रोनी सी सूरत लिए नत्थू मेरे पास आया. मैं ने पूछा, ‘‘क्या परजाईजी से खटपट हो गई है?’’

नाम तो उस का नरसिया सिंह है पर हम सब उसे नत्थूजी ही कहते हैं क्योंकि उस के प्रकांड पंडित पिता ने नरसिया नाम क्यों रखा, मालूम नहीं.

‘वो, आप तो अंतर्यामी हैं प्रभु’ के भाव लिए ‘सही पकड़े हैं’ कह कर मेरे निकट कालीन पर बैठ गया. कुरसी खाली थी पर लगता है आज वह याचक की भूमिका पूरी तरह निभाने को तैयार हो कर आया था.

मैं ने कहा, ‘‘वत्स, सविस्तार बयान करो, बेखौफ कहो, पत्नी की चढ़ी त्योरी को ध्यान में लाओगे तो सबकुछ भीतर धरा रह जाएगा.’’

हां मैं ‘प्रभु’ की भूमिका में खुद को रख कर टीवी से मिले अधकचरे धर्मज्ञान की पोटली में से कुछ निकाल कर उस को देने की प्रक्रिया में लग जाता हूं.

यों तो ‘भीतर धरा रह जाएगा’, केवल इस एक वाक्य के तहत पोथी भर का ज्ञान दिया जा सकता है परंतु इस के लिए समय और सुपात्र की तलाश करनी पड़ेगी, हर लाइट  सब्जैक्ट पर ज्ञान को लुटाना ठीक भी नहीं. मेरी जगह दूसरा भी होता तो इस लाभ को दुलत्ती मारने की बेवकूफी नहीं कर सकता. पत्नीप्रताडि़त कम लोग ही खुल कर बयान देते देखे गए हैं. मन मसोस कर रहने वाले मरते मर जाएंगे मगर जी से पत्नी के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटा पाने में एक अघोषित शर्मिंदगी से दोचार होते रहते हैं. मगर नत्थू के साथ ऐसा नहीं था. उस का अडिग विश्वास मुझ पर था कि इधर की बात उधर करने वाला ‘वायरस’ मुझ में नहीं है.

‘‘बोलो भी, चुप रहना था तो मेरा समय खराब करने क्यों चले आए?’’

उस ने धारावाहिक ‘सासबहू’ सीरियल में से बहू वाला पार्ट रिलीज किया.

‘‘आप की परजाई, पिछले कुछ दिनों से अखबार में सोने के भाव कम होने की खबर क्या पढ़ रही हैं, हायतौबा मचाए रहती हैं…’’

‘‘नत्थूजी, आसान सी बात है, आप अखबार लेना बंद क्यों नहीं कर देते?’’

‘‘आप भी सरजी, अखबार बंद करवाने से रोग मिटता तो मिटा लेता. ये टीवी और उन की सहेलियों के वाट्सऐप व सोशल मीडिया का क्या करूं…पलपल की खबरें, ब्रेकिंग न्यूज माफिक चलाते फिरते हैं.

‘‘20-30 रुपए दाम भी सोने के गिरतेबढ़ते हैं तो औफिस में मोबाइल घनघना देती हैं. बोलो, सोने में 20-30 रुपए कोई माने रखते हैं भला? औफिस से थकेहारे जो वापस आओ तो चायकौफी के पहले ‘सर्राफा’ के उतारचढ़ाव पर वर्णन चालू हो जाता है. किस बहनजी के घर कितने ग्राम या कितना तोला आया, उन्हें एकएक माशा-रत्ती का हिसाब मालूम होता है. वे हम से मुखातिब हो कहती हैं, ‘मालूम है, शर्माजी के यहां पुरुषोत्तम मास के बाद किलो के हिसाब से सोना खरीदा जाने वाला है. ऐसी अपनी कालोनी के लेडीज क्लब में चर्चा है.’

‘‘मैं आश्चर्य पूछता हूं, ‘साले की नंबर दो की कमाई अब छलकने को आई. मुझे बताना कब खरीदने वाले हैं. एसीबी वालों की रेड डलवा दूंगा. शरीफों की बस्ती में तमीज नहीं है, रहने चले हैं, नंबर दो वाले…’

‘‘‘ये लो, आप को सही बात बताओ तो मिर्ची लग जाती है. जिन के पास है, भाव गिरे तो हमआप कौन हैं रोकने वाले? दूसरों के साथ लड़नेभिड़ने की जुगाड़ चौबीसों घंटे लगाए रहते हैं आप. कहे  देती हूं, ऐसे बहाने से मैं डिगने वाली नहीं. शादी के बाद रत्ती भर सोना मिला हो तो कहो. आप से जब भी बोलो, कान की दिला दो, हाथ की खरीदवा दो, गला सूना लगता है…तो अपनी शेरोशायरी में घुस जाते हो. कहे देती हूं, सब आग में झोंक दूंगी एक दिन. बहुत हो गया, देखेंगेदेखेंगे सुनते हुए.’

‘‘सरजी, पानी तो बादल फटने जैसा सिर से ऊपर होने को है. आप के पास ‘सोना नहीं खरीदने के हजार बहाने’ जैसी कोई किताब हो तो बताओ?’’

‘‘नत्थूजी, गृहस्थी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पति का स्वर्णदान समारोह भी समयसमय पर होता रहना चाहिए. समझदार पति इस से इनकार कर के कभी सुखी नहीं रह सकता. खैर, ये सब तो सक्षम  पति के चोंचले हैं. तुम्हारे साथ अभी पत्नीजिद से निबटने वाली समस्या का निदान होना पहली प्राथमिकता है. बोलो, ऐसा ही है या…?’’

‘‘ठीक है, दोनों तरफ देखते हैं.’’

‘‘तुम ने परजाई से पूछा, कितनी रकम है?’’

‘‘हां, पूछा, हम ने कहा, पैसे निकालो, तो कहने लगीं, ‘रकम, पैसा, वेतन कभी हाथ में दिया जो हिसाब मांग रहे हो. ठनठन गोपाल बना रखा है. आज तक मेरी हर ख्वाहिश मायके से पूरी होती रही है. होश है आप को? जितने गिनवा कर लाए थे, उस का चौथाई भी चढ़ाया होता तो पाव-आध किलो बदन पर दिखता. चार लोगों के बीच में शान से उठतीबैठती.’

‘‘सरजी, उन का मायका पुराण चालू हो जाने के बाद मेरे पास डिफैंसिव शौट खेलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प बचता नहीं. सिरदर्द, औफिस में ज्यादा काम, थकावट जैसे आम आदमी वाले बहाने सूझते हैं. डाइनिंग टेबल पर रखे दवाओं के डब्बे से एकआध गोली दिखाने के नाम पर यों ही गटक लेता हूं.

‘‘मेरी तरफ से घोषित मौन पर, युद्धविराम पर, रात 10 बजे समझौतावार्त्ता की पहल के तहत खिचड़ी परोसी जाती है. मैं चुपचाप उसे खा कर सो जाता हूं.’’

‘‘नत्थूजी, नारीहठ का गंभीर मामला है. यह सोना जो है न, युगों से अपना खेल खेलता आया है. सीता मैया भी स्वर्णमोह से बच नहीं सकी थीं. उन्होंने न केवल अपने लिए बल्कि अपने पति के लिए भी विपत्ति को बुलावा भेज दिया था. न प्रभु स्वर्णमृग के पीछे भागे होते, न रावण सीता मैया को उठा ले गया होता.

‘‘खैर, वे सब तो जैसेतैसे मारकाट कर निबट लिए, अभी समस्या आप की है? कितनी रकम है आप के खाते में? उधर, ख्वाहिश किस चीज की हो रही है? कितने तक में आ जाएगी?’’

‘‘सरजी, डिमांड 5 तोले की है. लगभग डेढ़ लाख रुपए तक में आ जाएगी. मैं चाहता हूं वह अपनी चादर की हैसियत से पांव फैलाना जाने…’’

‘‘ऐसा करो, तुम्हारी कार की सैकंड हैंड वैल्यू भी इतनी ही होगी, उसे मेरे गैराज में डाल दो. उस से कहना कि सोने के हार के लिए बेच दी. पैसा 2-3 दिनों में मिलेगा, फिर हार ले लेंगे.

‘‘और हां, कल से शिष्टाचार सप्ताह मनाना शुरू कर दो.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि खाने में एकाध रोटी कम कर दो. रात को औफिस का काम फैला लो. सुबह मौर्निंग वाक चले जाओ. अगर घूमना पसंद नहीं तो सौ कदम दूर, चाय की दुकान में बैठ के अखबार पढ़ के वापस चल दो. औफिस मोटरसाइकिल से आनेजाने लगो. ऐसे पति की छवि बनेगी जो बीवी की इच्छाओं के लिए तनमनधन को जीजान से लगाए दिए जा रहा है.’’

‘‘सरजी, इन सब से होगा क्या?’’

‘‘वह सौरी कह के आगेपीछे चक्कर लगाएगी, जिद करेगी कि कार वापस ले आओ. बिना कार के नाक कटती है जी. जब पैसे आ जाएंगे, नैकलैस की तब सोचेंगे.’’ नत्थू चुप.

‘‘भई नत्थू, मेरे सुझाव को अमल में लाने के बाद ‘संकट टल गया’ की मुद्रा में निश्चिंत मत हो जाना. वैसे, परजाईजी का हक बनता है, कहो तो आज ही किसी ज्वैलरी शौप चलें, कल सोने का भाव कहीं बढ़ न जाए? कार और ज्वैलरी दोनों पा कर उधर से अगाध प्रेम उमड़ेगा. उस का साक्षी बनने को मैं चाय पर जरूर आऊंगा. तब तुम्हारी काबिलीयत की तारीफ कर के मैं सोने पे सुहागा कर दूंगा.’’

चमक किसकिस की दोगुनी होती है, आप भी देखिए.

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