मेरे गांव में 3 बच्चों की एक मां, जो बेहद गरीब बंजारा समुदाय से थी, के पति ने अपने झोंपड़ीनुमा घर में किसी वजह से खुद को आग लगा कर खत्म कर लिया था. गांव के कुछ लोगों ने इस खुदकुशी की वजह को अपने राजनीतिक इस्तेमाल के लिए एक ऐसे नौजवान के मत्थे मढ़ दिया, जिस का इस मामले में कुछ लेनादेना नहीं था. लोकल पुलिस के साथ मिल कर पंचायत चुनाव की दुश्मनी निकालते हुए तब के ग्राम प्रधान ने मरने वाले शख्स की बीवी और उस नौजवान के प्रेम प्रसंग के चलते उस के पति को जला कर मार देने के आरोप में मुकदमा दर्ज करा दिया.

औरत और उस के तथाकथित प्रेमी नौजवान को पुलिस ने जेल भेज दिया. बाद में उस नौजवान के घर वालों ने तो आरोपी नौजवान की जमानत करवा ली, पर उस औरत को किसी ने नहीं पूछा.

उस औरत की अदालत से बरी होने के बाद ही जेल से रिहाई मुमकिन हो सकी. चूंकि उस औरत के ससुराल और मायके पक्ष के लोग इतने गरीब थे कि वे इस मामले में वकील और जमानत की जरूरी शर्तों जैसे रुपएपैसों, जायदाद वगैरह को पूरा नहीं कर पाए, इसलिए उन्होंने अदालत में कभी जमानत की अर्जी भी नहीं दी थी.

इस तरह से उस औरत को बिना किसी अपराध के 7 साल तक जेल में सड़ना पड़ा. इस दौरान उस के मासूम बच्चों को जिंदा रहने के लिए सड़क पर भीख मांगनी पड़ी और होटल में बरतन धोने पड़े.

यह सिर्फ एक औरत की नहीं, बल्कि हर उस शख्स की कहानी है, जिसे भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था के साथ मिल कर कानून के फंदे में फंसा दिया जाता है. ऐसे लोगों का सालोंसाल ट्रायल चलता है और इंसाफ की आस में आंखें पथरा जाती हैं, लेकिन जमानत नहीं हो पाती है.

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