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आशीष नेहरा को बौलिंग करते वक्त किससे लगता था डर

पूर्व तेज गेंदबाज आशीष नेहरा ने कहा है कि औस्ट्रेलिया के दिग्गज विकेटकीपर रहे एडम गिलक्रिस्ट को गेंदबाजी करना सबसे मुश्किल था. एक इंटरव्यू में बातचीत में नेहरा ने कहा कि उन्हें गिलक्रिस्ट दूसरे ग्रह के प्राणी लगते थे और उन्हें गेंदबाजी करना मुझे सबसे मुश्किल लगता था.

हाल ही में रिटायर हुए इस तेज गेंदबाज ने साल 2000 में अपने चरम पर रही कंगारू टीम की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा, उस जमाने की औस्ट्रेलियाई टीम और एडम गिलक्रिस्ट का लेवल अलग ही था. 2002-08 तक गिलक्रिस्ट अलग ही ग्रह पर थे. जैक कैलिस, रिकी पौन्टिंग, ब्रायन लारा और वीरेंद्र सहवाग भी शानदार खिलाड़ी थे.

मौजूदा भारतीय कप्तान विराट कोहली की तारीफ के पुल बांधते हुए नेहरा ने कहा कि उसमें रातों-रात बदलाव नहीं आया है. अपने शरीर में परिवर्तन लाने के लिए उसे 3-4 साल लगे हैं. उसकी रफ्तार चौंकाने वाली है. अगर मैदान में वह टेनिस बौल से खेलता है तो भी उसकी तीव्रता वही रहेगी. नेहरा ने बातचीत में यह भी कहा कि 2011 का वर्ल्ड कप जीतना बेहद खास क्षण था. दुर्भाग्यवश वह चोट के कारण फाइनल में नहीं खेल पाए थे, क्योंकि पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में उन्हें चोट लग गई थी.

रिटायरमेंट के बाद मीडिया से बात करते हुए नेहरा ने खुलासा किया था कि आखिर किस खिलाड़ी के चलते उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया. नेहरा को भारत-औस्ट्रेलिया टी-20 सीरीज में चुना गया था, लेकिन इस सीरीज़ में उन्हें अंतिम एकादश में खेलने का मौका नहीं मिला. नेहरा ने इस पर कहा कि उन्होंने यह फैसला खुद ही लिया था. कई लोगों ने कहा था कि मैं औस्ट्रेलिया के खिलाफ अंतिम एकादश में नहीं खेला. जब मैं वहां गया तो मैं अपनी रणनीति बना के गया था.

मुझे लगता है कि भुवनेश्वर कुमार अब तैयार हैं. पिछले दो साल से मैं और बुमराह टी-20 में खेल रहे थे और भुवी अंदर-बाहर होते रहते थे. इस साल आईपीएल के बाद उन्होंने गजब का प्रदर्शन दिखाया था. मुझे अच्छा नहीं लगता कि मैं खेलूं और भुवी बाहर बैठे. वह मेरा फैसला था. मैंने इस बारे में जाते ही कप्तान विराट कोहली को बता दिया था.

गुड़िया के गैंगरेप और हत्या का दोषी कौन?

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला तो खूबसूरत है ही, लेकिन प्राकृतिक रूप से देखें तो यहां का कोटखाई और भी ज्यादा खूबसूरत है. लाल, हरे सेबों से लदे सेब के बाग यहां की सुंदरता में और भी चारचांद लगा देते हैं. पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहां का जीवन भले ही दुरूह है, लेकिन सेब बागानों की वजह से यह इलाका काफी समृद्ध है, पैसे से भी और संसाधनों से भी. वैसे तो इस क्षेत्र में अपराध कम ही होते हैं, लेकिन 4 जुलाई को यहां जो कुछ हुआ, उस ने पहाड़ों की रानी कही जाने वाली हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला तक को हिला कर रख दिया.

यह कुछ ऐसा ही था, जैसा 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ था. शिमला से 60 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा कोटखाई को तहसील का दरजा प्राप्त है. इस तहसील में छोटेछोटे 247 गांव हैं. इन्हीं गांवों में एक गांव है हलाईला. गांव में स्कूली शिक्षा के आगे की पढ़ाई का साधन न होने की वजह से गांव के बच्चे महासू स्कूल में पढ़ने जाते हैं, जो गांव से कई किलोमीटर दूर है.

15 वर्षीया गुडि़या भी इसी स्कूल में 10वीं की छात्रा थी. 4 जुलाई को वह रोजाना की तरह स्कूल गई, लेकिन शाम तक लौट कर नहीं आई.

ऐसे में घर वालों का चिंतित होना स्वाभाविक ही था. उन्होंने गुडि़या की काफी खोजबीन की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. मजबूर हो कर उन्होंने थाना कोटखाई में गुडि़या के लापता होने की रिपोर्ट लिखा दी.

गुडि़या की नग्न लाश 6 जुलाई की सुबह हलाईला के जंगल में पड़ी मिली. उस की लाश की हालत बता रही थी कि उस के साथ दरिंदगी करने के बाद उस की हत्या की गई है. तत्काल इस मामले की सूचना पुलिस को दी गई, लेकिन पुलिस को घटनास्थल पर पहुंचने में 4 घंटे लगे. इस बीच घटनास्थल पर सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. निस्संदेह यह मामला गैंगरेप के बाद जघन्य तरीके से हत्या करने का था. पुलिस ने केस दर्ज किया और शुरुआती पूछताछ के बाद गुडि़या की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एक स्कूली छात्रा के साथ दरिंदगी की इस घटना से प्राय: शांत रहने वाली वादी सुलग उठी. निस्संदेह यह घटना दिल दहला देने वाली थी. गुडि़या के गुनहगारों का पकड़ा जाना जरूरी था. गुडि़या के पिता ने रसूखदार लोगों को साथ ले कर पुलिस पर दबाव बनाया. केस पहले ही दर्ज हो चुका था, सो पुलिस ने जांच में सक्रियता दिखानी शुरू की. पुलिस ने 3-4 लड़कों को पकड़ा भी, लेकिन रसूखदार होने की वजह से उन्हें मामूली पूछताछ के बाद छोड़ दिया. दरअसल, सोशल नेटवर्किंग साइट पर बतौर संदिग्ध इन लोगों के फोटो वायरल हुए थे, जिस की वजह से पुलिस उन्हें उठा लाई थी.

पुलिस का ढुलमुल रवैया देख कर गुडि़या के परिजनों का पुलिस वालों से विश्वास उठने लगा तो कोटखाई के लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश उभरने लगा.crime story

मामला सुलगते देख 11 जुलाई को कोटखाई पुलिस ने पास ही के गांव के 4 युवकों को हिरासत में लिया और गुडि़या केस में पूछताछ के लिए उन्हें किसी गुप्त स्थान पर ले गई. इस के साथ ही पुलिस क्षेत्र में सक्रिय मोबाइल काल डिटेल्स के डंप डाटा की छानबीन भी कर रही थी. इस बीच पुलिस की एक टीम ने पोशीदगी से उन लोगों की सूची भी तैयार की, जो इस वारदात वाले दिन से ही गांव से बाहर थे.

इस प्रयास में पुलिस को एक ऐसे युवक के बारे में पता चला, जो वारदात वाले दिन से ही भूमिगत था. पूरे गांव में किसी को भी इस बात की खबर नहीं थी कि वह अचानक कहां चला गया. पुलिस ने उस युवक के मोबाइल को ट्रैकिंग पर लगा कर उस की काल डिटेल्स व लोकेशन पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस से पुलिस को उस की गतिविधियों पर शक तो हुआ, लेकिन न जाने किस वजह से पुलिस ने उस की ओर से ध्यान हटा लिया.

वैसे पुलिस ने इस केस की अपनी जांच के बारे में अपनी अब तक की प्रगति के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलने दिया था. फिर भी जैसेतैसे यह बात सामने आ गई कि हिरासत में लिया गया एक आरोपी उस स्कूल के निकटवर्ती गांव का रहने वाला था, जहां गुडि़या पढ़ती थी. यह शख्स गांव में अकेला रहता था और खूब नशा करता था. उस की मां एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थी, जिस वजह से वह खुद का कुछ ज्यादा ही रौबदाब बनाए रखने की कोशिश करता था.

पत्रकारों को पुलिस ने इस केस के संबंध में कुछ बताया था तो केवल इतना कि इस कांड में 4 से अधिक आरोपी हो सकते हैं, साथ ही यह भी कि जंगल में जिस जगह से गुडि़या का शव बरामद हुआ था, वह जगह सड़क से ज्यादा दूर नहीं है. जिस तरीके से गुडि़या का नग्न शव वहां पड़ा मिला था, उस से साफ जाहिर होता है कि उस से दुराचार कर के उस की हत्या कहीं और की गई थी और बाद में शव को वहां ला कर फेंक दिया गया था.crime story

इधर यह सब चल रहा था और उधर मामला हल करने के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने प्रदेश के डीजीपी सोमेश गोयल को अपने निवास पर बुलाया. उन्होंने डीजीपी से इस मामले को जल्दी से जल्दी हल करने के लिए एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम का गठन करने का आदेश दिया, साथ ही मुख्यमंत्री ने पीडि़ता के परिवार को 5 लाख रुपया सहायता राशि देने की घोषणा भी की.

डीजीपी सोमेश गोयल ने उसी दिन आईजी जहूर हैदर जैदी की अगुवाई में एसआईटी गठित कर दी. इस टीम में जिन पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया, वे थे एएसपी (शिमला) भजनदेव नेगी, डीएसपी (ठियोग) मनोज जोशी, डीएसपी रतन नेगी, थानाप्रभारी (ढल्ली थाम) बाबूराम शर्मा, एसआई धर्म सिंह, थानाप्रभारी (छोटा शिमला) राजेंद्र सिंह, थानाप्रभारी (कोटखाई) व एडीशनल थानाप्रभारी (ठियोग) के अलावा आधा दरजन अन्य पुलिसकर्मी.

इस टीम ने युद्धस्तर पर गुडि़या केस की छानबीन करते हुए 84 संदिग्ध लोगों से पूछताछ की. वह भी केवल 52 घंटों में. 28 मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की भी जांच की गई. यह मामला कोटखाई थाना में धारा 376 एवं 302 के तहत दर्ज किया गया था. अब इस में पोक्सो एक्ट की धारा 4 का भी समावेश कर दिया गया था.

अपनी इस तरह की उपलब्धियों के साथ 13 जुलाई को डीजीपी सोमेश गोयल ने पुलिस मुख्यालय में एक बड़ी प्रैस कौन्फ्रैंस की. उन्होंने पहले तो इस मामले के हल हो जाने की घोषणा करते हुए अपने सभी कनिष्ठ अधिकारियों की पीठ थपथपाई. फिर पत्रकारों को बताया कि उन की पुलिस ने गुडि़या केस को महज 52 घंटों के भीतर सुलझा कर इस कांड में शामिल सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.

उन नामों का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि इस मामले में जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, वे हैं—महिंद्रा पिकअप वैन का चालक राजेंद्र सिंह उर्फ राजू, उम्र 32 साल, निवासी गांव हलाईला, उत्तराखंड का रहने वाला 42 वर्षीय सुभाष सिंह बिष्ट, नेपाल निवासी 29 वर्षीय सूरज सिंह, 19 साल का लोकजन उर्फ छोटू और गढ़वाल निवासी 38 वर्षीय दीपक उर्फ दीपू.

संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से जानकारियां साझा करते हुए डीजीपी ने बताया, ‘‘हालफिलहाल ये सभी अभियुक्त हलाईला ही में रह रहे थे, जबकि राजू मूलरूप से जिला मंडी के गांव जंजैहली का रहने वाला है. एक अन्य अभियुक्त के बारे में बताना रह गया, वह है महासू के नजदीक शराल गांव का रहने वाला 29 वर्षीय आशीष चौहान उर्फ आशु.crime story

‘‘यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था. आरोपियों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं. यह कोई वारदात नहीं थी, बल्कि अपर्चुनिटी क्राइम था. नशे में धुत्त 5 आरोपियों ने पहले छात्रा के साथ बलात्कार किया, फिर उस की हत्या कर दी. अपराध के दिन लड़की के पास मोबाइल नहीं था. उस दिन इस क्षेत्र में बारिश भी हुई थी. मेरा दावा है कि हमारी एसआईटी ने 5 तरह के वैज्ञानिक सबूत जुटा कर इस केस को पूरी जिम्मेदारी से हल कर लिया है.’’

लेकिन लोगों को पुलिस का यह दावा हजम नहीं हुआ. पुलिस जांच से नाखुश आक्रोशित भीड़ ने पुलिस के ही खिलाफ कमर कस ली. कोटखाई व ठियोग थानों पर पत्थरबाजी करते हुए लोगों ने जम कर हंगामा किया.

14 जुलाई को जब शिमला के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डी.डब्ल्यू. नेगी ठियोग थाना में आए हुए थे, तभी लोगों ने थाने पर हमला कर के न केवल एसएसपी से धक्कामुक्की की, बल्कि एक दारोगा को भी थाने से बाहर खींच कर उस की वर्दी पर लगे स्टार नोच लिए. पुलिसकर्मियों ने बड़ी मुश्किल से अपने एसएसपी को थाने के भीतर पहुंचा कर गेट बंद कर लिया.

इस बीच उग्र भीड़ ने एक एसपी व एक डीएसपी की गाड़ी समेत पुलिस की कई गाडि़यों को तोड़ डाला था. इधर यह सब चल रहा था, उधर शिमला में इस तरह के हंगामे की आशंका के मद्देनजर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, मुख्य सचिव गृह व डीजीपी सहित अन्य कई अधिकारियों की सचिवालय में आपातकालीन बैठक हुई. बैठक के तुरंत बाद सीएम वीरभद्र सिंह ने घोषणा कर दी कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मैं इस केस को सीबीआई के हवाले करने की सिफारिश करता हूं.

सीएम का आदेश होते ही शासन ने इस से संबंधित अधिसूचना जारी कर दी, ताकि किसी को किसी तरह का संशय न रहे.crime story

लेकिन लोगों का कहना था कि इस कांड में संलिप्त रईसजादों को बचाने के लिए पुलिस सारा केस गरीब मजदूरों पर डालने की कोशिश कर रही है. पहले कुछेक रईसजादों को पुलिस ने इस केस में पकड़ा भी था, मगर उन्हें जल्दी ही छोड़ दिया गया था, जिस का जिक्र हम शुरू में कर चुके हैं. नतीजा यह हुआ कि कोटखाई व ठियोग में हुई किरकिरी के बाद शिमला पुलिस बैकफुट पर आ गई. जिन रईसजादों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया था, पुलिस ने उन्हें फिर से पकड़ लिया.

शिमला के डीडीयू अस्पताल में इन के सीमन एनालिसिस और डीएनए प्रोफाइलिंग के सैंपल लिए गए. मैडिकल करवाने के बाद उन्हें पुलिस मुख्यालय ले जा कर उन से देर रात तक पूछताछ की जाती रही. उन में एक के ऊपर पहले से कई आपराधिक मामले दर्ज थे. कुछ दिनों पहले ही वह शिमला की जिला अदालत से एक आपराधिक केस में बरी भी हुआ था.

पुलिस जो कर रही थी, लोग उस से पहले ही संतुष्ट नहीं थे. जब एक रईसजादे आशु को गुपचुप तरीके से अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया तो लोग और भी भड़क उठे. 18 जुलाई की सुबह 24 पंचायतों के 4 हजार लोग अपना शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के लिए गुम्मा नामक जगह पर इकट्ठा हुए तो वहां कुछ राजनेता भी पहुंच कर एकदूसरे पर तंज कसने लगे.

इन नेताओं की बेतुकी बयानबाजी से गुस्साए लोगों ने ठियोग-हाईकोटी नेशनल हाईवे पर जाम लगा दिया, जो 7 घंटे चला. इस बीच एक गाड़ी को भी तोड़ दिया गया और मौके पर पहुंचे ठियोग के एसडीएम टशी संडूप को लोगों ने कमरे में बंद कर दिया.

कुछ पत्रकार गुडि़या के पिता से मिलने गए तो मालूम पड़ा कि केस वापस लेने के लिए उन्हें करोड़ों का प्रलोभन दिया जा रहा था, जबकि उन्होंने साफ कह दिया था कि उन्हें पैसा नहीं चाहिए. न सरकार की तरफ से न किसी और से. उन्हें तो अपनी बेटी के लिए इंसाफ चाहिए, केवल इंसाफ.

उसी दिन राज्य सरकार की ओर से प्रदेश हाईकोर्ट में इस केस पर जल्दी सुनवाई करने का आवेदन किया गया, जो स्वीकार कर लिया गया. इस संबंध में महाधिवक्ता ने न्यायालय से आग्रह किया कि सीबीआई को आदेश दिया जाए कि तुरंत शिमला पुलिस से रेकौर्ड ले कर अपनी काररवाई शुरू करे. यह आदेश दे भी दिया गया.

लेकिन उस रात वह हो गया, जिस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. कोटखाई थाने की हवालात में इस केस के एक अभियुक्त सूरज की हत्या हो गई. पुलिस के अनुसार, दूसरे अभियुक्त राजू ने सूरज का गुप्तांग मसल कर उसे मार डाला था.

जैसे ही इस की खबर लोगों को लगी, भारी भीड़ एकत्र हो कर कोटखाई की ओर बढ़ने लगी. 19 जुलाई की दोपहर सवा 3 बजे इस भीड़ ने कोटखाई थाने को आग लगा दी. थाने की इमारत के साथ वहां रखा रेकौर्ड जल कर राख हो गया. पुलिस के कई वाहन जला दिए गए, साथ ही घोषणा कर दी गई कि 20 जुलाई को शिमला बंद रहेगा.

20 जुलाई को शिमला शहर समेत समूचे राज्य में पूर्ण बंद रहा. गुडि़या को न्याय की मांग को ले कर हजारों लोग सड़कों पर उतर आए थे. कई जगह पुलिस वालों पर पत्थरबाजी हुई तो इन प्रदर्शनकारियों द्वारा कई थानों में भी घुसने की कोशिश की गई. मृतक सूरज की पत्नी ममता ने भी पति को इंसाफ दिलाने के लिए कमर कस ली थी.

प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इस तरह थाने के भीतर हुई हत्या को गंभीरता से लेते हुए इस की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए, साथ ही कोटखाई थाने के थानाप्रभारी समेत 3 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर के एसआईटी के 3 प्रमुख अफसरों आईजी जैड.एच. जैदी, एसएसपी शिमला डी.डब्ल्यू. नेगी और एएसपी भजनदेव नेगी का तबादला कर दिया गया.

पुलिस के माध्यम से इस अपराध की जो मूलकथा मीडिया तक पहुंची, वह इस प्रकार से थी कि 4 जुलाई को गुडि़या के स्कूल से घर जाते समय उसे पिकअप वैन चालक राजेंद्र उर्फ राजू रास्ते में मिला. राजू ने उसे गाड़ी से छोड़ने की बात कही. वह राजू को जानती थी, इसलिए उस की गाड़ी में बैठ गई.

पिकअप वैन में सुभाष बिष्ट, सूरज सिंह, लोकजन और दीपक भी बैठे थे. ये सब शराब के नशे में थे. कुछ आगे जा कर राजू ने वैन रोकी और ये लोग गुडि़या को घसीट कर जंगल में ले गए, जहां उस के कपड़े फाड़ कर इन लोगों ने उस के साथ यौनाचार व दुराचार किया. इस के बाद जब आरोपियों ने गुडि़या को मारने की योजना बनाई तो उस ने जान की भीख मांगते हुए कहा, ‘जो करना है करो, मगर मुझे जान से मत मारो. मैं जीना चाहती हूं. इस घटना के बारे में मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी.’

लेकिन आरोपियों को उस पर जरा भी तरस नहीं आया. उन्हें अपने फंस जाने का डर था, लिहाजा उन्होंने गुडि़या का गला दबा कर उसे मार डाला.

पुलिस के मुताबिक इस केस की यही कहानी थी और ये 5 लोग ही दोषी थे, अन्य कोई नहीं. इन में सूरज वादामाफ गवाह बनने को तैयार हो गया था, लेकिन उसी की हत्या हो गई.

फिलहाल मीडिया के जरिए लोग रोजाना सवालों के गोले दाग रहे हैं, जिन का कोई पुख्ता जवाब न पुलिस के पास है न ही सरकार के पास. कुछ अहम सवालों की बानगी इस तरह से है:

अस्पताल में जब अभियुक्तों को उन का मैडिकल करवाने ले जाया गया था तो एकदूसरे को गुडि़या का असली हत्यारा बताते हुए वे आपस में लड़ते रहे थे. ऐसे में कस्टडी रिमांड के दौरान उन्हें एक ही हवालात में क्यों रखा गया?

सूरज जब वादामाफ गवाह बनाया जा रहा था तो उसे दूसरे अभियुक्तों से अलग क्यों नहीं रखा गया? केस सीबीआई को भेज दिया गया है, बावजूद इस के पुलिस इन अभियुक्तों का कस्टडी रिमांड बढ़वा कर 18-19 जुलाई की रात में इन्हें किस बात के लिए इंटेरोगेट कर रही थी? सूरज की हत्या कस्टडी रिमांड के दौरान हवालात में हुई तो क्या ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उस की चीखें नहीं सुनीं?

पुलिस के पास इस केस का एक चश्मदीद है, लेकिन अभी तक उस के सीआरपीसी की धारा 164 के अंतर्गत बयान क्यों नहीं दर्ज कराए गए? सूरज ने अपना लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने की बात कही थी तो पुलिस ने इस संबंध में अदालत में अर्जी क्यों नहीं लगाई थी? जब गुडि़या की नग्न लाश मिली थी तो उस के कपड़े और स्कूल बैग वगैरह कहां से बरामद हुए थे?

इस क्रिकेटर के प्यार में पागल थी बाहुबली की ‘देवसेना’

एक तरफ तो लोग जहां ‘बाहुबली’ फेम अनुष्का शेट्टी और उनके को-स्टार प्रभास के साथ उनके रिश्तों को लेकर कयास लगाने में व्यस्त हैं, वहीं इस अदाकारा ने खुद ही खुलासा कर दिया है कि वे किस से प्रेम करती हैं.

अनुष्का जिसे पसंद करती हैं वह कोई और नहीं बल्कि क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे बेहतरीन खिलाड़ी राहुल द्रविड़ हैं. यह खुलासा अनुष्का ने मनोरंजन पोर्टल तेलुगु स्टफ को दिए इंटरव्यू में किया है. इंटरव्यू के दौरान वहां अनुष्का के फैन भी मौजूद थे. औडियन्स में बैठे एक फैन ने अनुष्का से पूछा कि आप सबसे ज्यादा किस क्रिकेटर को पसंद करती हैं.

यह सवाल पूछने के बाद अनुष्का के चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी. फैन के सवाल का जवाब देते हुए अनुष्का ने कहा “राहुल द्रविड मेरे पसंदीदा क्रिकेटर हैं”. वे मुझे तबसे पसंद हैं जब मैं बड़ी हो रही थी. मेरा उनपर क्रश था. एक समय तो ऐसा था कि मैं उनके प्यार में डूब गई थी.

बता दें कि मीडिया में खबर है कि ‘बाहुबली’ की सफलता के बाद प्रभास और अनुष्का सगाई करने वाले हैं. अनुष्का और प्रभास के अफेयर की कई खबरें सामने आई हैं लेकिन दोनों कलाकारों ने इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है. ‘बाहुबली’ से पहले अनुष्का और प्रभास दर्शकों को अपनी औनस्क्रीन कैमेस्ट्री दिखा चुके हैं.

फिलहाल प्रभाष अपनी आगामी फिल्म ‘साहो’ की शूटिंग में व्यस्त हैं. वहीं अनुष्का अपनी आने वाली फिल्म ‘भागमती’ में बिजी हैं. इस फिल्म का पहला पोस्टर अनुष्का के जन्मदिन वाले दिन 7 नवंबर को रिलीज किया गया था.

इस फिल्म में अनुष्का बिल्कुल अलग ही अंदाज में दिखाई देंगी. रिलीज किए गए पोस्टर में अनुष्का का एकदम इंटेंस लुक दिखाया गया है. उनके कपड़ों पर खून लगा है और उनके हाथ में खून से सना हुआ एक हथौड़ा भी दिखाई दे रहा है. इसके साथ ही दूसरा हाथ दीवार पर कील से ठुका हुआ दिखाई दे रहा है.

नहीं खुला भोजपुरी अभिनेत्री की मौत का राज

उत्तर प्रदेश के शहर इलाहाबाद के थाना अतरसुइया के रहने वाले प्रेमप्रकाश श्रीवास्तव ने 19 जून, 2017 को अपनी बेटी अंजलि को फोन किया. अंजलि मुंबई में रह कर फिल्मों में काम करती थी. वह अंधेरी वेस्ट के जुहू लेन स्थित परिमल सोसाइटी की 5वीं मंजिल पर रहती थी. सन 2011 में वह अपने घर से एक्टिंग करने मुंबई गई थी. उस के पिता प्रेमप्रकाश श्रीवास्तव इलाहाबाद में अपना बिजनैस करते हैं और मां शीला हाउसवाइफ हैं. पतिपत्नी समयसमय पर अंजलि को फोन कर के उस की खैरखबर लेते रहते थे. वैसे वे नहीं चाहते थे कि अंजलि मुंबई जा कर रहे और एक्टिंग करे. लेकिन बेटी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उन्हें उस की बात माननी पड़ी थी.

अंजलि को उस के मातापिता प्यार से ‘लवी’ कहते थे. मुंबई में अंजलि ने अपने बातव्यवहार से अपने काम के लोगों से अच्छे संपर्क बना लिए थे. कोशिश कर के उसे कुछ फिल्मों में काम भी मिल गया था. उन में सब से प्रमुख भोजपुरी फिल्म ‘कच्चे धागे’ थी. इस के बाद उस की कुछ और भी फिल्में आईं, जिन में ‘दम होई जेकरा में ओही गाड़ी खूंटा’, ‘लहू के दो रंग’, ‘दीवानगी हद से’, ‘केहू ता दिल में बा’, ‘अब होई बगावत’ और ‘ठोक देब’ प्रमुख थीं.

अंजलि ने हिंदी फिल्म ‘धानी का डीजे कैम’ में भी काम किया था. उस ने करीब आधा दरजन हिंदी फिल्मों में काम किया था, बावजूद इस के उस की ऐसी कोई पहचान नहीं बन पाई थी, जिस से उसे किसी अच्छे बैनर की फिल्म मिलती.

अंजलि इस कोशिश में थी कि उसे कोई लीड रोल वाली फिल्म मिल जाए, पर उसे ऐसी फिल्म नहीं मिल रही थी. ज्यादातर फिल्मों में उसे साइड रोल ही मिल रहे थे. घर वालों से मिलने वह 4-5 महीने में इलाहाबाद आती रहती थी.

फरवरी, 2017 में जब वह घर आई थी तो काफी खुश थी. उसे उम्मीद थी कि अब उस के घर वाले गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी फिल्म एक्ट्रेस है. कुछ लोगों ने कई फिल्मों में अंजलि के काम को देखा तो उस की काफी तारीफ की. इस से उसे उम्मीद थी कि अब उसे बड़ी फिल्में मिल जाएंगी. कुछ दिन घर में रह कर वह मुंबई चली गई थी. जब भी उसे टाइम मिलता था, वह घर वालों से फोन पर बात कर लेती थी.crime story

फिल्मों की दुनिया का ग्लैमर तो हर किसी को दिखता है, लेकिन परदे के पीछे का दर्द कम ही लोग जानते हैं. वह दर्द कई बार कलाकार को हताश और निराश कर देता है. उस हताशा और निराशा में कुछ कलाकार संयम से काम ले कर खुद को उबार लेते हैं तो कुछ उसी में उलझ कर दम तोड़ देते हैं. कहने को अपनी मौत का वह खुद ही जिम्मेदार होता है, पर असल में इस के लिए समाज की व्यवस्था जिम्मेदारी होती है.

भोजपुरी फिल्मों की दुनिया भी कुछ ऐसी ही रचीबसी है. छोटेछोटे शहरों के बहुत सारे युवा तरहतरह के सपने ले कर मुंबई पहुंचते हैं. वहां पहुंच कर कोई हीरो बनना चाहता है तो कोई हीरोइन, कोई विलेन बनना चाहता है तो कोई पुलिस वाला. किसी को गायक बनना होता है तो कोई डायरेक्टर बनने की कोशिश में रहता है.

लेकिन मुंबई आने वाले हर कलाकार की ख्वाहिशें पूरी नहीं हो पातीं. अगर हर साल बनने वाली फिल्मों की संख्या की बात करें तो यहां हर साल 100 से अधिक फिल्में बनती हैं. अपनी कहानी, गानों और द्विअर्थी संवादों के कारण ज्यादातर फिल्मों को ए-सर्टिफिकेट दिया जाता है.

वैसे भोजपुरी फिल्मों का सब से बड़ा बाजार बिहार, झारखंड ही है. अब उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और मुंबई में भी ये फिल्में चलने लगी हैं. मुंबई में हर साल हीरो और हीरोइन बनने वाले लड़केलड़कियों की लंबी कतार लगी होती है. फिल्में बनाने वाले ऐसे निर्मातानिर्देशक ज्यादा हैं, जो कम बजट की फिल्में बनाते हैं.

इन में अधिकांश फिल्में तो सिनेमाघरों तक पहुंच ही नहीं पातीं. ऐसे में इन फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों को बड़ी निराशा होती है. क्योंकि वह यही सोचते हैं कि उन की फिल्म रिलीज होगी तो लोग उन के काम को देखेंगे और पसंद करेंगे. इस के बाद उन्हें और फिल्मों में काम मिलेगा.

भोजपुरी फिल्मों पर आज भी पुरुष प्रधान समाज का कब्जा है. ज्यादातर गायक, जो फिल्मों में हीरो बनते हैं, वही कब्जा किए हुए हैं. ये लोग अपने साथ काम करने वालों की एक लौबी बनाए होते हैं, जिस से नए कलाकार के लिए काम करना मुश्किल हो जाता है.

अंजलि फेसबुक के जरिए अपने घर वालों से जुड़ी थी. उस की मां समयसमय पर मुंबई में उस के पास रहने के लिए जाती रहती थीं. अंजलि मां को घुमाने के लिए कभी बीच पर ले जाती थी तो कभी सिद्धिविनायक मंदिर. 6 जून को अंजलि के मातापिता की शादी की सालगिरह थी. उस ने फेसबुक पर अपनी यादों का एक एलबम शेयर करते हुए मम्मीपापा को बधाई दी थी.

29 साल की अंजलि की नई फिल्म ‘केहू ता दिल में बा’ रिलीज हो चुकी थी. वह अब नए प्रोजैक्ट की तैयारी में थी. 8 जून को अंजलि ने अपने फेसबुक पेज पर एक शेर लिखा था, ‘उस के साथ जीने का एक मौका दे दे खुदा, तेरे साथ तो मरने के बाद भी रह लेंगे.’

अंजलि की इस पोस्ट को उस समय दोस्तों ने ऐसे ही समझा था. कई ने पूछा भी था कि कौन है वह, जिस के लिए उस ने यह शेर लिखा है.

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19 जून, 2017 की बात है. अंजलि के मोबाइल पर उस की मां शीला ने फोन किया. घंटी बजने के बाद भी अंजलि ने फोन रिसीव नहीं किया तो शीला ने कई बार फोन किया. हर बार उस के फोन की घंटी बजी, पर फोन नहीं उठा. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. जब कभी अंजलि व्यस्त होती थी तो फोन रिसीव कर के कह देती कि ‘मम्मी मैं अभी बिजी हूं. बाद में काल कर लूंगी.’

बेटी द्वारा फोन न उठाने से शीला परेशान हो गईं. उन्होंने उसी समय पति प्रेमप्रकाश श्रीवास्तव को पूरी बात बताई. प्रेमप्रकाश ने भी अंजलि को फोन किया. पूरी घंटी बजने के बाद भी फोन नहीं उठा तो परेशान हो कर उन्होंने उस की सोसाइटी के नंबर पर संपर्क किया.

सोसाइटी वालों ने डुप्लीकेट चाबी से अंजलि का कमरा खोला तो कमरे के अंदर अंजलि पंखे से लटकी मिली. सोसाइटी वालों ने यह जानकारी फोन द्वारा पुलिस को दी और अंजलि को लीला कपूर अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

अंजलि के घर वालों को जैसे ही यह खबर मिली, वे मुंबई पहुंचे. मुंबई पुलिस की एसीपी रश्मि कारदिंकर ने बताया कि मृतका के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. पुलिस को अपनी जांच में हत्या से संबंधित कोई सबूत नहीं मिला. ऐसे में इस मामले को आत्महत्या ही माना गया.

एक युवा अभिनेत्री, जो कुछ साल पहले बहुत सारे सपने ले कर मुंबई गई थी, उन सपनों का अंत हो चुका था. अंजलि के साथ काम करने वाले कई कलाकार इस घटना से बहुत आहत थे. वे कह रहे थे कि अंजलि बहुत ही मिलनसार और हंसमुख थी. उस में फिल्मनगरी वाली चालाकियां नहीं थीं. शायद यही वजह रही कि वह इस दुनिया की चालबाजियों को समझ नहीं पाई.

अंजलि को अपने काम और टैलेंट पर भरोसा था. वह इस उम्मीद में थी कि एक बार उसे अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिल जाए तो वह दुनिया को दिखा देगी कि उस में भी अभिनय क्षमता है. फिल्म जगत के कई लोगों ने उसे भरोसा दिलाया था कि वह उसे अपनी फिल्म में काम देंगे. जब अंजलि के भरोसे को ठेस लगी तो उस के सामने दुनिया के रंगमंच को अलविदा कहने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा.

अंजलि के इस फैसले से भोजपुरी फिल्मों की दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ा. वहां हर काम अपनी गति से चल रहा है. प्रभाव पड़ा है तो अंजलि के परिवार, उस के मातापिता और भाईबहन पर. वह इस हादसे से टूट गए हैं. घटना के कई महीने बीत जाने के बाद भी वे अभी कुछ बोलनेसमझने की हालत में नहीं हैं. उन्हें आज भी अपनी प्यारी बेटी की याद आती है तो लगता है लवी अभी आने वाली है.

अंजलि के बिना मुंबई से वापस आते समय उस की मां ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा था, ‘मुंबई कभी दोबारा आना नहीं होगा’. बेटी की याद पूरे परिवार को बारबार सताती है. 13 जुलाई को अंजलि के जन्मदिन पर उस की मां ने फेसबुक पर बेटी को बधाई देते हुए पूछा था, ‘क्या अब तुझ को मेरी याद नहीं आती?’

मां के लिए बेटी बहुत बड़ा सहारा थी. बेटी ऐसे हार जाएगी, यह कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था. यही वजह है कि मां को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा कि अंजलि अब इस दुनिया में नहीं है.

हम ने अपनी माताजी का गुरदा प्रत्यारोपण करवाया है. गुरदा प्रत्यारोपण के बाद कौन कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए.

सवाल
हाल ही में हम ने अपनी माताजी का गुरदा प्रत्यारोपण करवाया है? हम जानना चाहते हैं कि गुरदा प्रत्यारोपण के बाद कौनकौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब
यह किसी और का गुरदा होता है, इसलिए तब तक दवा लेना जरूरी है जब तक कि शरीर इस नए गुरदे को स्वीकार नहीं लेता. गुरदा प्रत्यारोपण के बाद हैल्दी जीवनशैली अपनाएं ताकि जटिलता की आशंका न्यूनतम हो. पोषक भोजन का सेवन करें. वजन अधिक है तो वजन घटाएं. संक्रमण से बचने के लिए जरूरी उपाय करें. ऐसे स्थान, व्यक्ति से दूर रहें, जिस से संक्रमण फैलने का डर हो. बीमार हों तो डाक्टर की सलाह के बिना दवा न लें. जब भी डाक्टर के पास इलाज के लिए जाएं तो उन्हें गुरदा प्रत्यारोपण के बारे में जरूर बताएं.

मैं भाभी की बहन से जिस्मानी रिश्ता बना चुका हूं, पर वह किसी और लड़के के साथ भी हमबिस्तर हो चुकी है. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 23 साल का हूं और भाभी की चचेरी बहन से प्यार करता था. उस के साथ 7 बार जिस्मानी रिश्ता भी बना चुका हूं, पर वह किसी और लड़के के साथ भी हमबिस्तर हो चुकी है, इसलिए मैं ने उस से बोलना छोड़ दिया है. मगर सोते वक्त उस की याद आती है. मैं क्या करूं?

जवाब
जब आप बिना शादी के किसी को हमबिस्तर बनाएंगे, तो यह होगा ही. अगर आप उसे जैसी है वैसी अपना सकते हैं, तो ज्यादा एतराज करे बिना दोस्ती बनाए रखें.

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हुस्न का धोखा

सेठ मंगतराम अपने दफ्तर में बैठे फाइलों में खोए हुए थे, तभी फोन की घंटी बजने से उन का ध्यान टूट गया. फोन उन के सैक्रेटरी का था. उस ने बताया कि अनीता नाम की एक औरत आप से मिलना चाहती है. वह अपनेआप को दफ्तर के स्टाफ रह चुके रमेश की विधवा बताती है.

सेठ मंगतराम ने कुछ पल सोच कर कहा, ‘‘उसे अंदर भेज दो.’’

सैक्रेटरी ने अनीता को सेठ के केबिन में भेज दिया. सेठ मंगतरात अपने काम में बिजी थे कि तभी एक मीठी सी आवाज से वे चौंक पड़े. दरवाजे पर अनीता खड़ी थी. उस ने अंदर आने की इजाजत मांगी. सेठ उसे भौंचक देखते रह गए.

अनीता की न केवल आवाज मीठी थी, बल्कि उस की कदकाठी, रंगरूप, सलीका सभी अव्वल दर्जे का था.

सेठ मंगतराम ने अनीता को बैठने को कहा और आने की वजह पूछी. अनीता ने उदास सूरत बना कर कहा, ‘‘मेरे पति आप की कंपनी में काम करते थे. मैं उन की विधवा हूं. मेरी रोजीरोटी का कोई ठिकाना नहीं है. अगर कुछ काम मिल जाए, तो आप की मेहरबानी होगी.’’

सेठ मंगतराम ने साफ मना कर दिया. अनीता मिन्नतें करने लगी कि वह कोई भी काम कर लेगी.

सेठ ने पूछा, ‘‘कहां तक पढ़ी हो?’’

यह सुन कर अनीता ने अपना सिर झुका लिया.

सेठ मंगतराम ने कहा, ‘‘मेरा काम सर्राफ का है, जिस में हर रोज करोड़ों रुपए का लेनदेन होता है. मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तुम्हें कहां काम दूं? खैर, तुम कल आना. मैं कोई न कोई इंतजाम कर दूंगा.’’

अनीता दूसरे दिन सेठ मंगतराम के दफ्तर में आई, तो और ज्यादा कहर बरपा रही थी. सभी उसे ही देख रहे थे. सेठ भी उसे देखते रह गए.

अनीता को सेठ मंगतराम ने रिसैप्शनिस्ट की नौकरी दे दी और उसे मौडर्न ड्रैस पहनने को कहा.

अनीता अगले दिन से ही मिनी स्कर्ट, टीशर्ट, जींस और खुले बालों में आने लगी. देखते ही देखते वह दफ्तर में छा गई.

अनीता ने अपनी अदाओं और बरताव से जल्दी ही सेठ मंगतराम का दिल जीत लिया. उस का ज्यादातर समय सेठ के साथ ही गुजरने लगा और कब दोनों की नजदीकियां जिस्मानी रिश्ते में बदल गईं, पता नहीं चला.

अनीता तरक्की की सीढि़यां चढ़ने लगी. कुछ ही समय में वह सेठ मंगतराम के कई राज भी जान गई थी. वह सेठ के साथ शहर से बाहर भी जाने लगी थी.

सेठ मंगतराम का एक बेटा था. उस का नाम राजीव था. वह अमेरिका में ज्वैलरी डिजाइन का कोर्स कर रहा था. अब वह भारत लौट रहा था.

सेठ मंगतराम ने अनीता से कहा, ‘‘आज मेरी एक जरूरी मीटिंग है, इसलिए तुम मेरे बेटे राजीव को लेने एयरपोर्ट चली जाओ.’’

अनीता जल्दी ही एयरपोर्ट पहुंची, पर उस ने राजीव को कभी देखा नहीं था, इसलिए वह एक तख्ती ले कर रिसैप्शन काउंटर पर जा कर खड़ी हो गई.

राजीव उस तख्ती को देख कर अनीता के पास पहुंचा और अपना परिचय दिया.

अनीता ने उस का स्वागत किया और अपना परिचय दिया. उस ने राजीव का सामान गाड़ी में रखवाया और उस के साथ घर चल दी.

राजीव खुद बड़ा स्मार्ट था. वह भी अनीता की खूबसूरती से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. अनीता का भी यही हालेदिल था.

घर पहुंच कर राजीव ने अनीता से कल दफ्तर में मुलाकात होने की बात कही.

अगले दिन राजीव दफ्तर पहुंचा, तो सारे स्टाफ ने उसे घेर लिया. राजीव भी उन से गर्मजोशी से मिल रहा था, पर उस की आंखें तो किसी और को खोज रही थीं, लेकिन वह कहीं दिख नहीं रही थी.

राजीव बुझे मन से अपने केबिन में चला गया, तभी उसे एक झटका सा लगा.

अनीता राजीव के केबिन में ही थी. वह अनीता से न केवल गर्मजोशी से मिला, बल्कि उस के गालों को चूम भी लिया.

आज भी अनीता गजब की लग रही थी. उस ने राजीव के चूमने का बुरा नहीं माना.

इसी बीच राजीव के पिता सेठ मंगतराम वहां आ गए. उन्होंने अनीता से कहा, ‘‘तुम मेरे बेटे को कंपनी के बारे में सारी जानकारी दे दो.’’

अनीता ने ‘हां’ में जवाब दिया.

मंगतराम ने आगे कहा, ‘‘अनीता, आज से मैं तुम्हारी टेबल भी राजीव के केबिन में लगवा देता हूं, ताकि राजीव को कोई दिक्कत न हो.’’

इस तरह अनीता का अब ज्यादातर समय राजीव के साथ ही गुजरने लगा. इस वजह से उन दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ने लगीं.

आखिरकार एक दिन राजीव ने ही पहल कर दी और बोला, ‘‘अनीता, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या हम एक नहीं हो सकते?’’

अनीता यह सुन कर मन ही मन बहुत खुश हुई, पर जाहिर नहीं किया. कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली, ‘‘राजीव, तुम शायद मेरी हकीकत नहीं जानते हो. मैं एक विधवा हूं और तुम से उम्र में भी 4-5 साल बड़ी हूं. यह कैसे मुमकिन है.’’

राजीव ने कहा, ‘‘मैं ऐसी बातों को नहीं मानता. मैं अपने दिल की बात सुनता हूं. मैं तुम्हें चाहता हूं…’’ इतना कह कर राजीव अचानक उठा और अनीता को अपनी बांहों में भर लिया. अनीता ने भी अपनी रजामंदी दे दी.

राजीव और अनीता अब खूब मस्ती करते थे. बाहर खुल कर, दफ्तर में छिप कर. राजीव अनीता पर बड़ा भरोसा करने लगा था. उस ने भी अनीता को अपना राजदार बना लिया था.

इस तरह कुछ ही दिनों में अनीता ने कंपनी के मालिक और उस के बेटे को अपनी मुट्ठी में कर लिया. अनीता ने अपने जिस्म का पासा ऐसा फेंका, जिस में बापबेटे दोनों उलझ गए.

अनीता ने सेठ मंगतराम के घर पर भी अपना सिक्का जमा लिया था. उस ने सेठजी की पत्नी व नौकरों पर भी अपना जादू चला दिया. वह अपने हुस्न के साथसाथ अपनी जबान का भी जादू चलाती थी.

एक दिन राजीव ने अनीता से कहा, ‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

अनीता बोली, ‘‘मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं, पर सेठजी ने तो तुम्हारे लिए किसी अमीर घराने की लड़की पसंद की है. वे हमारी शादी नहीं होने देंगे.’’

राजीव बोला, ‘‘हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’

अनीता ने जवाब दिया, ‘‘भाग कर हम कहां जाएंगे? कहां रहेंगे? क्या खाएंगे? सेठजी शायद तुम्हें अपनी जायदाद से भी बेदखल कर दें.’’

अनीता की बातें सुन कर राजीव चौंक पड़ा. वह सोचने लगा, ‘क्या पिताजी इस हद तक नीचे गिर सकते हैं?’

अनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं पिछले 2 साल से सेठजी के साथ हूं. जहां तक मैं जान पाई हूं, सेठजी को अपनी दौलत और समाज में इज्जत बहुत प्यारी है. क्यों न ऐसा तरीका निकाला जाए कि सेठजी जायदाद से बेदखल न कर पाएं.’’

राजीव ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

अनीता ने बताया, ‘‘क्यों न सेठजी के दस्तखत किसी तरह जायदाद के कागजात पर करा लिए जाएं?’’

राजीव बोला, ‘‘यह कैसे मुमकिन है? पिताजी कागजात नहीं पढ़ेंगे क्या?’’

अनीता बोली, ‘‘सेठजी मुझ पर काफी भरोसा करते हैं. दस्तखत कराने की जिम्मेदारी मेरी है.’’

कुछ दिनों के बाद अनीता सेठजी के केबिन में पहुंची, तो उन्होंने पूछा, ‘‘बड़े दिन बाद आई हो? क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आई?’’

अनीता ने कहा, ‘‘दफ्तर में काफी काम था. आज भी मैं आप के पास काम से ही आई हूं. कुछ जरूरी फाइलों पर आप के दस्तखत लेने हैं.’’

सेठ मंगतराम बुझे मन से बिना पढ़े ही फाइलों पर दस्तखत करने लगे. अनीता ने जायदाद वाली फाइल पर भी उन से दस्तखत करा लिए.

सेठजी ने अनीता से कहा, ‘‘कुछ देर बैठ भी जाओ मेरी जान,’’ फिर उस से पूछा, ‘‘सुना है कि तुम मेरे बेटे से शादी करना चाहती हो?’’

यह सुन कर अनीता चौंक पड़ी, पर कुछ नहीं बोली.

सेठजी ने बताया, ‘‘राजीव की शादी एक रईस घराने में तय कर दी गई है. तुम रास्ते से हट जाओ.’’

अनीता ने कहा, ‘‘सेठजी, मैं अपनी सीमा जानती हूं. मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिस से मैं आप की नजरों में गिर जाऊं.’’

वैसे, अनीता ने एक शक का बीज यह कह कर बो दिया कि शायद राजीव ने विदेश में किसी गोरी मेम से शादी कर रखी है.

सेठजी अनीता की बातों से चौंक पड़े. यह उन के लिए नई जानकारी थी. उन्होंने अनीता को राजीव से जुड़ी हर बात की जानकारी देने को कहा.

अनीता ने अपनी दस्तखत कराने की योजना की कामयाबी की जानकारी राजीव को दी. वह खुशी से झूम उठा.

राजीव ने अनीता से कहा, ‘‘डार्लिंग, मैं ने कई बार ज्वैलरी डिजाइन की है. इन डिजाइनों की कीमत बाजार में करोड़ों रुपए है. मैं इस के बारे में अपने पिताजी को बताने वाला था, पर अब मैं इस बारे में उन से कोई बात नहीं करूंगा.’’

अनीता ने जब ज्वैलरी डिजाइन के बारे में सुना, तो वह चौंक पड़ी. उस ने मन ही मन एक योजना बना डाली.

एक दिन अनीता सेठजी के केबिन में बैठी थी, तब उस ने चर्चा छेड़ते हुए कहा, ‘‘राजीवजी के पास लेटैस्ट डिजाइन की हुई ज्वैलरी है, जिस की बाजार में बहुत ज्यादा कीमत है. आप का बेटा तो हीरा है.’’

यह सुन कर सेठजी चौंक पड़े और बोले, ‘‘मुझे तो इस बारे में तुम से ही पता चला है. क्या पूरी बात बताओगी?’’

अनीता ने कहा, ‘‘शायद राजीवजी आप से खफा होंगे, इसलिए उन्होंने इस सिलसिले में आप से बात नहीं की.’’

अनीता ने चालाकी से सेठजी के दिमाग में यह कह कर शक का बीज बो दिया कि शायद राजीव अपना कारोबार खुद करेंगे.

सेठ चिंतित हो गए. वे बोले, ‘‘अगर ऐसा हुआ, तो हमारी बाजार में साख गिर जाएगी. इसे रोकना होगा.’’

अनीता ने कहा, ‘‘सेठजी, अगर डिजाइन ही नहीं रहेगा, तो वे खाक कारोबार कर पाएंगे?’’

सेठजी ने पूछा, ‘‘तुम क्या पहेलियां बुझा रही हो? मैं कुछ समझा नहीं?’’

अनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सेठजी, अगर वह डिजाइन किसी तरह आप के नाम हो जाए, तो आप राजीव को अपनी मुट्ठी में कर सकते हैं.’’

‘‘यह होगा कैसे?’’ सेठजी ने पूछा.

अनीता बोली, ‘‘मैं करूंगी यह काम. राजीवजी मुझ पर भरोसा करते हैं. मैं उन से दस्तखत ले लूंगी.’’

सेठजी ने कहा, ‘‘अगर तुम ऐसा कर दोगी, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा.’’

अनीता ने यहां भी पुराना तरीका अपनाया, जो उस ने सेठजी के खिलाफ अपनाया था. राजीव से फाइलों पर दस्तखत लेने के दौरान ज्वैलरी राइट के ट्रांसफर पर भी दस्तखत करा लिए.

सेठ चूंकि सोने के कारोबारी थे, इसलिए काफी मात्रा में सोना व काले धन अपने घर के तहखाने में ही रखते थे, जिस के बारे में उन्होंने किसी को नहीं बताया था. पर बुढ़ापे का प्यार बड़ा नशीला होता है. लिहाजा, उन्होंने अनीता को इस बारे में बता दिया था.

इस तरह कुछ दिन और गुजर गए. एक दिन राजीव ने अनीता से कहा, ‘‘अगले सोमवार को हम कोर्ट में शादी कर लेंगे. तुम ठीक 9 बजे आ जाना.’’

अनीता ने भी कहा, ‘‘मैं दफ्तर से छुट्टी ले लेती हूं, ताकि किसी को शक न हो.’’

फिर अनीता सेठजी के पास गई. उन्हें बताया, ‘‘सोमवार को राजीव कोर्ट में किसी विदेशी लड़की से शादी करने जा रहा है. मुझे उस ने गवाह बनने को बुलाया है.’’

सेठजी गुस्से से आगबबूला हो गए.

तब अनीता ने सेठजी को शांत करते हुए कहा, ‘‘कोर्ट पहुंच कर आप राजीव को एक किनारे ले जा कर समझाएं. शायद वह मान जाए. आप अभी होहल्ला न मचाएं. आप की ही बदनामी होगी.’’

सेठजी ने अनीता से कहा, ‘‘तुम सही बोलती हो.’’

सोमवार को राजीव कोर्ट पहुंच गया और अनीता का इंतजार करने लगा, तभी उस के सामने एक गाड़ी रुकी, जिस में अपने पिताजी को देख कर वह चौंक पड़ा.

सेठजी ने राजीव को एक कोने में ले जा कर समझाया, ‘‘क्यों तुम अपनी खानदान की इज्जत उछाल रहे हो? वह भी दो कौड़ी की गोरी मेम के लिए.’’

यह सुन कर राजीव हंस पड़ा और बोला, ‘‘क्यों नाटक कर रहे हैं आप? मैं किसी गोरी मेम से नहीं, बल्कि अनीता से शादी करने वाला हूं. पता नहीं, वह अभी तक क्यों नहीं आई?’’

अनीता का नाम सुन कर अब चौंकने की बारी सेठजी की थी. उन्होंने कहा, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो? अनीता ने मुझे बताया है कि तुम आज एक गोरी मेम से शादी कर रहे हो, जिस के साथ तुम विदेश में रहते थे.’’

राजीव ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘आप क्यों अनीता को बीच में घसीट रहे हैं? मैं उसी से शादी कर रहा हूं.’’

सेठजी को अब माजरा समझ में आने लगा कि अनीता बापबेटों के साथ डबल गेम खेल रही है. उन्होंने राजीव को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटे राजीव, वह हमारे बीच फूट डाल कर जरूर कोई गहरी साजिश रच रही है. अब वह यहां कभी नहीं आएगी.’’

राजीव को भी अपने पिता की बातों पर विश्वास होने लगा. उस ने अनीता के घर पर मोबाइल फोन का नंबर मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला.

दोनों सीधे दफ्तर गए, तो पता चला कि अनीता ने इस्तीफा दे दिया है. दोनों सोचने लगे कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया?

कुछ दिनों के बाद जब सेठजी को कुछ सोने और पैसों की जरूरत हुई, तो वे अपने तहखाने में गए. तहखाना देख कर वे सन्न रह गए, क्योंकि उस में रखा करोड़ों रुपए का सोना और नकदी गायब हो चुकी थी.

सेठजी के तो होश ही उड़ गए. वे तो थाने में शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकते थे, क्योंकि वे खुद टैक्स के लफड़े में फंस सकते थे.

सेठजी ने यह सब अपने बेटे राजीव को बताया. राजीव ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मेरे पास कुछ डिजाइन के कौपी राइट्स हैं, उन्हें बेचने पर काफी पैसे मिलेंगे.’’

पर यह क्या, राजीव जब शहर बेचने गया, तो पता चला कि वे तो 12 महीने पहले किसी को करोड़ों रुपए में बेचे जा चुके हैं.

यह सुन कर राजीव सन्न रह गया. उस पर धोखाधड़ी का केस भी दर्ज हुआ, सो अलग.

सेठजी ने साख बचाने के लिए अपनी कंपनी को गिरवी रखने की सोची, ताकि बाजार से लिया कर्ज चुकाया जा सके.

पर यहां भी उन्हें दगा मिली. एक फर्म ने दावा किया और बाद में कागजात भी पेश किए, जिस के मुताबिक उन्होंने करोड़ों रुपए बतौर कर्ज लिए थे और 4 महीने में चुकाने का वादा किया था.

देखतेदेखते सेठजी का परिवार सड़क पर आ गया. उन्होंने अनीता की शिकायत थाने में दर्ज कराई, पर वह कहां थी किसी को नहीं पता.

पुलिस ने कार्यवाही के बाद बताया कि रमेश की तो शादी ही नहीं हुई थी, तो उस की विधवा पत्नी कहां से आ गई.

आज तक यह नहीं पता चला कि अनीता कौन थी, पर उस ने आशिकमिजाज बापबेटों को ऐसी चपत लगाई कि वे जिंदगीभर याद रखेंगे.

इस बिकिनी वीडियो के चलते सोनम कपूर हुईं बौडी-शेमिंग का शिकार

सोनम कपूर इन दिनों अपनी को-स्टार स्‍वरा भास्‍कर, करीना कपूर, शिखा तल्‍सानिया और बहन रिया कपूर के साथ ‘वीरे दी वेडिंग’ की शूटिंग में व्यस्त हैं. ‘वीरे दी वेडिंग’ की टीम इस समय फुकेट में हैं. शूटिंग के दौरान कईबार सोनम कपूर और उनकी को-स्टार्स मस्ती करते दिख ही जाती हैं. इन सारी चीजों के बीच सोनम अक्सर ही अपने रिजार्ट से कई खूबसूरत फोटो सोशल मीडिया पर पोस्‍ट करती रहती हैं, जिसके लिए अक्सर उन्हें ट्रोल का शिकार होना पडता है. हाल ही में स्‍वरा भास्‍कर ने सोनम का एक वीडियो शेयर किया, जिसकी वजह से सोनम को न कि सिर्फ ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा बल्कि इतने भद्दे कमेंट्स किये गये जिसे सुनकर कोई भी शर्म से पानी पानी हो जाएगा.

दरअसल हुआ ये कि शूटिंग के बीच फुकेट में रिलैक्स कर रहीं सोनम का एक वीडियो उनकी को-स्‍टार और दोस्‍त स्‍वरा भास्‍कर ने शेयर किया था.

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इस वीडियो में सोनम ने ब्‍लैक कलर की बिकिनी पहन रखा है और इस हाट अवतार मे वह हाथ हिलाते दिखाई दे रही हैं. स्‍वरा ने वीडियो के कैप्‍शन में जाहिर किया कि वह सभी लंबी फ्लाइट के बाद वहां पहुंचे हैं और रिलैक्‍स कर रहे हैं.

वीडियो में सोनम की बहन और फिल्‍म की प्रोड्यूसर रिया कपूर इस फिल्‍म की दूसरी एक्‍ट्रेस शिखा तल्‍सानिया से बातचीत करती नजर आ रही हैं. इस वीडियो पर जहां ज्‍यादातर कमेंट इस फिल्‍म की चौथी वीरे के लिए यानी करीना कपूर से जुड़े हैं तो वहीं कई लोगों ने इस वीडियो में सोनम कपूर को उनके शरीर के आकार के लिए भद्दे कमेंट कर ट्रोल करना शुरू कर दिया है.

कुछ यूर्जस ने कमेंट किया, ‘सोनम तुम इतनी फ्लैट हो कि तुम्हें ब्रा पहनने की जरूरत ही नहीं…’. कुछ ने उन्हें लैसबियन तक कह दिया. इसके अलावा इस वीडियो पर कुछ इतने भद्दे कमेंट्स किए गए हैं जिसका जिक्र भी नहीं किया जा सकता है.

बता दें कि सोनम कपूर ही नहीं बल्कि बौलीवुड की कई एक्‍ट्रेस सोशल मीडिया पर इस तरह के बौडी-शेमिंग का शिकार हो चुकी हैं. प्रियंका चोपड़ा को जहां पीएम मोदी से मिलते समय पहनी गई ड्रेस के लिए ट्रोल किया गया था तो वहीं दीपिका को वैनिटी फेयर मैग्जीन के यूके एडिशन के कवर पेज के फोटो के लिए ट्रोल किया गया. इतना ही नहीं इनके अलावा भी तापसी पन्नू, ईशा गुप्‍ता और फातिमा सना शेख को भी सोशल मीडिया पर अपने कपड़ों के चलते लगातार ट्रोल किया जाता रहा है.

कृतिका की रहस्यमय हत्या की हैरतअंगेज कहानी

छोटे शहरों से बड़े सपने ले कर सैकड़ों लड़कियां आए दिन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचती हैं. लेकिन इन में से गिनीचुनी लड़कियों को ही कामयाबी मिलती है. दरअसल, फिल्म इंडस्ट्री भूलभुलैया की तरह है, जहां प्रवेश करना तो आसान है, लेकिन बाहर निकलना बहुत मुश्किल. क्योंकि यहां कदमकदम पर दिगभ्रमित करने वाले मोड़ों पर गलत राह बताने वाले मौजूद रहते हैं, जिन के अपनेअपने स्वार्थ होते हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में एक तरफ जहां श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, हेमामालिनी, काजोल, जैसी अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय का परचम लहराया, वहीं दूसरी ओर दिव्या भारती, स्मिता पाटिल, जिया खान, नफीसा जोसेफ, शिखा जोशी, विवेका बाबा, मीनाक्षी थापा और प्रत्यूषा बनर्जी जैसी सुंदर व प्रतिभावान छोटे व बड़े परदे की अभिनेत्रियों ने भावनाओं में बह कर अथवा अपनी नाकामयाबी की वजह से जान गंवाई.

सच तो यह है कि प्राण गंवाने वाली किसी भी अभिनेत्री की मौत का सच कभी सामने नहीं आया. अब ऐसी अभिनेत्रियों में एक और नाम जुड़ गया है कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी का.

घटना 12 जून, 2017 की है. सुबह के करीब 10 बजे का समय था. मुंबई के उपनगर अंधेरी (वेस्ट) स्थित अंबोली पुलिस थाने के चार्जरूम में तैनात ड्यूटी अधिकारी को फोन पर खबर मिली कि चारबंगला स्थित एसआरए भैरवनाथ हाउसिंग सोसाइटी की 5वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 503 में से दुर्गंध आ रही है.

ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने मामले की डायरी बना कर इस की जानकारी सीनियर क्राइम इंसपेक्टर दयानायक को दी. इंसपेक्टर दयानायक मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत अपने साथ पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ और वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी.crime story

जब पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची, तब तक वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. भीड़ को हटा कर पुलिस टीम कमरे के सामने पहुंची. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उस फ्लैट में 2-3 सालों से फिल्म और टीवी अभिनेत्री कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी किराए पर रह रही थी. लेकिन वह अपने फ्लैट में कब आती थी और जाती थी, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. चूंकि उस का काम ही ऐसा था, इसलिए किसी ने उस के आनेजाने पर ध्यान नहीं दिया था. पासपड़ोस के लोगों से भी उस का संबंध नाममात्र का था. पता चला कि कई बार तो वह शूटिंग पर चली जाती थी तो कईकई दिन नहीं लौटती थी.

फ्लैट की चाबी किसी के पास नहीं थी. जबकि फ्लैट बंद था. इंसपेक्टर दया नायक ने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर के फ्लैट का दरवाजा तोड़वा दिया. दरवाजा टूटते ही अंदर से बदबू का ऐसा झोंका आया कि वहां खड़े लोगों को सांस लेना कठिन हो गया. नाक पर रूमाल रख कर जब पुलिस टीम फ्लैट के अंदर दाखिल हुई तो कमरे का एसी 19 डिग्री टंप्रेचर पर चल रहा था. संभवत: हत्यारा काफी चालाक और शातिर था. लाश लंबे समय तक सुरक्षित रहे और सड़न की बदबू बाहर न जाए, यह सोच कर उस ने एसी चालू छोड़ दिया था. लाश की स्थिति से लग रहा था कि कृतिका की 3-4 दिनों पहले ही मौत हो गई थी.

इंसपेक्टर दया नायक अभी अपनी टीम के साथ घटनास्थल का निरीक्षण और मृतका कृतिका के पड़ोसियों से पूछताछ कर रहे थे कि अंबोली पुलिस थाने के थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़, डीसीपी परमजीत सिंह दहिया, एसीपी अरुण चव्हाण, क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के अधिकारी और फौरेंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई. फौरेंसिक टीम का काम खत्म हो जाने के बाद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ से जरूरी बातें कर के अधिकारी अपने औफिस लौट गए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इंसपेक्टर दया नायक और सहयोगियों के साथ मिल कर घटनास्थल और मृतका कृतिका के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. कृतिका का शव उस के बैडरूम में बैड पर चित पड़ा था. शव के पास ही उस का मोबाइल फोन और ड्रग्स जैसा दिखने वाले पाउडर का एक पैकेट पड़ा था. पुलिस ने कृतिका का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और पाउडर के पैकेट को जांच के लिए सांताकु्रज के कालिया लैब भेज दिया. फोन से कृतिका के घर वालों का नंबर निकाल कर उन्हें इस मामले की जानकारी दे दी गई.

घटनास्थल की जांच में कृतिका के बर्थडे का एक नया फोटो भी मिला, जिस में वह 2 युवकों और 3 युवतियों के बीच पीले रंग की ड्रेस में खड़ी थी और काफी खुश नजर आ रही थी. वह फोटो संभवत: 5 और 8 जून, 2017 के बीच खींची गई थी. कृतिका की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था, साथ ही उस की हत्या में अंगुलियों में पहने जाने वाले नुकीले पंजों का इस्तेमाल किया गया था. कृतिका के शरीर पर कई तरह के जख्मों के निशान थे, जिस से लगता था कि हत्या के पूर्व कृतिका के और हत्यारों के बीच काफी मारपीट हुई थी. हत्या में इस्तेमाल चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

बैड पर कृतिका का खून बह कर बिस्तर पर सूख गया था और उसकी लाश धीरेधीरे सड़नी शुरू हो गई थी. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस टीम ने कृतिका के शव को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले स्थित कूपर अस्पताल भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई पूरी करcrime story

के पुलिस टीम थाने लौट आई. थाने आ कर थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इस मामले पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचारविमर्श किया और तफ्तीश का काम इंसपेक्टर दया नायक को सौंप दिया.

उधर कृतिका की मौत का समाचार मिलते ही उस के परिवार वाले मुंबई के लिए रवाना हो गए. कृतिका की हत्या हो सकती है, यह वे लोग सोच भी नहीं सकते थे. मुंबई पहुंच कर उन्होंने कृतिका का शव देखा तो दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस की जांच टीम ने उन्हें बड़ी मुश्किल से संभाला. पोस्टमार्टम के बाद कृतिका का शव उन्हें सौंप दिया गया.

इंसपेक्टर दया नायक ने कृतिका के परिवार वालों के बयान लेने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ के दिशानिर्देशन में अपनी जांच की रूपरेखा तैयार की, ताकि उस के हत्यारे तक पहुंचा जा सके. एक तरफ इंसपेक्टर दया नायक अपनी तफ्तीश का तानाबाना तैयार कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर और जौइंट पुलिस कमिश्नर देवेन भारती के निर्देश पर क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के इंसपेक्टर महेश देसाई भी इस मामले की छानबीन में जुट गए थे.

फिल्मों, सीरियल अथवा मौडलिंग करने वाली लड़कियों पर पासपड़ोस के लोगों, सोसायटी में काम करने वालों, ड्राइवरों और गार्डों वगैरह की नजर रहती है. उदाहरणस्वरूप वडाला की रहने वाली पल्लवी पुरकायस्थ को ले सकते हैं, जिस की हत्या इमारत के कश्मीरी सिक्योरिटी गार्ड ने उस की सुंदरता पर फिदा हो कर दी थी.

ऐसी ही एक और घटना अक्तूबर, 2016 में गोवा के पणजी में घटी थी. वहां सुप्रसिद्ध ब्यूटी फोटोग्राफर और जानी मानी परफ्यूमर मोनिका घुर्डे का शव सांगोल्डा विलेज की सपना राजवैली इमारत की दूसरी मंजिल पर मिला था.

उस की हत्या में भी इमारत के सिक्योरिटी गार्ड राजकुमार का हाथ था. इसी थ्योरी के आधार पर इंसपेक्टर दया नायक ने अपनी टीम के साथ तफ्तीश उसी इमारत से शुरू की, जिस में कृतिका रहती थी. उन्होंने इमारत के आसपास रहने वालों से पूछताछ की, वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, वहां के सिक्योरिटी गार्डों से पूछताछ की और संदेह के आधार पर उसे हिरासत में भी लिया. उस इमारत का दूसरा सिक्योरिटी गार्ड लखनऊ गया हुआ था. उस की तलाश में पुलिस की एक टीम लखनऊ भी भेजी गई. लेकिन वहां से उसे खाली हाथ लौटना पड़ा.crime story

27 वर्षीया मौडल और अभिनेत्री कृतिका उत्तराखंड के हरिद्वार की रहने वाली थी. उस के पिता हरिद्वार के सम्मानित व्यक्ति थे. ऐशोआराम में पलीबढ़ी कृतिका खूबसूरत भी थी और महत्वाकांक्षी भी. वह ग्लैमर की लाइन में जाना चाहती थी. जबकि उस का परिवार चाहता था कि वह पढ़लिख कर कोई अच्छी नौकरी करे. कृतिका के सिर पर अभिनय और बौलीवुड का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उसे मांबाप की कोई भी सलाह अच्छी नहीं लगती थी. वह बौलीवुड में जाने के लिए स्कूल और कालेजों के हर प्रोग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. इसी के चलते उसे अनेक पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र मिल चुके थे.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कृतिका बौलीवुड की रंगीन दुनिया में काम पाने के लिए प्रयास करने लगी. इस के लिए उस ने अपना फोटो प्रोफाइल तैयार करा लिया था, जिसे वह विभिन्न विज्ञापन एजेंसियों को भेजती रहती थी. कुछ एक एजेंसियों ने उसे रिस्पौंस भी दिया और उसे औडिशन के लिए भी बुलाया. मौडलिंग की दुनिया में वह कुछ हद तक कामयाब भी हो गई थी. इस से उस का हौसला काफी हद तक बढ़ गया. उसे मौडलिंग के औफर मिलने लगे थे.

वैसे बता दें कि कृतिका मौडल नहीं बनना चाहती थी, क्योंकि शरीर के कपड़े उतार कर देह की नुमाइश करना उसे अच्छा नहीं लगता था. पर फिल्मों में काम करने की ललक उसे ऐसे विज्ञापनों में काम करने को मजबूर करती रही और इन्हीं के सहारे वह मुंबई जा पहुंची.

सन 2009 में कृतिका मायानगरी मुंबई आ गई और मौडलिंग करने लगी. मौडलिंग के साथसाथ वह बौलीवुड की दुनिया में भी अपनी किस्मत आजमाती रही. इसी चक्कर में उस ने मौडलिंग एजेंसियों के कई औफर भी ठुकराए. परिणाम यह हुआ कि उस के पास मौडलिंग एजेसियों के औफर आने बंद हो गए. इस बीच वह कई फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से भी मिली. लेकिन उन से उसे आश्वासन तो मिले, पर काम नहीं.

इस सब के चलते एक तरह से वह निराशा से घिर गई थी. तभी एक पार्टी में उस की मुलाकात दिल्ली के बिजनैसमैन राज त्रिवेदी से हुई. जल्दी ही राज त्रिवेदी और कृतिका ने शादी कर ली. शादी के बाद दोनों दिल्ली आ गए. लेकिन कृतिका अपनी शादीशुदा जिंदगी में अधिक दिनों तक खुश नहीं रह पाई और एक साल में ही राज त्रिवेदी से तलाक ले कर आजाद हो गई. अपनी शादी की असफलता से कृतिका टूट सी गई थी, लेकिन उस ने अपने सपनों को नहीं टूटने दिया था.crime story

दिल्ली में रहते हुए कृतिका की मुलाकात शातिर ठग विजय द्विवेदी से हुई. विजय द्विवेदी मुंबई के कई बड़े फिल्मी सितारों और राजनेताओं को चूना लगा चुका था. जिन में फिल्म जगत के जानेमाने अभिनेता गोविंदा, टीवी और भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता तिवारी तथा बालाजी टेलीफिल्म्स की मालिक एकता कपूर और कांग्रेस के कद्दावर नेता अमरीश पटेल शामिल थे.

30 वर्षीय विजय द्विवेदी मूलरूप से दिल्ली का रहने वाला था. वह मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखता था, साथ ही सुंदर और आकर्षण व्यक्तित्व का मालिक था. खुद को वह कांग्रेस के कद्दावर नेता जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बता कर लोगों को अपना परिचय बड़े ही रौब रुतबे वाले अंदाज में देता था. इस से लोग उस के प्रभाव में आ जाते थे. उस ने कृतिका को भी अपना परिचय इसी तरह दिया था. महत्वाकांक्षी कृतिका उस के प्रभाव में आ गई.

विजय द्विवेदी ने कृतिका को जब दिल्ली के एक मौल में शौपिंग करते देखा था, तभी उस ने सोच लिया था कि उसे किसी भी कीमत पर पाना है. वह कृतिका की सुंदरता पर कुछ इस तरह रीझा था कि जबतब कृतिका के आसपास शिकारी चील की तरह चक्कर लगाने लगा. आखिर एक दिन उसे कृतिका के करीब आने का मौका मिल ही गया.

कृतिका के करीब आते ही वह उस की तारीफों के पुल बांधने लगा, साथ ही उस ने उस की दुखती रगों पर हाथ भी रख दिया.उस ने कहा कि उस के जैसी युवती को मौडल, टीवी एक्ट्रेस या फिर फिल्म अभिनेत्री होना चाहिए. उस का यह तीर निशाने पर लगा. नतीजा यह हुआ कि शादी और फिर तलाक होने के बाद भी कृतिका के दिल में बौलीवुड के जो सपने बरकरार थे, उन्हें हवा मिल गई.

आखिरकार विजय द्विवेदी ने कृतिका को अपनी झूठी बातों से अपने प्रेमजाल में फांस लिया. कृतिका की नजदीकियां पाने के लिए उस ने उस की कमजोरी पकड़ी थी. उसे करीब लाने के लिए ही उस ने हाईप्रोफाइल अभिनेताओं और राजनीतिक रसूखदारों के नाम लिए थे. बात बढ़ी तो दोनों की मुलाकातें भी बढ़ गईं. कृतिका को भी विजय द्विवेदी से प्यार हो गया. कृतिका को अपनी मुट्ठी में करने के बाद विजय द्विवेदी ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और कृतिका से शादी कर ली.

सन 2011 में कृतिका विजय द्विवेदी के साथ अपनी किस्मत आजमाने वापस मुंबई आ गई. दोनों अंधेरी वेस्ट के लोखंडवाला कौंपलेक्स इलाके में किराए के एक फ्लैट में साथसाथ रहने लगे. मुंबई आने के बाद कृतिका फिर से बौलीवुड की गलियों में संघर्ष करने लगी. दूसरी ओर विजय द्विवेदी अपने शिकार ढूंढने लगा था. बहरहाल, इस बार एक तरफ कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी की किस्मत रंग लाई, वही दूसरी ओर विजय द्विवेदी की किस्मत के सितारे गर्दिश में आ गए.

कृतिका को जल्द ही फिल्म ‘रज्जो’ में कंगना रनौत के साथ एक बड़ा मौका मिल गया. यह फिल्म सन 2013 में बन कर रिलीज हुई तो दर्शकों को कृतिका का अभिनय पसंद आया. इस के बाद कृतिका के सितारे चमकने लगे. फिल्म ‘रज्जो’ के बाद टीवी धारावाहिक ‘परिचय’ से उस की एंट्री एकता कपूर की कंपनी में हो गई.

इस के साथ ही उसे क्राइम धारावाहिक ‘सावधान इंडिया’ में भी काम मिलने लगा. जहां सन 2013 से कृतिका का कैरियर संवरना शुरू हुआ, वहीं विजय द्विवेदी के कैरियर का सितारा सन 2012 डूब गया था. कांग्रेस नेता अमरीश पटेल को ठगने के बाद उस के कैरियर की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी.

कांग्रेस नेता अमरीश पटेल के ठगे जाने की खबर जब उन की पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी को मिली तो वह सन्न रह गए थे. उन्होंने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से कर दी कि कोई उन्हें अपना चाचा बता कर उन की छवि खराब करने की कोशिश कर रहा है. मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

क्राइम ब्रांच विजय द्विवेदी के पीछे लग गई. फलस्वरूप सन 2012 के शुरुआती दौर में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उस वक्त वह कांग्रेसी नेता सुरेश कलमाड़ी को अपना शिकार बनाने की कोशिश कर रहा था. कलमाड़ी से भी उस ने खुद को जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बताया था. क्राइम ब्रांच ने उसे अपनी कस्डटी में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया.

यह बात जब कृतिका को पता चली तो वह स्तब्ध रह गई. विजय द्विवेदी के संपर्क और एक साल तक उस के साथ रहने के बावजूद भी वह उस की हकीकत नहीं जान पाई थी. दरअसल, वह उस से भी बड़ा ऐक्टर था. बहरहाल, विजय द्विवेदी के ठगी का परदा उठा नहीं कि कृतिका ने उस से तलाक ले लिया. उस का साथ छोड़ कर वह अलग रहने लगी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से बिता रही थी. छोटे पर्दे पर उस के लिए काम की कोई कमी नहीं थी. हत्या के पहले उस ने खुशीखुशी अपना बर्थडे मनाया था. उस के 2-3 दिनों बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

धीरेधीरे इस घटना को घटे लगभग एक माह के करीब हो गया. लेकिन अभी तक अभियुक्तों के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. पुलिस अपनी तफ्तीश की कोई दिशा तय करती, तभी सांताकु्रज के कालिया लैब की रिपोर्ट देख कर उन का ध्यान एमडी ड्रग्स की तरफ गया. इसी बीच कृतिका के परिवार वालों ने बताया कि अपनी पहली शादी और तलाक के बाद वह काफी दुखी थी, जिस के चलते वह ड्रग्स लेने लगी थी.

जांच अधिकारियों ने उन के इसी बयान को आधार बना कर जांच करने का फैसला किया. एसीपी अरुण चव्हाण ने एक नई टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर उदय राजशिर्के, नंदकुमार गोपाल, खार पुलिस थाने के असिस्टैंट इंसपेक्टर जोगदंड, वैशाली चव्हाण, दयानायक और सावले आदि को शामिल किया. टीम के लोगों को अलगअलग जिम्मेदारी सौंपी गई.

सीनियर इंसपेक्टर सी.एस. गायकवाड़ के निर्देशन में जांच टीम ने पुन: घटनास्थल का निरीक्षण किया और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इस कोशिश में पुलिस को एक फुटेज में 2 संदिग्ध युवकों की परछाइयां नजर आईं. लेकिन उन का चेहरा स्पष्ट नहीं था. इस के अलावा पुलिस ने करीब 200 लोगों से पूछताछ करने के अलावा कृतिका के फोन की 2-3 सालों की काल डिटेल्स और डाटा निकलवाया. इस के बाद पुलिस को तफ्तीश की एक हल्की सी किरण नजर आई. इसी के सहारे पुलिस कृतिका के हत्यारे ड्रग्स सप्लायर तक पहुंचने में कामयाब हो गई.

दरअसल, कृतिका को ड्रग्स लेने की आदत पड़ गई थी. उसे ड्रग्स आसिफ अली उर्फ सन्नी सप्लाई करता था. वह सिर्फ कृतिका को ही नहीं, बल्कि और भी कई फिल्मी हस्तियों को ड्रग्स सप्लाई किया करता था. इस चक्कर में वह जेल भी गया था. पूछताछ में उस ने बताया कि वह जेल जाने के पहले कृतिका को ड्रग्स सप्लाई करता था, लेकिन उस के जेल जाने के बाद कृतिका उस के दोस्त शकील उर्फ बौडी बिल्डर से ड्रग्स लेने लगी थी.

शकील उर्फ बौडी बिल्डर थाणे पालघर जनपद के उपनगर नालासोपारा (वेस्ट) की एक इमारत में किराए की काफी मोटी रकम दे कर रहता था. ड्रग्स सप्लाई के दौरान कृतिका और शकील खान की अच्छी दोस्ती हो गई थी. इसी के चलते वह कई बार कृतिका को उधारी में ड्रग्स दे देता था. फलस्वरूप कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बकाया रह गए थे. कृतिका उस का पैसा दे पाती, उस के पहले ही वह अगस्त, 2016 के पहले हफ्ते में जेल चला गया था.

शकील नसीम खान के अपने गिनेचुने ग्राहक थे. उन लोगों को ड्रग्स सप्लाई करने के लिए शकील खान बादशाह उर्फ साधवी लालदास से ड्रग्स लेता था. दोनों के बीच उधारी चलती रहती थी. नवंबर, 2016 में जब शकील जेल से बाहर आया तो उस के दोस्त बादशाह ने उस से अपने पैसों की मांग की. कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बाकी थे. दरअसल, एक ही धंधे में होने के कारण शकील खान ने बादशाह से ड्रग्स ले कर कृतिका को सप्लाई किया था. बादशाह ने जब शकील खान पर दबाव बनाया तो उस ने कृतिका से अपने बकाया  पैसों की मांग शुरू कर दी. लेकिन कृतिका उस का पैसा देने में आनाकानी कर रही थी. इस बीच करीब 6 महीने का समय निकल गया.

घटना के दिन शकील खान अपने दोस्त बादशाह को यह कह कर कृतिका के घर ले गया कि पैसा वह कृतिका के घर पर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. रात का खानापीना करने के बाद चलते समय जब शकील खान ने कृतिका से अपने पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने में मजबूरी जताई. इस की वजह से दोनों में विवाद बढ़ गया.

कृतिका ने चिल्ला कर लोगों को एकत्र करने की धमकी दी तो शकील खान को गुस्सा आ गया. उस ने कृतिका के साथ मारपीट शुरू कर दी. शकील खान के पास लोहे का पंच था, जिस से उस ने कृतिका पर कई वार किए. इस के अलावा उस ने पास पड़ी किसी भारी चीज से भी उस के सिर पर वार कर दिया, जिस से उस की मौत हो गई. इस बीच उस का दोस्त बादशाह उन दोनों का बीच बचाव करता रहा. लेकिन कृतिका की जान नहीं बच सकी.

कृतिका की हत्या करने के बाद शकील खान ने कमरे का एसी चालू कर दिया. उस के बाद कृतिका के बदन के सारे जेवर और 22 सौ रुपए नकद ले कर बादशाह के साथ वहां से चला गया. बहरहाल, इन दोनों अभियुक्तों को पुलिस टीम ने 8 जुलाई को रात को नालासोपारा और पनवेल से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है.

विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें अदालत पर पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त अभी जेल में हैं. लेकिन जांच अधिकारियों के सामने अभी भी एक प्रश्न मुंह बाए खड़ा है कि क्या मात्र 6 हजार रुपए के लिए कृतिका की हत्या की गई. ऐसा लगता तो नहीं है. क्योंकि 6 हजार रुपए न तो ड्रग्स सप्लायरों के लिए बड़ी रकम थी और न ही कृतिका के लिए. बहरहाल मामले की जांच अभी जारी है.

कैमरे को देख भाग खड़ी हुईं सारा अली खान

सैफ अली खान की प्यारी प्रिंसेस सारा अली खान अब जल्द ही फिल्म केदारनाथ में दिखाई देने वाली हैं. यही वजह है कि वे खबरों में बनी रहती हैं, वहीं वे लोगों के बीच इतनी प्रसिद्ध हैं कि सभी उन्हें लेकर छोटी से छोटी बात जानने के लिए उतावले रहते हैं. इतना ही नहीं, कोई भी कैमरामैन उनकी तस्वीर लेने से नहीं चूकता.

जैसा कि आप जानते हैं अपनी फिल्म केदारनाथ के सेट पर सारा अली खान के नखरे देखने लायक होते हैं और उनके इन्ही नखरों की वजह से कुछ समय पहले स्पौट पर मौजूद लोग उनसे खफा हो गए थे. कुछ लोगों का मानना था कि वे ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि वे खबरों में बनी रहना चाहती हैं. लेकिन हाल ही में कुछ ऐसा हुआ, जिसके बाद उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली है.

जी हां, हाल ही में सारा अली खान तब नाराज हो गईं, जब कुछ कैमरामैन उनकी तस्वीरें लेने के लिए उतावले हो रहे थे. कैमरा को देखते ही उन्होंने अपना मुंह छुपा लिया और कहा कि उन्हें मीडिया को तस्वीरें न देने के लिए कहा गया है. उन्होंने कैमरामैन की ये कहते हुए क्लास भी लगाई कि वे उनकी तस्वीरें जिम के दौरान भी ले लेते हैं, जब उन्होंने कम कपड़े पहने होते हैं.

अब सारा की बातों ने अफवाहों को और भी हवा दे दी है. सभी ये बात कर रहे हैं कि आखिर उन्हें किसने कैमरे से दूर रहने के लिए कहा है. कहा जा रहा है कि फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक कपूर भी इसके पीछे हो सकते हैं या सारा के पापा सैफ भी उन्हें ये नसीहत दे सकते हैं. हाल फिलहाल तो सारा कैमरा को देख भाग खड़ी होती हैं, लेकिन जल्द ही वे अपने फैन्स के सामने अपना नया लुक रिविल करेंगी.

घरों में शौचालय बनाने की नरेंद्र मोदी की मुहिम बन गई आफत

घरों में शौचालय बनाने की नरेंद्र मोदी की मुहिम चाहे जितनी अच्छी लगे, यह गरीबों के लिए असल में एक आफत हो गई है. शर्तें रखी गई हैं कि अगर घर में शौचालय नहीं है तो चुनाव नहीं लड़ सकते, नौकरी नहीं पा सकते, स्कूल में दाखिला में नहीं ले सकते.

हरियाणा ने गरीबी रेखा के नीचे वालों को तब तक राशन देना बंद करवा दिया, जब तक वे प्रमाणपत्र नहीं लाएंगे कि उन के घर में शौचालय है. लाखों गरीब मारेमारे फिरें कि पहले शौचालय के लिए सरकारी सहायता मिले, फिर सस्ता राशन. जितने दिन नहीं मिलेगा, उतने दिन क्या होगा? गरीब को महंगा राशन खरीदना होगा न? जिस का घर ही दूसरों की जमीन पर डंडे डाल कर फूस बिछा कर बना हो, वह कहां से शौचालय बनवाएगा, इस से राशन अफसरों को फर्क नहीं पड़ता.

बिहार सरकार ने शौचालय बनवाने के 12,000 रुपए दिए, पर क्या शौचालय असल में इतने में बन जाएगा? और अगर न बने तो उस से पंचायत का चुनाव लड़ने का हक छीन लिया गया है. वह दुहाई देने जाए भी तो कहां जाए, क्योंकि अदालत महंगी है और अफसर को तो आम आदमी का टेंटुआ पकड़ने का मौका भर चाहिए.

उलटे अफसरों और नेताओं ने तो शौचालय न होने पर घर में बाइक या टैलीविजन होने पर मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. नेता भी नहीं सुनते, चाहे उन के घर वाले खुद बाहर शौच करने जाते हों. 5 बार मध्य प्रदेश से सांसद रहे अनूपपुर जिले के दलपत सिंह परस्ते की बेटी टांकी टोला गांव में रहती है, पर 50,000 दूसरे लोगों की तरह वह भी बाहर शौच के लिए जाने को मजबूर है.

शौचालय हर कोई चाहता है, पर यह बनाना उतना आसान नहीं है, जितना प्रधानमंत्री के भाषणों, पोस्टरों, नारों से लगता है. जो घर छोटे हैं, जिन में अपना अहाता या खुली जगह नहीं है, वे कहां बनाएंगे, जिस से बदबू न आए? शौचालय साफ कैसे होगा, अगर बहता पानी न आए? अगर 2 गड्ढे वाला शौचालय भी बनाया गया, तो भी वह महीनेभर में भर जाएगा, तो उस को साफ कैसे करेंगे? अगर लोगों का मल जमीन में जाएगा, तो जमीन का पानी मैला हो जाएगा और बीमारियां पैदा होंगी.

सरकार ने तो यज्ञ करा कर सुखशांति लाने का फैसला सुना दिया. शौचालय यज्ञ कराओ तभी तुम्हारे जीतेजी आत्मा को जिंदा रहने देंगे, वरना मरा समझो. शौचालय के लिए सीवर और लगातार आने वाला पानी दोनों बहुत जरूरी हैं, वरना घरों के बाहर ही सड़ता मल नजर आएगा.

घरों में शौच इसलिए भी कराई जा रही हैं, ताकि ऊंची जाति वालों के पैर नीची जातियों के लोगों के मल पर न पड़ें. वे अपना मल अपने घर में रखें. चाहे उन के घर में बदबू बनी रहे, गंद रहे, शौचालय लबालब भरता रहे. यह समाज सुधार तो है, पर बिना सोचेसमझे या दूर की सोच का, जिस में ऊंचनीच भी घुसी है.

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