गुना के कैंट इलाके के उस घर को शहर का हर बाशिंदा जानता था कि वह पूनम दुबे उर्फ पक्का का है. पूनम उर्फ पक्का अधेड़ावस्था में दाखिल होने के बाद भी निहायत खूबसूरत और सैक्सी महिला थी. वह सभ्य समाज की एक ऐसी महिला थी, जो किन्हीं वर्जनाओं में नहीं जीती थी, बल्कि अपनी शर्तों और मरजी से काम करते हुए खुद अपने उसूल गढ़ती थी.
एक मामूली खातेपीते अग्रवाल परिवार में जन्मी पूनम उर्फ पक्का के कदम जवानी की दहलीज पर रखते ही बहकने लगे थे. परिवार और सामाजिक संस्कारों की बेडि़यां उन्हें बांध नहीं पाईं. वह एक ऐसी बहती नदी की तरह थी, जिस का बहाव अपने साथ बहुत कुछ बहा ले जाता है. उसे अपनी खूबसूरती का अहसास अच्छी तरह था. जब भी वह शहर की गलियों और चौराहों से गुजरती, लोगों की निगाहें उस के हसीन और गठीले बदन से चिपक जाती थीं.
पूनम का रहने का अपना अलग स्टाइल था. कभी वह जींसटौप में नजर आती तो कभी सलवारसूट में और कभीकभार वह साड़ी भी पहन लेती थी. होठों पर गहरी सुर्ख लिपस्टिक उस का ट्रेड मार्क थी. इस हालत में वह दूसरी लड़कियों की तरह शरमातीझिझकती नहीं थी. शायद यही वजह थी कि हर कोई उसे हासिल कर लेना चाहता था, लेकिन 2-4 घंटे के लिए, हमेशा के लिए उस के साथ शादी के बंधन में बंधने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था.
पूनम एक बदनाम लड़की थी. बहुत कम उम्र में बगैर कोई तपजप किए उसे बाजार में प्रचलित यह ज्ञान मुफ्त में मिल गया था कि दुनिया नश्वर है और शरीर एक साधन, साध्य नहीं. लिहाजा अपने हुस्न का इस्तेमाल करने में उस ने कंजूसी नहीं बरती. इस का मतलब यह भी नहीं था कि उसे उस ने यूं ही हर किसी पर लुटा दिया. पूनम का शरीर सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए था, जिन की जेब में उस की कीमत देने लायक पैसा होता था.