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ऋतिक के बाद अब अनुष्का घूम रही हैं गली-गली

हाल ही में ऋतिक रोशन को जयपुर की गलियों में घूमते हुए देखा गया था. वे वहां साइकिल पर सवार होकर और घूम घूम कर पापड़ बेच रहे थे. अब कुछ इसी अंदाज में अनुष्का शर्मा को भी भोपाल की सड़को पर देखा गया है. हालांकि नई नवेली दुल्हन बनीं अनुष्का ऋतिक की तरह साइकिल पर सवार होकर पापड़ तो नहीं बेच रही हैं, लेकिन वह इन दिनों मध्य-प्रदेश की गली-गली घूम रही हैं.

दरअसल अनुष्का शर्मा और वरुण धवन अभिनीत नई फिल्म ‘सुई धागा’ की शूटिंग मध्य प्रदेश में चल रही है. इसी के तहत शूटिंग का अगला शेड्यूल भोपाल में रखा गया था. इसी वजह से शूटिंग के दौरान अनुष्का शर्मा भोपाल के हलालपुर बस स्टेण्ड पर सूती साड़ी पहने नजर आईं.

 

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यहां अनुष्का एकदम साधारण गुलाबी-सफेद साड़ी पहने थीं.फ्लोरल प्रिंट वाली साड़ी में वे परेशानी वाले एक्सप्रेशन लिए कुछ कदम चली,  जिसके बाद डायरेक्टर ने उनका शौट ओके कर दिया. वहीं बस स्टेण्ड के अलावा फिल्म के कुछ सीन्स निशातपुरा रेलवे हौस्पिटल के भी शूट किए गए हैं.

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अनुष्का और वरूण अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए काफी मेहनत भी कर रहे हैं. आपको बता दें कि इससे पहले वरुण को भोपाल की सड़को पर अनुष्का को उनकी साइकिल पर बैठाए हुए देखा गया था. वरूण ने 10 घण्टे साइकिल चलाई थी.  उनके सेट की कई तस्वीरें वायरल हो रही है. इन फोटो और वीडियो को उनके फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

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बता दें कि ‘सुई धागा’ में अनुष्का की जोड़ी पहली बार वरुण धवन के साथ जमेगी. इस फिल्म में अनुष्का ममता तो वरुण मौजी का किरदार निभाएंगे. ‘सुई धागा’ की पटकथा मनीष शर्मा ने लिखी है. ‘दम लगा के हइशा’ के निर्देशक शरत कटारिया ने इसे निर्देशित किया है. ‘सुई धागा – मेड इन इंडिया’ आत्मनिर्भरता की कहानी है, जो 27 सितंबर को रिलीज होगी.

हाथीखेदा मंदिर : यहां का प्रसाद औरतें नहीं खा सकतीं

झारखंड में जमशेदपुर के नजदीक बसे गांव लावाजोर में बना है हाथीखेदा मंदिर. वहां रोजाना हजारों की तादाद में लोग जाते हैं. उन की मन्नत पूरी हो या न हो, पर भेड़ की बलि वे जरूर देते हैं. पर यहां का प्रसाद औरतें नहीं खा सकतीं. चढ़ाया गया प्रसाद चाहे भेड़ का मांस हो या नारियल का, उन के प्रसाद खाने पर बैन है. औरतें पूजा करने के बाद मंदिर के बाहर बने ढेर सारे झोंपड़ेनुमा होटलों में जा कर अपना पेट भर सकती हैं.

हाथीखेदा मंदिर में हाथी की पूजा होती है. यह  मंदिर जिस जगह पर बना हुआ है उस के चारों ओर दलमा के ऊंचेऊंचे जंगल हैं. इसे दलमा पहाड़ भी कहते हैं.

यह भी झारखंड में सैलानियों के घूमनेफिरने की एक मशहूर जगह है. इस में अनेक जंगली जानवर रहते हैं. दलमा पहाड़ के ऊंचे घने जंगलों में हाथियों का खासतौर पर वास है. कभीकभी हाथियों के झुंड जंगलों से निकल कर बाहर चले आते हैं और गांवोंबस्तियों में घुस कर खूब तबाही मचाते हैं. वे घर तोड़ डालते हैं. लोगों को मार डालते हैं. खेतखलिहानों में उगाई गई धान की फसल को भी रौंद डालते हैं.

जंगलों में रहने वाले यहां के आदिवासी बहुत ही अंधविश्वासी होते हैं. वे हाथी को भगवान का प्रतीक मानते हैं. इसे देवता का प्रकोप मान कर बचने के लिए उन्होंने हाथी की मूर्ति रख कर उस की पूजा करना शुरू कर दिया था.

यह मंदिर एक ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है और यहां एक पंडित भी है. पूरे मंदिर में उस की चलती है. मंदिर की आमदनी से ही मंदिर से थोड़ा हट कर उस का परिवार एक महलनुमा हवेली में रहता है. मंदिर में पूजापाठ की जिम्मेदारी उस के ही घर के लोग संभालते हैं.

यहां रोजाना चढ़ावे के रूप में लोग प्रसाद के अलावा 11 रुपए से 11 सौ रुपए तक चढ़ाते हैं. जिस जगह हाथी की पूजा होती है उस के ठीक पीछे भेड़ की बलि दी जाती है.

बलि वाली जगह का मंजर देख कर जी मिचलाने लगता है. बलि देने के लिए जो भेड़ खरीदी जाती है उस की कीमत प्रति भेड़ तकरीबन एक हजार रुपए से 5-6 हजार रुपए तक हो सकती है. बलि देने से पहले 100 से 150 रुपए की परची कटानी पड़ती है. भेड़ की बलि चढ़ाने वाला उस परची को ले कर वधस्थल पर जाता है. वहां 2 आदमी रहते हैं. सामने ही वध करने वाला खूंटा गड़ा हुआ है.

देखते ही देखते एक आदमी बड़ी बेरहमी से भेड़ की पीठ के बालों को अपनी मुट्ठी से कस कर पकड़ कर उस का गला सीधे वध वाले खूंटे में फंसा देता है. इस के बाद एक आदमी, जिस ने बस धोती बांधी होती है, एक धारदार कटार से भेड़ का सिर धड़ से अलग कर देता है. भेड़ काटतेकाटते उस आदमी की सफेद धोती पूरी तरह से खून में सन जाती है.

बिना सिर की छटपटाती भेड़ की दोनों पिछली टांगें पकड़ कर एक आदमी फुरती से उसे जमीन पर फेंक देता है. भेड़ की बलि देने वाले शख्स को मरी हुई वह भेड़ सौंप दी जाती है. भेड़ की बलि देने का यह सिलसिला बिना रुके चलता रहता है.

कटी हुई भेड़ को प्रसाद के रूप में पका कर खाने के लिए लोग अपने साथ 2-4 दोस्तों को भी वहां ले जाते हैं. चूंकि औरतों को वह प्रसाद खाना नहीं होता है और न ही उसे घर ले जाना होता है, इसलिए वहीं मंदिर के बाहर भेड़ को काटनेछांटने वाले और पकाने वाले मौजूद रहते हैं. वे इस के लिए बाकायदा पैसा भी वसूलते हैं.

लोगों में अंधविश्वास का आलम यह है कि यहां आने वाले तथाकथित भक्त नारियल पर ‘जय हाथीखेदा बाबा’ के नाम से छपे लाल कपड़े को लपेट कर पेड़पौधों पर टांग देते हैं. यहां जितने भी पेड़पौधे हैं तकरीबन सभी की डालों और तनों पर ऐसे बेहिसाब नारियल बंधे देखे जा सकते हैं.

बताया जाता है कि जिस की मन्नत पूरी हो जाती है वह यहां आ कर पेड़ से बंधे नारियल को खोल देता है और हाथीखेदा बाबा की पूजा करता है. ऐसे कई लोग हैं जो किसी न किसी दुख से दुखी हो कर सुख की तलाश में यहां आ कर पेड़ों पर नारियल बांध जाते हैं. ज्यादातर लोग औलाद पाने की चाह में यहां आते हैं.

इसी तरह कुछ लोग अपनी हैसियत के हिसाब से पीतल से ले कर कांसे की छोटीबड़ी घंटियां भी मंदिर में चढ़ाते हैं. यहां की दीवारों पर बेहिसाब घंटियां रखी देखी जा सकती हैं.

कणकण में भगवान और चौरासी लाख देवीदेवताओं वाले इस देश में पता नहीं लोगों की अक्ल तब कहां चली जाती है, जब सामने ही कितने भूखेनंगे गरीब आदिवासी मर्दऔरत और बच्चे हाथ में कटोरा लिए भीख मांगते नजर आते हैं लेकिन कोई उन्हें खाना नहीं खिलाता है.

दान की कमाई से मंदिर को भव्य रूप दिया जा रहा है जबकि वहां से जूतेचप्पलों की चोरी होती रहती है.

खाने से बचा हुआ भेड़ का मांस होटल वाले बेचते भी हैं. यहां आजकल देशी महुआ की शराब से ले कर अंगरेजी शराब तक मिलती है. टाटा और इस इलाके के आसपास के शहरों से यहां ऐसे मनचले नौजवानों की टोलियां भी आती हैं जो खापी कर हुड़दंग मचाते हुए हाईवे पर तेज रफ्तार में मोटरसाइकिल चलाती हैं.

हजारों रुपए खर्च कर के यहां आने वाले अंधविश्वासियों की मन्नत पूरी होती भी है या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन हाथीखेदा मंदिर की कमाई अपनी ऊंचाइयों पर है.

मुन्नी और मिशन दो हजार उन्नी

जब से नई सरकार बनी है, तब से पूरे देश को परेशान करने वाली मुन्नी खुद परेशान हो चली है बेचारी. जिस मुन्नी को कभी पूरा शहर आंखें फाड़फाड़ कर देखा करता था, आज वही मुन्नी अपनी बैंक की पासबुक में हर बार ऐंट्री करवाने के बाद आंखें फाड़फाड़ कर देखती रहती है कि सरकार द्वारा ऐलान किए गए पैसे आए कि नहीं. पर बेचारी को हर बार निराशा का ही सामना करना पड़ता है.

कल यही मुन्नी मिली. चंडीगढ़ के 17 सी चौक पर भुट्टे भूनती हुई. बिखरे हुए बाल, पिचके हुए गाल. हाय रे, मुन्नी की क्या दशा कर दी सरकार ने.

परदे पर थिरकने वाली मुन्नी भुट्टे बेचती हुई. हाय रे, बुरे दिन न… अच्छे दिनों की पीठ पर चढ़ कर तुम कहां से आ गए? जाने कहां गए वो दिन, जो सरकार ने बताए थे. उन दिनों के बहाने मैं ने भी इस दिल को न जाने क्याक्या सब्जबाग दिखाए थे.

उस वक्त कभी पूरे देश पर राज करने वाली मुन्नी की बदहाली देख कर बेहद दुख हुआ. काश, मुन्नी के ये बुरे दिन मेरे हो जाते. अपना क्या, मैं तो आकाश से गिरा खजूर पर अटका बंदा हूं.

जिस देश में लोगों को अपनी उंगलियों के नाखूनों पर नचाने वाली मुन्नी को भुट्टे भून कर पेट भरना पड़े, लानत है उस देश के भरे पेटों पर.

माना, देश बदल रहा है. देश में बदलाव की बयार के साथ मुन्नी भी ऐसे बदल जाएगी, ऐसा तो सपने में भी न सोचा था.

मैं ने अधभुना भुट्टा लेने के बहाने उस से बात करने के इरादे से पूछा, ‘‘मुन्नी, और क्या हाल हैं?’’

‘‘क्या बताएं बाबू, जब से नई सरकार आई है, मत पूछो क्या हाल है,’’ उस ने तसले में गरमाते कोयलों पर रखा भुट्टा बदलते हुए कहा, तो जले दिल से एक बार फिर आह निकली.

‘‘क्यों, क्या हो गया हाल को? गौर से देखो तो जरा, हर किसी के पैर में सरकार ने कितनी उम्दा क्वालिटी की नाल ठोंक दी है. अब तो हर गधा आधारकार्ड में गधा होने के बाद भी घोड़े की तरह दौड़ने को मजबूर है,’’ मैं ने उस से बुद्धिजीवी होते हुए कहा, तो वह तनिक तनी. उसे लगा कि देश में और सब से डरने की जरूरत होती है, पर बुद्धिजीवी से डरने की कोई जरूरत नहीं होती. बातें करने के लिए बुद्धिजीवी सब से महफूज प्राणी है, क्योंकि उस के पास व्यावहारिक कुछ नहीं होता.

‘‘क्या है न बाबू, सोचा था कि सरकार बदलेगी, तो जनता की तकदीर बदले या न बदले, पर मुन्नी की तकदीर जरूर बदलेगी. नई सरकार किसी और की तकदीर में चार चांद लगाए या न लगाए, पर मुन्नी की तकदीर में चार चांद जरूर लगाएगी,’’ अचानक उसे लगा कि वह तो बुद्धिजीवी के साथ बेकार की बहस में पड़ गई है, ऐसे में मोटा वाला 20 रुपए का भुट्टा जल गया तो…?

मुन्नी ने मोटा वाला भुट्टा दूसरी ओर से भूनने के लिए पलटा और फिर हाथ बचाते हुए बोली, ‘‘क्या बताएं बाबू, बैंक की पासबुक में हर रोज 15 लाख की ऐंट्री देखतेदेखते आंखों का सूरमा तक बह गया है. 15 लाख तो दूर, अपने ही 5 सौ रुपए पासबुक के रखरखाव के बैंक वालों ने काट लिए. उस के बाद नोटबंदी ने रहीसही कमर भी तोड़ दी बाबू.

‘‘मत पूछो बाबू, मुंह पर घूंघट डाले कितने दिन अपने ही पैसों के लिए एटीएम के सामने सिर झुकाए खड़े रहना पड़ा कि कमर की सारी लचक जाती रही. पर फिर भी कमर की लोकलाज के लिए कमर पकड़े ही खड़ी रही कि शायद काला धन निकल आए और हमारे खाते में समा जाए, पर कुछ नहीं हुआ.’’

अभी नोटबंदी से मुन्नी उबरी भी नहीं थी कि सरकार ने जीएसटी लगा दिया. अब भुट्टे पर जीएसटी कौन देगा, तो कौन लेगा? ग्राहक भुट्टा खाएगा या जीएसटी चुकाएगा?

यह तो शुक्र मनाओ कि मुन्नी बाहर से जवान है. सो खराब पेट वाले अभी भी जीएसटी की परवाह किए बिना मुन्नी के आगे चौबीसों घंटे दर्द से पीडि़त कमर मटकाते हुए कच्चा भुट्टा खाने चले आते हैं. अगर मुन्नी बुढ़ा गई होती, तो…

‘‘तो सावधान मुन्नी, अब आ रहा है मिशन दो हजार उन्नी. उस के स्वागत के लिए तैयार हो जा.’’

‘‘नहीं बाबू, नहीं… अब मुन्नी बसंती की तरह और नहीं नाच सकती. जनता नाचे तो नाचे, मुन्नी अब पूरी तरह से टूट चुकी है. मुन्नी से नहीं संभाली जा रही अब अपनी ही चुन्नी. ऐसे में जयरामजी की मिशन दो हजार उन्नी.

‘‘यह क्या बाबू जला दिया न मेरा 20 रुपए का भुट्टा. सरकार झूठी, सरकार का हर वादा झूठा.’’

अच्छा काम लोग पसंद करते हैं : ललित शौकीन

अपने शौक को जीना ही जिंदगी है. यह बात ललित शौकीन से बेहतर कौन जान सकता है. दिल्ली देहात के गांव दिचाऊं कलां में पैदा हुए ललित शौकीन के पिता महावीर सिंह दिल्ली पुलिस में एएसआई और मां प्रेमलता हाउस वाइफ हैं.

छठी जमात तक नजफगढ़ के सरकारी स्कूल में पढ़े ललित शौकीन ने बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कालेज से फिजिक्स में ग्रेजुएशन की. उन्हें स्कौलरशिप मिली तो अमेरिका से पीएचडी करने का बुलावा आ गया. साल 2008 में वहां गए. फिर फुलटाइम साइंटिस्ट की नौकरी की.

लेकिन ललित शौकीन के इरादे कुछ और ही थे. वे बचपन में कविताएं लिखा करते थे, लिहाजा उन का लेखन की ओर रुझान था. उन्होंने कला के क्षेत्र में हाथ आजमाने की सोची और एक कैमरा खरीदा. उस कैमरे की कीमत तकरीबन 3 लाख रुपए थी जिस को ले कर उन की मां बड़ी नाराज हुईं और उन्हें कोस दिया.

ललित शौकीन ने उसी कोसने को ले कर 2-4 मिनट का एक वीडियो ‘मौम, मी ऐंड डीएसएलआर’ बना दिया. उस के बाद तो उन के वीडियो यूट्यूब पर धूम मचाने लगे.

ललित शौकीन की उपलब्धियों पर हरियाणा सरकार ने इस साल ‘हरियाणा प्रवासी दिवस’ के मौके पर उन्हें गुड़गांव में ‘हरियाणा गौरव सम्मान’ भी दिया. पेश हैं, हरियाणवी हास्य को ग्लोबल बनाने वाले ललित शौकीन से की गई बातचीत के खास अंश:

आप पेशे से वैज्ञानिक हैं, फिर आप को इस तरह के छोटे हास्य वीडियो बनाने का विचार कैसे आया?

मैं ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कालेज से बीएससी और एमएससी की थी. इस के बाद मुझे और मेरी गर्लफ्रैंड नेहा, जो मेरे ही साथ पढ़ती थीं, को अमेरिका की यूनिवर्सिटी सैंट्रल फ्लोरिडा से स्कौलरशिप मिल गई. यह साल 2008 की बात है. 4 साल के बाद मेरी पीएचडी हुई. फिर मुझे न्यूयौर्क में नौकरी मिल गई.

कालेज टाइम तक मेरा रुझान केवल पढ़ाई में था. ऐक्टिंग के बारे में तो कभी सोचा नहीं था. मैं कभी स्टेज पर भी नहीं चढ़ा था. लेकिन मुझे फिल्म मेकिंग का शौक था. उसी शौक को पूरा करने के लिए मैं ने एक कैमरा खरीदा था. वह कैमरा 3 लाख रुपए का था. मां को बताया तो उन का डायलौग था कि अब तू पीएचडी कर के शादियों में फोटो खींचेगा? वह बड़ा मजाकिया वाकिआ था. मैं ने उस का वीडियो बनाया जिस में मां को भी शामिल कर लिया. यह जुलाई, 2015 की बात है.

उस वीडियो में हमारी बोली में हरियाणवी लहजा था. मुझे लगा कि हरियाणवी में ऐसे वीडियो बनाने का आइडिया भी अच्छा है. तब तक किसी ने हरियाणवी भाषा में इस तरह अपनी फैमिली को ले कर मजाकिया वीडियो नहीं बनाए थे. उस वीडियो को यूट्यूब पर काफी पसंद किया गया.

एक वीडियो को बनाने में कितना समय लग सकता है?

पहले हम कोई आइडिया सोचते हैं. मेरे ज्यादातर आइडिया खुद के होते हैं. जो घटनाएं मेरे साथ हुई होती हैं, उन पर ही ज्यादा फोकस करता हूं. जैसे मेरे परिवार की कोई बात, स्कूल या कालेज के वक्त के वाकिए वगैरह. इन्हीं चीजों से हमारे दर्शक खुद को अच्छी तरह जोड़ पाते हैं.

आप के अब तक कितने वीडियो वायरल हो चुके हैं?

हमारे 130 वीडियो आ चुके हैं. हमारे यूट्यूब पर 10 लाख सब्सक्राइबर हो गए हैं. जब से भारत में इंटरनैट की क्रांति आई है, तब से हमारे दर्शक भी बहुत तेजी से बढ़े हैं.

आप के किस तरह के वीडियो को दर्शकों ने ज्यादा पसंद किया है?

मेरे स्कूल टाइम कोे ले कर बनाए गए वीडियो को बहुत पसंद किया गया है. एक वीडियो थी ‘पनिशमैंट इन स्कूल : बौयज वर्सेस गर्ल्स’ जो बहुत चली थी. ऐसे वीडियो बच्चों को बहुत पसंद आते हैं. बड़ों को भी अपने स्कूली दिन याद आ जाते हैं.

आप के वीडियो लोगों की तारीफ पाएं, इस के लिए कौमेडी कितनी कारगर साबित हुई?

बहुत कारगर साबित हुई है. अपने वीडियो में मैं ने अभी तक सिर्फ कौमेडी ही की है.

आप के वीडियो में हरियाणवी भाषा का पुट रहता है. क्या इस से आप के दर्शक सीमित नहीं रह जाते हैं?

दर्शकों के सीमित रहने का रिस्क तो रहता है. लेकिन मैं हरियाणवी को हिंदीअंगरेजी के साथ मिक्स करने की कोशिश करता हूं. हरियाणवी के मुश्किल शब्दों को अपनाने से बचता हूं.

भोजपुरी और पंजाबी भाषा में बनी फिल्मों ने दर्शकों में अपनी जड़ें जमा ली हैं, लेकिन हरियाणवी भाषा में न के बराबर फिल्में बनती हैं. आप इस की क्या वजह मानते हैं, जबकि हिंदी फिल्म ‘सुलतान’ और ‘दंगल’ ने इसी भाषा का इस्तेमाल कर के शानदार कामयाबी पाई है?

फिल्मों में परोसी गई सामग्री सब से ज्यादा अहम होती है. मैं ने तो ऐसी कोई हरियाणवी फिल्म देखी ही नहीं जिस के बारे में कहा जा सके कि कितनी बढि़या फिल्म है. ‘सुलतान’ और ‘दंगल’ तो बौलीवुड की फिल्में हैं. उन्हें हम हरियाणवी नहीं कह सकते. हां, ऐसी फिल्मों को देख कर यह हौसला तो बढ़ा ही है कि आप हरियाणवी में भी अच्छी फिल्में बना सकते हैं. लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि आप उस फिल्म में दर्शकों के सामने परोस क्या रहे हैं. जीजासाली की बेहूदा कौमेडी नहीं चलेगी. कोई अच्छा काम करेगा तो बिलकुल चलेगा.

क्या आप भी बड़े परदे के लिए फिल्म बनाना चाहते हैं?

अभी थोड़ा समय लगेगा. मैं कुछ कहानियों पर काम कर रहा हूं. अभी तो मैं इसी काम पर फोकस कर रहा हूं. हां, हमारी फिल्म कौमेडी पर बनी फैमिली फिल्म होगी.

आप कलाकारों का चयन कैसे करते हैं?

जब मैं कोई कहानी लिखता हूं तो किरदार मेरे जेहन में होता है. उसी हिसाब से कलाकारों को चुनता हूं. जब हम अमेरिका में वीडियो बनाते थे तो वहां सीमित लोग थे. यहां भारत में थोड़ी आजादी मिल गई है. यहां लोकेशन बढ़ जाती है. खेतखलिहान आ जाते हैं. कलाकार भी ज्यादा हो जाते हैं.

आप के वीडियो पर किया गया कोई बैस्ट कमैंट?

कमैंट तो हर तरह के आते हैं. तारीफ के भी होते हैं. कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हमारे दर्शकों के बड़े इमोशनल मैसेज आते हैं. एक बार एक बच्चे ने कहा था कि मेरी दादी को कैंसर है जो लास्ट स्टेज पर है. वे सिर्फ आप के वीडियो देख कर हंसती हैं वरना सारा दिन उदास रहती हैं. ऐसे मैसेज से हमें भी लगता है कि हम समाज को कुछ अच्छा दे रहे हैं.

स्मृति ईरानी ने अब लौंच किया अमेठी अचार

राजनीति में रत्तीभर दिलचस्पी न रखने वाला आदमी भी एक भविष्यवाणी तो पूरे आत्मविश्वास से कर सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कोई कहीं से भी लड़े, पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी इस बार फिर अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी. इस अनुमान का इकलौता आधार स्मृति का अमेठी मोह और सक्रियता है.

लड़ तो लेंगी, पर दिनोंदिन मजबूत होते जा रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जीतेंगी कैसे, इस सवाल पर दिमाग खपाने वालों की चिंता दूर करते स्मृति ने अमेठी का अचार लौंच कर दिया है जिस के बारे में उन का कहना है कि इसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत अमेठी की महिलाओं ने तैयार किया है.

अचार के प्रचार से लगता नहीं कि वे गांधी परिवार के इस गढ़ में सेंध लगा सकती हैं. अगर अमेठी से स्मृति ईरानी लड़ीं तो वे अमेठी अचार को भुनाने से चूकेंगी नहीं. देखना दिलचस्प होगा कि जवाब में कांग्रेस अमेठी की चटनी, पापड़ या मुरब्बा लाती है या नहीं.

यह कैसा कानून : जानलेवा साबित हो रहे हैं सरकारी कानून

सरकारी कानून किस तरह जानलेवा से होते हैं इस का एक मजेदार उदाहरण है सार्वजनिक वितरण योजना के अंतर्गत कानून में अपराध. इस योजना में मिट्टी का तेल राशन कार्ड पर दिया जाता है और दुकानदार को उस का लेखाजोखा रखना पड़ता है कि कितना तेल उसे अलौट हुआ, कितना बाकी है, कितना बेचा. इस कानून में भी ज्यादा तेल रखने पर जुरमाने और सजा का प्रावधान है. दुकानदार सजा के डर के बावजूद पैसे कमाने के लिए काम करते ही हैं.

इस में कुछ राशन कार्ड वालों को कम तेल दे कर या न दे कर बाकी ज्यादा दाम पर बेच दिया जाता है. यह गुनाह है पर केवल आर्थिक, कोई अनैतिक नहीं. पर सरकारी इंस्पैक्टर आतंक तो गब्बर सिंह का आतंक है.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक दुकानदार के यहां इंस्पैक्टर ने कुछ ज्यादा कैरोसिन पकड़ लिया और मुकदमा जड़ दिया. यदि तभी लेदे कर फैसला कर लिया जाता तो बात दूसरी होती पर लगता है दुकानदार ने केस लड़ने का फैसला किया. यह कब हुआ? 2 सितंबर, 1988 को. इस का अंतिम निर्णय कब हुआ? जनवरी 2018 में.

पहले कोर्ट और अपील कोर्ट ने इस दुकानदार को 3 माह की सजा दे डाली, महज 187 लिटर अतिरिक्त तेल रखने पर. जिस देश में हत्यारे और बलात्कारी गलीगली घूमते हैं, जहां बाबास्वामी लूटते हैं और भगवा दल निहत्थों को धमकाते हैं, वहां 187 लिटर मिट्टी का तेल अतिरिक्त रखने का मामला सुप्रीम कोर्ट में 30 साल तक चला. तब तक दुकानदार 89 वर्ष का हो गया.

सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर राहत दी पर गुनाह से नहीं. वह 89 वर्ष का है. अत: 3 माह की जेल काटना गलत होगा. एक लोकतांत्रिक देश की न्यायपालिका इस तरह आतंकवादी इंस्पैक्टरों का साथ दे सकती है और निरर्थक, अनावश्यक व रिश्वत के कुएं खोदने वाले कानूनों का समर्थन कर सकती है यह आश्चर्य की बात है. तेल की कालाबाजारी न हो यह सही है पर इस में उस दुकानदार का लाइसैंस कैंसल करना काफी होगा ताकि वह और लूट न मचा सके. उसे जबरन वर्षों बाद जेल भेजने की पेशकश करना और सरकार का अपीलों में अपने वकील खड़ा करना एक नागरिक के जीने के अधिकार को छीनना है.

मिट्टी का तेल न सोना है न शराब या अफीम कि उस से समाज में जहर फैलता हो. व्यापार की ऊंचनीच पर इस तरह का संगीन अपराध लगना जनता के साथ खिलवाड़ है.

GST में टैक्स चोरी की आशंका, सिर्फ 16 % के ही रिटर्न का हुआ मिलान

वस्‍तु एवं सेवा कर (GST)  में बड़ी टैक्स चोरी की आशंका जताई जा रही है. ऐसे इसलिए क्योंकि GST के तहत केवल 16 प्रतिशत कारोबारियों की ही शुरुआती बिक्री रिटर्न का अंतिम रिटर्न के साथ मेल हो पाया है. जिसके बाद राजस्व विभाग ने इसमें संभावित कर चोरी की आशंका को देखते हुए इसका विश्लेषण शुरू कर दिया है. जीएसटी रिटर्न के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई- दिसंबर के बीच 34 प्रतिशत कारोबारियों ने सरसरी तौर पर भरी गई अपनी शुरुआती रिटर्न (GSTR 3B) में 34,400 करोड़ रुपए कम कर का भुगतान किया है. इन कारोबारियों ने जीएसटीआर-3 बी रिटर्न दाखिल करके खजाने में 8.16 लाख करोड़ रुपए का भुगतान किया है जबकि उनके जीएसटीआर-1 (GSTR1) आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उनकी कर देनदारी 8.50 लाख करोड़ होनी चाहिए.

रिटर्न की हो रही है जांच

राजस्व विभाग के विश्लेषण के मुताबिक, 16.36 प्रतिशत कारोबारियों द्वारा भरी गई शुरुआती संक्षिप्त रिटर्न और कर भुगतान के आंकड़े ही उनकी अंतिम रिटर्न और कर देनदारी से मेल खाती है. उन्होंने कुल 22,014 करोड़ रुपए का कर भुगतान किया है.

विभाग ने जुलाई- दिंसबर 2017 के दौरान 51.96 लाख व्यवसायों द्वारा दाखिल किए गए जीएसटी आंकड़ों का विश्लेषण किया है. हालांकि, राजस्व विभाग द्वारा किये गए विश्लेषण में आएं आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि जीएसटी के तहत पंजीकृत 49.36 प्रतिशत व्यवसायियों ने जुलाई- दिंसबर के दौरान 91,072 करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर भुगतान किया था. बताया जा रहा है कि जीएसटी के तहत व्यवसायियों को 6.50 लाख करोड़ रुपए का भुगतान करना था जबकि उनके द्वारा दाखिल जीएसटीआर-1 में उन्हें 5.59 लाख करोड़ का ही भुगतान करना था.

जानकारों की राय अलग

EY के भागीदारी अभिषेक जैन ने कहा, ‘जीएसटीआर- 1 और उसके साथ ही जीएसटीआर- 3बी में जो फर्क दिख रहा है उसके बारे में हालांकि सरकार को विस्तारपूर्वक विश्लेषण करना होगा, इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि इसमें जीएसटीआर-1 में क्रेडिट..डेबिट नोट को संज्ञान में नहीं लिया गया जिसे कि जीएसटीआर- 3बी के आंकड़ों में शामिल किया गया.

अब अपने स्मार्टफोन में बनाएं सीक्रेट फोल्डर

आपके फोन पर जरूरी मेसेज, मेल, फोटो, वीडियो के साथ ही कई सारे राज ऐसे होते हैं जिसे आप दूसरों से शेयर नहीं करना चाहते. लेकिन जरा सोचिये कि अगर आपने अपना फोन कहीं पर रख दिया, या आपके फोन का पासवर्ड किसी को पता चल गया या फिर आपसे फोन गुम हो गया तो? ऐसा होने पर आपका जरूरी डेटा, फोटो और वीडिया सब किसी गलत हाथों में भी जा सकता है. अब भला किसी और को ये क्यों पता होना चाहिए कि आपने किसको क्या मैसेज किया या किसके साथ फोटो खिंचवाई है?

ऐसी गोपनीय या संवेदनशील चीजो के लिए फोन में एक सीक्रेट या छिपा हुआ फोल्डर होना चाहिए. अपने फोन में सीक्रेट या छिपा हुआ फोल्डर बनाने के लिए फाइल एक्सप्लोरर पर जाइये और नए फोल्डर बनाने के लिए टैप कीजिए. यहां पर आपको एक विकल्प मिलेगा सीक्रेट फोल्डर का.

यहा से आप एक फोल्डर बना लें पर ध्यान रखें कि जब आप इस सीक्रेट फोल्डर का नाम दें तो उसके आगे अंग्रेजी का अक्षर ‘ए’ लगाना ना भूलें. ‘ए’ लगाने से फोल्डर सीक्रेट फोल्डर में तब्दील हो जाएगा. एक बार ये फोल्डर बन जाए तो आप अपने फोटो और जो भी जानकारी चाहें उसमें रख सकते हैं.

फोल्डर को आप फाइल मैनेजर में जाकर ही देख सकते हैं, लेकिन इसको वहां से भी छुपाया जा सकता है. ऊपर बाईं ओर टैप कीजिए और फिर सेटिंग चुनिए. उसके बाद डिसप्ले सेटिंग्स चुनिए और जहां ‘शो हिडन फाइल्स’ लिखा है, उसके साथ वाले बौक्स से टिक मार्क हटा दीजिए. जब छुपी हुए फाइल को देखना है तो आपको ये टिक मार्क फिर से लगाना होगा.

आप चाहें तो फोटो या फाइलों को पासवर्ड प्रोटेक्ट भी कर सकते हैं, इसके लिए आपको एनक्यू सिक्योरिटी और वौल्टी जैसे कुछ ऐप्स का इस्तेमाल करना होगा. ये आपके फोन की प्राइवेसी बढ़ाने में मदद करते हैं.

सुष्मिता सेन ने दिखाया अपना नया टैटू, बताई क्या है उनकी सोल स्पिरिट

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन भले ही बड़े पर्दे से काफी वक्त से दूर हों लेकिन वह अक्सर ही किसी न किसी वजह से सुर्खियों का हिस्सा बनती हैं. सुष्मिता सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और अक्सर ही अपने फैन्स के साथ अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में बताती रहती हैं. इसी तरह हाल ही में सुष्मिता ने अपने नए टैटू की फोटो शेयर की है. इस तस्वीर के साथ सुष्मिता ने फैन्स को यह भी बताया कि यह उनकी सोल स्पिरिट को बताता है. सुष्मिता की इस टेटू की फैन्स ने भी तारीफ की.

सुष्मिता की यह तस्वीरें फैन्स काफी पसंद कर रहे हैं. इन तस्वीरों में न केवल सुष्मिता अपना टैटू फ्लौन्ट कर रही हैं बल्कि वह काफी फिट भी नजर आ रही हैं. यहां आपको यह बता दें कि सुष्मिता अपनी फिटनेस का काफी ध्यान रखती हैं और अक्सर ही अपनी जिम की वीडियोज शेयर करती हैं. इस वजह से उनकी इस तस्वीर को देखने के बाद कई फैन्स ने लिखा कि आप हमें फिटनेस गोल्स दे रही हैं. इसके अलावा कुछ ने ऐसा भी लिखा कि आप अपनी फिटनेस से लोगों के प्रेरणा का कारण बन गई हैं.

#poetic #udaipur ready to hit the gym? Noooooooo!!!!!??❤?#justbeing ?

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गौरतलब है कि सुष्मिता ने साल 1994 में मिस युनिवर्स का खिताब जीता था. जिसके बाद उन्होंने अपना बौलीवुड सफर शुरू किया था. सुष्मिता आखिरी बार साल 2010  में फिल्म नो प्रोब्लम में नजर आईं थी. इसके बाद से ही उन्होंने बौलीवुड से दूरियां बना ली. हालांकि, कुछ वक्त पहले एक ईवेंट के दौरान सुष्मिता ने कहा था कि वह एक बार फिर बौलीवुड में वापसी करने वाली हैं और अपने लिए एक सही किरदार और कहानी की तलाश कर रही हैं.

तीरंदाजी वर्ल्डकप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी मुस्कान किरार

हाल ही में थाईलैंड में आयोजित एशिया कप में देश को स्वर्ण और कांस्य पदक दिलाने वाली मध्यप्रदेश अकादमी की प्रतिभावान तीरंदाज मुस्कान किरार वर्ल्डकप में निशाना साधती हुई नजर आएंगी. उनका चयन भारतीय दल में हुआ है. स्टेज-1 वर्ल्डकप 23 से 29 अप्रैल तक शंघाई (चीन) और स्टेज-2 वर्ल्डकप 20 से 26 मई तक अंताल्या (टर्की) में खेला जाएगा.

बता दें कि उनका चयन बीते दिनों सोनीपत में आयोजित ट्रायल के आधार पर हुआ है. इसी के साथ ही मुस्कान 2 अप्रैल को फिलीपींस के मनीला में होने जा रहे एशिया कप स्टेज-2 में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करेंगी. भारतीय टीम में मुस्कान के चयन पर उन्हें प्रदेश की खेल और युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने बधाई दी है. उन्होंने वर्ल्ड कप में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करते हुए मुस्कान किरार को शुभकामनाएं भी दी है.

ढ़ाका में आयोजित 20वीं एशियन चैंपियनशिप और ताईपे में आयोजित एशिया कप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुकी मुस्कान मध्य प्रदेश राज्य तीरंदाजी अकादमी जबलपुर में वर्ष 2016-17 से अकादमी के मुख्य प्रशिक्षक एवं तकनीकी सलाहकार रिचपाल सिंह सलारिया से तीरंदाजी खेल का प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं. मालूम हो कि मुस्कान ने थाईलैंड में आयोजित एशिया कप में देश को स्वर्ण और कांस्य पदक दिलाने के अलावा गत वर्ष भुवनेश्वर में आयोजित 37वीं सब जूनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं.

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