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डिग्री बंदी पर फिर सवाल

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दूसरे नेता हैं जो किसी भी स्तर पर नरेंद्र मोदी का न तो लिहाज करते हैं, न ही किसी धोंस धपट मे आते हैं, उल्टे नए नए तरीके मोदी के विरोध के ईजाद कर लेते हैं. मोदी की एक कमजोर नस उनकी डिग्री है, जिसके होने न होने पर सस्पेंस कायम है.

बक़ौल केजरीवाल नरेंद्र मोदी के वकील तुषार मेहता को गुजरात हाईकोर्ट में यह कहना चाहिए कि वह डिग्री दिखाने को तैयार हैं. यह देश की जनता का संवैधानिक अधिकार है कि वह अपने प्रधानमंत्री की शिक्षा के बारे मे जान सके. मोदी की डिग्री को शिक्षा और अर्थशास्त्र से जोड़ते केजरीवाल ने कहा कि क्या उन्हे (मोदी को) इसकी जानकारी भी है या फिर उन्होंने अमित शाह के कहने पर नोट बंदी का फैसला ले लिया.

बात मे दम इस लिहाज से तो है कि मोदी की डिग्री अगर है तो उसे छिपाया क्यों जा रहा है, सार्वजनिक क्यों नहीं कर दिया जाता. मोदी अगर कम पढ़े लिखे हैं, तो भी बात हर्ज या शर्म की नहीं, इन्दिरा गांधी भी बहुत ज्यादा शिक्षित नहीं थीं फिर भी देश चलातीं थीं. इस सर्वोच्च पद के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं है, फिर हिचकिचाहट क्यों.

यह ठीक है कि अब समाज में अर्ध शिक्षित लोगों को भाव नहीं दिया जाता, लेकिन मोदी का पद और व्यक्तित्व किसी भी औपचारिक डिग्री से कहीं ज्यादा अहम है. लेकिन मोदी की डिग्री को एक मुखी रुद्राक्ष या मणिधारी सांप की तरह दुर्लभ बना देना कोई तुक की बात नहीं, इससे असमंजस और संदेह बढ़ता है. इस मसले से यह भी समझ आता है कि अब वक्त आ गया है कि शीर्ष संवैधानिक पदों के लिए शैक्षणिक योयगता पर विचार किया जाये.

वह दौर गया कि हम मान लें कि पुराने जमाने का पांचवी पास आदमी भी आज के ग्रेजुएट से ज्यादा बुद्धिमान होता है. यह एक अवैज्ञानिक पैमाना था. रही बात केजरीवाल की तो उनकी मंशा बेहद साफ मोदी की दुखती रग पर हाथ रख उन्हे उकसाने की ही है. मोदी की डिग्री के मामले में हुआ यह था कि मुख्य सूचना आयुक्त ने उनकी डिग्री जारी करने को कहा था, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी की याचिका पर सुनवाई करते हुये सूचना आयोग के फैसले पर रोक लगा दी थी.

इस्तीफे का मन क्यों

भाजपा के पितृ पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी का मन व्यथित है और इतना है कि उन्होंने सांसद पद से इस्तीफे की पेशकश कर डाली है. बक़ौल आडवाणी ऐसी हालत में अटल जी भी नाराज होते. ऐसे हालात यानि संसद का न चलना, लेकिन हर कोई समझ रहा है कि इशारा देश की तरफ है, जहां लोग आशकाए ओढ़ कर सोते हैं और सहमे सहमे से उठते हैं.

असल समस्या संसद नहीं देश का न चल पाना है, इस बात को साफ साफ बोलने की हिम्मत न तो आडवाणी में है, न दूसरे किसी भाजपा नेता में है. बहरहाल आडवाणी के दुख और उसकी आंशिक यानि सेन्सर्ड अभिव्यक्ति स्वागत योग्य है. एक अच्छी शीर्ष स्तरीय पहल है कि सब कुछ ठीक ठाक नहीं है. देश एक त्रासद दौर से गुजर रहा है, जिसकी ज़िम्मेदारी तय न हो पाना ही मन डोलने की वजह है.

संसद चल भी जाती तो क्या हो जाता, क्या लोगों को उनका पैसा सहूलियत से मिल जाता, क्या अरबों की नई करेंसी बरामद होना बंद हो जाती, जैसे दर्जनों यक्ष प्रश्न ज्यों के त्यों रहते फिर संसद के चलने न चलने पर विलाप बेमानी है.

आडवाणी का छिपा दर्द यह है कि उनके भूतपूर्व प्रिय शिष्य की मनमानी पर किसी का ज़ोर नहीं चल रहा. वे नरेंद्र मोदी का स्वभाव बेहतर समझते हैं, इसलिए काफी पहले आपातकाल जैसी स्थिति का जिक्र भी कर चुके हैं. यह आडवाणी जैसा सधा और तजुर्बेकार नेता ही समझ सकता है कि देश लगातार अराजकता की तरफ बढ़ रहा है नोट बंदी के बाद से बिगड़े हालातों को संभालने में सरकार नाकाम रही है.

आडवाणी के इस्तीफे की पेशकश का राजनैतिक पहलू यह भर हो सकता है कि पार्टी के अंदर मोदी के पनपते विरोध को न केवल आंका जाये, बल्कि उसे हवा भी दी जाये. राजनीति में कभी भी कुछ भी हो जाने के सिद्धान्त के तहत थके हारे आडवाणी का यह दांव सफल हो या न हो पर इस बहाने भड़ास तो निकलना शुरू हो गई है. 

नोटबंदी की मार झेलता आम इंसान

नोटबंदी के 37 दिन बाद भी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की दशा सुधरने का नाम नहीं ले रही है. चारों तरफ नोटों की किल्लत देखने को मिल रही है. अधिकतर एटीएम पर ‘नो कैश’ का बोर्ड लगा हुआ है. जहां कैश है वहां सिर्फ दो हजार के नोट मिल रहे हैं. उन नोटों को लेकर किसी भी दुकान पर जाएं तो दो हज़ार का नोट देकर आप कुछ खरीद नहीं सकते. किसी बड़े दुकानदार के पास भी अगर आपने 500 रुपये का सामान खरीद लिया फिर भी आपको बाकी पैसे मिलना मुश्किल है. कई बार तो ग्राहक बिना सामान लिए ही घर लौट रहे है.

दरअसल नोटबंदी की कामयाबी का ताज जो नरेन्द्र मोदी अपने सिर पर सजाना चाह रहे हैं, वह पूरी तरह फेल है. सारा काला धन उनकी इस नोट बंदी से धड़ल्ले से सफेद हो रहा है. जिसकी मिसाल मुंबई से लेकर दिल्ली तक दिखाई दे रही है. ऐसे में भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में जो कहानी नरेन्द्र मोदी जनता को बता रहे हैं, वह कहीं लागू नहीं होती. साथ ही लोगों की समस्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है. बिना प्लानिंग के कोई भी नीति कभी सफल नहीं होती, शायद इसका नतीजा मोदी को भी दिख रहा है. जिसने भ्रष्टाचार को लगाम लगाने के वजाय अर्थव्यवस्था पर ही लगाम लगा दिया है.

बैंक की लाइन में लगी संध्या बताती है कि मैं पिछले कुछ दिनों से लगातार बैंक के चक्कर लगा रही हूं. इतनी लंबी कतार देखकर वापस आ जाती हूं. एक बार जब अंत तक गई तो पता चला कि अपना अकाउंट वाले ब्रांच में 24 हजार और बाकि में 10 हजार तक निकाल सकते हैं. फिर मैं अपने अकाउंट वाले ब्रांच में गई, लेकिन वहां भी कैश की कमी की वजह से केवल 15 हजार ही मिले. जिसमें अधिकतर नोट दो हजार के थे. इसे लेकर कुछ भी खरीदने के पहले दस बार सोचना पड़ता है कि दो हजार के छुट्टे मिलेंगे भी या नहीं.

इसके अलावा नुपुर एटीएम की लाईन में एक घंटा खड़ी होने के बाद जब एटीएम के करीब पहुंची, तो पता चला कि कैश खत्म हो चुका है. ऐसे ही लोग न जाने कितने घंटे लाईन में खड़े होकर समय को नष्ट कर रहे हैं. जो पैसा उनके बैंक में है उन्हें भी वे निकलने में घंटों समय लगा रहे हैं या फिर वे निकलने में असमर्थ हैं. एटीएम से दो हजार की एक नोट को प्रियांशी 4 बार बैंक में जाकर फिर इसके छुट्टे पा सकी.

इस किल्लत के बारें में जब आईडीबीआई के शाखा प्रमुख आनंद भिमटे से पूछा गया तो उनका का कहना है कि 8 नवम्बर के नोटबंदी एलान के बाद से बैंकों का काम पूरी तरह ठप हो गया है. कोई भी लेन-देन अब नहीं हो रहा है, क्योंकि ‘मनी सरकुलेट’ नहीं हो पा रही है. अभी तक केवल पुराने नोट 500 और 1000 के ही जमा हो रहे हैं. नए नोट बहुत कम मात्रा में आ रहे हैं. दो हजार के नोट ही अधिकतर आ रहे हैं, अभी तक केवल एक बार, नोटबंदी के 12 दिन बाद 500 रुपये के नए नोट करीब 2 लाख तक ही मेरे ब्रांच में आये थे, जो बहुत जल्दी खत्म भी हो गए. इसके बाद मैं बार-बार 500 रुपये की नोट भेजने की रिक्वेस्ट भेजता हूं पर केवल दो हजार ही आते हैं. पहले इस ब्रांच में एक से सवा करोड़ का कैश रोज आता था, अब केवल 50 लाख तक का कैश आता है जिसमें 80 प्रतिशत दो हजार के नोट और 20 प्रतिशत 100 रुपये के पुराने और खराब नोट आ रहे हैं. जिसे ग्राहक खुद लेने से मना कर रहे हैं.

नोट कम आने से लोगों को हम केवल 10 हजार तक ही दे पा रहे हैं ताकि सभी को कुछ न कुछ पैसा मिले और उनका घर चले. कई बार तो लोग इतना बिफर पड़ते है कि उन्हें समझाना मुश्किल हो जाता है, जिससे हमें पुलिस प्रोटेक्शन लेना पड़ रहा है. 70 प्रतिशत एटीएम खाली पड़े हैं, क्योंकि पैसे की कमी है. अभी तक जितने पुराने नोट जमा हुए है उसे भी आर बी आई नहीं ले रही है. आगे क्या होगा समझना मुश्किल हो रहा है. हर दिन कुछ नया ‘सर्कुलर’ सरकार पास कर रही है. जिससे सभी लोग हाथ पर हाथ धरे नए एलान की प्रतीक्षा कर रहे हैं. उम्मीद है 30 दिसम्बर के बाद जब पुराने नोटों की जमा खत्म होगी, तब नए नोटों का सर्कुलेशन बढ़ेगा. फिर कुछ कारोबार होगा.

नोटबंदी का असर सबसे अधिक छोटे दुकानदार पर पड़ा है. कोल्हापुरी चप्पल विक्रेता उमेश कहते हैं कि हम छोटा कारोबार करते हैं, जिसमें 500 और हजार के नोट अधिक चलते थे, इसके बंद हो जाने से व्यापार पूरी तरह ठप हो गया है. दो हज़ार के छुट्टे कहां से लाऊं? फुटकर बिक्री भी करीब बंद हो गई है. एटीएम से रोज दो हजार लेकर व्यक्ति अपनी रोजी-रोटी चलाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि महंगाई अधिक है. ऊपर से उसके छुट्टे मिलना सबसे अधिक मुश्किल है. इसलिए उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं कि जब लोगों को पैसे ठीक से मिले और काम फिर से शुरू हो.

मोदी ‘कैशलेस इंडिया’ चाहते है, क्योंकि चुनाव जीतने के बाद उन्होंने केवल विदेशों का दौरा किया है और चाहते हैं कि वही सहूलियत जो उन्होंने विदेशों में देखी है उसे यहां लाना है. वे भूल गए है कि हमारे देश की साक्षरता अभी केवल 75 प्रतिशत है, जबकि विश्व की औसतन साक्षरता 84 प्रतिशत है. इसके अलावा ‘कैशलेस इंडिया’ के लिए इन्टरनेट की सही स्पीड जरुरी है, जो हमारे देश में काफी ख़राब है. कोई भी लेन-देन करने के बाद आधा से अधिक बार ‘सर्वर डाउन’ बताता है. ऐसे में गरीब अशिक्षित या कम पढ़ी-लिखी जनता क्या करेगी? इतना ही नहीं आधे से अधिक काम बैंकों या सरकारी दफ्तरों में इसलिए पेंडिंग पड़े रहते है, क्योंकि इन्टरनेट स्लो है.

इस नोटबंदी के बारें में इकोनॉमिस्ट शुजीत शाह बताते हैं कि इसका प्रभाव अच्छा हो सकता था, पर सही तरह से तैयारी के साथ इसे लागू नहीं किया गया, इसलिए इतनी समस्या आ रही है. इसे ठीक होने में करीब 6 महीने का समय लग सकता है. लेकिन इस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है.

नोटबंदी को पहले भी कई देशों में लागू किया गया पर प्रभाव अधिकतर नकारात्मक ही रहा. अभी देखना है कि हमारे देश के हालात कब सुधरेंगे और कब हमारी अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आएगी. कब तक गरीब जनता घंटों लाईन में खड़ी रहने के लिए बेबस होगी. कब तक उनका अपना पैसा उन्हें आसानी से मिल पायेगा.

टाटा पर 3000 करोड़ का मानहानि का मुकदमा

टाटा समूह की कुछ कंपनियों में एक स्वतंत्र निदेशक एवं उद्योगपति नुस्ली वाडिया ने टाटा संस एवं उसके निदेशकों के खिलाफ 3000 करोड़ रुपये की मानहानि का मामला दर्ज कराया है.

वाडिया के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि यह मामला गुरुवार को बंबई हाईकोर्ट में दर्ज कराया गया. टाटा संस ने टाटा मोर्ट्स, टाटा स्टील एवं टाटा केमिकल्स समेत टाटा समूह की फर्मों में स्वतंत्र निदेशक वाडिया पर अपने हित साधने का आरोप लगाते हुए उन्हें निदेशक मंडल से हटाने के लिए प्रस्ताव पेश किया था, जिस पर कंपनियों के संबंधित शेयरधारकों को मतदान करना है.

इससे पहले भी वाडिया ने टाटा संस बोर्ड को मानहानि नोटिस देकर कहा था कि वह उनके खिलाफ लगाए गए 'झूठे अपमानसूचक एवं अपमानजनक' आरोप वापस ले.

हैक हो सकता है आपका भी स्मार्टफोन

स्मार्टफोन, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड या आपकी कोई भी निजी जानकारी महज कुछ क्लिक्स में ही हैक की जा सकती है. आपके फोन में कई ऐसे सेंसर होते हैं जो किसी भी जानकारी को हैक करने में बड़ा रोल निभाते हैं. चाहें बैंक का पासवर्ड सेव करने की बात हो या फिर फोटोज सेव करने की, हर कोई स्मार्टफोन में ही अपनी निजी जानकारी सेव करके रखता है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस फोन में आप अपने पासवर्ड, फोटोज जैसी अहम चीजें रखते हैं वो कभी-कभी खतरनाक भी साबित हो सकता है? जी हां, आपका स्मार्टफोन महज 30 सेंकेड में कोई भी हैक कर सकता है.

फोन का टिल्ट सेंसर

क्या आप जानते है कि फोन में एक टिल्ट सेंसर होता है जो आपके कंप्यूटर की जानकारी को हैक कर सकता है. कई फोन्स में मोशन सेंसिटिविटी फीचर होता है जो आपके कंप्यूटर मे टाइप हो रहे शब्दों को चुरा सकता है. हो सकता है कि आपका कोई दोस्त आपकी निजी जानकारी चुराना चाहता है और वो अपना फोन आपकी डेस्क पर रख दें.

ऐसा करने से आप कंप्यूटर पर जो भी काम कर रहे होंगे वो सभी जानकारी उसका फोन चुरा लेगा. अगर आप अपने कंप्यूटर पर ऑनलाइन कोई पेमेंट कर रहे हैं, तो आपके अकाउंट की डिटेल, पासवर्ड आदि सभी कुछ कॉपी किया जा सकता है.

स्मार्टफोन सेंसर:

क्या आप जानते हैं कि स्मार्टफोन की मदद से आपके क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स हैक हो सकती है. चौंकने की जरुरत नहीं है क्योंकि ये सच है. आपके स्मार्टफोन में एक सेंसर लगा होता है जिसकी मदद से ये काम आसान है. आपको बता दें कि इसके लिए स्मार्टफोन से निकलने वाली वेब्स का सहारा लिया जाता है. अगर आप किसी अनुभवी हैकर के सामने बैठे हैं और आपका क्रेडिट कार्ड भी वहीं रखा है तो बस समझ लीजिए की आपके क्रेडिट कार्ड की सेवा समाप्त होने वाली है.

हैकिंग सॉफ्टवेयर

अगर आपके फोन में हमेशा ब्लूटूथ और वाइ-फाइ ऑन रहता है तो सावधान. क्योंकि हैकर्स इसी की तलाश में रहते हैं. इसके लिए हैकर्स किसी भी भीड़-भाड़ वाली जगह पर अपने लैपटॉप में हैकिंग सॉफ्टवेयर को एक्टिवेट करता है. जिसके जरिए ब्लूटूथ और वाइ-फाइ के सिग्नल पकड़ में आ जाते हैं. जाहिर है कि हैकर्स आपके स्मार्टफोन के इंटरनल भागों में जाकर अहम जानकारी चुरा सकता है.

पीएफ के लिए यूनिवर्सल अकाउंट नंबर जरूरी

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) प्रॉविडेंट फंड (पीएफ) ट्रांसफर और निकासी की प्रक्रिया को तेज और अधिक सुविधाजनक बनाने की तैयारी कर रही है. इसके लिए ईपीएफओ कई बड़े परिवर्तन लाने जा रहा है. इसी क्रम में इलेक्ट्रानिक चालान रिटर्न पोर्टल 17 दिसंबर से बंद हो जाएगा. 17 दिसंबर के बाद आपका पीएफ अकाउंट बंद हो जाएगा. इसकी जगह यूनिवर्सल एकाउंट नंबर (यूएएन) ले लेगा.

अब आपको ईसीआर (इलेक्ट्रॉनिक चालान कम रिटर्न) फाइल करने के लिए पहले ही अपना यूएएन (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर) जेनरेट करवाना पड़ेगा या फिर पहले जेनरेट हो चुके नंबर को लिंक करवाना पड़ेगा. अब पीएफ के स्थान पर यूएएन आ जाएगा. कोई भी कर्मचारी यदि अपनी नौकरी बदलता है तो उसे पीएफ खाता ट्रांसफर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

अब से कर्मचारी का एक ही नंबर (यूएएन) रहेगा. उसमें कर्मचारी का केवाईसी भी शामिल किया जाएगा. इसमें कर्मचारी का आधार कार्ड नंबर, बैंक एकाउंट नंबर एवं मोबाइल नंबर भी जोड़ दिया जाएगा. कर्मचारी इसके बाद देश के किसी भी शहर से अपने खाते का संचालन कर सकेगा.

यूएएन और ईसीआर दोनों ही के नए वर्जन लॉन्च किए जा रहे हैं. हालिया ईसीआर पोर्टल 17 दिसंबर, 2016 की शाम 6 बजे तक ऐक्टिव रहेगा और नया पोर्टल 20 दिसंबर से शुरू कर दिया जाएगा.

 

शिकंजे में सुपर लेडी तस्कर

राजस्थान के जिला जोधपुर के पाल बाईपास स्थित शहर के सब से महंगे कहे जाने वाले रिहायशी इलाके पार्श्वनाथ सिटी के दक्षिणपश्चिम दिशा की ओर से दाखिल होते ही निचले तल में बेरीकैड्स से घिरी विशाल चौमंजिला इमारत अपनी भव्यता से ही नहीं चौंकाती थी, बल्कि इस बात का अहसास कराती थी कि निश्चित रूप से यह किसी बड़े और रसूखदार आदमी का मकान है. वह जिस रसूखदार महिला का मकान था, उस का नाम सुमता विश्नोई था. मंगलवार 11 अक्तूबर, 2016 को नवरात्र खत्म होने पर आयोजित पूजाअर्चना में मेहमानों की आवाजाही को ले कर इमारत के बाहर और भीतर अच्छीखासी गहमागहमी थी.

दोपहर लगभग 2 बजे नवरात्र पूजन के बाद जब सुमता अपने मेहमानों की खातिरदारी में लगी थी, तभी एकाएक वहां पसरी चहलपहल को जैसे काठ मार गया. मेहमानों के खिले और ठहाके लगाते चेहरों पर एकाएक बदहवासी सी छा गई. महफिल की इस रौनक को बदमजा करने वाली उस शख्सियत का नाम था अर्जुन सिंह, जो शहर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त थे.

वह बड़ी लापरवाही से विशाल ड्राइंगरूम के महंगे कालीन को रौंदते हुए सातवें आश्चर्य की तरह सुमता विश्नोई के सामने आ खड़े हुए थे. हतप्रभ सुमता की चौकस निगाहें पहले सीसीटीवी स्क्रीन पर गईं, जो सलेट की तरह साफ पड़ी थी. इस के बाद उस की भेदती निगाहें अपने बौडीगार्ड और सब से विश्वसनीय सहयोगी प्रदीप विश्नोई के चेहरे पर जा कर अटक गईं, जो असहाय निगाहों से उसी की तरफ देख रहा था.

सुमता के चेहरे पर हैरानी के भाव आए बिना नहीं रह सके. क्योंकि बंगला पूरी तरह से हाईटेक था. उस के एक कमरे से तकनीकी उपकरणों एस्कौर्टिंग तथा पायलटिंग सरीखे ‘एप’ की मदद से इमारत में किसी के भी दाखिल होने को ले कर चौकस नजर रखी जा रही थी. इस के बावजूद बंगले में पुलिस आ गई थी और किसी को भनक तक नहीं लगी थी. सीसीटीवी की स्क्रीन पर भी किसी के भीतर आने की झलक तक नहीं दिखी थी.

सुमता का सब से बड़ा ‘सुरक्षा चक्र’ टूट चुका था. इस का मतलब साफ था कि कोई घर का भेदी पलीता लगा गया था. उस का चेहरा जर्द पड़ चुका था. लेकिन उस ने समय की नजाकत को फौरन भांप लिया था और अगले ही पल चेहरे का तनाव दूर करते हुए भरपूर आत्मविश्वास के साथ एडीसीपी अर्जुन सिंह से नजरे मिलाते हुए पूछा, ‘‘आप से सिर्फ एक बात पूछूंगी औफिसर कि आप मुझ तक पहुंचे कैसे?’’

अर्जुन सिंह के कठोर चेहरे पर एक पल के लिए कई रंग आए और गए, लेकिन अगले ही पल चेहरे की कठोरता मुसकराहट में बदल गई. किसी गहरे रहस्य को उजागर करने के अंदाज में उन्होंने कहा, ‘‘आप के जीपीएस सिस्टम में लगी ‘सिम’ को जब हम ने ‘टै्रस’ किया तो उसे मौनीटर करने वाले नंबर और उस से बात करने वाले दूसरे लोगों के नंबर हमारे सामने आ गए. जब उन नंबरों को खंगाला गया तो उस से जो नाम सामने आया, मैं गलत नहीं हूं तो वह नाम आप का था.’’

मारवाड़ी लिबास में चेहरे पर हल्का घूंघट डाले किसी कुलीन परिवार की सुलक्षणा बहूबेटी की तरह नजर आने वाली महिला के रूप में 3 राज्यों की कुख्यात तस्कर लेडी डौन के रूप में कल्पना करने से भी हिचक रहे अर्जुन सिंह अब सुमता के जवाब से पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे थे कि उन्होंने प्रदेश की सब से बड़ी शातिर महिला तस्कर को पहचानने में कहीं कोई गलती नहीं की थी.

अर्जुन सिंह ने अपनी काररवाई को आगे बढ़ाते हुए पुलिस की गिरफ्त में आई लेडी डौन की उत्सुकता को मिटाना जरूरी समझा. उन्होंने कहा, ‘‘पहले तो मैं तुम्हारे हौसले की दाद देना जरूरी समझता हूं कि शुक्रवार 7 अक्तूबर, 2016 को यानी 4 दिनों पहले डोडापोस्त से भरी गाड़ी पकड़े जाने के बाद भी तुम्हारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा और न तुम ने भागने की कोशिश की और न छिपने की. क्योंकि तुम्हें तस्करी के अपने ‘फूलप्रूफ’ सिस्टम पर पूरा भरोसा था कि पुलिस चाहे जितनी भी गहरी जांच कर ले, तुम्हारी छाया तक को नहीं छू सकती.’’

अर्जुन सिंह ने पस्त होते सुमता के चेहरे पर एक नजर डाल कर आगे कहा, ‘‘कल यानी मंगलवार 10 अक्तूबर को पुलिस को जोधुपर की तरफ से आने वाली फौर्च्यूनर गाड़ी में डोडापोस्त होने की जानकारी मिली तो गाड़ी को लूणी-काकाणी के पास रोक कर उस की तलाशी ली गई. मालबरामदगी के साथ उस में जीपीएस सिस्टम भी लगा पाया गया. डोडापोस्त के साथ पकडे़ गए तुम्हारे आदमी तो इस बारे में कुछ नहीं बता पाए, क्योंकि वे तो सिर्फ माल सप्लाई करते थे. इस के बाद उन का काम खत्म हो जाता था.

‘‘गाड़ी में लगे जीपीएस सिस्टम ने हमें तुम तक पहुंचा दिया. हम ने जब जीपीएस से ताल्लुक रखने वाली कंपनी से जानकारी जुटाई तो हमें पता चला कि इसे सुमता विश्नोई औपरेट कर रही थी. सूचना सही थी, लिहाजा तुम्हारी वह सोच गलत साबित हो गई कि महंगी टाउनशिप में रिहायश से आपराधिक गतिविधियो ंपर परदा पड़ा रहता है और कोई शक नहीं करता. लेकिन उस में सेंध लग गई.’’

पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) समीर कुमार के निर्देशन में तस्करी के इतने बड़े नेटवर्क का खुलासा होने के बाद पुलिस कमिश्नर अशोक राठौर भी तत्काल मौके पर पहुंच गए थे. सुमीर कुमार के निर्देशन में 50 से अधिक जवानों की टीम ने सुमता विश्नोई के घर छापा मारा था. अर्जुन सिंह, विपिन कुमार और थाना बोरानाडा के थानाप्रभारी अनवर खां छापे की पूरी कमान संभाले थे.

पुलिस टीम ने सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई और उस के विश्वसनीय सहयोगी प्रवीण विश्नोई को 75 ग्राम अफीम और 4 लाख 20 हजार रुपए की नकदी के साथ हिरासत में लिया था. सुमता के विशाल मकान की तलाशी में होने वाले खुलासों ने पुलिस अधिकारियों को बुरी तरह चौंका दिया था.

अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर विपिन शर्मा के अनुसार, सिर्फ चौथी तक पढ़ीलिखी ग्रामीण परिवेश की औरत अपने बैडरूम में बनाए गए जीपीएस कंट्रोल रूम से 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में तस्करी का पूरा नेटवर्क चला रही थी. तलाशी में उस का जो स्मार्ट फोन मिला था, उस से वह करोड़ों की तस्करी का कारोबार करती थी.

नोट गिनने वाली मशीन की बरामदगी ने पुलिस को हैरान कर दिया था कि तस्करी के धंधे से इतनी रकम आ रही थी कि नोट गिनने के लिए उसे मशीन की जरूरत पड़ती थी. इनोवा और फौर्च्यूनर गाड़ी तो पुलिस पहले ही जब्त कर चुकी थी. इस के बाद उस के घर से मिली स्कौर्पियो, वेरना, स्विफ्ट और इंडिगो ने पुलिस के इस शक को और पुख्ता कर दिया था कि सुमता अपने धंधे में रफ्तार और टैक्नोलौजी का बेहतर इस्तेमाल कर रही थी.

पुलिस ने उस के घर से फर्जी आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस के अलावा भारी संख्या में जमीनों के दस्तावेज बरामद किए. इस के अलावा पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत मनोहरलाल, शैतानाराम, घेवरराम तथा शांतिलाल को भी गिरफ्तार किया था.

सुमता को अब इस बात पर पछतावा हो रहा था कि तस्करी के लिए गाडि़यों पर नजर रखने के लिए उस ने जो जीपीएस सिस्टम लगवाया था, वही उस की गिरफ्तारी की वजह बन गया. यही नहीं, किसी प्रकार के खतरे से बचने के लिए वह चुराई गई लग्जरी गाडि़यां ही इस्तेमाल करती थी. लेकिन अब उस का यह भ्रम टूट गया था. अपने घर के बैडरूम से सुमता ने जीपीएस टै्रकर को ‘एप’ के जरिए मोबाइल से कनेक्ट कर रखा था.

सुमता विश्नोई एक बार की सप्लाई के लिए 2 गाडि़यों का इस्तेमाल करती थी. एक गाड़ी में डोडापोस्त होता था तो दूसरी गाड़ी एस्कौर्ट के रूप में 3-4 किलोमीटर आगे चलती थी. अगर कहीं पुलिस चैकिंग का अंदेशा होता था तो पीछे वाली गाड़ी को तुरंत सतर्क कर दिया जाता था. इस मामले में सुमिता गैरों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती थी. एस्कौर्ट गाडि़यों में उस के अपने लोग होते थे.

यही नहीं, सुमता को स्थानीय ड्राइवरों पर भी भरोसा नहीं होता था, इसलिए वह मध्य प्रदेश के ड्राइवरों का इस्तेमाल करती थी. 3 ट्रिप के बाद उस ड्राइवर को हटा दिया जाता था. इस बीच ड्राइवर को इस बात की भनक तक नहीं लग पाती थी कि वह किस के लिए काम कर रहा है. स्थानीय ड्राइवर वह इसलिए नहीं रखती थी, क्योंकि उन से उसे पुलिस और तस्करों के दूसरे गैंग से मुखबिरी का अंदेशा रहता था.

50 तस्करों के गिरोह की मुखिया सुमता अपने इस धंधे में बहुत ज्यादा सतर्कता बरतती थी. उसे पता था कि पुलिस मोबाइल लोकेशन और कौल ट्रैस कर के आसानी से पकड़ सकती है. इसीलिए हर 6 दिन बाद वह गिरोह के सदस्यों के मोबाइल के सिम बदलवा देती थी. सिम खरीदने के लिए फरजी आईडी का उपयोग किया जाता था. पैसों के लेनदेन के लिए उस ने फर्जी नामों से बैंक खाते खुलवा रखे थे.

सुमता ने तस्करी जैसे खतरनाक और जटिल धंधे का इतना बड़ा नेटवर्क कैसे खड़ा  किया, यह बात हैरान करने वाली थी. जबकि इस की वजह यह थी कि वह अखबारों की उन खबरों को गौर से पढ़ती थी, जिन में तस्करों के बारे में लिखा होता था कि पुलिस ने उन्हें कैसे पकड़ा था, उन की कौन सी कमजोरी पुलिस के लिए फायदेमंद बनी थी, पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए कौन से तरीके अपनाए थे, कौन सी कमजोरियों की वजह से वे पुलिस के हत्थे चढ़े थे?

सुमता के बताए अनुसार, तस्करी उस के लिए एक तरह से नशा बन गई थी. यही वजह थी कि कई बार चित्तौड़गढ़ से जोधपुर तक का साढ़े 3 सौ किलोमीटर का फासला उस ने खुद गाड़ी चला कर तय किया था. इस से उसे पता चला कि लग्जरी गाड़ी चलाने वाली महिलाओं पर पुलिस जल्दी शक नहीं करती. उस ने इस का भरपूर फायदा उठाया और प्रदेश में जब भी डोडापोस्त को ले कर पुलिस ने सख्ती की, उस ने खुद गाड़ी चला कर माल पहुंचाया.

सुमता की दिलेरी की इसी बात से पता चलता है कि पुलिस गिरफ्त में होने के बावजूद डरने के बजाय वह मीडिया को डराने से बाज नहीं आई थी. कोर्ट में पेशी के दौरान उस के तेवरों में जरा भी कमी नहीं आई थी. जिस समय उसे रिमांड पर पुलिस के हवाले किया जा रहा था, मीडिया वालों ने उस के फोटो लेने के लिए उसे घेर लिया. इस पर वह बुरी तरह से भड़क उठी और चेतावनी देने वाले अंदाज में बोली, ‘‘कैमरे नीचे कर लो, वरना अभी कोर्ट में हंगामा हो जाएगा.’’

सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई की कहानी वाकई हैरान करने वाली है. बकरियां और गायभैंस चरा कर बामुश्किल जिंदगी गुजारने वाली गांव की सीधीसादी औरत कैसे 3 राज्यों की इनामी तस्कर के रूप में खतरनाक ‘लेडी डौन’ बन गई, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

जोधपुर के ओसियां में एक गांव है बानों का बास. यहां सुनीता, जो अब सुमता के नाम से जारी जा रही है, कभी गायभैंस और बकरियां चराया करती थी. चौथी कक्षा में फेल होने की वजह से वह पढ़ाई छोड़ चुकी थी. पिता किसान थे. सुनीता भले ही गायभैंस चराती थी, लेकिन उस का सपना था कि उस के पास सवारी के लिए अमीरों की तरह महंगी कारों का काफिला हो और बंगलों में ऐशोआराम की जिंदगी जिए.

अच्छे कपड़ों के लिए बचपन में गुल्लक में एकएक रुपए जमा करने वाली सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई के घर में जब पुलिस ने छापा मारा तो तलाशी लेने में पूरा एक दिन लग गया. मकान में बाथरूम से ले कर हर कमरे में एसी लगे थे. सारा फर्नीचर विदेशी था. हाईटेक सिक्योरिटी लौक लगे उस के घर से पुलिस ने 5 लग्जरी कारें बरामद कीं. उस के बैंक एकाउंट में करोड़ों की रकम होने का अंदेशा है.

राजूराम भादू से बाल विवाह के बाद सन 2001 में सुनीता का गौना हुआ था. इस के बाद उसे 2 बेटे हुए. पति के पास कोई रोजगार नहीं था, इसलिए जीवन तंगहाली में गुजर रहा था. पति के लिए नौकरी और बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने की चाहत सन 2010 में उसे गांव से जोधपुर ले आई. शहर में वह किराए के मकान में रहती थी.

सुनीता उर्फ सुमता पति के लिए नौकरी ढूंढ रही थी, तभी किसी रिश्तेदार ने उसे राजूराम ईरोम से मिलवाया. अनपढ़ होने के बावजूद राजूराम को लग्जरी कार में देख कर वह चौंकी. रिश्तेदार से पूछने पर पता चला कि वह गुजरात का अवैध शराब का बहुत बड़ा तस्कर है.

अमीर बनने का राजूराम का यह तरीका उसे इस कदर भाया कि उस ने उस से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. जल्दी ही वह उस के काम करने के तरीके और नेटवर्क को समझ गई. पर राजूराम ने उसे काम देने से मना कर दिया. उस का कहना था कि औरतों को तस्करी जैसे खतरनाक धंधे में नहीं आना चाहिए.

लेकिन एक बार शराब की डिलवरी के लिए एस्कौर्ट वाहन का ड्राइवर नहीं आया तो सुनीता इस काम के लिए अड़ गई. उस ने कहा कि वह कार चलाना जानती है और यह काम अच्छी तरह कर लेगी. सुनीता की जिद पर राजूराम ने उसे काम सौंप दिया. पहली बार में उसे 10 हजार रुपए की कमाई हुई.

फिर क्या था, सुनीता ने शराब से भरी गाडि़यों को नियमित रूप से एस्कौर्ट करना शुरू कर दिया और फिर धीरेधीरे वह राजूराम की पार्टनर बन गई. तस्करी के धंधे में आने के बाद उस के घर तस्करों का आनाजाना शुरू हो गया. इस से ससुराल वालों की बदनामी होने लगी तो उन्होंने उस से नाता तोड़ लिया.

पति ने भी ऐतराज किया तो सुनीता ने उसे ट्रैक्टर दिलवा कर बंगलुरु भेज दिया और खुद पूरी तरह से तस्करी के धंधे में उतर गई. लेकिन जब अंधाधुंध कमाई होने लगी तो खिलाफत करने वाले ससुराल वाले भी उस के साथ आ गए और उस के काम में हाथ बंटाने लगे.

सुनीता ने राजूराम ईरोम का रुझान अपनी ओर होते देखा तो उसे प्रेमजाल में फंसा कर धंधे की कमान अपने हाथों में ले ली. अब तक वह सुनीता से सुमता हो गई थी. उस का दोहरा व्यक्तित्व भले ही चौंकाने वाला था, लेकिन यही उस के कारोबार की बरकत और लोगों को प्रभावित करने का सब से बड़ा हथियार था.

 बुधवार 12 अक्तूबर, 2016 को कोर्ट से रिमांड हासिल करने के बाद शाम को जब उसे थाना बोरानाडा लाया गया तो मारवाड़ी पोशाक में चेहरे पर घूंघट डाले सुमता एकदम शांत थी. बेंच पर बैठने की इजाजत ले कर जब वह बैठी तो पूछताछ में उस ने बताया कि तस्करी के कारोबार में पांव रखने से पहले उस ने एक तीर से 2 निशाने साधे.

अपना मैदान खाली करने के लिए उस ने पुलिस की मुखबिरी कर के तस्करी के बड़े घडि़यालों को पकड़वाया. इस से उसे पुलिस का विश्वास हासिल हो गया. रास्ता खुला तो तस्करी के काम में मारवाड़ से ले कर मध्य प्रदेश तक उस की कमाई में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई. बेहिसाब कमाई को देख कर जैसे उसे पंख लग गए.

इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हर दूसरे दिन 2 से 3 क्विंटल डोडापोस्त की सप्लाई से उसे 3 लाख रुपए का मुनाफा होता था. इस तरह हर महीने उसे 45 से 50 लाख रुपए की कमाई होती थी.

कभी पार्श्वनाथ कालोनी के बाहरी इलाके में किराए की टापरी में रहने वाली सुमिता का अपना मकान अब करीब 4 करोड़ का है. उस के बच्चे शहर के प्रतिष्ठित कान्वैंट स्कूल में पढ़ते हैं. ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए उस ने बेटे मनीष के नाम से कंस्ट्रक्शन कंपनी खोल रखी थी.

कारोबार को ले कर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा था. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले उसने तस्करी के धंधे में जमे लोगों को खत्म किया. क्योंकि वह जानती थी कि जब तक वे लोग रहेंगे, वह निश्ंिचत हो कर धंधा नहीं कर पाएगी. इस धंधे में गैंगवार भी होती है. सीधी लड़ाई लड़ने के बजाय उस ने कांटे से कांटा निकालने की जुगत लड़ाई. अपने पार्टनर राजूराम की गैंगवार का नतीजा वह देख चुकी थी.

इसलिए उस ने सीधी लड़ाई लड़ने के बजाय पुलिस को इत्तला दे कर विरोधी तस्करों को पकड़वाया.  इस तरह बिना जंग के ही उस के लिए पूरा मैदान खाली हो गया. जालौर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर और जैसलमेर की डोडापोस्त की सप्लाई आसानी से उस के हाथों में आ गई.

डोडापोस्त की सप्लाई के हिसाब से पश्चिमी राजस्थान बहुत अच्छा इलाका है. यहां लोग इस के लती भी हैं. जिस से सुमिता को काफी लाभ हुआ.

जोधपुर पश्चिम के डीसीपी समीर सिंह के अनुसार, राजस्थान में किसी महिला तस्कर से जुड़ा यह पहला मामला है. अभी तो बहुत कुछ खुलासा होना बाकी है, क्योंकि कई सालों तक ‘लेडी डौन’ सुमिता ने पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर अंधाधुंध कमाई की है. डोडापोस्त की इतनी बड़ी तस्कर को पकड़ लेना जोधपुर पुलिस की एक बहुत बड़ी कामयाबी है. फिलहाल सुमता पुलिस अभिरक्षा में है. देखना यह है कि अभी उस के और कितने किस्सों का खुलासा होता है.

सुनीता उर्फ सुमता ने तस्करी से 6 सालों में करोड़ों की कमाई कर के जो प्रौपटी बनाई है, पुलिस उसे कुर्क कराने का प्रयास कर रही है. इस के लिए पुलिस तस्करी से कमाई गई उस की और उस के रिश्तेदारों की प्रौपटी का पता लगाया जा रहा है. पुलिस उस से और उस के गिरोह से जुड़े तस्करी के कई पुराने लंबित मामलों को भी खोलने का प्रयास कर रही है.

पुलिस एनडीपीएस एक्ट की धारा 68 के तहत सुनीता उर्फ सुमता विश्नोई के पिछले 6 साल के तस्करी के सारे मामले खंगाल रही है. लूणी थाना क्षेत्र में गत 15 अगस्त, 2016 को पुलिस ने 2 क्विंटल 85 किलोग्राम डोडापोस्त से भरी इनोवा गाड़ी पकड़ी थी, लेकिन तस्कर फरार हो गए थे.

पूछताछ में सुमता ने स्वीकार  किया कि वह इनोवा और उस में भरा डोडापोस्त उसी का था. पुलिस सुमता गिरोह के पूरे नेटवर्क का खुलासा करने के लिए उस के पार्टनर राजूराम ईरोम की तलाश में जुटी है. लेकिन वह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है.

लेखक : रमेशचंद्र शर्मा

चेन्नई टेस्टः पहली गेंद पर ही कुक ने बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड

भारत और इंग्लैंड के बीच पांच मैचों की सीरीज का आखिरी टेस्ट मैच चेन्नई के एम.ए. चिदंबरम स्टेडियम पर खेला जा रहा है. इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला लिया.

भारतीय टीम सीरीज 3-0 से पहले ही जीत चुकी है. अब 'विराट टीम' की कोशिश होगी सीरीज पर 4-0 से कब्जा जमाने की.

मैच की पहली ही गेंद पर इंग्लैंड के कप्तान एलिस्टेयर कुक ने इंग्लैंड की तरफ से बड़ा रिकॉर्ड अपने नाम किया. कुक टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज 11,000 रन पूरे करने वाले क्रिकेटर बन गए हैं.

उमेश यादव की पहली ही गेंद पर दो रन लेने के साथ ही कुक ने टेस्ट क्रिकेट में 11,000 रन पूरे कर लिए. इंग्लैंड की तरफ 11,000 रन बनाने वाले वो पहले बल्लेबाज हैं. कुक ने यह कारनामा 10 साल और 290 दिनों में किया. अभी तक कोई भी बल्लेबाज इतने कम समय में 11,000 रन नहीं बना पाया था.

हालांकि पारी के हिसाब से वो काफी पीछे हैं. 140 टेस्ट और 252 पारियों में उन्होंने यह कारनामा किया. सबसे तेज 11,000 रनों का आंकड़ा छूने के मामले में कुक ने पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बॉर्डर और वेस्टइंडीज के शिव नारायण चंद्रपाल को पीछे छोड़ दिया.

बॉर्डर ने 259 और चंद्रपाल ने 256 पारियों में यह कारनामा किया था. सबसे तेज 11,000 रन पूरे करने का रिकॉर्ड श्रीलंका के पूर्व कप्तान कुमार संगकारा के नाम दर्ज है. संगकारा ने 208 पारियों में यह कारनामा किया था.

11,000 रनों के क्लब में पहुंचने वाले कुक 9वें बल्लेबाज बन गए हैं. उनके अलावा संगकारा, ब्रायन लारा, रिकी पोंटिंग, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, जैक कालिस, महेला जयवर्धने, चंद्रपाल और बॉर्डर इस क्लब में शामिल हैं.

दोनों टीमों ने किए बदलाव

इस मुकाबले में दोनों ही टीमों ने प्लेइंग इलेवन में दो-दो बदलाव किए हैं. तेज गेंदबाज जेम्‍स एंडरसन और क्रिस वॉक्‍स की जगह लियाम डॉसन और स्‍टुअर्ट ब्रॉड ने ली है. इसके अलावा भारतीय टीम में भुवेश्‍वर कुमार की जगह ईशांत शर्मा और जयंत यादव की जगह अमित मिश्रा को टीम में शामिल किया गया है.

भारत का पलड़ा है भारी

दोनों ही टीमों के बीच एक बार फिर से जबरदस्त मुकाबला देखने की उम्मीद की जा रही है. इस मैदान पर इंग्लैंड ने आठ टेस्ट खेले हैं, जिसमें उसे तीन टेस्ट में जीत मिली है और चार में हार. इसके अलावा भारत ने यहां 31 में से 13 टेस्ट जीते हैं.

कोहली तोड़ सकते हैं गावस्कर का रिकॉर्ड

इस मुकाबले में कप्तान कोहली का इंतजार एक नया कीर्तिमान कर रहा है. अगर विराट इस मैच में 135 रन बनाते हैं तो वो एक सीरीज में सुनील गावस्कर द्वारा बनाए गए सबसे ज्यादा रनों 774 के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे.

गावस्कर ने 1971 में वेस्टइंडीज के खिलाफ उसकी सरजमीं पर अपनी पदार्पण सीरीज में 774 रन बनाए थे. कोहली ने इंग्लैंड के खिलाफ मौजूदा सीरीज में अब तक चार मैचों की सात पारियों में दो शतकों की मदद से 640 रन बनाए हैं और उनका औसत 128.00 है.

कपिल से आगे निकल सकते हैं अश्विन

भारतीय टीम के स्टार स्पिन गेंदबाज आर अश्विन शानदार फॉर्म में हैं. वो अबतक चार टेस्ट मैच में 27 विकेट झटक चुके हैं. जिसमें पारी में पांच विकेट तीन बार और टेस्ट में 10 विकेट एक बार शामिल हैं. अश्विन के पास एक कैलेंडर वर्ष में पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज कपिल देव का सर्वाधिक 75 विकेट लेने का रिकॉर्ड तोड़ने का शानदार मौका है.

कपिल ने 1983 में 18 मैचों में 75 विकेट हासिल किए थे, जबकि अश्विन ने 11 मैचों में 71 विकेट ले लिए हैं. चेन्नई वैसे भी अश्विन का घरेलू मैदान है और इस मैदान में 2013 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कुल 12 विकेट हासिल किए थे.

दोनों टीमें इस प्रकार हैं

भारत

विराट कोहली (कप्तान), मुरली विजय, केएल राहुल, चेतेश्वर पुजारा, करुण नायर, पार्थिव पटेल, आर अश्विन, रवींद्र जडेजा, अमित मिश्रा, ईशांत शर्मा, उमेश यादव

इंग्लैंड

एलिस्टर कुक (कप्तान), कीटन जेनिंग्स, जो रूट, मोईन अली, जानी बेयरस्टो,बेन स्टोक्स,जोस बटलर,लियाम डॉसन, स्टुअर्ट ब्रॉड, आदिल राशिद, जेक बाल

ट्रंप और कट्टरता

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अमेरिका में पीढि़यों से रह रहे दक्षिणी अमेरिकियों (जिन्हें वहां लैटिनो कहा जाता है), अश्वेतों (जिन्हें 2-3 सदियों पहले गुलामों की तरह लाया गया था), चीनियों (जो कुलियों का काम करने आए थे) और दूसरे देशों के गरीबों से अलग से लगने वालों के खिलाफ माहौल बना दिया. वहां के कट्टरपंथी चर्चों में भीड़ बढ़ाने वाले गोरे अमीर और कामगार भी अब 40-50 साल की बराबरी के अवसरों की क्रांति के पर कुचलने को तैयार हो गए हैं.

यह दुनियाभर के लिए खतरे का संदेश है. अमेरिका अब तक दुनियाभर के सताए गए लोगों की पनाहगाह था, अब डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी में सताए गए लोगों की कब्र बना रहा है. हिलेरी क्लिंटन की हार ने अमेरिका में सामाजिक समरसता को 50 साल पीछे खदेड़ दिया है. अमेरिका के विकास में वहां यूरोप, एशिया व अफ्रीका से आए लोगों का बड़ा योगदान है पर अमेरिकी गोरों की राय है कि यह देश उन्होंने ही बनाया है और ये इमीग्रैंट, आव्रजक उन के देश पर बोझ हैं, खतरा हैं, निकम्मे हैं, खूनखराबा करने वाले हैं.

ऐसा नहीं कि दुनिया के दूसरे देश बहुत साफ और खुलेदिल से अपने से अलग लोगों का स्वागत करते हों. हर समाज अपने से अलग लोगों को भय की निगाह से देखता है और यदि वे वहां थोड़े से भी सफल हो जाएं तो वहां का समाज बेहद ईर्ष्यालु हो उठता है.

डोनाल्ड ट्रंप ने इसी ईर्ष्या का लाभ उठा कर रंगबिरंगे लोगों के खिलाफ कट्टर गोरों को जमा किया था और अब जब तक रिपब्लिकन पार्टी का राज रहेगा, यह भेदभाव बढ़ेगा. अमेरिका के गोरों को एहसास हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, सड़कों पर प्रदर्शनकारी आदि चाहे जो कहते रहें, उन का आज भी बहुमत है और उस के सहारे वे ऐसा समाज बना सकते हैं जिस में गोरे श्रेष्ठ हों और बाकी सेवक रहें.

यह छूत की बीमारी है, दूसरे गोरे देशों में नहीं पहुंचेगी, इस की कोई गारंटी नहीं. यूरोप के कई देशों में कट्टरवादी पार्टियां हावी होने लगी हैं.

भारत, चीन, आस्ट्रेलिया, जरमनी जैसे देश इस धधकती आग के धुएं से बच पाएंगे, इस में शक है. भारत तो काफी पहले से सुलग रहा है और धर्म व जाति का कहर यहां फिर सिर उठा रहा है. दूसरे देशों में ट्रंपिज्म का कहर गहराएगा, यह पक्का है.                          

बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर जा सकते हैं जेल!

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर की मुसीबतें बढ़ सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के खिलाफ कड़ा रूख अख्तियार कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि अगली सुनवाई के दौरान अनुराग ठाकुर पर कार्रवाई हो सकती है.

अनुराग पर आरोप है कि उन्होंने आईसीसी को कहा था कि वो एक चिट्ठी जारी करें और लिखें की अगर बीसीसीआई ने सीएजी नियुक्त किया तो आईसीसी उसकी मान्यता रदद् कर सकता है. कोर्ट ने इसे धोखाधड़ी माना है.

बीसीसीआई में सुधार के मामले पर सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश टी. एस ठाकुर ने कहा कि अनुराग ठाकुर पर कोर्ट की अवमानना का केस चलाया जा सकता है और वह जेल भी जा सकते हैं.

अनुराग ठाकुर ने की परजूरी

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) गोपाल सुब्रमण्यम से पूछा था कि क्‍या बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के खिलाफ परजूरी यानी कोर्ट में झूठे सबूत देने का मामला बनता है या नहीं? इस पर सुब्रमण्यम ने अपने जवाब में कहा कि ठाकुर पर यह मामला बनता है.

इससे नाराज चीफ जस्टिस ठाकुर ने सख्त रुख अपनाते हुए अनुराग ठाकुर पर अवमानना का केस चलाने और ठाकुर समेत बोर्ड के उच्च अधिकारियों को हटाने की चेतावनी दी. हालांकि कोर्ट ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखा है और उम्मीद है कि 2 या 3 जनवरी को फैसला सुनाया जा सकता है.

ठाकुर पर सुधार प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने का आरोप

दरअसल मामला यह है कि शशांक मनोहर जब बीसीसीआई अध्‍यक्ष थे, तब उन्‍होंने कहा था कि बीसीसीआई में सीएजी का नामांकित अफसर सरकार का दखल माना जाएगा और इसके चलते बीसीसीआई, आईसीसी की सदस्‍यता को खो देगी.

बाद में जब मनोहर आईसीसी के चेयरमैन बने तो इस संबंध में अनुराग ठाकुर ने उनसे एक पत्र लिखकर स्थिति स्‍पष्‍ट करने को कहा था, लेकिन मामला कोर्ट में विचाराधीन होने की बात कहते हुए मनोहर ने ऐसा करने से मना कर दिया.

इस पर अनुराग ने कोर्ट में आकर कहा कि उन्‍होंने इस आशय की चिट्ठी मांगी ही नहीं. इस पर एमिकस क्यूरी सुब्रमण्यम ने कहा कि ये दोनों बातें अलग-अलग हैं. ठाकुर ने सुधार प्रक्रिया में बाधा पहुंचाई है, लिहाजा उन पर परजूरी का मामला बनता है.

लोढ़ा कमेटी ने रखे हैं बीसीसीआई में सुधार के कई प्रस्ताव

बता दें कि लोढ़ा कमेटी बीसीसीआई की रूप-रेखा पूरी तरह से बदलना चाहती है. बीते साल जुलाई में जस्टिस लोढ़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट का पहला हिस्सा जारी किया था, जिसके बाद से बीसीसीआई में हलचल मची है.

कमेटी बीसीबीआई में उम्रदराज अधिकारियों को नहीं चाहती और उसने प्रत्येक राज्य में एक ही क्रिकेट संघ स्थापित करने की सिफारिश की थी, जो बोर्ड पूर्ण सदस्य हों और उसे वोट देने का भी अधिकार हो. इसके अलावा पैनल की ऐसी और भी कई शर्ते हैं, जिन्हें बीसीसीआई मानने पर राजी नहीं हो पा रही है.

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