उत्तर प्रदेश के कासगंज में तिरंगे को ले कर जो हिंदूमुसलिम दंगा हुआ उस की तैयारी काफी पहले से चल रही थी. भगवा ब्रिगेड ने काफी समय से भगवा झंडे को छोड़ कर तिरंगे को ही हिंदू धर्म के प्रतीक के रूप में अपना लिया है और बहुत से धार्मिक जुलूसों, तीर्थयात्राओं, कांवड़ यात्राओं, मंदिरों, मठों में पारंपरिक भगवे झंडे की जगह तिरंगा फहराया जाने लगा है.
भगवा झंडे के नीचे दलितों और पिछड़ों को एकत्र करना कठिन हो रहा था क्योंकि सदियों से भगवा झंडा केवल और केवल ब्राह्मण, पंडों, पुरोहितों की पहचान था. हिंदू राजा उसे इस्तेमाल करते थे पर केवल अपने राजपुरोहितों की इजाजत पर. तिकोने भगवे झंडे का उपयोग अब हर ऐरागैरा नया स्वामीबाबा करने लगा है, इसलिए हिंदू संगठनों ने तिरंगे को अपना लिया है और अब वे चाहते हैं कि गैरहिंदू तिरंगे को कम से कम इस्तेमाल करें. इसे पिछड़ी व दलित जातियां इस्तेमाल कर लें और वे नीले, हलके हरे, लाल झंडे छोड़ दें लेकिन मुसलमान गहरा हरा और काला झंडा ही इस्तेमाल करें ताकि उन्हें अपने देश में ही सदासदा के लिए पराया घोषित किया जा सके.
यह एक तरह से देश को जातियों और धर्मों में बांटे रखने का षड्यंत्र है. अब मूर्तियों की जगह झंडे के सहारे चढ़ावा पाने की इच्छा में धर्म के दुकानदार देश की जनता को धर्मभक्ति और राष्ट्रभक्ति को पर्यायवाची बना कर पूरा करने में लग गए हैं. देशभर में हर जाति से चढ़ावा वसूल करने का यह अद्भुत तरीका है.
कासगंज के विवाद का कारण था कि मुसलमान भगवा ब्रिगेड की इस साजिश को अब समझ गए हैं और वे तिरंगे को अपना कर भगवा ब्रिगेड को चुनौती दे रहे हैं कि चढ़ावा जमा करने में वे भी इस झंडे का उपयोग कर सकते हैं और हिंदुओं से भी चढ़ावा पा सकते हैं. अपनी रोजीरोटी पर आती आंच से बेचैन चढ़ावा बिग्रेड के कारण यह दंगा हुआ है.
भगवा राजनीति अब एक नया मोड़ ले रही है क्योंकि शासन कला में यह सरकार अब तक कोई तीर नहीं भेद सकी. वादों, पोस्टरों और अंगरेजी के अखबारों के बड़े विज्ञापनों को छोड़ दें तो देश की आर्थिक स्थिति पिछले साढ़े 3 वर्षों में कोई विशेष नहीं सुधरी. गुजरात चुनाव में विकास, अच्छे दिन, भ्रष्टाचार मुक्त शासन आदि बातों को छोड़ कर पाकिस्तान, नीच, जनेऊ की राजनीति का सहारा ले कर, रोधो कर जो भाजपा सरकार बनी है वह भगवा ब्रिगेड के लिए एक चुनौती है. जहां 160-165 सीटों का दावा था वहां 99 पर सिमटी भाजपा ने भगवा ब्रिगेड को चिंता में डाल दिया है.
‘पद्मावती’ फिल्म पर उठाए गए विवाद को लोगों ने टिकट खिड़की पर नकार दिया है. अगर यह राजपूत यानी हिंदूविरोधी फिल्म होती तो औंधेमुंह जा गिरती. ऐसे में तिरंगे के सहारे रणनीति बनाई जा रही है और सभी हिंदू धार्मिक संस्थाओं को तिरंगा अपनाने की सलाह दी जा रही है ताकि उसे हिंदू भारत का प्रतीक घोषित किया जा सके. यह सत्ता में बने रहने की वैसी ही कुत्सित चेष्टा है जैसी मलिक मोहम्मद जायसी के काव्यग्रंथ में राघव चेतन ने की थी जिस ने अलाउद्दीन खिलजी को उकसाया था.
VIDEO : अगर प्रमोशन देने के लिए बौस करे “सैक्स” की मांग तो…
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