फैशन के बारे में कहा जाता है कि वह हर 6 माह में बदल जाता है. मगर इस बार फैशन की ग्लैमरस दुनिया में क्रांति हो रही है. पिछले कुछ अरसे से दुनिया पर जीरो साइज का एकछत्र राज चल रहा था यानी मौडल जितनी दुबलीपतली, उतनी ही अच्छी. किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ग्लैमरस फैशन उद्योग जीरो साइज की सनक को अलविदा कह भरेपूरे शरीर और उभारों को सलाम करने लगेगा.

जीरो साइज अब फैशन नहीं रह गया है. अब लड़कियां अपने शरीर, अपने उभारों को ले कर शर्मसार नहीं होंगी. हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय फैशन की दुनिया के कांगलोमरेट एलवीएमएच और केरिंग ने एक चार्टर जारी किया है, जिस के जरीए वे दुनियाभर में उन मौडलों की भरती बंद करेंगे जो बहुत दुबलीपतली होंगी. उन के चार्टर के मुताबिक उन के सभी ब्रैंड उन मौडलों पर पाबंदी लगाएंगे जो फ्रैंच साइज 34 से कम होंगी. यहां उल्लेखनीय है कि फ्रैंच साइज 32 अमेरिकी साइज 0 के बराबर होता है. इसराइल ने तो 2013 में ही पतली मौडलों पर पाबंदी लगा दी थी.

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बड़ा फैसला

फैशन की दुनिया में फ्रांस पूरे विश्व का नेतृत्व करता है. लेकिन फ्रैंच सरकार ने कुछ समय पहले एक ऐसा फैसला किया, जिस के कारण अब जल्द ही फैशन की दुनिया में खूबसूरती के पैमाने बदल जाएंगे. दरअसल, फ्रांस में साइज जीरो मौडल और मौडलिंग पर प्रतिबंध लग गया. फैशन और खूबसूरती को केंद्र में रख कर दुनिया में चलने वाले उद्योग के लिए अपनेआप में यह बहुत बड़ा फैसला है. हालांकि इस से पहले 2006 में इटली और स्पेन में साइज जीरो पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है. अब जब फ्रांस ने यह फैसला किया है तो हर तरफ चर्चा हो रही है. इस की वजह यह है कि फ्रांस या कहें पैरिस ही फैशन का पैमाना तय करता रहा है. इसी कारण दुनिया की फैशन इंडस्ट्री इस फैसले से भौंचक्क रह गई.

सेहत के लिए सरकारी जांच

दरअसल, प्रतिबंध लगाते हुए फ्रांस की सरकार ने संसद में इस सिलसिले में एक कानून भी पास किया कि जिन मौडल्स का बौडी मास इंडैक्स एक तय पैमाने से कम है, उन के जरीए अपने उत्पाद का प्रचार नहीं किया जा सकेगा और न ही उन्हें फैशन शो का हिस्सा बनाया जा सकता.

इस कानून का उल्लंघन होने पर 6 महीने तक की सजा का प्रावधान किया गया है. इतना ही नहीं सजा के साथसाथ जुर्माना भी हो सकता है.

मौडलों के लिए सरकारी निर्देश में साफतौर पर कहा गया है कि मौडलिंग कैरियर शुरू करने से पहले सेहत के लिए सरकारी जांच से गुजरना होगा. जांच में मौडल की लंबाई और लंबाई के अनुपात में वजन और चेहरे के गठन की जांच करानी होगी. इस के बाद एक फिटनैस सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इस के बगैर कैरियर की शुरुआत नहीं हो सकती. इस का अनुकरण जानेमाने फैशन हाउसेज ने किया है.

भारतीयों का अलग है पैमाना

क्रिश्चियन डिओर, दिवेंचे, सैंट लृरंट और गुक्की में किसी साइज पर पाबंदी नहीं लगाई है. मगर मौडलों के स्वस्थ होने की गारंटी दी गई है. यह तय किया है कि 16 वर्ष से कम उम्र की लडकियों को बालिक की तरह पोज नहीं किया जाएगा. दरअसल, पिछले काफी समय से यह आरोप लगता रहा है कि फैशन उद्योग खानपान में डिसऔर्डर को बढ़ावा दे रहा है.

भारत में अंतर्राष्ट्रीय फैशन कंपनियों के फैसलों का अनुकूल असर पड़ा है. वे उस का समर्थन करते हुए सफाई देते हैं. कई भारतीय फैशन शो निर्माता इस बारे में कहते हैं, ‘‘दुनियाभर में भले ही साइज जीरो फैशनेबल माना जाता हो, मगर हमारे देश में हमेशा भरेपूरे शरीर और उभारों वाली मौडल रही हैं. यह इस बात का प्रतीक है कि भारत के लोगों का सौंदर्यबोध फैशन उद्योग से प्रभावित नहीं होता, वह फिल्म उद्योग से प्रभावित होता है. बौलीवुड का लोगों पर जबरदस्त असर है. दशकों से वह भरेपूरे शरीर और उभारों वाली अभिनेत्रियों को ही महत्त्व देता रहा है. पिछले कुछ वर्षों में ही कुछ छरहरी अभिनेत्रियों को उस ने महत्त्व दिया है. वह भी इसलिए क्योंकि ये मौडल फैशन उद्योग से आई हुई थीं.’’

भरेपूरे मौडलों की अलग है पहचान

भारतीय मौडल सानिया शेख कहती हैं, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर हुआ यह परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है. मेरा मानना है कि साइज जीरो सैद्घांतिक तौर पर ही होता है. हमारे देश में जीरो साइज कभी नहीं रहा. उद्योग भरेपूरे शरीर वाली मौडलों को ही पसंद करता है. हमारे उद्योग में भी भरेपूरे शरीर की मौडलों को ही पसंद किया जाता है, क्योंकि हमारे यहां बौडी टाइप ऐंगुलर नहीं उभारों वाला है. हमारे यहां रनवे पर कुछ भारी कंधों वाली होती हैं, तो कुछ भारी नितंबों वाली तो कुछ चौड़ी कमर वाली. उद्योग से किसी तरह का दबाव नहीं होता. फिर भारतीय परिधान भी भरेपूरे बदन पर ज्यादा अच्छे लगते हैं.’’

स्वीकारा जा रहा प्लस साइज

डिजाइनर जोड़ी फाल्गुनी ऐंड शेन का कहना है, ‘‘हमारे देश में 50 फीसदी से अधिक महिलाओं का साइज 12 या इस से अधिक है. परिधान उद्योग इस पर ध्यान दे रहा है. आज रनवे से ले कर फैशन स्टोर्स और पत्रिकाओं के पन्नों पर भी प्लस साइज वाली महिलाओं की मौजूदगी नजर आ रही है. यह इसलिए नहीं है, क्योंकि उद्योग ने मान लिया है कि भारी भरकम शरीर होना सही है, बल्कि इसलिए कि उद्योग व्यावसायिक तौर पर इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता.’’

‘‘एक समुदाय के तौर पर फैशन उद्योग बौडी इमेज को ले कर सकारात्मक रुख अपना रहा है और यह शानदार है, क्योंकि अब समय आ गया है. जब हमें महिलाओं को खुद को उसी स्वरूप में स्वीकार करने में मदद करनी होगी जैसी वे हैं, न कि फैशन पत्रिकाओं में फोटोशौप की मदद से खूबसूरत दिखती दुबलीपतली मौडलों जैसे अडेल, एमी शूमर, एशले ग्राहम, स्टेफनिया फरेरो जैसी वैश्विक हस्तियां और विद्या बालन व हुमा कुरैशी जैसी भारतीय सैलिब्रिटीज अपने कर्वी फिगर के साथ खुद को साबित कर रही हैं. इन्हें देख कर आम महिलाएं आत्मविश्वास के साथ अपने प्लस साइज को खुशी से स्वीकार रही हैं.’’

समय बदल चुका है

डिजाइनर मोनिषा जयसिंह का कहना है, ‘‘फैशन उद्योग अब प्लस साइज ग्राहकों पर ध्यान दे रहा है, जिन्हें लंबे अरसे से नजरअंदाज किया जाता रहा है. प्लस साइज फैशन ब्लौगर्स भी इस मामले में बदलाव लाने में जुटे हैं. दुनियाभर के प्लस साइज मौडल्स और ब्लौगर्स फैशन के भविष्य का नया चेहरा हैं.’’

मुंबई में रहने वाली अमेरिकी मौडल लीजा गोल्डन भोजवानी का कहना है, ‘‘अब समय बदल चुका है. अब प्लस साइज फिगर होना बुरा नहीं समझा जाता है.’’

स्पेन, इटली और ईसराइल के बाद अब फ्रांस में भी साइज जीरो पर पाबंदी लगा दी गई है. इस से अब उम्मीद की जा रही है कि फीमेल मौडल्स के बीच छरहरी काया बनाने की सनक थोड़ी कम होगी.

बौलीवुड में भी धमक है

70 से 80 दशक के सिनेमा में मोटी अदाकाराओं को सिर्फ हंसोड़ पात्र के रूप में देखा जाता था. उमा देवी खत्री ‘टुनटुन’ को बौलीवुड की पहली महिला हास्य अभिनेत्री माना जाता है. जैसेजैसे सिनेमा में बदलाव आया रंगरूप की परिभाषा ही बदल गई. आज का सिनेमा छरहरी जीरो फीगर की अभिनेत्रियों का नहीं है. भूमी पेडरेकर, जरीन खान, ईशा गुप्ता, स्वरा भास्कर, हुमा खान ने अपने भरेपूरे बदन का जलवा दिखा कर खूब वाहवाही लूटी है.

दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हा और हरदिल अजीज सोनम भी ऐक्टिंग में आने से पहले काफी मोटी थीं. जब ये फिल्मों में ऐंट्री कर रही थीं उस समय करीना कपूर ने इंडस्ट्री में जीरो फीगर का फीवर फैला दिया था. जिस को देखो सभी जीरो फीगर बनाने को आतुर थीं. सोनाक्षी, सोनम ने भी अपनी काया को जीरो के अनुरूप, बनाया क्योंकि उन्हें फिल्मों में टिकना था.

लेकिन जब भरेपूरे बदन वाली हुमा ने ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में अपनी अदायगी के जलवे दिखाए तो एक बार फिर यह साबित हो गया कि यहां फीगर नहीं ऐक्टिंग का जलवा रहता है.

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