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मैं एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. पर अब वह मुझसे मिलना पसंद नहीं करता. बताएं मैं क्या करूं.

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से पिछले 4 वर्षों से बहुत प्यार करती हूं. कुछ समय पहले तक सब कुछ सही था. वह भी मुझ से पूरी शिद्दत से प्यार करता था. हम ने जीवनभर साथ रहने के सपने देखे थे. हम हर रोज मिलते थे. फोन पर ढेरों बातें करते थे. पर कुछ महीनों से उस के व्यवहार में काफी बदलाव आया है. मिलने के लिए हफ्तों इंतजार करना पड़ता है और आने के बाद उसे लौटने की जल्दी रहती है. इतना ही नहीं, अब पहले की तरह वह खुद फोन भी नहीं करता. पूछने पर अनापशनाप बहाने बनाता है. कहीं व किसी और से तो प्यार नहीं करने लगा? यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा? मैं उस के बिना जी नहीं सकती. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

4 वर्षों का लंबा अरसा काफी होता है. यदि आप को लगता है कि आप का बौयफ्रैंड आप के प्रति कुछ ज्यादा ही बेरुखी दिखा रहा है, आप से मिलने से कतराता है, फोन नहीं करता, तो आप को उस से खुल कर बात करनी चाहिए और यह जानना चाहिए कि उस की उदासीनता की वजह क्या है? हो सकता है कि वह आहत हुआ हो या उस का परिवार इस संबंध को नहीं चाहता हो. आप को मिलबैठ कर बात करनी चाहिए. यदि कोई उलझन है तो उसे आप से साझा करनी चाहिए. वजह जानने के बाद समाधान भी मिल जाएगा. अगर वह छोड़ना चाहे तो तैयार रहना चाहिए.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

सपा में ‘केर बेर के संग’

अमर सिंह को समाजवादी पार्टी में केंद्रीय संसदीय बोर्ड में सदस्य बना दिया गया है. सपा में केंद्रीय संसदीय बोर्ड को सबसे ताकतवर माना जाता है. अमर सिह की नियुक्ति में दूसरी खास बात यह है कि नियुक्ति पत्र सपा महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल यादव की तरफ से जारी हुआ है. रामगोपाल यादव सपा में अमर सिंह के विरोधी रहे हैं. पत्र में यह कहा गया कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह को बोर्ड में मनोनीत किया है. जानकारी के अनुसार यह बोर्ड ही उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण का काम करेगा.

अमर सिंह को सपा में महत्वपूर्ण जगह उस समय मिली है जब अमर सिंह को पार्टी में हाशिये पर कर दिया गया था. अमर सिंह को तो मेट्रो रेल के उदघाटन के समय बुलाया गया. सपा का महासचिव होते हुये भी उनको पार्टी के अधिवेशन में भी हिस्सा लेने के लिये लखनऊ नहीं बुलाया गया. सपा में अंदरखाने यह आवाज भी उठने लगी थी कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विरोध के चलते अमर सिंह को पार्टी में हाशिये पर ढकेला जा रहा है.

दरअसल में अमर सिंह को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के विचार पूरी तरह से अलग हैं. मुलायम परिवार में केवल शिवपाल यादव अकेले ऐसे सदस्य हैं जिनको अमर सिंह का समर्थक माना जाता है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो यहां तक कह चुके कि अब वह अमर सिंह को अपना ‘अंकल’ नहीं कहेंगे. मुख्यमंत्री के साथ रामगोपाल यादव ही नहीं बड़े नेता आजम खां और नरेश अग्रवाल जैसे लोग भी अमर सिंह विरोधी गुट में हैं.

मुलायम परिवार में हुये विवाद में अमर सिंह को मुख्य फैक्टर माना गया था. अमर सिंह के पार्टी में कमजोर पड़ने से माना जा रहा था कि अब पार्टी में अखिलेश का एक क्षत्र राज्य स्थापित हो रहा है. अब अमर सिंह के बढ़ते प्रभाव के चलते लग रहा है कि एक बार फिर से सपा में आपसी टकराव हो सकता है. मुलायम परिवार के विवाद के समय अमर सिंह और विरोधी गुट आमने सामने थे. अब एक दूसरे का एक साथ चलना सभव नहीं है.

सपा में टिकट वितरण के समय एक बार फिर से विवाद खड़ा होने की संभावना है. मुलायम सिंह इस बात को जानते हैं कि चुनाव केवल अखिलेश के काम पर नहीं जीता जा सकता. ऐसे में वह अमर सिंह और शिवपाल यादव को भी चुनाव की मुख्य धारा में रखना चाहते हैं. ऐसे में अमर सिंह की भूमिका को मुख्य माना जा रहा है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सपा में अखिलेश के प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता है. अमर सिंह को महत्व केवल चुनावी समय तक दिया जा रहा है. सपा में अब अमर सिंह और अखिलेश एक साथ नहीं रह सकते. राजनीतिक समीक्षक भी मान रहे हैं कि अमर सिंह और अखिलेश का साथ केर बेर की तरह का है. यह साथ रह कर लाभ के बजाय नुकसान ही देगा.                  

                   

आपकी सैलेरी से नहीं कटेगा पीएफ

अगर आप नौकरीपेशा हैं, तो ये खबर आपके लिए ही है. हर महीने सैलेरी का कुछ भाग अब आपकी मर्जी के बिना नहीं कटेगा. अब आपकी सैलेरी से पीएफ कटेगा या नहीं, ये आप निश्चित करेंगे. यह बदलाव अभी मुख्य रूप से एक्सपोर्ट इंडस्ट्री के लिए लागू होगा. बाकी सेक्टर के लिए बाद में फैसला लिया जाएगा. इस फैसले से निजी क्षेत्र में काम करने वाले उन लाखों कर्मचारियों को फायदा होगा जो पीएफ कटवाना नहीं चाहते.

बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इपीएफ कानून का संशोधन किए बिना ही कर्मचारियों के वेतन से कटने वाले को जरूरी न करने के संदर्भ में नोटिस जारी कर दिया है. हालांकि इस बदलाव की ओर अभी तक बहुत की कम लोगों का ध्यान गया है. सरकार ने अपने इस कदम की जानकारी कैबिनेट नोटिस के तौर पर कपड़ा मंत्रालय के जरिए दी है.

बढ़ेंगे रोजगार

नोटिस में कहा गया है कि रोजगार के अवसर बढ़ाने और एक्सपोर्ट सेक्टर को मजबूत करने के लिए नियम बदले गए हैं. यही नहीं, श्रम से जुड़े कानूनों को आसान बनाने के लिए बदलाव किया गया है.

नहीं मिलेगी पेंशन

इससे कर्मचारियों को एक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. दरअसल, पीएफ के साथ कर्मचारियों को जो पेशन स्कीम का लाभ मिलता है वह पीएफ न कटने की वजह से नहीं मिल पाएगा. जिन लोगों का पीएफ कट रहा है उन्हें 60 साल की आयु के बाद पेंशन के रूप में एक निश्चित रकम मिलती है. पीएफ न कटाने वाले कर्मचारियों को यह रकम नहीं मिलेगी. 

एंड्रॉयड फोन यूजर्स के लिए बड़े काम की हैं ये टिप्स

आजकल हर किसी के पास एंड्रॉयड फोन उपलब्ध है, लाजमी भी है सबसे पॉपुलर ऑपरेटिंग सिस्टम जो ठहरा. लेकिन अगर कुछ हल्के फुल्के टिप्स और हैक्स का इस्तेमाल किया जाए तो मोबाइल एक्सपीरियंस को और भी शानदार बनाया जा सकता है. तो जानिए ये बेहद काम आने वाले टिप्स.

1. अगर फोन हैंग या गर्म हो तो-

कितना ही बढ़िया फीचर्स वाला फोन ले लीजिये, हैंग और गर्म होना सबसे कॉमन प्रॉब्लम है. हैंग फोन ज़्यादातर RAM के भर जाने से होता है. इसके लिए सबसे सरल उपाय है अपने फोन में CCLEANER नाम का हल्का सा, प्यारा सा app इनस्टॉल कर लेना. ध्यान रहे कि बाकी के RAM क्लीन करने का दावा करने वाले ज्यादातर app फर्जी हैं, और RAM पर लोड बढ़ा देते हैं. यह खाली फोल्डर, apps की कुकीज को एकदम साफ कर देता है.

2. मोबाइल डेटा खर्च पर काबू रखने के लिए

2G घोटाले के बाद से मोबाइल डेटा के दाम सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते ही जा रहे हैं. और पोस्ट पेड कनेक्शन वालों के सामने समस्या ज्यादा विकराल है जब कुछ चोर मोबाइल कम्पनियां बिना वार्निंग दिए आपके प्लान की निर्धारित डेटा लिमिट से ज्यादा डेटा की बिलिंग कर देती हैं. इसका एक आसान सा उपाय है-

settings में जाइए- वहां से डेटा यूसेज चुनिए- फिर set mobile data में जाकर अपनी बिलिंग साईकल के दिन फीड कर दीजिये. उदाहरण के लिए एयरटेल की बिलिंग साईकल महीने के 9 तारीख से अगले महीने की 8 तारीख है तो सेट कर दीजिये- 9 अप्रैल से 8 मई. और फिर उसी में जाके अपने निर्धारित डेटा प्लान के अनुसार डेटा लिमिट भी फीड करिए. उदाहरण के लिए आपके प्लान में 1024 MB का 3G डेटा निर्धारित है तो आप उसमें 1024 MB तक ग्राफ पर डेटा चढ़ा दें. अब जैसे ही महीने में आप डेटा के खत्म होने के करीब आएंगे वैसे ही आपका मोबाइल आपको नोटिफाई कर देगा.

3. एक ही मोबाइल पर दो नंबर से चलाएं व्हाट्सएप

ज्यादातर मोबाइल अब डुअल सिम हैं और व्हाट्सएप्प सबसे कॉमन मेसेंजिंग सर्विस है. लेकिन समस्या यह है कि एक मोबाइल में एक ही नम्बर पर व्हाट्सएप्प का अकॉउंट चलाया जा सकता है. इसका भी तोड़ है- यदि आप एक व्हाट्सएप्प अकॉउंट से भी समय का पर्याप्त खून नहीं कर पा रहे हैं और 2 अकॉउंट चला के ही मानेंगे तो एक एप्प है DISA. वैसे तो एप्प अभी अपनी शैशव अवस्था में है और बहुत स्टेबल भी नहीं है, लेकिन आपका शौक पूरा कर देगा.

4. अगर बैटरी जल्दी ड्रेन होती है तो

एंड्रॉयड फोन्स का बैटरी बेकअप एक अतिगंभीर समस्या है और बार-बार हमें उन नोकिया 3315 की अमर बैटरी की याद दिला देता है. सफर के दौरान पॉवर बैंक नाम का उपकरण न हो तो आपके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है- ऐसे में एक एप्प greenify आपकी बहुत सहायता कर सकता है.

मोबाइल में कुछ एप्प बैकग्राउंड में चलते रहते हैं, जिनसे बैटरी जल्दी ड्रेन होती है

जब हम किसी एप्प का इस्तेमाल नहीं भी कर रहे होते हैं तब भी वह एप्प बैकग्रॉउंड में चल ही रहा होता है और बैटरी पीता रहता है. ऐसे में greenify काम आता है और आपके एप्प्स को अफ़ीम खिला कर सुला देता है. तो greenify इनस्टॉल करिये और उसमें बैटरी पीने वाले एप्प्स को सफर के दौरान ऐड करके मीठी नींद में भेज दीजिये.

5. बार-बार न करें एप अपडेट

आपको हर तीसरे दिन ऐप्स के अपडेट के नोटिफिकेशंस बहुत परेशान करते हैं? करते हैं न? मुझे भी करते हैं. तो आप क्या करेंगे? ऐप्स को अपडेट मत करिये. सिंपल. दरअसल होता क्या है कि ऐप्स दुनिया के सभी ब्रांड्स और मॉडल्स को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं तो ऐसे में बहुत सम्भव होता है कि किसी एक मॉडल में वह ऐप दिक्कत दे रहा होता है, और किसी यूजर द्वारा बग रिपोर्ट करने पर कंपनी उस एरर को हटा कर पूरा ऐप नया बना कर खड़ा कर देती है. तो आप सिर्फ़ एक महीने में एक बार ऐप अपडेट करें.

6. ऐसे कीजिए निडर होकर मोबाइल से स्टिंग

अगर कुछ ऐसा रिकॉर्ड करना चाहते हैं तो एप्प का नाम है SVR2. इसमें आप चुपचाप मोबाइल में गेम खेलते हुए स्टिंग कर सकते हैं और किसी को शक भी नहीं होगा. तो देर मत करिये और भ्रष्ट लोगों की पोल खोलिए.

7. गूगल मैप की पॉवर को समझें

एंड्रॉयड वाला फोन लिया और गूगल की शक्ति और क्षमता का मजा न लिया तो जीवन में किया क्या? गूगल मैप्स को ज़्यादातर लोग सिर्फ़ दूरी नापने के लिए प्रयोग में लाते हैं, जबकि यह ऐप इससे कहीं ज़्यादा है. यदि आप किसी अनजान जगह पर हों और आपको रास्ता समझ न आ रहा हो तो इसकी मदद लें लेकिन साथ ही यह एप्प आपको अपनी मंज़िल तक पहुँचाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ साथ ओला और उबेर जैसी टैक्सी सर्विस से जाने का अनुमानित किराया भी बताता है.

यह आपको यह भी बताता है कि जहां आप खड़े हैं वहां से कितनी दूर पैदल चल कर, कितने नम्बर की DTC की बस मिलेगी, कौन से बस स्टेशन पर उतर कर आपको अगली बस लेनी है और फिर वहां से कितना पैदल चल कर आप अपने गंतव्य तक पहुंचेगे. रास्तों को अक्सर भूल जाने वाले लोगों के लिए यह एप्प वरदान से कम नहीं है. साथ ही साथ यदि आप नेट को ऑन रखते हैं तो यह आपको रास्तों और हाईवे पर ट्रेफिक की लाइव स्थिति का भी अपडेट देता चलता है.

8. अगर फोन खो जाए या हो जाए चोरी

फोन का खो जाना या चोरी हो जाना कितना दुखदाई होता है. पुलिस, FIR, थाने के चक्कर काटना तो वैसे भी कोई आसान काम नहीं. तो यदि आपका फोन चोरी या खो जाता है तो पैनिक न करें और किसी निकटतम इंटरनेट से कनेक्टेड कम्प्यूटर में नेट पर गूगल एन्डरॉएड मेनेजर में अपनी गूगल id और पासवर्ड डाल कर खोलें. यदि आपका फोन चोरी होने के बाद ऑन है तो गूगल एन्डरॉएड मेनेजर में जाकर आप अपने फोन की आखिरी लोकेशन मैप में देख सकते हैं. आप वहां से अपने फोन में सिम कार्ड बदल दिए जाने के बाद भी रिंग दे सकते हैं और अगर आपको डर है कि आपका निजी डेटा गलत हाथ में न पड़ जाए तो कम्प्यूटर से ही अपने फोन को सारा डेटा मिटा देने का आदेश भी दे सकते हैं.

9. दे सकते हैं मोबाइल को आदेश

यदि आपके पास ठीक-ठाक स्पीड वाला नेट कनेक्शन है, तो आप अपने मोबाइल को अपनी आवाज से आदेश दे सकते हैं.

10. सीक्रेट फाइल ऐसे छिपाएं

आप में से बहुत से लोग अपनी 'सीक्रेट फाइल्स' को छिपाने के लिए फाइल हाइड/ फोल्डर हाइड जैसे फर्जी, भारी और RAM ऐप प्रयोग करते हैं. यह सब करने की कोई जरूरत नहीं है. इसका एंड्रॉयड में इनबिल्ट सीधा सादा समाधान मौजूद है.

आपको बस इतना करना है कि बस अपने फाइल या फोल्डर के नाम के शुरुआत में एक फुलस्टॉप(.) लगा देना है. उदाहरण के लिए आपको mydp.jpg या myfolder को छिपाना है तो आपको इनको रीनेम करके .mydp.jpg या .myfolder कर देना है. और बस आपके निजी फाइल्स और फ़ोल्डर दुनिया की नजरों से गायब हो जाएंगे. है न यह छोटी सी बिन्दी बेहद काम की? अब जब आपको गायब हुई फाइल्स को देखने की जरूरत महसूस हो तो फाइल एक्स्प्लोरर के ऑप्शंस में जाकर ''show hidden files" या "show system files" को सेलेक्ट कर लीजिये.

11. बड़ी करिए अपने मोबाइल की स्क्रीन

क्या आप कभी कभी सोचते हैं कि काश मेरे मोबाईल की स्क्रीन थोड़ी और बड़ी होती? अगर हां, तो इसका समाधान पूरा तो नहीं लेकिन आधा-अधूरा तो है ही. आप अपने मोबाइल की स्क्रीन को 15, 17 या 21 इंच या जितने इंच का आपका LED टीवी है उतना ही बड़ा देख सकते हैं. सभी मोबाइलों में माइक्रो HDMI पोर्ट नहीं होता है लेकिन सभी के सभी MHL अडाप्टर को सपोर्ट करते हैं. तो बस MHL अडाप्टर और माइक्रो HDMI केबल की मदद से आप अपने फोन को अपने LED टीवी से कनेक्ट करिए और बड़े परदे पर गेम और वीडियो का मजा लीजिए.

बैंक के काम में हाथ बंटाएं

पेरैंट्स पर घर परिवार व औफिस के काम के अलावा भी कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं, जिस की वजह से वे कई बार कुछ जरूरी चीजें भूल जाते हैं. कभीकभी तो ऐसा होता है कि उन्हें काम के बोझ के बावजूद बैंक के एक छोटे से काम के लिए औफिस से छुट्टी लेनी पड़ती है ताकि समय पर काम हो सके, क्योंकि घर में उन के अलावा बैंक के कार्यों को करने वाला और कोई दूसरा सदस्य नहीं होता.

लेकिन आप एक जिम्मेदार किशोर की भूमिका निभा कर बैंक के कार्यों में उन की मदद कर सकते हैं. इस से आप भी बैंक के काम सीख जाएंगे और उन्हें छोटेछोटे कार्यों के लिए छुट्टी नहीं लेनी पडे़गी. अब आप सोच रहे होंगे कि आप कौनकौन से काम कर सकते हैं. आप को तो बैंक का कोई काम नहीं आता और इन कार्यों से आप की बाकी चीजें डिस्टर्ब होंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. आप पढ़ाई, मस्ती व ऐंजौयमैंट के साथसाथ बैंक के कार्यों में पेरैंट्स की मदद कर सकते हैं.

बैंक अकाउंट खोलना सिखाएं

कुछ किशोरों के मातापिता कम पढ़ेलिखे होते हैं. वे बैंक में पैसे जमा करने के बजाय कमेटी वगैरा में पैसे डालना पसंद करते हैं. ऐसे में किशोरों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने पेरैंट्स को समझाएं कि क्यों बैंक में पैसा जमा करना जरूरी है, साथ ही उन्हें बैंक अकाउंट खोलने संबंधी सभी आवश्यक जानकारी दें.

एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करना सिखाएं

पेरैंट्स एटीएम मशीन से पैसा निकालने में घबराते हैं इसलिए बैंक से ही पैसा निकालना पसंद करते हैं. आप की यह जिम्मेदारी है कि आप उन्हें एटीएम मशीन से पैसे निकालना सिखाएं. उन्हें बताएं कि मशीन में कैसे कार्ड व पिन डालते हैं, पैसे कैसे निकालते हैं, ताकि वे इस का इस्तेमाल करना सीख जाएं. जब आप उन्हें एटीएम से पैसे निकालना सिखा रहे हैं तो कुछ जरूरी बातें जरूर बताएं कि अगर पैसा न निकले तो क्या करें, एटीएम मशीन में कार्ड फंस जाए तो क्या करें. कोशिश करें टच व बटन दोनों तरह की मशीनों से पैसे निकालना सिखाएं ताकि उन्हें किसी भी मशीन से पैसे निकालने पड़ें तो घबराएं नहीं.

सब से जरूरी बात उन्हें बताना न भूलें कि अगर वे पैसे नहीं निकाल पा रहे हैं तो किसी दूसरे को अपना पिन नंबर बता कर पैसे निकालने की गलती न करें. ऐसा करने से कोई भी कार्ड का गलत इस्तेमाल कर सकता है.

लोन लेने में करें मदद

आप सोच रहे होंगे कि लोन लेने में आप भला कैसे मदद कर सकते हैं, तो आप कुछ इस तरह से उन की मदद कर सकते हैं, जैसे अलगअलग बैंक की लोन स्कीम्स के बारे में पता कर के पापा को बता सकते हैं कि कौन सा बैंक किस आधार पर लोन दे रहा है, ब्याज कितना है, कौन से बैंक से लोन लेना फायदेमंद होगा. लोन लेने के लिए किनकिन डौक्यूमैंट्स की जरूरत होगी. आप सारे डौक्यूमैंट्स तैयार कर के पेरैंट्स का काम हलका कर सकते हैं.

चैकबुक इश्यू करवाना

अगर चैकबुक खत्म होने वाली है तो यह न सोचें कि आप को क्या मतलब है, आप के पापा खुद नई चैकबुक ले लेंगे और भला कौन सा चैकबुक की जरूरत हर रोज पड़ती है बल्कि खुद पापा से पूछने की पहल करें और बैंक से चैकबुक इश्यू करवाएं, क्योंकि किसी को भी नहीं पता होता कि कब पैसों की जरूरत पड़ जाए. एटीएम मशीन से एक लिमिट में ही पैसा निकाला जाता है, लेकिन चैक से निकालने की कोई सीमा नहीं होती.

पासबुक अपडेट करवाना

आप पासबुक अपडेट करवा सकते हैं. कई बार बैंक पासबुक स्टेटमैंट की जरूरत पड़ती है, उस वक्त जल्दीजल्दी पासबुक अपडेट करानी पड़ती है इसलिए पासबुक अपडेट कराना अपनी ड्यूटी समझें. यह जरूरी नहीं कि आप हर महीने अपडेटकरवाएं, 2-3 महीने में एक बार भी करा सकते हैं.

नई स्कीम्स का पता लगाएं

बैंक में समयसमय पर कई नईनई स्कीमें आती हैं, आप उन स्कीम्स के बारे में पता लगा कर अपने पेरैंट्स को बता सकते हैं, आप उन्हें सुझाव दे सकते हैं कि पैसे कहां निवेश कर सकते हैं.

चैक जमा करें

अगर आप के पापा को बैंक में चैक  जमा करना है तो उन्हें औफिस के काम के बीच में निकलना पड़ता है या फिर देर से औफिस जाना पड़ता है, लेकिन आप यह जिम्मेदारी ले कर उन का काम आसान कर सकते हैं.

पैसे डिपोजिट करें

अगर आप के भाईबहन बाहर पढ़ाई करते हैं और आप के पापा उन्हें हर महीने पैसे भेजते हैं तो अब आप यह काम करना शुरू करें, आप बैंक में जा कर पैसा जमा करें. ऐसा भी हो सकता है कि बैंक के कामकाज आप अच्छे से सीख जाएं और आगे जा कर इसी में कैरियर बनाएं.

नैट बैंकिंग से करें काम आसान

हम सब जानते हैं कि जैसेजैसे टैक्नोलौजी का विकास हो रहा है बैंक से संबंधित हर काम औनलाइन होता जा रहा है. आप अपने पापा के बैंक अकाउंट को नैट बैंकिंग से जोड़ कर उन की मदद कर सकते हैं. नैट बैंकिंग से आप बिना बैंक गए बैंक के कई काम कर सकते हैं, इस से पैसे भेजना भी मिनटों का काम है और यह सुरक्षित भी है, लेकिन ध्यान रहे आप जब भी नैट बैंकिंग में लौग इन करें तो साइन आउट करना न भूलें, क्योंकि ऐसा न करने पर कोई आप के अकाउंट का गलत इस्तेमाल कर सकता है.

ऐप्स से करें मदद

आज के किशोरों को टैक्नोफ्रैंडली कहा जाता है, वे इंटरनैट व स्मार्टफोन से संबंधित हर काम कर लेते हैं, आप भी अपने स्मार्टफोन में ऐप डाउनलोड कर के बैंक का काम कर सकते हैं. इस में बस आप को ऐप में रजिस्टर कर के अपना अकाउंट नंबर डालना होगा, बस फिर आप बैंक के काम आसानी से कर सकते हैं. इस का सब से बड़ा फायदा यह है कि इस में समयबाध्यता नहीं होती, आप 24×7 बैंक का काम कर सकते हैं.

अकाउंट ट्रांसफर कराने में करें मदद

अगर आप के पेरैंट्स का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में होता है तो उस समय उन के पास कई तरह के काम होते हैं, इस स्थिति में आप बैंक में जा कर पता कर सकते हैं कि अकाउंट कैसे ट्रांसफर कराते हैं, कितने दिन में होता है ताकि आप के पेरैंटस आसानी से अकाउंट ट्रांसफर करा सकें और शहर छोड़ कर जाने के बाद उन्हें केवल बैंक के काम के लिए दोबारा न आना पड़े.

एक बैंक डायरी बनाएं

आप एक बैंक डायरी बनाएं, जिस में पिन नंबर, अकाउंट नबंर, बैंक  का फोन नंबर, कस्टमर केयर नंबर लिख कर रखें ताकि जब इन की जरूरत पड़े तब उस समय आप को ढूंढ़ने की जरूरत न पड़े, आप तुरंत इन का इस्तेमाल कर सकें. आप इस बैंक डायरी में एफडी की डिटेल भी लिख कर रखें कि आप के पापा ने कौनकौन सी एफडी करवाई है, एफडी कब मैच्योर होगी, आप को कितने पैसे मिलेंगे इत्यादि.

किन बातों का ध्यान रखें

जब भी आप बैंक के काम करें ध्यानपूर्वक करें. ऐसा न हो कि आप अपने बाकी कामों की तरह इस में भी जल्दबाजी दिखाएं, क्योंकि आप की एक छोटी सी गलती पेरैंट्स के लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकती है. बैंकिंग संबंधी सभी सूचनाएं गोपनीय रखें, पिन या पासवर्ड किसी को भी न बताएं. ऐसा न करें कि अगर आप बिजी हैं तो पैसे निकालने के लिए एटीएम अपने किसी फै्रंड को दे दें कि वह निकाल कर ला दे, क्योंकि ऐसा करने से आप बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं. इंटरनैट बैंकिंग का इस्तेमाल करते समय थोड़ी सावधानी जरूर बरतें, कभी भी पब्लिक कंप्यूटर या साइबर कैफे से औनलाइन ट्रांजैक्शन न करें. बैंक का कोई भी काम करें तो रसीद लेना न भूलें, क्योंकि यह प्रमाण है कि आप ने बैंक में पैसा जमा किया है.

भारत में हैं 1900 राजनीतिक पार्टियां

मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी के अनुसार, भारत में 1,900 से अधिक राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैं. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते दलों की यह बड़ी संख्या अस्वाभाविक नहीं है. यह विविधताओं और विभिन्न आकांक्षाओं के प्रतिनिधित्व का सूचक भी हो सकता है.

लेकिन यह तथ्य कई सवाल भी खड़े करता है कि 400 से ज्यादा पंजीकृत दलों ने कभी चुनाव भी नहीं लड़ा है. आयोग को संदेह है कि ऐसे दल कालेधन को सफेद बनाने का जरिया भी हो सकते हैं. राजनीतिक पार्टियों को कानूनी प्रावधानों के तहत चंदों और दानों से होनेवाली कमाई पर आयकर छूट मिलती है. राजनीतिक दल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस कारण उन्हें जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत कई तरह की अन्य रियायतें भी मिली हुई हैं.

आयोग ने अपने अधिकार-क्षेत्र के तहत उन पार्टियों का नाम काटने का सिलसिला शुरू किया है, ताकि उन्हें छूटों का बेजा फायदा न हो सके. बाद में ऐसे दलों का पंजीकरण रद्द भी किया जा सकता है.

आयोग ने चुनाव न लड़नेवाले दलों के बारे में राज्य चुनाव आयोगों से भी रिपोर्ट मांगा है. जिन 400 पार्टियों पर कार्रवाई की जा रही है, उनका पंजीकरण बीते पांच सालों के भीतर हुआ है. सार्वजनिक जीवन में लगी पारदर्शिता से परहेज और भ्रष्टाचार की बीमारी से राजनीतिक दल भी ग्रस्त हैं. इन प्रवृत्तियों पर रोक लगाने के लिए जरूरी सुधारों की मांग भी अक्सर उठती रहती है. इस संबंध में सुधारों की सिफारिश चुनाव आयोग द्वारा की गयी थी, जिनमें से कई अहम सुझावों को विधि आयोग ने सरकार को भेजा है.

उन्हें कानूनी रूप देने पर विचार चल रहा है. यह जगजाहिर है कि भ्रष्टाचार और कालेधन की समस्याओं की जड़ में राजनीतिक कदाचार है. यदि पार्टियां अपने चुनावी खर्च और आय-व्यय का सही हिसाब-किताब आयोग को देने लगें, तो चुनावों में धन-बल के जोर की परिपाटी पर लगाम लगाना आसान हो सकता है.

इससे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती मिलेगी और साफ-सुथरी राजनीति का मार्ग प्रशस्त होगा.  उम्मीद की जानी चाहिए कि आयोग को जल्दी ही ऐसे अधिकार प्राप्त होंगे, जिनके आधार पर वह ऐसे दलों और प्रत्याशियों पर कार्रवाई कर सकेगा जो बेहिसाब धन खर्च करते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं.

संसद : आमदनी अठन्नी, खर्चा 600 करोड़

लोकहित के मुद्दों पर जन-प्रतिनिधियों की मुखरता और सक्रियता सशक्त लोकतंत्र का परिचायक है. लेकिन, 16 नवंबर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में जो गतिरोध का दौर चल रहा है, उस पर न केवल वरिष्ठ राजनेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है, बल्कि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी कहना पड़ा है कि सदस्यों का व्यवहार निराशाजनक है और संसद में जारी गतिरोध को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हंगामे से संसदीय गतिविधियों के बाधित होते रहने का सिलसिला पुराना है.

बोफोर्स मसले पर 1980 के दशक में विपक्ष ने 45 दिनों तक दोनों सदनों का बहिष्कार किया था. बड़ा बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस सरकार को विपक्ष की मांग के अनुरूप संयुक्त संसदीय समिति का गठन करना पड़ा था. इसके बाद नरसिंहा राव सरकार के समय भी तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम को हटाने को लेकर संसद दो हफ्ते तक नहीं चली थी. तहलका टेप मामले में वाजपेयी सरकार के भी सामने ऐसी चुनौती आयी थी. पर, अब तो ऐसा होना एक परिपाटी का रूप ले चुका है. नोटबंदी के फैसले को लेकर विपक्ष का बड़ा हिस्सा संसद के भीतर और बाहर आक्रोशित है और अधिनियम 184 के तहत बहस कराने की मांग कर रहा है.

दूसरी ओर, सरकार का अड़ियल रवैया भी इस गतिरोध के लिए कम जिम्मेवार नहीं है. दोनों पक्षों की व्यापक असहमति का नतीजा है कि उपभोक्ता संरक्षण, मानसिक स्वास्थ्य, मातृत्व लाभ, नागरिकता और जीएसटी से संबंधित जनहित से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं. विमुद्रीकरण के मुद्दे पर अड़े विपक्ष और सरकार के सामने जम्मू-कश्मीर के हालात, पूर्व सैनिकों का पेंशन, आतंकी हमले जैसे भी मामले हैं. लेकिन, दोनों सदनों के हंगामे में ये मुद्दे फिलहाल गुम हैं. संसद के संचालन में अनुमानतः प्रतिवर्ष 600 करोड़ रुपये खर्च होते हैं.

सदन के भीतर जो काम आज कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल कर रहे हैं, वही काम विपक्ष के रूप में भाजपा भी कर चुकी है. विमुद्रीकरण जैसे मामलों पर विपक्ष को नारेबाजी करने और सदन के बहिष्कार करने के बजाय सरकार को अपने निर्णय की समीक्षा के लिए बाध्य करना चाहिए. गतिरोध को समाप्त करने में असफल संसदीय कार्यमंत्री और लोकसभाध्यक्ष के साथ विपक्षी दलों को राष्ट्रपति और देश के वरिष्ठतम राजनेताओं में एक आडवाणी की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए और कार्यवाही को सुचारु बनाने के भरसक प्रयास करने चाहिए. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए संसद का बाधित होना दुर्भाग्यपूर्ण है, इससे संसदीय तंत्र का औचित्य पूर्ण नहीं होता.

सैक्स और शराब : डैडली कौंबिनेशन

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे अजय की खुशी का आज ठिकाना न था, क्योंकि उस की गर्लफ्रैंड नेहा ने उस के घर पर होने वाली कौकटेल पार्टी में आने का उस का औफर स्वीकार कर लिया था. नेहा की हामी से अजय के मन में दबी इच्छाएं हिलोरे ले रही थीं. वह बेसब्री से शाम होने का इंतजार करता रहा और फिर शाम होने पर धीरेधीरे उस के घर पर दोस्तों का जमावड़ा शुरू हो गया. उस दिन कौकटेल पार्टी में अजय और नेहा ने दोस्तों के साथ मिल कर खूब मौजमस्ती की और शराब भी पी. जब उन पर शराब की खुमारी चढ़ने लगी तो अजय ने अपने दोस्तों से कहा कि यार आज की कौकटेल पार्टी यहीं खत्म करते हैं.

अजय के दोस्त उस के कहने का मतलब समझ चुके थे. जब सभी दोस्त चले गए तो नेहा ने अजय से अपने कमरे में ले चलने को कहा. अजय तो कब से इसी इंतजार में था. जैसे ही नेहा के साथ अजय अपने बैडरूम में पहुंचा तो नेहा मदहोश हो अजय के कपड़े उतारने लगी. अजय भी शराब के नशे में था सो वह भी नेहा को सहयोग करने लगा. इसी बीच, नेहा ने अजय से गुदामैथुन की फरमाइश कर डाली. अजय इस के लिए तैयार नहीं था लेकिन अपनी गर्लफ्रैंड को वह नाराज नहीं करना चाहता था इसीलिए उस ने नेहा की बात मान ली. इस दौरान अजय ने न तो कोई सावधानी बरती और न ही किसी तरह के लुब्रिकैंट का इस्तेमाल किया, जिस से उस के अंग में असहनीय दर्द हुआ, लेकिन नेहा को मजा आ रहा था. अजय को यह बहुत गंदा लगा जिस को ले कर बाद में नेहा से उस की कहासुनी हो गई, लेकिन नेहा नशे की हालत में अजय को ही भलाबुरा कहने लगी, जिस से अजय और नेहा का बे्रकअप हो गया.

युवाओं में शराब और सैक्स की बढ़ती लत दिनोदिन घातक रूप धारण कर रही है. शराब और सैक्स का कौंबिनेशन न केवल सैक्स संबंधों के लिए घातक है बल्कि कई मामलों में यह पार्टनर के लिए भी जानलेवा साबित होता है. अगर नेहा और अजय के मामले को देखा जाए तो नैचुरल सैक्स करने वाली नेहा ने शराब पीने के कारण अजय से वह पेशकश कर डाली जिसे अजय ने कभी पसंद ही नहीं किया था. उस की इस गलती ने न केवल अजय के साथ उस का बे्रकअप कराया बल्कि उस का विश्वास भी तोड़ा. शराब व सैक्स के कौंबिनेशन के चलते अकसर सैक्स लाइफ तबाह हो जाती है, लेकिन लोगों का मानना है कि सैक्स के दौरान शराब का सेवन महिला व पुरुष दोनों को मजा देने वाला होता है. हमबिस्तरी के दौरान शराब पी कर किए जाने वाले सैक्स का परिणाम सदैव घातक रहा है. शराब न केवल असुरक्षित सैक्स को बढ़ावा देती है बल्कि कई जानलेवा बीमारियों की जनक भी है.

आधुनिकता की दौड़ और दिखावे के चक्कर में अकसर युवा सैक्स के साथ शराब का सेवन करते हैं. उन का मानना है कि सैक्स के दौरान ली गई शराब उन के पार्टनर को निसंकोच व बेबाक बनाती है जिस से शर्म को आसानी से दूर किया जाता है जबकि सैक्स के दौरान थोड़ी मात्रा में भी ली गई शराब जहर के समान होती है.

इस मसले पर बस्ती जिला चिकित्सालय के चिकित्सक डा. वी के वर्मा का कहना है कि सैक्स के दौरान थोड़ी मात्रा में ली गई शराब भी घातक हो सकती है, क्योंकि यह असुरक्षित सैक्स को बढ़ावा देती है जिस से तमाम तरह की बीमारियों को न्योता मिलता है. वहीं दूसरी तरफ रक्त धमनियों में रक्त का संचार तेजी से होता है इसलिए दिल के मरीजों के लिए सैक्स के दौरान शराब पीना जानलेवा भी हो सकता है.जोखिम भरे सैक्स का खतरा शराब के नशे में किया जाने वाला सैक्स ज्यादातर खतरे से खाली नहीं होता. इस का उदाहरण हम अजय व नेहा के मामले में देख चुके हैं. जहां नेहा ने शराब के नशे में अजय से गुदामैथुन की फरमाइश कर डाली. शराब के नशे में ओरल सैक्स, ग्रुप सैक्स जैसे खतरनाक सैक्स की भूख बढ़ जाना आम बात है, लेकिन इस के घातक परिणाम बाद में दिखाई पड़ते हैं. ओरल सैक्स व गुदामैथुन गंभीर बीमारियों को जन्म देता है. कभीकभी ग्रुप सैक्स के चलते प्रजनन अंगों में गंभीर किस्म के घाव हो सकते हैं. इस से होने वाला अत्यधिक रक्तस्राव भी मौत का कारण बन जाता है. इसलिए अगर सैक्स को मजेदार व सुरक्षित बनाना है तो शराब से दूरी बना कर रखना ज्यादा फायदेमंद होता है.

स्पर्म पर बुरा असर

ओपेके चिकित्सालय जनपद बस्ती में सैक्स व मनोरोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि शराब का सेवन चाहे सैक्स के दौरान किया जाए या सामान्य तौर पर, दोनों ही स्थितियों में वीर्य में स्पर्म की मात्रा व गुणवत्ता पर बुरा असर डालता है. यह न केवल वीर्य की मात्रा में कमी लाता है बल्कि हारमोन्स संतुलन बिगाड़ कर शुक्राणुओं पर भी बुरा असर डालता है.

यौन अपराध का जनक

शराब के नशे में अकसर व्यक्ति की सोचनेसमझने की क्षमता क्षीण हो जाती है और ऐसे में वह अपने साथी के अलावा नजदीकी संबंधों में भी यौन अपराध करने से नहीं हिचकता, क्योंकि नशे में व्यक्ति होश खो बैठता है और उसे अच्छेबुरे का पता नहीं चलता, जिस के चलते कभीकभी घातक सैक्स की वजह से महिला या पुरुष की जान तक चली जाती है. दिल्ली में घटित हुए निर्भयाकांड को शराब के नशे में ही अंजाम दिया गया था जिस ने न केवल दिल्ली को बल्कि देश व दुनिया को दहला कर रख दिया था.

यौन संक्रमण

शराब पी कर सैक्स करना न केवल जोखिमपूर्ण है बल्कि यह सैक्स की हदों को पार करने का कारण भी बनता है. अकसर शराब के नशे में व्यक्ति सैक्स के दौरान बरती जाने वाली सावधानी को नजरअंदाज कर देता है, जिस से यौन रोगों व एचआईवी और एड्स जैसे कई घातक व जानलेवा बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है. डा. एम अकमलुद्दीन का कहना है कि उन के पास यौन संक्रमण से जूझ रहे जो मरीज इलाज के लिए आते हैं उन में अधिकतर शराब का सेवन करने वाले होते हैं, जो सैक्स के दौरान कंडोम या अन्य जरूरी एहतियात न बरतने की वजह से ऐसी घातक बीमारियों की चपेट में आते हैं.

अनचाहे गर्भ का कारण

डा. वी के वर्मा का कहना है कि जो युवतियां सैक्स के दौरान शराब का सेवन करती हैं, उन में कुंआरी मां बनने या अनचाहे गर्भ की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि सैक्स के दौरान कंडोम का प्रयोग सैक्स के मजे को कम कर देता है ऐसे में बिना कंडोम के सैक्स के चलते अनचाहे गर्भ की आशंका काफी बढ़ जाती है. इस वजह से बारबार उन्हें असुरक्षित तरीके से गर्भपात कराने पर मजबूर होना पड़ता है.

बारबार गर्भपात के कारण प्रजनन व अंदरूनी अंगों में संक्रमण की समस्या अधिक बढ़ सकती है, जिन का समय पर इलाज न होने पर युवती की असमय मौत भी हो सकती है. वहीं गर्भावस्था के दौरान ही तमाम युवतियां अपने पार्टनर के साथ शराब का सेवन कर सैक्स करने में ज्यादा आनंद महसूस करती हैं, लेकिन इस का असर उन के पेट में पल रहे शिशु की धमनियों पर पड़ता है, जिस से बच्चा या तो कम वजन का होता है या फिर विकलांगता का शिकार हो जाता है.

अंगों में कमजोरी

हमबिस्तरी के दौरान शराब का अधिक प्रयोग प्रजनन अंगों में उत्तेजना लाने में सब से बड़ा बाधक है, क्योंकि शराब का प्रयोग करने से प्रजनन अंगों की तंत्र कोशिकाएं सुन्न हो जाती हैं, जिस की वजह से अंग में पूर्ण तनाव नहीं आता और यदि अंग में तनाव आता भी है तो वह युवती के साथ सैक्स के दौरान जल्दी स्खलित हो जाता है. वहीं अगर युवती सैक्स के समय शराब का सेवन करती है, तो उस की सैक्स की इच्छा धीरेधीरे समाप्त हो जाती है. ऐसे में युवक हो या युवती दोनों के लिए सैक्स के दौरान शराब का सेवन घातक हो सकता है.

घर की आर्थिक जिम्मेदारियों में हाथ बंटाएं

17 वर्षीय सुयश भी दूसरे बच्चों की तरह ही है लेकिन उस के बचत खाते में डेढ़ लाख रुपए जमा हैं, बावजूद इस सच के कि वह न ही कहीं नौकरी करता है और न ही कोई कारोबार करता है. दो टूक कहा जाए तो बगैर कुछ करेधरे कमाता है.

क्या यह मुमकिन है और है तो कैसे? इस बात का खुलासा करते हुए भोपाल के शिवाजी नगर में रहने वाला सुयश खुद बताता है कि हां, यह संभव है और आप को जान कर हैरानी होगी कि दोस्तों के जन्मदिन पर उन्हें ग्रीटिंग कार्ड और गिफ्ट देने के लिए मैं मम्मीपापा से पैसे नहीं लेता बल्कि खुद ग्रीटिंग कार्ड बनाता हूं और मेरे बर्थडे पर जो गिफ्ट आते हैं उन्हें सहेज कर रखता हूं तथा दोस्तों के जन्मदिन पर उन्हें दे देता हूं. बस, यह जरूर ध्यान रखता हूं कि जिस दोस्त ने जो गिफ्ट दिया है वह वापस उस के पास न चला जाए.

सुयश बताता है, ‘‘इस से साल में 5-6 हजार रुपए की बचत हो जाती है जो दिखती नहीं लेकिन हो जाती है. इस के अलावा मैं 7 साल की उम्र से अपने बर्थडे पर मिले पैसों, जो अकसर मम्मीपापा और दूसरे निकट संबंधी देते हैं, को बैंक में जमा करवा देता हूं, साल भर कोई न कोई मेहमान घर में आते रहते हैं. वे भी जो पैसे दे जाते हैं उन्हें मैं अपने बचत खाते में जमा कर देता हूं.’’ हंसते हुए वह बताता है कि इस तरह मैं लखपति हो गया. सुयश अब बचत खाते में जमा पैसों में से कुछ फिक्स डिपौजिट करना चाहता है, क्योंकि उसे मालूम है कि एफडी पर ब्याज ज्यादा मिलता है. साफ है कि सुयश अपने हमउम्र बच्चों और दोस्तों की तरह फुजूलखर्च नहीं करता, क्योंकि वह पैसों की अहमियत समझता है.

सभी कमा सकते हैं यश

जानपहचान व रिश्तेदारी में अब सुयश बतौर मिसाल पेश किया जाने लगा है. उस से सबक सीखने की जरूरत है कि कैसे आप भी घर की जिम्मेदारियों में खासतौर से आर्थिक स्थिति सुधारने में मम्मीपापा का हाथ बंटा सकते हैं. हर मांबाप की यह ख्वाहिश रहती है कि उन का बच्चा छोटी उम्र से ही पैसों के मामले में संभल कर चले तभी जिंदगी में कुछ कर पाएगा. इस सोच के पीछे दरअसल, पिछली पीढ़ी का संघर्ष और अभाव ज्यादा काम कर रहे होते हैं, जिन्हें अनुज की बातों से समझा जा सकता है. 16 वर्षीय अनुज दिल्ली पब्लिक स्कूल, भोपाल का छात्र है. उस के मम्मीपापा दोनों नौकरी करते हैं लिहाजा, उसे कभी पैसों की कमी महसूस नहीं हुई और जेबखर्च भी मांग और जरूरत से ज्यादा ही मिलता है.

अनुज बताता है कि अकसर वह पापा के मुंह से उन के कालेज के वक्त की बातें सुनता है कि वे जबलपुर के एग्रीकल्चर कालेज के होस्टल में रह कर पढ़ाई करते थे. तब उन्हें महीने का खर्च, कालेज की फीस व अन्य खर्च के लिए पैसे मनीऔर्डर से भेजे जाते थे. कभीकभी महीने की 5 तारीख तक दादाजी का मनीऔर्डर नहीं पहुंच पाता था तो पापाजी को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, मसलन मैस के पैसे 5 तारीख तक जमा न करने पर उन्हें मनीऔर्डर आने तक खाना अपने रूम में हीटर पर बनाना पड़ता था. यही हालत उन के कई दोस्तों की भी हो जाती थी, लिहाजा किसी से उधार पैसे भी नहीं मिलते थे.  अनुज जब भी कैंटीन में खाने के लिए जाता है तो उसे पापा की ये बातें याद आ जाती हैं. वह बताता है कि जिस दिन मम्मी को औफिस जाने की जल्दी होती है उस दिन वे लंच नहीं बना पातीं इसलिए 50-100 रुपए खाना खाने के लिए दे देती हैं.

अनुज को यह देख हैरानी होती है कि कई सहपाठी घर से लाए लंचबौक्स को हाथ भी नहीं लगाते और कैंटीन में पावभाजी, नूडल्स, डोसा वगैरा खा रहे होते हैं. अनुज की नजरों में यह फुजूलखर्ची और उस की यह सोच गलत भी नहीं है. रोजरोज कैंटीन या होटल का खाना वैसे भी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता जिसे लगातार खाने से पेट की तकलीफें बढ़ जाती हैं, नतीजतन, डाक्टर व दवाओं का खर्च भी बढ़ता है. पर यह वास्तविकता सभी बच्चे नहीं समझते हैं, जिन का पसंदीदा नारा यह होता है कि लो बाप से कैश और करो ऐश यानी इन बच्चों को न तो पैसों की परवा होती है और न ही वे उन की अहमियत समझते हैं. मांग से कम जेबखर्च मिले तो वे मांबाप को कंजूस कहने और कोसने से भी पीछे नहीं रहते.

अगर इन में सुयश जैसी अकल और अनुज जैसी समझ हो तो निसंदेह ये फुजूलखर्ची से बचें और घर की आर्थिक जिम्मेदारी में अपना रोल निभाएं. भोपाल के एक नामी स्कूल की शिक्षिका साधना श्रीवास्तव बताती हैं कि अकसर ऐसे बच्चे जो पैसों की अहमियत नहीं समझते वे मांबाप के लिए सिरदर्दी ही खड़ी करते हैं. इसलिए उन्हें समय रहते कंट्रोल करना जरूरी है.

कहां गया पिगी बैंक

साधना जैसी टीचर या कोई भी मांबाप बच्चों से चाहते हैं कि वे पैसों और खर्च के मामले में जिम्मेदार और किफायती बन पाएं तभी एक स्मार्ट पर्सन कहलाएंगे. हाईस्कूल तक आतेआते जरूरतों का आकार बदल जाता है और बच्चों को यह भी समझ आने लगता है कि अब उन्हें पिगी बैंक या गुलक की जरूरत नहीं, क्योंकि अब हर चीज के लिए पैसे देना तो मम्मीपापा की जिम्मेदारी है इसलिए वे क्यों पैसा इकट्ठा करें. इस पर भी दिक्कत यह कि साल भर में 5-10 हजार रुपए जमा भी कर लो तो उसे उन की जरूरत पर ही खर्च करवा दिया जाता है. मसलन, बर्थडे पर ड्रैस दिलवा दी जाती है या फिर पसंदीदा आइटम खरीदने की छूट मिल जाती है. इस तरह के बच्चे यह मानने लगते हैं कि यह सब दिलाना तो मम्मीपापा का काम है फिर हम क्यों अपनी जरूरतों में कटौती करें या शौक पूरे न करें.

जाहिर है कि ये बच्चे भूल जाते हैं कि जिसे वे अपनी कमाई समझ रहे हैं वह भी मम्मीपापा का दिया हुआ ही है इसलिए अगर उन के कुछ पैसे बचते हैं तो आखिरकार उन्हें आना तो घर के ही काम है जिस से मांबाप का बोझ थोड़ा कम हो सकेगा. अकसर बड़ेबूढ़ों के मुंह से यह बात सुनी जाती है कि असल कमाई तो बचत होती है यानी जो आप ने अपने खर्च में कटौती कर बचा लिया वही कमाई है. यदि किशोर इस बात को समझ जाएं तो उन का भविष्य सुरक्षित रहेगा.

जरूरत क्यों

नई पीढ़ी तभी स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर बनेगी जब वह पैसों की अहमियत समझने लगेगी. अभी तो खेलने, खाने और मौजमस्ती की उम्र है तो अभी से क्यों इस पचड़े में पड़ें, जैसी सोच लापरवाही को ही दर्शाती है. किसी ढाबे, होटल या गैराज वगैरा में देख लें, वहां किशोर उम्र के बच्चे काम करते मिल जाएंगे. यह ठीक है कि घर की जरूरतों ने इन्हें कम उम्र में बाहर जा कर मेहनत करने के लिए मजबूर कर दिया है पर इसी मजबूरी ने इन्हें पैसा कमाने का मौका भी दिया है जिस से वे भी आर्थिक जिम्मेदारियों में हाथ बंटाते हैं. इन किशोरों से बेहतर सबक लिया जा सकता है कि पैसा कमाना कितना जरूरी है. यह ठीक है कि आज आप को इस की जरूरत नहीं है पर कल को पड़ गई तो क्या करेंगे? हालिया एक सर्वे में बताया गया है कि अमेरिका और दूसरे कई यूरोपीय देशों में खासे पैसे वालों के भी बच्चे जो स्कूल गोइंग हैं, खुद कोई काम कर पैसा कमाते हैं चाहे वह काम सिर्फ हफ्ते में 2 दिन किसी होटल में वेटर बनने का हो, अखबार बांटने का हो या फिर पार्टटाइम सिक्योरिटी गार्ड बनने का, ये बच्चे पैसा कमाने में शर्माते या झिझकते नहीं हैं.

यह अंतर अर्थव्यवस्थाओं, संस्कारों या संस्कृति का नहीं बल्कि बच्चों की समझ का है कि हमें अपना आर्थिक भार यथासंभव खुद उठाना आना चाहिए जिस से हम घर खर्च में मम्मीपापा की मदद कर सकें और बाहर जा कर कुछ सीखें भी जो भविष्य और कैरियर में काम आएगा.                   

कुछ टिप्स

बचत कैसे सहायक होती है और क्यों जरूरी है, यह समझने के लिए आप को किसी स्कूल में जाने की जरूरत नहीं बल्कि घर से ही यह पाठ सीखा जा सकता है, इस के लिए आप को मांबाप की आर्थिक स्थिति, बचत, बैंक बैलेंस और वैभव छोड़ इस बात पर फोकस करना होगा कि मैं कैसे मदद कर सकता हूं. अगर बाहर जा कर कोई काम नहीं कर सकते तो खर्च कम और बचत तो कर ही सकते हैं और यह काम बहुत आसान भी है.

– देखें कि आप कहां पैसा खर्च कर रहे हैं और इन में से कितने काम व खर्चे गैरजरूरी हैं.

– कपड़े, जूते जैसे आइटम्स जल्दी न फैंकें.

– फोन में फालतू की स्कीम्स न लें.

– बाहर खानेपीने की लत छोड़ें.

– दिखावे की जिंदगी से परहेज करें.

– मोलभाव करना सीखें.

– तय कर लें कि हर महीने कुछ पैसे बचाने ही हैं, वह भी बगैर मांबाप से लिए.

– कुछ नया सीखने की कोशिश करें, जिस से आमदनी की उम्मीद हो. 

घटाटोप अंधियारा

सर्दियों में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं. दिख यह रहा है कि इस बार देश में रातें काफी दिनों तक काली ही रहेंगी और दिन भी चमचमाएंगे नहीं कि गुनगुनाती धूप का मजा ले सको. दिन में बैंकों के आगे लाइनों में लगना पड़ेगा और रातों को जाग कर सोचना होगा कि अब क्या होगा. पहले सोचा था कि नोट बदलने का काम 2-3 दिन में पूरा हो जाएगा पर अब लगता है कि यह कई सप्ताह तो चलेगा ही. किशोर जिस जीवनशैली के आदी हो चुके थे वह काफी दिनों तक लौटने वाली नहीं, क्योंकि सरकार ने एक हठधर्मी कदम उठा कर हर जेब में घुस कर डकैती मार ली और मातापिता का ही नहीं बल्कि किशोरों का भी पैसा छीन लिया है. बच्चों की गोलकों को खाली कर दिया गया है, किशोरों का जेबखर्च बंद हो गया है, कोचिंग कक्षाएं रोक दी गई हैं और हो सकता है अगली पहली तारीख के बाद हर स्कूल में फीस न देने के सवाल पर विवाद खड़े होने लगें.

स्कूलों के बाहर मुर्दनी का सा वातावरण है मानो एक अंधियारा छाने वाला हो और सब को घर जाने की जल्दी हो.  अब बाहर खर्च करना कम हो गया है, क्योंकि कम के पास ही 100 रुपए के नोट हैं और पुराने 500 व 1000 के नोट बेकार हो गए हैं. घरों में सब को जेब संभालनी पड़ रही है, इसलिए नहीं कि कमाने वाला बीमार है बल्कि इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना बख्शे देश की हर जेब पर सर्जिकल स्ट्राइक कर के सब का पैसा लूट लिया है और अब मुआवजा ऐसे मिल रहा है मानो भिखारियों को बैंकों से लोन लेने दिया जा रहा हो. यह पाठ है सरकार की असीम शक्ति का, जो कोई किशोर अपनी किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं पढ़ पाया. इस तरह की लूट इतिहास में कभीकभार ही होती है और होती है तो भी एकसाथ पूरे देश में नहीं होती. कालेधन, नकली मुद्रा, आतंकवाद की आड़ में हर सामान्य घर को बहाना बना कर हर किशोर के घर में घटाटोप अंधियारा कर दिया गया है. मौसम को सर्द नहीं, बर्फीला बना दिया गया है, जिस में हर नस जकड़ गई है. हाथ जेबें टटोलते रह जाते हैं कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया.

यह हमला सिखा गया है कि इस देश की जनता कितनी डरपोक और बिना रीढ़ की हड्डी की है. यहां आतंकवादी भी आराम से आ कर अपना काम कर सकते हैं, स्कूलों में बुली मनमानी कर सकते हैं, सड़कों पर शोहदे लड़कियों को छेड़ सकते हैं, सरकार जेबों से पैसा छीन सकती है पर जनता को चूं तक करने की आदत नहीं है. किशोरों को पाठ पढ़ा दिया गया है कि यह देश सर्द जमे लोगों का है. उलटे किशोरों को पाठ पढ़ाया जा रहा है कि यह उन के भविष्य के लिए भला करेगा. अब यह भविष्य कब आएगा, 2 माह बाद, 2 साल बाद या 2 दशक बाद, किसी को नहीं पता. हैप्पी जेब खाली सर्दी.

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