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सिर्फ 899 रुपए में करें हवाई सफर, इंडिगो ने शुरू की स्कीम

इंटरग्लोब एविशन की इंडिगो ने नए साल के मौके पर यात्रियों के लिए सबसे बड़ी न्यू ईयर सेल लेकर आई है. कंपनी सिर्फ 899 रुपए के बेस प्राइस पर हवाई सफर का मौका दे रही है. इस औफर के तहत एक फरवरी से 15 अप्रैल, 2018 के बीच यात्रा करने पर ही यह औफर लागू है. औफर का फायदा उठाने के लिए टिकट की बुकिंग 8 जनवरी से 10 जनवरी के बीच करानी होगी. इंडिगो का यह औफर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों उड़ानों पर लागू होगा.

और भी मिलेगा बड़ा फायदा

सस्ते हवाई टिकट के अलावा यात्रियों को 10 फीसदी का अतिरिक्त कैशबैक और एचडीएफसी बैंक क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर 600 रुपए के इंडिगो स्पेशल सर्विस वाउचर्स भी मिलेगा.

इन रूट्स पर मिलेगा सस्ता टिकट

दिल्ली से चंडीगढ़ के लिए शुरुआती टिकट 899 रुपए, दिल्ली से जयपुर के लिए 999 रुपए में है. मुबंई से बंग्लुरु के लिए न्यूनतम 1399 रुपए जबकि इंडिगो की टिकट मुबंई से चेन्नई के लिए 1499 रुपए में है. बैंकौक से कोलकता के लिए 4099 रुपए और दुबई से दिल्ली के लिए 5299 रुपए में है.

तिरुपति के लिए भी शुरू की उड़ान

इंडिगो ने रीजनल नेटवर्क का विस्तार करते हुए तिरुपति के लिए नई उड़ान शुरू की है. अब हैदाराबद से तिरुपति तक के लिए 3 डेली नौन स्टौप फ्लाइट जाएगी. साथ ही डबल डेली नौन स्टौप फ्लाइट के जरिए बंग्लुरु से जुड़ेगा. यह जानकारी कंपनी ने जारी की है. कंपनी की फ्लाइट तिरुपति से दिल्ली, मुंबई, कोलकता, दुबई और सिंगापुर सहित कई शहरों के लिए जाएगी. कंपनी ने हाल ही में अपने मौजूदा घरेलू नेटवर्क पर छह नई प्लाइट्स और पांच अतिरिक्त आवृत्तियों की घोषणा की थी। इंडिगो पहली बार उदयपुर, वाराणसी, पटना और लखनऊ से एक फरवरी से कनेक्ट होगा.

फेसबुक अकाउंट कब और कहां हुआ इस्तेमाल, ऐसे करें पता

सोशल मीडिया का इस्तेमाल समय के साथ बहुत बढ़ गया है. लोग अपनी जिंदगी से जुडी छोटी-बड़ी हर बात को औनलाइन शेयर करना पसंद करते हैं. अपने सोशल मीडिया अकाउंट का हम लोग कई डिवाइसेज पर इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल होता है की हमने किन डिवाइसेज पर लौग-इन किया था और किन डिवाइसेज पर हम लौग-आउट करना भूल गए हैं. हम आपको ट्रिक बताने जा रहे हैं जिससे आप पता लगा सकते हैं की आपने फेसबुक का सोशल मीडिया अकाउंट किन डिवाइसेज से लौग-आउट नहीं किया है.

इन स्टेप्स को करें फौलो

स्मार्टफोन यूजर्स कैसे करें पता

  • सबसे पहले अपने स्मार्टफोन में फेसबुक एप को ओपन करें. इसमें ऊपर की तरफ नजर आ रहीं तीन लाइन्स को टैप करें। इसमें आपको एप सेटिंग का विकल्प मिलेगा।
  • इसमें अकाउंट सेटिंग के विकल्प का चुनाव करें.
  • इसके बाद ‘सिक्योरिटी और लौग इन’ के विकल्प पर जाएं.
  • यहां आपको ‘Where you’re logged in’ का विकल्प मिलेगा. इसमें आपको उन डिवाइसेज का ब्यौरा दिखेगा जहां आपने हाल ही में लौग-इन किया होगा. सभी डिवाइसेज को देखने के लिए ‘See more’ के विकल्प पर क्लिक करें.

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  • इस विकल्प का चुनाव करते ही सभी डिवाइसेज की लिस्ट आपके सामने आ जाएगी.
  • इसके तहत जहां-जहां आपने लौग-इन किया होगा, उन सभी से लौग-आउट करने का विकल्प मिलेगा.

लैपटौप यूजर्स कैसे करें पता

  • लैपटौप में भी यह प्रक्रिया लगभग एक सामान है. स्क्रीन पर ड्राप डाउन के आइकन पर क्लिक करें.
  • इसमें सेटिंग के विकल्प पर जाएं.
  • सेटिंग्स में फोन की ही तरह सिक्योरिटी और लौग-इन का विकल्प मिलेगा.
  • यहां आपको ‘Where you’re logged in’ का सेक्शन मिलेगा.
  • इसमें ‘See More’ के विकल्प पर क्लिक करें.
  • यहां भी आपको सभी डिवाइस से लौग आउट करने का विकल्प मिलेगा.

इस ट्रिक से आप पता लगा सकते हैं की आपने कहां-कहां अपना फेसबुक अकाउंट लौग-इन किया है और सुरक्षा के लिहाज से उसे लौग-आउट भी कर सकते हैं.

हैप्पी बर्थडे: एक्टर-सिंगर नही औल राउंडर हैं फरहान अख्तर

फरहान अख्तर को बौलीवुड में औल राउंडर सेलिब्रिटी के रूप में जाना जाता है. वह फिल्मों में एक्टिंग से लेकर सिंगिंग तक का हुनर दिखा चुके हैं. फरहान एक अच्छे एक्टर होने के साथ-साथ एक बेहतरीन लेखक, निर्माता और निर्देशक भी हैं. इसके साथ ही फरहान कुछ टीवी शो को होस्ट भी कर चुके हैं.

फरहान अख्तर का जन्म 9 जनवरी (1974) को मशहूर लेखक जावेद अख्तर के घर हुआ. फरहान की मां का नाम हनी ईरानी है. अपने जमाने की प्रसिद्ध एक्ट्रेस शबाना आजमी फरहान की सौतेली मां हैं. इनकी एक बहन भी हैं जिनका नाम जोया अख्तर हैं. वह भी एक निर्देशक और लेखक हैं. फरहान एक फिल्मी बैकग्राउंड से हैं.

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उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में फिल्म लम्हे से की. उस समय फरहान महज 17 साल के थे. उन्होंने साल 2001 में फिल्म ‘दिल चाहता है’ के जरिए एक लेखक और निर्देशक के रूप में डेब्यू किया. उनके निर्देशन में बनी ये फिल्म दर्शकों के बीच काफी पौपुलर हुई.

फरहान ने साल 2008 में फिल्म रौक आन से एक्टिंग में डेब्यू किया. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट मेल एक्टर डेब्यू अवौर्ड मिला. फरहान इसके अलावा जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, भाग मिल्खा भाग, शादी के साइड इफेक्ट्स और रौक औन 2 जैसी फिल्मों में एक एक्टर के रूप में काम किया.

फरहान अख्तर ने फिल्मों में काम करने की चाहत के चलते अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की थी. उन्हें ग्रैजुएशन की दूसरे साल में कौलेज से निकाल दिया गया था.

फरहान अख्तर एक बेहतरीन लेखक भी हैं. उन्होंने फिल्म ‘दिल चाहता है’ कि स्क्रिप्ट खुद लिखी थी. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसके पीछे उनकी मां का हाथ था. एक बार उन्होंने फरहान को धमकी देते हुए कहा था कि अगर जिंदगी में कुछ नहीं करोगे से घर से निकाल दूंगी. इसके बाद फरहान ने दिल चाहता है की कहानी लिखी. ये फिल्म काफी सफल रही.

फरहान अख्तर ने फिल्म जिंदगी ना मिलेगी दोबारा की शूटिंग के दौरान काफी एडवेंचर किया लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि उन्हें कौकरोच से काफी डर लगता है.

आमिर खान की हिट फिल्म रंग दे बसंती पहले फरहान को ही औफर हुई थी. लेकिन तब उन्होंने फिल्म लेने से मना कर दिया था जिसका उन्हें आज भी अफसोस है.

फरहान को 22 साल तक कार और बाइक चलानी नहीं आती थी. उन्होंने फिल्म कार्तिक कौलिंग कार्तिक की शूटिंग के दौरान कार चलानी सीखी.

समोसे तरह तरह के

पहले जहां केवल आलू के समोसे ही बाजार में बिकते थे अब कई तरह के समोसे जिन में खोया वाले मीठे समोसे भी मिठाई की दुकानों में बिकने लगे हैं. खोया और आलू के समोसे ज्यादा दिन तक नहीं रखे जा सकते इसलिए इन्हें बनने के कुछ घंटे बाद ही खाना सही रहता है. अब मेवा और मसालों से ऐसे समोसे भी तैयार किए जाने लगे हैं, जो कई दिनों तक चलते हैं. यह नमकीन की तरह नाश्ते में इस्तेमाल होते हैं. पौष्टिक होने से इन को खाने के बाद भूख कम लगती है. मेवा मिला होने से यह शरीर को ताकत भी देते हैं.

समोसा भारत का ही नहीं पश्चिम एशियाई देशों का भी प्रमुख नाश्ता है. कमाल की बात यह है कि 1000 साल से इस का तिकोना आकार नहीं बदला है. अपने खास आकार के कारण ही इस को कई इलाकों में तिकोना भी कहा जाता है. यह छोटे से बडे सभी तरह के आकार में मिलता है. आकार के हिसाब से ही इस को कीमत तय होती है.

मुगलकाल में मीट वाला समोसा सब से ज्यादा प्रचलित था. भारत में आने के बाद समोसा के अंदर भरी जाने वाली सामग्री में बदलाव आया. ब्रिटिश काल में जब चाय का चलन बसे तो भारतीयों को चाय का स्वाद पसंद नहीं आता था. ऐसे में चाय और समोसे की जुगलबंदी तैयार हो गई. आज गलीचौराहों पर सब से ज्यादा चायसमोसा ही बिकता है.

आज समोसा भारत का सब से ज्यादा बिकने वाला स्ट्रीट फूड है. उत्तर भारत के हर कस्बे और शहर में समोसे की दुकान है. महाराष्ट्र के कुछ शहरों में रगड़ा समोसा चलन में है.

इस में समोसे के अंदर ब्रेड, आलू, भुजिया और दूसरी कई चीजें भरी जाती हैं. समोसे में स्वाद के लिए पनीर समोसा व मटरकाजू समोसे का इस्तेमाल भी होने लगा है. गोआ में कुछ खास दुकानों पर मीट वाला मांसाहारी समोसा मिलता है. समोसा अकेला ऐसा व्यंजन है जो इतना पुराना होने के बाद भी बदला नहीं है.

आलू भरे समोसे का अपना अलग बाजार है. समोसा भारतीय खानपान व संस्कृति के साथ पूरी तरह से रच बस गया है. यह रोजगार का भी बडा साधन है. कसबों और सड़क किनारे छोटी सी पूंजी लगा कर समोसा बनाने की दुकान खोली जा सकती है. समोसा लोगों को इतना पसंद है कि इस में नुकसान की आशंका नहीं रहती है.

समोसा बनाना आसान

समोसा बनाने के लिए सामग्री के रूप में मैदा, आलू , रिफाइंड तेल, नमक, धनिया पाउडर, गरम मसाला और पिसी खटाई का प्रयोग किया जाता है. सब से पहले आलू को उबाल लें. इस के बाद मैदा में तेल और नमक डाल कर अच्छी तरह से गूंथ लें. उबले आलू हाथ से ही मोटामोटा फोड़ दें. कढ़ाई में तेल डाल कर कर उस में धनिया पाउडर, गरम मसाला, नमक और अमचूर मिलाते हुए भून लें. अब इस में आलू डाल कर ठीक से मिला कर रख दें. पहले से तैयार मैदा के छोटेछोटे पीस तैयार करें. इन को गोल रोटी की तरह 8 इंच व्यास के आकार में तैयार करें. फिर चाकू से 2 हिस्सों में काट दें. एक भाग को तिकोना बनाते हुए उस में आलू मसाला भर लें. दोनों कोने चिपका दें. कढ़ाई में रिफाइंड तेल डाल कर तैयार समोसे तल लें. समोसे को मीठी और नमकीन दोनों ही चटनी के साथ खाया जाता है. मेवा और मसाला समोसे में आलू की जगह मेवा और मसाला पहले से तैयार कर के भरा जाता है.

मुनाफे का गणित

डेढ़ किलो आलू और 1 किलो मैदा से करीब 35 समोसे तैयार होंगे. यह सामान्य आकार के करीब 60-70 ग्राम वाले समोसे होंगे. इस को बनाने के लिए 30 रुपए का आलू, 30 रुपए का मैदा, 30 रुपए का बेजिटेबल आयल और 30 रुपए का मसाला लगता है. ऐसे में 120 रुपए खर्च कर करीब 35 समोसे तैयार होंगे. यह समोसे 8 रुपए प्रति समोसे के हिसाब से बिकेंगे. ऐसे में यह समोसे 280 रुपए के बिकेंगे. जिस में 95 रुपए का मुनाफा होगा. समोसा महंगा करने के लिए दुकानदार उस में कई बार मटर, काजू और पनीर डाल कर उस की कीमत दोगुनी कर देते हैं. जबकि ऐसा करने में प्रति समोसा केवल 2 रुपए की लागत बढ़ेगी.

भारत के साथ मैच ना खेल पाने से पाकिस्तान को हो रहा भारी नुकसान

भारत और पाकिस्तान के बीच 2012 के बाद से कोई भी बाइलेट्रल सीरीज नहीं खेली जा सकी है. पाकिस्तान की तमाम मिन्नतों और गुजारिशों के बावजूद बीसीसीआई ने पाकिस्तानी टीम के साथ दौरे को मंजूरी नहीं दी. अब भारत सरकार की ओर से भी ये कहा चुका है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाएगा, दोनों देशों के बीच कोई भी द्विपक्षीय सीरीज नहीं होगी. न तो भारत में और न ही किसी और देश में.

इसके बाद पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर जावेद मियांदाद का कहना है कि अब पीसीबी को बीसीसीआई के सामने गिड़गिड़ाना छोड़ देना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत के साथ न खेलने के कारण हम बर्बाद नहीं हो जाएंगे. हमें अपने क्रिकेट पर ध्यान देना चाहिए. इससे पहले दूसरे क्रिकेटर और अधिकारी भी इस तरह की बातें कर चुके हैं, लेकिन ये पूरी तस्वीर नहीं है.

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एक तरफ अधिकारी और क्रिकेटर इस तरह की बातें कर रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ पीसीबी आईसीसी के सामने बीसीसीआई से 7 करोड़ डौलर हर्जाने के रूप में मांग रहा है. दरअसल 2012 से दोनों देशों के बीच कोई भी सीरीज नहीं हुई है. 2015 में इन दोनों बोर्ड ने 2023 तक 6 बाइलेटरल सीरीज खेलने का करार किया था. लेकिन इसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों का असर क्रिकेट सीरीज पर भी पड़ा. दोनों देशों के बीच कोई भी सीरीज नहीं हुई.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान को भारत के साथ एक सीरीज न खेलने के कारण 600 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. पीसीबी से जुड़े सूत्रों के अनुसार टीम इंडिया के पाकिस्तान न आने से वह दो सीरीज नहीं खेल पाई. इस कारण उसे 20 करोड़ डौलर का नुकसान हुआ. यानी एक सीरीज पर 10 करोड़ डौलर. भारतीय रुपयों में ये नुकसान करीब 600 करोड़ रुपए बैठता है.

टीम इंडिया के साथ सीरीज न होने के कारण पीसीबी को एंडोर्समेंट से मिलने वाली राशि भी आधी हो जाती है. दोनों देशों के बीच सीरीज के कारण उसे पहले 15 करोड़ डौलर पांच साल के लिए मिलने वाले थे. लेकिन इसमें से आधे पैसे ही मिलेंगे.

पराली प्रबंधन की दिशा में बढ़ने लगे हैं कदम

अक्तूबर नवंबर 2017 में दिल्ली व आसपास के इलाकों में जैसे ही गुलाबी ठंड का आगाज हुआ वैसे ही हरियाणा व पंजाब की तरफ से आने वाली धूल और प्रदूषण भरे धुएं के गुबार ने हवा में जहर घोल दिया. वातावरण में फैले इस स्माग ने लोगों को नाक पर रूमाल बांधने पर मजबूर कर दिया. अस्थमा की बीमारी वाले लोगों के लिए यह ज्यादा परेशानी का सबब बनने लगा.

क्या जनता क्या नेता, सभी की उंगली हरियाणा और पंजाब की ओर उठने लगी कि यह जहरीला धुआं इन्हीं राज्यों से किसानों द्वारा धान की पराली जलाने से आ रहा है जिस ने लोगों का जीना दूभर कर दिया.

दिल्ली, हरियाणा व पंजाब की सरकारों में मुंहजबानी जंग शुरू हो गई और वे एकदूसरे के ऊपर इस का ठीकरा फोड़ने लगे. जब इस से कुछ हासिल होता नहीं दिखा तो गरीब की लुगाई सब की भौजाई वाली कहावत सच होने लगी. सब का निशाना किसान बनने लगे कि इस के जिम्मेदार वे ही हैं. ऐसे किसानों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए, उन किसानों पर केस दर्ज करो और जुर्माना लगाओ, जो पराली जला रहे हैं. इस के तहत हजारों किसानों को निशाना भी बनाया गया.

प्रदूषण के खिलाफ होहल्ला करने में दिल्ली की केजरीवाल सरकार सब से आगे रही और दूसरे प्रदेशों की सरकारों पर आरोप लगाती रही. लेकिन जब एक आरटीआई से खुलासा हुआ तो हकीकत कुछ और ही नजर आई. दरअसल दिल्ली सरकार ने पर्यावरण सेस के तहत साल 2015 से साल 2017 के बीच 787 करोड़ रुपए की वसूली की, लेकिन दिल्ली का प्रदूषण कम करने के नाम पर मात्र 93 लाख रुपए ही खर्च किए. हाल में वर्ष 2017 में तो केजरीवाल सरकार ने एक पैसा भी प्रदूषण के नाम पर खर्च नहीं किया. इसलिए दूसरे पर आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांक लेना भी जरूरी है.

कुछ दशक पहले तक पारंपरिक तरीके से खेती होती थी, जिस में पशुओं का भी खासा योगदान था. उन के लिए भी चारा चाहिए होता था. उस समय गेहूं व धान के अवशेष चारे के रूप में इस्तेमाल होते थे. आज खेती में कृषि मशीनों का चलन बढ़ गया है. नएनए हार्वेस्टर, रीपर जैसी फसल काटने की मशीनें आ गई हैं, जो फसल में फल वाले ऊपरी हिस्से को काट देती हैं और बाकी नीचे फसल का पूरा तना बच जाता है, जिसे फसल अवशेष मान कर जलाया जाता है.

किसान फसल अवशेष इसलिए जलाता है जिस से वह समय से अगली फसल उगाने की तैयारी कर सके. भारत में साल में 2 बार फसल अवशेषों को जलाया जाता है. गेहूं और धान दोनों ही बंपर पैदावार वाली फसलें हैं. अप्रैल में गेहूं की फसल और सितंबरअक्तूबर में धान की फसल तैयार होती है. इसी दौरान फसल अवशेषों को जलाया जाता है. धान की फसल कटने के बाद तुरंत गेहूं की फसल भी बोनी होती है, इसलिए अगली फसल बोने के लिए खेत भी तैयार चाहिए. हालांकि पराली को खेत में जोत कर गलाने के बाद बेहतर खाद बनती है, लेकिन हर किसान के लिए यह काम संभव नहीं है. हर किसान की माली हालत इतनी अच्छी नहीं होती कि वह पराली का प्रबंधन कर सके. न चाहते हुए भी उसे यह कदम उठाना पड़ता है.

पंजाब सरकार की सफाई

एक अनुमान के मुताबिक केवल पंजाब में ही 19.7 मिलियन टन पराली होती है, जिस का ज्यादातर हिस्सा जला कर खत्म किया जाता है. पंजाब सरकार भी किसानों पर ज्यादा सख्ती नहीं करना चाहती. पिछले दिनों पंजाब सरकार ने पराली प्रबंधन के काम आने वाली मशीनों के लिए 1109 करोड़ रुपए सब्सिडी की योजना केंद्र के पास भेजी, लेकिन वह फाइल भी कृषि मंत्रालय में ही अटक गई. इस के बाबत अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने कृषि मंत्रालय से जवाब मांगा है.

वायु प्रदूषण को देखते हुए जब चारों तरफ से पंजाब सरकार पर दबाव पड़ा तो पंजाब सरकार के वित्त मंत्री मनप्रीत बरार ने कुछ अलग ही रास्ते सुझाए. उन्होंने कहा कि हम पंजाब में धान उगाना बंद कर उस की जगह सब्जी की खेती करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि मनरेगा के तहत किसानों को 5-6 दिनों के लिए काम दिया जाए जिस से वे पराली हटा सकें. साथ ही केंद्र सरकार डीजल पर कुछ सेस लगाए और इस को पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को मुआवजे के तौर पर दिया जाए. वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार का कहना है कि पराली प्रबंधन के लिए उन की सरकार किसानों को 4 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से धन मुहैया कराएगी. इस के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों के लिए रकम का आवंटन भी किया है.

मशीन खरीदने की सलाह

‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ की तर्ज पर किसानों को सलाह बहुत दी जाती है. सरकारें भी इस में पीछे नहीं हैं. सरकार भी फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए किसानों को मशीनें खरीदने की सलाह देती रही हैं, जबकि ज्यादातर किसान कृषि मशीनें खरीदने की स्थिति में नहीं होते. पहले ही किसान कर्ज के तले दबे हैं ऊपर से मशीन खरीदने का सरकारी कर्ज अलग. पंजाब सरकार मशीनों पर किसानों को सब्सिडी देने की बात करती है, लेकिन मशीनों की कीमत भी कम नहीं है. चोपर थ्रेडर मशीन की कीमत साढ़े 4 लाख से 6 लाख रुपए, कटर रैंक बेलर मशीन की कीमत 16 लाख रुपए और हैप्पी सीडर मशीन की कीमत लगभग सवा करोड़ से 1 करोड़ 40 लाख रुपए के आसपास होती है. इस के अलावा जीरो टिल, सीड ड्रिल, स्ट्रा बेलर, रोटावेटर, मल्चर आदि अनेक मशीनें हैं, जिन के इस्तेमाल से पराली प्रबंधन में सहायता होती है, लेकिन ऐसी मशीनों को खरीदना हर किसान के लिए मुमकिन नहीं है. उन की इतनी आमदनी नहीं होती कि वे यह बोझ उठा सकें.

पंजाब में सुपरस्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का भी यही कहना है कि पराली को आग लगाए बगैर निबटाने का सस्ता और आसान

ढंग कंबाइन हार्वेस्टर पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगा कर धान की कटाई करना है. फसल काटते समय ही इस मशीन के जरीए पराली के छोटेछोटे टुकड़े हो जाते हैं, जो पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल हो सकते हैं.  इस से किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी हो सकेगी. हालांकि इस मशीन को कंबाइन हार्वेस्टर के साथ अलग से जोड़ा जाएगा, जिस का खर्च तकरीबन सवा लाख रुपए अलग से होगा.

अभी तक पंजाब में तकरीबन 1000 कंबाइन मशीन मालिकों ने यह सिस्टम अपनी मशीनों में लगवाया है और जहां इन मशीनों से धान की कटाई हुई है, उन इलाकों में धान की पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ी है. इस मशीन से कटाई के बाद किसान खेत में हैप्पी सीडर मशीन के जरीए गेहूं की सीधी बीजाई कर सकते हैं.

हरियाणा सब से आगे

चौतरफा दबाव का नतीजा अब दिखने लगा है और आने वाले समय में हमें इस समस्या से नजात मिलने की भी संभावना बन रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा है कि प्रदूषण किसी एक राज्य की समस्या नहीं है और हवा व आकाश को सीमा के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. यह हम सब की समस्या है. हरियाणा इस मामले में सब से पहले काम कर रहा है.

हमारी सरकार ने पराली के डिस्पोजल के लिए कुछ नियम बनाए हैं. इस में कृषि यंत्रों का खासा योगदान है. हम ऐसे कृषि यंत्र तैयार करवा रहे हैं, जो पराली का प्रबंधन खेत में ही कर सकेंगे. इन कृषि यंत्रों को किसानों के लिए कम कीमत पर दिया जाएगा, जो किसान इन्हें नहीं खरीद सकते उन किसानों को ये कृषि यंत्र किराए पर दिए जाएंगे.

पराली को ले कर एक अन्य प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है, जिस में फसल कटाई के दौरान ही पराली में बचे अवशेषों को छोटेछोटे टुकड़ों में बदल कर खेत की जुताई कर दी जाएगी.

इसलिए मौजूदा हार्वेस्टिंग मशीन के लिए एक अलग से मशीन तैयार की जा रही है, जो एकसाथ सारे काम करेगी जिस से फसल काटते समय ही पराली खेत की मिट्टी में मिल जाएगी और पानी देने के बाद कुछ ही दिनों में पराली गल कर खाद में बदल जाएगी.

सरकार ने जारी की रकम

एनजीटी के आदेश के बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा कि जीरो टिल, सीड ड्रिल, हैप्पी सीडर, स्ट्रा बेलर, रोटावेटर जैसी मशीनों को फार्म मशीनरी बैंकों के जरीए किसानों को मुहैया कराया जाए. इन मशीनों से फसल अवशेषों का सही प्रबंधन हो सकेगा और किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं होगी.

केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 के लिए पंजाब के लिए 48.50 करोड़, हरियाणा के लिए 45 करोड़, राजस्थान के लिए 9 करोड़ और उत्तर प्रदेश के लिए 30 करोड़ रुपए जारी किए. कहने का मतलब है कि होहल्ला तो बहुत हो रहा है, पर किसानों तक कितनी स्कीमें पहुंच पाती हैं, यह देखने की बात है.

वर्षों से नहीं जलाई पराली

कई किसान अब भी इस तकनीक को अपनेअपने खेतों में अपना रहे हैं. ऐसे ही हरियाणा के एक किसान हैं, जो फतेहाबाद में रहते हैं. वे धान की खेती करते हैं. उन्होंने पिछले 6 सालों से पराली को जलाया नहीं है, बल्कि वे इसे रोटावेटर के जरीए खेत में जोत कर खाद बनाते हैं.

सुखविंदर सिंह कहते हैं कि पराली को खेत में जोतने का काम सुबह के समय करना चाहिए, क्योंकि उस समय खेतों में ओस का है, गीलापन रहता है.

उस समय पराली से मिट्टी अच्छी तरह चिपक जाती है, जिस का अच्छा नतीजा मिलता है. उस के बाद खेत में पानी दे कर छोड़ देना चाहिए. 20-25 दिनों में पराली खेत में सड़ जाती है, जिस से उम्दा किस्म की खाद बन जाती है. खेत में अलग से खाद डालने की जरूरत भी नहीं होती.

हालांकि समयसमय पर कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को सलाह भी दी जाती है कि वे फसल अवशेषों को न जलाएं, बल्कि उन्हें खेत में जोत कर खाद बनाएं जिस से किसान का खाद का खर्च भी बचेगा और जमीन की पैदावार कूवत भी बढ़ेगी.

फसल अवशेष जलाने से खेती की जमीन में फायदा पहुंचाने वाले मित्र कीट केंचुए आदि भी खत्म हो जाते हैं.

इन सब तरीकों को जमीन पर उतारने के लिए सरकार को किसानों के साथ खड़ा होना होगा. उसे किसानों की मदद करनी होगी. उन्हें फसल की सही कीमत दिलानी होगी तभी हर किसान आज के मशीनी दौर में अपनी खेती करने के तौरतरीकों में बदलाव कर सकेगा.

जनवरी में किए जाने वाले खेती के खास काम

जनवरी का महीना पूरी दुनिया में जश्न का महीना माना जाता है. वाकई नए साल की कशिश कुछ खास ही होती है. 31 दिसंबर की रात से 1 जनवरी तक हर जगह जश्न का आलम रहता है. पूरे साल खेती के कामों में जूझते रहने वाले किसान भी नए साल का त्योहार पूरी शिद्दत यानी लगन से मनाते हैं.

मेहनतकश किसान भी जनवरी को जश्न का महीना मानते हैं, मगर इस का मतलब यह नहीं कि वे खेती के कामों से एकदम तोबा ही कर लेते हों. मौजमस्ती एक तरफ और काम दूसरी तरफ, यही सच्चे किसानों का दस्तूर होता है.

इनसान होने के नाते वे बेशक खानेपीने या नाचनेगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते, लेकिन खेती के कामों की कीमत पर कतई नहीं. मौसम व वक्त से जुड़े काम बदस्तूर चलते रहते हैं.

पहली जनवरी को होने वाले नए साल के जश्न के अलावा किसान 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व भी जोरशोर से मनाते?हैं और 14 जनवरी को मनाया जाने वाला खिचड़ी का त्योहार भी उन्हें बहुत सुहाता?है. खिचड़ी यानी मकर संक्रांति वाकई किसानों का पसंदीदा पर्व होता है.

फिर 26 जनवरी के दिन वे गणतंत्र दिवस भी पूरी शिद्दत से मनाते हैं और खुद को मनोज कुमार की तरह भारत कुमार के रंग में रंगा पाते हैं. मगर इस ठंडेठंडे महीने में वे तैयार हो रही रबी की फसलों से बेजार कतई नहीं होते. आइए डालते?हैं एक नजर जनवरी के दौरान किए जाने वाले खेती के कामों पर :

* जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान करीब 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें.

* गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या अन्य फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें. चौड़े पत्ते वाले खरपतवार ज्यादा हों, तो 2-4 डी सोडियम साल्ट दवा का इस्तेमाल करें. यह दवा काफी कारगर होती है.

* अगर गेहूं की बालियों में अनावृत कंडुआ रोग का असर नजर आए, तो उन पौधों को देखते ही उखाड़ कर नष्ट कर दें. इस के अलावा अगर खेत में काली गेरुई रोग का प्रकोप दिखाई दे, तो मैंकोजेब दवा की?ढाई किलोग्राम मात्रा को करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* यदि चने के खेतों में फलीछेदक कीड़े का का हमला दिखाई पड़े, तो फलियां बनना शुरू होते ही इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 2 लीटर मात्रा को करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* यदि चने के खेतों में फलीछेदक कीड़े का हमला दिखाई पड़े, तो फलियां बनना शुरू होते ही इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 2 लीटर मात्रा को करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. छिड़काव के असर से फलियां बेहतरीन होंगी.

* मटर व मसूर के खेतों में उगे खरपतवारों को खरपतवारनाशी दवा का इस्तेमाल कर के नष्ट करें.

* चना, मटर व मसूर के खेतों में इस दौरान निराईगुड़ाई जरूर करें. इस से पौधों को खुराक ढंग से मिल सकेगी और खरपतवार भी नहीं पनपेंगे.

* चने और मटर के खेतों में फूल आने से पहले सिंचाई करें, मगर फूल बनने के दौरान सिंचाई न करें. फूल बनने के बाद फिर सिंचाई करें.

* मटर व चने की फसलों में अगर रतुआ बीमारी का प्रकोप नजर आए, तो रोकथाम के लिए जिंक मैंगनीज कार्बानेट दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* नए साल का यह पहला महीना ताजे गुड़ व गन्ने के लिए खास माना जाता है. इस दौरान गन्ने की पेड़ी फसल की कटाई का काम करें. कटाई का काम फसल की हालत व हालात के मुताबिक करें.

* कटाई के दौरान निकली गन्ने की पत्तियों को हरगिज नहीं जलाएं, क्योंकि फसल अवशेष जलाना न सिर्फ गुनाह?है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी घातक है. गन्ने की सूखी पत्तियों को जमा कर के कंपोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल करें.

* गन्ने की सूखी पत्तियों को मवेशियों के बेड के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता?है, इन पत्तियों को अगली पेड़ी फसल में पलवार के लिए भी इस्तेमाल कर सकते?हैं, इस से खेत में काफी समय तक नमी बनी रहती है. ऐसा करने से खरपतवार भी कम निकलते हैं.

* जौर की फसल को बोए हुए अगर 4-5 हफ्ते हो रहे हों तो खेत की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद हलकी निराईगुड़ाई भी करें ताकि खरपतवार न पनप सकें.

* अगर राई व सरसों की फसलों में फूल व फलियां निकल रही हों, तो खेत की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें.

* अगर सरसों में तनासड़न बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो रोकथाम के लिए बिनोमाइल दवा की आधा किलोग्राम मात्रा या थाइरम की डेढ़ किलोग्राम मात्रा करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* अगर सरसों या राई की फसल पर बालदार सूंडी़ का हमला नजर आए, तो बचाव के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 1.25 लीटर मात्रा करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* तोरिया के खेतों का मुआयना करें. अगर करीब 75 फीसदी फलियां गोल्डन रंग की हो चुकी हों, तो फसल की कटाई करें. कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखा कर मड़ाई करें.

* नए साल के पहले महीने यानी जनवरी में सोंधे व स्वादिष्ठ लगने वाले नए आलू का इंतजार सभी को होता?है. आलू की अगेती फसल जनवरी में खुदाई लायक हो जाती?है, लिहाजा यह काम निबटाएं. खुदाई के लिए आलू खोदने वाली मशीन का इस्तेमाल भी कर सकते?हैं. मशीन से आलू की खुदाई तेजी से होती है और आलू नष्ट भी नहीं होते.

* अगर आलू की मध्यम व पछेती फसलों पर झुलसा बीमारी के लक्षण नजर आएं, तो रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा का इस्तेमाल करें.

* प्याज की रोपाई का काम भी जनवरी में ही निबटा देना चाहिए. प्याज की रोपाई करने से पहले खेत में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश जरूर डालें और रोपाई के बाद हलकी सिंचाई करें.

* जनवरी में तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, करेला और भिंडी आदि की बोआई के लिए ढंग से जुताई कर के खेत तैया करें. खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खद भरपूर मात्रा में डालें.

* जनवरी के ठंडे महीने में पाले का खतरा बहुत ज्यादा रहता?है, लिहाजा पाले से बचाव के लिए छोटे फलों वाले पौधों व सब्जियों की नर्सरियों को टाट या घासफूस के छप्परों से अच्छी तरह ढक दें.

* पाला गिरने वाली रात में बाग या खेत की सिंचाई करना न भूलें. इस से पाले का असर घट जाता है.

* जनवरी महीने के दौरान अकसर आंवले में फलीविगलन रोग लग जाता है. ऐसी हालत में बचाव के लिए ब्लाइटाक्स 58 दवा का इस्तेमाल करें.

* माल्टा, किन्नू, संतरा व नीबू आदि के पेड़ों में गमोसिस बीमारी से बचाव के लिए पेड़ों के रोगग्रस्त भागों को काट कर जला दें, पेड़ों के काटे गए हिस्सों पर रिटोमिल व अलसी के तेल का पेस्ट तैयार कर के लगाएं. यह पेस्ट तैयार करने के लिए 1 लीटर अलसी के तेल में 20 ग्राम रिडोमिल दवा अच्छी तरह मिलाएं.

* इस महीने आड़ू, नीबू, संतरा, किन्नू और माल्टा आदि पेड़ों की छंटाई का काम भी करें. इन पेड़ों में कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले कर जरूरी खादें भी डालें.

* इसी तरह अंगूर की बेलों की काटछांट का काम भी महीने के अंत तक जरूर निबटा लें. इसी दौरान नई बेलें भी लगाई जा सकती हैं. अगर नई बेले लगाएं, तो लगाने के फौरन बाद सिंचाई जरूर करें.

* आमतौर पर आम के पेड़ों की देखभाल की याद आम के मौसम में ज्यादा आती?है, मगर यह अच्छी बात नहीं है. इन पेड़ों की नियमित देखभाल करना जरूरी?है. अमूमन दिसंबर में आम के पेड़ों के तनों पर अल्काथीन शीट लगाई जाती है. जनवरी में इस शीट की कायदे से सफाई करें, क्योंकि बगैर सफाई के शीट का पूरा फायदा नहीं मिलता.

* आम के पेड़ों में भुनगा व मित्र कीड़ों के बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास 50 ईसी दवा की डेढ़ मिलीलीटर मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर पेड़ों में बौर आने के तुरंत बाद छिड़कें. अगर जरूरी लगे तो 2-3 हफ्ते बाद दोबारा छिड़काव करें.

* अपने महंगे मवेशियों यानी गायभैंसों वगैरह को जनवरी की कड़ाके की ठंड से बचाने के पूरे इंतजाम करें, क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही से लाखें रुपए के मवेशी ठंड के शिकार हो सकते हैं.

* पशुओं को दिन के दौरान धूप में बांधें और रात के वक्त आग जला कर गरमी का बंदोबस्त करें. गौशाला के दरवाजे बंद रखें या टाट के मोटे परदे लगाएं. रोशनी का भी पूरा इंतजाम करें.

* जनवरी की सर्दी मुरगेमुरगियों के लिए भी खतरनाक साबित होती?है, लिहाजा उन के बचाव का भी पूरा खयाल रखें. जब मुरगियां स्वस्थ होंगी तभी महंगे अंडों का उत्पादन होगा.

* जब घना कोहरा पड़ रहा हो, उस दौरान गौशाला की चौकसी बढ़ा दें, क्योंकि कोहरे का फायदा उठा कर चोरउचक्के अपना कारनामा दिखा देते हैं.

* अपने इलाके के पशुचिकित्सकों के मोबाइल नंबर डायरी में लिखने के साथसाथ अपने मोबाइल में भी दर्ज कर के रखें ताकि आड़े वक्त पर यानी पशुओं के बीमार होने पर उन से फौरन बात की जा सके.

क्या एक ही दिन रिलीज हो रही है ‘पैडमैन’ और ‘पद्मावती’

संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी फिल्म ‘पद्मावती’ पहले 1 दिसंबर को रिलीज होने वाली थी. लेकिन करणी सेना और कई राजनीतिक दलों के विरोध के चलते फिल्म की रिलीज टाल दी गई थी. उसके बाद से ही फैन्स लगातार इस फिल्म के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी चर्चा जोरो पर है कि दीपिका पादुकोण, रनबीर सिंह और शाहिद कपूर स्टारर फिल्म ‘पद्मावती’ अब ‘पद्मावत’ के नाम से 25 जनवरी को रिलीज होगी. आपको बता दें कि इसी दिन अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘पैडमैन’ भी रिलीज होनी है.

हालांकि, निर्माताओं ने कहा कि उन्हें ‘पद्मावती’ की रिलीज, या इन दोनों फिल्मों के बीच बौक्स औफिस पर संभावित टक्कर के बारे में कोई अंदाजा नहीं है.

फिल्म पद्मावती और पैडमैन को लेकर जो चर्चाएं हो रही हैं उसपर इसकी आधिकारिक घोषणा करते हुए अक्षय कुमार ने कहा, “फिल्मों की टक्कर के बारे में जो कुछ हो रहा है उसका मुझे कतई अंदाजा नहीं है… मुझे इसके बारे में कोई अनुमान नहीं है. हां, हमने इसके बारे में सुना जरूर है. हालांकि इसके बारें अभी कोई आधिकारिक तौर पर पुष्टी नहीं हुई है तो हम सभी यह जानते हैं कि ‘पैडमैन’ 25 जनवरी को रिलीज हो रही है.”

‘पैडमैन’ की निर्माताओं में शामिल प्रेरणा अरोड़ा ने बताया, “पद्मावती बेहद अहम फिल्म है. यह बेहद खूबसूरत फिल्म है और इसे जल्द रिलीज होना चाहिए. मैं भी इसे देखना चाहती हूं. इसकी रिलीज की तारीख पर फैसला करना वायकौम 18 मोशन पिक्चर्स और संजय लीला भंसाली प्रोडक्शंस के ऊपर है.” यह पूछे जाने पर कि क्या ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित बड़े बजट की इस फिल्म से बौक्स औफिस पर संभावित टक्कर के अंदेशे से वे ‘पैडमैन’ की रिलीज की तारीख आगे बढ़ाएंगे? इस सवाल का जवाब देते हुए प्रेरणा ने कहा, “यह बात बिल्कुल तय है कि हम लोग 25 जनवरी को ही आ रहे हैं.”

जहां एक ओर पद्मावती के 25 तारिख को रिलाज किये जाने की खबर है तो वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि ‘पद्मावती’ 9 फरवरी को रिलीज हो सकती है. आपको बता दें कि अनुष्का शर्मा की अगली होम प्रोडक्शन फिल्म ‘परी’ और कार्तिक आर्यन अभिनीत निर्देशक लव रंजन की फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ भी 9 फरवरी को ही रिलीज होने वाली है. अगर ऐसा होता है तो फिल्म ‘परी’ और ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ पर भारी असर पडं सकता है. अब देखना ये है कि पद्मावती किस दिन रिलीज होता है और उसके रिलीज होने पर किस फिल्म पर कितना असर पड़ता है.

रिचा चड्डा को ‘सरबजीत’ के लिए किस स्टार ने किया था फोन?

रणदीप हुड्डा, ऐश्वर्या राय बच्चन, दर्शन कुमार और रिचा चड्डा के अभिनय से सजी निर्देशक उमंग कुमार की फिल्म ‘सरबजीत’की बौक्स आफिस पर बड़ी दुर्गति हुई थी. इस बात को डेढ़ वर्ष से अधिक बीत चुका है. तब से इस फिल्म की असफलता का दर्द झेल रही अभिनेत्री रिचा चड्डा अंततः अपने इस दर्द को हाल ही में बयां कर ही डाला.

हाल ही में रिचा चड्डा ने इस फिल्म में अभिनय करने को अपनी गलती बताते हुए कहा है-‘‘फिल्म ‘सरबजीत’ को करना तो मुझे मेरी गलती लगती है. लेकिन अब किसी पर भी इल्जाम लगाने से कोई फायदा नहीं, आप भी जानते हैं कि बौलीवुड में लोग कैसे होते हैं. लेकिन अब मेरा करियर सही हो जाएगा.

आप जानते हैं कि कौन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत फिल्म‘मसान’में मैने मुख्य भूमिका निभायी थी. पूरी दुनिया में मेरा नाम हुआ, तो उसके तुरंत बाद मैं ‘सरबजीत’में इतना छोटा व महत्वहीन किरदार को क्यों करने लगी? क्या मैं इतनी पागल हूं कि इतनी बड़ी शोहरत पाने के बाद मैं एक सीन वाली फिल्म का हिस्सा बनने के लिए खुशी खुशी तैयार हो जाउंगी. सच यही है कि ‘सरबजीत’के वक्त मेरे साथ बहुत बुरा हुआ था. पर अब मैं इसे एकदम भूलकर आगे बढ़ चुकी हूं. और अब मेरा करियर एक बार फिर पटरी पर आ गया है.’’

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रिचा चड्डा ने जो कुछ कहा, उससे कई तरह के सवाल बौलीवुड में गर्म हुए हैं और बौलीवुड के बिचौलियों के बीच कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गयी हैं. बौलीवुड के साथ साथ फिल्म‘सरबजीत’से जुड़े रहे सूत्र का दावा है कि ‘सरबजीत’की जो स्क्रिप्ट रिचा चड्डा को दी गयी थी, वह अलग थी. निर्देशक उमंग कुमार ने जिस स्क्रिप्ट पर ‘सरबजीत’ को शूट किया था, वह स्क्रिप्ट अलग थी.

एक सूत्र का दावा है कि यदि उमंग कुमार ने स्क्रिप्ट को बदलने की बजाय रिचा चड्डा को जो स्क्रिप्ट दी थी, उसी पर यह फिल्म बनती, तो फिल्म को हर हाल में बौक्स औफिस पर सफलता मिलती. पर उमंग कुमार ने अपनी फिल्म के साथ एक बड़े स्टार को जोड़ने के लिए उस स्टार के एक रिश्तेदार की सलाह पर स्क्रिप्ट में जो बदलाव किए, उसी ने उनके लिए भी बर्बादी के गड्ढे खोद दिए. पर उमंग कुमार या किसी की हिम्मत नही है कि वह इस सच को खुलकर स्वीकार कर लें.

उधर बौलीवुड से जुड़ा एक सूत्र रिचा चड्डा की इस बात का समर्थन करता है कि उन्होने ‘सरबजीत’करके गलती की थी. इस सूत्र की माने तो रिचा चड्डा के पास इस फिल्म में अभिनय करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था. क्योंकि रिचा को एक स्टार कलाकार ने फोन करके इस फिल्म को करने के लिए कहा था. और उस कलाकार की आज्ञा का उल्लंघन करना तब भी रिचा के वश में नहीं था और आज भी नही है.

हमने इस सूत्र से उस स्टार का नाम जानने का काफी प्रयास किया, पर सूत्र ने रिचा को फोन करने वाले स्टार कलाकार का नाम नहीं बताया.

सूत्रों से हमें जो जानकारी मिली, उसकी जांच परख करने के लिए हमने रिचा से संपर्क करने की कोशिश की पर प्रयास विफल रहे. अब देखना है कि ‘सरबजीत’ को लेकर जो कुछ धीरे धीरे सामने आ रहा है, उसकी असलियत कब खुलकर सामने आती है.

‘हमारा मकसद जैविक खेती को बढ़ावा देना है’

भारत सरकार हमेशा से खेती को बढ़ावा देती आ रही  है. ‘जय जवान जय किसान’ जैसे नारे और हलधर किसान जैसे चुनाव चिन्ह भी इसी बात की तरफ इशारा करते  हैं कि किसी भी देश की तरक्की में खेती की कितनी ज्यादा अहमियत  है.

हमारी मौजूदा सरकार भी खेती की खैरख्वाह बनी हुई  है. कम से कम दिखाया तो यही जा रहा  है कि खेतीकिसानी के लिए सरकार हरमुमकिन कोशिशें कर रही है.

कृषि एवं किसन कल्याण मंत्रालय भारत सरकार से जुड़ा ‘राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र’ किसानों को जैविक खेती को जोड़ने के लिए ही बनाया गया है.

हाल ही में विश्व मृदा दिवस के मौके पर कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद में लगे कृषि मेले में ‘राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र’ की वैज्ञानिक अधिकारी  डा. पूजा कनौजिया भी तशरीफ लाई थीं. उसी दौरान मैं ने जैविक खेती व खेती के अन्य मुद्दों पर उन से तफसील से बातचीत की. पेश हैं उसी बातचीत के कुछ खास हिस्से:

* पूजा, आप अपनी संस्था के कामों व इरादों के बारे में पूरी जानकारी दें

हमारी इस संस्था का नाम ही ‘राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र’ है, लिहाजा जाहिर है कि संस्था का खास मकसद किसानों को जैविक खेती के लिए बढ़ावा देना है. देशी किस्म के किसान महज कहने भर से तो हमारी बात मान नहीं लेंगे, लिहाजा उन्हें जैविक खेती की अहमियत पूरी तरह से समझानी पड़ती है.

अच्छी बात यह है कि किसान हमारी बात तसल्ली से सुनते व समझते  हैं और उन्हें पूरी लगन से अपनाते भी हैं. इतना जरूर है कि किसान बगैर ठीक से समझे किसी भी नसीहत को आंखें मूंद कर नहीं मानते.

वैज्ञानिक किसानों को जैविक खेती से होने वाले फायदों के बारे में विस्तार से समझाते  हैं और किसानों को उस के लिए पूरी तरह से मना भी लेते  हैं. एक बार बात किसानों की समझ में आने के बाद कोई दिक्कत नहीं होती.

* आप लोग किसानों को रासायनिक दवाओं व खादों का इस्तेमाल करने से कैसे रोक पाते  हैं

जब किसानों को एहसास हो जाता है कि रासायनिक खादों, रासायनिक कीटनाशकों और रासायनिक रोगनाशकों का खेत की मिट्टी पर कितना घातक असर होता  है, तो वे एकदम इस के खिलाफ हो जाते  हैं. वे यह बात सोच कर ही कांप जाते  हैं कि रसायनों के असर से उन के खेत बंजर भी हो सकते हैं.

यानी सही तरीके से समझाने के बाद किसान जैविक खेती अपनाने और रसायनों का इस्तेमाल छोड़ने के लिए राजी हो जाते  हैं.

* किसान जैविक खादें व दवाएं कहां से हासिल कर सकते हैं

जहां तक  जैविक खादों की बात  है, तो गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल तो भारतीय किसान सदियों से करते आ रहे  हैं और यही सब से खास और जरूरी जैविक खाद  है. कंपोस्ट खाद व केंचुआ खाद का इस्तेमाल भी पहले से ही होता आ रहा  है. मिट्टी में पाए जाने वाले केंचुओं के जरीए किसानों को केंचुआ खाद तो कुदरती तौर पर मिलती ही रही है.

वैसे बाकायदा कंपोस्ट खाद बनाने या वर्मी कंपोस्ट बनाने की ट्रेनिंग हमारे संस्थान से हासिल की जा सकती है.

अगर कीटनाशक और रोगनाशक दवाओं की बात की जाए, तो कई कंपनियां आजकल कीड़ों व रोगों की रोकथाम के लिए जैविक दवाएं बना रही  हैं. इन दवाओं को आसानी से हासिल किया जा सकता है.

वैसे हमारी संस्था की कोशिश रहती  है कि ज्यादा से  ज्यादा किसान खुद ही जैविक दवाएं बना कर इस्तेमाल करें.

* जैविक उत्पाद बनाने में किसानों की कितनी दिलचस्पी रहती है  मौजूदा दौर के जागरूक किसान जैविक उत्पाद बनाने में पूरी दिलचस्पी लेते  हैं. इस बारे में हमारी संस्था द्वारा किसानों को पूरी जानकारी मुहैया कराई जाती  है.

* जैविक दवाएं बनाने में आमतौर पर किन चीज चीजों की जरूरत होती  है  आमतौर पर पंचगव्य यानी गोबर, गोमूत्र, दूध, घी व दही का देशी यानी जैविक दवाओं में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता  है. ये चीजें ज्यादातर किसानों के पास मौजूद होती  हैं,  क्योंकि आमतौर पर वे खेती के साथसाथ पशुपालन भी करते हैं.

पंचगव्य के अलावा जैविक उत्पादों में नीम की पत्तियों, नीम के फलों व गुड़ जैसी चीजों का भी इस्तेमाल किया जाता  है और ये तमाम चीजें सभी किसानों को बहुत आसानी से हासिल हो जाती हैं.

* राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र और किन तरीकों से किसानों की मदद करता है  हम किसानों को मौजूदा सरकारी योजनाओं की जानकारी मुहैया कराते  रहते  हैं, मसलन परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) मोदी सरकार की खास योजना है, जो किसानों के लिए बेहद लाभकारी है.

इस के अलावा जो किसान जैविक उत्पाद बड़े पैमाने पर बना कर उन का कारोबार करना चाहते  हैं, संस्था उन की पूरी मदद करती है.

* क्या आप के यहां किसानों को  ट्रेनिंग दिए जाने की भी सहूलियत  है

हमारी संस्था ट्रेनिंग की योजनाएं भी चलाती है. कुछ एनजीओ बीएससी एग्रीकल्चर की डिगरी वाले किसानों के ग्रुप ले कर  ट्रेनिंग के लिए आते  हैं.

हम लोग 30-30 के ग्रुप में 1 साल में  ट्रेनिंग के 3 बैच चलाते  हैं. इस 1 महीने की ट्रेनिंग के दौरान रहने व खानेपीने की सुविधा मुफ्त मुहैया कराई जाती है.

– डा. पूजा कनौजिया
(वैज्ञानिक अधिकारी, राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय)

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