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मैं 25 वर्षीय अविवाहित स्त्री हूं. मुझे पेशाब करते समय योनिमुख में जलन महसूस होती है. बताएं क्या करूं.

सवाल
मैं 25 वर्षीय अविवाहित स्त्री हूं. वजन 45 किलोग्राम है. मुझे पेशाब करते समय योनिमुख में जलन महसूस होती है. खुजलाहट नहीं होती है, लेकिन योनि से सफेद चिपचिपा डिस्चार्ज निकलता है, जिस से दुर्गंध आती है. मैं ने पेशन की पूरी माइक्रोस्कोपी करवाई है. रिपोर्ट में मेरा पीएच का स्तर 5, विशिष्ट घनत्व 1.05 था और नाइट्राइटिस तथा बिलिरुबिन नैगेटिव था.  मैं ने बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए यूरिन कल्चर भी करवाया. डाक्टर ने कैंडिड क्रीम और वी वौश लिखा, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है. बताएं क्या करूं?

जवाब
डाक्टर ने आप को कैंडिडिआसिस (फंगल इन्फैक्शन) मान कर दवा लिखी है. मेरे विचार से आप की मूत्रनली में इन्फैक्शन (यूटीआई) हो सकता है. आप 5 दिनों तक भोजन करने के बाद सिप्रोफ्लोक्सासिन की गोली रोजाना 2 बार लें. इस से आप ठीक हो जाएंगी.

वीडियो : देखिए आपके मोबाइल में कैसे काम करता है इंटरनेट

हम अकसर यह बात करते हैं की आज तकनीक इतनी ज्यादा विकसित हो चुकी है कि कहीं भी कभी भी कुछ भी संभव है. बस एक क्लिक और आपका संदेश दूर बैठे आपके दोस्त, रिश्तेदार तक पहुंच जाता है, आप घर बैठे देश दुनिया की खबरों से रूबरू हो जाते हैं. लेकिन क्या कभी सोचा है कि यह सब कैसे संभव होता है. जरूर सोचा होगा, और जवाब भी मिला होगा. यह सब इंटरनेट के कारण ही तो हो पाता है. बेशक यह सब इंटरनेट के कारण ही हो पाता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये इंटरनेट है क्या चीज, कैसे काम करता है, कहां से आता है, कहां जाता है, कौन है इसका मालिक, आदि. यदि आपने कभी इन सब बातों पर गौर नहीं फरमाया है तो चलिए आज हम आपको देते हैं इस इंटरनेट से जुड़ी हर जानकारी.

इंटरनेट है क्या

इंटरनेट (Internet : internationa. network of computer ) एक ऐसा माध्यम है जो दुनियाभर के सर्वर को लगभग सभी देशों से जोड़ता है. आप इसे इस उदाहरण से समझ सकते है. जैसे हाईवे विभिन्न राज्यों को एक दूसरे से जोड़ती है ठीक वैसे ही इंटरनेट एक ग्लोबल प्रणाली है जो बहुत से कंप्यूटर नेटवर्क को मिलाकर बनती है. इंटरनेट समुंदर और तारों द्वारा फैलाया गया एक जाल है जो दुनिया भर क लोगों को जोड़े रखता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में सबसे पहले 15 अगस्त 1995 को सरकारी कंपनी BSN. ने इंटरनेट का शुरुआत किया.

कैसे काम करता है इंटरनेट

यह जानने के बाद कि इंटरनेट क्या है आप यह सोच रहे होंगे कि यह काम कैसे करता है. आपकी उत्सुकता को कम करते हुए आपको बता दें कि इंटरनेट औप्टिक फाइबर केबल (Optic Fiber Cable) से चलता है. 99% इंटरनेट औप्टिक फाइबर से चलता है. आप सोचेंगे आपके मोबाइल में कहां से केबल आ गया तो आपको बता दें कि जिस टावर से आपका नेटवर्क आता है वहां से एक केबल बिछी हुई है. यह औप्टिकल फाइबर समुद्र में बिछा होता है.

इंटरनेट तीन चरण में काम करता है, जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे. जो भी कोई इनफार्मेशन आप इंटरनेट पर सर्च करते हैं तो आपका कंप्यूटर आपको इंटरनेट देने वाली कंपनी के सर्वर से कनेक्ट हो जाता है जिसको हम ISP (Internet service provider) कहते हैं और एक ISP को हर किसी के ब्राउजर से जो भी रिक्वेस्ट मिलती है वह सर्वर आपको भेज देता है और राउटर की मदद से आप तक आपकी इनफार्मेशन पहुचां दी जाती है.

यदि आपको इंटरनेट देने वाली कंपनी के ISP  के पास वह सुचना नहीं होती है तो वह सर्वर आस पास के बाकी सर्वरों से कनेक्ट हो जाता है और फिर वहां से जानकारी हासिल कर आप तक पंहुचाता है.

इसी नेटवर्क और केबल के कारण आप में से कुछ लोगों का इंटरनेट फास्ट होता है और कुछ का स्लो. यह केबल समुद्र में बिछाया जाता है जिसमें बड़े बड़े जहाज भी चलते है और कभी कभी जहाज से केबल को नुकसान हो जाता है और कनेक्शन टूट जाता है.

ऐसे समय में कई टीम इस केबल की निगरानी करता है और कनेक्शन टूट जाने पर इसे ठीक भी करते है. इस केबल में कई तार होते हैं. अगर कोई एक तार काम करना बंद हो जाता है तो दूसरे तार से नेटवर्क कनेक्ट किया जाता है.

कौन है इंटरनेट का मालिक

आपको जानकर हैरानी होगी कि इतने बड़े नेटवर्क का कोई एक मालिक नहीं है. ना ही कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से इंटरनेट का एकाधिकार मालिक नहीं बन सकता.

दरअसल इंटरनेट तीन टियर में काम करता है.

पहला टियर – ग्लोबल

दूसरा टियर – नेशनल

तीसरा टियर – लोकल

इन तीनों टियर से जुड़ी हुई कंपनियां वो कंपनी होती है जो हमें इंटरनेट प्रदान करती है. मान लिजिए आप किसा वेबसाइट का इस्तेमाल कर रहे हैं और उसका सर्वर अमेरिका में है जिसमें ग्लोबल टियर की कंपनी काम करती है तो वह कंपनी समुद्र में अपनी तार बिछा रखी है, जिसके माध्यम से इंटरनेट भारत तक पहुंचता है.

इस केबल से बहुत सारा इंटरनेट आता है और कई कंपनियां (दूसरा टियर, नेशनल) यहां से इंटरनेट खरीदती है. नेशनल टियर की कंपनियां जैसे एयरटेल, आइडिया, वोडाफोन, रिलायंस हमें टुकड़ों में इंटरनेट देती है और साथ ह हमारी स्पीड पर भी कंट्रोल रखती है.

तीसरे टियर की कंपनियां वो कंपनियां होती है जो लोकल एरिया में ही इंटरनेट पहुंचाती है. इन लोकल कंपनियों को दूसरे टियर वाले कंपनी को पैसा देन होता है.

मेरी बीवी को महीने में 2-3 बार माहवारी होती है और वह संबंध बनाने से इनकार करती है. मैं क्या करूं.

सवाल
मेरी बीवी को महीने में 2-3 बार माहवारी होती है और वह संबंध बनाने से इनकार करती है. मैं क्या करूं?

जवाब
हारमोनों की गड़बड़ी से माहवारी सही तरीके से नहीं हो पाती. इस के लिए आप माहिर महिला डाक्टर से अपनी बीवी की जांच कराएं. जहां तक संबंध बनाने की बात है, तो इस के लिए बीवी को प्यार से तैयार किया जा सकता है.

किस वजह से सचिन को अमिताभ के सामने होना पड़ा शर्मिंदा

बौलीवुड में सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन एक बेहतरीन एक्टर होने के साथ-साथ एक अच्छे इंसान भी हैं. दुनियाभर में उनके फैंस फैले हुए हैं. अमिताभ बच्चन उन शख्सियतों में से हैं जिनके फैंस आम लोग ही नहीं बल्कि बड़े बड़े सेलेब्रिटी भी हैं. उन्ही में से एक हैं सचिन तेंदुलकर. सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान कहे जाते हैं.

सभी जानते हैं कि सचिन तेंदुलकर अमिताभ बच्चन की कितनी इज्जत करते हैं. बल्कि अमिताभ बच्चन भी सचिन की उतनी ही इज्जत करते हैं. ये दोनों दिग्गज कई हाई प्रोफाइल पार्टियों में एक साथ नजर आते हैं. यहां तक कि दोनों की फैमिली भी काफी क्लोज मानी जाती है.

लेकिन बावजूद इसके सचिन के सामने ऐसा पल आया था जब वो अमिताभ बच्चन को देखकर सोच में पड़ गए थे कि अब कहां देखूं, करूं तो क्या करूं. ये हम नहीं बल्कि एक इंटरव्यू में खुद सचिन तेंदुलकर ने बताया था.

दरअसल एक इंटरव्यू के दौरान सचिन तेंदुलकर ने वो किस्सा बताया था जब बेटे अर्जुन ने अमिताभ बच्चन के कुर्ते से अपने गंदे हाथ साफ कर दिए थे तब सचिन काफी शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे.

सचिन ने इंटरव्यू के दौरान बताया कि जब अर्जुन एक या डेढ़ साल का था. एक इंवेंट में लता जी ‘सिलसिला’ सौन्ग गा रही थीं और अमित जी रेखा जी के साथ बैठे थे तब अर्जुल अमित जी की गोद में जाकर बैठ गए थे. अर्जुन संतरा खा रहे थे और जैसे ही अर्जुन ने संतरा खत्म किया तो बड़े आराम से उसने अमित जी के कुर्ते से अपने गंदे हाथ पोंछ दिए थे.

उस समय मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करुं, कहां देखूं, मैं काफी शर्मिंदा हो गया था. लेकिन अमिताभ जी ने उस बात को ज्यादा अहमियत ना देते हुए बच्चा कहकर टाल दिया कि बच्चे हैं अगर ये शरारत नहीं करेंगे तो कौन करेगा.

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा पर मुकदमे का रास्ता साफ

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा के खिलाफ बंद हो चुके भ्रष्टाचार के 793 मुकदमों को दोबारा चलाने का रास्ता साफ हो गया है. दक्षिण अफ्रीका की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण की ओर से राष्ट्रपति का बचाव तर्को से परे है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है. कोर्ट ने जुमा के खिलाफ 1990 के दशक में हथियार खरीद में दर्ज भ्रष्टाचार के 793 मुकदमों को 2009 में वापस लेने को तर्कहीन बताया था. अदालत ने कहा कि क्यों राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण जुमा के खिलाफ मुकदमों को बंद करने पर तुली है. जबकि उसे इस बात पर विचार करना चाहिए कि किसने और किन आधारों पर केस बंद किया.

जुमा के पास विकल्प

जुमा इस फैसले के खिलाफ संवैधानिक अदालत जा सकते हैं. हालांकि, इसके लिए वाजिब आधार होना चाहिए. अभी तक तय नहीं है कि वे इस विकल्प का इस्तेमाल करेंगे या नहीं.

सहयोगी जा चुका है जेल

अदालत ने वर्ष 2005 में जुमा के पूर्व वित्तीय सलाहकार सचबीर शाहिक को घूस लेने के आरोप में सजा दे चुकी है.

एक दशक पुराना मामला

राष्ट्रपति जुमा पर पांच अरब डॉलर के हथियार खरीद में दलाली का आरोप है. 2005 में 793 मुकदमे दर्ज हुए.

विवादों से पुराना नाता

– 12 अप्रैल 1942 को दक्षिण अफ्रीका के नकांडला में जन्म हुआ

– 06 शादियां इन्होंने की है, जिनमें से चार अब भी उनके साथ रहती हैं

– 20 बच्चे हैं (अनुमानित) इनमें चार बच्चे उनकी पहली पत्नी से हैं

– 1973 में पहली शादी गेरट्रूड सिजाकाले खुमालो से हुई

– 2012 में ग्लोरिया बोंगेकिले नेगमा से विवाह किया

– 2003 में स्वाजीलैंड की प्रिंसेज से सगाई के लिए10 पशु दिए

चाहते हैं डाटा रहे सेव तो गूगल ड्राईव को करें डेस्कटौप पीसी से सिंक

लोगों के डेस्कटौप या पीसी में कई महत्वपूर्ण डेटा रहते हैं. ऐसे में वो अपने डेटा को सेव रखने के लिए कई तरह की बैकअप सर्विस और दूसरे क्लाउड स्टोरेज का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि कई बार ऐसा होता है कि गलती से आपके डेस्कटौप पीसी से पूरा डेटा डिलीट हो जाता है या उड़ जाता है.

ऐसी स्थिति में अधिकांश यूजर्स गूगल ड्राइव या गूगल फोटोज जैसे पौपुलर सर्विस की मदद से अपने डेस्कटौप डेटा को फिर से प्राप्त कर लेते हैं. इन सर्विस में यूजर्स को उन सभी डाटा को अपलोड करना होता है जिनका वो बैकअप चाहते हैं. ऐसे में यूजर्स के लिए यह रोज रोज का एक बड़ा टास्क हो जाता है.

वहीं औनलाइन कुछ ऐसे टूल्स भी उपलब्ध है जो औटोमेटिक क्लाउड स्टोरेज से आपके डेटा को सेव कर लेते हैं. हम अपनी इस रिपोर्ट में उस प्रक्रिया के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके माध्यम से डेस्कटौप यूजर्स गूगल ड्राइव या गूगल फोटो को औटोमेटिक डेटा अपलोड करने के लिए सेट कर सकते हैं.

सबसे पहले आपको Backup and Sync tool को डाउनलोड करना होगा. यह टूल्स डेटा के मल्टीपल फौर्मेट को सिंक करने में मदद करता है. बता दें कि, इस टूल्स को डाउनलोड करने से पहले यह चेक कर लें कि आप केवल उसी वर्जन का इस्तेमाल करें जो आपके डिवाइस के लिए उपयुक्त हो.

एप को पहली बार ओपेन करने पर यह आपसे कुछ अनुमति मांगेगा. एप में आने वाले मैसेज को अनुमति दे और नेक्सट पर क्लिक करें. अगर आपने गूगल ड्राइव एप को पहले से ही इंस्टौल कर लिया है तो आपको इस एप के जरिए अकाउंट में लौग इन करने की जरुरत नहीं होगी. वहीं, अगर आपने एप को इंस्टौल नहीं किया है तो आपको लौग इन डिटेल्स भरने की आवश्यकता होगी ताकि यह एप से लौग इन करने की आवश्यकता होगी.

अब एप के अलग-अलग सेक्शन के जरिए आपको यह चुनना होगा कि गूगल ड्राइव और पीसी डिवाइस के बीच या डेस्कटौप पीसी और गूगल ड्राइव के बीच डाटा को सिंक करना चाहते हैं या नहीं.

इस टूल की मदद से आप बैकअप और सिंक को तब तक प्राप्त कर सकते हैं जब तक आप इस टूल को बंद नहीं कर देते. साथ ही, वो सभी फोल्डर्स जिन्हें आप चुनते हैं औटोमेटिक रुप से आपके गूगल ड्राइव या गूगल फोटोज में अपडेट होते रहेंगे. इसके लिए आपको बार-बार डाटा को अलग से अपडेट करने की जरुरत नहीं होगी.

बदसूरत : अविनाश की हैवानियत से कैसे बच पाई प्रभा

‘प्रभा, जल्दी से मेरी चाय दे दो…’

‘प्रभा, अगर मेरा नाश्ता तैयार है, तो लाओ…’

‘प्रभा, लंच बौक्स तैयार हुआ कि नहीं?’

जितने लोग उतनी ही फरमाइशें. सुबह से ही प्रभा के नाम आदेशों की लाइन लगनी शुरू हो जाती थी. वह खुशीखुशी सब की फरमाइश पूरी कर देती थी. उस ने भी जैसे अपने दो पैरों में दस पहिए लगा रखे हों. उस की सेवा से घर का हर सदस्य संतुष्ट था. वर्मा परिवार उस की सेवा और ईमानदारी को स्वीकार भी करता था.

प्रभा थी भी गुणों की खान. दूध सा गोरा और कमल सा चिकना बदन. कजरारे नैन, रसीले होंठ, पतली कमर, सुतवां नाक, काली नागिन जैसे काले लंबे बाल और ऊपर से खनकती हुई आवाज. उस की खूबसूरती उस के किसी फिल्म की हीरोइन होने का एहसास कराती थी.

मालकिन मिसेज वर्मा की बेटी ज्योति, जो प्रभा की हमउम्र थी, के पुराने, मगर मौडर्न डिजाइन के कपड़े जब वह पहन लेती थी, तो उस की खूबसूरती में और भी निखार आ जाता था.

मिसेज वर्मा का बेटा अविनाश तो उस पर लट्टू था. हमेशा उस के आसपास डोलते रहने की कोशिश करता रहता था. वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी. अब तक दोनों में से किसी ने भी अपनेअपने मन की बात एकदूसरे से जाहिर नहीं की थी.

घर के दूसरे कामों के अलावा मिसेज वर्मा की बूढ़ी सास की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी भी प्रभा के कंधों पर ही थी.

दरअसल, मिसेज वर्मा एक इंटर कालेज की प्रिंसिपल थीं. उन्हें सुबह के 9 बजे तक घर छोड़ देना पड़ता था. बड़ा बेटा अविनाश और बेटी ज्योति दोनों सुबह साढ़े 9 बजे तक अपनेअपने कालेज के लिए निकल जाते थे.

घर के मालिक पीके वर्मा पेशे से वकील थे और उन के मुवक्किलों के चायनाश्ते का इंतजाम भी प्रभा को ही देखना पड़ता था. प्रभा सुबह के 8 बजतेबजते वर्मा परिवार के फ्लैट पर पहुंच जाती थी. पूरे 8 घंटे लगातार काम करने के बाद शाम के 5 बजे तक ही वह अपने घर लौट पाती थी.

उस दिन प्रभा मिस्टर वर्मा के घर पर अकेली थी. बूढ़ी अम्मां भी किसी काम से पड़ोस में गई हुई थीं. घर का काम निबटा कर थोड़ा सुस्ताने के लिए प्रभा जैसे ही बैठी, दरवाजे की घंटी बज उठी.

प्रभा ने दरवाजा खोला, तो सामने अविनाश खड़ा था. ‘‘घर में और कोई नहीं है क्या?’’ अविनाश ने अंदर आते हुए पूछा.

‘‘नहीं,’’ प्रभा ने छोटा सा जवाब दिया.

कमरे में खुद के अलावा अविनाश की मौजूदगी ने उस के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं. वह अपनी नजरें चुरा रही थी. उधर अविनाश का दिमाग प्रभा को अकेला पा कर बहकने लगा था.

अविनाश ने अपने कमरे में जाते हुए प्रभा को एक गिलास पानी देने के लिए आवाज लगाई. वह पानी ले कर कमरे में पहुंची. अविनाश ने उसे गिलास मेज पर रख देने का इशारा किया.

गिलास रख कर जब प्रभा लौटने लगी, तो अविनाश ने उसे पीछे से अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया. एक तो लड़की की गदराई देह, मुश्किल से मिली तनहाई और मालिक होने का रोब… अविनाश पूरी तरह अपने अंदर के हैवान के आगे मजबूर हो चुका था.

‘‘यह आप क्या कर रहे हैं साहब?’’ प्रभा बुरी तरह डर गई थी.

‘‘वही, जो तुम चाहती हो. तुम्हें तो फिल्मों की हीरोइन होना चाहिए था, किन कंगालों के घर पैदा हो गई तुम… कोई बात नहीं. तुम तो किसी बड़े घर की बहू बनने के लायक हो मेरी जान.

‘‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ फिर अविनाश ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उस के जिस्म पर सवार होने लगा.

प्रभा पर ताकत का इस्तेमाल करते हुए अविनाश बड़ी बेशरमी से बोला, ‘‘पहले अपनी जवानी का मजा चखाओ, फिर मैं तुम्हें वर्मा परिवार की बहू बनाता हूं.’’

‘‘लेकिन, शादी के पहले यह सब करना पाप होता है,’’ प्रभा गिड़गिड़ाते हुए बोली.

‘‘पापपुण्य का हिसाब बाद में समझाना बेवकूफ लड़की. पहले मैं जो चाहता हूं, वह करने दे.’’

अविनाश वासना की आग में पूरी तरह दहक रहा था. इस के आगे वह कोई हरकत करता, घर का दरवाजा ‘खटाक’ से खुला. सामने मिसेज वर्मा खड़ी थीं.

अपनी मां को देख अविनाश पहले तो झेंपा, फिर पैतरा बदल कर पलंग से उतर गया. प्रभा भी उठ खड़ी हुई. ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’ मिसेज वर्मा चीखते हुए बोलीं.

‘‘देखिए न मम्मी, कैसी बदचलन लड़की को आप ने घर में नौकरी दे रखी है? अकेला देख कर इस ने मुझे जबरन बिस्तर पर खींच लिया. यह इस घर की बहू बनने के सपने देख रही है,’’ अविनाश ने एक ही सांस में अपना कुसूर प्रभा के सिर पर मढ़ दिया.

‘‘नहीं मालकिन, नहीं. यह सच नहीं है,’’ कहते हुए प्रभा रो पड़ी.

‘‘देख रही हैं मम्मी, कितनी ढीठ है यह लड़की? यह कब से मुझ पर डोरे डाल रही है. आज मुझे अकेला पा कर अपनी असलियत पर उतर ही आई,’’ अविनाश सफाई देता हुआ बोला.

‘‘मैं खूब जानती हूं इन छोटे लोगों को. अपनी औकात दिखा ही देते हैं. अब मैं इसे काम पर नहीं रख सकती,’’ मिसेज वर्मा प्रभा पर आंखें तरेरते हुए बोलीं.

‘‘नहीं मालकिन, ऐसा मत कीजिए. हम लोग भूखे मर जाएंगे,’’ प्रभा बोली.

‘‘भूखे क्यों मरोगे? अपनी टकसाल ले कर बाजार में बैठ जाओ. अपनी

भूख के साथसाथ दूसरों की भी मिटाओ. घरों में झाड़ूपोंछा कर के कितना कमाओगी. चलो, निकलो अभी मेरे घर से. मेरे बेटे पर लांछन लगाती है,’’ मिसेज वर्मा बेरुखी से बोलीं.

प्रभा हैरान सी सबकुछ सुनतीदेखती रही. उस का सिर चकराने लगा. कुछ देर में जा कर वह संभली और बिना उन की तरफ देखे दरवाजे से बाहर निकल गई.

घर आ कर उस ने रोतेरोते सारी दास्तान अपनी मां को सुनाई. उस की मां लक्ष्मी हैरान रह गई.

‘‘मां, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. यह सच है कि मैं मन ही मन अविनाश बाबू को चाहने लगी थी, पर इन सब बातों के लिए कभी तैयार नहीं थी. वह तो ऐन वक्त पर मालकिन आ गईं और मैं बरबाद होने से बच गई. मुझे माफ कर दो मां,’’ प्रभा रोने लगी.

मां लक्ष्मी ने बेटी प्रभा को खींच कर गले से लगा लिया. प्रभा काफी देर तक मां से लिपट कर रोती रही. रो लेने के बाद उस का जी हलका हो गया. वह लुटतेलुटते बची थी. इस के लिए वह मन ही मन मिसेज वर्मा को धन्यवाद भी दे रही थी. ऐन वक्त पर उन का आ धमकना प्रभा के लिए वरदान साबित हुआ था.

प्रभा को अब अपने सपनों के टूट जाने का कोई गम नहीं था. उस के सपनों का राजकुमार तो अंदर से बड़ा ही बदसूरत निकला था.

‘‘महीने की पगार की आस टूट गई तो क्या हुआ, इज्जत का कोहिनूर तो बच गया. वह अगर लुट जाता, तो किस दुकान पर वापस मिलता?’’ इतना कह कर उस की मां लक्ष्मी ने इतमीनान की एक लंबी सांस ली.

कुछ खोतेखोते बहुतकुछ बच जाने का संतोष प्रभा के चेहरे पर भी दिखने लगा था.

तांत्रिकों का मायाजाल : सावधान रहें और ऐसे अपराधों से बचें

सौतन से छुटकारा पाएं, पति या प्रेमी को वश में करें. गृहक्लेश, व्यापार में घाटा, संतान न होना आदि समस्याओं से समाधान’ के स्टीकर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों, बसों आदि में चिपके दिख जाते हैं. इतना ही नहीं, इस तरह के विज्ञापन विभिन्न समाचारपत्रों में भी छपते रहते हैं.

विज्ञापन छपवाने वाले तथाकथित तांत्रिक खुद को बाबा हुसैनजी, बाबा बंगाली, बाबा मिर्जा, बाबा अमित सूफी आदि बताते हुए चंद घंटों में समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं. कुछ तो खुद को गोल्ड मैडलिस्ट, वशीकरण स्पैशलिस्ट बताते हैं. इंसानी जीवन की कोई ऐसी समस्या नहीं होगी, जिस के समाधान का दावा ये तांत्रिक न करते हों.

गाजियाबाद के विजयनगर का रहने वाला मिथुन सिंह पेशे से ट्रक ड्राइवर था. एक दिन वह ट्रक ले कर मेरठ जा रहा था तो गाजियाबाद में ही एक लालबत्ती पर उसे अपना ट्रक रोकना पड़ा. लालबत्ती होते ही चौराहे पर सामान बेचने वाले वहां रुकी गाडि़यों के पास जाजा कर सामान बेचते हैं.

उन्हीं में 18-19 साल का एक लड़का वहां रुकी हर गाड़ी में विजिटिंग कार्ड फेंक रहा था. जिस कार के खिड़कियों के शीशे बंद मिलते, वह विजिटिंग कार्ड कार के आगे के वाइपर में फंसा देता. लड़का अपना काम बड़ी फुरती से कर रहा था. ट्रक में बैठा मिथुन सिंह उसे देख रहा था.

वह लड़का मिथुन के ट्रक के पास आया और एक विजिटिंग कार्ड उस की केबिन में फेंक कर चला गया. उसी वक्त हरी बत्ती जल गई तो मिथुन ने अपना ट्रक आगे बढ़ा दिया. इस से पहले उस ने उस लड़के द्वारा फेंका गया विजिटिंग कार्ड उठा कर अपनी जेब में रख लिया था.

करीब घंटे भर बाद मिथुन ने कुछ खानेपीने के लिए ट्रक एक ढाबे पर रोका. खाने के लिए आता, उस के पहले वह शर्ट की जेब से वह विजिटिंग कार्ड निकाल कर देखा. वह कार्ड बाबा आमिल सूफी नाम के किसी तांत्रिक का था. उस में उस ने हर तरह की समस्या का समाधान करने की बात कही थी.crime news

विजिटिंग कार्ड पढ़ कर कुछ देर तक मिथुन सोचता रहा. उस की भी एक समस्या थी, जिस की वजह से वह काफी परेशान था. दरअसल, मिथुन की अपनी पत्नी से पट नहीं रही थी. कई ऐसी वजहें थीं, जिन की वजह से पतिपत्नी में मतभेद थे. मिथुन थोड़ा जिद्दी स्वभाव का था, इसलिए पत्नी की हर बात को गंभीरता से नहीं लेता था.

मिथुन समझ नहीं पा रहा था कि उस के घर में शांति कैसे आए? विजिटिंग कार्ड पढ़ कर उसे लगा कि बाबा आमिल सूफी उस की समस्या का समाधान कर देंगे. कार्ड में बाबा के मिलने का कोई पता तो नहीं था, केवल 2 मोबाइल नंबर 8447703333 और 9891413333 लिखे थे.

मिथुन ने उसी समय अपने मोबाइल से कार्ड पर लिखा एक नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से किसी ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘हैलो कौन?’’

‘‘मैं गाजियाबाद से मिथुन सिंह बोल रहा हूं. मुझे बाबा आमिल सूफीजी से बात करनी थी.’’ मिथुन ने कहा.

‘‘देखिए, बाबा तो अभीअभी बाहर से आए हैं. वह 2-3 भक्तों की समस्या का समाधान करने में लगे हैं. मैं रिसैप्शन से बोल रहा हूं. आप की क्या समस्या है, मुझे बता दीजिए.’’ दूसरी तरफ से कहा गया.

मिथुन ने रिसैप्शनिस्ट को बताया कि उस का पत्नी से अकसर झगड़ा होता रहता है, जिस की वजह से घर में अकसर कलह बनी रहती है. वह घर में शांति चाहता है.

‘‘बाबा आप की समस्या का समाधान अवश्य कर देंगे. मैं उन से आप की बात करा दूंगा, पर इस के लिए पहले आप को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. रजिस्ट्रेशन के लिए 251 रुपए आप को बैंक एकाउंट में जमा कराने होंगे.’’ उस व्यक्ति ने कहा.

‘‘अभी तो मैं कहीं जा रहा हूं, आप एकाउंट नंबर दे दीजिए, जब भी समय मिलेगा, मैं पैसे जमा करा दूंगा.’’ मिथुन ने कहा.

मोबाइल पर चल रही बातचीत खत्म होते ही मिथुन के मोबाइल पर एक मैसेज आ गया, जिस में बैंक का खाता नंबर दिया हुआ था. वहां आसपास कोई बैंक भी नहीं था और न ही उस समय उस के पास पैसे जमा करने का समय था, इसलिए ढाबे से ट्रक ले कर आगे बढ़ गया.

मेरठ से लौटने के बाद उस ने उस खाते में 251 रुपए रजिस्ट्रेशन के जमा करा दिए. इस के बाद उस ने तांत्रिक के फोन नंबर पर फोन कर के पैसे जमा कराने की जानकारी दी. तब रिसैप्शन पर बैठे व्यक्ति ने बाबा से बात कराने के लिए 2 घंटे बाद का समय दे दिया.

2 घंटे बाद मिथुन ने बाबा आमिल सूफी को अपने गृहक्लेश की सारी बात बता कर कहा, ‘‘बाबा, काफी दिनों से पत्नी से मेरी बन नहीं रही है.’’

उस की बात सुन कर बाबा ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस समस्या का समाधान हो जाएगा, पर इस के लिए पूजा करनी पड़ेगी. उस पूजा में करीब 5200 रुपए का खर्च आएगा.’’

मिथुन को बाबा की बातों पर भरोसा था, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘बाबा, पूजा हमारे घर में करेंगे या फिर कहीं और?’’

‘‘हम पूजा अपने यहां ही करेंगे. यहीं से उस का असर हो जाएगा, तुम उसे खुद महसूस करोगे. जितनी जल्दी तुम पैसे भेज दोगे, उतनी जल्दी हम पूजा शुरू कर देंगे.’’ बाबा ने कहा.

‘‘बाबा, मैं पैसे अभी भेज देता हूं. उसी एकाउंट में जमा करा दूं, जिस में पहले जमा कराए थे?’’ मिथुन ने पूछा.

‘‘नहीं, उस में नहीं. तुम खाता नंबर 34241983333 में जमा करा दो.’’ बाबा ने कहा.

मिथुन ने उसी दिन बाबा द्वारा दिए गए एकाउंट नंबर में 5200 रुपए जमा करा दिए और फोन कर के उन्हें बता दिया. पैसे जमा कराने के बाद मिथुन को तसल्ली हो गई कि अब उस के घर के सारे क्लेश दूर हो जाएंगे. पर 15 दिन बाद भी घर के माहौल में कोई फर्क नहीं पड़ा. पत्नी का व्यवहार पहले की तरह ही रहा तो मिथुन ने बाबा आमिल सूफी से इस बारे में बात की.

बाबा आमिल सूफी ने कहा, ‘‘दरअसल, तुम्हारी समस्या बड़ी विकट है. इस का निवारण अब बड़ी पूजा से होगा. एक पूजा और करनी पड़ेगी. उस पूजा का खर्च 5100 रुपए आएगा. तुम्हारे नाम की एक पूजा हो ही चुकी है. यह पूजा और करा लोगे तो जल्द लाभ मिल सकता है.’’

मिथुन और पैसे जमा करने को तैयार हो गया. तब बाबा ने उसे पंजाब नेशनल बैंक का एकाउंट नंबर 4021000100173333 दे कर 5100 रुपए जमा कराने को कहा. मिथुन ने फटाफट रुपए जमा करा दिए.

ये पैसे जमा कराने के महीने भर बाद भी मिथुन के हालात जस के तस रहे. न तो पत्नी के स्वभाव में कोई अंतर आया और न ही उस के घर की कलह दूर हुई. मिथुन ने बाबा से फिर बात की. उस ने कहा कि अभी तक की गई पूजा से घर में कोई फर्क नहीं पड़ा है. पत्नी का स्वभाव आज भी पहले की ही तरह है. चूंकि वह बाबा द्वारा बताए गए खातों में 10 हजार से ज्यादा रुपए जमा कर चुका था, इसलिए उस की बातों में कुछ गुस्सा भी था.

बाबा ने उसे शांति से समझा कर गुस्सा न करने को कहा. बाबा ने उस से कहा कि 4 रातें जागजाग कर उस ने खुद पूजा की है. पूजा का परिणाम कोई इंजेक्शन की तरह तो होता नहीं है, धीरेधीरे होगा. और यदि जल्दी परिणाम चाहते हो तो महाकाल की पूजा करानी होगी. इस में तुम्हारा 5100 रुपए का खर्च और आएगा. आज अमावस्या है. पैसे आज ही जमा करा दोगे तो आज रात ही पूजा शुरू कर दूंगा.

मिथुन सिंह बाबा को 10 हजार रुपए से ज्यादा दे चुका था और फादा उसे रत्ती भर नहीं हुआ था. अगर उसे इस का थोड़ा सा भी लाभ मिल गया होता तो वह फिर से पैसे जमा करने की बात एक बार सोचता. उस ने पैसे जमा न करने की बात तो नहीं कही, पर अभी पास में पैसे न होने का बहाना कर दिया.

मिथुन को लगा कि बाबा आमिल सूफी ने समस्या दूर करने के नाम पर उस से ठगी की है. वह एक बार बाबा से मिल कर यह देखना चाहता था कि वह बाबा है भी या नहीं? इसलिए उस ने फिर से बाबा को फोन किया. तभी बाबा ने उस से 5100 रुपए जमा कराने की बात कही.

‘‘बाबा, मैं आप के दर्शन करना चाहता हूं. पैसे मैं उसी समय नकद दे दूंगा. आप बस अपना पता बता दीजिए.’’ मिथुन ने कहा.

‘‘हम से मुलाकात नहीं होगी, क्योंकि हमारा कोई निश्चित ठिकाना नहीं है. हम इधरउधर आतेजाते रहते हैं. आप का काम जब घर बैठे हो रहा है तो मिलने की क्या जरूरत है?’’ बाबा ने कहा.crime news

‘‘बाबा, आप के दर्शन करने की मेरी अभिलाषा है.’’ मिथुन ने कहा तो बाबा ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने बाबा के नंबर पर कई बार फोन किया, पर बात नहीं हो सकी. बाबा ने शायद उस का नंबर रिजेक्ट लिस्ट में डाल दिया था.

मिथुन ने अगले दिन भी बाबा से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस के किसी भी नंबर पर बात नहीं हो सकी. अब उसे पूरा विश्वास हो गया कि उस के साथ ठगी हुई है. उस ने इस बात की शिकायत गाजियाबाद के एसपी से की. मिथुन ने तांत्रिक बाबा आमिल सूफी के जिन मोबाइल नंबरों पर बात की थी, एसपी ने उन नंबरों की जांच सर्विलांस टीम से कराई.

इस जांच में पता चला कि वे फोन नंबर साहिबाबाद थाने के अंतर्गत अर्थला में एक्टिव हैं. लिहाजा मिथुन सिंह की शिकायत पर 15 मई, 2017 को थाना साहिबाबाद में अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 417 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी सुधीर कुमार त्यागी के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई, जिस में एसएसआई अखिलेश गौड़, एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल छीतर सिंह, कांस्टेबल मंगत सिंह, पंकज शर्मा, सुनील कुमार, विपिन सिंह, नारायण राय आदि को शामिल किया गया.

तथाकथित तांत्रिक के फोन नंबरों की जांच में उन की लोकेशन अर्थला की मिल रही थी. अर्थला थाने से पूरब दिशा में करीब 3 किलोमीटर दूर था. उसी लोकेशन के सहारे पुलिस ने एक मकान में छापा मारा तो ग्राउंड फ्लोर पर एक औफिस बना मिला, जिस में 8 युवक बैठे थे.

औफिस का जो बौस था, उस की मेज पर 20 मोबाइल फोन रखे थे. पुलिस ने उन युवकों से सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि वह तांत्रिक दिलशाद का कालसेंटर था. औफिस की तलाशी में तथाकथित तांत्रिक के तमाम विजिटिंग कार्ड, स्टीकर आदि मिले. इस के अलावा दिलशाद की केबिन से 6 लाख 72 हजार 3 सौ रुपए नकद बरामद हुए.

पुलिस की मौजूदगी में ही वहां रखे मोबाइल फोनों पर कई समस्याग्रस्त लोगों के फोन आए. पुलिस ने फोन रिसीव किए तो फोन करने वाले लोग तांत्रिक से अपनी समस्या का निदान पूछ रहे थे. पुलिस सभी को थाने ले आई.

थाने में उन सभी से पूछताछ की गई तो पता चला कि दिलशाद योजनाबद्ध तरीके से कालसैंटर चला कर उस के जरिए पूरे देश में ठगी का अपना धंधा चला रहा था.

मिथुन से जो 10 हजार रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी, वह दिलशाद और उस के साथियों ने ही की थी. इसी कालसैंटर के जरिए लोगों को बेवकूफ बना कर ये लोग महीने में लगभग 20 लाख रुपए की ठगी कर रहे थे. आखिर एक मामूली सा पढ़ालिखा दिलशाद तथाकथित तांत्रिक कैसे बना और उस ने पूरे देश में अपना नेटवर्क कैसे तैयार किया? इस की एक दिलचस्प कहानी है.

गाजियाबाद के थाना साहिबाबाद के अंतर्गत आती है अर्थला कालोनी. दिलशाद इसी कालोनी के रहने वाली अल्लानूर का बेटा था. वह जूनियर हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ सका तो पिता ने उसे एक दुकान पर लगवा दिया. साल, दो साल नौकरी करने के बाद वह घर बैठ गया.

वह पढ़ालिखा भले ज्यादा नहीं था, लेकिन खूब पैसे कमाने के सपने देखता था, इसलिए उसे दुकान पर काम करना पसंद नहीं आया. दिलशाद के घर बैठने पर उस के पिता को जो पैसे मिलते थे, वे बंद हो गए. इसलिए उन्हें उस का घर बैठना पसंद नहीं आया.

उन्होंने किसी से कह कर उस की नौकरी एक फैक्ट्री में लगवा दी. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, पर ख्वाब अमीरों के देखता था. वह चाहता था कि उस के पास भी सभी तरह की सुखसुविधाएं हों. इन्हीं ख्वाबों की वजह से फैक्ट्री में भी वह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका.

फैक्ट्री की नौकरी छोड़ कर वह अपने यारदोस्तों के साथ घूमता रहता. उस का खाली घूमना उस के पिता को अच्छा नहीं लगा. वह बारबार उसे कोई न कोई काम करने को कहते. काम तो दिलशाद भी करना चाहता था, पर उसे उस के मन के मुताबिक काम नहीं मिल रहा था.

उसी दौरान वह अपने एक परिचित के साथ मेरठ चला गया. वह परिचित मेरठ में तथाकथित तांत्रिक बन कर अपना धंधा चला रहा था. दिलशाद उस के औफिस में बैठने लगा. वहां पर दिलशाद का मन लगने लगा. वह बड़े गौर से देखता था कि ग्राहक से कैसे बात की जाती है और किस तरह से उन की जेब से पैसा निकाला जाता है. एकएक कर के सारा काम वह एक साल के अंदर सीख गया.

अब वह खुद का सैंटर चलाना चाहता था, ताकि मोटी कमाई की जा सके. घर लौट कर दिलशाद ने सब से पहले विजिटिंग कार्ड्स छपवाए. विजिटिंग कार्ड में उस ने सभी तरह की समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हुए अपने 2 मोबाइल नंबर लिख दिए और खुद को बाबा आमिल सूफी बताया. कार्ड में पता नहीं लिखा था, केवल फोन पर ही समस्या बताने को कहा गया था.

आजकल ज्यादातर लोग किसी न किसी वजह से परेशान हैं. इसी का फायदा यह तथाकथित तांत्रिक उठाते हैं. कुछ ही दिनों में दिलशाद उर्फ बाबा आमिल सूफी के पास लोगों के फोन आने लगे. वह उन लोगों से रजिस्ट्रेशन के 251 रुपए अपने एकाउंट में जमा कराने को कहता. रजिस्ट्रेशन के पैसे जमा कराने के बाद वह पूजा आदि के नाम पर 5100 या ज्यादा रुपए खाते में जमा करा लेता.

जो लोग खाते में पैसे जमा कराते, उन में से कुछ की समस्याएं खुदबखुद कम या खत्म हो जातीं तो वे बाबा का खुद ही प्रचार करते और जिन की समस्या जस की तस रहती, वे उसे दोबारा फोन करते तो दिलशाद उस का फोन नंबर रिजेक्ट लिस्ट में डाल देता.

इस तरह दिलशाद का धंधा चलने लगा तो उस ने बाबा आमिल सूफी, बाबा हुसैनजी, बाबा मिर्जा, बाबा बंगाली आदि कई फरजी नामों से आकर्षक स्टीकर छपवा कर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों, बसों आदि में चिपकवा दिए. इस का उसे अच्छा रेस्पांस मिलना शुरू हुआ. उस की कमाई बढ़ी तो उस ने अपने भाई इरशाद को भी अपने साथ जोड़ लिया. दिलशाद लोगों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा कर उन से मोटी कमाई करने लगा. उसी कमाई से उस ने अर्थला में ही अपना तीनमंजिला आलीशान घर बनवा लिया.

अब दिलशाद इस क्षेत्र का माहिर खिलाड़ी बन चुका था. हिंदी के अलावा उस ने देश की विभिन्न भाषाओं में अपने स्टीकर छपवाने शुरू कर विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि उस के पास सैकड़ों फोन आने लगे. इस के बाद दिलशाद अपने गांव के ही रहने वाले शाहरुख, नासिर, आसिफ, नसीरुद्दीन, शाहरुख पुत्र मंसूर और आसिफ को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. ये सभी युवक कुछ ही दिनों में इतने ट्रेंड हो गए कि कस्टमर की दुखती रग पर बातों का मरहम लगा कर उस की जेब ढीली करा लेते.

अलगअलग बैंकों में इन्होंने 20 एकाउंट खुलवा रखे थे. जैसे ही कस्टमर पैसा जमा करता, दिलशाद तुरंत ही एटीएम से पैसे निकलवा लेता. चूंकि दिलशाद अखबारों, केबल टीवी आदि पर दिए जाने वाले विज्ञापन पर मोटा पैसा खर्च करता था, इसलिए गोविंदपुरम, गाजियाबाद और नोएडा के रहने वाले जयवीर और शीतला प्रसाद ने दिलशाद से संपर्क किया. ये दोनों विज्ञापन एजेंसी चलाते थे. बातचीत के बाद जयवीर और शीतला प्रसाद ने ही दिलशाद के धंधे के विज्ञापन की जिम्मेदारी ले ली.

दिलशाद की महीने भर में जो भी कमाई होती थी, उस का आधा वह विज्ञापन पर खर्च करता था. दिलशाद के कालसैंटर में काम करने वाले सभी लोग दिन भर व्यस्त रहते थे. रोजाना ही उस के कालसैंटर में करीब एक हजार फोन आते थे, जिन से उसे लगभग 20 लाख रुपए की आमदनी होती थी. इस में से 10 लाख रुपए वह विज्ञापन पर खर्च करता था. इस तरह उस का धंधा दिनोंदिन फलफूल रहा था. मिथुन सिंह की तरह ज्यादा घरों में लोग किसी न किसी वजह से परेशान रहते हैं, ऐसे ही लोग तथाकथित तांत्रिकों के चक्कर में फंसते हैं.

दिलशाद और उस के 7 साथियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने गाजियाबाद के गोविंदपुरम से जयवीर और सैक्टर-25 नोएडा से शीतला प्रसाद को भी गिरफ्तार कर लिया था. सभी 10 अभियुक्तों से व्यापक पूछताछ के बाद 18 जुलाई, 2017 को उन्हें गाजियाबाद के सीजेएम की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.  मामले की आगे की विवेचना एसआई मनोज बालियान को सौंप दी गई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दो बहनों का संसार: प्रेमी के साथ मिलकर की पतियों की हत्या

अप्रैल, 2017 के पहले सप्ताह में पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर ने मुंबई के उपनगरीय पुलिस थानों का दौरा किया तो उपनगर कांदिवली पश्चिम के थाना चारकोप में दर्ज भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त मैनेजर प्रकाश गंगाराम वानखेड़े की गुमशुदगी की फाइल पर उन का ध्यान चला गया. उन्होंने उस फाइल का अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि इस मामले की जांच ठीक से नहीं की गई है. उन्होंने वह फाइल जौइंट सीपी देवेन भारती को सौंपते हुए उस की जांच ठीक से कराने को कहा.

देवेन भारती को भी इस मामले की जांच में जांच अधिकारियों की लापरवाही दिखाई दी. वह कई सालों तक मुंबई क्राइम ब्रांच सीआईडी के प्रमुख रह चुके थे. उन्हें आपराधिक मामलों के खुलासे का अच्छाखासा अनुभव था. यह मामला एक साल पुराना था और बिना किसी नतीजे पर पहुंचे इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. फाइल का अध्ययन करने पर देवेन भारती को यह मामला संदिग्ध और रहस्यमय लगा तो उन्होंने सहायक अधिकारियों को बुला कर एक मीटिंग की और इस मामले की जांच उन्होंने अपने सब से विश्वस्त अधिकारी एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा को सौंप दी.

श्रीरंग नादगौड़ा ने खुद के निर्देशन में थाना मालवणी के थानाप्रभारी दीपक फटांगरे के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर बेले, एएसआई धार्गे, कान्हेरकर, एसआई जगताप, सिपाही उगले आदि को शामिल किया. थानाप्रभारी दीपक फटांगरे भी क्राइम ब्रांच की सीआईडी यूनिट में कई सालों तक काम कर चुके थे. शायद इसीलिए पुलिस अधिकारियों को उन पर पूरा भरोसा था. उन्होंने भी इस मामले को पूरी गंभीरता से लिया. इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर पहले तो उन्होंने फाइल का गहराई से अध्ययन किया, उस के बाद इस मामले की जांच महाराष्ट्र के जिला अहमदनगर की शिवाजी कालोनी की रहने वाली वंदना थोरवे के यहां से शुरू की.

दरअसल, वंदना गुमशुदा भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर प्रकाश वानखेड़े की पत्नी आशा वानखेड़े की बहन थी. आशा ने अपने एक बयान में अहमदनगर की शिवाजी कालोनी का जिक्र किया था. इसी कालोनी में आशा की बहन वंदना रहती थी.crime news

27 अप्रैल, 2016 को कांदिवली के सेक्टर 6 स्थित आकाश गंगाराम हाऊसिंग सोसाइटी की रहने वाली आशा वानखेड़े ने थाना चारकोप में अपने पति प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. गुमशुदगी दर्ज कराते समय उस ने बताया था कि उस के पति 12 अप्रैल, 2016 को घर से किसी काम से निकले तो अभी तक लौट कर नहीं आए. नौकरी से रिटायर होने के बाद वह इतने दिनों तक कभी बाहर नहीं रहे, इसलिए अब उसे उन की चिंता हो रही है.

प्रकाश वानखेड़े पढ़ेलिखे आदमी थे और अच्छी नौकरी से रिटायर हुए थे. उन की समाज में प्रतिष्ठा था. इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर थाना चारकोप के थानाप्रभारी श्री पाटिल ने तुरंत ड्यूटी पर मौजूद एसआई जगताप से डायरी बनवाई और इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी श्री पाटिल ने थाने में मौजूद पुलिस बल को कई टीमों में बांट कर प्रकाश वानखेड़े की तलाश में लगा दिया.

इस मामले में अपहरण जैसी कोई बात नहीं थी. क्योंकि अगर प्रकाश वानखेड़े का अपहरण हुआ होता तो अब तक उन की फिरौती के लिए फोन आ चुके होते. पुलिस का ध्यान दुर्घटना की ओर गया. थाना चारकोप पुलिस ने शहर के सभी थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर इस बारे में पता किया. इस के बाद प्रकाश वानखेड़े के फोटो वाले पैंफ्लेट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवाए. दैनिक अखबारों में भी छपवाया गया. लेकिन इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

पुलिस प्रकाश वानखेड़े के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन कर रही थी कि तभी उन की गुमशुदगी की शिकायत के 2 सप्ताह बाद उन की पत्नी आशा ने थाने आ कर बताया कि उसे पता चला है कि उस के पति प्रकाश वानखेड़े 31 मई, 2016 को अहमदगनर की शिवाजी कालोनी में रहने वाली उस की छोटी बहन वंदना थोरवे के यहां थे. वह उस की बहन वंदना को कुछ पैसे देने गए थे.

चूंकि आशा ने ही इस मामले की शिकायत की थी, इसलिए पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास कर लिया और इस के बाद इस मामले की जांच में सुस्ती आ गई. समय आगे बढ़ता रहा, हालांकि इस बीच जांच टीम ने कई बार आशा वानखेड़े से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस उस से मिल नहीं पाई. इस के बाद लगातार त्यौहार आते रहे, जिस की वजह से पुलिस इस मामले पर ध्यान नहीं दे पाई और एक तरह से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

लेकिन अचानक 8 अप्रैल, 2017 को मुंबई के पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर की इस फाइल पर नजर पड़ी तो एक बार फिर इस मामले की जांच शुरू हो गई. पुलिस ने गुमशुदा प्रकाश वानखेड़े की पत्नी आशा को थाने बुलाया. लेकिन वह बहाना कर के थाने नहीं आई. ऐसा कई बार हुआ. इस बार पुलिस इस मामले को हल्के में नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गई.

पुलिस ने प्रकाश और आशा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के साथसाथ लोकेशन भी निकलवाई तो जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. आशा ने अपने पति प्रकाश वानखेडे़ के गायब होने की जो तारीख बताई थी, उस के एक दिन पहले यानी 11 अप्रैल, 2016 को दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ की मिल रही थी.crime news

पतिपत्नी अहमदनगर की शिवाजी कालोनी में एक साथ थे. आशा की छोटी बहन वंदना थोरवे वहीं रहती थी. अगले दिन यानी 12 अप्रैल, 2016 को वंदना के मोबाइल की लोकेशन चारकोप स्थित आशा के घर की मिली थी.

जबकि पूछताछ में आशा ने पुलिस को स्पष्ट बताया था कि वंदना के पास कोई मोबाइल फोन नहीं है. वह मोबाइल फोन चला ही नहीं पाती. इस के बाद पुलिस ने आशा के फोन से वंदना का नंबर ले कर उसे फोन किया तो उस ने पुलिस से बात ही नहीं की, बल्कि यह भी बताया कि किस दिन प्रकाश वानखेड़े गायब हुए थे. जिस दिन वह गायब हुए थे, उस दिन वह मुंबई में बहन के घर थी. वह बड़ी बहन आशा को उस के घर ले आई थी.

मोबाइल फोन की लोकेशन से पुलिस को वंदना और आशा पर संदेह हुआ. इस के बाद एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा के निर्देशन में थानाप्रभारी दीपक फटांगरे ने 12 अप्रैल, 2017 को संदेह के आधार  पर वंदना थोरवे को अहमदनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाना चारकोप ले आई. पुलिस ने उसे भले ही गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. वह जरा भी डरी या घबराई हुई नहीं थी. थाने में पूछताछ शुरू हुई तो वह पुलिस के हर सवाल का जवाब बड़े आत्मविश्वास से देती रही. वह खुद को इस मामले में निर्दोष और अनभिज्ञ बताती रही.

लेकिन पुलिस के पास अब तक काफी सबूत जमा हो चुके थे, इसलिए पुलिस उसे आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी. पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर सवाल पूछने शुरू किए तो वह जवाब देने में गड़बड़ाने लगी. धीरेधीरे पुलिस ने उसे ऐसा फांसा कि अंतत: बचाव का कोई उपाय न देख उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद वंदना ने प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी का जो रहस्य बताया, वह चौंकाने वाला था. यही नहीं, उस ने अपने पति अशोक थोरवे की भी गुमशुदगी का रहस्य उजागर कर दिया. पता चला कि वह अपने प्रेमी नीलेश पंडित सूपेकर की मदद से बहनोई प्रकाश वानखेड़े की ही नहीं, अपने पति अशोक थोरवे की भी हत्या करा चुकी थी.

वंदना के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने मुंबई से आशा तथा सोलापुर से वंदना के प्रेमी नीलेश पंडित सूपेकर को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने प्रकाश वानखेड़े और अशोक थोरवे की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

आशा और वंदना महाराष्ट्र के जिला संगली की रहने वाली थीं. इन के पिता सहदेव खेतले मुंबई पुलिस में थे. वह सरकारी नौकरी में थे, परिवार छोटा था, इसलिए वह हर तरह से सुखी थे. उन के परिवार में सिर्फ 4 ही लोग थे. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन की पत्नी पार्वती संस्कारी गृहिणी थीं, इसलिए उन्होंने दोनों बेटियों को भी अच्छे संस्कार दिए थे. लेकिन समय के साथ उन के दिए सारे संस्कार दोनों बेटियों ने ताक पर रख दिए.

आशा और वंदना सयानी हुईं तो सहदेव को उन की शादी की चिंता हुई. वह दोनों बेटियों की शादी नौकरी करते हुए कर देना चाहते थे. उन्होंने किया भी ऐसा ही. उन्होंने आशा की शादी प्रकाश वानखेड़े से कर दी.  प्रकाश वानखेड़े एसबीआई बैंक में नौकरी करते थे. शादी के बाद वह आशा के साथ मुंबई के उपनगर कांदिवली के चारकोप में रहने लगे थे.

बड़ी बेटी की शादी कर के सहदेव वंदना की भी शादी अहमदनगर की शिवाजी कालोनी के रहने वाले अशोक थोरवे से कर दी. अशोक का अपना कारोबार था. वंदना अपनी बड़ी बहन आशा से कुछ ज्यादा सुंदर और चंचल तो थी ही, महत्वाकांक्षी भी काफी थी. लेकिन तब उस के महत्वाकांक्षा की हत्या सी हो गई, जब उसे उस के मनपसंद का पति नहीं मिला.

वंदना कारोबारी या खेती करने वाले लड़के से शादी नहीं करना चाहती थी. वह भी बड़ी बहन आशा की तरह हैंडसम और अच्छी नौकरी वाला पति चाहती थी. लेकिन पिता ने उस के लिए ऐसा पति ढूंढ दिया था, जैसा वह बिलकुल नहीं चाहती थी. लेकिन शादी के बाद उस ने समझौता कर लिया था.

पर वंदना को तो अभी और परेशान होना था. शादी के कुछ सालों बाद वंदना के पति अशोक की तबीयत खराब रहने लगी. दिखाने पर डाक्टरों ने उसे जो बीमारी बताई, वह काफी गंभीर थी. इस के बाद वंदना का रहासहा धैर्य भी जवाब दे गया. पति के संपर्क में आने के बाद वंदना भी उस बीमारी की शिकार हो गई.

वंदना ने इस के लिए पिता को जिम्मेदार माना. इस के बाद इसी बात को ले कर वह अकसर पिता से लड़ाईझगड़ा करने लगी. बापबेटी का यह झगड़ा तभी खत्म हुआ, जब सहदेव की मौत हो गई. उन की मौत जहर से हुई थी. लेकिन तब यह पता नहीं चला था कि उन्हें जहर दिया गया था या उन्होंने खुद जहर पिया था.

पति की बीमारी की वजह से वंदना की आर्थिक स्थिति धीरेधीरे खराब होती गई, जिस के कारण उसे पति का इलाज कराने में परेशानी होने लगी थी. उस स्थिति में उस की मदद के लिए लोकहितवादी संस्था में काम करने वाला नीलेश पंडित सूपेकर आगे आया. वह भी उसी कालोनी में रहता था, जिस में वंदना रहती थी.

23 साल का नीलेश पंडित काफी स्मार्ट था. वह वंदना की हर तरह से मदद करने लगा. कहा जाता है कि जहां फूस और आग होगी, वहां शोले भड़केंगे ही. इस कहावत को वंदना और नीलेश पंडित ने चरितार्थ कर दिया. वंदना की मदद करतेकरते नीलेश उस के इतने करीब आ गया कि दोनों में मधुर संबंध बन गए.

काफी इलाज के बाद भी अशोक ठीक नहीं हुआ. बीमारी की वजह से वह काफी चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात में वंदना को भद्दीभद्दी गालियां देता रहता था, जिस से परेशान हो कर वंदना और नीलेश पंडित ने एक खतरनाक फैसला ले लिया.

उन का सोचना था कि उन के इस फैसले से जहां अशोक थोरवे का कष्ट दूर हो जाएगा, वहीं उन्हें भी उस से मुक्ति मिल जाएगी. फिर क्या था, एक दिन अशोक थोरवे सो रहा था, तभी वंदना और नीलेश ने गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए वंदना और नीलेश ने उसे एक प्लास्टिक की बोरी में भर दिया और रात में ही उसे ले जा कर बीड़ जनपद के अंभोरा पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले जंगल में फेंक दिया.

12 नवंबर, 2012 की सुबह थाना अंभोरा पुलिस ने अशोक थोरवे की लाश बरामद की थी. लेकिन काफी कोशिश के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया.

एक ओर जहां वंदना तरहतरह की परेशानियां झेल रही थी, वहीं आशा का दांपत्यजीवन काफी सुखमय था. उस के दांपत्य में दरार तब आई, जब प्रकाश वानखेड़े वंदना की मदद करने के बहाने उस का शारीरिक शोषण करने लगा. जब इस की जानकारी आशा को हुई तो उसे पति से नफरत सी हो गई. उस ने पति को खूब लताड़ा. इस से पतिपत्नी के बीच तनाव रहने लगा.

इस का नतीजा यह निकला कि पतिपत्नी एकदूसरे से दूर होते गए. इस की एक वजह यह भी थी कि प्रकाश आशा पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर उसे परेशान करने लगा था. सहनशक्ति की भी एक हद होती है. प्रकाश के लगातार परेशान करने से आशा की भी सहनशक्ति जवाब दे गई.

हार कर आशा ने अपनी परेशानी बहन वंदना को बताई तो उस ने कहा कि इस परेशानी से छुटकारा तो मिल जाएगा, लेकिन इस के लिए कुछ पैसे खर्च करने होंगे. वंदना ने उपाय बताया तो आशा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. लेकिन रोजरोज की परेशानी के बारे में सोचा तो आखिर उस ने बहन की बात मान ली. आशा ने सवा 2 लाख रुपए में पति प्रकाश वानखेड़े की जिंदगी का सौदा कर डाला.

अशोक थोरवे की हत्या कर के बच जाने से वंदना और नीलेश पंडित के हौसले बुलंद थे. उन्होंने जिस तरह अशोक की हत्या का राज हजम कर लिया था, सोचा उसी तरह इसे भी हजम कर जाएंगे. 5 साल बीत जाने के बाद भी पुलिस अशोक थोरवे के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई थी. वे उसी तरह प्रकाश वानखेड़े की भी हत्या कर के बच जाना चाहते थे. लेकिन दुर्भाग्य से इस में सफल नहीं हुए. एक साल बाद ही सही, आखिर सभी पकड़े गए.

आशा की सहमति मिलने के बाद वंदना और नीलेश पंडित ने प्रकाश वानखेड़े को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत वंदना ने अपने जीजा प्रकाश और बहन आशा को 10 अप्रैल, 2016 को पूजापाठ के बहाने अपने घर बुलाया. वंदना के बुलाने पर प्रकाश वानखेड़े खुशीखुशी आशा के साथ एक प्राइवेट कार से उस के घर पहुंच गए.

जिस समय वह वंदना के घर पहुंचे थे, उस समय रात के 8 बज रहे थे. घर पहुंचे प्रकाश का वंदना ने अच्छी तरह से स्वागत किया. योजना के अनुसार उन के खाने में नींद की गोलियां मिला दी गईं. जब वह सो गए तो 10-11 बजे आशा ने प्रकाश के पैर पकड़े तो वंदना ने दोनों हाथ. इस के बाद नीलेश ने गला दबा कर उन्हें मार डाला.

प्रकाश वानखेड़े की हत्या कर तीनों ने उन की लाश को बोरी में ठूंस कर भर दिया. इस के बाद नीलेश पंडित ने लाश की बोरी को स्कौर्पियो में रख कर कल्याण अहमदनगर हाईवे रोड पर स्थित जंगल में ले जा कर फेंक दिया. कुछ दिनों बाद अहमदनगर के थाना पारनेर पुलिस को प्रकाश का अस्थिपंजर मिला था.

प्रकाश की लाश ठिकाने लगा कर आशा बहन के साथ अपने घर आ गई. जब कई दिनों तक प्रकाश दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोगों ने आशा से उन के बारे में पूछा भी. आशा भला उन लोगों को क्या बताती. पड़ोसियों की इस पूछताछ से घबरा कर उस ने खुद को बचाने के लिए थाना चारकोप में उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस तुरंत तो नहीं, लेकिन साल भर बाद प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी के रहस्य उजागर कर ही दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने आशा, वंदना और नीलेश पंडित को अहमदनगर के थाना पारनेर पुलिस को सौंप दिया.

वहां तीनों के खिलाफ प्रकाश वानखेड़े, अशोक थोरवे की हत्या और सबूत मिटाने का मुकदमा दर्ज कर सभी को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. थाना पारनेर पुलिस अब आशा और वंदना के पिता की रहस्यमय मौत की जांच कर रही है. पुलिस इस बात का पता लगा रही है कि उन्होंने आत्महत्या की थी या उन्हें जहर दे कर मारा गया था.

– कथा में सहदेव खेलते का नाम काल्पनिक है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

एकतरफा प्यार में पागल प्रेमी ने कर दी लड़की की हत्या

दिल्ली से लगा नोएडा भले ही हाईटेक सिटी के रूप में विकसित हो रहा है, लेकिन आए दिन होने वाले अपराध इस औद्योगिक नगरी के माथे पर कलंक की तरह हैं. 31 मई, 2017 की सुबह नोएडा के सेक्टर-62 स्थित पौश सोसाइटी शताब्दी रेल विहार को भी एक ऐसे आपराधिक कलंक से दोचार होना पड़ा, जो इस सोसायटी के रहवासियों की कल्पना से भी परे था.

उस दिन सुबहसुबह रेलविहार सोसाइटी के पार्किंग के पास एक युवती खून से लथपथ पड़ी मिली. उस के सिर से काफी खून बह चुका था. सोसाइटी में जिस ने भी सुना सन्न रह गया. जरा सी देर में वहां काफी लोग एकत्र हो गए. आननफानन में कुछ लोग उस युवती को नजदीकी अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. वहीं पता चला कि मृतका के सिर में गोली मारी गई थी.

सोसायटी में लोगों की भीड़ लग चुकी थी. उन्हीं में से किसी ने इस वारदात की सूचना थाना सैक्टर-58 को दे दी थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी दिलीप सिंह बिष्ट और सीओ अजय कुमार वहां आ पहुंचे. पुलिस ने मौका मुआयना किया तो वहां पिस्टल का एक खाली कारतूस पड़ा मिला, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुलवाया, लेकिन उस से कोई खास मदद नहीं मिली.

अलबत्ता इस बीच मृतका की शिनाख्त जरूर हो गई. उस का नाम अंजली राठौर था. 22 वर्षीया अंजली उर्फ अन्नू मूलरूप से हरियाणा के यमुनानगर निवासी तेजपाल सिंह की बेटी थी और नोएडा के सैक्टर-64 स्थित लावा मोबाइल कंपनी में बतौर इंजीनियर नौकरी करती थी.

अंजली सोसाइटी के एक टावर में तीसरी मंजिल पर बने एक फ्लैट में रूममेट युवतियों के साथ रहती थी. पुलिस ने अंजली के मोबाइल से नंबर तलाश कर उस के घर वालों को इस घटना की सूचना दे दी.

हैरानी की बात यह थी कि इस दुस्साहसिक वारदात का किसी को पता तक नहीं चल सका था. घटना का पता तब चला, जब 7 बजे एक युवती बैंक की कोचिंग क्लास में जाने के लिए निकली. सब से पहले उसी ने अंजली को ग्राउंड फ्लोर पर पार्किंग के पास पड़ी देखा. उसे लगा कि अंजली सीढि़यों से गिरी होगी. इस के बाद ही वहां लोग एकत्र हुए और अंजली को अस्पताल ले गए.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि इतनी बड़ी घटना आखिर क्यों और कैसे हुई? जाहिर था हत्यारा बाहर से ही आया होगा. सोसायटी के गेट पर सिक्योरिटी गार्ड रहते थे, वहां सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे. पुलिस ने गार्डों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सुबह 6 बजे के थोड़ा बाद कंधे पर बैग लटकाए एक युवक आया था और कुछ मिनट बाद ही वापस चला गया था.

उस की गतिविधियों पर कोई शक नहीं हुआ, इसलिए किसी ने भी उसे नहीं रोका. उस ने गेट के रजिसटर में एंट्री भी की थी. पुलिस ने रजिस्टर चैक किया तो उस में सन्नू के नाम से एंट्री थी. युवक का मोबाइल नंबर भी लिखा था. उस नंबर पर काल की गई तो वह स्विच्ड औफ मिला.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की रिकौर्डिंग देखनी चाही तो पता चला कि मुख्य गेट के कैमरे का फोकस बिगड़ा हुआ था, जिस की वजह से वह युवक आतेजाते उस की जद में नहीं आ पाया था. अच्छी बात यह थी कि पार्किंग साइड का कैमरा सही था.

उस की रिकौडिंग की जांच की गई तो दो पिलर के बीच की रिकौर्डिंग में दिखाई दिया कि युवती बचाव की मुद्रा में भाग रही थी, जबकि हाथ में हथियार लिए वह युवक उस के पीछे दौड़ रहा था.crime story

युवक के कंधे पर बैग था. इस से यह बात साफ हो गई कि यह वही युवक था, जिस का जिक्र गार्ड ने किया था. कैमरे की रिकौर्डिंग से युवक की पहचान साफ नहीं हो पा रही थी.

इस बीच मृतका के घर वाले और नाते रिश्तेदार भी आ गए थे. उन का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने अंजली के शव का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि उस युवक की अंजली से आखिर क्या दुश्मनी रही होगी.

मामला प्रेमप्रसंग का भी लग रहा था, क्योंकि वह युवक अंजली की हत्या के इरादे से ही आया था. अंजली भी अपनी मर्जी से उस से मिलने फ्लैट से नीचे आई थी. पुलिस ने अंजली के घर वालों से पूछताछ की, लेकिन उन से कोई सुराग नहीं मिल सका.

अंजली के मोबाइल की जांच से पता चला कि सुबह उस के मोबाइल पर अश्वनी यादव नाम के किसी युवक की काल आई थी. अश्वनी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चल सका. पुलिस ने गेट रजिस्टर में लिखे मोबाइल नंबर की जांच कराई तो वह अश्वनी के नाम पर ही निकला. पुलिस ने अंजली के पिता तेजपाल सिंह की तहरीर पर अश्वनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बड़ा सवाल यह भी था कि ऐसे कौन से हालात थे कि अश्वनी अंजली का हत्यारा बन गया?

मामला सनसनीखेज भी था और एक इंजीनियर की हत्या का भी. एसएसपी लव कुमार ने अपने अधीनस्थ अफसरों को इस मामले में शीघ्र काररवाई करने के निर्देश दिए. हत्या के खुलासे के लिए एसपी सिटी अरुण कुमार सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया गया. अगले दिन पुलिस ने अश्वनी व अंजली के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उन के बीच बातें होती रहती थीं.

मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से पुलिस को अश्वनी का पता मिल गया. पता दिल्ली का ही था. पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो जानकारी मिली कि वह पता उस के एक जानने वाले का था, जिस पर उस ने सिमकार्ड लिया था. गनीमत यह रही कि वहां से पुलिस को अश्वनी का पता मिल गया.

वह उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के गांव भावलपुर के रहने वाले शैलेंद्र का बेटा था. उस का मोबाइल भले ही बंद था, लेकिन वारदात के समय और उस के आधे घंटे बाद तक उस की लोकेशन घटनास्थल के आसपास ही थी. इस से यह बात पक्के तौर पर साफ हो गई कि अंजली की हत्या उसी ने की थी.

अगले दिन थानाप्रभारी दिलीप कुमार के नेतृत्व में एक टीम इटावा जा पहुंची. अश्वनी के घर वालों से पूछताछ में पता चला कि वह घटना के बाद घर तो आया था, लेकिन थोड़ी देर रुक कर चला गया था. आशंका थी कि अश्वनी अपने किसी नातेरिश्तेदारों के यहां शरण ले सकता है.

पुलिस ने उस के मोबाइल नंबर हासिल कर के सर्विलांस पर लगा दिए. इस से पुलिस को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर अश्वनी के मैनपुरी जिले के गांव अंधियारी में अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपे होने की सूचना मिली. पुलिस टीम वहां गई तो 2 जून को वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

उसे पकड़ कर नोएडा लाया गया. प्राथमिक पूछताछ में ही उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. पुलिस ने उस से विस्तृत पूछताछ की तो एकतरफा प्यार में पड़े एक ऐसे जुनूनी आशिक की कहानी निकल कर सामने आई, जो हर हाल में अंजली को अपना बनाना चाहता था.

दरअसल अंजली और अश्वनी ने पंजाब के जालंधर स्थित लवली यूनिवर्सिटी में एक साथ पढ़ाई की थी. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. अश्वनी ने बीसीए किया था, जबकि अंजली ने बीटेक. सन 2016 में दोनों ने अपना कोर्स पूरा किया. बीटेक करते ही अंजली की नौकरी लावा कंपनी में लग गई.crime story

दूसरी ओर अश्वनी के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. उस के पिता साधारण किसान थे. उन्होंने मुश्किलों से बेटे को पढ़ाया था और उसे अच्छा इंसान बनाना चाहते थे. यह बात अलग थी कि काफी प्रयासों के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दिल्ली के लाजपतनगर में कपड़े के एक शोरूम में काम करना शुरू कर दिया. वह और अंजली फोन पर बातें किया करते थे. अश्वनी उस का अच्छा दोस्त था, लिहाजा वह उसे अच्छी नौकरी के लिए प्रयास करते रहने की सलाह देती थी.

अंजली को उस की फिक्र है, यह बात अश्वनी को गुदगुदाती थी. वह अपने कैरियर से ज्यादा अंजली के बारे में सोचता रहता था. जबकि अंजली अपनी नई नौकरी से खुश थी और मन लगा कर काम कर रही थी. अंजली को इस की खबर भी नहीं थी कि अश्वनी उसे एकतरफा प्यार करता है. हालांकि कई बार बातों और इशारों में उस ने अंजली के सामने जाहिर करने का प्रयास तो किया था, लेकिन वह समझ नहीं सकी. अश्वनी मन की बात खुल कर इसलिए नहीं कह पाता था कि कहीं अंजली नाराज हो कर उस से दूर न हो जाए.

अंजली के कुछ शुभचिंतक छात्रछात्राओं को पता चला कि अश्वनी उसे एकतरफा प्यार करता है तो उन्होंने उसे उस से सावधान रहने को कहा. बहरहाल, समय अपनी गति से चलता रहा. काम की व्यस्तता में अब अंजली की अश्वनी से बातचीत कम होने लगी.

इसी साल जनवरी, 2017 में अश्वनी की नौकरी छूट गई, जिस के बाद वह अपने गांव चला गया. गांव जा कर उस का दिमाग और भी खाली हो गया. उस ने अपने दिल की बात अंजली को बता कर उसे हासिल करने की सोची. उस ने फोन पर अंजली से प्यारभरी बातें कीं तो उस ने उसे समझा दिया, ‘‘अश्विनी, मैं तुम्हें अपना अच्छा दोस्त मानती हूं, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

इस से अश्वनी को झटका लगा. अंजली से उस की बातचीत पहले ही कम हो गई थी. जब किसी इंसान की अपेक्षाओं को चोट पहुंचती है तो कई बार गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं और इंसान बातों का मतलब अपने हिसाब से खोजने लगता है. अश्वनी के साथ भी ऐसा ही हुआ. उसे लगा कि अंजली का नोएडा में किसी युवक से प्रेमप्रसंग चल रहा है, इसलिए अब वह उस से बात नहीं करती. यह सोच कर उस के सिर पर अंजली को पाने का फितूर सवार हो गया. उस के दिल में अंजली के लिए इतना प्यार था कि उस के बिना वह जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था. अंजली के व्यवहार से उसे लगा कि वह अपने नए प्रेमी के चक्कर में उस से दूर हो रही है, इसलिए वह उस प्रेमी को ही रास्ते से हटा देगा.

लेकिन परेशानी यह थी कि वह अंजली के किसी प्रेमी को नहीं जानता था. ऐसी स्थिति में यह जानकारी अंजली ही दे सकती थी. उस ने सोच लिया कि वह नोएडा जा कर अंजली के प्रेमी को तो रास्ते से हटाएगा ही, साथ ही अंजली के सामने भी अपने प्यार का खुल कर इजहार करेगा.

अश्वनी के ही गांव का उस का एक दोस्त था विपुल. उस ने विपुल को सारी बातें बताईं तो वह दोस्ती की खातिर उस का साथ देने को तैयार हो गया. विपुल ने आपराधिक किस्म के एक व्यक्ति कोरा से संपर्क कर के एक सप्ताह के लिए 3 हजार रुपए में किराए पर .32 बोर की पिस्टल ले ली. उस ने अंजली को भी फोन कर दिया कि वह उस से मिलने के लिए आएगा.

30 मई को वह अपने दोस्त के साथ नोएडा पहुंच गया. उस ने अंजली को फोन किया और उस से मिलने की जिद की तो औफिस टाइम के बाद उस ने उसे सोसाइटी में आ कर मिलने को कहा. करीब 8 बजे वह सोसाइटी में उस से मिलने आ गया. दोनों के बीच काफी देर तक बातें हुईं.

अश्वनी ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं अंजली. यही बात तुम्हें समझाना चाहता हूं, लेकिन तुम समझने को तैयार नहीं हो.’’

बदले में अंजली ने हलके गुस्से का इजहार किया, ‘‘क्योंकि तुम ऐसी बात समझाना चाहते हो, जो मैं समझना नहीं चाहती. मेरे सामने कैरियर है अश्वनी. तुम्हें भी इन बातों को छोड़ कर अपना ध्यान अपने कैरियर पर लगाना चाहिए.’’crime story

‘‘दिल को समझाना इतना आसान होता तो मैं कब का संभल गया होता, लेकिन मेरे लिए यह मुमकिन नहीं है. मैं ने दिल से तुम्हें चाहा है.’’ गंभीरता से कही गई उस की बातें सुन कर अंजली हैरान रह गई.

‘‘मैं तुम्हें किस तरह समझाऊं अश्वनी? प्लीज, ऐसी बातों को भूल जाओ. तुम ऐसे ही रहे तो मैं तुम से दोस्ती भी नहीं रख पाऊंगी.’’

अश्वनी को अंजली की एकएक बात कांटे की तरह चुभ रही थी. मन ही मन उस ने जो ढेरों ख्वाब सजाए थे, वे कांच की तरह टूट रहे थे. उसे पक्का यकीन हो गया था कि अंजली जरूर किसी के प्यार में पड़ी है.

‘‘अच्छा, मैं तुम्हें एक रात और सोचने का मौका देता हूं. अच्छी तरह सोच कर सुबह जवाब दे देना, साथ ही अपने जवाब से पहले मुझे उस लड़के का नाम भी बता देना, जिस से तुम प्यार करती हो.’’

अंजली को चूंकि इस मुद्दे पर कुछ सोचना ही नहीं था, इसलिए उस ने पीछा छुड़ाने के लिए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अब जाओ.’’  इस के बाद वह चला गया.

रात उस ने एक गेस्टहाउस में करवटें बदल कर बिताईं. उस की जिंदगी का एक ही उद्देश्य था अंजली को प्यार के लिए तैयार करना और उस के साथ दुनिया बसाना. दिन निकलते ही 6 बज कर 5 मिनट पर उस ने अंजली को फोन मिला कर कहा, ‘‘मैं आ रहा हूं अंजली.’’

‘‘क्या करोगे आ कर. मैं निर्णय ले चुकी हूं.’’

‘‘क्या?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा तो अंजली ने बेरुखी से जवाब दिया, ‘‘यही कि तुम्हें अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए. एक और बात, मैं तुम से दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

कहने के साथ ही अंजली ने फोन काट दिया तो अश्वनी तड़प उठा. फिर भी उस ने सोसायटी जाने की ठान ली. वह खतरनाक इरादा बना चुका था कि अंजली से आखिरी बार बात जरूर करेगा और अगर उस ने अब भी इनकार किया तो वह उसे गोली मार कर खुद को भी खत्म कर लेगा.

इसी इरादे के साथ वह शताब्दी रेलविहार सोसायटी पहुंच गया. उस का दोस्त विपुल बाहर ही खड़ा रहा. सोसायटी के गेट पर एंट्री रजिस्टर में उस ने सन्नू नाम से एंट्री की और अंदर चला गया. यह उस के घर का नाम था. उस ने अंजली को फोन कर के आखिरी बार नीचे आ कर मिलने को कहा. वह नीचे आ गई. दोनों पार्किंग में सीढि़यों के पास खड़े हो गए.

‘‘तुम किसी और से प्यार करती हो अंजली? मुझे अपने उस प्रेमी का नाम बता दो. मैं उसे खत्म कर दूंगा, ताकि तुम मेरी हो सको.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है अश्वनी. प्लीज, तुम जाओ. और हां, आइंदा मुझे परेशान करने की कोशिश मत करना.’’

अंजली की बात सुन कर अश्वनी बुरी तरह हताश हो गया. उस की हालत हारे हुए जुआरी जैसी हो गई.

‘‘नहीं, मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं. उस का नाम बता दो और मेरा दिल मत तोड़ो.’’ उस ने कठोर लहजे में जिद की तो अंजली ने भी वैसा ही रुख अपनाया, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम. मुझे कोई बात नहीं करनी.’’

यह सुनते ही अश्वनी गुस्से में बोला, ‘‘बात तो तुम्हें करनी होगी.’’ गुस्से से तिलमिलाते हुए उस ने बैग से पिस्टल निकाल कर अंजली पर तान दी, ‘‘आज मैं तुम्हारा किस्सा ही खत्म कर दूंगा. तुम मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं हो सकती.’’

उस के खतरनाक इरादे भांप कर अंजली के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह जल्दी में बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो अश्वनी?’’

‘‘हां, मैं पागल हो गया हूं.’’

स्थिति ऐसी बन गई थी कि एकाएक अंजली की समझ में कुछ नहीं आया. कुछ नहीं सूझा तो वह मुड़ कर तेजी से भागी और एक पिलर की आड़ में छिपने की कोशिश करने लगी. अश्वनी भी उस के पीछे दौड़ा और उस के सिर को टारगेट बना कर उस पर गोली चला दी. गोली लगते ही अंजली गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद अश्वनी ने खुद की कनपटी पर पिस्टल तान कर ट्रिगर दबाया, लेकिन गोली नहीं चली. इस पर पिस्टल बैग में रख कर वह वहां से निकल गया.

रास्ते में उस ने सैक्टर-62 स्थित बी ब्लाक की झाडि़यों में पिस्टल फेंक दी. अपना मोबाइल भी उस ने स्विच्ड औफ कर दिया. वह और उस का दोस्त वहां से औटो पकड़ कर सीधे आनंद विहार बसअड्डे पहुंचे और बस से गांव चले गए.

अश्वनी को पता था कि पुलिस उस की तलाश जरूर करेगी, इसलिए वह अपने रिश्तेदारों के यहां छिप कर घूमता रहा. घर वालों से वह दूसरे नंबरों से बात करता था. आखिर वह पुलिस की पकड़ में आ ही गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर 2 कारतूस सहित हत्या में प्रयुक्त .32 बोर की पिस्टल बरामद कर ली.

3 जून को पुलिस अधिकारियों ने प्रेसवार्ता कर के पत्रकारों को उस की करतूत बताई और उसी दिन उसे माननीय न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

अश्वनी की जिद व जुनून ने दोस्ती के रिश्ते को भयानक अंजाम पर पहुंचा दिया. 2 लोगों के बीच दोस्ती हो जाना कोई बात नहीं, लेकिन अश्वनी की उग्र प्रवृत्ति ने अंजली को असमय मौत दे कर उस के परिवार को तो गम दिया ही, साथ ही उस ने उस के खून से हाथ रंग कर अपना भविष्य भी चौपट कर लिया. अश्वनी ने हसरतों को लगाम दे कर विवेक से काम लिया होता या अंजली उस के सनकी मिजाज को भांप गई होती तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.

कथा लिखे जाने तक अश्वनी की जमानत नहीं हो सकी थी. अश्वनी का दोस्त विपुल फरार है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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