यह कहना बिलकुल गलत होगा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली का 1 फरवरी, 2018 का बजट 2019 में होने वाले आम चुनावों की दृष्टि से बनाया गया है. पिछले 3 सालों की तरह यह बजट भी अधकचरा अफसरशाही के हाथ मजबूत करने वाला और देश की भूखी, मूढ़, मूर्ख व मेहनतकश जनता को लूटने का सरकारी फरमान है और कहीं से सुशासन, स्वच्छ भारत, भ्रष्टाचाररहित, स्पष्ट कर नीति का दर्शन नहीं देता. आज देश का गरीब महंगाई, जीएसटी और नोटबंदी की मार तो सह ही रहा है, वह मंदी, बढ़ते कर्ज, बढ़ते सरकारी दखल, नौकरियों की कमी, व्यापार के घटते अवसरों आदि से भी परेशान है. वेतनभोगी वर्ग भी परेशान है क्योंकि शिक्षा व स्वास्थ्य का खर्च बेइंतहा बढ़ रहा है जबकि सरकारी कर्मचारियों, सांसदों, जजों, राष्ट्रपति के अतिरिक्त किसी की आय नहीं बढ़ रही है.
बजट में ऐसा कुछ नहीं है जो नई दृष्टि दे. यह बजट हमेशा की तरह फीका है, चाहे इस काम को टीवी चैनल महान, चुनावी घोषणा आदि का नाम दे कर सनसनी फैलाते रहें या समाचारपत्र अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति साफगोई से बचते हुए उन्हें अनूठे अर्थशास्त्री, विचारक, भविष्योन्मुखी सिद्ध करने में लगे रहें. सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह देश को ऐसा बजट दे जिस से आम जनता से बंदूक की नोंक से वसूले गए पैसे जनता के काम आएं, सरकारी मालिकों, शासकों और धन्ना सेठों के ही काम नहीं. पूरे बजट में कहीं ऐसा कुछ नहीं है कि बड़े व्यापारियों, जो बैकों के पैसों से निजी हवाई जहाज खरीदते हैं, पर कोई अंकुश लगा है. कोई ऐसा सुझाव नहीं है जिस में सड़ते आलू के कारण कराहते किसान पर मरहम लगाया गया हो.