चाहे कोई भी हो, यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि वह अंधविश्वासी है. किसी को गाली देने से जैसे कोई शख्स दुखी और गुस्सा हो जाता है, वैसे ही किसी को अंधविश्वासी कहने से भी वह गुस्सा हो जाता है. अंधविश्वासी कहलाना कोई भी नहीं चाहता, पर अंधविश्वास हैं क्या क्या, यही उन्हें पता नहीं होता.
हालांकि यह सभी मानने को तैयार हैं कि अंधविश्वास और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक बुराइयां, परंपरा, रस्मोरिवाज हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट हैं.
देश में ‘अर्जक संघ’ समेत कई ऐसे संगठन हैं, जो अंधविश्वास के साथसाथ समाज में फैली बुराइयों को खत्म करने में जुटे हैं.
हम यहां कुछ अंधविश्वासों, परंपराओं व बुराइयों की ओर आप का ध्यान खींच रहे हैं:
* सुबह उठते ही अपनी दोनों हथेलियां देखना.
* अगर कोई काम नहीं हो सका, तो यह कहना कि न जाने हम किस का मुंह देख कर उठे थे.
* नहाधो कर सुबह एक लोटा पानी सूरज की ओर गिराना और कान ऐंठ कर प्रणाम करना.
* सुबहसवेरे नहाधो कर तुलसी के पौधे में पानी डालना.
* तथाकथित धर्मग्रंथ का पाठ कर के खुद और अपने परिवार का समय बरबाद करना.
* दिन के मुताबिक रंगीन कपड़ों को पहनना, भोजन करना वगैरह.
* घर के दरवाजे पर पुरानी चप्पल या जूता, सूप, नीबू, मिर्च वगैरह टांगना.
* बाहर निकलते समय घर के लोगों को दही, चीनी खाने को कहना और माथे पर टीका करना.
* बाहर निकलते समय अगर तेली जाति का शख्स दिख जाए, तो अशुभ मानना.
* अगर कोई छींक दे, तो अशुभ मान कर रुक जाना.
* रास्ते में अगर आगे से कोई बिल्ली चली जाए, तो वहीं रुक जाना.