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स्कूली इम्तिहानों में नकल, छात्रों से ज्यादा सिस्टम कुसूरवार

‘कौआ चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल’. यह कहावत उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड के इम्तिहानों पर पूरी तरह से खरी उतरती है. खुद को सीबीएससी बोर्ड की तरह बदलने के चक्कर में यह बोर्ड अपनी ही जड़ों से कटता जा रहा है. ऐसे में उस का यह दावा भी खोखला लगता है कि वह इम्तिहान कराने वाला सब से बड़ा शिक्षा बोर्ड है.

केवल सीबीएससी बोर्ड से एक महीना पहले इम्तिहान कराने और उन का नतीजा लाने से हालात नहीं बदलने वाले. असल सुधार तो तब होगा जब उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड अपने स्कूलों, इम्तिहानों में पूछे जाने वाले सवालों और पढ़ाने के तौरतरीकों में बदलाव लाएगा. नेताओं के विदेशों में दौरा करने और इम्तिहान दिलाने के अपने सिस्टम का गुणगान करने से हालात नहीं बदलेंगे.

छात्रों का इम्तिहान छोड़ने वाला मुद्दा खुशी की नहीं शर्म की बात है. इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए, नहीं तो आने वाले दिनों में इम्तिहान पास करने वाले छात्र भी केवल ‘पकौड़ा कारोबार’ करने के ही लायक ही रहेंगे.

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड का दावा है कि वह दुनिया में सब से बड़े इम्तिहान का आयोजन करता है. इस वाहवाही की हकीकत यह है कि दुनिया में यह पहला इम्तिहान होगा जहां पर 10 लाख, 62 हजार, 506 छात्रों ने इम्तिहान छोड़ दिया.

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस को अपनी वाहवाही से जोड़ कर देख रही है. सरकार का कहना है कि इस बार इम्तिहानों में नकल पर रोक लगी तो इस वजह से नकल करने वाले छात्रों ने इम्तिहान छोड़ दिया है. सवाल उठता है कि छात्र नकल करने के लिए मजबूर ही क्यों होते हैं?

उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षा सिस्टम पूरी तरह से खोखला हो चुका है. प्राइमरी से ले कर 12वीं जमात तक एकजैसा हाल है. बिना पढ़े हुए बच्चों को प्रश्नपत्र का हर सवाल मुश्किल लगता है. ऐसे में वे नकल की तरफ भागने लगते हैं.

हमारे देश में एकजैसा शिक्षा सिस्टम नहीं है. अमीर के लिए बेहतर और गरीब के लिए बदतर शिक्षा सिस्टम है. 12वीं जमात के बाद नौकरी की रेस में दोनों को एकजैसे इम्तिहान और इंटरव्यू से गुजरना पड़ता है, जिस में गरीब शिक्षा सिस्टम में पढ़ने वाला छात्र तरक्की की रेस से बाहर हो जाता है.

देश में कुछ सालों के अंदर ही सीबीएससी यानी सैंट्रल बोर्ड औफ सैकेंडरी ऐजूकेशन और आईसीएसई यानी इंडियन सर्टिफिकेट औफ सैकेंडरी ऐजूकेशन का दबदबा बढ़ा है. केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश के अलगअलग राज्यों में वहां के शिक्षा बोर्डों की हालत खराब हो चुकी है. उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड से मंजूरी मिले स्कूल लगातार बंद होते जा रहे हैं. उन में पढ़ने वाले बच्चों की तादाद कम होती जा रही है.

society

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड के स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे कमजोर घरों के हैं. वे सरकार से मिल रही मदद के लिए इन स्कूलों में पढ़ने आते हैं. सरकार भी चाहती है कि समान शिक्षा ले कर ये बच्चे अमीर बच्चों से मुकाबला न कर पाएं इसलिए यहां सुधार होता नहीं दिखाया जाता है.

उत्तर प्रदेश के पुराने शिक्षा बोर्ड के मुकाबले सीबीएससी और आईसीएसई लोकप्रिय इसलिए हुए हैं, क्योंकि ये प्रतियोगी इम्तिहानों के लैवल को ध्यान में रख कर अपने कोर्स को तैयार कर इम्तिहान कराते हैं.

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड में जब ज्यादा से ज्यादा हासिल किए गए अंक 75 फीसदी होते थे तो सीबीएससी में 90 से ज्यादा फीसदी नंबर मिलते थे. पिछले कुछ सालों से उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड की लगातार बुराई हो रही है. ऐसे में वहां भी बच्चों को ज्यादा नंबर देने का सिलसिला शुरू हो गया है.

पहले जहां केवल साइंस सब्जैक्ट में ही प्रैक्टिकल होते थे अब हाईस्कूल में हिंदी सब्जैक्ट में 30 नंबर का प्रैक्टिकल होने लगा है. ऐसे में बच्चों को बिना किसी तैयारी के ही ज्यादा नंबर मिलने लगे हैं.

इन सब्जैक्ट के प्रैक्टिकल के लिए बच्चों को केवल सब्जैक्ट से संबंधित फाइल तैयार कर लिखना होता है. पहले से तैयार इस फाइल पर ही हाईस्कूल के बच्चों को 30 में से कम से कम 25 नंबर मिलने लगे हैं. ऐसे में बच्चे अच्छे नंबरों से पास होने लगे हैं. अब उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड के छात्र भी 80 फीसदी से ऊपर नंबर पा कर सीबीएससी के बच्चों से मुकाबला करने लगे हैं.

खोखली नींव पर…

उत्तर प्रदेश में हर साल तकरीबन 26 लाख बच्चे हाईस्कूल यानी 10वीं जमात और 14 लाख बच्चे इंटर यानी 12वीं जमात के इम्तिहानों में हिस्सा लेते हैं. इन आंकड़ों को देखें तो साफ है कि 10वीं जमात से 12वीं जमात तक पहुंचने के बीच ही ज्यादातर छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं.

गरीब घरों के ये छात्र 10वीं जमात के बाद मेहनतमजदूरी करने में लग जाते हैं. वे सरकारी मदद के बाद भी अपनी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाते हैं.

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड ने अपनी खामियों को छिपाने के लिए ‘नकल कारोबार’ को बढ़ाने का काम किया. नेताओं ने भी इसे वोट बैंक से जोड़ दिया.

यह सिलसिला साल 1980 के बाद से धीरेधीरे पनपने लगा जो समय के साथ एक बड़े कारोबार में बदल गया. कल्याण सिंह जब पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने नकल करने को संज्ञेय अपराध बना दिया था. नकल करने वाले बच्चों को जेल भेज दिया था. उस समय भी यह नहीं सोचा गया था कि बच्चे नकल करते क्यों हैं?

बाद की सरकारों ने इस कानून को खत्म कर बच्चों को जेल जाने से बचाया पर इस से सिस्टम में सुधार नहीं आया. ‘नकल कारोबार’ संगठित हो कर आगे बढ़ने लगा. नकल वाले इम्तिहान कराने के अलग स्कूल खुलने लगे. वहां नकल कराने के नाम पर महंगी फीस वसूल होने लगी. बच्चे ही नहीं उन के मांबाप, शिक्षा विभाग के अफसर, नेता, समाज के लोग सब इस में शामिल हो गए.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षा मित्रों की भरती शुरू की. राजनाथ सिंह उस समय उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री थे. शिक्षा मित्रों की भरती में मैरिट को बेस बनाया गया. मैरिट में वही बच्चे आगे आए जिन्होंने नकल के सहारे ज्यादा नंबर पाए थे.

सरकारी नौकरी में मैरिट को बेस बनाने के बाद नकल कारोबार बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगा. अब बिना पढ़े ही बच्चे 75 से 85 फीसदी नंबर पाने लगे. मैरिट में यही बच्चे आगे आ कर नौकरी के दावेदार हो गए.

सरकारी नौकरी में मैरिट का यह खेल आगे भी जारी रहा, जो गले की हड्डी बन गया. शिक्षा मित्रों के रूप में स्कूलों में पढ़ाने वाले टीईटी यानी शिक्षक पात्रता इम्तिहान पास करने में फेल होने लगे.

दिखावा हैं सुधार के कदम

सरकारी स्कूलों में शिक्षा सिस्टम में सुधार के नाम पर सरकार के दावों और उन की हकीकत में बहुत फर्क है. कई बार ऐसे मसले सामने आए जब छात्रों को पढ़ाने वालों का टैस्ट हुआ तो वे ही पूछे गए सवालों के सही जबाव नहीं दे पाए. ऐसे में प्रदेश में शिक्षा सिस्टम की पोल खुलने लगी. प्रदेश में सामूहिक नकल, प्रश्नपत्र का लीक होना, परीक्षा केंद्रों में गलत प्रश्नपत्र पहुंचना, कौपियां ले कर भाग जाना जैसी घटनाएं होने लगीं.

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए जो कदम उठाए हैं उन में सब से पहले इम्तिहानों को सीबीएससी से पहले कराने की वाहवाही लूटने का काम हुआ. 10वीं और 12वीं जमात के जो इम्तिहान हर साल मार्च महीने में होते थे, इस बार फरवरी महीने में ही करा दिए गए. लिहाजा, इस साल बच्चों को पढ़ने का पूरा समय भी नहीं मिला.

साल 2017-18 के शिक्षा सत्र की शुरुआत अप्रैल, 2017 से हुई थी. गांवों में अप्रैलमई महीने में खेतीकिसानी होती है. ज्यादातर मातापिता इस काम में लगे होते हैं. ऐसे में वे अपने बच्चों को समय से स्कूल में दाखिले के लिए नाम नहीं लिखवा पाते.

जुलाई में जब स्कूल खुलते हैं तो बच्चों का दाखिला फिर से शुरू होता है, जो 15 अगस्त तक चलता है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई 15 अगस्त के बाद ही शुरू होती है.

अगस्त से फरवरी महीने के बीच साल के 6 महीने बच्चों की पढ़ाई के लिए मिले. इस में दशहरा, दीवाली, क्रिसमस और जाड़ों की छुट्टियों समेत शनिवार और रविवार की छुट्टी कोे निकाल दें तो आधा समय ही बचता है.

ऐसे में केवल 90 दिन ही सही तरह से बच्चों को पढ़ाई हो पाई. 11 महीने की पढ़ाई का बोझ 3 महीने में पूरा होगा तो बच्चे नकल के लिए मजबूर हो जाएंगे न?

नाम न छापने की शर्त पर हाईस्कूल के इम्तिहान आयोजित कराने वाले एक प्रिंसिपल ने बताया कि सरकार अपनी वाहवाही के लिए तुगलकी फैसले करती है. 10वीं और 12वीं जमात के बच्चों ने इम्तिहान छोड़ा वह शर्म की बात है. नकल इसलिए होती है क्योंकि शिक्षा में सुधार का फैसला शिक्षाविद नहीं अफसर करते हैं.

कभी यह नहीं सोचा जाता कि उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड के अलावा बाकी इम्तिहानों में नकल क्यों नहीं होती है? सीसीटीवी, बायोमीट्रिक्स अटैंडैंस वगैरह सिस्टम में सुधार का हिस्सा हैं, शिक्षा में सुधार का नहीं.

आज इन स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचरों की अलगअलग परेशानियां हैं. सरकार के हर काम में स्कूल टीचर ही आसानी से मुहैया होते हैं. उन के पास पढ़ाने के अलावा भी बहुत सारे काम हैं, जिस की वजह से वे पढ़ाने के काम को छोड़ कर दूसरे काम करते हैं.

जो मांबाप अपने बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए सचेत हैं वे प्राइवेट स्कूल में जाना चाहते हैं. सरकार को शिक्षा और सिस्टम दोनों में सुधार करना होगा केवल सिस्टम सुधारने से कोई हल नहीं निकलेगा.

नहीं होती बेहतर तैयारी

स्कूली इम्तिहानों में छात्रों से जिस तरह से मुश्किल सवाल पूछे जाते हैं टीचर क्लास में उन की तैयारी नहीं कराते. गांवों में पढ़ने वाले बच्चे इतने अमीर नहीं होते हैं कि वे ट्यूशन ले सकें. ऐसे में नकल के भरोसे इम्तिहान देना उन की मजबूरी हो जाती है.

बच्चों को लगता है कि अगर वे अच्छे नंबरों से इम्तिहान पास कर लेंगे तो उन को रोजगार मिल जाएगा, इसलिए वे ऐसे स्कूलों की तलाश में रहते हैं, जहां नकल की सुविधा होती है.

नकल की सुविधा देने के लिए शिक्षा विभाग से ले कर नेता तक जिम्मेदार होते है. ज्यादातर स्कूल ऐसे ही नेताओं के होते हैं जो पार्टी को चंदा देते हैं, अफसरों को घूस देते हैं. इस पैसे को कमाने के लिए वे बच्चों को नकल करा कर पैसे वसूल करते हैं.

उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग के हर अफसर को यह पता है कि कहां पर नकल का कारोबार चलता है. साल 2017-18 के शिक्षा सत्र के इम्तिहान के नतीजे अप्रैल महीने में आएंगे. इस साल पास होने वालों की तादाद और उन को मिलने वाले नंबर पिछले सालों के मुकाबले कम होंगे. ऐसे में एक बार फिर से नकल पर चर्चा शुरू होगी.

दरअसल, जब तक शिक्षा सिस्टम में सुधार की बात नहीं होगी तब तक नकल रोकने की बात करना बेमानी है. कोई बच्चा नकल करना सीख कर नहीं आता, हमारी शिक्षा का सिस्टम और पढ़ाई का ढंग उस को नकल करना सिखाता है.

कैसे कैसे सवाल

– हिंदी

  1. ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना कब हुई?
  2. ‘आन का मान’ नाटक के कथानक पर प्रकाश डालिए.
  3. ‘राजमुकुट’ नाटक की कथा संक्षेप में लिखिए.

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड की 12वीं जमात के इम्तिहान में सामान्य हिंदी के प्रश्नपत्र से ये कुछ सवाल हैं. इन सवालों से इम्तिहान देने वालें को क्या हासिल होगा? सामान्य हिंदी के सलेबस में ऐसे सवाल होने चाहिए जिन से बच्चे को ठीक से हिंदी व्याकरण सिखाई जा सके. उस की हिंदी पढ़ने में दिलचस्पी बढ़ सके.

50 नंबर के प्रश्नपत्र को हल करने के लिए 3 घंटे का समय दिया जाता है. हिंदी के प्रश्नपत्र में पूछे जाने वाले सवाल ही ऐसे होते हैं कि 15 मिनट तो छात्र को समझने में लगते हैं. यह केवल हिंदी के प्रश्नपत्र का हाल नहीं है, हर सब्जैक्ट की यही हाल है. हर सब्जैक्ट में ऐसेऐसे सवाल होते हैं जिन का छात्र के भविष्य से कोई मतलब नहीं होता है.

– राजनीतिशास्त्र

  1. दबाव समूह एवं राजनीतिक दल का एक अंतर लिखिए?
  2. सवैधानिक उपचारों के अधिकारों को समझाएं?
  3. समानता के 2 प्रकार बताएं?

साल 2006 में राजनीतिशास्त्र में पूछे गए इन सवालों से पता चलता है कि इन की क्या उपयोगिता है. प्रश्नपत्रों की बात तो जाने दीजिए ‘दवाब समूह’ क्या है यह आम आदमी भी नहीं बता सकता. हर सब्जैक्ट में ऐसेऐसे सवालों की भरमार होती है. ऐसे सवाल ही बच्चों में नकल को बढ़ावा देने का काम करते हैं.

प्राइमरी स्कूल से ही शुरू हों सुधार

समाजसेवी और ‘मैग्सेसे अवार्ड’ विजेता डाक्टर संदीप पांडेय कहते हैं, ‘‘10वीं और 12वीं जमात के बच्चे नकल इसलिए करते हैं क्योंकि प्राइमरी जमातों से ही उन की पढ़ाई का लैवल बहुत नीचा होता है. सरकारी स्कूलों की हालत खराब है. वहां गरीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए उन स्कूलों के सुधार में किसी की दिलचस्पी नहीं रह गई है. हालत यह है कि प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले बहुत से टीचर तक अपने बच्चों को इन स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहते. जब स्कूल टीचर को ही अपने स्कूल पर भरोसा नहीं तो दूसरे लोगों की बात कौन करे.

‘‘कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सरकारी नौकरी करने वालों के लिए जरूरी नियम बनाया जाए कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं. सरकार ने इस आदेश को दरकिनार कर दिया. जब तक असरदार लोगों का ध्यान इन स्कूलों की तरफ नहीं जाएगा यहां सुधार नहीं होगा.

‘‘सरकार ने शिक्षा अधिकार कानून बना कर प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों को पढ़ाने का हक दिया पर इस का सही से पालन नहीं हो रहा है. आज जरूरत इस बात की है कि देश में एकसमान शिक्षा व्यवस्था लागू हो, तभी छात्रों का भला होगा.’’

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स्कौटलैंड : बुद्धि, चेतना एवं क्रिया का अदभुत संयोग

लंदन से हमें एडिनबर्ग, स्कौटलैंड के लिए ट्रेन पकड़नी थी. हम चाय व हलके नाश्ते के बाद घर से निकल पड़े. टैक्सी ठीक 8 बजे आ गई. 10 बजे दिन में लंदन क्रिसक्रौस स्टेशन से हम ने ट्रेन पकड़ी. यह 150 मील प्रति घंटे की गति से चल कर अबरडीन तक जाती है. ढाई बजे दोपहर को हमारा गंतव्य एडिनबर्ग आ गया. रास्ते में पड़ने वाली टाइन नदी बाईर्ं ओर पीलेपीले बड़ेबड़े खेत, हरभरे वृक्ष, साथसाथ चलता उत्तरी सागर ट्रेन में हमारी चाय व स्नैक्स का स्वाद दोगुना करते रहे.

ग्रेट ब्रिटेन के उत्तर में स्थित पहाडि़यों से घिरे लगभग 5,78,000 जनसंख्या वाला देश स्कौटलैंड बुद्धि, चेतना और क्रिया का अद्भुत संयोग है. उद्योग, कृषि, झीलों, पहाडि़यों व हरेभरे जंगलों का अकूत सौंदर्य अपने में समेटे हुए स्कौटलैंड ने साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, कवियों, उपन्यासकारों व कलाकारों को जन्म दिया. यहां बेन नेविस सब से ऊंची चोटी है. इस की ऊंचाई 4,406 फुट है. एडिनबर्ग इस की ऐतिहासिक राजधानी है. यातायात के लिए यहां सुंदर सड़कें, रेलमार्ग और मोटर बोट सुलभ हैं. स्कौटलैंड लगभग 400 वर्षों तक फ्रांस, स्पेन जैसे शक्तिशाली देशों के मध्य युद्ध में फंसा रहा, इस के बावजूद यहां के आर्टिस्ट, विद्वान, कवि, साहित्यकार और वैज्ञानिक गरीबी व अभावों के बीच भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं.

इस स्थान को रैस्टिंग प्लेस औफ नौवेलिस्ट भी कहते हैं. स्कौटलैंड का नैशनल एनिमल यूनिकौर्न है.

एडिनबर्ग

छठी शताब्दी के किंग एडविन के नाम पर इस नगर का नाम एडिनबर्ग पड़ा. 12वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी तक के किले, महल व सैन्यबल की झलक देता है यह शहर. यहां प्राचीन इमारतें हैं. शहर के दोनों ओर कलात्मक पार्लियामैंट हाउस व अन्य भवन दर्शकों के आकर्षण हैं. होटल पहुंच कर तनिक विश्राम के बाद हम हौपऔन हौपऔफ बस द्वारा एडिनबर्ग की जानकारी लेने चल पड़े. ओल्ड टाउन, नैशनल म्यूजियम, एडिनबर्ग कैसेल, जौर्जियन न्यू टाउन, होलीरूड हाउस पैलेस इत्यादि भी देख सकते हैं.

वापस होटल पहुंच भोजनोपरांत हम ने रात्रिविश्राम किया. सुबह दैनिकक्रिया के बाद जलपान  कर टैक्सी से आगे की यात्रा प्रारंभ की. टैक्सी ड्राइवर सज्जन व्यक्ति था. कार चलाने के साथसाथ वह हमें स्कौटलैंड की जानकारी भी दे रहा था. हम इन्वरनैंस शहर की तरफ जा रहे थे. हम नदी पर बने पुल पर चल रहे थे. नदी की बाईं ओर एक नया पुल बन रहा है. पुराने पुल के मार्ग पर हमें सलमान खान की फिल्म ‘किक’ का एक दृश्य याद आ रहा था. उस की शूटिंग यहीं हुई थी.

हरभरे जंगल के बीच से हम गुजर रहे थे, मौसम अत्यंत अनुकूल था. हमारी यात्रा काफी सुखदायी थी. हम ब्रीमर गांव की ओर हाईवे से अलग बढ़ रहे थे. नितांत पतली सड़क, इक्कादुक्का गाडि़यां. एक कार को दूसरी कार को रास्ता देने के लिए आगेपीछे होना पड़ रहा था किंतु अत्यंत शांतिपूर्वक, न कोई हायहाय न कोई किचकिच. हम ड्राइवर के साथ स्कौटलैंड की भाषा व वेशभूषा पर चर्चा करते चल रहे थे. वह इंगलिश के साथसाथ गेलिक भाषा का भी प्रयोग करता रहा. यहां लोगों को अपनी भाषा से बहुत पे्रम है.

स्कौटलैंड का यह गांव साफसुथरा, शांत और स्वादिष्ठ ताजे फलों से भरपूर है. हम ने यहां  स्ट्राबेरी खरीदे जोकि बड़े ही स्वादिष्ठ थे. ब्रीमर गांव में हम ने चाय की चुस्कियां लेते हुए वातावरण का आनंद लिया. गांव वालों को अपने रीतिरिवाज व परंपरा पर गर्व है. स्कौटलैंड आतिथ्य सत्कार का विशेष ध्यान रखता है.

वातावरण की शांति और आबोहवा की शुद्धता ने मन को खुश कर दिया. हम ने महसूस किया स्कौटिश लोग समूह में रहना पसंद करते हैं, समूह चाहे छोटा ही क्यों न हो.

इन्हें फुटबौल खेलना और नृत्य व संगीत प्रिय है. गांव के लोग आग के चारों ओर बैठ कर भारतीय समूह की ही तरह अपना मनोरंजन नृत्य व संगीत के साथ करते हैं. फुटबौल इन का राष्ट्रीय स्तर का शौक है. यहां लोग गोल्फ भी काफी खेलते हैं. रगबी (कबड्डी की भांति) यहां का मशहूर खेल है. नाचगाना, शक्तिप्रदर्शन और आर्टक्राप्ट इन के व्यवसाय व मनोरंजन के अंग हैं. मेरी बहू साथ में कुछ स्नैक्स व शुद्ध पेय लाई थी, उन से हमारी स्कौटलैंड की यात्रा व आपस की बातचीत और भी सरस बन गई थी.

स्कौटलैंड में जौ की खेती बहुतायत में होती है. वहां यह आय का प्रमुख स्रोत है. अब क्षुधापूर्ति भी आवश्यक थी, सो, हम दोपहर के भोजन हेतु एक रैस्टोरैंट में गए और स्वादिष्ठ भोजन का आनंद लिया.

अब हम इन्वरनैस के मार्ग पर फिर चल पड़े थे. शाम होने वाली थी. हम अपने गंतव्य पर पहुंचने वाले थे. राह में हमें एक स्थान मिला जिस का नाम पर्थ है. यहां हम एक होटल में ठहरे. कमरे की खिड़की से दिखती नदी व नदी के जल में झिलमिलाती रोशनी मन को मोह रही थी. हम ने थोड़ा विश्राम किया और एक  दक्षिण भारतीय रैस्टोरैंट में स्वादिष्ठ भोजन किया. काफी थकान हो गई थी. नींद अच्छी आई.  सुंदर सुबह ने हमारा स्वागत किया. सुबह की नित्यक्रिया के बाद हम ने होटल में ही जलपान किया और लौकनैस झील देखने निकल पड़े. झील का पानी पहाडि़यों से निकलता है जो पहले गड्ढों में इकट्ठा होता है और फिर धीरेधीरे झील का रूप ले लेता है. यह झील अधिकतम 900 फुट गहरी, 24 मील लंबी व 1 मील चौड़ी है.

मनोरम स्थल

स्कौटलैंड का सब से रोमांटिक कैसल है- एलन डोनन कैसल. लोग इसे वैवाहिक कार्यक्रम के लिए भी बुक कराते हैं. यहां की सीनिक ब्यूटी अद्भुत है. यहां काफी सारी पहाडि़यां हैं.

यहां की पहाडि़यों की ऊंचाई बहुत अधिक नहीं है, सो पहाडि़यां चढ़ना यहां के लोगों के लिए फन है.

अब हम स्कौटलैंड में प्रकृति के सर्वोत्तम व अद्भुत नजारे देखने वाले थे. दाहिनी ओर झरने और बाईं ओर पहाडि़यां. हम आइल औफ स्काई पहुंचने ही वाले थे. हम स्कौटलैंड के पश्चिम के अंतिम छोर तक पहुंच गए थे. बस, जल ही जल, अथाह महासागर का प्रसार दिख रहा था.

आइल औफ स्काई में अटलांटिक महासागर का वह छोर और प्रवाहित होती तीव्र हवा हमारे वस्त्र व बालों को उड़ा रही थी. यहां तक कि हमारे बाल एरियल की भांति खड़े हो गए थे और ऐसी स्थिति में फोटो खिंचवाने का मोह हम संवरण न कर सके.

हमारे ड्राइवर हमें दिन के भोजन के लिए एक ऐसे स्थान पर ले गया, जहां हमें समुचित आवभगत के साथ स्वादिष्ठ भारतीय भोजन करने का अवसर मिला. यह एक महिला का रैस्टोरैंट था. वह महिला बंगलादेश की थी. हम ने रात के भोजन हेतु यहीं से कुछ स्वादिष्ठ खाना पैक करा लिया. दिनभर की थकान के बाद हम होटल पहुंचे, वहां हम सब ने विश्राम किया, स्वादिष्ठ भोजन के बाद सो गए. सुबह तैयार हो कर हम आगे की यात्रा पर निकल पड़े.

स्कौटलैंड का व्यावसायिक शहर ग्लासगो हमारी यात्रा का अगला लक्ष्य था. लंदन के बाद इसे ब्रिटेन के सैकंड बैस्ट प्लेस के नाम से जाना जाता है हम लौकनैस के बाईं ओर चल पड़े थे. सड़क के बाईं तरफ हरेभरे जंगल थे. दृश्य सुंदर व मनोरम थे. ड्राइवर की कमैंट्री चालू थी. अरे, यह क्या, सड़क के दोनों ओर जंगल. अब हम पोर्ट आगस्टस पहुंच गए थे. यहां एक नहर है जो ‘कोलिडोनियन’ नहर के नाम से जानी जाती है. यह पश्चिम में अटलांटिक महासागर और पूर्व में उत्तरी सागर को जोड़ती है.

अलौकिक सौंदर्य

समुद्र की पहचान देते अटलांटिक महासागर के बैकवाटर में छोटीछोटी मोटरबोट दिखाई दीं. वहां  टूटाफूटा एक छोटा सा महल था. उरूक्वार्ट नामक यह महल लौकनैस के पश्चिमी किनारे पर स्थित है. अपनी इस अवस्था में भी यह किला उस समय की वास्तुकला की कहानी बयां करता है.

प्रकृति का सुंदर करिश्मा, हरीतिमा ही हरीतिमा. आश्चर्य होता है कि अंगरेज इतने क्रूर क्यों थे? उन की महत्त्वाकांक्षाएं बड़ी तीव्र थीं जिन्होंने उन से क्याक्या करवा डाला. साम्राज्यवादी नीति ने उन्हें क्रूरतम बना दिया. अब तो वे बड़े सरल व सभ्य लगते हैं. सड़क के दोनों तरफ हरियाली ही हरियाली थी, झील में छोटेछोटे जहाज इस पल को अलौकिक बना रहे थे.

रास्ते में फोर्ट विलियम कसबे को देख कर हम आगे बढ़े. यहां पर सेनानियों की प्रतिमाएं थीं, लोग उन के फोटो ले रहे थे. हम लोग एक शौप में गए. वहां हम ने वूलन मफलर और बहुत सी अन्य वस्तुएं भी लीं लेकिन हमें भारतीय करैंसी के अनुपात में काफी कीमती लग रही थीं. हम ने एक रैस्टोरैंट में खाना खाया. अब हम आगे बढ़े. मौसम बहुत सुहावना था. लगातार वर्षा हो रही थी, सबकुछ अच्छा लग रहा था.

झीलों का नजारा

लौंक लोमंड झील काफी सुंदर व लंबी दिख रही थी. लौकनैस के बाद यह झील दूसरे स्थान पर है. वहां गाय की नाक जैसी मछलियां देखने का मौका मिला. बच्चों ने खूब दौड़ लगाई. थोड़ीथोड़ी धूप भी निकल आई थी. कुछ ही देर में मौसम का तेवर बदलने लगा था. हलकीहलकी बूंदें पड़ने लगी थीं.

हम कौफी शौप की ओर चल पड़े. ऐसे मौसम में कौफी पीना अच्छा लगा. कौफी शौप से झील का दृश्य अद्भुत लग रहा था. मोटरबोट से झील का भ्रमण अत्यंत आनंददायी रहा. शार्क मछली का खेल, उन्हें देखना, कुछ खिलाने का साहस कर पाना, उस से मिला आनंद अतुलनीय होता है.

कहीं पहाडि़यां, कहीं जंगल. कभी वर्षा होती, कभी थम जाती. बच्चों के साथ काफी आनंद आता था. लगभग 5 बजे शाम हम ग्लासगो पहुंच गए. क्लाइड नदी के किनारे बसा यह शहर छठी शताब्दी में धार्मिक समुदाय के रूप में था. 12वीं शताब्दी में इस ने व्यावसायिक शहर का रूप ग्रहण किया. लगभग 5 लाख की आबादी वाले इस शहर में वर्ष 2014 में कौमनवैल्थ गेम्स हुए.

औद्योगिक परंपरा से जुड़ा यह शहर स्कौटलैंड का सब से सुंदर शहर है. यहां का आर्किटैक्चर अद्भुत है. कौटन मिल्स, आइरन वर्क्स, शिप बिल्डिंग, लोनार्कशायर कोल के क्षेत्र में भी यह संपन्न है. यह आर्ट गैलरी और विज्ञान के क्षेत्र में भी संपन्न है.

यहां बहुमंजिली इमारतें हैं. 18वीं शताब्दी में स्थापित विक्टोरियन जौर्ज स्क्वायर तथा 19वीं शताब्दी की व्यावसायिक समृद्धि को दर्शाती इमारतें, रैस्टोरैंट्स, व्यस्ततम वीकैंड मार्केट्स, दक्षिण की ओर ग्लासगो विश्वविद्यालय व अन्य दर्शनीय स्थल हैं. पूरे शहर का भ्रमण हेतु अंडरग्राउंड ट्रेनें, बस तथा ट्राम चलती हैं.

हम ग्लासगो के लिए निकल पड़े. हम उस स्थान पर पहुंचे जो कैथेड्रल एरिया कहलाता है जहां से वस्तुत: ग्लासगो शुरू होता है.

प्रसिद्ध स्थल

हम जौर्ज स्क्वायर पहुंचे, यह एक सुंदर पार्क है. यहां सैलानी विश्राम करते हैं, खेलते हैं. इस के चारों ओर द्वितीय विश्वयुद्ध के उन नायकों की मूर्तियां हैं जिन्होंने युद्ध में अपना सक्रिय योगदान दिया. पार्क के दोनों ओर ऊंचीऊंची बिल्डिंग्स, होटल्स, शौप्स व रैस्टोरैंट्स हैं.

जौर्ज स्क्वायर ऐसा प्रसिद्ध स्थल है जहां से सिटी के विषय में पूरी जानकारी हासिल की जा सकती है. यहां क्रिसमस व न्यू ईयर के समय जश्न जैसा माहौल होता है. सफेद बर्फ के बीच मनोरंजन मन को भा जाता है, यहां सेंट एंड्रयूज डे भी मनाया जाता है. किंग जौर्ज (द्वितीय) नाम पर इस पार्क का नाम जौर्ज स्क्वायर पड़ा.

ग्लासगो यूनिवर्सिटी काफी प्रसिद्ध है. यहां अधिकांश वैज्ञानिकों, साहित्यकारों व उपन्यासकारों ने अपना जीवन संवारा व विश्व को अपनी पहचान दी. अधिकांश वैज्ञानिकों और साहित्यकारों, उपन्यासकारों ने नोबेल पुरस्कार जीते. यूनिवर्सिटी में ‘ग्लासगो साइंस सैंटर’, ‘ग्लासगो सिटी सैंटर’, ‘विलो टी रूम’ इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं.

ग्लासगो यूनिवर्सिटी 1451 में स्थापित की गई थी. 1870 में इसे नया रूप दिया गया. वैज्ञानिक जेम्स वाट इसी यूनिवर्सिटी के 1461 के स्कौलर थे.

अब हमारी कार एडिनबर्ग की ओर दौड़ रही थी. हम हरमिंसटन गेट नं. ए-720 से आगे बढ़ रहे हैं. हम ने जू देखा. बारिश हो रही थी, हम नीचे नहीं उतरे.

हम नौर्थ सी के पास पहुंचते हैं. पोर्ट पर हमें शिप दिखाई देता है. यह रानी एलिजाबेथ का प्रिय शिप है, जिस का नाम ‘ब्रिटेनिका’ है. यह टूटीफूटी अवस्था में है किंतु रानी को यह अत्यंत प्रिय है. इसीलिए प्रिंस चार्ल्स उसे चाह कर भी नष्ट न कर सके. अब यह पर्यटकों के आकर्षण केंद्र बन गया है. शिप से रानी की जुड़ी हुई पुरानी मधुरकटु यादों के लोग सहभागी बनते हैं, ऐसा प्रतीत होता है. यह किनारे पड़ा हुआ भी अपनी शोभा बढ़ा रहा है.

वर्ष 1707 की संधि के अनुसार स्कौटलैंड व इंगलैंड की संसद एक ही गवर्निंग बौडी (प्रशासन) के अधीन थी. वर्ष 1997 में स्कौटिश लोगों ने अपने पृथक प्रशासन की मांग की. वर्ष 1999 से इस  पर कार्य शुरू भी हुआ किंतु अधिकांश प्रशासन वैस्ट मिनिस्टर के अधीन है.

अविस्मरणीय यात्रा

हमारी स्कौटलैंड की यात्रा लगभग समाप्ति पर थी. खाना खाने के लिए  हम ने एक सुंदर रैस्टोरैंट ढूंढ़ा. शुद्ध शाकाहारी भारतीय भोजन कर के हम संतुष्ट हुए और अब हमारा लक्ष्य है स्टेशन. नियत समय 2:30 बजे हम वेवर्ली, एडिनबर्ग से ट्रेन पकड़ कर 6:30 बजे किंग क्रौस, लंदन पहुंच गए. स्कौटलैंड की सुंदरसुखद अविस्मरणीय यात्रा की स्मृतियों के साथ हम लंदन के एजवेयर बरी लेन स्थित स्वीट होम में प्रवेश करते हैं.

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सफारी कौरिडोर : रोमांच का बसेरा

आप वन्यजीवों को नजदीक से देखने के शौकीन हैं और जंगल का सन्नाटा आप को रोमांचित करता है तो मध्य प्रदेश आप के इस रोमांच को पूरा कर सकता है. आप यहां वन्यजीवों को करीब से देखने के साथ ही वनों के प्राकृतिक सौंदर्य, चिडि़यों की चहचहाहट, टाइगर की शान के रोमांच को महसूस कर सकते हैं. इस के लिए आप को वहां के करीबी किसी रिजोर्ट या सफारी कैंप में ठहरना होगा.

मध्य प्रदेश में 9 नैशनल पार्कों के अलावा 11 वाइल्ड लाइफ सैंचुरीज हैं जिन्हें एकसाथ घूम पाना संभव नहीं है लेकिन बाघ देखने वाले घुमंतू लोग एक सफारी कौरिडोर बना कर यहां के सब से विशाल और बाघ की अधिकतम संख्या वाले नैशनल पार्कों को देख सकते हैं. आप जबलपुर से शुरू कर के कान्हाकिसली, बांधवगढ़, पन्ना नैशनल पार्क होते हुए खजुराहो, ओरछा जा कर अपना पर्यटन टूर खत्म कर सकते हैं.

शुरुआत करते हैं जबलपुर से जो देश के सभी प्रमुख शहरों से रेलमार्ग और वायुमार्ग से जुड़ा है. जबलपुर से 128 किलोमीटर की दूरी पर कान्हाकिसली राष्ट्रीय उद्यान स्थित है. सागौन के घने जंगलों के बीच से गुजरती सड़क पर से चलने से यह एहसास हो जाता है कि हम जंगल के राजा के आशियाने की तरफ बढ़ रहे हैं.

खूबसूरत कान्हा

940 वर्ग किलोमीटर में फैला सदाबहार साल वनों से घिरा हुआ कान्हा क्षेत्रफल और जानवरों की संख्या के लिहाज से मध्य प्रदेश का सब से बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है. इसे 1955 में बनाया गया था और 1974 में इसे टाइगर प्रोजैक्ट के अधीन ले लिया गया था.

मंडला और बालाघाट जिलों में मैकल पर्वत शृंखलाओं की गोद में बसा कान्हा देश के सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय उद्यानों में एक है. कान्हा महज एक पर्यटन केंद्र ही नहीं, बल्कि भारतीय वन्यजीवन के प्रबंधन और संरक्षण की सफलता का प्रतीक भी है. स्वस्थ व फुरतीले जंगली जानवरों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर कान्हा में प्रतिवर्ष 1 लाख से अधिक सैलानी घूमने आते हैं.

यह अभयारण्य 15 अक्तूबर से 30 जून तक खुला रहता है. लोग बाघ और जंगली जीवजंतुओं को देखने व प्रकृति का आनंद लेने यहां आते हैं. इस के लिए सब से अच्छा तरीका है जिप्सी सफारी. एक जिप्सी में 6 लोगों को भ्रमण की अनुमति दी जाती है जिस से वे प्रकृति का आनंद ले सकें. लोग जानवरों के प्राकृतिक घर में जंगली जानवरों को देख सकते हैं. कान्हा और किसली नैशनल पार्क के 2 गेट हैं जो अलगअलग जिलों में स्थित हैं.

टाइगर को करीब से देखनेसमझने वालों के लिए कान्हा सब से पसंदीदा जगह है. कहा जाता है कि यहां से कोई भी वनराजा से मिले बिना नहीं जाता. कान्हा में बाघदर्शन ने पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है. बाघ के अतिरिक्त कान्हा में बारहसिंघा की एक दुर्लभ प्रजाति पंकमृग (सेर्वुस बांडेरी) भी पाई जाती है. 1970 में यहां इन की संख्या 3,000 से घट कर सिर्फ 66 रह गई थी. बाद में एक विशेष योजना के जरिए इन की संख्यावृद्धि के प्रयास किए गए जो काफी हद तक सफल रहे.

बाघ और बारहसिंघा के अतिरिक्त यहां भालू, जंगली कुत्ते, काला हिरण, चीतल, काकड़, नीलगाय, गौर, चौसिंगा, जंगली बिल्ली और सूअर भी पाए जाते हैं. इन वन्यप्राणियों को हाथी की सैर अथवा सफारी जीप के जरिए देखा जा सकता है.

यहां भी घूम कर आएं

किसली से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ब्राह्मणीदादर अवश्य जाएं. यहां दिखने वाला सूर्यास्त का मनोरम दृश्य सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है. पर्यटक पार्क के निकटवर्ती भीलवानी, मुक्की, छपरी, सोनिया, असेली आदि वनग्रामों में जा कर यहां की प्रमुख बैगा जनजाति के लोगों से मिल सकते हैं. उन की अनूठी जीवनशैली और परिवेश निसंदेह आप की यात्रा की एक और स्मरणीय सौगात होगी.

कान्हाकिसली की यादों के रोमांच को यादों की नोटबुक में संजो कर मार्बल नगरी जबलपुर का रुख करते हैं. यहां एक दिन ठहर कर भेड़ाघाट पर सफेद संगमरमर की चट्टानों के बीच से सर्पिलाकार नर्मदा का विहंगम दृश्य आप की सारी थकान दूर कर देगा.

जबलपुर में एक दिन रुकना काफी है. अगर 2 दिन का प्लान हो तो यहां से 4 घंटे का सफर तय कर जबलपुरनागपुर रोड पर मोगलीलैंड पेंच राष्ट्रीय उद्यान है जहां जंगलबुक के लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने मोगली को देखा था और जंगलबुक के सभी पात्र इसी जंगल में रचे थे. एक दिन में आप इस नैशनल पार्क को घूम कर वापस जबलपुर आ सकते हैं.

बांधवगढ़ के सफेद बाघ

जबलपुर से लगभग 195 किलोमीटर की दूरी पर स्थित 32 पहाडि़यों से घिरे सफेद बाघों की आरामगाह बांधवगढ़ का रुख करते हैं. सफेद बाघ का एकमात्र ठिकाना पूरे एशिया में सिर्फ बांधवगढ़ ही है. यहां के महाराजा के अथक प्रयासों से सफेद बाघ की प्रजाति जिंदा है.

बांधवगढ़ में बांस के पेड़ बहुतायत में हैं. चरणगंगा यहां की प्रमुख नदी है जो अभयारण्य से गुजरती है. इस क्षेत्र में पहला बाघ महाराज मार्तंड सिंह ने 1951 में पकड़ा था. मोहन नाम के इस सफेद बाघ को अब महाराजा औफ रीवा के महल में सजाया गया है.

राष्ट्रीय उद्यान बनाए जाने से पहले बांधवगढ़ के आसपास के जंगल को महाराजाओं और उन के मेहमानों की शिकारगाह के रूप में कायम रखा गया था.

यहां बाघ के अलावा कई स्तनधारी जीव भी पाए जाते हैं. चीतल, सांभर, हिरण, जंगली कुत्ते, तेंदुए, भेडि़ए, सियार, स्लोथ बियर, जंगली सूअर, लंगूर और बंदर यहां आसानी से देखे जा सकते हैं. सरीसृपों में किंग कोबरा, क्रेट, वाइपर जैसे सांपों की यहां भरमार है. यहां पक्षियों की लगभग 250 प्रजातियां पाई जाती हैं. इन में तोता, मोर, बगला, कौआ, हार्नबिल, बटेर, उल्लू आदि शामिल हैं.

कब जाएं बांधवगढ़

यदि आप बांधवगढ़ बाघ देखने जा रहे हैं तो अक्तूबर से जून के मध्य जाएं. बियर देखने जा रहे हैं तो मार्च से मई के महीने उपयुक्त हैं क्योंकि इस दौरान ही वे महुआ नाम के फूल को खाने के लिए बाहर निकलते हैं.

पन्ना नैशनल पार्क

बांधवगढ़ से सड़कमार्ग से 185 किलोमीटर की यात्रा कर के आप अपनी यात्रा का अंतिम पड़ाव पन्ना नैशनल पार्क पहुंच सकते हैं, लेकिन यहां 3 दिन रुकने का प्लान बनाएं क्योंकि नैशनल पार्क के अलावा भी यहां आसपास देखने को बहुतकुछ है, जो आप की यादों के अलबम में रोमांच के साथ रोमांस के भी रंग भर देंगे.

बाघ देखने वाले पर्यटकों के लिए पन्ना नैशनल पार्क सब से अच्छी जगह है. छतरपुर और पन्ना जिलों में फैला यह नैशनल पार्क 5 साल पहले उस समय काफी चर्चा में रहा जब यह बाघविहीन हो गया था, लेकिन लोगों की जागरूकता और प्रशासन के प्रयास से आज जंगल फिर अपने राजा की दहाड़ से गूंजने लगा है.

1980 से पहले इसे वाइल्ड लाइफ सैंचुरी घोषित किया गया था और 1981 में नैशनल पार्क का दर्जा दिया गया. यहां गरमी में बहुत अधिक गरमी और सर्दी में बहुत ठंड होती है, क्योंकि यहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय है.

पन्ना नैशनल पार्क घूमने के लिए नवबंर से अप्रैल का मौसम उपयुक्त रहता है.

यहां पार्क में आप को टाइगर के अलावा चौसिंगा हिरण, चिंकारा, सांभर, जंगली बिल्ली, घडि़याल, मगरमच्छ, नीलगाय भी दिखाई देंगी. यहां से खजुराहो सब से नजदीक है, जहां रेल और हवाईमार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है. अब तो रेलवे ने भी अपनी लक्जरी ट्रेन महाराजा का रूट खजुराहो से हो कर वाराणसी कर दिया है. खजुराहो से 30 मिनट में पन्ना नैशनल पार्क पहुंचा जा सकता है.

क्या है खास

केन नदी के किनारे का सुरम्य वातावरण और पेड़ के ऊपर बने मचाननुमा रैस्टोरैंट में बैठ कर पहाडि़यों के पीछे डूबते सूरज का मनोरम दृश्य देख कर गरमगरम कौफी के घूंट का एहसास आप को किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाता है.

नैशनल पार्क के अलावा पन्ना यहां निकलने वाले हीरों के लिए भी प्रसिद्ध है. पार्क से थोड़ी दूरी पर एनएमडीसी की मझगंवा डायमंड माइंस है जहां हीरों की खुदाई से ले कर उस की सफाई प्रक्रिया देखी जा सकती है. अगर समय मिले तो रिजोर्ट से 8 किलोमीटर की दूरी पर पन्ना नगर है जिस के यूरोपीय शैली में बने मंदिर देखे जा सकते हैं. इस के अलावा पार्क से हो कर गुजरने वाली केन नदी पार्क की खूबसूरती में चारचांद लगा देती है. यहां नाव में बैठ कर जंगली जीवों को करीब से देखने का आनंद ही कुछ और होता है. पार्क के मुख्य आकर्षणों में एक खूबसूरत पांडव झरना है, जोकि झील में गिरता है. मानसून के दिनों में इस झरने का विहंगम दृश्य बड़ा ही रोमांचकारी लगता है.

रोमांच के बाद रोमांस

पन्ना नैशनल पार्क से 43 किलोमीटर की दूरी पर कला के पारखियों के लिए काम और वास्तुकला के अद्भुत मेल वाली पाषाण प्रतिमाओं के लिए विश्वप्रसिद्ध खजुराहो के मंदिर हैं. यह भारतीय शिल्पकला की नायाब धरोहर है. खजुराहो मंदिरों को 950 से 1050 ई. के बीच मध्य भारत पर शासन करने वाले चंदेल वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था.

खजुराहो में कुल 85 मंदिरों को बनवाया गया था, जिन में से आज केवल 22 ही बचे हैं. पूरी दुनिया का ध्यान यहां के मंदिरों में स्थित मूर्तियों ने आकर्षित किया है जो कामुकता से भरी हैं. इस मंदिर को 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित कर दिया गया.

खजुराहो के पास ही ब्रिटिशकाल में बनाया गया गंगऊ डैम स्थित है. इस डैम की वास्तुकला और इंजीनियरिंग देखने लायक है. पास ही रनेह फौल है जिस का वास्तविक रूप मानसून में ही देखने लायक होता है.

धुबेला की शानोशौकत

खजुराहो से 59 किलोमीटर खजुराहोझांसी राजमार्ग पर धुबेला स्थित है. जैसे ही आप धुबेला के समीप आते हैं, 52 फुट की महाराजा छत्रसाल की विशाल प्रतिमा आप का स्वागत करती दिखती है. यह स्थान बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल की कर्मस्थली था. उन की बेटी मस्तानी का जन्म और बचपन धुबेला के महलों में ही बीता.

फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली मस्तानी को ले कर ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म बना चुके हैं. यहां मौजूद महलों के अवशेष और छत्रसाल का मकबरा आज भी यह याद दिलाने के लिए काफी है कि उस वक्त का इतिहास क्या होगा.

रिजोर्ट से धुबेला संग्रहालय मात्र 5 मिनट की दूरी पर स्थित है. संग्रहालय एक पुराने किले के अंदर स्थित है. इस में प्राचीन और आधुनिक युग की कलाकृतियां और अवशेषों का समृद्ध कलैक्शन है. यहां मुख्यरूप से खजुराहो के प्रसिद्ध बुंदेला वंश के इतिहास, उत्थान और पतन को दर्शाया गया है. अनेक मूर्तियों व कलाकृतियों का समृद्ध और बेहतरीन कलैक्शन बुंदेला राजाओं की जीवनशैली और संस्कृति को समझने में मदद करता है.

एक दिन में ही आप धुबेला घूम कर वापस खजुराहो लौट सकते हैं. खजुराहो वायु और सड़कमार्ग से सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है.

सफारी कौरिडोर कहां से शुरू

कान्हाकिसली : नजदीकी हवाईअड्डा और रेलवे स्टेशन जबलपुर है जो कान्हा से 128 किलोमीटर की दूरी पर है.

पेंच राष्ट्रीय उद्यान : जबलपुर से सड़कमार्ग से 214 किलोमीटर दूर है. 4 से 5 घंटे का समय लगता है.

बांधवगढ़ : जबलपुर से सड़कमार्ग द्वारा 165 किलोमीटर की दूरी पर है.

पन्ना नैशनल पार्क : बांधवगढ़ से पन्ना सड़कमार्ग से 185 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.

खजुराहो : पन्ना नैशनल पार्क से 44 किलोमीटर की दूरी पर खजुराहो है. यहां से दिल्ली और वाराणसी के लिए हर दिन फ्लाइट और ट्रेन भी उपलब्ध हैं.

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उत्तर प्रदेश में क्रौसवोटिंग पर भारी जातिगत समीकरण

7 राज्यों में राज्यसभा की 58 सीटों में से 28 सीटें जीत कर भाजपा ने राज्यसभा में सब से बड़ी पार्टी भले ही बन गई हो पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से क्रौसवोटिंग हुई उस ने उस के दामन पर दाग लगा दिया है. चाल, चरित्र और चेहरे के साथ पार्टी विद अ डिफरैंट की बात करने वाली भाजपा के चेहरे पर लगा उबटन उतर चुका है.

क्रौसवोटिंग करने वालों में सब से ज्यादा ऊंची जातियों के विधायक शामिल हैं. ऐसे में दूसरे दल अब आसानी से इन जातियों के विधायकों पर भरोसा नहीं कर सकते. ऐसे विधायकों की निष्ठा संदिग्ध होने के बाद अब भाजपा भी इन को हाशिए पर डाल देगी. विधान परिषद के 5 सदस्यों ने भाजपा के पक्ष में अपनी सीट छोड़ी थी, इन में से केवल एक अशोक वाजपेई को भाजपा ने राज्यसभा पहुंचाया. बचे यशवंत सिंह, सरोजनी अग्रवाल और वुक्कल नवाब जैसे लोग प्रतीक्षा सूची में ही हैं.

उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए केवल 400 वोट ही पड़ने थे. 10 सीटों पर 11 उम्मीदवार होने से वोटिंग के हालत बन गए. भाजपा के अनिल अग्रवाल और बसपा के भीमराव अंबेडकर जीत के लिए दूसरे दलों पर निर्भर थे. साफ था कि बिना क्रौसवोटिंग के जीत संभव नहीं है. भाजपा के पास अनिल अग्रवाल को विजयी बनाने के लिए जरूरी 37 वोटों में से केवल 28 वोट थे. बसपा के पास सपाकांग्रेस और लोकदल को मिला कर 34 वोट थे. बसपा के 2 विधायक मुख्तार अंसारी और हरिओम यादव जेल से वोट डालने नहीं आ सके. इस से बसपा के पास 32 वोट ही थे. हर दल का दांव क्रौसवोटिंग करने वालों पर था. भाजपा ने सपा नेता नरेश अग्रवाल को अपने साथ ले कर यह साफ कर दिया था कि यह चुनाव जीतना उस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है. भाजपा गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनावों में मिली हार का बदला तो लेना ही चाहती थी, साथ ही वह जनता को यह संदेश भी देना चाहती थी कि सपाबसपा गठबंधन से भाजपा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला.

भाजपा के पास सीधे तौर पर केवल 8 सदस्यों अरुण जेटली, अनिल जैन, विजय पाल सिंह तोमर, कांता कर्दम, जीवीएल नरसिंहा राव, सकलदीप राजभर, हरनाथ सिंह यादव और अशोक वाजपेई को चुनाव जिताने की क्षमता थी. भाजपा ने सपाबसपा और निर्दलीय विधायकों में सेंधमारी कर अपने 9वें सदस्य अनिल अग्रवाल को चुनाव जितवा लिया, विपक्ष में समाजवादी पार्टी के पास अपने एक सदस्य जया बच्चन को चुनाव जिताने के लिए पूरे वोट थे.

बहुजन समाज पार्टी के पास इतने वोट नहीं थे कि वह अपने प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर को चुनाव जिता सके. ऐसे में सपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल ने बसपा के प्रत्याशी को वोट देने का संकल्प लिया था. भाजपा के अनिल अग्रवाल और बसपा के भीमराव अंबेडकर के आमनेसामने होने से क्रौसवोटिंग तय हो गई.

राजनीतिक दलों के काफी प्रयासों के बाद भी क्रौसवोटिंग हुई. आरोपप्रत्यारोपों के बीच मतगणना घंटों रुकी रही. राज्यसभा चुनाव उत्तर प्रदेश के अलावा पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तेलगांना, झारखंड, छत्तीसगढ़ और केरल में भी थे. सब से अधिक परेशानी उत्तर प्रदेश में थी. यहीं क्रौसवोटिंग हुई. सोचने वाली बात यह रही है कि राज्यसभा चुनावों में भी जातिगत आधार पर क्रौसवोटिंग हुई. भाजपा के पक्ष में जहां ऊंची जातियों के विधायकों ने क्रौसवोटिंग की, वहीं कुछ पिछड़ी जाति के विधायकों ने बसपा, सपा और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार के पक्ष में क्रौसवोट किया. बसपा के विधायक अनिल सिंह ने खुलेआम भाजपा के पक्ष में वोट करने के बाद कहा कि उन्होंने अंतरात्मा की आवाज पर वोट दिया है.

अपनीअपनी जाति के साथ दलित, पिछड़े और अगड़े

सपा समर्थित निर्दलीय विधायक राजा भैया उर्फ रघुराज प्रताप सिंह ने यह कहा कि उन का वोट सपा की उम्मीदवार जया बच्चन के लिए है. फिर भी राजा भैया के वोट का सस्पैंस बना है. कारण यह कि राजा भैया और उन के साथ विधायक विनोद सरोज ने सपा के पोलिंग एजेंट को बिना दिखाए अपना वोट दिया. निर्दलीय विधायक होने के कारण वे वोट दिखाने के लिए बाध्य नहीं थे. जिस तरह से वोट देने से पहले वे सपा नेता अखिलेश यादव और वोट देने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले, उस से साफ हो गया कि राजा भैया का समर्थन भी भाजपा को था. इस बात की पुष्टि तब हुई जब अखिलेश यादव ने राजा भैया को दिया अपना धन्यवाद ट्विटर से हटा दिया. सपा के साथ रहने वाले विधायक विजय मिश्रा और अमनमणि त्रिपाठी ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया.

सपा के नितिन अग्रवाल ने अपने पिता नरेश अग्रवाल के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा जौइन कर ली और उस के पक्ष में खुल कर वोट दिया. राष्ट्रीय लोकदल से सहेंद्र सिंह रमला ने अपना वोट अवैध करा दिया. उस की निष्ठा पर पार्टी को संदेह है. पार्टी ने सहेंद्र सिंह को दल से बाहर निकाल दिया. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी भासपा भारतीय जनता पार्टी का समर्थन देने वाली पार्टी है. उस के विधायक कैलाश नाथ सोनकर ने बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में वोट दिया. बसपा प्रमुख मायावती ने इस का धन्यवाद भी दिया. सहेंद्र सिंह का कहना है कि उन की पार्टी ने कोई सीधा निर्देश ही नहीं दे रखा था. भाजपा के पास अपने सहयोगी दलों के साथ मिला कर 324 सदस्य हैं. भाजपा को 329 वोट मिले.

5 लोगों ने भाजपा के पक्ष में क्रौसवोट दिया. इन 5 वोटों में विजय मिश्रा, अमनमणि त्रिपाठी, नितिन अग्रवाल और अनिल सिंह ने खुल कर भाजपा को वोट दिया. 5वां वोट किस ने दिया, इस का कयास ही लगाया जा रहा है. सपाबसपा को 72 वोट मिलने थे पर उन को केवल 71 वोट ही मिले. इस से साफ है कि भाजपा को यहीं से क्रौसवोट मिला है. संदेह के घेरे में भाजपा के विधायक कैलाश नाथ सोनकर का नाम सब से पुख्ता है क्योंकि बसपा नेता मायावती ने उन को धन्यवाद दिया. क्रौसवोटिंग करने वाले नामों को देखें तो साफ हो जाता है कि अगड़ी जातियों के विधायकों ने सब से अधिक भाजपा के पक्ष में वोट किया. भाजपा के पक्ष में क्रौसवोट करने वाले विधायक केवल बसपा के ही नहीं थे, समाजवादी पार्टी के भी कई थे.

टूटता है भरोसा

राजनीति का जाति और धर्म के साथ चोलीदामन का साथ है. ऐसे में राजनीतिक दलों को भी समयसमय पर दलों के विभाजन और क्रौसवोटिंग जैसे दंश झेलने पड़ते हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में जाति का अधिक बोलबाला है. ऐसे में यहां नेता पार्टी के साथ विश्वासघात कर अपनी पसंद की जाति वाले दल को समर्थन देते हैं. भारत के दूसरे राज्यों में भी यही हाल है, पर वहां अभी संकट गहरा नहीं हुआ है. हिंदी बोली वाले प्रदेशों में यह संकट अधिक है. उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के समय हुई क्रौसवोटिंग इस का नमूना है.

यही वजह है कि सपा और बसपा अगड़ी जातियों के विधायकों पर भरोसा नहीं करती हैं. दलित चिंतक रामचंद्र कटियार कहते हैं, ‘‘बसपा का जबजब विभाजन हुआ, उस को तोड़ने वालों में अगड़ी जातियों के विधायकों का योगदान सब से अहम रहा. सपा में भी अगड़ी जाति के विधायक अपने को बेचैन अनुभव करते हैं. ऐसे में सपा के सत्ता से बाहर जाते ही ये विधायक पार्र्टी से अलग हो जाते हैं. बसपा में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर ब्राह्मण को पार्टी के साथ माना जाता है. असल में यह ब्राह्मण की चतुराई है, जिस का वह लाभ उठाता है. जमीनी स्तर पर ब्राह्मण और दलित कभी एकजुट नहीं हो सकते.’’

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वियना में इस तरह 5 दिन आप भी बनाएं यादगार

आस्ट्रिया की राजधानी और यहां की सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र वियना पर्यटन के लिहाज से हर उम्र के सैलानियों के लिए आदर्श डैस्टिनेशन है.

अपनी नैसर्गिक प्राकृतिक खूबसूरती, शाही महलों, ऐतिहासिक धरोहरों, भव्य संग्रहालयों, दिलकश गार्डंस, संगीत के दिलचस्प ठिकानों, झरनों व फैंसी रैस्तरां से लैस वियना दुनियाभर से घूमने आए लोगों से हर सीजन में गुलजार रहता है.

20 लाख से ज्यादा की आबादी वाले इस शहर में वैश्विक महत्त्व की कई संस्थाएं – संयुक्त राष्ट्र संघ, ओपेक आदि के कार्यालय मौजूद हैं. यहां की नाइट लाइफ रंगीन, रोमांचक और शानदार है.

आप वियना जा कर 5 दिनों की सैर करना चाहते हैं तो इन दिनों में यहां ऐक्सप्लोर करने के सभी बेहतरीन विकल्प हम आप को बताते हैं.

युवाओं के लिए वियना है खास

पहले दिन की सैर :  वियना की शानदार सुबह और टैस्टी नाश्ते के बाद निकलिए सिटी सैंटर के लिए. यहां आने के लिए युवा सेगवे (एक खास तरह का इलैक्ट्रिक स्कूटर) लेना पसंद करते हैं. सेगवे के साथ वियना के मुख्य आकर्षण एक ही रूट पर एंजौय किए जा सकते हैं.

यहां स्टेट ओपेरा, वर्गगार्टन, होफबर्ग, सिटीहौल, पार्लियामैंट, बर्ग थिएटर, यूनिवर्सिटी, कोहले मार्केट, सैंट स्टीफन चर्च जैसी जगहें घूम सकते हैं. 12 साल से अधिक उम्र का कोई भी सैलानी किराए पर सेगवे ले सकता है.

आप को अगर सेगवे पसंद न आए तो वियना का ‘फ्री टूअर्स’ विकल्प भी है. इस में सर्टिफाइड टूरगाइड एक फिक्स्ड पौइंट पर पर्यटकों को मिलते हैं और ये शहर की प्रमुख जगहों की मनोरम सैर कराते हैं. यात्रा के आखिर में आप उन्हें भुगतान कर सकते हैं. मजे की बात यह है कि आप को टूर पसंद आए या न आए, पेमैंट की कोई पाबंदी नहीं है.

म्यूजियम क्वार्टियर : दोपहर के खाने के बाद वियना के सब से बड़े सांस्कृतिक अड्डे म्यूजियम क्वार्टियर का रुख कीजिए. यहां के बौल्स एरिया में गैस्ट गार्डन है जो संगीतमय माहौल से रंगा रहता है. यहां आप रिलैक्स महसूस करेंगे.

ग्लैसिस बाइसिल : गरमी में म्यूजियम क्वार्टियर में सब से खूबसूरत रैस्तरां गार्डन है ग्लैसिस बाइसिल. यहां खानापीना व पार्टी और्गेनाइज करना यादगार अनुभव होता है. ऐतिहासिक वियना की सिटी वाल्म का यह हिस्सा हैटिटेज ऐक्सपीरिएंस देता है.

सिटी हौल स्क्वायर की संगीतमय शाम : जो म्यूजिकल एंबिएंस में फूड व कल्चर का फ्यूजन पसंद करते हैं, उन के लिए सिटी हौल स्क्वायर बैस्ट ठिकाना है शाम गुजारने का. स्वादिष्ठ खाना, संगीतमय माहौल, पौप से ओपेरा तक कई ऐसे आकर्षण यहां मिलते हैं जो फ्री प्रवेश के जरिए आप का दिन खूबसूरत अंदाज में खत्म करते हैं.

दूसरे दिन की सैर

कैमरे में करें कैद : यदि फ्री में पोलारौयड कैमरा वियना की खूबसूरती को कैद करने के लिए मिल जाए तो घुमक्कड़ी को भला और क्या चाहिए. सोनब्रुन पैलेस, सिटी सैंटर व प्रैटर की खूबसूरती को अपने कैमरे की कलात्मक एंगलगीरी से सुबहसुबह कैद करने का आनंद लीजिए.

प्रैटर अम्यूजमैंट पार्क, विशाल फेरिस व्हील्स का रोमांच : इस विशाल पार्क में मौडर्न ऐडवैंचर के 250 से भी ज्यादा आकर्षण केंद्र हैं. वहां 117 मीटर का विशाल फेरिस व्हील (झूला), इंडोर रोलरकौस्टर आप को रोमांच की नई दुनिया में ले जाएंगे. यदि आप अपनी गर्लफ्रैंड के साथ हैं तो एक प्राइवेट वेगन कर के रोमांटिक डेट का भी मजा ले सकते हैं.

इस के अलावा यदि आप को वियना को आसमान से देखना है तो स्पैशल फ्लाइट ‘फ्लाई बोर्ड’ का औप्शन भी है. यह एक तकनीकी रोमांच है जिस का 5डी सिनेमा से जीवंत अनुभव कर सकते हैं. इसी तरह के कई और रोमांचक राइड्स, झूले, फ्री फौल, स्काइड्राइविंग विंड टनल जैसे विकल्प भी मौजूद हैं.

रात के शिकारी : यदि आप 18 साल से ज्यादा उम्र के हैं और रात में घूमने का रोमांचक अनुभव लेना चाहते हैं तो आप के लिए प्रैटर डोम के दरवाजे खुले हैं. कई डांस फ्लोर्स, 12 अलगअलग थीम्स के बार्स, म्यूजिक की अनलिमिटेड डोज, साल्सर लैटिनो डांस का क्रेज, लेजर शोज आप की रात को हसीन व यादगार बनाने के लिए काफी हैं.

तीसरे दिन की सैर

स्कोनबु्रन पैलेस : किंग हैब्सबर्ग का एक समय समर रेसिडैंस रह चुका यह महल अपने रौयल टच, शाही कमरों व आकर्षक बगीचों से हर किसी का मन मोह लेता है. मारिया थेरेसा, किंग फ्रैंज जोसेफ, रानी एलिजाबेथ जैसे कई बड़े नाम इसे अपना ठिकाना बना चुके हैं. अपने ऐतिहासिक महत्त्व के चलते इसे विश्व धरोहर की सूची में स्थान मिला है.

महल के पार्क में घूमने के लिए कोई फीस नहीं देनी पड़ती. चूंकि यह जगह सैलानियों से भरी रहती है, इसलिए अन्य अटै्रक्शंस के लिए एडवांस बुकिंग करवा लें.

स्कोनब्रुन की भूलभुलैया और कैफे ग्लोरिएटे : एक दौर में शाही मनोरंजन का अड्डा रही यहां की भूलभुलैया में जहां छिपनेखोेजने का आनंद है तो वहीं ग्लोरिएटे कैफे में लजीज पैस्ट्रीज चखना न भूलें. इसे 1775 में राजा जोसेफ व रानी मारिया थेरेसिया के दौर में बनवाया गया था.

डैन्यूब कनाल में करें धमाल : गरमी में वियना की खुली हवा में सैरसपाटे से अच्छा कुछ भी नहीं. वियना के पुराने शहर से कुछ ही दूरी पर बने इस कनाल में चिल करने के लिए बार्स, रैस्तरां, म्यूजिक, स्वादिष्ठ खाना, कौकटेल, सैंडी बीचेज का फील आप को यहीं रहने के लिए मजबूर कर देगा. तेल अवीव बीच, समर स्टेड, पूल बोट, फ्लेक्स कैफे, क्लब यहां के मुख्य आकर्षण हैं.

चौथे दिन की सैर

नैशमार्किट की चहलपहल : वियना के इस मशहूर बाजार में करीब 120 मार्केट स्टैंड्स, रैस्तरां और खरीदारी के ढेरों विकल्प मिलते हैं. शनिवार को यहां के खुले बाजार का अलग ही आकर्षण है. कई लोगों के लिए यह मीटिंग पौइंट भी है़

वोलपैंसन में लंच डेट : मार्केट घूम कर यदि थक गए हैं तो पास में ही वोलपैंसन चले आइए. यह एक पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला रैस्तरां है, जो आज भी अपनी विंटेज वैल्यूज के चलते पर्यटकों को लुभाता है. इस जगह के आसपास और भी कई खानेपीने के दिलचस्प ठिकाने हैं.

कालेनबर्ग फौरेस्ट रोप पार्क : जंगल, पेड़पौधे व रोमांच का शौक रखने वालों के लिए यह सब से मुफीद जगह है.

यह वियना का सब से बड़ा पार्क है जो 1.8 किलोमीटर व 30 हजार स्क्वायर मीटर तक फैला है. सैलानियों के लिए  फन ऐंड ऐक्शन, नाइट विजन रोमिंग, रोप ब्रिज जैसे कई थ्रिलिंग औप्शंस मौजूद हैं. रात 11 बजे तक यहां रोमांचक ट्रिप की जा सकती है.

5वें दिन की सैर

ओल्ड डैन्यूब नदी के किनारे : बीच का मजा लेना है और वह भी शहर के बीचोंबीच, तो फिर ओल्ड डैन्यूब का रुख कीजिए. यहां का माहौल इस तरह से रिक्रिएट किया गया है कि यह पैराडाइज आइलैंड का भ्रम देता है. करीब 500 बोट्स, इलैक्ट्रिक पैडलर बोट्स, आउटडोर पूल्स, बीच, रैस्तरां से सजी यह जगह अप्रैल से अक्तूबर के बीच घूमी जा सकती है.

सिटीमैप वियना यंग ऐंड फ्लेवर : युवाओं को वियना घूमने हेतु जो खास जगहें रह जाती हैं उन्हें जानने के लिए सिटी मैप ले सकते हैं. इस में यहां की विशेष इमारतें, ट्रैंडी रैस्तरां, डांस, प्लस, बार्स आदि के नाम पूरी जानकारी के साथ मिल जाते हैं.

वियना सिटीकार्ड के फायदे : वियना सिटीकार्ड के कई फायदे हैं. मसलन, 210 से भी ज्यादा म्यूजियम, सिनेमाहौल, थिएटर, कौंसर्ट, शौप्स, कैफे व रैस्तरां में डिस्काउंट के साथ यहां के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में फ्री सवारी भी मिलती है.

बड़ेबुजुर्गों की पहली पसंद वियना

पहला दिन

वियना रिंग ट्राम : पहले दिन वियना में घूमने की शुरुआत आरामदेय ट्रिप से करें. वरिष्ठ नागरिकों के लिए रिंग ट्राम से बेहतर और क्या हो सकता है. वियना की वास्तुकला विरासत रिंग स्ट्रासे एक 67 मीटर चौड़ी सड़क है जो शहर के पहले जिले का घेरा बनाती है. रिंग स्ट्रासे, बूलवर्ड, पार्क और पुराना वियना शहर यूनेस्को की वर्ल्ड कल्चरल हैरिटेज सूची का हिस्सा है. बुजुर्गों के लिए वियना रिंग ट्राम में मल्टीलिंगुअल औडियोवीडियो टूर कराया जाता है. इस रूट में वियना स्टेट, ओपेरा, वर्ग थिएटर, सिटी हौल, कुस्थहिस्टोरीस्च म्यूजियम व नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के दीदार होते हैं.

इस रिंग जर्नी का एक राउंड करीब 25 मिनट का है. इस के टिकट ट्राम में ही मिल जाते हैं. अगर आप वियना सिटी कार्डधारक हैं तो डिस्काउंट भी मिलेगा.

होफबर्ग इंपीरियल पैलेस: सिटी सैंटर से टहलते हुए आप होफबर्ग इंपीरियल महल की सैर कर सकते हैं. इतिहास में रुचि रखने वालों को यह पसंद आएगा. 12वीं शताब्दी से अब तक यह अपने निर्माण व स्थापत्यकला के साथ अपग्रेड भी हुआ है. 1918 तक यह महल हैब्सवर्ग शासन का गवाह रहा है. यह कई अनोखे संग्रहालयों का संगम स्थल भी है. इस के साथ ही इंपीरियल अपार्टमैंट के करीब 24 कमरों की सैर आप को उसी शाही दौर का जीवंत नजारा पेश करती है.

पाम हाउस : वियना के खूबसूरत कौफी हाउसेस में शुमार पाम हाउस में अच्छा खाना व कौकटेल भी सर्व किया जाता है. स्टील और कांच से बने इस शानदार स्थल में मनोरंजन व रिलैक्स होने का हर विकल्प मौजूद है.

बर्ग गार्डन व वोक्सगार्टन पार्क्स : वियना के बीचोंबीच स्थित इन पार्कों में वरिष्ठ नागरिकों का जमावड़ा देखते ही बनता है. मोजार्ट्स के फैन्स इस की अहमियत जानते हैं जब वे म्यूजिकल जीनियस की स्टैच्यू का दीदार करते हैं. एक दौर में ये पार्क फैंज जोसेफ (प्रथम) के निजी पार्क थे. 1919 में ये सार्वजनिक भ्रमण के लिए खोल दिए गए. 400 से भी ज्यादा वैरायटीज के गुलाबों की खुशबू से महकता बर्ग गार्डन आप के दिल में बस जाता है.

स्टेट ओपेरा : गंभीर स्वभाव के दर्शकों को ओपेरा देखने का खास शौक रहता है. ऐसे में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ओेपेराज में शुमार स्टेट ओपेरा अपने फर्स्ट क्लास प्रोडक्शन क्वालिटी के चलते एक बार देखना जरूरी हो जाता है. यहां हर दिन करीब 50 ओपेरा, बैले शोज होते हैं. अप्रैल, मई, जून, सितंबर, दिसंबर में

इन की ओपेरा बिल्डिंग में 50 स्क्वायर मीटर की स्क्रीन पर लाइव स्क्रीनिंग भी गजब का अनुभव प्रदान करती है.

दूसरा दिन

बूलवर्ड : आस्ट्रिया के सब से महत्त्वपूर्ण आर्ट वर्क्स कलैक्शन को संजोए बूलवर्ड

में गुस्ताव क्ल्मिट, ईगन शील, औस्कर-कोकोस्का के कलैक्शन बड़ेबजुर्गों के विशेष आकर्षण का केंद्र हैं. एक दौर में प्रिंस यूजीन की मनपसंद सैरगाह रही यह जगह आज आस्ट्रियन कला की धरोहर संजोए हुए है खास आप के लिए.

अपर व लोअर 2 हिस्सों में बंटे इस पार्क में कई भारतीय शादियों की यादगार शामें आयोजित हुई हैं. भारतीय कपल्स हनीमून व वैडिंग के लिए यहां आना पसंद करते हैं.

वियनीज क्विजीन (खानपान) का खजाना : इस ऐतिहासिक शहर में बड़े बच्चों और बुजुर्गों, सब के लिए कुछ न कुछ खास वियनीज क्विजीन मौजूद हैं. यह एकमात्र ऐसी क्विजीन है जो किसी शहर के नाम पर बनी है. वियना के कौफी हाउस काफी पौपुलर हैं जहां एपल स्टूडल, सैचर केक, गुगेलहफ जैसी लजीज डिशेज परोसी जाती हैं. यहां भारतीय रैस्तरां भी हैं.

एक मिनीवैन आप को शहर के अलगअलग रैस्तरां, कौफी हाउस व बार्स का टूर भी कराती है. दोपहर की सैर आप पेट के हवाले कर दीजिए.

तीसरा दिन

हीयूरीन ऐक्सप्रैस का सुहाना सफर : वियना की बेहतरीन कौफीज, पैस्ट्रीज व कला केंद्रों का लुत्फ उठाते हुए तीसरे दिन की सैर में दीजिए कुछ ट्विस्ट और हीयूरीन ऐक्सप्रैस में सवार हो वियना की अनदेखी जगहों का विंडो सीट से नजारा लीजिए. बड़ेबजुर्गों के लिए यह जर्नी बेहद खास होती है.

इस ऐक्सप्रैस के सफर में आप को यहां के पुराने वाइन टाउंस, वाइन यार्ड्स, पुराने विंटर हाउस, वाइन बनाने के ठिकानों की रोचक झलक मिलती है.

नसडोर्फ स्टेशन से कालनेबर्ग तक की इस रेलयात्रा में हरियाली से लैस वादियां, घने जंगल, फार्महाउस, बीथोवेन म्यूजियम के नयनाभिरामी दृश्य देखने को मिलेंगे.

यह अकेली जगह है जहां 700 हैक्टेयर में हजारों घंटों व 230 विंटनर्स करीब 95 वाइन टेवरन्स में आपूर्ति करते हैं.

आप भले ही वाइन न पीते हों पर यहां का नशीला माहौल आप के दिल में बस जाएगा.

चौथा दिन

लिप्पीजैंस घोड़ों की शानदार परफौर्मेंस : यूरोप की सब से पुरानी घोड़ों की नस्ल लिप्पीजैंस, जो स्पैनिश, इटैलियन व अरेबिक नस्ल का नतीजा है, अपनी कदकाठी, रोबीले तेवर से सब को आकर्षित करती है. चौथे दिन आप स्पैनिश राइडिंग स्कूल के घोड़ों की शानदार परफौर्मेंस देखे बिना नहीं रह पाएंगे.

विशाल फेरिस व्हील्स की राइड्स : ऐसा नहीं है कि यह विशाल झूले/व्हील्स सिर्फ युवाओं के लिए ही रोमांचकारी हैं, बड़ेबुजुर्गों को भी यहां समय बिताने के कई ठिकाने मिल जाते हैं. ‘जेम्स बौंड’, ‘द थर्ड मैन,’ सरीखी कई बड़ी हौलीवुड फिल्मों में फीचर हो चुकी यह जगह आप को स्पैशल डिनर, कौकटेल रिसैप्शन व शादी समारोहों के लिए बुकिंग का विकल्प देती है.

5वां दिन

सिटी क्रूज और समंदर की सैर : घुमक्कड़ी का आखिरी दिन इतना शानदार होना चाहिए कि यह जर्नी एक हैप्पीएंडिंग वाली हो. सुबह की शुरुआत समंदर के नजारे से करने से बेहतर भला और क्या हो सकता है. अप्रैल से अक्तूबर तक यहां डैन्यूब कैथल व नदी पर 6 बड़ी बोट्स के जरिए साइटसीइंग का प्रबंध होता है.

इस पैकेज में आप को शानदार बोट में घुमाने के साथ ही लजीज वियनीज क्वीजीन का लुत्फ उठाने को मिलता है. इस के अलावा यहां सालभर सिटी क्रूज का विकल्प भी रहता है.

अगर स्लोवाकियन कैपिटल, ब्राटिस्लावा घूमने का मन करे तो हाईस्पीड बोट्स में 75 मिनट की एक शहर से दूसरे शहर की समुद्रीयात्रा का अनुभव ही अलग होगा.

मोटो एएम फ्लस में क्लासिक डिनर : दिनभर की समुद्री मस्ती से निकल कर शाम को शानदार बनाने के लिए मोटो एएम फ्लस से रोचक व जानदार जगह कोई और नहीं है. पुरातन शैली में बने इस रैस्तरां में जब आधुनिक लाइट्स का इफ्रैक्ट पड़ता है तो नजारा बेहद रंगीन व मोहक हो जाता है. पहली नजर में बिल्डिंग देख कर आप को लगेगा कि एक विशाल बोट में आ गए हैं.

पहले तल पर बने रैस्तरां की साजसज्जा, फर्नीचर 50 के दशक का विंटेज लुक देता है. यहां की रीजनल डिशेज का लुत्फ इस जगह से अच्छा कहीं और मिल ही नहीं सकता. यहां खाने के साथ टेकअवे का विकल्प भी है. साथ में, बार भी है. दूसरे तल पर मोटो कैफे है जिस का विशाल टैरेस शहर का अलग ही नजारा पेश करता है.

आप की शाम व रात यादगार बनाते इस ठिकाने पर आ कर आप की वियनीज जर्नी खूबसूरत अंजाम तक पहुंच जाती है.

वियना में है सब के लिए कुछ खास

मध्य यूरोप के आल्पस पर्वत के अंचल में बसे इस खूबसूरत शहर में हर उम्र, मूड, मिजाज, स्वाद या इच्छा के लोगों के लिए कुछ न कुछ दिलचस्प मिल ही जाता है. शानदार आवास, मोटेल, विलाज, हौलिडेज होम्स अच्छे बजट में मिलते हैं. चमकीले नृत्य क्लबों, रोशन पबों, फैंसी रैस्तरां व ऐडवैंचरस ऐक्टिवटीज युवाओं का दिल जीतती हैं, तो नायाब महल, संग्रहालय, कौफी हाउस, लाइब्रेरी, ललित कला संस्थान, शीश महल, सिटी क्रूज, सिटी हौल, ड्रामा व थिएटर आदि बड़ेबुजुर्गों को यहां बारबार बुलाते हैं.

कैसे पहुंचें : आस्ट्रियन एयरलाइंस की उड़ान, वियनादिल्ली रूट की सेवा देती है. एयर इंडिया की फ्लाइट भी है. मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद व बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों से तुर्किश एयरलाइंस, एमिरेट्स, एयरइंडिया, लुफ्तहांसा व ब्रिटिश एयरवेज के माध्यम से वनस्टाप फ्लाइट से भी वियना जा सकते हैं.

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चुनाव आयोग बना सरकारी, साख को लगा गहरा धक्का

पहले गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी के कहने पर तारीखें देने में ढीलढाल कर और उस से पहले दिल्ली के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने में जल्दबाजी दिखा कर चुनाव आयोग ने अपनी साख को गहरा धक्का लगा लिया है. सरकार की आंखों का तारा बने रहने की इच्छा हरेक

की होती है और अकसर लोग अपने महत्त्वपूर्ण पद की गरिमा का ध्यान न रखते हुए भी किसी पक्ष का साथ दे देते हैं.

चुनाव आयोग ने 2016 में दिल्ली के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने उन्हें संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया था. चुनाव आयोग के इस फैसले से भाजपा को लाभ होना था क्योंकि नरेंद्र मोदी की 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी जीत के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने 67-3 से विधानसभा चुनाव जीत कर भाजपा के रंग में भंग डाल दिया था.

अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग का फैसला पलट दिया है और चुनाव आयोग को मनमानी करने पर फटकार भी लगाई है. मामला हालांकि फिर चुनाव आयोग की गोद में चला गया है पर पूरी प्रक्रिया जब तक चलेगी तब तक 2019 के लोकसभा चुनाव आ जाएंगे और 20 विधायकों पर फैसला चाहे जो भी हो, वह बेकार हो जाएगा.

इस मामले में अफसोस इस बात का है कि जिस चुनाव आयोग ने बड़ी मुश्किल से संवैधानिक स्वतंत्रता पाई थी उस ने यह स्वतंत्र छवि अपने हाल के फैसलों से खो दी और लगने लगा है कि यह संस्था अब केंद्र की भाजपाई सरकार के इशारे पर नाच रही है.

सुप्रीम कोर्ट पर आज वैसे भी शक हो रहा है क्योंकि 4 जजों ने खुल्लमखुल्ला प्रैस कौन्फ्रैंस कर के पहली बार न्यायिक तंत्र के अन्यायपूर्ण रवैए को जनता के सामने खोल डाला है.

लोकतंत्र में भारी विजय एक बात है पर इस विजय का दुरुपयोग करते हुए देश की विश्वसनीय संस्थाओं को कमजोर कर रूस और चीन की तरह देश में लोकतंत्र की हत्या करना किसी तरह

से भी ठीक नहीं है. ये संस्थाएं केवल कुशल, लोकप्रिय प्रशासनिक प्रबंध के लिए जरूरी ही नहीं हैं, बल्कि इन्हीं के सहारे देश की प्रगति संभव है.

चुनाव आयोग और न्यायालय जैसी स्वतंत्र संस्थाओं पर सरकार अंकुश लगाएगी तो उन की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी. ऐसे में देशवासी इन संस्थाओं पर भी विश्वास नहीं कर सकेंगे. सो, वे पूरा काम न करेंगे, न पूरा टैक्स देंगे, न भविष्य की सोचेंगे.

जब भी किसी समाज या देश में कल के बारे में संदेह होता है, तो लोग 5, 10 या 15 साल में परिणाम देने वाले काम नहीं करते. सोवियत संघ लगातार पिछड़ता चला गया था क्योंकि भारी जनशोषण के चलते वहां के नागरिक अपनी पूरी क्षमता, पूरे विश्वास से काम न कर सके थे.

चीन का नागरिक फिलहाल मेहनत कर रहा है क्योंकि उसे यह विश्वास है कि सरकार चीन को गरीब, पिछड़े, भिखारी देश के अपमानित स्थान से निकाल रही है. चीनी 10-15 या 20 सालों की सोच रहे हैं क्योंकि उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी की निष्ठा पर भरोसा है. हम भारत में सत्तारूढ़ पार्टी की निष्ठा पर विश्वास नहीं कर सकते कि वह हर नागरिक को बराबर समझती है, बराबर के अवसर देने को तैयार है.

हमारा विश्वास देश की स्वतंत्र संस्थाओं में है और इसीलिए सत्तारूढ़ पार्टी कोशिश कर रही है कि ये संस्थाएं कमजोर हों. यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन, आर्केयोलौजिकल सर्वे औफ इंडिया हो, साहित्य अकादमी हो, चुनाव आयोग हो या अदालतें, आज सब पर प्रश्नचिह्न लग रहा है तो भारत जैसे विविध जातियों वाले देश में असुरक्षा का एहसास होगा ही.

उच्च न्यायालय के फैसले से चुनाव आयुक्त और राष्ट्रपति जैसे सम्मानित पदों की छवि को धक्का लगा है. आज ये दोनों मोहरे नजर आ रहे हैं, अंधे मोहरे.

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बेईमानी पर रोए आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के खिलाड़ी

मैच के दौरान बौल से छेड़छाड़ के आरोप में आखिरकार आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कप्तान स्टीव स्मिथ और उपकप्तान डेविड वार्नर को अपनेअपने पद से हटना पड़ा.

क्रिकेट के इतिहास में यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इस तरह की घटना खेल पर प्रश्नचिह्न लगाती है. बौल को जानबूझ कर खराब कर रहे हैं तो इस का मतलब आप बेईमानी कर रहे हैं.

हुआ यों था कि मेजबान दक्षिण अफ्रीका से तीसरे मैच के दौरान आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कैमरन बेनक्राफ्ट ने फील्डिंग करते हुए गेंद से छेड़छाड़ की ताकि उस से रिवर्स स्विंग करा सकें क्योंकि रिवर्स स्विंग से गेंदबाजों को फायदा मिल रहा था.

इस तरह की बेईमानी कोई नई बात नहीं है. खिलाडि़यों पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं और इस के बदले में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आईसीसी ने खिलाडि़यों पर जुर्माना लगाने के साथ साथ उन के खेलने पर भी प्रतिबंध लगाया है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडि़यों को इस तरह की हरकत कहीं से भी शोभा नहीं देती. खेल को खेल भावना से खेलना चाहिए. बेईमानी से जीत हासिल कर खेल की गरिमा पर चोट करना है.

खेलों को रोमांचक बनाने के लिए जज्बा जरूरी है और खेल में जज्बा दिखाई दे तो जीत निश्चित मानी जाती है. लोग उस जज्बे को सलाम करते हैं लेकिन नीयत में खोट हो तो फिर उस जज्बे को कोई सलाम नहीं करता.

आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी अब अपनी इस करनी पर अफसोस जता रहे हैं, माफी मांग रहे हैं, शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं. रो रहे हैं. बावजूद इस के, उन्होंने जो प्रतिष्ठा हासिल की थी वह प्रतिष्ठा पाने के लिए उन्हें वर्षों लग जाएंगे हालांकि फिर भी यह दाग मिटने वाला नहीं है क्योंकि जबजब बौल से छेड़खानी का मामला आएगा तबतब उन्हें याद किया जाएगा जबकि कोई भी खिलाड़ी नहीं चाहता कि इस तरह की शर्मिंदा करने वाली बात पर उसे याद किया जाए.

आस्ट्रेलियाई टीम वैसे भी हमेशा से मजबूत रही है. कई बार विश्व चैंपियन भी रही है. इस के खिलाडि़यों के अंदर इतना माद्दा है कि वे किसी भी टीम को मात देने में सक्षम है पर जब इस तरह की बात आती है तो फिर महान खिलाड़ी या महान टीम बनने पर सवालिया निशान लग जाता है.

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मुसीबत के दलदल में मोहम्मद शमी

विवाहेतर संबंध, घरेलू हिंसा, पत्नी को जान से मारने की कोशिश, रेप और मैच फिक्सिंग जैसे गंभीर आरोप झेल रहे भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी खबरिया चैनलों पर सफाई दे रहे हैं. ऐसा वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन की पत्नी हसीन जहां ने उन पर ये सब आरोप लगाए हैं.

आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. हर रोज कुछ न कुछ नया खुलासा हो रहा है. शमी को जहां क्रिकेट पर ध्यान देना चाहिए वहां वे घरेलू विवाद में उलझते जा रहे हैं.

मोहम्मद शमी और हसीन जहां की शादी वर्ष 2014 में हुई थी. इस दंपती की 3 साल की एक बेटी है. हसीन ने यह आरोप लगाया है कि शमी एक बौलीवुड अभिनेत्री से शादी करना चाहते हैं, इसलिए बीते 2 वर्षों से उन पर तलाक के लिए दबाव बना रहे हैं. शादी से पहले से भी शमी के एक महिला से संबंध थे, झूठ बोल कर उन से शादी की, किसी पार्टी में उन्हें नहीं ले जाते, उन्हें पत्नी का अधिकार नहीं दिया आदि. इस तरह के ढेरों आरोप हसीन जहां ने अपने पति पर लगाए हैं.

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सिउड़ी में रहने वाले हसीन जहां के पहले पति सैफुद्दीन ने मीडिया के सामने बताया कि 2002 में उन की और हसीन जहां की शादी हुई थी. उन की 2 बेटियां हैं. वर्ष 2010 में दोनों ने तलाक ले लिया था.

इस घरेलू विवाद में मोहम्मद शमी का कैरियर अधर में लटकता दिख रहा है. हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में खेले गए टैस्ट मैच में उन का प्रदर्शन शानदार था. इस तेज गेंदबाज ने अब तक 30 टैस्ट मैचों में 28.90 की औसत से 110 विकेट लिए हैं.

पतिपत्नी का झगड़ा दोनों के लिए नुकसानदायक होता है, चाहे वह सैलिब्रिटी हो या खिलाड़ी हो, व्यापारी हो या फिर आम इंसान हो. इसलिए बेहतर है कि घर की चारदीवारी में पतिपत्नी अपने झगड़े को सुलझा लें तो अच्छा है, क्योंकि घर से बाहर निकली बात तूल पकड़ती ही है और बात से बात बढ़ती हुई विकराल रूप ले लेती है.

पतिपत्नी का झगड़ा दोनों के जीवन को प्रभावित करता है. समाज में एक तरफ छवि खराब होती है दूसरी तरफ पदप्रतिष्ठा. व्यक्ति का कैरियर भी बरबाद हो जाता है. ऐसे में कानून की गिरफ्त में पहुंचे पतिपत्नी के झगड़े का यदि अंत भी हो जाता है तो शेष बचता ही क्या है? बदनामी, अवसाद, समाज का तिरस्कृत व्यवहार जो दोनों की जिंदगी को बेजार कर देता है.

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सीबीएसई पेपर लीक, परीक्षा ही हुई फेल

अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 25 फरवरी को 41वें संस्करण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर के उन छात्रों से रूबरू थे जिन्हें इस साल 10वीं और 12वीं कक्षाओं की बोर्ड की परीक्षाएं देनी थीं. इस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने बोर्ड परीक्षा से संबंधित कई सुझाव देते हुए छात्रों को यह कहते आश्वस्त भी किया था कि वे परीक्षा को ले कर किसी तरह की चिंता न करें, रातरातभर जाग कर उन्होंने जो पढ़ाई की है वह बेकार नहीं जाएगी.  नरेंद्र मोदी ने अपने युवा मित्रों को संबोधित करते यह भी कहा था कि वे परीक्षा का ज्यादा तनाव न पालें और इसे बोझ की तरह न लें.

कुछकुछ आदतन दार्शनिक अंदाज में उन्होंने कार्यक्रम के उत्तरार्ध में हलके लहजे में यह भी कहा था कि महात्मा बुद्ध कहा करते थे, ‘अत्यादीपो भव’ यानी आप अपने मार्गदर्शक बन जाइए. बहैसियत प्रधानमंत्री उन्हें संतोष होगा कि युवा दोस्तों के जीवन के महत्त्वपूर्ण पल पर वे उन के साथ थे और मन की बातें  उन के साथ गुनगुना रहे थे.

क्रंदन बनी गुनगुनाहट

उबाऊ प्रवचन की तरह के कार्यक्रम ‘मन की बात’ का यह एपिसोड थोड़ाबहुत पसंद किया गया था, क्योंकि यह बोर्ड के छात्रों की कड़ी परीक्षा से संबंधित था. लेकिन देश के शीर्ष पद पर बैठे नरेंद्र मोदी की बातें कितनी खोखली साबित हुईं, यह एक महीने बाद ही 25 मार्च को उजागर हो गया जब यह खबर आई कि केंद्र सरकार के अधीन सीबीएसई (सैंट्रल बोर्ड औफ सैकंडरी एजुकेशन) द्वारा आयोजित 10वीं की परीक्षा का गणित का और 12वीं की परीक्षा का अर्थशास्त्र का परचा दिल्ली में लीक हो गया है. अर्थशास्त्र का पेपर 26 मार्च को और गणित का 28 मार्च को हुआ था.

26 मार्च को अर्थशास्त्र का परचा सोशल मीडिया पर लीक हुआ था तो किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था. वजह सिर्फ इतनी नहीं थी कि आम लोग सीबीएसई को वैसे ही बहुत विश्वसनीय संस्था मानते हैं बल्कि यह भी थी कि आएदिन देशभर में अब ऐसा कुछ न कुछ होता रहता है जिस में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां और पेपर लीक हो रहे होते हैं. लिहाजा, 12वीं का एक परचा लीक हो गया तो कौन सा पहाड़ टूट गया.

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लेकिन पहाड़ टूटा ही था खासतौर से उन छात्रों और अभिभावकों के सिर पर जो सालभर इस कड़ी परीक्षा के लिए दिनरात एक करते हैं. बोर्ड के इम्तिहान जिंदगी के सब से कड़े इम्तिहान से भी ज्यादा अहम होते हैं. अभिभावक बच्चों की पढ़ाई पर लाखों रुपए खर्च करते हैं इस उम्मीद के साथ कि बच्चा अच्छे नंबरों से पास हो जाएगा और उस का कैरियर व जिंदगी दोनों संवर जाएंगे. पूरी जिंदगी इस परीक्षा में प्राप्त अंकों पर निर्भर रहती है.

12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर वाकई लीक हुआ था या यह बात आईगई हो जाती, लेकिन जब 28 मार्च को 10वीं के गणित के पेपर लीक होने की खबर जंगल की आग की तरह फैली तो किसी के असमंजस में रहने की कोई वजह नहीं रह गई थी. यह पेपर भी सोशल मीडिया के जरिए लीक और वायरल हुआ था.  व्हाट्सऐप पर लिए गए स्क्रीनशौट बता रहे थे कि नामुमकिन कुछ नहीं है. सीबीएसई अपनी विश्वसनीयता और गोपनीयता खोते अपनी साख पर बट्टा लगवा चुका है.

28 मार्च को ही जब परीक्षा पेपर लीक मामले को ले कर इन परीक्षाओं में शामिल हुए कोई 28 लाख छात्रों के भविष्य को ले कर आशंकाएं जताई जाने लगीं तो एक और खबर ने पेपर लीक होने की पूरी तरह पुष्टि कर दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को डांट लगाई है और इस मामले में सख्त कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं.

अब तक इस गंभीर मसले पर ऊंघ रहे प्रकाश जावड़ेकर को होश आया कि सीबीएसई उन के मंत्रालय के अधीन आता है, लिहाजा, उन्होंने पहली दफा सामने आ कर कहा कि पेपर लीक होने का उन्हें खेद है, पुलिस मामले की जांच कर रही है. प्रकाश जावडे़कर ने यह आश्वासन भी दिया कि आगे की परीक्षा लीकप्रूफ होगी यानी कोई पेपर लीक नहीं होगा. इस तरह का दावा 20 घंटों में उन्होंने कैसे कर दिया, यह उन से किसी ने नहीं पूछा. आजकल मीडिया मंत्रियों से जिरह नहीं करता.

दोबारा पर बिगड़ी बात

28 मार्च को ही दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पेपर लीक मामले की रिपोर्ट धारा 420, 468 और 471 के तहत दर्ज करते गजब की फुरती दिखाई और कुछ कर दिखाने के लिए जगहजगह ताबड़तोड़ छापे मारे. अब तक बात काफी हद तक बिगड़ने लगी थी क्योंकि छात्र व अभिभावक सीबीएसई के कार्यालय के बाहर इकट्ठा हो कर विरोधप्रदर्शन करने लगे थे.

यह विरोध परचों के लीक होने के चलते था जो प्रकाश जावडे़कर की इस घोषणा से और बढ़ा कि लीक हुए परचों की दोबारा परीक्षा कराई जाएगी. देखते ही देखते देशभर में विरोध प्रदर्शन होने लगे.

दिल्ली पुलिस ने कार्यवाही के नाम पर जो किया, वह हास्यास्पद था. चूंकि कुछ करना था, इसलिए छापे कोचिंग सैंटरों पर मारे गए. इस पर भी विरोध कर रहे लोग शांत नहीं हुए तो एक एसआईटी (स्पैशल इंवैस्टिगेशन टीम) का गठन कर दिया गया जिस का मुखिया आर पी उपाध्याय को बनाया गया.

अभिभावकों की इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया कि सीबीएसई के अध्यक्ष को पकड़ा जाए. मामले को तूल पकड़ते देख प्रकाश जावड़ेकर ने यह कहते उस पर लीपापोती करने की कोशिश की कि वे खुद एक अभिभावक होने के नाते छात्रों और अभिभावकों का दर्द समझते हैं. उधर, एसआईटी जांच करतेकरते एक प्राइवेट ट्यूटर तक पहुंच गई और यह जताने की बचकानी कोशिश करती रही कि पेपर सिर्फ दिल्ली में ही लीक हुए थे.

सीबीएसई की चेयरपर्सन अनीता करवाल भी पहली बार सामने आ कर बोलीं कि पुलिस ऐक्शन में आ गई है और यह शक जाहिर किया है कि इस में कुछ कोचिंग सैंटरों का हाथ हो सकता है. अपना दोष दूसरों पर मढ़ने की यह पौराणिक परंपरा है.

पुलिस और उस की जांचों पर भरोसा लोग क्यों नहीं करते हैं, यह बात इन बयानों से साफतौर पर उजागर हुई. मामूली सा दिमाग रखने वाला भी समझ रहा था कि जब पेपर सीबीएसई बनाता है तो कोचिंग सैंटर वाले उसे कैसे लीक कर सकते हैं.

जाहिर है लीक का सोर्स यानी जरिया सीबीएसई ही है जिस की चेयरपर्सन और मुलाजिमों की मिलीभगत के बिना पेपर लीक होना मुमकिन ही नहीं. ऐसे में कोचिंग वालों को जिम्मेदार ठहराना अपना दागदार दामन छिपाना है. सीधेसीधे यह बात किसी ने नहीं मानी कि सीबीएसई के अधिकारियों ने ही पेपर बेचे होंगे, जिन्हें कोचिंग वालों ने खरीदा.

प्रकाश जावड़ेकर के इस दावे की भी हवा निकल गई कि पेपर लीक मामले में पैसों के लेनदेन की बात सामने नहीं आई है, जबकि दिल्ली सहित पूरे देश में चर्चा यह थी कि 10वीं और 12वीं के पेपर 200 रुपए तक में बिके थे.

सौदेबाजी का खेल

ऐसे घोटालों में लेनदेन का फार्मूला बहुत साफ होता है कि पहले जो लाखों रुपए में परचा खरीदता है वह अपनी लागत वसूलने के लिए उसे कई लोगों को बेच देता है और फिर ये लोग भी अपना पैसा वसूलने उसे और सस्ते में बेच देते हैं. ऐसा होतेहोते एक समय ऐसा भी आता है कि परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भाजीतरकारी के भाव में बिकने लगते हैं.

सौदेबाजी के इस खेल में यह बात उजागर हुई कि शुरू में लोगों ने ये पेपर 35 हजार रुपए में खरीदे थे और फिर आखिर में उन का भाव 200 रुपए तक गिर गया था. सीबीएसई के जिस अधिकारी ने भी ये पेपर बेचे होंगे उस ने जाहिर है एक झटके में करोड़ों की चांदी काटी और फिर लोगों ने इसे धंधा बनाते खूब पैसा कमाया.

ऐसे में नरेंद्र मोदी के मन की बात फरेब साबित हुई कि छात्र परीक्षा को ले कर चिंता न करें. अब तक कई चिंताएं छात्र और अभिभावक करने को मजबूर हो गए थे और कई नईनई बातें उधड़ कर सामने आने लगी थीं. जिन में साफ जाहिर हो रहा था कि गड़बड़झाला बहुत बडे़ पैमाने पर हुआ है और इस में बोर्ड के परीक्षा अधिकारियों की मिलीभगत है.  जिन में से जांच के आखिर में एकाध को बलि चढ़ने के लिए तैयार कर लिया जाएगा. सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी की तरह परचे को लीक होना और जनता का दुख उठाना देश के विकास के लिए तय मान लिया. कष्ट होगा तो पुण्य मिलेगा न.

लापरवाही की हद

छात्रों के भविष्य की सौदेबाजी किस तरह की गई, यह भी जल्द सामने आ गया यानी छिपाए नहीं छिपा कि 12वीं के अर्थशास्त्र के लीक परचे की जानकारी तो एक दिन पहले ही सीबीएसई को मिल गई थी.

मजाक की बात यह रही कि खुद सीबीएसई ने पुलिस को जानकारी दी थी कि 26 मार्च की शाम 6 बजे किसी अज्ञात शख्स ने हाथ से लिखी 4 पेज की आंसर शीट सीबीएसई की प्रशासनिक इकाई को भेजी थी. इतना ही नहीं, सीबीएसई ने यह भी माना कि 23 मार्च को फैक्स के जरिए उसे खबर मिल गई थी कि पेपर लीक होने जा रहे हैं जिस में एक कोचिंग संचालक और 2 स्कूल संचालक शामिल हैं. यह अज्ञात शख्स, जिसे व्हिसलब्लोअर कहा जा रहा है, ने तो हर माध्यम से पेपर लीक होने की जानकारी प्रमाणों सहित सीबीएसई को भेजी थी.

इन शिकायतों या खबरों पर सीबीएसई ने कान देने की जरूरत क्यों नहीं समझी, इस बात का जवाब शायद ही कभी मिले पर इस की वजह साफ है कि प्रश्नपपत्रों का धंधा जम कर हो, इसलिए इन शिकायतों पर कार्यवाही नहीं की गई. जब एक दिन पहले ही दफ्तर तक आंसर शीट पहुंच गई और इस पर भी सभी खामोश रहे, तो यह माना जा रहा है कि सीबीएसई चाहता है कि जिन्होंने उस से पेपर खरीदे हैं वे अपनी लागत  वसूल लें और वाजिब मुनाफा भी कमा लें. अगर 26 मार्च को ही परचा रद्द करने का ऐलान कर दिया जाता तो खरीदने वाले सीबीएसई के उन अधिकारियों को तुरंत बेनकाब कर देते जिन्होंने उन्हें परचा बेचा था.

धंधा कितने खुले तौर पर हुआ था, इस की पुष्टि के लिए प्रमाण सामने आ गए थे. लुधियाना की बसंत सिटी में रहने वाली 12वीं कक्षा की एक छात्रा जाह्नवी बहल ने 17 मार्च को ही इस घोटाले से ताल्लुक रखते तमाम सुबूत न केवल सीबीएसई, बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजे थे. दरअसल,  जाह्नवी के पास उस सौदेबाजी का ब्योरा था जो व्हाट्सऐप पर हुई थी.

सीबीएसई और प्रधानमंत्री कार्यालय से जाह्नवी को ज्यादा उम्मीद नहीं थी, इसलिए उस ने सजगता दिखाते पुलिस आयुक्त आर एन ढोके से भी शिकायत की थी और जो शख्स पेपर बेच रहा था उस का मोबाइल नंबर भी मुहैया कराया था.  यह वही जाह्नवी है जिसे पिछले साल 15 अगस्त पर पुलिस ने गिरफ्तार किया था इसलिए कि वह श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराने जा रही थी. वह उस वक्त भी सुर्खियों में आई थी जब उस ने साल 2016 में चर्चित छात्र नेता कन्हैया कुमार को ललकारा था.

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ऐसा लगता नहीं कि पुलिस प्रशासन और सरकार पेपर लीक को ले कर गंभीर थे जबकि ये पेपर काफी पहले बिकने के लिए बाजार में आ चुके थे.

हर्जाना क्यों नहीं

जाह्नवी का कहना यह है कि अगर वक्त रहते पुलिस या कोई और यानी सीबीएसई या प्रधानमंत्री कार्यालय उस की शिकायत पर कार्यवाही करते तो पेपर लीक नहीं होते और सीबीएसई को लाखों का नुकसान नहीं होता.

जाह्नवी या किसी और का यह सोचना ही गलत है कि बोर्ड को किसी तरह का नुकसान हुआ है. असल नुकसान तो परीक्षा में शामिल हुए छात्रों और अभिभावकों का हुआ है. इस में आर्थिक और मानसिक दोनों शामिल हैं. चूंकि परीक्षा की गोपनीयता और विश्वसनीयता की जिम्मेदारी सीबीएसई की होती है, इसलिए इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी उसे ही उठानी चाहिए.

पर हुआ उलटा, बवाल बढ़ता देख सीबीएसई ने फैसला यह लिया कि अब ये परीक्षाएं दोबारा आयोजित की जाएंगी.  30 मार्च को यह घोषणा की गई कि अब 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर 25 अप्रैल को और जरूरत पड़ी तो 10वीं का गणित का पेपर भी दोबारा सिर्फ दिल्ली, एनसीआर और हरियाणा में होगा. हालांकि 3 अप्रैल को सीबीएसई ने साफ कर दिया कि 10वीं की गणित की परीक्षा दोबारा नहीं होगी.

हैरत की बात यह भी रही कि मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड से परचे लीक होने के सुबूत सामने आए पर सीबीएसई इस बात पर अड़ा रहा कि परचे दिल्ली में ही लीक हुए हैं. छात्रों और अभिभावकों की इस मांग या बात का ध्यान नहीं दिया गया कि एक या दो नहीं, बल्कि सभी विषयों के परचे लीक हुए हैं.

दोबारा परीक्षा करवाना कोई हल नहीं था जिस से छात्रों और अभिभावकों के नुकसान की भरपाई होना संभव हो.  होना तो यह चाहिए था कि सरकार हरेक छात्र को हर्जाना देती जो किसी भी हाल में 1 लाख रुपए प्रतिछात्र से कम नहीं होता.

इस संबंध में जब कुछ अभिभावकों से बात की गई तो उन्होंने इसे कारगर बताया. भोपाल की एक गृहिणी सबीना खान कहती हैं, ‘‘उन का पूरा घरसालभर बेटे सऊद की परीक्षा की तैयारी में जुटा रहा था, लग ऐसा रहा था कि इम्तिहान सऊद का नहीं, बल्कि हम सब का है. सऊद 12वीं के साथसाथ कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी कर रहा था, पर अब सबकुछ खटाई में पड़ गया है.’’

सबीना बताती हैं,’’ एक अनिश्चितता मंडरा रही है कि अब दोबारा परीक्षा होगी. हमें मलाल इस बात का नहीं कि गरमी की छुट्टियों में नैनीताल जा कर घूमनेफिरने का प्रोग्राम रद्द हो गया है, बल्कि डर इस बात का ज्यादा है कि अब फिर हाड़तोड़ मेहनत वाले टाइमटेबल पर अमल करना पड़ेगा.’’

सबीना ही नहीं, बल्कि लाखों अभिभावक संतानों को ले कर चिंता व तनाव में हैं कि दोबारा परीक्षा करवाने के फैसले से उन्हें क्या हासिल हुआ, सिवा इस के कि दुश्वारियां बढ़ गईं.

एक और अभिभावक प्रशांत शुक्ला का कहना है, ‘‘नुकसान तो हमारा हुआ है, जिस की भरपाई नकदी में होना हर्ज की बात नहीं. यह एक हादसा ही है जब सरकार रेल हादसे पर मुआवजा देती है, किसानों को आर्थिक सहायता देती है तो उसे इन छात्रों को भी देना चाहिए और यह पैसा सीबीएसई से ही वसूलना चाहिए.

दोषी कोई भी हो लेकिन पैसा सीबीएसई के अधिकारियों की पगार से काटा जाना चाहिए जिस से उन्हें सबक मिले कि भविष्य में अगर पेपर लीक हुए तो आखिरकार जिम्मेदारी उन की ही बनती है.’’

कोई भी जांच हो, छापे पड़ें, कोई भी पकड़ा जाए इस से परीक्षार्थियों को कुछ नहीं मिलना जिन का डर और नुकसान अब दोगुना हो गया है. भविष्य और कैरियर के लिए बनाई गई छात्रों की योजनाएं और तैयारियां चौपट हो गई हैं.  उन का दर्द न तो सीबीएसई समझ सकता और न ही सरकार महसूस कर सकती है.

खूब गरमाई राजनीति

उम्मीद के मुताबिक, पेपर लीक कांड पर राजनीति खूब गरमाई जिस में दिलचस्प बात यह है कि सत्तारूढ़ दल भाजपा के पास कहने को कुछ नहीं था.  कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौका भुनाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जम कर तंज कसे कि कितने लीक, डाटा लीक – आधार लीक, एसएससी परीक्षा लीक, चुनाव की तारीख लीक, सीबीएसई पेपर लीक, हर चीज में लीक है, चौकीदार वीक है.

दिल्ली के जंतरमंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्र व अभिभावक प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल को हटाए जाने की मांग कर रहे थे, तब मुंबई से मनसे के अध्यक्ष राज ठाकरे अभिभावकों को सलाह दे रहे थे कि वे अपने बच्चों को दोबारा परीक्षा में शामिल न होने दें क्योंकि पेपर लीक होना सरकार की असफलता है.

कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री से माफी मांगने की बात कही तो तमाम विपक्षी नेता सरकार, भाजपा, नरेंद्र मोदी, प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल को कठघरे में खड़ा करते नजर आए.

इस संवेदनशील मुद्दे को भुनाने के लिए विपक्ष कोई कसर आगे भी छोड़ेगा, ऐसा लग नहीं रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस बाबत नरेंद्र मोदी को वह बख्शेगा नहीं कि भ्रष्टाचारमुक्त भारत की यह कैसी पहल थी जिस में लाखों छात्रों के सपनों और भविष्य से खिलवाड़ किया गया. गौरतलब है कि कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा में हुई धांधलियों पर छात्रों ने लंबा धरना दिल्ली में दिया था पर तब इतना बवाल नहीं मचा था.

सीबीएसई पेपर लीक कांड के असली गुनाहगार कभी पकड़े जाएंगे, इस में सभी को शक है तो इस की एक बड़ी वजह मध्य प्रदेश का व्यापमं महाघोटाला है जिस की सीबीआई जांच और अदालती कार्यवाही अभी तक चल रही हैं. कर्मचारी चयन आयोग के लीक पेपर्स के दोषी भी अभी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आए हैं.

जांचों और पुलिस सहित सरकारी एजेंसियों की कार्यवाहियों से कुछ खास नहीं होता, यही इस पेपर लीक कांड में होना तय दिख रहा है. दोचार लोगों को निलंबित कर सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान लेती है और लोग भी भूल जाते हैं कि किस तरह उन का नुकसान हुआ था.

हताशा की वजह

विद्यार्थी और अभिभावक हताशा के शिकार हैं. वे सिर्फ विरोध कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं. पेपर लीक पर यही हुआ कि लोग न्यूज चैनल्स से ले कर चौराहों पर तक, बस, बहस ही करते रहे जिस का सार यह था कि खामी सिस्टम में है.

सिस्टम में खामी, सरकार की भूमिका और सीबीएसई की संदिग्धता जैसी बातों से परे कम ही लोगों ने घटना पर अपना ध्यान फोकस किया. हर किसी के पास नोटबंदी के वक्त की तरह एक सुझाव था, परीक्षाओं को ले कर एक नया आइडिया था. लेकिन यह हर कभी लीक होते पेपर्स की समस्या का हल नहीं है.  समस्या का इकलौता हल है तुरंत कार्यवाही. जांचें बेमानी साबित होती हैं और वे सरकार की मंशा के अनुरूप होती हैं, इसलिए जिम्मेदार लोगों को ही दोषी मान कर सजा देने की मंशा पर लोग अड़ें तो ही ऐसी करतूतों में कमी आएगी.

नकदी हर्जाना इस का बेहतर विकल्प है जिसे उन लोगों की जेब से निकाला जाए जो इस जिम्मेदारीभरे काम को अंजाम देने के लिए सरकार से पगार लेते हैं. दोबारा परीक्षा करवाना कोई राहत वाला काम नहीं है, बल्कि छात्रों व अभिभावकों की मुसीबतें बढ़ाने वाली बात है.

मुट्ठीभर हाथों में लाखों का भविष्य

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में शामिल लाखों छात्रों का भविष्य दरअसल, उन 9 से ले कर 17 लोगों के हाथों में रहता है जो प्रश्नपत्र बनाते हैं. आमतौर पर प्रश्नपत्र बनाने की प्रक्रिया स्कूल सत्र शुरू होने के तुरंत बाद अगस्त के महीने से चरणबद्ध तरीके से शुरू हो जाती है.

पहले चरण में देशभर से 9 से 17 शिक्षकों को छांटा जाता है जिन की काबिलीयत के बाबत सीबीएसई के अपने पैमाने हैं. इन शिक्षकों को एकदूसरे के बारे में कोई जानकारी नहीं रहती. और न ही ये एकदूसरे से मिल सकते.

सीबीएसई अपने स्तर पर इस बात की भी तसल्ली करता है कि पेपर सैट करने वाले ये शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन या कोचिंग न पढ़ाते हों.  देखा यह भी जाता है कि इन के नजदीकी रिश्तेदारों में से कोई इस परीक्षा में शामिल न हो रहा हो. आमतौर पर एक शिक्षक 2 महीने में प्रश्नपत्र बना कर सीलबंद लिफाफे में उसे सीबीएसई को भेज देता है.

इस बार यह रिवाज जरूर तोड़ा गया था कि हर दफा की तरह प्रश्नपत्रों के 3 सैट नहीं बनवाए गए थे. ऐसा क्यों नहीं किया गया, इसे ले कर सीबीएसई और सरकार दोनों कठघरे में हैं. 3 सैट बनवाने का एक बड़ा मकसद यह भी होता था कि कभी पेपर लीक होने की शिकायत मिले तो छात्रों को दूसरा सैट दिया जा सके. तीनों सैट में कोई खास या बड़ा फर्क नहीं होता था, बस प्रश्नों के क्रमांक ऊपरनीचे कर दिए जाते थे और एकाध सैट में कोई नया या दूसरा सवाल पूछ लिया जाता था. इस व्यवस्था का मकसद नकल रोकना भी था.

प्रश्नपत्र तैयार करने वाले को भी नहीं पता होता था कि उस का तैयार किया गया सैट वितरित होगा या नहीं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं था.  जिन 17 लोगों ने अपनेअपने विषय के प्रश्नपत्र बनाए थे उन्हें शायद पता था कि इस बार उन का ही सैट परीक्षा भवन में बंटेगा. अगर ऐसा है तो यह गहरे शक व बड़ी चिंता की बात है.

तैयार प्रश्नपत्र सीधे स्कूल या परीक्षा केंद्र को नहीं दिए जाते, बल्कि इन्हें बैंक में रखा जाता है. ऐसे बैंक को कस्टोडियन बैंक या कलैक्शन सैंटर भी कहा जाता है. यह कस्टोडियन बैंक कौन सा होगा, इस का चयन भी सीबीएसई ही करता है,  लेकिन उस की कोशिश यह रहती है कि कस्टोडियन बैंक परीक्षा केंद्र के नजदीक ही हो. जहां बैंक नहीं होते वहां पोस्टऔफिस को कलैक्शन सैंटर बनाया जाता है.

जिस तारीख को जिस विषय की परीक्षा होती है, उस दिन प्रश्नपत्र बैंक से स्कूल यानी परीक्षा केंद्र तक ले जाए जाते हैं. बैंक लौकर से प्रश्नपत्र निकालते वक्त एक बैंक प्रतिनिधि, एक स्कूल प्रतिनिधि और एक प्रतिनिधि सीबीएसई का मौजूद रहता है. ये तीनों मिल कर सुनिश्चित करते हैं कि प्रश्नपत्र वाले लिफाफे से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. यानी वह सीलबंद है.  ये तीनों परीक्षा केंद्र तक गाड़ी में आते हैं, जिस में एक सुरक्षा गार्ड भी रहता है.

परीक्षा शुरू होने के आधा घंटा पहले स्कूल प्रिंसिपल, सीबीएसई का एग्जामिनर और परीक्षा में ड्यूटी देने वाले शिक्षकों की मौजदूगी मेें प्रश्नपत्र वाले लिफाफे खोले जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कर सीबीएसई को भेजी जाती है. इस के बाद शिक्षक परीक्षार्थियों की संख्या के हिसाब से क्लासरूम में जा कर प्रश्नपत्र बांटते हैं.

देखा जाए तो फुलप्रूफ मानी जाने वाली इस प्रक्रिया में कुछ पेंच भी हैं जिन के चलते सेंधमारी असंभव काम नहीं. जब प्रश्नपत्र बैंक लौकर में रखे होते हैं तब इन से छेड़खानी की जा सकती है. दूसरी गड़बड़ रास्ते में संभव है बशर्ते इस में मौजूद चारों लोग मिल जाएं. परीक्षा केंद्र में गड़बड़ी या लीक की आशंकाएं न के बराबर होती हैं क्योंकि वहां कई शिक्षक मौजूद रहते हैं और उन के पास वक्त भी कम रहता है.

गड़बड़ी या लीक की आशंका बैंक में ज्यादा रहती है क्योंकि यहां प्रश्नपत्र कई दिनों तक रहते हैं. 26 और 28 मार्च के लीक हुए प्रश्नपत्रों की खबर अगर जाह्नवी को थी तो साफ दिख रहा है कि पेपर रास्ते में या किसी परीक्षा केंद्र में लीक नहीं हुए. कस्टोडियन बैंक में ऐसा होना संभव है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस दिशा में जांच शुरू नहीं हुई थी, यह कम हैरानी की बात नहीं.

प्रश्नपत्र लीक होने की एक आसान और सुविधाजनक जगह प्रिंटिंग प्रैस है जहां ये पेपर छपते हैं. यह जानकारी भी अति गोपनीय होती है जिसे इनेगिने अधिकारी ही जानते हैं. दिल्ली की क्राइम ब्रांच ने सीबीएसई के परीक्षा नियंत्रक से भी 30 मार्च को 4 घंटे पूछताछ की थी जिस में पता चला था कि पेपर छपवाने के लिए सीबीएसई नोटिफाइड प्रिंटिंग प्रैसों के लिए टैंडर जारी करता है.

जिन प्रिंटिंग प्रैसों को छपाई का ठेका मिलता है उन की प्रैसों की बाकायदा सीसीटीवी कैमरों से निगरानी होती है. इस बाबत एक कमेटी गठित होती है जो पहले प्रश्नपत्र के ब्लूप्रिंट का मुआयना करती है.  यानी सांठगांठ या मिलीभगत हो तो प्रिंटिंग प्रैस से भी पेपर लीक हो सकते हैं.

यह तकनीकी बात है पर व्यावहारिक बात अब यह समझ आ रही है कि चंद शिक्षक लाखों छात्रों का भविष्य तय करें, यह भी एक कमी है. बेहतर तो यह होगा कि हर स्कूल को अपना प्रश्नपत्र बनाने का अधिकार दिया जाए. इस से अगर पेपर लीक भी हुआ तो नुकसान सीमित होगा.

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मेरे पति जब भी मुझ से सहवास की चेष्टा करते हैं तो मैं बिदक जाती हूं. मैं क्या करूं कि मैं पति को दैहिक सुख दे पाऊं.

सवाल
मैं 25 वर्षीया विवाहिता हूं. मेरा दांपत्य जीवन सुखमय नहीं है. इस की वजह भी मैं स्वयं को ही मानती हूं. मेरे पति मुझे बेहद प्यार करते हैं. मैं भी उन्हें चाहती हूं. पर सारा दिन ठीक रहने के बाद रात को मैं पति को उदास और नाराज कर देती हूं. कारण जब भी वह मुझ से सहवास की चेष्टा करते हैं तो मैं बिदक जाती हूं.

सहवास तो दूर उन्हें चुंबन और आलिंगन तक नहीं करने देती. इस से उन का नाराज होना स्वाभाविक है. विडंबना यह है कि जब पति मेरे पास नहीं होते तब मेरा मन उन के लिए व्यग्र हो उठता है. उन से संबंध बनाने का भी मन करता है. मैं क्या करूं कि मैं पति को दैहिक सुख दे पाऊं?

जवाब
आप की समस्या का हल आप के पास ही है. आप को समझना चाहिए कि सैक्स दांपत्य की धुरी है इसलिए पति जब आप के साथ सहवास का प्रयास करे तो इच्छा न होने पर भी आप को उन के प्रति समर्पण रखना चाहिए. स्त्री की शारीरिक संरचना भी ऐसी है कि बिना प्रयास के भी वह पति की कामेच्छा पूरी कर सकती है.

आप को सिर्फ मानसिक रूप से थोड़ा सक्रिय होने की आवश्यकता है और आप से दैहिक सुख लेना आप के पति का अधिकार है. इसलिए आप को उन्हें इस से वंचित नहीं करना चाहिए. सहवास में आप की सक्रियता से आप अनुभव करेंगी कि आप का दांपत्य कैसे महक उठेगा.

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सैक्स प्लैजर है ?

‘‘और्गेज्म क्या होता है? क्या यह सैक्स से जुड़ा है? मैं ने तो कभी इस का अनुभव नहीं किया,’’ मेरी पढ़ीलिखी फ्रैंड ने जब मुझ से यह सवाल किया तो मैं हैरान रह गई.‘‘क्यों, क्या कभी तुम ने पूरी तरह से सैक्स को एंजौय नहीं किया?’’ मैं ने उस से पूछा तो वह शरमा कर बोली, ‘‘सैक्स मेरे एंजौयमैंट के लिए नहीं है, वह तो मेरे पति के लिए है. सब कुछ इतनी जल्दी हो जाता है कि मेरी संतुष्टि का तो प्रश्न ही नहीं उठता है, वैसे भी मेरी संतुष्टि को महत्त्व दिया जाना माने भी कहां रखता है.’’

यह एक कटु सत्य है कि आज भी भारतीय समाज में औरत की यौन संतुष्टि को गौण माना जाता है. सैक्स को बचपन से ही उस के लिए एक वर्जित विषय मानते हुए उस से इस बारे में बात नहीं की जाती है. उस से यही कहा जाता है कि केवल विवाह के बाद ही इस के बारे में जानना उस के लिए उचित होगा. ऐसा न होने पर भी अगर वह इसे प्लैजर के साथ जोड़ती है तो पति के मन में उस के चरित्र को ले कर अनेक सवाल पैदा होने लगते हैं. यहां तक कि सैक्स के लिए पहल करना भी पति को अजीब लगता है. इस की वजह वे सामाजिक स्थितियां भी हैं, जो लड़कियों की परवरिश के दौरान यह बताती हैं कि सैक्स उन के लिए नहीं वरन पुरुषों के एंजौय करने की चीज है.

यौन चर्चा है टैबू

भारत में युगलों के बीच यौन अनुभवों के बारे में चर्चा करना अभी भी एक टैबू माना जाता है, जिस की वजह से यह एक बड़ा चिंता का विषय बनता जा रहा है. दांपत्य जीवन में सैक्स संबंध जितने माने रखते हैं, उतनी ही ज्यादा उन की वर्जनाएं भी हैं. एक दुरावछिपाव व शर्म का एहसास आज भी उन से जुड़ा है. यही वजह है कि पतिपत्नी न तो आपस में इसे ले कर मुखर होते हैं और न ही इस से जुड़ी किसी समस्या के होने पर उस के बारे में सैक्स थेरैपिस्ट से डिस्कस ही करते हैं. पुरुष अपनी कमियों को छिपाते हैं. भारत में लगभग 72% स्त्रीपुरुष यौन असंतुष्टि के कारण अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं हैं.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब भी महिलाएं अपनी किसी समस्या को ले कर उन के पास आती हैं और वजह जानने के लिए उन के सैक्स संबंधों के बारे में पूछा जाता है तो 5 में से 1 महिला इस बारे में बात करने से इनकार कर देती है. यहां तक कि अगली बार बुलाने पर भी नहीं आती. कानूनविद मानते हैं कि 20% डाइवोर्स सैक्सुअल लाइफ में संतुष्टि न होने की वजह से होते हैं. पुरुष अपने साथी को यौनवर्धक गोलियां लेने के बावजूद संतुष्ट न कर पाने के कारण तनाव में रहते हैं. पुरुष अपने सैक्सुअल डिस्फंक्शन को ले कर चुप्पी साध लेते हैं और औरतें अपनी शारीरिक इच्छा को प्रकट न कर पाने के कारण कुढ़ती रहती हैं. वैवाहिक रिश्तों में इस की वजह से ऐसी दरार चुपकेचुपके आने लगती है, जो एकदम तो नजर नहीं आती, लेकिन बरसों बाद उस का असर अवश्य दिखाई देने लगता है.

सैक्स से जुड़ा है स्वास्थ्य

एशिया पैसेफिक सैक्सुअल हैल्थ ऐंड ओवरआल वैलनैस द्वारा एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 12 देशों में की गई एक रिसर्च के अनुसार एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 57% पुरुष व 64% महिलाएं अपने यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं. इस में आस्ट्रेलिया, चीन, हांगकांग, भारत, इंडोनेशिया, जापान, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, ताइवान आदि देशों को शामिल किया गया था. यह रिसर्च 25 से ले कर 74 वर्ष के यौन सक्रिय स्त्रीपुरुषों पर की गई थी. सब से प्रमुख बात, जो इस रिसर्च में सामने आई, वह यह थी कि पुरुषों में इरैक्टाइल हार्डनैस में कमी होने के कारण पतिपत्नी दोनों ही सैक्स संबंधों को ले कर खुश नहीं रहते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इरैक्टाइल हार्डनैस का संबंध सैक्स के साथसाथ प्यार, रोमांस, पारिवारिक जीवन व जीवनसाथी की भूमिका निभाने के साथ जुड़ा है. जीवन के प्रति देखने का उन का नजरिया भी काफी हद तक सैक्स संतुष्टि के साथ जुड़ा हुआ है.

सिडनी सैंटर फौर सैक्सुअल ऐंड रिलेशनशिप थेरैपी, सिडनी, आस्ट्रेलिया की यौन स्वास्थ्य चिकित्सक डा. रोजी किंग के अनुसार, ‘‘एशिया पैसेफिक के इस सर्वेक्षण से ये तथ्य सामने आए हैं कि यौन जीवन संतुष्टिदायक होने पर ही व्यक्ति पूर्णरूप से स्वस्थ रह सकता है. आज की व्यस्त जीवनशैली में जबकि यौन संबंध कैरियर की तुलना में प्राथमिकता पर नहीं रहे, पुरुष व महिलाओं दोनों में ही यौन असंतुष्टि उच्च स्तर पर है. इस की मूल वजह अपनी सैक्स संबंधित समस्याओं के बारे में न तो आपस में और न ही डाक्टरों से बात करना है. चूंकि सैक्स संबंधों का प्रभाव जीवन के अन्य पहलुओं पर भी पड़ता है, इसलिए सैक्स के मुद्दे पर बोलने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.’’ जीवन के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष को नजरअंदाज कर के युगल जहां एक तरफ तनाव का शिकार होते हैं, वहीं संतुष्टिदायक सैक्स संबंध न होने के कारण उन के जीवन के अन्य पहलू भी प्रभावित होते हैं. स्वास्थ्य के साथसाथ उन की सोच व जीवनशैली पर भी इस का गहरा असर पड़ता है. यौन संतुष्टि संपूर्ण सेहत के साथसाथ प्रेम व रोमांस से भी जुड़ी है.

कम होती एवरेज

कामसूत्र की भूमि भारत में, जहां की मूर्तियों तक पर सदियों पहले यौन क्रीडा से जुड़ी विभिन्न भंगिमाओें को उकेरा गया था, अभी भी अपने यौन अनुभव के बारे में बात करना एक संकोच का विषय है. भारतीय पुरुष के जीवन में सैक्स जीवन की प्राथमिकताओं में 17वें नंबर पर आता है और औरतों के 14वें नंबर पर. आज अगर हम शहरी युगलों पर नजर डालें तो पाएंगे कि वे दिन में 14 घंटे काम करते हैं, 2 घंटे आनेजाने में गुजार देते हैं और सप्ताहांत यह सोचते हुए बीत जाता है कि सफलता की सीढि़यां कैसे चढ़ें. इन सब के बीच सैक्स संबंध बनाना एक आवश्यकता न रह कर कभीकभी याद आ जाने वाली क्रिया मात्र बन कर रह जाता है. लीलावती अस्पताल, मुंबई के ऐंड्रोलोजिस्ट डा. रूपिन शाह का इस संदर्भ में कहना है, ‘‘प्रत्येक 2 में से 1 भारतीय शहरी पुरुष में पर्याप्त इरैक्टाइल हार्डनैस नहीं होती, फिर भी 40 से कम उम्र के पुरुष अपनी कमजोरी मानने को तैयार नहीं हैं. 40 से कम उम्र की औरतों की सैक्स की मांग अत्यधिक होने के कारण वे एक तरफ जहां अपनी सैक्स संतुष्टि को ले कर सजग रहती हैं, वहीं वे पार्टनर के सुख न दे पाने के कारण परेशान रहती हैं. नीमहकीमों के पास जाने के बजाय डाक्टर व काउंसलर की मदद से यौन संबंधों में व्याप्त तनाव को दूर किया जा सकता है.’’

ड्यूरैक्स सैक्सुअल वैलबीइंग ग्लोबल सर्वे के अनुसार भारतीय पुरुष व महिलाएं अपने सैक्स जीवन से संतुष्ट नहीं हैं. और्गेज्म तक पहुंचना प्रमुख लक्ष्य होता है और केवल 46% भारतीय मानते हैं कि उन्हें वास्तव में और्गेज्म प्राप्त हुआ है, जबकि ऐसी महिलाएं भी हैं, जो यह भी नहीं जानतीं कि और्गेज्म होता क्या है, क्योंकि एक महिला को इस तक पहुंचने में पुरुष से 10 गुना ज्यादा समय लगता है. पुरुष 3 मिनट में संतुष्ट हो जाता है, ऐसे में वह औरत को और्गेज्म प्राप्त होने का इंतजार कैसे कर सकता है. वैसे भी आज भी भारतीय पुरुष के लिए केवल अपनी संतुष्टि माने रखती है.

संवाद व सम्मान आवश्यक

असंतुष्टि की वजह कहीं न कहीं पतिपत्नी के बीच मानसिक जुड़ाव का न होना भी है. आपस में निकटता को न महसूस करना, सम्मान न करना भी उन की संतुष्टि की राह में बाधक बनता है. सैक्स के बारे में खुल कर बात न करना या किस तरह से उस का भरपूर आनंद उठाया जा सकता है, इस पर युगल का चर्चा न करना या असहमत होना भी यौन क्रिया को मात्र मशीनी बना देता है. अपने साथी से अपनी इच्छाओं को शेयर कर सैक्स जीवन को सुखद बनाया जा सकता है, क्योंकि यह न तो कोई काम है और न ही कोई मशीनी व्यवस्था, बल्कि यह वैवाहिक जीवन को कायम रखने वाली ऐसी मजबूत नींव है, जो प्लैजर के साथसाथ एकदूसरे को प्यार करने की भावना से भी भर देती है. 

VIDEO : टेलर स्विफ्ट मेकअप लुक

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