अब जा कर यह समझ में आया कि देश में बेटियों को बचाने की वकालत इतने जोरशोर से क्यों की जा रही थी. भाई लोगों का भरोसा बेटों पर से उठ चुका लगता है. बेटियों को कोख में ही मौत की नींद सुलाने वाले मांबाप को भी शायद अब शर्मिंदगी हो रही होगी. रियो ओलिंपिक के नतीजे और देश के कर्णधारों द्वारा ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देने के पीछे भी शायद यही मकसद होगा. ज्यादा बच्चे होंगे, तो बेटियों की तादाद बढ़ेगी. बेटियों की तादाद बढ़ेगी, तो मौडलों की तादाद भी बढ़ेगी और धर्म भी महफूज रहेगा.

रियो ओलिंपिक में बेटियों की कामयाबी ने शायद बेटों को भी नाराज कर दिया लगता है. सोशल मीडिया में वायरल हो रही नौजवानों की भड़ास से तो यही लग रहा है. सरहद पर तैनात जवानों और खिलाडि़यों के मर्द कोच का हवाला देने के पीछे उन का और क्या मकसद हो सकता है?

लगे हाथ मेरे एक दोस्त नीति विषयक विधेयक में सुधार की बात करने लगे हैं. कल मिले थे. कह रहे थे कि ‘दइया रे’, ‘उई मां’, ‘छी: रे’,

‘न बाबा’, ‘हाय राम’, ‘हाय अल्लाह’, ‘धत तेरे की’, ‘तोबातोबा’ जैसे संवेदनशील शब्द लड़कों को ट्रांसफर कर देने चाहिए.

मेरे ये वाले दोस्त इंपोर्टेड माइंडैड हैं. लिफाफा देख कर मजमून भांप लेते हैं. उड़ती चिडि़या के पर गिन लेते हैं. हद तो यह है कि उन्हें अगर एक्वेरियम के सामने खड़ा कर दिया जाए, तो वे यह भी बता देते हैं कि एक्वेरियम में कौन सी मछली है और कौन सा मछला है.

एक दिन वे कह रहे थे, ‘‘बदलाव कुदरत का नियम है, इसलिए आदमी को हर बदलाव के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए.’’

मैं बोला, ‘‘किस बदलाव की बात कर रहे हो?’’

वे कहने लगे, ‘‘मुझे तो एक बड़े बदलाव की बू आ रही है. मुझे लगता है कि जल्द ही वह समय आने वाला है, जब मर्द बाजारों और सड़कों से गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाएगा. जैसा थोड़े दिनों पहले हुआ करता था. तब बाजारों और सड़कों में औरतों का दीदार मुश्किल से होता था. अब मर्दों का दीदार मुश्किल होने जा रहा है. कहींकहीं और कभीकभी ही दिखेगा.

‘‘घर से निकलते हुए बुखार के मरीज की तरह कांपेगा. डरेगा कि कहीं किसी लड़की से सामना न हो जाए. बाप अपने जवान हो रहे बेटों को सलाह देंगे कि अकेले मत जाओ… मुन्ना को साथ ले लो… ज्यादा देर तक बाहर मत रहो वगैरह.

‘‘और बड़ी बहनें अपने छोटे भाइयों से कुछ इस तरह पेश आएंगी, ‘ऐ, दरवाजे पर क्यों खड़े हो? चलो, अंदर.’’’

उन की बात सुन कर मैं मुसकरा दिया, तो वे बोले, ‘‘हंसो मत. समाज में तेजी से हो रहे नए बदलाव को महसूस करो.’’

‘‘अच्छा…’’ मुझे उन की बातों में मजा आने लगा था. मजा लेते हुए मैं बोला, ‘‘फ्यूचर में और क्याक्या बदलाव आने वाला है?’’

वे बोले, ‘‘अभी जिस तरह हम यहां बैठ कर चाय सुड़क रहे हैं, फ्यूचर में ऐसा नहीं होगा. हमारी जगह यहां लड़कियां बैठी चाय सुड़क रही होंगी. और यही नहीं, बल्कि हर नुक्कड़, होटल और पानठेलों पर लड़कियां ही होंगी.’’

‘‘तो हम कहां होंगे?’’

‘‘हमारा वजूद घरों में सिमट कर रह जाएगा.’’

‘‘यानी हम बच्चे खिला रहे होंगे?’’

‘‘बिलकुल ठीक,’’ वे बोले, ‘‘मैं यही कहने जा रहा था…’’

अभी वे अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि तभी रमटी हमारे हाथों में चाय का गिलास थमा गया, जिस से हमारी बातों में थोड़ी देर के लिए रुकावट पैदा हो गई.

उन्होंने चाय का एक लंबा घूंट लिया और होंठों पर जबान फेर कर अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं तो यह भी महसूस कर रहा हूं कि फ्यूचर में लड़कों की आदत, उन का बरताव और बातचीत में किस हद तक बदलाव आ सकता है. बातबात पर मूंछें मरोड़ने वाली हमारी बिरादरी की आदत दांतों में उंगली दबाने की हो जाएगी. अभी बातबात में वे जो ‘यार’ कहते हैं

‘छी:’ कहने लगेंगे. कहेंगे ‘छी: रे… कुसुम तो बड़ी वो है…’’’

लगे हाथ उन्होंने यह भी बता दिया कि 2 दोस्त आपस में किस तरह मिलेंगे, ‘‘अपने दोस्त से मिलने के लिए पत्नी, बड़ी बहन या मां से परमिशन लेनी होगी. कई बार यह कह कर डपट दिए जाएंगे कि क्या जरूरत है दोस्त से बारबार मिलने की. अगर उन्हें परमिशन मिल भी गई, तो मां, बहन या पत्नी उन्हें दोस्त के घर छोड़ने जाएंगी. जातेजाते वे यह हिदायत दे कर जाएंगी कि ज्यादा देर तक मत बैठना. इस तरह उन की मुलाकात होगी और वे आपस में इस तरह बतियाएंगे…

‘‘पहला, ‘हाय, कैसा है तू?’

‘‘दूसरा, ‘ठीक हूं. तू बता, कैसा है?’

‘‘पहला, ‘बस, कट रही है जैसेतैसे.’

‘‘दूसरा, ‘अच्छा, यह तो बता कल बाजार चलेगा क्या?’

‘‘पहला, ‘क्यों, कुछ खास बात है क्या?’

‘‘दूसरा, ‘नहीं रे… सोच रहा था कि 2-3 दिन के लिए भाई के घर चला जाऊं. इसलिए कुछ शौपिंग वगैरह करने का इरादा था.’

‘‘पहला, ‘ठीक है. मैं पूछ कर बताता हूं. खैर, तू बैठ न. उस के आने का समय हो गया है. मैं जरा यह काम कर लूं, फिर तेरे लिए चाय बनाता हूं.’’’

सभी भाईबहनें इसे भाई मियां यानी हमारे दोस्त के दिमाग का फुतूर समझ सकते हैं, लेकिन असल में यह रियो ओलिंपिक के बाद बहनों की तारीफ में पढ़े जाने वाले कसीदे और भाइयों की छीछालेदर के अलावा देश के कर्णधारों की ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह के बाद एक व्यंग्यकार की सोच है बस.

बहरहाल, सभी बहनों को साधुवाद. दुआ है कि बहनों की शान में ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ जैसे गीत रचने वाले शायरों को उन के लिए पहले की फिल्मों की तरह ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो…’ जैसे गीत रचने की अक्ल आए.

लेखक : सईद खान

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