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किताबें होती हैं मार्गदर्शक : इंसान का दिमाग रहता है एकाग्र

ग्लोबलाइजेशन के इस युग में किताबें हम से दूर होती जा रही हैं. पहले ऐसा नहीं था. पुस्तकें हमारी संगीसाथी हुआ करती थीं और यह कहावत सिद्ध करती थी कि बेहतर जिंदगी का रास्ता किताबों से हो कर गुजरता है. यदि आप नियमित रूप से नहीं पढ़ते हैं तो हर दिन एक किताब के कुछ पन्नों को पढ़ना शुरू करें या फिर समाचार देखने के बजाय अखबार, पत्रिकाएं पढ़ें. जल्दी ही आप को एहसास हो जाएगा कि फिल्में देखने के बजाय किताबें पढ़ना क्यों अच्छा है.

मस्तिष्क की कसरत

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकों के बारे में कहना था कि जो पुस्तकें सब से अधिक सोचने को मजबूर करें वही उत्तम पुस्तकें हैं. पढ़ने की आदत से इंसान का दिमाग सतत विचारशील रहता है. इस से उस के सोचनेसमझने का दायरा व्यापक होता है. पुस्तक पढ़ने वाला व्यक्ति अकसर कोई गलत निर्णय नहीं लेता क्योंकि हर महत्त्वपूर्ण बात के अच्छे व बुरे पक्ष पर गहराई से विचार करना उस की आदत बन जाती है. उस का विवेक सदा क्रियाशील रहता है और विवेकवान व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं. रूस में एक कहावत है कि जहां सौ प्रतिशत बुद्धि लगती हो वहां एक प्रतिशत कौमन सैंस से भी काम चल जाता है. यह कौमन सैंस सिर्फ पुस्तकें ही विकसित कर सकती हैं. टीवी देखने में काफी समय खर्च हो जाता है और बदले में ज्ञान के नाम पर कुछ खास प्राप्ति नहीं होती.

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बढ़ती है एकाग्रता

पुस्तकें पढ़ते वक्त पाठक अकेला होता है और पढ़ने में पूरी तरह खोया रहता है. यही क्रिया एकाग्रता को बढ़ाती है. किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी उस काम के प्रति एकाग्रता का अधिकतम होना अनिवार्य है. यदि मन इधरउधर भटका तो जैसी चाहते हैं वैसी सफलता नहीं मिल पाती.

मन की चंचलता पर कोई रोक नहीं लगा सकता लेकिन यह भी तथ्य है कि पुस्तकें पढ़ने से मन के इस चंचलपन पर कुछ हद तक रोक लगाई जा सकती है.

तेज होती है याददाश्त

याददाश्त का हमारे जीवन में निर्णायक महत्त्व है. हम इसी के बूते परीक्षा में पास होने से ले कर पूरे जीवन में पास होते हैं. सालों से याददाश्त बढ़ाने के विभिन्न नुस्खे बताए जाते रहे हैं. याददाश्त बढ़ाने के लिए कई दवाएं भी बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन इन सब से कारगर तरीका सिर्फ पुस्तकें पढ़ना है, जो नियमित हो. हम जब नियमित रूप से पढ़ते हैं तो हमारा दिलोदिमाग भी पूरा सक्रिय रहता है जिस से कोई बात भूलने की प्रवृत्ति कम होती जाती है. दिमाग जब हरदम सोचता रहता है तो उसे हर बात आसानी से याद आती जाती है. यदि पुस्तकें न पढ़ें, दिमाग सतत क्रियाशील न रहे, तो याददाश्त भी कुंद होने लगती है. परिणामस्वरूप हम छोटीछोटी बात भूलने लगते हैं, जिस से जीवन की कई उपलब्धियों से वंचित रह जाते हैं.

जवां रहता है दिमाग

इंगलैंड के एक विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार, जो लोग पढ़ने तथा रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े रहते हैं वे हरदम कुछ नया सोचते रहते हैं या करते रहते हैं. उन का दिमाग ऐसा न करने वाले लोगों की तुलना में 32 प्रतिशत तक अधिक युवा बना रहता है. लगातार पढ़ने की आदत से वे हमेशा अपडेटेड रहते हैं, चाहे मामला फैशन का ही क्यों न हो. वे हमेशा अव्वल रहते हैं. नईनई टैक्नोलौजी के इस्तेमाल में भी वे खासे उत्साह से भरे रहते हैं.

दूर होता है तनाव

इंगलैंड में हुए एक शोध के अनुसार, किताबें पढ़ने से तनाव के हार्मोंस यानी कार्टिसोल कम हो जाते हैं. तनाव के दौरान तरहतरह की निरर्थक बातें दिमाग में आती हैं. ऐसे में मन का शांत रहना लगभग असंभव हो जाता है. दिमाग में आने वाली निरर्थक बातों पर लगाम कसने का काम किताबें करती हैं.

तनावग्रस्त व्यक्ति जीवन में अकसर गलत निर्णय लेता है, फिर पछताता है. ऐसे व्यक्ति को यदि सफल होना है तो उसे किताबें पढ़ने की आदत डालनी चाहिए जो उसे सही रास्ता दिखा सकती हैं. हम वर्तमान में प्रतियोगिता के युग में जी रहे हैं. हमारे बच्चों में कैरियर बनाने की प्रतियोगिता को ले कर काफी दिमागी उथलपुथल मची रहती है. यदि हम अपने बच्चों को उन की समस्याओं से संबंधित पुस्तकें पढ़ने के लिए कहें तो बेहतर नतीजों की पूरी संभावना रहती है.

नींद गहरी आती है

रात में सोने से पहले यदि थोड़ी देर पढ़ने की आदत डाली जाए तो नींद गहरी आती है. देररात तक टीवी देखते रहने या मोबाइल चलाने से तो नींद या तो देर से आती है या बीचबीच में उचटती है. यह सर्वज्ञान है कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए गहरी नींद आना अति आवश्यक है. यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं और जीवन का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो गहरी नींद लेने की आदत डालें ताकि सुबह खुशनुमा हो. याद रखें यदि आप अच्छी किताबें पढ़ कर सोने की आदत डालेंगे तो आप भी कहेंगे कि वाह, क्या दिन निकला है.

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राजस्थान : कांग्रेस की जीत, भाजपा को ले डूबा सामंती अभिमान

राजस्थान की 2 लोकसभा सीटों (अलवर व अजमेर) और एक विधानसभा सीट (मांडलगढ़) के लिए हुए उपचुनावों में कांग्रेस ने तीनों सीटों पर कब्जा करते हुए भाजपा को कड़ी शिकस्त दी है. अलवर में कांग्रेस प्रत्याशी कर्ण सिंह यादव ने भाजपा उम्मीदवार जसवंत यादव को डेढ़ लाख से भी अधिक मतों से हराया. जसवंत यादव वसुंधरा राजे सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. वहीं अजमेर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के रघु शर्मा ने भाजपा के रामस्वरूप को चुनाव हराया जबकि मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी विवेक धाकड़ ने भाजपा उम्मीदवार शक्ति सिंह को हराया. पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवरलाल जाट के निधन के कारण अजमेर, सांसद महंत चांदनाथ की मृत्यु के कारण अलवर और विधायक कीर्ति कुमारी के निधन के कारण मांडलगढ़ में 29 जनवरी को उपचुनाव कराए गए थे. ये तीनों सीटें भाजपा के पास थीं. करीब 9 महीने बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए इन तीनों उपचुनावों को सैमीफाइनल माना जा रहा है. दोनों लोकसभा क्षेत्रों के तहत आने वाली

16 विधानसभा सीटों और एक मांडलगढ़, इस तरह से कुल मिला कर 17 सीटों पर कांग्रेस की जीत ने भाजपा नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है. राजस्थान में 2013 में विधानसभा चुनाव में रिकौर्ड 163 सीटों की जीत के बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में प्रदेश में लोकसभा चुनाव की अब तक की सब से बड़ी जीत हासिल की थी. 25 में से सभी 25 सीटों पर भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की 2 सीटों पर सेंधमारी करते हुए सत्ता का सैमीफाइनल जीत लिया है. भाजपा की इस चुनाव में हार के पीछे कई कारण प्रमुख रहे हैं.

आनंदपाल एनकाउंटर के बाद विवाद

राजस्थान की राजनीति में पिछले साल गैंगस्टर आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद भूचाल आ गया. राजपूत संगठन ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए हत्या करार दिया और लोग सड़कों पर उतर आए. सरकार इस माहौल को भांप नहीं पाई और राजपूत समाज ने जनसभाओं में सरकार के खिलाफ जम कर भड़ास निकाली और चुनाव में सबक सिखाने की चुनौतियां भी दीं. आनंदपाल प्रकरण को ले कर राजपूत संगठन की मांग थी कि यह राजपूत युवाओं को फंसाने का षड्यंत्र है. जयपुर में इकट्ठा हुए संगठनों ने उपचुनावों में कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा कर दी थी. फिल्म ‘पद्मावत’ पर

सरकार की रणनीति फिल्म ‘पद्मावत’ मुद्दा भी सरकार के लिए गले की फांस बना. नाराज राजपूत वोटों पर सियासी गलियारों में तय की गई रणनीति फेल हो गई. सरकार ने फिल्म पर बैन की घोषणा करने में ही

2 महीने लगा दिए. राजपूतों के विरोध के बाद राज्य सरकार ने 20 नवंबर को मौखिक रूप से फिल्म पर बैन लगाने की बात कही, लेकिन 2 महीने तक इस की घोषणा नहीं की. इस दौरान राजपूतों की नाराजगी बढ़ती गई. सरकारी भरतियां

कोर्ट में अटकीं भाजपा सरकार ने सत्ता में आने से पहले जो 15 लाख नौकरियां देने का वादा किया था, उसे पूरा करने में वह नाकामयाब रही. शुरुआती 3 सालों में सरकारी विभागों में 1 लाख से अधिक रिक्तियां निकाली गईं लेकिन इन में से 42 विभागों में करीब 8 हजार लोगों को ही नियुक्ति दी गई. कोर्ट में फंसने के कारण 48 हजार और एसबीसी आरक्षण विवाद के कारण करीब 28 हजार भरतियां अटक गईं. अब भी अधिकांश भरतियां कानूनी दांवपेंच में उलझी हैं और युवा बेरोजगारी से तंग हैं. किसानों की नाराजगी

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले साल राजस्थान में कहा था कि हम सरकार को इतना मजबूर कर देंगे कि उसे किसानों का कर्ज माफ करना होगा, लेकिन किसानों को इस के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा. चक्काजाम के हालात बने. आखिरकार, राजस्थान में किसानों के आगे सरकार झुकी और राज्य के किसानों के 50 हजार रुपए तक की कर्जमाफी की घोषणा कर दी गई. लेकिन किसानों ने 13 दिनों तक चले आंदोलन के बाद इसे ऊंट के मुंह जीरा बताते हुए नाखुशी जाहिर की.

महंगाई, जीएसटी व नोटबंदी जीएसटी के समय प्रदेश के छोटेबड़े सभी व्यापारियों में रोष पैदा हुआ. जीएसटी में कई विसंगतियों और पेचीदगियों से परेशान लोगों में सरकार के खिलाफ मानस बना और लोग विरोध में सड़कों पर उतरे. कांग्रेस ने भी महंगाई, जीएसटी और नोटबंदी को आमजन पर अत्याचार बताते हुए सरकार के खिलाफ माहौल तैयार किया.

संगठन की आपसी फूट उपचुनावों से ठीक पहले राजस्थान सोशल मीडिया पर राज्य संगठन की फूट खुल कर सामने आ गई थी. चुनावों से ठीक पहले भाजपा के ही एक धड़े ने सोशल मीडिया पर वसुंधरा के खिलाफ कैंपेन चलाया था. इस कैंपेन के जरिए वसुंधरा की रानी वाली ठसक को बारबार निशाना बनाया गया. पार्टी के वसुंधरा विरोधी गुट ने उन्हें बारबार निशाने पर लिया, जिस से पार्टी का वोटबैंक उस से छिटकता गया. सरकार में मंत्री राजकुमार रिणवां ने नाराजगी जाहिर करते हुए पहले ही कह दिया था कि इस फालतू की बयानबाजी के चलते अगर हम हार जाएं तो इस में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. उधर, विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने भी बागी सुर अपनाते हुए यहां तक कह दिया कि उन्हें वसुंधरा का नेतृत्व स्वीकार नहीं है. तिवाड़ी ने अपनी ही सरकार से रिफाइनरी पर श्वेतपत्र तक मांग लिया.

चिकित्सकों की हड़ताल और काला कानून

साल 2013 में कांग्रेस के भ्रष्टाचार और आलसी रवैए से तंग आ कर लोगों ने भाजपा को वोट दिया था. हालांकि, काम के मामले में वसुंधरा सरकार पिछली सरकार से भी आगे ही नजर आई है. राज्य में डाक्टरों की हड़ताल के मामले को ही लें तो राज्य सरकार की जिद के चलते 25 से ज्यादा मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ी. स्थिति को संभालने की जगह स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ असंवेदनशील बयान देते रहे. मामला तब और बिगड़ गया जब सरकार भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने के लिए कानून ले कर आ गई. विरोध बढ़ने पर इस प्रस्ताव को सेलैक्ट कमेटी को सौंप कर मामला रफादफा किया गया. गौरक्षकों की गुंडागर्दी

कथित गौरक्षकों की गुंडागर्दी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आगे आ कर बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन वसुंधरा सरकार इस पर लगातार चुप्पी साधे रही. पहलू खान, उमर खान को जान से हाथ धोना पड़ा लेकिन राज्य सरकार ने अफसोस जताना भी जरूरी नहीं समझा. बीते साल जयपुर, सीकर, भीलवाड़ा, बाड़मेर, उदयपुर, राजसमंद जैसी जगहों पर सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं सामने आईं और पूरे साल जम्मूकश्मीर से भी ज्यादा बार राजस्थान के इलाकों में इंटरनैट बंद करना पड़ा. सिर्फ सांप्रदायिकता ही नहीं, आनंदपाल एनकाउंटर से नाराज राजपूत, गुर्जर आरक्षण से उपजा गुस्सा और पद्मावत विवाद पर वसुंधरा की चुप्पी उन के लिए नुकसानदायक साबित हुई. आनंदपाल एनकाउंटर ने जाटराजपूतों को आमनेसामने कर दिया, लेकिन राज्य सरकार चुप्पी साधे रही. राजस्थान में युवाओं की नाराजगी पर भी बेफिक्री है. 2013 में भाजपा के चुनाव मैनिफैस्टों में 15 लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया गया था. 15 लाख तो छोडि़ए, जो कुछ हजार भरतियां निकलीं भी तो वे आरक्षण या पेपर लीक जैसे मामलों के चलते अदालतों में उलझ कर रह गईं.

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तिरंगा बनाम दंगा : देश को जातियों और धर्मों में बांटे रखने का षड्यंत्र

उत्तर प्रदेश के कासगंज में तिरंगे को ले कर जो हिंदूमुसलिम दंगा हुआ उस की तैयारी काफी पहले से चल रही थी. भगवा ब्रिगेड ने काफी समय से भगवा झंडे को छोड़ कर तिरंगे को ही हिंदू धर्म के प्रतीक के रूप में अपना लिया है और बहुत से धार्मिक जुलूसों, तीर्थयात्राओं, कांवड़ यात्राओं, मंदिरों, मठों में पारंपरिक भगवे झंडे की जगह तिरंगा फहराया जाने लगा है.

भगवा झंडे के नीचे दलितों और पिछड़ों को एकत्र करना कठिन हो रहा था क्योंकि सदियों से भगवा झंडा केवल और केवल ब्राह्मण, पंडों, पुरोहितों की पहचान था. हिंदू राजा उसे इस्तेमाल करते थे पर केवल अपने राजपुरोहितों की इजाजत पर. तिकोने भगवे झंडे का उपयोग अब हर ऐरागैरा नया स्वामीबाबा करने लगा है, इसलिए हिंदू संगठनों ने तिरंगे को अपना लिया है और अब वे चाहते हैं कि गैरहिंदू तिरंगे को कम से कम इस्तेमाल करें. इसे पिछड़ी व दलित जातियां इस्तेमाल कर लें और वे नीले, हलके हरे, लाल झंडे छोड़ दें लेकिन मुसलमान गहरा हरा और काला झंडा ही इस्तेमाल करें ताकि उन्हें अपने देश में ही सदासदा के लिए पराया घोषित किया जा सके.

यह एक तरह से देश को जातियों और धर्मों में बांटे रखने का षड्यंत्र है. अब मूर्तियों की जगह झंडे के सहारे चढ़ावा पाने की इच्छा में धर्म के दुकानदार देश की जनता को धर्मभक्ति और राष्ट्रभक्ति को पर्यायवाची बना कर पूरा करने में लग गए हैं. देशभर में हर जाति से चढ़ावा वसूल करने का यह अद्भुत तरीका है.

कासगंज के विवाद का कारण था कि मुसलमान भगवा ब्रिगेड की इस साजिश को अब समझ गए हैं और वे तिरंगे को अपना कर भगवा ब्रिगेड को चुनौती दे रहे हैं कि चढ़ावा जमा करने में वे भी इस झंडे का उपयोग कर सकते हैं और हिंदुओं से भी चढ़ावा पा सकते हैं. अपनी रोजीरोटी पर आती आंच से बेचैन चढ़ावा बिग्रेड के कारण यह दंगा हुआ है.

भगवा राजनीति अब एक नया मोड़ ले रही है क्योंकि शासन कला में यह सरकार अब तक कोई तीर नहीं भेद सकी. वादों, पोस्टरों और अंगरेजी के अखबारों के बड़े विज्ञापनों को छोड़ दें तो देश की आर्थिक स्थिति पिछले साढ़े 3 वर्षों में कोई विशेष नहीं सुधरी. गुजरात चुनाव में विकास, अच्छे दिन, भ्रष्टाचार मुक्त शासन आदि बातों को छोड़ कर पाकिस्तान, नीच, जनेऊ की राजनीति का सहारा ले कर, रोधो कर जो भाजपा सरकार बनी है वह भगवा ब्रिगेड के लिए एक चुनौती है. जहां 160-165 सीटों का दावा था वहां 99 पर सिमटी भाजपा ने भगवा ब्रिगेड को चिंता में डाल दिया है.

‘पद्मावती’ फिल्म पर उठाए गए विवाद को लोगों ने टिकट खिड़की पर नकार दिया है. अगर यह राजपूत यानी हिंदूविरोधी फिल्म होती तो औंधेमुंह जा गिरती. ऐसे में तिरंगे के सहारे रणनीति बनाई जा रही है और सभी हिंदू धार्मिक संस्थाओं को तिरंगा अपनाने की सलाह दी जा रही है ताकि उसे हिंदू भारत का प्रतीक घोषित किया जा सके. यह सत्ता में बने रहने की वैसी ही कुत्सित चेष्टा है  जैसी मलिक मोहम्मद जायसी के काव्यग्रंथ में राघव चेतन ने की थी जिस ने अलाउद्दीन खिलजी को उकसाया था.

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अर्थहीन आम बजट : हमेशा की तरह फीका है यह बजट

यह कहना बिलकुल गलत होगा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली का 1 फरवरी, 2018 का बजट 2019 में होने वाले आम चुनावों की दृष्टि से बनाया गया है. पिछले 3 सालों की तरह यह बजट भी अधकचरा अफसरशाही के हाथ मजबूत करने वाला और देश की भूखी, मूढ़, मूर्ख व मेहनतकश जनता को लूटने का सरकारी फरमान है और कहीं से सुशासन, स्वच्छ भारत, भ्रष्टाचाररहित, स्पष्ट कर नीति का दर्शन नहीं देता. आज देश का गरीब महंगाई, जीएसटी और नोटबंदी की मार तो सह ही रहा है, वह मंदी, बढ़ते कर्ज, बढ़ते सरकारी दखल, नौकरियों की कमी, व्यापार के घटते अवसरों आदि से भी परेशान है. वेतनभोगी वर्ग भी परेशान है क्योंकि शिक्षा व स्वास्थ्य का खर्च बेइंतहा बढ़ रहा है जबकि सरकारी कर्मचारियों, सांसदों, जजों, राष्ट्रपति के अतिरिक्त किसी की आय नहीं बढ़ रही है.

बजट में ऐसा कुछ नहीं है जो नई दृष्टि दे. यह बजट हमेशा की तरह फीका है, चाहे इस काम को टीवी चैनल महान, चुनावी घोषणा आदि का नाम दे कर सनसनी फैलाते रहें या समाचारपत्र अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति साफगोई से बचते हुए उन्हें अनूठे अर्थशास्त्री, विचारक, भविष्योन्मुखी सिद्ध करने में लगे रहें. सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह देश को ऐसा बजट दे जिस से आम जनता से बंदूक की नोंक से वसूले गए पैसे जनता के काम आएं, सरकारी मालिकों, शासकों और धन्ना सेठों के ही काम नहीं. पूरे बजट में कहीं ऐसा कुछ नहीं है कि बड़े व्यापारियों, जो बैकों के पैसों से निजी हवाई जहाज खरीदते हैं, पर कोई अंकुश लगा है. कोई ऐसा सुझाव नहीं है जिस में सड़ते आलू के कारण कराहते किसान पर मरहम लगाया गया हो.

सरकार अपने काम में कहीं कार्यकुशलता नहीं ला रही है. सरकार को तो केवल कर देने वालों का दायरा बढ़ाने की लगी है, करों का लाभ पाने वालों का दायरा बढ़ाने की चिंता नहीं. बजट में जो मैडिकल इंश्योरैंस की बात कही गई है वह सूखे में यज्ञ में पानीअन्न डालने जैसा है क्योंकि उस के प्रबंध में ही हजारोंकरोड़ लगेंगे पर लाभ न होगा, क्योंकि अस्पताल हैं ही कहां जहां मैडिकल इंश्योरैंस का लाभ उठाया जा सके, दवाइयां हैं ही कहां जो इंश्योरैंसधारकों को दी जा सकें. यह सरकार सामाजिक विघटन कर रही है और आर्थिक उथलपुथल मचा कर अपने को शिव के तीसरे नेत्र संहारक का रूप मान रही है व देश को 60 साल तक कांग्रेस सरकार को चुनने के पाप का दंड दे रही है. इस की प्रशासनिक व आर्थिक नीतियों से लाभ किसी को नहीं होगा, सिर्फ हानि होगी. यह बजट गायों के उस झुंड की तरह है जो मंडी में सब्जियों को आराम से खाती हैं और अब इन्हें पता है कि जो कोई डंडा मारेगा, जला कर राख कर दिया जाएगा.

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सफर

नजरभर देख लूं पलकों में महफूज आंखें तेरी
बेसब्र इंतजार में चाहत के अरमान लाया हूं

जब्त मेरे भी हैं कुछ इरादे जबां के दरमियां
बड़ी मुश्किल से ये साजोसामान लाया हूं

खिलखिलाहट बचा के रखी जमाने से मैं ने
तेरे लिए कर्फ्यू में खुली जैसी दुकान लाया हूं

कर न सका कभी वफा खुद से मैं तेरे वास्ते
खुदगर्ज हूं थोड़ी नीयत बेईमान लाया हूं

आ जरा इधर दूं अपने हिस्से का प्यार तुझे
हसरतों में लिपटा खुशहाल मकान लाया हूं

कुबूल कर जैसा हूं, जिस हाल में हूं अब
आज तेरे लिए सीधा दिल से सलाम लाया हूं.

– राम कुमार वर्मा

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आइए आधार लिंक कराएं : जीवन और मोक्ष के बीच की चाभी

बिहार के गया तीर्थ में पिंडदान करने से पितर स्वर्गलोक का टिकट पा जाते हैं तो आधार कार्ड द्वारा व्यक्ति को मृत्युलोक की सुखसुविधाओं का लाभ मिल जाता है. पंडित हमारी जन्मकुंडली बनाता है और सरकार आधारकुंडली को लिंक करा कर आम आदमी के कर्मों का लेखाजोखा रखने लगी है. हम जब भी दुनियादारी से परेशान होते हैं, तो हमें भगवान की याद आती है और मठमंदिरों में बैठे पंडेपुजारी हम से चढ़ोतरी ले कर भगवान से हमारी सिफारिश कर देते हैं. ठीक वैसे ही, जब हमें सरकारी लाभ लेना होता है तो आधार कार्ड को सेवा शुल्क दे कर लिंक कराना पड़ता है. यदि आप का आधार कार्ड लिंक नहीं है, तो इस का मतलब है आप की नीयत में खोट है. सरकार की नजरों में आप चोर हैं.

सरकार चाहती है कि देश के विकास में अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का योगदान हो. तभी तो सब्जी वाला, दूध वाला, कपड़ों की धुलाई करने वाला, चाय वाला, रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरी करने वाला आम आदमी सरकार की मंशा पूरी करने के लिए आधार कार्ड को लिंक कराने में लगा है. सरकार ने भी योजनाओं का पिटारा खोल रखा है. कन्यादान योजना में मुफ्त शादी कराओ, बच्चे पैदा करने के लिए जननी सुरक्षा योजना और बंद करने के लिए नसबंदी योजना तो है ही. शिक्षकों का वेतन बढ़ाने पर भले ही सरकार पर आर्थिक संकट आ जाता हो परंतु देश के नौनिहालों को आंगनवाड़ी और स्कूलों में मध्याह्न भोजन, पुस्तकें, स्कौलरशिप, साइकिल सबकुछ बांटा जा रहा है. बूढ़ों को वृद्धापैंशन मिलती है, एक रुपए किलो गेहूंचावल मिलता है. इस के बावजूद गरीबी दूर नहीं हो रही, तो करमजले गरीब का ही दोष है.

नोटबंदी की अप्रत्याशित घटना से आम आदमी यह तो समझने लगा है कि सरकार कभी भी, कुछ भी कर सकती है. बगैर आधार शादीविवाह पर बैन लगा दे, हो सकता है आधार कार्ड लिंक न कराने वालों को राष्ट्रद्रोह के इलजाम में जेल में ठूंस दे. आधार से किसी का भला हो न हो, आधार बनाने वाली कंपनी की पांचों उंगलियां जरूर घी में हैं. कहते हैं आदमी इतना बुरा भी नहीं होता जितना वोटर लिस्ट में दिखता है. वह इतना अच्छा भी नहीं होता जितना आधार कार्ड में दिखता है. आज के दौर में आदमी की पहचान उस के रंग, रूप, कद, काठी, पद, प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि नामपते वाले 12 अंकों के यूनिक नंबर वाले आधार कार्ड से हो रही है.

यदि आप देश के आम आदमी हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि आप का आधार कार्ड अभी कई जगह लिंक नहीं है. आधार कार्ड को बैंक खाते, रसोईगैस, मोबाइल नंबर, बीमा पौलिसी व पैन कार्ड से लिंक कराने की जिम्मेदारी आप के मजबूत कंधों पर है. आधार कार्ड लिंक हुए बिना आप को सरकारी सुविधाएं नहीं मिल सकतीं. शायद तुलसीदासजी इसलिए बहुत पहले कह गए थे कि ‘कलियुग केवल नाम आधार’ अर्थात कलियुग में केवल आधार कार्ड का ही नाम होगा. आधार कार्ड जादू की वह पुडि़या है जो जब तक हर जगह अलगअलग लिंक नहीं होगा, सरकार का मिशन पूरा नहीं होगा. मेहनतमजदूरी करने वाला लच्छू अभी भी इसी भ्रम में है कि आधार लिंक होने से देश का कालाधन वापस आ जाएगा, सीमा पर पाक की नापाक हरकतों पर विराम लगेगा और हमारा देश फिर से सोने की चिडि़या बन जाएगा. इसलिए आम आदमी सब कामधाम छोड़ कर अपने आधार कार्ड को लिंक कराने पर डटा हुआ है.

अपना तो मानना है कि सरकार लगेहाथ आधार कार्ड को ससुराल से भी लिंक कराने का फरमान जारी कर दे, क्योंकि ससुर टाइप के लोग सब्सिडी के नाम पर दामाद को सुखसुविधाएं दिला कर कहीं अपनी आमदनी को छिपा कर आयकर बचाने का उपक्रम तो नहीं कर रहे हैं. दामादों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि बगैर आधार कार्ड के मिलने वाली ससुराली खैरात बंद हो गई तो उन के तो लेने के देने पड़ जाएंगे.

विपक्षी पार्टियों का काम तो विरोध करना है, तो करती रहें. उन्हें रोकता कौन है? सरकार तो आखिर सरकार है. उसे किस का डर? वह कब, कौन से नोट की शक्ल बदल दे, कहा नहीं जा सकता. लोग तो कहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्रीजी को सूट का जो रंग पसंद आता है, वे नोटों को भी उसी रंग में देखना चाहते हैं. आधार लिंक कराने के बहाने सरकार ने देश के नागरिकों की कुंडली बना ली है, वह कभी भी, किसी की पोल खोल सकती है. कालेधन वाले सफेदपोशों को डर दिखा कर चुप रहना सिखा दिया है सरकार ने. तभी तो चारों ओर नमोनमो की धूम मची है. यह अलग बात है कि विजय माल्या जैसे लोग देश को लूट कर सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं. जो पार्टी कभी आधार कार्ड के विरोध में अपने झंडे गाड़ती थी, अब सरकार में आते ही उस के गुणगान करती नहीं थक रही.

हमारी सरकार की पिछले 4 साल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि भी यही है कि वह देश के सवा सौ करोड़ भाईबहनों के आधार कार्ड उन के बैंक खातों और रसोईगैस से लिंक करवाने पर तुली हुई है. अब बारी है गरीबों के पैन कार्ड बनवा कर आधार से लिंक कराने की. आयकर विभाग भले ही केवल आयकरदाताओं के पैन कार्ड से मतलब रखता हो, मगर सरकार को गरीबों की सब से ज्यादा चिंता है. सरकार का मानना है कि आखिर गरीब आदमी का भी अपना स्टेटस है. वह आधार सैंटरों के चक्कर काट कर 500 रुपए का गांधी छाप वाला हरा नोट खर्च कर के पैन कार्ड बनवाता है. फिर उसे अपने जनधन अकाउंट से लिंक करवाता है. उसे पता है चुनाव वाले अच्छे दिन फिर से आने वाले हैं. हो सकता है कि इसी खाते में सरकार नोटबंदी से वापस आए कालेधन में से कभी भी 15-15 लाख रुपए जमा करवा दे और गरीब आदमी गरीबी की रेखा को पार कर बल्लेबल्ले करने लगे.

इन 5 वर्षों में राममंदिर, अनुच्छेद 370, गंगा की सफाई, सीमापार की घुसपैठ जैसे मसलों को दरकिनार कर आधार कार्ड को लिंक कराने का अभियान चला कर सरकार ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह आम आदमी के विकास के बारे में गंभीरता से सोच रही है.

आम आदमी को भी अब यह भरोसा हो गया है कि उस ने अपना कीमती वोट इसीलिए दिया था कि उस की असल पहचान वाला बेशकीमती आधार कार्ड कश्मीर से कन्याकुमारी तक लिंक हो जाए. कुछ विघ्नसंतोषी यह कुतर्क देते फिर रहे हैं कि आधार कार्ड से उन की निजता के अधिकार का हनन होगा. अपना तो मानना है कि गीता के उपदेश को केवल सुनें ही नहीं, उसे जीवन में भी उतारें, क्योंकि गीता में कहा गया है कि हम क्या ले कर आए थे, क्या ले कर जाएंगे, जो हमारा नहीं है उस के लिए क्यों व्यर्थ शोक करें. आज भले ही हम साक्षर होने का दम भर लें मगर आधार कार्ड बनवाने में लगा अंगूठा अब हमारी पहचान बन चुका है. अब हम अंगूठा लगाने में कोई शर्मसंकोच नहीं, बल्कि अपनी शान में इजाफा समझ रहे हैं. बैंक एटीएम, राशन दुकान, मोबाइल नंबर आदिआदि में लगा हमारा अंगूठा इस बात का साक्षी है. आधार कार्ड को और कहांकहां लिंक कराया जा सकता है, सरकार इस पर लगातार मंथन कर रही है. सरकारी नौकरचाकरों के आधार कार्ड सेलरी से, व्यापारियों के बहीखातों से लिंक होने की खबर सोलह आने सही है.

नशामुक्ति अभियान चलाने वाले एक भाईसाहब का सुझाव है कि सरकार शराब की दुकानों पर भी आधार कार्ड लिंक कराना अनिवार्य कर दे. सरकार एक बार अंगूठा लगाने पर अद्धापौआ का हिसाब निर्धारित कर शराबखोरी को नियंत्रित कर सकती है. इस प्रक्रिया से शराब पीने वालों के आंकड़े भी अगली जनगणना में सार्वजनिक हो जाएंगे. सरकार आसानी से इस तिलिस्म का राज भी जान सकती है कि गरीबीरेखा से नीचे जीवनयापन करने व राशन दुकानों से मुफ्त राशन लेने वाले महीने में अपनी आमदनी से ज्यादा की शराब कैसे गटक जाते हैं. नोटबंदी में अपने नोट बदलने के लिए कईकई दिनों तक लाइन में लगा रहने वाला आम आदमी यह सोच कर खुश है कि देश में किसी भी नेता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे जनसेवा का धर्म छोड़ कर बैंक की लंबी लाइन में लग कर अपना समय खराब करते और न ही हमारे नेताओं के इतने खर्चे हैं कि उन्हें अपनी घरगृहस्थी चलाने के लिए बैंक के किसी एटीएम की लाइन में लग कर पैसा निकालना पड़े.

सरकार आम आदमी की नब्ज टटोल चुकी है. उसे पता है कि आम आदमी जब तक लाइन में खड़ा नहीं रहता उस का हाजमा खराब रहता है. इसीलिए सरकार समयसमय पर जनहित वाले ऐसे कामों को अंजाम देती रहती है. सरकारको मतदाताओं की बहुत फिक्र रहती है. यही कारण है कि अब तक उस ने वोटर लिस्ट को आधार कार्ड से लिंक करने की तरफ ध्यान नहीं दिया है. सरकार को पता है कि आधार कार्ड यदि वोटर लिस्ट से लिंक हो गया तो असलीनकली के नाम पर मतदाता के स्वाभिमान को चोट पहुंच सकती है और देश का प्रजातंत्र दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है. प्रजातंत्र की सलामती के लिए यह कदम ठीक नहीं है.

धन्य है हमारा देश और धन्य है हमारी जनता जो बड़ेबड़े संकटों में भी मुसकराती है. चुनावी सभाओं और कुकरमुत्तों की तरह उग आए टैलीविजन चैनलों पर नेताओं के लच्छेदार भाषणों व जुमलों को सुन कर जनता ताली पीटती है. उसे भलीभांति पता है कि उस के हर मर्ज की दवा इन्हीं नेताओं के पास है. तभी तो नेताओं के भाषण और नारों को सुन कर आम आदमी की भूख गायब हो जाती है. आइए, हम भी सरकार के इस नेक काम में सहभागी बनें और अपनेअपने आधार कार्ड को जहांजहां लिंक नहीं है, लिंक कराएं क्योंकि आधार ही हमारी असली पहचान है. क्या पता आगे चल कर बिन आधार कार्ड हम कब, कौन सी सरकारी खैरात से वंचित रह जाएं.

VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…

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अय्यारी : महज सिर दर्द है नीरज पांडे की ये फिल्म

2010 में मुंबई के कोलाबा इलाके में सैनिकों की विधवाओं के लिए बनायी गयी 31 मंजिला इमारत ‘‘आदर्श हाउसिंग सोसायटी’’ का घोटाला सामने आया था और तब महाराष्ट्र राज्य के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक चौहाण को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. उसी चर्चित ‘आदर्श सोसायटी घोटाले’ पर आधारित नीरज पांडे की फिल्म ‘‘अय्यारी’’ महज एक सिर दर्द है. फिल्म के कुछ संवादों से यह बात उजागर होती है कि यह फिल्म महज वर्तमान सरकार के एजेंडे पर बनायी गयी है. जब भी फिल्मकार सरकारी एजेंडे पर काम करता है, तो वह फिल्म को बर्बाद ही करता है. कम से कम ‘वेडनेस डे’, ‘बेबी’, ‘स्पेशल छब्बीस’ जैसी फिल्मों के फिल्मकार से तो यह उम्मीद नहीं थी.

फिल्म की कहानी के केंद्र में भारतीय सेना के दो अफसर कर्नल अभय सिंह (मनोज बाजपेयी) और मेजर जय बख्शी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) हैं. जय अपने वरिष्ठ अधिकारी  कर्नल अभय सिंह की काफी इज्जत करता है और उसका मानना है कि उसने उनसे बहुत कुछ सीखा है. सेना के सर्वोच्च अफसर यानी कि जनरल प्रताप मलिक (विक्रम गोखले) ने देश की सुरक्षा और देश के तमाम विरोधियों को खत्म करने के लिए सरकार से इजाजत लेकर सात सदस्यीय एक नई यूनिट का गठन करते हैं, जिसके मुखिया हैं कर्नल अभय सिंह. इसी यूनिट का हिस्सा हैं मेजर जय बख्शी और माया (पूजा चोपड़ा).

जनरल प्रताप मलिक ने इस यूनिट के लिए बीस करोड़ रूपए भी मुहैय्या किए हैं. कर्नल अभय सिंह के कहने पर मेजर जय बख्शी एक ऐसे हैकर की खोज करते हुए सोनिया गुप्ता (रकुल प्रीत सिंह) तक पहुंचते हैं, जो कि इंटरनेट और कंप्यूटर व लैपटाप को हैक कर सारी जानकारी हासिल कर सके. सोनिया से हैकिंग सीखते सीखते दोनो एक दूसरे के प्यार में बंध जाते हैं. जय बख्शी, सोनिया से उद्योगपति अभिमन्यू बनकर मिलते हैं, सब कुछ सीखने व प्यार में पड़ने के बाद अंततः सोनिया को पता चलता है कि वह आर्मीमैन हैं. तब जय उसे समझाता है कि उसे नाम बदलकर क्यों मिलना पड़ा. अब जय के हर काम में साथ देने के लिए मौजूद हैं सोनिया.

कर्नल अभय सिंह के कहने पर जय चार लोगों के फोन को सर्विलेंस पर डाल कर उनकी बातचीत सुनना शुरू करते हैं. पर ऐसा करते हुए उसे कुछ ऐसी जानकारी मिलती है कि वह चार की संख्या बढ़ाकर 22 कर देता है. जबकि अभय सिंह कायरो, इजिप्ट में किसी को पकड़ने गया हुआ है. जबकि भारत में रहते हुए जय के दिमाग में नया फितूर आता है और वह एक नयी योजना बनाता है. जिसके तहत वह मुंबई के कोलाबा में छह मंजिल की बजाय 31 मंजिला बनी इमारत के वाचमैन बाबूराव (नसिरूद्दीन शाह) को गुप्त तरीके से दिल्ली के एक लौज में ठहरा देता है. और सारी रिकौर्डिंग लेकर वह सोनिया के साथ लंदन जाने की तैयारी में है. इधर कर्नल अभय सिंह अपने काम को अंजाम देकर भारत वापस लौट रहे हैं.

तभी रिटायर्ड लेफ्टीनेंट जनरल गुंरिंदर सिंह (कुमुद मिश्रा), जनरल प्रताप मलिक से मिलते हैं. और उन पर लंदन में रह रहे पूर्व भारतीय सैनिक और वर्तमान में पूरे विश्व के मशहूर हथियार विक्रेता मुकेश कपूर (आदिल हुसेन) की कंपनी के हथियारों को चार गुना ज्यादा दामों में खरीदने के लिए दबाव डालते हैं. इसके एवज में वह सैनिकों की विधवाओं के लिए ढाई मिलियन डालर की रकम देने की पेशकश करते हैं. जब प्रताप मलिक कहते हैं कि वह नही बिकेंगे, तो गुंरिंदर सिंह धमकी देते हैं कि वह उनकी चोरी छिपे बनायी गयी यूनिट के सात सदस्यों की जानकारी ना सिर्फ पूरे देश के सामने रख देंगे, बल्कि वह यह भी साबित कर देंगे कि उन्होंने बीस करोड़ रूपए गलत तरीके से खर्च किए हैं.

वास्तव में गुरिंदर सिंह सेना का जनरल अपने पसंदीदा आर्मीमैन को बनवाना चाहते हैं. गुरिंदर सिंह के साथ एक न्यूज चैनल की मालिक काम्या भी जुड़ी हुई हैं. पता चलता है कि जय बख्शी ने दस करोड़ के एवज में गुरिंदर को सारी जानकारी देने का सौदा किया है. जनरल मलिक देश के रक्षा मंत्री से मिलकर सारी बात बताते हैं. रक्षा मंत्री कहते हैं कि इस मसले को खुद ही संभाले .

कर्नल अभय सिंह के भारत पहुंचने से पहले ही जय बख्शी तमाम रिकार्डिंग व रिकार्डस लेकर गायब हो जाता है. उधर जनरल प्रताप मलिक अपने घर पर कर्नल अभय को बुलाकर घटनाक्रम पर बात करते हैं. और उसे आदेश देते हैं कि देश की सुरक्षा पर आंच नही आनी चाहिए व देश को बेचने वाले कामयाब नहीं होने चाहिए. पर वह उसकी यूनिट को पहचानने से इंकार करने की बात भी कहते हैं. अब अभय, जय की तलाश में लग जाता है. जय एक व्हील चेअर पर बैठी औरत का रूप धर कर उसी फ्लाइट से लंदन रवाना होता है, जिसमें अभय सिंह है. अब अभय सिंह, जय बख्शी और सोनिया तीनों लंदन पहुंच जाते हैं.

लंदन में तारिक अली (अनुपम खेर) की मदद से अभय एक चाल चलकर मुकेश कपूर (आदिल हुसेन) से भी मिलता हैं. मुकेश कपूर के सामने एक प्रस्ताव रखकर जय व सोनिया को खत्म करने की बात करता है. फिर अभय सिंह, मुकेश के आदमियों से जय को बचाते हुए जय व सोनिया से मिलते हैं.

जय, अभय सिंह से कहता है कि वह गद्दार नही हैं. वह बताता है कि देश के बड़े राजनेता, नौकरशाह सहित तमाम लोग किस तरह देश को बेच रहे हैं. और वह ऐसे लोगों के खिलाफ काम कर रहा है. जय के ही कहने पर कर्नल अभय सिंह दिल्ली आकर भालेराव से मिलता है. फिर काम्या के माध्यम भालेराव द्वारा बयान की गयी ‘आदर्श घोटाले’ की कहानी को न्यूज चैनल पर प्रसारित करवाता है. हड़कंप मचता है. गुरिंदर सिंह आत्महत्या कर लेते हैं. अंत में मेजर जय बख्शी, कर्नल अभय सिंह से मिलने आते हैं.

2 घंटे 40 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘अय्यारी’’ की पटकथा में तमाम खामियों के चलते पूरी फिल्म सिरदर्द बनकर रह जाती है. फिल्म को बेवजह लंबी बनाया गया है. कहानी को सीधी सरल भाषा में बयां करने की बजाय बहुत घुमाफिरा कर बयां किया गया है. सिद्धार्थ मल्होत्रा व रकुल प्रीत की प्रेम कहानी को फ्लैश बैक में जिस तरह से दिखाया गया है, वह और अधिक बोर करती है. जबकि इसकी जरुरत ही नहीं थी. फिल्म में रोमांच कुछ है ही नहीं. निर्देशक के तौर पर नीरज पांडे अपनी प्रतिभा को खत्म कर चुके हैं. नीरज पांडे अपनी पिछली कई फिल्मों में जो कुछ नाटकीयता व जिस तरह के दृश्यों का संयोजन करते रहे हैं, उसे ही इस फिल्म में भी दोहराया है. फिल्म के शुरू होने के आधे घंटे बाद ही नीरज पांडे की फिल्म पर से पकड़़ छूट जाती है. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता.

फिल्म का नाम अय्यारी है. इसे जायज ठहराने के लिए जबरन फिल्म में एक घटनाक्रम को फ्लैशबैक में दिखाया गया है. और कहा गया है कि कर्नल अभय सिंह अय्यारी यानी कि रूप बदलने में माहिर हैं, मगर मूल कहानी के दौरान वह कभी अपने इस रूप में नजर नहीं आते.

जय बख्शी के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा कहीं से भी नहीं जमते हैं. माया के किरदार में पूजा चोपड़ा को जाया किया गया है. सोनिया के किरदार में रकुल प्रीत सिंह महज एक ग्लैमरस गुड़िया के अलावा कुछ नजर नहीं आती. मनोज बाजपेयी, आदिल हुसैन, विक्रम गोखले, राजेश तैंलंग ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

फिल्म को अति खूबसूरत लोकेशनों पर फिल्माया गया है. दृश्यों को नयन सुख योग्य बनाने के लिए कैमरामैन सुधीर पलसाने बधाई के पात्र हैं.

2 घंटे 40 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘अय्यारी’’ का निर्माण शीतल भाटिया, धवल गाला, जयंतीलाल गाला, करण शाह ने मोशन पिक्चर्स कैपिटल के साथ मिलकर किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक नीरज पांडे, संगीतकार रोचक कोहली व अंकित तिवारी, कैमरामैन सुधीर पलसाने तथा फिल्म के कलाकार हैं-मनोज बाजपेयी, सिद्धार्थ मल्होत्रा, विक्रम गोखले, पूजा चोपड़ा, रकुल प्रीत सिह, आदिल हुसैन, राजेश तैलंग व अन्य.

बीस दिन तक पूरे देश का खर्च उठाने में सक्षम हैं मुकेश अंबानी

मुकेश अंबानी देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर किसी दिन मुकेश अंबानी को देश की सरकार का खर्च उठाने का मौका दिया जाए, तो वह कितने दिन तक खर्च उठा पाएंगे? तो जवाब है 20 दिन तक. यह जवाब दिया है 2018 के रौबिनहुड इंडेक्स ने. इस इंडेक्स में दुनियाभर के देशों के अमीरों की दौलत और उनके देश के एक दिन का खर्च निकालकर ये देखा गया है कि आखिर वे कितने दिनों तक अपने देश का खर्च उठा पाएंगे.

रिपोर्ट में 49 देशों का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट में दुनिया के उन रईसों की लिस्ट बनाई गई है, जो अपनी संपत्ति लगाकर सबसे ज्यादा दिन तक देशों को चला सकते हैं. इस लिस्ट को ‘2018 रौबिनहुड इंडेक्स’ का नाम दिया गया है. रिपोर्ट में शामिल देशों की जीडीपी और रोज का खर्च कितना है, यह बताया गया है. साथ ही, यह भी बताया गया है कि कौन-सा अरबपति इन देशों को कितने दिन तक अपने पैसे से चला सकता है. लिस्ट में 2017 तक अरबपतियों की कुल संपत्ति के हिसाब से अनुमान लगया गया है. 49 में 4 देश अंगोला, औस्ट्रेलिया, चिली और नीदरलैंड्स का खर्च उठाने में महिला अरबपतियों के नाम सामने आया हैं.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर इन देशों की सरकारें अचानक से कंगाल हो जाएं और देश को चलाने के लिए सबसे रईस लोग अपनी संपत्ति दान में दे दें तो सरकारी दफ्तर और एजेंसियां कितने दिन चलाई जा सकेंगी. देशों के खर्च का अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के मुताबिक लगाया गया है.

इस रिपोर्ट में सामने आया है कि साइप्रस के सबसे अमीर शख्स जौन फ्रेडरिस्कन अपने पैसे से अपनी सरकार को सबसे ज्यादा 441 दिनों तक चला सकते हैं. इसकी वजह है कम आबादी और 2018 के लिए देश का खर्च का अनुमान 23.6 मिलियन डालर होना. फ्रेडरिस्कन की कुल संपत्ति 10 बिलियन डालर बताई गई है.

तुलनात्मक तरीके से सबसे महंगी सरकारें जापान, पोलैंड, अमेरिका और चीन की बताई गई हैं. चीन के जैक मा 47.8 बिलियन की संपत्ति के साथ दुनिया के 16वें सबसे अमीर शख्स बताए गए हैं जो कम्युनिस्ट पार्टी का दाना-पानी 4 दिन के लिए चला सकते हैं.

अमेरिका के अरबपति और ई-कौमर्स कंपनी अमेजन के सीईओ जेफ बेजोस अपनी 99 बिलियन डालर की संपत्ति से अमेरिकी सरकार को 5 दिन ही चला सकेंगे.

इंडेक्स के मुताबिक दिसंबर 2017 तक मुकेश अंबानी की संपति 40.3 अरब डालर थी. वहीं, भारत के एक दिन के खर्च की बात करें, तो यह 1.98 अरब डालर प्रति दिन आता है. ऐसे में मुकेश अंबानी पूरे 20 दिन तक सरकार का खर्च उठा सकते हैं. इस मामले में मुकेश अंबानी ने चीन और अमेरिका के अमीरों को भी पीछे छोड़ दिया है.

फ्रिडरिकसेन के पास जहां 10.4 अरब डालर की संपति है. वहीं, उनके देश के रोज का खर्च 2.36 करोड़ डालर है. इसी तरह जौर्जिया के सबसे अमीर शख्स बिजीजना इविन्स्सिली अपने देश का खर्च 430 दिनों तक उठा सकते हैं.

रौबिन हुड इंडेक्स क्या है?

रौबिन हुड इंडेक्स आर्थ‍िक आंकड़ों में असमानता दूर करने के लिए अपनाया जाने वाला तरीका है. इसकी बदौलत ही ब्लूमबर्ग ने 49 से भी ज्यादा देशों के अमीरों की संपति और सरकारों के खर्च के आधार पर रौबिन हुड इंडेक्स, 2018 तैयार किया है.

आपके होश उड़ा देगा ‘परी’ का यह ट्रेलर

अनुष्का शर्मा की आने वाली हौरर थ्रिलर फिल्म ‘परी’ के ट्रेलर ने दर्शकों के होश फाख्ता कर दिए हैं. ‘परी’ का ट्रेलर आ चुका है, इसकी हर बात डरावनी है. पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी हिंदी हौरर फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद फिल्म में हौलीवुड हौरर फिल्मों की तरह‍ फिल्म का ट्रीटमेंट नजर आ रहा है.

जिस अंदाज में ट्रेलर में चीजों को पोट्रेट किया गया है वो दिमाग में कई सवाल खड़ा करता है, जैसे- फिल्म में अनुष्का डबल किरदार में है? सस्पेंस क्या है? कौन है जिसका साया अनुष्का पर नजर आता है और कौन है जो ये सब कर रहा है? इस बात का जवाब जानने के लिए दर्शकों को होली तक का इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि फिल्म के डायरेक्टर प्रोसित रॉय ने फिल्म की कहानी को लेकर कुछ भी खुलासा नहीं किया है.

अनुष्का की इस फिल्म के ट्रेलर को उनके पति विराट कोहली ने भी सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए अनुष्का के इस अवतार के बारे में लिखा, मैंने अपनी अनुष्का को पहले कभी ऐसे अवतार में नहीं देखा, मेरे होश पहले ही उड़ चुके हैं, इसे देखने के लिए और इंतजार नहीं कर सकता.’

अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस की ये तीसरी फिल्म है. फिल्म की लीड एक्ट्रेस के तौर पर नजर आ रही अनुष्का शर्मा को पहली बार डरावने लुक में देखना उनके फैन्स के लिए एक नया रोमांच है. ट्रेलर में अनुष्का की सहमी आवाज से लेकर बैकग्राउंड म्यूजिक तक हर चीज खौफ पैदा करती है. बिना किसी शैतानी चेहरा दिखाए ट्रेलर के बाकी चीजें दर्शकों को खौफजदा करने के लिए काफी हैं.

बता दें कि पहले यह फिल्‍म 9 फरवरी को रिलीज होने वाली थी. लेकिन ‘पद्मावत’ की वजह से आगे खिसकी ‘पैडमैन’ और ‘अय्यारी’ से भिड़ंत बचाने के लिए अनुष्‍का ने ‘परी’ की रिलीज डेट आगे बढ़ा दी. अब यह फिल्‍म 2 मार्च को रिलीज हो रही है.

अगले साल रिलीज होगी टाइगर श्रौफ की फिल्म “रैंबो”

बौलीवुड एक्टर टाइगर श्रौफ के पास इन दिनों फिल्मों की कोई कमी नहीं है. वह फिल्म स्टूडेंट औफ द ईयर, बाघी 2 और रैंबो में नजर आएंगे. टाइगर श्रौफ के फैन्स के लिए यह निसंदेह अच्छी खबर है.

हालांकि उनकी फिल्म ‘रैंबो’ का जो लोग इंतजार कर रहे थे उन्हें बता दें कि फिल्म अब 2018 में रिलीज नहीं होगी.

जी हां, खबर है कि सिद्धार्थ आनंद ने निर्देशन में बन रही फिल्म ‘रैंबो’ की रिलीज डेट आगे खिसका दी गई है और अब यह 2019 में रिलीज होगी. बता दें कि यह प्रोजेक्ट पिछले साल दिसंबर के आस-पास शुरू हुआ था और फिर 2018 में इसके रिलीज होने की बात सामने आई. फिल्म के पोस्टर में भी रिलीज डेट 2018 में बताई गई थी.

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लेकिन अब सुनने में यह आ रहा है कि टाइगर की इस साल कुछ फिल्में पहले से होने के चलते फिल्म की रिलीज डेट को और आगे शिफ्ट किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक टाइगर श्रौफ इस साल अपने कई अन्य प्रोजेक्टस को लेकर व्यस्त रहेंगे जिसके चलते वह सिद्धार्थ आनंद की फिल्म पर काम नहीं कर पाएंगे. बता दें कि रैंबो सिल्वेस्टर स्टैलिन की फिल्म की हिंदी रीमेक है. टाइगर की फिल्म ‘स्टूडेंट औफ द ईयर 2’ भी करण जौहर के निर्देशन में बन रहा एक बड़ा प्रोजेक्ट है.

इसके अलावा टाइगर श्रौफ की फिल्म बाघी-2 के कई पोस्टर्स भी सोशल मीडिया पर आ चुके हैं. फिल्म बाघी-2 में टाइगर काफी मस्कुलर अंदाज में नजर आने वाले हैं और शूटिंग सेट से उनकी कई तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर पहले ही आ चुकी हैं. फिल्म में टाइगर का लुक वाकई शानदार है और उन्होंने फिल्म के लिए अपना लुक काफी बदला है. फिल्म के टीजर और ट्रेलर वीडियो का हालांकि अब भी दर्शकों को इंतजार है.

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