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जी हां! एक खिलाड़ी से भी बनती है टीम

क्रिकेट इतिहास में शायद ही कभी ऐसा देखने को मिला होगा जब टीम के एक ही खिलाड़ी ने रन बनाए हों और बाकी सभी खिलाड़ी खाता भी न खोल पाए हों. साउथ-अफ्रीका के प्रिटोरिया में खेले जा रहे साउथ-अफ्रीका अंडर-19 महिला क्रिकेट टूर्नामेंट में ऐसा देखने को मिला. यहां टीम की एक खिलाड़ी ने 160 रन बनाए जबकि अन्य 9 बल्लेबाज शून्य रन पर यानी बिना खाता खोले मैदान से लौटे. बावजूद इसके टीम जीत दर्ज करने में सफल रही.

यह अद्भुत मैच पुमालंगा और ईस्‍टर्नस के बीच खेला गया. हुआ यूं कि पुमालंगा टीम की ओर से शानिया ली स्‍वार्ट ने 160 रन की पारी खेली. स्‍वार्ट ने अपनी पारी में 144 रन चौके और छक्‍कों से बनाए. उन्‍होंने नाबाद पारी में 86 गेंद का सामना किया और 18 चौके व 12 छक्‍के लगाए. लेकिन उनके अलावा पुमालंगा टीम की बाकी प्‍लेयर्स खाता भी नहीं खोल पाईं. टीम के स्‍कोर में नौ रन एक्‍स्‍ट्रा के रूप में जुड़े.

स्वार्ट क्रीज में मौजूद रहीं और उनके सामने साथी आठ बल्‍लेबाज जीरो पर वापस पवैलियन लौट गईं. पुमालंगा की ओर से सबसे बड़ी साझेदारी 10वें विकेट के लिए 61 रन की हुर्इ. स्‍वार्ट ने निकोलेट फिरी के साथ यह पार्टनरशिप की. इसमें फिरी ने तीन गेंद का सामना किया और वह भी नाबाद लौटीं.

पुमालंगा टीम की हालत इतनी खराब रही कि कोई भी बल्‍लेबाज 10 से ज्‍यादा गेंद का सामना ही नहीं कर पाईं. स्‍वार्ट ने 86 गेंद खेली और उनके बाद सी स्‍वानपूल ने 10 गेंदों का सामना किया. ईस्‍टर्न की ओर से कुल आठ गेंदबाजों ने बॉलिंग की. खोजा मासिंगीता ने चार ओवर में 15 रन दिए और पांच विकेट निकाले.

लक्ष्‍य का पीछा करने उतरी ईस्‍टर्न टीम की शुरुआत भी खराब रही. छह रन पर उसका पहला विकेट गिर गया. सी नजेल (63) ने एक छोर थामे रखा लेकिन दूसरे छोर से रन नहीं बने. बाकी खिलाड़ी क्रीज पर रूके तो सही लेकिन रन नहीं बने. नतीजा यह रहा किे 20 ओवर का कोटा पूरा हो गया और टीम जीत से महरूम रह गई.

किसी टीम के नौ बल्‍लेबाजों के एक भी रन ना बनाने के बावजूद जीत जाने का यह संभवत: पहला मामला है. हालांकि इस तरह के वाकये पहले हो चुके हैं जब टीम के सारे बल्‍लेबाज रन बनाने में नाकाम रहे हो लेकिन ऐसा होने पर उनकी टीमों को भी हार झेलनी पड़ी थी.

रईस का ट्रेलर देखा, अब देखिए फिल्म की पूरी कहानी

'रईस' का ट्रेलर लॉन्च होते ही हिट हो गया है. इस फिल्म की कहानी का प्लॉट भी लोगों को समझ में आ गया होगा. लेकिन जब रईस के ट्रेलर ऑडियो को फेमस टीवी शो Narcos के साथ बनाया गया, तो पूरी फिल्म का स्टाइल समझ आ गया. ये Mashup बड़ी तेज़ी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसे देख कर आपको भी लगेगा कि ये डायलॉग्स बिलकुल इस शो के ट्रेलर के लिए ही बने हैं.

वास्तव में धीरे धीरे यह राज खुल चुका है कि फिल्म ‘‘रईस’’ की कहानी गुजरात के शराब माफिया अब्दुल लतीफ के जीवन पर आधारित है. मूलतः गुजरात के अहमदाबाद शहर में अवैध शराब विक्रेता के रूप में बहुत बड़ा मुकाम हासिल कर लेने वाले अब्दुल लतीफ का राजनीतिक नेताओं के साथ संबंध थे. उसने टीनएजर युवकों के हाथ बोटल में शराब भरकर लोगों तक पहुंचाने का जाल बिछा रखा था. वह गरीब मुस्लिम परिवारों की आर्थिक मदद भी करता था. जुए के अड्डे भी चलाता था. बाद में वह दाउद इब्राहिम से जुड़ गया था और 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट में भी वह आरोपी था.

गुजरात पुलिस ने 1995 में उसे दिल्ली से गिरफ्तार किया था. बाद में 1997 में जेल से भागते समय पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर दिया था. उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री शकर सिंह वाघेला थे. बाद में इसी गुस्से में अब्दुल लतीफ के बेटे शेख आरिफ अब्दुल लतीफ ने शंकर सिंह वाघेला के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था. जब अब्दुल लतीफ के बेटों को पता चला कि फिल्म ‘रईस’ बन रही है, तो इसकी कहानी पता चलते ही अप्रैल 2016 में अब्दुल लतीफ के बेटे मुश्ताक लतीफ ने निर्माताओ के खिलाफ मानहानि का मुकदमा अदालत में दायर किया.

मुश्ताक अब्दुल लतीफ के वकील ने अदालत से कहा था-‘‘फिल्म ‘रईस’ में उनके मुवक्किल के पिता को गलत ढंग से चित्रित किया जा रहा है. उनके पिता ‘टाडा’ में आरोपी थे. वह बोटल में शराब भरकर बेचने के आरोपी थे. लेकिन उन्होंने कभी भी वेश्यागृह नहीं चलाए. अब्दुल लतीफ ने शराब की बिक्री में औरतों का उपयोग नहीं किया. बल्कि मुश्ताक के पिता अब्दुल लतीफ तो गरीबों पर पैसा लुटाया करते थे.’’

वैसे अब्दुल लतीफ पर पहले शरीक मिन्हाज ने ‘‘लतीफः द किंग आफ क्राइम’’ बना चुके हैं. यह फिल्म 6 जून 2014 को प्रदर्शित हुई थी. सूत्र बताते हैं कि उसके बाद ही राहुल ढोलकिया और शाहरुख खान ने ‘रईस’ की योजना बनायी.

सूत्रों के अनुसार 25 जनवरी 2017 को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘रईस’’ की कहानी 80 के दशक के गुजरात की है. यह एक ऐसे इंसान की कहानी है, जिसने पूरे गुजरात में बोटलों में शराब भरकर बेचते हुए अपना बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया था. कहानी उसके आगे बढ़ने और उन रिश्तों की है, जिसकी वजह से पूरे राज्य में एकछत्र राज्य कायम हुआ था. रईस को किसी गैंगस्टर की बजाय एक अतिखडूस व्यापारी की कथा कहा जाना ज्यादा उचित होगा. जिसे किसी से डर नहीं लगता.

रईस (शाहरुख खान) ने निडरता से इस तरह से व्यापार किया कि उसने शोहरत भी पायी. गलत ढंग से बहुत पैसा कमाया. पर लोगों के बीच अपने आपको स्वीकार भी करवाया. वह हमेशा व्यापार को लेकर नए नए आइडिया सोचता रहा. उसने अपने शराब के व्यापार में हर किसी का उपयोग किया.

तो देर क्यों, आप भी देखें ये शानदार Mashup.

करण पटेल का गुस्सा

‘‘स्टार प्लस’’ पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘यह कैसी है मोहब्बतें’’ में रमन भल्ला का किरदार निभा रहे अभिनेता करण पटेल को टीवी इंडस्ट्री का सर्वाधिक गुस्सैल इंसान माना जाता है. यह एक कटु सत्य है. जिस तरह सीरियल ‘‘यह कैसी है मोहब्ते’’ में रमन को बात बात में गुस्सा आता है, उसी तरह करण पटेल को निजी जिंदगी में गुस्सा आता है. कई बार तो करण पटेल को यही नहीं पता होता कि उनके गुस्से की वजह क्या है?

ऐसा कई बार हो चुका है. यदि एक वेबसाइट की खबर को सच माना जाए, तो सिर्फ करण पटेल ही नहीं बल्कि पूरी टीवी इंडस्ट्री पर कई तरह के सवाल खड़े हो चुके हैं? इस वेब साइट के अनुसार मुंबई में सपन्न ‘‘स्टार परिवार अवार्ड’’ में करण पटेल ने सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में एक चैनल में कार्यरत लड़के की जमकर पिटायी कर दी.

सूत्र बताते हैं कि करण पटेल उस लड़के की पिटाई करते रहे और लोग मूक दर्शक की तरह तमाशा देखते रहे. किसी ने भी करण पटेल को रोकने की कोशिश नहीं की. कुछ समय बाद करण पटेल का गुस्सा ठंडा हुआ. तो उस लड़के ने करण पटेल से पूछा कि उसकी गलती क्या थी? इस पर करण पटेल बगले झांकने लगे. उन्हे खुद ही पता नहीं था कि उन्होंने उस लड़के की पिटाइ क्यों की.

खैर, करण पटेल ने बाद में उस लड़के से माफी मांग ली. पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपने बेकाबू गुस्से की वजह से करण पटेल ने जो चोट उस लड़के को पहुंचाई, उसका क्या? इतना ही नहीं टीवी इंडस्ट्री से जुडे़ लोग कितने असंवेदनशील हो सकते हैं, इसका इस घटना से बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है.

कितनी अजीब बात है कि एक बेगुनाह लड़का एक स्टार कलाकार के हाथों पिटता रहा और लोग तमाशा देखते रहे? शायद उस वक्त वहां मौजूद लोग विवेक शून्य हो चुके थे. उनके अंदर का जमीर, ईमान, इंसानियत और भावनाएं मर चुकी थी. वह सभी तो सिर्फ पुतले मात्र थे.

अदालत का मानवीय फैसला

तलाक के एक मामले में जिस में पति ने पत्नी से छुटकारा पाने के लिए बेटी के डीएनए टैस्ट तक की मांग कर डाली थी कि वह उस की अपनी बेटी नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी से ज्यादा मानवीय फैसला कर के समस्या को सुलझा दिया. उच्च न्यायालय में भी पति ने पत्नी से अलगाव के बाद यह मामला उठाया था पर उच्च न्यायालय ने इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर डीएनए टैस्ट की मांग को ठुकरा दिया गया पर पतिपत्नी का तलाक मंजूर कर लिया गया.

दोनों अब अपनीअपनी जिंदगी जिएंगे. न कोई गुजारा खर्च, न बेटी को पालने का खर्च, न पति को बेटी से मिलने का हक, न बेटी को पिता की संपत्ति में हक यानी संबंध पूरी तरह से अलग.

लड़तेझगड़ते पतिपत्नी का यह हल सब से सही है और चाहे किसी भी धर्म के पतिपत्नी हों, कानून ऐसा ही होना चाहिए और यह अलगाव देने का हक सब से निचली अदालत को हो और वहां से अपील का हक भी न हो.

अगर मामला अदालत में चला गया तो चाहे गलत कोई भी हो, दुनिया की कोई भी ताकत पतिपत्नी को फिर से एक बिस्तर पर एकदूसरे की बांहों में सोने को मजबूर नहीं कर सकती. बच्चों की खातिर अगर अदालतें तलाक देने में देर लगाएं या इनकार करें तो यह भी बच्चों पर अन्याय है. पिता या मां अगर किसी और को चाहने लगें या एकदूसरे से घृणा करने लगें तो पैसा या कानूनी हक बेकार हो जाता है. विवाद की चक्की में बच्चे पिसते हैं तो यह एक दुर्घटना समझा जाना चाहिए जिस में बैठे लोग न गाड़ी चला रहे थे न कोई गलत काम कर रहे थे. बच्चे मातापिता के गलत फैसलों के शिकार होते हैं तो होने दें, क्योंकि तलाक को रोक कर अदालतें बच्चों का भला नहीं कर सकतीं.

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तिहरे तलाक के मामले में भी आदर्श है. जब मुसलिम पति पत्नी को तलाक देना चाहता है तो कैसे दिया जाए, उस का क्या अर्थ रह जाता है?

धार्मिक कानून कुछ भी कहता रहे, तलाक तो होगा ही. तिहरा या ट्रिपल नहीं तो किसी और ढंग से. समान व्यक्तिगत कानून इस तलाक को नहीं रोक सकता. पतिपत्नी में झगड़ा हो तो काजी कुछ नहीं कर सकता. 2-3 पेशियों के बाद अदालत पहुंचे हर युगल को ही नहीं, हर पति या पत्नी को तलाक मिल जाना चाहिए. उस पतिपत्नी को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा यही अफसोस की बात है.

 

     

साहसी बनें

महान जहाजी कोलंबस अपनी सारी सुविधाएं और बेहतर नौकरी छोड़ कर दुस्साहसिक यात्राओं पर निकल पड़ते थे. ह्वेनसांग और फाह्यान तो पैदल ही चीन से हिमालय के मुश्किल रास्तों व बाधाओं को लांघते हुए भारत पहुंचे थे. इस दौरान उन पर कई हमले हुए, उन्हें अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी, लेकिन वे डिगे नहीं.

10वीं से 14वीं सदी के बीच जब खोजी यात्री अपने घरों से निकलते थे, तो उन की वापस जिंदा लौटने की उम्मीदें न के बराबर होती थीं. जब वे अपने वतन को लौटते, तो इसे उन का नया जन्म माना जाता था. उन की इसी साहसिक प्रवृत्ति ने लोगों को दुनिया के अनजाने देशों, जगहों, जंगलों और खतरों से रूबरू कराया. साहस जब ज्ञान और लोकोपयोग से जुड़ जाता है तो वह जीवन को बदलता है, नए प्रभाव डालता है.

साहसी बनो

अपने अधिकारों के लिए साहसी बनो, कमजोरों के लिए साहसी बनो, हार को सहने के लिए साहसी बनो, खुद को मजबूत करने के लिए साहसी बनो, उन्हें माफ करने के लिए साहसी बनो जिन्होंने तुम्हारे साथ गलत किया.

साहस जितना छोटा शब्द है, उतना ही करिश्माई भी है. साहस के सामने दुनिया की महाशक्तियां भी बौनी पड़ चुकी हैं. साहस ने युग बदले हैं. बड़ी से बड़ी ताकत के नशे में चूर सत्ताओं को इस ने धूल में मिलाया है. तानाशाहों की अकड़ ढीली की है. उन्हें नेस्तनाबूद किया है.

साहस का अन्याय और प्रतिकार से गजब का रिश्ता है. दुनिया के सभी शास्त्रों में साहस सभी मानवीय गुणों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. पुराने जमाने में साहसी लोग समाज के नायक माने जाते थे. उन्हें खास सम्माननीय दर्जा मिलता था. यह साहस ही है, जिस ने इस धरती को बदला, सभ्यताओं के लिए रास्ते बनाए, बेहतर जीवनशैली और विचारों के लिए जगह बनाई.

साहस का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना लंबा मानवीय इतिहास. हजारोंलाखों साल के मानवीय सफर में साहसी लोगों को दबाने की भी चेष्टाएं हुईं, लेकिन हर बार वे कुंदन की तरह तप कर सामने आए, हर बार उन्होंने अनूठी परिभाषा गढ़ी.

साहस का रिश्ता न तो लंबीचौड़ी कदकाठी से होता है और न धनदौलत और ताकत की अकड़ से. मोहनदास करमचंद गांधी दुबलेपतले थे. अपने साहस के बल पर उन्होंने अंगरेजी सत्ता को हिला दिया, जिस के बारे में कहा जाता था कि सूरज तो अस्त हो सकता है, लेकिन अंगरेजों के साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं हो सकता.

आंग सान सू की का बचपन और जवानी ऐशोआराम में बीती थी. म्यांमार में ही उन की पढ़ाईलिखाई हुई थी, लेकिन बाद में वे विदेश में बस गई थीं. जब वे अपने पिता के देश म्यांमार लौटीं तो न तो उन का मकसद वहां रुकने का था, न ही वहां की राजनीति में दिलचस्पी थी. वे 80 के दशक में वहां बीमार मां की देखभाल के लिए गई थीं. पिता को सेना कब का सत्ता से बेदखल कर चुकी थी. म्यांमार में उन्होंने जनता को परेशान हाल में पाया. सेना का दमनचक्र जारी था. इसलिए वहां आंदोलन और प्रदर्शन हो रहे थे.

ऐसे में सान की अंतरात्मा ने आवाज दी और वे आंदोलन में कूद पड़ीं. उन का अन्याय से लड़ने का साहस बढ़ता गया. उन्होंने चुनाव जीता, लेकिन सत्ता पर आसीन सैनिक शासकों ने उन्हें फरमान सुनाया कि या तो देश से बाहर चली जाओ या फिर ताजिंदगी घर में नजरबंद हो कर बिताओ. उन्होंने विदेश लौट कर आलीशान जिंदगी जीने के बजाय घर में नजरबंद रहना उचित समझा. वर्तमान में वे म्यांमार की स्टेट काउंसलर हैं.

इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब हम किसी अच्छे उद्देश्य के लिए समाज की प्रचलित मान्यताओं और धारा के खिलाफ खड़े हो जाते हैं.

दरअसल, महान लक्ष्य हमेशा साहस देता है और तब बाधाएं तथा जीवन का भय छोटा लगने लगता है. समाज या देश में सच्चा नायक बनने की प्रवृत्ति भी साहस को कई गुना बढ़ा देती है.

जाहिर सी बात है कि साहस तभी आता है, जब आप के पास एक मकसद हो, जनून हो, लगन हो. कह सकते हैं कि साहस एक जिजीविषा है, इस का स्थान ज्यादा बड़ा इसलिए भी हो जाता है कि इस प्रवृत्ति से समाज और मानवता को लाभ पहुंचा है. साहस जब ज्ञान और लोकोपयोग से जुड़ जाता है तो वह जीवन को बदलता है, नए प्रभाव डालता है.

मध्यकाल में लौर्ड व्यवस्था को बदलना कोई आसान काम नहीं था. बड़े विद्रोह भी हुए. हजारों मजदूर, दास और किसान मारे गए, लेकिन इन्हीं लोगों के साहस ने मध्ययुग के अंधेरे को भी हराया.

मुट्ठीभर लोग ही ऐसा जीवट क्यों दिखाते हैं

हालत और समय जब भी कोई मुश्किल चुनौती पेश करते हैं और साहस की परीक्षा का समय आता है तो ज्यादातर लोग हिम्मत नहीं जुटा पाते. ऐसे मौके अकसर जिंदगी में आते हैं. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि साहस कुछ मुट्ठीभर लोगों में ही क्यों होता है. इसे ले कर मनोवैज्ञानिकों की असली दिलचस्पी पिछली सदी के आखिर में जगी. कई किताबें लिखी गईं. मनोवैज्ञानिकों ने कई पहलुओं से इस पर काम किया. साल 2004 में क्रिस्टोर पैटरसन और मार्टिन सेलिगमन की किताब ‘चरित्र, क्षमता और नैतिक गुण’ प्रकाशित हुई, जिस में साहस के मनोविज्ञान पर खासतौर पर प्रकाश डाला गया है. उसे जीवन के उत्कृष्ट नैतिक गुणों से जोड़ा गया.

इन दोनों मनोवैज्ञानिकों ने साहस को 6 खास मानवीय गुणों के साथ जोड़ा, जो 6 खास मानवीय गुण उन्होंने मानव में देखे, वे हैं, विवेक, ज्ञान, साहस, मानवता, न्याय और संयम.

यूनिवर्सिटी औफ ब्रिटिश कोलंबिया के स्टेनली जे रेचमन ने 1970 में भय और साहस का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि पैराशूटर्स जब विमान से पहली बार कूदते हैं तो उन का व्यवहार हवा में कूदने से पहले 3 तरह का होता है, कुछ लोग बहुत ज्यादा डरते हैं और इस के चलते वे हिम्मत छोड़ देते हैं और कूदने से पहले पसीनापसीना हो जाते हैं. उन के हाथपैर सुन्न होने लगते हैं और चूंकि वे अभी विमान के बोर्ड पर ही होते हैं, लिहाजा, कूदने से मना कर देते हैं.

दूसरी तरह के लोग निर्भीक होते हैं, कोई डर नहीं दिखाते, न पसीने से तरबतर होते हैं, न उन की आवाज कंपकंपाती है. बड़ी शांति के साथ हवा में छलांग लगा देते हैं. उन्हें इस में कोई दिक्कत नहीं होती. तीसरी तरह के लोग हालांकि कूदने से पहले डरे जरूर होते हैं, लेकिन जब हवा में कूदने का समय आता है तो वे झिझकते नहीं हैं.

डा. रेचमन ने माना कि ये आखिरी तरह के लोग ही सब से साहसी होते हैं. जो डर महसूस करने के बाद भी काम को अंजाम देते हैं.

दार्शनिक और महान चिंतकों ने साहस के प्रदर्शन का सब से बेहतर स्थल युद्ध के मैदान को माना. उन्होंने हमेशा कहा कि असली साहस का प्रदर्शन वास्तव में एक सैनिक करता है, जो अपने दुश्मन से यह जानते हुए भिड़ने के लिए तैयार रहता है कि इस में उस की मौत भी हो सकती है. कुछ का कहना है कि बहादुर लोग वे होते हैं, जिन में भय लेशमात्र भी नहीं होता.

साहस का वैज्ञानिक पहलू

विज्ञान साहस को अलग तरह से देखता है. वैज्ञानिक लगातार यह प्रयोग करने में लगे हैं कि मनुष्यों में साहस, कायरता या जोखिम उठाने की प्रवृत्ति क्यों होती है? आखिर हम में चंद लोग कुछ खास क्षणों में किस तरह साहस का परिचय देते हैं.

इसराईल के वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के उस हिस्से में होने वाली प्रक्रिया का पता लगाया, जहां मानवीय साहस और बहादुरी के तत्त्व होते हैं. उन के अनुसार, मनुष्य के मस्तिष्क में एक भाग होता है, जिसे सब जेनुअल एनटेरियर सिंगुलर कार्टेक्स कहा जाता है. यह तब सक्रिय होता है, जब व्यक्ति कोई साहस भरा काम करता है.

इस खोज से हो सकता है कि आने वाले समय में लोगों के भय को दूर करने में मदद मिले. वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि भय और साहस के क्षणों में हमारा ब्रेन सिकुड़ता और फैलता भी है. इस शोध के दौरान यह भी पता चला कि विभिन्न स्थितियों में अलगअलग तरह के मानवीय व्यवहार के दौरान मस्तिष्क किस तरह काम करता है.

वैज्ञानिक एक और अलग तरह के शोध पर भी काम कर रहे हैं. इस के जरिए वे यह जानने की कोशिश करेंगे कि कुछ लोग कुछ मौकों पर क्यों दूसरों की तुलना में ज्यादा साहसी और पराक्रमी साबित होते हैं. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जब बहुत से लोग आपदाओं, दुर्घटनाओं या भयभीत कर देने वाली घटनाओं के समय विचलित नहीं होते बल्कि ठंडे दिमाग से इन परिस्थितियों का सामना करते हुए इस से निकलने के बारे में सोचते हैं.

बहुत से लोग इसलिए महान बने, क्योंकि उन्हें डर से निबटना आता था, वे उस पर जीत हासिल करना जानते थे. यह तो तय है कि कुछ लोगों के शरीर और दिमाग में कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं, जो उन्हें पैदा होते ही डर पर जीत हासिल करना सिखा देते हैं, ये तत्त्व जीन में भी हो सकते हैं. वैसे बच्चों में बहादुरी की भावना आमतौर पर ज्यादा होती है. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जब बच्चों ने जान जोखिम में डाल कर दूसरों को बचाया.

साहस और सकारात्मकता

साहस का सकारात्मकता से बहुत गहरा रिश्ता है. यह सकारात्मकता ही तो थी जिस से कोपर्निकस, अरस्तु, सुकरात जैसे लोग बड़े उद्देश्य के लिए साहस का प्रदर्शन कर पाए. हमेशा आप के आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आप को भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं. ऐसे लोग हर युग में हुए हैं, लेकिन सकारात्मक दृष्टिकोण लाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देते हैं. हम बड़ेबड़े साहस के काम कर गुजरते हैं.

सकारात्मकता नैतिक साहस को बढ़ाती है. आमतौर पर युगों को बदलने वाले नायकों में ऐसे ही लक्षण देखने को मिलते हैं. प्लेटो ने कहा था कि साहस हमें डर से मुकाबला करना सिखाता है. साहस हम सभी के भीतर होता है, बस, जरूरत उसे बाहर लाने की होती है.   

पार्टटाइम वर्क आर्थिक उन्मूलन में सहायक

जरूरी नहीं कि आप के घर की आर्थिक स्थिति खराब ही हो या फिर आप के पेरैंट्स को पैसों की जरूरत हो, तभी आप कोई काम करें बल्कि खुद को आत्मनिर्भर व आत्मविश्वासी बनाने के लिए भी कुछ ऐसा करना चाहिए जिस से आप की अपनी पहचान बने व साथ ही आप का टैलेंट भी उभर कर आए.

इस का उदाहरण अभी हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की बेटी साशा ओबामा ने वाशिंगटन के एक रैस्टोरैंट में गरमियों की छुट्टियों में कैशियर का काम कर के पेश किया. यहां तक कि उन्होंने वहां कर्मचारियों द्वारा पहनी जाने वाली ड्रैस के नियम को भी फौलो किया. जानीमानी हस्ती की बेटी होने के बावजूद वे ग्राहकों को और्डर सर्व करने में भी नहीं शरमाईं.

इस से लोगों तक यही संदेश पहुंचा कि चाहे आप का परिवार कितना भी मजबूत क्यों न हो, लेकिन फिर भी हर किशोर को अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए. इस के लिए खाली समय में कोई छोटामोटा काम किया जा सकता है. इस से फायदा यह भी होता है कि जब कभी विपरीत परिस्थितियां आती हैं तब आप उन का मुकाबला करने में सक्षम होते हैं.

किशोरों के लिए पढ़ाई के साथसाथ 1-2 घंटे के काम ढेरों हैं, बस आप को सही राह चुनने की जरूरत है. आइए जानें कौनकौन से काम कर के आप घर बैठे पैसा कमा सकते हैं.

ट्यूशन, बैस्ट औप्शन

बच्चे कितने भी अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हों उन्हें कौंसैप्ट को गहराई से समझने के लिए ट्यूटर की जरूरत पड़ती है और इस में भी कोई शक नहीं कि पेरैंट्स अपने बच्चों को अपने घर के नजदीकी ट्यूशन सैंटर में या ट्यूटर के पास ही भेजना पसंद करते हैं. ऐसे में आप जिस क्लास में पढ़ रहे हैं उस से छोटी क्लासेज के अपने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर बैठे अर्निंग कर सकते हैं. एक बार अगर मार्केट में आप की गुडविल बन गई फिर तो मौज ही मौज है. इस से जहां आप की विषयों पर पकड़ बेहतर बनेगी वहीं आप आत्मनिर्भर भी बनेंगे.

घर में टाइपिंग वर्क

आज ढेरों अखबार, मैग्जींस ऐसी हैं जो अपने कंटैंट कंपोज करवाने के लिए टाइपिस्ट पर निर्भर रहती हैं. वे नियमित रूप से टाइपिस्ट न रख कर फ्रीलांस टाइपिस्ट से ही काम निकलवाना पसंद करती हैं, क्योंकि इस में उन्हें सैलरी न दे कर पेज के हिसाब से पेमैंट करनी होती है जो सस्ता पड़ता है. इस में ऐज लिमिट भी नहीं होती. बस, आप की टाइपिंग स्पीड अच्छी होनी चाहिए.

इस का सब से बड़ा फायदा यह है कि आप को वहां जा कर काम करने की जरूरत नहीं होती बल्कि घर बैठे आप अपनी सुविधा के अनुसार काम कर सकते हैं.

ऐड कंपनी में ऐड वर्क

अगर आप फोटोशौप या फिर ईडिजाइनिंग की अच्छी नौलेज रखते हैं तो आप के ऐड कंपनी के साथ जुड़ने के औप्शन भी खुले हैं. आप ऐड कंपनी के साथ जुड़ कर उन के लिए ऐड बना सकते हैं. इस में पैसा भी अच्छाखासा है. एक बार अगर आप को प्लेटफौर्म मिल गया फिर तो भविष्य में आप के लिए जौब्स के अनेक रास्ते खुल जाएंगे.

टिफिन वर्क विद मम्मी

आप और आप की मम्मी दोनों की ही किचन में अच्छी रुचि है. मम्मी अगर इंडियन फूड बनाना जानती हैं तो आप चाइनीज, साउथ इंडियन वगैरा. ऐसे में आप किसी कंपनी से कौंटैक्ट कर के या फिर किसी पीजी वगैरा से जुड़ कर उन्हें टिफिन बना कर सर्व कर सकते हैं. एक बार अगर आप के खाने का टेस्ट लोगों के मुंह चढ़ गया फिर तो वे आप के परमानैंट कस्टमर बन जाएंगे. इस में कौस्ट कम व बचत ज्यादा होती है.

पेंटिंग, कमाई के साथ बढ़ाएं क्रिएटिविटी

चाहे त्योहार हो या न हो हर कोई अपने घर को टिच रखना चाहता है. इस के लिए वे अपने घर में बाजार में मिलने वाली पेंटिंग्स से घर की रौनक बढ़ाने की कोशिश करते हैं.

यहां तक कि अब लोग समयसमय पर पेंटिंग्स बदलते रहते हैं, जिस से इस की डिमांड काफी बढ़ी है. ऐसे में अगर आप का पेंटिंग बनाने में इंट्रस्ट है तो आप न सिर्फ आसपास के बच्चों से स्कूल चार्ट बनाने के और्डर ले सकते हैं बल्कि एंबौस्ड पेंटिंग, जो काफी कौस्टली होती है को घर पर ही बना सकते हैं.

इस के लिए आप को ज्यादा तामझाम की जरूरत नहीं होती, बस जरूरत होती है तो एंबौस पाउडर, ब्लैक वैलवेट कपड़ा, औयल पेंट या फैब्रिक कलर और प्लास्टिक ब्रश की. फिर आप के मन में जो भी इमेज या कल्पना आती है उसे कपड़े पर उतार कर न सिर्फ लोगों की वाहवाही लूट सकते हैं बल्कि ऐग्जिबिशंस में भी अपनी क्रिएटिविटी दिखा कर अच्छी कमाई कर सकते हैं.

पेपर बैग से करें अर्निंग

अगर आप को क्रिएटिव करने का शौक है तो आप स्मार्ट पेपर बैग बनाने के बारे में सोच सकते हैं, क्योंकि प्लास्टिक बैग्स बैन होने के बाद से इन बैग्स की डिमांड पहले से भी कहीं ज्यादा बढ़ गई है.

हर जगह चाहे आप को सामान लाना हो या फिर किसी को गिफ्ट देना हो, इन्हीं पेपर बैग्स का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें बनाना भी बहुत सिंपल है और इस के लिए सिर्फ मोटा कागज, फैवीकोल, डोरी और कुछ डैकोरेटिव चीजों की आवश्यकता होती है. थोड़ी सी चीजों से बनने वाले ये पेपर बैग्स बहुत स्मार्ट लुक देते हैं. देखने वाले तो इन्हें एक नजर में खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं.

राइटिंग और ट्रांसलेशन से बढ़ाएं आमदनी

अगर आप की लेखन में रुचि है साथ ही आप ट्रांसलेशन वर्क की भी अच्छीखासी समझ रखते हैं तो आप के लिए यह घर बैठे कमाई का एक अच्छा जरिया बन सकता है. बस, इस के लिए आप को अपनी प्रैक्टिस अच्छी करने के लिए डेली न्यूजपेपर्स, न्यूज चैनल्स देखने होंगे ताकि आप जिस टौपिक पर लिखना चाहते हैं उस के हर बिंदु को उठा पाएं. ट्रांसलेशन पर अच्छी पकड़ बनाने के लिए इंगलिश बुक्स व इंगलिश न्यूजपेपर्स को ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की भी जरूरत है.

शुरुआत में भले ही कम पैसे मिलेंगे पर जैसेजैसे आप के लेखन में सुधार आता जाएगा, वैसेवैसे आप के मेहनताने में भी वद्धि होती जाएगी. अगर एक बार आप पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ गए तो हो सकता है कि भविष्य में आप इस क्षेत्र में ही कैरियर बना कर खूब ख्याति प्राप्त कर सकते हैं.

हैंडमेड मोबाइल कवर्स, लागत कम, मुनाफा ज्यादा

घर में अगर आप मम्मी को देखदेख कर अच्छी बुनाई करना सीख गए हैं, तो आप हैंडमेड मोबाइल कवर्स बना कर उन्हें अच्छे दामों पर बेच कर अपनी पौकेटमनी निकाल कर पापा का बोझ कम कर सकते हैं. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन कवर्स को कितना अटै्रक्टिव लुक दे पाते हैं, क्योंकि कीमत इसी बात पर निर्भर करती है. आप घर में बेकार पड़े स्वैटर्स से भी इन्हें बना सकते हैं.

सोशल मीडिया मैनेजर बनें

हर कंपनी आज अपने ब्रैंड को प्रमोट करने के लिए सोशल साइट्स जैसे फेसबुक आदि की हैल्प लेती है. अगर उन के पास खुद ये काम करने के लिए समय नहीं होता तो वे इस कार्य के लिए यंग जनरेशन को अपौइंट करती हैं, क्योंकि वह टैक्नोलौजी की अच्छी नौलेज जो रखता है.

आप को बस, करना यह है कि दिए गए निर्देशों के अनुसार समयसमय पर कंपनी के विज्ञापनों को साइट्स पर अपलोड करते रहना है. इस के लिए कंपनी आप को पेमैंट करती है.

अपनी आवाज से चलाएं जादू

अगर आप की आवाज में वह जादू है जो ऐंकर्स के लिए जरूरी है, तो आप इस डायरैक्शन में भी आगे बढ़ कर नाम के साथसाथ पैसा भी कमा सकते हैं, क्योंकि इस में आप को मिनटों व घंटों के हिसाब से पेमैंट किया जाता है.

इन के अतिरिक्त और भी कई ऐसे काम हैं जैसे फोन रिपेयरिंग, मेहंदी वर्क, फाइलफोल्डर बना कर, हैंडमेड ज्वैलरी बना कर भी आप अपनी आमदनी कर के खुद आत्मनिर्भर बन कर घर में भी सहयोग कर सकते है

प्रीबोर्ड की परीक्षा हलके में न लें

प्रीबोर्ड की परीक्षा 12वीं के विद्यार्थियों के लिए आइरन गेट मानी जाती है, क्योंकि यह 12वीं के पाठ्यक्रम की समाप्ति और बोर्ड परीक्षाओं के मध्य की निर्णायक अवस्था मानी जाती है. किंतु प्राय: यह देखा जाता है कि 12वीं के विद्यार्थी इस परीक्षा को गंभीरता से नहीं लेते, जिस के फलस्वरूप उन की परफौर्मैंस बहुत अच्छी नहीं रहती.

प्रीबोर्ड परीक्षा में घटिया प्रदर्शन के कारण छात्रों के आत्मविश्वास में काफी कमी आ जाती है, जिस से मार्च में आयोजित होने वाली बोर्ड परीक्षाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं.

ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रीबोर्ड परीक्षाओं के परिणाम काफी अहम और निर्णायक होते हैं, क्योंकि इन परिणामों के आधार पर बोर्ड की फाइनल परीक्षाओं के रिजल्ट का भलीभांति अनुमान लगाया जा सकता है. वर्षाें के बोर्ड रिजल्ट्स के टैं्रड को ध्यान में रख कर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि किसी स्टूडैंट के बोर्ड परीक्षा के परिणाम में प्रीबोर्ड परीक्षा में प्राप्त अंकों के प्रतिशत से या तो 10 फीसदी का इजाफा हो सकता है या 10 फीसदी की कमी हो सकती है.

प्रीबोर्ड परीक्षा के परिणामों की अहमियत को ध्यान में रखते हुए इस परीक्षा की योजनाबद्ध तैयारी की नितांत अनिवार्यता है.

यदि एक विद्यार्थी प्रीबोर्र्ड परीक्षा की तैयारी के लिए निम्न बातों का ध्यान रखे तो कोई शक नहीं कि एक अच्छे परिणाम एवं परफौर्मैंस के साथ एक प्रौस्पैक्टिव कैरियर की शुरुआत की जा सकती है.

पाठ्यक्रम से अवगत होना आवश्यक है

किसी विषय का पाठ्यक्रम उस विषय का बीकन लाइट होता है जो जहाज को रास्ता दिखाता है. यदि कोई स्टूडैंट अपने विषयों के पाठ्यक्रम को अच्छी तरह जान लेता है तो उस की आधी तैयारी मुकम्मल मानी जाती है. लिहाजा, विद्यार्थियों को अपने सभी विषयों के पाठ्यक्रम को अच्छी तरह से जान लेना चाहिए. विषयों के पाठ्यक्रमों को जानने के क्रम में निम्न महत्त्वपूर्ण बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :

– पाठ्यक्रम में हाईवेटेज चैप्टर्स की लिस्ट बना लेनी चाहिए.

– दीर्घउत्तरीय प्रश्न जो प्राय: 6 अंकों वाले होते हैं, अच्छे रिजल्ट के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं. प्रत्येक विषय के सलेबस में ऐसे मार्क्स वाले चैप्टर्स की सूची भी तैयार कर लेनी चाहिए.

– न्यूमैरिकल प्रश्न वाले चैप्टर्स की लिस्ट बना लेने  से भी परीक्षा की तैयारी में काफी मदद मिलती है.

– डायग्राम्स औैर ग्राफ्स अच्छे अंक दिलाने वाले टूल्स माने जाते हैं. प्रत्येक अंक यूनिट में ऐसे चैप्टर्स का चयन कर लेने से परीक्षा की तैयारी आसान हो जाती है.

– वस्तुनिष्ठ प्रश्नों अथवा बहुविकल्पी प्रश्नों की तैयारी

12वीं की प्रीबोर्ड एवं बोर्ड परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की भी अहम भूमिका होती है. ये प्रश्न अंकों के अच्छे प्रतिशत के साथ परीक्षा पास करने में काफी फायदेमंद साबित होते है, किंतु ऐसे प्रश्नों की तैयारी आसान नहीं होती. इस के लिए सब्जैक्ट्स की पूरी और गहन तैयारी करनी होती है.

इन प्रश्नों की तैयारी के लिए सभी चैप्टर्स को इंटैंसिवली पढ़ने की जरू रत है. ऐसे प्रश्नों के उत्तर के साथ एक नोट बनाना अनिवार्य होता है. इन प्रश्नों की तैयारी से पूरा पाठ्यक्रम तैयार हो जाता है और स्टूडैंट को सैल्फ कौन्फिडैंस से भर देता है.

प्लान करें तथा परफैक्ट बनें

प्राय: ऐसा कहा जाता है कि यदि आप कोई योजना बनाने में असफल होते हैं तो आप असफल होने की योजना बना रहे होते हैं. आशय यह है कि प्रीबोर्ड जैसी परीक्षा की तैयारी के लिए एक दोषरहित योजना की नितांत आवश्यकता होती है. योजना बनाने के लिए निम्न बिंदुओं का ध्यान रखें :

–  परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध समय.

–  आप के पास संसाधनों की उपलब्धता.

– आप की इच्छाशक्ति एवं धैर्य निर्धारण.

– लक्ष्य को साकार करने के प्रति आप की वचनबद्धता.

डरें नहीं, न ही घबराएं

सीबीएसई के नियमानुसार 12वीं कक्षा के सभी विषयों के पाठ्यक्रमों की पढ़ाई 30 नवंबर तक मुकम्मल हो जानी चाहिए. प्रीबोर्ड परीक्षा की तैयारी काफी सैंसिटिव होती है. दिसंबर के सैकंड वीक में प्रीबोर्ड की परीक्षा प्रारंभ होती है.

30 नवंबर से ले कर प्रीबोर्ड की परीक्षा तक के मध्य मुश्किल से 2 सप्ताह का समय बचता है. परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध इतने अपर्याप्त समय को ध्यान में रख कर विद्यार्थी मनोवैज्ञानिक रूप से काफी घबरा जाते हैं. घबराहट के कारण उन का मनोबल टूट जाता है और परीक्षा की तैयारी काफी प्रभावित होती है.

इसलिए यह आवश्यक है कि स्टूडैंट मुश्किल की इस घड़ी में कभी भी घबराएं नहीं और न ही डरें. धैर्यपूर्वक तथा पौजिटिव सोच के साथ परीक्षा की तैयारी नियमित रूप से करते रहने से सफलता अवश्य प्राप्त होती है.

विषयों को वर्गीकृत करें

प्रत्येक छात्र का अपना फेवरिट सब्जैक्ट होता है, जिस की तैयारी के लिए उसे खास मेहनत नहीं करनी पड़ती. किंतु सभी छात्रों के लिए कुछ विषय काफी हाई होते हैं, जिन की तैयारी के लिए उन्हें अपेक्षाकृत अधिक समय तथा संसाधनों की जरूरत होती है. ऐसी परिस्थिति में यदि छात्र अपने सभी विषयों को इस आधार पर वर्गीकृत कर लें तो परीक्षा की तैयारी काफी हद तक आसान हो जाती है.

प्रत्येक स्टूडैंट को अपने विषयों में से मुश्किल विषयों का विवेकपूर्ण ढंग से चयन कर लेना चाहिए और तद्अनुसार उन की तैयारी करनी चाहिए. अपेक्षाकृत कठिन विषयों के लिए अधिक समय देना चाहिए.

सारांश यही है कि प्रीबोर्ड  की परीक्षा को कभी भी हलके में न लें, क्योंकि यह परीक्षा मार्च में आयोजित होने वाली बोर्ड परीक्षा का कर्टन रेजर होती है.                           

प्यार की राह के कांटे

मुंबई से सटे उपनगर विरार (पश्चिम) के जकात नाका परिसर में स्थित मुक्तिधाम ओमश्री साईं कोऔपरेटिव हाउसिंग सोसायटी नंबर 45/5 में आदिवासी समाज का एक छोटा सा परिवार रहता था, जिस के मुखिया लक्ष्मण वाघरी थे. वह सालों पहले रोजीरोटी की तलाश में गुजरात से महाराष्ट्र आए थे.

लक्ष्मण वाघरी सीधेसादे सज्जन व्यक्ति थे. आसपड़ोस के लोग उन का सम्मान करते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटा दीपक वाघरी था. उन्होंने बेटे की शादी कल्याण की रहने वाली एक सुंदर और सुशील लड़की रूपा से कर दी थी. शादी के बाद वह जल्दी ही 2 बच्चों का पिता बन गया था.

कोई बड़ी डिग्री न होने के कारण उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई थी. वह अपना पुश्तैनी काम करने लगा था. उस के पिता लक्ष्मण वाघरी की विरार (पश्चिम) की स्वाद गली में सागसब्जी की बड़ी दुकान थी. वह चाहते थे कि दुकान दीपक को सौंप कर गांव चले जाएं. दीपक की शादी के बाद उन्होंने ऐसा ही किया भी. मातापिता के गांव जाने के बाद घरपरिवार और दुकान की सारी जिम्मेदारी दीपक वाघरी के कंधों पर आ गई थी.

रूपा मुंबई की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करती थी. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती थी तो रात को लगभग 8 बजे घर लौटती थी. दीपक के दोनों बच्चे पास के स्कूल में पढ़ते थे.

दीपक के परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2 सितंबर, 2016 को अचानक कुछ ऐसा हुआ, जो नहीं होना चाहिए था. दरअसल दीपक ने अनायास ही एक ऐसी लोमहर्षक घटना को अंजाम दे डाला, जिसे देख कर हर किसी का कलेजा दहल उठा. उस दिन दोपहर 2 बजे का समय था. सोसायटी के तमाम पुरुष और महिलाएं अपनेअपने काम पर गए हुए थे.

सोसायटी में सिर्फ बच्चे और कुछ बुजुर्ग महिलाएं और पुरुष ही थे, जो दोपहर का खाना खा कर आराम कर रहे थे. तभी वहां के निवासियों को किसी युवती की ‘बचाओ बचाओ’ की आवाजें सुनाई दीं. ये आवाजें दीपक वाघरी के घर से आ रही थीं. लोगों को आश्चर्य इसलिए हुआ, क्योंकि दीपक की पत्नी बच्चों के साथ मायके गई हुई थी.

युवती की चीखने चिल्लाने की आवाजें सुन कर वहां के लोगों ने अपने अपने घरों से बाहर निकल कर देखा तो दीपक का घर अंदर से बंद था. उन्होंने दीपक के घर का दरवाजा खटखटाया, उसे आवाजें दीं. लेकिन घर के अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

इस पर लोगों ने समझा कि हो सकता है, उस की पत्नी आ गई हो और दोनों में किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया हो. बहरहाल लोगों ने इसे पति पत्नी का मामला समझ कर खामोश रहना ही ठीक समझा. वे अपने अपने घर चले गए.

कुछ देर बाद जब दीपक ने अपना दरवाजा खुद खोला तो उस के कपड़ों पर खून लगा था. इस के पहले की आस पड़ोस के लोग कुछ समझ पाते, वह दरवाजे की कुंडी लगा कर सोसायटी के बाहर निकल गया. वह वहां से सीधा पुलिस चौकी पहुंचा.

वोलिज नाका वुडलैंड पुलिस चौकी पर तैनात सबइंसपेक्टर जे.डी. ठाकुर और उन के सहायकों ने चौकी पर आए दीपक वाघरी को देखा तो स्तब्ध रह गए. उस का हुलिया और उस के कपड़ों व शरीर पर पड़े खून के छींटे किसी बड़ी घटना की तरफ इशारा कर रहे थे. सबइंसपेक्टर जे.डी. ठाकुर उस से कुछ पूछते, उस के पहले ही उस ने उन्हें जो बताया, उसे सुन कर उन के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गईण्‍

मामला काफी गंभीर और चौंका देने वाला था. सबइंसपेक्टर जे.डी. ठाकुर और उन के सहायकों ने उसे तुरंत हिरासत में ले लिया, साथ ही उन्होंने इस मामले से सीनियर थानाप्रभारी यूनुस शेख, पुलिस कंट्रोल रूम और वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस के बाद वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

जहां घटना घटी थी, वह इलाका विरार (पूर्व) पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. थानाप्रभारी यूनुस शेख भी अपने सहायक इंसपेक्टर जनार्दन परवकर, हवलदार विनोद पाटिल, गनेश परजाने और सूर्यवंशी को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस टीम जब घटनास्थल पर पहुंची, वहां पर काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. भीड़ को हटाने में पुलिस टीम को काफी मशक्कत करनी पड़ी. थानाप्रभारी यूनुस शेख और उन की टीम भीड़ को हटा कर अंदर पहुंची तो वहां एक लहूलुहान युवती की लाश पड़ी थी.

अभी पुलिस टीम घटना के बारे में आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ कर रही थी कि पालघर डिवीजन की एसपी शारदा राऊत, एसएसपी अनिल आंगड़े भी घटनास्थल पर आ गए थे. उन के साथ प्रैस फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीम भी आई थी. दीपक के घर का मंजर दिल दहला देने वाला था. अंदर का एक कमरा खून से सराबोर था. फर्श पर खून ही खून फैला हुआ था. पास ही बैड पर एक युवती का अर्धनग्न लाश पड़ी थी, जिस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. पासपड़ोस के लोगों से पता चला कि मृतका दीपक की बीवी नहीं थी.

पुलिस ने देखा, मृतका के शरीर पर 17 घाव थे, जो काफी गहरे और चौड़े थे. हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी कमरे के एक कोने में पड़ी थी. कुल्हाड़ी को देख कर अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि हत्या उसी से की गई थी. युवती के अर्धनग्न बदन और बेरहमी से की गई हत्या से यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि आखिर दीपक वाघरी ने उस की हत्या किस मकसद से और क्यों की थी.

फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट ब्यूरो का काम खत्म होने के बाद एसपी शारदा राऊत और एसएसपी अनिल आंगड़े ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी यूनुस शेख को सौंप कर कुछ जरूरी निर्देश दिए और अपने औफिस लौट आए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद यूनुस शेख और उन की टीम ने घटनास्थल पर मिली कुल्हाड़ी, मृतका का पर्स और मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया. उस के पर्स से मिले आईकार्ड से पता चला कि वह कालेज छात्रा थी और उस का नाम ऐश्वर्या अग्रवाल था. उस के आईकार्ड से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने घटना की जानकारी उस के घर वालों को दे दी. खबर पाते ही ऐश्वर्या अग्रवाल के परिवार वाले रोतेपीटते घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की मां प्रेमलता तो बेटी का शव देख कर बेहोश हो गई थीं.

मृतका ऐश्वर्या अग्रवाल के परिवार वालों को समझाने बुझाने के बाद यूनुस शेख ने अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कीं और शव को पोस्टमार्टम के लिए मुंबई के जे.जे. अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस टीम थाने लौट आई. इस मामले की जांच इंसपेक्टर जनार्दन परवकर को सौंपी गई.

जनार्दन परवकर ने खुद को ऐश्वर्या अग्रवाल का कातिल बताने वाले दीपक वाघरी से पूछताछ की. दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा कर खंगाली गई. यह सब चल ही रहा था कि इस मामले ने तूल पकड़ लिया. यह घटना वाट्सऐप, फेसबुक और इंटरनेट पर वायरल हो गई. प्रिंट मीडिया और इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने इसे हाथोंहाथ ले कर पूरे शहर में सनसनी फैला दी. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया से जो खबरें बाहर आ रही थीं, उस से मृतका के परिवार वाले और उस के कालेज के छात्र छात्राएं सहमत नहीं थे.

उन का मानना था कि ऐश्वर्या हत्याकांड में सिर्फ दीपक वाघरी ही शामिल नहीं है, बल्कि इस का जिम्मेदार कोई और भी है. इस बात को ले कर ऐश्वर्या के परिवार और उस के कालेज के साथी यूनुस शेख से मिले. उन्होंने उन्हें निश्चिंत रहने को कहा.

पूछताछ में पहले तो दीपक ने ऐश्वर्या हत्याकांड की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए पुलिस जांच को गुमराह करने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने जब अपने हथकंडे अपनाए तो वह टूट गया. अंतत: उस ने सारी सच्चाई बता दी. इस से उस का दोस्त सोहेल शेख भी पुलिस के निशाने पर आ गया. दीपक के बयान के आधार पर जनार्दन परवकर की जांच टीम ने 3 सितंबर, 2016 को रात 8 बजे छापा मार कर सोहेल शेख को गिरफ्तार कर लिया. इस तरह ऐश्वर्या के दोनों कातिल पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

इस के बाद ऐश्वर्या के परिवार और उस के कालेज के छात्र छात्राओं ने कैंडल मार्च निकाल कर ऐश्वर्या की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की. उधर गिरफ्त में आए दोनों अभियुक्तों से विस्तार से पूछताछ के लिए पुलिस ने 4 सितंबर, 2016 को वसई की मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट श्रीमती धारे की अदालत में पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया.

28 वर्षीय सोहेल और दीपक दोनों हमउम्र होने के साथसाथ अच्छे दोस्त भी थे. सोहेल सुंदर, स्वस्थ, चौड़ी छाती वाला युवक था. उस के पिता का नाम समंद शेख था. सोहेल अपने परिवार के साथ वोलिज नाका के एम.एम. होटल के पास स्थित हाजी मियां मंजिल के रूम नंबर ए-198 में रहता था. उस की पारिवारिक स्थिति काफी हद तक ठीक थी. उस के पिता समंद शेख एक प्राइवेट कंस्ट्रक्टर जगदीश मिस्त्री की बोलेरो चलाते थे. उन के परिवार में सोहेल के अलावा 2 बेटे थे, जिन का नाम फिरोज और फरीद था. दोनों का निकाह हो चुका था. वे अपने अपने परिवारों के साथ अलग अलग रहते थे. उन के परिवार भी सुखी संपन्न थे.

सोहेल परिवार में सब से छोटा था. निकाह न होने के कारण समंद शेख उसे अपने पास ही रखते थे. सोहेल दिलफेंक, स्मार्ट और फैशनपरस्त था. लड़कियां उस की कमजोरी थीं. सोहेल जिस तरह ठाठबाट से रहता था, उस हिसाब से उस की योग्यता नहीं थी. एजुकेशन के मामले में वह भी दीपक जैसा था. वह बिस्लेरी पानी के डिस्ट्रीब्यूशन का काम करता था.

स्कूल का साथी होने के कारण दीपक और सोहेल शेख में गहरी दोस्ती थी. दोनों अकसर मिलते रहते थे और सैरसपाटे के साथसाथ मौजमस्ती भी करते थे. इस मौजमस्ती में सोहेल का तो कुछ नहीं जाता था, लेकिन दीपक की सागसब्जी और फलों की दुकान घाटे में चली गई थी. दुकान को संभालने के लिए दीपक वाघरी ने सोहेल शेख से करीब 80 हजार रुपए बतौर कर्ज ले रखे थे.

सोहेल का एक दोस्त था सुनील. एक दिन उस ने सुनील और उस की गर्लफ्रैंड स्नेहा को कौफी हाउस में देखा. उन के साथ ऐश्वर्या भी थी. सुनील जब कभी अपनी गर्लफ्रैंड स्नेहा से मिलने जाता था, कभी कभी अपने साथ सोहेल शेख को भी ले जाता था. यही हाल सुनील की गर्लफ्रैंड स्नेहा का भी था. जब वह सुनील से मिलती थी, कभी कभी उस के साथ ऐश्वर्या भी होती थी.

जहां सोहेल रहता था, उस से कुछ ही दूरी पर गोकुल टाउनशिप विनायक अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर के फ्लैट ए-101 में 55 वर्षीय राजेश कुमार अग्रवाल का परिवार रहता था. राजेश जोशी बिल्डर एंटरप्राइजेज में सर्विस किया करते थे. साधारण परिवार के राजेश कुमार अग्रवाल स्वभाव से मिलनसार व्यक्ति थे. वह अपने यहां आने वाले ग्राहकों को मानसम्मान की नजर से देखते थे. परिवार में उन की 50 वर्षीया पत्नी प्रेमलता के अलावा 2 लड़कियां थीं, 19 वर्षीय ऐश्वर्या विरार के विभा कालेज से इंजीनियरिंग कर रही थी, जबकि उस की छोटी बहन अभिलाषा एक प्राइवेट स्कूल से पढ़ाई कर रही थी. सोहेल पहली ही नजर में ऐश्वर्या का दीवाना हो गया था.

ऐश्वर्या जितनी सुंदर थी, उतनी ही चंचल और आधुनिक विचारों वाली भी थी. वह किसी से भी बेझिझक बात कर लेती थी. उस की बातें हर किसी के मन को मोह लेती थीं. इस तरह की युवती को अपने प्रेमजाल में कैसे फंसाया जाता है, यह विधा सोहेल को अच्छी तरह आती थी. वह पहले दिन से ही ऐश्वर्या के करीब जाने की कोशिश करने लगा.

जल्दी ही वह अपनी इस कोशिश में कामयाब भी हो गया. दरअसल जब भी वह ऐश्वर्या को देखता था, उस के दिल की धड़कनें तेज हो जाती थीं. वह किसी भी तरह उसे अपनी बाहों में समेटने के लिए बेकरार हो उठता था. उस की सुंदरता उस की आंखों में समाई हुई थी. कई बार मिलने के बाद जब नजदीकियां बढ़ीं तो यही स्थिति ऐश्वर्या की भी हो गई.

19 वर्षीया ऐश्वर्या जवान हो चुकी थी. उस के भी कुछ अरमान थे. वह सोहेल की नजरों की भाषा को चाहत समझ रही थी. चाहत दोनों ओर थी, बस इंतजार था तो एक मौके का और वह मौका उन्हें एक पार्टी में मिल गया. पार्टी के दौरान ऐश्वर्या के सामीप्य से सोहेल को जैसे सारी दुनिया की खुशियां मिल गई थीं. दूसरी ओर ऐश्वर्या को भी ऐसा लगने लगा था, जैसे उड़ान भरने के लिए पंख मिल गए हों. इस के बाद सोहेल ऐश्वर्या पर दिल खोल कर खर्च करने लगा. वह उसे घुमाता फिराता और महंगे महंगे उपहार देता.

ऐश्वर्या सोहेल के व्यवहार और स्वभाव से इस तरह प्रभावित हुई कि वह उसे अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगी. वह सोहेल के प्यार के जाल में कुछ इस तरह से फंसी कि उसे अपने तनमन का भी ख्याल नहीं रहा. सोहेल के साथ शादी के लुभावने वादों में वह अपने समाज और रीतिरिवाजों को भी भूल गई.

ऐश्वर्या उस के प्यार और विश्वास में कुछ इस तरह डूबी कि उस ने अपना तन मन सब सोहेल को सौंप दिया. वह अपना ज्यादा से ज्यादा समय उसी के साथ बिताने लगी. जब दीपक की पत्नी अपनी ड्यूटी पर गई होती और बच्चे स्कूल तो वह दोस्त की खातिर अपना घर सोहेल के लिए खोल देता. उन दोनों को अपने घर में मिलने की जगह दे कर वह उन के मिलन में भरपूर मदद कर रहा था. ऐश्वर्या और सोहेल को अन्य जगहों से दीपक वाघरी का घर सब से ज्यादा सुरक्षित लगता था. वहां पर वे दोनों बिना किसी डर के घंटों अपना समय व्यतीत करते थे.

जब यह बात किसी तरह ऐश्वर्या के परिवार वालों को पता चली तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने ऐश्वर्या को ले कर जो सपने देखे थे, वे कांच के टुकड़ों की तरह बिखरते दिखाई देने लगे. मामला जवान बेटी का था. मौका देख कर ऐश्वर्या के पिता राजेश अग्रवाल ने उसे प्यार से काफी समझायाबुझाया. उसे अपने धर्मसमाज के विषय में बताया. लेकिन सोहेल के प्यार में अंधी ऐश्वर्या पर अपने परिवार वालों और पिता राजेश अग्रवाल की एक भी बात का असर नहीं हुआ. वह सोहेल शेख को ही अपना सब कुछ समझ रही थी. वह उसी को ले कर अपने भविष्य के सपने बुनती रहती थी.

लेकिन यह भी सच है कि लोगों की बंद आंखों के सपने ही नहीं टूटते, बल्कि खुली आंखों के सपने भी टूट जाते हैं. जब खुली आंखों के मखमली सपने टूटते हैं, इंसान आकाश से सीधा जमीन पर आ कर गिरता है. ऐसा ही ऐश्वर्या के साथ हुआ.

जब ऐश्वर्या ने सोहेल पर शादी का दबाव बनाया और उसे पता चला कि सोहेल की जिंदगी में उस के अलावा कोई और लड़की भी है तो वह हतप्रभ रह गई. यह बात सोहेल के दोस्त दीपक को भी मालूम थी. सोहेल ऐश्वर्या को शादी का सब्जबाग तो दिखाता रहा, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने ऐश्वर्या को मात्र अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए प्यार के जाल में फंसाया था.

दीपक की नजर भी ऐश्वर्या पर थी. वह भी उस के साथ रंगरलियां मनाना चाहता था. उसे अपने जाल में फंसाने के लिए दीपक ने उसे बता दिया था कि सोहेल की जिंदगी में एक और लड़की भी है. बाद में जब सोहेल मिला तो वह उस पर भूखी शेरनी की तरह झपट पड़ी. उस ने सोहेल को काफी खरीखोटी सुनाई, साथ ही उस ने उस लड़की से रिश्ता खत्म कर के उस पर शादी करने के लिए दबाव बनाया. उस ने धमकी दी कि अगर उस ने उस के साथ विवाह कर के उसे पत्नी का हक नहीं दिया तो वह उस का जीना हराम कर देगी.

ऐश्वर्या की धमकी भरी बातों से सोहेल बुरी तरह डर गया. वह जानता था कि ऐश्वर्या आसानी से उस का पीछा छोड़ने वाली नहीं है. उस के खिलाफ वह रिपोर्ट भी दर्ज करा सकती है. इस से उस की जो बदनामी होगी, वह तो होगी ही, साथ ही वह कानूनी शिकंजे में फंस जाएगा. इसलिए उस ने ऐश्वर्या नाम के कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए एक खतरनाक फैसला ले लिया. इस की जिम्मेदारी उस ने अपने दोस्त दीपक को सौंप दी. इस के लिए उस ने अपना एक सिमकार्ड भी दीपक वाघरी को दे दिया, ताकि वह ऐश्वर्या के संपर्क में रहे.

पहले तो ऐश्वर्या की हत्या की बात से दीपक के पसीने छूट गए, लेकिन सोहेल के एहसान और कर्ज के नीचे दबे होने के कारण दीपक सोहेल का काम करने के लिए तैयार हो गया. क्योंकि उस के ऊपर सोहेल का जितना कर्ज था, वह उसे लौटाने की स्थिति में नहीं था. घटना वाले दिन जब सुबह को उस की पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके वालों से मिलने कल्याण चली गई तो दीपक को सुनहरा मौका मिल गया. पत्नी और बच्चों के चले जाने के बाद दीपक ने सोहेल के सिमकार्ड को इस्तेमाल कर के ऐश्वर्या को यह कह कर अपने घर बुला लिया कि सोहेल उस से मिलना चाहता है.

अपनी मौत से अनभिज्ञ ऐश्वर्या सोहेल से मिलने के लिए सुबह साढ़े 10 बजे ही दीपक के घर पहुंच कर सोहेल का इंतजार करने लगी. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे ऐश्वर्या परेशान होती जा रही थी. जहां एक तरफ ऐश्वर्या सोहेल शेख से मिलने के लिए बेचैन थी, वहीं दूसरी ओर दीपक के मन में उस की हत्या के साथसाथ एक घिनौनी हरकत जन्म ले रही थी. वह हत्या के पहले ऐश्वर्या के सुंदर तन को भोगना चाहता था. इस के लिए वह पूरी तरह तैयार भी था.

साढ़े 12 बजे तक सोहेल का इंतजार करने के बाद जब ऐश्वर्या दीपक के घर से निकल कर जाने को उठी तो दीपक ने उठ कर घर का दरवाजा बंद कर दिया. फिर उस ने ऐश्वर्या के साथ जबरदस्ती करने के लिए उसे पकड़ लिया. पहले तो ऐश्वर्या अपने बचाव के लिए दीपक से लड़ती रही, साथ ही उस से छोड़ देने के लिए विनती भी करती रही. लेकिन वासना के उन्माद में वह इस तरह से पागल था कि किसी भी स्थिति में उसे छोड़ने को तैयार नहीं था.

दीपक की मजबूत पकड़ के आगे विवश हो कर ऐश्वर्या ने मदद के लिए चीखनाचिल्लाना शुरू किया तो दीपक को अपना प्रयास विफल होता दिखाई दिया. गुस्से में वह घर के अंदर एक कोने में रखी लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी उठा लाया और ऐश्वर्या पर पागलों की तरह वार करने लगा. उस के वार से बचने के लिए ऐश्वर्या उस के पूरे घर में भागती रही, लेकिन दीपक को ऐश्वर्या पर जरा भी दया नहीं आई और उस ने बड़ी बेरहमी से उस के अस्तित्व को मिटा दिया.

दीपक और सोहेल के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 109, 120बी के तहत मुकदमा पहले ही दर्ज था. इंसपेक्टर जनार्दन परवकर ने उन दोनों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उन्हें अदालत पर पेश किया, जहां से उन्हें तलौजा जेल भेज दिया गया.

– अशोक शर्मा

वजह तुम हो : समय व पैसे की बर्बादी न करें

बदले की भावना पर आधारित ‘‘हेट स्टोरी 2’’ और ‘‘हेट स्टोरी 3’’ के बाद विशाल पंड्या निर्देशित फिल्म ‘‘वजह तुम हो’’ भी बदले की भावना पर आधारित कहानी है, जिसे चैनल हैकिंग और ईरोटिक फिल्म के रूप में प्रचारित किया गया. यह प्रचार तथा लेखक व निर्देशक की अपनी गलतियां इस फिल्म को ले डूबेगी. ‘हेट स्टोरी 2’ और ‘हेट स्टोरी 3’ का सशक्त पक्ष ईरोटिक सीन थे, जिसका ‘वजह तुम हो’ में घोर अभाव है.

लेखक निर्देशक विशाल पंड्या ने अपने आपको सिनेमा जगत का अति बुद्धिमान इंसान साबित करने के लिए कहानी व पटकथा के साथ इतने पैंतरेबाजी की, कि पूरी फिल्म तहस नहस हो गयी. दर्शक समझ ही नहीं पाता कि आखिर कौन क्या और क्यों करना चाहता है. इसके अलावा चैनल हैंकिंग का तकनीकी पक्ष इस तरह से बयां किया गया है कि वह दर्शकों के सिर के उपर से निकल जाता है. फिल्म खत्म होते होते दर्शक अपने आपको ठगा हुआ महसूस करने लगता है. निर्देशक व पटकथा लेखक वहीं अपनी फिल्म को तहस नहस कर देता है, जहां वह सोच लेता है कि वह दर्शकों को चकरघिन्नी की तरह नचाते हुए मूर्ख बना ले जाएगा.

फिल्म ‘‘वजह तुम हो’’ की शुरुआत होती है मुंबई पुलिस के एसीपी रमेश सरनाइक द्वारा एक बेगुनाह लड़के को बरी करने के लिए लड़के की प्रेमिका के साथ सेक्स संबंध बनाने से. फिर पुलिस स्टेशन जाते समय सरनाइक खुद को वफादार कुत्ता बताते हुए करण पारिख को फोन कर पैसा मांगता है. करण वादा करता है कि आज रात ही उसका हिसाब हो जाएगा. थोड़ी देर बाद एसीपी सरनाइक की कार पर हमला होता है. घायल सरनाइक गाड़ी से बाहर आता है, एक नकाबपोश उस पर कई वार कर घायल कर देता है. कुछ समय बाद ‘जीएनटीवी’ चैनल पर सरनाइक की हत्या का लाइव प्रसारण होता है.

हड़कंप मच जाता है. इस कांड की जांच अपराध शाखा के ईमानदार इंस्पेक्टर कबीर देशमुख (शर्मन जोशी) करते हैं. कबीर को लगता है कर्ज में डूबे चैनल के मालिक राहुल ओबराय ने अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिए यह सारा खेल किया है. पर राहुल व चैनल का तकनीकी हेड मैक पुलिस को संतुष्ट कर देते हैं कि यह चैनल की हैंकिंग का मसला है. राहुल ओबेराय (रजनीश दुग्गल) के बचाव में उसकी वकील सिया (सना खान) है, तो वहीं पुलिस की तरफ से सरकारी वकील रणवीर बजाज (गुरमीत चौधरी) हैं. सिया और रणवीर बजाज प्रेमी प्रेमिका भी हैं. रणवीर बजाज बार बार सिया को समझाने का प्रयास करता है कि वह राहुल से दूर रहे. राहुल सही इंसान नहीं है. कबीर की जांच के साथ फिल्म की कहानी हिचकोले लेने लगती है.

पूरी फिल्म की कहानी को साधारण तरीके से समझें तो करण पारिख और राहुल ओबेराय दोस्त हैं. राहुल के चैनल जीएनटीवी में करण का भी पैसा लगा है. करण बिल्डर भी है. एक दिन करण और राहुल गैरज में चैनल की कर्मचारी रजनी का बलात्कार करते हैं. इसका गवाह एक बूढ़ा इंसान शर्मा है. बतौर सरकारी वकील रणवीर बजाज को रजनी रेप कांड पहला मुकदमा मिलता है. पर रणवीर, करण के हाथों बिक जाता है. करण, राहुल और एसीपी सरनाइक मिलकर मिस्टर शर्मा को उनके घर में ही जला देते हैं.

अदालत में केस हारने के बाद रजनी व उसका प्रेमी मैक तथा शर्मा की बेटी अंकित शर्मा उर्फ सिया अब राहुल, करण व एसीपी सरनाइक से बदला लेने की योजना पर काम करते हैं. सिया राहुल के चैनल की लीगल हेड बन जाती है. जबकि मैक, राहुल के चैनल का मुख्य तकनीकी हेड बन जाता है. सिया ही पहले सरनाइक, फिर करण की हत्या करती है. मैक चैनल हैक कर हत्या का लाइव प्रसारण करता है. अब नंबर राहुल का आता है. पर राहुल मरने से पहले बता देता है कि सिया का अपराधी रणवीर बजाज भी है.

सिया, रणवीर को लेकर उसी जगह पहुंचती है, जहां पर वह सरनाइक, करण व राहुल की हत्या कर चुकी है. रणवीर कबूल करता है कि उसने महत्वाकांक्षा और बड़ा बनने के लिए रिश्वत लेकर करण व राहुल की मदद रजनी रेप कांड में की थी. यदि उसे पता होता कि शर्मा उनके पिता हैं, तो वह उन्हें मरने न देता. रणवीर का यह अपराध कबूलनामा फोन पर कबीर सुनता रहता है. फिर रणवीर व सिया के बीच मारपीट होती है. तभी कबीर पहुंचता है. कबीर, रणवीर को अपने साथ ले जाए, उससे पहले ही सिया उसे गोलियों से भून देती है. अंत में कबीर दिल की आवाज सुनकर सिया का केस बंद कर देता है और खुद पुलिस की नौकरी छोड़ देता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो गुरमीत चौधरी व शर्मन जोशी ने ठीकठीक अभिनय किया है. मगर सना खान बुरी तरह से मात खा गयी हैं. सिया के किरदार में वह कहीं से भी फिट नजर नहीं आती. रजनीश दुग्गल ने फिर साबित कर दिखाया कि वह अभिनेता नहीं सिर्फ माडल हैं.

फिल्म की कहानी गडमड होने के साथ ही बहुत ही धीमी गति से चलती है. फिल्म की पटकथा बहुत ही घटिया है. लेखक के तौर पर विशाल पंड्या को यही समझम नहीं आया कि वह ईमानदार पुलिस अफसर की कहानी बताए या अय्याश, घूसखोर व अपराध को बढ़ावा देने वाले पुलिस अफसर की कहानी बताएं. विशाल पंड्या को इस बात का भी अहसास नहीं है कि चैनलों में काम करने वाली लड़कियां किस तरह की पोशाकें पहनती है. फिल्म में बलात्कार जैसे संजीदा मसले को भी को भी बड़ा हास्यास्पद बना दिया गया है. संवाद भी घटिया हैं.

जरीन खान और शर्लिन चोपड़ा के आइटम नंबर भी फिल्म तक दर्शकों को नहीं खींच पाएंगे. जहां तक संगीत का सवाल है, तो इस फिल्म में दो पुराने क्लासिक गीतों ‘पल पल दिल के पास’ तथा ‘ऐसे न मुझे तुम देखो’ को रीमिक्स कर नए अंदाज में पेश करते समय गाने की आत्मा ही नष्ट कर दी गयी. इन्हे सुनने के बाद लोग पुराने मौलिक गीत को भी नहीं सुनना चाहेंगे.

दो घंटे सोलह मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘वजह तुम हो’’ को भूषण कुमार और किशन कुमार ने ‘‘टीसीरीज’’ के बैनर तले बनाया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक विशाल पंड्या, संगीतकार मिठुन, अभिजीत वघानी व मीत ब्रदर्स, कैमरामैन प्रकाश कुट्टी तथा कलाकार हैं- गुरमीत चौधरी, सना खान, शर्मन जोशी, रजनीश दुग्गल, शर्लिन चोपड़ा, जरीन खान, हिमांशु मल्होत्रा व अन्य

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