मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी के अनुसार, भारत में 1,900 से अधिक राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैं. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते दलों की यह बड़ी संख्या अस्वाभाविक नहीं है. यह विविधताओं और विभिन्न आकांक्षाओं के प्रतिनिधित्व का सूचक भी हो सकता है.

लेकिन यह तथ्य कई सवाल भी खड़े करता है कि 400 से ज्यादा पंजीकृत दलों ने कभी चुनाव भी नहीं लड़ा है. आयोग को संदेह है कि ऐसे दल कालेधन को सफेद बनाने का जरिया भी हो सकते हैं. राजनीतिक पार्टियों को कानूनी प्रावधानों के तहत चंदों और दानों से होनेवाली कमाई पर आयकर छूट मिलती है. राजनीतिक दल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस कारण उन्हें जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत कई तरह की अन्य रियायतें भी मिली हुई हैं.

आयोग ने अपने अधिकार-क्षेत्र के तहत उन पार्टियों का नाम काटने का सिलसिला शुरू किया है, ताकि उन्हें छूटों का बेजा फायदा न हो सके. बाद में ऐसे दलों का पंजीकरण रद्द भी किया जा सकता है.

आयोग ने चुनाव न लड़नेवाले दलों के बारे में राज्य चुनाव आयोगों से भी रिपोर्ट मांगा है. जिन 400 पार्टियों पर कार्रवाई की जा रही है, उनका पंजीकरण बीते पांच सालों के भीतर हुआ है. सार्वजनिक जीवन में लगी पारदर्शिता से परहेज और भ्रष्टाचार की बीमारी से राजनीतिक दल भी ग्रस्त हैं. इन प्रवृत्तियों पर रोक लगाने के लिए जरूरी सुधारों की मांग भी अक्सर उठती रहती है. इस संबंध में सुधारों की सिफारिश चुनाव आयोग द्वारा की गयी थी, जिनमें से कई अहम सुझावों को विधि आयोग ने सरकार को भेजा है.

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