वह रह नहीं गई है, जो मई, 2014 में थी. इस से पहले 2012 के विधानसभा चुनावों में जीती समाजवादी पार्टी घरेलू झगड़ों में फंस गई है. कांग्रेस को तो सत्ता का स्वाद चखे अरसा हो गया है और सोनिया गांधी व राहुल गांधी पिछले चुनावों में लोकसभा में जीत गए तो वही काफी था. बहुजन समाज पार्टी में सेंध लगी है, पर इतनी ज्यादा नहीं. मायावती का पलड़ा भारी दिख रहा है. पर मायावती अगर जीत गईं तो क्या करेंगी, इस का कुछ पता नहीं. वे चुनावी सभाएं कर रही हैं, पर कहती कम ही हैं. कांग्रेस के राहुल गांधी एक लंबी बस, पैदल, कार यात्रा पर निकले हैं और खाट सभाएं कर रहे हैं यह दिखाने के लिए कि कांग्रेस किसानों से जुड़ी है. पर कांग्रेस की खाटों की रस्सियां तो कब की टूट चुकी हैं और उस से कोई खास उम्मीद नहीं है.

पैतरेबाजी इस तरह की हो गई है कि अब बिहार की तरह का समझौता नहीं हो सकता, जिस में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार व कांग्रेस ने मिल कर भारतीय जनता पार्टी को भारी शिकस्त दे दी थी. भारतीय जनता पार्टी का भी किसी से समझौता नहीं हो पा रहा है. समाजवादी पार्टी से कोई फैसला तो तब करे, जब तय हो कि वहां चलती मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की है, उन के पिता मुलायम सिंह यादव की या चाचा शिवपाल यादव की. उत्तर प्रदेश को चुनावों से कभी कुछ खास मिला हो, ऐसा नजर नहीं आया. राज्य वैसा का वैसा उलटा प्रदेश ही रहा है. आम जनता जो भी करती है, सरकार के सहारे नहीं सरकार के बावजूद करती है. जनता को इन चारों पार्टियों से कोई उम्मीद नहीं है, न लगानी चाहिए.

असल में 2014 के कड़वे अनुभव के बाद अब यह तय हो गया है कि पार्टियां चाहे कुछ भी कहती रहें, शरीफ हों या बेईमान, आधुनिक हों या पौराणिकवादी, असल में उन का जनता पर कोई असर नहीं पड़ता. सरकार जनता के लिए जरूरी है, पर पार्टियां बेमतलब सी हो गई हैं और चूंकि संविधान में उन की बड़ी जगह है, इसलिए चुनाव होंगे, मुख्यमंत्री बनेंगे, मंत्री होंगे, विधानसभा होगी, पर भइया सरकार तो यों ही चलेगी. चारों में से कोई आए या चुनावों के बाद कैसा भी गठबंधन बने, फर्क कुछ नहीं पड़ेगा. भारतीय जनता पार्टी अब शायद किसी से कोई समझौता न कर पाए, पर कांग्रेस मायावती व समाजवादी पार्टी किसी से भी चुनाव बाद आपस में समझौता कर सकती हैं. इन चुनावों में इस बार मुद्दा दलित और मुसलिम हैं जो थोड़ा अफसोस का मामला है. सरकारी नीतियों की तो बात तक नहीं हो रही है. सहीगलत का सवाल नहीं उठ पा रहा है. दलितों और मुसलिमों का इशू तो हम पहले कहीं पीछे छोड़ चुके थे, पर भारतीय जनता पार्टी ने फिर से इसे अगली लाइन में खड़ा कर दिया और जो भी जीतेगा, उसे इसी मसले को सब से आगे रखना पड़ेगा.

सरकारी नीतियों में बदलाव, जनता को सही राह दिखाना, प्रदेशभर में फैली गंदगी, बेकारी, गरीबी, बरबादी, दकियानूसीपन, निकम्मापन तो नेताओं के लिए अब कोई चुनावी मु्द्दा ही नहीं रह गए हैं. चुनाव पहले के हिंदू राजाओं की तरह बेमतलब की लड़ाइयां बन कर रह गए हैं, जिस में कोई भी जीते हारती जनता ही है.

भारतीय राजनीति की अहम कड़ी हैं किसान

इस बात में शक की जरा सी भी गुंजाइश नहीं है कि प्रधानमंत्री का ओहदा संभालने के बाद से नरेंद्र मोदी लगातार खेती किसानी पर दखल और निगाहें रखे हुए हैं. उन्हें भी मालूम है कि किसान भारतीय राजनीति की अहम कड़ी हैं, लिहाजा वे इस कड़ी को कस कर थामे हुए हैं. भारतीय किसान भी इस हकीकत को मानते हैं कि मौजूदा प्रधानमंत्री उन का ठीकठाक खयाल तो रख ही रहे हैं. किसानों के खुश रहने से राजनीति का सफर काफी सहज हो जाता है, यह बात भी ज्यादातर राजनीतिबाज जानते ही हैं. बहरहाल, इसी कड़ी में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कम होती खेती की जमीन और घटते पानी के जरीयों को मद्देनजर रखते हुए फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों से खेती में वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करने को कहा. प्रधानमंत्री ने ‘वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (सीएसआईआर) की प्लेटिनम जुबली के मौके पर कहा कि उन्होंने हमेशा किसानों को यही सलाह दी है कि पानी की हर एक बूंद के साथ ज्यादा से ज्यादा फसल पैदा होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें इस तरह सोचना होगा कि जमीन के हर इंच के साथ फसल में ज्यादा से ज्यादा बालियां पैदा हों.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि 21वीं सदी तकनीक का इस्तेमाल करने की सदी है और भारत की जरूरतों को सिर्फ वैज्ञानिक तरकीबों के जरीए ही पूरा किया जा सकता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सदी में विज्ञान को आम लोगों के साथ जोड़ा जाना जरूरी है. दरअसल, मौजूदा सदी तकनीक से ही चलने वाली है. बगैर तकनीक के तरक्की मुमकिन नहीं है. मोदी ने वैज्ञानिकों से भी सब्जियों की पैदावार में इजाफा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा जोश से काम करने के लिए कहा, ताकि भरपूर उत्पादन से न केवल घरेलू जरूरतें पूरी हों, बल्कि सब्जियों को दूसरे देशों को निर्यात भी किया जा सके. प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, असम और जम्मू कश्मीर के किसानों से खासतौर पर मुलाकात कर के उन का हालचाल पूछा.

नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों से डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसे खतरनाक रोगों की जांच के लिए सस्ते मेडिकल किट तैयार करने को कहा, ताकि किसान अपनी जांच कर के महफूज रह सकें. बीमारी का पता वक्त पर चल जाने से किसान अपना माकूल इलाज करा सकते हैं. बंदरों द्वारा पैदा की जाने वाली दिक्कतों से सिर्फ किसान ही परेशान नहीं है, बल्कि मोदी भी फिक्रमंद हैं. सीएसआईआर के 75वें स्थापना दिवस के मौके पर दिल्ली से नरेंद्र मोदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरीए हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील किसानों से सीधी बात की. आईएचबीटी पालमपुर में जुटे सूबे के तमाम किसानों में से एक शिशु पटियाल से मोदी ने पूछा कि आप के इलाके में बंदरों की दिक्कत तो नहीं है. इस पर शिशु पटियाल ने कहा कि वे तो फूलों की खेती करते?हैं. उस के लिए उन्होंने पालीहाउस बनाए हैं. वैसे अब यहां बंदरों की दिक्कत नहीं?है. वैसे भी बंदर फूलों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

पटियाल ने मोदी को आगे बताया कि उन की फूलों की खेती में बीमारियों की दिक्कत तो है, पर इस के इलाज के लिए वे दवा का छिड़काव करते?हैं. इसी तरह से मोदी ने अन्य किसानों से भी बातचीत की और उन से मोदी ने खेती में वैज्ञानिक तरीके अपनाने की बात जोर दे कर कही.

जबरन सैक्स जबरदस्त भयंकर

अगले साल मार्च में सेवानिवृत्त होने जा रहीं भोपाल के एक थाने में पदस्थ एक इंस्पैक्टर ने जबरदस्ती और बलात्कार के कई मामलों में अहम भूमिका निभाई है. ऐसा ही 6 महीने पहले का एक किस्सा वे बड़ी गंभीरता से सुनाती हैं. 22 वर्षीय मेघा (बदला हुआ नाम) को 24 वर्षीय सोमेश (बदला हुआ नाम) से प्यार हो गया. दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. इस दौरान इन दोनों को एकदूसरे के सिवा कुछ नहीं सूझता था. बीई करने के बाद सोमेश नौकरी की तलाश में जुट गया और मेघा ने एमसीए करने के दौरान ही एक प्राइवेट कंपनी में पार्टटाइम नौकरी कर ली. एकदूसरे के प्रेम में दोनों ऐसे डूबे रहते कि इन्हें गौर से देख लेने वाला भी शायर हो जाए. चाइनीज खाने की शौकीन मेघा अकसर रैस्टोरैंट में मिलने को प्राथमिकता देती पर सोमेश पार्क में मिलना पसंद करता, क्योंकि यहां उसे किसी घने पेड़ के नीचे या झुरमुट के पीछे बैठ कर अपनी प्रेमिका से प्यार भरी बातें करने का मौका मिल जाता, जिस में उसे मजा आता था. चूमने और अंगों से छेड़छाड़ पर मेघा एतराज नहीं जताती थी. लेकिन शुरुआत में ही एक बार उस ने सोमेश को आगाह कर दिया था कि बस, इस हद से आगे नहीं बढ़ना. सोमेश उस के जज्बातों को समझता था और कहता था कि मुझे भी कोई जल्दी नहीं. जो काम शादी के बाद होना ही है उसे अभी करना मैं भी ठीक नहीं समझता. बस इधर नौकरी लगी और उधर शादी हुई. फिर बताना मुझे कि मेरी हदें कहां तक हैं.

लेकिन एक दिन…

मेघा बदहवास हालत में महिला थाने जा पहुंची और मौजूद महिला कौंस्टेबल से बलात्कार की कोशिश की रिपोर्ट लिखाने की प्रक्रिया पूछी तो कौंस्टेबल ने उसे उक्त इंस्पैक्टर के पास भेज दिया. अपने तजरबे के आधार पर इस इंस्पैक्टर ने सब्र से मेघा की पूरी बात सुनी.

‘‘आज सुबह सोमेश ने फोन कर मुझे घर बुलाया और कहा कि मम्मीपापा दोनों इंदौर शादी में गए हैं, 2 दिन बाद आएंगे इसलिए लंच मेरे साथ करो. मुझे इस में कोई हर्ज नहीं लगा और मैं औटो से सोमेश के घर चली गई. मुझे देखते ही सोमेश मारे खुशी के झूम उठा और मैं अंदर आई तो एहतियातन दरवाजा बंद कर लिया  ‘‘फिर उस ने मुझे बांहों में भर कर किस किया और फिर पूरा घर दिखाया. इस दौरान उस ने मुझे स्नैक्स भी औफर किए और मुझे किचन में जा कर कौफी बनाने के लिए कहा.

‘‘मैं कौफी बना कर लाई. फिर हम दोनों ने बैडरूम में बैठ कर कौफी पी और प्यार की अपनी दुनिया में खो गए. ‘‘बस, गड़बड़ यहीं से शुरू हुई. सोमेश मेरे बदन की तपिश में पिघलते हुए अपना किया वादा भूलने लगा और ‘थोड़ा और, हर्ज क्या है’ की जिद करने लगा. अपने प्रेमी की जिद के कारण मैं ने टौप उतारने दिया लेकिन इस के बाद सोमेश मुझे भेडि़ए की तरह नोचने  लगा. मेरी जींस उतारने की नाकाम कोशिश करने लगा. इधर मेरा विरोध बढ़ता जा रहा था, लेकिन सोमेश ने मुझे दबोच रखा था और पागलों की तरह चूमे जा रहा था और सैक्स क्रियाएं करने को उत्सुक था जो बजाय मुझे उत्तेजित करने के मेरी परेशानी और डर बढ़ा रही थीं. सोमेश सोच रहा था कि मैं भी जल्द ही उत्तेजित हो जाऊंगी और उसे मनमानी करने दूंगी. पर मैं ने ऐसा होने न दिया और भाग कर यहां आ गई.’’

समझाने से बनी बात

सारी कहानी सुन कर इंस्पैक्टर ने मेघा को समझाया कि रिपोर्ट लिखने और दोषी को गिरफ्तार करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं लेकिन तुम्हारी मां जैसी होने की हैसियत से मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहूंगी. मुझे लगता है कि वह लड़का तुम से वाकई सच्चा प्यार करता है लेकिन आज एकांत पा कर अपने सैक्स के जज्बे पर काबू नहीं रख पाया जो एक तरह से स्वाभाविक सी बात है. हर लड़के या प्रेमी की मनशा बुरी नहीं होती पर तुम ने समझदारी और हिम्मत दिखाई कि जैसेतैसे सलामत भाग कर थाने आ गई. उस की मनशा बलात्कार की नहीं रही होगी बल्कि शारीरिक संबंध बनाने की रही होगी पर इस में उस ने तुम्हारे प्यार और विश्वास पर गौर नहीं किया जो उस की गलती है. मुमकिन है वह अपनी गलती महसूस करे और तुम से माफी भी मांगने आए इसलिए रिपोर्ट दर्ज कराने के पहले उसे भी सोचने का मौका दो कि वह कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था. मैं वादा करती हूं कि अगर उस की मनशा वाकई बलात्कार की थी तो उसे गिरफ्तार कर जेल की हवा जरूर खिलाऊंगी.

उन्होंने मेघा को कानूनी ऊंचनीच भी विस्तार से समझाई कि रिपोर्ट लिखाना जितना आसान है, अदालत में ऐसे आरोप साबित कर पाना उतना ही मुश्किल है. लड़का गिरफ्तार हुआ तो पछताएगा नहीं बल्कि अपने बचाव के लिए तुम पर ही बदचलनी का इलजाम लगा देगा. दूसरे, ऐसे मामले में भले हम पुलिस वाले लड़की का नाम और पहचान छिपा लें पर उसे बदनामी से नहीं बचा पाते. आज रिपोर्ट लिखेंगे तो कल अखबारों में खबर भी छपेगी, तुम्हारे घर वालों को भी आना पड़ेगा, जो तुम्हें भी एकदम पाकसाफ नहीं मानेंगे. प्यार करना गुनाह नहीं, लेकिन ऐसे नाजुक मामलों में सोचसमझ कर काम लेना चाहिए. मेघा ने बात समझी और इस आश्वासन पर वापस होस्टल जाने को तैयार हुई कि अगर वाकई सोमेश की मनशा में खोट था तो उसे माफ नहीं किया जाएगा. 2 दिन बाद वाकई सोमेश का व्हाट्सऐप पर मैसेज आया, ‘मैं अपने किए पर शर्मिंदा हूं और तुम से दिल से माफी मांगता हूं. मैं बहक गया था लेकिन मेरी मनशा तुम्हारी जिंदगी खराब करने की नहीं थी. मेरा प्यार सच्चा है और रहेगा. मैं तुम्हारे अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता. हो सके तो मुझे माफ कर देना.’

लेकिन सोमेश द्वारा माफी मांगने और दोबारा संपर्क न करने का उस पर वाजिब असर भी हुआ. उस ने पुराने मैसेज देखे और यादें ताजा हुईं, तो उसे यह भी लगा कि जो भी हुआ वह वक्ती तौर पर हालात की वजह से हुआ. साथ ही यह सोच कर भी वह कांप उठती थी कि अगर वाकई सोमेश अपने मकसद में कामयाब हो जाता तो उस की हालत क्या होती? आखिरकार उस ने सोमेश को माफ कर दिया, अब जल्द ही दोनों शादी कर लेंगे. मेघा के साथ जो हुआ था वह प्यार में पड़ी युवतियों के साथ होना आम है. ऐसे हादसे युवतियों के लिए किसी सदमे से कम नहीं होते. प्रेमी जब सैक्स चाहे तब युवतियां दुविधा में पड़ जाती हैं कि क्या करें? अगर न करती हैं तो बे्रकअप भी हो सकता है. लेकिन सैक्स ही करने की शर्त पर उन्हें प्यार करते रहना गंवारा नहीं होता और जोखिम वाला काम भी भविष्य के लिहाज से गलत नहीं लगता. असल दिक्कत उस वक्त खड़ी हो जाती है जब एकांत पा कर प्रेमी जबरन सैक्स पर उतारु हो जाता है और मनमानी कर के ही छोड़ता है. इस दैहिक आकर्षण या जरूरत से अपवादस्वरूप ही प्रेमी मुक्त होंगे, क्योंकि प्यार के माने बदल रहे हैं. यह पहले की तरह आदर्श या पवित्र नहीं रह गया है बल्कि शारीरिक संबंध इस की प्राथमिकता हो गई है. प्रेमिका को कोशिश करनी चाहिए कि वह अपने बौयफ्रैंड से एकांत में न मिले, क्योंकि कभी भी न चाह कर भी मन पर कंट्रोल खत्म हो जाता है और प्रेमी सैक्स कर बैठता है. बाद में भले उसे पछतावा हो पर आप तो सैक्स का शिकार हो गईं न.

जबरन सैक्स के परिणाम

ऊहापोह में फंसी कुछ लड़कियां जबरन सैक्स का विरोध नहीं कर पातीं इसलिए उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. चूंकि वे सहमति से सैक्स नहीं करतीं इसलिए बजाय सुख या मजा देने के उन्हें यह हादसा लगने लगता है. अधिकांश प्रेमी एकांत पाते ही प्रेमिकाओं पर भेडि़यों की तरह टूट पड़ते हैं. यह बलात्कार वाली स्थिति ही है, जिस का सारा खमियाजा लड़की को जिंदगी भर भुगतना पड़ सकता है. सैक्स का पहला अनुभव जिंदगी भर कोई नहीं भूलता. खासतौर से युवतियां, जो सैक्स अगर चाहती भी हैं तो इस तरह कि उन्हें कोई शारीरिक व मानसिक यंत्रणा न सहनी पड़े. अधिकांश युवक युवतियों की इस मानसिकता को नहीं समझते कि प्यार की तरह सैक्स भी नजाकत की बात है, जिसे जबरन करने में उन्हें भी वह सुख नहीं मिलता जो सहमति के सैक्स में मिलता है. जबरन किया गया सैक्स मर्दानगी नहीं कहा जा सकता. इस में युवक एक तरह से युवती की मजबूरी का फायदा ही उठाता है.

इन दिनों इंटरनैट और स्मार्टफोन हर किसी के पास है जिस में पोर्न फिल्मों का भंडार है, इन्हें युवक देखते हैं तो समझ नहीं पाते कि जो वीडियो क्लिपिंग या ब्लू फिल्मों में दिखाया जा रहा है वह बेहद घटिया, अज्ञानता भरा और पैसा कमाने के लिए है. यह प्यार का नहीं बल्कि सैक्स का विकृत रूप है, जिसे वे सच समझ बैठते हैं. इस में सैक्स ऐजुकेशन या सलीके जैसी कोई बात होती ही नहीं.

फिर क्या करें

जबरन सैक्स का अधिकतर खमियाजा युवतियों को भुगतना पड़ता है जिन्हें जल्दबाजी में प्राकृतिक रूप से कोई मजा सैक्स में नहीं आता, चूंकि प्रेमी को भी जल्दी रहती है इसलिए उसे भी प्रेमिका एक डिश की तरह लगती है जिसे एक झटके में वह निगल जाना चाहता है. बाद के नतीजों पर गौर करें तो युवतियां अकसर घबराती नजर आती हैं और सैक्स से डरने लगती हैं. सैक्स, जिसे वे आनंद का जरिया समझती हैं सदमे की तरह उन के दिलोदिमाग में बैठ जाता है. नतीजा यह होता है कि वे जिंदगी भर इस से डरती रहती हैं और मशीन की तरह पार्टनर का साथ निभाती रहती हैं. जबरन सैक्स में दोनों यह भी भूल जाते हैं कि सावधानी न बरती जाए तो प्रैग्नैंसी भी हो सकती है. असुरक्षित सैक्स के नतीजे पहले से युवतियों के जेहन में रहते हैं पर वे कुछ कर नहीं पातीं. जब दूसरे महीने पीरियड नहीं आता तो उन की हालत खस्ता हो जाती है. इस पर भी अगर प्रेमी साथ न दे, तो वे खुदकुशी तक की भी बात सोचने लगती हैं.

भोपाल की एक नामी लेडी डाक्टर का कहना है कि हर हफ्ते एक ऐसी युवती क्लिनिक में ऐबौर्शन के लिए आती है जो जबरन या असुरक्षित सैक्स का शिकार हुई होती है. वक्त पर आ जाए तो आराम से गर्भपात हो जाता है लेकिन यह ग्लानि उसे जिंदगी भर सालती रहती है और वह शादी के बाद भी सैक्स लाइफ ऐंजौय नहीं कर पाती. कई बार लड़कियां प्रैग्नैंसी हो जाने पर प्रेमियों को बख्शती नहीं और उन्हें कानून या सामाजिक तौर पर उन के किए की सजा दिलाती हैं. पर यह प्रक्रिया जबरन सैक्स की तरह झेलनी पड़ती है जिस से उन्हें कोई फायदा नहीं होता. सुरक्षित यौन संबंध सावधानियां और इस से भी ज्यादा अहम सहमति से सैक्स है जो न हो तो बात बिगड़ना तय है इसलिए भी इस दौर का प्यार बदनाम हो रहा है. भयंकर और अप्रिय सैक्स जो हालात के मुताबिक अनिवार्य हो जाता है से बचना कोई खास मुश्किल काम नहीं है. इस से बचने हेतु निम्न टिप्स पर अमल करना चाहिए :

–       एकांत में मिलें तो कागज पर लिख कर  रखें और बारबार देखें कि सबकुछ करना है पर सैक्स नहीं.

–       कंडोम हमेशा साथ रखें, क्योंकि खुद को जबरदस्ती करने से बचाए रखने की गारंटी कोई युवक नहीं ले सकता.

–       युवतियों को भी यह बात रट लेनी चाहिए और मन में दोहराते रहना चाहिए कि इस में मजा तो आने से रहा, बाद में तमाम दुशवारियां उन के ही हिस्से में आना तय है. जरूरी नहीं कि हरेक कहानी का मेघा और सोमेश की कहानी के जैसा सुखांत हो. इसलिए युवा प्रेमियों को चाहिए कि एकांत मिलने पर संभले रहें और जवानी के जोश में होश न खोएं. जरा सी जबरन की गई चूक जिंदगी भर का नासूर बन जाएगी.  

गोली और कल्चर का एक्सचेंज एक साथ नहीं हो सकता: अजय देवगन

‘फूल और कांटे’ फिल्म से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता, निर्माता, निर्देशक अजय देवगन ने हर तरह की भूमिका निभाई. वे अपने गंभीर अभिनय के लिए जाने जाते हैं. पर उन्होंने कॉमेडी से लेकर रोमांटिक हर तरह की फिल्में की. ‘हम दिल दे चुके सनम’ उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट थी, जहां से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. इसके बाद जो भी फिल्में उन्होंने की सभी हिट रहीं.

‘द लिजेंड ऑफ़ भगत सिंह’, ‘कंपनी’, ‘गंगाजल’, ‘राजनीति’, ‘सिंघम’ आदि सभी फिल्में सफल रही. जैसा वे अभिनय करते हैं वैसे ही वे दैनिक जीवन में भी हैं. हर काम को वह चुनौती समझते हैं, हर अभिनय उनके लिए नया होता है. काम के दौरान ही वह काजोल से मिले और एक समय ऐसा आया जब उन्हें लगा कि काजोल से अच्छी कोई जीवन साथी नहीं बन सकती. वह दो बच्चों के पिता हैं. अजय ‘कैमरा शाय’ हैं और केवल फिल्मों के प्रमोशन पर बात करते हैं. फिल्म ‘शिवाय’ के प्रमोशन पर उनसे बात हुई, पेश है अंश.

प्र. इस फिल्म की प्रोमो काफी अलग दिख रही है, इसकी वजह क्या है?

यह मैंने जान बूझकर किया है ताकि आप को फिल्म देखने की इच्छा हो, एक उत्सुकता बनी रहे. यह एक इमोशनल कहानी है, जो पिता और बेटी की है. जो आप फिल्म देखने के बाद ही पता कर सकते है.

प्र. आप ने कॉमेडी, सीरियस और इमोशनल फिल्में की है, कितना मुश्किल होता है सबको बैलेंस करना?

इसमें कॉमेडी, इमोशनल ड्रामा और एक्शन है. लोग जो फील करते हैं, उसे लेकर कहानी बनाई गई है. ‘दृश्यम’ मैंने नहीं बनायीं, उसमें एक्टिंग की थी, उसकी स्क्रिप्ट अच्छी थी. इसलिए मुझे अच्छी लगी थी. इस फिल्म में आज के ज़माने की बाप-बेटी की रियल इमोशन को इसमें दिखाने की कोशिश की है.

प्र. शिवाय नाम रखने की वजह क्या है?

यह कोई धार्मिक फिल्म नहीं, इसमें चरित्र का नाम शिवाय है. जो मजबूत है और आम इंसान की तरह है. जो अच्छा और बुरा कोई भी काम कर सकता है. यह एक साधारण इंसान का चरित्र है.

प्र. फिल्म में एक्शन दृश्यों को करना कितना ‘रिस्की’ होता है?

मैं हर दृश्य को सावधानी से समझकर करता हूं, ट्रेनर हमारे साथ होते हैं. इस फिल्म में मुझे कई बार चोट लगी है. इसमें कई ऐसे सीन्स भी हैं, जिसे पहले सबने करने से मना किया और कहा कि हमारे पास टेक्निशियन की कमी है. ये केवल हॉलीवुड में ही हो सकता है. लेकिन मैंने देखा कि यहां भी दिमाग है. आपको कम्फर्ट जोन से निकल कर पैशन के साथ इसे करना है. ऐसा ही हुआ, सारे दृश्य यहीं सही तरह से फिल्माये गये. मैंने कई बार एक्शन डिजाईन भी किया है पर हर फिल्म का एक एक्शन डायरेक्टर होता है.

प्र. इस फिल्म को विश्व में दिखाने के लिए कोई अलग रणनीति बनायीं है?

ये फिल्म पूरे विश्व में एक साथ रिलीज होगी. लेकिन इस बार कुछ नए देश भी इसे लेकर गए हैं जिसमें जर्मनी, बुल्गारिया,चाइना आदि सभी देश इसे देखना चाहते हैं कि भारत में ऐसी फिल्म कैसे बनी है.

प्र. रियल कहानी बहुत कम देखने को मिलती है, हर फिल्म किसी विदेशी फिल्म की कॉपी होती है, ऐसे में आपकी फिल्म कितनी अलग है?

कहानी का आईडिया सौ फिल्मों से होता है, स्क्रीनप्ले और इमोशन की बात होती है जो आप बनाते हैं. उसके लिए भी अनुभव जरुरी है कि किस तरह आप नए आईडिया को कहानी में बदलकर फिल्म बनाते हैं. इतना जरुर है इस फिल्म की कहानी आप किसी अंग्रेजी फिल्म में नहीं पा सकते.

प्र. फिल्म में इतने सारे विदेशी एक्टर लेने की वजह क्या थी?

यह स्क्रिप्ट की डिमांड थी और ये आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगी. यह परफोर्मेंस ओरिएंटेड फिल्म है. मुझे कोई शौक नहीं था कि विदेशी एक्टर जरुरत न पड़ने पर भी लूं. इसकी कास्टिंग में मुझे एक से डेढ़ साल लगा था.

प्र. आप प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर और अब लेखक सब बन चुके हैं, कौन सा काम आपको मुश्किल लगता है?

सबसे अधिक मुश्किल निर्माता बनना लगता है, डायरेक्शन और एक्टर का काम मेरे लिए आसान है.

प्र. आप अपनी सफलता को कैसे देखते हैं?

मुझे लगता है कि अभी रास्ता बहुत लम्बा है. जिस दिन आपको लगा कि आप सफल हो गए हैं, उस दिन काम करने की भूख खत्म हो जाती है और आप अच्छा काम नहीं कर पाते.

प्र. आप के हिसाब से फिल्म के सफल होने में आलोचक की भूमिका कितनी बड़ी होती है?

आज हजारों में क्रिटिक है. हर कोई अपने आप को आलोचक कहने लगा है. बिना फिल्म को समझे कोई भी कुछ भी लिख देता है. ऐसे आलोचकों से परेशानी होती है. पत्रकारिता में ऐसा नहीं है कि आपने किसी बच्चे के हाथ में माइक दे दिया और उसकी जो मर्ज़ी वह कहे. आलोचक बनने के लिए समझ और अनुभव की आवश्यकता होती है. अगर कोई संस्था इस क्षेत्र में ट्रेनिंग के लिए हो तो बेहतर होगी. आज लोगो को बात करने का तरीका तक पता नहीं है, आधे से अधिक अपने आप को बड़ा सिद्द करने के लिए क्रिटिक बोल देते है. ऐसे में जो रियल क्रिटिक है उनका नाम ख़राब हो रहा है.

प्र. पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर जो ये विवाद है इसमें क्या कहना चाहेंगे ?

मैंने कई पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम किया है. राहत फ़तेह अली खान ने मेरी कई फिल्मों के गाने भी गाएं हैं. लेकिन कई बार हालात ऐसे होती हैं, जहां कलाकार और कला की नहीं, बल्कि बात देश की होती है. देश की बात करें तो इतने सारे जवान मर रहे हैं, उनके परिवार क्या महसूस कर रहे हैं. ऐसे में उनकी संवेदना को समझना जरुरी है. आखिर वे देश की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं, अपनी जान गवां रहे है. मैं चाहता हूं कि ये जल्दी खत्म हो जाये ताकि आप फिर से काम कर सकें, लेकिन उस समय के लिए हमें देश के लिए खड़ा रहना चाहिए. गोलियों का  एक्सचेंज और कल्चरल एक्सचेंज एक साथ नहीं हो सकता.

बाजरे के लजीज स्वाद फ्री में ट्रेनिंग देता होमसाइंस कालेज

बाजरे की रोटी का स्वाद जितना अच्छा होता है, उस से कई गुना ज्यादा उस में गुण भी होते हैं. बाजरे की रोटी खाने वालों को हड्डियों के रोग नहीं होते. खून की कमी से होने वाला रोग एनिमिया भी नहीं होता. साथ ही लिवर से जुड़े रोगों से भी छुटकारा मिलता है. गेहूंचावल के मुकाबले बाजरा कई गुना ज्यादा ताकत देता?है. मोटापा, मधुमेह व दिल के रोगियों के लिए भी यह अच्छा होता?है. आज कोई भी कामधंधा शुरू करने के लिए किसी खास ट्रेनिंग और जमापूंजी के साथसाथ जगह की भी जरूरत होती है. सब कुछ होने के बाद भी जरूरी नहीं कि कामयाबी मिल ही जाए. लेकिन बाजरे से बनाई गई खाद्य सामग्री का रोजगार बहुत ही कम समय में आसान सी ट्रेनिंग ले कर शुरू किया जा सकता?है. इस के लिए किसी खास पढ़ाईलिखाई की जरूरत भी नहीं होती?है. बाजरा अपनेआप में सस्ता और पौष्टिक अनाज है, जिस से आप कम लागत में अनेक अच्छे उत्पाद बना सकते हैं.

चौधरी चरण सिंह, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के होमसाइंस कालेज द्वारा बाजरे से अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है, जो केवल 1 से 2 दिनों की ही होती है. इस ट्रेनिंग में बाजरे से बने लड्डू, ढोकला, बिसकुट, सेव (नमकीन), केक, इडली जैसी चीजें बनानी सिखाई जाती?हैं, जो स्वादिष्ठ और पौष्टिक होने के साथसाथ बनाने में आसान और कम खर्चीली भी हैं.

बीते दिनों हिसार कृषि विज्ञान मेले में भी उन्होंने अपना स्टाल लगाया, जहां इस केंद्र की बनाई हुई खाद्य सामग्री को प्रदर्शित किया गया. जिस सामग्री को चख कर किसानों ने लुत्फ भी उठाया.

होमसाइंस कालेज की डीन डा. प्रवीण पुनिया के नेतृत्व में उन के विशेषज्ञों द्वारा ट्रेनिंग दी जाती?है, मेले में लगे स्टाल पर अपनी छात्राओं के साथ डा. वीनू सांगवान व डा. आशा क्वात्रा मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि यह ट्रेनिंग एकदम मुफ्त दी जाती है, जो 1 से 2 दिनों की होती?है. ट्रेनिंग करने के बाद आप अपना छोटा रोजगार भी शुरू कर सकते?हैं. खासकर घरेलू महिलाओं के लिए तो यह बहुत ही फायदे का सौदा है. वैसे भी आजकल तो हाथ से बनी चीजों की खासी मांग भी है और लोग विश्वास से खरीदते?भी हैं.

प्रशिक्षण विशेषज्ञों द्वारा सीखने वालों को बाजरे की पौष्टिकता, प्रोसेसिंग का तरीका व उस में काम आने वाले उपकरणों के बारे में भी बताया जाता है.

जो लोग ट्रेनिंग लेना चाहते?हैं, वे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के होमसाइंस कालेज के फूड एवं न्यूट्रीशियन विभाग से संपर्क कर सकते हैं. साथ ही उन के टौल फ्री नंबर 18001803001 पर बात कर सकते हैं.

कुछ कहती हैं तसवीरें

गजब की कलाबाजियां : सेना के सिपाही बार्डर पर तो देश की हिफाजत करते ही हैं, पर अकसर अनोखे करतब भी दिखाने से नहीं चूकते. ट्यूबलाइटों की दीवार तोड़ कर मोटरसाइकिल निकालना या आग के गोले के बीच से घोड़े पर सवार हो कर निकलना ऐसे ही अनोखे करतब हैं.

मधुमक्खीपालन मिठास भरा रोजगार

जरूरी सामान : सब से पहले हमें मधुमक्खीपालन के लिए लकड़ी के बने बक्से लेने होते हैं, जिन्हें हम मौनग्रह भी कहते हैं. इस के अलावा मधुमक्खीपालन के लिए निम्न चीजों की जरूरत होती है: मधुमक्खियों से बचाव के लिए जाली, हाथों पर पहनने के दस्ताने, मधुमक्खियों को काबू करने के लिए धुंआ करने वाला यानी स्मोकर, शहद निकालने का यंत्र, शहद छानने की छलनी, कमेरी मधुमक्खियों को रोकने का यंत्र, कपड़े का बना एप्रैन वगैरह. मधुमक्खीपालन कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाला रोजगार है. इस रोजगार में?ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती और न किसी खास पढ़ाईलिखाई की जरूरत होती है. इस काम को खेती के साथसाथ सहरोजगार के रूप में किया जा सकता?है. घरेलू औरतें भी इस काम को बखूबी कर सकती हैं. यही वजह है कि आज मधुमक्खीपालन का काम बहुत सी औरतें लघु रोजगार के रूप में कर रही?हैं.

जरूरी बातें

कोई भी काम शुरू करने से पहले उस के बारे में जानकारी जरूर लेनी चाहिए, इसलिए मधुमक्खीपालन करने से पहले उस की ट्रेनिंग जरूर लें. इस से सही मधुमक्खी व सही जगह का चुनाव करना आसान हो जाता है. सही समय पर काम शुरू करें. अक्तूबरनवंबर मधुमक्खीपालन करने के लिए बहुत ही अच्छा समय है, क्योंकि तब अरहर की फसल बढ़ रह होती है और तोरिया यानी सरसों की फसल भी आने वाली होती है, जिन के फूलों से अच्छा पराग मिलता है. यह पूरा सीजन अप्रैलमई तक चलता?है. ध्यान रखें कि मधुमक्खी किसी अच्छे संस्थान के प्रजनन केंद्र से लें. मधुमक्खीपालन के लिए राज्य सरकारों की तमाम योजनाएं भी होती हैं. इस के लिए जिला उद्यान केंद्र, नेशनल हार्टिकल्चर बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग जैसी कई संस्थाएं हैं, जहां से काम शुरू करने के लिए अनुदान भी मिलता है.

कुछ और बातें जिन का ध्यान रखना जरूरी?है:

* मधुमक्खीपालन के लिए आधुनिक उपकरण ही खरीदें, खासकर बक्से सही नाप के हों. कैल व देवदार की लकड़ी के बक्से अच्छे माने जाते हैं, ये मौसम के हिसाब से घटतेबढ़ते नहीं?हैं. बक्सों पर फ्रेम सही फिट आने चाहिए.

* मधुमक्खीपालन के लिए ऐसी जगह का चुनाव करें, जहां आसपास पराग व मकरंद भरपूर मात्रा में हो.

* चुनी गई जगह पर जंगली जानवर और पशुपक्षियों का खतरा नहीं होना चाहिए.

मधुमक्खीपालन के अलगअलग मौसम में अलगअलग तौरतरीके होते हैं, जिन्हें ट्रेनिंग के दौरान पूरी तरह से सीखा जा सकता?है.

यहां से लें ट्रेनिंग:

कृषि विज्ञान केंद्र उजवा, नई दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में बना है. इस केंद्र पर हमारी बात आरके यादव से हुई, जिन्होंने बताया कि उन के कृषि संस्थान से भी किसान मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ले सकते?हैं. यह ट्रेनिंग मुफ्त में दी जाती है, जो 1 हफ्ते की होती?है. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद संस्थान से सर्टिफिकेट भी दिया जाता?है. कम पढ़ेलिखे लोग भी इस ट्रेनिंग को ले कर अपना रोजगार शुरू कर सकते?हैं. संस्थान के फोन नंबर 011-65638199 पर आप अधिक जानकारी ले सकते हैं.

इस के अलावा किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से भी इस बारे में संपर्क कर सकते?हैं. मधुमक्खीपालन के संदर्भ में हमारी प्रताप सिंह से बात हुई, जो रावता गांव, नजफगढ़, दिल्ली में ‘सुनीता मधुमक्खीपालन’ के नाम से बड़े स्तर पर मधुमक्खीपालन का काम करते?हैं, साथ ही मधुमक्खीपालन से जुड़े सामान भी बेचते हैं. प्रताप सिंह ने बताया कि जो लोग उन के यहां से ट्रेनिंग लेना चाहते?हैं, तो वे उन के पास जा कर साल में कभी भी ट्रेनिंग ले सकते हैं. टे्रनिंग में बेसिक जानकारी के साथसाथ प्रैक्टिकल के रूप में भी शिक्षा दी जाती है, जिस का कोई पैसा नहीं लिया जाता. वे ट्रेनिंग लेने वाले को सामान बेचने वालों के पते भी देते हैं, जहां से वह सामान खरीद कर मधुमक्खीपालन का काम शुरू कर सकता?है.

प्रताप सिंह ने बताया कि उन का देशभर में जगहजगह मधुमक्खीपालन का काम चलता रहता है, जहां वे अपने लोगों के साथ सीखने वालों को भेजते हैं व उन्हें काम सिखाते?हैं. नवंबर से जनवरी तक सरसों की फसल का मौसम चल रहा होता है. इस दौरान देश के अनेक भागों में मधुमक्खीपालन से अच्छा पराग इकट्ठा होता है. जब देहरादून में फूलों की खेती होती है, तब उन की टीम वहां पहुंच जाती?है. इसी तरह से कभी आगरा, कभी अलीगढ़ कभी बुलंदशहर वगैरह में जा कर वे मधुमक्खीपालन का काम करते हैं. वे सालभर में तकरीबन 250 क्विंटल शहद की पैदावार करते?हैं.

प्रताप सिंह से जब पूछा गया कि आप किसानों के बागों में या कृषि फार्मों में जा कर मधुमक्खीपालन करने के लिए अपने बक्से लगाते हो, तो बदले में उन्हें क्या फायदा होता?है? इस के जवाब में उन्होंने बताया कि वे इस के बदले उन्हें पैसे देते?हैं. कई लोग ऐसे भी होते?हैं कि उन्हें घर बैठे ट्रेनिंग भी मिल जाती?है. कई दफा ऐसे इलाकों में, जहां फसल का उत्पादन कम होता?है, वहां के लोग उन्हें खुद ही मधुमक्खीपालन के लिए बुलाते?हैं और सहयोग करते?हैं.

कई दफा वे लोग पैसे भी देते हैं, क्योंकि मधुमक्खीपालन में नर और मादा के संपर्क में आने से मक्खियां जब जगहजगह फूलों पर बैठती?हैं तो फसल की पैदावार में 10 से 30 फीसदी का इजाफा भी होता?है. प्रताप सिंह ने बताया कि उन्होंने मधुमक्खीपालन 1996 में शुरू किया था और दिल्ली विकास प्राधिकरण की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी. वे अपने 20 सालों के इस अनुभव को लोगों में बांटना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि लोग उन के पास आएं और पूरा प्रशिक्षण ले कर अपना काम शुरू करें. अगर मधुमक्खीपालन का काम लगन और मेहनत से किया जाए, तो न सिर्फ इस से आमदनी बढ़ेगी, बल्कि गांव के लोगों की आर्थिक दशा भी सुधरेगी और बेरोजगारी दूर होगी. मधुमक्खीपालन से जुड़ी ट्रेनिंग और दूसरी जानकारी के लिए किसान प्रताप सिंह के मोबाइल नंबरों 09210829294, 09811303023, 07838690008 पर बात कर सकते?हैं.

भारत में मधुमक्खियों की ये खास प्रजातियां पाई जाती?हैं:

सारंग मौन : इस प्रजाति की मधुमक्खियां मकानों, चट्टानों, ऊंचे पेड़ों पर बड़े आकार के छत्ते बनाती हैं. इस प्रजाति को मौन ग्रहों में नहीं पाला जाता. भारत में 60 फीसदी शहद इसी प्रजाति से मिलता?है.

भारतीय मौन : ये मधुमक्खियां पेड़ों के खोखले तनों, पहाड़ों की दीवारों की दरारों, खाली पेटियों वगैरह में अनेक छत्ते बनाती?हैं. इस प्रजाति को मौनग्रहों में भी पाला जा सकता है. इस प्रजाति को घर छोड़ने की आदत भी होती?है. ये अपने भोजन व बच्चों को छोड़ कर भी चली जाती हैं.

छोटी मौन : इस प्रजाति की मधुमक्खियों में भी घर छोड़ने की आदत होती है. इन्हें भी बक्सों में नहीं पाला जा सकता. छत्ता छोड़ते समय ये पराग व शहद ढो कर ले जाती हैं. इन के शहद में खास सुगंध होती?है, जिस से शहद महंगा बिकता है.

मधुमक्खी के हर परिवार में 3 तरह की मक्खियां होती हैं, रानी मक्खी, कमेरिया मक्खी व नर मक्खी. परिवार में रानी मक्खी 1 ही होती है, जो आकार में सब से बड़ी होती है. रानी अपने जीवन में 1 ही बार संभोग करती है. तीनों प्रकार की मक्खियां एकजुट हो कर काम करती हैं. रानी मक्खी का मुख्य काम अंडे देना, नर मक्खी का काम रानी मक्खी को गर्भित करना और कमेरियों का काम पराग इकट्ठा करना है.

यूरोपियन मौन : यह प्रजाति यूरोप, अमेरिका व आस्ट्रेलिया में पाई जाती है. इसे बक्सों में पाला जा सकता है. इस की इटेलियन उपप्रजाति मधुमक्खीपालन और शहद उत्पादन के लिए सर्वोत्तम मानी गई है. इस नस्ल की शहद उत्पादन कूवत औसतन 30 से 40 किलोग्राम और अधिकतम 200 किलोग्राम प्रति वंश होती है.

अब SMS से मिलेगी TDS कटने की जानकारी

नौकरीपेशा लोगों को केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने एक नई सुविधा दी है. उनकी सैलरी से एंप्‍लॉयर ने कितनी टीडीएस काटी है, इसकी जानकारी अब एसएमएस से मिलेगी. सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सीबीडीटी कार्यालय पर इस सुविधा की शुरुआत की.

अब मिलेंगी ये सुविधाएं

– कर्मचारियों को एसएमएस से मिलेगी टैक्‍स डिडक्‍शन की सूचना.

– यह सूचना प्रत्‍येक तिमाही सीबीडीटी की तरफ से दी जाएगी.

– कई बार एंप्‍लॉयर कर्मचारियों की टैक्‍स देनदारी से ज्‍यादा पैसे काट लेती हैं.

– इसका पता कर्मचारी को तब चलता है जब अपना इनकम टैक्‍स रिटर्न फाइल करने जाता है.

टीडीएस काट कर जमा न करवाने वाली कंपनियों पर लगेगा लगाम

– कुछ ऐसे मामले भी सामने आए कि कंपनी ने टीडीएस तो काटा लेकिन उसे जमा नहीं कराया.

– ऐसे ही एक मामले में किंगफिशर के कर्मचारियों को डिफॉल्‍टर घोषित कर दिया गया था.

– उनके टीडीएस जमा नहीं करवाए गए थे जबकि कंपनी ने सैलरी से कटौती की थी.

– अब कर्मचारियों को इस बात की जानकारी हर तिमाही मिलती रहेगी कि उनका टीडीएस कितना कटा. 

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