मेरी बड़ी बहन के लड़के की शादी दिल्ली में थी. मैं ने पति और मेरे छोटे भाईभाभी के साथ 2 जून का एसी-3 टायर कोच में आरक्षण करा लिया. परंतु मेरे भाई से गलती यह हो गई कि यह नहीं देखा कि टिकटें 2 जून की न हो कर 3 जून की थीं. हम 2 जून को ठीक समय पर बांद्रा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में अपनी सीट नंबर देख कर बैठ गए. बांद्रा से चल कर ट्रेन बोरीवली पर रुकी. वहां पर मुसाफिर चढ़े. उन्होंने हम से कहा कि ये सीटें तो उन की हैं. मेरे भाई ने कहा कि ये सीटें हमारी हैं. बहसबाजी में किसी ने टिकटें नहीं देखीं. ट्रेन चल पड़ी. थोड़ी देर बाद टिकटचैकर चार्ट ले कर आया जिस पर रिजर्वेशन हमारा न हो कर उन यात्रियों का था. चैकर ने हमारी टिकटें देखीं और कहा कि ये तो कल 3 जून की हैं. हम चारों टैंशन में आ गए. चैकर ने हमें अगले स्टेशन पर उतर जाने को कहा. यदि वह चाहता तो उस स्टेशन तक का किराया जुर्माने के साथ ले लेता. इतना ही नहीं, उस ने फोन से संदेश भेज कर अपने आदमी के साथ हमें स्टेशन के बाहर निकालने में भी मदद की. उस चैकर और उस दिन के सफर को हम कभी नहीं भुला सकते.     

कृष्णा कुमार, मुंबई (महा.)

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हम दोनों वृद्ध पतिपत्नी राजधानी ऐक्सप्रैस से दिल्ली से मुंबई अपने बेटे से मिलने जा रहे थे. एसी सैकंड क्लास में हमारी लोअर बर्थ थीं. हमारे पास सामान काफी था. दिल्ली से कुछ आगे पहुंचने पर एक अधेड़ उम्र के महाशय हमारी बर्थ पर आ कर बैठ गए. उन की बर्थ ऊपर की थी और वे भी मुंबई जा रहे थे. वे सज्जन मेरी बर्थ पर बैठे रहे. खाना भी वहीं खाया. हमें काफी असुविधा हो रही थी. कहने के बाद आखिरकार रात में वे सज्जन अपनी बर्थ पर चले गए.

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