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गरमा गरम सीन में कोई हर्ज नहीं : सैयामी खेर

बचपन से ही ऐक्टिंग करने का शौक रखने वाली सैयामी खेर नासिक की रहने वाली हैं. उन्होंने तेलुगु फिल्मों से अपना ऐक्टिंग कैरियर शुरू किया और ‘मिर्ज्या’ उन की पहली हिंदी फिल्म है. सैयामी खेर की दादी उषाकिरण पुराने जमाने की हीरोइन रह चुकी हैं. उन की बूआ तन्वी आजमी हैं. हालांकि उन के पिता एक मौडल रह चुके हैं और उन की मां ‘मिस इंडिया’ रह चुकी हैं, पर वे सब सैयामी खेर को फिल्मी चकाचौंध से दूर रखना चाहते थे, इसलिए वे नासिक में रहे, लेकिन सैयामी को अदाकारी विरासत में मिली है.

खेलों में दिलचस्पी रखने वाली सैयामी खेर को पता नहीं था कि वे हिंदी फिल्मों में इतने बडे़ बैनर तले काम करेंगी. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

आप का फिल्मों में कैसे आना हुआ?

मैं नासिक की रहने वाली हूं. मुझे पहाड़ों पर जाना और क्रिकेट खेलना पसंद था. मेरी पढ़ाईलिखाई मुंबई में हुई. कालेज के दौरान मैं हमेशा थिएटर में भी भाग लेती थी. इस के अलावा नादिरा बब्बर के साथ ‘एकजुट’ थिएटर ग्रुप में भी काम किया. मैं ने बहुत सारे इश्तिहारों में भी काम किया. इस तरह मैं ऐक्टिंग की तरफ मुड़ी. मुझे पहले तेलुगु फिल्म मिली और अब हिंदी.

आप को हिंदी फिल्म ‘मिर्ज्या’ का औफर कैसे मिला?

इस फिल्म के आडिशन देने के 6 महीने बाद पता चला कि मुझे यह फिल्म मिली है. इस दौरान डायरैक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने मुझे दिल्ली में 3 महीने की घुड़सवारी सीखने के लिए भेजा था.

हर्षवर्धन कपूर के साथ काम करने का तजरबा कैसा रहा?

बहुत अच्छा था. हम दोनों की कैमिस्ट्री अच्छी रही. हर्षवर्धन ने मुझे हर सीन को करने में सहज बनाया.

इस फिल्म में किस सीन को फिल्माना सब से ज्यादा मुश्किल था?

इस फिल्म की  शूटिंग राजस्थान और लद्दाख में हुई. दोनों ही जगह की आबोहवा बहुत अलग थी. एक जगह तो मुझे बर्फ के पानी में उतर कर जाना पड़ा. वह सीन मेरे लिए बहुत ही मुश्किल था, लेकिन मैं ने किया.

फिल्मों में गरमा गरम सीन करने में आप कितना सहज होती हैं?

अगर वे सीन फिल्म का हिस्सा हैं, स्क्रिप्ट की मांग हैं, तो करने में कोई हर्ज नहीं. लेकिन जरूरत के बिना मैं कोई गरमागरम सीन नहीं करती.

खाली समय में आप क्या करना पसंद करती हैं?

मुझे म्यूजिक और स्पोर्ट्स का काफी शौक है. समय मिलने पर मैं लता मंगेशकर, किशोर कुमार, आशा भोंसले वगैरह गायकों के पुराने गीत सुनती हूं. इस के अलावा मैं सुबहसवेरे दौड़ती हूं. मेरी कोशिश रहती है कि मैं हर दिन 20 किलोमीटर दौड़ लूं. मैं कई बार मुंबई मैराथन भी दौड़ चुकी हूं. ऐक्टिंग के अलावा मुझे खेलना बहुत पसंद है. मैं सचिन तेंदुलकर की फैन हूं.

आप का ड्रीम प्रोजैक्ट क्या है?

मुझे राकेश ओमप्रकाश मेहरा के डायरैक्शन में बनी कोई फिल्म, जिस में अमिताभ बच्चन हों, करने की इच्छा है. इस के अलावा मैं हमेशा कैमरे के सामने रहना चाहती हूं.

आप की कौन सी फिल्में रुपहले परदे पर आ रही हैं?

अभी मैं मणिरत्नम की तेलुगु फिल्म में काम करने वाली हूं.         

अब तो आंखें खोलो

सरकार नोटबंदी के बाद लगातार कहती जा रही है कि यह परेशानी केवल कुछ दिन की है. यह ‘केवल कुछ दिन’ क्या होता है और क्या किसी भी सरकार को केवल कुछ दिन के लिए देश की सारी जनता के साथ खेलने का हुक्म देने का हक है? सिर्फ इसलिए कि मई, 2014 में एक व्यक्ति को लोक सभा चुनावों में बहुमत दे दिया गया था? 25 जून, 1975 की तरह केवल कुछ दिन अनुशासन के नाम पर आपातस्थिति घोषित करने का मौलिक हक क्या हर किसी सरकार के पास है?

सरकारों के पास बहुत कुछ कराने और करने के हक हैं क्योंकि उन के पास फौज, पुलिस और सरकारी नौकरों की एक बड़ी जमात है और हर नागरिक असल में एकदम अकेला होता है और अकेले उस के घर के किसी निष्ठुर, मनमानी करने वाले शासक से निबटने की हिम्मत नहीं होती. अकेला नागरिक तो इतना भयभीत होता है कि वह गली के गुंडों से अपनी कमसिन बेटी की रक्षा नहीं कर पाता, पड़ोसी के भूंकते कुत्तों को चुप नहीं करा सकता.

केवल कुछ दिन किसी को जेल में बंद कर देना पुलिस का बाएं हाथ का काम है जबकि देश का संविधान इस के सख्त खिलाफ है. केवल कुछ दिन के लिए बिजली, पानी काट देना आम है. केवल कुछ दिन के लिए सड़कें बंद कर के उन्हें खोद डालना या उन पर कोई धार्मिक उत्सव करा देना भी आम है, पर क्या ये सरकार के नैतिक हकों में से हैं? केवल कुछ दिन लाइनों में लग कर अपनी ही गाढ़ी कमाई के नए नोट ले लेने की कैद काटना सिर्फ इसलिए कि इस से कुछ जो आराम कर रहे हैं व कुछ अमीर कष्ट में होंगे और उन की संपत्ति धुल कर राख बन जाएगी, क्या बुद्धिमानी का काम है?

बस कुछ दिन बाद अच्छे दिन आएंगे यह गणित आज भक्त लोग सोच नहीं रहे और इसलिए तुगलकी फैसले पर बोल नहीं रहे वरना यह पक्का है कि लखनऊ के हजरतगंज में तीसरी मंजिल में 2 कमरों के मकान में रहने वाले के दिन अच्छे नहीं आएंगे अगर दिल्ली की पौश कालोनी सैनिक फार्म के किसी सेठ के क्व10 करोड़ के प्लौट बेकार हो भी जाएं.

देश को जो काला धन घुन की तरह खा रहा है, शेर की तरह नहीं. शेर को तो गोली से मार कर खुद को सुरक्षित किया जा सकता है पर घुन को मारने के लिए गेहूं या आटे में जहर मिला कर उसे आदमी को खाने को कहा जाएगा तो घुन चाहे मरे या न मरे खाने वाला अवश्य मरेगा.

सरकार ने कहा है कि यह परेशानी लेबर पेन की तरह है. इस के बाद बच्चे पैदा होंगे तो खुशी होगी. हां, यह लेबर पेन है पर बलात्कार के बाद ठहरे गर्भ के कारण, जिस का गर्भपात नहीं होने दिया. हां, बच्चा पैदा होगा, पर उस का पिता कौन है यह पिता को भी पता नहीं होगा और मां उसे सड़क पर छोड़ जाएगी, क्योंकि यह बच्चा इच्छा से नहीं बल्कि जबरन पैदा हुआ है.

सरकारी बलात्कार हुआ है जनता पर. ज्यादा से ज्यादा उसे उस नियोग से पैदा हुए बच्चे का दर्जा दिया जा सकता है जिस का वर्णन रामायण, महाभारत में खुले शब्दों में है और जिस के अभिशाप को दोनों महाकाव्यों के पात्रों ने जीवन भर ढोया है और रामायण, महाभारत इन पात्रों की कुंठा का पर्याप्त वर्णन है.

इस तरह के अच्छे दिन कभी खुशी नहीं देंगे, जिन का जन्म झूठे वादों और देशव्यापी महामारी से हुआ है. यह वह बच्चा होगा जिस पर जन्मजात ठप्पा लगा होगा. कतारों में लगे लोग ही नहीं वे लोग भी जिन की दराजों, अलमारियों, गुदड़ों से वर्षों तक पुराने नोट समयसमय पर निकलते रहेंगे और जो सरकारी धौंस पट्टी के नतीजे की वजह से बेकार हो जाएंगे. वे हर जने को उस बलात्कार के दर्द की याद दिलाएंगे जो किसी भी औरत ने बस कुछ देर के लिए सहा होगा. पर दिखावा जीवन भर खलता रहता है.

प्यार के बदले सैक्स नहीं

प्यार एक गहरा और खुशनुमा एहसास है. जब किसी से प्यार होने लगता है तो हम शुरुआत में अकसर उस की सकारात्मक चीजें ही देखते हैं. उस समय हमें अपना अच्छाबुरा कुछ समझ नहीं आता और यही वह खुमारी होती है जब हम प्रेमी के प्यार के बदले में उस की हर जायजनाजायज मांग भी पूरी करने लगते हैं. लेकिन कुछ पल ठहर कर एक बार सोच लें कि कहीं आप प्रेमी को प्यार के बदले अपना शरीर तो नहीं सौंप रही हैं. अगर ऐसा है तो संभल जाइए, क्योंकि यह सही नहीं है. यह वक्त सिर्फ प्यार करने का है, सैक्स तो शादी के बाद भी हो सकता है. इस में आखिर इतना उतावलापन और जल्दबाजी क्यों?

प्यार को प्यार ही रहने दें

प्यार एक खूबसूरत एहसास है, इसे दिल से महसूस करें न कि शरीर से. एकदूसरे के साथ समय बिताएं, एकदूसरे को समझें, प्यारभरी बातें करें, भविष्य के सपने बुनें, एकदूसरे की केयर करें, अपनेपन का एहसास साथी के मन में जगाएं, उसे विश्वास दिलाएं कि आप उस के लिए एकदम सही जीवनसाथी साबित होंगे. अपने कैरियर पर ध्यान दें. खुद खुश रहें और साथी को भी खुश रखें. यह वक्त बस यही करने का है बाकी जो भावनाएं हैं उन्हें शादी के बाद के लिए बचा कर रखें.

प्यार में आकर्षण बना रहेगा

अगर आप किसी से प्यार करती हैं और सैक्स नहीं किया है तो सैक्स को ले कर चाह और एक आकर्षण बना रहने के कारण साथी के प्रति खिंचाव हमेशा बना रहेगा, लेकिन एक बार सैक्स हो जाने के बाद कोई नयापन नहीं रहेगा और वह आकर्षण जो आप को एकदूसरे के प्रति खींचता था, खत्म हो जाएगा.

अपराधबोध नहीं होगा

एक बार संभोग करने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता. कई बार बाद में पता चलता है कि प्रेमी आप के लिए सही नहीं है तब वक्त से पहले संबंध बना लेने का अपराधबोध होता है. इसलिए जरूरी है कि जब तक पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाएं तब तक संबंध न बनाएं.

उत्सुकता बनी रहेगी

जब कोई भी काम समय पर करते हैं तो उस का आनंद ही अलग होता है, लेकिन जब आप सैक्स शादी से पहले ही कर लेते हैं तो इसे ले कर कोई उत्सुकता नहीं रहती. यदि सैक्स न करने से आप की उत्सुकता बनी रहती है तो बेहतर है इसे शादी तक न किया जाए.

यौन रोगों से बचे रहेंगे

सैक्स के प्रति लापरवाही यौन रोग होने का खतरा काफी हद तक बढ़ा देती है. उस समय आप की प्राथमिकताएं शारीरिक आकांक्षाओं को पूरा करना होता है, लेकिन सैक्स करते समय किनकिन सावधानियों का खयाल रखना चाहिए यह बात आप सोचते नहीं हैं और गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं.

सच्चे प्यार में सैक्स का कोई मतलब नहीं

सच्चा प्यार किसी को देखते ही नहीं हो जाता, यह एकदूसरे को जानने और समझने के बाद होता है. सच्चे प्यार में कोई जल्दबाजी नहीं होती, इस में ठहराव होता है. एकदूसरे की आपसी अंडरस्टैंडिंग होती है, एकदूसरे पर भरोसा होता है, एकदूसरे की कद्र होती है. सच्चा प्यार हमेशा के लिए होता है. इस में प्रेमी एकदूसरे से दिल की गहराइयों से जुड़े होते हैं. एकदूसरे के प्रति अपनीअपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है इसलिए उन्हें पता होता है कि सैक्स का सही समय शादी के बाद ही है और ऐसा करने के लिए वे एकदूसरे पर जोर भी नहीं डालते, क्योंकि इस के लिए इंतजार करना भी उन के इसी सच्चे प्यार का एक अहम हिस्सा होता है.

प्रेमी की पहचान करने का सही वक्त

यदि प्रेमी बारबार आप से शारीरिक संबंध बनाने पर जोर दे रहा है तो इस का मतलब उसे आप से ज्यादा इंट्रस्ट संबंध बनाने में है. उसे आप की भावनाओं का खयाल रखते हुए शादी तक इस चीज के लिए सब्र रखना चाहिए, लेकिन अगर वह ऐसा नहीं कर पा रहा है तो या तो उस की नीयत में खोट है या फिर वह आप का साथ निभाने के काबिल ही नहीं है.

सैक्स के नुकसान

बोरियत हो जाएगी

कुछ लोगों के लिए सैक्स ही सबकुछ होता है और जब उन्हें उस की पूर्ति हो जाती है तो उन की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और फिर उन्हें प्रेमिका में कोई रुचि नहीं रहती. उन्हें उस के साथ समय बिताने, घूमने, हंसीमजाक करने में बोरियत लगने लगती है. ऐसे में रिश्ते का लंबे समय तक खिंच पाना मुश्किल हो जाता है.

प्रैग्नैंट हो गईं तो मुश्किल

बाजार में कई तरह के गर्भनिरोधक उपलब्ध हैं, लेकिन कई बार वे भी पूरी तरह से सक्षम नहीं होते. कई बार आप को पता भी नहीं चलता कि आप गर्भवती हैं और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इस के बाद मानसिक परेशानी का ऐसा दौर शुरू होता है जो आप को अंदर तक तोड़ कर रख देता है.

शादी न हुई तो दिक्कत

आज सारी परिस्थितियां आप के पक्ष में हैं और आप को लग रहा है कि आप के प्रेमी से ही आप की शादी होगी, लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती, हो सकता है कल परिस्थितियां कुछ और हों. आप दोनों की किन्हीं कारणों से शादी न हो पाए, तो फिर क्या करेंगी?

जिस के साथ आप की शादी होगी अगर उस को आप के शादी से पहले के संबंधों के बारे में पता चल गया तो जिंदगी दूभर हो जाएगी या फिर हमेशा आप डरती रहेंगी कि कहीं यह बात खुल गई तो? ऐसे में आप शादी के बाद के खूबसूरत पलों को ढंग से ऐंजौय नहीं कर पाएंगी.

रिश्ते से बाहर आना मुश्किल

अगर आप अपने बौयफ्रैंड के साथ बिना संबंध बनाए डेट कर रहे हैं और आप को लगता है कि आप दोनों इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में सहमत नहीं हैं तो रिश्ता खत्म करना आप के लिए काफी आसान होता है, लेकिन एक बार शारीरिक संबंध बन जाने के बाद उस रिश्ते से बाहर आना भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर बहुत कठिन हो जाता है.

मलाल न हो

आप जिस व्यक्ति के साथ संबंध बना रही हैं वह आप के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होना चाहिए. केवल शारीरिक जरूरतें पूरी करने के लिए संबंध बनाना सही नहीं है.

ब्लैकमेलिंग का शिकार न हों

कई बार देखने में आता है कि जिस पर हम सब से ज्यादा भरोसा करते हैं वही हमारा विश्वास तोड़ता है. आएदिन अखबार ऐसी सुर्खियों से भरे रहते हैं कि प्यार करने के बाद सैक्स किया, फिर धोखा दिया. अकसर प्रेमी इस तरह की वारदात को अंजाम देते हैं इसलिए अगर बौयफ्रैंड धोखेबाज निकला और उस ने आप का कोई वीडियो बना लिया और फिर इस के जरिए आप को ब्लैकमेल करने लगा तो फिर क्या होगा?

माना कि आप का बौयफ्रैंड ऐसा नहीं है पर यह काम उस का कोई दोस्त या कोई अनजान भी तो कर सकता है, तब क्या करेंगी? किस से मदद मांगेंगी? इसलिए ऐसा काम करना ही क्यों, जिसे करने के बाद परेशानी भुगतनी पड़े. इसलिए तमाम बातों को ध्यान में रख कर ही आगे कदम बढ़ाएं अन्यथा ताउम्र इस का दंश झेलना पड़ेगा.      

सैक्स ही नहीं, प्यार जताने के और भी हैं तरीके

‘लव यू डार्लिंग’, ‘मिस यू माई लव’ यह तो आज के युवा अपनी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से कई बार कहते हैं, लेकिन जब अपना प्यार जताने की बात आती है तो उन्हें एकमात्र तरीका सूझता है सैक्स, क्योंकि वे नहीं जानते कि सैक्स के अलावा भी प्यार जताने के हजार तरीके हैं.

माना कि प्यार अंतरंग होता है, लेकिन इस का मतलब सिर्फ यौन संबंध बनाना ही नहीं होता. यदि आप अपने लवर की आंखों में देखते ही सारी दुनिया भूल जाते हैं, उस का आप के नजदीक होना ही आप की सारी दुनिया है और आप के सारे दुखदर्द की दवा भी वही है तो आप उस से प्यार करते हैं, लेकिन यहां सैक्स बिलकुल नहीं है.

कोई भी रिश्ता बिना प्यार के आगे नहीं बढ़ता. किसी भी रिश्ते में प्यार करना और उसे जताना दोनों महत्त्वपूर्ण हैं और उसे जताने के भी अलगअलग तरीके हैं. यदि आप अपने बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड को प्यार करते हैं, लेकिन जताना नहीं आता तो आप का वह प्यार आप के बौयफ्रैंड तक कैसे पहुंचेगा? इसलिए प्यार को बयां करने के लिए सिर्फ ‘आई लव यू’ या ‘मिस यू’ कहना ही काफी नहीं, आप को पार्टनर से अपना प्यार जाहिर करना होगा, जताना होगा.

आप दिलों का मिलाप कर के भी अपने प्यार को जता सकते हैं, अपने रिश्ते को मजबूत और लौंग लास्टिंग बना सकते हैं. आप ऐसा कुछ करें कि आप का पार्टनर आप के प्यार को महसूस कर सके.  आइए, जानते हैं सैक्स के अलावा क्या हैं प्यार जताने के खास तरीके :

फूल भेजें

अपने प्यार को जताने का सब से रुमानी और सदाबहार तरीका है प्रेमी को फूल भेजना. आप के द्वारा भेजे गए फूलों की खुशबू बता देगी कि आप अपने प्रेमी को कितना प्यार करते हैं.

पसंदीदा रैस्टोरैंट में डिनर करवाएं

यदि आप के प्रेमी को चाइनीज फूड पसंद है तो आज ही एक अच्छे चाइनीज रैस्टोरैंट में अपने व उस के लिए एक टेबल बुक करें और उसे इन्वाइट कर डिनर करवाएं. आप का यह सरप्राइज दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. जगमगाती मोमबत्तियों के बीच बिताए ये प्यार भरे लमहे हमेशा याद रहेंगे.

रोमांटिक मूवी देखें

हाल ही में रिलीज कोईर् रोमांटिक मूवी देखने हेतु हौल की कौर्नर वाली सीट्स बुक करें और साथ बैठ कर मूवी देखें. हाथों में हाथ डाल कर बैठ कर मूवी के रोमांटिक सीन्स को साथसाथ देखना आप दोनों के प्यार में नजदीकियां लाएगा और जताएगा कि आप अपने प्रेमी से कितना प्यार करते हैं. ऐसी रोमांटिक आउटिंग से आप को अपना प्यार जताने में मदद मिलेगी.

प्रेमी की पसंदीदा चीजों का ध्यान रखें

प्रेमी के प्रति अपना प्यार जताने का एक अन्य महत्त्वपूर्ण तरीका है जैसे उस की मनपसंद ड्रैस पहनना, उस की पसंद का परफ्यूम लगाना. अगर आप के बौयफ्रैंड को आप की रैड कलर की ड्रैस अच्छी लगती है तो उसी ड्रैस को पहन कर उसे रिझाएं, अपना प्यार जताएं.

यूएस की रोचेस्टर यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरुष लाल रंग की तरफ खासतौर से आकर्षित होते हैं, फिर चाहे वह लाल रंग की ड्रैस हो या रैड लिपस्टिक.

ड्रैस के अलावा आप उन को मनपसंद हेयरस्टाइल भी बना कर रिझा सकती हैं जैसे अगर आप उन्हें खुले बालों में पसंद हैं तो अपने लंबे लहराते हुए बालों से उन्हें आकर्षित करें और अपना प्यार जताएं.

गिफ्ट्स दें

आप की गर्लफ्रैंड को पिछले दिनों एक सैक्सी ड्रैस पसंद आई थी जिसे वह खरीदना चाहती थी, लेकिन वह अपना एटीएम कार्ड घर भूल गई थी, इसलिए खरीद नहीं पाई. आप वह ड्रैस खरीद कर उसे सरप्राइज गिफ्ट करें. यकीन मानिए आप का गिफ्ट देख कर वह आप को गले लगा लेगी.

आप के बौयफ्रैंड का आप को आप की पसंद की ड्रैस गिफ्ट कराना दर्शाता है कि वह आप को बहुत प्यार करता है, क्योंकि कोई किसी को यों ही सरप्राइज गिफ्ट नहीं देता. इसी तरह आप भी अपने बौयफ्रैंड के बर्थडे पर सरप्राइज पार्टी अरेंज कर के अपना प्यार जता सकती हैं.

लव मैसेजेस भेजें

जब भी फ्री हों अपने पे्रमी या प्रेमिका को प्यार भरे, अपनी फीलिंग्स जाहिर करते हुए लव मैसेजेस भेजें. चाहें तो ई कार्ड भी सैंड कर सकते हैं. इस के अलावा रोमांटिक सौंग्स जो आप के लवर के फेवरिट हों उन्हें सैंड करें.

ऐसा करना उन के प्रति आप के प्यार को जताएगा और आप के प्यार में खुशनुमा एहसास और नजदीकी लाएगा जो सैक्स संबंध बनाने से भी कहीं अधिक प्रभावी और लौंग लास्टिंग होगा, हमेशा उन की यादों में रहेगा.

गेम खेलें

कई ऐसे खेल हैं जिन्हें खेल कर आप अपने प्रेमी के प्रति अपने प्यार को जता सकते हैं. इन खेलों में पिलो फाइट सब से मजेदार खेल है जिसे खेलते हुए आप न केवल एकदूसरे के नजदीक आएंगे बल्कि एकदूसरे के प्रति अपना प्यार जताने में भी सफल होंगे.

इस के अलावा एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर लगातार एकदूसरे को देखते रहने वाला रोमांटिक खेल भी आप दोनों के बीच प्यार बढ़ाने में मददगार होगा. इसी तरह स्क्रैबल, लूडो जैसे बोर्ड गेम्स खेलते हुए भी आप एकदूसरे के नजदीक आ सकते हैं और सैक्स करने के बजाय अधिक नजदीकी पा सकते हैं, अपना प्यार जता कर संबंधों में प्रगाढ़ता ला सकते हैं.

म्यूजिक  

संगीत हमेशा दिलों को जोड़ने का काम करता है. आप जब भी एकसाथ हों दोनों के पसंदीदा गीतों को सुन कर एकदूसरे के प्रति प्यार जता सकते हैं. चाहें तो अच्छे से रोमांटिक म्यूजिक के साथ मद्धम रोशनी में एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर थिरक भी सकते हैं. ये नजदीकियां किसी सैक्स प्लीजर से कहीं अधिक स्थायी होंगी.

एकदूसरे को गुदगुदाएं, सहलाएं

यदि आप अपने लवर के साथ बैठे हैं तो अपना प्यार जताने के लिए उसे गुदगुदाएं. गुदगुदी आप उस के गले व कान के पीछे कर सकते हैं. गले की तरह कान भी शरीर का एक बहुत सैंसिटिव हिस्सा होता है. इस से एकदूसरे के नजदीक आने में मदद मिलती है.

इस तरीके से आप का प्यार और गहरा होगा. आप एकदूसरे के बालों में उंगलियां फिरा कर अपने प्यार को दर्शा सकते हैं. ऐसा करने से आप को नजदीकी का एहसास होगा.

सैक्स संबंध के बगैर अगर आप प्यार जताना चाहते हैं तो अपने पार्टनर को रिझाएं, उस से थोड़ा रूठें, फिर उसे मनाएं, सैक्सी ड्रैस पहन कर उस की ऐक्साइटमैंट बढ़ाएं. ऐसा करतेकरते एकदूसरे  की बांहों में समा जाएं. ऐसा कर के आप न केवल अपना प्यार जता सकते हैं बल्कि अपने प्रेमी या प्रेमिका को दीवाना भी बना सकते हैं. इस से आप दोनों के बीच प्यार और गहरा होगा.

किस करें

जब भी आप को अपने प्रेमी पर प्यार आए तो आप एकदूसरे को किस करें. किस प्यार जताने व नजदीक लाने का सब से महत्त्वपूर्ण साधन है, क्योंकि जब आप प्यार से एकदूसरे को किस करते हैं तो आप का प्यार सुदृढ़ होता है. ऐसा करते हुए आप दोनों को एकदूसरे के नजदीक होने का एहसास होता है. जब आप किस करें, एकदूसरे की सांसों को महसूस करें और अपना प्यार जताएं.

फिल्म ‘राज रिबूट’ में मुख्य भूमिका निभाने वाली पंजाबी लड़की कृति खरबंदा का मानना है, ‘‘शारीरिक अनुकूलता एक समय के बाद खत्म हो सकती है लेकिन प्यार हमेशा कायम रहता है.’’ इसलिए सैक्स के अलावा भी अपना प्यार जताते रहें.   

दिल पर मत ले यार

अब जा कर यह समझ में आया कि देश में बेटियों को बचाने की वकालत इतने जोरशोर से क्यों की जा रही थी. भाई लोगों का भरोसा बेटों पर से उठ चुका लगता है. बेटियों को कोख में ही मौत की नींद सुलाने वाले मांबाप को भी शायद अब शर्मिंदगी हो रही होगी. रियो ओलिंपिक के नतीजे और देश के कर्णधारों द्वारा ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देने के पीछे भी शायद यही मकसद होगा. ज्यादा बच्चे होंगे, तो बेटियों की तादाद बढ़ेगी. बेटियों की तादाद बढ़ेगी, तो मौडलों की तादाद भी बढ़ेगी और धर्म भी महफूज रहेगा.

रियो ओलिंपिक में बेटियों की कामयाबी ने शायद बेटों को भी नाराज कर दिया लगता है. सोशल मीडिया में वायरल हो रही नौजवानों की भड़ास से तो यही लग रहा है. सरहद पर तैनात जवानों और खिलाडि़यों के मर्द कोच का हवाला देने के पीछे उन का और क्या मकसद हो सकता है?

लगे हाथ मेरे एक दोस्त नीति विषयक विधेयक में सुधार की बात करने लगे हैं. कल मिले थे. कह रहे थे कि ‘दइया रे’, ‘उई मां’, ‘छी: रे’,

‘न बाबा’, ‘हाय राम’, ‘हाय अल्लाह’, ‘धत तेरे की’, ‘तोबातोबा’ जैसे संवेदनशील शब्द लड़कों को ट्रांसफर कर देने चाहिए.

मेरे ये वाले दोस्त इंपोर्टेड माइंडैड हैं. लिफाफा देख कर मजमून भांप लेते हैं. उड़ती चिडि़या के पर गिन लेते हैं. हद तो यह है कि उन्हें अगर एक्वेरियम के सामने खड़ा कर दिया जाए, तो वे यह भी बता देते हैं कि एक्वेरियम में कौन सी मछली है और कौन सा मछला है.

एक दिन वे कह रहे थे, ‘‘बदलाव कुदरत का नियम है, इसलिए आदमी को हर बदलाव के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए.’’

मैं बोला, ‘‘किस बदलाव की बात कर रहे हो?’’

वे कहने लगे, ‘‘मुझे तो एक बड़े बदलाव की बू आ रही है. मुझे लगता है कि जल्द ही वह समय आने वाला है, जब मर्द बाजारों और सड़कों से गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाएगा. जैसा थोड़े दिनों पहले हुआ करता था. तब बाजारों और सड़कों में औरतों का दीदार मुश्किल से होता था. अब मर्दों का दीदार मुश्किल होने जा रहा है. कहींकहीं और कभीकभी ही दिखेगा.

‘‘घर से निकलते हुए बुखार के मरीज की तरह कांपेगा. डरेगा कि कहीं किसी लड़की से सामना न हो जाए. बाप अपने जवान हो रहे बेटों को सलाह देंगे कि अकेले मत जाओ… मुन्ना को साथ ले लो… ज्यादा देर तक बाहर मत रहो वगैरह.

‘‘और बड़ी बहनें अपने छोटे भाइयों से कुछ इस तरह पेश आएंगी, ‘ऐ, दरवाजे पर क्यों खड़े हो? चलो, अंदर.’’’

उन की बात सुन कर मैं मुसकरा दिया, तो वे बोले, ‘‘हंसो मत. समाज में तेजी से हो रहे नए बदलाव को महसूस करो.’’

‘‘अच्छा…’’ मुझे उन की बातों में मजा आने लगा था. मजा लेते हुए मैं बोला, ‘‘फ्यूचर में और क्याक्या बदलाव आने वाला है?’’

वे बोले, ‘‘अभी जिस तरह हम यहां बैठ कर चाय सुड़क रहे हैं, फ्यूचर में ऐसा नहीं होगा. हमारी जगह यहां लड़कियां बैठी चाय सुड़क रही होंगी. और यही नहीं, बल्कि हर नुक्कड़, होटल और पानठेलों पर लड़कियां ही होंगी.’’

‘‘तो हम कहां होंगे?’’

‘‘हमारा वजूद घरों में सिमट कर रह जाएगा.’’

‘‘यानी हम बच्चे खिला रहे होंगे?’’

‘‘बिलकुल ठीक,’’ वे बोले, ‘‘मैं यही कहने जा रहा था…’’

अभी वे अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि तभी रमटी हमारे हाथों में चाय का गिलास थमा गया, जिस से हमारी बातों में थोड़ी देर के लिए रुकावट पैदा हो गई.

उन्होंने चाय का एक लंबा घूंट लिया और होंठों पर जबान फेर कर अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं तो यह भी महसूस कर रहा हूं कि फ्यूचर में लड़कों की आदत, उन का बरताव और बातचीत में किस हद तक बदलाव आ सकता है. बातबात पर मूंछें मरोड़ने वाली हमारी बिरादरी की आदत दांतों में उंगली दबाने की हो जाएगी. अभी बातबात में वे जो ‘यार’ कहते हैं

‘छी:’ कहने लगेंगे. कहेंगे ‘छी: रे… कुसुम तो बड़ी वो है…’’’

लगे हाथ उन्होंने यह भी बता दिया कि 2 दोस्त आपस में किस तरह मिलेंगे, ‘‘अपने दोस्त से मिलने के लिए पत्नी, बड़ी बहन या मां से परमिशन लेनी होगी. कई बार यह कह कर डपट दिए जाएंगे कि क्या जरूरत है दोस्त से बारबार मिलने की. अगर उन्हें परमिशन मिल भी गई, तो मां, बहन या पत्नी उन्हें दोस्त के घर छोड़ने जाएंगी. जातेजाते वे यह हिदायत दे कर जाएंगी कि ज्यादा देर तक मत बैठना. इस तरह उन की मुलाकात होगी और वे आपस में इस तरह बतियाएंगे…

‘‘पहला, ‘हाय, कैसा है तू?’

‘‘दूसरा, ‘ठीक हूं. तू बता, कैसा है?’

‘‘पहला, ‘बस, कट रही है जैसेतैसे.’

‘‘दूसरा, ‘अच्छा, यह तो बता कल बाजार चलेगा क्या?’

‘‘पहला, ‘क्यों, कुछ खास बात है क्या?’

‘‘दूसरा, ‘नहीं रे… सोच रहा था कि 2-3 दिन के लिए भाई के घर चला जाऊं. इसलिए कुछ शौपिंग वगैरह करने का इरादा था.’

‘‘पहला, ‘ठीक है. मैं पूछ कर बताता हूं. खैर, तू बैठ न. उस के आने का समय हो गया है. मैं जरा यह काम कर लूं, फिर तेरे लिए चाय बनाता हूं.’’’

सभी भाईबहनें इसे भाई मियां यानी हमारे दोस्त के दिमाग का फुतूर समझ सकते हैं, लेकिन असल में यह रियो ओलिंपिक के बाद बहनों की तारीफ में पढ़े जाने वाले कसीदे और भाइयों की छीछालेदर के अलावा देश के कर्णधारों की ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह के बाद एक व्यंग्यकार की सोच है बस.

बहरहाल, सभी बहनों को साधुवाद. दुआ है कि बहनों की शान में ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ जैसे गीत रचने वाले शायरों को उन के लिए पहले की फिल्मों की तरह ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो…’ जैसे गीत रचने की अक्ल आए.

लेखक : सईद खान

भोपाल जेल ब्रेक : मुठभेड़ या साजिश

‘जो लोग समाज में खलल डालते हैं, उन पर सख्त कार्यवाही करें. नक्सलवाद और सिमी के नैटवर्क को पूरी तरह खत्म करें. पर आतंकवाद के नए खतरे को सब से पहले देखना है, उस से निबटने की तैयारी कर लें. इनसानियत के दुश्मनों को हर हाल में खत्म करना है. जेलों की हिफाजत पर कड़ी नजर रखें.’

दीवाली के ठीक 4 दिन पहले 26 अक्तूबर, 2016 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ये लफ्ज खासतौर से बुलाई गई कलक्टर, एसपी कौंफ्रैंस में कहे थे. हां, उन्होंने यह नहीं बताया था कि आतंकवाद का नया खतरा क्या है और इस से कैसे निबटना है. लेकिन शिवराज सिंह चौहान को नजदीक से जाननेसमझने वाले अफसरों और लोगों के कान खड़े हो गए थे कि यह जरूर खतरे की घंटी है, जिस से होशियार रहने के लिए उन्हें नसीहत और मशवरा दिया जा रहा है.

इस के महज 5 दिन बाद ही भोपाल की सैंट्रल जेल में कैद सिमी यानी स्टूडैंट इसलामिक मूवमैंट औफ इंडिया के 8 कैदी जेल तोड़ कर भागे, तो सहज लगा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कलक्टर, एसपी कौंफ्रैंस में भाषण नहीं दिया था, बल्कि पेशेवर ज्योतिषियों की तरह एक होने वाली वारदात की भविष्यवाणी सी की थी.

इतमीनान से भागे

भोपाल की सैंट्रल जेल बहुत महफूज मानी जाती है, जिसे कई सर्टिफिकेट  भी मिले हुए हैं. हिफाजत के लिहाज से सिमी के कार्यकर्ताओं को यहां रखा गया था.

30 अक्तूबर, 2016 की देर रात कह लें या 31 अक्तूबर की अलसुबह वे आठों इस जेल को प्लास्टिक के मानिंद ढहा कर भाग निकले.

उन आठों कैदियों को जेल के हाई सिक्योरिटी वाले बी ब्लौक में रखा गया था. भागने के लिए उन्होंने पहले से ही योजना बना रखी थी, ऐसा कई वजहों के चलते लग नहीं रहा.

इस दिन रात को 2 बजे ड्यूटी की पाली बदली गई थी. दीवाली के त्योहार की खुमारी और थकान में डूबे मुलाजिमों को एहसास ही नहीं था कि बहुत जल्द जेल की साख पर बट्टा लगने वाला है.

मुलाजिमों को ड्यूटी संभाले अभी एक घंटा ही हुआ था कि वे कैदी मानो जादू के जोर से अपनेअपने बैरकों से बाहर आ गए. भागते हुए उन के रास्ते में जेल का गार्ड रमाशंकर यादव आड़े आया, तो उन्होंने उस की हत्या कर दी.

हत्या करने में उन्होंने जेल की थाली और गिलास तोड़ कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया.

रमाशंकर यादव की हत्या के बाद एक दूसरा गार्ड चंदर तिरंथे आया, तो उन्होंने उस के हाथपैर बांध दिए और उस की जेब में रखी सीटी तोड़ दी, जिस से वह किसी को उन के भागने के बाबत आगाह न कर सके. चंदर के मुंह में उन्होंने कपड़ा ठूंसते हुए उसे न चीखने की भी धौंस दी थी.

बैरकों के बाहर आ कर उन कैदियों ने जेल की 28 फुट ऊंची दीवार साथ लाई चादरों की सीढ़ी बना कर पार की और दूसरी तरफ एकएक कर कूद गए.

शिवराज सिंह चौहान को रात के 3 बजे इस वारदात की खबर दी गई. इस के पहले जेल और पुलिस महकमे के आला अफसर फुरती दिखाते हुए अपनेअपने बिस्तर छोड़ कर जेल और पुलिस हैडक्वार्टर की तरफ दौड़ लगा चुके थे.

भागने के बाद उन कैदियों ने जेल से आजादी तो हासिल कर ली, पर अब कहां जाना या भागना है, इस की योजना उन्होंने नहीं बनाई थी. अभी तक सारा कुछ फिल्मी स्टाइल में बड़ी आसानी से हुआ था, जिस में सिवा रमाशंकर यादव के कोई अड़चन पेश नहीं आई थी.

नीम अंधेरे में उन्होंने बजाय मेन रोड के कच्चा रास्ता भागने के लिए चुना, जिस से किसी की निगाह में न आ सकें और ऐसा हुआ भी. कोई 10 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद वे आठों एकसाथ मनीखेड़ी गांव की चट्टानों पर जा पहुंचे, जबकि वे और भी दूर तक भाग सकते थे, लेकिन क्यों नहीं भागे, इस सवाल का जवाब दूसरे कई दर्जनों सवालों की तरह मिलना बाकी है.

इधर भोपाल में खासा हड़कंप मच चुका था. लोग फोन कर के एकदूसरे को बता रहे थे कि क्या कुछ हो चुका है. पुलिस, एटीएस और एसटीएफ के अफसर जेल पहुंच चुके थे. मीटिंगों का दौर जारी था, जिन में 8 भगोड़े कैदियों को ढूंढ़ने और घेरने की प्लानिंग की जा रही थी.

4 घंटे पुलिस वाले और दूसरी एजेंसियां भागमभाग करती रहीं. खोजी कुत्तों की मदद ली गई, जिस से यह और पता चला कि कैदी जंगल की तरफ भागे हैं. लिहाजा, वहां के नजदीकी और गांधीनगर, गुनगा थाना इलाकों के गांवों में अलर्ट जारी कर दिया गया.

अभी तक पुलिस की तरफ से कोई करिश्मा नहीं हुआ था. सुबह तकरीबन 8 बजे खेजड़ादेव गांव के कुछ लोगों के जरीए कैदियों के मनीखेड़ी गांव के आसपास होने की खबर मिली, तो पुलिस की गाडि़यां वहां पहुंचने लगीं. जब इतमीनान हो गया कि फरार कैदी इन्हीं पहाडि़यों में छिपे हैं, तो 10 बजे तक पुलिस वालों ने पूरी पहाड़ी को चौतरफा घेर लिया.

अब तक आसपास के गांव वाले भी इकट्ठा हो चुके थे. उन्होंने पुलिस अफसरों को बताया था कि वे लोग यानी कैदी पुलिस वालों को गालियां दे रहे थे और पाकिस्तान के हक में नारे भी लगा रहे थे. खेजड़ादेव गांव के सरपंच मोहन सिंह मीणा की मानें, तो उन्होंने ही सब से पहले इन कैदियों को नदी पार करते देखा था.

यों हुआ ऐनकाउंटर

खुद को पुलिस वालों से घिरा देख  कैदियों को अपने अंजाम का अंदाजा हो गया था. लिहाजा, उन्होंने पुलिस टीमों की तरफ पत्थर बरसाना शुरू कर दिए. उस वक्त सुबह के 10 बज चुके थे और सिमी के कैदियों के फरार होने की खबर जंगल की आग की तरह देशभर में फैल चुकी थी.

मनीखेड़ी की पहाड़ी पर क्या हो रहा है, यह कम ही लोगों को मालूम था कि कैदी घेर लिए गए हैं, जहां गांव वालों सहित पुलिस और एटीएस के जवानों के समूह दिख रहे थे. ये लोग किसी भी अनहोनी और वारदात से निबटने के लिए पोजीशन ले चुके थे. पहाड़ी पर चढ़ कर कैदी लगातार पथराव कर रहे थे. कुछ जवानों को इस से चोटें भी आईं.

सुबह साढ़े 10 बजे भोपाल नौर्थ के एसपी अरविंद सक्सेना ने वायरलैस सैट पर पुलिस वालों को हुक्म दिया कि वे कैदियों को मार गिराएं. इस से पहले पुलिस ने कैदियों से हथियार डालने को कहा था, पर वे नहीं माने, तो पुलिस की तरफ से फायरिंग शुरू हो गई और एक घंटे में आठों कैदी ढेर हो गए. पुलिस द्वारा चलाई गई ज्यादातर गोलियां कैदियों के सीने में लगी थीं.

कठघरे में जेल प्रशासन

भागने से ले कर मार गिराए जाने के दरमियान सबकुछ ठीक वैसा था नहीं, जैसा कि बताया जा रहा था. कैदी भागे और फिर मारे गए, लेकिन भागने की बात पर हर किसी ने सवाल किए, जिन के मुकम्मल जवाब शायद ही कभी मिल पाएं और यही वे सवाल या वजहें हैं, जो इस मुठभेड़ के साजिश होने की तरफ भी इशारा कर रही हैं.

कैदियों ने अपनेअपने बैरकों के ताले तोड़े नहीं थे, बल्कि चाबियों से खोले थे, जबकि ये चाबियां बैरकों से तकरीबन सवा किलोमीटर दूर बने जेलर के केबिन में जस की तस रखी थीं.

इस सवाल का जवाब जेल प्रशासन द्वारा यह दिया गया कि कैदियों ने प्लास्टिक की चाबियों का इस्तेमाल किया था. उन्होंने टूथ ब्रश से हर एक ताले की चाबी बना ली थी.

पर दूसरे सवालों का जवाब शायद ही कभी मिले कि जेल के पास की निगरानी के लिए जेलर के दफ्तर के पास जो खासतौर से केबिन बनवाया गया था, उस पर ड्यूटी दे रहा सिपाही कहां था?

उन कैदियों की निगरानी के लिए ही खासतौर से एसएएफ के जिन 4 जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी, वे कैदियों के भागने के वक्त कहां थे? भागने के लिए कैदियों को 3 दीवारों को फांदना पड़ा था. उन्हें पूरा रास्ता साफ कैसे मिला और क्यों मिला? ड्यूटी दे रहे जवान कहां गायब हो गए थे?

दीवाली के त्योहार के चलते जेल के आधे मुलाजिमों को छुट्टी दे देना और शक पैदा कर रहा है, क्योंकि जेल तोड़ने का अंदेशा आईबी (इंटैलीजैंस ब्यूरो) जैसी एजेंसी जता चुकी थी.

एक जेल अफसर ने चिट्ठी लिखते इस बाबत प्रशासन को आगाह किया था, पर उस पर कोई कार्यवाही या पहल नहीं की गई. एक और यह सवाल भी  शक पैदा करने वाला है कि जेल के सीसीटीवी कैमरे कब से और क्यों बंद थे.

बातें और सवाल यहीं खत्म नहीं होते. उन कैदियों के पास से हथियार बरामद किए गए थे, वे कहां से आए, यह भी कोई नहीं बता पाया. जब वे कैदी लाश में तबदील हुए, तब उन के बदन पर जींस व टीशर्ट थे, हाथ में घडि़यां थीं, नए जूते थे, उन की दाढ़ी बनी हुई थी. यह सब कैसे हुआ? ये सारे सवाल अब धीरेधीरे दम तोड़ रहे हैं.

यह बात जरूर फौरी तौर पर मान ली गई कि जरूर जेल के कुछ मुलाजिम उन कैदियों से मिले हुए थे.

ऐनकाउंटर की यह घटना बहुत तेजी से घटी, जिस के तहत एडीजी सुशोमन बनर्जी और डीआईजी जेल मंशाराम पटेल को सस्पैंड कर दिया गया.

राज्य सरकार ने तुरंत केंद्र सरकार से गुजारिश की कि पूरे मामले की जांच एनआईए (राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी) से कराई जाए और तुरंत जांच का जिम्मा रिटायर्ड डीजीपी नंदन दुबे को सौंप दिया गया. लेकिन 5 दिन बाद ही ये फैसले बदल दिए गए.

बवाल कम मचा, तो एनआईए से जांच की गुजारिश ही राज्य सरकार ने केंद्र को नहीं भेजी और नंदन दुबे को भी हटा कर जांच का जिम्मा एक न्यायिक आयोग को सौंपते हुए उस का मुखिया रिटायर्ड जज एसके पांडे को बना दिया.

सियासत और समाज

8 घंटे चले इस ड्रामे में जब पुलिस वालें का रोल खत्म हुआ, तो उन की जगह नेताओं ने ले ली. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार जानकारी ले रहे थे. उन की चिंता जायज थी कि अगर आतंकी वाकई दूर भाग जाते, तो उन की छीछालेदार होती. सुबह 9 बजे ही वे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सारी जानकारी उन के मांगने पर दे चुके थे.

कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने यह पूछते हुए की कि पहले खंडवा से आतंकी भागे, अब भोपाल सैंट्रल जेल से, जांच होनी चाहिए कि यह किस की मिलीभगत है? क्या वे किसी योजना के तहत भगाए गए?

आम चर्चा और सोशल मीडिया पर हर कोई दिग्विजय सिंह के इस बयान पर नाराज दिखा. यही इस ड्रामे का क्लाइमैक्स माना जाना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ. हर किसी ने उन्हें मुसलिमों और आतंकियों का हिमायती माना. रहीसही कसर असउद्दीन ओवैसी ने यह शक जताते हुए पूरी कर दी कि ये कैदी विचाराधीन यानी अंडर ट्रायल थे, उन्हें किस बिना पर मारा गया है.

इस के बाद कई नेताओं, जिन में बसपा प्रमुख मायावती भी शामिल हैं, ने भी इस ऐनकाउंटर पर एतराज जताया. लेकिन जनता की अदालत ने इस मुठभेड़ को गलत तरीके से किया गया अच्छा काम करार दे दिया था. शिवराज सिंह चौहान को हीरो बना दिया गया था, जो मारे गए हवलदार रमाशंकर यादव को शहीद का दर्जा देते हुए उस के घर वालों को हिम्मत बंधाने और उस की अर्थी को कंधा देने पहुंचे व इनाम की रकम भी बढ़ा दी थी.

इतना ही नहीं, मुठभेड़ में शामिल पुलिस वालों और गांव वालों को भी 40 लाख रुपए के नकद इनाम का ऐलान कर दिया गया, जो उन आतंकियों के सिर पर रखा गया था.

मुद्दे की बात पर गफलत

इस में कोई शक नहीं कि इस मुठभेड़ से शिवराज सिंह चौहान हीरो बन कर उभरे हैं और लोगों की सोच यहीं तक सिमट कर रह गई है कि आखिर इस में हर्ज क्या है? यानी लोग पुलिस की अदालत को मंजूरी दे रहे हैं, तो यह बात उन्हीं के भविष्य के लिहाज से खतरनाक भी साबित हो सकती है.

यह हिंदुत्व का करंट ही था कि मध्य प्रदेश के लोगों ने यह भी मान लिया कि चूंकि वे सिमी के कार्यकर्ता थे, मुसलिम थे, देश के दुश्मन थे, इसलिए उन्हें यों मारना नाजायज बात नहीं.

यह वक्ती तौर का जोश भर लगता है कि कल को पुलिस वाले अगर चौराहों पर इसी तर्ज पर इंसाफ करने लगेंगे, तो क्या उस पर भी हां की मुहर लोग लगाएंगे? और जब फैसला पुलिस को ही करना है, तो अदालतों की जरूरत क्या?

जाहिर है कि यह मुठभेड़ लोगों के जज्बातों और जोश की बलि चढ़ गई है, जो सरकार से सवाल नहीं पूछ रहे हैं, बल्कि समर्थन कर रहे हैं.

यह समाज और सियासत का वह दौर है जिस में आम लोग हिंदुत्व और राष्ट्रप्रेम में फर्क नहीं कर पा रहे हैं. अब व्यापम महाघोटाले की तरह सालोंसाल जांच चलती रहेगी. कुछेक और मुलाजिम, अफसर सस्पैंड होंगे, जिन्होंने इन कैदियों की मदद की, पर वे गद्दार करार नहीं दिए जा रहे हैं, क्योंकि उन से और उन जैसों से किसी को किसी किस्म का खतरा अभी महसूस नहीं हो रहा. देशभक्ति, हिंदुत्व का जुनून लोगों से काफीकुछ छीन रहा है, जिस के तहत दिग्विजय सिंह की यह दलील दम तोड़ चुकी है कि ये कैदी किसी साजिश के तहत भगाए तो नहीं गए थे.

आम लोगों की निगाह में ऐनकाउंटर का यह तरीका अगर कारगर है, तो बेहतर यह होगा कि देश की तमाम जिलों में बंद आतंकियों के अलावा दूसरे मुजरिमों को भी इसी तरह मार गिराने की मंजूरी दी जाए, जिस से चुटकियों में इंसाफ हो जाता है.                  

ये भी हैं शक की वजहें

बात भले ही अंत भला तो सब भला की तर्ज पर खत्म हो रही है, लेकिन शक को बढ़ावा देने और तमाम बातें अभी भी वजूद में हैं. मसलन, ऐनकाउंटर के बाद एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में साफ दिख रहा है कि पुलिस वाले मरे हुए आतंकियों पर नजदीक से गोली दागते हुए कहते जा रहे हैं कि जल्दी मारो, एसपी साहब आने वाले हैं. यह वीडियो न्यूज चैनलों ने दिखाया, तो सरकार और पुलिस महकमे को कोई जवाब या सफाई नहीं सूझी.

दूसरा गड़बड़झाला तब सामने आया, जब एटीएस आईजी संजीव शमी ने यह कहा कि आतंकियों के पास हथियार नहीं थे, जबकि आईजी योगेश चौधरी ने साफसाफ कहा था कि आतंकियों ने46 राउंड फायर किए थे. बकौल योेगेश चौधरी, ‘‘आतंकियों ने फायरिंग की थी, जिस की जवाबी कार्यवाही में ऐनकाउंटर हो गया. आतंकियों के पास से कट्टों के अलावा धारदार हथियार भी बरामद हुए.’’

इन में से कोई एक तो गलत या झूठ बोला. क्यों बोला, इस की जांच भी जरूरी है, क्योंकि ये दोनों ही जिम्मेदार अफसर हैं.

एक और अहम वजह चंदर तिरंथे का दिया गया वह बयान है कि कैदियों द्वारा बांधने के तकरीबन 15 मिनट बाद जेल के दूसरे मुलाजिमों ने उसे खोल दिया था यानी महज 15 मिनट में यह कैदी जेल की दीवारें पार कर चुके थे, जो कतई मुमकिन नहीं.

सिमी और उस का नैटवर्क

सिमी यानी स्टूडैंट इसलामिक मूवमैंट औफ इंडिया  का गठन साल 1977 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. इस का मकसद भारत में पसर रही पश्चिमी संस्कृति को खत्म करना और भारत को इसलामिक देश बनाना है. साल 2001 में पोटा कानून के तहत सिमी पर पाबंदी लगाई गई थी, जो अभी भी बरकरार है.

यों तो सिमी के तार और ताल्लुकात देशभर में फैले हुए हैं, पर उस काअसर और आतंक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के बाद मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा है. मध्य प्रदेश में सिमी के सब से ज्यादा कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए हैं.

संप्रग सरकार ने पोटा कानून खत्म कर दिया, लेकिन मध्य प्रदेश समेत गुजरात और महाराष्ट्र में राज्य सरकारों की गुजारिश पर इस पर पाबंदी जारी रही. सिमी का महासचिव सफार नागौरी इस वक्त अपने संगठन का मुखिया है और अभी भी जेल में बंद है.

पुलिस की मानें, तो साल 2001 में पुणे और कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों और साबरमती ऐक्सप्रैस ट्रेन में हुए बम धमाकों में सिमी का ही हाथ था. ऐसे कई आरोप सिमी पर हैं. सिमी के तार तमाम अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं, जिन में जमात ए इसलाम और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन भी शामिल हैं.

गुजरात में हुए साल 2002 के दंगों में पुलिस भी सिमी का हाथ बताती रही है. कई राज्यों की यूनिवर्सिटियों में सिमी की अच्छी पैठ है और उत्तर प्रदेश के कानपुर, अलीगढ़, लखनऊ, आजमगढ़, रामपुर और मुरादाबाद शहरों में उसे लोकल लोगों का समर्थन मिला हुआ है.

भोपाल की मुठभेड़ में जो आतंकी मारे गए, उन पर कई मुकदमे चल रहे थे.

अब्दुल मजीद- बम बनाने में माहिर अब्दुल मजीद उज्जैन के महिदपुर का बाशिंदा था और पेशे से इलैक्ट्रिशियन था. साल 2014 में उसे गिरफ्तार किया गया. अब्दुल मजीद बम बनाता था और सप्लाई भी करता था.

मोहम्मद अकील- खंडवा का रहने वाला मोहम्मद अकील साल 2012 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से गिरफ्तार किया गया था.

मोहम्मद खालिद- महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बाशिंदे मोहम्मद खालिद को साल 2013 के आखिर में मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा कसबे से गिरफ्तार किया गया था.

खंडवा जेल से फरार मोहम्मद खालिद ने पूछताछ में माना था कि वह देश के उस समय के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और उन की बेटी के कत्ल की योजना बना रहा था.

मेहबूब गुड्डू- खंडवा का रहने वाला मेहबूब गुड्डू मध्य प्रदेश सिमी का चीफ था. साल 2009 में उसे एक तिहरे हत्याकांड का आरोपी बनाया गया था. वह साल 2010 में हुए अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट का भी आरोपी था. इलजाम यह भी है कि मेहबूब गुड्डू साल 2011 में रतलाम के एटीएस के हवलदार के कत्ल में भी शामिल था.

जाकिर हुसैन- जाकिर हुसैन खंडवा की झुग्गी बस्ती का बाशिंदा था. इस के दूसरे नाम विक्की डौन और विनय कुमार भी थे. जाकिर पर कई डकैतियों के आरोप थे. भोपाल में साल 2010 में हुई मणप्पुरम गोल्ड डकैती का भी वह आरोपी था.

जाकिर हुसैन को साल 2011 में मध्य प्रदेश एटीएस ने गिरफ्तार किया था. बाद में छूटने पर उस ने तेलंगाना में भारतीय स्टेट बैंक की करीमनगर शाखा से 46 लाख रुपए लूटे थे. इस के बाद उसे राउरकेला से गिरफ्तार किया गया था.

अमजद खान- खंडवा के रहने वाले अमजद खान के भी कई नाम थे. उस पर भाजपा नेता प्रमोद तिवारी पर जानलेवा हमला करने समेत कई बैंक डकैतियों के भी आरोप थे. उसे भी राउरकेला से गिरफ्तार किया गया था.

मोहम्मद सालिक- खंडवा के गुलशन नगर का रहने वाला मोहम्मद सालिक भी राउरकेला से गिरफ्तार किया गया था. उस पर भी कई तरह के आरोप दर्ज थे.

मुजीब शेख- मुजीब शेख पर साल 2008 के आजमगढ़ के बम ब्लास्ट में शामिल होने का आरोप था. उसे साल 2011 में जबलपुर से गिरफ्तार किया गया 

अंधविश्वास ही अंधविश्वास

चाहे कोई भी हो, यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि वह अंधविश्वासी है. किसी को गाली देने से जैसे कोई शख्स दुखी और गुस्सा हो जाता है, वैसे ही किसी को अंधविश्वासी कहने से भी वह गुस्सा हो जाता है. अंधविश्वासी कहलाना कोई भी नहीं चाहता, पर अंधविश्वास हैं क्या क्या, यही उन्हें पता नहीं होता.

हालांकि यह सभी मानने को तैयार हैं कि अंधविश्वास और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक बुराइयां, परंपरा, रस्मोरिवाज हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट हैं.

देश में ‘अर्जक संघ’ समेत कई ऐसे संगठन हैं, जो अंधविश्वास के साथसाथ समाज में फैली बुराइयों को खत्म करने में जुटे हैं.

हम यहां कुछ अंधविश्वासों, परंपराओं व बुराइयों की ओर आप का ध्यान खींच रहे हैं:

* सुबह उठते ही अपनी दोनों हथेलियां देखना.

* अगर कोई काम नहीं हो सका, तो यह कहना कि न जाने हम किस का मुंह देख कर उठे थे.

* नहाधो कर सुबह एक लोटा पानी सूरज की ओर गिराना और कान ऐंठ कर प्रणाम करना.

* सुबहसवेरे नहाधो कर तुलसी के पौधे में पानी डालना.

* तथाकथित धर्मग्रंथ का पाठ कर के खुद और अपने परिवार का समय बरबाद करना.

* दिन के मुताबिक रंगीन कपड़ों को पहनना, भोजन करना वगैरह.

* घर के दरवाजे पर पुरानी चप्पल या जूता, सूप, नीबू, मिर्च वगैरह टांगना.

* बाहर निकलते समय घर के लोगों को दही, चीनी खाने को कहना और माथे पर टीका करना.

* बाहर निकलते समय अगर तेली जाति का शख्स दिख जाए, तो अशुभ मानना.

* अगर कोई छींक दे, तो अशुभ मान कर रुक जाना.

* रास्ते में अगर आगे से कोई बिल्ली चली जाए, तो वहीं रुक जाना.

* अगर बच्चा या कोई शख्स बीमार पड़ जाए, तो झाड़फूंक कराना.

* किसी को सांपबिच्छू काट ले, तो झाड़फूंक कराना.

* हाथ में गंडातावीज बांधना और काला टीका करना.

* बच्चे के जन्म के बाद उस के पास लोहे की चीज रखना.

* नवजात बच्चे को किसी को इसलिए नहीं दिखाना कि कहीं नजर न लग जाए.

* बच्चे के हाथपैर, कमर में काला धागा बांधना या काला टीका लगाना.

* जन्म के बाद किसी ब्राह्मण को बुला कर पत्री दिखाना और उस के कहने पर कर्मकांड करना.

* नाम रखने के लिए ब्राह्मण पर आश्रित रहना.

* पढ़ने की शुरुआत किसी खास दिन से करना और पुरोहित से पूछ कर स्कूल भेजना.

* कहीं बाहर जाने से पहले ब्राह्मण से पत्री दिखाना और उसी के मुताबिक चलना.

* नए घर जाने से पहले ब्राह्मण से पूछ कर तारीख तय करना.

* शादी के पहले ब्राह्मण से दिन दिखाना और उसी से शादी या श्राद्ध कराना.

* कोई भी कर्मकांड करने या त्योहार के बाद ब्राह्मण को दान देना.

* त्योहार के नाम पर पत्थर, मिट्टी की मूर्ति के सामने गिड़गिड़ाना.

* किसी चमत्कार के बाद उस की वजह को ढूंढ़ने के बजाय ईश्वरीय शक्ति मान बैठना.

* अपनी गरीबी, जोरजुल्म से लड़ने के बजाय तकदीर में लिखा है कह कर चुप बैठ जाना.

* शरीर से ठीकठाक होने के बावजूद घरघर घूमते साधुमहात्मा के नाम पर लोगों को दान देना.

* शादी के समय काला कपड़ा नहीं पहनना.

* शादी के समय किसी विधवा को नहीं रहने देना.

* मरने के बाद कर्मकांड करना, सिर मुंड़वाना, ब्रह्मभोज करना, दान देना.

* सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण लगने पर भोजन नहीं करना और ब्राह्मण को दान देना.

* वास्तुशास्त्र के मुताबिक ही मकान बनवाना.

* ज्योतिष से हाथ दिखाना, भविष्यफल देखना और उस के बताए उपाय करना.

* रविवार को हल नहीं चलाना.

* देवीदेवता की पूजा किए बगैर धान नहीं रोपना.

और भी ऐसी कई बातें हैं, जो अंधविश्वास मानी जाती हैं. लेकिन हैं बिलकुल अधार्मिक बातें.

हमें वैज्ञानिक सोच पैदा करने की जरूरत है, ताकि जिंदगी में तरक्की के रास्ते पर चल सकें. इस से एक फायदा यह भी होगा कि जो बगैर मेहनत किए अपना पेट पाल रहा है, वह मेहनत की अहमियत समझ कर और ज्यादा मेहनत करने लगेगा. देश और समाज तरक्की की ओर बढ़ सकेगा.

इन सब प्रपंचों से धर्म के दुकानदारों को पैसा मिलता है, जो चाहे मंदिरों, चर्चों, मसजिदों में इस्तेमाल हो या दूसरों का सिर फोड़ने के काम आए. अंधविश्वास सीधे पंडों की जेबों से जुड़े हैं.

लेखक : उपेंद्र कुमार       

उर्वशी का सेल्फी लेना पड़ा महंगा

खबर है कि डिज़ाइनर मनीष मल्होत्रा के बर्थडे पार्टी पर अभिनेत्री उर्वशी रौतेला को सेल्फी का इतना बुखार चढ़ा कि सारे लोग परेशान हो गए. वह जिस भी सेलिब्रिटी को देखती, उसके साथ सेल्फी लेती. अभिनेता अर्जुन रामपाल के साथ तो वह 3 बार सेल्फी ली, जिससे परेशान होकर अर्जुन ने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया.

सारे गेस्ट उर्वशी के इस हाव-भाव से इतने परेशान हो गए थे कि वह पार्टी छोड़कर चले जाने की फिराक में थे. सही है उर्वशी सेल्फी की आड़ में अपनी पब्लिसिटी करना चाह रही थी. उर्वशी को ये समझना पड़ेगा कि नाम, काम से होता है सेल्फी लेने से नहीं.

इंसपेक्टर के हत्यारों की चाह

पंजाब के जिला मोहाली की तहसील खरड़ के गांव परच के एक साधारण किसान परिवार में 1 फरवरी, 1956 को सुच्चा सिंह का जन्म हुआ था. दसवीं पास करने के बाद वह चंडीगढ़ पुलिस में सिपाही के रूप में भरती हुए तो तरक्की करते हुए 31 अक्तूबर, 2008 को इंसपेक्टर के पद पर पहुंच गए थे.

चंडीगढ़ पुलिस की विभिन्न शाखाओं में काम करते हुए सुच्चा सिंह को विभाग की ओर से 37 प्रशस्तिपत्र तथा तमाम नकद पुरस्कार मिले थे. 15 अगस्त को उन्हें पुलिस मैडल से तो नवाजा ही गया था, 26 जनवरी, 2006 को गणतंत्र दिवस समारोह में उन्हें राष्ट्रपति सम्मान भी मिला था.

सुच्चा सिंह के परिवार में पत्नी रंजीत कौर के अलावा बेटी रूपिंदर कौर और बेटा परमिंदर सिंह था. बेटी का ब्याह हो चुका था, जबकि बेटा परमिंदर कनाडा में नौकरी करता था. उस की शादी की तैयारियां चल रही थीं. वह भारत आया था और 7 जून, 2013 को दिल्ली से उस की फ्लाइट थी.

सुच्चा सिंह उन दिनों ट्रैफिक विंग के इंसपेक्टर थे. 6 जून, 2013 को उन की नाइट ड्यूटी थी. हाथ में तकलीफ होने के बावजूद उन्होंने छुट्टी नहीं की थी. रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक उन्हें अपनी ड्यूटी करनी थी. बेटे परमिंदर को चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर छोड़ कर वह इस सीधे अपनी ड्यूटी पर चले गए थे.

सरकारी गाड़ी पर उन के साथ केवल ड्राइवर जितेंद्र था. जल्दबाजी में उस दिन सुच्चा सिंह अपना सर्विस रिवौल्वर भी घर पर ही भूल आए थे. शहर की पैट्रोलिंग करते हुए वह रात 2 बजे के करीब सैक्टर-17 के बसअड्डे से होते हुए सैंट्रल पुलिस स्टेशन की ओर जा रहे थे, तभी पुरानी जिला अदालत के सामने उन्हें एक लड़का और एक लड़की दिखाई दी.

उन्होंने ड्राइवर से जिप्सी उन की ओर घुमवाया तो दोनों छिपने की कोशिश करने लगे, जिस की वजह से उन्हें उन पर शक हो गया. सुच्चा सिंह ने उन से उतनी रात को वहां होने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि वे शिमला से आए हैं और उन्हें दिल्ली जाने वाली बस पकड़नी है, लेकिन अभी उस का समय नहीं हुआ है. इसलिए समय काटने के लिए घूमतेटहलते वे उधर आ गए.

जब सुच्चा सिंह ने उन के सामान वगैरह के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन का सामान बस स्टैंड पर ही रखा है. सुच्चा सिंह को उन की बातों पर यकीन नहीं हुआ, इसलिए थाने ले जा कर उन के बारे में पता करने के लिए उन्हें जिप्सी में बैठा लिया.

जितेंद्र गाड़ी चला रहा था, जिस के पीछे वाली सीट पर लड़की बैठ गई तो सुच्चा सिंह के पीछे वाली सीट पर लड़का बैठ गया था. थाने जाने के लिए जितेंद्र गाड़ी स्टार्ट करने लगा, लेकिन गाड़ी का इंजन स्टार्ट होता, उस के पहले ही ड्राइवर के पीछे बैठी लड़की उस के बालों को पकड़ कर उसे पीटने लगी. इसी के साथ उस के साथी लड़के ने चाकू निकाल कर सुच्चा सिंह पर हमला कर दिया. चाकू का पहला वार उन के सीने पर लगा. वह जिप्सी का दरवाजा खोल कर बाहर कूद गए. जितेंद्र ने भी ऐसा ही किया, लेकिन वे संभल पाते, उस के पहले ही वे दोनों भी बाहर आ गए और उन से मारपीट करने लगे.

लड़के के पास चाकू था, जबकि सुच्चा सिंह और ड्राइवर निहत्थे थे, इसलिए उस ने दोनों को बुरी तरह जख्मी कर दिया. दोनों को मरणासन्न हालत में छोड़ कर लड़का और लड़की सरकारी जिप्सी ले कर भाग गए. सुच्चा सिंह की हालत ज्यादा खराब थी. जितेंद्र की कुछ ठीक थी, इसलिए किसी तरह इस घटना की सूचना उस ने मोबाइल द्वारा कंट्रोल रूम को दी तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया.

चंडीगढ़ से बाहर जाने वाले सभी रास्ते सील कर के अपराधियों की तलाश शुरू कर दी गई. दोनों से की गई पूछताछ और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने से पता चला कि पुलिस की जो गाड़ी ले कर वे भागे थे, वह सैक्टर 16-17 और 9-10 के मटकाचौक से होती हुई पीजीआई अस्पताल के सामने से गांव धनास में दाखिल हुई थी. वहीं वे जिप्सी छोड़ कर पड़ोस के घने जंगल में घुस गए थे.

दोनों को पकड़ने के लिए पुलिस ने जंगल का कोनाकोना छान मारा, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लगे. दूसरी ओर सुच्चा सिंह और उन के ड्राइवर जितेंद्र को उपचार के लिए पहले सैक्टर-16 के जनरल अस्पताल ले जाया गया. वहां शुरुआती इलाज करा कर उन्हें पीजीआई अस्पताल ले जाया गया. वहीं जितेंद्र से घटना के बारे में तहरीर से कर थाना सैंट्रल में अपराध क्रमांक 33 पर भादंवि की धाराओं 307, 332, 353, 397 एवं 34 के तहत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

चंडीगढ़ पुलिस का मानना था कि पुलिस पर इस तरह हमला करने वाले आम अपराधी नहीं हो सकते. उन्होंने पुलिस पर तो हमला किया ही था, पुलिस की गाड़ी भी ले कर भागे थे. जितेंद्र ने अपने बयान में बताया था कि जब उस ने भी लड़की के बाल पकड़ने की कोशिश की थी तो उस ने अपने साथी को ‘बंटी’ कह कर पुकारा था.

इस से पुलिस को लगा कि हमलावर कहीं चंडीगढ़ पुलिस का कांस्टेबल बसंत कुमार तो नहीं, जो सोनीपत के एक गांव में अपनी प्रेमिका के पति और उस की मां का कत्ल कर के प्रेमिका सरिता को ले कर फरार था. उसे भी घर वाले बंटी कहते थे. उन की गिरफ्तारी के लिए सोनीपत पुलिस ने उन के फोटोग्राफ चंडीगढ़ पुलिस को भेजे थे. बसंत और उस की साथी लड़की सरिता के फोटो जितेंद्र को दिखाए गए तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘जी हां, यही हैं वे दोनों.’’

जो आदमी 2 हत्याएं कर के और 2 लोगों को गंभीर रूप से घायल कर भाग रहा हो, उस के लिए इंसानी जिंदगी की कीमत क्या हो सकती है? खुद को बचाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. मामला बेहद गंभीर था. उस समय यह मामला और भी गंभीर हो गया, जब 8 जून, 2013 की सुबह 7 बजे पीजीआई अस्पताल में इंसपेक्टर सुच्चा सिंह की मौत हो गई. इस के बाद मुकदमे में धारा 302 जोड़ कर बसंत और सरिता को नामजद कर दिया गया.

चंडीगढ़ में इस दर्दनाक घटना ने सब को दुखी कर रखा था तो दूसरी ओर सोनीपत पुलिस की कोशिशों का नतीजा यह निकला कि 8 और 9 जून, 2013 की रात दिल्ली के पहाड़गंज स्थित होटल सिरसवाल से बसंत और सरिता को गिरफ्तार कर लिया गया. सोनीपत के थाना राई में अपराध संख्या 88 पर भादंवि की धाराओं 302, 307, 364, 449 व 34 के अलावा शस्त्र अधिनियम की धाराओं 25, 54 के अंतर्गत बसंत एवं उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज था.

पहले सोनीपत पुलिस ने, उस के बाद चंडीगढ़ पुलिस ने बसंत और सरिता को रिमांड पर ले कर विस्तार से पूछताछ की. इस पूछताछ में दोनों ने पुलिस को जो कुछ बताया था, उस से प्रेमअपराध की जो कहानी सामने आई थी, वह कुछ इस तरह थी—

जिला सोनीपत के थाना खरखोदा के गांव गोरड़ के रहने वाले राजवीर सिंह का बेटा था बसंत उर्फ बंटी. बीए करने के बाद वह सन 2010 में सेना की जाट रेजिमेंट में भरती हो गया था. लेकिन 7 महीने बाद ही उस ने यह नौकरी छोड़ दी थी और फिर 3 जुलाई, 2011 को चंडीगढ़ पुलिस में बतौर सिपाही भरती हो गया था.

उसी के गांव में रहते थे रोहताश सिंह, जो उसी की जाति के थे. उन की 3 बेटियों और 1 बेटे में सरिता सब से बड़ी थी. लेकिन जब वह 2 साल की थी, तभी मातापिता ने उसे गांव भैंसरनखुर्द में रहने वाले उस के मामा के यहां भेज दिया था.

मामा के यहां रहते हुए सरिता बीचबीच में अपने गांव गोरड़ भी आती रहती थी. उस बीच वह देखती थी कि वह जब भी गांव आती है, गांव का बंटी उस के आगेपीछे घूमता है. धीरेधीरे सरिता भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. दोनों की उम्र में केवल 8 महीने का अंतर था. बचपन की यह मोहब्बत समय के साथ बढ़ती ही गई.

सन 2010 में उन का यह प्यार उस समय चरम पर पहुंच गया, जब सरिता गोरड़ में ही मांबाप के पास रहने आ गई. जल्दी ही स्थिति यह बन गई कि दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.

इसी का नतीजा था कि जनवरी, 2013 में सरिता अचानक गांव से गायब हो गई. चूंकि बसंत भी गांव से गायब था, इसलिए शक किया गया कि उसे बसंत ही भगा कर ले गया है. सरिता के घर वालों ने बसंत के खिलाफ थाना खरखोदा में सरिता के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी, साथ ही वही नहीं, बसंत के घर वाले भी दोनों की तलाश करने लगे.

उन की मेहनत रंग लाई और फरवरी, 2013 के अंतिम सप्ताह में दोनों को अंबाला के एक मकान से ढूंढ निकाला गया. दोनों वहां किराए पर पति पत्नी की तरह रह रहे थे. मकान मालिक  को भी उन्होंने यही बताया था. दोनों को पकड़ कर थाना खरखोदा लाया गया, जहां पूछताछ में दोनों ने बताया कि 3 फरवरी, 2013 को उन्होंने अंबाला छावनी के आर्य समाज मंदिर में विवाह कर लिया है. विवाह का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिल गया है.

पुलिस पूछताछ में सरिता ने पुलिस को लिखित बयान दिया था कि उस ने बसंत से अपनी मरजी व खुशी से विवाह किया है, इसलिए उस के खिलाफ दर्ज अपहरण का मुकदमा खारिज किया जाए.

गांव में किसी ने इस बात को पहले बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था. सब ने सोचा था कि एक ही जाति और एक ही गांव के होने की वजह से बसंत और सरिता एक दूसरे का भाई बहन की तरह प्यार करते होंगे. लेकिन जब पता चला कि दोनों ने विवाह कर लिया है तो उन के बीच पंचायत आ गई. पुलिस ने तो मुकदमा खारिज कर दिया, लेकिन पंचायत ने सरिता और बसंत के इस विवाह को मानने से साफ मना कर दिया.

पंचायत ने साफ कहा कि वे पति पत्नी की तरह नहीं, भाई बहन की तरह रहेंगे. इस के बाद सरिता के पिता उसे घर लाने के बजाय उस के मामा अजीत सिंह के यहां भैंसरनखुर्द भेज दिया. अजीत सिंह सरिता को सगी बेटी की तरह मानते थे. उसे हर तरह की आजादी भी दी थी. लेकिन इस बार वह आई तो उस पर तमाम पाबंदियां लगा दी गईं.

लेकिन मार्च, 2013 में बसंत एक बार फिर सरिता को उस के मामा के यहां से भी भगा ले गया. इस बार वह चंडीगढ़ न जा कर दूसरे शहरों में घूमता रहा. इस के बावजूद 12 अप्रैल, 2013 को अजीत सिंह ने दोनों को फिर पकड़ लिया. उस ने बसंत को तो कुछ नहीं कहा, लेकिन आननफानन में अपने परिचित दयानंद के बेटे संदीप सिंह से सोनीपत की इंडस्ट्रियल एरिया में एक जगह सरिता का सादगी से विवाह कर दिया.

65 वर्षीय दयानंद जाट सोनीपत के गांव दीपलपुर के रहने वाले थे. वह भी पहले सेना में थे, नौकरी छोड़ कर वह खेतीबाड़ी कर रहे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 3 बेटे थे. उन में संदीप मंझला था. सरिता से संदीप की शादी भले ही सादगी से हुई थी, लेकिन दयानंद ने गांव में बेटे की शादी का बहुत बड़ा जश्न किया था.

बसंत को इस शादी की खबर मिली तो किसी अपराधी को अदालत में पेश करने के बहाने उस ने चंडीगढ़ पुलिस के मालखाने से एक एसएलआर (सेल्फ लोडिंग राइफल) इश्यू कराई और मनीमाजरा के अपने परिचित ड्राइवर रविकुमार के साथ उस की टैक्सी से दोपहर करीब डेढ़ बजे गांव दीपलपुर जा पहुंचा. यह 18 अप्रैल, 2013 की बात है.

गांव में पूछते हुए वह संदीप के घर जा पहुंचा और घर के बाहर से ही पूरी ताकत से चिल्लाते हुए कहा, ‘‘सरिता, जल्दी से बाहर आ जा, मैं तुझे लेने आया हूं.’’

कोई कुछ समझ पाता, उस से पहले ही दुलहन के लिबास में सजीधजी सरिता दौड़ती हुई बाहर आई तो उसे अपनी बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने के बाद बसंत ने कहा, ‘‘सरिता, अब मैं देखता हूं, तुम्हें कौन रोकता है.’’

इस के बाद एसएलआर से गोलियां चलाते हुए वह सरिता को ले कर चला गया. उस के गोली चलने से सरिता के पति संदीप सिंह और सास रोशनी देवी की मौत हो गई थी तो संदीप की बुआ प्रकाशी देवी बुरी तरह घायल हो गई थीं.

सरिता की ससुराल में खून की होली खेलने के बाद बसंत सरिता को ले कर पुलिस नाका पलड़ी और चौकी गढ़मैकर को पार कर के उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर गया. वह सरिता को साथ लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, जयपुर और आगरा आदि शहरों में घूमता रहा. इस बीच कांधला कस्बे में ड्राइवर रविकुमार बसंत से डर कर बाथरूम जाने के बहाने भाग निकला और थाने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे अपराधी मानते हुए हिरासत में ले लिया.

बसंत जिस समय सरिता को ले कर भागा था, उस के पास 5 लाख रुपए थे. धीरे धीरे पैसे खत्म होने लगे तो उस ने हरिद्वार के एक टैक्सीस्टैंड में गाड़ी पार्क कर दी और बस से सरिता को ले कर शिमला चला गया. 6-7 जून की रात दोनों चंडीगढ़ आए और यहां से वे बस से दिल्ली जाना चाहते थे. दिल्ली से वे ट्रेन से मुंबई जाना चाहते थे. जहां भेष बदल कर छोटीमोटी नौकरी करते हुए जीवनयापन करने का उन का इरादा था.

लेकिन चंडीगढ़ पहुंच कर उन्हें पता चला कि दिल्ली जाने वाली बस तो कुछ देर पहले चली गई है, दूसरी बस सुबह 4 बजे जाएगी. उस समय बसअड्डे पर बहुत कम लोग थे. 2-3 पुलिस वाले गश्त कर रहे थे. अचानक एक दीवार पर बसंत की निगाह पड़ी तो वहां उस ने अपनी और सरिता की तस्वीर वाला पोस्टर लगा देखा. उस पर उन की गिरफ्तारी के लिए हरियाणा पुलिस की ओर से एक लाख रुपए के इनाम की घोषणा की गई थी.

उस स्थिति में बसंत और सरिता का बसस्टैंड पर ज्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं था, सो वे दोनों वहां से निकल कर सुनसान जगह पर आ गए, जहां इन का सामना इंसपेक्टर सुच्चा सिंह से हो गया.

सुच्चा सिंह और उन के ड्राइवर जितेंद्र को मरणासन्न छोड़ कर दोनों पुलिस की जिप्सी से गांव धनास पहुंचे, जहां अंबेडकर कालोनी में गाड़ी छोड़ कर वे जंगल में चले गए. इस के बाद दूसरे रास्ते से लौट कर धनास और डीएम कालोनी की मेन रोड पर आ गए, जहां बौटेनिकल गार्डन में इन्होंने अपने कपड़ों पर लगा खून साफ किया.

मुंह हाथ भी धोए और वहीं रिहैबिलिटेशन कालोनी में जा कर एक खाली मकान में छिप गए. सुबह 4 बजे दोनों तोंगामुल्लापुर के खेतों के बीच से होते हुए गुरुद्वारा रतबाड़ा साहब पहुंचे और वहां से औटोरिक्शा पकड़ कर कराली चले गए. रास्ते में पड़ौल के जंगल के पास से जाते हुए औटो वाले की नजर बचा कर बसंत ने चाकू जंगल की ओर उछाल दिया.

कराली शहर के रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए, जहां पहाड़गंज के होटल सिरसवाल में उन्होंने कमरा लिया और आराम करने लगे. वहीं से पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया था. बसंत की निशानदेही पर पुलिस ने वारदात में प्रयुक्त चाकू के साथ हरिद्वार के एक टैक्सी स्टैंड में पार्क की गई रविकुमार की टैक्सी स्विफ्ट डिजाइयर व उस की डिग्गी में पड़ी एसएलआर बरामद कर ली थी.

चंडीगढ़ पुलिस ने फुरती दिखाते हुए बसंत और सरिता के खिलाफ 297 पृष्ठों की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी थी, जिस में अभियोजन पक्ष के 43 गवाहों की सूची भी शामिल थी. 17 सितंबर, 2013 को दोनों के खिलाफ चार्ज फ्रेम होने के बाद 21 सितंबर को इस केस की रेग्युलर सुनवाई शुरू हो गई थी.

चंडीगढ़ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.के. अग्रवाल ने दोनों पक्षों को गौरपूर्वक सुना और सभी साक्ष्यों को गहराई से जांचापरखा. इस के बाद 31 अक्तूबर, 2013 को अभियोजन पक्ष की गवाहियां पूरी होने के बाद बचावपक्ष को भी ध्यान से सुना.

अपने बचाव में सरिता और बसंत ने अदालत को बताया था कि घटना वाले दिन वे चंडीगढ़ में थे ही नहीं. उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है. लेकिन वे ऐसे कोई सबूत नहीं दे सके कि वे चंडीगढ़ में नहीं थे. आखिर 3 दिसंबर, 2013 को माननीय जज साहब ने बसंत और सरिता को इंसपेक्टर सुच्चा सिंह के कत्ल का दोषी करार दे दिया.

फास्टट्रैक में चलने की वजह से इस हत्याकांड का फैसला महज 178 दिनों में आ गया था. 4 दिसंबर, 2013 को विद्वान एवं सक्षम जज श्री एस.के. अग्रवाल ने अभियुक्त बसंत और सरिता को उम्रकैद की सजा सुनाने के साथ बसंत पर 32 हजार तो सरिता पर 29 हजार रुपए का जुर्माना भी किया था.

उस समय सरिता को 8 महीने का गर्भ था. जाहिर था, यह बच्चा जेल में ही पैदा होना था. फैसले में सुप्रीम कोर्ट के एक डायरेक्शन के संबंध में इस बात का जिक्र भी किया गया था कि सरिता जेल में पैदा होने वाले बच्चे की 6 साल तक होने तक की सारी जिम्मेदारी जेल प्रबंधन की होगी.

इस के बाद हरियाणा की सोनीपत जिला अदालत में बसंत और सरिता पर डबल मर्डर का जो केस चल रहा था, उस के तहत 28 सितंबर, 2016 को सोनीपत की अतिरिक्त एवं जिला न्यायाधीश मैडम सुनीता ग्रोवर ने गांव दीपलपुर निवासी संदीप सिंह व रोशनी देवी की हत्या करने के साथ प्रकाशो देवी को जख्मी करने के आरोप में 3 दोषियों बसंत उर्फ बंटी, सरिता उर्फ निक्की एवं टैक्सी ड्राइवर रविकुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

पुलिस का मानना था कि रविकुमार भी इस साजिश में शामिल था. चालान के साथ तमाम पुख्ता सबूत भी लगाए गए थे. अदालत ने उन सबूतों को पूरी तरह स्वीकार किया था. सक्षम जज सुनीता ग्रोवर ने बसंत, सरिता और रविकुमार को उम्रकैद की सजा सुनाने के अलावा 42-42 हजार रुपए का जुर्माना भी किया था. जिस के न देने पर 1-1 साल की अतिरिक्त सजा भुगतनी थी.

फिलहाल, आरोपी रविकुमार सोनीपत की जेल में है, जबकि बसंत और सरिता चंडीगढ़ की बुडै़ल जेल में सजा काट रहे हैं. इसी जेल में 2 साल पहले सरिता ने बेटे को जन्म दिया था. अभी जल्दी ही बसंत ने जेल प्रशासन को एक चिट्ठी लिखी है, जिस का आशय यह था कि उस ने जो जुर्म किया है, वह उस की बाकायदा सजा भोग रहा है. ऐसे में उस का बच्चा भी उस के साथ है, जबकि उस का कोई कसूर नहीं है. इसलिए उसे खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलना चाहिए.

हर कैदी को महीने में एक चिट्ठी लिखने का मौका दिया जाता है. बसंत ने लगातार ये चिट्ठियां जेल प्रशासन को लिखीं. उस ने हर चिट्ठी में अपने बेटे को खुली हवा में घूमने के लिए लिखा. एक पत्र में उस ने लिखा था कि जेल की चारदीवारी उस के बेटे के बचपन को कुचल सकती है. इस पत्र में बसंत ने आर.डी. उपाध्याय की याचिका और उस के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा जेल में रह रहे बच्चों के लिए जारी गाइडलाइंस का भी हवाला दिया था.

बसंत की चिट्ठी मिलने के बाद बुडै़ल जेल प्रशासन उस के 2 साल के बेटे और जेल में अपनी सजायाफ्ता मांओं के साथ रह रहे 3 अन्य छोटे बच्चों को हर हफ्ते चंडीगढ़ के पर्यटनस्थलों पर घुमाने ले जाने लगा है. सरिता की गुजारिश पर अब जेल में एक घंटा कार्टून चैनल भी चलते हैं. जेल की फीमेल वार्ड में एक खास टौयरूम भी बनाया गया है. हर महीने मैडिकल चैकअप के अलावा इन बच्चों को समयसमय पर पोलियो ड्रौप्स भी दिए जाते हैं.

लेखक : मनोहर शुक्ला

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