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कहीं आपने भी तो नहीं पाल रखी हैं गैजेट्स से जुड़ी ये गलतफहमियां

जिंदगी हो या टेक्नौलजी हर जगह गलतफहमियों का बोलबाला है. आज के इस दौर में हमारा आमना-सामना छोटी बड़ी कई ऐसी बातों से होता है, जो सच नहीं होतीं लेकिन बड़े ही भरोसे के साथ कही गई होती हैं और जिनपर हम बिना सोचे समझे बड़ी ही आसानी से विश्वास कर लेते हैं. टेक्नौलजी भी इससे अछूती नहीं है. हमारे दोस्त, परिजन, अजनबी कई बार हमें ऐसा कुछ बता देते हैं, जिसकी पड़ताल किए बिना ही हम उसे सच मानने लगते हैं. ऐसे में कई बार हमें नुकसान तो उठाना पड़ता ही है लेकिन इसके साथ ही हम एक गलत जानकारी को बेधड़क आगे की ओर बढ़ा रहे होते हैं.

उदाहरण के लिए अगर अच्छे कैमरे का चुनाव करना हो तो हम मेगापिक्सल में उलझ कर रह जाते हैं. प्राइवेट ब्राउजिंग की बात हो तो इनकौग्निटो पर ‘आंख मूंद कर’ भरोसा करने लगते हैं. इस तरह हम कैमरा, प्रोसेसर और वायरस जैसे विषयों पर कही-सुनी बातों पर यकीन करने लग जाते हैं. तो…क्यों ना आज ऐसी ही 5 गलतफहमियों पर बात कर उन्हें दूर करें जो टेक्नौलजी से जुड़ीं हैं

ज्यादा खंभे मतलब ज्यादा सिग्नल’

आपके फोन की स्क्रीन पर ऊपरी हिस्से में दायीं या बायीं तरफ सिग्नल के डंडे होते हैं और ऐसा मान लिया गया है कि ये जितने ज्यादा होंगे, सिग्नल कनेक्टिविटी उतनी ही मजबूत होगी. दरअसल, ये डंडे आपके फोन की नजदीकी टावर से निकटता दिखाते हैं. ऐसे में इन्हें यह बिल्कुल ना समझें कि पूरे डंडे आने पर आपके फोन का सिग्नल काफी अच्छा है.

मेगापिक्सल ज्यादा तो कैमरा होगा मस्त’

इस मिथ को समझने के लिए आपको समझना होगा पिक्सल क्या होता है? दरअसल, कोई भी तस्वीर छोटे-छोटे डौट से मिलकर बनती है, जिन्हें पिक्सल कहा जाता है. इनसे मिलकर ही तस्वीर तैयार होती है. ये पिक्सल, हजारों-लाखों छोटे-छोटे डौट से बनते हैं, जो आम तौर पर आपको फोटो में नजर नहीं आते. कैमरे की गुणवत्ता तय होती है कैमरा लेंस, लाइट सेंसर, इमेज प्रोसेसिंग हार्डवेयर और सौफ्टवेयर की जुगलबंदी से. उदाहरण के लिए आईफोन 6, जो 8 मेगापिक्सल कैमरे के साथ आता है और बाजार में मौजूद कई 13 मेगापिक्सल कैमरे वाले फोन को मात दे देता है. फोन में अतिरिक्त मेगापिक्सल सिर्फ आपकी प्रिंट की गई तस्वीर में सहायक हो सकते हैं.

चुपके से करना है ब्राउज तो खोलो इनकौग्निटो’

यह अफवाह भी है कि इनकौग्निटो विंडो सबसे सुरक्षित विकल्प है. हर ब्राउजर में एक प्राइवेट विंडो का विकल्प रहता है. दरअसल, सच यह है कि आप इस विंडो में जितनी भी साइट को विजिट कर रहे हैं, आपका ब्यौरा आपके इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और साइट से छिपा नहीं सकते. इस बात को बिल्कुल अपने दिमाग से निकाल दें कि आप इनकौग्निटो पर कुछ भी विजिट करेंगे तो वह सिर्फ आपके और आपके कम्प्यूटर के बीच रहेगा. गूगल क्रोम पर आप इनकौग्निटो को सीधे CTRL + SHIFT + N से खोल सकते हैं. वहीं, इंटरनेट एक्सप्लोरर, सफारी पर इसके लिए आपको CTRL + SHIFT + P दबाना होगा. मैक के लिए यह शॉर्टकट CTRL + OPTION + P होगा.

ऐप्पल के सिस्टम में वायरस नहीं आता’

आपने भी कभी ना कभी सुना होगा कि ऐप्पल के सिस्टम में वायरस कभी आ ही नहीं सकता. दरअसल, दुनिया में शायद ही ऐसा कोई सिस्टम बना है, जिसमें वायरस का प्रवेश ना हो सकता हो. इतना जरूर है कि ऐप्पल के मैक कंप्यूटर का बाकी विंडोज पीसी के मुकाबले ट्रैक रिकौर्ड अच्छा है. इसका एक कारण यह भी है कि मैक से ज्यादा संख्या विंडोज पीसी की रही है.

प्रोसेसर हो ज्यादा कोर वाला’

मल्टी कोर प्रोसेसर आपके फोन के कामों को एक-दूसरे में बांट देते हैं, जिससे टास्क जल्दी संभव हो. डुअल कोर, औक्टा कोर, क्वाड कोर किसी भी सीपीयू में प्रोसेसर की संख्या बयां करते हैं. डुअल मतलब 2, औक्टा का अर्थ 8 और क्वाड का आशय 4 होता है. क्वाड कोर प्रोसेसर सिंगल और डुअल कोर प्रोसेसर से उसी दशा में तेज हो सकता है, जब उसे दिए गए काम उसकी क्षमताओं से मेल खाते हों. कुछ ऐप खास तौर से सिंगल या डुअल कोर प्रोसेसर पर चलने के लिए बने होते हैं. ये अतिरिक्त पावर वहन नहीं कर पाते. साथ ही अतिरिक्त कोर से यूजर अनुभव में कोई सुधार नहीं आता. उदाहरण के लिए औक्टा कोर प्रोसेसर पर चल रहे एचडी वीडियो की गुणवत्ता फोन के इंटीग्रेटेड ग्राफिक्स की वजह से भी बिगड़ सकती है. इसलिए क्लौक स्पीड और प्रोसेसर की संख्या ‘रामबाण’ इलाज है, ऐसा कहना गलत होगा.

आईपीएल उदघाटन समारोह में शामिल नहीं होंगे इन टीमों के कप्तान

वर्ष 2008 में शुरू हुए आईपीएल में ऐसा पहली बार हो रहा है जब उसके उद्घाटन समारोह में 6 टीमों के कप्तान भाग नहीं ले पाएंगे. यह उद्घाटन समारोह 7 अप्रैल को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में होगा, जिसमें 8 टीमों में से सिर्फ दो ही कप्तान शामिल हो पाएंगे. इसका बड़ा कारण आईपीएल 11 के उद्घाटन समारोह की तारिख है. बता दें कि उद्घाटन समारोह के दिन ही पहला मैच और उसके अगले ही दिन दो मैच होने की वजह से इस बार 6 कप्तानों को इस कार्यक्रम में बीसीसीआई ने न बुलाने का फैसला किया है.

7 अप्रैल को टूर्नामेंट का पहला मैच चेन्नई सुपरकिंग्स और मुंबई इंडियंस के बीच होगा. 8 अप्रैल को दिल्ली डेयरडेविल्स का सामना किंग्स इलेवन पंजाब मोहाली (चार बजे से) में और बेंगलोर रौयल चैंलेजर्स की भिड़ंत कोलकाता नाइटराइडर्स (आठ बजे से) कोलकाता में होगी. ऐसे में इस उद्घाटन समारोह में विराट कोहली (आरसीबी), स्टीव स्मिथ (राजस्थान रौयल्स), गौतम गंभीर (दिल्ली डेयरडेविल्स), रविचंद्रन अश्विन (किंग्स इलेवन पंजाब), दिनेश कार्तिक (कोलकाता नाइट राइडर्स) और डेविड वार्नर (सन राइजर्स हैदराबाद) मौजूद नहीं होंगे. हालांकि महेंद्र सिंह धोनी (चेन्नै सुपर किंग्स) और रोहित शर्मा (मुंबई इंडियंस) इस अवसर पर मौजूद होंगे. इन दोनों टीमों के बीच इसी मैदान पर बाद में आईपीएल का पहला मुकाबला खेला जाएगा.

बीसीसीआई के एक सूत्र ने बताया, ‘हमने इस बार उद्धाटन समारोह को एक दिन पहले नहीं करवाया. 8 अप्रैल को चार टीमों के मुकाबले हैं. मोहाली में होने वाला मैच पहले दिल्ली में खेला जाना था लेकिन बाद में शेड्यूल बदला गया. यह मैच दोपहर चार बजे खेला जाएगा. ऐसे में हम उन टीमों के कप्तानों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे फ्लाइट से दिल्ली पहुंचें और फिर रात को या फिर मैच की सुबह सड़क मार्ग से मोहाली पहुंचें.

ट्रिपल तलाक विशेष : जीत ली अधिकार की लड़ाई

22 अगस्त, 2017 को शायरा बानो सही टाइम पर कोर्ट पहुंची गई थीं. सब से पहले वह अपने वकील से मिलीं. वकील साहब ने उन्हें आश्वस्त किया, ‘‘डरने की कोई बात नहीं है. हिम्मत रखो, फैसला तुम्हारे ही पक्ष में आएगा. यह भी हो सकता है कि तुम देश और धर्म के लिए ऐतिहासिक महिला बन जाओ.’’

22 अगस्त, 2017 को 3 तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने वाला था. सुबह से ही मीडियाकर्मी व अन्य लोग कोर्ट के बाहर जमे हुए थे. यह ऐतिहासिक फैसला सुनाने के लिए अलगअलग धर्म के 5 न्यायमूर्ति तय किए गए थे, जो सही समय पर अपनीअपनी कुरसी पर विराजमान हो गए थे.

खचाखच भरी अदालत में सब से पहले अपना फैसला पढ़ने की शुरुआत मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने की. उन्होंने अपना फैसला पढ़ना शुरू किया, ‘‘3 तलाक पर्सनल ला का हिस्सा है और इसे संविधान में मिली धार्मिक आजादी में संरक्षण प्राप्त है. इसलिए अदालत इस में दखल नहीं दे सकती.’’

यह सुनते ही अदालत में मौजूद एक बड़े वर्ग के चेहरे पर मुसकान उभर आई. लेकिन जब जस्टिस खेहर ने आगे कहा कि 3 तलाक पर सरकार कानून बनाने पर विचार करे और जब तक यह कानून बने, तब तक 3 तलाक पर पूरी तरह से रोक लगी रहेगी तो तमाम लोगों के चेहरे पर निराशा के भाव उभर आए.

जस्टिस खेहर के बाद जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर असहमति जताते हुए अपना फैसला पढ़ा. उन्होंने 3 तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया. इस के बाद जस्टिस आर.एफ. नरीमन ने अपनी और जस्टिस यू.यू. ललित की राय बताते हुए मुख्य न्यायाधीश की राय से असहमति जताई.

उन्होंने 3 तलाक को असंवैधानिक घोषित किया तो अदालत में मौजूद लोगों के चेहरों पर तरहतरह के भाव उभर आए. जस्टिस खेहर ने चारों जस्टिस के फैसला सुनने के बाद अपना आखिरी फैसला सुनाया. उन्होंने अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि न्यायाधीशों के बीच मतभिन्नता के बीच बहुमत से दिए गए फैसले में 3 तलाक निरस्त किया जाता है.

इस से यह बात साफ हो गई कि सर्वोच्च न्यायालय ने 3 तलाक पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. इस तरह 14 सौ साल पुरानी मुसलिम रूढि़वादी परंपरा के खत्म होते ही यह ऐतिहासिक फैसला बन चुका था, जिस से मुसलिम औरतों को बड़ी राहत मिलने वाली थी.

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार  है कि वह भारतीय संविधान के दूसरे पार्ट के अधिनियम संख्या 32 के अंतर्गत देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे. इस की स्थापना अक्तूबर, 1937 में हुई थी. भारतीय संविधान के तहत यह न्यायालय भारत का अंतिम और सवर्ोेच्च न्यायालय है, जो ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ की नीति को खुद में समाहित कर के चलता है.

इसी सर्वोच्च न्यायालय ने मुसलिम महिलाओं के लिए अभिशाप माने जाने वाले 3 तलाक को खत्म कर के उन्हें बहुत बड़ी निजात दिलाई है. आज के दौर में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिस में पारिवारिक कलह न हो. किसी न किसी बात को ले कर हर घर में लड़ाईझगड़ा आम बात है.

हालांकि घर के मामले अधिकांशत: घर में ही निपटा लिए जाते हैं. कोर्टकचहरी तक बहुत कम मामले पहुंचते हैं. लेकिन मामला घर से बाहर समाज से लड़ने का हो तो बहुत हिम्मत चाहिए. समाज से टकराना अपनी जिंदगी को दांव पर लगाने जैसा है.

लेकिन उत्तराखंड निवासी शायरा बानो ने यह हिम्मत दिखाई. पति ने दर्द दिया तो वह उस दर्द का इलाज ढूंढने कोर्ट जा पहुंची. वह जानती थीं कि उन्होंने जो रास्ता चुना है, वह समाज से होते हुए ही उन के पति तक पहुंचेगा. जबकि समाज से टकराना जोखिम भरा काम था. लेकिन जब इंसान के हौंसले बुलंद हों तो राह में आने वाली सारी बाधाएं खुदबखुद हटने लगती हैं.

शायरा बानो ने जिस सामाजिक कुरीति के विरुद्ध केस लड़ने की ठानी थी, वह थी मुसलिम समाज में सदियों से चली आ रही 3 तलाक की परंपरा. 3 तलाक मुसलिम समाज में पत्नी से अलग होने के वह जरिया था, जिस में पति अपनी पत्नी को 3 बार तलाक… तलाक…तलाक… कह कर उस से जिंदगी भर के लिए छुटकारा पा सकता था.

इस मामले में न तो देश का कोई भी कानून या न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती थी और न ही समाज. 3 तलाक की परंपरा में कई बार ऐसा भी होता था कि जल्दबाजी या गुस्से में पति पत्नी को तलाक तो दे देता था, लेकिन बाद में उसे पश्चाताप होता था. क्योंकि औरतें गुलामों की तरह काम तो करती ही थीं, साथ ही बच्चे भी पालती थीं. कुछ पढ़ीलिखी औरतें पैसा कमा कर घर भी चलाती थीं.

इसलिए कुछ लोगों को अपनी बीवी पर तरस आने लगता था और वह अपनी पत्नी को वापस लाना चाहते थे. लेकिन तलाकशुदा बीवी को दोबारा अपनाने का एक ही तरीका था हलाला. हलाला के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, क्योंकि इस शब्द का संबंध मुसलमानों के वैवाहिक जीवन और शरीयत के महिला विरोधी कानून से है.

शरीयत के इस जंगली कानून की आड़ में मुल्लामौलवी और मुफ्ती खुल कर अय्याशी करते थे. मुसलिम महिलाओं के लिए हलाला शब्द ही सब से दुखदाई था, जो बलात्कार की श्रेणी में आता था. हलाला तब तक जायज नहीं माना जाता था, जब तक तलाकशुदा औरत किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करने के बाद उस के साथ सहवास न कर ले.

इस के बाद वह आदमी उसे तलाक दे देता था, उस के बाद वह अपने पूर्व पति से फिर से निकाह कर सकती थी. कई बार ऐसा भी होता था कि इस बीच अगर तलाकशुदा औरत को वह शख्स पसंद आ जाता था तो वह उसी के साथ रहने लगती थी. इस स्थिति में उस का पहला पति या शरीयत कानून कुछ नहीं कर सकता था.

हालांकि मुसलमानों में 2-3 औरतें रखना जायज माना जाता है. वैसे भी मुसलिम समाज में रिश्ते की बहनों से भी शादियां जायज हैं. मुसलिम लोग अक्सर संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते हैं. इसलिए पतिपत्नी में झगड़े    होना आम बात है. ऐसे में कभी पति गुस्से में पत्नी को तलाक दे देता था. हलाला का समय भी कम से कम 3 महीने का होता है.

बहरहाल, 22 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुसलिम समाज में 14 सौ सालों से प्रचलित 3 तलाक के चलन को असंवैधानिक करार दे कर निरस्त कर दिया. कोर्ट ने 2-3 के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि एक साथ 3 तलाक संविधान में दिए गए बराबरी के अधिकार का हनन है. तलाक ए बिद्दत इसलाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान में दी गई धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण नहीं मिल सकता.

इस के साथ ही कोर्ट ने शरीयत कानून 1937 की धारा-2 में एक बार में 3 तलाक को दी गई मान्यता निरस्त कर दी. 5 जजों में से 3 जज जस्टिस नरीमन, जस्टिस ललित और जस्टिस कुरियन इसे असंवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे. वहीं 2 जज चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस नजीर इस के पक्ष में नहीं थे.

इस मामले की जीत का श्रेय शायरा बानो और अन्य 4 मुसलिम महिलाओं, जिन में सहारनपुर, उत्तर प्रदेश निवासी मजहर हसन की बेटी आतिया साबरी, जयपुर निवासी आफरीन रहमान, रामपुर, उत्तर प्रदेश निवासी गुलशन परवीन व बिहार के नवादा जिले की रहने वाली इशरत जहां को जाता है.

लेकिन इन से पहले भी इंदौर की रहने वाली मुसलिम महिला शाहबानो 3 तलाक के इस मामले को जीत कर भी हार गई थीं. शाहबानो के पति मोहम्मद खान ने सन 1978 में उन्हें तलाक दे दिया था. मोहम्मद अहमद खान ने 2 शादियां की थीं, जिस की वजह से आए दिन घर में तकरार होती रहती थी.

शाहबानो को जो हासिल नहीं हो पाया था, अब सन 2017 में अपने हक की लड़ाई लड़ने वाली शायरा बानो और अन्य 4 महिलाएं मुसलिम समाज की 14 सौ साल पुरानी परंपरा को खत्म करने में कामयाब रहीं. हालांकि मुसलिम समाज की कई महिलाओं ने 3 तलाक के विरुद्ध आवाज उठाते हुए कोर्ट में केस दायर किया था.

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लेकिन 3 तलाक के इस फैसले का श्रेय उत्तराखंड निवासी इकबाल अहमद की बेटी शायरा बानो को जाता है. काशीपुर (उत्तराखंड) के हेमपुर डिपो में रहता है इकबाल अहमद का परिवार. उन के 3 बच्चों में शायरा बानो सब से बड़ी थी. उन के 2 बेटे हैं शकील अहमद और अरशद अली.

इकबाल अहमद हेमपुर डिपो में एकाउंटैंट हैं. उन का सुशिक्षित और सभ्य परिवार है. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को भी उचित शिक्षा दिलाई. शायरा बानो ने हेमपुर डिपो के पास स्थित गांव प्रतापपुर से हाईस्कूल किया. जीजीआईसी काशीपुर से इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने काशीपुर के ही राधे हरि राजकीय महाविद्यालय से एमए किया.

हालांकि शायरा बानो पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं, लेकिन घर में सब से बड़ी होने के नाते उन्हें विवाह जैसे बंधन में बंधने पर मजबूर होना पड़ा. अब से करीब 15 साल पहले सन 2002 में शायरा बानो का रिश्ता इलाहाबाद के बारा बाजार के रहने वाले रिजवान के साथ हो गया.

रिजवान के पिता इकबाल अहमद का प्रौपर्टी का काम था. इकबाल का भी परिवार शायरा के परिवार की तरह छोटा था. उन के 2 बेटे इरशाद अहमद, रिजवान अहमद और एक बेटी थी. रिजवान ने अपने पिता का प्रौपर्टी डीलिंग का काम संभाल रखा था. घरपरिवार ठीक था. इकबाल अहमद ने रिजवान से शायरा का निकाह कर दिया. शायरा और रिजवान की शादी के बाद सब कुछ ठीकठाक चलता रहा.

शादी के बाद शायरा ने नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों को उन की यह बात पसंद नहीं आई, जिस की वजह से शायरा को मन मार कर घर में बैठना पड़ा.

वह अच्छे परिवार की पढ़ीलिखी लड़की थी. इस के बावजूद उस की सास रईसा बेगम उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थीं. वह उसे बातबात में रोकतीटोकती रहती थीं.

सास की इस हरकत से आजिज आ कर शायरा ने रिजवान से शिकायत की तो वह भी अपनी अम्मी के पक्ष में दलीलें देने लगा. इस से शायरा का मन ससुराल से उचटने लगा. सास रईसा बातबात पर उसे डांटती तो रहती ही थीं, आए दिन दहेज के लिए ताने भी मारती थीं.

अब तक शायरा एक के बाद एक 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, बड़ा बेटा इरफान अहमद और उस से छोटी बेटी हुमेरा नाज. इस बीच शायरा की तबीयत खराब रहने लगी. अब उस की सास उसे और भी ज्यादा परेशान करने लगी. घर के विवाद ने जब भयानक रूप ले लिया तो मजबूरन रिजवान को किराए का मकान ले कर अलग रहना पड़ा.

अलग होने के बाद रिजवान का अपने घर आनाजाना लगा रहता था. वह जब भी घर आता, उस की अम्मी रईसा उसे शायरा बानो के प्रति भड़काने का काम करती. आखिरकार मियांबीवी में हर वक्त तकरार रहने लगी.

उसी दौरान अचानक शायरा बानो की तबीयत खराब हुई तो रिजवान उसे अनदेखा कर ज्यादातर अपने घर पर ही रहने लगा. पति और सास के अत्याचारों से आजिज आ कर शायरा बानो को अपने मायके आने पर मजबूर होना पड़ा. इलाहाबद से मुरादाबाद तक रिजवान शायरा और बच्चों के साथ आया और वहीं से वापस लौट गया.

11 अप्रैल, 2015 के बाद न तो रिजवान अपने बीवीबच्चों से मिलने आया और न ही उस ने कोई फोन किया. जब शायरा को लगने लगा कि अब उस का पति उसे लेने नहीं आएगा तो उस ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए काशीपुर के फैमिली कोर्ट में उन के भरणपोषण के लिए खर्च देने का दावा कर दिया.

शायरा की ओर से बच्चों के भरणपोषण का नोटिस पहुंचने के बाद भी रिजवान ने उस से किसी तरह की कोई बात नहीं की. उसी दौरान 10 अक्तूबर, 2015 को इकबाल अहमद के घर के पते पर शायरा बानो के नाम स्पीड पोस्ट से एक पत्र आया. शायरा बानो ने उसे खोल कर देखा तो उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

उस में लिखा था, ‘मैं रिजवान अहमद आज से तुम्हें पूरी तरह से आजाद करता हूं. मैं तुम्हें तलाक देता हूं. तलाक…तलाक… तलाक… आज के बाद मुझ से तुम्हारा किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रहा.’

स्पीड पोस्ट से आए इस पत्र के मिलते ही इकबाल अहमद के घर मातम सा छा गया. शायरा बानो का रोरो कर बुरा हाल था. लेकिन वह उस वक्त कुछ भी नहीं कर सकती थी. इतना सब कुछ होने के बाद भी शायरा बानो के मायके वालों ने उसे समझाते हुए कहा कि वह हिम्मत न हारे, पूरा परिवार उस के साथ है.

शायरा बानो ने उसी दिन कसम खाई कि जहां तक हो सकेगा, इस तलाक के खिलाफ वह मुकदमा लड़ेगी और न्याय पा कर ही रहेगी.

रिजवान द्वारा तलाक देने के बाद इकबाल अहमद ने अपनी बेटी को साथ ले जा कर काशीपुर के फैमिली कोर्ट में धारा 125 के तहत अधिवक्ता गोपाल कृष्ण द्वारा भरणपोषण का मुकदमा दायर करा दिया. रिजवान को जब काशीपुर अदालत से भेजा गया भरणपोषण का नोटिस मिला तो उस ने तत्काल इलाहाबाद के परिवार न्यायालय में हक-ए-जोजियत का मुकदमा दर्ज करा दिया.

कुछ ही दिनों में इलाहाबाद के न्यायालय से शायरा को नोटिस प्राप्त हुआ, जिसे ले कर शायरा ने अधिवक्ता गोपाल कृष्ण से संपर्क किया. नोटिस देखने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेने की बात कही.

शायरा ने इस फैसले के खिलाफ स्टे लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. दिल्ली में वह सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन से मिली और अपनी दुख भरी दास्तान उन्हें सुनाई. बालाजी श्रीनिवासन ने 3 तलाक को घोर अमानवीय और असंवैधानिक मानते हुए इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की सलाह दी. शायरा बानो की तरफ से तलाक की याचिका दायर होते ही श्रीनिवासन ने उन्हें कानूनी सहायता भी उपलब्ध कराई.

इस याचिका के दायर होने के बाद यह मामला मीडिया की सुर्खियां बना तो एक के बाद एक ऐसी कई याचिकाएं दायर हो गईं. फिर तो तलाक का मामला इतना उछला कि सुप्रीम कोर्ट को इस की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन करना पड़ा. शायरा बानो के अलावा 3 तलाक को ले कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली जो अन्य मुसलिम महिलाएं थीं, उन की दुखभरी दास्तान भी कुछ कम नहीं थी. जयपुर निवासी आफरीन रहमान की कहानी भी शायरा बानो ही जैसी थी.

लंबी लड़ाई के बाद आफरीन भी इंसाफ पाने में सफल रही. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनने के लिए वह 22 अगस्त की सुबह 5 बजे ही दिल्ली पहुंच गई थी. इस ऐतिहासिक फैसले के आते ही आफरीन खूब खुश थी. इसी तरह आतिया भी 3 तलाक का शिकार हो कर जिंदगी को दांव पर लगा बैठी थी. उन्होंने भी सर्वोच्च नयालय में याचिका दायर कर रखी थी.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को सुन कर आतिया ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा कि एक साथ 3 तलाक को असंवैधानिक घोषित कर के सर्वोच्च न्यायालय ने मुसलिम महिलाओं के साथ इंसाफ किया है. आतिया को उम्मीद है कि सरकर जो भी कानून बनाएगी, वह मुसलिम महिलाओं के हक में ही होगा.

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रामपुर निवासी गुलशन परवीन के पति ने भी उसे कुछ इसी तरह से तलाक दे कर उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश की थी. गुलशन की शादी अप्रैल, 2013 को हुई थी. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहा. लेकिन एक साल बीततेबीतते उस का उस के पति से मनमुटाव रहने लगा. गुलशन का पति नोएडा में काम करता था. जबकि वह स्वयं रामपुर स्थित अपनी ससुराल में रहती थी.

गुलशन ने कई बार अपने पति से साथ ले चलने को कहा, लेकिन वह किसी भी सूरत में उसे साथ रखने को तैयार नहीं था. उस के ससुराल वाले उसे अपने ऊपर बोझ समझ कर दहेज लाने के लिए मजबूर कर रहे थे.

हालांकि उस की शादी में उस के घर वालों ने दहेज के रूप में उसे 2.5 लाख रुपए नकद दिए थे, साथ ही इलैक्ट्रौनिक का सामान व फर्नीचर सेट के साथ उन की मांग के अनुसार कपड़े भी दिए थे. इस के बाद भी उस का पति और उस के घर वाले खुश नहीं थे. इसलिए वे दहेज मांगते हुए उसे तंग करते थे. उन्होंने उस के सारे जेवर भी छीन लिए थे.

गुलशन ससुराल वालों से बुरी तरह तंग आ चुकी थी. इस के बावजूद उस का पति भी जब कभी नोएडा से आता, वह भी उसे बुरी तरह प्रताडि़त करता. गुलशन ने काफी दिनों तक ससुराल वालों की प्रताड़ना झेली, लेकिन जब उस का शरीर जवाब दे गया तो उस ने यह बात अपने बड़े भाई रईस अहमद को बताई. गुलशन का भाई रईस भी गाजियाबाद में नौकरी करता था.

गुलशन की परेशानी देखते हुए रईस उसे अपने साथ गाजियाबाद ले गया. रईस ने उस के पति को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. जब मामला ज्यादा बढ़ गया तो रईस अहमद ने उस के विरुद्ध रामपुर में ही दहेज उत्पीड़न और आपराधिक धमकी का केस दर्ज करा दिया. उसी रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

इस के बाद से गुलशन मायके में ही रहने लगी. उसी दौरान उस के पति ने 10 रुपए के एक स्टांप पेपर पर तलाकनामा लिख कर भेज दिया. लेकिन गुलशन ने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया. इस पर उस के पति ने रामपुर की फैमिली कोर्ट की शरण ली और उसी तलाकनामे के आधार पर शादी तोड़ने की मांग की.

यह जानकारी मिलते ही गुलशन के भाई रईस अहमद ने उसे उत्तराखंड काशीपुर निवासी शायरा बानो के वकील से मिलने को कहा. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका को भी संयोजित कर लिया.

3 तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली बिहार के नवादा की रहने वाली इशरत जहां ने भी थाना गोलाबाड़ी, हावड़ा कोर्ट से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी.

मूलरूप से बिहार के नवादा जिले की रहने वाली इशरत जहां का निकाह नवादा निवासी मुर्तजा के साथ सन 2001 में हुआ था. शादी के वक्त दोनों नवादा में ही रहते थे. लेकिन निकाह के बाद दोनों हावड़ा जा कर रहने लगे थे. हावड़ा जाने के बाद कुछ दिनों तक दोनों एक किराए के मकान में रहे. इशरत की परेशानी को देखते हुए उस के मायके वालों ने उसे हावड़ा में एक मकान दिला दिया था.

मुर्तजा अंसारी दुबई में काम करता था. गुजरते वक्त के साथ इशरत जहां एक के बाद एक 3 बेटियों की मां बनी. बेटी ही बेटी होने के कारण उस के ससुराल वालों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया. जबकि मुर्तजा अंसारी को इस बात से कोई लेनादेना नहीं था. वह दुबई में रह रहा था. लेकिन ससुराल वालों ने इशरत को बेटे के लिए प्रताडि़त करना शुरू कर दिया.

इशरत जानती थी कि उसे ससुराल वालों के साथ एक ही घर में रहना है. यही सोच कर वह उन से किसी तरह का बैर नहीं लेना चाहती थी. इस के बावजूद उस के ससुराल वाले मुर्तजा अंसारी से फोन कर के उसे इशरत के प्रति भड़काते रहे. फलस्वरूप दुबई में रहने के दौरान ही उस के पति मुर्तजा ने उसे फोन पर ही अचानक 3 बार तलाक कह कर निकाह तोड़ दिया.

इशरत ने यह बात अपने मायके वालों को भी बता दी थी. इस के बाद ससुराल वालों ने उसे घर से निकल जाने को कहा. वह घर से नहीं निकली तो उन्होंने उस के घर का बिजली का कनेक्शन कटवा दिया, जिस में वह रहती थी. फोन पर तलाक मिलते ही इशरत ने सन 2015 में निचली अदालत में केस डाल दिया. इस के बाद उस ने जुलाई, 2016 में अधिवक्ता नाजिया खान इलाही खान के जरिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली.

3 तलाक के खिलाफ जंग लड़ने वाली इशरत जहां ने सोचा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन की मुश्किलें कम हो जाएंगी. लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि इस ऐतिहासिक फैसले के बाद उन का सामाजिक बहिष्कार हो सकता है.

इशरत जहां की एक जंग खत्म होते ही अपनों के बीच दूसरी जंग शुरू हो गई. गरीबी के बावजूद सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाली इशरत जहां को उस के ही रिश्तेदारों और पड़ोसियों की आलोचना और बदजुबानी का शिकार होना पड़ रहा. कोर्ट के फैसले के बाद उस के ससुराल वाले और पड़ोसी उस के चरित्र को दागदार बताने में लगे हैं.

इशरत जहां हावड़ा में पिलखना स्थित मकान में रहती है. यह मकान उस के पति ने सन 2004 में शादी के बाद मिली दहेज की रकम से खरीदा था. इस मकान में उस के पति के बड़े भाई और परिवार के अन्य लोग भी रहते थे. कोर्ट का फैसला आने से इशरत जहां के हौसले बुलंद हो गए हैं.

इशरत जहां का कहना है कि सभी को अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए. तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुहिम छेड़ने वाली इशरत जहां को इन दिनों ससुराल वालों और पड़ोसियों द्वारा धमकी भरे फोन किए जा रहे हैं.

इन धमकियों को देखते हुए इशरत ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिख कर सुरक्षा की गुहार लगाई है. इशरत जहां ने अपने और बच्चों के लिए खतरे को देख कर उस पत्र की कौपी हावड़ा के पुलिस कमिश्नर औफिस और लोकल पुलिस स्टेशन को भी भेजी है.

3 तलाक को ले कर भले ही 5 महिलाएं ही अपना हक पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में गईं. लेकिन इस फैसले के आते ही देश के कोनेकोने से ऐसी महिलाओं की आवाज उभर कर सामने आ रही है, जो इस 3 तलाक से अपनी बसीबसाई जिंदगी को बरबाद कर के खून के आंसू रोने पर मजबूर हो गई थीं.

इस 3 तलाक के मुद्दे पर पहले से ही 2 धड़ों में बंटे मुसलिम रहनुमाओं की सियासत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गरमी आ गई है. जहां एक तरफ सुन्नी समुदाय के लोगों को इस फैसले से जबरदस्त आघात पहुंचा है, वहीं शिया समुदाय के लोग इस के पक्ष में आ खड़े हुए हैं.

3 तलाक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना चुकी है. अदालत ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या शायरा बानो और उन के साथ खड़ी 4 तलाक पीडि़त महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कोई लाभ मिल पाएगा, यह अभी पूरी तरह भविष्य के गर्भ में है.

15 साल में 4 निकाह 3 तलाक

उत्तर प्रदेश का बड़ा शहर है बरेली. तारा इसी शहर की है. जब वह 20 साल की थी, तभी मांबाप ने उस का निकाह जाहिद के साथ कर दिया था. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. लेकिन बच्चे नहीं हुए तो जाहिद ने दूसरी शादी कर ली और तारा को तलाक दे दिया. तारा का 7 साल का वैवाहिक जीवन बहुत ही नारकीय रहा.

तारा मांबाप के पास आ गई. चंद दिनों बाद उस का निकाह पप्पू के साथ कर दिया गया. निकाह के कुछ दिनों बाद पप्पू ने उस पर दबाव बनाया कि वह गैरमर्दों के साथ सोए. तारा ने इस का विरोध किया तो 3 साल बाद उस ने भी तलाक दे दिया.

2 बार 3 तलाक का दंश झेल चुकी तारा फिर मांबाप के पास आ गई. मांबाप गरीब थे, बेटी का घर बसाने के लिए उन्होंने एक बार फिर उस का निकाह सोनू से करवा दिया.

सोनू और तारा के बीच एक अन्य औरत के आ जाने से दोनों में झगड़ा बढ़ा और बात मारपीट तक जा पहुंची. तारा का विरोध करना सोनू को अच्छा नहीं लगा. सो 2 साल बाद उस ने भी 3 बार तलाक कह कर तारा को घर से बाहर कर दिया. मजबूरी में तारा को इस बार अपने मामू के यहां शरण लेनी पड़ी.

वहां रहते हुए 8 महीने पहले उस का चौथा निकाह शमसाद से करा दिया गया. शमसाद बच्चा चाहता था. बच्चा नहीं हुआ तो दोनों में झगड़ा रहने लगा.

फलस्वरूप बात चौथे तलाक तक आ गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद तारा ने पुलिस की शरण ली. पुलिस अब दोनों को परामर्श केंद्र भेज कर समझौता कराने की कोशिश कर रही है. तारा अब तलाक लेना नहीं चाहती.

ट्रिपल तलाक विशेष : दहेज नहीं मिला तो तलाक दे दिया

22 अगस्त, 2017 को सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी थीं. क्योंकि उस दिन सुप्रीम कोर्ट का 3 तलाक पर फैसला आने वाला था. आखिर 12 बजे के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए मुसलिमों में एक साथ 3 तलाक को अमान्य और असंवैधानिक करार दे दिया.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 महीने तक चली सुनवाई के बाद इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के खिलाफ माना.

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को जब कानपुर के पौश इलाके में रहने वाली सोफिया ने सुना तो उन्हें बहुत खुशी हुई, क्योंकि उन्हें भी इस फैसले का बेसब्री से इंतजार था. दरअसल, सोफिया भी 3 तलाक से पीडि़त थीं. उन के शौहर ने भी दहेज की मांग पूरी न होने पर उन्हें प्रताडि़त कर नशे की हालत में 3 बार तलाक कह कर घर से निकाल दिया था.

इस के बाद सोफिया पति और उस के घर वालों के खिलाफ तलाक सहित दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश करती रहीं, लेकिन शौहर की बहन सत्ता पक्ष की विधायक थीं, इसलिए उन के दबाव में पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सोफिया ने अपने घर वालों से सलाह की और शौहर तथा उस के घर वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराने थाना स्वरूपनगर पहुंच गईं.

थानाप्रभारी राजीव सिंह थाने में ही मौजूद थे. सोफिया ने उन्हें सारी बात बता कर रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया तो वह थोड़ा झिझके. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उन्हें पता था. लेकिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक गजाला लारी का भी नाम इस मामले में आ रहा था, इसीलिए वह झिझक रहे थे.

गजाला लारी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बेहद करीबी थीं. राजीव सिंह सोफिया को मना भी नहीं कर सकते थे, इसलिए अधिकारियों की राय ले कर उन्होंने सोफिया की तहरीर पर अपराध संख्या 110/2017 पर भादंवि की धारा 498ए, 323, 506 तथा दहेज उत्पीड़न की धारा 3(4) के तहत पति शारिक अहमद, सास महजबीं बेगम, ससुर तैयब कुरैशी, ननद गजाला लारी और उन के बेटे मंजर लारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर कपिल दुबे को सौंप दी.

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मामला दर्ज होते ही सोफिया सुर्खियों में आ गईं. इस की वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट का 3 तलाक पर फैसला आने के बाद देश में पहली रिपोर्ट कानपुर में सोफिया द्वारा दर्ज कराई गई थी. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया वाले सोफिया का बयान लेने उमड़ पड़े. सोफिया ने मीडिया को जो बताया और तहरीर में जो लिख कर दिया था, उस के अनुसार क्रूरता की पराकाष्ठा की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर के मुसलिम बाहुल्य वाले मोहल्ले कर्नलगंज में तैयब कुरैशी परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी महजबीं के अलावा 5 बेटियां और 2 बेटे थे. बच्चों में शारिक सब से छोटा था. तैयब कुरैशी संपन्न आदमी थे. टेनरी उन का कारोबार था. उन की एक बेटी गजाला लारी समाजवादी पार्टी से विधायक थी.

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का उस पर वरदहस्त था. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की भी वह करीबी थी. गजाला का निकाह मुराद लारी से हुआ था. वह देवरिया की सलेमपुर सीट से बीएसपी के विधायक थे. लेकिन उन की मौत हो गई तो गजाला ने सलेमपुर से चुनाव लड़ा और वह 4 हजार वोटों से जीत गईं.

उसी बीच गजाला की मुलाकात चौधरी बशीर से हुई. वह भी विधायक थे. जैसेजैसे दोनों की मुलाकातें बढ़ीं, उन के बीच दूरियां घटती गईं. 4 दिसंबर, 2011 को गजाला ने चौधरी बशीर से निकाह कर लिया. उन्होंने सन 2012 में देवरिया की रामपुर कारखाना सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. गजाला लारी कानपुर के जाजमऊ में रहती हैं. उन का एक बेटा मंजर लारी है, जो उन्नाव में पैट्रोल पंप चलाता है.

तैयब कुरैशी के बड़े बेटे का विवाह हो चुका था, जबकि छोटा बेटा शारिक अभी अविवाहित था. शारिक शरीर से हृष्टपुष्ट और खूबसूरत था. तैयब कुरैशी उस के लिए लड़की तलाश रहे थे. उसी बीच उन के यहां सोफिया का रिश्ता आया. सोफिया मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के पिता समीर अहमद की मौत हो चुकी थी. उस का ननिहाल कानपुर के पौश इलाके स्वरूपनगर में था. वह भाई और बहन के साथ नाना के साथ रहती थी. वह शादी लायक हो गई थी, इसलिए नानानानी उस के लिए लड़का देख रहे थे.

ऐसे में उन के किसी रिश्तेदार ने उन्हें तैयब कुरैशी के बेटे शारिक के बारे में बताया. तैयब कुरैशी संपन्न आदमी थे, लड़का भी ठीकठाक था, इसलिए सोफिया के नानानानी तैयब कुरैशी के घर जा पहुंचे. लड़का सोफिया के नाना को पसंद आ गया. इस के बाद तैयब कुरैशी ने भी पत्नी के साथ जा कर सोफिया को देखा. पहली ही नजर में दोनों को सोफिया पसंद आ गई.

इस के बाद रिश्ता पक्का हो गया. भाई की शादी तय होने की बात विधायक गजाला लारी को पता चली तो उन्हें भी खुशी हुई. भाई की शादी को वह यादगार बनाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित कानपुर के विधायक इरफान सोलंकी, सतीश निगम और मुनींद्र शुक्ला को भी आमंत्रित किया.

12 जून, 2015 को कानपुर के स्टेटस क्लब में धूमधाम से सोफिया का निकाह शारिक के साथ हो गया. इस विवाह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित तमाम मंत्रियों और विधायकों ने भाग लिया था. सोफिया की शादी में एक बीएमडब्ल्यू कार, 10 लाख रुपए नकद तथा 20 लाख के गहने दहेज में दिए गए थे. कुल मिला कर 75 लाख का दहेज दिया गया था. शादी के बाद सोफिया मन में रंगीन सपने लिए ससुराल आ गई.

ससुराल में सोफिया के कुछ दिन तो ठीकठाक गुजरे, पर जल्दी ही उसे लगने लगा कि वह जो सपने ले कर ससुराल आई थी, वे बिखरने लगे हैं. सास महजबीं का व्यवहार सोफिया के प्रति रूखा हो गया था. वह बातबात में सोफिया को डांटनेफटकारने के साथ मायके वालों को ताने मारती रहती थी. सोफिया यह सब बरदाश्त करती रही.

2 महीने बीते थे कि शौहर शारिक का व्यवहार भी बदल गया. वह भी बातबात में सोफिया को डांटनेफटकारने लगा. कभीकभी मां के कहने पर उसे मार भी बैठता. धीरेधीरे यह सिलसिला बढ़ता ही गया. ससुराल वालों के इस रवैए से सोफिया परेशान रहने लगी. सास हमेशा कम दहेज लाने का ताना मारती रहती.

सास की जलीकटी सुन कर सोफिया की आंखों में आंसू आ जाते. पर उस के आंसुओं को वहां कोई देखने वाला नहीं था. ससुराल में घर का काम करने के लिए नौकरनौकरानियां थे, लेकिन सोफिया को अपना सारा काम खुद करना पड़ता था. सास ने सभी नौकरों को उस का काम करने से मना कर रखा था.

सोफिया ने सास और शौहर द्वारा परेशान करने की बात कई बार ससुर तैयब कुरैशी से बताई, पर उन्होंने पत्नी और बेटे का ही पक्ष लिया. इस तरह ससुर भी उसे परेशान करने लगे. सोफिया ने परेशान करने वाली बात ननद गजाला लारी को बताई  तो उस ने भी मां और भाई का ही पक्ष ले कर सोफिया से अपना मुंह बंद रखने को कहा.

इस तरह की परेशानी में सोफिया गर्भवती हुई तो ससुराल वाले खुश होने के बजाय उन्हें जैसे सांप सूंघ गया. दरअसल, सोफिया के ससुराल वाले नहीं चाहते थे कि वह मां बने. इसलिए वे उसे और परेशान करने लगे. उसे मारापीटा तो जाता, मानसिक रूप से परेशान भी किया जाता. इस तरह परेशान करने के बावजूद भी सोफिया ने अपने गर्भ पर आंच नहीं आने दी.

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31 मई, 2016 को सोफिया ने बेटे को जन्म दिया. बेटा पैदा होने से सोफिया जहां खुश थी, वहीं ससुराल वाले परेशान थे. सोफिया का बेटा अभी एक महीने का भी नहीं हुआ था कि शारिक, उस की मां महजबीं और पिता तैयब कुरैशी ने सोफिया से मायके से एक करोड़ रुपए तथा एक लग्जरी स्पोर्ट्स कार लाने को कहा.

शारिक का कहना था कि उसे अपना कारोबार बढ़ाने के लिए रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हर हाल में वह मायके से एक करोड़ रुपए ले आए. सोफिया ने ससुराल वालों की इस मांग को ठुकराते हुए कहा कि उस के घर वाले पहले ही महंगी कार, नकदी और काफी गहने दे चुके हैं, इसलिए अब और कुछ मांगना ठीक नहीं है.

सोफिया की इस बात पर शारिक ने उस की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद रुपए और कार लाने के लिए सोफिया को प्रताडि़त किया जाने लगा. उसी बीच सोफिया को कहीं से पता चला कि शारिक के किसी लड़की से मधुर संबंध हैं. उस ने सच्चाई का पता लगा लिया और वह पति के इस संबंध का विरोध करने लगी तो उसे और ज्यादा प्रताडि़त किया जाने लगा.

जुलाई, 2016 में परेशान हो कर सोफिया ननिहाल आ गई. ननिहाल में आने के कुछ दिनों बाद ही उस के बेटे की तबीयत खराब हो गई, वह उसे दिखाने के लिए डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कहा कि वह अपने शौहर को साथ लाए, तभी बच्चे का इलाज संभव है. सोफिया ने घर आ कर शारिक को फोन किया तो उस ने कहा कि वह शहर से बाहर है.

सोफिया ने किसी परिचित को शारिक के बाहर होने की बात कह कर मदद मांगी तो उस परिचित ने बताया कि शारिक शहर से बाहर नहीं है, वह रेव थ्री मौल में घूम रहा है. सोफिया तुरंत मौल पहुंच गई. शारिक सचमुच वहां एक लड़की के साथ घूमता मिल गया. वह उस से हंसहंस कर बातें कर रहा था.

शौहर को लड़की के साथ देख कर सोफिया को गुस्सा आ गया. वह लड़की को खरीखोटी सुनाने लगी तो शारिक ने विरोध किया. इस के बाद दोनों में झगड़ा होने लगा. गुस्से में सोफिया ने शारिक को थप्पड़ मार दिया. झगड़ा होते देख भीड़ जुट गई. मामला थाना कोहना पहुंचा.

सोफिया ने रिपोर्ट लिखानी चाही. लेकिन शारिक ने अपना परिचय दे कर बताया कि वह सत्तापक्ष की विधायक गजाला लारी का भाई है तो पुलिस ने पतिपत्नी का झगड़ा बता कर रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस के बाद सोफिया का ससुराल में उत्पीड़न और बढ़ गया. उस ने गजाला लारी से शिकायत की तो घर की इज्जत की बात कर गजाला ने उस का मुंह बंद करा दिया.

बहन के दखल से शारिक के हौसले और बढ़ गए. वह सोफिया को और ज्यादा परेशान करने लगा. 13 अगस्त, 2016 को शारिक शराब पी कर आया और सोफिया से गालीगलौज करने लगा. सोफिया ने विरोध किया तो उस ने मारनापीटना शुरू कर दिया.

इस के बाद नशे में ही शारिक ने ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रात 3 बजे मासूम बच्चे के साथ सोफिया को घर से निकाल दिया. सोफिया ने ननिहाल जाने से मना किया तो जबरन कार में बैठा कर सुनसान इलाके में ले जा कर सोफिया और बच्चे को जान से मारने की कोशिश की. सोफिया ने शोर मचा दिया तो कुछ लोग आ गए, जिस से सोफिया बच गई. खुद को फंसता देख कर शारिक कार ले कर भाग गया.

शारिक को शक था कि सोफिया पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएगी, इसलिए उस ने पूरी बात विधायक बहन गजाला लारी को बता दी. गजाला ने सोफिया से बात की और रिपोर्ट दर्ज कराने से मना किया. गजाला के बेटे मंजर ने भी सोफिया को धमका कर किसी भी तरह की काररवाई करने से मना किया.

लेकिन किसी भी तरह के दबाव में न आ कर सोफिया थाना स्वरूपनगर पहुंच गई. लेकिन पुलिस ने विधायक से जुड़ा मामला जान कर रिपोर्ट दर्ज नहीं की. सोफिया थाने से बाहर निकली तो रास्ते में शारिक मिल गया. उस ने एक बार फिर उस के साथ मारपीट की. यह स्थान थाना कोहना के अंतर्गत आता था.

सोफिया थाना कोहना पहुंची और शौहर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहा. यहां भी विधायक की वजह से रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई. हताश हो कर सोफिया घर लौट आई. इस के बाद भी गजाला और उस का बेटा मंजर उसे धमकाते रहे. काफी प्रयास के बाद भी जब सोफिया का तलाक और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज नहीं हुआ तो सोफिया ने भाजपा के कुछ नेताओं से संपर्क किया.

उन नेताओं को अपनी व्यथा बता कर मदद मांगी तो उन की मदद से सितंबर, 2016 में थाना कर्नलगंज पुलिस ने सोफिया की तहरीर पर घरेलू हिंसा का मामला मामूली धाराओं में दर्ज कर लिया. पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन सत्ता पक्ष की विधायक गजाला लारी के दबाव में कोई काररवाई नहीं की. इस तरह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा.

चूंकि भाजपा नेताओं ने सोफिया की मदद की थी, इसलिए सोफिया ने उन के कहने पर 13 दिसंबर, 2016 को भाजपा के क्षेत्रीय कार्यालय में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. इस के बाद वह भाजपा की सक्रिय सदस्य बन गई. सोफिया उत्पीड़न के खिलाफ लड़ ही रही थी कि 3 तलाक का मुद्दा उठा और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 18 महीने तक सुनवाई की और 22 अगस्त, 2017 को 3 तलाक के खिलाफ फैसला सुना दिया.

इस फैसले के चंद घंटे बाद ही सोफिया थाना स्वरूपनगर पहुंच गई और ससुराल वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. सोफिया को भरोसा है कि अब सपा सरकार नहीं है, इसलिए उस की ननद गजाला लारी का सिक्का नहीं चलेगा और उन्हें न्याय मिलेगा.

इस सब के बारे में जब सपा की पूर्व विधायक गजाला लारी, उन के मातापिता तथा भाई शारिक से बात की गई तो उन्होंने सोफिया के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सोफिया अपने मन से मायके गई थी. उस से कभी दहेज नहीं मांगा गया. उसे कभी प्रताडि़त भी नहीं किया गया, बल्कि वह खुद ही उन लोगों को परेशान करती रही थी.

गजाला का कहना था कि सोफिया ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है, इसलिए भाजपा नेताओं के उकसाने पर दहेज उत्पीड़न और अन्य धाराओं में उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है. जांच में सच्चाई सामने आ जाएगी. उन के बेटे मंजर लारी का भी इस मामले से कोई संबंध नहीं है. परेशान करने के लिए उसे भी आरोपी बना दिया गया है.

बहरहाल, मामले की जांच चल रही है. सबइंसपेक्टर कपिल दुबे कई बार छापा मार चुके हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई भी पकड़ा नहीं जा सका है. पुलिस पकड़ने का प्रयास कर रही है.

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धोखे से तलाकनामे पर हस्ताक्षर

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूरमार क्षेत्र के टीकर गांव के रहने वाले मोहम्मद इसलाम के बेटे आजम का निकाह 17 मार्च, 2016 को अंबेडकर जिले के भीटी थाना क्षेत्र के रेऊना गांव के रहने वाले शाकिर अली की बेटी रोशनजहां से हुआ था. निकाह के बाद से ससुराल वाले रोशनजहां को दहेज के लिए ताना देने लगे थे.

उन लोगों की मांग थी कि रोशनजहां के घर वाले एक लाख रुपया नकद और सोने की अंगूठी दें. दहेज न मिलने पर रोशनजहां के साथ मारपीट शुरू हो गई. एक दिन वह भी आया, जब रोशनजहां को मारपीट कर घर से निकाल दिया गया. रोशन के पिता ने बेटी का घर बचाने के लिए सुलह का प्रयास किया. 16 अप्रैल, 2017 को धर्म के कुछ संभ्रांत लोगों की मौजूदगी में पंचायत हुई.

इसी दौरान रोशन के शौहर आजम ने उसे धोखे से बहलाफुसला कर तलाकनामे पर हस्ताक्षर करा लिए. जब यह बात रोशनजहां को पता चली तो सदमे में आ गई.

कोई रास्ता न देख उस ने थाने जा कर पति मोहम्मद आजम, ससुर मोहम्मद इसलाम, सास आयशा बेगम, ननद गुडि़या और देवर गुड्डू के खिलाफ तहरीर दे कर काररवाई की मांग की.

थानाप्रभारी नंदकुमार तिवारी ने पांचों आरोपियों के विरुद्ध भादंवि की धारा 498ए और 323 व 3/4 दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कर के सभी को गिरफ्तार कर लिया.

वे देश जहां 3 तलाक पर पाबंदी है

देश को आजाद हुए 70 साल हो गए हैं, लेकिन मुसलिम महिलाओं को असली आजादी 22 अगस्त को तब मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने 3 तलाक पर रोक लगाते हुए इसे असंवैधानिक करार दे दिया. एक तरह से 3 तलाक पर अब प्रतिबंध लग गया है. यह प्रतिबंध लगाने में देश को 70 साल लग गए, जबकि दुनिया के ऐसे तमाम देश हैं, जहां इस पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं—

पाकिस्तान : सन 2015 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान की जनसंख्या 19,90,85,847 है. यह दुनिया का दूसरा सब से अधिक मुसलिम आबादी वाला देश है. वहां ज्यादातर सुन्नी हैं, लेकिन शिया मुसलमानों की संख्या भी काफी है. पाकिस्तान ने सन 1961 में ही 3 तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया था.

पाकिस्तान में एक कमेटी की सिफारिशों के आधार पर 3 तलाक को खत्म करने के लिए नियम बनाए गए थे. वहां 3 तलाक लेने के लिए पहले पति को सरकारी संस्था (चेयरमैन औफ यूनियन काउंसिल) के यहां नोटिस देनी पड़ती है. इस के 30 दिनों बाद काउंसिल दोनों के बीच समझौता कराने की कोशिश करती है. इस के बाद 90 दिनों तक इंतजार किया जाता है. इस बीच अगर समझौता हो गया तो ठीक, वरना तलाक मान लिया जाता है.

अल्जीरिया : अफ्रीकी महाद्वीप के देश अल्जीरिया में मुसलिम आबादी 3.47 करोड़ है. यहां भी 3 तलाक पर प्रतिबंध है. अगर कोई दंपत्ति तलाक लेना चाहत है तो उसे कोर्ट की शरण में जाना पड़ता है. कोर्ट पहले दोनों के बीच सुलह की कोशिश करता है, इस के लिए 3 महीने का समय मिलता है. इस बीच अगर सुलह नहीं होती तो कोर्ट कानून के मुताबिक ही तलाक मिलता है.

मिस्र : 7.70 करोड़ से ज्यादा की मुसलिम आबादी वाला देश मिस्र, ऐसा पहला देश है, जहां सन 1929 में कानून-25 के द्वारा घोषणा की गई थी कि एक साथ 3 तलाक कहने पर भी उसे एक ही माना जाएगा और उसे वापस भी लिया जा सकता है.

सामान्य तौर पर जल्दी से जल्दी तलाक लेने का तरीका यह होता है कि पति अपनी पत्नी से 3 तलाक अलगअलग बार जब मासिक चक्र न चल रहा हो, कह कर तलाक ले सकता है. लेकिन मिस्र में इसे 3 तलाक का पहला चरण माना गया है. इस के बाद वहां तलाक के लिए 90 दिन का इंतजार करना पड़ता है.

ट्यूनीशिया : उत्तरी अफ्रीकी महाद्वीप के ट्यूनीशिया देश की मुसलिम आबादी 1.09 करोड़ से ज्यादा है. यहां सन 1956 में तय कर दिया गया था कि तलाक कोर्ट के जरिए ही होगा. कोर्ट पहले दोनों पक्षों में सुलह कराने की कोशिश करता है. जब दोनों में सुलह नहीं होती तो तलाक मान लिया जाता है.

बांग्लादेश : भारत के पड़ोसी और सन 1971 में आजाद हुए बांग्लादेश में मुसलिम आबादी करीब 13.44 करोड़ है. 3 तलाक पर बांग्लादेश में भी प्रतिबंध है. सन 1971 से ही बांग्लादेश में 3 तलाक कोर्ट में मान्य नहीं है.

इंडोनेशिया : दुनिया का सब से ज्यादा मुसलिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है. यहां मुसलमानों की कुल आबादी 20.91 करोड़ से ज्यादा है. इंडोनेशिया में मैरिज रेग्युलेशन एक्ट के आर्टिकल 19 के तहत तलाक कोर्ट के जरिए ही दिया जा सकता है. 3 तलाक वहां मान्य नहीं है.

श्रीलंका : श्रीलंका में कुल आबादी का 10 फीसदी मुसलमान हैं. यहां के नियमों के मुताबिक, कोई मुसलिम पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे मुसलिम जज काजी को नोटिस देना होता है. इस के बाद जज के साथसाथ दोनों परिवारों के सदस्य उन्हें समझाते हैं. अगर  ?      ?दोनों किसी की बात नहीं मानते तो उन्हें नोटिस दी जाती है. इस के 30 दिनों बाद युवक पत्नी को तलाक दे सकता है. इस के लिए उसे एक मुसलिम जज और 2 गवाहों की भी जरूरत पड़ती है.

यहां शादी और तलाक मुसलिम कानून, 1951 जो 2006 में संशोधित हुआ था, के मुताबिक तुरंत दिया गया 3 तलाक किसी भी नियम के तहत मान्य नहीं है.

तुर्की : तुर्की ने सन 1926 में स्विस सिविल कोड अपना लिया था. यह यूरोप में सब से प्रगतिशील और सुधारवादी कानून माना जाता है. इस के बाद 3 तलाक कानूनी प्रक्रिया के द्वारा ही दिया जा सकता है.

साइप्रस : साइप्रस में मुसलिम आबादी 2.64 लाख है. साइप्रस में भी 3 तलाक कानूनी प्रक्रिया द्वारा ही दिया जाता है.

इराक : एक साथ 3 तलाक को एक ही तलाक माना जाता है. यह ऐसा देश है, जहां पतिपत्नी दोनों ही तलाक दे सकते हैं. इस बीच अदालत झगड़े की वजह की जांच कर सकती है. अदालत सुलह के लिए 2 लोगों की नियुक्ति भी कर सकती है. उस के बाद वह मध्यस्थता कर अंतिम निर्णय सुनाती है.

सूडान : सन 1935 में कुछ प्रावधानों के साथ सूडान ने भी इसी कानून को अपना लिया.

मलेशिया : मलेशिया के सारावाक प्रांत में बिना जज के सलाह के पति तलाक नहीं दे सकता. उसे अदालत में तलाक का कारण बताना होता है. वहां शादी राज्य और न्यायपालिका के अंतर्गत होती है.

ईरान : शिया कानूनों के तहत 3 तलाक को मान्यता नहीं दी गई है.

संयुक्त अरब अमीरात, कतर, जोर्डन: 3 तलाक के मुद्दे पर तैमिया के विचार को स्वीकार कर लिया है.

सीरिया : सन 2014 की जनगणनना के मुताबिक यहां 74 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं, लेकिन यहां 1953 से ही 3 तलाक पर प्रतिबंध लगा हुआ है.

ट्रिपल तलाक विशेष : स्पीड पोस्ट से आया तलाक

यह जनवरी, 2016 की दोपहर की बात है. कड़ाके की सर्दी पड़ने की वजह से आफरीन रहमान जयपुर स्थित अपने घर पर ही थीं. उन का खाना खाने का मन नहीं था, इसलिए कुरसी पर बैठ कर वह सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए, क्योंकि घर के सारे काम वह पहले ही निपटा चुकी थीं. वह कुरसी पर बैठी थीं कि तभी उन की नजर सामने सैंटर टेबल पर पड़ी पत्रिका पर पड़ गई.

उसे एक दिन पहले ही वह बाजार से खरीद कर लाई थीं. रात को वह उसे पढ़ रही थीं, तभी उन्हें नींद आ गई थी. तब मैगजीन सैंटर टेबल पर रख कर वह सो गई थीं. मैगजीन देख कर आफरीन को उस कहानी की याद आ गई, जिसे वह पढ़ रही थीं. वह एक महिला की कहानी थी, जिसे पति ने घर से निकाल दिया था. इस समय वह महिला मायके में भाइयों के साथ रह रही थी.

आफरीन ने उसी कहानी को पढ़ने के लिए मैगजीन उठा ली. वह पन्ने पलट रही थीं, तभी डोरबैल बजी. आफरीन सोच में पड़ गईं कि इस समय दोपहर में कौन आ गया? उन्होंने बैठेबैठे ही आवाज लगाई, ‘‘कौन..?’’

बाहर से जवाब आने के बजाय दोबारा डोरबैल बजी तो आफरीन मैगजीन मेज पर रख कर अनमने मन से उठीं और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोलने से पहले एक बार फिर पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैडम, मैं पोस्टमैन.’’ बाहर से आवाज आई.

आफरीन ने दरवाजा खोला तो बाहर खाकी वर्दी में पोस्टमैन खड़ा था. उस ने एक लिफाफा आफरीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप के यहां आफरीन रहमान कौन हैं? यह स्पीड पोस्ट आई है.’’

‘‘मैं ही आफरीन रहमान हूं.’’ उन्होंने कहा.

‘‘मैडम,’’ पोस्टमैन ने एक कागज आफरीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘इस पर दस्तखत कर दीजिए.’’

कागज थाम कर आफरीन ने पोस्टमैन की ओर देखा तो उस ने अपनी जेब से पैन निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. आफरीन ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए तो पोस्टमैन ने एक लिफाफा उन्हें थमा दिया. आफरीन ने दरवाजा बंद किया और कमरे में आ कर उस लिफाफे को उलटपलट कर देखने लगी. वह स्पीड पोस्ट उन्हीं के नाम थी. पत्र भेजने वाले की जगह अशहर वारसी, इंदौर लिखा था.

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इंदौर से अशहर का पत्र देख कर आफरीन खुश हो गईं लेकिन तुरंत ही अपनी उस खुशी को झटक कर वह सोचने लगीं कि अगर अशहर को उस की जरूरत होती तो वह खुद आता या फोन करता. पत्र भेजने की क्या जरूरत थी? आफरीन के मन में तरहतरह की आशंकाएं उपजने लगीं. 5-6 महीने बाद उस ने इस तरह क्यों याद किया? यह चिट्ठी क्यों भेजी, वह भी स्पीड पोस्ट से?

आफरीन का मन बैठने सा लगा. उन्होंने कांपते हाथों से स्पीडपोस्ट का वह लिफाफा खोला. उस में से एक कागज निकला. उन्होंने वह कागज खोला तो उस पर लिखा था ‘तलाक…तलाक… तलाक…’. उन्होंने एक बार फिर उस कागज पर लिखी इबारत पढ़ी. उस पर वही लिखा था, जो उन्होंने पहले पढ़ा था.

आफरीन ने उस कागज पर लिखे शब्दों को कई बार पढ़ा. उस तलाकनामा को देख कर उन की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह कुरसी पर बैठ गईं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन की खुशियों को इतनी जल्दी ग्रहण कैसे लग गया? उन्हें जो खुशियां मिली थीं, वे इतनी जल्दी कैसे छिन गईं?

उन्होंने तो ऐसी कोई गलती भी नहीं की थी कि उस गलती की इतनी बड़ी सजा मिल रही हो. करीब डेढ़, दो साल पहले अशहर से रिश्ता तय होना, उस की बेगम बन कर जयपुर से इंदौर जाना, कुछ ही दिनों में ससुराल वालों की ओर से दहेज के लिए उन पर अत्याचार करना और फिर एक दिन उन्हें घर से निकाल देने की एकएक घटना उस के जेहन में फिल्म की तरह चलने लगी.

सन 2014 के मईजून महीने की बात रही होगी. जयपुर की रहने वाली 23 साल की आफरीन रहमान अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी कर नौकरी तलाश रही थी. उस के पिता मोहम्मद नसीर की सन 2009 में कौर्डियक अटैक से मौत हो गई थी. उस के बाद परिवार की जिम्मेदारी आफरीन के 2 भाइयों पर आ गई थी.

परिवार में आफरीन, मां और 2 भाई थे. भाई चाहते थे कि आफरीन का जल्द से जल्द निकाह हो जाए. वैसे भी आफरीन शादी लायक हो चुकी थी. उस की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी. भाई उस के लिए रिश्ता तलाश रहे थे. उसी बीच एक मैट्रीमोनियल वेबसाइट के माध्यम से अशहर वारसी और आफरीन में जानपहचान हुई.

अशहर वारसी मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के रहने वाले थे. वह वकालत करते थे. जानपहचान हुई तो बात शादी की चली. अशहर ने आफरीन को देखा और आफरीन ने अशहर को. दोनों ही एकदूसरे को पसंद आ गए. इस के बाद घर वालों की रजामंदी से नातेरिश्तेदारों की मौजूदगी में रिश्ता तय हो गया.

रिश्ता तय होने पर आफरीन अपने सपनों के राजकुमार अशहर के साथ भविष्य के सपने बुनने लगी. अशहर जवान थे और खूबसूरत भी. आफरीन ने पहले ही तय कर लिया था कि वह किसी अच्छे पढ़ेलिखे लड़के से ही शादी करेगी. अशहर वकालत की पढ़ाई कर के प्रैक्टिस कर रहे थे.

सब कुछ ठीकठाक था, इसलिए आफरीन के भाई और मां इस बात से बेफिक्र थे कि नाजनखरों में पली उन की लाडली को ससुराल में कोई परेशानी नहीं होगी. आफरीन की मां को केवल इसी बात का दुख था कि आफरीन जयपुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर इंदौर चली जाएगी.

मां की इस बात पर आफरीन के भाई यह कह कर उन्हें सांत्वना देते थे कि आजकल इतनी दूरी कुछ भी नहीं है. सुबह जा कर रात में जयपुर आया जा सकता है. अशहर के घर वाले चाहते थे कि निकाह धूमधाम से हो. उन की चाहत को देखते हुए आफरीन के भाइयों ने शादी की तैयारी शुरू कर दी.

बहन की शादी के लिए उन्होंने इधरउधर से कर्ज भी लिया. लेकिन भाइयों ने शादी 4 सितारा होटल में की. 24 अगस्त, 2014 को आफरीन रहमान और अशहर वारसी की शादी धूमधाम से हो गई. आफरीन की शादी में उस के भाइयों ने अपनी हैसियत से ज्यादा दहेज दिया, ताकि उन की बहन को ससुराल में कोई परेशानी न हो.

शादी के बाद आफरीन इंदौर चली गई. शुरुआती दिन हंसीखुशी में निकल गए. अशहर भी खुश था और आफरीन भी. आफरीन को अपने शौहर के वकील होने का फख्र था तो अशहर को भी अपनी बेगम के उच्च शिक्षित होने की खुशी थी. न तो आफरीन को कोई गिलाशिकवा था और ना ही अशहर को.

दोनों मानते थे कि पढ़ालिखा होने से वे अपनी जिंदगी को खुशहाल बना लेंगे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन आफरीन की खुशियां ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रह सकीं. शादी के 3-4 महीने बाद ही अशहर और उस के घर वालों का व्यवहार बदलने लगा. जो अशहर आफरीन से प्यारमोहब्बत की बातें करते नहीं थकता था, वह उसे आंखें तरेर कर बातें करने लगा.

ससुराल वालों का भी व्यवहार बदल गया था. वे दहेज और अन्य बातों को ले कर ताने मारने लगे थे. आफरीन समझ नहीं पा रही थीं कि यह सब क्यों होने लगा? मौका मिलने पर वह अशहर को समझाने की कोशिश करती, लेकिन अशहर समझने के बजाय उन्हें ही दोषी ठहराता.

आफरीन पढ़ीलिखी और समझदार थीं. वह जानती थीं कि इन बातों का परिणाम अच्छा नहीं होगा. वह भाइयों की स्थिति को भी जानती थीं. अब वे इस हालत में नहीं थे कि बहन की ससुराल वालों की दहेज की मांग पूरी कर सकते. वह यह भी जानती थीं कि अगर एक बार इन की दहेज की मांग पूरी भी कर दी गई तो क्या गारंटी कि ये आगे कुछ नहीं मांगेंगे. उन्हें परेशान नहीं करेंगे.

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यही सोच कर आफरीन ससुराल वालों के अत्याचार सहती रहीं. वह जब भी अकेली होतीं, उस समय को कोसती रहतीं, जब उन की अशहर से जानपहचान हुई थी. उन का सोचना था कि शायद कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. ससुराल वालों के अत्याचार लगातार बढ़ते ही गए. अब उन के साथ मारपीट भी होने लगी थी, जिसे वह यह सोच कर सहन करती रहीं कि एक न एक दिन यह सब ठीक हो जाएगा.

अशहर घर वालों के कहने पर चल रहा था. वह आफरीन से सीधे मुंह बात भी नहीं करता था. बात सिर से गुजरने लगी तो आफरीन ने अपनी परेशानी भाइयों को बताई. भाई इंदौर गए और अशहर तथा उस के घर वालों को समझाया. अपनी आर्थिक स्थिति भी बताई.

इस के बाद महीना, 15 दिन तक आफरीन के प्रति ससुराल वालों का रवैया ठीक रहा, पर इस के बाद फिर वे उसे परेशान करने लगे. यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा. शादी के करीब एक साल बाद अगस्त, 2015 में अशहर और उस के घर वालों ने पैसे और कई तरह का अन्य सामान लाने की बात कह कर आफरीन से मारपीट की और उन्हें घर से धक्के मार कर निकाल दिया.

आफरीन सब के सामने गिड़गिड़ाती रहीं और कहती रहीं कि उन के भाइयों की इतनी हैसियत नहीं है कि वे उन की मांगें पूरी कर सकें. ससुराल वालों ने उन की एक भी बात नहीं सुनी. आफरीन क्या करती? वह जयपुर भाइयों के पास आ गईं. भाइयों ने अशहर और उन के घर वालों से बात की. नातेरिश्तेदारों से दबाव डलवाया.

आखिर 7-8 दिनों बाद आफरीन के ससुराल वाले आ कर उन्हें इंदौर ले गए. आफरीन भी यह सोच कर उन के साथ चली गईं कि शायद अब इन्हें अक्ल आ गई होगी. लेकिन जल्दी ही ससुराल में उन के साथ फिर वैसा ही व्यवहार होने लगा. अशहर और उन के घर वाले फिर दहेज की मांग करते हुए उन के साथ मारपीट करने लगे. ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जिस दिन उन्हें ससुराल न मारा जाता रहा हो.

आफरीन ने एक बार फिर अशहर को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. सितंबर, 2015 में अशहर और उस के घर वालों ने एक बार फिर मारपीट कर आफरीन को घर से निकाल दिया. आंखों से आंसू लिए आफरीन एक बार फिर जयपुर स्थित अपने मायके आ गईं. आफरीन अपने भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं.

आफरीन पढ़ीलिखी थीं, इसलिए अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं. जयपुर में वह नौकरी की तलाश करने लगीं. उसी बीच उन पर दुखों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. अक्तूबर, 2015 में जयपुर से जोधपुर जाते समय सड़क दुर्घटना में आफरीन की मां की मौत हो गई. हादसे में उन्हें भी चोटें आई थीं.

आफरीन की ससुराल वालों को सूचना भेजी गई. अशहर जयपुर आया जरूर, लेकिन 2-3 दिन रुक कर चला गया. उस ने आफरीन को ले जाने की बात एक बार भी नहीं की. आफरीन के भाइयों ने कहा भी तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आफरीन जयपुर में रहते हुए अपने भविष्य के बारे में सोच रही थीं.

कभीकभी उन्हें लगता था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. अशहर को जिस दिन उस की अहमियत का अहसास होगा, वह जयपुर आ कर उसे ले जाएगा. लेकिन उन का यह सोचना केवल मन को तसल्ली देने वाली बात थी. जयपुर में रहते हुए आफरीन को पता नहीं था कि उस के शौहर अशहर के मन में क्या चल रहा है? जनवरी, 2016 के आखिरी सप्ताह में स्पीडपोस्ट से अशहर का भेजा तलाकनामा आ गया.

तलाकनामा में 3 बार लिखे ‘तलाक…तलाक…तलाक…’ को पढ़ कर आफरीन की आंखों में आंसू आ गए. वह सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए? उन्होंने अपने भाइयों तथा मिलनेजुलने वालों से राय ली. सभी ने उन की हिम्मत बढ़ाई. वह कुछ महिला संगठनों, मुसलिम संगठनों एवं वकीलों से मिलीं. आखिर उन्होंने 3 तलाक के सिस्टम को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया.

इस बीच, अप्रैल 2016 में आफरीन के बड़े भाई फहीम की दुर्घटना में मौत हो गई. एक तरफ आफरीन का विवाह टूट रहा था और दूसरी ओर 7 महीने के अंदर मां और बड़े भाई की हादसों में हुई मौत ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था. परिवार में भाभी और एक छोटा भाई ही बचा था.

इस के बावजूद आफरीन ने अपना दिल कड़ा किया. 3 तलाक के खिलाफ अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2016 में आफरीन की यह याचिका स्वीकार कर ली.

3 तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली आफरीन देश की दूसरी महिला थीं.

इस से पहले उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने फरवरी, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 3 तलाक और बहुविवाह को खत्म करने का आग्रह किया था.

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आफरीन का कहना है कि 3 तलाक पूरी तरह से नाइंसाफी है. उन की तलाक की इच्छा थी या नहीं, यह उन से एक बार भी नहीं पूछा गया. इस तरह चिट्ठी के जरिए तलाक देना अपने आप में क्रूरता है. इस तरह तलाक दे कर महिलाओं के अधिकारों और इच्छाओं को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब आफरीन पति से मेहर की रकम और गुजारा भत्ता चाहती हैं.

दर्द के दरिया में डूबी मुमताज

उत्तर प्रदेश के झांसी के थाना सीपरी के इलाके की आवास विकास कालोनी की रहने वाली मुमताज बेगम का निकाह 21 दिसंबर, 2003 को वहीं के रहने वाले वारिस उज्जमा के साथ हुआ था. शादी के बाद वह जल्दी ही गर्भवती भी हो गई. लेकिन उस के पति और ससुराल वालों ने कहना शुरू कर दिया कि उन्हें बेटा चाहिए.

जब दिसंबर, 2004 में मुमताज बेटी की मां बनी तो उस पर मुसीबतें टूट पड़ीं. उत्पीड़न के साथ पति और ससुराल वाले उस पर यह कह कर मायके से 5 लाख रुपए लाने के लिए दबाव डालने लगे कि उस की बेटी मायके की है. उस की शादी के लिए पैसे की जरूरत पड़ेगी.

बात बेटी की शादी बचाने की थी. पूरा हालहवाल जान कर मायके वालों ने यह कह कर कि जब बेटी बड़ी हो जाए तो प्लौट बेच कर उस की शादी कर दी जाएगी. मुमताज के नाम एक प्लौट की रजिस्ट्री करा दी गई. कुछ समय शांति रही. इस बीच मुमताज एक बेटे और एक बेटी की मां बनी. इस के बावजूद फिर से मुमताज के साथ बदसलूकी शुरू हो गई. मारपीट भी होने लगी.

जल्दी ही वह दिन भी आ गया, जब 3 तलाक कह कर वारिस उज्जमा ने उसे घर से निकाल दिया. बाद मे उस ने बाकायदा लिख कर शरिया हिसाब से उसे तलाक दे दिया.

मुमताज ने समाज के ठेकेदारों से न्याय दिलाने की मांग की. मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड  से संबंद्ध अदालत के काजी (जज) से संपर्क किया.  लेकिन सब ने एक ही बात कही कि यह धर्म का मामला है, तलाक हो चुका है. इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता. औल इंडिया पर्सनल लौ बोर्ड से संबंद्ध दारुल कजा शरई अदालत के मुफ्ती सिद्दीकी नकवी ने कहा कि बेशक तलाक का तरीका गलत है, पर तलाक तो हो ही गया है, इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता.

अब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद मुमताज को न्याय मिल सकेगा. अभी तक वह न्याय के लिए धर्म के ठेकेदारों के पास भटकती रही, जिन्होंने उसे दिलाशा देना तक उचित नहीं समझा.

राजस्थान में दीनदयाल उपाध्याय बने सरकारी महापुरुष

राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार भारतीय जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय को महापुरुष का सरकारी दर्जा देने जा रही है. राज्य सरकार ने तय किया है कि सरकारी कार्यक्रमों में महात्मा गांधी की तसवीर के साथ अब उन की तसवीर भी लगाई जाएगी. इस के साथ ही ‘गांधी जयंती’ की तर्ज पर उन का जन्मदिन मनाने को ले कर भी विचार किया जा रहा है. सरकारी लैटरपैड और आदेशों में दीनदयाल उपाध्याय का फोटो भी अनिवार्य किया जाएगा. इस से पहले प्रदेश के सरकारी इश्तिहारों में उन की तसवीर अनिवार्य करने के साथ ही स्कूलों की लाइब्रेरी में उन की जीवनी रखना अनिवार्य किया जा चुका है.

सरकारी इश्तिहारों की तर्ज पर लैटरपैड व आदेशों में भगवा रंग में दीनदयाल उपाध्याय की तसवीर वाला लोगो छापा जाएगा. भाजपा विधायकों के लैटरपैड पर भी उन की तसवीर छापना अनिवार्य किया गया है. 11 दिसंबर, 2017 के एक शासनादेश के मुताबिक, अब सरकारी पत्राचार के लिए इस्तेमाल में आने वाले लैटरपैड पर दीनदयाल उपाध्याय का लोगो लगाना अनिवार्य होगा. राज्य सरकार के सभी 72 महकमों, बोर्डों, निकायों, निगमों, स्वायत्त संस्थाओं को उन के पुराने छपे लैटरपैड पर दीनदयाल उपाध्याय का लोगो का स्टीकर लगवाना होगा. साथ ही, आगे से जो स्टेशनरी छपवाई जाएगी, उस पर भी यह लोगो होना जरूरी है.

11 दिसंबर के इस शासनादेश पर प्रमुख सचिव के दस्तखत हैं और इसे तुरंत लागू करने की बात कही गई है. कांग्रेस व दूसरी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने इस का जबरदस्त विरोध किया है. कांग्रेस ने वसुंधरा राजे सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को लागू किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह से शिक्षा का भगवाकरण किया गया है, उसी तरह अब प्रशासन का भगवाकरण करने की कोशिश की जा रही है.

भाजपा द्वारा इस आदेश को ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष’ के लिए बनी कमेटी के लैवल पर लिया गया फैसला बता कर बचाव किया जा रहा है. प्रदेश के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सरकारी पत्रों पर फोटो वाला लोगो लगा कर सरकार दीनदयाल उपाध्याय का सम्मान कर रही है. उन्होंने जो काम किए हैं, उस का हम सम्मान कर रहे हैं. कांग्रेस का काम ही विरोध करना है.

कांग्रेस के प्रदेश महासचिव ने भाजपा से जवाब मांगा है कि पहले सरकार यह साफ करे कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का आजादी की लड़ाई और देश को बनाने में क्या योगदान था? साथ ही, भाजपा जनता के बीच यह भी खुलासा करे कि वह उन्हें अशोक महान के समान क्यों मानती है? इस से पहले भी भाजपा सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार के आरोप सच साबित होते रहे हैं.

22 सितंबर, 2017 को विदेश मंत्रालय ने अपनी आधिकारिक वैबसाइट के होमपेज पर ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज्म’ शीर्षक से एक ईबुक अपलोड की थी. इस ईबुक, जिसे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की कड़ी मेहनत का नतीजा बताया था, में आजाद भारत के शुरुआती इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया था. उस समय भी सवाल उठा था कि क्या सत्ताधारी दल को अपना प्रचारप्रसार करने के लिए जनता के पैसे और सरकारी संस्थाओं का गलत इस्तेमाल करने की छूट है?

इस के बाद उत्तर प्रदेश के स्कूलों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी के मौके पर भाजपा द्वारा कराई गई सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता पर भी सवाल उठे थे. इस प्रतियोगिता की तैयारी के लिए छात्रों को दी गई किताब पर हिंदुत्व की विचारधारा की प्रचार सामग्री होने की बात कही गई थी. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन किया गया है. इस तरह के दर्जे पहले पुराने जमाने में धार्मिक लोग बांटते थे. राजा व राज्य व्यवस्था गांव प्रमुख, जनप्रमुख वगैरह के रूप में नियुक्तियां जरूर देती थी, जिस का काम प्रशासन का काम देखना, दूसरे कामों में मदद करना व कर वसूली में मदद करना होता था.

मौर्यकाल के समय के ब्राह्मण ग्रंथ पढ़ेंगे तो उन में मौर्य राजाओं को शूद्र का दर्जा दिया गया था. बौद्ध ग्रंथ, स्तंभ, शिलालेख वगैरह पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि उन में मौर्यों को क्षेत्रीय का दर्जा दिया गया था व जैन ग्रंथों में भी मौर्यों को शूद्र बताया गया था.

मौर्यों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया था इसलिए ऊंचा दर्जा मिल गया. ब्राह्मण धर्म को किनारे कर दिया गया तो नाराज ब्राह्मणों ने मौर्यों को शूद्र का दर्जा दे दिया. जैन धर्म को भी सत्ता का संरक्षण नहीं मिला व बौद्धों के भारी विरोध के बाद वे मगध से भाग कर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में जा कर ठहरे थे तो इन के ग्रंथों में भी मौर्यों को शूद्र घोषित कर दिया था. यह दर्जों का दौर भारतीय इतिहास में हमेशा से रहा है. लेकिन मुगलों के समय में एकाएक ही बदलाव आया था. पहले धार्मिक लोग सत्ता पक्ष को इस तरह के दर्जे देते थे, लेकिन मुगलकाल में सत्ता पक्ष की तरफ से भी दूसरों को दर्जा देने की शुरुआत हुई थी.

आप को याद ही होगा कि अकबर के नौ रत्न थे. ये दर्जे ही थे. जो अकबर को खुश कर देते थे, उन को वे रत्न घोषित कर देते थे. अंगरेजों के समय दर्जों को उपाधियां कहा जाने लगा था. अंगरेजों ने भी खूब उपाधियां बांटीं. आजादी के बाद भारत की लोकतांत्रिक सरकार ने भी इसे उचित समझ कर जारी रखा.

सत्ता पक्ष दर्जा या उपाधियों की रेवडि़यां बांटेगा तो आम लोगों को तो मिलेंगी नहीं, क्योंकि सत्ता पर कब्जा एक जातिविशेष का है जिस को अंगरेजों ने यह कह कर जज बनाने से इनकार कर दिया था कि ‘ब्राह्मणों में न्यायिक चरित्र ही नहीं है. जो खुद भेदभाव की जड़ों में हैं वे कभी न्याय कर ही नहीं सकते.’ अब दोबारा मौर्यकाल याद कीजिए, जहां ब्राह्मणों ने दान न देने के चलते मौर्यों को शूद्र का दर्जा दिया था. अब धर्म व सत्ता दोनों पर कब्जा ब्राह्मणों का है. दर्जा चाहे धर्म दे या सत्ता दे, देने वाले तो ब्राह्मण ही हैं. अब आप को समझ आ गया होगा कि दर्जें या उपाधियां कैसे व किस को दी जाती होंगी.

अब राजस्थान की सरकार इतिहास बदलने में लगी है तो हलदी घाटी की लड़ाई तो जितवा ही दी है और अब दीनदयाल उपाध्याय को महापुरुष बना कर ही छोड़ेगी.

ग्लैमर की दुनिया में फिटनैस जरूरी : अमृता आचार्य

अमृता आचार्य भोजपुरी फिल्मों की उभरती अदाकारा हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत भोजपुरी फिल्म ‘ससुराल’ से की थी जो सिनेमाघरों में खूब चली थी. मध्य प्रदेश के इटारसी की रहने वाली अमृता आचार्य ने वकालत की डिगरी ले रखी है. छरहरे बदन की मालकिन अमृता आचार्य इस होली के मौके पर भोजपुरी फिल्म ‘वांटेड’ में हीरो पवन सिंह के साथ नजर आएंगी.

पेश हैं, अमृता आचार्य से की गई बातचीत के खास अंश:

आप ने वकालत की पढ़ाई की, इस के बावजूद ऐक्टिंग को अपना कैरियर बनाया. ऐसा क्यों?

मैं कालेज के समय से ही रंगमंच से जुड़ी रही हूं और मैं ने कई स्टेज प्रोग्राम किए हैं. मेरे इसी शौक ने मुझे फिल्मों की तरफ खींचा. इसी दौरान हीरो प्रदीप पांडेय ‘चिंटू’ के साथ मुझे फिल्म ‘ससुराल’ में काम करने का औफर मिला. यह मेरे लिए गोल्डन चांस था. यह फिल्म सुपरहिट रही थी.

आप मध्य प्रदेश की रहने वाली हैं. ऐसे में आप को भोजपुरी बोलने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ी?

फिल्म ‘ससुराल’ के दौरान भोजपुरी में बोलना मुझे राई से पहाड़ तोड़ने के बराबर लगा था. लेकिन अब मुझे भोजपुरी बोलने में कोई परेशानी नहीं होती है. मुझे लगता है कि भोजपुरी सब से मीठी बोलियों में से एक है.

क्या आप ने तेलुगु भाषा में भी फिल्में की हैं?

जी हां, बिलकुल. मैं ने तेलुगु में ‘समीरम’ नाम की फिल्म की थी, जिस में मेरी ऐक्टिंग को बेहद सराहा गया था.

आप बड़े बजट की फिल्म ‘वांटेड’ में हीरो पवन सिंह के साथ काम कर के कैसा महसूस कर रही हैं?

यह मेरे लिए सपने के सच होने जैसा है. पवन सिंह सैट पर मेरी बहुत मदद करते हैं. उन के साथ काम कर के मुझे ऐक्टिंग की बारीकियों को सीखने का मौका मिला है. वे बहुत ही अच्छे इनसान हैं. जहां तक ‘वांटेड’ जैसी बड़े बजट की फिल्म में काम करने का सवाल है तो मुझे उम्मीद है कि दर्शक मेरी ऐक्टिंग से निराश नहीं होंगे.

‘वांटेड’ कैसी फिल्म है?

फिल्म ‘वांटेड’ में ऐक्शन के अलावा रोमांस का तड़का भोजपुरिया स्टाइलमें देखने को मिलेगा. यह फिल्म काफी अलग और दमदार कहानी परबनी है, जिस में देशभक्ति, ऐक्शन, इमोशन को बेहतरीन ढंग से फिल्माया गया है.

आप रंगमंच से जुड़ी रही हैं. ऐसे में फिल्मों में काम करने का आप को कितना फायदा मिला?

देखिए, फिल्मों में आप जब तक सब से शानदार शौट नहीं दे देते हैं तब तक आप को मौका मिलता रहता है, जबकि रंगमंच में ऐसा नहीं है. आप एक बार मंच पर परफौर्मेंस कर रहे हों तो वहां गलतियां सुधारने का मौका नहीं होता है, इसलिए रंगमंच में की गई ऐक्टिंग से फिल्मों में गलतियां होने का खतरा कम हो जाता है. इस का फायदा मुझे भी मिला है.bollywood

आप को फिल्मों में काम कर खुद की ऐक्टिंग में कुछ बदलाव नजर आया?

मुझे तो भोजपुरी फिल्मों में काम करने के दौरान हर छोटीछोटी गलती को सुधारने का मौका मिला. मुझे लगता है कि फिल्में आप को ऐक्टिंग में माहिर बनाती हैं.

आप ने फिल्म ‘वांटेड’ में किस तरह का रोल किया है?

मैं ने इस फिल्म में एक शहरी लड़की का रोल किया है. इस की कहानी आप फिल्म के सिनेमाघरों में रिलीज होने के बाद खुद जान जाएंगे.

क्या आप की कोई हिंदी फिल्म भी आने वाली है?

हां, मेरी एक हिंदी फिल्म भी आ रही है, जो जल्द ही सिनेमाघरों में होगी.

खुद को फिट रखने के लिए आप क्या करती हैं?

अगर आप को ग्लैमर की दुनिया में मुकाम बनाना है, तो अपनी सेहत और फिटनैस पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. मैं खुद के खानपान और ऐक्सरसाइज पर खास ध्यान देती हूं, तभी मैं खुद को फिट रख पाने में कामयाब हूं.

राजपुरोहित है अफसरशाही : इस देश में नामुमकिन है अफसरशाही से उलझना

अफसरशाही को साधना हर नेता के बस का नहीं है. अरविंद केजरीवाल तो इस मामले में एकदम निखट्टू साबित हो रहे हैं. दिल्ली में बहुत भारी बहुमत से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी उन का ज्यादा समय अफसरों और उन के सरगना उपराज्यपाल से जूझने में बीतता है. हद तो हाल में हो गई जब रात को एक मीटिंग में आम आदमी पार्टी के विधायकों की मुख्य सचिव से हाथापाई तक हो गई.

ऐसे मामलों में दूसरे राज्यों में मुख्यमंत्री बीचबचाव कर के मामला ठंडा कर देते हैं. पर अरविंद केजरीवाल ठहरे अक्खड़ नेता और उन्होंने पूरी अफसरशाही से बिगड़ना शुरू कर दिया है.

हमारे देश में अफसरशाही का ढांचा बहुत मजबूत है. यह हमारे शास्त्रों के ब्राह्मणों के रुतबे और हकों की तरह का बना हुआ है जो सत्ता में सीधे न होते हुए भी हर काम में अपनी टांग अड़ाए ही नहीं रखते, हर काम अपनी मरजी से ही कराते हैं. पुराने राजाओं को जैसे राजपुरोहित अपनी उंगलियों पर नचाते थे वैसे ही ये अफसर नेताओं को नचाते हैं.

अरविंद केजरीवाल समझ रहे हैं कि ये अफसर राजपुरोहित नहीं हैं और यह उन की भूल है. राजपुरोहित अपने अपमान का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और यही वे अब केजरीवाल के साथ कर रहे हैं. केजरीवाल अपनी राजनीतिक सफलता के बल पर अपने को जनता का हितैषी मान रहे हैं जबकि सच यह है कि बिना अफसरशाही की रजामंदी के वे एक पत्ता भी बदल नहीं सकते.

मुख्य सचिव का उदाहरण तो एक सबक है जो सरकार के लिए जानलेवा भी हो सकता है. अगर ‘पद्मावत’ फिल्म देखी है तो उस में राजपुरोहित को पद्मावती व रावल रतन सिंह से नाराज हो कर अलाउद्दीन खिलजी को भड़काने और चित्तौड़ पर विधर्मी के हमले व कब्जे का पूरा किस्सा दर्शाया गया है. यह बारबार हुआ है. 1947 के बाद भी हुआ?है. आज भी हो रहा है.

अरविंद केजरीवाल को समझना चाहिए था कि वे अपनी ताकत जनता के हितों में लगाएं, अफसरशाही को साध कर, नाराज कर के नहीं. अफसरशाही से उलझना इस देश में तो नामुमकिन है.

अफसरशाही अपनेआप को देश का स्टील फ्रेम कहती है और मानती है कि उसी की बदौलत देश एक है. यह चाहे सच न भी हो तो भी उस से उलझना गलत है.

मैं अपना शत प्रतिशत दे रहा हूं : बी.शांतनु

थिएटर में बीस साल की लंबी पारी खेलने के बाद फिल्मों में अपनी पारी शुरू कर चुके अभिनेता बी शांतनु फिल्म ‘‘रईस’’ में रईस यानी कि अभिनेता शाहरुख खान को पकड़ने के लिए जाल बिछाने वाले तथा फिल्म ‘‘मौम’’ में सीबीआई प्रमुख के किरदार में नजर आ चुके हैं. अब बी.शांतनु 23 मार्च को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘बा बा ब्लैकशिप’’ में मुख्य खलनायक के किरदार में नजर आने वाले हैं.

यूं तो थिएटर में काम करते समय भी बी.शांतनु ने नाटक ‘‘छलिया’’ में अपने दमदार नकारात्मक किरदार से दर्शकों को चकित किया था, अब ऐसा ही कारनामा उन्होंने फिल्म ‘बा बा ब्लैकशिप’ में किया है. मगर दोनों किरदारों में जमीन आसमान का अंतर है. खुद बी.शांतनु बताते हैं- ‘‘मैंने नाटक ‘छलिया’ में शिवराज का निगेटिव किरदार निभाया था, जो कि अपनी अंधी पत्नी व लेखिका के लिखे उपन्यासों को अपने नाम से छपवाता रहता है.

अपने नाम पर छपी किताब पत्नी को लाकर देता है और कहता है कि ‘जान देखो, तुम्हारी नई किताब छप कर आ गयी. ’वह अपनी पत्नी को घर से बाहर नही निकलने देता और न ही किसी से मिलने देता है. वह पूरी तरह से छलने का काम करता है, सामाजिक तौर पर नगेटिव किरदार है, कहीं मारता पीटता नहीं. जबकि फिल्म ‘बा बा ब्लैकशिप’ में मैने कमाल का किरदार निभाया है, जो कि राजनेताओं के इशारे पर हत्याएं करवाता है. यानी कि कमाल राजनेताओं के इशारे पर गलत काम करता है.’’

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नाटक ‘‘छलिया’’ और फिल्म ‘‘बा बा ब्लैक शिप’’ दोनों नकारात्मक चरित्र होते हुए भी बहुत अलग है और वर्तमान समय में यह दोनों तरह के नकारात्मक चरित्र हमारे समाज का हिस्सा हैं. इस बात पर जोर देते हुए बी.शांतनु कहते हैं – ‘‘दोनो ही तरह के नगेटिव इंसान इस संसार का हिस्सा हैं. छलिया का शिवराज आपको बड़े स्तर पर मिल जाएंगे. शिवराज उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जहां पाखंड ही पाखंड है. ‘हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और’ वाला मसला है. जबक ‘बाबा ब्लैकशिप’ के कमाल जैसे किरदार हर राजनेता के पास मिल जाएंगे. हर राजनेता अपने लिए काम करने वाले ऐसे लोगों को पालते हैं. पर फिल्म की कहानी अद्भुत है.’’

थिएटर की ही तरह बी.शांतनु फिल्मों में भी अपनी सार्थक उपस्थिति तेजी से दर्ज कराते जा रहे हैं. वह ‘बा बा ब्लैकशिप’ के अलावा प्राची देसाई के संग ‘‘कोषा’’ के अलावा कई दूसरी फिल्में कर रहे हैं. इतना ही नहीं वह चार वेब सीरीज का भी हिस्सा हैं. मगर उन्हें इस बात का मलाल है कि वर्तमान समय का हर फिल्मकार अपनी फिल्मों के लिए खुद कलाकार की तलाश करने की बजाय कास्टिंग डायरेक्टरों पर निर्भर हो गए हैं और यह कास्टिंग डायरेक्टर अपने असली काम को भूलकर हवा में उड़ रहे हैं. खुद बी. शांतनु कहते हैं- ‘‘सच कहूं तो बहुत कम कास्टिंग डायरेक्टर वास्तव में काबिल हैं. हर कास्टिंग डायरेक्टर समझता है कि उनके पास सौ कलाकारों का नंबर है, तो वह काबिल हैं. एक किरदार के लिए पचास कलाकारों का औडीशन लेकर निर्देशक के पास भेजकर वह अपनी काबिलियत साबित करते हैं. कास्टिंग डायरेक्टर निर्माता निर्देशक की नजर में अपनी छवि बनाने में लगा हुआ है. कास्टिंग डायरेक्टर का असली काम यह है कि वह एक किरदार के लिए 3 ऐसे कलाकारों का औडीशन लेकर भेजे कि निर्देशक के सामने मुश्किल हो जाए कि वह तीन में से किसे चुने? मगर कास्टिंग डायरेक्टर अपने इस काम को भूलकर बाकी सब कुछ कर रहे हैं. जिसके परिणाम स्वरुप कास्टिंग डायरेक्टर एक नवोदित कलाकार और पच्चीस वर्ष के अनुभवी कलाकार के बीच अंतर नही कर पाता है. 25 साल के अनुभवी कलाकार की 25 साल की जो यात्रा है, वह कास्टिंग डायरेक्टर को नजर नहीं आती. जहां चेहरा देखकर तिलक लगाने की प्रथा हो, वहां अनुभव बेमानी हो जाता है.’’

25 वर्ष तक ‘खामोश अदालत जारी है’, ‘मिट्टी की गाड़ी, ‘राशोमन’, ‘थ्री सिस्टर्स’, ‘रायल हंट औफ द सन सीगल’, ‘हनीमून’, ‘कहां हो फकीरचंद’, ‘झूठ’, ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ और ‘साजिश’ जैसे एक से बढ़कर एक नाटक कर इज्जत बटोरने वाले बी.शांतनु अब फिल्म व सीरियल करते हुए काफी खुश हैं. वह कहते हैं-‘‘अब मुझे बडे़ और छोटे परदे पर काम करते हुए आनंद आने लगा है. अब मैं यहां अपना शत प्रतिशत देना चाहता हूं. मैं तो चाहता हूं कि अच्छा काम मिले, दर्शकों का प्यार मिले. मैं फिल्मों के साथ ही वेब सीरीज कर रहा हूं. वहीं ‘स्टार भारत’ के सीरियल ‘आजाद’ में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के गुरू का किरदार कर रह हूं.’’

अभिनेता रोहित भारद्वाज बने निर्माता

इन दिनों बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री के कलाकारों के बीच फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कूदने की होड़ सी लगी हुई है. कोई फीचर फिल्म बना रहा है, तो कोई लघु फिल्म बना रहा है, तो कोई वेब सीरीज बना रहा है. ऐसे में भारतीय टीवी और इंडोनेशियन टीवी के चर्चित अभिनेता रोहित भारद्वाज कैसे पीछे रह जाते. वह भी अब निर्माता बन गए हैं.

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सिद्धार्थ कुमार तिवारी के टीवी सीरियल ‘‘महाभारत’’ में युधिष्ठिर का किरदार निभाकर सर्वाधिक शोहरत बटोरने वाले रोहित भारद्वाज ने अब अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘विस्तार फिल्मस एंड इंटरटेनमेंट’’ बनाकर वेब सीरीज ‘‘मायोपियाः सब माया है’’ का निर्माण कर रहे हैं. जिसकी कहानी आगरा के ताजमहल के इर्द गिर्द घूमती है.

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अभिनय करते करते निर्माण के क्षेत्र में कूदने के सवाल पर रोहित भारद्वाज कहते हैं- ‘‘इंडोनेशिया के टीवी पर काम करने के बाद वहां से लौटने पर मैंने दो बातें महसूस की. पहली बात तो मैं एक ही तरह के सीरियलों में अभिनय करते करते उब चुका हूं और दूसरा यह अनुभव किया कि वेब सीरीज काफी पसंद की जा रही है. इनका एक दर्शक वर्ग है.

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विदेशो में वेब सीरीज की काफी मांग है. मैं उन सीरियलों में अभिनय करना चाहता हूं, जिनमें अभिनय करने से मेरे अंदर की अभिनय प्रतिभा को विकसित होने का अवसर मिले. तो मुझे लगा कि अब मुझे खुद ही अपनी तरफ से कोई ठोस कदम उठाना चाहिए. तब मैने इस दिशा में सोचना शुरू किया. यह उस वक्त की बात है, जब नोटबंदी हुई थी. इसी के चलते मेरी वेब सीरीज को कोई निर्माता नहीं मिला. तब मैने अपने भाई के साथ मिलकर प्रोडक्शन कंपनी खोली, जिसे नाम दिया- ‘‘विस्तार फिल्मस एंड इंटरटेनमेंट’’उसके बाद कुंवर शिव सिंह को लेखक और दक्षिण भारत के मशहूर निर्देशक अजय भुयान को लेकर अपनी वेब सीरीज ‘मोपियाः सब माया है’का निर्माण कर रहा हूं. मैं इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा हूं.’’

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