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सैक्स : प्रचार से व्यापार तक

सैक्स शुरू से ही मनुष्य की कमजोरी रहा है. इस से बच पाना किसी के वश की बात नहीं है. आज विज्ञापन का जमाना है. बिना विज्ञापन या प्रचार के किसी भी प्रोडक्ट को मार्केट में लौंच करना या उस की बिक्री कर पाना संभव नहीं है. इसलिए प्रतिस्पर्धा के इस युग में विज्ञापन एजेंसियां प्रचार के नएनए तरीके ईजाद करती हैं ताकि बायर्स को अट्रैक्ट किया जा सके.

हकीकत तो यह है कि सुंदर व सैक्सी मौडलों का इस्तेमाल किसी प्रोडक्ट के प्रचार के लिए लौंचिंग पैड की तरह किया जा रहा है. इस में कोई हर्ज भी नहीं है. अगर युवतियों को सुंदर और सैक्सी काया मिली है तो उस का फायदा उन्हें उठाना भी चाहिए. आज युवतियों के सामने कैरियर के अनेक विकल्प हैं, पर छरहरी और सैक्सी लुक वाली युवतियों को विज्ञापन व मौडलिंग का क्षेत्र रास आ रहा है और वे इस में अच्छी कमाई भी कर रही हैं. प्रचार में सैक्सी मौडलों का इस्तेमाल इतना अधिक बढ़ गया है कि कभीकभी तो विज्ञापन, चाहे वे टीवी पर हों या पत्रपत्रिकाओं में, देख कर हैरत होती है कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि फलां विज्ञापन में सैक्सी मौडल को दिखाया गया, लेकिन यह आज की मार्केटिंग का फंडा है, क्योंकि प्रचार में सैक्सी मौडल पर हर किसी की नजर फोकस हो जाती है और वह प्रोडक्ट हिट हो जाता है. पिछले दिनों शेविंग ब्लेड के एक विज्ञापन में एक अट्रैक्टिव युवती को एक युवक की शेव बनाते हुए दिखाया गया था. लाजिमी है कि नजर इस विज्ञापन पर टिकेगी ही, क्योंकि यह विज्ञापन हट कर था और एक सैक्सी युवती को इस में दिखाया गया था.

यह विज्ञापन एक स्ट्रैटिजी के तहत था. मर्द की कमजोरी होती है कि वह सैक्सी लुक वाली युवतियों की ओर आसानी से अट्रैक्ट हो जाता है. 90 के दशक में मशहूर मौडल मिलिंद सोमण और मधुस्प्रे को एक जूते के विज्ञापन में निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे दिखाया गया था. उन के शरीर पर सिर्फ एक अजगर रेंग रहा था. दोनों मौडलों के पैरों में सिर्फ जूते थे, क्योंकि यह एक जूते का विज्ञापन था. इस विज्ञापन ने तहलका मचा दिया था. न्यूडिटी दिखाने के चक्कर में भले ही विज्ञापन एजेंसी व मौडल्स को कानून द्वारा अदालतों में हैरेस किया गया पर विज्ञापन तो हिट हो गया. यह भी सैक्स परोसने का ही कमाल था.

वर्जिन मोबाइल कंपनी के एक विज्ञापन में भी सैक्स को हथियार बनाया गया. इस विज्ञापन में एक युवक अस्पताल के बैड पर लेटा है. वह घंटी बजा कर नर्स को बुलाता है. नर्स के आने पर वह उसे कहता है कि पेट में दर्द है. नर्स उस की चादर के अंदर हाथ डाल देती है. इस तरह उसे शारीरिक सुख मिलता है. इसी तरह आइडिया 3जी का भी एक विज्ञापन जोरशोर से प्रचारित हुआ, जिस में पतिपत्नी के संबंधों और उन से बढ़ने वाली जनसंख्या का कारण लाइट जाने से मनोरंजन न हो पाना बताया गया. इस में पतिपत्नी को लाइट जाने के बाद एकदूसरे से लिपटेचिपटे दिखाया गया है.

लैक्मे फैशन वीक के दौरान ऐक्टर अक्षय कुमार ने अपनी पत्नी ट्विंकल खन्ना से अपनी जींस का बटन खुलवाया तो मीडिया में हंगामा खड़ा हो गया. अक्षय ने ऐसा प्रचार के लिए ही किया था, पर लोगों ने उन की इस हरकत पर अश्लीलता का लेबल चस्पां कर इसे खूब हवा दी, लेकिन अक्षय का मकसद तो पूरा हो ही गया. विज्ञापनों व प्रचार में सैक्सी मौडलों को दिखाने में कोई हर्ज नहीं है. सैक्स का इस्तेमाल तो शुरू से ही होता रहा है पर छिप कर. राजघरानों, महलों और हरमों में तो सैक्स जम कर परोसा जाता रहा है, पर बात ऊंची दीवारों के अंदर ही रह जाती थी. आज जमाना बदल गया है. बाजारवाद बढ़ रहा है. ऐसे में सैक्स को हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इस में कोई हर्ज नहीं है. हां, चंद दकियानूसी लोग और धर्म के ठेकेदार ही सैक्स को ले कर बखेड़ा करते हैं, धर्म की दुहाई देते हैं. सच तो यह है कि अगर उन्हें कोई सौंदर्यबाला मिल जाए तो उन की जबान उस के रसास्वादन के लिए लपलपाने लगेगी. किस धर्म में लिखा है कि प्रचार में सैक्सी व सुंदर स्त्रियों का इस्तेमाल न किया जाए?

आजकल सैक्स की ताकत बढ़ाने वाली दवाएं भी धड़ल्ले से बिक रही हैं, जिन में गोलियां भी हैं और तेल भी. अखबार व पत्रपत्रिकाओं में इन विज्ञापनों की भरमार होती है. हर विज्ञापन में कम वस्त्रों में खूबसूरत व सैक्सी युवती दिखाई जाती है जो किसी पुरुष के सीने से चिपकी होती है. क्या केवल पुरुष दिखाने से काम नहीं चल सकता था? प्रोडक्ट्स के प्रचार में तो सैक्स का बोलबाला है ही, लेकिन अब मार्केटिंग के क्षेत्र में भी सैक्स को तरजीह दी जाने लगी है. कंपनियां अपनी मार्केटिंग टीम में युवकों के बजाय ग्लैमरस लुक और इंगलिश स्पीकिंग युवतियों को प्रिफर कर रही हैं. गर्ल्स में कूवत होती है कि वे अपनी सैक्सी अदाओं से क्लाइंट्स को अपने वश में कर लेती हैं. उन की शोख अदाएं और मिठास भरी जबान सामने वाले को तुरंत अपने शीशे में उतार लेती है. चंद मिनट में ही वे लाखों की डील फाइनल कर लेती हैं.

इस के लिए कभीकभी उन्हें अपने क्लाइंट्स के साथ इंटिमेट भी होना पड़े या लेटनाइट पार्टी में जाना पड़े तो वे हिचकती नहीं हैं. उन का मुख्य उद्देश्य बिजनैस लाना होता है. वैसे भी युवतियां बहुत जागरूक हो चुकी हैं. उन्हें मालूम है कि यदि अपना बिजनैस टारगेट पूरा करना है और तरक्की की मंजिल फतेह करनी है तो उन्हें अपने क्लाइंट्स की हर जायज और नाजायज मांग पूरी करनी पड़ेगी. बस, सेफ्टी प्रिकौशंस का खयाल रखना पड़ेगा, जिस की वे हर समय पूरी तैयारी रखती हैं.

मोनिका ने एयर होस्टेस का कोर्स किया था. वह एक एयरलाइंस कंपनी में एयर होस्टेस थी. छरहरे बदन की मोनिका फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी. उस में ऐसी सैक्स अपील थी कि पैसेंजर्स उस के मुरीद हो जाते थे. इसीलिए उस की ड्यूटी तब लगाई जाती थी जब प्लेन में कोई वीआईपी ट्रैवल कर रहा होता था. मोनिका को अपनी खूबसूरती पर नाज था. उस में गजब का कौन्फिडैंस था. यही वजह थी कि वह बहुत जल्दी बुलंदियों पर पहुंच गई. उस का वेतन भी तेजी से बढ़ा.

सैक्स तो व्यापार बन गया है. सफल व्यापारी वही है जिस ने इस बात को समझ लिया है. एक निजी कंपनी चलाने वाले मोहित का कहना है कि बिजनैस में गर्ल्स की प्रैजेंस से व्यापार बढ़ता है. इसीलिए मेरी कंपनी में रिसैप्शनिस्ट से ले कर एचआर और मार्केटिंग हैड तक सभी युवतियां हैं. जो भी मेरे औफिस में आता है वह मुझ से कहता है कि मोहित आप युवकों को नौकरी पर नहीं रखते क्या? मैं उन से यही कहता हूं कि यदि व्यापार बढ़ाना है तो गर्ल्स को रखना ही पड़ेगा, क्योंकि इन में गजब की सैक्स अपील होती है जो क्लाइंट्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करती है. हां, कभीकभी युवतियों को ले कर समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं, पर रिस्क तो लेना ही पड़ता है.

इसी तरह की सोच ललित भी रखते हैं. उन का कहना है कि मैं ने अपने बिजनैस की शुरुआत रेडिमेड कपड़ों से की. मेरी दुकान पर सब युवक ही थे. एक साल तक दुकान चलाने के बावजूद मेरी दुकान पर ग्राहक नहीं आते थे. चूंकि मेरा जैंट्स रैडिमेड का काम था इसलिए मैं युवतियों को सेल्स गर्ल के रूप में नहीं रखना चाहता था. पर मेरे एक मित्र ने मुझे सलाह दी कि युवतियों को रख कर देखो, शायद तुम्हारे बिजनैस पर फर्क पड़े. मैं ने उस की बात मान कर युवतियों को रख लिया. कुछ ही दिन में हमारा बिजनैस चल पड़ा. दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगने लगी. सब खूबसूरत युवतियों की वजह से ही संभव हो सका.

मिताली एक कंपनी में मार्केटिंग ऐग्जिक्यूटिव है. उस का कहना है कि जो काम युवक नहीं कर सकते वह हम युवतियां आसानी से कर लेती हैं. जब मैं इस कंपनी में आई थी, उस समय कंपनी का टर्नओवर बहुत कम था, लेकिन मैं ने बहुत कम समय में ही टर्नओवर बढ़ा दिया, जिस से हमारे डायरैक्टर बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरा वेतन तो बढ़ाया ही साथ ही प्रमोशन भी कर दिया.

मिताली ने बताया कि यह सीधा सा फंडा है कि युवतियों में वाक्पटुता तो होती ही है साथ ही उन्हें सामने वाले को अट्रैक्ट करना भी आता है. युवतियों में गजब की कन्वेसिंग पावर भी होती है साथ ही लटकेझटके दिखाने में भी वे निपुण होती हैं. मेरा मानना है कि अपनी खूबसूरती का फायदा उठाने में हर्ज भी नहीं है. अगर काम इस तरह बन जाता है तो अच्छा ही है. पर कभीकभी औक्वर्ड स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है जब कलाइंट हद से गुजर जाने का प्रपोजल सामने रख देता है. एक तरफ बिजनैस चैलेंज होता है तो दूसरी ओर आबरू की हिफाजत. युवतियों को ऐसे में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए, क्योंकि बिजनैस तो जरूरी है, जिस के लिए आप को रखा गया है.

आज के युवा इसी तरह के विचार रखते हैं. वे तो सैक्स को भी तैयार हो जाते हैं, क्योंकि आज सेफ्टी प्रिकौशंस के ढेरों विकल्प बाजार में मौजूद हैं. बस, परदा पड़ा रहने की जरूरत है.

आज के प्रतिस्पर्धी युग में सैक्स प्रचार से व्यापार तक अपने पांव पसारे हुए है. इस के बिना तरक्की की मंजिल फतेह करना मुश्किल नहीं है.

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जब धोनी के फैसले ने बदल दिया इस क्रिकेटर का करियर

वनडे क्रिकेट में भारत के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में से एक रोहित शर्मा का मानना है कि सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ने वाले महेंद्र सिंह धोनी का 50 ओवर के प्रारूप में उनसे पारी शुरू कराने का फैसला उनके लिए करियर बदलने वाला था.

रोहित ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वनडे में पारी शुरू करने के फैसले ने मेरा करियर बदल दिया और यह फैसला महेंद्र सिंह धोनी ने किया था. इसके बाद मैं बेहतर बल्लेबाज बन गया. इससे मुझे अपना खेल बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली और मैं स्थिति के अनुसार बेहतर प्रतिक्रिया दे पाया.’’

रोहित ने पहली बार 2013 की शुरूआत में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज के दौरान ओपनिंग बल्लेबाज की भूमिका निभाई. उन्होंने इस सीरीज में करीब 80 रन बनाए और फिर चैम्पियन्स ट्रॉफी में ठोस प्रदर्शन किया.

धोनी के पारी की शुरूआत के लिए कहने के संदर्भ में रोहित ने कहा, ‘‘वह (धोनी) मेरे पास आया और कहा कि ‘मैं चाहता हूं कि तुम पारी की शुरूआत करो क्योंकि मुझे भरोसा है कि तुम अच्छा करोगे.’ तुम कट और पुल शॉट दोनों अच्छा खेल सकते हो इसलिए तुम्हारे अंदर ओपनिंग बल्लेबाज के रूप में सफल होने का गुण है.’’

आगे रेदित ने कहा कि ‘‘उन्होंने मुझे कहा कि विफलताओं से हम डरें और आलोचनाओं से निराश नहीं हो. वह बड़ी तस्वीर देख रहे थे क्योंकि उस साल इंग्लैंड में चैम्पियन्स ट्रॉफी होनी थी.’’ रोहित के अनुसार धोनी की खिलाड़ी की क्षमताओं को परखने की क्षमता बेजोड़ है.

रोहित ने कहा, ‘‘इंग्लैंड में चैम्पियन्स ट्रॉफी ने मेरा भरोसा बढ़ाया कि मैं पारी की शुरूआत कर सकता हूं और मैं सुबह इंग्लैंड के हालात में सफेद गेंद से खेलने की चुनौती का सामना करने को तैयार था.’’

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बुरका बनाम बुरकिनी

किसी भी औरत को अपनी मरजी के कपड़े पहनने का मौलिक अधिकार है. समाज ने कपड़े पहनना लगभग अनिवार्य कर दिया. इसे सभ्यता का विकास कहें या शरीर की मूलभूत आवश्यकता पर न पहनने का अधिकार पूरी तरह छिन जाए, यह भी गलत है. हरेक के साथ कुछ सामान्य व्यावहारिक नियम बंधे होते हैं और इसीलिए दफ्तर में बिकिनी पहन कर जाना गलत होगा और स्विमिंग पूल में साड़ी पहन कर कूद जाना भी गलत होगा. यूरोप में इस बात पर जंग छिड़ी है कि मुसलिम औरतों को समुद्री तटों पर बुरका और बिकिनी का सम्मिश्रण बुरकिनी पहनना, जिस में पूरा बदन स्किन टाइट ड्रैस से ढका होता है, उन के निजी अधिकारों में आता है या नहीं. फ्रांस के कई शहरों के मेयरों ने इस पर पाबंदी लगाई है और एक अदालत ने इसे अवैध भी कहा है. फिर भी पूरे यूरोप में बुरके को ले कर विवाद छिड़ा है.

बुरका पहनना अगर निजी अधिकार की बात होती तो शायद किसी को आपत्ति नहीं होती. बुरका इसलिए नहीं पहना जा रहा कि औरतों को लगता है कि वे उस में सुंदर लगती हैं या यह फैशन स्टेटमैंट है. बुरका तो इसलिए पहना जाता है, क्योंकि यह धार्मिक कानून है और मुसलिम औरतें आजाद फ्रांस में भी रह कर मुसलिम कानून को वरीयता देती हैं. बुरकिनी बिकिनी का पर्याय हो पर है यह औरतों पर धार्मिक बंदिश ही. इसे किसी भी तरह से औरतों के निजी अधिकारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. इसे न पहनने पर परिवार और समाज जम कर आपत्ति करता है जैसे भारत में आज भी परदा न करने पर औरतों को बुराभला कहा जाता है. एक युग था जब भारत के अनेक इलाकों में औरतों को जबरन ऊपरी वस्त्र पहनने से मनाही थी.  केरल में इसे ले कर आंदोलन हुए. आज ऊपरी वस्त्र न पहन कर स्तन खुले दिखाने के हक पर पश्चिम में भी लड़ाई लड़ी जाती है.

सवाल यह है कि इस तरह की बंदिशें औरतों पर ही ज्यादा क्यों? आदमियों पर तो बहुत थोड़ी सी रोकें लगती हैं. वे सिर्फ कच्छा पहने बाजार में बैठे रहें और औरतें बुरके में रहें. इस का क्या प्राकृतिक, व्यावहारिक, शारीरिक कारण हो सकता है?

औरतों पर बंदिशें इसलिए होती हैं कि उन्हें रैजिमैंटेशन की लत डाली जा सके. वे वही करें जो दूसरे कहें. फिर चाहे पिता हो, पति हो, बेटा हो, समाज हो, पंडा हो, पादरी हो या शहर का मेयर किसी को हक नहीं कि औरतों को अव्यावहारिक पोशाक पहनने को मजबूर करे. बुरकिनी बैन या बुरका बैन महिलाओं को आजादी दिलाने का एक कदम है. इस में कुछ कानूनी अति भी हो तो भी इस का समर्थन करा जाना चाहिए, क्योंकि यह औरतों की इच्छा नहीं कि वे बुरका पहनें, यह उन के धर्म के कठमुल्ले उन पर लादते हैं जैसे भारत में ससुर के सामने बहू का परदा लादा जाता रहा है.

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फेल होने पर न मानें हार

आप किसी परीक्षा में शामिल हुए और उस का परिणाम आप के पक्ष में नहीं आया अर्थात आप फेल हो गए, तो इस से निराश न हों और न ही आगे पढ़ने का विचार छोड़ें, क्योंकि ऐसा करना बुद्धिमानी नहीं है. फेल होने पर हार नहीं माननी चाहिए. कुछ विद्यार्थी फेल होने का सदमा बरदाश्त नहीं कर पाते और उन के मन में असफलता के कारण बारबार आत्महत्या के विचार आने लगते हैं. कुछ कायर किस्म के परीक्षार्थी इस छोटी सी असफलता की वजह से सुसाइड तक कर लेते हैं, जोकि निंदनीय  है. माना कि अच्छा परीक्षा परिणाम न आने पर आप टूट जाते हैं. ऐसे में आप या तो खुद को कोसते हैं या फिर मूल्यांकनकर्ता को, लेकिन ऐसा करने से कुछ हासिल नहीं होता. परीक्षा में अंक उसी के मिलते हैं जो आप ने कौपी में लिखा है. अत: मूल्यांकनकर्ता को कोसने से कुछ नहीं होगा.

फेल होने पर क्या करें

हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती. दुनिया का सब से छोटा जीव है चींटी. वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति की खातिर दीवार पर बारबार चढ़ती है, गिरती है, फिर चढ़ती है. उस का यह सिलसिला तब तक अनवरत जारी रहता है, जब तक वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेती. जब चींटी जैसा छोटा सा जीव कभी हिम्मत नहीं हारता, तो फिर आप तो इंसान हैं. एकदो बार की असफलता मात्र से हार कैसे मान सकते हैं? ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो विज्ञान विषय ले कर परीक्षा देते हैं लेकिन पास नहीं हो पाते. इस के बाद वे वाणिज्य विषय का विकल्प चुनते हैं, लेकिन उस में भी सफल नहीं हो पाते. फिर कला या सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में कोशिश करते हैं लेकिन यहां भी उन्हें सफलता नहीं मिलती. अंतत: वे हार मान लेते हैं. काश, वे एक ही मैदान में यानी एक विषय से परीक्षा देते और एकदो बार की विफलता से विचलित न होते तो अवश्य सफल हो सकते थे.

असफलता को बनाएं सफलता की सीढ़ी

यदि आप किसी परीक्षा में असफल हुए हैं तो उसी असफलता को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाएं. जी हां, सफलता की राह असफलता से ही निकलती है. आवश्यकता केवल अपनी कमजोरी को पहचानने और उस के अनुसार अपनी पढ़ाई में बदलाव लाने की है.  कुछ छात्र फेल हो जाने पर सोचते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, लेकिन फेल होने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती, इसलिए आंखों के सामने अंधियारा न लाएं. हर रात के बाद सुबह होती है, जो आशा की एक नई किरण ले कर आती है. आप सुबह होने का इंतजार कीजिए. प्रयास निरंतर जारी रखिए. आप के प्रयास जरूर एक दिन सफल होंगे. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जो बच्चे शुरुआत में पढ़ाई में बहुत कमजोर यानी फिसड्डी थे, लेकिन जब उन्होंने मन पढ़ने में लगाया तथा पढ़ाई को गंभीरता से लिया और उस के बाद वे न केवल उत्तीर्ण हुए बल्कि फर्स्ट भी आने लगे, यदि एकदो बार फेल होने से वे अपनी पढ़ाई छोड़ देते तो उन का भविष्य या कैरियर चौपट हो जाता. सफलता के लिए एक बार नहीं, बारबार कोशिश करनी पड़ती है.

कारण व समाधान ढूंढ़ें

क्या आप जानते हैं कि हम फेल क्यों होते हैं? इस का सब से बड़ा कारण विषयों का गलत चयन है. कई बार आप पेरैंट्स या अन्य किसी के दबाव में आ कर या किसी की देखादेखी ऐसे विषयों का चुनाव कर लेते हैं जिन में या तो आप की रुचि नहीं है या फिर वे इतने कठिन हैं कि उन्हें समझ पाना आप के सामर्थ्य के बाहर है. ऐसे में आप का फेल होना तय है. इसलिए समझदारी इसी में है कि विषयों का चयन बिना किसी दबाव के अपनी रुचि और सामर्थ्य के अनुसार करें. अपने मन मुताबिक विषयों को यदि आप चुनते हैं तो आप को सफलता अवश्य मिलेगी और आगे चल कर आप अच्छा कैरियर बना सकते हैं. एकदो बार की विफलता से हताश हो कर अपने उत्साह में कमी नहीं आने देनी चाहिए. यदि आप में आगे बढ़ने का उत्साह बरकरार है, तो आप फेल होने पर भी हार नहीं मानेंगे और पास हो कर ही दम लेंगे.

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भाजपा की मायावती हैं सावित्री बाई फूले

सावित्री बाई फूले भी रूढिवादी सोच से पीड़ित रही हैं. समाज की इन वजहों से ऊब कर उन्होंने सन्यास लिया. सावित्री बाई फूले जो भगवा पहनती हैं, उसे वह धर्म से न जोड कर बौद्व से जोड़ती हैं. सावित्री बाई फूले बसपा प्रमुख मायावती को अपना रोल मौडल मानती हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नमो बुद्वाय जन सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित ‘भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओं महारैली’ में सावित्री बाई फूले शामिल हुईं, तो ऐसा लगा जैसे वह केन्द्र सरकार के खिलाफ कुछ बोलेंगी. सावित्री बाई फूले ने भाजपा या केन्द्र सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला. आरक्षण और दूसरे कई मुद्दों को लेकर भाजपा में एक राय नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को आगे करके पिछड़ा वोट बैंक पर निशाना साधा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अब संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अम्बेडकर को सामने रखा है. भाजपा ने उनके नाम को लेकर उत्तर प्रदेश में राजनीति शुरू कर दी है. 14 अप्रैल को भाजपा ज्यादा भव्य तरीके से डाक्टर अम्बेडकर की जंयती मनाने जा रही है. जिस तरह से उसने कांग्रेस से वल्लभ भाई पटेल को छीन लिया था, उसी तरह से भाजपा अब बसपा को अम्बेडकर से दूर करना चाहती है.

सवित्री बाई फूले भाजपा के साथ रहें या अलग, वह डाक्टर अम्बेडकर के बहाने दलित वर्ग को अपने साथ करने में जितना सफल होंगी, बसपा का नुकसान होगा. भाजपा की पहली रणनीति यही है कि सपा-बसपा के गठबंधन में दलित वोटों को जितना भी तोड़ा जा सके बेहतर होगा. सावित्री बाई फूले दलित हैं, महिला हैं, दलित मुद्दों को लेकर मुखर हैं, उनको जानकारी है, अच्छा भाषण दे लेती हैं. भाजपा के लिये सबसे अहम खासियत यह है कि वह भी गेरूआ वस्त्र पहनती हैं. सावित्री बाई फूले का अपना अलग संगठन है. वह जिला पंचायत सदस्य से लेकर विधायक और सांसद का चुनाव जीत चुकी हैं.

सवित्री बाई फूले मनुवाद पर हमला कर रही हैं पर भाजपा पर चुप हैं. भाजपा के ही टिकट से वह पहले विधायक बाद में सांसद चुनी गईं. 2012 से लेकर अब तक वह विधानसभा और लोकसभा की सदस्य रही हैं. इस दौरान उनकी ओर से मनुवाद की बात सामने नहीं रखी गई. 2019 के लोकसभा चुनाव और सपा-बसपा गठबंधन की आहट के बाद जिस तरह  से सवित्री बाई फूले ने मनुवाद के खिलाफ बोलना शुरू किया, उससे साफ हो गया कि दलित वोट को ध्यान में रखकर कोई योजना पर काम हो रहा है.

सावित्री बाई फूले दलित वोट को भाजपा के पक्ष में भले ही न लायें, पर अगर वह बसपा के वोट काटने में सफल रही तो भाजपा की योजना सफल हो जायेगी. भाजपा सावित्री बाई फूले को लेकर चुप है. इससे साफ है कि भाजपा जल्द कोई बड़ा फैसला लेगी.

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सिर्फ 6 सेकंड और आपका क्रेडिट-डेबिट कार्ड हैक

आज का समय ऑनलाइन बैकिंग का है.  हम कोशिश करते है कि हर पेमेंट  कार्ड से ही हो जाएं.  जब से पीएम मोदी ने 500 और 1000 के पुराने नोट बंद किया है.  तब से कुछ ज्यादा ही हर पेमेंट कार्ड के द्वारा ही कर रहे है.  इस समय बैंक और एटीएम में लंबी कतारे लगी हुई है. जिसके कारण यही एक रास्ता है. लेकिन आपको एक बात नहीं पता होगी कि आपकी एक गलती आपको कंगाल कर सकती है. जी हां! सिर्फ 6 सेंकड में आपका क्रेडिट या डेबिट कार्ट की संख्या, कोड सहित हर चीज हैक हो सकती है.

हैकिंग की कई सारी घटनाएं सामने आने पर कुछ साइंटिस्‍ट ने अपना मत रखा और कहा कि इस प्रक्रिया में हैकर्स को मात्र 6 सेकेंड का समय लगता है जिसमें वह कस्‍टमर के कार्ड की संख्‍या, सीवी संख्‍या और अन्‍य जानकारियों को हासिल कर लेता है.  इतने ही समय में उसे सिक्‍योरिटी कोड का पता भी चल जाता है.

स्वचालित रूप से और प्रणाली के जरिये कार्ड की सुरक्षा से जुड़ी विभिन्न तरह की जानकारी इकटठा करके और विभिन्न वेबसाइटों पर इन जानकारियों को डालकर कुछ सेकेण्ड के भीतर ही हैकर सुरक्षा संबंधी सभी आवश्यक आंकड़े जुटा सकते हैं.

अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि अनुमान लगाकर हमला करने के इस तरीके का उपयोग हाल ही के टेस्को साइबर हमले में किया गया.  न्यूकासल की टीम का मानना है कि अगर आपके पास एक लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन है तो यह काम बहुत ही आसान है.

न्यूकासल विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र मोहम्मद अली ने कहा, इस तरह के हमले से दो कमजोरियों का पता लगता है जो अपने आप में बहुत गंभीर नहीं हैं लेकिन दोनों का इस्तेमाल अगर एकसाथ किया जाए तो वे पूरे भुगतान प्रणाली के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं.

अली ने कहा, वर्तमान भुगतान प्रणाली विभिन्न वेबसाइटों के जरिये किये जाने वाले भुगतान के कई अमान्य अनुरोधों का पता नहीं लगा पाती है.

एक अध्ययन के मुताबिक चूंकि वर्तमान ऑनलाइन प्रणाली में विभिन्न वेबसाइटों के जरिये एक ही कार्ड के लिए कई अमान्य भुगतान अनुरोध को समझने की क्षमता नहीं है इसलिए कई वेबसाइटों के जरिये अनगिनत अनुरोध किये जा सकते हैं.  हालांकि दल ने यह पाया कि केवल वीजा नेटवर्क ही संवेदनशील है.

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जेब में पुड़िया, क्लोरोफार्म और ओपीएम रखती है भाजपा : अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा अपने किये गये वादे पूरे नहीं कर रही. वह जनता को किसी न किसी बहाने झांसे में रखना चाहती है. इस कारण कभी किसी महापुरूष के नाम की राजनीति करती है तो कभी परिवारवाद और जातिवाद की बातें करती है. लखनऊ मे मेट्रो से लेकर गाजियाबाद में एलीवेटेड रोड के उद्घाटन तक में भाजपा का कोई योगदान नहीं है. वहां जातिवाद और परिवारवाद की बातों का क्या मतलब? भाजपा ‘रामराम जपना’ वाला काम कर रही है. भाजपा जनता को भुलावे में रखने के लिये अपनी जेब में पुड़िया, क्लोरोफार्म और ओपीएम रखती है.

अखिलेश यादव ने कहा ‘योगी सरकार ने किसानों के कर्ज माफ किये. अब उस कर्ज की रिकवरी हो रही है’ अखिलेश यादव ने इस विषय में पुख्ता सूबत के तौर पर मेरठ जिले की सरधना तहसील के जमालपुर गांव के प्रधान गौरव चौधरी को पेश किया. गौरव चौधरी ने बताया कि उसके गांव के 35 किसानों के खाते से कर्ज का पास वापस बैंक ने ले लिया. एक तरफ किसानों से कर्ज माफी का पैसा वापस लिया जा रहा है. दूसरी तरफ बड़े बड़े लोग बैंको का पैसा लेकर फरार हो रहे हैं. बैंको का घोटाला बहुत बड़ा घोटाला है जो धीरे धीरे सामने आ रहा है.

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अखिलेश यादव ने कहा ‘केन्द्र और प्रदेश दो दो जगहों पर सरकार बनाने के बाद भी भाजपा जनता को राहत नहीं दे पा रही है. भाजपा के विकास का डबल इंजन कहीं दिख नहीं रहा है. विकास से लेकर नौकरियों के सवाल पर भाजपा धोखा दे रही है. भाजपा खुद सबसे बडी जातिवादी पार्टी है.’

अखिलेश यादव ने राज्यसभा के चुनाव में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के सवाल पर कहा लग नहीं रहा कि वह हमारे साथ हैं. जब हमें लगा कि हमारे साथ हैं तब बधाई दी थी. जब लगा नहीं हैं तो डिलीट कर दी. उत्तर प्रदेश में दलितों की हालत पर अखिलेश यादव ने कहा ‘प्रदेश में दलितों की हालत खराब है. मूर्तियों की तोड़ने की घटनाएं इसका उदाहरण है. केवल प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में यह हो रहा है. घोड़ी चढने पर दलित की जान ले ली जाती है. बिहार में हालत खराब है. भाजपा लोगों को अपमानित करने, डराने, धमकाने का काम करती है. लोकसभा के 2 उपचुनाव हारने के बाद भाजपा बौखला गई है. अब उनके ही सांसद आरक्षण को लेकर अलग अलग राय दे रहे हैं’.

कोर्ट में चल रहे लंबे केसों का इस ऐप से होगा समाधान

सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने वकालत के पेशे को लेकर चिंता जताई है. न्यायधीशों का कहना है कि अब अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ना आसान नही है. आज के समय में वकालत का पेशा इतना महंगा हो गया है कि यह गरीब आदमी की पहुंच से तो बिल्कुल ही बाहर हो चुका है. जजों का भी मानना है कि कोर्ट में चल रहे केसों की न्यायकि प्रक्रिया इतनी धीमी है कि लोग अब इस बात से आश्वस्त हो गए हैं. लिहाजा अब कोर्ट- कचहरी के चक्कर लगा रहे लोग भी यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि कोर्ट में चल रहा उनका केस उनके जीवनकाल में खत्म होगा भी यह नहीं.

अगर आप कोर्ट में चल रहे केस को लड़ने में असमर्थ हैं तो अब आपको ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अब आप एक ऐप की सहायता से एसे केसो को लड़ने में मदद पा सकता हैं. आइये जानते हैं इस ऐप के बारे में-

लंबे केसों का इस ऐप से होगा समाधान

अगर आप अदालत में अपना केस लड़ने में असमर्थ है तो आपकी मदद करेगा advok8.in Third party litigation funding ऐप. यह ऐप ना केवल आपकी कानूनी रूप से सहायता करेगा बल्कि आर्थिक मदद भी करेगा. Advok8 के मार्केटिंग हेड सौरव कुमार सिन्हा का कहना है कि हमारा लक्ष्य देश में लोगों को कानूनी रूप से जागरूक एवं सजग करना है.

अपने ऐप के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा की अभी तक 10000 से ज्यादा वकील उनके साथ जुड़ चुके हैं और ऐप पे दी जाने वाली टेक्नोलौजी से वकीलों की कार्यक्षमता में बढ़ावा हुआ है और उनका काम पहले से ज्यादा सुचारु रूप से चल रहा है. इस ऐप को आप गूगल प्ले स्टोर पर जाकर प्ले स्टोर से डाउनलोड कर इंस्टौल कर सकते हैं और आसानी से इस ऐप का लाभ उठा सकते हैं.

कंपनी के फाउंडर ने इस बात पे जोर डाला की उनका प्रोजेक्ट जटिल प्रक्रिया को सरल बनाना और भविष्य में लीगल इंशोरेंस और लीगल काल सेंटर जिससे दर्ज केसों की संख्या में गिरावट आने पे केंद्रित है. उन्होंने बताया की दीपक गोयल जो की एक एंजल इन्वेस्टर है से उन्हें सीड फंडिंग मिल चुकी है और आने वाले दो महीनो में राउंड A की संभावना बड़ी प्रबल है. केवल 15 दिनों के अंतराल में 70 से ज्यादा केसेस दर्ज हो चुके है और काम जारी है.

ट्रोलर्स को जवाब देने के लिये मंदिरा ने पोस्ट की बिकिनी फोटो

टीवी और फिल्म एक्ट्रेस मंदिरा बेदी फैशन आइकौन होने के साथ-साथ एक बिजनेस वुमेन और फिटनेस लवर भी हैं. यह मल्टी टैलेंटेड एक्ट्रेस आए दिन अपनी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. मंदिरा कभी एक्सरसाइज करते हुए तो कभी बीच पर पोज देते हुए तस्वीरें इंस्टाग्राम पर शेयर करती रहती हैं. वहीं सोशल मीडिया पर आए दिन मंदिरा को ट्रोलर्स का भी सामना करना पड़ता हैं. कुछ दिनों पहले मंदिरा टीवी शो ट्रोल पुलिस में नजर आई थीं, जहां उन्होंने ट्रोलर्स को खूब खरी खोटी सुनाई थी.

वहीं एक बार फिर से ट्रोलर्स को जवाब देने के लिए मंदिरा बेदी ने बिकिनी पहन कर एक तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की है. दरअसल, मंदिरा अपने परिवार के साथ गोवा छुट्टियां मनाने गई हैं. वहीं मंदिरा ने अपनी एक तस्वीर शेयर की. तस्वीर में मंदिरा बिकिनी पहने स्वीमिंग पूल के किनारे खड़ी दिखाई दे रही हैं. इस तस्वीर के सामने आने के बाद इंस्टाग्राम यूजर्स ने फिर से मंदिरा की तस्वीर पर कमेंट्स करने शुरू कर दिए. मंदिरा की तस्वीर का मजाक उड़ाते हुए कई लोगों ने चुटकी ली.

एक यूजर ने लिखा, ‘ये मंदिरा खुद को समझती क्या है, तुम कौन होती हो पब्लिक का ओपीनियन जज करने वाली.’ दूसरे यूजर ने लिखा, ‘पब्लिकली शेयर करोगी तो कमेंट्स तो ऐसे आएंगे ही. एक यूजर ने लिखा, ‘पहले 2 किलो का मेकअप उतार के बात करो, आधा वेट तो मेकअप का ही होगा.’ बता दें, इससे पहले भी मंदिरा अपनी कई सारी तस्वीरें शेयर कर चकी हैं, जिनमें लोगों ने कुछ न कुछ कहा है, लेकिन मंदिरा ने हमेशा वही किया है जो वह करना चाहती हैं. इसके चलते वह कई महिलाओं की इंस्पिरेशन हैं.

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स्मिथ-वार्नर के बैन के पीछे बौल टेम्परिंग या फिर कोई साजिश…

बौल टेम्परिंग मामले में औस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर पर कड़ी कार्रवाई करते हुए उन पर एक एक साल का बैन लगा दिया है. इन क्रिकेटर्स को मिली इतनी कड़ी सजा को लेकर भारतीय बल्लेबाज और आईपीएल टीम दिल्ली डेयरडेविल्स के कप्तान गौतम गंभीर ने क्रिकेट औस्ट्रेलिया के सामने बड़ा सवाल उठाया है.

गंभीर का कहना है कि इन खिलाड़ियो को कहीं बोर्ड से बगावत करने की खामियाजा तो नहीं भुगतना पड़ रहा है? गंभीर ने स्मिथ और उनके परिवार से भी सहानुभूति जताई, उन्होंने अपनी बात सामने रखते हुए ट्वीट किया-

– गंभीर ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘हालांकि क्रिकेट को भ्रष्टाचार मुक्त होना चाहिए लेकिन औस्ट्रेलियाई खिलाड़ीयों पर लगा बैन कुछ ज्यादा सख्त है. कहीं स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर को वेतन बढ़ाने के मामले में क्रिकेट औस्ट्रेलिया के खिलाफ बगावत करने की सजा तो नहीं मिल रही है. वैसे भी इतिहास रहा है जिन्होंने भी अबतक खिलाड़ियो के हक में आवाज उठाई है, एडमिनिस्ट्रेटर्स ने उनका मजाक बनाया है. सबसे बड़ा उदाहरण इयान चैपल का है.’

– अपने अगले ट्वीट में गंभीर ने लिखा, ‘मुझे स्टीव स्मिथ के पिता और उनके परिवार के लिए बेहद ही बुरा लग रहा है. उम्मीद है कि मीडिया और औस्ट्रेलिया के लोग उनके परिवार पर निशाना नहीं साधेंगे. क्योंकि ऐसे मौके पर परिवार सबसे सौफ्ट टारगेट हो सकते हैं. वैसे भी बैन से ज्यादा अपने ही प्रशंसको से एक धोखेबाज कहलाना बहुत बड़ी सजा होती है, जो उन्हें इस वक्त मिल रही है.’

– इसके बाद अपने आखिरी ट्वीट में गंभीर ने लिखा, ‘हो सकता है मैं भावुक हो रहा हूं लेकिन मुझे नहीं लगता कि स्टीव स्मिथ ने कोई धोखा किया है. मुझे आपके बारे में तो नहीं पता, लेकिन उनमें मुझे एक ऐसा लीडर दिखता है, जो कि अपनी टीम और देश के लिए हर हाल में टेस्ट मैच जीतने को बेकरार रहता है. हां, उनके तरीकों पर सवाल उठाए जा सकते हैं लेकिन उन पर भ्रष्ट का लेबल लगाना उचित नहीं है.’

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