घरों में शौचालय बनाने की नरेंद्र मोदी की मुहिम चाहे जितनी अच्छी लगे, यह गरीबों के लिए असल में एक आफत हो गई है. शर्तें रखी गई हैं कि अगर घर में शौचालय नहीं है तो चुनाव नहीं लड़ सकते, नौकरी नहीं पा सकते, स्कूल में दाखिला में नहीं ले सकते.

हरियाणा ने गरीबी रेखा के नीचे वालों को तब तक राशन देना बंद करवा दिया, जब तक वे प्रमाणपत्र नहीं लाएंगे कि उन के घर में शौचालय है. लाखों गरीब मारेमारे फिरें कि पहले शौचालय के लिए सरकारी सहायता मिले, फिर सस्ता राशन. जितने दिन नहीं मिलेगा, उतने दिन क्या होगा? गरीब को महंगा राशन खरीदना होगा न? जिस का घर ही दूसरों की जमीन पर डंडे डाल कर फूस बिछा कर बना हो, वह कहां से शौचालय बनवाएगा, इस से राशन अफसरों को फर्क नहीं पड़ता.

बिहार सरकार ने शौचालय बनवाने के 12,000 रुपए दिए, पर क्या शौचालय असल में इतने में बन जाएगा? और अगर न बने तो उस से पंचायत का चुनाव लड़ने का हक छीन लिया गया है. वह दुहाई देने जाए भी तो कहां जाए, क्योंकि अदालत महंगी है और अफसर को तो आम आदमी का टेंटुआ पकड़ने का मौका भर चाहिए.

उलटे अफसरों और नेताओं ने तो शौचालय न होने पर घर में बाइक या टैलीविजन होने पर मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. नेता भी नहीं सुनते, चाहे उन के घर वाले खुद बाहर शौच करने जाते हों. 5 बार मध्य प्रदेश से सांसद रहे अनूपपुर जिले के दलपत सिंह परस्ते की बेटी टांकी टोला गांव में रहती है, पर 50,000 दूसरे लोगों की तरह वह भी बाहर शौच के लिए जाने को मजबूर है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...