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जानिए जीएसटी से असल में किस की जेब खाली हो रही है

रमा के पिता रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी हैं. तीसरी श्रेणी के कर्मचारी रमा के पिता ने रिटायरमैंट का पैसा बेटी की शादी के लिए बचा कर रखा था. शादी तय होने के बाद रमा के पिता ने सोचा कि अपने गांव से शादी समारोह संपन्न हो जाए तो खर्चा कम होगा. मगर लड़के वालों की तरफ से शर्त रख दी गई कि वे गांव में शादी करने नहीं जाएंगे. ऐसे में काफी तलाश के बाद हाइवे पर एक रिसौर्ट शादी के लिए बुक किया गया तो पता चला कि कम से कम 10 लाख का खर्च होगा. रमा के पिता के पास इतना पैसा नहीं था. लड़के वालों की बात को मानने के अलावा उन के पास कोई विकल्प भी नहीं था. ऐसे में वे पैसों के इंतजाम में लग गए.

शादी के खर्च में हाल के कुछ महीनों में 30 से 40% की बढ़ोत्तरी हो गई है, जिस का असर रमा के पिता जैसे कितने ही पेरैंट्स पर पड़ रहा है.

टैक्स पर टैक्स

इस में जीएसटी का बड़ा रोल है. पहले रिसौर्ट, क्लब और होटल में 12% टैक्स पड़ता था. जीएसटी के बाद यह टैक्स बढ़ कर 18 से 28% हो गया है. रिसौर्ट, क्लब और होटल में शादी करने वाले लोग पहले की तरह शादी का इंतजाम खुद नहीं करते हैं. वे सजावट से ले कर शादी तक का पूरा काम अलगअलग कंपनियों पर डाल देते हैं. अब ये कंपनियां अलग अलग इंतजाम पर अलग टैक्स लेने लगी हैं. शादी के इन इंतजामों में मैरिज हाल, गेस्ट हाउस और क्लब के हिसाब से अलग अलग टैक्स देना पड़ता है. इस के अलावा डैकोरेशन, कैटरिंग, मेकअप, डीजे आदि के लिए भी अलगअलग टैक्स हैं. पहले फ्रूट चाट, आइसक्रीम पार्लर और चाट वाले लोग अपने खाने पर टैक्स नहीं लेते थे. अब ये लोग भी जीएसटी लेने लगे हैं.

हर बिल में जीएसटी

कमाल की बात यह है कि ये लोग सरकार को भले ही जीएसटी न देते हों पर खुद जीएसटी के नाम पर टैक्स लेने लगे हैं. इस के साथ ही जीएसटी के बाद अपने प्रोडक्ट्स की कीमतें भी बढ़ा चुके हैं.

बेटी की शादी करने वाले दिनेश कुमार कहते हैं कि सरकार कहती थी कि जीएसटी लागू होने के बाद जनता को लाभ मिलेगा. शादी का इंतजाम करते समय मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिस ने यह कहा हो कि यह सामान पहले से सस्ता हो गया है. छोटेछोटे काम करने वाले भी जीएसटी के नाम पर टैक्स लेने लगे हैं, जिस से शादी के खर्च में बहुत बढ़ोत्तरी हो गई है.

पिछले साल अपनी बेटी की शादी करने वाले प्रेम कुमार का कहना है कि सरकार ने शादी के सीजन के समय ही नोटबंटी की थी, जिस से शादी के लिए बैंक से पैसे निकालने में लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था. जिलाधिकारी से ले कर बैंक मैनेजर तक के सामने जी हुजूरी करनी पड़ी थी.

इस साल शादी के सीजन से पहले ही जीएसटी लागू हो गया. शादी में अलगअलग तरह का बिजनैस करने वाले लोग खुद भले ही जीएसटी को ठीक से समझ न पाए हों पर वे शादी करने वालों से जीएसटी वसूलने में पीछे नहीं हैं. जीएसटी की आड़ ले कर वस्तुओं की कीमत बढ़ा दी गई है.

लड़की वालों की बढ़ी परेशानी

वैसे तो शादी हमेशा दो परिवारों का मिलन होता है, मगर हमारे समाज में शादी का बोझ हमेशा लड़की वालों पर ही पड़ता है. आज भी शादी में दहेज बंद नहीं हुआ है. इस के साथ शादी के इंतजाम में दिखावा बढ़ गया है. गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग शहरों में रहने लगे हैं. वे अब गांव में शादी नहीं करना चाहते. ऐसे में उन को होटल, रिसौर्ट का सहारा लेना पड़ता है. वहां खुद ही सारा इंतजाम करना पड़ता है और लड़की के पिता पर ही सारा बोझ डाल दिया जाता है.

निशा के पिता दिवाकर बताते हैं कि लड़की पसंद आने के बाद सब से पहले लड़के वाले यह पूछते हैं कि शादी कैसे होगी? खाने का क्या इंतजाम होगा? बरात कहां रुकेगी? दहेज के साथसाथ यह सब भी लड़की वाले को करना पड़ता है. महंगाई बढ़ने से ये खर्चे और बढ़ गए हैं.

पहले दहेज की मार और अब शादी आयोजन में टैक्स का बोझ लड़की के परिवार को खर्च से दबा रहा है. इस ओर किसी ने सोचने की जरूरत नहीं समझी. आज गांवगांव तक शादी से जुड़े कारोबार करने वाले फैल गए हैं, जिस वजह से लड़की की शादी में आज भी घर, जमीन गिरवी रखने या बेचने की नौबत आ रही है.

समाज में हर किसी को इस का पता है. सभी इस से परेशान हैं इस के बाद भी कोई इस के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहता. महंगी शादियों के बोझ तले दब रहे लड़की के मातापिता की परवाह किसी सरकार को नहीं.

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अंधविश्वास की भेंट चढ़ती मेहनत की गाढ़ी कमाई

कल अचानक पड़ोसिन मालती कुछ रुपए उधार मांगने आ गई. उस का उदास चेहरा बता रहा था कि दाल में कुछ काला है. मेरे पूछने पर डबडबाई आंखों से उस ने अपने पति की एक बाबा पर अंधभक्ति के विषय में बताया. आए दिन वह बाबा मालती के पति को आने वाले बुरे समय से डराता और पूजापाठ के नाम पर खूब रुपए ऐंठता. मालती और उस के घर वाले लाख मना करते, पर उस के पति के कानों पर जूं तक न रेंगती. नौबत यहां तक आ पहुंची कि मालती को बेटी के स्कूल में फीस जमा करवाने के लिए पैसे उधार लेने पड़े. अच्छेभले घर को इस दशा में पहुंचा कर मालती का पति न जाने कौन से आनंद भरे दिनों की कल्पना कर, उस बाबा पर सब निछावर कर रहा था.

मालती के पति अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं. अंधविश्वास का शिकार हो कर रुपए बरबाद करने वालों की संख्या लाखों में है.

अंधविश्वास का दलदल

प्रश्न है कि अंधविश्वास क्या है और मानव का अंधविश्वास से इतना गहरा रिश्ता कैसे जुड़ गया? यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो कुछ ऐसे विश्वास जिन्हें तर्क की कसौटी पर कसे बिना ही मान लिया जाए अंधविश्वास है. कुछ लोग अज्ञानतावश तो कुछ रूढि़वादिता के कारण अंधविश्वास का शिकार होते हैं. अंधविश्वास को धर्म से जोड़ कर धर्म के ठेकेदार व्यक्ति की इस कमजोरी का भरपूर लाभ उठाते हैं.

ग्रहनक्षत्रों का ढकोसला

विज्ञान के वर्तमान युग में जब वैज्ञानिक नएनए ग्रहों की खोज कर उन के अध्ययन में लगे हैं, कुछ लोग अब भी इन ग्रहों को अपने जीवन के सुखदुख का आधार मान रहे हैं. बच्चे के जन्म लेते ही जन्मपत्री बनवा कर उसे ग्रहनक्षत्रों से जोड़ दिया जाता है. वह जीवन में कितना पढ़ेगा, जन्म के समय की ग्रहचालों के अनुसार वह कौन सा व्यवसाय करेगा, उस का विवाह कब होगा आदि की भविष्यवाणी ग्रहनक्षत्रों के अनुसार कर दी जाती है.

ग्रह खराब या अशांत हों तो पूजापाठ, हवन, दान आदि का सहारा ले कर उन्हें शांत व अनुकूल करने की सलाह पंडितों व ज्योतिषियों द्वारा दी जाती है. आम व्यक्ति यह क्यों नहीं समझ पाता कि यह इन लोगों द्वारा फैलाया जाल है, जिस में फंसा कर वे अपने ऐशाआराम का जुगाड़ करने में लगे हैं. न जाने कब तक आम आदमी की खूनपसीने की कमाई इन लोगों की भेंट चढ़ती रहेगी? कब तक इस प्रकार के अंधविश्वास लोगों को भटकाते रहेंगे?

धार्मिक लुटेरों की जालसाजी

ईश्वर को प्रसन्न रखने, भूतप्रेत, चुड़ैल तथा देवीदेवताओं के कुपित होने का डर दिखा कर आम लोगों को मूर्ख बनाने का कार्य सदियों से होता आ रहा है. मनुष्य की भाग्य पर सब कुछ डाल देने की मनोवैज्ञानिक सोच ने इस प्रकार के धार्मिक लुटेरों को और बढ़ावा दिया है. जालसाजी का यह कार्य मनोवैज्ञानिक सोच से प्रेरित हो कर किया जाता है. पीडि़त व्यक्ति को यह विश्वास हो जाता है कि अमुक बाबा या गुरु अवश्य ही किसी दिव्यशक्ति के स्वामी हैं. अत: उन के निर्देशों का पालन करने से सचमुच ही कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी. मगर वास्तविकता के धरातल पर लोगों की जेब ही हलकी होती है, कष्ट नहीं.

दिल्ली निवासी रमेश कुमार ने बताया कि वे एक बार अपनी मां के साथ किसी बाबा के पास गए थे, क्योंकि उन का पत्नी से झगड़ा चल रहा था. बाबा से मिलने के लिए उन्हें बाहर काउंटर पर मोटी रकम जमा करवानी पड़ी. भीतर पहुंचे तो एक एअरकंडीशनर कमरे में पैंटशर्ट पहने बड़ी सी कुरसी पर बैठे बाबा सब की समस्याएं सुन कर ऊलजलूल हल बता रहे थे. किसी को वे समोसे खाने, किसी को मंदिर में शराब चढ़ाने तो किसी को नीले पैन का प्रयोग करने की सलाह दे रहे थे. रमेश को उन्होंने कहा कि खीर खाने से उस पर कृपा बरसने लगेगी और सभी समस्याएं शीघ्र दूर हो जाएंगी.

घर आ कर जब रमेश ने खीर खाई तो उस की तबीयत बिगड़ गई, क्योंकि वह डायबिटीज से पीडि़त था. फिर क्या था. अस्पताल में खूब खर्चा हुआ और बाबा को दिए हजारों रुपए भी यों ही बरबाद हुए. उस की पत्नी संबंधी समस्या जस की तस रही.

ठगी के रूप

धर्म के नाम पर ठगी करने वाले अपनी मोटी कमाई के लिए जाल में फंसे शिकार की जेब खाली कराने के नएनए तरीके खोज निकालते हैं. हस्तरेखा व जन्मकुंडली देख कर भविष्य बताना और फिर मुंहमांगी फीस वसूल करना तो आम बात है.

ग्रहों की दशा से बचने के लिए पहले महंगेमहंगे नगों से जड़ी सोनेचांदी की अंगूठी भी लोग पहने अकसर दिख जाते हैं. कभीकभी तो ये तथाकथित भविष्यवक्ता ही सस्ते से पत्थरों से बनी अंगूठियों को चमत्कारी बता कर खूब रुपए ऐंठ लेते हैं. तंत्रमंत्र का झूठा प्रयोग कर गंडेताबीज बना कर बेचने का काम भी न जाने कब से चल रहा है. किसी भी कार्य की पूर्ति के लिए पूजापाठ, हवन और अभिषेक आदि करवाने के नाम पर धन लुटाने का काम तो अच्छेअच्छे पढ़ेलिखे लोगों से ले कर सैलिब्रिटी तक करते हैं.

शादीविवाह न होना, नौकरी न मिल पाना और धंधे में घाटा होने पर लोग स्वयं में सुधार करने की आवश्यकता ही नहीं समझते. इस के लिए भाग्य को दोषी मान कर वे धर्म के नाम पर ठगी करने वालों के चंगुल में बड़ी आसानी से फंस जाते हैं और उन के द्वारा बताए उपाय करने के चक्कर में जेबें खाली कर बैठते हैं.

चीनी फेंगशुई है ढकोसला

जीवनस्तर सुधारने का झांसा दे कर आजकल कुछ अन्य भ्रामक जाल भी फैलाए जा रहे हैं. चीनी वास्तु यानी फेंगशुई भी इसी श्रेणी में आता है. इन दिनों इसे अपनाने का चलन बहुत बढ़ रहा है. धनदौलत, अच्छा स्वास्थ्य, सफलता व सुखशांति की लालसा में विभिन्न रंगों की मछलियां, मेढक, ड्रैगन, कछुए और हंसते हुए बुद्ध की मूर्तियों, सिक्कों व क्रिस्टल बौल्स पर लोग नाहक ही पैसा बरबाद कर रहे हैं.

चारों ओर ठग

धर्म के नाम पर ठगने वाले जगहजगह अपने दफ्तर खोले बैठे हैं. सड़क के किनारे, फुटपाथ पर, बसस्टैंड और यहां तक कि खरीदारी के आधुनिक स्थान मौल में भी इन पाखंडियों ने अपना व्यापार फैलाना शुरू कर दिया है. कुछ धार्मिक पुस्तकें लिए, माथे पर टीका लगा बड़ी आसानी से लोगों को आकर्षित कर लेते हैं. वहां आने वाले लोग थोड़ाबहुत पैसा खर्च कर अपने आने वाले दिनों के बारे में जानने को उत्सुक होते हैं. उन की यही उत्सुकता अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली सिद्ध होती है. कपटी भविष्यवक्ताओं के पौ बारह होते हैं.

विभिन्न प्रकार की बीमारियों को ठीक करने, विवाह या प्रेम संबंधी समस्या का निवारण करने, व्यापार व नौकरी संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए संपर्क करने हेतु जालसाजों के मोबाइल नंबर ट्रेन, बसों और मैट्रो स्टेशनों पर भी लगे दिखाई देते हैं. यदि कोई इन से संपर्क करता है तो कुछ देर बातचीत करने के बाद ही ये अपना असली चेहरा दिखाने लगते हैं. जब व्यक्ति इन के जाल में फंस जाता है तो ये मोटी रकम वसूलते हैं.

धार्मिक ठगी का बदलता स्वरूप

अंधविश्वास के नाम पर पैसों की ठगी का यह खेल अब टीवी चैनलों व वैबसाइट्स तक भी पहुंच चुका है. मीडिया ऐसे कुकृत्यों का विरोध करने की जगह इन्हें पोषित कर रहा है. भविष्य में आने वाले अच्छे दिनों का भ्रम दिखा कर विभिन्न देवीदेवताओं की मूर्तियां, धातु पर खुदे यंत्रमंत्र, अंगूठियां, ताबीज व महंगे पत्थरों के विक्रय का चलन खूब बढ़ गया है. रुद्राक्ष, स्फटिक पत्थर व तुलसी आदि की माला धारण कर विभिन्न बीमारियों से बचने का झांसा देना आम बात हो गई है. टीवी चैनलों व वैबसाइट्स पर ऐसे विज्ञापनों की बाढ़ सी आई हुई है. फेंगशुई का सामान भी शौपिंग साइट्स पर खूब बिक रहा है.

तथाकथित भविष्यवक्ता भी अब औनलाइन उपलब्ध होने लगे हैं. वैबसाइट्स पर ये मदद करने के बहाने लोगों की समस्या पूछते हैं और परिवार, रुपएपैसे आदि की जानकारी ले कर औनलाइन ही ठगी का धंधा करते हैं. व्यक्ति इन की लच्छेदार बातों में ऐसा फंसता है कि अपनी समस्या के समाधान की प्रतीक्षा में इन के निर्देशानुसार रुपएपैसे इन्हें भेंट चढ़ा देता है.

अंधविश्वास के विरुद्ध कानून

मनुष्य के मन में संस्कार बचपन से ही गहरी पैठ बनाए रहते हैं. कुछ संस्कार नैतिकता की राह दिखाते हैं तो कुछ केवल अंधविश्वास को बढ़ाने का काम करते हैं. इस के विरुद्ध अब यकीनन जनजागरण की आवश्यकता है. विभिन्न जागृति कार्यक्रमों व मीडिया का सहारा ले कर अंधविश्वास को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है. समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में धार्मिक आडंबरों का विरोध करने वाले समाचारों व लेखों को प्रधानता मिलनी चाहिए. टीवी के कार्यक्रमों विशेषतया रोज प्रसारित होने वाले सीरियलों में पाखंडता को बढ़ावा न दिया जाए. स्कूलों व कालेजों में इन पर लेख पाठ्यक्रम का भाग हों. अशिक्षितों में एनजीओ की मदद से जनचेतना जागृत की जाए.

अंधविश्वास सदैव शोषण को बढ़ावा देता है. अत: इस के विरुद्ध कानून बनाया जाना चाहिए. यदि ऐसा होगा तो समाज व उस की किसी भी संस्था को पाखंड का साथ देने व अंधविश्वास का प्रचारप्रसार करने पर कानून का भय होगा.

अपने जीवन में सदैव अंधश्रद्धा के विरुद्ध संघर्ष करने वाले डा. नरेंद्र दाभोलकर का मानना था कि मनुष्य को तर्कसंगत व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि असंगत विचारों पर आधारित व्यवहार के कारण वह कभी विजयी नहीं हो सकता.

वास्तव में ढोंग और पाखंड के अभिशाप में बचने का सब से कारगर उपाय है व्यक्ति की तर्क पर आधारित सोच. यदि व्यक्ति की सोच तार्किक हो जाएगी तो अंधविश्वास के लिए कोई स्थान नहीं होगा.

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छोटे अपराध, सीबीआई और फैसले का लंबा इंतजार

6 लाख रुपए के नकली बिल से एनीमल हसबैंड्री डिपार्टमैंट से पैसे निकलवाने पर यदि जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो ने करनी हो तो 6,000 करोड़ रुपए की हेराफेरी कौन करेगा, यह सवाल आप न ही पूछें. हमारे यहां छोटेछोटे मामले इस तरह सीबीआई को सौंपे जा रहे हैं कि नीरव मोदी जैसे मामलों के लिए उस के पास समय ही नहीं या फिर सीबीआई आम पुलिस फोर्स की तरह भारीभरकम और अकुशल मशीनरी बन रही है.

यह 6 लाख रुपए का मामला कम रोचक नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट तक 22 साल में पहुंचा. साल 1995 में मुजफ्फरपुर में एनीमल हसबैंड्री डिपार्टमैंट में 6 लाख रुपए के नकली बिलों के आधार पर पैसा निकाला गया. जांच के बाद तथ्य मिलने पर नरेश चौबे और दूसरे 2 लोगों को चार्जशीट दी गई और मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई की जांच पर निचली अदालत ने उन तीनों को 3 साल की सजा सुनाई. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया पर अपराधियों की सुनी नहीं गई.

जब मामला अपराधी सुप्रीम कोर्ट में ले गए तो उन में से नरेश चौबे 75 साल का हो चुका था. सुप्रीम कोर्ट ने सजा तो बरकरार रखी पर कैद में राहत दी कि 20 महीने ही जो उन्होंने कभी जेल में काटे थे काफी हैं.

जब एक छोटे अफसर का मामला पूरी तरह सुलझाने में 22 साल लग रहे हों तो नीरव मोदी जैसे 11,000 से 20,000 करोड़ रुपए के मामले को सुलझाने में कितने साल लगेंगे, इस का अंदाजा लगाया जा सकता है. मुजफ्फरपुर के मामले में तो अपराधी एक साधारण अफसर था और उस के साधन सीमित थे पर जब मामला नीरव मोदी का होगा तो शायद 8-10 सरकारें बदल जाएंगी पर फैसला नहीं आ पाएगा.

यह सोच लेना कि सीबीआई को मामला दे दिया गया है तो हल हो गया गलत है. न्याय व्यवस्था में देर इतनी है कि अंधेरा ही अंधेरा लगता है. लाखों कैदी जेलों में बिना अपराध साबित हुए बंद हैं क्योंकि वे जमानत के लिए वकील और पैसे का इंतजाम नहीं कर सकते और सैकड़ों को सजा तब मिलती है जब सजा देना बेमतलब का हो जाता है.

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टौयलेट एक घोर व्यथा : बेचारेलाल की बेचारगी की क्या थी वजह

फिल्म ‘टौयलेट: एक प्रेमकथा’ के हीरो अक्षय कुमार हैं, जबकि टौयलेट: एक घोर व्यथा के हीरो हैं बेचारेलाल.

भले ही बेचारेलाल को ले कर कोई फिल्म न बनी हो, पर आप थोड़ा सब्र कर के उन की परेशानी को उन की जगह खुद को रख कर जानने की कोशिश करें, तो एक अनदेखी फिल्म देख पाएंगे. बेचारेलाल की बेचारगी यह है कि जिस तरह हर पल सांस लेना जरूरी है, उसी तरह उन के लिए हर आधे घंटे में मूत्र विसर्जन करना जरूरी है.

बचपन से ले कर किशोर होने तक बेचारेलाल बिस्तर ही गीला करते रहे. डाक्टरों से सलाह करने पर उन्होंने बताया कि उन का मूत्राशय छोटा है, इस वजह से यह समस्या है. बड़े होने पर उन्हें लगा कि अब तो उन के साथसाथ मूत्राशय भी बड़ा हो गया होगा, सो फिर उन्होंने डाक्टर से पूछा.

इस बीच तकनीक काफी तरक्की कर चुकी थी और डाक्टरों ने जांच कर के बताया कि प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने के चलते उन के साथ यह समस्या है.

बाद में बिस्तर गीला करने की आदत तो छूटी, पर अभी भी हर आधे घंटे पर सूसू की तलब ठीक वैसे उठती है, जैसे नेताओं को कुरसी की तलब हर 5 साल में होती है.

छोटी जगहों पर यह आदत कोई समस्या नहीं, क्योंकि उन के लिए जगह ही जगह होती है. ‘धरती मेरी माता पिता आसमां…’ गाते हुए वे कहीं भी शुरू हो जाते थे, पर बड़ेबड़े शहरों में छोटीछोटी समस्याएं भी बड़ी हो जाती हैं और बड़ा शहर भी ऐसावैसा नहीं बंबई नगरिया, जो अब मुंबई के नाम से जाना जाता है. इस के बारे में गाने भी बने हैं, ‘ये जो बंबई शहर हादसों का शहर है’ और ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां…’ वगैरह.

बेचारेलाल की दिक्कत यह है कि मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेन, जो कभीकभार किलर के किरदार में भी आ जाती है, में टौयलेट नामक किसी सुविधा का वजूद नहीं है. अगर हो भी जाए, तो कोई फायदा नहीं, क्योंकि मुसाफिर बेचारे एकदूसरे से गोंद की तरह चिपके रहते हैं. अपनी जगह से खिसकने का सवाल ही नहीं और अगर इन ट्रेनों में शौचालय का इंतजाम कर भी दिया जाए, तो उस में भी 5-10 मुसाफिर तो हर वक्त ठुंसे हुए रहेंगे ही.

फिर किसी स्टेशन पर अगर सुविधा है भी, तो अकसर आप ‘अभी कतार में हैं’ महसूस होता रहता है. अगर कतार से बचना है, तो 2 रुपए का सिक्का पास में होना चाहिए.

बेचारेलाल को दिनभर में इतने फेरे लगाने पड़ते हैं कि कितने सिक्के रखें पास में और फिर 2 रुपए देना उन के दिल को ऐसे भी गंवारा नहीं है.

आखिर वहां वे कुछ देते ही हैं, लेते तो नहीं. जिस ने कुछ दिया पैसे तो उसे मिलने चाहिए. गोबर गैस प्लांट से मिलने वाले फायदे की तर्ज पर मूत्र गैस प्लांट बनाओ और ऊर्जा बनाओ. गोमूत्र से दवा बना सकते हो, मानव मूत्र से कम से कम बायोपैट्रोलियम तो बनाओ.

फिर कई बसअड्डों पर तो यह सुविधा है ही नहीं. अगर खुले में जाने की सोचें, तो कभी विद्या बालन और कभी अक्षय कुमार की इमेज सामने आ जाती है. अमिताभ बच्चन भी मजाक उड़ाते से दिख जाते हैं, चालान का डर अलग से.

सुनने में तो यहां तक आया है कि दिल्ली में इधर आप दीवार पर ‘सूसू चित्रकारी’ कर रहे होते हैं, उधर ऊपर से ‘बरसो रे मेघामेघा’ का संगीत सुनाते हुए रेडियो स्टेशन वाले ऊपर से नकली मेघ बरसा देते हैं. अब 2 सौ मिलीलिटर सूसू क्या किया, 2 लिटर पानी से नहला दिया गया. ऐसी हालत में कोई करे तो क्या करे.

वैसे, इन रेडियो स्टेशन वालों ने पानी के इंतजाम में जितना समय और मेहनत गंवाई, उतने में तो मूत्रालय बनवा देते. पर समस्या के समाधान करने में वह मजा कहां है, जो समस्या में घिरे लोगों का मजाक उड़ाने में है.

यदि इस समस्या के समाधान पर ध्यान दिया जाता, तो आजादी के इतने साल बाद भी मनोरंजन के इतने साधन कहां रह पाते भला?

एक बार यों हुआ कि जोगेश्वरी बसअड्डे पर बेचारेलाल बस का इंतजार कर रहे थे. सूसू जोर मार रहा था. सारे बसअड्डे पर जगह छान मारी, पर कहीं भी मूत्रालय न दिखा.

इसी बीच एक होटल वाले ने आवाज दी, तो मन ही मन उसे 2-4 क्विंटल गालियां दीं. उन्हें इस बात पर दुख हुआ कि लोग खानेपीने की चीजें बेचते हैं, तो उसे निकालने का इंतजाम क्यों नहीं करते. न खाऊंगा न खाने दूंगा तो ठीक है, पर खाने दूंगा पर जाने न दूंगा, कहां तक ठीक है?

एक दिन बेचारेलाल से सूसू का जोर सहा नहीं गया. अपनी समझ से जितनी दूर हो सकता थे, बढ़ गए मूत्र विसर्जन के लिए. बसअड्डा और रेलवे स्टेशन के बीच दीवार पर कलाकारी करने लगे. पर मन में डर था, दूर खड़ी बस में कुछ जोर से बातें करने की आवाज आती, तो उन का दिल धड़कधड़क जाता और सूसू की धार बीच में ही रुक जाती.

वे पलटपलट कर उस ओर देखते रहते, जिधर से आवाज आ रही थी. वे इतनी देर से जब्त किए बैठे थे कि काम खत्म होने में भी समय लगना था.

एकाएक बेचारेलाल की नजर एक वरदीधारी पर पड़ी. वह तेजी से उन की ओर ही आ रहा था. बेचारेलाल अपने काम को बीच में ही छोड़ एक ओर जा कर खड़े हो गए. चेहरे पर जितनी मासूमियत ला सकते थे, ले आए.

बेचारेलाल यों इधरउधर देखने लगे मानो वैसे ही खड़े हैं. उन्हें डर था कि वरदीधारी उन की खिंचाई करेगा और चालान काटेगा. अखबारों में खुले में शौच करने वालों के चालान काटे जाने की कई सचित्र खबरें पढ़ी थीं उन्होंने. कहीं उन का चित्र भी मुंबई के अखबार में अगले दिन न आ जाए.

वे यही सोच कर घबरा रहे थे, पर यह क्या… वरदीधारी उन की ओर न आ कर उसी दिशा में जा रहा था, जिधर वे खड़े हो कर हलके हो रहे थे. कहीं वह सुबूत इकट्ठा करने तो उधर नहीं गया है. मुंबई पुलिस के बारे में वैसे भी काफी नाम सुन चुके थे वे. तो क्या सुबूत के साथ वह उन्हें गिरफ्तार करेगा?

यह नजारा देख कर बेचारेलाल की तो सिट्टीपिट्टी गुम हो रही थी. पर वरदीधारी भी उन्हीं की तरह शायद बड़े दबाव में था. वह भी इन्हीं की तरह हलका हुआ और लौट पड़ा. बेचारेलाल की जान में जान आई. पर बसअड्डे पर कतार में जब वे खड़े हुए, तो उन के सामने 2 समस्याएं मुंहबाए खड़ी थीं. पहली, बस आने तक फिर से उन्हें सूसू की तलब न लग जाए. दूसरी यह कि क्या सरकार के द्वारा प्रोस्टेट बढ़े हुए या दूसरी इसी तरह की समस्या से पीडि़त लोगों को कुछ छूट दी जानी चाहिए?

पर छूट मिलने की बात पर तो सभी छूट खोजने लगेंगे. जो ऊंची जाति का होने का दंभ भरते हैं, वे भी रिजर्वेशन के लिए रेल की पटरी पर बैठ जाते हैं, जाली सर्टिफिकेट बना कर रिजर्व्ड कोटे में शामिल हो जाते हैं, अच्छेखासे अमीर लोग गरीबी रेखा के नीचे सरक लेते हैं थोड़ी सी छूट के लिए. अच्छा, इस मामले में छूट न सही, पर कम से कम खुले में शौच से छुटकारे के लिए बंद जगह का इंतजाम तो कर दिया जाए.

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बौलीवुड के सितारे हौलीवुड में

आजकल बौलीवुड के 2 नए सितारों, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण की चर्चा खूब सुनने को मिलती है. उन्होंने हौलीवुड में काम किया है, पर आप को यह जान कर शायद हैरानी होगी कि सब से पहले जिस भारतीय ने हौलीवुड फिल्मों में काम किया था उस का नाम साबू दस्तगीर है जिस ने 1937 में  ‘द एलिफैंट बौय’ में काम किया था. इस के बाद 60 के दशक में शशि कपूर और पर्सिस खंबाटा ने अनेक अंगरेजी हौलीवुड की फिल्मों में काम किया था. आइए, एक नजर डालते हैं बौलीवुड सितारों के सफर पर :

साबू दस्तगीर

साबू की कहानी बहुत दिलचस्प है. महावत का 12 साल का बेटा साबू, पिता की मृत्यु के बाद एक ब्रिटिश टीम को जंगल में हाथी के साथ मिला. वह टीम एक फिल्म की शूटिंग कर रही थी. उन्हें एक महावत की तलाश थी. वह रोल साबू को मिला.

साबू को वे इंगलैंड ले गए, उसे पढ़ाया और तब आगे जा कर इंगलैंड और अमेरिका में अनेक फिल्मों में उस ने अभिनय किया. मात्र 39 साल की उम्र में साबू का देहांत भी हो गया था. उन के जितनी अंगरेजी फिल्में शायद किसी और भारतीय ने न की हों.

रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक पर आधारित फिल्म ‘द एलिफैंट बौय’ से अपना सफर शुरू कर साबू ने कई फिल्मों में ऐक्टिंग की है, ‘ड्रम्स’, ‘थीफ औफ बगदाद’, ‘जंगल बुक’, ‘अरेबियन नाइट्स’, ‘वाइट सैवज’, ‘कोबरा वुमन’, ‘तैंजियर’, ‘ब्लैक नार्सिसस’, ‘द ऐंड औफ द रिवर’, ‘मैनईटर औफ कुमाऊं’, ‘सौंग औफ इंडिया’, ‘सैवेज ड्रम’, ‘हेल्लो एलिफैंट’, ‘जगुधार’, ‘जंगल हेल’ आदि.

अमिताभ बच्चन

सदी के महानायक बिग बी ने 2013 में आई फिल्म ‘द ग्रेट गैट्सबी’ में 11 औस्कर अवार्ड विनर फिल्म ‘टाइटैनिक’ के हीरो लियोनार्डो डी कैपरियो के साथ काम किया है.

शशि कपूर

शशि कपूर ने 12 अंगरेजी फिल्मों में काम किया है, ‘द हाउस होल्डर’, ‘शेक्सपीयरवाला’, ‘अ मैटर औफ इनोसैंस,’ ‘बौम्बे टौकी’, ‘हीट ऐंड डस्ट’, ‘द डिसीवर्स’, ‘साइड स्ट्रीट्स’, ‘द डर्टी ब्रिटिश बौयज’ आदि प्रमुख हैं. उन की ज्यादातर फिल्मों के निर्माता या सहनिर्माता इस्माइल मर्चेंट और निर्देशक जेम्स आइवरी रहे हैं. इस के अतिरिक्त एक अंगरेजी फिल्म में वे नैरेटर रहे हैं.

लीला नायडू

1963 की फिल्म ‘द हाउस होल्डर’ में वे शशि कपूर की नायिका रही थीं. हाल में प्रदर्शित अक्षय कुमार की ‘रुस्तम’ 1963 की उन की फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ की रीमेक है.

पर्सिस खंबाटा

1965 में मिस इंडिया और मिस यूनिवर्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पर्सिस ने हौलीवुड की काफी फिल्मों और टीवी सीरियल्स में काम किया है. उन की कुछ प्रमुख फिल्में हैं, ‘डेडली इंटैंट’, ‘फीनिक्स द वौरियर’, ‘फर्स्ट स्ट्राइक’, ‘माय ब्यूटीफुल लौंडे्रट’, ‘वौरियर औफ द लौस्ट वर्ल्ड’, ‘मेगाफोर्स’, ‘नाइटवौक्स’, ‘स्टार ट्रेक’, ‘कंडक्टर अनबिकमिंग’, ‘द विल्बी कौन्सपिरेसी’, ‘कामसूत्र’ आदि.

वे पहली भारतीय थीं जिन्हें 1980 में मशहूर अकादमी अवार्ड प्रेजैंट करने का अवसर मिला था.

कबीर बेदी

बौलीवुड कलाकार कबीर बेदी ने जेम्स बांड मूवी ‘ओक्टोपसी’ में काम किया है. इस के अतिरिक्त ‘संदोकान’ टीवी सीरीज से उन्होंने यूरोप में काफी नाम कमाया है.

अमरीश पुरी

बौलीवुड के विलेन किंग माने जाने वाले अमरीश पुरी ने 8 औस्कर जीतने वाली फिल्म ‘गांधी’ के अलावा मशहूर फिल्म ‘इंडिआना जोंस द टैंपल औफ डूम’ में भी अभिनय किया है.

ओम पुरी

ओम पुरी की अंगरेजी फिल्में ‘द ज्वैल इन द क्राउन’, ‘वोल्फ’, ‘घोस्ट ऐंड डार्कनैस’, ‘ईस्ट इज ईस्ट’, ‘वेस्ट इज वेस्ट’, ‘द हंडे्रड फुट जर्नी’, ‘माय सन द फैनेटिक,’ ‘कोड 46’ आदि हैं.

नसीरुद्दीन शाह

अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले नसीरुद्दीन शाह ने मशहूर फिल्म ‘द लीग औफ एक्स्ट्रा और्डिनरी जैंटलमैन’, ‘मानसून वेडिंग’, ‘द ग्रेट न्यूज वंडरफुल’ में अभिनय किया है.

गुलशन ग्रोवर

‘द बैड मैन औफ बौलीवुड’ गुलशन ग्रोवर की अंगरेजी फिल्में हैं, ‘द सैकंड जंगल बुक’, ‘प्रिजनर्स औफ द सन’, ‘कैप कर्मा’, ‘नेफिलिम’, ‘माय बौलीवुड ब्राइड’ आदि.

अनुपम खेर

‘बेंड इट लाइक बेकहम’, ‘लस्ट कौशन’, ‘सिल्वर लाइनिंग्स प्लेबुक’, ‘प्रेजुडिस’, ‘ब्रेकअवे’ आदि हौलीवुड फिल्मों में अनुपम खेर ने काम किया है.

इरफान खान

8 औस्कर अवार्ड विनर ‘स्लम डौग मिलिनेयर’ के अतिरिक्त इरफान की अंगरेजी फिल्में हैं, ‘द नेमसेक’, ‘अमेजिंग स्पाइडरमैन’, ‘ए माइटी हार्ट’, ‘लाइफ औफ पाइ’ आदि.

तब्बू

तब्बू ने ‘लाइफ औफ पाइ’ और ‘द नेमसेक’ में अच्छा अभिनय किया है.

फ्रीडा पिंटो

‘स्लम डौग मिलिनेयर’ से सुर्खियों में आने के बाद पिंटो ने ‘यू विल मीट ए टौल डार्क स्ट्रैंजर’, ‘द इम्मोर्टल्स’, ‘राइज औफ प्लेनेट औफ एप्स’ में अभिनय किया है.

देव पटेल

‘स्लम डौग मिलिनेयर’ से हौलीवुड में प्रवेश करने वालों में देव पटेल भी हैं. इस के अलावा ‘द लास्ट एयर बेंडर’, ‘द बेस्ट एक्जोटिक होटल’, ‘अबाउट चेरी’, ‘द रोड विदिन’, ‘चैप्पी’, ‘द मैन हु न्यू इन्फिनिटी’, ‘लायन’ में भी देव ने अभिनय किया है.

अनिल कपूर

‘स्लम डौग मिलिनेयर’ के अलावा अनिल कपूर ने ‘द मिशन इंपौसिबल-घोस्ट प्रोटोकौल’ में काम किया है.

ऐश्वर्या राय बच्चन

विश्व सुंदरी व बौलीवुड अभिनेत्री की प्रमुख अंगरेजी फिल्में हैं, ‘पिंक पैंथर 2’, ‘ब्राइड ऐंड प्रेजुडिस’, ‘द प्रोवोक्ड’, ‘मिस्ट्रैस औफ स्पाइसेज’, ‘द लास्ट लीजन.’

मल्लिका शेरावत

मल्लिका ने ‘हिस्स’, ‘द मिथ’, ‘पौलिटिक्स औफ लव’ आदि हौलीवुड की फिल्में की हैं.

प्रियंका चोपड़ा

टीवी सीरियल ‘क्वांटिको’ से अमेरिका में पैर जमाने के बाद उन की फिल्म ‘द बेवाच’ हाल में प्रदर्शित हुई है. अमेरिकन टीवी में सब से ज्यादा पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्रियों में वे शामिल हैं.

दीपिका पादुकोण

दीपिका ने हाल में प्रदर्शित फिल्म ‘××× रिटर्न औफ जैंडर केज’ में काम किया है.

भारतीय मूल के अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त निर्देशक : शेखर कपूर

विभाजन से कुछ पहले लाहौर में जन्मे शेखर कपूर ने बौलीवुड और हौलीवुड दोनों में अच्छा नाम कमाया है. बौलीवुड में उन्होंने अनेक फिल्मों में अभिनय के अलावा फिल्म ‘मासूम’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘बैंडिट क्वीन’ का निर्देशन भी किया है और फिल्म ‘दिल से’ के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर भी हैं. दूसरी ओर हौलीवुड में उन्होंने कुछ बहुचर्चित और प्रशंसित फिल्मों का निर्देशन किया है. उन की फिल्म ‘एलिजाबेथ’ तो पूरे विश्व में मशहूर हुई थी. इस के अतिरिक्त ‘न्यूयौर्क आई लव यू’, ‘द फोर फैदर्स, एलिजाबेथ द गोल्डन एज’ आदि फिल्मों का निर्देशन किया है.

गुरिंदर चड्ढा

केन्या में जन्मी और इंगलैंड में पलीबढ़ीं गुरिंदर चड्ढा ने अनेक सफल अंगरेजी फिल्मों का निर्देशन किया है. उन की प्रमुख फिल्में हैं, ‘ब्राइड ऐंड प्रेजुडिस’, ‘बेंड इट लाइक बेकहम’, ‘पेरिस’, ‘व्हाट इज कुकिंग’, ‘वाइसराय हाउस’, ‘एंगस’, ‘इट्स अ वंडरफुल आफ्टर लाइफ’ आदि.

कुछ ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जब बौलीवुड के सितारों ने हौलीवुड के औफर ठुकरा दिए हों. दिलीप कुमार, अक्षय कुमार, रितिक रोशन और एक बार खुद प्रियंका चोपड़ा ने (व्यस्तता के चलते) हौलीवुड के औफर ठुकरा दिए थे.

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लव इन सिक्सटीज : क्या करें और क्या नहीं

60 वर्षीय वर्माजी आजकल बड़े खुश नजर आने लगे हैं. इसी वर्ष सरकारी डाक्टर के पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने अपना एक क्लीनिक खोल लिया है जिस में एक महिला डाक्टर के साथ बैठते हैं. मेरे पति के अच्छे मित्र हैं.

एक दिन जब वे घर आए तो मेरे पति ने मजाकिया अंदाज में पूछा, ‘‘क्या बात है गुरु आजकल तो बड़े खिलेखिले नजर आते हो, कैसी कट रही है रिटायर्ड जिंदगी?’’

‘‘अरे बहुत बढि़या कट रही है. अपना क्लीनिक खोल लिया है जिस में मैं और लेडी डाक्टर मिसेज गुप्ता साथसाथ बैठते हैं. क्या सुलझी हुई महिला है यार. मैं ने आज तक अपने जीवन में ऐसी महिला नहीं  देखी, एकदम फिट और कुशल. अधिकांश मरीज तो उस की मीठी वाणी सुन कर ही ठीक हो जाते हैं.’’ वर्माजी अपनी डाक्टर मित्र की तारीफ के कसीदे पढ़े जा रहे थे और मैं व मेरे पति मंदमंद मुसकरा रहे थे, क्योंकि हमें पता था कि उन की पत्नी यानी मिसेज वर्मा को उन का क्लीनिक पर बैठना जरा भी पसंद नहीं था.

न तुम्हें फुरसत न हमें

इसी बात को ले कर दोनों में तनातनी होती रहती थी. बच्चे बाहर होने के कारण दोनों पतिपत्नी अकेले ही हैं. वर्माजी जहां स्वयं को क्लीनिक में व्यस्त कर के बाहर ही सुख और प्रेम तलाशते हैं वहीं उन की पत्नी की अपनी भजन मंडली हैं जिस में वे सदा व्यस्त रहती हैं.

दोनों की व्यस्तता का आलम यह है कि कई दिनों तक आपस में संवाद तक नहीं होता. एक बार जब उन की बेटियां विदेश से आईं तो मातापिता का परस्पर व्यवहार देख कर दंग रह गईं. दोनों ही अपनेअपने में मस्त. बेटियों को कुछ ठीक नहीं लगा सो मां से कहा, ‘‘मां यह ठीक नहीं, हम लोग इतनी दूर विदेश में रहते हैं. ऐसे में आप दोनों को एकदूसरे का खयाल रखना होगा. यदि आप कहें तो मैं पिता से बात करूं. आप दोनों ने तो अपनी अलगअलग दुनिया बसा रखी है, यहां तक कि आप लोगों की तो कई दिनों तक आपस में बात ही नहीं होती.’’

मिसेज वर्मा को भी काफी हद तक बेटियों की बात सही लगी. ‘‘नहीं, मैं ही देखती हूं क्या कर सकती हूं.’’ कह कर बेटियों को तो बहला दिया पर उन्हें स्वयं ही अहसास होने लगा कि शायद भक्ति में वे अपने पति को ही भूलने लगी हैं और इसलिए पति घर से बाहर प्यार तलाशने लगे हैं.

काफी सोचविचार के बाद वे एक दिन अपने पति से बोलीं, ‘‘आप का क्लीनिक खोलना ठीक ही रहा, कम से कम व्यस्त और फिट तो रहते हो. घर में रह कर तो आदमी अपनी उम्र से पहले ही बूढ़ा हो जाता है. आप की बगल वाली एक दुकान खाली है न, मैं भी एक बुटीक खोल लेती हूं. बोलो ठीक है न.’’

वर्माजी अपनी पत्नी को आश्चर्य से देखने लगे और फिर धीरे से बोले, ‘‘फिर भजन कौन करेगा.’’

‘‘दरअसल बेटियों ने मुझे समझाया कि मम्मी कब से बुटीक खोलना आप का सपना था, तो अब खोल लीजिए. बस मुझे क्लिक कर गया. आप भी पास में रहेंगे तो मुझे कोई टैंशन नहीं रहेगी और मैं सब संभाल भी पाउंगी.’’ मिसेज वर्मा ने सफाई देते हुए कहा.

कुछ ही दिनों बाद वर्माजी ने अपनी बगल की शौप में श्रीमतीजी का बुटीक खुलवा दिया. इस बहाने दोनों एकदूसरे को वक्त देने लगे तो शीघ्र ही खोई नजदीकियां वापस आने लगीं.

55 वर्षीय गुप्ताजी जबतब अपने स्कूटर पर औफिस की महिलाकर्मियों को बैठा कर घूमते नजर आते हैं. अकसर अपनी एक महिला मित्र के साथ कौफी शौप में भी नजर आते हैं. समाज में ऐसी बातें बड़ी तेजी से फैलती हैं सो मिसेज गुप्ता के कानों में भी पड़ी.

तभी एक दिन उन की पड़ोसन, जिस के पति गुप्ताजी के औफिस में ही काम करते थे, मिसेज गुप्ता से व्यंग्यपूर्वक बोली, ‘‘क्या बात है आजकल भाईसाहब औफिस की महिलाओं के बहुत काम करवाते हैं.’’

मिसेज गुप्ता अंदर से तो बहुत आहत हुईं पर फिर कुछ संयत हो कर बोलीं, ‘‘अब औफिस हैड हैं तो आफिस वालों का ध्यान तो रखना ही पड़ता है. आप चिंता न करें. उन की चिंता करने के लिए मैं हूं न.’’

पड़ोसन के जाने के बाद वे गहरी सोच में पड़ गईं कि आखिर उन के पति ऐसा क्यों कर रहे हैं? वे सोचने लगीं चीखनेचिल्लाने या कलह करने से तो बात बनने वाली नहीं है. प्यार ही वह रास्ता है जिस से गुप्ताजी को वापस लाया जा सकता है ताकि वे घर के हो कर रहें.

तलाश सच्चे साथी की

55 वर्षीया मिसेज सिन्हा लंबी कदकाठी और बला की खूबसूरती स्वयं में समेटे हैं. औफिस का प्रत्येक पुरुष उन से बात करने को लालायित रहता है. नए अधिकारी मिश्राजी की पत्नी की कुछ समय पूर्व मृत्यु हो चुकी थी. कुछ दिनों के बाद जब उन्होंने मिसेज सिन्हा को कौफी के लिए पूछा तो मिसेज सिन्हा का दिल भी बागबाग हो उठा. आखिर वे भी अपने शराबी पति की रोजरोज की चिकचिक से परेशान थीं सो दिल में सोया हुआ रोमांस मानो हिलोरें लेने लगा. मिश्राजी का औफर उन्होंने खुशीखुशी स्वीकार कर लिया.

बस यहीं से दोनों के प्यार की जो रेलगाड़ी निकली वह मिसेज सिन्हा के अपने पति से तलाक और फिर मिश्राजी से शादी पर जा कर ही रुकी. आखिर वे भी कब तक पति की रोज गालीगलौज और मारपीट को सहतीं. प्यार और सुकून से जीने का हक तो संसार में सभी को है.

34 साल की तनूजा एक स्कूल में शिक्षिका हैं. एक बच्ची को पढ़ाने उस के घर जाती हैं. कुछ दिनों तक बच्ची को पढ़ाने के बाद उन्होंने नोटिस किया कि वे जितनी देर तक बच्ची को पढ़ाती हैं, बच्ची के 60 वर्षीय दादाजी किसी न किसी बहाने से कमरे में आतेजाते हैं. एक दिन जब पोती अंदर किसी काम से गई तो उन्होंने तनूजा से कहा, ‘‘मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. प्लीज शाम को 4 बजे पास वाली कौफी शौप में आ जाना.’’

तनूजा पहले तो घबरा गई फिर कुछ संभल कर बोली, ‘‘क्यों अंकल?’’

‘‘घबराओ नहीं मैं बस मिलना चाहता हूं.’’

शाम को कौफी शौप में वे दोनों आमनेसामने थे. तनूजा को देखते ही बोले, ‘‘न जाने क्यों तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम बहुत काबिल हो और मेरी पोती को बेहद अच्छे ढंग से पढ़ाती हो. मेरी पत्नी तो मुझे दुत्कारती रहती है पर तुम्हें देखना और तुम से बात करना मुझे अच्छा लगता है.’’

अपनी तारीफ सुन कर तनूजा के गाल सुर्ख लाल हो उठे. उस के बाद से वे दोनों अकसर आपस में मिलने लगे. तनूजा को भी उन से मिल कर बड़ा ही सुकून मिलता और वह दोगुने उत्साह से अपना काम करने लगती परंतु कुछ ही समय में उसे एक पत्नी और एक मां होने का अहसास होने लगा.

जब अपने पति से उस ने दादाजी की समस्या शेयर की तो पहले तो पति चौंक गए पर फिर कुछ सोच कर बोले ‘‘हम दोनों मिल कर उन की समस्या का हल निकालेंगे.’’ इस के बाद तनूजा और उस के पति ने एक अनुभवी काउंसलर से दोनों की काउंसलिंग करवाई. आज दादाजी और दादीजी तो एकदूसरे का साथ पा कर खुश हैं ही, तनूजा और उन के परिवार के घनिष्ठ पारिवारिक संबंध भी हैं.

प्यार उम्र नहीं देखता

वास्तव में प्यार एक ऐसी भावना है जो न उम्र देखती है, न जाति और न धर्म. वह तो कहीं भी, कभी भी, और किसी से भी हो सकता है. जिस प्रकार किशोरावस्था या युवावस्था में व्यक्ति प्यार से वशीभूत हो कर सब भूल जाता है उसी प्रकार इस उम्र में भी प्यार का अहसास व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक सुकून  देता है.

किशोरावस्था का प्यार महज एक आकर्षण होता है जब कि युवावस्था के प्यार में गहराई और स्थायित्व होता है. इस के विपरीत 60 साल के प्यार में प्यार के सभी भाव पाए जाते हैं क्योंकि इस उम्र का व्यक्ति रिश्तों के कई बंधनों में बंध चुका होता है और प्यार के कई रूप देख चुका होता है.

इस उम्र में बच्चे अपनीअपनी राह पकड़ चुके होते हैं. पतिपत्नी में यदि सामंजस्य का अभाव है तो वे बाहर किसी व्यक्ति से मिले प्यार और अपनेपन के कारण मानसिक सुकून और ऊर्जा से ओतप्रोत हो उठते हैं. सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस प्रकार का व्यवहार अशोभनीय और मर्यादाविहीन है पर इस से परे इंसान को जहां सुकून या शांति का आभास होगा उस ओर स्वत: उस के कदम उठ ही जाएंगे.

आखिर खुश हो कर जीने का अधिकार तो सभी को है. वास्तव में घर की जिम्मेदारियों, बच्चों और काम की अधिकता के कारण कई बार पतिपत्नी का वो पहले सा प्यार कहीं गुम सा हो जाता है.

जब 60 की उम्र में पति या पत्नी किसी और की तरफ आकर्षित होने लगे तो क्या करें, आइए जानते हैं:

– यदि पतिपत्नी में से किसी को भी अपने साथी के प्यार की इस अद्भुत राह पर होने का अहसास होता है, तो एक बारगी मन बेकाबू होने लगता है पर इस का हल भी आप को स्वयं ही निकालना होगा ताकि घर की बात घर में ही रहे.

– प्रेमी पति या पत्नी को वापस अपने करीब लाने के लिए कभी परिवार, पड़ोस या बच्चों का सहारा न लें. क्योंकि इस प्रकार की समस्या को जितनी अच्छी तरह आप खुद हैंडल कर सकते हैं उतनी अच्छी तरह कोई और नहीं.

– अपनी दिनचर्या का आकलन करें कि क्या आप अपने जीवनसाथी को पर्याप्त समय और अपनापन दे पा रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि प्यार और अपनेपन के अभाव में उन्होंने बाहर की राह पकड़ ली हो.

– साथी की किसी से अंतरंगता का पता चलने पर अपने व्यवहार को शांत, मधुर और प्रेम से ओतप्रोत रखें ताकि आप समस्या का समाधान निकाल सकें.

– इस उम्र तक आतेआते आमतौर पर महिला और पुरुष दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं. शरीर पर चर्बी की मोटी परत, भद्दा व्यक्तित्व किसी को भी अपनी ओर आकर्षित नहीं करता. ऐसे में बाहरी आकर्षण व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेता है. आवश्यकता है खुद को फिट, स्वस्थ, जिंदादिल और आकर्षक बनाए रखने की ताकि परस्पर आकर्षण और प्यार की भावना बनी रहे.

यदि आप अपने साथी को अपने प्रयासों से वापस लाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं तो बजाय नातेरिश्तेदारों, पड़ोसी अथवा मित्रों से मदद लेने के आप प्रोफैशनल काउंसलर का सहारा लें जो आप की समस्या को भलीभांति समझ कर हल निकालेंगे.

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मुझे पीरियड्स के कुछ दिन पहले स्तनों में दर्द महसूस होने लगता है. मुझे डर है कि कहीं यह ब्रैस्ट कैंसर का लक्षण तो नहीं? मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल
मैं 44 साल की महिला हूं. मुझे हर महीने पीरियड्स होने के कुछ दिन पहले स्तनों में भारीपन और दर्द महसूस होने लगता है. मुझे डर है कि कहीं यह ब्रैस्ट कैंसर का लक्षण तो नहीं? मेरी मौसी को भी यह रोग हुआ था और वे इस कारण कम उम्र में ही चल बसी थीं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
ब्रैस्ट कैंसर से मौसी के चल बसने के कारण आप के भीतर उस रोग का डर बैठना अस्वाभाविक नहीं है. लेकिन जिस प्रकार के मासिकचक्र के साथ उठने वाले चक्रनुमा दर्द की आप बात कर रही हैं वह फाइब्रोयडिनोसिस या फाइब्रोसिस्टिक ब्रैस्ट डिजीज का क्लासीकल लक्षण है. यह दर्द मासिकधर्म से 3-4 दिन पहले शुरू होता है और स्राव के शुरू होने पर थम जाता है. स्तनों के हिलनेडुलने पर यह दर्द बढ़ जाता है. यह शरीर में मासिकचक्र के साथ होने वाले यौन हारमोनों में आए परिवर्तनों से उत्प्रेरित होता है. इस का ब्रैस्ट कैंसर से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई संबंध नहीं होता.

इस दर्द से आराम पाने के लिए आप कुछ छोटेछोटे उपाय कर सकती हैं. सब से आसान यह है कि उन दिनों चौबीसों घंटे दिनरात ब्रेजियर पहन कर रखें ताकि स्तनों को पूरा आवलंबन मिलता रहे.

फिर भी दर्द महसूस हो तो कोई साधारण दर्दनिवारक दवा जैसे पैरासिटामोल या इबुप्रोफेन लें. इस से भी बात न बने तो एक बार किसी सर्जन से मिल लें. जरूरी होने पर विटामिन ई और कुछ हारमोनल दवाएं दे कर भी आराम दिलाया जा सकता है.

चूंकि आप की मौसी को ब्रैस्ट कैंसर हुआ था, इसलिए आप का भी उस के प्रति चौकस रहना अच्छा होगा. वाजिब होगा कि आप हर माह ब्रैस्ट सैल्फ ऐग्जामिनेशन का नियम बना लें. बिस्तर पर लेट कर और शीशे के सामने खड़े हो कर दोनों स्तनों में गांठ, त्वचीय परिवर्तन और ब्रैस्ट निपल परिवर्तन के लिए विधि अनुसार जांच लें. जरा भी शक हो तो तुरंत किसी सर्जन से जांच करवाएं. इसे टालें नहीं. आजकल समय से इलाज लेने से बहुत से मामलों में ब्रैस्ट कैंसर जड़ से खत्म किया जा सकता है.

अपना शारीरिक वजन सीमा में और आहार सदा संतुलित रखें. मोटापा, अधिक वसीय भोजन जैसे जंक फूड, तले व्यंजन, मांसाहार आदि ब्रैस्ट कैंसर के जोखिम को बढ़ावा देते हैं. आप के साथ एक रिस्क फैक्टर पहले से ही है कि आप की फैमिली में यह रोग रहा है. अत: इस रिस्क को और अधिक न बढ़ने देने में ही समझदारी है.

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मेरी पत्नी के एक युवक से अवैध संबंध हैं. इसके कारण वह मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करती है. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं विवाहित युवक हूं और एक बच्चे का पिता हूं. मैं अपनी वैवाहिक जिंदगी से बहुत परेशान हूं. मेरी पत्नी ने पहले एक युवक से दोस्ती की और धीरेधीरे उन की घनिष्ठता इतनी बढ़ गई कि दोनों के बीच अवैध संबंध तक बन गए. मुझे  जब पत्नी के इस व्यभिचार के बारे में पता चला तो हमारे बीच पहले काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. साथ रहते हुए भी हम दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं और एक दिन वह बेटे को मेरे पास छोड़ कर चली गई. अब वह 3 साल के बाद अचानक लौट आई है.

लगता है कि उस का दोस्त उस से पल्ला झाड़ चुका है, इसीलिए वह वापस आ गई है. उस के आने के बाद मैं ने सामान्य रहने का भरसक प्रयास किया, बावजूद इस के वह न तो मुझ से खुल कर बात करती है और न ही शारीरिक संबंध को तवज्जो देती है. एक ही छत के नीचे रहते हुए हम दोनों अजनबियों की तरह हैं. मैं क्या करूं?

जवाब
अब यह तो नहीं कहा जा सकता कि आप की पत्नी को अपने किए पर ग्लानि हो रही होगी और इसीलिए वह सामान्य नहीं हो पा रही. आप उम्मीद करें कि थोड़े वक्त बाद वह स्वयं ही सामान्य व्यवहार करने लगे. यदि ऐसा नहीं होता तो आप किसी मनोचिकित्सक से परामर्श ले सकते हैं. काउंसलिंग से ज्ञात होगा कि पत्नी के मन में क्या है. कानून हाथ में लेना आसान नहीं है, क्योंकि अदालतें ऐसी पत्नी की भी ज्यादा ही सुनती हैं.

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कामुकता का राज और स्त्री की संतुष्टि को कुछ इस तरह समझिए

मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

वैज्ञानिक शोध : संसर्ग का संघर्ष

हाल में किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यौन सुख का चरमोत्कर्ष पुरुषों के दिमाग में तय होता है, जबकि महिलाओं के लिए सैक्स के दौरान विविध तरीके माने रखते हैं. चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष गलत तरीके के यौन संबंध को खुद नियंत्रित कर सकता है, जो उस की शारीरिक संरचना पर निर्भर है.

पुरुषों के लिए बेहतर यौनानंद और सहज यौन संबंध उस के यौनांग, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है. पुरुषों में यदि रीढ़ की हड्डी की चोट या न्यूरोट्रांसमीटर सुखद यौन प्रक्रिया में बाधक बन सकता है, तो महिलाओं के लिए जननांग की दीवारें इस के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं और कामोत्तेजना में बाधक बन सकती हैं.

शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक पुरुष में संसर्ग सुख तक पहुंचने की क्षमता काफी हद तक उस के अपने शरीर की संरचना पर निर्भर है, जिस का नियंत्रण आसानी से नहीं हो पाता है. इस के लिए पुरुषों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और शिश्न जिम्मेदार होते हैं.

मैडिसन के इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल और मायो क्सीविक स्थित वैज्ञानिकों ने सैक्सुअल और न्यूरो एनाटोमी से संबंधित संसर्ग के प्रचलित तथ्यों का अध्ययन कर विश्लेषण किया. विश्लेषण के अनुसार,

डा. सीगल बताते हैं, ‘‘पुरुष के अंग के आकार के विपरीत किसी भी स्वस्थ पुरुष में संसर्ग करने की क्षमता काफी हद तक उस के तंत्रिकातंत्र पर निर्भर है. शरीर को नियंत्रित करने वाले तंत्रिकातंत्र और सहानुभूतिक तंत्रिकातंत्र के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, जो शरीर के भीतर जूझने या स्वच्छंद होने की स्थिति को नियंत्रित करता है.’’

डा. सीगल अपने शोध के आधार पर बताते हैं कि शारीरिक संबंध के दौरान संवेदना मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी द्वारा पहुंचती है और फिर इस के दूसरे छोर को संकेत मिलता है कि आगे क्या करना है. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तेजना 2 तथ्यों पर निर्भर है.

एक मनोवैज्ञानिक और दूसरी शारीरिक, जिस में शिश्न की उत्तेजना प्रत्यक्ष तौर पर बनती है.

इन 2 कारणों में से सामान्य मनोवैज्ञानिक तर्क की मान्यता में पूरी सचाई नहीं है. डा. सीगल का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की चोट से शिश्न की उत्तेजना में कमी आने से संसर्ग सुख की प्राप्ति प्रभावित हो जाती है. इसी तरह से मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अवसाद आदि से तंत्रिका रसायन में बदलाव आने से संसर्ग और अधिक असहज या कष्टप्रद बन जाता है.

स्त्री की यौन तृप्ति

कोई युवती कितनी कामुक या सैक्स के प्रति उन्मादी हो सकती है? इस के लिए बड़ा सवाल यह है कि उसे यौन तृप्ति किस हद तक कितने समय में मिल पाती है? विश्लेषणों के अनुसार, शोधकर्ता वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सहायता मिल सकती है और वे सुखद यौन संबंध में बाधक बनने वाली बहुचर्चित भ्रांतियों से बच सकते हैं.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि युवतियों के लिए यौन तृप्ति का अनुभव कहीं अधिक जटिल समस्या है. इस बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप के जरिए युवतियों के अंग की दीवारों में होने वाले बदलावों और असंगत प्रभाव बनने वाली स्थिति का पता लगाया है.

वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैन के जरिए महिला के दिमाग में संसर्ग के दौरान की  सक्रियता मालूम कर उत्तेजना की समस्या से जूझने वाले पुरुषों को सुझाव दिया है कि वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. उन्हें सैक्सुअल समस्याओं के निबटारे के लिए डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए, न कि नीम हकीम की सलाह या सुनीसुनाई बातों को महत्त्व देना चाहिए. इस अध्ययन को जर्नल औफ क्लीनिकल एनाटौमी में प्रकाशित किया गया है.

महत्त्वपूर्ण है संसर्ग की शैली

डा. सीगल के अनुसार, महिलाओं के लिए संसर्ग के सिलसिले में अपनाई गई पोजिशन महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सैक्सुअल पोजिशंस के संदर्भ में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि स्त्री के यौनांग की दीवारों को विभिन्न तरीके से उत्तेजित किया जा सकता है.

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली में मानसिक तनाव के साथसाथ शारीरिक अस्वस्थता भी सैक्स जीवन को प्रभावित कर देती है. ऐसे में कोई पुरुष चाहे तो अपनी सैक्स संबंधी समस्याओं को डाक्टरी सलाह के जरिए दूर कर सकता है.

कठिनाई यह है कि ऐसे डाक्टर कम होते हैं और जो प्रचार करते हैं वे दवाएं बेचने के इच्छुक होते हैं, सलाह देने में कम. वैसे, बड़े अस्पतालों में स्किन व वीडी रोग (वैस्कुलर डिजीज) विभाग होता है. अगर कोई युगल किसी सैक्स समस्या से जूझ रहा है तो वह इस विभाग में डाक्टर को दिखा कर सलाह ले सकता है.

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चोरी हुए स्मार्टफोन को खोजने के ये हैं तीन शानदार तरीके

हम अपना फोन काफी संभाल कर रखते हैं. हममें से ज्यादातर लोग का आधे से ज्यादा काम फोन पर ही होता है. स्मार्टफोन में हमारी जानकारी, जैसे- बैंक अकाउंट डिटेल्स, पर्सनल फोटो, वीडियोज, डौक्यूमेंट्स और कौन्टेक्ट नबर्स आदि सेव होते हैं. ऐसे में अगर हमारा फोन चोरी हो जाए तो हमें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है और चोरी हुए फोन का मिलना तो लगभग नामुमकिन होता है. लेकिन अब आपका फोन खो जाने या चोरी हो जाने पर वापस मिल सकता है. आप सोच रहे होंगे कि भला ये कैसे मुमकिन है. तो आपको बता दें कि हमारे पास कुछ ऐसी ट्रिक्स हैं, जिनकी मदद से आप अपना फोन ट्रेस कर सकते हैं.

एंटी थेफ्ट अलार्मः  एंटी थेफ्ट अलार्म अपने फोन में डाउनलोड कर एक्टिवेट कर लें. इसके बाद यदि कोई और आपका मोबाइल छूने की कोशिश करेगा, तो मोबाइल में तेज अलार्म बजेगा. इसका मतलब कि किसी भीड़-भाड़ वाले इलाके में कोई फोन चोरी करने की कोशिश करेगा, तो आपको तुरंत पता चल जाएगा.

लुकआउट सिक्योरिटी एंड एंटीवायरसः इस ऐप में गूगल मैप की मदद से लोकेशन का पता लगाया जा सकता है. यदि चोरी के बाद कोई आपका फोन स्विच औफ भी कर दें, तो आपको फोन की आखिरी लोकेशन पता चल जाएगी. इससे आपको अपने फोन को ढूंढने में आसानी हो सकती है.

थीफ ट्रैकरः यह ऐप चोरी हुए फोन को ढूंढने में मददगार है. इसमें एक खास फीचर दिया गया है जिसका इस्तेमाल कर आप चोरी करने वाले व्यक्ति की पूरी जानकारी ढूंढ सकते हैं. ऐसा संभव इसलिए है क्योंकि फोन से छेड़छाड़ होने पर यह फीचर आपको छेड़छाड़ करने वाले की स्वतः फोटो क्लिक करके लोकेशन के साथ मेल भेज देगा.

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दिव्यांका ने ट्रोलर्स की उड़ाई धज्जियां, बोलीं- मुझे अपने सीने पर गर्व है…

‘ये है मोहब्बतें’ की अदाकारा दिव्यांका त्रिपाठी अगर अपने अभिनय से टेलीविजन पर तहलका मचाना जानता हैं, तो वह ये भी बखूबी जानती हैं कि किस तरह से गंदे और भद्दे कमेंट करने वालों से निपटा जाए. हाल ही दिव्यांका ने पति विवेक दहिया के साथ एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की थी. जिसमें उन्होंने नीले रंग का कुर्ता पहना हुआ था. कुछ ही देर के बाद उनके कपड़ों को लेकर ट्रोल किया जाने लगा. लोगों ने उनके कपड़ों को लेकर ना कि केवल भद्दे कमेंट किये बल्कि उनकी बौडी को लेकर काफी अपशब्द भी कहे.

दिव्यांका के लिए कमेंट में लिखा था, ‘तुम्हारे कपड़े हमेशा वल्गर रहते हैं. लगता है कि तुम चेस्ट एरिया पर जानबूझकर टाइट कपड़े पहनती हो. यह बेहद घटिया और फूहड़ लगता है. सुधर जाओ थोड़ा बेशरम.’

इस पर दिव्यांका ने खामोश रहने और कमेंट करने वालों को ब्लौक करने के बजाय मुंह तोड़ जवाब देते हुए कहा, “मुझे अपने सीने पर गर्व है…और किसी भी महिला को इस पर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए. भगवान ने हमें किसी उद्देश्य से इस तरह बनाया है. इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर शर्म महसूस किया जाए. अच्छी बात है, तुमने इस विषय को उठाया. मै तुम्हें बता दूं कि इंसान ने गर्मी और ठंड से बचने के लिए खुद को ढंकना शुरू किया था न कि तुम्हारी जैसी गंदी सोच के लोगों से, क्योंकि उस समय तुम जैसे लोगों का कोई अस्तित्व नहीं था. लेकिन अब ऐसा करना पड़ेगा…”

दिव्यांका ने इस अभद्र टिप्पणी करने वालों को यही नहीं बख्शा, उन्होंने आगे कहा, “अंजता-एलोरा जाओ और भारतीय भगवानों को प्राकृतिक अंदाज में देखो. हर औरत देवी है और देवियों को उनके कपड़ों से नहीं बल्कि कर्म और ताकत से परिभाषित किया जाता है. इसलिए इज्जत करो!” दिव्यांका के इस जवाब के बाद बाद फौलोअर्स ने उनकी जमकर तारीफ की.

बता दें कि दिव्यांका ने अपने करियर की शुरुआत 2006 में धारावाहिक ‘बनूं मैं तेरी दुल्हन’ से की थी लेकिन शो ज्यादा चर्चित नहीं हो पाया और शो खत्म होने के बाद दिव्यांका को लोग भूल से गए, लेकिन 2013 में शुरू हुए ‘ये है मोहब्बतें’ में इशिता के किरदार से उन्होंने लोगों को अपना दीवाना बना दिया.

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