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सर्द मौसम और सैक्स के हौट टिप्स

हर मौसम में प्रेमीप्रेमिका के प्यार का अपना अलग ही अंदाज होता है. बारिश के मौसम में, सर्दी के सर्द मौसम में प्रेमीप्रेमिका के बीच रंगीनियत अधिक बढ़ जाती है. सर्दियों की गुलाबी ठंड में दोनों आपस में एकदूसरे की बांहों में गरमाहट का एहसास पाना चाहते हैं. साथ ही, ऐसे में सहवास का मजा और बढ़ जाता है.सैक्सोलौजिस्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा के मुताबिक, ‘‘ठंड के मौसम में पशुपक्षी से ले कर इंसान तक सभी ज्यादा से ज्यादा सहवास करने के इच्छुक होते हैं.’’  इसीलिए अपनाएं कुछ हौट टिप्स जिन के माध्यम से आप सैक्स का भरपूर लुत्फ उठा सकते हैं :

गरम बाथ का मजा लें

प्रेमीप्रेमिका अकसर पिकनिक पर जाते हैं. पिकनिक स्पौट पर बने रूम में बाथटब है तो ठंड के मौसम में हलके गरम पानी का मजा बाथटब में उठा सकते हैं. बाथटब में कुनकुने पानी में चंदन और गुलाब की कुछ बूंदें डालें व बाथरूम को सुगंधित कैंडल से सजा दें. आप का यह तरीका ऐक्साइटमैंट में नया जोश भर देगा. प्यार में नया तरीका व नई उमंग प्रेमीप्रेमिका के संबंधों में ऊर्जा का संचार करेगी.

कैंप फायर का आनंद लें

ठंड के मौसम में कैंप फायर का मजा ही कुछ अलग है. प्रेमीप्रेमिका अकसर ठंड के मौसम में हिल स्टेशन जाते हैं. ऐसे में अलाव जला कर अपने हमदम के साथ बैठ कर आग सेंकने का मजा उठाएं, इस का अलग ही आनंद है. ठंड में यह कैंप फायर दोनों तरफ अलग ही आग लगा देती है. अनोखे अंदाज में प्रेमीप्रेमिका शारीरिक आनंद उठाते हैं.

नृत्य करें

गुलाबी ठंड के मौसम में रोमांटिक गाना बजाएं और स्लो मोशन में प्रेमीप्रेमिका एकसाथ एकदूसरे की कमर में हाथ डाल कर डांस करें. संगीत की धुन पर आप दोनों के कदम अपनेआप थिरकने लगेंगे. इस से प्यार की तलब और बढ़ेगी. ध्यान रखें कि गाना प्रेमीप्रेमिका की पसंद का हो.

थोड़ी शरारत करें

हलकीफुलकी शरारत से मुहब्बत का इजहार और भी गहरा हो जाता है. प्रेमीप्रेमिका दोनों एकदूसरे के साथ शरारत और मनुहार करें, छेड़छाड़ करें, एकदूसरे को अचानक बांहों में भर लें, किस करें, साथी को फोर प्ले के लिए तैयार करें. यह छेड़छाड़ प्रेमीप्रेमिका के रिश्तों को मजबूत बनाएगी.

स्पर्श करें

स्पर्श, अभिव्यक्ति का सब से अच्छा माध्यम माना जाता है. प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे को प्यारभरा स्पर्श दें ताकि ठंड के मौसम में केवल प्यार और सहवास का आनंद उठा सकें.

एक हो जाएं

गुलाबी ठंड का मौसम बेहद हसीन होता है. इस दौरान प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारना चाहते हैं. सिंगल ब्लैकफिट का प्रयोग करें. सर्द मौसम सैक्स के लिहाज से सब से उपयुक्त है. इस मौसम में एकदूसरे से दूर रहना प्रेमीप्रेमिका के लिए असंभव होता है, ऐसे में जब मौका भी हो तो कहने ही क्या, तो आजमाइए ये हौट टिप्स और उठाइए बिंदास प्रेम का लुत्फ.

‘मुमताज ने भी की थी दारा सिंह की तारीफ’

बौलीवुड में आम तौर पर देखा गया है कि संगीतकार परिवार से जुड़ी संताने संगीत से जुड़ती हैं. और स्टार का बेटा कलाकार बनता है. मगर सीमा सेानिक अलीमचंद उनमें से हैं, जिन्होंने अपने पिता सोनिक ओमी की तरह संगीत के क्षेत्र में कदम नही रखा. बल्कि वह बौलीवुड से जुड़ी हस्तियों पर किताबें लिख रही हैं. उन्होंने सौ साल के फिल्मी संगीत पर शोध कार्य करके तेरह खंड की वीडियो सीडी बनायी है. वह रजनीकांत की जीवनी लिख चुकी हैं. इन दिनों वह दारा सिंह की जीवनी को लेकर चर्चा में हैं. सीमा सोनिक अलीमचंद ने दारा सिंह पर ‘‘डी दारा सिंह’’ नामक किताब लिखी है, जिसका लोकार्पण दस नवंबर को अक्षय कुमार के हाथों मुंबई में होगा.

हाल ही में सीमा अलीम से मुलाकात हुई. तब उनसे हुई बातचीत इस प्रकार रही….

आपकी पृष्ठभूमि क्या है?

– मेरे घर पर बचपन से ही संगीत का माहौल रहा है. मेरे पिता सोनिक ओमी संगीतकार थे. ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘महुआ’, ‘धर्मा’ सहित कई फिल्मों में संगीत दिया था. मैंने ‘बिग 92 एफएम’ में चार वर्ष तक उद्घोषक के रूप में काम किया. वहीं पर मेरे दिमाग में आया और मैंने ‘‘भारतीय फिल्म संगीत के सौ साल’’ पर शोधपूर्ण किताब लिखी, पर बाद में यह किताब 13 भागों में सीडी के रूप में आयी. इसमें मूक सिनेमा से सौ साल पूरे होने तक के संगीत के पूरे सफर को लिखा है. इसमें पूरे सिनेमा का इतिहास, संगीतकारों का जो युग था, मूक युग, टॉकीज ईरा, स्वतंत्रता का ईरा, गजल से लेकर मदन मोहन आज तक के संगीतकारों के बारे लिखा. इसे सारेगामा एचएमवी ने निकाला. यह बहुत ही जानकारी परक 13 भाग की वीडियो सीडी है. इसमें 75 गाने भी हैं. इसमें लता मंगेशकर, मनोज कुमार के इंटरव्यू भी किए हैं. ‘‘हंड्रेड ईअर आफ फिल्म म्यूजिक’’ इसका नाम है.

इसके बाद मैंने रजनीकांत पर किताब लिखी. इसका नाम ‘‘द वारियर विद इन’’ है. यह किताब अंग्रेजी भाषा में है. इस किताब के लिए मेरी रजनीकांत से बात नहीं हो पायी, मगर रजनीकांत के बड़े भाई से मैने मुलाकात की थी. रजनीकांत पर शोध करते हुए मैंने पाया कि वह बहुत धार्मिक इंसान हैं. वह हर वर्ष ऋषिकेश जाकर वहां एक बाबा हैं, उनसे मिलते हैं. इसमें मैंने रजनीकांत की धार्मिक जिंदगी और फिल्मी जिंदगी को उभारा है. इसके कवर पेज पर रजनीकांत के दोनों रूप पेश किए थे. हेमा मालिनी व फिल्म ‘‘चालबाज’’ के निर्देशक पंकज पाराशर से भी मुझे रजनीकांत के बारे में कुछ जानकारी मिली थी. अब मेरी नई किताब दारा सिंह पर ‘डी दारा सिंह’ आ रही है.

आपकी परवरिश संगीत के माहौल में हुई, पर आपने संगीत की बजाय लेखन को महत्व दिया?

– हमारे परिवार में लड़कियों को काम करने नहीं दिया जाता था. इसलिए संगीत की तरफ रूझान नहीं हो पाया. पर पिता जी के देहांत के बाद मैंने इस क्षेत्र में काम करना शुरू  किया.

दारा सिंह की लिखी हुई आत्मकथा हरियाणा के स्कूलों में पढ़ाई जाती है. ऐसे में आपने उन पर किताब लिखने का निर्णय क्यों किया?

– पंजाब में दारा सिंह के गांव के पास मेरी मां के माता पिता यानी कि मेरे नाना नानी, मामा मामी का घर है. मैं वहां गयी थी. तो मेरे दिमाग में आया कि दारा सिंह पर किताब लिखी जानी चाहिए. चंडीगढ़ में दारा सिंह के छोटे बेटे अमृत मिले. उनके घर जाकर मैने उनसे लंबा चौड़ा इंटरव्यू रिकार्ड किया. फिर दारा सिंह की दूसरी पत्नी से मुंबई में मुलाकात की, उस वक्त वह जिंदा थी. उन्होंने ढेर सारी बातें बतायी. मेरी किताब पूरी होने के बाद मार्च 2016 में उनका देहांत हुआ. उन्होंने मुझे पंजाब के दिनों को लेकर बहुत कुछ बताया. फिर दारा सिंह के बेटे बिंदू दारा सिंह ने भी हमारी काफी मदद की. बिंदू के मामाजी के अलावा फिल्म अभिनेत्री मुमताज से भी मैंने लंबी बात की. इसके अलावा मुझे दारा सिंह द्वारा खुद लिखी गयी उनकी आत्मकथा वाली छोटी सी किताब मिली, जो कि हरियाणा में स्कूल में पढ़ायी जाती है. इस किताब से मुझे दारा सिंह की रूह पता चली.

दारा सिंह की किताब में आपने सकारात्मक बातों को महत्व दिया है या?

– मेरी किताब में सब कुछ सकारात्मक ही है. दारा सिंह के गांव के लोग उन्हे पूजते हैं. वह दारा सिंह को साधु व भगवान मानते हैं. उनके गांव में मुझे पता चला कि दारा सिंह की पहली शादी नौ वर्ष की उम्र में हुई थी. जिससे उनका एक बेटा वर्धमान है, जो कि वहीं गांव में रहता है, उसकी 70 साल की उम्र है. बिंदू व अमृत तो दारा सिंह की दूसरी पत्नी की संतान हैं. लोग कहते हैं कि दारा सिंह ने कभी किसी को गाली नहीं दी. उनकी सबसे बड़ी गाली हुआ करती थी-‘उल्लू का पट्ठा’. हां! मुझे लगा कि गांव की सम्पत्ति को लेकर कुछ विवाद है. सच नहीं जानती.

दारा सिंह जवानी में तो बहुत हैंडसम थे. लड़कियां उनकी दीवानी थी. भारत ही नहीं विदेश में भी लड़कियां उनके पीछे भागती थी. ऐसा स्वाभाविक है. वह मशहूर कुश्तीबाज और अभिनेता थे.

आपने जिन लोगों से बात की, उनमें से किसने क्या खास बात बतायी?

– मुमताज जी ने दारा सिंह के साथ कई फिल्में की हैं. उन्होंने दारा सिंह की एक इंसान के रूप में तारीफ की, मगर उन्होंने कहा कि दारा सिंह, दिलीप कुमार नहीं थे. उनकी भाषा में पंजाबियत थी. अभिनय नहीं कर पाते थे. इसीलिए वह स्टंट फिल्में ही ज्यादा करते थे. फरहा खान की मां मेनका ने बताया कि एक वक्त वह था जब दिवाली के दिन दारा सिंह के घर के बाहर तक निर्माताओं की लाइन लगी रहती थी. तो एक दिन वह भी था, जब एक दिवाली कोई निर्माता उनके घर नहीं पहुंचा था. अमिताभ बच्चन ने किताब के कवर पेज के लिए पैराग्राफ लिखा है.

किताब का नाम ‘डी दारा सिह’ क्यों?

– डी दारा सिंह रंधावा उनका पैदाइशी नाम है. पर 19 साल की उम्र में जब वह पहली बार मद्रास गए तो वहां लोग उनका नाम उच्चारित नही कर पा रहे थे, तब उन्होने इसे छोटा कर दारा सिंह कर दिया था. इसीलिए किताब का नाम ‘डी दारा सिंह’ है. वैसे बिंदू चाहते थे कि किताब का नाम ‘दारा सिंह’ रखा जाए, पर मुझे लगा कि ‘डी दारा सिंह’ ज्यादा ठीक रहेगा.

जब किसी की जीवनी लिखते समय उसके परिवार के सदस्य जुड़ जाएं, तो कितनी स्वतंत्रता रहती है?

– जब परिवार के सदस्य जुड़ जाते हैं, तो लेखक के तौर पर हमारी स्वतंत्रता बाधित होती है. मैंने सुना था कि जब वह कुश्ती लड़ते थे, उस वक्त मैच फिक्स हुआ करते थे. मगर दारा सिंह के बहनोई रतन जी ने इस बात से इंकार किया. मैंने किताब में एक सशक्त इंसान की उनकी तस्वीर पेश की है. 

आपके पिता भी दारा सिंह के साथ काम कर चुके हैं?

– जी हां! दारा सिंह ने दो फिल्मों का निर्माण किया था, जिसका संगीत मेरे पिता ने दिया था. लेकिन अब मेरे पिता इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए उनसे इस किताब पर मदद नही मिली.

लाइट फ्लाईवेट में वापसी करेंगी एमसी मैरीकॉम

भारतीय महिला मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम ने अब लाइट फ्लाईवेट 48 किग्रा वर्ग में वापसी करने का फैसला किया है.

मैरीकॉम ने कहा, ‘मैंने लाइट फ्लाईवेट में फिर से खेलने का फैसला किया है क्योंकि यह मेरा मूल वजन वर्ग है. मैं इस वर्ग में खेलने में बहुत सहज महसूस करती हूं और मुझे इस वर्ग में खेलने के लिये अपने शरीर को सजा भी नहीं देनी होगी. मैं एक बार फिर बहुत सकारात्मक महसूस कर रही हूं और आप देखते रहिये मैं अब क्या करूंगी.’

मैरीकॉम को शानदार करियर के लिये विश्व संस्था के 70वीं वर्षगांठ के जश्न के दौरान 20 दिसंबर को एआईबीए लीजेंड पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा.

उन्होंने कहा, ‘मेरे अंदर का जज्बा वापस आ गया है. मैं ट्रेनिंग कर रही हूं और मैं प्रतिस्पर्धी महसूस कर रही हूं. जब मैं ओलंपिक में कुछ नहीं कर सकी तो मुझे बहुत बुरा लगा, यह दिल तोड़ने वाला था. लेकिन अब मैं इससे उबर गयी हूं और रिंग में अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिये वापस आ गयी हूं. मुझे लगता है कि एआईबीए एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में लाइट फ्लाईवेट को शामिल करेगा और यह टोक्यो ओलंपिक में भी जगह बना सकता है इसलिये मैं उम्मीद लगाए हूं.’

अपनी भाषा में देखें यूट्यूब वीडियो

यूट्यूब का कहना है कि अब उसके होम और ट्रेडिंग टैब में ज्यादा कंटेंट क्षेत्रीय भाषाओं से संबंधित होंगे. यह बदलाव भारत के हर यूजर के लिए लागू होगा. इसके लिए यूजर को सेटिंग्स में कोई बदलाव नहीं करना पड़ेगा.

गूगल की स्वामित्व वाले वीडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म ने बयान जारी करके कहा, "वेबसाइट अपने आप ही यूजर के पसंदीदा भारतीय भाषा को पहचान लेगी. ऐसा यूजर इंटरफेस लैंग्वेज, हिस्ट्री और लोकेशन के जरिए संभव होगा." इन भाषाओं में बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, पंजाबी, तमिल  और तेलुगू शामिल हैं.

अगर यूट्यूब ने यूजर के लिए गलत भाषा का चुनाव कर लिया तो डेस्कटॉप पेज के निचले हिस्से पर जाकर इसे बदला जा सकता है. एंड्रॉयड और आईओएस मोबाइल ऐप्स में भाषा बदलने के लिए डिवाइस सेटिंग्स में जाना होगा. यूट्यूब ने यह भी बताया कि यूजर अपनी भाषा में ज्यादा से ज्यादा कंटेंट देख सकते हैं. इसके बाद पसंदीदा भाषा अपने आप बदल जाएगी.

कंपनी का कहना है कि बदलाव आने के बाद यूजर क्षेत्रीय भाषाओं में ज्यादा से ज्यादा कंटेंट देख पाएंगे. सिनेमा से म्यूजिक तक, खासकर पहली बार यूट्यूब पर आने वाले यूजर को यह पसंद आएगा. ट्रेडिंग सेक्शन में भी आपकी पसंद की भाषा के लोकप्रिय वीडियो दिखाए जाएंगे.

सस्ता चार्जर कहीं पड़ न जाए महंगा

सस्ते और नकली सामान न सिर्फ उपभोक्ता के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए खतरनाक हैं, बल्कि ये सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करते हैं. भारत जैसे देश में बिना ब्रांड, कम कीमत वाले चार्जर, केबल, एडॉप्टर खपाने की विशाल क्षमता है.

आमतौर पर हर कोई एक महंगा स्मार्टफोन या लैपटॉप रखता है, लेकिन वह इसकी एसेसरीज की गुणवत्ता के बारे में परवाह नहीं करता है. लोग अभी भी सस्ते के चक्कर में थर्ड-पार्टी सामान का उपयोग करते हैं. उन्हें पता नहीं है कि ये 'आवश्यक' सामान प्रमाणित नहीं कर रहे हैं और महंगे उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन बातों का रखें ध्यान…

ऑथराइज्ड डीलर से खरींदे ब्रांडेड सामान

हमेशा कोशिश करें कि स्थापित ब्रांड के सामान ऑथराइज्ड डीलर से ही खरींदे. ये विक्रेता अपनी रेटिंग और छवि के बारे में परवाह करते हैं और इसलिए प्रतिष्ठित ब्रांडों के अच्छे और विश्वसनीय उत्पादों की पेशकश करेंगे.

बेहद कम कीमत के सामान को खरीदने से पहले दो बार सोचें

यदि कोई खास सामान अपने वास्तविक बाजार मूल्य से काफी कम में मिल रहा है, तो अच्छा होगा कि आप उसे न खरीदें. इस बात की बहुत अधिक आशंका है कि वे नकली होंगे, चाइनीज प्रोडक्ट होंगे, जो आपके महंगे उत्पाद को आखिर में नुकसान पहुंचाएंगे.

सुरक्षा मानकों चिह्नों की जांच करें

हर वास्तविक और अच्छी गुणवत्ता वाले इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद सुरक्षा मानकों के चिह्नों के साथ आते हैं. वे टेस्टेट होते हैं और किसी विशेष देश में बिक्री के लिए सर्टिफाइट होते हैं. इन्हें खरीदने के पहले हमेशा इस बात की जांच करें.

वारंटी के साथ आते हैं विश्वसनीय ब्रांड के उत्पाद

सम्मानित और विश्वसनीय ब्रांड आमतौर पर मैन्युफैक्चरिंग और उत्पादों की पैकेजिंग की वॉरेंटी और जिम्मेदारी देते हैं. उपभोक्ताओं को निश्चित रूप से उत्पादों को खरीदने से पहले गारंटी और सेफ्टी नेट के बारे में देखना चाहिए.

फिल्म रिव्यू : बेफिक्रे

‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘मोहब्बतें’ और ‘रब ने बना दी जोड़ी’ के प्रशंसकों के लिए ‘‘बेफिक्रे’’ नहीं है. इन फिल्मों के मुकाबले अति कमजोर व अति वाहियात फिल्म है ‘बेफिक्रे’. जी हां! प्यार की तलाश के साथ रिश्तों व कमिटमेंट के प्रति वर्तमान युग की युवा पीढ़ी की सोच को चित्रित करने वाली फिल्म ‘बेफिक्रे’’ कहानी रहित फिल्म है. पूरी फिल्म किसी रोमांटिक कामेडी सीरियल के कुछ एपीसोड से इतर कुछ नहीं है. फिल्म की शुरुआती गीत की पक्ति है-‘‘इश्क लबों का कारोबार..’’, पूरी फिल्म इस बात को स्पष्ट नहीं कर पायी, मगर फिल्मकार ने इश्क के नाम पर नंगापन, फूहड़ता, कामुकता, 21 किस परोसकर इश्क का व्यापार करने की कोशिश जरूर की है, वह इसमें कितना सफल होंगे, यह कहना मुश्किल है.

रोमांटिक फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ की कहानी है प्यार को बेफिक्रे अंदाज में जश्न मनाने वालो की. दिल्ली का लड़का धर्मेंद्र उर्फ धर्म (रणवीर सिंह) रोमांच की तलाश में दिल्ली से पेरिस पहुंचता है. पेरिस में वह अपने मित्र मेहरा के ‘‘दिल्ली बेले बार’’ में स्टैंडअप कामेडी के शो करना शुरू करता है. पर पहली रात जब वह अपने जीवन की यात्रा में आगे बढ़ रहा था, तभी उसकी जिंदगी में जंगली किस्म की उन्मुक्त विचरण करने वाली फ्रेंच में जन्मी लड़की सायरा गिल (वाणी कपूर) से होती है. जो कि ट्यूरिस्ट गाइड है. दोनों का व्यक्तित्व एक जैसा है, इसलिए जल्द एक दूसरे के साथ आ जाते हैं. पहली मुलाकात में वह हम बिस्तर हो जाते हैं. कुछ दिन में ही सायरा गिल एक निर्णय लेते हुए अपने माता पिता का घर छोड़कर धर्म के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगती है.

एक वर्ष बाद दोनों के बीच कटुता हो जाती है और दोनों अलग हो जाते हैं. सायरा गिल पुनः अपने माता पिता के पास रहने चली जाती है. पर सायरा व धर्म दोनो दोस्त की तरह मिलते रहते हैं. दोनों अपनी जिंदगी के उतार चढ़ाव से जूझ रहे हैं. दोनों इस बात में यकीन करते हैं कि प्यार में विश्वास होना चाहिए. इस बीच धर्म अपनी उन्मुक्त हवस को पूरा करने के लिए कई लड़कियों संग संबंध बनाता रहता है. फिर एक मुकाम पर सायरा की जिंदगी में एक इंवेस्टमेंट बैंकर अनेय आता है. तो वहीं धर्म की जिंदगी में फ्रेंच लड़की क्रिस्टिना आती है.

जब सायरा बताती है कि वह इंवेस्टमेंट बैंकर अनेय से शादी करने जा रही है, तो धर्म भी क्रिस्टिना के संग शादी का ऐलान करता है. दोनों एक ही दिन एक ही समय चर्च में शादी करने पहुंचते है. जहां धर्म और सायरा को अहसास होता है कि वह दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते. दोनों को इस बात का अहसास है कि प्यार में हिम्मत से ही आगे बढ़ा जा सकता है.

इंटरवल से पहले फिल्म हिचकोले लेकर ही चलती है. कहानी वर्तमान से शुरू होकर एक साल पहले जाती है, फिर वर्तमान में आती है, फिर एक साल पहले जाती है, कथा कथन का आदित्य चोपड़ा का यह अंदाज दर्शकों को बोर ही करता है. इंटरवल के बाद फिल्मकार खुद अबूझ पहेली बन गए, वह भूल गए कि धर्म और सायरा के रिश्ते को किस तरह किस मोड़ पर ले जाया जाए. जिसके चलते फिल्म का अंत बड़ा अजीब सा हो गया.

क्लायमेक्स तक पहुंचते पहुंचते  फिल्मकार पर भारतीय संस्कृति हावी हो गयी और फिर उन्होंने जो कुछ किया, उसे दर्शक कैसे लेंगे, यह देखने वाली बात है. इंटरवल के बाद ‘बेफ्रिके’ देखते समय कई पुरानी फिल्मों की याद आना स्वाभाविक है. फिल्म का क्लायमेक्स कुछ अंग्रेजी फिल्मों की याद दिलाता है.

फिल्म की कहानी को नजरंदाज कर दें, तो कुछ सीन काफी अच्छे बने हैं. संवाद लेखक को तो संवादों को रचने के लिए बौलीवुड की फिल्मों के नाम उपयोग करने पड़े.

पेरिस में फिल्मायी गयी फिल्म ‘बेफिक्रे’ देखकर लगता है कि यह फिल्म पेरिस के ट्यूरिजम व वहां के संगीत को प्रचारित करने के लिए बनायी गयी है. फिल्म में कुल आठ गाने हैं, इसमें से एक गाना इंस्ट्यूमेंटल है. लगभग दो घंटे की फिल्म में आठ गाने…..बेमानी लगते हैं. कुछ गाने सुनने में तो अच्छे लगते हैं, मगर परदे पर वह चमक खो देते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो रणवीर सिंह के अभिनय में कोई नवीनता नहीं है. वह बहुत सीमित अभिनय प्रतिभा वाले कलाकार नजर आते हैं. इस फिल्म में उन्होंने अपनी पुरानी फिल्मों के मैनेरिजम को ही दोहराया है. नंगापन या फूहड़ता को अभिनय की श्रेणी कब से दे दी गयी, पता नहीं..वाणी कपूर भी नंगापन दिखाती नजर आयी. वाणी कपूर ने अपने चेहरे/होंठों की प्लास्टिक सर्जरी कराकर अपना चेहरा बिगाड़ लिया.

फिल्म के कैमरामैन कनमे ओनोयामा बधाई के पात्र हैं. उन्होंने पेरिस की खूबसूरती को बहुत बेहतरीन तरीके से कैमरे में कैद किया है. फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ मल्टीप्लैक्स में कालेज में पढ़ रहे लड़के लड़कियो को भले पसंद आ जाए, पर फिल्म देखने के बाद वह दूसरों को यह फिल्म देखने की सिफारिषश करेंगे, इसमें संदेह है. सिंगल थिएटर के दर्शक अपना पैसा बर्बाद नहीं करना चाहेंगे. जिन्हे पेरिस की खूबसूरती को सिनेमाई परदे पर देखना है, वह यह फिल्म देखेंगे.

 फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ का निर्माण ‘‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले आदित्य चोपड़ा ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक आदित्य चोपड़ा हैं. संवाद लेखक शरत कटारिया, संगीतकार विशाल शेखर, कैमरामैन कनमे ओनोयामा, गीतकार जयदीप साहनी तथा कलाकार हैं – रणवीर सिंह, वाणी कपूर व अन्य.           

बचें कोचिंग कक्षाओं के भारी खर्च से

आज के दौर में कोचिंग क्लासेज जरूरत बनती जा रही हैं. डा. के एन मोदी कालेज के वीसी डा. दीपेंद्र पाठक का मानना है कि पुराने समय में जानकारी के लिए हमारे पास किताबें और अखबार ही हुआ करते थे, लेकिन आज जानकारी पाने के लिए कई साधन मौजूद हैं. इसी वजह से आज की जनरेशन भी काफी ऐडवांस है. आज का दौर प्रतिस्पर्द्धा का दौर है और इसी का फायदा उठाते हुए कोचिंग माफिया अपना जाल फैला कर लोगों को गुमराह करते हैं. मध्य परिवार के कई मातापिता कोचिंग का भारीभरकम खर्च वहन नहीं कर पाते हैं. ऐसे में मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों को समझाएं कि वे खुद को काबिल बनाएं.

‘‘दीपेश पढ़ने में होशियार है, अंगरेजी भी अच्छी बोलता है. कमी है तो बस, एक कि वह सुनता किसी की नहीं है. बस, कोचिंग क्लास के लिए जिद करता है.’’ परिवार के मुखिया रमेश कुमार ने अपने 15 साल के बेटे दीपेश का परिचय कुछ इस तरह से दिया. अत: जरूरी है कुछ बातों पर ध्यान देना :

स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान दें

मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों को स्कूल में हो रही पढ़ाई पर अधिक ध्यान देने के लिए कहें. समयसमय पर बच्चों के स्कूल जा कर क्लास टीचर से मिलें और उन से पढ़ाई की जानकारी लें. ऐसा करने से बच्चे के मन में भी यह बात बैठती है कि उसे पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान देना है अन्यथा टीचर पेरैंट्स को सारी जानकारी दे देंगी.

पुराने नोट्स व प्रश्नोत्तर पढ़ें

दिल्ली के टैगोर इंटरनैशनल स्कूल का छात्र हरदीप कोचिंग क्लास जा कर अपनी पढ़ाई करता है. हरदीप का दोस्त समीर जो सरकारी स्कूल में पढ़ता है, वह 10 साल तक के प्रश्नउत्तर पुस्तिका व नोट्स को ध्यान से पढ़ता है. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क हैं. वे कोचिंग क्लास का खर्च वहन नहीं कर सकते.

सहपाठियों से पढ़ाई पर सलाहमश्वरा करें

जिस सब्जैक्ट में कमी लगती है उस के विषय में क्लास के अपने दोस्तों से सलाह लें. किताब अच्छी तरह पढ़ें, क्योंकि किताब में ही प्रश्नोत्तर छिपे होते हैं.

घर के बुजुर्ग से कोचिंग लें

बच्चों को चाहिए कि घर में दादादादी, नानानानी, मातापिता, चाचाचाची से पढ़ेंलिखें. कहीं कोई दिक्कत आ रही है तो उस सवाल पर उन से पूछें. हर सब्जैक्ट ध्यान से पढ़ें.

एकदूसरे की देखादेखी न करें

यदि आप का कोई दोस्त या सहपाठी किसी प्रतिष्ठित कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग ले रहा है तो उस की देखादेखी न करें, क्योंकि जरूरी नहीं कि महंगी कोचिंग ले कर ही अच्छी पढ़ाई होती है. मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों का उचित मार्गदर्शन करें.

बच्चों को काबिल बनाएं

मातापिता बच्चों को काबिल बनाने के लिए उन्हें उचित संस्कार दें, उन की सही परवरिश करें. बच्चों की हर फरमाइश पूरी करने की कोशिश करें. अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बच्चों से खुल कर चर्चा करें. बच्चों को काबिल बनाने के लिए उन्हें संस्कारी लोगों की काबिलीयत और मेहनत के बारे में बताएं.

स्कूल से मिले नोट्स पढ़ें

स्कूल से मिलने वाले होमवर्क, नोट्स ध्यान से पढ़ कर याद करें. नोट्स खुद ही पढ़ कर तैयार करें.

अपने बल पर जीएं

बच्चों को शुरू से खुद पर निर्भर होने की शिक्षा दें. पढ़ाई के साथ उन के मन में ऐसी भावना जाग्रत करें कि वे पढ़ाई में आगे बढ़ कर अपना कैरियर बनाएं. यदि रिकशे वाले का बेटा आईएएस बन सकता है, तो क्या साधारण स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा बिना कोचिंग लिए आगे नहीं बढ़ सकता?

टैक्नोलौजी के ऐक्सपर्ट

नई टैक्नोलौजी का इस्तेमाल करने में आज के बच्चे पीछे नहीं हैं. कई बार तो टैक्नोलौजी के उपयोग से बच्चे बिगड़ैल भी हो जाते हैं, लेकिन नैट का सही इस्तेमाल कर बच्चा कोचिंग लेने से पीछे हट जाता है. बच्चे, पेरैंट्स और टीचर मिल कर ऐसा रास्ता निकाल सकते हैं कि कोचिंग के भारीभरकम खर्चे से बचा जा सके जो परिवार वाले वहन नहीं कर सकते हैं. कुकुरमुत्तों की तरह उगे ये कोचिंग सैंटर्स मनमाने ढंग से फीस लेते हैं और गारंटी भी नहीं होती कि कोचिंग लेने वाला बच्चा अच्छे अंकों से पास ही होगा. अगर आप अपने घर पर अच्छी तरह पढ़ाई करें, पाठ्यक्रम ध्यान से पढ़ें और टीचर्स से पाठ ध्यान से समझें तो आप को महंगेसस्ते किसी कोचिंग सैंटर की जरूरत नहीं. बिना कोचिंग भी आप अच्छे अंक ला सकते हैं.

बैंक की लाइन में आपको बोर नहीं होने देंगे ये ऐप्स

जब से नोटबंदी की घोषणा हुई है, पूरा भारत बैंको की ओर उमड़ पड़ा है. बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतार का नजारा आम हो चुका है. एटीएम या बैंक की उबाऊ लाइन में खड़े होकर आखिर आप करते क्या हैं. चलिए आपको बताते हैं ऐसे ऐप्स के बारे में जो बैंक या एटीएम की कतार में आपको बोरियत महसूस नहीं होने देंगे.

1. Face Swap

एटीएम की उबाऊ लाइन में अगर खड़े हुए हैं तो थोड़ी मस्ती की जा सकती है. ऐसे में फेस स्वैप एप एक अच्छा विकल्प साबित होगा. अपने दोस्तों की तस्वीरें एडिट की जा सकती हैं. इसमें कई एडिटिंग मोड्स हैं जिनसे चेहरे की अदला-बदली की जा सकती है.

2. Peak- Brain Training

इस एप में 30 से ज्यादा मिनी गेम्स हैं. लॉजिकल रीजनिंग से लेकर टाइम पास करने के लिए ब्रेन गेम्स तक बहुत कुछ मिल जाएगा. अगर कोई स्टूडेंट है, किसी एन्ट्रेंस एक्जाम की तैयारी कर रहा है या फिर सिर्फ ब्रेन गेम्स खेलने में मजा आता है तो उनके लिए ये एप बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है.

3. NexGtv

एटीएम की लाइन में खड़े होना बहुत ही थकान भरा और उबाऊ हो सकता है तो अगर लाइव शो और फिल्में देखने का शौक है तो ये एप डाउनलोड किया जा सकता है. इस एप की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें एक डेटा सेविंग मोड है जो वीडियो स्ट्रीमिंग के समय डेटा बचाता है. साथ ही मिनिमाइज एप विंडो भी है. अगर वीडियो देखते समय आपको कोई और काम करना होता है तो फोन पर वीडियो को मिनिमाइज कर सकते हैं.

4. Elevate – Brain Training

पीक एप की तरह ये एप भी ब्रेन गेम्स देता है. पहेलियां, सवाल, लॉजिक आदि से जुड़े हुए गेम्स जो दिमाग को तेज बनाने में मदद करते हैं. एटीएम लाइन में खड़े होकर अगली बार अगर थोड़ी दिमागी कसरत कर ली जाए तो इसमें हर्ज ही क्या है.

5. Duolingo

ये एप उन लोगों के लिए बेहतर साबित हो सकता है जिन्हें कोई अन्य भाषा सीखनी हो. इस एप की मदद से एक हफ्ते, एक महीने और एक साल तक के कोर्स ले सकते हैं. सबसे अच्छी बात ये है कि इस एप को फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है. अगर कुछ नया करने का सोच रहे हैं तो एटीएम लाइन में खड़े होने पर समय का सही उपयोग कर सकते हैं.

6. Hotstar

इस एप के बारे में तो आप जानते ही होंगे! ये एप फ्री वीडियो, मूवीज और टीवी सीरियल स्ट्रीम करता है. वाईफाई में डाउनलोड की सुविधा और डेटा सेविंग मोड के कारण ये एप काफी लोकप्रिय है. अगर उबाऊ लाइन से छुटकारा पाना है तो ये काफी काम का साबित हो सकता है.

शहीद उधम सिंह

इतिहास केवल जलियांवाला बाग की खूनी होली का ही हाल बताता है, उस के हत्यारे का अंत नहीं लिखता. मगर जो ‘शहीद उधम सिंह’ नाम से परिचित हैं उन के खून में यह नाम सुनते ही एक गरमी का उबाल सा पैदा हो जाता है. लुधियाना शहर में शहीद उधम सिंह नगर कसबे में घूमते हुए पहली बार इसी तरह का रोमांच मुझे भी हो आया था. मेरे सामने वह चेहरा उभर आया, बिलकुल उसी तरह का, जो कभी मेरे दादाजी ने अपनी आपबीती के छोटे से हिस्से में चित्रित किया था. उन की यह आपबीती इस प्रकार थी…

1938 की बात है. उन दिनों मैं और मेरे 2 साथी लंदन में थे. गुरुद्वारा हमारा अस्थायी घर था. लंदन आने वाला करीब हर भारतीय वहां आ कर कुछ दिन ठहरता था. एक दिन सुबह हम ने वहां एक नए भारतीय को देखा. उस की नजरें भी हम पर पड़ीं, लेकिन हमें काम पर जाने की जल्दी थी इसलिए हम ने शाम को उस से मिलने का फैसला किया. शाम को वह खुद ही कमरे के बाहर हमारी प्रतीक्षा कर रहा था. हमें देख कर वह उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़ कर बोला, ‘सत श्री अकाल.’

उस की आवाज में अजीब तरह का खिंचाव था. अभिवादन का जवाब दे कर हम ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. कमीज और तहमत, सिर पर सफेद साफा और पीछे लटकता हुआ तुर्रा. यही उस का पहनावा था. उस के सिर पर केश नहीं थे पर आवाज उस की खास कड़क थी, जो उसे सिख जमींदार घराने का दर्शाती थी. यों पहली नजर में हमें गुंडा लगा था.

‘‘मेरा नाम उधमसिंह है,’’ उस ने बताया. शिष्टाचारवश हम ने बढ़ कर उस से हाथ मिलाया और अपना परिचय दिया.

‘‘कौन सा गांव है, भाई साहब, आप का?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सनाम, बरनाले के पास. आप का?’’

‘‘गिल्लां गांव है, लुधियाने के पास.’’ उस के चेहरे पर उभरी रौनक और गहरी हो गई. वह बोला, ‘‘गिल्लां? नहर के पास वाला न? तब तो हम आसपास के ही हैं,’’ और उस ने बढ़ कर मुझे मजबूत आलिंगन में कस लिया. वतन से दूर एक बेगाने देश में कोई हमवतन और वह भी अपने ही गांव के पास का मिल जाए तो इस प्रकार की अलौकिक खुशी होती है.  यह हमारी उस से पहली मुलाकात थी. इस के बाद वह हमारे बहुत करीब आता गया पर हम सदा उस से दूर रहने की कोशिश करते. हम सुबह काम पर चले जाते और शाम को वापस आते. वह भी इसी तरह करता, पर हम ने उस से कभी उस के धंधे के बारे में पूछने की कोशिश नहीं की. न ही उस ने कभी बताने की इच्छा जाहिर की. हमारा खयाल था कि वह चार सौ बीसी का धंधा करता होगा. उस के अंदर कोई दिलेर दिल भी होगा, इस की कभी हम ने कल्पना भी नहीं की थी.

वह समय निकाल कर शाम को हमारे पास आ बैठता और घंटों इधरउधर की हांकता रहता. उस की बातें अधिकतर गोरों के प्रति रोष से भरी होती थीं. हर समय वह गोरों को भारत से निकालने के स्वप्न देखता रहता. खासतौर पर 2 गोरे उस की आंखों में बहुत खटकते थे. पहला जनरल डायर और दूसरा ओडवायर. उन्हें मारने की कसमें वह कई बार खा चुका था.एक दिन मैं ने उस से पूछा, ‘‘उधमसिंह, भई, अगर तुम्हें गोरे इतने नापसंद हैं, तो तुम यहां आखिर करने क्या आए हो?’’

‘‘अपना असली मकसद पूरा करने.’’   

‘‘कौन सा?’’ हम सब ने एकसाथ पूछा.

‘‘शादी,’’ वह छूटते ही तपाक से बोला.

दिन बीतते गए और उस के साथ हमारे संबंध घनिष्ठ होते गए. इतने घनिष्ठ कि जब हम ने कमरे किराए पर लिए तो उसी मकान में एक कमरा उस ने भी जबरदस्ती किराए पर ले लिया. उस ने इस का कारण बताया, ‘‘तुम से जुदा हो कर मैं रह ही नहीं सकता.’’ अभी भी हम उस के कामधंधे के बारे में अनभिज्ञ थे. एक दिन आखिर मैं ने इस बारे में पूछ ही लिया. तो वह बोला, ‘‘मेरा काम, इनकलाब.’’

मैं हंस पड़ा और बोला, ‘‘वह तो तुम्हारी बातों और कारनामों से ही लगता है. अच्छा भई इनकलाबी, तेरा गुरु कौन है?’’

‘‘उस ने बताया भगत सिंह.’’ जैसेजैसे समय बीतता गया हम उस के प्रति अधिकाधिक शक्की होते गए. यह बात निराली होती जा रही थी. उस समय 1939 चल रहा था. एक दिन सिरदर्द के कारण मैं औफिस से जल्दी घर लौट आया. आ कर चाय बनाई और पीने ही लगा था कि तभी खटखट सीढि़यां चढ़ता हुआ वह अंदर आ गया.

‘‘आ, उधमा, चाय पी,’’ मैं ने कहा तो वह बोला ‘‘नहीं, नहीं, बस पी. मैं कुछ दिन पहले यहां रखी एक चीज लेने आया हूं. ले सकता हूं?’’

‘‘जरूर भई, अगर तेरी कोई चीज है तो जरूर ले  सकता है.’’ मेरे कमरे में एक आला था जो न जाने कब से कीलें ठोंक कर बंद किया हुआ था. मैं ने कभी उस पर ध्यान भी नहीं दिया था. उस ने जेब से एक पेचकश निकाला और फट्टियों के पेच खोल दिए. फिर बीच में से एक रिवाल्वर निकाल कर जेब में डाला और फट्टियों को उसी तरह ठोंक कर वह मेरे सामने आ खड़ा हुआ. फिर उस ने चाय की मांग की. मैं ने उस के लिए चाय बनाई और खुद इस उधेड़बुन में लग गया कि कैसा खतरनाक

आदमी है यह. अगर पुलिस यहां आ कर रिवाल्वर ढूंढ़ लेती तो मुझे बेकार में मुसीबत उठानी पड़ती.

मैं ने पूछा, ‘‘कब रख गया था भई, तू इसे यहां?’’

‘‘यार, सद्दा, अब तुम से क्या छिपाना. गोरी सरकार न जाने क्यों मुझ से डरती है? मेरा नाम पुलिस ने दस नंबरियों की लिस्ट में लिख रखा है. इसीलिए मुझे वापस अपने मुल्क जाने की भी इजाजत नहीं है. पिछले कुछ दिनों से तो पुलिस की मुझ पर खास नजर है. इसीलिए मैं इसे यहां रख गया था.’’ फिर उस की आवाज में वही कड़क पैदा हो गई, ‘‘क्या तुम बहादुर हिंदुस्तानी नहीं हो? क्या तुम उस देश की औलाद नहीं हो, जहां भगत सिंह पैदा हुआ?’’

‘‘जानते हो एक बार जब वह छोटा था तो उस से किसी ने पूछा था, ‘तुम ने अपने खेत में क्या बोया है, भागू?’ वह नन्हा सा बालक बड़े जोश में बोला था, ‘बंदूकें,’ तुम भी उसी धरती के बेटे हो. देश के लिए अपनी कुरबानी से डरते हो? और क्या तुम्हें मुझ पर अब जरा भी विश्वास नहीं? अगर यही बात है तो, जाओ, तुम्हें मैं कुछ नहीं कहूंगा. जाओ, तुम्हें इजाजत है. जा कर पुलिस को बता दो कि मेरे पास हथियार है. वह आ कर मुझे पकड़ लेगी. सद्दा, मैं तुम से मुहब्बत करता हूं. अगर तुम्हें इस से खुशी होगी तो मैं उमरकैद भी झेल लूंगा.’’ इतना कह कर वह चुप हो गया और मुझ पर होने वाली प्रतिक्रिया देखने लगा. मगर मैं आंखें झुकाए बुत बना बैठा रहा. थोड़ी देर बाद वह उठा और तेजी से बाहर चला गया. उस दिन पहली बार मैं ने जाना कि उस में देश के प्रति प्रेम कितना कूटकूट कर भरा हुआ था. अब मेरे दिल में उस के लिए प्यार और श्रद्धा थी. बातों ही बातों में मैं ने एक दिन उस से कहा, ‘‘उधमसिंह, तुम अगर देश को आजाद करवाना चाहते हो तो तुम्हें भारत में रह कर ही कुछ करना चाहिए. यहां तो कुछ भी फर्क नहीं पड़ सकता.’’

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर गम की तसवीर उभर आई, ‘‘हां,’’ वह लंबी सांस छोड़ता हुआ बोला, ‘‘मेरे देश के हजारों निहत्थे भाइयों को डायर और ओडवायर ने जलियांवाला बाग में गोलियों से भुनवा दिया था. उन में मेरा भाई और बापू भी…’’ उस की आंखें भर आईं और गला रुंध गया.

फिर धीरेधीरे उस ने अपने बचपन की वह घटना सुनाई जिस से उसे उन की मौत का पता चला था. 13 अप्रैल, 1919 यानी बैसाखी का दिन था. जलियांवाला बाग में अनजान, निहत्थे, परवाने इकट्ठे हो कर सभा कर रहे थे. गुलामी की दास्तां सुनने के लिए बूढ़े, बच्चे और स्त्रियां वहां इकट्ठी हुई थीं. ब्रिटिश सरकार इस अहिंसक सभा की ताकत देख चुकी थी. एक गांधी के साथ हजारों गांधी बनते देख वह बौखला उठी. उस की चालाक राजनीति भी कांप गई. इसलिए इस से निबटने का अधिकार सरकार ने फौजी जनरलों को दिया और उन जनरलों को ताकत के घमंड में इस बला से निबटने का एक ही तरीका सूझा, वह था गोलियां चलाने का. उन के हुक्म से ही मशीनगनों का घेरा बाग के चारों तरफ लगा दिया गया. इन घेरा डालने वालों में वे नमकहराम भी थे जो अपनी नौकरी के लिए देश को आजाद होता नहीं देखना चाहते थे. इस के बाद की खूनी होली की कहानी इतिहास के कई पन्नों पर काली स्याही से लिखी हुई है. यह कहानी कुछ ही दिनों में बड़ेबड़े शहरों से दूरदराज के गांवों में जा पहुंची. लाशों को पहचान कर अपने पतियों, भाइयों, बहनों और बेटों को जान लेने वाले तो थोड़े ही थे. अधिकांश लोगों ने तो जो घर नहीं पहुंचे उन्हें भी मारा गया समझ लिया.

संगरूर जिले का एक गांव है सनाम. एक घर में गांव के वृद्धवृद्धाओं का रोना सुनाईर् दे रहा था. उस का पति और बेटा भी जलियांवाला बाग में गए थे और आज उन्हें गए तीसरा दिन था. तभी एक छोटा सा बालक भागता हुआ आ कर अपनी मां की गोद में दुबक गया. मां और इतने लोगों को रोता देख बालक चाहे कुछ नहीं समझा था, पर इतना जरूर समझ गया कि लोग ऐसे किसी के मरने पर ही रोते हैं. अबोध बालक कुछ बड़ा हुआ और स्कूल जाने लगा. एक दिन सुबह बच्चों की एक टोली तख्तीबस्ता संभाले, बातें करती, उछलतीकूदती स्कूल जा रही थी. उस में यह बालक भी था. जलियांवाला बाग की खूनी होली को 3 वर्ष बीत चुके थे. मौत के गम धुंधले पड़ चुके थे. तभी एक बालक ने उस से पूछा, ‘‘उधमा, तेरा बापू और वीर कहां गए हैं?’’

बालक बिना सोचे ही बोला, ‘‘परदेश को.’’

‘‘तुझे किस ने कहा, ओए?’’

‘‘मां ने. क्यों?’’

‘‘मेरी मां तो रात बापू से कह रही थी, ‘बेचारे उधम के बापू और वीर को मरे 3 साल हो गए. गोरे बड़े बुरे हैं. जब उधम जवान होगा तो वह जरूर उन की मौत का बदला लेगा.’ तेरे बापू और वीर को, उधमा, गोरों ने ही मार दिया है. है न?’’

छोटे से उधम की आंखों के आगे बचपन का वह दिन नाच उठा जो उस ने मां की गोद में दुबक कर देखा था. उसे थोड़ाथोड़ा विश्वास हो गया कि राणा ठीक ही कह रहा होगा. अपने बाप और भाई की मौत की कहानी सुनते ही वह ताव खा गया. उसने सोचा कि वह मां से सचाई जानेगा और अगर यह सच है तो वह अंगरेजों से बदला लेगा. वह लगभग दौड़ता हुआ घर पहुंचा और एक ही सांस में मां से कई सवाल पूछ गया, ‘‘मां, बापू और वीर को गोरों ने मार दिया था क्या? तू तो कहती थी परदेश गए हैं. आज राणा ने मुझे सबकुछ बता दिया.’’

मां अपने बेटे को लौटता देख पहले ही हैरान थी. अब दबी हुई बात उस के मुंह से सुन सकते की हालत में आ गई. पति और जवान बेटे की याद कर पुराना घाव फूट निकला. उस की आंखों में आंसू चमक आए. काम छोड़ उस ने अपने बेटे को छाती से लगा लिया और फफकफफक कर रोने लगी. ‘‘मां, तू रो मत. मैं ला कर उन गोरों को अपने खेत की क्यारियों में गाड़ दूंगा. तू बता, वे कौन थे.’’ ‘कौन’ के बारे में बूढ़ी ने लोगों से यही सुना था कि वह ‘डैर’ था, कोईर् बड़ा अफसर और एक उस का साथी था. यही उस ने उधम को भी बता दिया. उधम ने भी सोच लिया कि वह बड़ा हो कर जरूर बदला लेगा.

जलियांवाला बाग की घटना से सारे देश में रोष की लहर फैल गई थी. ठाकुर बाबू ने ‘सर’ की उपाधि त्याग दी. बड़ेबड़े नेताओं के भाषण आग में घी का काम करने लगे. ये सब देख कर गोरी सरकार डर गई. लोगों को शांत करने के लिए उस ने जनरल डायर और ओडवायर को उन के पदों से हटा कर इंगलैंड भेज दिया. अपनी कहानी के अंत में उधम सिंह ने बताया कि वह गदर पार्टी का मैंबर बन गया था. उसी के सहारे वह अमेरिका गया और फिर यहां आ गया. एक दिन शाम को हम सब चाय पी रहे थे. वह भी साथ था. प्याला खाली कर के वह मेज पर रखता हुआ बोला, ‘‘अच्छा दोस्तो, आज शायद यह तुम लोगों के साथ मेरी आखिरी चाय है. यदि कोई गलती हुई हो तो माफ कर देना,’’ फिर उस ने जेब से बटुआ निकाला और मेरे एक साथी को कुछ पैसे दिए. शायद कभी उधार लिए होंगे, पर मेरा ध्यान उस के नाम कार्ड पर गया. उस पर लिखा था, ‘एमएसए.’ मैं बड़ा हैरान हुआ.

‘‘यह क्या, भाई, उधम?’’ मैं ने कार्ड की तरफ इशारा किया.

‘‘मोहम्मद सिंह ‘आजाद’,’’ वह बोला और जोर से हंस दिया. उसी दिन शाम को हमारा प्रोग्राम कैंस्टन हौल जाने का बन गया. उस दिन वहां भारत में उठ रहे आजादी के इनकलाब के बारे में मीटिंग होनी थी. हम अपनी सीटों पर बैठे थे. मीटिंग अभी शुरू भी नहीं हुईर् थी कि तभी मेरे साथी ने इशारा किया. सामने की 2 पंक्तियां छोड़ कर एक किनारे पर ‘वह’ बैठा था.

‘‘अरे, यह तो कहीं जा रहा था,’’ साथी बोला.

‘‘इसे कहां जाना है. इस की बातों और सच में बड़ा फर्क है,’’ दूसरे साथी ने कहा और दोनों हंस दिए. मीटिंग शुरू हो चुकी थी. सामने मंच पर कई लोगों के बीच जनरल डायर बैठा था. उसी के साथ उस के दाईं ओर ओडवायर बैठा था. ये दोनों ही उधम के असली शिकार थे. वह कहता था कि इन्होंने हजारों निहत्थों… जलियांवाला बाग… मेरा खून गरम हो कर तेजी से नाडि़यों में चक्कर काटने लगा. तभी वह उठा और बाहर चला गया. कुछ देर बाद फिर वह अंदर आ गया और धीमी चाल चलता हुआ मंच की ओर चढ़ चला. उस समय डायर बोल रहा था, ‘‘दंगे करने वाले हिंदुस्तानी बिलकुल पागल हैं…’’

सब एकटक भाषण सुन रहे थे. तभी फुरती से उधम ने अपनी जेब से हाथ निकाला. मैं इतना ही देख पाया कि उस के हाथ में वही रिवाल्वर था. इस के बाद ‘ठांय…ठांय…ठांय…’ 3 गोलियों की आवाज हुई. सारा हौल कांप उठा. मंच पर बैठे डायर का सिर छाती पर आ गिरा. ओडवायर भी एक ओर लुढ़क गया.

‘‘तो उस ने अपना काम पूरा कर दिया. अपने बाप और भाई की मौत का बदला, हजारों निहत्थों की मौत का बदला…’ कुछ ही क्षण में उस के साथ बिताए सारे क्षण मेरे सामने उभरते चले गए. गोली मार कर वह भागा नहीं, रिवाल्वर थामे उसी प्रकार खड़ा रहा. थोड़ी देर में ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और हौल का घेरा डाल लिया. सुबह अखबारों में छपा था, ‘एक भारतीय युवक मोहम्मद सिंह ‘आजाद’ ने जनरल डायर और ओडवायर पर गोलियां चलाईं. उस समय वे कैंग्सटन हौल में भारत में उभरी स्थिति पर भाषण दे रही थे. जनरल डायर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई. ओडवायर गोलियों से हताहत हो गए हैं.’ उस पर मुकदमा चला और उसे सजा ए मौत मिली.

मैं बिस्तर पर पड़ा हुआ था. काली रात और भी स्याह होती जा रही थी. तभी उस में एक रोशनी उभर आई और एक चेहरे में बदल गई. वह था उधम का चेहरा… देश का बेटा या गुंडा, इनकलाबी या चारसौबीस… उस की याद के कई पन्ने मेरे सामने पलटने लगे. मगर उस का चेहरा मुसकरा रहा था. अदालत के कटघरे में खड़ा वह अपनी वकालत कर रहा था.

‘‘तुम ने गोली क्यों चलाई?’’ जज ने पूछा.

वह कड़क कर बोला, ‘‘हजारों बेगुनाहों और निहत्थों से भी क्या किसी ने ऐसे पूछा था?’’

‘‘जानते हो तुम्हारे जुर्म की सजा फांसी होगी?’’

‘‘हां, बहुत अच्छी तरह जानता हूं,’’ तुम्हारी अदालत में एक अंगरेज को मारने की सजा मौत है और हजारों हिंदुस्तानियों को मारने का इनाम शाबाशी.’’

‘‘उन्होंने सरकार का हुक्म पूरा किया था, यह उन का कर्तव्य था. हमारी अदालत तुम्हें फांसी की सजा देगी.’’

‘‘मौत का डरावा मुझे मत दीजिए, जजसाहब. आप जो चाहें कर सकते हैं. मैं ने भी अपने देश का एक काम पूरा किया है जो मेरा कर्तव्य था. मेरी पार्टी की अदालत ने भी उन्हें गोलियों की सजा दी थी. सजा देने का यह काम मुझे सौंपा गया था. मगर मुझे दुख है कि ओडवायर छूट गया. फिर भी कोई बात नहीं. मेरा कोईर् और भाई उसे भी पार लगा देगा. उस से कहना कि तैयार रहे.’’ जज ने कलम उठा कर सजा का फौर्म भरा और मेज पर कलम मार कर निब तोड़ दी. तभी मैं ने उसे सींखचों में खड़ा देखा. मैं उस से बात कर रहा था.

‘‘यह तुम ने क्या किया, उधमा?’’

‘‘मैं ने अपने देशवासियों की निर्मम मौत का बदला लिया है.’’

‘‘मगर तुम तो यहां शादी करने आए थे?’’

वह जोर से हंसा, ‘‘तुम्हें बरात में नहीं बुलाया, सद्दा, इसलिए. तुम्हें पता नहीं मेरी शादी तो हो गई, अब तो कुछ दिन में मेरी सुहागरात आने वाली है. तुम्हें शादी में बुला नहीं सका.’’ मेरी आंखों में आंसू उभर आए. तभी समय पूरा होने की घंटी खनखना गई. अपने आंसू छिपाने के लिए मैं लौट पड़ा. वह बोला, ‘‘अच्छा, अलविदा, सद्दा. देखो, मेरे लिए रोना नहीं,’’ और वह लय के साथ कुछ गुनगुनाने लगा.

आज उस लय को याद करता हूं तो लगता है, बिलकुल इन शब्दों की तान थीं, ‘मेरा रंग दे बसंती चोला…’

अश्विन ने की कपिल की बराबरी, बनाया नया रिकॉर्ड

भारत और इंग्लैंड के बीच मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेले जा रहे चौथे टेस्ट के दूसरी दिन बेन स्टोक्स का विकेट चटकाने के साथ ही आर अश्विन ने एक और बड़े रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है.

स्टोक्स को कप्तान कोहली के हाथों कैच आउट करवाने के साथ ही अश्विन ने टेस्ट क्रिकेट में अपना 23वां 5 विकेट हॉल हासिल कर लिया है. 23वीं बार एक पारी में 5 विकेट लेने के साथ ही उन्होंने कपिल देव के 23 बार एक पारी में 5 विकेट लेने के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है. अश्विन ने महज 43वें टेस्ट में ये मकाम हासिल कर लिया. जबकि कपिल देव ने 131 टेस्ट की 227 पारियों में ये कारनामा किया था.

अब सबसे ज्यादा बार एक पारी में 5 विकेट लेने वाले भारतियों में अश्विन से आगे सिर्फ हरभजन सिंह और अनिल कुंबले हैं. हरभजन ने 103 टेस्ट मुकाबलों में 25 बार ये कारनामा किया है. जबकि कुंबले ने 132 टेस्ट में 35 बार एक पारी में 5 विकेट अपने नाम किए हैं.

इतना ही नहीं अश्विन अपने 44वें टेस्ट से पहले सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बन गए हैं. 43वें टेस्ट में अश्विन के नाम 24.6 के औसत से 240 विकेट शामिल हो गए हैं. जो कि 44 टेस्ट पहले किसी भी गेंदबाज द्वारा सर्वाधिक हैं.

इससे पहले 44वें टेस्ट से पहले डेनिस लिली के नाम 222 विकेट शुमार थे. 44 टेस्ट से पहले वकार यूनुस के नाम भी 222 विकेट ही थे. गेंदबाजी के सबसे बड़े स्टार मुरलीथरन भी 44 टेस्ट से पहले महज 210 विकेट ही ले पाए थे. अश्विन ने अब इस लिस्ट को टॉप कर लिया है, उनसे आगे 44 टेस्ट से पहले विकेटों के मामले में कोई भी नहीं है.

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