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मेरी ऐक्स रे रिपोर्ट में पेशाब की थैली में 5-6 एमएम का स्टोन दिखा है. मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल
मेरी ऐक्स रे रिपोर्ट में पेशाब की थैली में 5-6 एमएम का स्टोन दिखा है, लेकिन किडनी के ऐक्स रे में स्टोन के चिह्न नहीं हैं. बड़ी आंत में कुछ टेढ़ापन हो गया है, जिस से मेरा पाचन गड़बड़ा गया है. कभीकभी मुझे पेट के दाहिनी ओर दर्द होता है. कई दवाएं लीं, लेकिन अभी भी निश्चित नहीं है कि स्टोन निकल गया है या नहीं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
अगर आप का स्टोन मूत्रथैली और मूत्रनली के संधिस्थल पर है तो यह स्वत: निकल जाएगा. दिन में भरपूर पानी पीएं. हर घंटे बाद कम से कम 1 गिलास. भोजन करने के 2 घंटे बाद 1 गिलास पानी में सिट्रोसोडा घोल कर रोजाना 3 बार पीएं. कुछ स्टोन ऐक्स रे में दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए 2 सप्ताह के बाद अल्ट्रासाउंड करा लें. अगर उस में अभी भी स्टोन दिखाई देता है तो मैं कुछ और दवाएं बताऊंगी.

मैं 12वीं में पढ़ता हूं. मेरी चचेरी बहन मुझ से संबंध बनाना चाहती है और मौका पाने पर मुझे चूम लेती है. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 12वीं जमात में पढ़ता हूं. मेरी चचेरी बहन मुझ से संबंध बनाना चाहती है और मौका पाने पर मुझे चूम लेती है. मैं क्या करूं?

जवाब
आप उसे समझा दें कि भाई होने के नाते आप ऐसा नहीं कर सकते हैं. आप उसे अकेले में मिलने का बिलकुल मौका न दें. धीरेधीरे वह समझ जाएगी कि उस का इरादा गलत था.

कानून, कैदी और पुलिस के बीच इस अंतर को समझिए

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का मानना है कि देश में बहुत से कैदी अज्ञानता के कारण जेल काट रहे हैं जबकि लंबित मामले होने के बावजूद उन्हें जमानत मिल सकती थी. यदि कोई विचाराधीन कैदी अपनी अधिकतम सजा का आधा समय अदालती कार्यवाही के दौरान जेल में काट चुका हो तो उसे जमानत मिलने का प्रावधान है. पर इस बात के लिए जानकारी होना और फिर अदालत से आदेश लेने के लिए वकील करना हरेक कैदी के लिए संभव नहीं होता और वे जेल में सड़ते रहते हैं.

मुख्य न्यायाधीश ने इस गुनाह की जिम्मेदारी कैदी पर डाल दी जबकि दोष तो पुलिस अधिकारियों का है जो अदालत में कैदी के खिलाफ मुकदमा चला रहे हैं. यह उन्हें ही मालूम होता है कि अभियुक्त को किस धारा में पकड़ा गया है और कब उस धारा के अंतर्गत अधिकतम सजा का आधा समय बीत गया है. तो, यह उन का काम है कि वे अदालत को बताएं कि अब कैदी को जेल में रखने की आवश्यकता नहीं है.

नागरिक अधिकारों के प्रति पुलिस, अदालतों और सरकार का रवैया असल में आज भी 18वीं सदी का सा है जब एक बार जेल में जाने का अर्थ, वहीं मरना होता था. यदि नागरिक खुद अपनी रक्षा के उपाय न करें तो आज भी उन का वही हाल रहेगा.

लोकतांत्रिक संवैधानिक सरकार होने का अर्थ ही यह है कि पुलिस हर वह काम करे जो कानून ने उस से करने को कहा है और अपने अधिकारों का उतना ही उपयोग करे जितना कि कानून उसे इजाजत देता है. यदि वह कानून के बाहर जाती है तो आम नागरिक की तरह वह भी गुनाहगार है और उसे उसी तरह की सजा मिले जैसी आम नागरिक को मिलती है, यानी जेल में कैद.

अगर मुख्य न्यायाधीश अपनी बात के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें पुलिस अफसरों को चेतावनी देनी चाहिए कि यदि ऐसे मामले में कैदी को खुदबखुद न छोड़ा गया तो जिम्मेदार पुलिस वालों के खिलाफ मुकदमा किया जा सकता है. पर, ऐसा होगा नहीं. सरकारें, दरअसल, इस संकल्प पर चलती हैं कि ‘किंग कैन डू नो रौंग’ अर्थात सरकार तो गलत हो ही नहीं सकती. भई, तभी तो सरकार बनाने में इतनी मारामारी होती है.

औटो ड्राइवर के बेटे को मिला भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का मौका

मोहम्मद सिराज को जिस दिन आईपीएल नीलामी में सनराइजर्स हैदराबाद ने दो करोड़ 60 लाख रुपये में खरीदा तो उनका केवल एक सपना था कि वह अपने पिता मोहम्मद गौस को आगे कभी आटो रिक्शा नहीं चलाने देंगे और उन्होंने अपना वादा निभाया. अब इस 23 वर्षीय तेज गेंदबाज को पहली बार भारतीय टीम में चुना गया है.

उन्हें न्यूजीलैंड के खिलाफ टी20 श्रृंखला के लिए टीम में रखा गया है और स्वाभाविक है कि वह इससे काफी खुश हैं. सिराज ने पीटीआई से कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि 23 साल की उम्र में मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता हूं. जिस दिन मुझे आईपीएल का अनुबंध मिला था उस दिन मैंने अपने पापा से कहा था कि अब उन्हें काम करने की जरूरत नहीं है. उस दिन से मैंने पापा को बोला कि आप अभी आराम करो. और हां मैं अपने परिवार को नए घर में भी ले आया हूं.’’

इस तेज गेंदबाज ने भारत ए की तरफ से अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन उन्हें इतनी जल्दी भारतीय टीम में चयन की उम्मीद नहीं थी. कर्नाटक के खिलाफ रणजी ट्राफी मैच की तैयारी कर रहे सिराज ने कहा, ‘‘मैं जानता था कि भविष्य में मुझे टीम में चुना जाएगा लेकिन इतनी जल्दी चयन होने की मैंने उम्मीद नहीं की थी. मैं आपको बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूं. जब मैंने अपनी मां और पिताजी को बताया तो उनके पास खुशी व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे. यह सपना सच होने जैसा है.’’

सिराज को भले ही आईपीएल से पहचान मिली लेकिन उनका मानना है कि हैदराबाद की तरफ से 2016-17 सत्र के दौरान रणजी ट्राफी में अच्छा प्रदर्शन करने के कारण उन्हें सफलताएं मिली हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं आज जो कुछ भी हूं, वह रणजी ट्राफी प्रदर्शन के कारण हूं. पिछले सत्र में मैंने 40 के करीब विकेट लिए जिससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा. इसके बाद मुझे शेष भारत की टीम में चुना गया और रणजी ट्राफी के कारण मुझे आईपीएल का अनुबंध मिला. इसलिए इस चयन का 60 प्रतिशत श्रेय प्रथम श्रेणी क्रिकेट के प्रदर्शन को जाता है.’’

पहली कमाई थी 500 रुपए

मोहम्मद सिराज की क्रिकेट से पहली कमाई 500 रुपए थे. IPL औक्शन के वक्त इसका खुलासा करते हुए उन्होंने कहा था, ‘मेरी क्रिकेट से पहली कमाई 500 रु. थी. मैं एक क्लब मैच खेल रहा था और मेरे मामा टीम के कप्तान थे. मैंने 25 ओवर के उस मैच में 20 रन देकर 9 विकेट चटकाए थे. मेरे प्रदर्शन से मामा बहुत खुश हुए और मुझे इनाम के तौर पर 500 रुपए दिए थे.’

‘वसुंधरा राजे के अहंकार की पराकाष्ठा है नया अध्यादेश’

आम आदमी पार्टी के नेता और राजस्थान राज्य के प्रभारी कुमार विश्वास ने एक बार फिर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे पर तीखा निशाना साधा है. राजस्थान सरकार के किसी भी नेता या कर्मचारी को कानूनी प्रक्रिया के दायरे से बाहर रखने वाले अध्यादेश पर बोलते हुए विश्वास ने कहा कि यह महारानी वसुन्धरा के निजी अहंकार की पराकाष्ठा है. इस कानून की तुलना अंग्रेजों के निर्मम कानूनों और उत्तर कोरिया के सुप्रीमो किम जोंग उन के बनाए कानूनों से करते हुए विश्वास ने कहा कि वसुन्धरा शायद भूल गई हैं कि अब राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है.

वसुन्धरा को लोकतंत्र की मशीन का पुर्ज़ा बताते हुए विश्वास ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री जी जल्द से जल्द इस अधिसूचना को वापस नहीं लेतीं, तो आम आदमी पार्टी राज्य भर में आंदोलन करेगी और चुनावों के समय से पहले ही वर्तमान सरकार गिरा देगी. विश्वास ने इस अध्यादेश के विरोध में बोलने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी का नाम भी लिया. उन्होंने कहा कि वसुन्धरा अपने अहंकार के आगे किसी की नहीं सुनती जिसकी वजह से उनकी अपनी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं.

विश्वास ने यह भी कहा कि राज्य का किसान गड्ढों में करवा चौथ और दीपावली मनाने के लिए मजबूर है और सरकार चुप बैठी है. इस कानून को लोकतंत्र के ख़िलाफ बताते हुए विश्वास ने कहा कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. राजस्थान चुनाव आते आते क्या तस्वीर बनती है यह तो समय बताएगा लेकिन विश्वास के लगातार हमलों में राजस्थान भाजपा के शिविर में बेचैनी बढ़ती साफ नजर आ रही है.

राजस्थान में नया कानून : जजों-अधिकारियों पर आरोप लगने के 6 महीने बाद ही मीडिया पूछ सकेगी सवाल

प्रस्तावित बिल के मुताबिक ड्यूटी के दौरान राज्य के किसी भी कार्यरत जज, मजिस्ट्रेट या सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कोई भी शिकायत सरकार की इजाजत के बगैर दर्ज नहीं की जा सकेगी. यानी इनके खिलाफ कोर्ट में या पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं की जा सकेगी. अगर कोई व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज कराता है तो पहले सरकार से उसकी मंजूरी लेनी होगी. अध्यादेश में प्रावधान है कि सरकार 180 दिनों के अंदर मामले की छानबीन करने के बाद मंजूरी देगी या उसे खारिज करेगी. अगर 180 दिनों में ऐसा नहीं करती है तो माना जाएगा कि सरकार ने जांच की मंजूरी दे दी है.

अध्यादेश का स्थान लेने जा रहे नए कानून के मुताबिक मीडिया भी 6 महीने तक किसी भी आरोपी के खिलाफ न तो कुछ दिखाएगी और न ही छापेगी, जब तक कि सरकारी एजेंसी उन आरोपों के मामले में जांच की मंजूरी न दे दे. इसका उल्लंघन करने पर दो साल की सजा हो सकती है. 6 सितंबर को जारी अध्यादेश आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 को बदलने के लिए  सरकार राजस्थान विधान सभा में आपराधिक प्रक्रिया (राजस्थान संशोधन) विधेयक लाएगी. इस अध्यादेश के जरिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में धारा 156 (3) और 190 (1) को जोड़ा गया है जो एक मजिस्ट्रेट को अपराध का संज्ञान लेने और एक जांच का आदेश देने के लिए सशक्त बनाता है.

मीडिया ने जब इस कानून के बारे में राज्य के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया से पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. हालांकि, वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री राजेंद्र राठौर ने कहा, “कुछ लोगों ने एक ‘गिरोह’ का गठन किया है और सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ ठोस 156 (सीआरपीसी) का इस्तेमाल किया है. इसलिए हमने यह कदम उठाया है.” मीडिया रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित करने वाले सवाल पर  राठौर ने कहा कि मीडिया द्वारा अधिकारियों पर लगे आरोपों के बारे में लिखना शुरू होने पर अफसर की छवि को झटका लगता है.  उधर, कांग्रेस ने इसका विरोध किया है. कांग्रेस नेता गोविंद सिंह दोस्तारा ने कहा कि सरकार मीडिया के अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है.

नीली आंखों के गहरे रहस्य (पहली किस्त)

नीली आंखें मैं ने फिल्मों में नायक और नायिकाओं की देखी थीं. वास्तविक जीवन में पहली बार उस की नीली आंखें देखीं जब वह बैंक में मुझे पहली बार मिली थी.

‘‘सर, मैं ब्यूटीपार्लर खोलना चाहती हूं, आप के बैंक से लोन चाहिए.’’ अपने केबिन में बैठा, मैं एक जरूरी फाइल देख रहा था. यह स्वर सुन कर मैं ने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो उस 24-25 वर्षीया युवती को देख कर ठगा सा रह गया. टाइट जींस, चुस्त टौप, खुले लहराते बाल, देखने में अति सुंदर, साथ ही, उस की नीली आंखें जिन में न जाने कैसी कशिश और सम्मोहन था कि मैं उन के गहरे समंदर में गोते लगाने लगा.

‘‘सर,’’ उस ने कुछ जोर दे कर लेकिन कोमल स्वर में कहा तो मैं सचेत हो गया, ‘‘हां, कहिए, कैसे?’’

‘‘जी, मेरा नाम मीठी है. मैं ब्यूटीपार्लर खोलना चाहती हूं, आप के बैंक से लोन चाहिए.’’

‘‘कितना लोन चाहिए?’’

‘‘5 लाख रुपए. इस के लिए मुझे क्या औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी,’’ बहुत ही गंभीर और सधे स्वर में उस ने पूछा.

‘‘इस के लिए आप को अपनी किसी प्रौपर्टी के कागजात देने होंगे. एक गारंटर की भी जरूरत पड़ेगी. और हां, वह प्रौपर्टी मुझे देखनी भी पड़ेगी तभी उस के आधार पर कार्यवाही आगे बढ़ेगी.’’

‘‘ठीक है सर, हमारा घर है जो कि मां के नाम है. ऊपरी हिस्से में हम रहते हैं. नीचे के हिस्से में ब्यूटीपार्लर खोलने की सोची है. आप जब चाहें हमारा घर देख सकते हैं,’’ उस ने उत्साहित स्वर में कहा, ‘‘तो सर, आप कब आ रहे हैं हमारा घर देखने?’’

उस का उत्साह, खुशी, लगन, रूपसौंदर्य और नीली आंखें देख कर मन में आया कह दूं कि आज शाम को ही, लेकिन मेरी छठी इंद्रिय ने मुझे सचेत किया कि मैं एक बैंक मैनेजर हूं और मुझे बैंक संबंधी, खासतौर से लोन संबंधी, मामलों में बहुत सूझबूझ, चतुराई, सतर्कता व दूरदर्शिता से काम लेना होगा क्योंकि आजकल बहुत फ्रौड हो रहे हैं.

बैंक में कोई भी जालसाजी या धोखाधड़ी होती है तो पहले बैंक मैनेजर पर ही शक की सूई ठहरती है चाहे उस का कुसूर हो या न हो. इसलिए हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता है. यह लड़की अपने यौवन और सौंदर्य के जाल में उलझा कर कहीं मुझ से कोई ऐसा गलत काम न करवा दे कि मैं फंस जाऊं.

‘‘सर, क्या सोचने लगे आप?’’ उस ने मुझे टोका तो मैं अपनी विचारयात्रा को विराम दे कर बोला, ‘‘देखिए, अभी 2-4 दिन मेरे पास वक्त नहीं है, काम ज्यादा है. आप अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए, जिस दिन भी फ्री होऊंगा, आप को फोन पर बता दूंगा.’’

‘‘थैंक्यू सर,’’ कहते हुए उस ने अपना मोबाइल नंबर बता दिया और मैं ने शरारत से उस का नंबर अपने मोबाइल में ‘ब्लू आइज’ नाम से सेव कर लिया.

उस के जाते ही मैं फिर से उस की नीली आंखों की गहराई में उतर गया. अपने से आधी उम्र की लड़की के बारे में सोचना मुझे गलत तो लग रहा था, मेरी बेटी भी लगभग उसी की उम्र की थी, लेकिन पता नहीं क्यों उस की नीली आंखों ने मुझ पर क्या जादू कर दिया था कि मेरा मन उस की तरफ बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ा ही जा रहा था और मैं, बेबस व असहाय सा हो गया था.

शाम को घर पहुंचते ही पत्नी चाय बनाने लगी और मैं मुंहहाथ धोने लगा. गरमागरम चाय का कप पकड़ाते हुए वह बोली, ‘‘सुनो, अब खुशी के लिए लड़के देखने शुरू कर दो. पूरे 25 वर्ष की हो गई है. उस का एमबीए भी कंपलीट हो गया है. जौब जब मिलेगी तब मिलती रहेगी लेकिन हमें तो लड़के देखने शुरू कर देने चाहिए.’’

यह सुन कर मुझे लगा कि मैं बूढ़ा हो गया हूं. खुशी की शादी होगी, फिर मैं नाना भी बन जाऊंगा. साथ ही, सोच रहा हूं उस नीली आंखों वाली लड़की के बारे में. मुझे अपने पर शर्म आई.

‘‘पापा, आप कब आए बैंक से?’’ मेरी बेटी ने पूछा.

‘‘बस बेटा, अभी थोड़ी देर पहले.’’ जैसे ही मैं ने उसे बेटा कहा तो उस नीली आंखों वाली की तसवीर मेरे सामने आ गई. अपने मन को हर तरह से काबू किया लेकिन रात को न चाहते हुए भी उंगलियां मोबाइल स्क्रीन पर पहुंच गईं और ‘ब्लू आइज’ पर उंगली का हौले से दबाव पड़ गया.

‘‘हैलो कौन?’’ इतनी जल्दी फोन उठा लेगी, यह तो मैं ने सोचा भी न था, संभलते हुए बोला, ‘‘मीठीजी, मैं बैंक मैनेजर आनंद बोल रहा हूं. असल में, मैं कल शाम को फ्री हूं, अगर आप चाहें तो अपना घर दिखा सकती हैं.’’

‘‘जरूर सर?’’ वह चहक कर बोली, ‘‘यह तो बहुत अच्छा है. मैं तो खुद चाहती हूं कि जल्दी से जल्दी मेरा लोन पास हो जाए और मेरा ब्यूटीपार्लर खोलने का सपना पूरा हो जाए.’’

‘‘तो ठीक है. आप कल शाम को 5 बजे बैंक आ जाना, मैं आप के साथ चलूंगा.’’

‘‘किस के साथ चलोगे और कहां चलोगे?’’ पत्नी ने पूछा.

उस का इस तरह पूछना, मुझे लगा जैसे उस ने किसी शुभ काम में टोक लगा दी है. सो, झुंझला कर बोला, ‘‘कल बैंक के बाद एक पार्टी के साथ विजिट के लिए जाना है. कहीं मौजमस्ती के लिए नहीं जा रहा.’’

‘‘आप तो बेवजह नाराज हो गए. और हां, अकेले मत जाना, साथ में किसी सहकर्मी को ले जाना. जमाना ठीक नहीं है. एक से भले दो रहते हैं,’’ वह मुझे एक बच्चे की तरह समझाती हुई बोली.

उस की इस नसीहत से मेरा पारा और चढ़ गया, ‘‘हद करती हो तुम? बैंक मैनेजर हूं. अनुभव है मुझे. पहचान है आदमी की, कौन भला है कौन बुरा? और, मेरी किसी से रंजिश या दुश्मनी थोड़ी है जो कोई मुझे नुकसान पहुंचाएगा.’’

‘‘आप को कुछ बताना और राय देना बेकार है. आप तो अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित, ईमानदार बैंक मैनेजर हो. आप जिस संस्था का नमक खाते हो उस के साथ गद्दारी नहीं कर सकते. यह सिर्फ मैं ही जानती हूं लेकिन कोई बाहर वाला नहीं. किसी केस में आप ने नानुकुर की या अपनी असंतुष्टता व असहमति दर्शायी तो सामने वाला आप को प्रलोभन देगा ही और आप पूरी कठोरता से उस निम्न प्रस्ताव को अस्वीकार करोगे. ऐसे में वह आप की इस बात व व्यवहार से चिढ़ जाए व आप को अपना दुश्मन मान ले तब…यही सोच कर डर लगता है और फिर, घर में जवान बेटी है, तो यह डर और सताने लगता है. अब आप ही बताओ, क्या मैं गलत कह रही हूं?’’

‘‘साधना, रिलैक्स यार. मैं बैंक की नौकरी 30 वर्षों से कर रहा हूं. कभी झंझटों या गलत कामों में नहीं फंसा क्योंकि मैं अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले हर काम को पूरी स्पष्टता, सत्यता, पारदर्शिता और ईमानदारी से करता हूं और अपने सामने वाले को पहली मुलाकात में ही अपने व्यवहार, स्वभाव व कार्यशैली से यह दर्शा देता हूं कि मैं गलत नीति और गलत आचरण वाला व्यक्ति नहीं हूं. इज्जत से नौकरी की है, रिटायरमैंट भी पूरे सम्मान के साथ लूंगा.’’

‘‘बस, आप की इसी गांधीवादी विचारधारा पर तो फिदा हूं मैं,’’ कहती हुई वह शरारत से लिपट गई.

जल्दी ही वह गहरी नींद की आगोश में समा गई लेकिन आज नींद मुझ से कोसों दूर थी या यों कहिए नींद मुझ से रूठ कर रात्रिजागरण करवाने पर तुली थी.

शायद, साधना सही कहती है. औरतों की बातें, सलाह पुरुषों को हमेशा गलत लगती हैं. हालांकि ऐसा नहीं है. वे भी सही होती हैं. साधना का डर जायज है. आजकल लोग छोटी सी बात पर ही रंजिश पैदा कर लेते हैं. माना कि मैं बहुत होशियार व समझदार हूं लेकिन फिर भी मुझे और ज्यादा चौकन्ना रहना होगा.

सुबह आंख देर से खुली. साधना ने नाश्ता तैयार कर दिया था और लंच की तैयारी में जुटी थी. फ्रैश हो कर आया तो मोबाइल घनघना उठा. स्क्रीन पर ‘ब्लू आइज’ देख कर मन सुहावने मौसम की तरह मदमस्त हो गया.

‘‘हैलो सर, मैं मीठी बोल रही हूं. आज शाम को आप मेरे घर आ रहे हैं न. तो प्लीज सर, डिनर मेरे यहां ही कीजिए. मेरी नानी कहती थीं कि मैं खीर बहुत स्वादिष्ठ बनाती हूं, इसलिए प्लीज…’’

निवेदनभरे मीठे स्वर में उस का आग्रह न ठुकरा सका मैं.

‘‘ठीक है, मैं डिनर आप के यहां ही कर लूंगा.’’

‘‘कहां डिनर कर लेंगे आप?’’ कहते हुए साधना ने कौफी का मग मेरे सामने बढ़ा दिया.

जब भी कोई अच्छी शुरुआत करने की सोचो, यह जरूरी बीच में आ टपकती है. औरत है या बिन मौसम बरसात, मन ही मन कुढ़ गया मैं क्योंकि मैं नीली आंखों वाली के साथ डिनर और खीर का आनंद लेने की सोच रहा था.

‘‘क्या सोचने लगे? और मेरी बात का जवाब भी नहीं दिया.’’

‘‘सोच रहा हूं आज शाम मुंबई के लिए उड़ जाऊं और वहां किसी नीली आंखों वाली हीरोइन के साथ डिनर करूं,’’ अपनी खीझ और कुढ़न को हास्यपरिहास से पेश कर दिया.

यह सुन कर वह खुल कर हंस पड़ी, ‘‘इस उम्र में कोई भूरी, काली, पीली, हरी और नीली आंखों वाली घास भी न डालेगी आप को, डिनर तो बहुत दूर की बात है.’’ उस ने भी मेरी तरह व्यंग्य से जवाब दिया.

‘‘छोड़ो भी यह हंसीमजाक. मैं आज डिनर बाहर ही करूंगा. एक पार्टी के साथ, उस के घर पर ही. बहुत आग्रह किया उस ने, इसलिए मना न कर सका,’’ अपना टिफिन हाथ में लेते हुए बड़ी सफाई से झूठ बोला मैं.

‘‘यह पार्टी जानकारी की है या अपरिचित?’’ उस ने फिर जासूसी की.

‘‘बस, एक बार बैंक में लोन के सिलसिले में मुलाकात हुई है,’’ इस बार सच बोला.

‘‘तो आप उन के यहां डिनर मत करो. जब तक जानपहचान गहरी न हो तो किसी के यहां डिनर पर नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं जाना चाहिए?’’ मैं ने चिढ़ कर पूछा.

‘‘जमाना ठीक नहीं है. अपना काम निकलवाने के लिए सामने वाला आप के खाने में कुछ ऐसावैसा मिला दे और आप को अपने वश में कर के कुछ आप से गलत काम करा बैठे तो?’’ उस ने चिंता व्यक्त की.

अब मेरा क्रोध सातवें आसमान पर था, ‘‘जमाना तो ठीक है लेकिन तुम मानसिक रूप से ठीक नहीं हो. तभी तो ऐसे वाहियात विचार तुम्हारे मन में आते रहते हैं. खाने में कुछ मिला कर वश में करने की बात तुम्हें बताई किस ने? इतनी पढ़ीलिखी होने के बावजूद यह अंधविश्वास? मेरी तो समझ से परे है. अगर खिलानेपिलाने से वश में करने के नुसखे कामयाब होते तो आज हर सास अपनी बहू की गुलाम होती, पति अपनी पत्नी का सेवक और हर बौस अपने मातहतों के हाथों की कठपुतली बन जाता.

‘‘साधना, अपने दिमाग का इस्तेमाल करो, ये सब पाखंडी बाबाओं और मौलवियों के पैसा कमाने के साधन हैं. वे अपनी दुकानें चलाने के लिए अपने एजेंटों को ग्राहक फंसाने का काम सौंपते हैं. सब का अपनाअपना कमीशन होता है. अपने दिमाग का न इस्तेमाल करने वाली जनता से ही इन का खुराफाती बिजनैस फलफूल रहा है.’’

क्रोध और झुंझलाहट से बड़बड़ाता हुआ मैं बाहर आ गया और स्कूटी स्टार्ट कर के बैंक के लिए चल पड़ा.

साधना की बेतुकी बातों से मूड चौपट हो चुका था. बैंक में घुसते ही केबिन में रखा लैंडलाइन फोन बज उठा. जोनल औफिस से आने वाला बैंक में इस समय का नियमित फोन था. मैं ने ‘‘हैलो, गुडमौर्निंग सर’’ कहा और उधर से भी हैलो हुई, थोड़ी औपचारिक बातें हुईं और मेरी बैंक उपस्थिति दर्ज हो गई.

मैं अपने कार्य में लग गया. तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर ब्लू आइज देख कर लगा, अब मूड औन हो जाएगा.

‘‘सर…’’

‘‘आज शाम को तुम्हारे घर चलूंगा और डिनर भी करूंगा,’’ उस की पूरी बात सुने बिना मैं बोल पड़ा.

‘‘लेकिन सर, आज…’’

उस के घबराए स्वर को भांप कर मैं ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘सर, आज सुबह ही मम्मी को हार्टअटैक आया है. वे अस्पताल में भरती हैं,’’ कहती हुई वह लगभग रो पड़ी.

‘‘कौन से अस्पताल में हैं?’’ लेकिन उस के जवाब देने से पहले ही फोन कट गया. मेरे मिलाने पर वह उठा नहीं रही थी. शायद, अस्पताल में परेशान और व्यस्त होगी, यह सोच कर मैं ने फिर फोन नहीं किया.

शाम को भी उस का मोबाइल स्विच औफ था. 2 दिनों से उसे लगातार फोन करता रहा लेकिन उस का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.

तीसरे दिन रविवार को उस का फोन आया. मन आशंकित हो उठा, न जाने कैसी खबर हो?

‘‘सर…’’

‘‘कमाल हो तुम भी, मैं लगातार 2 दिनों से तुम्हें फोन कर रहा हूं और तुम्हारा मोबाइल स्विच औफ जा रहा है,’’ मैं ने लगभग डांटते हुए, अधिकारपूर्वक उस से कहा लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे आत्मग्लानि हुई कि मैं ने उस की मां की तबीयत के विषय में नहीं पूछा. धीरे से बोला, ‘‘सौरी मीठी, अब तुम्हारी मां की तबीयत कैसी है?’’

‘‘मम्मी ठीक नहीं हैं, सर. अस्पताल में दौड़धूप व उन की देखभाल में इतनी व्यस्त रही कि मोबाइल चार्ज करना ही भूल गई. और हमारा अपना है ही कौन जो मेरे फोन पर मेरी मम्मी का हाल पूछता. इस शहर में थोड़े समय पहले ही तो शिफ्ट हुई हैं हम मांबेटी.’’

‘‘क्या? तुम लोग अभी थोड़े वक्त पहले ही शिफ्ट हुई हो इस शहर में? और इतनी जल्दी खुद का मकान भी ले लिया जिस के आधार पर तुम बैंक से लोन लेना चाहती हो?’’ ऐसे नाजुक मौके पर भी मैं ने अपना बैंक वाला दिमाग दौड़ा लिया. मन में सोचा, मुझे बेवकूफ समझ रही है कल की लड़की. सोच रही है अपने नाम की तरह ही मीठी बातों में फंसा कर मुझ से लोन पास करवा लेगी.

‘‘सर, बात थोड़ी गंभीर है. फोन पर नहीं बता सकती. मुझे आप की मदद की सख्त जरूरत है. अगर आप मेरे घर आएंगे तो मेरी मम्मी से भी मिल लेंगे और मैं आप को अपनी बात खुल कर बता सकूंगी. मैं अपने घर का पता आप को अभी एसएमएस करती हूं.’’

जल्दी ही उस के पते का एसएमएस भी आ गया. उस का घर मेरे घर से काफी दूर था. एक बार को लगा, कहीं यह नीली आंखों वाली अपनी मां के साथ मिल कर मेरे खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रच रही? नहीं, मैं नहीं जाऊंगा, आखिर मेरी उस से पहचान ही कितनी है? फिर अंदर से आवाज आई, इंसानियत के नाते बीमार को देखने जाना चाहिए. शायद वास्तव में उसे मेरी मदद की जरूरत हो? साधना को भी साथ ले जाऊंगा.

लेकिन दूसरे ही पल खयाल आया, अगर साधना को साथ ले गया तो मामला और पेचीदा हो सकता है. सुंदर और जवान लड़की को देख कर कहीं वह मेरे और उस के संबंधों को ले कर कोई गलत धारणा न बना ले और मुझ पर अधिक निगाह रखने लगे. हो सकता है मेरी जासूसी भी करे. आफत मेरी ही आएगी. इसलिए उसे साथ ले जाने का विचार त्याग  दिया और उस के घर जाने के लिए खुद को पूरी तरह से सतर्क व चौकन्ना कर लिया. साधना से कह दिया कि विजिट के लिए एक पार्टी के साथ जा रहा हूं.

उस का घर ढूंढ़ने में बहुत परेशानी हुई. काफी वक्त लग गया जबकि लगातार उस से मोबाइल पर घर की सिचुएशन पूछता रहा था. वह मुझे अपने घर के दरवाजे पर ही मिल गई. बेहद तनावग्रस्त, चिंतित और दुखी लगी. मुझे देख कर भरे स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू सर, प्लीज आइए,’’ कहती हुई मुझे अंदर ले गई जहां एक छोटे से कमरे में उस की बीमार मां लेटी थीं.

लगभग 50 वर्षीया एक महिला पलंग पर लेटी थीं, मुझे देख कर वे उठने का प्रयास करने लगीं. मैं ने रोक दिया, ‘‘प्लीज, आप लेटी रहिए.’’

‘‘मम्मी, आप बैंक मैनेजर आनंदजी हैं. अपने ब्यूटीपार्लर के लिए मैं लोन के सिलसिले में इन से मिली थी.’’

‘‘आनंदजी, प्लीज आप इस के ब्यूटीपार्लर के लिए लोन पास करवा दीजिए, जिस से यह आत्मनिर्भर हो जाए,’’ कमजोर स्वर में जब वे बोलीं तो मीठी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘प्लीज मम्मी, आप बोलिए मत, मैं बात कर लूंगी, आनंदजी से.’’

‘‘सर, आप क्या लेंगे चाय या कौफी?’’ मीठी ने पूछा तो मैं ने कहा, ‘‘मीठी, मैं यहां चाय या कौफी पीने नहीं आया हूं. मैं तो तुम्हारी मां को देखने आया हूं. अब उन की तबीयत कैसी है? उन्हें हुआ क्या है?’’

मेरे यह पूछने पर वह असहज हो गई. फिर अपनी मां को दवाई खिलाती हुई बोली, ‘‘मम्मी, आप यह दवाई खा कर आराम करो. मैं आनंदजी को अपना घर दिखाती हूं. इसी के आधार पर हमें लोन मिलेगा.’’

मुझे उस का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. इस की मां की तबीयत खराब है और इसे लोन की पड़ी है.

वह मुझे ऊपर एक कमरे में ले गई जो बहुत ही कलात्मक ढंग से सजा था और वहां सिर्फ एक बैड पड़ा था. बैड के अलावा वहां बैठने के लिए कोई कुरसी या स्टूल न था. लिहाजा, मुझे सकुचाते हुए उसी बैड पर बैठना पड़ा.

‘‘सौरी सर, मैं मम्मी के सामने आप को कुछ बता नहीं सकती थी, इसलिए आप को ऊपर ले कर आई हूं. इस समय मैं ने उन्हें वह दवाई दे दी है जिस से उन्हें गहरी नींद आ जाएगी.’’

यह सुन कर मेरी घिग्घी बंध गई. आखिर, यह लड़की कहना क्या चाहती है?

‘‘सर, हम लोग अलीगढ़ के नहीं, बल्कि आगरा के हैं. आगरा में हमारा छोटा सा खुशहाल परिवार था. मैं मीठी, मेरी मम्मी ममता और पापा मनोज. पापा ताजमहल में गाइड थे. उन के सपने बहुत ऊंचे थे. वे विदेश जा कर खूब पैसा कमाना चाहते थे. उन की इस चाहत और सपने को पूरा किया अमेरिका की सेरेना ने जो ताजमहल घूमते वक्त अपने गाइड की नीली आंखों की गहराई में इस कदर डूब गई कि उन्हें अपना बना कर ही दम लिया. वह बहुत अमीर थी, पापा यही तो चाहते थे. मम्मी बहुत रोईंगिड़गिड़ाईं, मेरा हवाला दिया लेकिन पापा नहीं पिघले. सेरेना ने हम मांबोटी को 15 लाख रुपए दे दिए या यों कहो, हमारे पापा की कीमत हमें दे दी. वे 15 लाख रुपए पा कर भी हम गरीब थे क्योंकि हमारे पापा हमारे पास नहीं थे.

‘‘औपचारिकता पूरी हो जाने के बाद पापा उस के साथ अमेरिका चले गए हमेशा के लिए. हम मांबेटी ने आगरा शहर छोड़ने का मन बना लिया. जिस प्रेम के प्रतीक ताजमहल की वजह से हमारा घरसंसार चलता था, हम सब मुहब्बत से रहते थे, उसी की वजह से हमारा सबकुछ हम से छिन गया क्योंकि हमारी दुनिया थे हमारे पापा. उन्होंने हमें बेशक भुला दिया था लेकिन हम उन्हें नहीं भुला सके थे, इसलिए हम आगरा में रहना ही नहीं चाहते थे.

‘‘हम अलीगढ़ आ गए. बरसों पहले जब नानाजी की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी तब मम्मी यहां रही थीं, इसलिए उन्होंने अलीगढ़ को चुना. हम किराए के मकान में रहने लगे. हमें लगा ये 15 लाख रुपए धीरेधीरे खत्म हो जाएंगे. इसलिए हम ने एक ब्रोकर की मदद से 10 लाख रुपए का यह छोटा सा घर ले लिया. डेढ़ लाख रुपए में घर का जरूरी सामान खरीद लिया, 3 लाख रुपए मेरी शादी के लिए मम्मी ने गहने खरीद लिए और बाकी 50 हजार रुपए बैंक में जमा कर दिए.

‘‘मां ने घर का खर्चा चलाने के लिए एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और ट्यूशन भी पढ़ाने लगीं. मैं कालेज के बाद ब्यूटीपार्लर का कोर्स करने लगी. इस कार्य में मैं पारंगत हो गई, तो सोचा, क्यों न घर के नीचे वाले हिस्से में ब्यूटीपार्लर खोल लूं. कमाई अच्छी होगी, घर की घर में भी रहूंगी.

‘‘लेकिन मम्मी, पापा की बेवफाई सह न सकीं और दिल की मरीज हो गईं. उन्हें अटैक पड़ा तो एंजियोग्राफी से पता चला उन की 2 आर्टरीज ब्लौक हैं. डाक्टरों ने एंजियोप्लास्टी के लिए बोला है. इस का खर्चा लगभग 2-3 लाख रुपए तो होगा ही. बस, इसी वजह से परेशान हूं कि इतना पैसा इतनी जल्दी कैसे मैनेज करूं? यह सब मम्मी को बता कर परेशान नहीं करना चाहती.’’

मेरे दिमाग ने सचेत किया, इस के झांसे में मत आना. हो सकता है यह सब मनगढ़ंत कहानी हो. मैं बोला, ‘‘मीठी, इस मामले में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

‘‘सर, मैं चाहती हूं अगर आप किसी भी तरह 3 लाख रुपए का इंतजाम करवा दें तो मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी. 50 हजार रुपए मैं अपने अकाउंट से निकाल लूंगी,’’ आशाभरी नजरों से उस ने मुझे ताकते हुए कहा.

लेकिन मैं अंदर से मजबूत था और उस की भावनाओं के जाल में फंसने वाला नहीं था. ‘‘मीठी, 3 लाख रुपए तो बहुत होते हैं. 10-20 हजार रुपए की रकम होती तो मैं अभी दे देता. 3 लाख रुपए तो मेरे खाते में भी नहीं है,’’ मैं ने झूठ बोला हालांकि मैं जानता था कि उसे पता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं क्योंकि एक बैंक मैनेजर के खाते में 3 लाख रुपए नहीं होंगे, ऐसा नहीं हो सकता.

‘‘सर, मैं आप से पैसा नहीं, बल्कि सहयोग मांग रही हूं. आप मेरे गहने गिरवी रखवा कर पैसा दिलवा दें क्योंकि ऐसा काम कोई भरोसेमंद इंसान ही कर सकता है.’’

‘‘तुम मुझ पर किस आधार पर विश्वास कर रही हो? तुम तो सिर्फ एक बार ही मुझ से मिली हो.’’

‘‘उम्र भले ही कम हो मेरी लेकिन वक्त और हालात ने मुझे इतना परिपक्व कर दिया है कि इंसान की नीयत और फितरत को पहचानने में कभी गलती नहीं करती हूं,’’ आत्मविश्वास से भरे स्वर में वह बोली.

मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मुसकरा कर बोला, ‘‘जरा मेरी नीयत और फितरत तो बताओ.’’

‘‘सर, आप परीक्षा ले रहे हैं मेरी. लेकिन मैं सच जरूर बताऊंगी.’’

मैं मन ही मन थोड़ा डर गया, पता नहीं मेरे बारे में क्या बताए? लेकिन मैं हंस कर बोला, ‘‘हांहां, बताओ, जरा मैं भी तो सुनूं मेरे बारे में क्या धारणा है तुम्हारी?’’

‘‘आप बहुत ही नेकदिल और ईमानदार इंसान हैं लेकिन मुझे ले कर आप थोड़ा आशंकित व भयभीत हैं. कहीं मैं आप के साथ फ्रौड या धोखा न कर दूं.’’

हालांकि वह सच कह रही थी लेकिन मैं ने कहा, ‘‘नहीं, मीठी तुम गलत बोल रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘नहीं सर, आप अपनी जगह ठीक हैं. 3 लाख रुपए की रकम कोई छोटीमोटी तो है नहीं जो किसी अजनबी को दे दी जाए. अगर आप की जगह मैं होती तो शायद मैं भी हिचकिचाती. लेकिन आप मेरे गहने ले जाइए और अपने किसी परिचित व विश्वसीनय सुनार से उन की जांच करवा लीजिए. और फिर पैसा दिलवा दीजिए. मैं मम्मी की जल्दी से जल्दी एंजियोप्लास्टी कराना चाहती हूं.’’

मैं ने मन में सोचा जब यह लड़की अपने कीमती गहने मुझे सौंप रही है, सिर्फ मुझ पर विश्वास कर के तो इंसानियत के नाते मुझे भी इस की मदद करनी चाहिए.

‘‘ठीक है, मेरा एक खास परिचित ज्वैलर है. वह यह काम भी करता है. मैं अभी उस से फोन पर बात कर के देखता हूं.’’

‘‘सर, अगर पैसा आज ही मिल जाए तो बेहतर होगा. कल सुबह ही टैक्सी कर के मम्मी को दिल्ली ले जाऊंगी.’’

मैं ने ज्वैलर से बात की तो उस ने हां कर दी. मैं ने मीठी से पूछा, ‘‘गहने घर पर हैं या लौकर में?’’

‘‘मैं ने कल ही गहने और कैश लौकर से निकाल लिए थे, पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए,’’ कहती हुई वह एक बैग ले आई और सारे गहने दिखा दिए.

‘‘चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं ने ज्वैलर को टाइम दे दिया है.’’

‘‘मैं क्या करूंगी वहां जा कर? आप हो तो सही.’’

‘‘नहीं मीठी, तुम्हें चलना पड़ेगा. गहने कितने वजन के हैं? कितने रुपए के हैं. लिखापढ़ी, रसीद बहुतकुछ होता है. जल्दी चलो और अपनी मां को भी बता दो.’’

‘‘सर, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, प्लीज आप जल्दी जाइए.’’

‘‘मीठी, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा. उस ज्वैलर को इन गहनों के बारे में क्या बताऊंगा? तुम साथ होगी तो मुश्किल नहीं होगी.’’

‘‘कह देना, एक दूर की रिश्तेदार के हैं, बीमारी की वजह से आने में असमर्थ हैं,’’ कहती हुई वह मुसकरा पड़ी. मन में आया कह दूं कि तुम दूर की नहीं, मेरे दिल की रिश्तेदार हो.

गहनों का बैग ले कर मैं तुरंत निकल पड़ा. इस दौरान साधना के पचासों फोन आए लेकिन मैं ने रिसीव नहीं किए. हर बार काट दिए. रास्ते में फिर फोन बजा. मुझे पता था कि उसी का होगा. सुबह का निकला और लगभग शाम हो चली, चिंता तो कर रही होगी, इसलिए स्कूटी साइड में रोक कर बात की.

‘‘अरे, सुबह से कहां हो आप? एक कप चाय पी कर निकले हो. फोन करना तो दूर, मेरा फोन भी काट रहे हो. कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं हो,’’ वह घबराए और आशंकित स्वर में बोली.

‘‘नहीं साधना, मैं किसी मुसीबत में नहीं हूं. बस, हुआ यों, मैं जिस पार्टी के साथ था उस की मां की अचानक तबीयत खराब हो गई तो मानवता के नाते मैं उस के साथ अस्पताल में हूं. तुम परेशान मत हो,’’ बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए मैं ने उसे आश्वस्त कर दिया.

ज्वैलर्स की दुकान पर पहुंच कर जैसे ही गहनों का बैग खोला तो ज्वैलर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘बैंक मैनेजर साहब, किस का लौकर तोड़ दिया?’’

‘‘अरे यार, बात यह है कि…’’

‘‘जुए में बुरी तरह हार कर भाभी के गहने चुरा लाए हो. लेकिन याद रखो दोस्त, जैसे ही भाभी को पता चलेगा, वे तुम्हें रुई की तरह धुन देंगी,’’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह फिर शरारत पर उतर आया था.

‘‘अरे भाई, यह मस्तमजाक छोड़ो. पहले मेरी बात सुनो. मेरे एक दूर के रिश्तेदार हैं जो बहुत बीमार हैं. उन्हें तुरंत दिल्ली के एक अस्पताल में ले जाना है, जहां उन का औपरेशन होना है. ये गहने उन्हीं के हैं. उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है. इन की जल्दी से जांच कर लो कि असली हैं या नकली? अगर असली हैं तो इन्हें गिरवी रख कर कितना पैसा मिल जाएगा.’’

वह शीघ्र ही गहनों की शुद्धता की जांच करने लगा और बोला, ‘‘गुरु, शुद्ध खालिस सोने के हैं.’’

‘‘क्या कीमत होगी इन की?’’

उस ने जल्दी ही गहनों को तोल कर बताया, लगभग 3 लाख रुपए के हैं. मैं पूरे 3 लाख रुपए दे दूंगा क्योंकि किसी जरूरतमंद बीमार के लिए चाहिए और आप मेरे खास परिचित भी हो. उस ने गहनों की लिखापढ़ी, लिस्ट, रसीद सबकुछ देते हुए पूरे 3 लाख रुपए भी दे दिए.

रुपए ले कर निकला तो बाहर गहरा अंधेरा हो गया था. मैं ने स्कूटी मीठी के घर की तरफ दौड़ा दी. अपना मोबाइल भी स्विच औफ कर लिया क्योंकि मुझे पता था साधना बारबार फोन करेगी. घर जा कर कह दूंगा कि बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी. उस के घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी.

वह दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. मुझे जल्दी से ऊपर कमरे में ले गई, ‘‘सर, काम बना?’’

‘‘हांहां, बन गया. पूरे 3 लाख रुपए हैं, गिन लो,’’ कहते हुए मैं ने उसे नोटों का बैग थमा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कहती हुई वह भावावेश में मुझ से कस कर लिपट गई. मैं हक्काबक्का रह गया. यह अप्रत्याशित स्थिति मेरे लिए अकल्पनीय थी. इस के लिए मैं तैयार न था. लेकिन उस के जिस्म की गरमी, सांसों की तेज रफ्तार…मैं खुद पर काबू न रख सका और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

– क्रमश:

नवाजुद्दीन सिद्दीकी के निजी संबंधों पर बड़ा खुलासा कर रही है ये किताब

पिछले कुछ सालों में कई फिल्मी कलाकारों की आत्मकथाएं और जीवनियां आ चुकी हैं. दिलीप कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, रेखा, सलमान खान, राजेश खन्ना, ओम पुरी और करण जौहर जैसे सितारे खुद की लिखी किताब या खुद पर लिखी किताब से अपने जीवन के अनजाने पन्ने खोल चुके हैं. इस सिलसिले में ताजा नाम नवाजुद्दीन सिद्दीकी का जुड़ गया है.

पेंगुइन वाइकिंग से प्रकाशित नवाज के संस्मरण “एन और्डिनरी लाइफ: ए मेमौयर” प्रकाशन से पहले ही इसमें किए गए खुलासों को लेकर चर्चा में है. मीडिया में प्रकाशित इस किताब के कुछ हिस्से नवाज के निजी प्रेम प्रसंगों का बेबाक ब्योरे से पेश करते हैं. नवाज ने किताब में उनके जीवन में आने वाली पहली लड़की से लेकर उस लड़की तक के बारे में लिखा है जिससे उन्होंने शादी की.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी मूलतः उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं. दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्दालय (एनएसडी) से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद वो फिल्मों में काम की तलाश मुंबई पहुंचे थे. किताब में नवाज ने बताया है कि उनका पहला प्रेम संबंध मुंबई में बना.

नवाज के अनुसार उनका पहली प्रेमिका सुनीता भी उनकी तरह एनएसडी से स्नातक थीं. हालांकि दोनों को परिचय मुंबई में ही हुआ. नवाज के अनुसार दोनों एक दूसरे के प्यार में पागल हो गये.

सुनीता उनके कमरे पर उनसे अक्सर मिलने आती थी. लेकिन कुछ समय बाद अचानक ही उसने उनसे बातचीत करनी बंद कर दी. नवाज के अनुसार सुनीता ने कहा कि उन दोनों को अपने करियर पर ध्यान देना चाहिए. अचानक रिश्ता टूटने की वजह से नवाज गहरे सदमे में चले गये. इस तरह नवाज के पहले प्रेम प्रंसग का दुखद अंत हुआ.

नवाज ने किताब में बताया है कि न्यूयौर्क के सोहो में एक कैफे में उन्हें एक लड़की मिली जिसने उन्हें पहचान लिया. लड़की ने उनसे पूछा कि क्या तुम एक्टर हो, नवाज ने जवाब दिया, हां. नवाज को लगा कि उस लड़की ने उनकी फिल्म गैंग्स औफ वासेपुर देखी होगी लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा.

उस लड़की ने उनकी फिल्म लंचबौक्स देखी थी. उसके बाद की दास्तां सुनाते हुए नवाज लिखते हैं, “हम बात करने लगे और यूं कह लें कि जो न्यूयौर्क में होता है वो वहीं छूट जाता है.”

किताब में नवाज ने बताया है कि उनका न्यूयौर्क सिटी के न्यूजर्सी में रहने वाली सुजैन नाम की एक लड़की से भी प्रेम संबंध रहा था. नवाज के साथ वो अमेरिका से आकर मुंबई में उनके साथ रहने लगी थी. नवाज के साथ रहने के लिए वो बार बार अपना वीजा बढ़वाती थी. कुछ महीनों तक दोनों का संबंध अच्छा रहा.

तभी नवाज ने मिस लवली फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी. सुजैन मिस लवली के सेट पर भी नवाज के साथ जाती थी. लेकिन जब सुजैन का वीजा आखिरकार नहीं बढ़ा तो उसे अमेरिका वापस लौटना पड़ा. सुजैन के अमेरिका लौटने के कुछ महीनों बाद ही नवाज का फिल्म में उनकी को स्टार निहारिका सिंह से प्रेम संबंध बन गया.

नवाज के अनुसार निहारिका सिंह से उनका करीब डेढ़ साल तक प्रगाढ़ संबंध रहा. तो आखिर ये रिश्ता क्यों टूटा,  नवाज लिखते हैं, हर लड़की की तरह निहारिका भी चाहती थी कि मैं उससे प्यार भरी बातें भी किया करूं. लेकिन मैं स्वार्थी था, मेरा एक ही मकसद था. मैं उसके घर जाता, उससे संबंध बनाता और लौट आता था. मुझसे ज्यादा मीठी बातें नहीं होती थीं.” निहारिका को ये लगने लगा कि नवाज बस अपने सुख की परवाह करते हैं.

इस वजह से निहारिका ने नवाज से संबंध तोड़ लिया. नवाज ने लिखा है, “दरअसल, मैं जिन भी लड़कियों के साथ रहा हूं सबको मुझसे ये शिकायत रही है. मैं उनके पास बस अपनी जरूरत के लिए जाता था. नहीं तो कई बार मैं उनके फोन भी नहीं उठाता था.” लेकिन निहारिका से ब्रेक-अप के दो महीने बाद ही नवाज के जीवन में अंजली आ गईं जो आज उनकी बीवी हैं.

इन तीन स्मार्टफोन की बैटरी है दमदार, क्विक चार्जिंग सिस्टम से है लैस

फ्लैगशिप स्मार्टफोन हो या मिड रेंज स्मार्टफोन सभी में यूजर्स को एक परेशानी हमेशा रहती है. वह है बैटरी से सम्बंधित समस्याएं. जोकि जल्दी चार्जिंग खत्म हो जाने और चार्ज होने में देर लगाने से है. रैम और कैमरा के अलावा अब स्मार्टफोन्स बैटरी फोकस्ड आने लगे हैं. यूजर्स भी ऐसे फोन को वरीयता देने लगे हैं. कुछ ऐसे स्मार्टफोन्स भी कंपनियों द्वारा पेश किए गए हैं जो कम बजट में अच्छी बैटरी बैकअप देते हैं.

इन फोनों की खासियत है की दमदार बैटरी के साथ ये कुछ ही मिनटों में चार्ज भी हो जाते हैं. इसी के साथ ये फोन कम बजट में भी उपलब्ध हैं. आइए जानते है इनके बारे में.

क्विक चार्ज सिस्टम

स्मार्टफोन की ज्यादे बैटरी होने के बावजूद फोन को ज्यादा प्रयोग में लाने के कारण फोन की बैटरी ज्यादा नहीं चल पाती. ऐसे में बड़ी बैटरी के साथ अगर क्विक चार्जिंग सपोर्ट हो तो यूजर को बहुत फायदा हो जाता है.

मोटो ई4 प्लस

(कीमत: 9999 रुपये)

इस फोन की सबसे बड़ी खासियत इसकी बैटरी है. यह फोन 5000 एमएएच बैटरी से लैस है. साथ ही यह 10W रैपिड चार्जिंग के साथ आता है. इसके अलावा इसमें 5.5 इंच का एचडी डिस्प्ले दिया गया है जिसका पिक्सल रेजोल्यूशन 720×1280 है. यह फोन 1.4 गीगाहर्ट्ज स्नैपड्रैगन 427 प्रोसेसर और 3 जीबी रैम से लैस है. इसमें 32 जीबी की इंटरनल मैमोरी दी गई है जिसे मामेगापिक्सल का रियर कैमरा दिया गया है जो f/2.0 अपर्चर, औटो फोकस और एलईडी फ्लैश से इक्रोएसडी कार्ड के जरिए 128 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है. यह फोन एंड्रायड नौगट पर काम करता है. फोटोग्राफी के लिए इसमें 13 मेगापिक्सल का रियर कैमरा हैं. वहीं, 5 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा दिया गया है. इसका फ्रंट कैमरा f/2.2 अपर्चर और एलईडी फ्लैश से लैस है.

स्मारट्रोन एसआरटी

कीमत: 11,999 रुपये

फोन को पावर देने के लिए इसमें 3000 एमएएच की बैटरी दी गई है, जो क्विक चार्ज 2.0 को सपोर्ट करती है. इसमें 5.5 इंच का फुल एचडी आईपीएस एलसीडी डिस्प्ले दिया गया है. यह फोन 1.44 गीगाहर्ट्ज औक्टा-कोर स्नैपड्रैगन 652 प्रोसेसर और 4 जीबी रैम से लैस है. इस फोन में माइक्रोएसडी कार्ड नहीं लगाया जा सकता है. कंपनी ने यूजर्स के लिए टी क्लाउड पर अनलिमिटेड स्टोरेज दी है. यह फोन एंड्रायड 7.0 नौगट पर काम करता है. फोटोग्राफी के लिए इसके रियर कैमरा में एफ/2.0 अपर्चर, फेज डिटेक्शन औटो फोकस और बीआईएस सेंसर के साथ 13 एमपी कैमरा दिया गया है. वहीं, सेल्फी के लिए 5 एमपी का फ्रंट कैमरा दिया गया है.

इंटेक्स एक्वा एस3

कीमत: 5590 रुपये

इंटेक्स का यह फोन 2450 mAh बैटरी और क्विक चार्जिंग सपोर्ट के साथ आता है. इसके अलावा इसमें 5 इंच का एचडी डिस्प्ले दिया गया है. फोन में 2GB रैम मौजूद है. साथ ही फोन में 64GB एक्सपेंडेबल स्टोरेज भी मौजूद है.

जब अचानक आ जाएं मेहमान तो इन टिप्स को अपनाकर बनाएं बेहतरीन व्यंजन

अकसर हर गृहिणी के समक्ष त्योहारों में यह समस्या आ जाती है कि उस ने अपने परिवार के सदस्यों के हिसाब से खाना बनाया होता है और अचानक 1-2 मेहमान आ जाते हैं. ऐसे में भोजन की मात्रा कम पड़ जाती है. मगर अब परेशान होने की जरूरत नहीं है. यदि आप के समक्ष भी इस तरह की परेशानी आ जाए तो इन टिप्स को अपना कर आप अपनी समस्या से छुटकारा पा सकती हैं:

अगर आप ने पनीर की तरी वाली सब्जी बनाई है तो थोड़े मखाने तल कर थोड़ी सी टोमैटो प्यूरी व सूखे मसालों के साथ 3-4 मिनट पकाएं और बनी सब्जी में मिला दें. बढि़या सब्जी ज्यादा मात्रा में तैयार हो जाएगी.

फ्रोजन मटर फ्रीजर में रखे हों तो कुनकुने पानी में डालें. फिर और आलू, मंगोड़ी, पनीर आदि सब्जी में मिला दें.

उबले आलू हों तो मसल कर किसी भी ग्रेवी वाली सब्जी में मिला दें अथवा थोड़ा दही डाल कर दही आलू बना लें. इस के अलावा बेसन व दही फेंट कर मिलाएं और कढ़ी वाला झोल तैयार कर लें.

कढ़ी वाले झोल को यों ही सर्व कर सकती हैं या इस में उबले आलू के टुकड़े कर के डाल दें.

अरहर, धुली मूंग, धुली उड़द या धुली मसूर की दाल बनी है पर लगता है कम पड़ेगी, तो प्याज, टमाटर का तड़का बनाएं. उस में

2 चम्मच बेसन डाल कर भून लें, साथ ही कोई पत्तेदार सब्जी हो तो वह भी. बस दाल में तड़का लगा दें. दाल की मात्रा बढ़ जाएगी.

दाल कोई भी हो हरे पत्तेदार साग ज्यादा मात्रा में डालना चाहें तो अदरक, हरीमिर्च व हींग का तड़का लगा कर छौंक दें. 5 मिनट में तैयार पत्तेदार सब्जी को दाल में डाल दें. साग वाली दाल तैयार हो जाएगी.

उबले आलू कम हों तो उन्हें हाथ से अच्छी तरह मैश कर टोमेटो प्यूरी व हींगजीरे का तड़का तथा सांभर पाउडर और इमली का रस डाल कर आलू वाला सांभर तैयार कर लें. यह चावल व परांठों दोनों के साथ स्वादिष्ठ लगेगा.

छोलों की मात्रा कम हो तो उन में कच्चा बारीक कटा टमाटर, प्याज व धनियापत्ती डाल कर मिला दें. छोलों की मात्रा बढ़ जाएगी. आलू को भी छोटेछोटे क्यूब्स में तल कर छोलों में मिला सकती हैं.

पके चावलों की मात्रा कम हो तो खूब सारे प्याज, जीरे, टमाटर व करीपत्ता का तड़का तैयार कर चावलों में मिला दें.

दही की मात्रा कम हो तो खूब सारा सलाद बारीक काटें और उस में दही फेंट कर डाल दें. बढि़या सब्जी वाला रायता तैयार हो जाएगा.

यदि कुछ भी समझ में न आए तो सब से अच्छा है आटे में बेसन, अदरक लहसुन पेस्ट व मिर्च मसाले डालें और दही डाल कर गूंध लें. खस्ता परांठे अचार के साथ सर्व करें.

हम बने तुम बने एकदूजे के लिए : दांपत्य की अनूठी प्रेम कहानी

पति पत्नी का रिश्ता बड़ा ही खूबसूरत रिश्ता होता है. आजकल अपना हमसफर तलाशते समय जहां युवकयुवतियां अपने जीवनसाथी के लिए सुंदरता, कैरियर, लंबाई, मोटाई जैसे अनेक मानदंड निर्धारित करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन के लिए सिर्फ आंतरिक सौंदर्य और गुण ही माने रखते हैं. अनुपम तिवारी और उन की पत्नी निधि तिवारी की जोड़ी को देख कर सहसा इस कहावत पर यकीन भी होने लगता है. इन का वैवाहिक जीवन इस बात का प्रतीक है कि किसी भी प्रकार की शारीरिक अक्षमता व्यक्ति के आंतरिक गुणों से बढ़ कर नहीं हो सकती.

विवाह से पूर्व यदि लड़का या लड़की को अपने होने वाले जीवनसाथी के बारे में यह पता चलता है कि उस के होने वाले जीवनसाथी को कोई ऐसी बीमारी है, जो विवाहोपरांत उन के समस्त जीवन को ही प्रभावित कर देगी तो आमतौर पर विवाह से इनकार कर दिया जाता है. परंतु निधि तिवारी को तो विवाह से पूर्व ही पता था कि उन के पति को आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिस में उन की आंखों की रोशनी दिनप्रतिदिन कम हो कर एक दिन पूरी तरह समाप्त हो जाएगी.

इस के बावजूद उन्होंने अपने परिवार वालों की इच्छा के विपरीत जा कर उन से विवाह किया. आज दोनों अपने वैवाहिक जीवन के 27 वर्ष पूरे कर चुके हैं. अनुपम तिवारी की आंखों की रोशनी पूरी तरह समाप्त हो गई है पर इस से उन के खुशहाल वैवाहिक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ा है. अनुपम एक छोटी फैक्टरी

के मालिक हैं और उन की पत्नी निधि तिवारी वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक काउंसलर हैं. उन की एक खूबसूरत बेटी है, जो एमबीए कर रही है. आइए, जानते हैं उन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक और प्रेरणास्पद बातें:

कैसे मुलाकात हुई आप दोनों की?

निधि: मेरी ननद ने मिलवाया था हम दोनों को.

अनुपम: मेरी मामीजी इन के पापा को जानती थीं. वे ही रिश्ता ले कर आई थीं. दीदी की सहेली इन्हें जानती थीं. अत: वे ही इन्हें मुझ से मिलाने लाई थीं.

कैसा लगा मिल कर?

निधि: मैं मनोविज्ञान की छात्रा थी. अत: इन से मिल कर मुझे लगा कि जिंदगी से निराश हो चुके हैं, परंतु अपने कारण किसी को परेशान नहीं करना चाहते.

अनुपम: मामीजी जब रिश्ता ले कर आईं तो इन के मातापिता तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थे, जो स्वाभाविक भी था, क्योंकि कोई भी मातापिता एक नेत्रहीन से अपनी बेटी का विवाह नहीं करना चाहेंगे. 1 साल तक बात आईगई हो गई. फिर एक दिन अचानक दीदी अपनी सहेली के साथ इन्हें मुझ से मिलाने ले कर आ गईं. यकीन मानिए आधे घंटे तक हम ने अकेले में बातें कीं पर मैं ने इन्हें नजर उठा कर देखा तक नहीं.

ऐसा आप ने अनुपम में क्या पाया कि सब के विरोध के बावजूद इन से ही विवाह किया?

निधि: एक सच्चा, सरल, सहज और अति संकोची इनसान जो जिंदगी की वास्तविकता से कोसों दूर था, जिस के जीवन का एकमात्र उद्देश्य था अपने कारण किसी को परेशान न करना. बस इन की इसी मासूमियत पर मैं फिदा हो गई.

अनुपम: मैं तो इस शादी के लिए तैयार ही नहीं था पर एक दिन मेरी मां ने पापा की बीमारी का हवाला देते हुए अपना आंचल फैला दिया कि विवाह के लिए हां कर दो तो मैं मजबूर हो गया और कहा कि आप जहां चाहें वहां मेरा विवाह कर दें. मैं तैयार हूं. दरअसल, मैं अपने कारण किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता था.

आप दोनों के विवाह पर परिवार वालों की प्रतिक्रिया कैसी थी?

निधि: मेरे मातापिता इस विवाह के सख्त खिलाफ थे पर मैं ने उन से प्रश्न किया कि यदि विवाह के बाद मुझे कोई बड़ी और लाइलाज बीमारी हो गई, तो क्या मेरे पति मुझे छोड़ देंगे? बस इस प्रश्न पर वे निरुत्तर हो गए.

अनुपम: मेरे परिवार वालों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, क्योंकि हर मातापिता की तरह उन्होंने भी मेरे विवाह के सपने संजोए थे और आज उन के सपने पूरे होने जा रहे थे.

अब जबकि अनुपम की आंखों की रोशनी पूरी तरह समाप्त हो चुकी है, तो आप दोनों नातेरिश्तों को कैसे मैनेज करते हैं?

निधि: चूंकि मेरी ससुराल यहीं है तो आमतौर पर अधिकांश उत्तरदायित्व मैं अपने सासससुर की मदद से निभाती हूं पर हां जहां आवश्यक होता है मैं इन्हें भी अपने साथ ले जाती हूं.

अनुपम: अधिकांश जिम्मेदारियां ये स्वयं ही निभा लेती हैं.

सासससुर ने अपने व्यवहार या बातों से कभी जताया कि आप ने उन के बेटे का जीवन बना दिया?

निधि: मेरे सासससुर बेहद नेकदिल हैं. वे अकसर महसूस कराते हैं कि आज उन के बेटे का जीवन बनाने वाली मैं हूं. पर मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं ने तो जानबूझ कर विवाह किया था, क्योंकि मुझे लगता है कि केवल एक बीमारी के कारण इनसान के सारे गुणों को नकार देना कहां का न्याय है?

क्या विवाह के बाद आप दोनों को अपनी ससुराल में वही मानसम्मान प्राप्त हुआ, जो एक दामाद और एक बहू को मिलता है?

निधि: बिलकुल. ये घर के बड़े बेटे हैं, इसलिए मुझे हमेशा बड़ी बहू का ही मान मिला.

अनुपम: अपनी ससुराल से मुझे कोई गिलाशिकवा नहीं रहा. शुरू में अवश्य इन के पिताजी तैयार नहीं थे, परंतु विवाह हो जाने के बाद कभी दूसरे दामाद और मुझ में कोई फर्क नहीं किया. यहां तक कि 27 साल के वैवाहिक जीवन में कभी आंखों के बारे में बात तक नहीं हुई.

कभी अपने निर्णय पर दोनों को पछतावा हुआ?

निधि: पछतावे का तो प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि विवाह का निर्णय मेरा अपना था. किसी का कोई दबाव नहीं था.

अनुपम: कभी नहीं, क्योंकि मैं तो विवाह ही नहीं करना चाहता था. आज इन के कारण ही मैं एक पिता और पति हूं.

विवाह होने के बाद स्वयं में कितना बदलाव किया दोनों ने?

निधि: मैं जब विवाह के बाद ससुराल आई तो उस समय अनुपम एकदम पैंपर्ड चाइल्ड थे. मातापिता के प्यारे, बेचारे को दिखता नहीं है, इसलिए हर कार्य कर दिया जाता था यानी सब की दया के पात्र. मैं ने आ कर सब से पहले इन के खोए आत्मविश्वास को जगाया. अपने स्वयं के सारे कार्य इन्हें खुद करने के लिए प्रेरित किया ताकि ये स्वयं को एक सामान्य इनसान समझ सकें. आज अपने सारे कार्य स्वयं करने के साथसाथ ये पानी भरना, खाना गरम करना, फ्रिज में खाना रखना जैसे सभी कार्य खुद करते हैं.

अनुपम: सही कहा इन्होंने. मेरे मातापिता तो सदैव मेरे भविष्य को ले कर चिंतित रहते थे. इन्होंने मुझे इनसान बना दिया. मैं तो फकीरी अंदाज में रहता था. बढ़े बाल और दाढ़ी, अस्तव्यस्त कपड़े, स्लीपर डाल कर निकल जाता था पर इन्होंने मुझे ढंग से रहना सिखाया. मैं कहीं आताजाता नहीं था पर इन्होंने मुझे हर जगह जाना सिखाया.

आप के विवाह के समय आप के दोस्तों और नातेरिश्तेदारों की क्या प्रतिक्रिया थी?

निधि: हमारा समाज इस प्रकार की बातों को जल्दी हजम नहीं कर पाता. इसलिए सब से पहली प्रतिक्रिया तो यही थी कि जरूर लड़की में कोई खोट होगा, जो जानबूझ कर ऐसे लड़के से विवाह कर रही है. दूसरे सभी ने इसे बेमेल शादी कहते हुए इस की सफलता पर ही संदेह व्यक्त किया था. पर आज 27 साल के बाद सभी चुप हैं.

अनुपम: मेरे घर में तो सभी बेहद खुश थे. हां, कुछ लोग एक अंधे व्यक्ति को इतनी योग्य और खूबसूरत जीवनसाथी पाते देख कर हैरत में अवश्य थे.

कभी अपने विवाह को ले कर कोई अफसोस होता है?

निधि: इन्हें ले कर तो कभी कोई अफसोस नहीं होता पर हां चिंता अवश्य होती है इन की. सोचती हूं कि इन्हें इतना आत्मनिर्भर बना दूं कि यदि कभी मैं इन से पहले चली गई, तो भी इन्हें कोई दिक्कत न हो.

अनुपम: अकसर होता है कि मैं इन्हें और बेटी को वह जीवन नहीं दे पा रहा जो एक सामान्य व्यक्ति देता है. मैं कभी इन्हें ले कर घूमने नहीं जा पाता, क्योंकि आजकल के खराब जमाने में एक सामान्य आदमी तो अपनी बेटी को बचा नहीं पा रहा मैं अंधा क्या बचाऊंगा.

घर के आर्थिक मामले कैसे निबटाते हैं?

निधि: हम ने घर की आर्थिक जिम्मेदारियां आपस में बांट ली हैं जिन्हें मैं और ये मिल कर पूरा कर लेते हैं.

अनुपम: स्वाभाविक रूप से मैं उतना अच्छा जीवन तो नहीं दे पा रहा हूं जितना देना चाहता हूं पर हां मेरी फैक्टरी और इन की तनख्वाह से मैनेज हो जाता है. किसी बात की कमी नहीं रहती.

अपनी सैक्सुअल रिलेशनशिप के बारे में कुछ बताएं?

इस प्रश्न का उत्तर दोनों एकसाथ हंसते हुए देते हैं, ‘‘हमारी खूबसूरत बेटी अनुकृति हमारे स्वस्थ संबंधों की प्रतीक है.’’

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