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एक ही सिम पर इस तरह चलाएं दो WhatsApp

हम सभी जानते हैं कि स्मार्टफोन में एक सिम कार्ड से आप एक ही नंबर चला सकते हैं. दूसरा नंबर पाने के लिए आपको दूसरी सिम की जरुरत होगी.

लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ट्रिक बताने जा रहे हैं जिसकी मदद से आप एक सिम से दो नंबर चला सकते हैं. तो आइए जानते हैं कि यह किस तरह काम करेगा.

क्या है तरीका

इस ट्रिक को पूरा करने के लिए आपको सबसे पहले TextMe नाम के एक एप को फोन में डाउनलोड करना होगा. इस एप को आप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं. एप को स्मार्टफोन में इंस्टौल करने के बाद आपसे एक्सेस के लिए कुछ परमिशन मांगी जाएगी जिसे आपको OK करना होगा. इन प्रक्रिया के बाद आपको अपने फेसबुक या गूगल अकाउंट से एप के जरिए लौगइन करना होगा. अगर आप चाहे तो नया अकाउंट भी बना सकते हैं.

मिलेगा खास मोबाइल नंबर

इन सभी पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद आप अपने किसी भी दोस्त को कौल कर सकते हैं. आपके दोस्त के पास एक अलग नंबर से कौल जाएगा जो कि सामान्य मोबाइल नंबर जैसा ही होगा. इसके अलावा, आप चाहें तो अपनी पसंद के नंबर को भी चुन सकते हैं.

इसके लिए एप की सेटिंग में जाकर Get Number पर टैप करें या स्क्रीन में सबसे नीचे दिए मेन्यू बार में Numbers पर क्लिक कर अपना नंबर चुने. आपको बता दें कि एक से ज्यादा नंबर का इस्तेमाल करने के लिए आपको भुगतान करना होगा.

एक ही सिम से चलाए दो व्हाट्सएप

ठीक इसी तरह आप अपने फोन में एक ही नंबर से 2 व्हाट्सएप औपरेट कर सकते हैं. तो चलिए बताते हैं आपको ये ट्रिक.

इसके लिए सबसे पहले आपको 2 Lines for Whatsapp नाम का एप डाउनलोड करना होगा. ये एप आपको आसानी से प्लेस्टोर में मिल जाएगी. एप इंस्टौल होने के बाद इसे अपने एंड्रायड फोन में ओपन करें. आपके पास एक पौपअप आएगा जिसे आपको accept करना होगा.

इसके बाद आपको Add a new line for Whatsapp पर क्लिक करना है. फिर आपको इसमें अपना नंबर एंटर करना है. इसके बाद आप एक ही फोन में दो व्हाट्सएप चला पाएंगे.

बड़ा सवाल : क्या गरीब को इंसाफ नहीं मिलेगा

मेरे गांव में 3 बच्चों की एक मां, जो बेहद गरीब बंजारा समुदाय से थी, के पति ने अपने झोंपड़ीनुमा घर में किसी वजह से खुद को आग लगा कर खत्म कर लिया था. गांव के कुछ लोगों ने इस खुदकुशी की वजह को अपने राजनीतिक इस्तेमाल के लिए एक ऐसे नौजवान के मत्थे मढ़ दिया, जिस का इस मामले में कुछ लेनादेना नहीं था. लोकल पुलिस के साथ मिल कर पंचायत चुनाव की दुश्मनी निकालते हुए तब के ग्राम प्रधान ने मरने वाले शख्स की बीवी और उस नौजवान के प्रेम प्रसंग के चलते उस के पति को जला कर मार देने के आरोप में मुकदमा दर्ज करा दिया.

औरत और उस के तथाकथित प्रेमी नौजवान को पुलिस ने जेल भेज दिया. बाद में उस नौजवान के घर वालों ने तो आरोपी नौजवान की जमानत करवा ली, पर उस औरत को किसी ने नहीं पूछा.

उस औरत की अदालत से बरी होने के बाद ही जेल से रिहाई मुमकिन हो सकी. चूंकि उस औरत के ससुराल और मायके पक्ष के लोग इतने गरीब थे कि वे इस मामले में वकील और जमानत की जरूरी शर्तों जैसे रुपएपैसों, जायदाद वगैरह को पूरा नहीं कर पाए, इसलिए उन्होंने अदालत में कभी जमानत की अर्जी भी नहीं दी थी.

इस तरह से उस औरत को बिना किसी अपराध के 7 साल तक जेल में सड़ना पड़ा. इस दौरान उस के मासूम बच्चों को जिंदा रहने के लिए सड़क पर भीख मांगनी पड़ी और होटल में बरतन धोने पड़े.

यह सिर्फ एक औरत की नहीं, बल्कि हर उस शख्स की कहानी है, जिसे भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था के साथ मिल कर कानून के फंदे में फंसा दिया जाता है. ऐसे लोगों का सालोंसाल ट्रायल चलता है और इंसाफ की आस में आंखें पथरा जाती हैं, लेकिन जमानत नहीं हो पाती है.

‘भिखारी का दोस्त भिखारी होता है’ कहावत तब सच हो जाती है, जब गरीबों से संबंधित मामलों में जमानत होने की बात आती है. कई ऐसे लोग जमानत मंजूर होने के बाद भी देश की जेलों से सिर्फ इसलिए रिहा नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि उन के पास जमानत की शर्तों को पूरा करने के लिए जरूरी रकम और जायदाद नहीं होती है.

आज भी इस देश में सब से ज्यादा दलित, मुसलिम और आदिवासी समुदाय के लोग मामूली अपराधों के आरोप में महज इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, क्योंकि उन के पास सांप्रदायिक और दलित आदिवासी विरोधी संगठित तंत्र से लड़ने के लिए कुछ भी नहीं है.

भले ही इस देश के लोकतंत्र में कानून के सामने बराबरी का भ्रामक जुमला फेंका जाता हो, लेकिन यह कड़वा सच है कि यहां आप को इंसाफ की उम्मीद तभी करनी चाहिए, जब आप के पास पैसा और जायदाद हो. अगर ऐसा नहीं है, तो फिर आप को इंसाफ नहीं मिल सकता और जमानत के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिए.

हमारी पूरी न्यायिक सोच ही इस बात पर टिकी होती है कि अगर आप के पास पैसा है, तभी आप को इंसाफ पाने का हक है. अगर यह सच नहीं होता, तो उस औरत को उस अपराध के लिए सजा नहीं मिलती, जिसे उस ने किया ही नहीं था. कम से कम जमानत तो उसे मिलनी ही चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

दरअसल, देश की आजादी के पहले का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम अंगरेजों के साम्राज्यवादी फायदों को पूरा करने का वह हथियार था, जिस का इस्तेमाल कर के वे भारतीयों को डराते थे.

आजादी के बाद पुलिस, फौज और अदालत का जो ढांचा हम ने स्वीकार किया, वह आज भी घोर साम्राज्यवादी, भ्रष्ट, लुटेरा और अमीर लोगों को फायदा पहुंचाने वाला है.

भले ही हमें आजादी मिले 70 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी इन बातों में कोई खास बदलाव नहीं किया गया. यही नहीं, सुधार के नाम पर पुलिस, फौज व अदालतों को और ज्यादा हक दिए गए और मनमानी का मौका सौंपा गया, ताकि संगठित लूट के खिलाफ कोई आवाज न उठ सके.

सच तो यह है कि आज भारत ग्लोबलाइजेशन के जिस दौर में पहुंच चुका है, वहां राज्य की जनहित भावना को खत्म कर दिया गया है और अब पोलिसी लैवल पर गरीबों को इंसाफ देने पर कोई बात नहीं होती. उन्हें बाजार के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है.

अब समूची राजनीति में इस बात पर बल देने की कोशिश चल रही है कि जिस के पास पैसा नहीं है, उसे इंसाफ पाने का भी कोई हक नहीं है. अब सबकुछ पैसों के रिश्तों में तबदील हो गया है. इस सोच को थोपा जा रहा है कि सरकार का काम केवल कारोबार के लायक माहौल बनाने और कानून व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित है. बिना पैसों के इंसाफ देना उस का काम नहीं है.

यही नहीं, दूसरी तरफ गैरबराबरी का पक्ष लेती हुई नीतियों के खिलाफ लोगों के गुस्से से निबटने के लिए राजनीति द्वारा राजसत्ता को और ज्यादा तानाशाह बनाने पर लगातार काम चल रहा है.

चूंकि हमारा न्यायिक तंत्र भी इसी तंत्र का हिस्सा है, लिहाजा यह बेरहमी उस में भी दिखाई देती है, इसलिए इस बात की उम्मीद न के बराबर है कि राजनीतिक रूप से देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को गरीबों की आसान पहुंच में बनाया जाएगा, ताकि माली आधार पर ही इंसाफ की सीढि़यां और पहुंच तय न हो.

आज हमारी नौकरशाही और न्यायपालिका जिस सोच में जी रही है, वह अपने चरित्र में घोर सामंतवादी और जातिवादी है.

चूंकि आदर्शवादी हालात में लोकतंत्र में जेल जाना एक अपवाद माना जाता है, लेकिन जब जमानत की बात आती है, तो सचाई इस के ठीक उलट खड़ी हो जाती है.

आज हमारी राजनीति का चरित्र फासिस्ट और जनविरोधी हो गया है. वह इस बात पर लगातार काम कर रहा है कि कैसे इस तंत्र को और ज्यादा हिंसक बनाया जाए? फिर इस बात की उम्मीद ही नहीं है कि वह जायदाद के आधार पर इंसाफ और जमानत पाने की भावना को खारिज करेगा.

आज देश के एक बड़े तबके के पास जायदाद न के बराबर है. गरीब लगातार और भी गरीब होता जा रहा है. उसे इंसाफ से दूर किया जा रहा है. अगर हम अपने देश को तानाशाह के रूप में नहीं देखना चाहते हैं, तो हमें जमानत के लिए जायदाद की जरूरत को फौरन खत्म करना चाहिए. सस्ते और बेहतर इंसाफ तक सब की पहुंच को तय करना होगा.

बेहतर होगा कि जमानत के लिए वोटरकार्ड और आधारकार्ड को जायदाद के बतौर रखने का नियम अदालतें बनाएं, ताकि उस औरत जैसे गरीब बेगुनाह लोग बेवजह जेलों में न सड़ें.

हाईटैक होता देह धंधा : शहरी चकाचौंध और ग्लैमर ने बदले मायने

शहरी चकाचौंध और ग्लैमर ने आज देह धंधे के माने ही बदल दिए हैं. यह काफी हाईटैक हो गया है. देश में आज तकरीबन 1370 रैडलाइट एरिया हैं. इन में सब से ज्यादा देह धंधे वाला एरिया कोलकाता और मुंबई का है. अकेले मुंबई रैडलाइट एरिया का ही करोड़ों रुपए का साप्ताहिक आंकड़ा है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा ऐसे राज्य हैं, जहां देह धंधे की प्रथा का लंबा इतिहास रहा है. जयपुर ‘सवारियों’ के खेल में काफी तरक्की कर रहा है. इस वजह से गरम गोश्त के बेचने वालों की बांछें खिलती जा रही हैं.

प्रशासन या राज्य ने इस ओर इसलिए भी अपनी आंखें बंद कर रखी हैं, क्योंकि उन का इस से करीबी ताल्लुक है. आखिरकार नेताओं और अफसरों की मौजमस्ती का भी तो सवाल है.

राजस्थान का कोई भी शहर इस गरम गोश्त के कारोबार से अछूता नहीं है. इन इलाकों में ज्यादातर ‘सवारियों’ का धंधा होता है. या यों कहें कि इधर इस धंधे की खास क्वालिटी है, जिस का नाम ‘सवारी’ दिया गया है. यानी वे औरतें जिन्हें इस शहर से उस शहर में जिस्म के भिखारियों के आगे भेजा जाता है. जिस औरत का इस्तेमाल लोकल लैवल पर किया जाता है, उसे ‘गाड़ी’ कहते हैं. राजस्थान में जहां ‘सवारियों’ का ज्यादा काम होता है, वे इलाके हैं जयपुर, कोटा, अलवर, डूंगरपुर, किशनगढ़, जोधपुर, गंगानगर, नागौर, जैसलमेर और सीकर. बाकी इलाकोें में ‘गाडि़यों’ और ‘सवारियों’ का खूब कारोबार होता है.

ये बातें देश के तमाम रैडलाइट एरिया में पिछले 3 सालों से रिसर्च कर रहे एक पत्रकार, लेखक मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी के आंकड़ों से हासिल हुई हैं.

‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के इस नायाब कारोबार से अजमेर भी अछूता नहीं रहा है. यहां गरम गोश्त के कारोबारी भी अपनी ‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के लिए मन्नतें मांगने आते हैं, क्योंकि यहां हर किसी की मुरादें पूरी होती हैं.

पिछले 4 साल से अख्तरी बेगम (बदला हुआ नाम) ‘सवारियों’ को लाने और उन्हें सफर पर भेजने तक का सारा कारोबार करती है. उस के पास दलाल माल ला कर बेचते हैं और ज्यादातर वह ट्रेनिंग पाई ‘सवारियों’ का ही कारोबार करती है.

अख्तरी बेगम का कहना है कि इस कारोबार में काहिल और बीमार हों, तब भी औरतें ‘सवारी’ पर जाती हैं और ‘गाडि़यों’ का काम शौकिया और पार्टटाइम कमाने वाली औरतों के लिए है. लेकिन धंधा चाहे ‘सवारी’ का हो या ‘गाड़ी’ का, एक बार जो औरत इस राह पर आ जाती है, उस का अंत उम्र ढल जाने के बाद या तो फुटपाथ पर पागलों की शक्ल में या कहीं दलालों के साथ कमीशनखोर के लैवल पर जा कर खत्म होता है. वे न तो मां रह पाती हैं, न बीवी, न बेटी और न बहन.

अजमेर और जयपुर में ज्यादातर ‘सवारियों’ को विदेश भेजा जाता है. विदेशों से आने वाले, जिन्हें यहां का गरम गोश्त भा जाता है, अपने देश में हमारे यहां से अपनी रातें रंगीन करने का सामान मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं.

जाहिर है, इस कारोबार का रुतबा भी कम लुभावना नहीं होगा. इस में मोटी कमाई तो होती ही है, ज्यादा खतरा भी नहीं रहता. बस, अच्छी ‘सवारियों’ को इकट्ठा करना और उन्हें विदेशी भूखों के हवाले कर देना, बाकी वे जानें और उन का काम. उसे तो बस हवाईजहाज तक ले जाने की जिम्मेदारी निभानी होती है.

एक ‘सवारी’ से जो कारोबार का ग्राफ बनता है, जरा उस पर भी गौर करें. अमूमन देश के अलगअलग इलाकों से 12 साल से 21 साल की उम्र की लड़कियों को ‘सवारी’ के लिए चुन कर लाया जाता है.

आमतौर पर गरम गोश्त के विदेशी ग्राहक हमारे यहां के सौदागरों को अपनी पसंद और बजट भेजते हैं और उन्हें उन की पसंद की ‘सवारियां’ मुहैया करा दी जाती हैं. उन ‘सवारियों’ को विदेशों में काम के बहाने भेजा जाता है. कुछ ‘सवारियां’, जो पहली बार इस धंधे में आती हैं, उन्हें विदेश जा कर मोटी कमाई का लालच दे कर इस दलदल में उतार दिया जाता है.

‘सवारी’ एक बार विदेश क्या गई, उस का सबकुछ या तो लुट जाता है या फिर मिजाज ही ऐसा बन जाता है कि चाहत ही नहीं होती इस धंधे से बाहर आने की. जब तक हुस्न का जलवा रहता है, ‘सवारियां’ उड़नछू होती रहती हैं, फिर उम्र ढलने तक इतनी सोच उन में आ जाती है कि उन्हें इस कारोबार की सारी जानकारी हो जाती है और या तो वे इस कारोबार की रानी बन जाती हैं या अपनी जिंदगी अलगथलग काटने पर मजबूर हो जाती हैं.

राजस्थान से जो ‘सवारियां’ जाती हैं, वे काफी सैक्सी और कम उम्र की गठीली बालाएं होती हैं. जब वे सजतीसंवरती हैं, तो सचमुच बेहोश कर देती हैं. उन का भाव भी सब से ज्यादा होता है. खाड़ी देशों के गरम गोश्त के भूखे उन्हें देखते ही कुछ भी लुटाने को तैयार हो जाते हैं.

‘सवारियों’ में कुंआरियों का होना ही जरूरी नहीं है. इन में शादीशुदा भी होती हैं, जिन के मर्द इस बात से अनजान नहीं होते हैं कि उन की पटरानी किसी पराए मर्द की रातें रंगीन करने विदेश जा रही हैं. रही बात वीजा की, तो इस में भी कोई मुश्किल नहीं होती है.

औरतों को इन अंधी गलियों में धकेलने वाले कई देशों में फैले गिरोहों के लोगों द्वारा इन की सभी जरूरतें पूरी कर दी जाती हैं.

चांदी (बदला हुआ नाम) बताती है कि उसे एक ट्रक ड्राइवर से प्यार हो गया था. उस ने बड़ेबड़े सपने दिखाए थे और वह उस के साथ भाग आई अपने बंगाल से अजमेर. मांबाप, भाईबहन सब थे, मगर दुनिया की रंगीनियत देख कर वह बहक गई. पति था तो, लेकिन मनमौजी. वह भी कहीं कामधाम नहीं करता था और ऊपर से उसे मारतापीटता भी था.

सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस मर्द से देह सुख भी चांदी को नहीं मिलता था. उस की सखीसहेलियां अपने पति की बातें उसे बताती रहती थीं, तो बेचारी चांदी सिसक कर रह जाती थी. शायद इसी कमजोरी को भांप गया था वह ट्रक ड्राइवर.

ट्रक ड्राइवर ने चांदी को खूब भोगा. उसी दौरान चांदी को मिल गई रजिया. रजिया ‘सवारियों’ को खाड़ी देशों में भेजने की ठेकेदार थी. उस ने उसे सारी बातें खूब समझा कर बताईं, जिसे सुन कर चांदी की समझमें बस इतनी बात आई कि अगर एक बार वह ‘सवारी’ बन गई, तो जिंदगीभर मौज से कटेगी. फिर तो अपने बापभाई को भी वह तार देगी. मायके की गरीबी छूमंतर हो जाएगी. उस ने ‘सवारी’ बन जाना कबूल कर लिया और दुबई चली गई.

बंगाल से दिल्ली, दिल्ली से जयपुर और जयपुर से अजमेर, इन तमाम जगहों पर लोगों ने चांदी को खूब भोगा और फिर वह दुबई चली गई. उस के साथ पहली बार दुबई जाने वाली एक और औरत थी. उस औरत के बारे में बताया गया कि वह अब तक अपने ही देश में जो विदेशी लोग आते हैं, उन को खुश करने होटलों में जाती रही है. सो, उसे उन लोगों के साथ रात बिताने की पूरी जानकारी है.

उस औरत के साथ चांदी को दुबई में एक होटल में ठहराया गया था. रोज सुबह उसी होटल में एक गाड़ी आ जाती थी, जो उसे ले कर शेखों के हरम तक पहुंचा आती थी.

शेख रातभर चांदी को खूब नोचखसोट कर सुबह तक तकरीबन बेहोशी की हालत में छोड़ दिया करते थे. फिर वही गाड़ी आती थी, जो उसे होटल में छोड़ आती थी.

होटल में आ कर जब चांदी को कुछ होश आता, तो अपनी ही अंटी में से पैसे जो उसे रात को शेख से मिलते थे, होटल और गाड़ी वाले को देने होते थे. वह खापी कर कुछ देर आराम करती और तब तक फिर से दूसरी रात के लिए बुकिंग आ जाती थी.

इस तरह एक साल बीत गया और उस ने 19 हजार रियाल जमा कर लिए.

कुछ और पैसों के लालच में चांदी ने अपने एजेंटों से बात की, तो उस ने उसे वीजा के लिए किसी के बारे में बताया, लेकिन फिर क्या हुआ उसे पता ही नहीं, क्योंकि उसे जब उस रात शेख ने नोचने की शुरुआत की तो वह इतना वहशियाना था कि बेचारी बेहोश हो गई और जब होश में आई तो हवाईजहाज में थी. फिर दिल्ली में आ पहुंची.

अब वह ऐसा काम नहीं करेगी, इतना सोचते हुए बाहर आई. एयरपोर्ट पर एक गाड़ी खड़ी थी, जिस में चांदी को उस के एजेंट के आदमी बिठा ले गए. वह कुछ सोच पाती, उस से पहले उस के सपनों ने दम तोड़ दिया.

‘हिंदुस्तान के प्रमुख देह व्यापार और उस के बदलते परिदृश्य’ विषय पर रिसर्च करने वाले मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी ने जयपुर, अलवर, कोटा, नागौर, गंगानगर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, सीकर, बाड़मेर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, हनुमानगढ़, भरतपुर, बूंदी और बांसवाड़ा में जा कर सभी रैडलाइट इलाकों की छानबीन की.

इस से जो खास बातें सामने आई हैं, उन के मुताबिक पूरे देश में राजस्थान तीसरा ऐसा प्रमुख राज्य है, जहां से देश के बाहर ‘सवारियां’ भेजने का कारोबार होता है.

यह चौंकाने वाली बात है कि अगर सरकार देह व्यापार की मंडियों से टैक्स वसूल करने लगे, तो अकेला यह व्यापार देश की तमाम पंचवर्षीय योजनाओं को पूरा करने के लिए काफी है.

कोटा, राजस्थान की 2 पढ़ीलिखी सहेलियां रूबी और सविता (बदला हुआ नाम) पिछले 5 साल से जिस्मफरोशी का धंधा कर रही हैं. अब वे पछतावा नहीं कर रही हैं, बल्कि कहती हैं कि इतनी रईसी क्या बाहर मिलेगी?

बनारस से धंधे की शुरुआत करते हुए इन दोनों ने अब तक 3 बार ‘सवारी’ का सफर पूरा किया है. अब तो वे अपने ही देश में रह कर इस धंधे को अंजाम दे रही हैं. जिस्म की खरीदफरोख्त का काम अब बदनाम बस्तियों से होते हुए राज्य के गंवई इलाकों के घरों की चौखट तक को पार कर गया है. माहौल ऐसा बन गया है कि लोग अपनी पत्नी, सौतेली या कमजोर बहन, भांजी या दूसरी औरतों को गरम गोश्त की गलियों में खुद भेजते हैं, जिस के एवज में बैठेबिठाए बेहतर आमदनी हो जाती है.

यह बात भी कम चौंकाने वाली नहीं है कि कहींकहीं नौकरी की जरूरत ने भी कमसिन लड़कियों को जिस्म की तस्करी में फंसा दिया है.

साल 2015 में दिल्ली पुलिस ने नौकरी का झांसा दे कर जिस्मफरोशी के जाल में फांस कर गांव की औरतों और जवान होती कमसिन बालिकाओं को अरब देशों में बेचने वाले एक गिरोह का परदाफाश किया था. इस में 80 फीसदी राजस्थान की थीं, जो अपने घरबार की गरीबी, भुखमरी से जूझते लाचार मांबाप और कुपोषण की शिकार भाईबहनों की खातिर नौकरी करने घर से बाहर निकल गई थीं.

दिल्ली में पकड़े गए गरम गोश्त के सौदागरों ने जाहिर किया कि वे राजस्थान के जयपुर, अजमेर, ब्यावर और अलवर इलाकों से गांव की लड़कियों और औरतों को नौकरी का झांसा दे कर अपने जाल में लपेट लेते थे. इन अबलाओं को दिल्ली में सब से पहले इस गहरी अंधेर नगरी से रूबरू कराया जाता है, फिर कुछ खास गुर बताते हुए इस पेशे में उतार दिया जाता है.

कभी एकएक दाने को मुहताज जयपुर बाजार के तंग महल्ले के टूटेफूटे मकान में रहने वाली शायरा (बदला हुआ नाम) ने 40 लाख रुपए में एक मकान खरीद कर लोगों को चौंका दिया.

इस की खबर पुलिस को भी मिली, तो उस ने फौरन शायरा को दबोच लिया और उस के बाद यह राज खुला कि शायरा ‘सवारियों’ की कारोबारियों में से एक है.

जयपुर और अजमेर से शायरा महिला डांस म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में गांवों से लाई गई बेबस लड़की को विदेश भेजने का काम करती थी. किराए के गुंडेमवालियों के बल पर वह एक शातिर कारोबारी बन गई थी. आज डांस स्कूल और म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में राजस्थान के कई इलाकों में जिस्मफरोशी का काम चल रहा है. हकीकत यह है कि अजमेर इन दिनों इस धंधे की खास मंडी बना हुआ है.

मास्टरमाइंड और सब से बड़े रेगिस्तानी कारोबारी के रूप में सलाम उर्फ टोपीबाज का नाम सामने आया है. सलाम खुद तो मुंबई में रहता है, लेकिन जयपुर और अजमेर में इस के 3 खास एजेंट काम संभालते हैं.

इन एजेंटों के साथ उन की खास सैक्रेटरी की हैसियत से एकएक औरत भी रहती है. इन को एरिया में घूम रहे दलाल और सड़कछाप गुंडों के जरीए माल मिलता है. बताते हैं कि सलाम का नैटवर्क पिछले 10-12 सालों से चल रहा है. इस पर हाथ क्या नजर तक उठाने के लिए पुलिस को कई बार सोचना पड़ता है.

चाहे सलाम मुंबई में रहे या अजमेरजयपुर में, उस का नैटवर्क अब इतना तगड़ा हो गया है कि किसी भी तरह की अड़चन इस के कारोबार को डिस्टर्ब नहीं कर सकती है.

अब तो सलाम ने अपना कारोबार कंप्यूटराइज्ड कर लिया है. इंटरनैट या मोबाइल फोन पर ही सारा काम निबटा लिया जाता है.

जिस्म के सौदागरों का काम करने का तरीका भी कुछ अजीब सा है. ये देहात से लाई गई लड़कियों को डांस की टे्रनिंग देते हैं. उन के घर वालों को कहा जाता है कि उन की लाड़ली को विदेश में काम करने के लिए ले जा रहे हैं, जहां ये बहुत सारा रुपया कमा सकेंगी. मांबाप इजाजत देने से गुरेज नहीं करते, फिर उन्हें 20-25 हजार रुपए थमा दिए जाते हैं, जो उन्हें गरीबी के अंधेरे में किसी चांद से कम नहीं लगते. उन से यह भी कहा जाता है कि उन की बेटी विदेश से उन्हें मोटी रकम भेजती रहेगी. जब ये मासूम लड़कियां डांस की कुछ टे्रनिंग ले कर अरब देशों की जमीन पर उतार दी जाती हैं, तब जा कर इन्हें पता चलता है कि इन की मासूमियत को यहां शेखों की बांहों में मसला जाएगा.

क्या कोई बता सकता है कि लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं, वे आती कहां से हैं और कैसे?

इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तरपूर्व के पहाड़ों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से, दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गांवों से. मुंबई के कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीला हाउस जैसे इलाकों में हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं.

गरीबी की चक्की में पिसती ये भोलीभाली 10 से 12 साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ इतनी ही गलती की थी कि उन्होंने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था. कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जा कर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कइयों को मुंबई आ कर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या खुद हीरोइन बनने का सपना देख रही होती हैं.

नेपाल बौर्डर पर तकरीबन हर थाने और सोनौली व भैरवाट्रांजिट कैंप में ऐसे बोर्ड लगे हैं, जिन पर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पां होते हैं, जिन्हें देह धंधे की भेंट चढ़ा दिया जाता है.

इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग और बालिग लड़कियों को कभी बरामद नहीं किया जा सका है, यह रिकौर्ड उन पुलिस थानों में मिल सकता है. अलबत्ता, उन में से तकरीबन 90 फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं कि उन की लाड़ली परदेश में पैसा कमा रही है. थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं.

मोईती, नेपाल के एक सदस्य के पास एक गांव का बाशिंदा आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्वारा बहलाफुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उस के बारे में जब तहकीकात की जाती है, तो पता चलता है कि उस की बीवी मुंबई में है और अच्छीखासी कमाई कर रही है. लिहाजा, उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है.

इस खबर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपए थमा दिए जाते हैं और बताया जाता है कि अब हर महीने उसे उस की बीवी की ओर से 2 हजार रुपए मिलेंगे, सो वह अपनी जबान बंद ही रखे.

वह आदमी कुछ दिनों तक तो यों ही खोजता फिरा, फिर बाद में जब पता लगा कि उस की बीवी पुणे के बुधवारपेठ रैडलाइट इलाके में एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है, तो वह थाने से पुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीवी की छुड़ाने को. जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उस की बीवी को सुरक्षित बरामद कर लिया. पुलिस ने उस की बीवी के साथ 5 नेपाली दलालों को भी पकड़ लिया.

कुछ गिरोह नेपाल के पहाड़ों और तराई में बसे गांवों की गरीब नाबालिग लड़कियों के जत्थे को मुंबई की देह मंडी में झोंक देते हैं. इस बारे में कोई तय आंकड़ा भी मुहैया नहीं है, जिस से पता चले कि कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराइयों से ला कर मुंबई में बेच दी जाती हैं.

लेकिन सरकारी सूत्रों की अगर मानें, तो जाहिर होता है कि 4 से 5 हजार लड़कियों को बहलाफुसला कर नेपाल के रास्ते भारत की सब से बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इन में से 40 फीसदी बहलाफुसला कर, 30 फीसदी जबरन, जिस में उन के घर और रिश्तेनातेदारों की रजामंदी होती है. 30 फीसदी पैसे कमाने की खातिर इस दलदल में आती हैं.

बिहार : टीचर बन कर जिहाद पढ़ा रहा था ये शख्स

बिहार के गया शहर में वह मास्टर बन कर रह रहा था. पहले उस ने एक स्कूल में नौकरी की, उस के बाद वह प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने लगा. उस ने पुलिस और लोकल लोगों को झांसा देने के लिए अपना नाम और पहचान बदल ली थी. उस ने अपना नाम अतीक रख लिया था, जबकि उस का असली नाम तौसिफ खान था. अतीक साल 2008 में अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों का आरोपी था. पिछले 9 सालों से वह गया में अपना हुलिया बदल कर रह रहा था.

13 सितंबर, 2017 को बिहार के गया जिले में दबोचे गए 3 आतंकियों में से एक की पहचान तौसिफ खान के रूप में हुई, तो पुलिस और खुफिया महकमे के होश उड़ गए. उस ने खुलासा किया कि गया शहर के 3 खास इलाकों विष्णुपद मंदिर के पितृपक्ष मेले का इलाका, महाबोधि मंदिर और गया रेलवे जंक्शन पर बम धमाका करने की साजिश रची गई थी.

गौरतलब है कि जिस समय तौसिफ खान ने धमाके की साजिश रची, उस समय गया में 15 दिनों का पितृपक्ष मेला लगा हुआ था. इस में देशविदेश के लाखों लोग पिंडदान करने के लिए गया पहुंचते हैं.

तौसिफ खान साइबर कैफे के एक संचालक की मुस्तैदी से पुलिस के हत्थे चढ़ गया. वह रोजाना साइबर कैफे से ईमेल के जरीए सारी जानकारी अपने आका को भेजता था. पुलिस ने कैफे से वह कंप्यूटर जब्त कर लिया है, जिस से वह किसी चांद नाम के आदमी को ईमेल भेजता था.

गया के एसएसपी ने बताया कि 3 और संदिग्धों को पकड़ा गया है, जिन से पूछताछ के बाद तौसिफ खान के आतंकी होने की बात पक्की हो गई है.

पुलिस ने बताया कि साइबर कैफे संचालक अनुराग को तौसिफ खान की हरकतें ठीक नहीं लगी थीं, तो उस ने तौसिफ खान से पहचानपत्र मांगा. जब उस ने पहचानपत्र नहीं दिया, तो अनुराग ने पुलिस को सूचना दी. उस के बाद तौसिफ खान और उस के साथी भागने लगे.

अनुराग ने उन का पीछा किया, तो वे उसे धक्का दे कर आटोरिकशा में सवार हो गए. उसी समय सामने से पुलिस की गाड़ी आ रही थी. अनुराग ने पुलिस वालों को आटोरिकशा रुकवाने का इशारा किया. पुलिस ने आटोरिकशा रोका और उस में सवार तौसिफ खान और उस के साथी सना खान और गुलाम सरवर को पकड़ा.

35 साल के तौसिफ खान उर्फ अतीक का पता अहमदाबाद के जूहापुरा इलाके का यूनाइटेड अपार्टमैंट्स का फ्लैट नंबर-15ए है. वह इंडियन मुजाहिदीन का फं्रटलाइन आतंकी है. इलैक्ट्रोनिक्स ऐंड कम्यूनिकेशन से इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद उस ने आतंक की दुनिया में कदम रख दिया था. उस ने महाराष्ट्र के नंदूरबाग के डीएन पाटिल इंजीनियरिंग कालेज से साल 2001-05 में बीटैक किया था.

अहमदाबाद में बम धमाकों को अंजाम देने के बाद तौसिफ खान साल 2008 में गया आ गया था. 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में 90 मिनट के अंदर एक के बाद एक 16 बम धमाके किए गए थे, जिन में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 2 सौ से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे.

तौसिफ खान गया जिले के डोभी थाने के करमौनी गांव में रह रहा था और पहचान छिपाने के लिए उस ने अपना नाम अतीक रख लिया था. उस ने स्थानीय सना खान की मदद से मुमताज पब्लिक हाईस्कूल में टीचर की नौकरी हासिल कर ली थी. वह विज्ञान और गणित पढ़ाया करता था.

3 साल तक स्कूल में पढ़ाने के बाद तौसिफ खान ने नौकरी छोड़ दी और प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने लगा. गिरफ्तारी के बाद उस ने कबूल किया कि वह आईएसआई के प्रचार का काम कर रहा था. पुलिस इस बात की पड़ताल कर रही है कि वह कितने बच्चों के दिमाग में आतंक का कीड़ा डाल चुका है. उस के पाकिस्तान कनैक्शन की भी खोज की जा रही है.

तौसिफ खान से पूछताछ के बाद कई खुलासे हुए हैं. उस के घर से पाकिस्तान के लाहौर में प्रिंट कराई गई किताबें और जिहादी परचे बरामद हुए हैं. पुलिस को शक है कि उस ने गया में 50 जिहादियों को तैयार कर दिया है, जिस में से ज्यादातर 14 साल से 16 साल की उम्र के लड़के हैं.

तौसिफ खान ने किनकिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर जिहाद की घुट्टी पिलाई है, इस की भी जांच की जा रही है. गया में रहने के दौरान तौसिफ खान कई दफा राजस्थान और मुंबई गया था. पुलिस और एटीएस उस की इन यात्राओं के मकसद का पता लगा रही है. साल 2016 और साल 2017 में वह 2 बार राजस्थान गया था. उस के पास मुंबई जाने का टिकट भी मिला है.

तौसिफ खान के साथ दबोचा गया गुलाम सरवर खान बोधगया ब्लौक के बारा पंचायत के प्राथमिक निमहर विद्यालय का प्रभारी है. स्कूल के बच्चों ने पुलिस को बताया कि गुलाम सरवर खान हफ्ते में 2-3 दिन ही स्कूल आता था. साल 2006 में उस की बहाली पंचायत शिक्षक के रूप में हुई थी.

पुलिस जब गुलाम सरवर खान को गिरफ्तार कर ले जा रही थी, तो गांव वालों ने विरोध किया. पुलिस के काफी समझानेबुझाने के बाद ही गांव वाले शांत हुए. एसएसपी गरिमा मलिक ने बताया कि तौसिफ खान पर पुलिस ने देशद्रोह का केस दर्ज किया है और उस के साथ पकड़े गए उस के 2 साथियों पर उसे संरक्षण देने का आरोप लगा है. उस के पास से मिले कागजात, पैनड्राइव और मोबाइल डाटा से देशद्रोह की गतिविधियों में शामिल होने के ठोस सुबूत मिल चुके हैं.

गुजरात की एटीएस टीम ने 15 सितंबर, 2017 को उस से पूछताछ की. गया के सिविल लाइन थाने में तीनों के खिलाफ केस (नंबर-277/2017) दर्ज कराया गया है. गया पुलिस की रिमांड की सीमा खत्म होने के बाद गुजरात एटीएस उन्हें रिमांड पर ले लेगी.

वहीं पुलिस सूत्रों की मानें, तो तौसिफ खान ने अहमदाबाद बम धमाकों में खुद के शामिल होने की बात को कबूल कर लिया है. पटना एटीएस, एसटीएफ और गया पुलिस अफसरों को पहले वह झांसा देने की कोशिश करता रहा. पहले तो वह आतंकी होने से ही इनकार करता रहा, उस के बाद उस ने माना कि अहमदाबाद बम धमाकों में संदिग्धों की लिस्ट में उस का नाम आने के बाद गिरफ्तारी के डर से वह वहां से भाग निकला था.

15 सितंबर की रात गुजरात एटीएस की टीम गया पहुंची और उस से पूछताछ की. एटीएस टीम ने बम धमाके के दूसरे आरोपियों के साथ उस का फोटो दिखाया, तो उस के होश उड़ गए. चारों ओर से खुद को फंसा देख कर आखिर तौसिफ खान ने हार मान ली.

गुजरात एटीएस की पूछताछ के बाद तौसिफ खान ने माना कि वह सिमी का हार्डकोर सदस्य है. वह 24 आतंकी मामलों में वांटेड था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के जलगांव का रहने वाला है.

सिमी का सदस्य बनने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भी भेजा गया था. पाकिस्तान में उस ने बम धमाके की ट्रेनिंग ली थी. इंजीनियर और तेज दिमाग का होने की वजह से उस ने बड़े आतंकियों के बीच अपनी खासी पैठ बना ली थी. वह सिमी की बैठकों और योजनाओं में शामिल होता था और उस की बातें गौर से सुनी जाती थीं.

फिट रहना है जरूरी, इसलिए कुछ सुझावों पर गौर फरमाएं

आज हर तीसरा व्यक्ति लाइफस्टाइल समस्याओं जैसे बैक पेन, माइग्रेन, घुटनों का दर्द आदि का सामना कर रहा है. यदि आप भी इस तरह की परेशानियों का शिकार हो रहे हैं तो कुछ सुझावों पर गौर फरमा कर आप फिट और हलका महसूस कर सकते हैं:

आलस त्यागें: सब से पहले आलस को त्यागते हुए सुबहसवेरे अपने पास के पार्क तक पैदल चल कर जाएं. यदि मौसम जाने की अनुमति नहीं देता है तो ट्रेडमिल पर कुछ समय बिता सकते हैं. अपने पास के मैट्रो स्टेशन तक भी चल सकते हैं. अपने वाहन को अपने कार्यस्थल से थोड़ी दूर पार्क करें ताकि आप कुछ दूर पैदल चल सकें. औफिस में लिफ्ट के बजाय सीढि़यों का इस्तेमाल करें.

ड्राइव करते समय ध्यान रखें: ड्राइविंग पीठ दर्द प्रमुख कारणों में से एक है. खासकर उन के लिए जिन्हें लंबे समय तक यात्रा करनी पड़ती है. ड्राइव करते समय स्टीयरिंग व्हील से गलत दूरी बनाए रखने से गरदन, हाथों, कंधों, रीढ़ की हड्डी, पीठ, कलाइयों में परेशानी हो सकती है. इसलिए यह सुनिश्चित कर लें कि अपने स्टीयरिंग व्हील से सही ढंग से दूरी बना कर बैठना भी बहुत जरूरी है. आप की छाती स्टीयरिंग व्हील के समानांतर होनी चाहिए. पैरों को पूर्ण आराम दें.

जब औफिस में हों: कार्यालय की कुरसी ऐसी होनी चाहिए जिस का निचला हिस्सा आप की पीठ के निचले हिस्से को सपोर्ट दे. कंप्यूटर स्क्रीन की ऊंचाई और आप में समानांतर होना चाहिए.

शारीरिक कसरत: कुरसी पर बैठे हुए ही कुछ हलके व्यायाम करने की कोशिश कर सकती हैं. सीधे बैठें और पैरों को फैलाते हुए उन की उंगलियों को ऊपर की ओर रखें. अब उन्हें 30 से 40 डिग्री के स्तर पर उठाने की कोशिश करें और फिर धीरेधीरे जमीन को छूएं बिना उन्हें नीचे तक लाए. इसे 10 से 15 बार दोहराएं. ऐसा करना न केवल आप की टमी को अंदर रखता है, बल्कि आप की पीठ के निचले हिस्से को भी मजबूत करता है.

ऐसा बारीबारी से करें: इस के साथ ही आप दूसरा व्यायाम यह कर सकते हैं कि एक पैन या पैंसिल फ्लोर पर गिरा दें और फिर पैर के अंगूठे व उंगलियों के साथ उठाने की कोशिश करें.

जमीन की ओर सीधे न झुकें: जमीन पर कुछ भी उठाने के लिए सीधे यानी एकदम से न झुकें. पहले झुक कर घुटनों पर बैठें फिर चीज को उठाएं.

कलाइयों को आराम दें: अगर आप सुन्नता या झनझनाहट अपनी उंगली विशेष कर अंगूठे, हाथ की बीच की उंगली पर महसूस करती हैं तो यह कार्पल टनल सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है. अत: कलाइयों को आराम देना भी जरूरी है. हाथों और कलाईयों को कुछ अंतराल में आराम देती रहें.

– डा. सतनाम सिंह छाबड़ा, सर गंगा राम अस्पताल

फ्रैगरैंस रखे मूड फ्रैश, तो इस बार आप कौन सी फ्रैगरैंस चुन रही हैं

घर को सजानेसंवारने की हम पूरी कोशिश करते हैं और घर से आ रही भीनीभीनी खुशबू यह एहसास दिलाती है कि घर वाले पूरी तरह से मूड में आ चुके हैं.

तो इस बार आप इन में से कौन सी फ्रैगरैंस चुन रही हैं:

कैंडल वार्मर्स: कैंडल वार्मर से मोम पूरी तरह गरम हो जाता है और उस से बहुत ही भीनीभीनी खुशबू निकलती है, जिस से पूरा घर महक उठता है. मोमबत्ती को जलाए बिना ही पूरा घर सुगंधमय हो जाता है.

घर पर बनाएं पौटपूरी: घर पर पौटपूरी बनाने के लिए किसी भी मनपसंद फूल की पंखुडि़यों को थोड़े पानी में उबाल लें. ऐसा करने पर उन की महक पूरे घर में फैल जाएगी. फूलों के अलावा संतरे के छिलके, दालचीनी के टुकड़े, लौंग आदि के प्रयोग से भी घर को एक अलग ही खुशबू से महकाया जा सकता है.

रीड डिफ्यूजर: यह खुशबू कमरे की हवा में कुछ इस तरह घुलमिल जाती है कि कई घंटों के बाद भी घर खुशबू से महकता रहता है. इसे बारबार जलाने की जरूरत नहीं होती है. खुशबू कम हो जाने पर भी भीनी सी हलकी सुगंध वातावरण में रहती है. इस में सिंथैटिक व नैचुरल दोनों तरह के औयल का इस्तेमाल किया जाता है. रीड डिफ्यूजर में आप को बोतल या कंटेनर, सैंटेड औयल व रीड्स मिलती हैं. बोतल या कंटेनर में औयल भर दिया जाता है. फिर उस में एक रीड स्टिक डाल दी जाती है. पूरा घर महक उठता है.

अरोमा कैंडल: यदि आप को खुशबू पसंद है और चाहती हैं कि आप का कमरा हर वक्त महकता रहे तो अरोमा कैंडल्स का इस्तेमाल करें. लेकिन सस्ती और कैमिकल वाली अरोमा कैंडल्स से दूर रहें. इन के बजाय सोया वैक्स या बीज वैक्स से बनी अरोमा कैंडल्स खरीदें. ये ज्यादा देर तक जलती हैं. ये कैंडल्स कई फ्रैगरैंस में उपलब्ध हैं. एक स्टिक करीब 6 घंटे चलती है.

एअर फ्रैशनर्स: ये स्प्रे की छोटीछोटी बोतलें होती हैं, जिन्हें आप कहीं भी लगा सकती हैं जैसे कि दीवार पर, ड्रैसिंग टेबल के किनारे, टेबल की साइड आदि में आसानी से लगा सकती हैं. इस में एक बटन लगा होता है जिसे औन कर के आप जब चाहें खुशबू पा सकती हैं.lifestyle

नैचुरल औयल से फैलाएं खुशबू: अपनी पसंद के किसी भी सैंटेड तेल में आधा कप सिरका और 2 कप पानी मिला कर स्प्रे बोतल में भर लें. फिर इस का प्रयोग कर घर को खुशबूदार बना सकती हैं.

अरोमा लैंप: यह एक प्रकार का डिजाइनर लैंप होता है, जिस में पानी की कुछ बूंदों में अरोमा औयल डाला जाता है, जिस से घर में काफी देर तक खुशबू रहती है. यह एक शो पीस की तरह खूबसूरत दिखती है.

हर्बल अगरबत्ती: सुबहसुबह घर में अगरबत्ती की खुशबू सभी को भाती है. माहौल को खुशनुमा बनाने में ऐरोमैटिक प्लांट या हर्ब्स से बनी अगरबत्तियों का जवाब नहीं. इन्हें ऐसैंशियल औयल की मदद से ज्यादा खुशबूदार बनाया जा सकता है. साधारण नुकसानदायक धुआं छोड़ने वाली अगरत्तियों के मुकाबले ये काफी अच्छी होती हैं. नैचुरल फ्रैगरैंस की बात की जाए तो जैसमीन, चंदन, गुलाब, देवदार आदि खुशबू वाली अनेक अगरबत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं.

यों भी महकाएं घर

घर के लिए फ्रैगरैंस लैवेंडर, लैमन, क्लोव आदि लेना सही रहता है. इन से दुर्गंध आसानी से चली जाती है.

सुगंधयुक्त अगरबत्तियों, पौटपूरी, स्प्रे आदि का प्रयोग कमरे में ही करें, किचन में इन का प्रयोग न करें.

घर में केतली में कुछ मसालों जैसे लौंग, इलायची या दालचीनी को उबालें. इस से पूरे घर में मसालों की अच्छी महक भर जाएगी.

ऐसैंशियल औयल को 1 कप पानी में मिला कर स्प्रे बोतल में भर एअर फ्रैशनर के तौर पर इस्तेमाल करें.

मूड के अनुसार चुनें होम फ्रैगरैंसlifestyle

सिट्रस: रिफ्रैश मूड के लिए सीट्रस फ्रैगरैंस चुनें. फू्रट फ्रैगरैंस ऊर्जा बढ़ाने के साथसाथ तरोताजगी का भी एहसास दिलाती है.

लैवेंडर और कुकंबर: रिलैक्सेशन के लिए लैवेंडर और कुकुंबर की खुशबू काफी अच्छी होती है. लैवेंडर की खुशबू तनाव दूर कर तनमन को शांत करती है. लैवेंडर में औयल, स्प्रे और कई तरह की कैंडल्स भी बाजार में उपलब्ध हैं.

फ्लोरल: यह खुशबू मूड को रोमांटिक बनाती है. इस का चुनाव खासतौर पर बैडरूम के लिए किया जाता है. त्योहारों के मौके पर भी इस की खुशबू पूरे वातावरण को महका देती है.

गया जमाना जीरो साइज का, अब है भरेपूरे शरीर को सलाम

फैशन के बारे में कहा जाता है कि वह हर 6 माह में बदल जाता है. मगर इस बार फैशन की ग्लैमरस दुनिया में क्रांति हो रही है. पिछले कुछ अरसे से दुनिया पर जीरो साइज का एकछत्र राज चल रहा था यानी मौडल जितनी दुबलीपतली, उतनी ही अच्छी. किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ग्लैमरस फैशन उद्योग जीरो साइज की सनक को अलविदा कह भरेपूरे शरीर और उभारों को सलाम करने लगेगा.

जीरो साइज अब फैशन नहीं रह गया है. अब लड़कियां अपने शरीर, अपने उभारों को ले कर शर्मसार नहीं होंगी. हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय फैशन की दुनिया के कांगलोमरेट एलवीएमएच और केरिंग ने एक चार्टर जारी किया है, जिस के जरीए वे दुनियाभर में उन मौडलों की भरती बंद करेंगे जो बहुत दुबलीपतली होंगी. उन के चार्टर के मुताबिक उन के सभी ब्रैंड उन मौडलों पर पाबंदी लगाएंगे जो फ्रैंच साइज 34 से कम होंगी. यहां उल्लेखनीय है कि फ्रैंच साइज 32 अमेरिकी साइज 0 के बराबर होता है. इसराइल ने तो 2013 में ही पतली मौडलों पर पाबंदी लगा दी थी.

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बड़ा फैसला

फैशन की दुनिया में फ्रांस पूरे विश्व का नेतृत्व करता है. लेकिन फ्रैंच सरकार ने कुछ समय पहले एक ऐसा फैसला किया, जिस के कारण अब जल्द ही फैशन की दुनिया में खूबसूरती के पैमाने बदल जाएंगे. दरअसल, फ्रांस में साइज जीरो मौडल और मौडलिंग पर प्रतिबंध लग गया. फैशन और खूबसूरती को केंद्र में रख कर दुनिया में चलने वाले उद्योग के लिए अपनेआप में यह बहुत बड़ा फैसला है. हालांकि इस से पहले 2006 में इटली और स्पेन में साइज जीरो पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है. अब जब फ्रांस ने यह फैसला किया है तो हर तरफ चर्चा हो रही है. इस की वजह यह है कि फ्रांस या कहें पैरिस ही फैशन का पैमाना तय करता रहा है. इसी कारण दुनिया की फैशन इंडस्ट्री इस फैसले से भौंचक्क रह गई.

सेहत के लिए सरकारी जांच

दरअसल, प्रतिबंध लगाते हुए फ्रांस की सरकार ने संसद में इस सिलसिले में एक कानून भी पास किया कि जिन मौडल्स का बौडी मास इंडैक्स एक तय पैमाने से कम है, उन के जरीए अपने उत्पाद का प्रचार नहीं किया जा सकेगा और न ही उन्हें फैशन शो का हिस्सा बनाया जा सकता.

इस कानून का उल्लंघन होने पर 6 महीने तक की सजा का प्रावधान किया गया है. इतना ही नहीं सजा के साथसाथ जुर्माना भी हो सकता है.

मौडलों के लिए सरकारी निर्देश में साफतौर पर कहा गया है कि मौडलिंग कैरियर शुरू करने से पहले सेहत के लिए सरकारी जांच से गुजरना होगा. जांच में मौडल की लंबाई और लंबाई के अनुपात में वजन और चेहरे के गठन की जांच करानी होगी. इस के बाद एक फिटनैस सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इस के बगैर कैरियर की शुरुआत नहीं हो सकती. इस का अनुकरण जानेमाने फैशन हाउसेज ने किया है.

भारतीयों का अलग है पैमाना

क्रिश्चियन डिओर, दिवेंचे, सैंट लृरंट और गुक्की में किसी साइज पर पाबंदी नहीं लगाई है. मगर मौडलों के स्वस्थ होने की गारंटी दी गई है. यह तय किया है कि 16 वर्ष से कम उम्र की लडकियों को बालिक की तरह पोज नहीं किया जाएगा. दरअसल, पिछले काफी समय से यह आरोप लगता रहा है कि फैशन उद्योग खानपान में डिसऔर्डर को बढ़ावा दे रहा है.

भारत में अंतर्राष्ट्रीय फैशन कंपनियों के फैसलों का अनुकूल असर पड़ा है. वे उस का समर्थन करते हुए सफाई देते हैं. कई भारतीय फैशन शो निर्माता इस बारे में कहते हैं, ‘‘दुनियाभर में भले ही साइज जीरो फैशनेबल माना जाता हो, मगर हमारे देश में हमेशा भरेपूरे शरीर और उभारों वाली मौडल रही हैं. यह इस बात का प्रतीक है कि भारत के लोगों का सौंदर्यबोध फैशन उद्योग से प्रभावित नहीं होता, वह फिल्म उद्योग से प्रभावित होता है. बौलीवुड का लोगों पर जबरदस्त असर है. दशकों से वह भरेपूरे शरीर और उभारों वाली अभिनेत्रियों को ही महत्त्व देता रहा है. पिछले कुछ वर्षों में ही कुछ छरहरी अभिनेत्रियों को उस ने महत्त्व दिया है. वह भी इसलिए क्योंकि ये मौडल फैशन उद्योग से आई हुई थीं.’’

भरेपूरे मौडलों की अलग है पहचान

भारतीय मौडल सानिया शेख कहती हैं, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर हुआ यह परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है. मेरा मानना है कि साइज जीरो सैद्घांतिक तौर पर ही होता है. हमारे देश में जीरो साइज कभी नहीं रहा. उद्योग भरेपूरे शरीर वाली मौडलों को ही पसंद करता है. हमारे उद्योग में भी भरेपूरे शरीर की मौडलों को ही पसंद किया जाता है, क्योंकि हमारे यहां बौडी टाइप ऐंगुलर नहीं उभारों वाला है. हमारे यहां रनवे पर कुछ भारी कंधों वाली होती हैं, तो कुछ भारी नितंबों वाली तो कुछ चौड़ी कमर वाली. उद्योग से किसी तरह का दबाव नहीं होता. फिर भारतीय परिधान भी भरेपूरे बदन पर ज्यादा अच्छे लगते हैं.’’

स्वीकारा जा रहा प्लस साइज

डिजाइनर जोड़ी फाल्गुनी ऐंड शेन का कहना है, ‘‘हमारे देश में 50 फीसदी से अधिक महिलाओं का साइज 12 या इस से अधिक है. परिधान उद्योग इस पर ध्यान दे रहा है. आज रनवे से ले कर फैशन स्टोर्स और पत्रिकाओं के पन्नों पर भी प्लस साइज वाली महिलाओं की मौजूदगी नजर आ रही है. यह इसलिए नहीं है, क्योंकि उद्योग ने मान लिया है कि भारी भरकम शरीर होना सही है, बल्कि इसलिए कि उद्योग व्यावसायिक तौर पर इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता.’’

‘‘एक समुदाय के तौर पर फैशन उद्योग बौडी इमेज को ले कर सकारात्मक रुख अपना रहा है और यह शानदार है, क्योंकि अब समय आ गया है. जब हमें महिलाओं को खुद को उसी स्वरूप में स्वीकार करने में मदद करनी होगी जैसी वे हैं, न कि फैशन पत्रिकाओं में फोटोशौप की मदद से खूबसूरत दिखती दुबलीपतली मौडलों जैसे अडेल, एमी शूमर, एशले ग्राहम, स्टेफनिया फरेरो जैसी वैश्विक हस्तियां और विद्या बालन व हुमा कुरैशी जैसी भारतीय सैलिब्रिटीज अपने कर्वी फिगर के साथ खुद को साबित कर रही हैं. इन्हें देख कर आम महिलाएं आत्मविश्वास के साथ अपने प्लस साइज को खुशी से स्वीकार रही हैं.’’

समय बदल चुका है

डिजाइनर मोनिषा जयसिंह का कहना है, ‘‘फैशन उद्योग अब प्लस साइज ग्राहकों पर ध्यान दे रहा है, जिन्हें लंबे अरसे से नजरअंदाज किया जाता रहा है. प्लस साइज फैशन ब्लौगर्स भी इस मामले में बदलाव लाने में जुटे हैं. दुनियाभर के प्लस साइज मौडल्स और ब्लौगर्स फैशन के भविष्य का नया चेहरा हैं.’’

मुंबई में रहने वाली अमेरिकी मौडल लीजा गोल्डन भोजवानी का कहना है, ‘‘अब समय बदल चुका है. अब प्लस साइज फिगर होना बुरा नहीं समझा जाता है.’’

स्पेन, इटली और ईसराइल के बाद अब फ्रांस में भी साइज जीरो पर पाबंदी लगा दी गई है. इस से अब उम्मीद की जा रही है कि फीमेल मौडल्स के बीच छरहरी काया बनाने की सनक थोड़ी कम होगी.

बौलीवुड में भी धमक है

70 से 80 दशक के सिनेमा में मोटी अदाकाराओं को सिर्फ हंसोड़ पात्र के रूप में देखा जाता था. उमा देवी खत्री ‘टुनटुन’ को बौलीवुड की पहली महिला हास्य अभिनेत्री माना जाता है. जैसेजैसे सिनेमा में बदलाव आया रंगरूप की परिभाषा ही बदल गई. आज का सिनेमा छरहरी जीरो फीगर की अभिनेत्रियों का नहीं है. भूमी पेडरेकर, जरीन खान, ईशा गुप्ता, स्वरा भास्कर, हुमा खान ने अपने भरेपूरे बदन का जलवा दिखा कर खूब वाहवाही लूटी है.

दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हा और हरदिल अजीज सोनम भी ऐक्टिंग में आने से पहले काफी मोटी थीं. जब ये फिल्मों में ऐंट्री कर रही थीं उस समय करीना कपूर ने इंडस्ट्री में जीरो फीगर का फीवर फैला दिया था. जिस को देखो सभी जीरो फीगर बनाने को आतुर थीं. सोनाक्षी, सोनम ने भी अपनी काया को जीरो के अनुरूप, बनाया क्योंकि उन्हें फिल्मों में टिकना था.

लेकिन जब भरेपूरे बदन वाली हुमा ने ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में अपनी अदायगी के जलवे दिखाए तो एक बार फिर यह साबित हो गया कि यहां फीगर नहीं ऐक्टिंग का जलवा रहता है.

अभिनेता से नेता बनना हमारे देश के लिए त्रासदी है : प्रकाश राज

नोटबंदी को सरकार की बड़ी भूल बताकर हाल ही में विवादों में आएं फिल्मी दुनिया के मशहूर खलनायक प्रकाश राज तीखे कमेंट करने से बाज नहीं आ रहे हैं. वे आए दिन समाज से जुड़े हर मुद्दे पर कमेंट करते रहते हैं और उनसे हंगामा हो जाता है.

अब एक बार फिर प्रकाश राज ट्विटर पर एक्टिव हुए हैं और उन्होंने फिल्मी दुनिया से राजनीति में कदम रखने वाले ऐक्टर्स पर तंज कसा है.

प्रकाश राज ने राजनीति में आने वाले फिल्म स्टार्स पर को निशाना बनाते हुए कहा, अभिनेता से नेता बनना हमारे देश के लिए त्रासदी है. एक्टर्स को सिर्फ इसलिए राजनीति में नहीं जाना चाहिए कि वे पौपुलर हैं. उनका कहना है कि देश जिन मुद्दों का सामना कर रहा है, कलाकारों को उसके प्रति स्पष्ट नजरिए के साथ आना चाहिए और लोगों का भरोसा जीतना चाहिए.

प्रकाश राज ने यह भी कहा कि प्रशंसकों को बतौर प्रशंसक नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक के रूप में वोट देना चाहिए.

रविवार को बेंगलुरु में फिल्म अभिनेता ने पौलिटिक्स ज्वाइन करने के सवाल पर कहा, ‘मैं कोई राजनीतिक पार्टी में शामिल नहीं हो रहा. मुझे अभिनेताओं का राजनीतिक पार्टियों में शामिल होना अच्छा नहीं लगता क्योंकि वे अभिनेता हैं और उनके फैन्स होते हैं. उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के बारे में पता होना चाहिए.

प्रकाश राज ने सिनेमा हाल में राष्ट्रगान बजाने के मुद्दे पर भी बेबाकी से अपनी राय रखी. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता किसी को अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए सिनेमा हाल में खड़े होने की जरूरत है.

गौरतलब है साउथ और बौलीवुड दोनों ही जगह समान रूप से पौपुलर हैं और वे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता भी हैं. वो आएं दिन समाज से जुड़े मुद्दों पर खुलकर सामनें आते हैं और अपने विचार रखते हैं. उन्होंने पत्रकार गौरी लंकेश हत्याकांड में भी अपने विचार खुलकर रखे थे. ऐसे में जब सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हसन के भी राजनीति में कदम रखने की चर्चा हो रही है, तब प्रकाश राज का यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से उनपर निशाना ही निशाना साध रहा है.

हत्या की एक अनसुलझी कहानी पर यह कैसा पागलपन है

आरुषि हत्याकांड पर जिस तरह से मीडिया बौराया है वह  दर्शाता है कि हमारा यह शक्तिशाली टूल केवल क्रिकेट के बैट या हौकी स्टिक की तरह मारने लायक रह गया है, कुछ स्कोर करने लायक नहीं. पतिपत्नी के घर में रहते 13 साल की इकलौती बेटी की हत्या हो जाए और उसी घर में अगले दिन एक नौकर की लाश मिले, यह आश्चर्य की बात तो है पर घंटों उस पर चैनल दर चैनल 4-5 लोग अपने खयाली पुलाव पकाते रहें और देश के खाली बैठे लोग कयास लगाते रहें कि किस ने मारा और डाक्टर दंपती निर्दोष है या दोषी, पागलपन की निशानी है.

किसी हत्या पर जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है पर उस के लिए पागलपन छा जाए और अखबारों के पन्ने भर जाएं, फिल्म बन जाए, सुप्रीम कोर्ट तक मामला जाए और फिर कभी इसे पकड़ा जाए कभी उसे, एक देश की दिमागी हालत दर्शाता है कि हम तुच्छ बातों पर इतना समय लगा देते हैं कि गंभीर मुद्दे ही रह जाते हैं.

अगर तलवार दंपती बेटी के बारे में कुछ राज नहीं बताना चाहते तो यह उन का हक है. वे समझदार हैं, अतियोग्य हैं और ऊंचनीच समझते हैं, उन्हें उन पर छोड़ दें. अगर तथ्य व सुबूत नहीं हैं, तो मामला बंद कर दें न कि मातापिता को बेबात की कैद में डाल दें. यह देश की कानून व्यवस्था से ज्यादा जनमन के थोथेपन की पोल खोलता है. आरुषि को न्याय कब मिलेगा यह सवाल उठाने वाले टीवी चैनल कौन होते हैं जब उस के मातापिता हैं और कठघरे में खड़े हैं पर उन के खिलाफ सुबूत ही नहीं हैं.

समाज के पास बहुत गंभीर मामले हैं. हमारी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है. हम 18वीं सदी के अंधविश्वासों में डूबे हैं. हमारी सरकारें निकम्मी हैं. हम गंदगी के महासागर में डूबे हैं. गाडि़यों की भरमार है पर ट्रैफिक जाम की भी मुसीबत है.

घरों का ढांचा चरमरा रहा है. बच्चे अनुशासनहीन हो रहे हैं. बूढ़े त्रस्त हैं और जनता एक हत्या को ले कर बेचैन ही नहीं, पागल भी हो रही है.

आरुषि की हत्या को इतना तूल देना हमारी भूल है और यह हमारी कमजोरी जाहिर करता है. हम अगर गुलाम रहे हैं और आज भी अगर बढ़ रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि हमारे कामगार दूसरे देशों में जा कर गुलामी का पैसा भेज रहे हैं, जो टैक्सों की मारफत छीन कर जनता में बंट रहा है. हम इन गंभीर मुद्दों को छोड़ कर निरर्थक मामले में आखिर क्यों दिमाग खराब कर रहे हैं? हमें यह मामला एक अफसोस करने के साथ छोड़ देना चाहिए था, कब का!

लोकतंत्र के हक में है सोशल मीडिया प्रोवाइडर्स की ये पहल

साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस को हस्तक्षेप करने की इजाजत देने को लेकर अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पूछताछ किए जाने के बाद अमेरिका के बड़े सोशल मीडिया प्रोवाइडर अब अपने प्लेटफॉर्म में बदलाव करने जा रहे हैं. जहां ट्विटर रूस की सरकारी न्यूज एजेंसियों को प्रतिबंधित करेगा, तो फेसबुक तथ्यों की बेहतर जांच की योजना बना रहा है, और साथ ही वह राजनीतिक विज्ञापनों के स्रोत को भी उजागर करेगा.

संक्षेप में, सोशल मीडिया से जुड़ी दिग्गज कंपनियां अब अपनी बड़ी जिम्मेदारी स्वीकार कर रही हैं, ताकि लोगों को सच और झूठ में फर्क करने में मदद कर सकें और शिष्टाचार कायम रख पाएं. पूर्व में ‘फेक न्यूज’ और आक्रामक प्रचार के प्रति इन प्रोवाइडर्स ने जो उदासीनता बरती, उससे लोकतंत्र कमजोर हुआ, जो एक खुले समाज की आजादी की हिफाजत करता है, और इसमें इंटरनेट भी शामिल है.

गूगल ने यह कहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान उसने अपनी यू-ट्यूब साइट पर रूस से जुड़े 1,108 वीडियो चलाने की इजाजत दी थी. फेसबुक ने भी माना है कि यह संभव है कि करीब 12 करोड़, 60 लाख लोगों ने उसकी साइट पर रूस की गलत सूचनाएं देखी-पढ़ी हों. इन नंबरों का आकार बताता है कि किस कदर सोशल मीडिया सूचनाओं को प्रसारित कर सकता है, चाहे वे सही हों या गलत. सिर्फ इन निजी कंपनियों को ही ऐसे लोगों के खिलाफ कदम नहीं उठाने चाहिए, जिनका असली मकसद अमेरिकियों को आपस में लड़ाना और भय का माहौल खड़ा करना है.

रूस के इंटरनेट ट्रोल्स ने आखिर यही तो करने की कोशिश की. पिउ रिसर्च सेंटर ने अपने ताजा सर्वेक्षण में पाया है कि 1994 के बाद आज अमेरिकी अपने विरोधी को लेकर सबसे ज्यादा बंटे हुए हैं. रिपब्लिकनों और डेमोक्रेट्स के बीच की खाई और चौड़ी हो गई है, क्योंकि दोनों पक्षों का एक-दूसरे को लेकर काफी नकारात्मक नजरिया है. इस खाई पर पुल बनाने के लिए अमेरिका के नागरिकों को भी वही करना होगा, जो अब ट्विटर, गूगल व फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्रोवाइडर करने जा रहे हैं. विवेकशील विचारकों के बिना लोकतंत्र टिक ही नहीं सकता.

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