सावित्री बाई फूले भी रूढिवादी सोच से पीड़ित रही हैं. समाज की इन वजहों से ऊब कर उन्होंने सन्यास लिया. सावित्री बाई फूले जो भगवा पहनती हैं, उसे वह धर्म से न जोड कर बौद्व से जोड़ती हैं. सावित्री बाई फूले बसपा प्रमुख मायावती को अपना रोल मौडल मानती हैं.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नमो बुद्वाय जन सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित ‘भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओं महारैली’ में सावित्री बाई फूले शामिल हुईं, तो ऐसा लगा जैसे वह केन्द्र सरकार के खिलाफ कुछ बोलेंगी. सावित्री बाई फूले ने भाजपा या केन्द्र सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला. आरक्षण और दूसरे कई मुद्दों को लेकर भाजपा में एक राय नहीं है.
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को आगे करके पिछड़ा वोट बैंक पर निशाना साधा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अब संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अम्बेडकर को सामने रखा है. भाजपा ने उनके नाम को लेकर उत्तर प्रदेश में राजनीति शुरू कर दी है. 14 अप्रैल को भाजपा ज्यादा भव्य तरीके से डाक्टर अम्बेडकर की जंयती मनाने जा रही है. जिस तरह से उसने कांग्रेस से वल्लभ भाई पटेल को छीन लिया था, उसी तरह से भाजपा अब बसपा को अम्बेडकर से दूर करना चाहती है.
सवित्री बाई फूले भाजपा के साथ रहें या अलग, वह डाक्टर अम्बेडकर के बहाने दलित वर्ग को अपने साथ करने में जितना सफल होंगी, बसपा का नुकसान होगा. भाजपा की पहली रणनीति यही है कि सपा-बसपा के गठबंधन में दलित वोटों को जितना भी तोड़ा जा सके बेहतर होगा. सावित्री बाई फूले दलित हैं, महिला हैं, दलित मुद्दों को लेकर मुखर हैं, उनको जानकारी है, अच्छा भाषण दे लेती हैं. भाजपा के लिये सबसे अहम खासियत यह है कि वह भी गेरूआ वस्त्र पहनती हैं. सावित्री बाई फूले का अपना अलग संगठन है. वह जिला पंचायत सदस्य से लेकर विधायक और सांसद का चुनाव जीत चुकी हैं.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन