पंजाब के जिला मोहाली की तहसील खरड़ के गांव परच के एक साधारण किसान परिवार में 1 फरवरी, 1956 को सुच्चा सिंह का जन्म हुआ था. दसवीं पास करने के बाद वह चंडीगढ़ पुलिस में सिपाही के रूप में भरती हुए तो तरक्की करते हुए 31 अक्तूबर, 2008 को इंसपेक्टर के पद पर पहुंच गए थे.
चंडीगढ़ पुलिस की विभिन्न शाखाओं में काम करते हुए सुच्चा सिंह को विभाग की ओर से 37 प्रशस्तिपत्र तथा तमाम नकद पुरस्कार मिले थे. 15 अगस्त को उन्हें पुलिस मैडल से तो नवाजा ही गया था, 26 जनवरी, 2006 को गणतंत्र दिवस समारोह में उन्हें राष्ट्रपति सम्मान भी मिला था.
सुच्चा सिंह के परिवार में पत्नी रंजीत कौर के अलावा बेटी रूपिंदर कौर और बेटा परमिंदर सिंह था. बेटी का ब्याह हो चुका था, जबकि बेटा परमिंदर कनाडा में नौकरी करता था. उस की शादी की तैयारियां चल रही थीं. वह भारत आया था और 7 जून, 2013 को दिल्ली से उस की फ्लाइट थी.
सुच्चा सिंह उन दिनों ट्रैफिक विंग के इंसपेक्टर थे. 6 जून, 2013 को उन की नाइट ड्यूटी थी. हाथ में तकलीफ होने के बावजूद उन्होंने छुट्टी नहीं की थी. रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक उन्हें अपनी ड्यूटी करनी थी. बेटे परमिंदर को चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर छोड़ कर वह इस सीधे अपनी ड्यूटी पर चले गए थे.
सरकारी गाड़ी पर उन के साथ केवल ड्राइवर जितेंद्र था. जल्दबाजी में उस दिन सुच्चा सिंह अपना सर्विस रिवौल्वर भी घर पर ही भूल आए थे. शहर की पैट्रोलिंग करते हुए वह रात 2 बजे के करीब सैक्टर-17 के बसअड्डे से होते हुए सैंट्रल पुलिस स्टेशन की ओर जा रहे थे, तभी पुरानी जिला अदालत के सामने उन्हें एक लड़का और एक लड़की दिखाई दी.
उन्होंने ड्राइवर से जिप्सी उन की ओर घुमवाया तो दोनों छिपने की कोशिश करने लगे, जिस की वजह से उन्हें उन पर शक हो गया. सुच्चा सिंह ने उन से उतनी रात को वहां होने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि वे शिमला से आए हैं और उन्हें दिल्ली जाने वाली बस पकड़नी है, लेकिन अभी उस का समय नहीं हुआ है. इसलिए समय काटने के लिए घूमतेटहलते वे उधर आ गए.
जब सुच्चा सिंह ने उन के सामान वगैरह के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन का सामान बस स्टैंड पर ही रखा है. सुच्चा सिंह को उन की बातों पर यकीन नहीं हुआ, इसलिए थाने ले जा कर उन के बारे में पता करने के लिए उन्हें जिप्सी में बैठा लिया.
जितेंद्र गाड़ी चला रहा था, जिस के पीछे वाली सीट पर लड़की बैठ गई तो सुच्चा सिंह के पीछे वाली सीट पर लड़का बैठ गया था. थाने जाने के लिए जितेंद्र गाड़ी स्टार्ट करने लगा, लेकिन गाड़ी का इंजन स्टार्ट होता, उस के पहले ही ड्राइवर के पीछे बैठी लड़की उस के बालों को पकड़ कर उसे पीटने लगी. इसी के साथ उस के साथी लड़के ने चाकू निकाल कर सुच्चा सिंह पर हमला कर दिया. चाकू का पहला वार उन के सीने पर लगा. वह जिप्सी का दरवाजा खोल कर बाहर कूद गए. जितेंद्र ने भी ऐसा ही किया, लेकिन वे संभल पाते, उस के पहले ही वे दोनों भी बाहर आ गए और उन से मारपीट करने लगे.
लड़के के पास चाकू था, जबकि सुच्चा सिंह और ड्राइवर निहत्थे थे, इसलिए उस ने दोनों को बुरी तरह जख्मी कर दिया. दोनों को मरणासन्न हालत में छोड़ कर लड़का और लड़की सरकारी जिप्सी ले कर भाग गए. सुच्चा सिंह की हालत ज्यादा खराब थी. जितेंद्र की कुछ ठीक थी, इसलिए किसी तरह इस घटना की सूचना उस ने मोबाइल द्वारा कंट्रोल रूम को दी तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया.
चंडीगढ़ से बाहर जाने वाले सभी रास्ते सील कर के अपराधियों की तलाश शुरू कर दी गई. दोनों से की गई पूछताछ और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने से पता चला कि पुलिस की जो गाड़ी ले कर वे भागे थे, वह सैक्टर 16-17 और 9-10 के मटकाचौक से होती हुई पीजीआई अस्पताल के सामने से गांव धनास में दाखिल हुई थी. वहीं वे जिप्सी छोड़ कर पड़ोस के घने जंगल में घुस गए थे.
दोनों को पकड़ने के लिए पुलिस ने जंगल का कोनाकोना छान मारा, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लगे. दूसरी ओर सुच्चा सिंह और उन के ड्राइवर जितेंद्र को उपचार के लिए पहले सैक्टर-16 के जनरल अस्पताल ले जाया गया. वहां शुरुआती इलाज करा कर उन्हें पीजीआई अस्पताल ले जाया गया. वहीं जितेंद्र से घटना के बारे में तहरीर से कर थाना सैंट्रल में अपराध क्रमांक 33 पर भादंवि की धाराओं 307, 332, 353, 397 एवं 34 के तहत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
चंडीगढ़ पुलिस का मानना था कि पुलिस पर इस तरह हमला करने वाले आम अपराधी नहीं हो सकते. उन्होंने पुलिस पर तो हमला किया ही था, पुलिस की गाड़ी भी ले कर भागे थे. जितेंद्र ने अपने बयान में बताया था कि जब उस ने भी लड़की के बाल पकड़ने की कोशिश की थी तो उस ने अपने साथी को ‘बंटी’ कह कर पुकारा था.
इस से पुलिस को लगा कि हमलावर कहीं चंडीगढ़ पुलिस का कांस्टेबल बसंत कुमार तो नहीं, जो सोनीपत के एक गांव में अपनी प्रेमिका के पति और उस की मां का कत्ल कर के प्रेमिका सरिता को ले कर फरार था. उसे भी घर वाले बंटी कहते थे. उन की गिरफ्तारी के लिए सोनीपत पुलिस ने उन के फोटोग्राफ चंडीगढ़ पुलिस को भेजे थे. बसंत और उस की साथी लड़की सरिता के फोटो जितेंद्र को दिखाए गए तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘जी हां, यही हैं वे दोनों.’’
जो आदमी 2 हत्याएं कर के और 2 लोगों को गंभीर रूप से घायल कर भाग रहा हो, उस के लिए इंसानी जिंदगी की कीमत क्या हो सकती है? खुद को बचाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. मामला बेहद गंभीर था. उस समय यह मामला और भी गंभीर हो गया, जब 8 जून, 2013 की सुबह 7 बजे पीजीआई अस्पताल में इंसपेक्टर सुच्चा सिंह की मौत हो गई. इस के बाद मुकदमे में धारा 302 जोड़ कर बसंत और सरिता को नामजद कर दिया गया.
चंडीगढ़ में इस दर्दनाक घटना ने सब को दुखी कर रखा था तो दूसरी ओर सोनीपत पुलिस की कोशिशों का नतीजा यह निकला कि 8 और 9 जून, 2013 की रात दिल्ली के पहाड़गंज स्थित होटल सिरसवाल से बसंत और सरिता को गिरफ्तार कर लिया गया. सोनीपत के थाना राई में अपराध संख्या 88 पर भादंवि की धाराओं 302, 307, 364, 449 व 34 के अलावा शस्त्र अधिनियम की धाराओं 25, 54 के अंतर्गत बसंत एवं उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज था.
पहले सोनीपत पुलिस ने, उस के बाद चंडीगढ़ पुलिस ने बसंत और सरिता को रिमांड पर ले कर विस्तार से पूछताछ की. इस पूछताछ में दोनों ने पुलिस को जो कुछ बताया था, उस से प्रेमअपराध की जो कहानी सामने आई थी, वह कुछ इस तरह थी—
जिला सोनीपत के थाना खरखोदा के गांव गोरड़ के रहने वाले राजवीर सिंह का बेटा था बसंत उर्फ बंटी. बीए करने के बाद वह सन 2010 में सेना की जाट रेजिमेंट में भरती हो गया था. लेकिन 7 महीने बाद ही उस ने यह नौकरी छोड़ दी थी और फिर 3 जुलाई, 2011 को चंडीगढ़ पुलिस में बतौर सिपाही भरती हो गया था.
उसी के गांव में रहते थे रोहताश सिंह, जो उसी की जाति के थे. उन की 3 बेटियों और 1 बेटे में सरिता सब से बड़ी थी. लेकिन जब वह 2 साल की थी, तभी मातापिता ने उसे गांव भैंसरनखुर्द में रहने वाले उस के मामा के यहां भेज दिया था.
मामा के यहां रहते हुए सरिता बीचबीच में अपने गांव गोरड़ भी आती रहती थी. उस बीच वह देखती थी कि वह जब भी गांव आती है, गांव का बंटी उस के आगेपीछे घूमता है. धीरेधीरे सरिता भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. दोनों की उम्र में केवल 8 महीने का अंतर था. बचपन की यह मोहब्बत समय के साथ बढ़ती ही गई.
सन 2010 में उन का यह प्यार उस समय चरम पर पहुंच गया, जब सरिता गोरड़ में ही मांबाप के पास रहने आ गई. जल्दी ही स्थिति यह बन गई कि दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.
इसी का नतीजा था कि जनवरी, 2013 में सरिता अचानक गांव से गायब हो गई. चूंकि बसंत भी गांव से गायब था, इसलिए शक किया गया कि उसे बसंत ही भगा कर ले गया है. सरिता के घर वालों ने बसंत के खिलाफ थाना खरखोदा में सरिता के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी, साथ ही वही नहीं, बसंत के घर वाले भी दोनों की तलाश करने लगे.
उन की मेहनत रंग लाई और फरवरी, 2013 के अंतिम सप्ताह में दोनों को अंबाला के एक मकान से ढूंढ निकाला गया. दोनों वहां किराए पर पति पत्नी की तरह रह रहे थे. मकान मालिक को भी उन्होंने यही बताया था. दोनों को पकड़ कर थाना खरखोदा लाया गया, जहां पूछताछ में दोनों ने बताया कि 3 फरवरी, 2013 को उन्होंने अंबाला छावनी के आर्य समाज मंदिर में विवाह कर लिया है. विवाह का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिल गया है.
पुलिस पूछताछ में सरिता ने पुलिस को लिखित बयान दिया था कि उस ने बसंत से अपनी मरजी व खुशी से विवाह किया है, इसलिए उस के खिलाफ दर्ज अपहरण का मुकदमा खारिज किया जाए.
गांव में किसी ने इस बात को पहले बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था. सब ने सोचा था कि एक ही जाति और एक ही गांव के होने की वजह से बसंत और सरिता एक दूसरे का भाई बहन की तरह प्यार करते होंगे. लेकिन जब पता चला कि दोनों ने विवाह कर लिया है तो उन के बीच पंचायत आ गई. पुलिस ने तो मुकदमा खारिज कर दिया, लेकिन पंचायत ने सरिता और बसंत के इस विवाह को मानने से साफ मना कर दिया.
पंचायत ने साफ कहा कि वे पति पत्नी की तरह नहीं, भाई बहन की तरह रहेंगे. इस के बाद सरिता के पिता उसे घर लाने के बजाय उस के मामा अजीत सिंह के यहां भैंसरनखुर्द भेज दिया. अजीत सिंह सरिता को सगी बेटी की तरह मानते थे. उसे हर तरह की आजादी भी दी थी. लेकिन इस बार वह आई तो उस पर तमाम पाबंदियां लगा दी गईं.
लेकिन मार्च, 2013 में बसंत एक बार फिर सरिता को उस के मामा के यहां से भी भगा ले गया. इस बार वह चंडीगढ़ न जा कर दूसरे शहरों में घूमता रहा. इस के बावजूद 12 अप्रैल, 2013 को अजीत सिंह ने दोनों को फिर पकड़ लिया. उस ने बसंत को तो कुछ नहीं कहा, लेकिन आननफानन में अपने परिचित दयानंद के बेटे संदीप सिंह से सोनीपत की इंडस्ट्रियल एरिया में एक जगह सरिता का सादगी से विवाह कर दिया.
65 वर्षीय दयानंद जाट सोनीपत के गांव दीपलपुर के रहने वाले थे. वह भी पहले सेना में थे, नौकरी छोड़ कर वह खेतीबाड़ी कर रहे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी और 3 बेटे थे. उन में संदीप मंझला था. सरिता से संदीप की शादी भले ही सादगी से हुई थी, लेकिन दयानंद ने गांव में बेटे की शादी का बहुत बड़ा जश्न किया था.
बसंत को इस शादी की खबर मिली तो किसी अपराधी को अदालत में पेश करने के बहाने उस ने चंडीगढ़ पुलिस के मालखाने से एक एसएलआर (सेल्फ लोडिंग राइफल) इश्यू कराई और मनीमाजरा के अपने परिचित ड्राइवर रविकुमार के साथ उस की टैक्सी से दोपहर करीब डेढ़ बजे गांव दीपलपुर जा पहुंचा. यह 18 अप्रैल, 2013 की बात है.
गांव में पूछते हुए वह संदीप के घर जा पहुंचा और घर के बाहर से ही पूरी ताकत से चिल्लाते हुए कहा, ‘‘सरिता, जल्दी से बाहर आ जा, मैं तुझे लेने आया हूं.’’
कोई कुछ समझ पाता, उस से पहले ही दुलहन के लिबास में सजीधजी सरिता दौड़ती हुई बाहर आई तो उसे अपनी बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने के बाद बसंत ने कहा, ‘‘सरिता, अब मैं देखता हूं, तुम्हें कौन रोकता है.’’
इस के बाद एसएलआर से गोलियां चलाते हुए वह सरिता को ले कर चला गया. उस के गोली चलने से सरिता के पति संदीप सिंह और सास रोशनी देवी की मौत हो गई थी तो संदीप की बुआ प्रकाशी देवी बुरी तरह घायल हो गई थीं.
सरिता की ससुराल में खून की होली खेलने के बाद बसंत सरिता को ले कर पुलिस नाका पलड़ी और चौकी गढ़मैकर को पार कर के उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर गया. वह सरिता को साथ लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, जयपुर और आगरा आदि शहरों में घूमता रहा. इस बीच कांधला कस्बे में ड्राइवर रविकुमार बसंत से डर कर बाथरूम जाने के बहाने भाग निकला और थाने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे अपराधी मानते हुए हिरासत में ले लिया.
बसंत जिस समय सरिता को ले कर भागा था, उस के पास 5 लाख रुपए थे. धीरे धीरे पैसे खत्म होने लगे तो उस ने हरिद्वार के एक टैक्सीस्टैंड में गाड़ी पार्क कर दी और बस से सरिता को ले कर शिमला चला गया. 6-7 जून की रात दोनों चंडीगढ़ आए और यहां से वे बस से दिल्ली जाना चाहते थे. दिल्ली से वे ट्रेन से मुंबई जाना चाहते थे. जहां भेष बदल कर छोटीमोटी नौकरी करते हुए जीवनयापन करने का उन का इरादा था.
लेकिन चंडीगढ़ पहुंच कर उन्हें पता चला कि दिल्ली जाने वाली बस तो कुछ देर पहले चली गई है, दूसरी बस सुबह 4 बजे जाएगी. उस समय बसअड्डे पर बहुत कम लोग थे. 2-3 पुलिस वाले गश्त कर रहे थे. अचानक एक दीवार पर बसंत की निगाह पड़ी तो वहां उस ने अपनी और सरिता की तस्वीर वाला पोस्टर लगा देखा. उस पर उन की गिरफ्तारी के लिए हरियाणा पुलिस की ओर से एक लाख रुपए के इनाम की घोषणा की गई थी.
उस स्थिति में बसंत और सरिता का बसस्टैंड पर ज्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं था, सो वे दोनों वहां से निकल कर सुनसान जगह पर आ गए, जहां इन का सामना इंसपेक्टर सुच्चा सिंह से हो गया.
सुच्चा सिंह और उन के ड्राइवर जितेंद्र को मरणासन्न छोड़ कर दोनों पुलिस की जिप्सी से गांव धनास पहुंचे, जहां अंबेडकर कालोनी में गाड़ी छोड़ कर वे जंगल में चले गए. इस के बाद दूसरे रास्ते से लौट कर धनास और डीएम कालोनी की मेन रोड पर आ गए, जहां बौटेनिकल गार्डन में इन्होंने अपने कपड़ों पर लगा खून साफ किया.
मुंह हाथ भी धोए और वहीं रिहैबिलिटेशन कालोनी में जा कर एक खाली मकान में छिप गए. सुबह 4 बजे दोनों तोंगामुल्लापुर के खेतों के बीच से होते हुए गुरुद्वारा रतबाड़ा साहब पहुंचे और वहां से औटोरिक्शा पकड़ कर कराली चले गए. रास्ते में पड़ौल के जंगल के पास से जाते हुए औटो वाले की नजर बचा कर बसंत ने चाकू जंगल की ओर उछाल दिया.
कराली शहर के रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए, जहां पहाड़गंज के होटल सिरसवाल में उन्होंने कमरा लिया और आराम करने लगे. वहीं से पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया था. बसंत की निशानदेही पर पुलिस ने वारदात में प्रयुक्त चाकू के साथ हरिद्वार के एक टैक्सी स्टैंड में पार्क की गई रविकुमार की टैक्सी स्विफ्ट डिजाइयर व उस की डिग्गी में पड़ी एसएलआर बरामद कर ली थी.
चंडीगढ़ पुलिस ने फुरती दिखाते हुए बसंत और सरिता के खिलाफ 297 पृष्ठों की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी थी, जिस में अभियोजन पक्ष के 43 गवाहों की सूची भी शामिल थी. 17 सितंबर, 2013 को दोनों के खिलाफ चार्ज फ्रेम होने के बाद 21 सितंबर को इस केस की रेग्युलर सुनवाई शुरू हो गई थी.
चंडीगढ़ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.के. अग्रवाल ने दोनों पक्षों को गौरपूर्वक सुना और सभी साक्ष्यों को गहराई से जांचापरखा. इस के बाद 31 अक्तूबर, 2013 को अभियोजन पक्ष की गवाहियां पूरी होने के बाद बचावपक्ष को भी ध्यान से सुना.
अपने बचाव में सरिता और बसंत ने अदालत को बताया था कि घटना वाले दिन वे चंडीगढ़ में थे ही नहीं. उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है. लेकिन वे ऐसे कोई सबूत नहीं दे सके कि वे चंडीगढ़ में नहीं थे. आखिर 3 दिसंबर, 2013 को माननीय जज साहब ने बसंत और सरिता को इंसपेक्टर सुच्चा सिंह के कत्ल का दोषी करार दे दिया.
फास्टट्रैक में चलने की वजह से इस हत्याकांड का फैसला महज 178 दिनों में आ गया था. 4 दिसंबर, 2013 को विद्वान एवं सक्षम जज श्री एस.के. अग्रवाल ने अभियुक्त बसंत और सरिता को उम्रकैद की सजा सुनाने के साथ बसंत पर 32 हजार तो सरिता पर 29 हजार रुपए का जुर्माना भी किया था.
उस समय सरिता को 8 महीने का गर्भ था. जाहिर था, यह बच्चा जेल में ही पैदा होना था. फैसले में सुप्रीम कोर्ट के एक डायरेक्शन के संबंध में इस बात का जिक्र भी किया गया था कि सरिता जेल में पैदा होने वाले बच्चे की 6 साल तक होने तक की सारी जिम्मेदारी जेल प्रबंधन की होगी.
इस के बाद हरियाणा की सोनीपत जिला अदालत में बसंत और सरिता पर डबल मर्डर का जो केस चल रहा था, उस के तहत 28 सितंबर, 2016 को सोनीपत की अतिरिक्त एवं जिला न्यायाधीश मैडम सुनीता ग्रोवर ने गांव दीपलपुर निवासी संदीप सिंह व रोशनी देवी की हत्या करने के साथ प्रकाशो देवी को जख्मी करने के आरोप में 3 दोषियों बसंत उर्फ बंटी, सरिता उर्फ निक्की एवं टैक्सी ड्राइवर रविकुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
पुलिस का मानना था कि रविकुमार भी इस साजिश में शामिल था. चालान के साथ तमाम पुख्ता सबूत भी लगाए गए थे. अदालत ने उन सबूतों को पूरी तरह स्वीकार किया था. सक्षम जज सुनीता ग्रोवर ने बसंत, सरिता और रविकुमार को उम्रकैद की सजा सुनाने के अलावा 42-42 हजार रुपए का जुर्माना भी किया था. जिस के न देने पर 1-1 साल की अतिरिक्त सजा भुगतनी थी.
फिलहाल, आरोपी रविकुमार सोनीपत की जेल में है, जबकि बसंत और सरिता चंडीगढ़ की बुडै़ल जेल में सजा काट रहे हैं. इसी जेल में 2 साल पहले सरिता ने बेटे को जन्म दिया था. अभी जल्दी ही बसंत ने जेल प्रशासन को एक चिट्ठी लिखी है, जिस का आशय यह था कि उस ने जो जुर्म किया है, वह उस की बाकायदा सजा भोग रहा है. ऐसे में उस का बच्चा भी उस के साथ है, जबकि उस का कोई कसूर नहीं है. इसलिए उसे खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलना चाहिए.
हर कैदी को महीने में एक चिट्ठी लिखने का मौका दिया जाता है. बसंत ने लगातार ये चिट्ठियां जेल प्रशासन को लिखीं. उस ने हर चिट्ठी में अपने बेटे को खुली हवा में घूमने के लिए लिखा. एक पत्र में उस ने लिखा था कि जेल की चारदीवारी उस के बेटे के बचपन को कुचल सकती है. इस पत्र में बसंत ने आर.डी. उपाध्याय की याचिका और उस के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा जेल में रह रहे बच्चों के लिए जारी गाइडलाइंस का भी हवाला दिया था.
बसंत की चिट्ठी मिलने के बाद बुडै़ल जेल प्रशासन उस के 2 साल के बेटे और जेल में अपनी सजायाफ्ता मांओं के साथ रह रहे 3 अन्य छोटे बच्चों को हर हफ्ते चंडीगढ़ के पर्यटनस्थलों पर घुमाने ले जाने लगा है. सरिता की गुजारिश पर अब जेल में एक घंटा कार्टून चैनल भी चलते हैं. जेल की फीमेल वार्ड में एक खास टौयरूम भी बनाया गया है. हर महीने मैडिकल चैकअप के अलावा इन बच्चों को समयसमय पर पोलियो ड्रौप्स भी दिए जाते हैं.
लेखक : मनोहर शुक्ला