बौलीवुड में हर कलाकार को संघर्ष करना ही पड़ता है. फिर चाहे वह प्रतिभाशाली कलाकार हो अथवा हिंदी के अलावा अन्य भाषा की फिल्मों में अपनी प्रतिभा का जलवा ही क्यों न बिखेर चुका हो. ऐसे में यदि 40 दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुकी अदाकारा तापसी पन्नू को बौलीवुड के फिल्मकारों ने अनदेखा किया हो, तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं हैं.
बहरहाल, फिल्म ‘‘पिंक’’ के प्रदर्शन के बाद वह स्टार बन गयी हैं. ‘पिंक’ के प्रदर्शन के बाद उन्हे कई तरह के संदेश मिल रहे हैं. इतना ही नहीं ‘पिंक’ की सफलता के बाद अब दो साल से अटकी पड़ी उनकी फिल्म ‘‘रनिंग शादी डाट काम’’ के प्रदर्शन की राह बन गयी है. कैमरामैन से फिल्म निर्देशक बने अमित राय की तीन फरवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘रनिंग शादी डाट काम’’ में तापसी पन्नू के साथ अमित साध भी नजर आएंगे.
प्रस्तुत है उनसे ‘‘सरिता’’ पत्रिका के लिए हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश.
फिल्म ‘‘पिंक’’ में वह मुद्दा था, जो पूरे विश्व का सबसे ज्वलंत मुद्दा है? ऐसे में फिल्म के प्रदर्शन के बाद लोगों से किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?
– मेरे पास इतने संदेश आए हैं, कि मैं बयां नहीं कर सकती. लोगों ने फेसबुक, ट्वीटर, जहां भी मौका मिला, वहां अपने संदेश दिए हैं. कुछ लोग तो मुझसे सड़क पर मिले और अपने मन की बात कही. मेरे साथ अक्सर हो यह रहा है कि सड़क पर चलते चलते सिग्नल पर मेरी गाड़ी के बगल में दूसरी गाड़ी आकर रूकती है, उससे एक आंटी अपनी बेटी के साथ बाहर निकलती हैं और अपनी बेटी से मिलाते हुए कहती हैं कि, ‘मैंने इससे आप की तरह सशक्त बनने के लिए कहा है.’ लोग कई तरह के पत्र भेज रहे हैं. लोग बताते हैं कि किस तरह से इस फिल्म ने उनके दिल को छू लिया है. कुछ लोगों ने लिखा है कि, फिल्म देखते समय उन्हें लगा कि मेरी जगह वह कटघरे में खड़े हैं. लोग कहते हैं कि यह फिल्म सिर्फ फिल्म नहीं, बल्कि मेरे करियर में बहुत बड़ा लैंडमार्क है. हर कलाकार के करियर में कुछ फिल्में लैंडमार्क बन जाती हैं, लेकिन ‘पिंक’ एक ऐसी फिल्म है, जो कि मेरी जिंदगी में लैंडमार्क बन गयी है. इस फिल्म की वजह से लोगों के दिलों में मुझे जो जगह मिली है, वह जगह तमाम कलाकारों को उनके पूरे करियर में नहीं मिल पाती है.
‘पिंक’ में उठाए गए मुद्दे को लेकर किसी ने आपसे कोई बात कही, जिसे आप भुला ना सके?
– सबसे बड़ी बात यह है कि एक भी नकारात्मक मैसेज नहीं आया. लोगों ने कहा कि वह इन बातों को महसूस कर रहे थे, पर बोल नहीं रहे थे. अब तक किसी भी फिल्मकार या लेखक ने इस मुद्दे को लेकर इस तरह से बात नहीं की. पर फिल्म ‘‘पिंक’’ में इसी मुद्दे पर खुलकर वार किया गया है. इस तरह से बोल्ड तरीके से किसी फिल्मकार ने किसी मुद्दे को अपनी फिल्म में नहीं उठाया. कुछ पुरुष मुझसे मिले और कहा कि फिल्म देखने के बाद उन्हें अपने आप पर शर्म आयी. कुछ पुरुषों ने माना कि जाने अनजाने अनकांशियली वह लोग भी अपनी जिंदगी में इसी तरह से लड़कियों को जज करते रहे हैं. एक पुरुष ने संदेश भेजा कि वह एक माह के अंदर ही पिता बनने वाला है. उसकी पत्नी गर्भवती है. यदि उसका बेटा हुआ, तो यह सुनिश्चित करेगा कि उसका बेटा पहली फिल्म ‘पिंक’ देखे. इसलिए मैं कह रही हूं कि फिल्म ‘पिंक’ करना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ी अचीवमेंट है.
जब आप इस फिल्म की शूटिंग कर रही थीं, उस वक्त इस तरह की घटनाएं पढ़कर आपके दिमाग में क्या चल रहा था?
– फिल्म ‘पिंक’ करने से पहले भी लड़कियों से छेड़खानी व रेप की घटनाएं हो रही थीं. जब मैं शूटिंग कर रही थी, तब भी हो रही थी और अब फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है. पर यह घटनाएं आज भी जारी हैं. उस वक्त हर दिन सुबह अखबार में इस तरह की घटनाएं पढ़कर जो मेरे अंदर गुस्सा आता था, उसका उपयोग मैं शूटिंग के दौरान अपने किरदार को निभाते समय कर रही थी. मैं शूटिंग के दौरान उस गुस्से को चैनलाइज कर रही थी. अब फिल्म के प्रदर्शन के छह माह बाद जब वही घटना घटित होती है, तो खुद को एक हारे हुए फौजी की तरह पाती हूं. हमें लगता है कि हमने फिल्म में इतना बड़ा मुद्दा उठाया, लोग हमारे साथ लड़े, युद्ध घोषित कर वह युद्ध जीत गयी. आप इस बात को बाक्स आफिस के कलेक्शन, आलोचकों की रिव्यू व दर्शकों की प्रतिक्रिया के आधार पर देख लें, हर जगह जीत हासिल हुई है. मगर अब जब उसी तरह की घटनाएं घटती हैं, तो लगता है कि हमारे ही पक्ष के किसी इंसान ने हमारी पीठ पर छुरा भौंक दिया. अब इस बात का अहसास होता है कि हमारे गैंग के किसी सैनिक ने हमें धोखा दे दिया.
पर यह स्थिति क्यों हैं? इस पर आपने कभी सोचा है?
– ‘पिंक’ जैसी फिल्म करने से पहले भी मैं इस तरह के मुद्दो पर गंभीरता से सोचती रही हूं. इसमें अभिनय करने के बाद तो कुछ ज्यादा ही सोचने लगी हूं. अब मुझे लगता है कि हम इंसानों की चमड़ी काफी मोटी हो गयी है. हम काफी आगे निकल गए हैं. इस तरह की घटनाएं हमें हमारी आत्मा को कचौटती नहीं है. इस कुकर्म को खत्म करने के लिए हमें एक लंबी लड़ाई लड़नी होगी. हमें हार नही मानना है. कम से कम मैं तो हार नही मान रही हूं. मैं अपनी तरफ से समाज से इस बुरायी को खत्म करने की लड़ाई लड़ रही हूं. वास्तव में पुरुषों की जो मानसिकता, हजारों साल में सुदृढ़ हुई है, उस मानसिकता को बदलने में हमें समय तो लगाना ही पड़ेगा. पुरुषों के माइंड सेट/मानसिकता को बदलने की जरूरत है. यह काम महज एक इंसान या एक फिल्म से नहीं होगा. ‘पिंक’ के प्रदर्शन के बाद भी लड़कियों के शोषण, उनसे छेड़खानी व रेप की घटनाओं में कमी नहीं आयी है. यह बात दर्शाती है कि हमें कितनी बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी.
जब मैं इस मुद्दे पर सोचती हूं, तो पाती हूं कि हमारे देश में शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है. महज मैं किताबी ज्ञान की बात नहीं कर रही हूं, बल्कि हर घर में शिक्षा व समझ का जो स्तर होना चाहिए, वह नहीं है. नारी स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़ी औरतों से भी मैं यही कहती हूं कि, ‘तुम कुछ करो या ना करो, पर अपने घर के पुरुषों/बेटों को औरत की इज्जत करना सिखा दो.’ मैं हर नारी से कहती हूं कि वह सिर्फ यह जिम्मेदारी लें कि उसका अपना बेटा इस तरह का गलत काम नहीं करेगा. यदि हर औरत अपने भाई, अपने बेटे की जिम्मेदारी ले ले, तो पूरे देश से इस बुराई का अंत हो जाएगा.
आपको लगता है कि नारी स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़ी महिलाएं भी इस मुद्दे पर उतनी सचेत नहीं है, जितना होना चाहिए?
– मैंने ऐसा नहीं कहा. जो इस तरह के मुद्दों पर लड़ाई लड़ रही हैं. वह सचेत हैं. पर जो आगे आकर इस मुद्दे की लड़ाई नहीं लड़ रही हैं या किन्ही वजहों से नहीं लड़ सकती, मैं तो उनसे सीधे बात करती हूं कि वह अपने बेटे की जिम्मेदारी ले कि वह किसी भी लड़की या नारी के साथ गलत व्यवहार नहीं करेगा. मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई औरत होगी, जो इस तरह की हो रही घटनाओं को गलत नहीं मानती होगी. इसलिए मैं हर औरत से कहती हूं कि वह अपने घर की जिम्मेदारी ले.
फिल्म ‘‘पिंक’’ देखकर आपके माता पिता ने क्या कहा?
– मेरे माता पिता फिल्म देखने के शौकीन नहीं हैं. अब मैं उनकी बेटी हूं, तो वह मेरी फिल्में देखने जाते हैं. हर बार यही कहते हैं कि, तूने एक्टिंग कर ली. दूसरों की फिल्में देखते नहीं, इसलिए तुलना करते नहीं. उन्हें बेंच मार्क पता नहीं, तो वह तुलना कैसे करें? मेरी मां फिल्म देखकर यही कहती हैं कि अब तेरे को एक्टिंग आ गयी है.
पर ‘पिंक’ तो मुद्दों पर आधारित फिल्म है. ऐसे में उन्होंने कुछ तो कहा होगा?
– मेरे और मेरे पिता के बीच बहुत बड़ा जनरेशन गैप है. मेरे मम्मी पापा और उनके मम्मी पापा के बीच जो जनरेशन गैप रहा या मेरी हमउम्र के लोगों की नयी जनरेशन आएगी, उसके साथ जो जनरेशन गैप होगा, उसके मुकाबले भी मेरे व मेरे माता पिता का जनरेशन गैप बहुत बड़ा है. कुछ चीजें वह मान भी लेंगे, तो कुछ चीजें वह नही मानेंगे. यह पीढ़ीयों का टकराव है. यह जो लड़ाई है, वह मेरी मेरे माता पिता के साथ चलती रहेगी. पर इतना तय है कि भविष्य में मैं अपने बच्चों के साथ उतना अंतर नहीं आने दूंगी. जबकि मेरे व मेरे माता पिता में कुछ चीजों को लेकर बहुत बड़ा अंतर है. हां! फिल्म पिंक में जो दिखाया गया है, उसको लेकर सीधे तौर पर हमारे घर में कोई बातचीत नहीं हुई.
फिल्म ‘‘रनिंग शादी डाट काम’’ को लेकर क्या कहेंगी?
– मैंने इस फिल्म को ‘चश्मे बद़दूर’ के बाद अनुबंधित किया था, पर कुछ वजहों से इसका प्रदर्शन टलता रहा. अब यह तीन फरवरी को प्रदर्शित हो रही है. यह घर से भागकर शादी करने वाले युवा प्रेमियों की शादी कराने वाली वेबसाइट का नाम है. इसी के साथ इसमें एक प्रेम कहानी भी है. पर आम प्रेम कहानियों से अलग है. इस प्रेम कहानी के साथ इस वेबसाइट का क्या होता है, यह एक पहलू है. इस फिल्म में मैने एक सरदारनी निम्मी का किरदार निभाया है, जो कि अनप्रिडेक्टेबल है. वह काम पहले करती है, पर सोचती बाद में है. वह इतने भोलेपन से हरकत कर जाती है कि लोगों की जिंदगी तबाह हो जाती है, पर कोई उसे बुरा नहीं कहेगा. फिल्म देखते समय भी आप निम्मी से नफरत नहीं करेंगे.