चार लाइनों के दो बयान और राज्यसभा में चल रही बाधा खत्म हो गई. 15 दिसंबर को जब संसद का शीत सत्र शुरू हुआ, तो उसके बाद इस बुधवार तक राज्यसभा में कोई भी काम नहीं हो सका. हर बार की तरह ही इस बार भी संसद को इस सत्र में कई महत्वपूर्ण फैसले लेने हैं, कई मुद्दों व मसलों पर बहस होनी है, कई विधेयकों को रखा जाना है. लोकसभा में यह सब होता भी रहा, लेकिन राज्यसभा में सब रुक सा गया था.

संसद में जनता के प्रतिनिधि विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात न रख सके, सत्र चल रहा हो और सदन में चर्चा न हो सके, लोकतंत्र में यह कोई अच्छी बात नहीं होती. हर बार जब संसद में कामकाज रुक जाता है, तो कुछ आंकड़े पेश किए जाते हैं. यह बताया जाता है कि संसद के किसी भी सत्र में एक दिन में कितना धन खर्च होता है, या फिर एक घंटे में कितना खर्च होता है. खर्च यानी वही धन, जो हम-आप टैक्स के रूप में चुकाते हैं. उन सारे आंकड़ों को एक बार फिर दोहराने की जरूरत नहीं है.

वैसे भी यहां खर्च से ज्यादा बड़ा मुद्दा है- लोकतंत्र में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले सदन में कामकाज का न हो पाना. ऐसा नहीं है कि विपक्ष इस बात को नहीं समझता है. सदन उसके लिए सरकार को घेरने का सबसे बड़ा औजार होता है, इसलिए सदन की कार्यवाही चले, यह विपक्ष के पक्ष में भी होता है. पर लोकतंत्र में अक्सर कुछ मुद्दे मूंछ का सवाल बन जाते हैं, जो सरकार और विपक्ष, दोनों को ही समान रूप से परेशान करते हैं. अब जब यह मसला सुलझ गया है, तो यह इसकी तफसील में जाने का भी समय है.

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