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छक्का लगने पर गुस्साए प्रज्ञान ओझा ने लात मारकर बिखेर दिए स्टंप्स

क्रिकेट को जेंटलमैन गेम कहा जाता है, लेकिन क्रिकेट की छवि इन दिनों काफी खराब होती जा रही है. पहले जहां यह मैच के दौरान दर्शकों के उत्पात की वजह से खबरों में रहता था, वहीं अब तो खिलाड़ियों के कारनामों की वजह से सुर्खियों में रहता है. चाहे मैच फिक्सिंग हो या मैदान पर खिलाड़ियों के बीच कहा सुनी. इसके साथ ही इन दिनों मैदान पर स्लेजिंग का चलन भी काफी बढ़ गया है, लेकिन क्रिकेट के लिए सबसे चिंता की बात यह है कि अब यह छोटी-मोटी कहासुनी, मारपीट तक पहुंचने लगी है. खिलाड़ियों की इन हरकतों की वजह से न केवल क्रिकेटर बल्कि, क्रिकेट का खेल भी शर्मसार हो रहा है. अब ऐसा ही एक नया मामला भारतीय क्रिकेटर का सामने आया है.

आमतौर पर क्रिकेट के मैदान पर शांत रहने वाले भारतीय खिलाड़ी प्रज्ञान ओझा एक एक वीडियो इन दिनों वायरल हो रहा है. हालांकि, यह वीडियो कब का और किस मैच का है इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन इस वीडियो में ओझा जिस तरह की हरकत कर रहे हैं वह वाकई शर्मसार करने वाली है.

इन दिनों प्रज्ञान ओझा का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें ओझा की प्रतिक्रिया इसके वायरल होने की वजह बनी. अपनी गेंद पर छक्का लगता देख कोई भी गेंदबाज खुद को सहज नहीं पा सकता. 31 साल के ओझा के साथ भी यह हुआ. लेकिन वह खुद पर काबू नहीं पा सके और स्टंप्स को लात मारकर बिखेर दिए.

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि ओझा की फुलटौस गेंद पर बल्लेबाज ने छक्का जड़ा है. इसके बाद नौन स्ट्राइकिंग एंड मौजूद बल्लेबाज आगे बढ़ते हुए उस बल्लेबाज को गले लगा लेता है. यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन तभी गुस्साए ओझा ने पैर मारकर स्टंप्स बिखेर दिए. यह वाकई शर्मसार करने वाली घटना है.

बता दें कि शुरुआती दौर में हैदराबाद की ओर से खेल प्रज्ञान ओझा बंगाल की रणजी टीम मे चले गए थे. लेकिन मौजूदा सीजन में वह दोबारा हैदराबाद टीम में लौट आए. मौजूदा रणजी सत्र में हैदराबाद की ओर से खेले. टीम इंडिया की ओर से 24 टेस्ट मैचों में ओझा ने 113 विकेट लेने में कामयाब रहे.

प्रज्ञान 18 वनडे मैचों में 4.47 की इकोनौमी के साथ 21 विकेट झटक चुके हैं. 24 टेस्ट मुकाबलों में ओझा ने 7 बार पारी में 5 विकेट चटकाने के साथ कुल 113 विकेट झटके हैं. प्रज्ञान ओझा ने 6 अंतरराष्ट्रीय -टी20 मैचों में 10, जबकि 92 आईपीएल में 89 खिलाड़ियों को आउट किया है.

प्रज्ञान ने 28 जून 2008 को बांग्लादेश के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मुकाबला खेला था. इसके बाद 2009 में उन्हें टी20 और फिर टेस्ट में मौका दिया गया. ओझा ने अपना आखिरी अंतर्राष्ट्रीय मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ 2013 को खेला था.

तो क्या अब फेसबुक आईडी के लिये भी देना होगा आधार कार्ड

अगर आप फेसबुक पर बहुत एक्टिव रहते हैं, तो यह खबर आपके काम की है. दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लैटफौर्म पर जल्द आधार कार्ड की जानकारी देनी पड़ सकती है. यूजर्स जब भी लौगइन करेंगे तो उनसे आधार संख्या और बाकी डिटेल पूछी जाएगी. अगर वे सही जानकारी देंगे, तभी वे अपने अकाउंट को खोल पाएंगे.

कंपनी सोशल मीडिया प्लैटफौर्म पर नकली अकाउंट्स की समस्या से निपटने को लेकर कर काम कर रही है. कंपनी ने इसके लिए एक नया फीचर भी तैयार किया है, जिसकी टेस्टिंग इन दिनों की जा रही है. अगर यह नया फीचर लागू किया जाएगा तो आने वाले दिनों में भारत में फेसबुक यूजर्स को अपने आधार कार्ड संबंधी जानकारी अकाउंट खोलने के लिए देनी पड़ेगी.

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कंपनी का कहना है कि वह ऐसा नकली अकाउंट्स की समस्या से निपटने के लिए कर रहा है. नया फीचर खासकर उन लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जो फेसबुक पर नकली नाम से अकाउंट बनाते हैं और उनका इस्तेमाल कई चीजों के लिए करते हैं. मगर कंपनी ने अभी तक इसे लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.

फेसबुक के इस फीचर से सबसे पहले एक शख्स तब दो-चार हुआ, जब वह नया अकाउंट बना रहा था. बाद में उसने अपने अनुभव को एक वेबसाईट पर शेयर किया. उसके मुताबिक, टेस्टिंग के दौरान कुछ यूजर्स से नए अकाउंट बनाते वक्त आधार कार्ड संबंधी जानकारी मांगी गई. उसने फेसबुक की मोबाइल साइट से अकाउंट बनाने की कोशिश की, तो आधार कार्ड के अनुसार नाम बताने के लिए कहा गया था.

आधार से जुड़ी जानकारी तब मांगी जाती है, जब कोई मोबाइल ब्राउजर से फेसबुक लौगइन करता है. पेज पर यूजर का नाम पूछा जाता है, जिसके बाद सबसे ऊपर लिखा आता है- आधार कार्ड पर लिखे अपने नाम का इस्तेमाल कर अपने दोस्तों को आसानी से पहचानें. (“Using the name on your Aadhaar card makes it easier for friends to recognise you”)। हालांकि, कंपनी की ओर से अभी तक इस फीचर को लागू करने को लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है.

फिलहाल आधार कार्ड की जानकारी सिर्फ फेसबुक की मोबाइल साइट (m.facebook.com) पर अकाउंट बनाते वक्त ही मांगी जा रही है. लेकिन जो लोग मोबाइल ऐप्लीकेशन पर फेसबुक चलाते हैं, उनके सामने इस किस्म का कोई प्रौम्ट नहीं आ रहा है.

मेरी उम्र 26 वर्ष है. पिछले कुछ दिनों से कोई मेरे लैंडलाइन पर फोन कर अश्लील बातें करता है. मैं क्या करूं.

सवाल
मेरी उम्र 26 वर्ष है और मैं एक आईटी कंपनी में जौब करती हूं. पिछले कुछ दिनों से कोई मेरे घर के लैंडलाइन पर फोन कर के मुझ से अश्लील बातें करता है और जब मैं उसे फोन करने के लिए मना करती हूं तो वह मुझे गालियां देता है. घरवालों के डर से अब जब भी लैंडलाइन पर फोन आता है तो मैं ही उठती हूं, इस से मेरे मातापिता मुझ पर शक करने लगे हैं. मैं काफी परेशान हूं. मेरी किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. आप ही बताएं कि मैं कैसे इस समस्या से बाहर निकलूं?

जवाब
देखिए जरूरी नहीं कि आप की किसी से दुश्मनी हो, तभी कोई आप को फोन कर अश्लील बातें करेगा. अकसर देखा जाता है कि ऐसे लोग कहीं से भी नंबर ले लेते हैं और अगर एक बार लड़की फोन उठा लेती है तो फिर तो ये तंग करने का सिलसिला शुरू कर देते हैं. ऐसे में आप को चाहिए कि आप बिलकुल भी फोन न उठाएं.

रही बात पेरैंट्स के शक करने की तो उन्हें समझाएं कि इस में आप की कोई गलती नहीं है और आप उन से पुलिस में शिकायत करने के लिए कहें. इस से उन्हें लगेगा कि आप सही कह रही हैं. साथ ही, आप भी ऐसा कर के खुद को सुरक्षित महसूस कर पाएंगी.

जब भी आप किसी फ्रैंड वगैरा के साथ नंबर शेयर करें तो बहुत ही ध्यान रख कर करें. क्योंकि कई बार आप की लापरवाही का खमियाजा आप को ही भुगतना पड़ता है.

जौन अब्राहम और मनोज बाजपेयी की 35 करोड़ के बजट की फिल्म भी घाटे का सौदा

2017 बौलीवुड के लिए बिलकुल अच्छा नहीं रहा. कई सुपर स्टार कलाकारों को असफलता का दंश झेलने के साथ ही वितरकों के पैसे भी लौटाने पड़े हैं. अब फिल्म निर्माण कंपनियां और स्टूडियो सोच समझकर फिल्मों में पैसा लगाना चाहते हैं. इसी वजह से निखिल आडवाणी की मनोज बाजपेयी और जौन अब्राहम के अभिनय से सजने वाली फिल्म को निर्माता नहीं मिल पा रहा है. सूत्रों की माने तो इस फिल्म का बजट 35 करोड़ है, मगर हर स्टूडियो का मानना है कि जौन अब्राहम और मनोज बाजपेयी के अभिनय वाली 35 करोड़ के बजट वाली फिल्म के साथ जुड़ना घाटे के सौदे के अलावा कुछ नही है.

बौलीवुड से जुड़े सूत्र दावा कर रहे हैं कि ‘टीसीरीज’के भूषण कुमार ने निखिल आडवाणी के साथ तीन फिल्में बनाने का एक एग्रीमेंट किया हुआ है. इसलिए हर तरफ से निराश निखिल आडवाणी ने टीसीरीज के पास अपनी जौन अब्राहम व मनोज बाजपेयी वाली फिल्म के साथ जुड़ने के लिए कहा तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया.

जब इस बात की भनक कभी टीसीरीज में मुलाजिम रहे अजय कपूर को पड़ी, तो उन्होंने निखिल आडवाणी की इस फिल्म के साथ जुड़ने की इच्छा इस शर्त पर जाहिर की कि इस फिल्म का निर्देशन निखिल आडवाणी के बजाय मिलाप झवेरी करें. वास्तव में जब से निखिल आडवाणी की फिल्म‘हीरो’ असफल हुई है, तब से निखिल आडवाणी और फिल्म‘हीरो’के कलाकारों को काम नहीं मिल रहा, पर मजेदार बात यह है कि अजय कपूर का दावा है कि उनकी निखिल आडवाणी से कोई मुलाकात ही नहीं हुई और न ही इस फिल्म से जुड़ने के बारे में उन्होंने सोचा है.

पर बौलीवुड के सूत्र दावा कर रहे हैं कि अजय कपूर चुप हैं, क्योंकि मनोज बाजपेयी व जौन अब्राहम वाली इस फिल्म के लिए हीरोईन नही मिल रही है. सूत्र बता रहे हैं कि तमन्ना भाटिया ने इस फिल्म को करने से साफ इंकार कर दिया. उधर असफल फिल्म ‘मोहन जोदाड़ो’फेम अभिनेत्री पूजा हेगड़े जवाब ही नही दे रही हैं.

चार लाइनों के दो बयान और राज्यसभा में चल रही बाधा खत्म

चार लाइनों के दो बयान और राज्यसभा में चल रही बाधा खत्म हो गई. 15 दिसंबर को जब संसद का शीत सत्र शुरू हुआ, तो उसके बाद इस बुधवार तक राज्यसभा में कोई भी काम नहीं हो सका. हर बार की तरह ही इस बार भी संसद को इस सत्र में कई महत्वपूर्ण फैसले लेने हैं, कई मुद्दों व मसलों पर बहस होनी है, कई विधेयकों को रखा जाना है. लोकसभा में यह सब होता भी रहा, लेकिन राज्यसभा में सब रुक सा गया था.

संसद में जनता के प्रतिनिधि विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात न रख सके, सत्र चल रहा हो और सदन में चर्चा न हो सके, लोकतंत्र में यह कोई अच्छी बात नहीं होती. हर बार जब संसद में कामकाज रुक जाता है, तो कुछ आंकड़े पेश किए जाते हैं. यह बताया जाता है कि संसद के किसी भी सत्र में एक दिन में कितना धन खर्च होता है, या फिर एक घंटे में कितना खर्च होता है. खर्च यानी वही धन, जो हम-आप टैक्स के रूप में चुकाते हैं. उन सारे आंकड़ों को एक बार फिर दोहराने की जरूरत नहीं है.

वैसे भी यहां खर्च से ज्यादा बड़ा मुद्दा है- लोकतंत्र में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले सदन में कामकाज का न हो पाना. ऐसा नहीं है कि विपक्ष इस बात को नहीं समझता है. सदन उसके लिए सरकार को घेरने का सबसे बड़ा औजार होता है, इसलिए सदन की कार्यवाही चले, यह विपक्ष के पक्ष में भी होता है. पर लोकतंत्र में अक्सर कुछ मुद्दे मूंछ का सवाल बन जाते हैं, जो सरकार और विपक्ष, दोनों को ही समान रूप से परेशान करते हैं. अब जब यह मसला सुलझ गया है, तो यह इसकी तफसील में जाने का भी समय है.

राज्यसभा में विपक्ष इस बात से आहत था कि सदन के सदस्य और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की देशभक्ति पर सवाल उठाए गए थे. इतना ही नहीं, सदन के पूर्व सभापति की ओर भी उंगली उठाई गई थी. मामला दरअसल गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान दिए गए एक चुनावी भाषण का है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में दी गई एक दावत का जिक्र किया था, जिसमें पाकिस्तान के कुछ राजनीतिज्ञ और राजनयिक भी शामिल हुए थे. आमतौर पर भारतीय राजनीति में चुनावी भाषणों को कम से कम चुनाव के बाद कभी गंभीरता से नहीं लिया जाता, लेकिन इस बार इस भाषण ने कुछ ज्यादा ही गंभीर मोड़ ले लिया था.

राज्यसभा में पूरा विपक्ष इस बात पर अड़ गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए सदन से माफी मांगें. इसी मांग के चलते सदन की कार्यवाही एक भी दिन चलने नहीं दी गई. अच्छी बात यह है कि मामले को अनंत काल तक चलाने की बजाय दोनों ही पक्षों ने अपनी गलती और सीमा को महसूस किया. सदन के नेता अरुण जेटली ने यह बयान जारी किया कि प्रधानमंत्री का मकसद पूर्व प्रधानमंत्री की देशभक्ति पर सवाल उठाना नहीं था. विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ख्याल है, इसलिए माफी की मांग पर वे नहीं अड़ेंगे. यानी अंत भला तो सब भला के अंदाज में यह मामला खत्म हो गया.

पिछले हफ्ते तक जो कठिन समस्या लग रही थी, वह बहुत आसानी से सुलझ गई. जाहिर है कि इस बाधा के खत्म होने के बाद सरकार और विपक्ष, दोनों ने ही राहत महसूस की होगी. लेकिन यह सवाल अपनी जगह जरूर है कि सरकार और विपक्ष, दोनों मर्यादा का ख्याल रखते हुए यह कोशिश नहीं कर सकते कि ऐसी नौबत ही न आए? सरकार और विपक्ष में आपसी उलझाव के मुद्दे बहुत सारे हैं और रहेंगे भी, लेकिन संसदीय कामकाज की बाधाएं हटाने का जब कभी भी मसला उठेगा, ऐसे मौकों के लिए यह प्रकरण एक उदाहरण बन सकता है. पिछले कुछ समय से ऐसे मौके अक्सर ही आते रहते हैं.

शैतान का कारनामा : इस हादसे ने किया इंसानियत को शर्मसार

लुधियाना के थाना सलेमटाबरी के मोहल्ला नानकनगर के रहने वाले देविंदर कुमार पेशे से फोटोग्राफर थे. उसी इलाके में उन की फोटोग्राफी की दुकान थी. अपनी दुकान पर तो वह फोटोग्राफी करते ही थे, जरूरत पड़ने पर थानों में जा कर पुलिस द्वारा पकड़े गए अभियुक्तों के फोटो खींच कर डोजियर भी बनाते थे. इस के अलावा लोकल समाचारपत्रों के लिए भी वह फोटोग्राफी करते थे.

हर किसी का दुखदर्द सुनने समझने वाले देविंदर कुमार काफी मिलनसार थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे, 8 साल का चेतन और 5 साल का जतिन था. उन के दोनों बेटे पढ़ने जाते थे. अपने इस छोटे से सुखी परिवार के साथ देविंदर खुद को बड़ा भाग्यशाली समझ रहे थे. पुलिस प्रशासन में उन की काफी पैठ थी, जिस से आम लोग उन की काफी इज्जत करते थे.

देविंदर कुमार की पत्नी का अपना ब्यूटीपार्लर था. उन के बड़े और छोटे भाई भी उसी मोहल्ले में रहते थे. 3 मई, 2017 की शाम 7 बजे के करीब देविंदर घर पहुंचे तो पता चला कि गली में खेलते हुए उन का बड़ा बेटा चेतन अचानक गायब हो गया है. हैरान परेशान देविंदर पत्नी के साथ बेटे की तलाश में निकल पड़े. चेतन का इस तरह गायब होना हैरानी की बात थी. क्योंकि वह कहीं आताजाता नहीं था.

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चेतन सुबह 7 बजे स्कूल जाता था तो दोपहर साढ़े 12 बजे लौटता था. खाना खा कर वह 2 बजे पड़ोस में रहने वाली अपनी ताई के घर चला जाता था. 5 बजे तक उन्हीं के यहां रहता था. इस के बाद थोड़ी देर वह छोटे भाई और गली के लड़कों के साथ गली में खेलता था या साइकिल चलाता था. इस के बाद घर आ जाता था तो घर से बाहर नहीं निकलता था.

गली के बच्चों से पूछने पर पता चला कि शाम 7 बजे तक चेतन उन्हीं के साथ गली में खेल रहा था. उस की साइकिल भी घर में अपनी जगह खड़ी थी. इस का मतलब था, साइकिल खड़ी कर के वह कहीं गया था. उस के गायब होने की जानकारी पा कर देविंदर के भाई तो आ ही गए थे, मोहल्ले वाले भी उन की मदद के लिए आ गए थे.

लगभग 9 बजे गली के ही रहने वाले रोशनलाल ने बताया कि शाम 7 बजे के करीब वह काम से बाहर जा रहे थे तो उन्होंने गली के कोने पर चेतन को विक्की से बातें करते देखा था. विक्की उस समय मोटरसाइकिल से था. वह चेतन को मोटरसाइकिल पर बैठने के लिए कह रहा था. उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि शायद वह बाईपास की ओर गया.

रोशनलाल से इतनी जानकारी मिलने पर सभी को थोड़ी राहत महसूस हुई कि चलो चेतन विक्की के साथ है. लेकिन देविंदर परेशान हो उठे थे, क्योंकि वह विक्की की आदतों के बारे में जानते थे. विक्की का नाम राहुल था. वह अमृतसर के रहने वाले देविंदर के सगे मामा का बेटा था. वह ज्यादातर यहां उन के छोटे भाई रवि के यहां रहता था. कभीकभार उन के यहां भी रहने आ जाता था. चेतन और जतिन उसे चाचा कहते थे. वह एक नंबर का शराबी और सट्टेबाज था. इसी वजह से उस की अपने पिता से नहीं पटती थी. इसी वजह से वह अपना घर छोड़ कर अपनी बुआ के बेटों के यहां पड़ा रहता था.

देविंदर सभी के साथ जालंधर बाईपास पर पहुंचे, लेकिन वहां न विक्की मिला और न चेतन. थकहार कर रात साढ़े 11 बजे वह सभी के साथ थाना सलेमटाबरी पहुंचे और पुलिस को सारी बातें बता कर मदद मांगी. लेकिन पुलिस वालों से अच्छे संबंध होने के बावजूद थाना सलेमटाबरी पुलिस ने उन से यह कह कर अपना पिंडा छुड़ा लिया कि पहले  आप बच्चे को अच्छी तरह से तलाश लो, उस के बाद आना.

जबकि देविंदर कुमार पुलिस से यही कहते रहे कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह अपहर्त्ता का नाम बताने के साथ उस की फोटो और मोटरसाइकिल का नंबर भी पुलिस को दे रहे थे. इस के बावजूद पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी.

देविंदर कुमार सभी के साथ घर लौट कर आए. वे घर पहुंचे ही थे कि विक्की मिल गया. उस से चेतन के बारे में पूछा गया तो कुछ बताने के बजाय वह सभी को धमकाने लगा.

उसे थाने ले जाया गया तो नशे में होने की वजह से पुलिस ने उस से पूछताछ करने के बजाय यह कह कर वापस कर दिया कि यह घर का मामला है, इस में हम कुछ नहीं कर सकते. थाने से खाली हाथ लौटने के बाद देविंदर ने पुलिस अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अंत में उन्होंने पुलिस के हेल्पलाइन नंबर 181 पर फोन कर के शिकायत दर्ज कराई.

इस के बाद कुछ सिपाही चेतन की तलाश में उन के साथ निकले. देविंदर को किसी से पता चला कि बाईपास के पास एक खाली पड़े निर्माणाधीन मकान में विक्की अकसर अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता था. वह पुलिस के साथ वहां पहुंचे तो उन्हें वहां चेतन के रोने की आवाज सुनाई दी.

उन्होंने पुलिस से अंदर चल कर चेतन की तलाश करने को कहा, पर पुलिस वालों ने उन की एक नहीं सुनी और बाहर से ही लौट आए.

सुबह 6 बजे थाना सलेमटाबरी के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ के आदेश पर एक पुलिस टीम देविंदर के साथ विक्की और चेतन की तलाश में अमृतसर गई. पुलिस को वह वहां अपने घर के पास एक पार्क में बैठा दिखाई दे गया. पुलिस टीम उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया. पुलिस ने उस की तलाश में अन्य कई जगहों पर छापे मारे, पर वह नहीं मिला.

अगले दिन 6 मई, 2017 को लुधियाना के प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा. समाचार में पुलिस की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में विस्तार से छपा था. इस समाचार को पढ़ कर पुलिस विभाग तत्काल हरकत में आ गया.

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उसी दिन शाम को 6 बजे किसी राहगीर ने सूचना दी कि कोलकाता होजरी के पास एक खाली प्लौट में किसी बच्चे की अर्धनग्न लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही अमनदीप सिंह बराड़ देविंदर को ले कर पुलिस बल के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां सचमुच एक बच्चे की लाश पड़ी थी. वहां जो लाश पड़ी मिली थी, वह चेतन की ही थी. हालांकि लाश का चेहरा बुरी तरह कुचला था, उस के मुंह में कपड़ा भी ठूंसा हुआ था. उस पर पैट्रोल डाल कर जलाने की भी कोशिश की गई थी, इस के बावजूद देविंदर कुमार ने लाश की पहचान कर ली थी.

बेटे की हालत देख कर देविंदर फूटफूट कर रो पड़े. घटनास्थल पर पुलिस को चेतन की चप्पलों के अलावा और कुछ नहीं मिला था. लाश कब्जे में ले कर अमनदीप सिंह बराड़ ने पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर चेतन की गुमशुदगी की जगह अपराध संख्या 135/2017 पर भादंवि की धारा 302, 364/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

7 मई, 2017 को सिविल अस्पताल में 3 डाक्टरों के पैनल ने चेतन की लाश का पोस्टमार्टम किया. उस समय पुलिस अधिकारी भी अस्पताल में मौजूद थे.

अस्पताल में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया था. इस की वजह यह थी कि पुलिस के रवैए से लोग काफी नाराज थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतक चेतन की एक टांग और बाजू की हड्डी टूटी हुई थी. दोनों बाजुओं पर चोटों के निशान थे. मुंह में कपड़ा ठूंस कर सिर और चेहरे पर ईंटों से वार किए गए थे. उस के साथ कुकर्म भी किया गया था.

पुलिस ने सुरक्षा की दृष्टि से उसी दिन चेतन का अंतिम संस्कार करवा दिया था. एडीशनल पुलिस कमिश्नर धु्रमन निंबले स्वयं पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे. एडीसीपी क्राइम, एसीपी सचिन गुप्ता सहित सीआईए स्टाफ की टीमें आरोपी विक्की की तलाश में लगी थीं. इस के अलावा मुखबिरों को भी उस की तलाश में लगा दिया गया था.

7 मई, 2017 को ही एक मुखबिर की सूचना पर चेतन की हत्या के अभियुक्त विक्की को थाना लाडोवाल के एक शराब के ठेके से गिरफ्तार कर लिया गया था. उस समय वह नशे में था.

पुलिस विक्की को थाना सलेमटाबरी ले आई. पूछताछ में उस ने मासूम चेतन के अपहरण और हत्या का अपराध स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह इंसानियत को शर्मसार करने वाली थी. हम सभी शैतान का केवल नाम सुनते आए हैं, अगर शैतान होता होगा तो वह विक्की जैसा ही होगा.

विक्की को नशे की आदत थी. इस के अलावा वह जुआसट्टा भी खेलता था. सभी जानते थे कि वह नशे के लिए कुछ भी कर सकता था. लेकिन नशे के लिए वह इस तरह की हरकत भी कर सकता है, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

उस दिन विक्की ने काफी शराब पी रखी थी. इस के बावजूद वह संतुष्ट नहीं था. अब उस के पास पैसे नहीं थे, जबकि अभी वह और पीना चाहता था. इस के अलावा नशे में होने की वजह से उस की शारीरिक संबंध बनाने की भी इच्छा हो रही थी. जबकि उस के पास न कोई लड़की थी और न ही पास में पैसे थे.

वह इसी सोच में डूबा घर की ओर लौट रहा था, तभी गली के कोने पर उसे चेतन खेलता दिखाई दे गया. उसे देख कर अचानक उस के अंदर का शैतान जाग उठा. कैसे और क्या किया जाए, वह योजना बना रहा था कि तभी चेतन ने उस के नजदीक आ कर पूछा, ‘‘चाचा, यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘चलो चेतन, मैं तुम्हें मोटरसाइकिल पर बैठा कर घुमा लाता हूं. वैसे ही तुम्हें टौफी भी दिला दूंगा.’’ विक्की ने कहा.

चेतन बच्चा तो ही था. विक्की के इरादों से अंजान वह उस के साथ चल पड़ा. पहले वह ब्लैक में शराब बेचने वाली एक औरत के घर गया. उस समय उस के पास पैसे कम थे. उस ने चेतन को उस के पास गिरवी रख कर शराब ली और फिर कहीं जा कर सौ रुपए का इंतजाम किया. इस के बाद उस औरत को पैसे दे कर चेतन को छुड़ाया और उसे कोलकाता होजरी के पास वाली उस निर्माणाधीन इमारत में ले गया.

अब तक रात के लगभग 10 बज चुके थे. चेतन अब टौफी भूल कर घर जाने की जिद करने लगा था. विक्की ने उसे 2 थप्पड़ मार कर एक कोने में बैठा दिया और खुद साथ लाई शराब पीने लगा. जब उसे नशा चढ़ा तो इंसानियत की सारी हदें पार करते हुए वह मासूम के साथ कुकर्म करने लगा. दर्द से कराहते हुए अर्धबेहोशी की हालत में चेतन ने कहा, ‘‘चाचा, तुम बड़े गंदे हो, मैं यह सब को बता दूंगा.’’

यह सुन कर विक्की डर गया. उस ने चेतन के मुंह में कपड़ा ठूंस कर पहले उस की जम कर पिटाई की, उसे उठाउठा कर जमीन पर पटका. इस के बाद ईंट से उस के चेहरे पर कई वार किए. लेकिन अभी वह मरा नहीं था. उसी हालत में उस ने उसे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक दिया और मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर उस के शरीर पर छिड़क कर आग लगा दी.

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चेतन की लाश को जलाने के बाद वह अमृतसर चला गया. पुलिस वहां पहुंची तो वह तरनतारन भाग गया. पर हर जगह भटकने के 2 दिनों बाद वह अपनी मनपसंद की शराब पीने लुधियाना के बाहरी इलाके लाडोवाल पहुंचा तो मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

8 मई, 2017 को पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह बराड़ ने उसे अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर खून सने कपड़े और वह ईंट बरामद कर ली गई, जिस से उस ने चेतन का चेहरा कुचला था. मोटरसाइकिल बरामद कर के पुलिस जांच कर रही है कि नशे में उस ने और क्याक्या किया था?

मृतक चेतन के पिता देविंदर कुमार को इस बात का मलाल जीवन भर रहेगा कि अगर पुलिस ने समय रहते उन की बात मान ली होती तो आज उन का बेटा चेतन जीवित होता.

– पुलिस सूत्रों व जनचर्चाओं पर आधारित

स्ट्रीट जस्टिस : क्या अपराधी को सजा देने का ये तरीका सही है

पंजाब में पिछले लंबे अरसे से नशा भारी परेशानी का सबब बना हुआ है. इस बार सूबे में कांग्रेस की सरकार बनने के पीछे का मुख्य कारण भी यही था. क्योंकि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पंजाब से नशे को समूल खत्म करने का वादा किया था.

17 मार्च, 2017 को पंजाब राजभवन में प्रदेश के 26वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते समय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की इस घोषणा को एक बार फिर से दोहराया था कि आने वाले एक महीने में उन की सरकार पंजाब से नशे का नामोनिशान मिटा देगी.

इस के बाद जल्दी ही एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में एक स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया, जिस में करीब 2 दर्जन आईपीएस और पीपीएस अधिकारियों के अलावा अन्य अफसरों को शामिल किया गया. इन का काम युद्धस्तर पर काररवाई कर के नशा कारोबारियों को काबू कर के पंजाब से ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह मिटाना था.

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एसटीएफ को मुखबिरों से इस तरह की जानकारी मिलती रहती थी कि पंजाब में ड्रग्स के धंधे के पीछे न केवल एक बड़ा माफिया काम कर रहा है, बल्कि कई बड़े कारोबारी और पुलिसकर्मी भी इस काम में लगे हैं. बीते 3 सालों में पंजाब पुलिस के ही 61 कर्मचारी नशे का धंधा करने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इन में इंटेलीजेंस के कर्मचारियों के अलावा होमगार्ड के जवान, सिपाही, हवलदार और डीएसपी जैसे अधिकारी तक शामिल थे.

लेकिन मुख्यमंत्री के आदेश पर बनी हाईप्रोफाइल एसटीएफ के हत्थे अभी तक कोई भी नशा कारोबारी नहीं चढ़ा. थाना पुलिस द्वारा नशे के छोटेमोटे धंधेबाजों को नशे की थोड़ीबहुत खेप के साथ अलगअलग जगहों से धरपकड़ जरूर चल रही थी. पर एसटीएफ का कोई कारनामा अभी सामने नहीं आया.

शायद ये लोग छोटी मछलियों के बजाय किसी बड़े मगरमच्छ पर जाल फेंकने की फिराक में थे. जो भी हो, आम लोग इस बुरी लत से परेशान थे. पुलिस पर से भी लोगों का विश्वास उठता जा रहा था. बड़ेबड़े कथित ड्रग स्मगलर अदालत से बाइज्जत बरी हो रहे थे. इस समस्या का कोई सीधा समाधान नजर नहीं आ रहा था. जबकि नशे की चपेट में आ कर घर के घर बरबाद हो रहे थे.

बरसों पहले पंजाब में पनपे आतंकवाद पर जब काबू पाना मुश्किल हो गया था तो लोगों ने अपने दम पर आतंकियों से लोहा ले कर उन्हें धराशाई करना शुरू कर दिया था. इस का बहुत ही अच्छा परिणाम भी सामने आया था. जागरूक एवं दिलेर किस्म के लोगों द्वारा उठाए गए इस कदम ने आतंकवाद के ताबूत में आखिरी कील का काम किया था.

अब नशे के मुद्दे पर भी तमाम लोगों की सोच इसी तरह की बनने लगी थी. यहां हम जिस युवक का जिक्र कर रहे हैं, उस का नाम विनोद कुमार उर्फ सोनू अरोड़ा था. उस पर नशे का कारोबार करने का आरोप था.

बताया जाता है कि बठिंडा के कस्बा तलवंडी साबो और आसपास के इलाकों में नशा सप्लाई कर के उस ने तमाम युवकों को नशे की लत लगा दी थी. इन इलाकों के लोग उस से बहुत परेशान थे और उसे समझासमझा कर थक चुके थे. उस पर किसी के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था. धमकाने पर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

पास ही के गांव भागीवांदर के लोग तो उस से बेहद खफा थे. वहां के कई आदमी उस के खिलाफ शिकायतें ले कर पुलिस के पास गए थे. पुलिस उस के खिलाफ केस दर्ज कर भी लेती थी, लेकिन वह अदालत से जमानत पर छूट जाता था. नशा तस्करी के 5 केस उस पर दर्ज थे.

विनोद कई बार जेल जा चुका था, लेकिन जमानत पर छूटते ही फिर से इस गलीज धंधे में लग जाता था. 22 मई, 2017 को पुलिस ने उस के पिता विजय कुमार पर भी स्मैक का केस दर्ज किया था, जिस के बाद से वह मौडर्न जेल, गोबिंदपुरा में बंद था.

8 जून, 2017 की बात है. सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. विनोद अपनी मोटरसाइकिल पर तलवंडी साबो से अपने गांव लेलेवाल जा रहा था. इस गांव में जाने के लिए मुख्य सड़क से लिंक रोड मुड़ती है. विनोद उसी लिंक रोड पर पहुंचा था कि स्कौर्पियो गाड़ी व टै्रक्टर ट्रौली पर सवार दर्जनों लोगों ने पास आ कर उसे चारों तरफ से घेर लिया. उन के पास पिस्तौलें, लोहे की मोटीमोटी छड़ें, हैंडपंप के हत्थे और गंडासे वगैरह थे.

अनहोनी को भांप कर विनोद फिल्मी अंदाज से बचताबचाता लेलेवाल की ओर भागा. पीछा कर रहे लोग उधर भी उस का पीछा करते रहे. उस समय उस की मोटरसाइकिल की रफ्तार बहुत तेज थी, जिस की वजह से वह अपने घर पहुंच गया. लेकिन मोटरसाइकिल से उतर कर विनोद घर के भीतर घुस पाता, उस के पहले ही लोगों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. इस के बाद उसे स्कौर्पियो में डाल कर गांव भागीवांदर ले गए.

वहां खुले रास्ते पर लिटा कर पहले तो उन्होंने उस की जम कर बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. उस के बाद गंडासे से उस का एक हाथ और दोनों पैर काट दिए. यह सब करते समय कई लोगों ने इस घटना की वीडियो बना कर इस चेतावनी के साथ सोशल मीडिया पर डाल दिया कि आगे से जो भी नशे के धंधे में लिप्त पाया जाएगा, उस का ऐसा ही हश्र होगा. क्योंकि पंजाब से नशा मिटाने का अब और कोई रास्ता नहीं बचा है.

इस बीच जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद उन लोगों से दया की भीख मांगता रहा, लेकिन किसी को उस पर दया नहीं आई. लोग उस पर फब्तियां कस रहे थे कि अब वह अपने उन आकाओं को क्यों नहीं बुलाता, जिन के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा कर के उन की नौजवान पीढ़ी को नशे के अग्निकुंड में झोंक रहा था.

विनोद पर तरस खाना तो दूर की बात, पूरा गांव यही चाह रहा था कि वह तिलतिल कर के मौत के आगोश में समाए और उस के इस लोमहर्षक अंत का नजारा वे लोग भी देखें, जो नशे के हक में हैं. जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद शायद कुछ देर बाद वहीं दम तोड़ भी देता, लेकिन किसी तरह बात पुलिस तक पहुंच गई.

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पुलिस की एक टीम ने मौके पर पहुंच कर बिना देर किए एंबुलेंस बुला कर जल्दी से जल्दी विनोद को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की. लेकिन लोगों के भारी विरोध के चलते पुलिस को इस काम में एक घंटे का समय लग गया. इस बीच विनोद के शरीर से लगातार खून बहता रहा. हालांकि उस हालत में भी वह पुलिस वालों को घटना के बारे में बताता रहा, जिसे एएसआई गुरमेज सिंह दर्ज करते रहे.

ठीक एक घंटे बाद एंबुलेंस विनोद को ले कर तलवंडी साबो के सरकारी अस्पताल के लिए रवाना हुई तो लोगों का समूह उस के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच कर अस्पताल के मुख्य गेट को घेर कर खड़ा हो गया. यहां भी एंबुलेंस का घेराव कर के विनोद को अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया गया. लोगों ने एंबुलेंस को लगातार 3 घंटे तक घेरे रखा.

काफी मशक्कत के बाद पुलिस किसी तरह विनोद को फरीदकोट के सरकारी मैडिकल कालेज एवं अस्पताल ले जाने में सफल हो पाई. लेकिन तब तक विनोद ने दम तोड़ दिया था. एएसआई गुरमेज सिंह के पास उस का बयान दर्ज था. उसी बयान को तहरीर के रूप में ले कर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अगली सुबह पुलिस मामले की जांच के लिए गांव भागीवांदर पहुंची तो वहां अजीब नजारा सामने आया. 4 हजार की आबादी वाले इस गांव के तमाम लोग इस अपराध की स्वीकृति के साथ आत्मसमर्पण को तैयार थे कि ड्रग सप्लायर विनोद का कत्ल उन सब ने मिल कर किया था.

उन लोगों में बुजुर्ग, जवान, पुरुषमहिलाओं के अलावा किशोर और छोटेछोटे बच्चे तक शामिल थे. सभी अपनी गिरफ्तारी देने को तो तैयार थे. उन का कहना था कि एक ड्रग सप्लायर को इस तरह मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है. आगे भी इस इलाके में नशा बेचने वाले का यही हश्र होगा.

स्थिति को देखते हुए पुलिस के लिए गांव के किसी शख्स से पूछताछ करना तो दूर की बात, मामले की जांच तक करना मुश्किल हो गया. इस के बाद पुलिस ने गांव लेलेवाल पहुंच कर विनोद के परिवार वालों से संपर्क किया. वे सभी अपने घर में दुबके बैठे थे. हालांकि पुलिस वालों पर उन्होंने अपनी भड़ास खूब निकाली. उन लोगों को डर था कि कहीं उन पर भी जानलेवा हमला न हो जाए.

उन लोगों की आशंका जायज थी. लिहाजा उन के घर पर पुलिस का सशस्त्र दस्ता तैनात कर दिया गया. उसी दिन फरीदकोट मैडिकल कालेज में डाक्टरों के एक पैनल ने विनोद की लाश का पोस्टमार्टम कर के उसे पुलिस वालों को सौंप दिया.

पुलिस ने लाश लेने का संदेश विनोद के घर वालों तक पहुंचा दिया, लेकिन उन लोगों ने यह कह कर शव लेने से इनकार कर दिया कि पुलिस उन्हें न्याय दिलाने की जरा भी कोशिश नहीं कर रही है.

एएसआई गुरमेज सिंह को दिए अपने बयान में विनोद ने उस पर हमला करने वालों के नाम स्पष्ट बताए थे. वे अच्छीखासी संख्या में इकट्ठा हो कर आए थे. उन के पास मारक हथियार भी थे. जबकि पुलिस ने केवल धारा 302 (हत्या) का मुकदमा अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज किया था और अब इस लोमहर्षक हत्याकांड के असली मुजरिमों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है.

पुलिस ने इस बारे में समझाने की कोशिश की तो वे भड़क उठे थे. बाद में उन का कहना था कि समुद्र में रह कर मगरमच्छों से बैर न रखने वाले मुहावरे का हवाला दे कर पुलिस ने उन्हें कथित आरोपियों से समझौता कर लेने की सलाह दी थी. विनोद की 3 बहनों बबली, वीरपाल और अमनदीप कौर ने पहले तो रोरो कर आसमान सिर पर उठाया, उस के बाद पंखों से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश भी की.

पुलिस ने तत्काल एक्शन लेते हुए उन की यह कोशिश नाकाम कर दी. पर यह मामला घर वालों की ओर से कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगा था. अब तक तमाम लोग उन की हिमायत में भी आ गए थे और पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे थे.

उन का कहना था कि किसी को इस तरह सरेआम मार दिया गया तो पुलिस को हत्यारों के दबाव में न आ कर अपनी काररवाई करनी चाहिए. कायदे से मुकदमा दर्ज कर के वांछित अभियुक्तों को नामजद कर उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए. इस तरह तो दबंग लोग कानून को धता दिखा कर कुछ भी मनमानी करने लगेंगे.

मामला बढ़ता देख आखिर बठिंडा के एसपी (हैडक्वार्टर) भूपेंद्र सिंह और ड्यूटी मजिस्ट्रैट के रूप में रामपुराफुल के एसडीएम-1 सुभाष चंदर खटके विनोद के घर वालों से मिले. बातचीत करने के साथसाथ इन अधिकारियों ने उन के बयान भी दर्ज किए, साथ ही भरोसा भी दिया कि इस मामले में दूसरी एफआईआर दर्ज कर घटना के जिम्मेदार लोगों को नामजद करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर के उन पर बाकायदा मुकदमा चलाया जाएगा.

इस भरोसे के बाद शांत हो कर उन लोगों ने विनोद का शव ले तो लिया, लेकिन एक शर्त भी रख दी. शर्त यह थी कि नई एफआईआर दर्ज करने के बाद जब तक पुलिस उन्हें उस की अधिकृत प्रति नहीं दे देगी, तब तक वे विनोद का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे.

यह शर्त भी मान ली गई. उसी दिन विनोद के भाई कुलदीप अरोड़ा के बयान के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धाराओं 364/341/186/120बी/148 एवं 149 के तहत नई एफआईआर दर्ज कर के उस में 13 लोगों को नामजद किया.

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वे 13 लोग थे, गांव की सरपंच चरणजीत कौर, अमरिंदर सिंह राजू, भिंदर सिंह, पूर्ण सिंह, बड़ा सिंह, दर्शन सिंह, मनदीप कौर, गुरप्रीत सिंह, जगदेव सिंह, निम्मा सिंह, हरपाल सिंह, सीरा सिंह और गुरसेवक सिंह. ये सभी लोग गांव भागीवांदर के रहने वाले थे. इन के अलावा पुलिस ने दर्जन भर अज्ञात लोगों के इस कांड में शामिल होने का जिक्र किया था.

मामला दर्ज होने के बाद एफआईआर की प्रति शिकायतकर्ता कुलदीप अरोड़ा को दे दी गई. इस के बाद 10 जून की शाम तलवंडी साबो की लेलेवाल रोड पर स्थित श्मशान घाट में भारी पुलिस सुरक्षा के बीच विनोद का अंतिम संस्कार कर दिया गया. बेटे के अंतिम दर्शन के लिए विनोद के पिता विजय अरोड़ा को भी पुलिस सुरक्षा में गोबिंदपुरा मौडर्न जेल से वहां लाया गया था.

इलाके में पुलिस की गश्त लगातार जारी थी. दरअसल, इस घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से यह मामला पूरी दुनिया में फैल गया था. कोई इस कदम को सराह रहा था तो कोई इसे पंजाब में कानूनव्यवस्था की नाकामी बता रहा था.

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस हत्याकांड के लिए पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया. मीडिया में अपना बयान जारी करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री बनने पर शपथ लेते समय पंजाब से एक महीने के भीतर नशे को पूरी तरह खत्म करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कर पाने में वह पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

यही वजह थी कि भागीवांदर में नशा बेचने वाले 25 साल के युवक का लोगों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. पुलिस ने गांव वालों की शिकायत पर ड्रग तस्करों के खिलाफ समय रहते सख्त एवं व्यापक काररवाई की होती तो नशे से बरबाद हो रहे युवकों के घर वालों को इस तरह कानून अपने हाथों में लेने की नौबत न आती. राजनेताओं को उतने ही वादे करने चाहिए, जो व्यावहारिक रूप से निभाए जा सकें.

यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इस घटना के बाद पंजाब की एसटीएफ की टीम ने तेजी से नशा तस्करों को पकड़ने में अपनी अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी है. इन में पुरुष, महिलाएं सभी तरह के लोग हैं. इन से करोड़ों का नशीला पदार्थ भी बरामद किया गया है.

यों तो यह एक लंबी सूची बनती जा रही है, लेकिन इस समय सब से चर्चित मामला पुलिस इंसपेक्टर इंदरजीत सिंह का है. उन पर आरोप है कि नशा तस्करों को पकड़तेपकड़ते वह खुद ही ड्रग्स डौन बन गए.

खाकी वर्दी पहन कर और सीने पर गैलेंट्री अवार्ड का तमगा लगा कर वह समानांतर ड्रग्स किंग बन गए. लंबे पुलिस रिमांड पर ले कर एसटीएफ उन से सघन एवं व्यापक पूछताछ कर रही है. एसटीएफ प्रमुख का दावा है कि वर्दी वाले इस गुंडे से गहन पूछताछ के बाद पंजाब के ड्रग तस्करी में एक नया अविश्वसनीय, लेकिन बौलीवुड की फिल्मों सरीखा रोचक अध्याय जुड़ने वाला है.

आगे खतरा यह भी है कि स्ट्रीट जस्टिस के नाम पर लोग खाकी कौलर वाले इस कथित अपराधी को अदालत में ही घेर कर मार न दें. नशा तस्करों को घेर कर लोगों द्वारा मार डालने के कुछ अन्य अपुष्ट समाचार भी प्रकाश में आए हैं. इन में 18 जून, 2017 को पटियाला के कस्बा समाना में शराब तस्कर सतनाम सिंह को पीटपीट कर मौत के घाट उतारने व उस के साथी को बुरी तरह घायल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो चुकी है.

थाना सदर समाना के थानाप्रभारी हरमनप्रीत सिंह चीमा के बताए अनुसार, 17 जून, 2017 की रात 10 बजे 2 व्यक्ति अपनी स्विफ्ट कार से देशी शराब की 30 पेटियां ले कर पंजाब की सीमा में दाखिल हुए थे. गांव रामनगर के पास पहले से खड़े कुछ लोगों ने उन्हें रुकने का इशारा किया. न रुकने पर उन लोगों ने अपनी स्कौर्पियो से पीछा कर कार को टक्कर मार कर खाईं में पलट दी.

शराब की तमाम पेटियां इधरउधर बिखर गईं. कार में सवार दोनों लोग घायल हो कर बाहर आ गिरे तो उन लोगों ने लोहे की छड़ों और लाठियों से उन की जम कर पिटाई कर दी और भाग गए. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची. बुरी तरह घायल काका सिंह के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल एवं कत्ल के इरादे वगैरह की धाराओं पर एफआईआर दर्ज की गई. काका सिंह का साथी सतनाम सिंह इस मामले में मारा गया, जिस के घर वालों ने अस्पताल में हंगामा किया तो मामले में 5 लोगों हरदीप सिंह, सरबजीत सिंह, परगट सिंह, मंगतराम और अशोक सिंगला को नामजद किया गया.

बहरहाल, विनोद उर्फ सोनू अरोड़ा के मामले में जहां उस के घर वाले अभियुक्तों की गिरफ्तारी को ले कर धरना दिए बैठे हैं, वहीं भागीवांदर गांव के लोगों का कहना है कि गिरफ्तारी होगी तो पूरे गांव की होगी, वरना 13 लोगों को गिरफ्तार करने पुलिस भूल कर भी गांव में न आए.

सरपंच चरणजीत कौर के बताए अनुसार, गांव की 3 पीढि़यों को नशे की दलदल में धकेलने वाले विनोद उर्फ सोनू और उस के साथियों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा था. गांव के नौजवानों को नशा सप्लाई करने के साथ उन्हें इस धंधे में शामिल कर उन का जीवन तबाह कर रहा था. पुलिस भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर रही थी.

समय रहते अगर गांव वालों की शिकायत पर पुलिस ने ठीक से काररवाई की होती तो शायद ऐसा कदम उठाने की नौबत न आती. दोनों पक्षों की ओर से रोजरोज मिलने वाली चेतावनियों के बीच पुलिस वाले खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में अभी तक नामजद अभियुक्तों में से किसी एक की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है.

ठगी का गिफ्ट : अगर आपको भी आया है ऐसा फोन तो हो जाएं सावधान

आशा घर के कामकाज निपटा कर आराम करने के लिए बैडरूम की ओर जा रही थी, तभी उस के सेलफोन की घंटी बज उठी. उस ने काल रिसीव कर जैसे ही ‘हैलो’ कहा, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मुबारक हो जी, आप बनी हैं सर्वश्रेष्ठ विजेता.’’

यह सुन कर आशा ने हैरानी से पूछा, ‘‘सर्वश्रेष्ठ विजेता, किस चीज की?’’

जवाब में दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैडम, पिछले दिनों हमारी कंपनी की ओर से कुछ सवाल पूछे गए थे. आप ने उन सभी सवालों के जवाब एकदम सही दिए थे, इसलिए आप विजेता बनी हैं.’’

फिर तो आशा खुश हो कर बोली, ‘‘थैंक्यू सर, थैंक्यू वेरी मच.’’

आशा कुछ और कहती, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैडम, आप को हमारी कंपनी की ओर से एक शानदार गिफ्ट दिया जाएगा. वह भी कोई ऐसावैसा नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा कीमती. आप जानना चाहेंगी उस गिफ्ट की कीमत?’’

आशा ही क्या, कोई भी होता, वह हां कह देता. आशा ने भी तुरंत हां कर दिया. इस के बाद फोन करने वाले ने बताया कि उसे दिए जाने वाले गिफ्ट की कीमत करोड़ों में है. गिफ्ट की कीमत सुनते ही आशा के मुंह से ‘अरे वाह, करोड़ों का गिफ्ट’ निकल गया.

करोड़ों की कीमत के गिफ्ट की बात सुन कर आशा कुछ सोच ही रही थी कि फोन करने वाले ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप जानती ही होंगी कि विदेश से आए गिफ्ट को पाने के लिए कस्टम और इनकम टैक्स विभाग को टैक्स देना होता है. करोड़ों की कीमत वाले इस गिफ्ट को पाने के लिए भी आप को भी कस्टम ड्यूटी आदि जमा करानी होगी. यह सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आप को गिफ्ट भेजा जाएगा.’’

बात करोड़ों रुपए के गिफ्ट की थी, इसलिए उस की बातों पर विश्वास कर के उस के द्वारा बताए गए बैंक खाते में आशा ने अलगअलग तारीखों पर करीब 3 लाख रुपए जमा करा दिए. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब कोई गिफ्ट नहीं आया तो आशा का माथा ठनका. उसे लगा कि उस के साथ ठगी हुई है.

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उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के सुंदरपुर नेवादा की रहने वाली आशा एक समृद्ध परिवार की महिला थी. उस के पति उम्मेद सिंह सरकारी नौकरी में थे. उन के 2 बेटे हैं, जो दूसरे शहर में रह कर उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं. उस का अपना आलीशान मकान है, जिस में 4-5 किराएदार भी रहते हैं. इस तरह महीने की एक मोटी रकम उसे किराए से मिल जाती है.

लेकिन इस घटना के बाद उस की नींद उड़ चुकी थी. उस ने कुछ दिनों तक यह बात अपने पति से छिपाए रखी. थोड़ेबहुत पैसों की बात होती तो शायद वह पति से छिपाए भी रखती, पर बात मोटी रकम की थी, इसलिए अपने साथ हुई ठगी की बात पति को बतानी ही पड़ी.

उम्मेद सिंह ने पत्नी की बेवकूफी पर पहले उसे डांटाफटकारा, उस के बाद उन्होंने घटना की सूचना पुलिस को देना उचित समझा. इस के बाद वह एसएसपी नितिन तिवारी से मिले और पत्नी के साथ हुई ठगी की बात विस्तार से बता बताई.

वह जहां रहते थे, वह इलाका थाना भेलूपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए एसएसपी ने भेलूपुर के थानाप्रभारी को आशा के साथ हुई ठगी की रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने आशा की तहरीर पर अज्ञात ठगों के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 471 व 66 आईटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. यह बात 22 मार्च, 2017 की है.

पिछले कुछ दिनों से वाराणसी जिले में इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी थीं. पुलिस एक मामले को सुलझा नहीं पा रही थी कि दूसरा मामला हो जाता था. आशा से बड़ी रकम ठगी गई थी. इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए एसएसपी नितिन तिवारी ने जिले के पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी को इस तरह की ठगी करने वालों का पता लगाने के निर्देश दिए.

आशा के साथ हुई ठगी वाले मामले की जांच के लिए भेलूपुरा के थानाप्रभारी के नेतृत्व में एसएसपी ने जो पुलिस टीम बनाई थी, उस ने उस एकाउंट नंबर को आधार बनाते हुए जांच शुरू कर दी, जिस में आशा ने पैसे जमा कराए थे, साथ ही उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से आशा को फोन किया गया था.

एसएसपी ने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सैल को भी इस मामले की जांच में लगा दिया था. एसएसपी जांच टीम के संपर्क में रह कर पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे और समयसमय पर उचित दिशानिर्देश भी दे रहे थे. इस का नतीजा यह निकला कि पुलिस ने जालसाजों का पता लगा लिया.

इस के बाद पुलिस ने अलगअलग शहरों से 5 जालसाजों को उन के घरों से उठा लिया. जो लोग हिरासत में लिए गए थे, उन में दिल्ली के मसूदपुर का रहने वाला आशीष जानसन, फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश के रसूलपुर गांव का रहने वाला बहादुर सिंह, ग्वालियर के आदर्शनगर का रहने वाला संतोष शर्मा एवं सुरेश तोमर आदि थे.

इन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने न केवल अपना अपराध स्वीकार कर लिया, बल्कि पुलिस को जालसाजी के तौरतरीके के बारे में भी विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि उन का अपना एक गिरोह है.

गिरोह का सरगना और खास सदस्य फेसबुक, वाट्सऐप, ईमेल जैसे सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए लोगों से पहले जुड़ते हैं. जिस व्यक्ति को शिकार बनाना होता है, उस से दोस्ती कर के उसे विश्वास में लेते हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से दोस्ती करने के बाद उस व्यक्ति का मोबाइल नंबर हासिल कर के उसे ईमेल द्वारा या फोन कर के गिफ्ट या बड़ी रकम जीतने की जानकारी दी जाती थी.

करोड़ों का गिफ्ट या इनाम मिलने के लालच में वह उस व्यक्ति से टैक्स आदि के नाम पर मोटी रकम एकाउंट में जमा करवा लेता है. आशीष ने पुलिस को बताया कि वह लोगों को सोशल मीडिया पर मदद के नाम पर भी ठगने का काम करता था. बच्चों और महिलाओं की मार्मिक फोटो का सहारा ले कर उन्हें किसी आपदा या बीमारी का शिकार बता कर उन के नाम पर रुपए ऐंठता था.

गिरफ्तार आरोपियों के पास से कई बैंक खातों की पासबुकें, चैकबुकें, अलगअलग फोटो से बनाए गए फरजी पैनकार्ड, मोबाइल और सिमकार्ड समेत अन्य सामान बरामद हुए हैं. पकड़े गए पांचों आरोपियों के बैंक खातों की जांच कराने पर पुलिस को पता चला कि वे अब तक करीब ढाई करोड़ रुपए से अधिक की ठगी कर चुके हैं.

सभी बैंक खातों को सीज करने के साथ पुलिस सभी के पारिवारिक सदस्यों के बैंक एकाउंटों की भी जांच कर रही है, ताकि यह पता चल सके कि उन के मामले में पारिवारिक सदस्यों की क्या भूमिका हो सकती है.

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जालसाजों ने बताया कि किसी भी शिकार को फांसने से पहले वह उस की लोकेशन ले कर उस की रेकी करते थे, ताकि उस के रहनसहन से ले कर उस की आर्थिक स्थिति का भी पता लग सके. ऐसे ही उन्होंने आशा की भी रेकी की थी. आशा से पहले इस गिरोह ने वाराणसी सहित देश के कई शहरों में अब तक सैकड़ों लोगों को अपने झांसे में ले कर उन से लाखों रुपए ठगे हैं. उन्होंने बताया कि उन का नेटवर्क देश भर में फैला है.

ठगों के गिरफ्तार होने पर डीआईजी (वाराणसी जोन) ने पुलिस टीम की सराहना करते हुए 12 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है. एसएसपी ने भी टीम को 5 हजार रुपए का इनाम दिया है.

उन्होंने टीम में शामिल एसआई सुबोध कुमार तोमर, पंकज कुमार शाही, इमरान खान, सिपाही श्यामलाल गुप्ता, सर्विलांस सेल के भीष्म प्रताप सिंह, सुनील चौहान, हिमांशु शुक्ला, पंकज सिंह, अखिलेश सिंह की पीठ भी थपथपाई है.

पकडे़ गए पांचों आरोपियों से विस्तार से पूछताछ कर उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पुलिस इस गिरोह के सरगना नाइजीरियन ओबाका को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है. कथा लिखे जाने तक उस की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी.

दूसरी ओर 7 जून, 2017 को वाराणसी जिला न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण) श्री महंतलाल की अदालत ने बीएचयू की डा. नूतन सिंह से फेसबुक पर दोस्ती के बाद 10 लाख रुपए की ठगी के मामले में अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़े दिल्ली निवासी आरोपी आशीष जानसन की जमानत खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने 10 लाख रुपए की धोखाधड़ी की है. ठगी की इस वारदात में विदेशी आरोपी ओबाका भी शामिल है. इस की विवेचना जारी है. ऐसे में जमानत दिए जाने से विवेचना प्रभावित होगी.

वाराणसी पुलिस के हाथ लगे ठग कोई मामूली ठग नहीं हैं. इन का नेटवर्क अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है, जो लोगों को ठगने के लिए अंतरराष्ट्रीय काल का सहारा ले कर पहले दोस्ती करते हैं. उस के बाद बीमारी आदि के नाम पर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने की बात कर के पैसे वसूलते हैं. इन के झांसे में कम पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, बल्कि समाज के प्रबुद्ध लोग जैसे कि डाक्टर, इंजीनियर आदि भी फंस जाते हैं.

वाराणसी के सुंदरपुर की रहने वाली डा. नूतन सिंह भी बड़ी आसानी से इन के झांसे में फंस गई थीं. उन्हें अंतरराष्ट्रीय काल के जरिए नाइजीरिया निवासी पीसीएस ओबाका ने पहले फेसबुक के माध्यम से दोस्ती की. उस ने डा. नूतन सिंह से संपर्क कर के पत्नी के लिए दवा लिखवाई.

2 महीने बाद उस ने नूतन से कहा कि उस की पत्नी को उन की बताई दवा से बहुत फायदा हुआ है. उस के द्वारा प्रशंसा किए जाने से डा. नूतन को भी न केवल गर्व महसूस हुआ, बल्कि वह उस से फेसबुक और वाट्सऐप के माध्यम से बातें करने लगीं.

इस के बाद डा. नूतन सिंह को अपने जाल में फांस कर उस ने एक बार फिर उन का धन्यवाद दिया. उस ने उन्हें एक बड़ा गिफ्ट देने की पेशकश की, जिसे लेने के लिए नूतन सिंह ने हां कह दिया. फिर बात को आगे बढ़ाते हुए ओबाका ने कहा, ‘‘मैडम, आप को तो पता ही होगा कि विदेशों से सामान मंगाने के लिए कुछ आवश्यक काररवाई पूरी करनी होती है. इसलिए बड़ा गिफ्ट प्राप्त करने से पहले आप को उस का टैक्स आदि अदा करना पड़ेगा.’’

इस के लिए ओबाका ने दिल्ली निवासी अपने साथी आशीष जानसन का एकाउंट नंबर दे दिया. इसी के साथ ओबाका ने डा. नूतन सिंह को पूरी तरह से विश्वास में लेते हुए आशीष जानसन के अलगअलग खातों में लगभग 10 लाख रुपए जमा करवा लिए. बाद में डा. नूतन को जो गिफ्ट पैकेट भेजा गया, उस में कपड़े निकले. जिस की शिकायत उन्होंने पुलिस से की थी.

इस तरह नाइजीरियन पीसीएस ओबाका भारत में रहने वाले अपने दोस्तों के साथ मिल कर ठगी की घटनाओं को अंजाम दे रहा था. कथा लिखे जाने तक ओबाका गिरफ्तार नहीं हो सका था.

– कथा पुलिस व मीडिया सूत्रों पर आधारित

शादी के लिए हां कहने से पहले इन पहलुओं पर भी गौर करें

शादी को ले कर हमारे समाज में 2 बातें प्रचलित हैं- छोटी उम्र में शादी और चट मंगनी पट ब्याह. लेकिन इन्हीं 2 कारणों से कई बार शादीशुदा जीवन में परेशानियां झेलनी पड़ जाती हैं. आखिर शादी जैसा अहम निर्णय, जिस से हमारा पूरा जीवन बदल जाता है, उसे लेने में जल्दबाजी क्यों?

कच्ची उम्र की कम समझदारी और कम तजरबा हमारे आने वाले जीवन में ऐसा विष घोलने की क्षमता रखता है, जिस से मीठे के बजाय कड़वे अनुभव हमारी यादों में जुड़ते जा सकते हैं. शादी सिर्फ 2 प्यार करने वालों का मिलन नहीं, अपितु यह ऐसे 2 इंसानों को एक बंधन में बांधती है जिन की परवरिश, शख्सीयत, भावनाएं, शिक्षा और कई बार भाषा भी भिन्न होती है. कभीकभी तो शादी के जरीए 2 अलग संस्कृतियों का भी मेल होता है.

ऐसे बंधन को बांधने से पहले समझदारी इसी में है कि एकदूसरे की पसंदनापसंद, जिंदगी के लक्ष्यों, एकदूसरे के परिवारों के बारे में जानने के लिए ज्यादा वक्त दिया जाए. धैर्य के साथ अपने होने वाले साथी को अच्छी तरह जानने में ही अक्लमंदी है. टैक्सास विश्वविद्यालय के प्रोफैसर टेड हस्टन के अनुसार विवाह के धागे को जोड़ने से पहले अपनी आंखें खोल कर अपने साथी की अच्छाइयां तथा कमियां भली प्रकार तोल लेनी चाहिए.

सही कारणों के लिए ही करें शादी

हां करने से पहले जांच लें कि आप हां क्यों करना चाहती हैं. कहीं इसलिए तो नहीं कि परिवार वाले कह रहे हैं या फिर उम्र हो रही है अथवा आप की सहेलियों की शादियां हो रही हैं? ध्यान रहे कि इस नए रिश्ते को निभाना आप को है. इसलिए अच्छी तरह विचार कर के निर्णय लें.

उर्मिला आज भी पछताती है कि क्यों उस ने कालेज में चूड़े पहनने के चाव में शादी की इतनी जल्दी मचाई. चूड़े तो पहन लिए पर जल्द ही गलत आदमी से शादी करने का दंड उसे भुगतना पड़ा. जिस उम्र में उसे अपनी शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए था, उस उम्र में उठाए गलत कदम के कारण वह स्वावलंबी नहीं बन पाई और अब गलत पति को सहने के सिवा उस के पास कोई और चारा नहीं.

आर्थिक मजबूती परख लें: 18 की होते ही रचना ने अपने ही संगीत शिक्षक से भाग कर शादी कर ली. किंतु तोतामैना का यह रोमांस अल्पायु निकला. कारण? उस का पति केवल उसे ही संगीत सिखाता था. उस के पास और कोई विद्यार्थी नहीं था. जल्द ही पैसे की तंगी ने शादी के रिश्ते से संगीत गायब कर दिया. जब गृहस्थी का भार पड़ा तो दोनों ही अपने निर्णय पर पछताए.

यदि आप का होने वाला पति घरगृहस्थी के खर्च उठाने में असमर्थ है तो शादी का डूबना तय समझिए.

स्वभाव जांचना बेहद जरूरी: अकसर लड़कियां सुनहरे ख्वाब संजोते समय अपने प्रेमी या मंगेतर का स्वभाव जांचना दरकिनार कर बैठती हैं. कुछ ये सोचती हैं कि अभी उन का रिश्ता मजबूत नहीं है. इसीलिए वह उन से इस प्रकार बात कर रहा है तो कुछ सोचती हैं कि शादी के बाद वे अपने हिसाब से अपने पति का स्वभाव बदल लेंगी. दोनों स्थितियों में नुकसान लड़की का होता है. यह बात तय है कि शादी के बाद कोई किसी का स्वभाव नहीं बदल सकता. जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करना आवश्यक है. यदि आप का प्रेमी या मंगेतर गुस्सैल है तो शादी के बाद उस के गुस्से का निशाना अकसर आप को ही बनना पड़ेगा. इसलिए ऐसे इंसान से शादी न करें, जिस का अपने गुस्से पर काबू न हो.

एकदूसरे का प्यार आंकना: जब भी मिलें या बातचीत करें तब यह अवश्य परखें कि क्या आप के होने वाले पति का प्यार आप के लिए सच्चा है? क्या उसे आप की भावनाओं की कदर है? क्या वह आप की खुशी के लिए कदम उठाता है? क्या वह अपने मन की बात आप से करता है? और जो बातें आप उस से करती हैं, क्या वह उन्हें अपने तक रख पाता है?

इसी प्रकार अपनी भावनाएं भी परखनी जरूरी हैं. क्या आप उसे प्यार करती हैं? यदि नहीं तो अभी शादी के लिए आगे बढ़ना गलत रहेगा. गृहस्थ जीवन के सागर में बहुत ऊंचीनीची लहरें आती हैं. ऐसे समय में एकदूसरे के प्रति प्रेम ही गृहस्थी की नैया को डूबने से बचाता है.

जबान संभाल कर : पहली स्थिति :

पत्नी: मेरे दफ्तर में आजकल कुछ टैंशन चल रही है. लगता है कुछ लोगों को निकाला जाएगा.

पति (मखौल उड़ाते हुए): तब तो तुम्हारा नंबर जरूर लगेगा.

दूसरी स्थिति :

पत्नी: मेरे दफ्तर में आजकल कुछ टैंशन चल रही है. लगता है कुछ लोगों को निकाला जाएगा.

पति: अच्छा? तुम किसी बात की चिंता मत करना. हम दोनों मिल कर इस गृहस्थी को सुचारु रूप से चला लेंगे. मैं तुम्हें कुछ अच्छे कैरियर कंसल्टैंट के नंबर दूंगा, तुम उन से बात करना. यदि तुम्हारी नौकरी चली भी जाती है, तो वे नई नौकरी पाने में तुम्हारी मदद करेंगे.

शादी 2 ऐसे लोगों को जोड़ती है जो एकदूसरे से अलहदा हैं. वे जिस तरह अपनी बात रखते हैं उस का असर काफी हद तक उन के शादीशुदा जीवन पर पड़ता है. वे या तो बातबात पर नुक्स निकाल सकते हैं और शिकायत कर सकते हैं या फिर प्यार से एकदूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं. जी हां, अपनी बातों से हम या तो अपने जीवनसाथी को चोट पहुंचा सकते हैं या उस के जख्मों पर मरहम लगा सकते हैं. अपनी जबान पर लगाम न लगाने से शादीशुदा जीवन में भारी तनाव पैदा हो सकता है.

मातापिता बनने से पहले: शादी के बाद अगला पड़ाव होता है संतान. एक संतान का आगमन पतिपत्नी के रिश्ते को पूरी तरह बदल देता है. एक ओर जहां पत्नी मां बनते ही अपना पूरा ध्यान बच्चे पर केंद्रित कर देती है, वहीं पति अकसर पत्नी के जीवन में आए इस बदलाव में अपना पुराना स्थान खोजता रहता है. मातापिता बनने से पूर्व यह जरूरी है कि पतिपत्नी के आपसी रिश्ते का गठबंधन मजबूत हो चुका हो ताकि जब नए रोल को निभाने का समय आए तो एकदूसरे के प्रति किसी गलतफहमी की गुंजाइश न रहे.

एक बैंक की मैनेजर ऋतु गोयल कहती हैं, ‘‘जब मेरी बेटी ने अपनी पसंद से शादी करने की इच्छा जताते हुए मुझे अपने बौयफ्रैंड के बारे में बताया तो मैं ने उस से पूछा कि सब से पहले 10 जरूरी गुणों के बारे में सोचो जो तुम अपने जीवनसाथी में देखना चाहोगी. अगर तुम्हारे बौयफ्रैंड में सिर्फ 7 गुण दिखते हैं तो खुद से पूछो कि क्या तुम रोजाना उन 3 कमियों को बरदाश्त कर पाओगी? अगर तुम्हारे मन में जरा भी शक है, तो कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह सोच लेना.’’

यह सच है कि आप को हद से ज्यादा की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. अगर आप शादी करना चाहते हैं, तो यह सचाई ध्यान में रखें कि आप को ऐसा साथी कभी नहीं मिलेगा, जिस में कोई खोट न हो और जो आप से शादी करेगा उसे भी ऐसा साथी नहीं मिलेगा, जिस में कोई खोट न हो. ‘जल्दबाजी में शादी करो और इत्मीनान से पछताओ’ कहावत को चरितार्थ करने में समझदारी नहीं है.

कंपैटिबिलिटी क्विज

कंपैटिबिलिटी में 3 बातें खास होती हैं- आपसी मित्रता व समझौता करने की क्षमता, एकदूसरे के प्रति सहानुभूति व एकदूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ती करने का माद्दा. इस क्विज को सुलझाएं. इस से आप जान पाएंगी कि आप दोनों शादी के लिए कितने तैयार हैं:

(1) आप दोनों को ले कर विचारविमर्श करते हैं :

क. कभीकभी

ख. आएदिन

ग. कभी नहीं

घ. हमेशा.

सही जवाब है हमेशा. यदि आप दोनों शादी को ले कर गंभीर हैं तो विवाह संबंधी विचारविमर्श आप दोनों की सूची में होना चाहिए.

(2) साथी का मुझे छोड़ कर चले जाने का विचार मात्र ही मुझे :

क. उदास कर देता है

ख. चैन देता है

ग. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

घ. मैं बुरी तरह टूट कर बिखर जाऊंगी.

सही जवाब है उदास कर देता है. यदि आप का रिश्ता स्वस्थ है तो आप का पूरा वजूद केवल अपने साथी के इर्दगिर्द नहीं घूमेगा. आप के रिश्ते में एक संतुलन होगा. आप अपने साथी को चाहेंगी अवश्य, किंतु चाहने और आवश्यकता होने में फर्क होता है.

(3) शादी मेरे लिए :

क. फिल्मों की तरह रोमानी है

ख. बेहद कठिन राह है

ग. इतनी कठिन भी नहीं

घ. परिश्रम व मजे का तालमेल है.

सही जवाब है परिश्रम व मजे का तालमेल. शादी में मेहनत जरूर लगती है पर वह नामुमकिन नहीं. शादी को सफल बनाने के लिए उस की ओर लगातार ध्यान देना चाहिए.

(4) अपने साथी को देख कर मैं :

क. उत्साहित व प्रसन्न हो जाती हूं

ख. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

ग. घबराने लगती हूं

घ. थोड़ाबहुत खुश होती हूं.

सही जवाब है उत्साहित व प्रसन्न हो जाती हूं. यदि आप को अपने साथी को देखने से शादी से पहले खुशी नहीं मिलती है तो बाद में क्या होगा. यह बात सच है कि शादी का खुमार समय के साथ कम होता जाता है और उसे बरकरार रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. इसलिए शुरुआत उत्साह व खुशी से होनी चाहिए.

(5) खास मुद्दों पर हम दोनों :

क. कभी चर्चा नहीं करते हैं

ख. कभीकभार चर्चा कर लेते हैं

ग. रोज चर्चा करते हैं

घ. तभी चर्चा करते हैं जब बात हाथ से बाहर हो जाए.

सही जवाब है कभीकभार चर्चा कर लेते हैं. जिंदगी में इतना कुछ घटित होता रहता है कि यदि आप चर्चा नहीं करते हैं तो अभी आप शादी के लिए तैयार नहीं हैं और यदि आप रोज चर्चा करते हैं तो आप के रिश्ते में तनाव अधिक है और मस्ती कम. अच्छा रिश्ता मस्तीभरा तथा गंभीर बातों का मिलाजुला रस होता है.

(6) प्रेम मेरे लिए :

क. लेनदेन की सुंदर अभिव्यक्ति है

ख. मेरा खयाल रखने के लिए साथी की खोज है

ग. अपने साथी का ध्यान रखना

घ. किसी और की तरह बन जाना.

सही जवाब है लेनदेन की सुंदर अभिव्यक्ति. प्यार में केवल एक ही साथी दूसरे का खयाल रखे यह मुमकिन नहीं. प्यार समझौते का दूसरा नाम है, जिस में दोनों तरफ से आदानप्रदान होना आवश्यक है.

तानाशाही की ओर बढ़ते अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिका में बहस चलने लगी है कि नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तानाशाह और निष्ठुर बनने के कितने आसार हैं और अगर जनता ने अभी चेत कर कुछ नहीं किया तो क्या हो सकता है. अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के इतिहासकार टिमोथी सिंडर का विचार है कि अमेरिका के पास शायद सिर्फ एक वर्ष है जिस में जनता तानाशाही के बढ़ते सैलाब को रोक सकती है.

इतिहास के 20 उदाहरण ले कर टिमोथी सिंडर ने कहा कि लगभग एक वर्ष में हर संभावित तानाशाह अपने पैर जमा लेता है. हिटलर को लगभग एक साल लगा था. हंगरी को ढाई साल लगे थे. पोलैंड का उदाहरण है जब तानाशाह शासक ने एक साल में न्यायालयों को शक्तिहीन कर दिया था.

टिमोथी का कहना है कि पहले लोग मानसिक रूप से संभावित शासक की लच्छेदार बातों में अपना हित देखते हैं और फिर उन्हें लगने लगता है कि दशकों से बनी संस्थाएं उन का हित करने वाले शासक के हाथ रोक रही हैं. उन्हें वे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने वाले, तानाशाह के शब्दों के अनुसार सुधारों में अड़चन डालने वाले लगने लगती हैं. टिमोथी सिंडर का कहना है कि इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा है जिन में जनता के समर्थन की लहर के बीच से उभरे लोकप्रिय नेता तानाशाही शासकों का लबादा ओढ़ लेते हैं.

रूस के कम्युनिस्ट शासकों के दौरान और आज भी व्लादिमीर पुतिन के समय लोकतंत्र है, बाकायदा चुनाव होते हैं, विपक्षी खड़े होते हैं पर लोगों को पैरों के नीचे महसूस होता है कि तानाशाही की कंपन है और विरोध करने वाले को कुचल दिया जाएगा. हिटलर ने भी ऐसा ही किया था. इस तरह के चुनाव बहुत जल्दी मजाक बन जाते हैं. तानाशाह झूठी लोकप्रियता और उस के माहौल के मिश्रण का इस्तेमाल कर के कानून, अदालतों, मीडिया और विचारकों को इस तरह निष्क्रिय कर देता है कि चुनाव में कोई पर्याप्त ही नहीं बचता.

नवंबर 2016 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में टिमोथी सिंडर ने कहा था कि इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा है जिन में एक शासक किसी आपातस्थिति को पहले पैदा करता है और फिर उस से जनता को बचाने के लिए लोगों के हक छीन लेता है. नाजियों ने एक समय खुद अपनी संसद में आग लगा दी थी और कम्युनिस्टों पर आरोप लगा कर हिटलर की तानाशाही थोप दी थी.

टिमोथी का कहना है कि तानाशाह बन रहा शासक कुछ ऐसे काम करेगा जो जनता के जख्मों पर ठंडक पहुंचाने वाले लगे जैसे ट्रंप का मैक्सिको और अमेरिका के बीच दीवार बनाने का संकल्प या इमीग्रेशन रोकने के आदेश ताकि नौकरियों को देश के गोरे नागरिकों के लिए सुरक्षित किया जा सके. टिमोथी सिंडर के अनुसार मुसलिमों और बाहरी कर्मचारियों पर रोक हिटलर के संसद जलाने जैसा काम है.

दुनिया में लोकतंत्र का बड़ा रक्षक रहे अमेरिका यदि यह एहसास होने लगे कि तानाशाही दबेपांव अमेरिका में आ रही है तो तुर्की, फिलीपींस, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, कजाकिस्तान, ब्राजील जैसे देशों का तो क्या कहना जहां नेताओं को पूजा जाने लगता है और लीबिया इराक की तरह मूर्तियां लगाई जानी शुरू हो जाती हैं. टिमोथी सिंडर की पुस्तक ‘औन टिरैनी : ट्वंटी लैसन्स फ्रौम द ट्वंटीयथ सैंचुरी’ हर भारतीय विचारक को पढ़नी चाहिए, खासतौर पर वे जो किसी व्यक्ति में भविष्य की सुखद कल्पना करते हैं.

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