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जब खरीदना हो ड्यूल कैमरा वाला स्मार्टफोन

अगर आप अच्छे कैमरे वाला स्मार्टफोन खरीदने की सोच रहे हैं तो आप ड्यूल-बैक कैमरा सेटअप वाला स्मार्टफोन खरीद सकते हैं. इस वक्त मार्केट में बहुत सारे स्मार्टफोन्स उपलब्ध हैं, जिनमें बैकसाइड पर ड्यूल-कैमरा सेटअप है यानी दो कैमरे लगे हैं. जानें कुछ अच्छे ड्यूल-कैमरा स्मार्टफोन्स और उनके खासियत के बारे में.

Apple iPhone 7 Plus

iPhone 7 Plus में 12 मेगापिक्सल के 2 बैक कैमरे हैं. पहले कैमरे में 28mm का वाइड ऐंगल लेंस है और दूसरे में 56mm का टेलिफोटो लेंस. पहले वाले का अपर्चर f/1.8 है और दूसरे का f/2.8 है. इसमें OIS, इमेज सिग्नल प्रोसेसर और क्वॉड LED ट्रू टोन फ्लैश है. दोनों कैमरों को साथ इस्तेमाल करके iPhone 7 Plus पर 2x ऑप्टिकल जूम करके शानदार तस्वीरें ली जा सकती हैं.

Asus ZenFone 3 Zoom

CES 2017 में आसुस ने जेनफोन 3 जूम को शोकेस किया, जिसमें 12 मेगापिक्सल के ड्यूल बैक कैमरे हैं. इसमें 2.3x ऑप्टिकल जूम है और 12x टोटल जूम है.

दोनों कैमरों में Sony IMX 362 12 MP सेंसर लगे हैं. कंपनी का दावा है कि कम रोशनी में भी यह स्मार्टफोन अच्छी तस्वीरें खींचता है. फ्रंट कैमरा 13 मेगापिक्सल है, जिसमें वाइड ऐंगल लेंस लगा है. यह स्मार्टफोन फरवरी 2017 से उपलब्ध होगा.

Huawei Honor 6X

वावे ने CES 2017 में Honor 6X से पर्दा उठाया था. इसके तुरंत बाद यह चीन में लॉन्च हुआ और अब भारत में लॉन्च होने जा रहा है. इस स्मार्टफोन में लगा ड्यूल कैमरा सेटअप PDAF सपॉर्ट करता है. इसमें 6P लेंस भी लगा है. इसका एक सेंसर 12 मेगापिक्सल है और दूसरा 2 मेगापिक्सल. सेल्फी लेने और विडियो कॉल करने के लिए इसमें 8 मेगापिक्सल कैमरा है. यह भारत में 24 जनवरी के उपलब्ध होगा और सिर्फ ऐमजॉन से खरीदा जा सकेगा.

LG G5

LG LG5 के बैक कैमरा मॉड्यूल में एक 16 मेगापिक्सल और दूसरा 8 मेगापिक्सल कैमरा है. 15 मेगापिक्सल कैमरे का अपर्चर f/1.8 है. इसमें PDAF और OIS है. 8 मेगापिक्सल वाले कैमरे का अपर्चर f/2.4 है और इसमें 135 डिग्री वाइड ऐंगल लेंस लगा है. एक टैप करके दोनों में से किसी पर स्विच किया जा सकता है. इसका सेल्फी कैमरा 8 मेगापिक्सल है.

Huawei P9

इस फोन में 12 मेगापिक्सल के 2 प्राइरी कैमरे लगे हैं और फ्रंट में एक 8 मेगापिक्सल कैमरा है. दो बैक कैमरों में से एक ब्लैक ऐंड वाइट तस्वीरें लेता है. इस कैमरा सेटअप को कंपनी Leica (पॉप्युलर कैमरा ब्रैंड) के साथ मिलकर डिवेलप किया है.

LG X Cam

LG X Cam में ड्यूल कैमरा सेटअप है. इसमें एक 13 मेगापिक्सल और दूसरा 5 मेगापिक्सल कैमरा है. इसका फ्रंट कैमरा 5 मेगापिक्सल है.

Honor 8

ऑनर 8 में 12 मेगापिक्सल के दो बैक कैमरे हैं. वावे P9 की ही तरह इनमें से एक रंगीन और दूसरा ब्लैक ऐंड वाइट फोटो खींचता है. दोनों कैमरों का अपर्चर f/2.2 है और ऑटोफोकस सपॉर्ट करते हैं.

Huawei Mate 9

वावे मेट 9 में भी दो लेंस हैं. एक कलर कैप्चर करता है और दूसरा मोनोक्रोम तस्वीरें खींचता है. पहला वाला 12 मेगापिक्सल है और दूसरा 20 मेगापिक्सल. इनमें OIS, हाइब्रिड जूम, ड्यूल-टोन ड्यूल LED फ्लैश और 4-in-1 हाइब्रिड ऑटोफोकस सिस्टम है.

LG V20

एलजी के पास एक ड्यूल कैमरा सेटअप वाला फोन है, जो महंगा है. कंपनी के इस स्मार्टफोन में एक 16 मेगापिक्सल का कैमरा और दूसरा 8 मेगापिक्सल है. दूसरे कैमरे में 135 डिग्री वाइड ऐंगल लेंस है और इससे लैंडस्केप मोड पर खींचे गए फोटो अच्छे आते हैं. इसका फ्रंट कैमरा 5 मेगापिक्सल है.

Lenovo Phab 2 Plus

लेनोवो फैब 2 प्लस में 13 मेगापिक्सल के 2 बैक कैमरे और एक 8 मेगापिक्सल सेल्फी कैमरा है. प्राइमरी कैमरों में ड्यूल LED फ्लैश, PDAF, लेजर ऑटोफोकस और f/2.0 अपर्चर है.

Coolpad Cool 1

कूलपैड कूल 1 भारत में उपलब्ध सबसे सस्ता ड्यूल कैमरा सेटअप वाला स्मार्टफोन है. इसमें 13 मेगापिक्सल के 2 बैक कैमरे हैं, जिनका अपर्चर f/2.0 है. साथ में LED फ्लैश भी है. इनमें से एक कैमरा रंग कैप्चर करता है और दूसरा ब्राइटनेस, डीटेल्स और डेप्थ. इसके अलावा 8 मेगापिक्सल फ्रंट कैमरा भी है.

आम बजट से जुड़ी ये खास बातें, जानते हैं आप?

इस साल आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा. इस घोषणा के साथ ही आम आदमी की दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. नोटबंदी जैसे आक्समिक घोषणा के बाद, बजट को लेकर लोगों की आशंकायें बढ़ गई हैं. नए बजट में क्या सस्ता होगा, क्या महंगा, टैक्स में क्या बदलाव आयेंगे. रेल बजट भी अब आम बजट के साथ ही पेश किया जाएगा. नई ट्रेनों, किराए में बदलाव जैसे महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए जाएंगे.

बजट पेश होने में अभी कुछ दिन बाकी हैं. तब तक आप बजट से जुड़ी इन खास बातों को पढ़िए.

1. क्या है बजट?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के मुताबिक, आम बजट वित्त मंत्रालय द्वारा पेश किया जाता है. इसमें आने वाले वित्त वर्ष के अनुमानित खर्चों का ब्यौरा होता है. केंद्रीय बजट किसी भी सरकार का आगामी वित्त वर्ष के लिए अनुमानित खर्चों से जुड़ा ब्यौरा है.

2. भारत का पहला बजट

18 फरवरी 1869 को भारत का पहला बजट ईस्ट इंडिया कंपनी के जेम्स विल्सन ने पेश किया था. विल्सन इंडियन काउंसिल के फाइनेंस मेंबर थे.

3. स्वाधीन भारत का पहला बजट

स्वाधीन भारत का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को वित्त मंत्री आर.के.शणमुखम चेट्टी द्वारा पेश किया गया था.

4. पंचवर्षीय योजना का जिक्र

जॉन मथाई देश के दूसरे वित्त मंत्री बने थे. उन्होंने 1949-1950 का बजट पेश किया था. उन्होंने पूरा बजट नहीं पढ़ा था, सिर्फ कुछ खास बिंदुओं पर ही प्रकाश डाला था. मथाई के बजट में ही पहली बार योजना आयोग और पंचवर्षीय योजना का जिक्र हुआ था.

5. सिर्फ अंग्रेजी में तैयार किए जाता था बजट

1955 से पहले सिर्फ अंग्रेजी में बजट तैयार किया जाता था. 1955-56 हिन्दी में भी बजट तैयार किया जाने लगा. 1955-56 के बजट में ही पहली बार काला धन उजागर करने की स्कीम शुरु की गई.

6. भारत की फाइनेंशियल ईयर

1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलने वाला भारत का वित्तीय वर्ष 1867 से शुरू हुआ था. पर सूत्रों के अनुसार भारत के वित्तीय वर्ष को बदलने की घोषणा भी नए बजट में की जा सकती है.

7. शाम को पेश होता था बजट

सन् 2000 तक 28 फरवरी को शाम के 5 बजे बजट पेश किया जाता था. इसके पीछे भी गुलामी की जंजीरों की छाप थी. भारतीय समय के अनुसार शाम के 5 बजे ब्रिटेन के बाजार खुलते हैं. वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सन् 2001 में बजट पेश करने का समय सुबह के 11 बजे कर दिया.

8. तत्कालीन राष्ट्रपति तय करते हैं बजट का दिन

आम बजट किस दिन पेश किया जाएगा, ये तारीख तत्कालीन राष्ट्रपति तय करते हैं

9. बहुत गोपनीय होता है बजट

बजट किसी भी सरकार के लिए गोपनीय और महत्वपूर्ण दस्तावेज है. इसे बनाने की प्रक्रिया में जो भी अधिकारी लगे रहते हैं, वे 15-30 दिनों तक नॉर्थ ब्लॉक में ही रहते हैं. इन अधिकारियों का बाहरी दुनिया से कोई भी संपर्क नहीं होता है और न ही ये किसी को फोन कर सकते हैं.

10. इन्होंने पेश किए सबसे ज्यादा बजट

मोरारजी देसाई ने देश में सबसे ज्यादा, 10 बार बजट पेश किए हैं. उनके बाद वाईबी चौहान, सीडी देशमुख, प्रणव मुखर्जी, यशवंत सिन्हा, पी चिदंबरम ने 7-7 बार बजट पेश किए हैं.  

11. बजट के मौके पर हलवा समारोह

बजट पेश करने संबंधी दस्तावेजों की प्रिटिंग से पहले फाइनेंस मिनिस्टर कुछ दस्तावेज पढ़ते हैं. प्रिटिंग शुरू होने से पहले नॉर्थ ब्लॉक में 'हलवा समारोह' मनाया जाता है. कहा जाता है कि इस हलवे को वित्त मंत्री खुद तैयार करते हैं और बजट कार्य में लगे अधिकारियों को अपने हाथ से परोसते हैं.

12. देश के प्रधानमंत्री ने भी पेश किए बजट

संविधान के अनुसार तो देश के वित्त मंत्री को ही बजट पेश करते हैं. पर देश के प्रधानमंत्रीयों ने भी बजट पेश किया था. ये प्रधानमंत्री एक ही परिवार से थे. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तब बजट पेश किया जब उनके वित्त मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था.

13. लंबे भाषणों का दौर

वित्त मंत्री ने प्रणव मुखर्जी 1982 में बजट पेश करते हुए 1 घंटा 35 मिनट तक भाषण दिया था. इसके बाद ही बजट पेश करते हुए लंबे भाषणों का दौर चल पड़ा था.

14. आरबीआई के गवर्नर ने पेश किया बजट

सी.डी. देशमुख भारत के पहले ऐसे वित्त मंत्री थे जो आरबीआई के गवर्नर भी रह चुके थे. उन्होंने मंत्री बनने के बाद बजट पेश किया था.

15. एकमात्र महिला जिन्होंने पेश किया बजट

भारतीय संसद में बजट प्रस्तुत करने वाली एकमात्र महिला इन्दिरा गांधी हैं. उन्होंने 1970 में आपातकाल के दौरान संसद में बजट पेश किया था.

कोहली ने मारा ऐसा शॉट की देखते रह गए दर्शक

इंग्लैंड के खिलाफ पुणे में खेले गए पहले वनडे मैच में कप्तान विराट कोहली ने शतकीय पारी खेलकर साल 2017 की धमाकेदार शुरूआत की है. विराट ने 105 गेंदों में 122 रनों की पारी खेली और तीन वनडे मैचों की सीरीज के पहले मैच में 350 रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही भारतीय टीम को शानदार जीत दिलाने में अहम भूमका निभाई. खासकर रनों का पीछा करते हुए उनको बल्लेबाजी करते देखना तो और दिलचस्प होता है.

लेकिन, इस मैच में कोहली अपने शतक से ज्यादा उस शॉट की वजह से चर्चा में रहे, जो उन्होंने 34वें ओवर की दूसरी गेंद पर क्रिस वॉक्स की गेंद पर खेला. अपनी इस शानदार पारी में विराट ने विराट ने 8 चौके और 5 गगनचुंबी छक्के जड़े.

कोहली ने क्रिस वोक्स की गेंद पर एक अलग अंदाज में ही छक्का जड़ा. छह रन के लिए खेले गए इस शॉट की हर किसी ने तारीफ की. वॉक्स ने शॉर्ट लेंथ वाली गेंद डाली, जिसे विराट कोहली ने शॉर्ट आर्म पुल के जरिए डीप मिडविकेट और वाइड लॉन्ग ऑन के बीच वाले क्षेत्र पर छक्के के लिए भेज दिया. कोहली का ये छक्का 79 मीटर का था.

कोहली के इस शॉट पर कमेंट्री बॉक्स में बैठे इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन चिल्ला उठे और उन्होंने शॉट को 'अविश्वसनीय' करार दिया.

पुरुष लड़कियों को इसी तरह से जज करते रहे हैं : तापसी पन्नू

बौलीवुड में हर कलाकार को संघर्ष करना ही पड़ता है. फिर चाहे वह प्रतिभाशाली कलाकार हो अथवा हिंदी के अलावा अन्य भाषा की फिल्मों में अपनी प्रतिभा का जलवा ही क्यों न बिखेर चुका हो. ऐसे में यदि 40 दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुकी अदाकारा तापसी पन्नू को बौलीवुड के फिल्मकारों ने अनदेखा किया हो, तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं हैं.

बहरहाल, फिल्म ‘‘पिंक’’ के प्रदर्शन के बाद वह स्टार बन गयी हैं. ‘पिंक’ के प्रदर्शन के बाद उन्हे कई तरह के संदेश मिल रहे हैं. इतना ही नहीं ‘पिंक’ की सफलता के बाद अब दो साल से अटकी पड़ी उनकी फिल्म ‘‘रनिंग शादी डाट काम’’ के प्रदर्शन की राह बन गयी है. कैमरामैन से फिल्म निर्देशक बने अमित राय की तीन फरवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘रनिंग शादी डाट काम’’ में तापसी पन्नू के साथ अमित साध भी नजर आएंगे.

प्रस्तुत है उनसे ‘‘सरिता’’ पत्रिका के लिए हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश.

फिल्म ‘‘पिंक’’ में वह मुद्दा था, जो पूरे विश्व का सबसे ज्वलंत मुद्दा है? ऐसे में फिल्म के प्रदर्शन के बाद लोगों से किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?

– मेरे पास इतने संदेश आए हैं, कि मैं बयां नहीं कर सकती. लोगों ने फेसबुक, ट्वीटर, जहां भी मौका मिला, वहां अपने संदेश दिए हैं. कुछ लोग तो मुझसे सड़क पर मिले और अपने मन की बात कही. मेरे साथ अक्सर हो यह रहा है कि सड़क पर चलते चलते सिग्नल पर मेरी गाड़ी के बगल में दूसरी गाड़ी आकर रूकती है, उससे एक आंटी अपनी बेटी के साथ बाहर निकलती हैं और अपनी बेटी से मिलाते हुए कहती हैं कि, ‘मैंने इससे आप की तरह सशक्त बनने के लिए कहा है.’ लोग कई तरह के पत्र भेज रहे हैं. लोग बताते हैं कि किस तरह से इस फिल्म ने उनके दिल को छू लिया है. कुछ लोगों ने लिखा है कि, फिल्म देखते समय उन्हें लगा कि मेरी जगह वह कटघरे में खड़े हैं. लोग कहते हैं कि यह फिल्म सिर्फ फिल्म नहीं, बल्कि मेरे करियर में बहुत बड़ा लैंडमार्क है. हर कलाकार के करियर में कुछ फिल्में लैंडमार्क बन जाती हैं, लेकिन ‘पिंक’ एक ऐसी फिल्म है, जो कि मेरी जिंदगी में लैंडमार्क बन गयी है. इस फिल्म की वजह से लोगों के दिलों में मुझे जो जगह मिली है, वह जगह तमाम कलाकारों को उनके पूरे करियर में नहीं मिल पाती है.

‘पिंक’ में उठाए गए मुद्दे को लेकर किसी ने आपसे कोई बात कही, जिसे आप भुला ना सके?

– सबसे बड़ी बात यह है कि एक भी नकारात्मक मैसेज नहीं आया. लोगों ने कहा कि वह इन बातों को महसूस कर रहे थे, पर बोल नहीं रहे थे. अब तक किसी भी फिल्मकार या लेखक ने इस मुद्दे को लेकर इस तरह से बात नहीं की. पर फिल्म ‘‘पिंक’’ में इसी मुद्दे पर खुलकर वार किया गया है. इस तरह से बोल्ड तरीके से किसी फिल्मकार ने किसी मुद्दे को अपनी फिल्म में नहीं उठाया. कुछ पुरुष मुझसे मिले और कहा कि फिल्म देखने के बाद उन्हें अपने आप पर शर्म आयी. कुछ पुरुषों ने माना कि जाने अनजाने अनकांशियली वह लोग भी अपनी जिंदगी में इसी तरह से लड़कियों को जज करते रहे हैं. एक पुरुष ने संदेश भेजा कि वह एक माह के अंदर ही पिता बनने वाला है. उसकी पत्नी गर्भवती है. यदि उसका बेटा हुआ, तो यह सुनिश्चित करेगा कि उसका बेटा पहली फिल्म ‘पिंक’ देखे. इसलिए मैं कह रही हूं कि फिल्म ‘पिंक’ करना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ी अचीवमेंट है.

जब आप इस फिल्म की शूटिंग कर रही थीं, उस वक्त इस तरह की घटनाएं पढ़कर आपके दिमाग में क्या चल रहा था?

– फिल्म ‘पिंक’ करने से पहले भी लड़कियों से छेड़खानी व रेप की घटनाएं हो रही थीं. जब मैं शूटिंग कर रही थी, तब भी हो रही थी और अब फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है. पर  यह घटनाएं आज भी जारी हैं. उस वक्त हर दिन सुबह अखबार में इस तरह की घटनाएं पढ़कर जो मेरे अंदर गुस्सा आता था, उसका उपयोग मैं शूटिंग के दौरान अपने किरदार को निभाते समय कर रही थी. मैं शूटिंग के दौरान उस गुस्से को चैनलाइज कर रही थी. अब फिल्म के प्रदर्शन के छह माह बाद जब वही घटना घटित होती है, तो खुद को एक हारे हुए फौजी की तरह पाती हूं. हमें लगता है कि हमने फिल्म में इतना बड़ा मुद्दा उठाया, लोग हमारे साथ लड़े, युद्ध घोषित कर वह युद्ध जीत गयी. आप इस बात को बाक्स आफिस के कलेक्शन, आलोचकों की रिव्यू व दर्शकों की प्रतिक्रिया के आधार पर देख लें, हर जगह जीत हासिल हुई है. मगर अब जब उसी तरह की घटनाएं घटती हैं, तो लगता है कि हमारे ही पक्ष के किसी इंसान ने हमारी पीठ पर छुरा भौंक दिया. अब इस बात का अहसास होता है कि हमारे गैंग के किसी सैनिक ने हमें धोखा दे दिया.

पर यह स्थिति क्यों हैं? इस पर आपने कभी सोचा है?

– ‘पिंक’ जैसी फिल्म करने से पहले भी मैं इस तरह के मुद्दो पर गंभीरता से सोचती रही हूं. इसमें अभिनय करने के बाद तो कुछ ज्यादा ही सोचने लगी हूं. अब मुझे लगता है कि हम इंसानों की चमड़ी काफी मोटी हो गयी है. हम काफी आगे निकल गए हैं. इस तरह की घटनाएं हमें हमारी आत्मा को कचौटती नहीं है. इस कुकर्म को खत्म करने के लिए हमें एक लंबी लड़ाई लड़नी होगी. हमें हार नही मानना है. कम से कम मैं तो हार नही मान रही हूं. मैं अपनी तरफ से समाज से इस बुरायी को खत्म करने की लड़ाई लड़ रही हूं. वास्तव में पुरुषों की जो मानसिकता, हजारों साल में सुदृढ़ हुई है, उस मानसिकता को बदलने में हमें समय तो लगाना ही पड़ेगा. पुरुषों के माइंड सेट/मानसिकता को बदलने की जरूरत है. यह काम महज एक इंसान या एक फिल्म से नहीं होगा. ‘पिंक’ के प्रदर्शन के बाद भी लड़कियों के शोषण, उनसे छेड़खानी व रेप की घटनाओं में कमी नहीं आयी है. यह बात दर्शाती है कि हमें कितनी बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी.

जब मैं इस मुद्दे पर सोचती हूं, तो पाती हूं कि हमारे देश में शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है. महज मैं किताबी ज्ञान की बात नहीं कर रही हूं, बल्कि हर घर में शिक्षा व समझ का जो स्तर होना चाहिए, वह नहीं है. नारी स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़ी औरतों से भी मैं यही कहती हूं कि, ‘तुम कुछ करो या ना करो, पर अपने घर के पुरुषों/बेटों को औरत की इज्जत करना सिखा दो.’ मैं हर नारी से कहती हूं कि वह सिर्फ यह जिम्मेदारी लें कि उसका अपना बेटा इस तरह का गलत काम नहीं करेगा. यदि हर औरत अपने भाई, अपने बेटे की जिम्मेदारी ले ले, तो पूरे देश से इस बुराई का अंत हो जाएगा.

आपको लगता है कि नारी स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़ी महिलाएं भी इस मुद्दे पर उतनी सचेत नहीं है, जितना होना चाहिए?

– मैंने ऐसा नहीं कहा. जो इस तरह के मुद्दों पर लड़ाई लड़ रही हैं. वह सचेत हैं. पर जो आगे आकर इस मुद्दे की लड़ाई नहीं लड़ रही हैं या किन्ही वजहों से नहीं लड़ सकती, मैं तो उनसे सीधे बात करती हूं कि वह अपने बेटे की जिम्मेदारी ले कि वह किसी भी लड़की या नारी के साथ गलत व्यवहार नहीं करेगा. मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई औरत होगी, जो इस तरह की हो रही घटनाओं को गलत नहीं मानती होगी. इसलिए मैं हर औरत से कहती हूं कि वह अपने घर की जिम्मेदारी ले.

फिल्म ‘‘पिंक’’ देखकर आपके माता पिता ने क्या कहा?

– मेरे माता पिता फिल्म देखने के शौकीन नहीं हैं. अब मैं उनकी बेटी हूं, तो वह मेरी फिल्में देखने जाते हैं. हर बार यही कहते हैं कि, तूने एक्टिंग कर ली. दूसरों की फिल्में देखते नहीं, इसलिए तुलना करते नहीं. उन्हें बेंच मार्क पता नहीं, तो वह तुलना कैसे करें? मेरी मां फिल्म देखकर यही कहती हैं कि अब तेरे को एक्टिंग आ गयी है.

पर ‘पिंक’ तो मुद्दों पर आधारित फिल्म है. ऐसे में उन्होंने कुछ तो कहा होगा?

– मेरे और मेरे पिता के बीच बहुत बड़ा जनरेशन गैप है. मेरे मम्मी पापा और उनके मम्मी पापा के बीच जो जनरेशन गैप रहा या मेरी हमउम्र के लोगों की नयी जनरेशन आएगी, उसके साथ जो जनरेशन गैप होगा, उसके मुकाबले भी मेरे व मेरे माता पिता का जनरेशन गैप बहुत बड़ा है. कुछ चीजें वह मान भी लेंगे, तो कुछ चीजें वह नही मानेंगे. यह पीढ़ीयों का टकराव है. यह जो लड़ाई है, वह मेरी मेरे माता पिता के साथ चलती रहेगी. पर इतना तय है कि भविष्य में मैं अपने बच्चों के साथ उतना अंतर नहीं आने दूंगी. जबकि मेरे व मेरे माता पिता में कुछ चीजों को लेकर बहुत बड़ा अंतर है. हां! फिल्म पिंक में जो दिखाया गया है, उसको लेकर सीधे तौर पर हमारे घर में कोई बातचीत नहीं हुई.

फिल्म ‘‘रनिंग शादी डाट काम’’ को लेकर क्या कहेंगी?

– मैंने इस फिल्म को ‘चश्मे बद़दूर’ के बाद अनुबंधित किया था, पर कुछ वजहों से इसका प्रदर्शन टलता रहा. अब यह तीन फरवरी को प्रदर्शित हो रही है. यह घर से भागकर शादी करने वाले युवा प्रेमियों की शादी कराने वाली वेबसाइट का नाम है. इसी के साथ इसमें एक प्रेम कहानी भी है. पर आम प्रेम कहानियों से अलग है. इस प्रेम कहानी के साथ इस वेबसाइट का क्या होता है, यह एक पहलू है. इस फिल्म में मैने एक सरदारनी निम्मी का किरदार निभाया है, जो कि अनप्रिडेक्टेबल है. वह काम पहले करती है, पर सोचती बाद में है. वह इतने भोलेपन से हरकत कर जाती है कि लोगों की जिंदगी तबाह हो जाती है, पर कोई उसे बुरा नहीं कहेगा. फिल्म देखते समय भी आप निम्मी से नफरत नहीं करेंगे.

कविता कौशिक शादी रचाने कहां जाएंगी?

सीरियल “एफआईआर’’ में इंस्पेक्टर चंद्रमुखी चौटाला का किरदार निभाकर चर्चा में आयी अभिनेत्री कविता कौशिक कई सीरियलों व फिल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं. पर वह हमेशा अपनी अभिनय क्षमता की बनिस्बत अपने रिश्तों को लेकर ही चर्चा में रहती हैं. एक वक्त वह था जब बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री में कविता कौशिक और अभिनेता करण ग्रोवर के प्रेम संबंधों की ही चर्चा हुआ करती थी. पर एक दिन दोनों अलग हो गए.

बहरहाल, लगभग एक वर्ष पहले कविता कौशिक को उनकी जिंदगी के लिए एक नया प्रेम मिल गया है, जिसका नाम रोनित बिस्वास है. रोनित बिस्वास ‘‘मैनगोरेंज प्रोडक्शन’’ में ब्रांड निदेशक हैं. दोनों ने अपनी प्रेम कहानी को हर किसी से छिपाकर रखा था. पर लगभग तीन माह पहले कविता कौशिक ने स्वयं रोनित के संग अपनी तस्वीर डालते हुए अपने प्रेम को जग जाहिर किया था.

अब कविता कौशिक के नजदीकी सूत्र दावा करते हैं कि कविता कौशिक अपने इस नए प्रेमी रोनित बिस्वास के संग शादी करने की योजना बना रही हैं. पर वह अपनी शादी भीड़भाड़ से दूर बर्फ के बीच करने वाली हैं. जिसके लिए वह अपने प्रेमी के साथ अगले माह उत्तराखंड में केदारनाथ के मंदिर जाने वाली हैं और केदारनाथ के मंदिर में ही शादी करेंगी.

वैसे कुछ सूत्र दावा कर रहे हैं कि कविता कौशिक व रोनित बिस्वास की शादी की धार्मिक रस्में 26 जनवरी के आसपास शुरू हो जाएंगी. सूत्र दावा कर रहे हैं कि कविता कौशिक व रोनित बिस्वास अपनी शादी को लेकर बहुत बड़ा तामझाम नहीं करना चाहते. केदारनाथ मंदिर में विवाह करने के बाद दोनों  हिमालय की वादियों में ही हनीमून मनाएंगे.

बेबस लाचार मुलायम डालेंगे असर

अखिलेश यादव की गणना कुछ समय पहले तक ऐसे सुसंस्कृत नेता की थी जो पिता का मान सम्मान करता था. सत्ता के 5 सालों ने इस चेहरे को इतना बदल दिया कि वह पिता को जबरन कुर्सी से उतार कर पार्टी को हथिया लिया. मुलायम सिंह लगातार इस बात को कह रहे है कि अखिलेश उनकी नहीं सुनते. अब सरकार और संगठन दोनों अखिलेश के पास हैं. चुनाव चिन्ह की लड़ाई भी वो जीत चुके हैं. इतनी सारी जीत के बाद अगर वह कुछ हारे हैं तो वह उनकी अपनी छवि है. यह बात और है कि पूरी कोशिश इस बात की है कि पिता मुलायम को बुरे लोगों से घिरा दिखा कर अपनी छवि को बचाया जाये. अखिलेश के करीबी लोग मानते हैं कि इस लड़ाई में वह निखर कर सामने आये हैं. राजनीति को जानने परखने वाले लोग समझते हैं कि यह सही आकलन नहीं है. चाटुकारिता में लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं.

चुनाव के मैदान में अखिलेश के सामने मुश्किलें अभी बाकी हैं. सबसे अहम लड़ाई सपा के खास यादव बिरादरी को एकजुट करने की है. मुलायम का हताश, निराश और बेबस चेहरा यादव बिरादरी भूल जायेगी, यह संभव नहीं लगता. कोई भी पिता यह नहीं चाहता कि पुत्र इस तरह से सत्ता के लिये पिता को बेबस कर दे. यादव बिरादरी में इस तरह की सोच और भी मजबूत है. मुलायम सिंह यादव के साथ पुरानी पीढ़ी का दिली रिश्ता है. सपा के कुछ वरिष्ठ नेता अपने बेटों के भविष्य के लिये भले ही अखिलेश को सही और मुलायम को गलत कह रहे हों, पर यादव वोट बैंक के लोगों को अखिलेश के साथ ऐसा कोई स्वार्थ नहीं है. वह एक पिता की तरह से सोचते हैं. उनका परिवार में दवाब है. ऐसे में उनकी युवा पीढ़ी अखिलेश के साथ खुलकर खड़ी होगी, ऐसा संभव नहीं लगता है.

सपा की लड़ाई चुनाव भर की नहीं है. यह आगे तक जायेगी. इसका सही आकलन चुनाव के बाद ही हो पायेगा. अखिलेश की जीत और हार दोनों ही पार्टी का भविष्य तय करेगी. असल में अभी अखिलेश और मुलायम के बीच सीधा मुकाबला नहीं था. अखिलेश सत्ता के शिखर पर थे तो मुलायम लाचार हथियार विहीन थे. चुनाव के बाद अखिलेश और मुलायम के बीच बराबर का मुकबला होगा. सत्ता के चलते जो लोग अखिलेश के साथ में अपना भविष्य देख रहे हैं, कल बदले हालात में वह कितना अखिलेश के करीब होंगे, यह समझने वाली बात है. भारत में लोकतंत्र जरूर है पर यहां जाति, बिरादरी, धर्म और भावनाओं पर वोट पडते हैं. यह बात अखिलेश भी समझते हैं. यही वजह है कि वह कांग्रेस और दूसरे दलों से तालमेल कर अपने दरकते जनाधार की कमी को पूरा करना चाहते हैं.

अगर मुलायम सिंह यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश का विरोध किया, अपनी बेबसी दिखाई तो सपा का बड़ा वोटबैंक अखिलेश के खिलाफ खड़ा हो सकता है. यह समाज ऐसा है कि खुद चाहे कितनी भी गलती करे पर दिखावे में वह सबसे बड़ा ईमानदार बनता है. ऐसे में मुलायम के बयान अखिलेश की राह मुश्किल करेंगे और विरोधी दलों को हमले का एक अवसर देंगे. मुलायम का केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, प्रदेश के बाहर भी बड़ा मान और सम्मान है. चुनावी समर ने अखिलेश के स्वभाव को बदल कर रख दिया है. पिता मुलायम की खिलाफत चुनाव के बाद उनको विलेन भी बना सकती है. अब जीत और हार ही अखिलेश की छवि को बदल सकती है. पिता मुलायम को बेबस लाचार चेहरा बारबार नये सवाल उठाता रहेगा. इससे निपटना सरल नहीं होगा.

मैदान पर हुआ ऐसा हादसा जिसे देखकर सन्न रह गया पूरा स्टेडियम

ऑस्ट्रेलिया में चल रहे बिग बैश लीग के एक मैच के दौरान एक दर्दनाक हादसा हुआ. शायद क्रिकेट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी बल्लेबाज के हाथ से बैट फिसलकर सीधे विकेटकीपर के मुंह पर लगा पर लगा हो. एडिलेड स्ट्राइकर्स और मेलबोर्न रेनेगेड्स के बीच खेले गए मैच में यह हादसा हुआ.

18वें ओवर में गेंदबाजी करने के थिसारा परेरा आए और स्ट्राइक पर हॉज थे. थिसारा की पहली गेंद पर हॉज ने जोरदार शॉट लगाने की कोशिश की. लेकिन बल्ला उनके हाथ से फिसल गया और पीछे विकेटकीपिंग कर रहे नेविल के चेहरे में जाकर लगा. नेविल को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. हालांकि, मेलबोर्न रेनेगेड्स ने इस मैच को छह रन से जरूर जीत लिया लेकिन चोट के वजह से नेविल आगे नहीं खेल पाएंगे.

मेलबोर्न रेनेगेड्स ने पहले बल्लेबाजी करते हुए निर्धारित 20 ओवर में 171 रन बनाए और एडिलेड स्ट्राइकर्स के सामने जीत के लिए 172 रन का लक्ष्य रखा. स्ट्राइकर्स ने 17 ओवर खत्म होने का बाद 129 रन पर पांच विकेट गवां दिए थे और आखिरी तीन ओवर में जीत के लिए उसे 43 की जरुरत थी. तब ब्रैड हॉज 21 रन पर बल्लेबाजी कर रहे थे.

पिछले सप्ताह भी नेविल को मैदान पर चोट लग गई थी. उस समय वह सिडनी सिक्सर्स के खिलाफ खेल रहे थे तब उन्हें सिर पर गेंद लगी थी.

बहन पर गुस्सा

भाई बहन के रिश्ते में बड़ा ही अपनापन होता है. इस अनमोल रिश्ते को संजोए रखना भाईबहन दोनों का ही कर्तव्य है, लेकिन कभीकभी इस रिश्ते में खटास उत्पन्न हो जाती है, जो दोनों के लिए जान देने को तैयार रहते थे वे एकदूसरे से ख्ंिचेख्ंिचे रहने लगते हैं. भाइयों का अपनी बहनों से खास लगाव होता है. अगर बहन छोटी है तो भाई जहां उस के हर नाजनखरे सहता है वहीं यह भी प्रयास करता है कि वह उस से रूठ न जाए. लेकिन कभीकभी जानेअनजाने ऐसी बात बन जाती है कि भाई को बहन पर गुस्सा आ जाता है. किशोर भाईबहनों में कुछ बातें हैं जिन के चलते भाई को बहन पर गुस्सा आता है.

परीक्षा की तैयारी में लापरवाही

अकसर लड़कियां पढ़ाई में लापरवाही करती हैं. सालभर तो वे सहेलियों के साथ मौजमस्ती करती रहती हैं और जब परीक्षा आने वाली होती है तो वे किताब उठाती हैं. ऐसे में पूरा कोर्स याद कर पाने में उन्हें परेशानी होती है और वे सिर पकड़ कर बैठ जाती हैं.

ऐसे में जब वे भाई से हैल्प करने को कहती हैं तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है. रश्मि की बोर्ड की परीक्षा थी. उस का भाई रमेश हमेशा उस से कहता रहता कि पढ़ ले, लेकिन रश्मि एक कान से सुनती, दूसरे से बाहर निकाल देती. यही नहीं वह भाई को कहती तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. मैं तो पास हो ही जाऊंगी.

परीक्षा में जब एक महीना बचा तो रश्मि भाई के पास साइंस की किताब ले कर आई और बोली, ‘‘भैया, बस तुम मुझे साइंस के कुछ चैप्टर्स समझा दो. मेरी समझ में नहीं आ रहे हैं.’’

इतना सुनना था कि रमेश का पारा चढ़ गया.  उस ने न केवल उस की किताब दूर फेंक दी बल्कि एक चांटा भी मार दिया.

मिसबिहेव करना

ज्यादातर लड़कियां अपनी ईगो में रहती हैं. कब, कहां और किस से कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस का उन्हें ध्यान नहीं रहता. कुछ तो इतनी बिगड़ी होती हैं कि घर आए मेहमानों से भी बदतमीजी से पेश आती हैं. ऐसी लड़कियों को देख कर ऐसा लगता है जैसे उन के मातापिता ने उन्हें तमीज सिखाई ही नहीं.

मोनिका भी कुछ इसी तरह के स्वभाव की लड़की थी. अपनी सहलियों के साथ तो वह मिसबिहेव करती ही थी अपने कजिंस के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं था. बातबात में उन की खिंचाई करना उस की आदत थी. छोटीछोटी चीजों के लिए पेरैंट्स से जिद करती थी.

मोनिका का भाई दिनकर जो उस से 4 साल बड़ा था, उसे हमेशा समझाता कि वह अपनी यह आदत छोड़ दे, पर वह भाई से भी लड़ जाती और कहती कि तू कौन होता है मुझे तमीज सिखाने वाला.

एक दिन तो मोनिका ने हद ही पार कर दी. घर में चाचाजी आए हुए थे. उन्होंने मोनिका से बड़े प्यार से कहा कि बेटी, गरमियों की छुट्टियों में हमारे घर मम्मीपापा के साथ जरूर आना. मोनिका ने चाचाजी को टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, आप के घर एसी तो है नहीं, मैं एसी के बिना एक पल भी नहीं रह सकती इसलिए मैं आप के घर नहीं आऊंगी.’’

ऐसा मुंहफट जवाब सुन कर चाचाजी का मुंह उतर गया. उन्हें देख कर ऐसा लगा कि उन्हें मोनिका का व्यवहार पसंद नहीं आया. चाचाजी के जाने के बाद दिनकर ने मोनिका की जम कर क्लास ली. मम्मीपापा ने भी उसे बहुत फटकारा. दिनकर ने तो उस से बात तक करनी छोड़ दी.

लेटनाइट पार्टी में जाने की जिद

कोई भी भाई यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की बहन अपने फ्रैंड्स के साथ लेटनाइट पार्टी में जाए. अगर कोई बहन लेटनाइट पार्टी में जाने की जिद करती है तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है. आज जमाना कितना खराब है. लेटनाइट पार्टी में जाना बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है. इन पार्टियों में अकसर फ्रैंड्स लड़कियों को नशीला पदार्थ खिला कर मनमानी कर सकते हैं. देर से आने पर रास्ते भर डर भी बना रहता है.

लेकिन कुछ लड़िकयां अपनेआप को इतना बोल्ड समझती हैं कि वे लेटनाइट पार्टी में जाने के लिए अपने मातापिता व भाई से लड़ जाती हैं. डेजी भी इसी तरह की बोल्ड लड़की थी. एक दिन वह भाई के  मना करने पर भी अपने बौयफ्रैंड और उस के दोस्तों के साथ डिस्कोथैक चली गई. वहां उस के साथ जो हुआ वह भूल नहीं पाती. जब वह घर आई तो रोरो कर उस ने सारा किस्सा घर वालों को सुनाया.

ऐसे में भाई को डेजी पर बहुत गुस्सा आया. कितना मना किया था वहां जाने को. डेजी ने भाई से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भैया, अब यह गलती कभी नहीं करूंगी.’’ भाई ने डेजी को माफ तो कर दिया लेकिन जो हादसा हो गया वह कैसे रिवर्स होता. लड़कियां जब ऐसी हरकत करती हैं तो भाई को गुस्सा आता है, क्योंकि वह बहन की बदनामी बरदाश्त नहीं कर सकता.

व्हाट्सऐप, फेसबुक पर दोस्ती

लड़कियों को व्हाट्सऐप औैर फेसबुक का चसका लग गया है. वे अपने सारे काम छोड़ कर चैटिंग में लगी रहती हैं. वे अनजान लोगों से भी चैट करती हैं. कभीकभी यह चैट दोस्ती में बदल जाती है, पर लड़कियों को इस बात का ध्यान नहीं रहता कि वे जिस से फ्रैंडशिप कर रही हैं, उस का पताठिकाना क्या है, क्योंकि अकसर लड़के बहुत सी बातें गुप्त रखते हैं या गलत जानकारी दे कर लड़कियों को इंप्रैस करते हैं.

वनीता को भी चैटिंग का शौक लग गया था. उस का भाई अकसर उसे टोक कर पूछता कि वह इतनी देरदेर तक किस से चैटिंग करती है? तो वह कोई न कोई बहाना बना देती कि वह किसी सहेली से पढ़ाई के बारे में चैट कर रही थी. एक दिन वनीता का मोबाइल उस के भाई के हाथ लग गया. मोबाइल पर किसी लड़के ने उसे बहुत गंदे मैसेज भेज रखे थे. भाई को वनीता पर बहुत गुस्सा आया और उस ने उस का मोबाइल तोड़ दिया.

ऊटपटांग फैशन करना

हर भाई चाहता है कि उस की बहन अच्छे कपड़े पहने और जहां भी जाए लोग उस की ड्रैस सैंस की तारीफ करें पर आज लड़कियां ऊटपटांग फैशन करने लगी हैं. वे ऐसे कपड़े पहनती हैं जिन में उस का पूरा शरीर झलकता है. ऐसे में मनचले उन पर फबतियां कसें तो कोई भाई बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगा इसलिए भी भाईबहन में अकसर तकरार हो जाती है.

अकसर लड़कियों को अपने भाइयों से यह भी शिकायत रहती है कि वे उन की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं और उन्हें अपनी मरजी से जीने नहीं देते, पर इस के पीछे भाई की जो मानसिकता होती है उस का अंदाजा शायद वे नहीं लगा पातीं. हर भाई को अपनी बहन से प्यार होता है और जब बहन उस की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती तो भाई को गुस्सा आना स्वाभाविक है.

बहनों को भी चाहिए कि वे मर्यादा में रहें. भाईबहन के रिश्ते को अच्छी तरह निभाएं. ऐसा कोई काम न करें, जिस से भाई को गुस्सा आए और परिवार की बदनामी हो.             

उस काली रात की दहशत अब भी

16 दिसंबर को निर्भया कांड की चौथी बरसी थी पर लगता नहीं है कि भारत की जनता ने इस कांड से कुछ सीखा हो. एक बेबस लड़की का चलती बस में जिस दरिंदगी से रेप किया गया और उस के साथी को पीटा गया वह कोई पहली बार नहीं हुआ पर पहले की दरिंदगियां इस तरह सुर्खियां नहीं बनी थीं पर अब लगता है यह अमानवीयता तो हमारे चरित्र का हिस्सा है, हमारी संस्कृति है, हमारा ढंग है.

शारीरिक अनाचार व अत्याचार पुरुषों को भी भोगना पड़ता है. हमारे दलितों, चोरों, आरोपियों, निचली जातियों वालों, मजदूरों, बच्चों को कभी किसी बहाने से तो कभी केवल पाश्विक आनंद के लिए सताया, मारापीटा, जख्मी करा जाता है पर उन पर सामाजिक ठप्पा नहीं लगता. निर्भया कांड ने यह साबित करा था कि रेप पीडि़ता को केवल शारीरिक जख्म ही नहीं सहने पड़ते, उस के चरित्र पर गुनहगार होने का दाग भी लग जाता है और तब और अब में कोई असर हुआ हो ऐसा नहीं लगता.

रेप आज भी ऐसा ही एक अपराध है, जिस में अपराधी शिकार होता है और उसे दंड भोगना होता है, जबकि बलात्कारी 4-5 साल या कई बार उस से भी कम समय की जेल काट कर मुक्त हो जाता है. यह तो नहीं मालूम कि बलात्कारी को परिवार वापस लेता है या नहीं पर उस के मन में कोई अपराधभाव होता होगा ऐसा कम लगता है, क्योंकि ज्यादातर बलात्कारी सीना चौड़ा कर के ही चलते हैं. वे तरहतरह की दलीलों से अपने अपराध या अपनी सजा को कम कराते हैं. पीडि़ता का दर्द सामाजिक ज्यादा होता है, शारीरिक कम. शारीरिक कष्ट जो उस ने बलात्कार के दौरान सहा कुछ दिनों का होता है. सैक्स संबंधों में पतिपत्नी, प्रेमीप्रेमिका या वेश्याओं के साथ परपीड़न सुख के लिए हिंसा आम है और कुछ हद तक उस में पीडि़ता को एतराज नहीं होता. ऐसा पोर्न बहुप्रचलित है, जिस में युवतियों के साथ जबरदस्ती दिखाई जाती है जबकि उसे शूट करते हुए सहमति होती है. दुख तो सामाजिक है कि पीडि़ता को दोषी मान लिया जाता है और बहुत सी युवतियों को यह बात छिपा कर रखनी होती है. समाज यह कहने से बाज नहीं आता कि पूरे किस्से में कहीं न कहीं गलती लड़की की ही होगी.

यही मानसिकता बदली जानी जरूरी है पर यह तब तक न होगा जब तक धर्म और कानून की सोच में व्यापक बदलाव नहीं आएगा. अविवाहिता के नाम के आगे कुमारी लिखने का अर्थ क्या है? उसे क्यों बारबार यह कहने को मजबूर किया जाए कि उस ने सैक्स संबंध नहीं बनाए? सैक्स संबंध बनाने के लिए शीलभंग शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? बलात्कार के मामले में सैक्स के आदी होने की बात क्यों परखी जाती है? टू फिंगर टैस्ट क्यों होता है?

इन सवालों को उठाने की जगह तथाकथित दोषी को फांसी पर लटकाने या उस का अंग काटने की मांग की जाती है जबकि दोनों अपराध होने के बाद ही हो सकते हैं, पहले नहीं. अगर युवती को यह भरोसा हो कि समाज उस के पीछे खड़ा है तो वह बलात्कारी का मुकाबला करेगी और अगर बलात्कार हो गया तो उसी तरह सिर उठा कर कानून का दरवाजा खटखटाएगी जैसा किसी भी मारपीट के मामले में पुरुष करता है. लोगों की सहानुभूति होगी पीडि़त के प्रति. उस से अनकंफर्टेबल सवाल नहीं पूछे जाएंगे. अगर समाज की सोच न बदले तो 16 दिसंबर को हर साल मनाने का कोई अर्थ नहीं.

डौनल्ड ट्रंप : बिजनैसमैन से राष्ट्रपति बनने तक का सफर

अमेरिकी चुनाव में जो पहले नहीं हुआ, वह 45वें राष्ट्रपति के चुनाव के रूप में डौनल्ड ट्रंप के चयन के समय हुआ. दावा किया जाता है कि अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब लगभग पूरे मीडिया ने चुनाव में किसी एक उम्मीदवार का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि उस के पक्ष में वोट करने की अपील तक की थी. ज्यादातर पत्रपत्रिकाओं और टीवी चैनल्स ने डैमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में वोट करने की अपील करते हुए कहा था कि रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डौनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं. हालत यह थी कि सीएनएन, न्यूयौर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट सहित 55 मीडिया संस्थानों ने सार्वजनिक तौर पर मतदाताओं से हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में वोटिंग करने की अपील की थी. ट्रंप के समर्थन में सिर्फ 2 मीडिया संस्थान थे, लेकिन हैरानी की बात है कि 9 नवंबर, 2016 को जब चुनावी नतीजे सामने आए तो बाजी डौनल्ड ट्रंप के हाथ लगी. अमेरिकी इतिहास में पहली बार ओपीनियन पोल गलत साबित हुए. उल्लेखनीय है कि 95% ओपीनियन पोल हिलेरी क्लिंटन की जीत का अनुमान लगा रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस तरह जनवरी, 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पद संभालने वाले ट्रंप अमेरिका के उम्रदराज व्यक्ति बन गए.

डौनल्ड ट्रंप 70 साल के हैं, जबकि उन से पहले रोनाल्ड रीगन 69 साल की उम्र में अमेरिकी राष्ट्रपति बने थे. यह भी गौरतलब है कि हिलेरी क्लिंटन भी 69 साल की हैं, जबकि 2009 में व्हाइट हाउस के लिए चुने गए बराक ओबामा राष्ट्रपति पद पर आसीन होते समय सिर्फ 47 साल के थे. ओबामा अमेरिकी इतिहास के 5वें सब से युवा राष्ट्रपति थे. उन से पहले थियोडोर रूजवेल्ट सब से युवा अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जो 42 साल की उम्र में इस पद के लिए चुने गए थे.

कारोबारी और बिंदास ट्रंप

डौनल्ड ट्रंप की एक और खास बात है कि उन का संबंध किसी राजनीतिक घराने से नहीं है, इसलिए राजनीति में उन का अनुभव शून्य है. डौनल्ड ट्रंप राजनीति में उतरने से पहले एक सफल बिजनैसमैन रह चुके हैं, जिन के अमेरिका समेत कई देशों में कैसिनो और होटल हैं और उन का रियल एस्टेट का फलताफूलता कारोबार है. ट्रंप से पहले कोई भी बिजनैसमैन अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं बना, हालांकि राजनीति से अलग अन्य क्षेत्रों से आए लोग इस पद को सुशोभित कर चुके हैं, जैसे 1929 से 1933 तक राष्ट्रपति रहे हरबर्ट हूवर जो पेशे से इंजीनियर थे. अमेरिकी इतिहास के पिछले 60 वर्ष में यह पहली बार है कि अमेरिका को ट्रंप के रूप में ऐसा राष्ट्रपति मिला है जो कभी कांग्रेस का सदस्य नहीं रहा और न ही किसी राज्य का गवर्नर रहा है. इस के अलावा 1944 के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है कि न्यूयौर्क का कोई शख्स राष्ट्रपति बना है. ट्रंप ने साल 2000 में ही चुनाव में अपनी दावेदारी पेश करने की कोशिश की थी. अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए उन्होंने अपने नामांकन का परचा भरा था, लेकिन वोटिंग शुरू होने से पहले ही उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था.

विवादों से नाता

राष्ट्रपति चुने जाने से पहले डौनल्ड ट्रंप को तीखा विरोध भी झेलना पड़ा. उन के खिलाफ खुद राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा भी आए और उन्होंने देश की जनता से ट्रंप को खारिज करने की अपील की. ट्रंप के चुनावी अभियान में तमाम विवाद भी जुड़े, जिस में 2005 की एक औडियो रिकौर्डिंग सब से ज्यादा चर्चित रही, जिस में ट्रंप को यह कहते हुए सुना गया कि उन्होंने महिलाओं को जबरदस्ती अपनी तरफ खींचा और उन्हें चूमा. तमाम पीडि़त महिलाएं भी इस दौरान सामने आईं और उन्होंने ट्रंप की हरकतों का खुलासा किया. हालांकि चुनाव के दौरान बदनामी से बचने के लिए ट्रंप ने महिलाओं के प्रति अपने व्यवहार के लिए माफी मांग ली. ट्रंप ने प्रवासियों और मुसलमानों के खिलाफ भी अपनी राय जाहिर की. उन्होंने कहा कि अगर वे राष्ट्रपति बनते हैं तो ड्रग्स के धंधे को रोकने के लिए मैक्सिको बौर्डर पर दीवार खड़ी करवा देंगे. इस से प्रवासियों का आना रुक जाएगा. इसी तरह नवंबर, 2015 में पेरिस हमलों के बाद ट्रंप ने मुसलमानों के अमेरिका में इमीग्रेशन पर अस्थायी प्रतिबंध बैन की भी वकालत की थी, जिस के बाद दुनिया भर में उन की निंदा की गई. उन्होंने वीजा (एच1-बी) में कटौती की बात भी कही, जिस से भारतीय आईटी कंपनियों और आईटी पेशेवरों में चिंता फैल गई.

उल्लेखनीय है कि डौनल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में प्रवासी रोजगार पर अंकुश लगाते हुए अमेरिकी नागरिकों के लिए रोजगार पैदा करने की बात कही है. प्रवासियों को ले कर ट्रंप का यह रुख हैरान करने वाला है, खासतौर से यह देखते हुए कि खुद उन की मां मैरी ट्रंप प्रवासी थीं जो स्कौटलैंड से अमेरिका आई थीं. 14 जून, 1946 को न्यूयौर्क के क्वींस में पैदा हुए ट्रंप के पिता फ्रेड ट्रंप न्यूयौर्क में रियल एस्टेट का कारोबार करते थे. ट्रंप 5 भाईबहनों में अपने मातापिता की चौथी संतान हैं. उन की एक बहन बैंकर और दूसरी जज हैं. उन के भाई रौबर्ट ट्रंप की कंपनी में अधिकारी हैं. उन के एक भाई फ्रेडी की 1981 में 43 साल की उम्र में ज्यादा शराब पीने की वजह से मौत हो गई थी. ट्रंप खुद कहते हैं कि उन्होंने फ्रेडी का हश्र देखने के बाद ही शराब पीना छोड़ने का फैसला किया था. डौनल्ड ट्रंप को 13 साल की उम्र में न्यूयौर्क मिलिटरी अकादमी में पढ़ने के लिए भेजा गया था. वर्ष 1964 में वे अकादमी से पास हुए. हालांकि इस बीच एक बार गरम मिजाज के कारण उन्हें स्कूल से निकाला भी गया था. इस के बाद 1968 में उन्होंने पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के वार्टन स्कूल इकनौमिक्स से बैचलर्स की डिग्री हासिल की. ट्रंप ने अब तक 3 शादियां की हैं, इस से उन की रंगीनमिजाजी का पता चलता है. ट्रंप के 5 बच्चे और 8 पोतेपोतियां हैं.

पिता से मिली कारोबारी समझ

अपनी पढ़ाई के दौरान ट्रंप जब छुट्टियों में घर आते थे, तो पिता की कंपनी ‘एलिजाबेथ ट्रंप ऐंड संस’ में काम सीखते थे. कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद वे पूरी तरह अपने पिता फ्रेड ट्रंप की कंपनी से जुड़ गए. उन्होंने 1971 में पिता का पूरा कारोबार संभाल लिया और कंपनी का नाम बदल कर ‘ट्रंप और्गेनाइजेशन कर दिया. इस के कुछ समय बाद ट्रंप ने क्वींस को अलविदा कह दिया और न्यूयौर्क के मैनहटन में अपना निवास बना लिया. मैनहटन आने के बाद ट्रंप ने कई प्रमुख लोगों से संपर्क बढ़ाया. 1971 में ट्रंप ने मैनहट्टन बिल्डिंग प्रोजैक्ट के लिए निर्माण कराना शुरू किया. 1973 में ट्रंप परिवार के कारोबार पर गंभीर सवाल उठे. अमेरिकी सरकार ने उन के पिता और उन की कंपनी पर लोगों को घर बेचने या किराए पर देने में नस्ली भेदभाव का मामला दर्ज किया. ट्रंप ने मामले को निराधार बताते हुए कहा था कि उन की कंपनी नस्ली आधार पर भेदभाव नहीं करती. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 1975 में समझौता हुआ, जिस के तहत उन्हें अपनी कंपनी के कर्मचारियों को नस्ली भेदभाव के कानून के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण देने की हामी भरनी पड़ी.

वैसे तो कहा जाता है कि कारोबार खड़ा करने के लिए पिता ने ट्रंप को काफी दौलत दी थी (चुनाव प्रचार के दौरान हिलेरी क्लिंटन ने दावा किया था कि ट्रंप ने 1.4 करोड़ डौलर से अपना कारोबार शुरू किया था और यह रकम उन के पिता ने उन्हें दी थी) लेकिन ट्रंप ने इस दावे को गलत बताया. उन्होंने कहा कि उन के पिता ने 1975 में उन्हें बहुत छोटा सा लोन दिया था. सच चाहे जो हो, ट्रंप के स्वामित्व में उन की कंपनी का कारोबार तेजी से बढ़ा और दुनिया के कई मुल्कों में फैला, जिन में भारत भी शामिल है. विश्वपटल पर ट्रंप 1996 में तब सामने आए जब उन्होंने मिस यूएसए प्रतियोगिता का आयोजन कराया. वर्ष 2015 तक उन्होंने इस तरह के कई आयोजन कराए. बिजनैस मैगजीन फोर्ब्स ने ट्रंप को 2016 में दुनियाभर के रईसों में 324वें स्थान पर और अमेरिकी रईसों में 156वें स्थान पर रखा था.

ताजमहल से नाता

वर्ष 1979 में ट्रंप ने कैसिनो में भी निवेश करना शुरू कर दिया था. उन्होंने 1984 में हौलीडे इन होटल को खरीद कर ट्रंप प्लाजा और कैसिनो खोला. इस के बाद उन्होंने हिल्टन होटल कैसिनो भी खरीद लिया. 1980 में उन्होंने न्यूयौर्क में ग्रैंड हयात होटल का पुनर्निर्माण कराया था. वर्ष 1990 में उन्होंने अटलांटिक सिटी में ‘ताजमहल’ नाम का होटल कैसिनो खोला. इसे दुनिया का सब से बड़ा होटल कैसिनो माना जाता था. रियल एस्टेट और कैसिनो सैक्टर में ट्रंप ने कई दशकों तक अपना दबदबा बनाए रखा और अकूत दौलत कमाई. 1990 के दशक में उन्होंने एयरलाइन सैक्टर में भी हाथ आजमाए, लेकिन वहां उन्हें सफलता नहीं मिली. रियल एस्टेट और कैसिनो से अरबपति बन चुके ट्रंप 2004 में एनबीसी के रिएलिटी सीरीज ‘द अप्रैंटिस’ में शामिल हुए. वे इस शो के निर्माता भी थे. यह शो एनबीसी पर 2004 से 2015 तक सफलतापूर्वक चला और काफी लोकप्रिय हुआ. वर्ष 2012 में ट्रंप ने संकेत दिया कि वे अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकते हैं. 2015 में अमेरिका काराष्ट्रपति चुनाव लड़ने की घोषणा की. जुलाई 2016 में वे अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा कर आधिकारिक रिपब्लिकन उम्मीदवार बने और आखिरकार चुनाव जीतने में सफल रहे.

अमेरिकी चुनाव में भारतीयों की जीत

पिछले कुछ समय से अमेरिकी और ब्रिटिश राजनीति में भारतीय मूल के लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में यह परंपरा जारी रही और कई भारतवंशियों ने 2016 के अमेरिकी चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया. इस बार के चुनाव के जरिए अमेरिकी सीनेट में पहुंचने वालों में सब से उल्लेखनीय जीत कैलिफोर्निया से 2 बार अटौर्नी जनरल रह चुकीं कमला हैरिस की रही, जिन्होंने कैलिफोर्निया से अमेरिकी सीनेट की सीट जीती. इसी तरह 51 साल की प्रमिला जयपाल ने प्रतिनिधि सभा में प्रवेश के लिए सिएटल से कांग्रेस की सीट जीती. प्रमिला इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाली भारतीय मूल की पहली अमेरिकी महिला हैं. इस के अलावा राजा कृष्णमूर्ति इलिनोइस से प्रतिनिधि सभा की सीट जीतकर कांग्रेस के लिए निर्वाचित हुए, जबकि कैलिफोर्निया के 17वें डिस्ट्रिक्ट से डैमोक्रेटिक उम्मीदवार रो खन्ना ने अपनी पार्टी के सहयोगी माइक होंडा को हरा दिया.

कमाल कमला हैरिस का

भारतीय मूल की 51 वर्षीय, 2 बार अटौर्नी जनरल रह चुकीं कमला हैरिस ने जो सफलता हासिल की है, वह किसी भारतअमेरिकी द्वारा अर्जित पहली कामयाबी है. कमला हैरिस ने कैलिफोर्निया राज्य से अमेरिकी सीनेट की सीट जीत कर इतिहास रचा है. वे अमेरिकी सीनेट में चुनी जाने वाली छठी अश्वेत महिला हैं. यही नहीं, पिछले 20 साल से भी ज्यादा अरसे में उच्च सदन में पहुंचने वाली वे पहली अश्वेत महिला हैं. उन से पहले 5वें अश्वेत के रूप में खुद बराक ओबामा का नाम दर्ज है. कमला ने अपनी ही पार्टी की डैमोक्रेट लौरेटा सांचेज को हरा कर यह उपलब्धि पाई है. उल्लेखनीय है कि कमला की हैरिस की मां श्यामला गोपालन 1960 में चैन्नई से अमेरिका विज्ञान की पढ़ाई करने गई थीं, जबकि उन के पिता जमैका में पलेबढ़े हैं. कमला का जन्म कैलिफोर्निया के औकलैंड में हुआ था. कमला हैरिस ने बारबरा बौक्सर की जगह ली है, जो करीब 2 दशक तक सीनेट में रहीं. बारबरा ने 2014 में रिटायरमैंट ले ली था. माना जा रहा है कि कमला अमेरिकी सीनेट में रह कर भारतअमेरिका संबंधों में मजबूती के लिए काम करेंगी.

प्रतिनिधित्व करेंगी प्रमिला जयपाल

कमला हैरिस की तरह प्रमिला जयपाल की उपलब्धि भी अनोखी है. प्रमिला अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में चुनी जाने वाली पहली भारतअमेरिकी महिला हैं. उन्होंने वाशिंगटन राज्य की सीनेट सीट जीती है. वाशिंगटन से 51 साल की प्रमिला जयपाल को 57% वोट मिले, जबकि उन के प्रतिद्वंद्वी ब्रेडी वौकिनशौ को 43% वोट मिले. उन की जीत का श्रेय उन की प्रगतिशील विचारधारा को दिया जाता है. प्रमिला जयपाल ने वाशिंगटन स्टेट के 7वें जिले से चुनाव लड़ा था. इस जिले के तहत सिएटल और आसपास के इलाके आते हैं.

रोहित ‘रो’ खन्ना

भारतीय मूल के अमेरिकी रोहित ‘रो’ खन्ना कैलिफोर्निया के 17वें डिस्ट्रिक्ट से डैमोक्रेटिक उम्मीदवार थे. उन्होंने अपनी ही पार्टी यानी डैमोक्रेटिक पार्टी के सहयोगी माइक होंडा को करीब 19% वोटों से हराया. उल्लेखनीय है कि प्राइमरी चुनाव में ‘रो’ खन्ना को होंडा से अधिक वोट मिले थे. यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि कैलिफोर्निया की चुनाव प्रणाली के तहत प्राइमरी चुनावों के 2 शीर्ष विजेताओं को आम चुनाव में खड़े होने की अनुमति दी जाती है, भले ही दोनों एक ही पार्टी से जुड़े हुए क्यों न हों.

डाक्टर एमी बेरा

एमी बेरा अमेरिका में डाक्टर हैं. वे डैमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हैं. प्रतिनिधि सभा के लिए बेरा का मुकाबला रिपब्लिकन पार्टी के स्कौट जोंस से था. 2012 और 2014 में बेरा ने बहुत कम अंतर से जीत दर्ज की थी. वे 2012 में 9,191 वोटों के अंतर से और 2014 में 1,455 वोट से जीते थे.

राजा कृष्णामूर्ति

राजधानी दिल्ली में जन्मे और पेशे से वकील भारतअमेरिकी डैमोक्रेट राजा कृष्णमूर्ति ने इलिनोइसशिकागो के जिस इलाके में जीत दर्ज की, उसे डैमोक्रेटिक पार्टी का गढ़ माना जाता है. उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के पीटर डिकियानी को शिकस्त दे कर अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव जीता. डैमोक्रेटिक पार्टी के कृष्णमूर्ति एट्थ कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट से निर्वाचित घोषित किए गए थे, जिस में शिकागो के आसपास के कुछ उपनगर शामिल हैं. राजा कृष्णमूर्ति को भ्रष्टाचार से संघर्ष करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता है. राज्य सहायक अटार्नी जनरल के रूप में और बतौर राज्य उप कोषाध्यक्ष सेवा करते हुए उन्होंने यह जंग छेड़ी थी. कृष्णमर्ति की जड़ें भी चैन्नई से जुड़ती हैं. उन्होंने अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और हार्वर्ड से कानून की डिग्री हासिल की.

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