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नया रिश्ता : पार्वती और विशाल ने बुढ़ापे में एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी चुना

लेखक-ताराचंद मकसाने

अमित की मम्मी पार्वती ने शरमाते हुए विशाल कुमार को अंगूठी पहनाई तो अमित की पत्नी शिवानी और उन के बच्चे अनूप व अतुल ने अपनी दादी पर फूलों की बरसात करनी शुरू कर दी. बाद में विशाल कुमार ने भी पार्वती को अंगूठी पहना दी. माहौल खुशनुमा हो गया, सभी के चेहरे खिल उठे, खुशी से झूमते बच्चे तो अपने नए दादा की गोद में जा कर बैठ गए.

यह नज़ारा देख कर अमित की आंखें नम हो गईं. वह अतीत की यादों में खो गया. अमित 5 वर्षों से शहर की सब से पौश कालोनी सनराइज सोसाइटी में रह रहा था. शिवानी अपने मिलनसार स्वभाव के कारण पूरी कालोनी की चहेती बनी हुई थी. कालोनी के सभी कार्यक्रमों में शिवानी की मौजूदगी अकसर अनिवार्य होती थी.

अमित के मातापिता गांव में रहते थे. अमित चाहता था कि वे दोनों उस के साथ मुंबई में रहने के लिए आ जाएं मगर उन्होंने गांव में ही रहना ज्यादा पसंद किया. वे साल में एकदो बार 15-20 दिनों के लिए जरूर अमित के पास रहने के लिए मुंबई आते थे. मगर मुंबई आने के 8-10 दिनों बाद ही गांव लौटने का राग आलापने लग जाते थे.

वक्त बीत रहा था. एक दिन रात को 2 बजे अमित का मोबाइल बजा.

‘हैलो, अमित बेटा, मैं तुम्हारे पिता का पड़ोसी रामप्रसाद बोल रहा हूं. बहुत बुरी खबर है, तुम्हारे पिता शांत हो गए है. अभी घंटेभर पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था. हम उन्हें अस्पताल ले कर जा रहे थे, रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.’

अपने पिता की मृत्यु के बाद अमित अपनी मम्मी को अपने साथ मुंबई ले कर आ गया. बतौर अध्यापिका सेवानिवृत्त हुई पार्वती अपने पति के निधन के बाद बहुत अकेली हो गई थी. पार्वती को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था. अमित और शिवानी के नौकरी पर जाने के बाद वह अपने पोते अनूप और अतुल को पढ़ाती थी. उन के होमवर्क में मदद भी करती थी.

पार्वती को अमित के पास आए 2 साल हो गए थे. अमित के पड़ोस में विशाल कुमार रहते थे. वे विधुर थे, नेवी से 2 साल पहले ही रिटायर हो कर रहने के लिए आए थे. उन का एक ही बेटा था जो यूएस में सैटल हो गया था. एक दिन शिवानी ने पार्वती की पहचान विशाल कुमार से करवाई. दोपहर में जब बच्चे स्कूल चले जाते थे तब दोनों मिलते थे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच औपचारिक बातें होती थीं. धीरेधीरे औपचारिकता की दीवार कब ढह गई, उन्हें पता न चला. अब दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. पार्वती और विशाल कुमार का अकेलापन दूर हो गया.

एक दिन शिवानी ने अमित से कहा- ‘अमित, पिछले कुछ दिनों से मम्मी में आ रहे बदलाव को तुम ने महसूस किया क्या?’

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, उस ने विस्मय से पूछा- ‘मैं कुछ समझा नहीं, शिवानी, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे अमित, मम्मी अब पहले से ज्यादा खुश नज़र आ रही हैं, उन के रहनसहन में भी अंतर आया है. पहले मम्मी अपने पहनावे पर इतना अधिक ध्यान नहीं देती थीं, आजकल वे बहुत ही करीने से रह रही हैं. उन्होंने अपने संदूक से अच्छीअच्छी साड़ियां निकाल कर वार्डरोब में लटका दी हैं. आजकल वे शाम को नियमितरूप से घूमने के लिए जाती हैं…’

अमित ने शिवानी की बात बीच में काटते हुए पूछा- ‘शिवानी, मैं कुछ समझा नहीं, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे भई, मम्मी को एक दोस्त मिल गया है. देखते नहीं, आजकल उन का चेहरा खिला हुआ नज़र आ रहा है.’

‘व्हाट…कैसा दोस्त, कौन दोस्त, शिवानी. प्लीज पहेली मत बुझाओ, खुल कर बताओ.’

‘अरे अमित, आजकल हमारे पड़ोसी विशाल अंकल और मम्मी के बीच याराना बढ़ रहा है,’ यह कहती हुई शिवानी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है. मम्मी वैसे भी अकेली पड़ गई थीं. वे हमेशा किताबों में ही खोई रहती थीं. कोई आदमी दिनभर किताबें पढ़ कर या टीवी देख कर अपना वक्त भला कैसे गुजार सकता है. कोई तो बोलने वाला चाहिए न. चलो, अच्छा हुआ मगर यह सब कब से हो रहा है, मैं ने तो कभी महसूस नहीं किया. तुम्हारी पारखी नज़रों ने यह सब कब भांप लिया? शिवानी, यू आर ग्रेट…’ अमित ने विस्मय से कहा.

‘अरे अमित, तुम्हें अपने औफिस के काम, मीटिंग, प्रोजैक्ट्स आदि से फुरसत ही कहां है, मम्मी अकसर मुझ से तुम्हारी शिकायत भी करती हैं कि अमित को तो मुझ से बात करने का वक्त भी नहीं मिलता है,’ शिवानी ने शिकायत की तो अमित तुरंत बोला, ‘हां शिवानी, तुम सही कह रही हो, आजकल औफिस में इतना काम बढ़ गया है कि सांस लेने की फुरसत तक नहीं मिलती है. मगर मुझे यह सुन कर अच्छा लगा कि अब मम्मी बोर नहीं होंगी. साथ ही, हमें कभी बच्चों को ले कर एकदो दिन के लिए बाहर जाना पड़ा तो मम्मी घर पर अकेली भी रह सकती हैं.’ अमित ने अपने दिल की बात कह दी.

‘मगर अमित, मैं कुछ और सोच रही हूं,’ शिवानी ने धीरे से रहस्यमयी आवाज में कहा तो अमित ने विस्मयभरी आंखों से शिवानी की सूरत को घूरते हुए कहा- ‘हां, बोलो, बोलो, तुम क्या सोच रही हो?’

‘मैं सोच रही हूं कि तुम विशाल अंकल को अपना पापा बना लो,’ शिवानी ने तुरुप का पता फेंक दिया.

‘क्या…तुम्हारा दिमाग तो नहीं खिसक गया,’ अमित लगभग चिल्लाते हुए बोला.

‘अरे भई, शांत हो जाओ, पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मम्मी अकेली हैं, उन के पति नहीं हैं. और विशाल अंकल भी अकेले हैं व उन की पत्नी नहीं हैं. जवानी की बनिस्पत बुढ़ापे में जीवनसाथी की जरूरत ज्यादा होती है. मम्मी और विशाल अंकल दोनों सुलझे हुए विचारों के इंसान हैं, दोनों सीनियर सिटिजन हैं और अपनी पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त हैं.

‘विशाल अंकल का इकलौता बेटा है जो यूएस में सैटल है. विशाल अंकल के बेटे सुमित और उस की पत्नी तान्या से मेरी अकसर बातचीत भी होती रहती है. वे दोनों भी चाहते हैं कि उन के पिता यूएस में हमेशा के लिए आ जाएं मगर उन्हें तो अपने वतन से असीम प्यार है, वे किसी भी कीमत पर वहां जाने को राजी नहीं, सेना के आदमी जो ठहरे. फिर उन का तो कहना है कि वे आखरी सांस तक अपने बेटे और बहू को भारत लाने की कोशिश करते रहेंगे. मगर वे अपनी मातृभूमि मरते दम तक नहीं छोडेंगे.’ अमित बड़े ध्यान से शिवानी की बात सुन रहा था.

शिवानी ने किंचित विश्राम के बाद कहा, ‘अमित, अब मैं मुख्य विषय पर आती हूं. तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ का नाम तो सुना ही होगा.’

शिवानी की बात सुन कर अमित के चेहरे पर अनभिज्ञता के भाव तेजी से उभरने लगे जिन्हें शिवानी ने क्षणभर में पढ़ लिया और अमित को समझाते हुए बोली- ‘अमित, आजकल हमारे देश में विशेषकर युवाओं और बुजुर्गों के बीच एक नए रिश्ते का ट्रैंड चल रहा है जिसे ‘लिवइन रिलेशनशिप’ कहते हैं. इस में महिला और पुरूष शादी के बिना अपनी सहमति के साथ एक ही घर में पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं. आजकल शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र लोग इस तरह की रिलेशनशिप को अधिक पसंद करते है क्योंकि इस में विवाह की तरह कानूनी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है. भारतीय कानून में भी इसे स्वीकृति दी गई है.

‘शादी के टूटने के बाद आप को कई तरह की कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पडता है मगर इस रिश्ते में इतनी मुश्किलें नहीं आती हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला आप को सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति देता है. इस रिश्ते में सामाजिक व पारिवारिक नियम आप पर लागू नहीं होते हैं. अगर यह रिश्ता टूट भी जाता है तो आप इस में से आसानी बाहर आ सकते हैं. इस में कोई कानूनी अड़चन भी नहीं आती है. इसलिए मैं चाहती हूं कि…’ बोलती हुई शिवानी फिर रुक गई तो अमित अधीर हो गया और झल्लाते हुए बोला- ‘अरे बाबा, लगता है तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ विषय में पीएच डी कर रखी है. पते की बात तो बता नहीं रही हो, लैक्चर दिए जा रही हो.’

‘अरे यार, बता तो रही हूं, थोड़ा धीरज रखो न,’ शिवानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘ठीक है, बताओ,’ अमित ने बात न बढ़ाने की मंशा से कहा.

‘अमित, मैं चाहती हूं कि हम मम्मी और विशाल अंकल को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के लिए राजी कर लेते हैं ताकि दोनों निश्चिंत और स्वच्छंद हो कर साथसाथ घूमफिर सकें,’ शिवानी ने अपने मन की बात कह दी.

‘मगर शिवानी, क्या मम्मी इस के लिए तैयार होंगी?’ अमित ने संदेह व्यक्त किया.

‘क्यों नहीं होंगी, वैसे भी आजकल दोनों छिपछिप एकदूसरे से मिल रहे हैं, मोबाइल पर घंटों बात करते हैं. लिव इन रिलेशनशिप के लिए दोनों तैयार हो जाएंगे तो वे दुनिया से डरे बगैर खुल कर मिल सकेंगे, साथ में भी रह सकेंगे,’ शिवानी ने अमित को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘इस के लिए मम्मी या विशाल अंकल से बात करने की मुझ में तो हिम्मत नहीं है बाबा,’ अमित ने हथियार डालते हुए कहा.

‘इस की चिंता तुम न करो, अमित. अपनी ही कालोनी में रहने वाली मेरी एक खास सहेली रेणू इस मामले में मेरी सहायता करेगी. वह इस प्रेमकहानी से भलीभांति वाकिफ भी है. हम दोनों मिल कर इस शुभकार्य को जल्दी ही अंजाम दे देंगे. हमें, बस, तुम्हारी सहमति का इंतजार है,’ शिवानी ने विश्वास के साथ यह कहा तो अमित की व्यग्रता कुछ कम हुई.

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘अगर मम्मी इस के लिए तैयार हो जाती हैं तो भला मुझे क्यों एतराज होगा. उन्हें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का हक तो है न.’

अमित की सहमति मिलते ही शिवानी और रेणु अपने मिशन को अंजाम देने में जुट गईं. शिवानी को यह विश्वास था कि पार्वती और विशाल अंकल पुराने जमाने के जरूर हैं मगर उन्हें आधुनिक विचारधारा से कोई परहेज नहीं है. दोनों बहुत ही फ्लैग्जिबल है और परिवर्तन में यकीन रखते हैं. एक संडे को शिवानी और रेणू गुलाब के फूलों के एक सुंदर गुलदस्ते के साथ विशाल अंकल के घर पहुंच गईं.

विशाल कुमार ने अपने चिरपरिचित मजाकिया स्वभाव में उन का स्वागत करते हुए कहा- ‘वाह, आज सूरज किस दिशा में उदय हुआ है, आज तो आप दोनों के चरण कमल से इस गरीब की कुटिया पवित्र हो गई है.’

शिवानी और रेणू ने औपचारिक बातें समाप्त करने के बाद मुख्य बात की ओर रुख किया. रेणू ने कहना शुरू किया-

‘अंकल, आप की और पार्वती मैडम की दोस्ती से हम ही नहीं, पूरी कालोनी वाकिफ है. इस दोस्ती ने आप दोनों का अकेलापन और एकांतवास खत्म कर दिया है. कालोनी के लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर अकसर आप दोनों छिपछिप कर मिलते हैं. अंकल, हम चाहते हैं कि आप दोनों ‘औफिशियली’ एकदूसरे से एक नया रिश्ता बना लो और दोनों खुल कर दुनिया के सामने आ जाओ…’

कुछ गंभीर बने विशाल कुमार ने बीच में ही पूछा, ‘मैं समझा नहीं, रेणू. तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘अंकल, आप और पार्वती मैडम ‘लिवइन रिलेशनशिप’ बना लो, फिर आप को दुनिया का कोई डर नहीं रहेगा. आप कानूनीरूप से दोनों साथसाथ रह सकते हैं और घूमफिर सकते हैं,’ यह कहती हुई शिवानी ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के बारे में विस्तृत जानकारी विशाल अंकल दे दी.

विशाल अंकल इस के लिए तुरंत राजी होते हुए बोले-

‘यह तो बहुत अच्छी बात है. दरअसल, मेरे और पार्वती के बीच अब तो अच्छी कैमिस्ट्री बन गई है. हमारे विचारों में भी बहुत समानता है. हम जब भी मिलते हैं तो घंटों बाते करते हैं. पार्वती को हिंदी साहित्य की अकूत जानकारी है. उस ने अब तक मुझे हिंदी की कई प्रसिद्ध कहानियां सुनाई हैं.’

‘अंकल, अब पार्वती मैडम को लिवइन रिलेशनशिप के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी आप की होगी.’

‘यस, डोन्ट वरी, आई विल डू इट. मगर जैसे आप दोनों ने मुझ से बात की है, वैसे एक बार पार्वती से भी बात कर लो तो ज्यादा ठीक होगा, बाकी मैं संभाल लूंगा.’

विशाल अंकल को धन्यवाद दे कर शिवानी और रेणू खुशीखुशी वहां से विदा हुईं. अगले संडे दोनों ने पार्वती से बात की. पहले तो उन्होंने ना नू, ना नू किया, मगर शिवानी और रेणू जानती थीं कि पार्वती दिल से विशाल कुमार को चाहती हैं और वे इस रिश्ते के लिए न नहीं कहेंगी, फिर उन दोनों की बेहतर कन्विन्सिंग स्किल के सामने पार्वती की ‘ना’ कुछ ही समय के बाद ‘हां’ में बदल गई.

शिवानी ने दोनों की ‘लिव इन रिलेशनशिप’ की औपचारिक घोषणा के लिए एक दिन अपने घर  पर एक छोटी पार्टी रखी थी, जिस में अमित, शिवानी और विशाल कुमार के बहुत करीबी दोस्त ही आमंत्रित थे. विशाल और पार्वती ने एकदूसरे को अंगूठियां पहना कर इस नए रिश्ते को सहर्ष स्वीकर कर लिया.

“अरे अमित, कहां खो गए हो, अपनी मम्मी और नए पापा को केक तो खिलाओ,” शिवानी ने चिल्ला कर यह कहा तो अमित अतीत से वर्तमान में लौटा.

इस नए रिश्ते को देख अमित की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी.

लाइफ में हो गई है रोमांस की कमी, तो इन तरीकों को अपनाकर बनें रोमांटिक

नेहा ने कुहनी मार कर समर को फ्रिज से दूध निकालने को कहा तो, वह चिढ़ गया, ‘‘क्या है? नजर नहीं आता, मैं कपड़े पहन रहा हूं?’’ लेकिन नेहा ने तो ऐसा प्यारवश किया था. और बदले में उसे भी इसी तरह के स्पर्श, छेड़छाड़ की चाहत थी. मगर समर को इस तरह का स्पर्श पसंद नहीं आया. नेहा का मूड अचानक बिगड़ गया. वह आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आकर्षित करने के लिए कुहनी मारी थी. इस के बदले में तुम से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया चाहिए थी, पर तुम तो गुस्सा हो गए.’’ समर यह सुन कर कुछ पल सहमा खड़ा रहा, फ्रिज से दूध निकाल कर देते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें समझ नहीं सका. मैं ने तुम्हारे इमोशंस को नहीं समझा. मैं शर्मिंदा हूं. इस मामले में शायद अभी अनाड़ी हूं.’’

शब्द को कई खास नहीं थे पर दिल की गहराइयों से निकले थे. बोलते समय समर के चेहरे पर शर्मिंदगी की झलक भी थी. नेहा का गुस्सा काफूर हो गया. वह समर के पास आई और उस के कालर को छूते हुए बोली, ‘‘तुम ने मेरी नाराजगी को महसूस किया, इतना ही मेरे लिए काफी है. तुम ने अपनी गलती मान ली यह भी एक स्पर्श ही है. मेरे दिल को तुम्हारे शब्द सहला गए हैं… मेरे तनमन को पुलकित कर गए हैं,’’ और फिर वह उस के गले लग गई. समर के हाथ सहसा ही नेहा की पीठ पर चले गए औैर फिर नेहा की कमर को छूते हुए बोला, ‘‘कितनी पतली है तुम्हारी कमर.’’ समर का यह कहना था कि नेहा ने समर के पेट में धीरे से उंगली चुभा दी. वह मचल कर पलंग पर गिर पड़ा तो नेहा भी हंसते हुए उस के ऊपर गिर पड़ी. फिर कुछ पल तक वे यों ही हंसतेखिलखिलाते रहे.

इस तरह बढ़ेगा प्यार

ऐसे ही जीवन में रोमांस बढ़ता है. तीखीमीठी दोनों ही तरह की अनुभूतियां जीवन में रस घोलती हैं और रिलेशन को आसान एवं जीने लायक बनाती हैं. आजकल वैसे भी कई तरह के तनाव औैर जिम्मेदारियां दिमाग में चक्कर लगाती रहती हैं. पास हो कर भी पतिपत्नी हंसबोल नहीं पाते. बस दूरदूर से ही एकदूसरे को देखते रह जाते हैं. ऐसे बोर कर देने वाले पलों में साथी को छेड़ना किसी औषधि से कम मूल्यवान नहीं हो सकता. अधिकतर पतिपत्नी तनाव के पलों में चाह कर भी आपस में बोलबतिया नहीं पाते. ऐसे ही क्षणों में पहल करने की जरूरत होती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या सहलाएं. शुरू में तो वह आप को अनदेखा करेगा पर अधिक देर तक नहीं कर सकेगा, क्योंकि छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव रिस्पौंस मिलता है. आप पत्नी हैं यह सोच कर न डरें. यह सोच कर अबोलापन न पसरने दें कि न जाने पति आप की पहल को किस रूप में लेगा. इस तरह के डर के साथ जीने वालों की लाइफ में कभी रोमांस नहीं आ पाता और उम्र यों ही निकल जाती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या गले लगें अथवा कमर पर हाथ रख कर स्पर्श करें, शुरू में तो साथी आप की छेड़खानी नजरअंदाज करने लगेगा, पर अधिक देर तक वह आप की छेड़खानी को अनदेखा नहीं कर सकेगा, क्योंकि छूने या छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव संदेश मिलता है और इस संदेश के पहुंचते ही धीरेधीरे दिमाग से तनाव की काली छाया हट जाती है. आप उसे अच्छे लगने लगते हैं. वह गुड फील करने लगता है. यह फीलिंग ही रोमांस के पलों को आप के बीच विकसित करने में मदद करती है.

सुखद पहलू

नेहा ने चुपचाप खड़े समर को अचानक कुहनी मार कर फ्रिज से दूध निकालने को कहा था, उस पर वह चिढ़ गया. लेकिन नेहा डरीसहमी नहीं, बल्कि उस ने अपनी फीलिंग्स और अंदर के प्यार व इमोशंस को बताने की पूरी कोशिश की. समर का गुस्सा छूमंतर हो गया और वह शर्मिंदा भी हुआ. फिर उस ने भी नेहा के प्रति अपनी फीलिंग्स जाहिर करनी शुरू कर दीं. दोनों अगले ही पल रोमांस के रंगों में रंग गए. उन का मूड आशिकाना हो गया. एकदूसरे को अच्छे लगने लगे. यही है रोमांस और रोमांच को वैवाहिक जीवन में लाने की तकनीक, जिस का हम में से अधिकांश दंपतियों को पता ही नहीं होता. बस साथ रहते हैं. मन करता है तो बोल लेते हैं या बहस कर लेते हैं. ज्यादा ही तनाव में होते हैं, तो एकदूसरे के आगे रो लेते हैं. लेकिन यह मैरिड लाइफ का नैगेटिव पक्ष है इस से पतिपत्नी कभी रोमांटिक कपल नहीं बन सकते. उन के जीवन में जो भी घटता है, वह स्वाभाविक या नैचुरल रूप से नहीं, बल्कि जबरदस्ती, यौन संबंध हो या प्यार अथवा हंसीमजाक, जिसे इन चीजों की जरूरत होती है, वह खुद शादी के करीब आ कर कोशिश करता है. अब सब सामने वाले साथी के मूड पर निर्भर करता है. वह अपने पार्टनर की इच्छा की पूर्ति करना चाहता है या नहीं. यही मैरिड लाइफ का सुखद पहलू है, रोमांटिक पहलू है. ऐसा कब तक एक साथी दूसरे के साथ जोरजबरदस्ती करेगा? एक दिन थकहार कर कोशिश करना ही छोड़ देगा.

कैसे बनें रोमांटिक

आज की मैरिड लाइफ में जिम्मेदारियों के बोझ के कारण एकदूसरे को देख कर कोई भी प्यारअनुराग मन में पैदा नहीं हो पाता. ये सिर्फ और सिर्फ मन से ही उत्पन्न हो सकती हैं और आप दोनों में से किसी एक को ही इस के लिए आगे आना होगा. अब आगे आए कौन? इस दुविधा में ही जोड़ी रोमांस के पल हाथ से जाने देती है, मेरी राय में पत्नी से बेहतर जीवन को समझने वाला कोई हो ही नहीं सकता. एक औरत होने के नाते वह स्नेही हृदय की होती है, दिल वाली होती है. प्रेम का अर्थ वह जानती है. फिर जो प्यार को जानता है वही पुरुष को रोमांटिक बना सकता है. नेहा ने कोशिश की तो उसे बदले में रोमांस के पल मिले. आप भी इस मामले में हठी न बनें. मन में इगो न पालें कि जब पति को मेरी कोई जरूरत नहीं है, वह मुझ से बात करने को राजी नहीं है, तो मैं क्यों फालतू में उस के साथ जबरदस्ती जा कर बात करूं.

ऐसे विचार मन में नहीं लाने चाहिए. इस से दांपत्य जीवन बंजर बन जाता है. आप औरत हैं, आप में पैदाइशी प्यार, रोमांस सैक्स के भाव हैं. आप जब चाहें जैसे चाहें पति को रोमांटिक बना सकती हैं. रोमांस आप से पैदा होता है और आप के भीतर हमेशा ही होता है. जरूरत है बस उसे जीवन में लाने की. फिर देखिए, तनाव और जिम्मेदारियों पर कैसे रोमांस भारी पड़ने लगता है.

टूट रहा है रिकौर्ड : भीषण गरमी से तप रही है धरती

देशभर में गरमी अपना प्रचंड रूप दिखा रही है. दिल्ली में पारा 50 डिग्री से ऊपर चला गया है. गरमी का यह रौद्र रूप कभी राजस्थान में दिखता था, लेकिन अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सभी राज्य तेज धूप और लू की चपेट में हैं. इस कारण अस्पतालों में डिहाइड्रेशन और चक्कर व बेहोशी के मरीज अचानक बढ़ गए हैं.

हालांकि मई के आखिरी हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक प्रचंड धूप और लू का सामना हम हर साल करते हैं. आम भाषा में इन नौ-दस दिनों की तेज गरमी को नौतपा कहा जाता है. यानी नौ दिन जिस में गरमी अपना रौद्र रूप दिखाती है. आम धारणा है कि नौतपा जितना तपाएगा, बारिश उतनी ही ज्यादा होगी. ये नौ दिन खेतीबाड़ी के लिहाज से बहुत ख़ास होते हैं. मई के तीसरे हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक करीब 15 दिन देश में भयानक हीटवेव चलती है. इसे हौट वेदर सीजन कहते हैं.

इस साल नौतपा की शुरुआत 25 मई से मानी गई है जो 2 जून तक चलेगा. इस के कारण कई जगहों पर तापमान 50 डिग्री से 55 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाएगा. सूर्य की गरमी के कारण समुद्र और नदियों का जल वाष्प बन कर उड़ता है और यही वाष्प बादल का रूप लेते हैं. मान्यता है कि अगर नौतपा पूरे समय तपेगा तो बारिश अच्छी होती है. नौतपा के आखिरी 2 दिनों के भीतर आंधी, तूफान व बारिश की संभावना बनी रहती है. तापमान बढ़ने की असली वजह यह है कि मई में हमारा देश सूरज की तरफ सीधे होता है. सूर्य ऊपर की तरफ बढ़ता है. इस से तापमान में बढ़ोतरी होती है. जिस तरह गरमी में नौतपा शब्द का इस्तेमाल होता है वैसे ही सर्दी में कश्मीर में चिल्लई कलां का इस्तेमाल किया जाता है. यानी, भयानक सर्दी के 40 दिन.

हर साल इसी गरमी के चलते स्कूलों की छुट्टियां होती हैं. देशभर के कोर्ट भी बंद हो जाते हैं. डेढ़ से दो महीने लंबी गरमी की छुट्टियों का इंतज़ार तो बच्चे खूब करते हैं. गरमी जैसेजैसे बढ़ती है, खरबूजे, तरबूज, लीची, गन्ने, बेल जैसे फलों की मिठास भी बढ़ती है. इसी समय में आम पक कर खूब मीठे और रसीले हो जाते हैं, जिन का लुत्फ़ बच्चे और बड़े खूब उठाते हैं. गरमी बढ़ती है तो मच्छरमक्खियां और उन के लार्वा ख़त्म होते हैं. खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों की तादाद कम होती है. यही नहीं, प्रचंड गरमी में टिड्डियों के अंडे नष्ट हो जाते हैं. यदि ये अंडे नष्ट न हों तो टिड्डियों की संख्या इस कदर बढ़ जाए कि खेतों की खड़ी फसल देखते ही देखते वे चट कर जाएं.

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गरमी के अनेक फायदे हैं. हां, कुछ साल पहले तक जो तापमान अधिकतम 45 डिग्री तक जाता था, उस का आंकड़ा बढ़ना चिंता का विषय है. इस की कई वजहें हैं. शहरीकरण के बढ़ने से अब कृषिभूमि और जंगल लगातार कम हो रहे हैं. पेड़ धूप को रोकते भी हैं और सोखते भी. इन के कम होते जाने से सूर्य की तेज किरणें सीधे धरती पर पड़ती हैं. इस से धरती का तापमान बढ़ता है.

ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान अधिक नहीं होता क्योंकि वहां पेड़पौधे हैं, कच्चे मकान हैं, तालाबपोखर हैं और वाहनों की संख्या कम है. मगर शहरों की सड़कें वाहनों से भरी हुई हैं. हर कार एसी है. हर बस एसी है. ये लगातार गरम हवा बाहर फेंक रहे हैं. चारों तरफ मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स हैं, पक्के मकान हैं जिन में लाखों एसी चल रहे हैं. पूरा वातावरण गरम हवा से भरा हुआ है. शहरों में अब आप को कहीं तालाब नजर नहीं आते क्योंकि तालाबों को पाट कर उन पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स खड़ी कर दी गई हैं.

बीते दिनों हिमाचल और उत्तराखंड के जंगल भीषण आग की चपेट में रहे. बहुत बड़ी संख्या में वृक्ष जल कर नष्ट हो गए. कहीं आग प्राकृतिक कारणों से लगी तो अधिकांश जगहों पर जानबूझ कर आग लगाई गई ताकि जंगल ख़त्म हो और खाली जमीनों पर खुदाई कर के धरती की संपदा पर कब्जा किया जा सके. जंगल और पहाड़ नष्ट होने से नदियां अपना रास्ता बदल रही हैं. अनेक नदियां इन वजहों से सूख चुकी हैं. जंगलों को ख़त्म करने के पीछे बड़ीबड़ी कंपनियों की साजिश में सरकार का हाथ और साथ भी शामिल है. देश के पहाड़ी क्षेत्रों में मोदी सरकार ने बड़ीबड़ी टनल बनाने और खदानें खोदने का काम चला रखा है हालांकि वे पहाड़ों के अस्तित्व के लिए ख़तरा हैं और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार भी.

मोदी सरकार ने धर्म को भी धंधा बना दिया है. इस धंधे को बढ़ाने के लिए पहाड़ों पर स्थित तमाम तीर्थस्थानों तक ज़्यादा से ज़्यादा श्रद्धालुओं को भेजने के लिए जंगल काटकाट कर खूब चौड़ीचौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं. सड़कों के किनारे होटलों की श्रृंखलाएं खड़ी हो गई हैं. पहाड़ों पर बड़ेबड़े हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन बन गए हैं. कारों और बसों की लंबी लाइनें लगी हुई हैं. अभी पिछले दिनों अमरनाथ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 4 लाख 45 हजार 338 थी. लोग एकदूसरे पर चढ़े जा रहे थे. निकलने का कहीं रास्ता नहीं था. 17 दिनों की यात्रा में 30 श्रद्धालुओं की मौत भी हुई. यह तो सिर्फ एक तीर्थस्थल की बात है. सोचिए कि इतनी बड़ी संख्या में जब लोग अनेकानेक तीर्थस्थानों के लिए जाएंगे तो उन के लिए रहने, नित्यक्रिया करने और भोजन पकाने की व्यवस्था भी जगहजगह होगी. तो चूल्हों की गरमी, वाहनों की गरमी, एसी की गरमी, लोगों की गरमी सब मिल कर वातावरण के तापमान को बढ़ाएंगे ही.

आज देश में गरमी से निबटने के लिए उच्चवर्ग के पास अच्छे इंतजाम हैं. उन की गाड़ियां, घर, औफिस सब एयरकंडीशंड हैं. उन्हें बाहरी वातावरण की गरमी का सामना नहीं करना पड़ता है. मध्यवर्ग और निम्नमध्यवर्ग वाले भी अपने बचाव के लिए कूलर वगैरह का इंतजाम कर लेते हैं. गरमी के दोतीन महीने निम्नवर्गीय और अतिनिम्नवर्गीय लोग ही सब से ज्यादा परेशानी का सामना करते हैं जिन के घरों में मुश्किल से एकाध सीलिंग फैन या टेबल फैन होता है.

सरकार ने मेट्रो और बसों को एसी किया है, इस से काफी राहत मिल जाती है. दफ्तरों में भी एसी लगे हैं और घरों में भी कम से कम एकदो एसी तो हैं ही. लेकिन जो मजदूर हैं, दुकानों में काम करते हैं, रिक्शा-ठेला खींचते हैं, सब्जी बेचते हैं, पंचर की दुकान चलाते हैं वे ही गरमी का असली कष्ट भोगते हैं. गरमी के दिनों में अस्पतालों में दस्तउलटी, चक्करबेहोशी के जो मरीज भरे रहते हैं, वे इसी निम्नवर्ग से आते हैं. इस वर्ग की तादाद भी ज्यादा है और आने वाले वक्त में ग्लोबल वार्मिंग का सब से बड़ा शिकार यही वर्ग होगा.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु में बदलाव, तापमान में वृद्धि, कृषि पर बुरा प्रभाव, मृत्युदर में वृद्धि, प्राकृतिक आवास का नुकसान जैसे हानिकारक दुष्प्रभाव नज़र आने लगे हैं. पेड़पौधों और जीवों की कई प्रजातियां तापमान में अत्यधिक वृद्धि के कारण लुप्त हो चुकी हैं. इन दिनों जबकि दिल्ली का तापमान 50 डिग्री को छू रहा है, अनेक पक्षी, खासतौर से कबूतर, आसमान से मरमर कर धरती पर गिर रहे हैं. आज ग्लोबल वार्मिंग को व्यक्तियों और सरकार के संयुक्त प्रयास से ही रोका जा सकता है. वनों की कटाई पर रोक लगाने के साथ पेड़ों को अधिक से अधिक लगाए जाने की जरूरत है. एसी और औटोमोबाइल के उपयोग को सीमित करना होगा और रीसाइक्लिंग को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. सरकार और उच्चवर्ग को उस अतिनिम्नवर्ग के बारे में संवेदनशील होना होगा जो उन के किए का खमियाजा भुगत रहे हैं.

मोदी का परिवार और उन के बेटों के पापकर्म

उत्तर प्रदेश की कैसरगंज सीट से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला खिलाड़ियों का यौनशोषण करने के आरोपों ने दुनिया के सामने भारत को शर्मसार किया है. कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहते बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप है कि उन्होंने महिला पहलवानों का यौनशोषण किया. जिन ऐथलीट्स ने यौन संबंध बनाने के प्रस्ताव को ठुकराया उन्हें कायदों का गलत इस्तेमाल कर कई तरीके से परेशान किया. पाप का घड़ा जब भर कर फूटा तो कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए दिल्ली के जंतरमंतर पर महिला खिलाड़ियों का जबरदस्त आंदोलन चला. लेकिन बृजभूषण का दबदबा देखिए कि उस के दबाव में दिल्ली पुलिस ने दुनियाभर में भारत रोशन करने वाली महिला ऐथलीट्स को दिल्ली की सड़कों पर घसीटघसीट कर मारा.

हालांकि बाद में बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और यौनउत्पीड़न से जुड़ी धाराओं 354, 354ए, 354डी के अलावा पोक्सो कानून की धारा (10) ‘एग्रावेटेड सैक्सुअल असौल्ट’ यानी ‘गंभीर यौन हिंसा’ भी उस पर लगाई गई. मामला फिलहाल अदालत में है.

जब लोकसभा चुनाव की दुदुम्भी बजी तो बृजभूषण ने टिकट पाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया. धमकाया. शक्तिप्रदर्शन कर अपना प्रभाव दिखाया. भाजपा को भी डर था कि बृजभूषण को टिकट न दिया तो कैसरगंज सीट हाथ से निकल जाएगी. मानमनौवल हुई और महिलाओं के सशक्तीकरण का ढोल पीटने वाली मोदी सरकार कैसरगंज सीट बचाने के लालच में बृजभूषण के तलवे चाटने के लिए मजबूर नजर आई. यौनशोषण के आरोपी बृजभूषण सिंह के दबाव से भाजपा निकल नहीं पाई और कैसरगंज सीट पर भाजपा को बृजभूषण शरण सिंह को न सही उस के बेटे करण भूषण सिंह को टिकट देना पड़ा.

अन्य दलों में परिवारवाद देखने और कोसने वाली मोदी सरकार के चेहरे पर अपने परिवार के होनहार बिरवानों की करतूतों से कालिख पुत चुकी है. लोकसभा का टिकट पा कर बौराए घूम रहे बृजभूषण के बेटे करण भूषण सिंह की तेज रफ्तार गाड़ियों के काफिले ने 29 मई की सुबह एक बाइक पर सवार 2 युवाओं को बुरी तरह रौंद दिया. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. साथ ही, एक 60 वर्षीय ग्रामीण महिला पर भी गाड़ी चढ़ा दी जिसे फिलहाल गंभीर हालत में गोंडा के मैडिकल कालेज में भरती किया गया है.

करण भूषण सिंह की हवा में बातें करती गाड़ियों का काफिला करनैलगंज-हुजूरपुर मार्ग पर छतईपुरवा स्थित बैकुंठ डिग्री कालेज के सामने पहुंचा जहां काफिले की फौर्चूनर गाड़ी ने सामने से बाइक पर आ रहे 2 भाइयों निंदूरा निवासी रेहान खान (21) और शहजाद खान (20) को सीधी टक्कर में मौत की नींद सुला दिया और सड़क के किनारे जा रही छतईपुरवा निवासी सीता देवी (60) को भी टक्कर मार कर रौंद दिया. टक्कर इतनी भीषण थी कि गाड़ी के भीतर सभी एयरबैग खुल गए.

इस घटना को अंजाम देने के बाद करण भूषण के स्कोर्ट में चल रही फौर्च्यूनर गाड़ी यूपी-32 एचडब्ल्यू-1800 छोड़ कर हत्यारे भाग खड़े हुए. मौके पर गांव वालों की भीड़ जमा हो गई. आक्रोशित भीड़ ने गाड़ी फूंकने की कोशिश की मगर कटराबाजार, परसपुर, कौड़िया व करनैलगंज थाने की पुलिस फोर्स ने मोरचा संभाल लिया.

पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी, चक्काजाम और युवकों के शव को पोस्टमार्टम के लिए न ले जाने की जिद पर अड़े लोगों से पुलिस की तीखी नोकझोंक हुई. काफी जद्दोजेहद और मानमनौवल के बीच पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. करनैलगंज-हुजूरपुर मार्ग पर करीब एक घंटे तक जाम लगा रहा. एसडीएम, अपर पुलिस अधीक्षक, सीओ करनैलगंज व सीओ सिटी के सामूहिक प्रयास व मुकदमे के आश्वासन के बाद आक्रोशितों ने जाम हटाया.

बिलकुल ऐसी ही घटना को मोदी परिवार के होनहार बिरवान गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष टेनी ने भी अंजाम दिया था. लखीमपुर खीरी जिले के तिकुनिया शहर के पास आंदोलनकारी किसानों पर आशीष ने गाड़ी चढ़ा दी थी. 4 किसानों की वहीं मौत हो गई थी और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे. आशीष और उस के लोगों ने किसानों को अपनी एसयूवी गाड़ियों से बेरहमी से रौंदा था. पीछे से इस अचानक हुए हमले से गुस्साए किसानों ने आशीष की उन 2 गाड़ियों में आग लगा दी थी जिन से किसानों को रौंदा गया था. इस घटना से गुस्साए किसानों ने काफिले में शामिल भाजपा के 3 कार्यकर्ता और एक वाहन के चालक को वहीं पीटपीट कर मार डाला. यह घटना 3 अक्टूबर, 2021 की है. टेनी के बेटे आशीष ने इस हिंसा का नेतृत्व किया था.

टेनी खीरी निर्वाचन क्षेत्र से सांसद थे. कुछ दिनों पहले जिले के पलिया शहर में हुए एक कार्यक्रम में किसानों ने काले झंडे दिखा कर उन से अपना विरोध प्रकट किया था जिस के बाद टेनी ने एक धमकीभरा भाषण दिया था : “सुधर जाओ नहीं तो हम सुधार देंगे, दो मिनट लगेगा, बस.”

और दो ही मिनट लगे किसानों को रौंदने में. अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष टेनी ने एक भयानक घटना को अंजाम दिया. इस में कोई दो राय नहीं कि एक सुनियोजित तरीके से उस की कारों ने उन आंदोलनकारियों को रौंद दिया जो सिर्फ काला झंडा दिखा कर शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे.

कर्नाटक की हासन से सांसद और देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना के 300 से अधिक महिलाओं के यौनशोषण करने वाले 2,000 से ज्यादा अश्लील वीडियो वायरल हो चुके हैं. कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार द्वारा इस मामले विशेष जांच के आदेश के बाद प्रज्वल रेवन्ना भारत छोड़ कर जरमनी भाग गया.

यह मामला राज्य सरकार के संज्ञान में तब आया जब राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नागलक्ष्मी चौधरी ने प्रज्वल पर लगे आरोपों के संबंध में सीएम और राज्य पुलिस प्रमुख को पत्र लिखा. जिन महिलाओं का प्रज्वल रेवन्ना ने यौनशोषण किया उन में से जनता दल की 12 महिलाएं, भाजपा परिवार की 2 सदस्य, 1 जीएसटी कमिश्नर की पत्नी, 2 महिला पुलिस इंस्पैक्टर और 304 अन्य महिलाएं हैं जो ज्यादातर वोक्कालिगा समाज से आती हैं.

महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराने वाली कर्नाटक महिला डौर्जन्या विरोधी वेदिके के अनुसार, सांसद प्रज्वल रेवन्ना सहित अन्य प्रभावशाली राजनेताओं द्वारा महिलाओं का यौनशोषण करने और उन्हें यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने वाले बहुत सारे वीडियो पूरे हासन जिले में पेनड्राइव के माध्यम से प्रसारित किए गए और सोशल मीडिया पर भी डाले गए. वीडियो में प्रज्वल रेवन्ना को कई महिलाओं के साथ आपत्तिजनक मुद्रा में देखा गया.

वेदिके ने महिला आयोग से अपनी शिकायत में कहा, “इस घटना ने कई महिलाओं के जीवन को खतरे में डाल दिया है और उन की गरिमा को नुकसान पहुंचाया है.”

बता दें कि, 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में कर्नाटक की 28 में से 14 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ था जिस में हासन लोकसभा सीट भी शामिल थी. इस बार लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में भाजपा और देवगौड़ा की जनता दल सैक्युलर के बीच गठबंधन हुआ था.

राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से भाजपा इस बार 25 और जेडीएस 3 (मंड्या, कोलार और हासन) सीटों पर चुनाव लड़ रही है. एनडीए की तरफ से प्रज्वल रेवन्ना हासन लोकसभा सीट से प्रत्याशी था जो फिलहाल भागा हुआ है.

यूपी के अधिकांश ऐसे लोग हैं जिन का सिक्का हर दल में चलता रहा है. जिन्हें आगे बढ़ाने में हर पार्टी का मुखिया सहयोग करता रहा है. भले ही वो दिनरात अपनी राजनीतिक शुचिता की दुहाई क्यों न देता हो. उन्नाव रेप कांड का आरोपी कुलदीप सेंगर कांग्रेस, बसपा और होते हुए भाजपा में आया था. किसी भी पार्टी को यह कहने का हक नहीं है कि वो साफसुथरी है.

ज्यादातर बाहुबली नेताओं को उन की जाति के लोगों का समर्थन मिलता रहा है. उन की जाति उन्हें आदर्श मानती रही है. जनता में उन की पकड़ की वजह से राजनीतिक दल उन्हें अपनाते रहे हैं. पार्टियां समझती थीं कि इस से जाति विशेष का वोट मिल जाएगा. चाहे वो वीरेंद्र शाही रहे हों या ओम प्रकाश पासवान. हरिशंकर तिवारी हों या डी पी और रमाकांत यादव. बाहुबलियों को अपना हित साधने के लिए पार्टियों को अपने साथ लेने से कभी परहेज नहीं रहा. इसलिए कोई भी पार्टी दूसरी पार्टी पर आरोप लगाने से पहले अपनी तरफ भी देखे.

क्या ऐसे अदालती फैसलों से सहमत होना चाहिए

जबलपुर हाईकोर्ट का यह फैसला एक बार फिर साल 1972 की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘दुश्मन’ की याद ताजा कर गया. दुलाल गुहा निर्देशित यह फिल्म न्याय में नए प्रयोग के लिए जानी जाती है, जिस का स्वागत करने के लिए दर्शक सिनेमाघरों की तरफ टूट पड़े थे. फिल्म के हीरो राजेश खन्ना (सुरजीत) ट्रक ड्राइवर के रोल में थे जिस के हाथों रामदीन नाम के किसान की सड़क हादसे में मौत हो जाती है जो अपने घर का कर्ताधर्ता है.

ऐसे हादसे गैरइरादतन हत्या के होते हैं, इसलिए इन में सजा ज्यादा नहीं होती. जज के रोल में रहमान थे जो रामदीन के घर वालों की बदहाली, गरीबी और दुर्दशा के मद्देनजर सुरजीत को रामदीन के घरवालों के भरणपोषण की सजा सुनाते हैं कि वह मृतक के खेतों में हल जोते, फसलें उगाए और रामदीन के बीवीबच्चों की परवरिश करे. शुरुआती आनाकानी के बाद सुरजीत का मन गांव में लग जाता है और कुछ दिनों में ही उसे अपने हाथों हुए अपराध का एहसास होता है तो वह पश्चात्ताप भी करता है. फिर फिल्म फार्मूला होती जाती है. राजेश खन्ना को गांव की लड़की मुमताज से प्यार हो जाता है. विलेन वगैरह भी आ जाते हैं और आखिर में सबकुछ ठीक हो जाता है. रामदीन की विधवा मालती भी सुरजीत को माफ़ कर देती है और दर्शक नम आंखें लिए थियेटर के बाहर निकलते हैं. मालती की भूमिका में मीना कुमारी ने जबरदस्त अभिनय किया था.

तब क़ानूनी हलकों में इस फिल्म को ले कर खासी बहस और चर्चा हुई थी और कानून से जुड़े लोग व बुद्धिजीवी दोफाड़ हो गए थे कि ऐसे फैसले होने चाहिए या नहीं और अगर हो भी गए तो क्या गारंटी है कि वे भी फिल्म की तरह कारगर होंगे.

अब सालों बाद ऐसी ही बहस जबलपुर हाईकोर्ट के एक फैसले को ले कर छिड़ी हुई है. पहले इस मामूली से लगने वाले मामले को थोड़े से में समझें- बीबीए फर्स्ट ईयर का छात्र अभिषेक शर्मा भोपाल के पिपलानी इलाके में रहता है. पढ़ाई के साथसाथ वह इस उम्र में होने वाला एक और काम छेड़छाड़ का भी कर रहा था जिस का तरीका वैसा ही गलत था जैसा कि ‘दुश्मन’ फिल्म में राजेश खन्ना का नशे में धुत हो कर ट्रक चलाना था. अभिषेक एक 17 साल की लड़की, बदला नाम मान लें प्रिया है, से एकतरफा प्यार करने लगा था और रातबिरात फोन करने लगा था. वह राह चलते उसे छेड़ता था, उस का पीछा करता था, कमैंट्स करता था जिस से प्रिया बेहद तंग आ गई थी. आखिर चूंकि लड़की थी, इसलिए लड़ नहीं पाई.

उस की ख़ामोशी को अभिषेक ने मजबूरी और कमजोरी समझ लिया तो उस के हौसले और भी बुलंद होने लगे. उसे लगा और बेहद गलत लगा कि लड़कियां ऐसे भी पटती हैं, वे पहले नाजनखरे दिखाती हैं, नानुकुर करती हैं और फिर प्यार के आगे हथियार डाल बगीचे में पेड़ के इर्दगिर्द गाना गाने को तैयार हो जाती हैं. इसी जिद और जनून की गिरफ्त में आते उस ने प्रिया को इंप्रैस करने की गरज से उस के नाम का टैटू भी अपने हाथ में बनवा लिया. इस पर भी बात न बनी तो वह प्रिया को धमकियां देने लगा.
आखिकार एक दिन प्रिया के सब्र का बांध टूट गया और उस ने पुलिसथाने जा कर अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने पाक्सो एक्ट के तहत अभिषेक को जेल भेज दिया. अभिषेक ने जमानत के लिए भोपाल जिला अदालत में अर्जी दाखिल की जो कि रद्द हो गई. यह 13 अप्रैल, 2024 की बात है. चार दिनों बाद ही यह मजनू हाईकोर्ट जा पहुंचा जहां उस की अर्जी पर 16 मई को सुनवाई हुई.

यह फैसला आया

अभिषेक के अधिवक्ता सौरभ भूषण श्रीवास्तव ने अदालत में दलील दी कि अभिषेक की पढ़ाई चल रही है, ऐसे में अगर उसे सख्त सजा दी गई तो उस का कैरियर बरबाद हो जाएगा. अभिषेक के पेरैंट्स ने बेटे की करतूत पर माफ़ी भी मांगी. सौरभ भूषण ने अपने मुवक्किल के अच्छे चालचलन का भी हवाला दिया.

इन दलीलों से इत्तफाक रखते और अभिषेक के भविष्य को गंभीरता से लेते जस्टिस आनंद पाठक ने लीक से हट कर फैसला सुनाया जो जल्द ही चर्चा का विषय बन गया. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि छात्र को बेहतर नागरिक बनाने, उस की उम्र और भविष्य को देखते हुए समाजसेवा का आदेश दिया गया है ताकि उसे समाज की मुख्यधारा में आने का मौका मिले. दो महीने की अस्थाई जमानत की शर्त हाईकोर्ट ने यह रखी कि उसे सप्ताह में 2 दिन शनिवार और इतवार को भोपाल के जिला अस्पताल जा कर मरीजों की सेवा करनी होगी जिस के लिए उसे कोई भुगतान नहीं किया जाएगा. इस दौरान अगर उस के आचरण में सुधार दिखता है तो जमानत नियमित कर दी जाएगी.

अदालत ने यह भी कहा कि युवक अस्पताल में मरीजों के लिए परेशानी का कारण नहीं बनेगा. अगर उस के दुर्व्यवहार या आचरण की जानकारी या शिकायत आती है तो जमानत ख़ारिज कर दी जाएगी. अपने आदेश में जस्टिस आनंद पाठक ने यह भी लिखा कि भोपाल के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ अधिकारी उसे बाह्य विभाग में कार्य करने की अनुमति देंगे, इस के बाद रिपोर्ट प्रदान करेंगे.

इत्तफाक से इन्हीं दिनों पुणे में हुए हादसे की भी चर्चा लोगों में थी जिस में एक नाबालिग ने आधीरात को बाइकसवार अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा को हाई स्पीड पोर्शे कार से कुचल दिया था. आरोपी 12 बी में पास होने का जश्न मना कर घर लौट रहा था लेकिन ‘दुश्मन’ फिल्म के ड्राइवर राजेश खन्ना की तरह नशे में धुत था. लोग आरोपी के घर वालों को कोस रहे थे कि कैसे लापरवाह लोग हैं जिन्होंने नाबालिग बेटे को कार सौंप दी. चर्चाएं खत्म होतीं, इस के पहले ही यह खबर भी आ गई कि निचली अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी और मामूली शर्तें ये रखीं कि वह ऐक्सिडैंट पर 300 शब्दों में निबंध लिखे और 15 दिन ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करे. शराब की लत छुड़ाने के लिए उस की काउंसलिंग की बात भी अदालत ने कही. इस पर खूब हल्ला मचा जिस के चलते इस आरोपी के मां, बाप और दादा को भी पेश होना पड़ा.

फर्क क्या

इंसाफ के तराजू पर देखा जाए तो जबलपुर और पुणे के फैसलों में कोई खास फर्क नही है सिवा इस के कि पुणे वाले आरोपी के हाथों 2 लोगों की मौत हुई थी. कहा जा सकता है कि पुणे के मामले में भी अदालत की मंशा आरोपी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसे एक मौका देने की थी. लेकिन इस पर बवंडर मचा तो अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा. रोजरोज नईनई बातें सामने आ रही हैं. यह ठीक है कि यह हादसा गंभीर था और गलती पेरैंट्स की भी थी, मुमकिन है सजा उन्हें भी भुगतनी पड़े.

अभिषेक के मामले पर सौरभ भूषण का कहना है कि ऐसे फैसलों से आरोपी को अपनी गलती का एहसास होगा और वह उसे सुधारने की कोशिश भी करेगा.
लेकिन क्या इसे प्रिया को इंसाफ मिलना कहा जा सकता है? इस का तर्कपूर्ण और ठोस जवाब किसी के पास नहीं कि उस ने 2 साल अभिषेक की ज्यादतियों और मानसिक यातना को बरदाश्त किया है. उस दौरान सोतेजागते, उठतेबैठते, खातेपीते और राह चलते वह किस दहशत में रही होगी, यह तो कोई और भुक्तभोगी लड़की ही बता सकती है. उस के कैरियर को हुए नुकसान की भरपाई कौन और कैसे करेगा. मुमकिन है अभिषेक को अपनी गलती का एहसास हो और वह सुधर भी जाए जो कि अदालत की उम्मीद और मंशा दोनों है. यह ठीक है कि कम उम्र लड़कों को सबक मिलना चाहिए वह भी बिना किसी सख्त सजा के तो यह इस मामले में देखने में आया है.

प्रिया की राय अगर अदालत इस बारे में लेती तो तसवीर कुछ और भी हो सकती थी. प्रिया जैसी पीड़िताओं को लंबे वक्त तक ऐसे लफंगो की ज्यादतियां बरदाश्त करने के बजाय तुरंत ही कानून की मदद लेनी चाहिए. अगर सहती रहेंगी तो कोई भी हादसा उन के साथ पेश आ सकता है जो अभिषेक बेखौफ हो कर उसे धमकियां देने लगा था, कल को वह साजिशन जबरदस्ती भी कर सकता था.

मेरे बड़े भाई हर वक्त मुझे डरा कर रखते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे 2 बड़े भाई हैं जो मुझ पर अकसर रोकटोक करते रहते हैं. उन दोनों के अनुसार मुझे एक सभ्य लड़की की तरह रहना चाहिए मुंह बंद कर के. बीते दिनों घर में सुबहशाम न्यूज चैनल चलते रहते थे. उन पर कभी जमाती तो कभी हिंदूमुसलिम मसला उठता तो परिवार के सभी लोग किसी गुंडे जैसी भाषा का प्रयोग करने लगते. जला दो, मार डालो जैसे शब्द कहते तो मैं खिन्न हो जाती क्योंकि किसी भी स्थिति में इंसानियत भूल जाना तो किसी मसले का हल नहीं. इस चक्कर में मेरी अपने भाइयों से भी कई बार लड़ाई हुई और मम्मीपापा से भी. अब हो यह रहा है कि वे आज तक मुझे ताने ही देते रहते हैं. मुझे लगने लगा है कि मेरी ही गलती है जो मैं ने किसी को कुछ समझाने की कोशिश की, लेकिन क्या सचमुच में मैं ही गलत हूं? अब अपने घरवालों से अपने रिश्ते को संभालूं या अपने सिद्धांतों पर चलूं?

जवाब

आप का कहना सही है कि इंसान को इंसानियत देखनी चाहिए और अपने सिद्धांतों पर भी चलना चाहिए. आप अब तक अपने परिवार को सही समझाने की कोशिश करती आई हैं तो अब पीछे हटने के बारे में मत सोचिए. यह सही है कि रिश्ते बनाए रखना जरूरी है लेकिन इस बाबत किसी के गलत तथ्यों या कहें गलत बातों का समर्थन करना तो सही नहीं है. आप अपनी बात पर अडिग रहें और साथ ही अपने पारिवारिक संबंध भी सही करने की कोशिश करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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साड़ी में नाभि दिखना अश्लील नहीं, तो जींस में क्यों?

गरमी का समय था. मुझे सुबह जयपुर के लिए निकलना था. पारा इतना ज्यादा था कि पूछो मत. ट्रेन में बैठा ही था कि सामने वाली सीट पर क्रौप टौप और जींस पहनी एक 20-22 साल की लड़की बैठ गई. लड़की कान में हैडफोन लगा कर अपनी धुन में गाना सुन रही थी, और बाहर प्लेटफौर्म पर होने वाली हलचल देख रही थी.

ट्रेन के कोच में अधिकतर मर्दों की नजरें लड़की की नाभि पर अटकी हुई थीं, वही नाभि जिसे ‘बेली बटन’ के नाम से भी जाना जाता है. यह नाभि नवजात समय में मां और बच्चे के जुड़ाव की एक मात्र कड़ी गर्भनाल को अलग करने के चलते बनती है. वहां मेरी बगल में बैठा अधेड़ आदमी तो टकटकी लगाए देख ही रहा था.

उस अनजान अधेड़ सहयात्री ने मेरे कान में फुसफुसाना शुरू किया, ‘“क्या हो गया आजकल की लड़कियों को… कपड़े देखो.’” मैं ने पूछा, ‘क्यों क्या हुआ?’ वह उसी फुसफुसाहट में अश्लील और मादकता सी मुसकराहट के साथ कहने लगा, ‘“बताओ, पेट का छेद दिख रहा है. कमर दिखाने का क्या मतलब?”’ यह वही महाशय थे जो गरमी के चलते सफर में शर्ट खोल कर बनियान में बैठे थे, और बनियान को आधे पेट ऊपर धकेले हुए थे.

उस के इस कमैंट से मैं थोड़ा ठिठका, थोड़ा असहज हुआ. कम से कम खुले में उस के ऐसे कहने की उम्मीद नहीं थी. तभी मेरी नजर उस लड़की की बगल में बैठी एक तीसएक वर्ष की उम्र की महिला पर पड़ी. महिला के साथ एक बच्चा था. पति कहीं बाहर प्लेटफौर्म पर सामान लेने गया लगता था. महिला ने साड़ी पहनी थी. साड़ी भारतीय परंपरागत परिधान है. जितना तन उस लड़की का ढका था उतना ही भारतीय परिधाम में उस महिला का भी ढका रहा होगा. यहां तक कि साडी में कमर और नाभि भी दिखाई दे रही थी, जिसे पल्लू से फौर्मैलिटी के लिए ढका गया था क्योंकि गरमी इतनी थी कि वही पल्लू उस के लिए जी का जंजाल जैसा बना हुआ था. पर दावे के साथ कहा जा सकता है उस अधेड़िया को साड़ी वाली महिला के परिधान से कोई दिक्कत थी नहीं.

पेट के जिस छेद (नाभि) की बात वह अधेड़ उम्र का आदमी कर गया उस की बातों में ऐसा विरोधाभास समझ से बाहर था. एक ही सीट में दो अलगअलग परिधान वाली महिलाओं के जिस अंग के प्रति उस की राय समझ आई वह, दरअसल, उस की कुंठित सोच का नतीजा थी. सवाल यह कि जब साड़ी में नाभि और कमर दिखना अश्लील नहीं तो फिर जींस में क्यों?

दरअसल, हम भारतीय महिलाओं को लंबे समय से साड़ी में देखते आए हैं, जिस में नाभि और कमर नजर आती थी और आज भी आती है. जिस कारण हमें साड़ी में एक महिला की नाभि और कमर दिखना अश्लील नहीं लगता. पर जींसटौप अश्लील लगता है क्योंकि यह पश्चिमी है. फर्क सिर्फ सोच का है, वरना नाभि और कमर तो वही है, साड़ी में भी और टौपजींस में भी.

आज से 15-20 साल पहले तक तो जींस पहनी महिला अधिकतर मर्दों को चरित्रहीन और हर किसी से संबंध बनाने वाली लगती थी, पर आज उन्हीं के घर से उन की बेटीपोती जींस पहन रही हैं, क्योंकि यह चरित्रहीन का नहीं बल्कि कम्फर्ट और लड़कियों को भागदौड़ करने के लिए ऐक्टिव रखने वाला परिधान है. आज यह हमारे समाज का एक अभिन्न अंग बन चुका है.

भारतीय मर्द अगर अपनी सोच बदलें तो लड़की को सिर्फ योनि समझने की कुंठित भावना से बच सकते हैं. वरना, चीजें तो बदल ही रहीं हैं, आप नहीं बदलेंगे तो क्या हुआ, महिलाएं तो खुद को बदल ही रही हैं.

Summer Skin Care Tips: ये 5 तरीके अपनाएं ताकि गरमी में भी त्वचा रहे खिलीखिली

गरमियां आम की मीठी महक के साथसाथ ये चिलचिलाती धूप भी ले कर आती हैं. गरमी में हमें चिंता होती है क्योंकि सूरज की तेज किरणें हमारी त्वचा को हानि पहुंचाती हैं. इस चिंता का समाधान है. कुछ ऐसी चीजों के बारे में बात करते हैं जो आप को अपनी त्वचा की रक्षा के लिए अपने साथ रखनी चाहिए

1. वेट वाइप्स

जब आप काम करने या फिर यात्रा करने के लिए बाहर निकलते हैं तो गरमी में आप का चेहरा बारबार पसीने से चिपचिपा हो जाता है. ऐसे में हर बार चेहरा धोना आसान नहीं होता है. इसलिए अपने साथ वेट वाइप्स का पैक रखना चाहिए.

ये आसान समाधान प्रदान करते हैं, जिन्हें विभिन्न अवसरों और सतहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर आप की कार की सीट पर कौफी गिर जाए या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर दाग पड़ जाएं, ये वाइप्स हर मामले में सरल समाधान प्रदान करते हैं.

ये मोटे, मुलायम और गीले वाइप्स स्किन के लिए सुरक्षित हैं और ताजगीभरी खुशबू के साथ साफ अहसास प्रदान करते हैं. गरमी में पसीने की वजह से गंदगी और बैक्टीरिया पनपने लगते हैं जो स्किन पर जमा हो जाते हैं, जिस से घमौरियां, मुंहासे आदि हो सकते हैं. वेट वाइप्स स्किन को साफ कर के इन्हें बढ़ने से रोकते हैं और स्वच्छता व ताजगी प्रदान करते हैं.

2. बारबार हाथ धोना

डा. मनोज कुमार, कंसल्टैंट-इंटरनल मैडिसिन, मणिपाल हौस्पिटल द्वारका के अनुसार, “हाथ की स्वच्छता बनाए रखना एक आवश्यक आदत है जो हमें स्वस्थ रखने और गरमी में कीटाणुओं को फैलने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. नियमित रूप से हाथ धोने से हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस दूर हो जाते हैं जिस से सर्दी, फ्लू और पेट में संक्रमण जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है. यह हमारे आसपास के लोगों, विशेष कर बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों की रक्षा करने में भी मदद करता है.

“स्कूल जाते समय या खेलते समय बच्चे अकसर कई सतहों को छूते हैं और रास्ते में कीटाणु के संपर्क में आ जाते हैं और फिर वे बिना हाथ धोए अपने चेहरे, आंखों और मुंह को छू लेते हैं, जिस से बीमारी हो सकती है.

“हाथ धोने को नियमित आदत बनाने से बीमारियों को फैलने से प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है. चाहे घर पर हो या यात्रा पर, अच्छे हैंडवाश का उपयोग स्वस्थ रहने का एक सरल लेकिन शक्तिशाली तरीका है. सैवलोन जैसे हैंडवाश जो कीटाणुओं से सुरक्षा प्रदान करते हैं विशेष रूप से उपयोगी होते हैं क्योंकि यह कीटाणुओं के खिलाफ एक मजबूत सुरक्षा प्रदान करते हैं और बीमारी को रोकने में एक आवश्यक सहायक हैं. यह उन बच्चों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं जो अपने आसपास की हर चीज को छूना और जानना पसंद करते हैं. रोगाणुरोधी हैंडवाश से नियमित रूप से हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित कर के, आप अपने बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं.”

3. सनस्क्रीन

सूर्य की नुकसानदायक किरणें त्वचा पर बुरा असर डालती हैं. त्वचा को इन किरणों के नुकसान से बचाने और गर्मी से राहत पाने के लिए एसपीएफ 30 या उस से ज्यादा क्षमता की सनस्क्रीन का उपयोग करें. ऐसी सनस्क्रीन आप की त्वचा को अल्ट्रावौयलेट किरणों से बचाएगी और सुरक्षा प्रदान करेगी. इसलिए बाहर जाने से पहले अपने चेहरे से धूल व गंदगी साफ करने के बाद सनस्क्रीन लगाएं.

4. धूप की छतरी

अगर आप बाहर ज्यादा समय बिताते हैं या जन परिवहन का काफी उपयोग करते हैं तो पूरे दिन धूप की छतरी अपने साथ रखें. यह आप को धूप से बचाएगी और गरमी को सहनशील बनाने में मदद करेगी.

5. पानी

पानी गरमी में ही नहीं हर मौसम में साथ रखना जरूरी होता है. इसे आप बिल्कुल भी नहीं भूल सकते. आप को दिन भर हाइड्रेटेड रहने और अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की एक बोतल अपने पास रखनी चाहिए.

गरमी के कारण अपने दिन के आनंद को कम न होने दें. इस मौसम में अपनी स्किन को अच्छा बनाए रखने के लिए इन कुछ सुझावों का पालन करें.
मोबाईल / लैपटौप क्लीनिंग के लिए डिवाइस निर्माता के निर्देशों का पालन करें. उपयोग से पहले डिवाइस को टर्नऔफ कर दें और सभी केबल प्लग से निकाल दें. किसी भी छेद, जैसे माईक्रोफोन, स्पीकर स्लौट, पोर्ट आदि में लिक्विड को न जाने दें. उपयोग से पहले डिवाइस के छिपे हुए छोटे से हिस्से में लगा कर देख लें कि यह उपयोग के लिए उपयुक्त है या नहीं.

बायोलौजिकल बनाम नौन बायोलौजिकल ब्रह्म, अहं और वहम

लोकतांत्रिक तानाशाही में तमाम दक्षिणपंथी शासक भगवान हो जाने की आदिम इच्छा से ग्रस्त होते हैं. लंबे समय तक सत्ता एक ही के हाथ में रहे, तो उसे धीरेधीरे अपने भगवान हो जाने का भ्रम होने लगता है. इस भ्रम को विश्वास में बदलने वह जनता की सहमति लेने को संविधान को अपनी मरजी के मुताबिक ढालने में कोई कसर नहीं छोड़ता.

यह बात सरिता के मई (द्वितीय) अंक 2024 की कवर स्टोरी शीर्षक ‘एक का फंदा एक देश, एक चुनाव, एक टैक्स यानि एक ब्रह्म, एक पार्टी, एक नेता’ में यह बात पृष्ठ 28 पर कही गई है. यह अंक अभी स्टौल्स से होते पाठकों के हाथ में पहुंच ही रहा था कि एक न्यूजचैनल को दिए गए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद के भगवान या अवतार होने की घोषणा इन शब्दों के साथ कर दी कि, “मुझे लगता है कि जब मेरी मां जिंदा थीं तो मुझे लगता था कि मैं बायोलौजिकल रूप से पैदा हुआ हूं. उन के निधन के बाद जब मैं अनुभवों को देखता हूं तो मुझे यकीन हो जाता है कि मुझे भगवान ने ही भेजा है. यह ऊर्जा मेरे शरीर से नहीं है.”

यानी, वे खुद को नौन बायोलौजिकल मानते हैं जो कि आमतौर पर भगवान, देवता या अवतार होते हैं. यह एक सामान्य वक्तव्य नहीं था जिस में मोदी खुद को असामान्य बता रहे हैं. अपने भगवान हो जाने का भ्रम हो जाना कोई नई या हैरत की बात नहीं है जो दुनिया में करोड़ों लोगों को हो जाता है. लेकिन जब यही भ्रम वहम की शक्ल में दुनिया के सब से ज्यादा आबादी वाले प्रधानमंत्री को उसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर देने की हद तक हो जाए तो बात देश के भविष्य के लिहाज से चिंता की तो है. जनता ने मई 2014 में तो मोदीजी को आदमी मानते चुना था जिन का 10 साल में भगवान हो जाना हैरत की भी बात है.

बायोलौजिकल कांड के सदमे से भक्तअभक्त और तटस्थ अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाए थे कि तय है खिसियाहट मिटाने की गरज से नरेंद्र मोदी अपच पैदा करने वाली एक और बात यह कह बैठे कि 82 से पहले गांधी को जानता ही कौन था . इस बात जो सनातनी कुंठा ज्यादा है को व्यक्त करने से पहले उन्होंने गांधी को दुनिया की महान शख्सियत होने का सर्टिफिकेट जारी करते हुए कहा , पहली बार जब ‘गांधी’ फिल्म बनी तब जा कर लोगों में जिज्ञासा हुई कि ये कौन आया. अगर मार्टिन लूथर किंग, नैल्सन मंडेला को दुनिया जानती है, तो गांधी किसी से कम नहीं थे. गांधी को और गांधी की वजह से भारत को तवज्जो मिलनी चाहिए थी. शुक्र तो इस बात का है कि मोदीजी मार्टिन लूथर किंग और नैल्सन मंडेला को जानते हैं नहीं तो इन की महानता पर शक होना कुदरती बात थी.

इस एक और खुलासे पर कुछ लोग सकते में आए तो कईयों ने अपना माथा ठोक लिया. विपक्षियों और कांग्रेसियों को समझ आ गया कि वे सफाई देतेदेते और आलोचना करतेकरते थक जाएंगे पर अपनी पर उतारू हो आए नरेंद्र मोदी से जीत नहीं पाएंगे. लेकिन बात कुछकुछ न रहा जाए न सहा जाए की तर्ज पर थी इसलिए सभी ने बोलने की रस्म निभाई. लेकिन सभी बढ़ते टेम्प्रेचर की गिरफ्त में नहीं आए . उन्होंने आरएसएस और भाजपा के सनातनी संस्कारों हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के एजेंडे पर फोकस किया. जोरदार तंज आप के संजय सिंह ने यह कहते कसा कि क्योंकि राजा पढ़ा चौथी तक और गांधी आया पांचवीं में.

चिंता की बात इस लिहाज से कि नरेंद्र मोदी अपने 4-5 करोड़ अंधभक्तों को अंधभक्त बनाए रखने के लिए ऐसी बातें जानबूझ कर कर रहे हैं जिस से उन का यह भ्रम कायम रहे कि मोदीजी अतिमानव हैं. इस से किसी को कुछ हासिल होने वाला नहीं है कि कौन बायोलौजिकल है और कौन नौन बायोलौजिकल. अहम यह है कि चुनावप्रचार के दौरान तुक और मुद्दों की बातें नहीं हुईं जिस के लिए लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है. सारा चुनाव धर्म, मंदिर, मुसलमान और मांसमछली सहित मंगलसूत्र जैसी बेमतलब की बातों में उलझा रहा.

ऐसे में पूरा दोष सिर्फ नेताओं को ही दे देना भी तर्कसंगत नहीं, जनता भी इस के लिए कम दोषी नहीं जो नेताओं को मुद्दे की बातें करने उन पर दबाव नहीं बना पाई, हालांकि कम मतदान से साफ लगा कि खुद मतदाता इन बातों और हल्ले से खुश और सहमत नहीं लेकिन वोट देने न जाना इस समस्या का हल नहीं माना जा सकता क्योंकि वोट न देने वालों की तादाद वोट देने वालों से कम थी.

बायोलौजिकल के मुद्दे पर खुद मोदीभक्त हैरान हैं कि अब इस पर क्या प्रतिक्रिया दें. ये वही लोग हैं जो दिनरात राहुल गांधी का मजाक बनाया करते हैं, इसलिए सोशल मीडिया पर वे इस पर चुप्पी ही साधे रहे. लेकिन मोदी का विरोध करने वालों की तो मानो बांछें ही खिल गईं. ऐसा 10 वर्षों में पहली बार हुआ कि मोदी की जम कर खिल्ली सोशल मीडिया पर उड़ाई गई. इस में वे लोग भी शामिल हैं जो आमतौर पर राजनीति और नेताओं को ले कर तटस्थ रहते हैं.

एक वायरल होती पोस्ट में अंडे से चूजा निकलता हुआ दिखाया गया तो तुरंत बाद ही पेड़ के पत्तों पर प्रगट हुआ नवजात शिशु दिखाया गया. ऐसे कई दृश्य दिखाए गए जिन में बच्चा सामान्य प्रसव से पैदा न हो कर चमत्कार या जादू से प्रगट हुआ है. इन दृश्यों के बाद सवाल किया गया है कि इन में से हमारा नौन बायोलौजिकल कौन सा वाला है. यानी, लोगों को मोदीजी का यह शिगूफा पसंद नहीं आया है. जबकि वे मानव कल्पना से परे न हो कर धार्मिक प्रसंगों से प्रेरित हैं लेकिन व्यावहारिकता से उस का कोई वास्ता नहीं और सभी लोग अभी इतने भी बेवकूफ नहीं हुए हैं कि मोदी या कोई और नेता ऐसी काल्पनिक बातें करे तो उसे वे प्रसाद की तरह ग्रहण कर लें.

चुनाव के पहले तक खुद मोदी भी राहुल गांधी का जम कर मजाक उड़ाया करते थे लेकिन अब बाजी उलट गई है. अब राहुल गांधी जम कर उन का मजाक उड़ा रहे हैं. आखिर मौका भी तो मोदीजी ने ही दिया है. 23 मई को राहुल ने ट्वीट कर कहा था कि जैसी बातें प्रधानमंत्री आजकल कर रहे हैं वैसी बातें कोई आम व्यक्ति करे तो आप उसे सीधा मनोचिकित्सक के पास ले जाएंगे.

28 मई को देवरिया की सभा में उन्होंने मजे लेने के लहजे में कहा, “आप ने मोदीजी के वो चमचों वाले इंटरव्यू देखे हैं. इस में मोदीजी के सामने 4-5 चमचे बैठते हैं और सवाल पूछते हैं. मोदीजी जवाब देते हैं, ‘ओ चमचो, नरेंद्र मोदी कुछ नहीं करता, सबकुछ अपनेआप होता है. नरेंद्र मोदी को धरती पर परमात्मा ने भेजा है. बाकी सब लोग बायोलौजिकल हैं यानी मातापिता से पैदा हुए हैं, नरेंद्र मोदी बायोलौजिकल नहीं हैं.’ नरेंद्र मोदीजी ऊपर से टपक कर आए हैं, उन को परमात्मा ने हिंदुस्तान भेजा है. अंबानीअडानी की मदद करने भेजा है लेकिन परमात्मा ने उन्हें किसानमजदूर की मदद के लिए नहीं भेजा. मोदी के परमात्मा ने कहा कि अडानी की मदद करो हिंदुस्तान के सारे एयरपोर्ट्स अडानी को दे दो. हिंदुस्तान के सारे पावर प्लांट्स अडानी को दे दो.”

राहुल गांधी भी कोई नई बात नहीं कह रहे हैं लेकिन बात कहने नया तरीका उन्हें नरेंद्र मोदी ने ही थमाया है कि भगवान को बीच में घसीटने के बाद भी कोई इस बार चूं तक नहीं कर रहा. नहीं तो, इधर राहुल के मुंह से भगवान का नाम पूरी तरह निकल भी नहीं पाता था कि उधर से अंधभक्त हल्ला मचाना शुरू कर देते थे कि तुम्हें तो भगवान का नाम लेने का भी हक नहीं क्योंकि तुम तो मुसलमान, ईसाई, पारसी और न जाने क्याक्या हो, कुछ भी हो लेकिन हिंदू होने का हक तुम्हें नहीं है.

देवरिया के पहले उन्होंने एक खास मकसद से सोशल मीडिया पर अपना वीडियो पोस्ट करते हुए पूछा था कि, “मोदीजी, आप को ऐसा कब लगता है कि आप बायोलौजिकल नहीं हो? सुबह उठने के बाद लगता है या शाम के वक्त नोटबंदी के बाद से लगना शुरू हुआ या जीएसटी लागू करने के बाद?”

इन और ऐसे हमलों पर नरेंद्र मोदी खामोश रहे, यह उन की मजबूरी भी हो गई थी क्योंकि बारबार वे खुद को बायोलौजिकल कहते तो बात कुछ ऐसे बिगड़ती कि किसी के संभाले न संभलती. हद तो तब हो गई जब राहुल गांधी ने यह भी पूछ डाला कि मोदीजी, आप आम चूस कर खाते हो या छील कर खाते हो. इस सवाल का जवाब खुद राहुल ने ही यों दिया कि मोदीजी जवाब देते हैं कि पता नहीं, सबकुछ अपनेआप हो जाता है.

अकेले राहुल गांधी ही नहीं, फिर तो सब कांग्रेसियों को नरेंद्र मोदी के बायोलौजिकल अवतार का मजाक बनाने का मौका मिल गया. शशि थरूर ने चुटकी लेते हुए कहा, “क्या कोई दिव्य प्राणी भारत में नागरिकता के लिए पात्र हो सकता है? अगर नहीं, तो क्या उसे वोट देने या चुनाव लड़ने का अधिकार है?”

इस में कोई शक नहीं कि कुछ भाजपा नेता मोदी को भगवान का अवतार मानते हैं. इन की संख्या इतनी है कि यहां नाम देना संभव नहीं लेकिन संबित पात्रा का जिक्र मौजूं है जिन्होंने 6 दिन पहले ही यह बयान दे दिया था कि भगवान जगन्नाथ मोदीजी के भक्त हैं. यहां भी जबान फिसली नहीं थी जैसी कि बवाल मचने के बाद संबित पात्रा ने सफाई दी. यह बयान भी जानबूझ कर दिया था जिस से उन की भगवान वाली इमेज कायम रहे. इस से पहले मंडी से चुनाव लड़ रही ऐक्ट्रैस और भाजपा उम्मीदवार कंगना रानौत ने मोदी को भगवान विष्णु का अवतार बताया था और उस से भी कुछ दिनों पहले कंगना ने ही मोदी को राम का अवतार कहा था.

कंगना से एक कदम आगे चलते बेगुसराय से भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह ने जनवरी के महीने में कहा था कि जैसे पहले अत्याचार बढ़ने पर भगवान किसी न किसी रूप में जन्म लेते थे वैसे ही फिर से त्रेता युग की स्थापना कर नरेंद्र मोदी अवतरित हुए हैं.

सरिता का मकसद तो यह बताना भर था कि नरेंद्र मोदी खुद को भगवान समझने लगे हैं लेकिन अब खुद मोदीजी ही खुद को भगवान सा कहने लगें, तो इस में हमारा क्या कुसूर?

बाड़ : अविनाश की पत्नी क्यों नहीं जाना चाहती थी गांव

“यार, वीकेंड फौर्म हाउस में गुजारते हैं इस बार, कैसा रहेगा?”अविनाश ने पत्नी सुलभा से पूछा.

“वाह, बढ़िया रहेगा. 24 घंटे इस पौल्यूशन में रह कर दम घुटने लगता है. बच्चों की भी आउटिंग हो जाएगी,” सुलभा ने खुशी से हामी भरी।

“अरे सुनो, तुम्हें बताना भूल गया था, बाबूजी का फोन आया था गांव से कि कुछ समय हम उन के साथ गांव में रहें, बोलो क्या कहती हो? फौर्म हाउस की बजाए अपने गांव, अपने खेत बच्चों को दिखा लाएं? वहां का आनंद ही कुछ और होगा,” अचानक अविनाश ने कुछ सोचते हुए कहा.

“अरे नहीं, अभी तो फौर्म हाउस ही चलो, गांववांव फिर कभी चलेंगे, मैं मेरी फ्रैंड ऐश्वर्या से भी कह दूंगी कि वह भी अरुण के साथ चलने की तैयारी कर ले, काफी समय से उस के साथ वक्त नहीं गुज़ारा है. सुनो ननकू से अभी से बोल दो कि वह पास के गांव के सरपंच से बुलौक कार्ट मांग लाए, बच्चों को बुलौक कार्ट राइडिंग का मजा भी आ जाएगा,” सुलभा ने साफ मना कर दिया.

“ठीक है भाई, अब बनावट हम लोगों पर इस कदर हावी है कि बनावटी फौर्म ही भाता है, वास्तविकता से तो हमारे रिश्ते टूटते ही जा रहे हैं. बनावटी फौर्म, दिखावटी रिश्ते, चलो चलते हैं फौर्म हाउस,” अविनाश बनावटी हंसी हंसते हुए बोला.

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