7 राज्यों में राज्यसभा की 58 सीटों में से 28 सीटें जीत कर भाजपा ने राज्यसभा में सब से बड़ी पार्टी भले ही बन गई हो पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से क्रौसवोटिंग हुई उस ने उस के दामन पर दाग लगा दिया है. चाल, चरित्र और चेहरे के साथ पार्टी विद अ डिफरैंट की बात करने वाली भाजपा के चेहरे पर लगा उबटन उतर चुका है.

क्रौसवोटिंग करने वालों में सब से ज्यादा ऊंची जातियों के विधायक शामिल हैं. ऐसे में दूसरे दल अब आसानी से इन जातियों के विधायकों पर भरोसा नहीं कर सकते. ऐसे विधायकों की निष्ठा संदिग्ध होने के बाद अब भाजपा भी इन को हाशिए पर डाल देगी. विधान परिषद के 5 सदस्यों ने भाजपा के पक्ष में अपनी सीट छोड़ी थी, इन में से केवल एक अशोक वाजपेई को भाजपा ने राज्यसभा पहुंचाया. बचे यशवंत सिंह, सरोजनी अग्रवाल और वुक्कल नवाब जैसे लोग प्रतीक्षा सूची में ही हैं.

उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए केवल 400 वोट ही पड़ने थे. 10 सीटों पर 11 उम्मीदवार होने से वोटिंग के हालत बन गए. भाजपा के अनिल अग्रवाल और बसपा के भीमराव अंबेडकर जीत के लिए दूसरे दलों पर निर्भर थे. साफ था कि बिना क्रौसवोटिंग के जीत संभव नहीं है. भाजपा के पास अनिल अग्रवाल को विजयी बनाने के लिए जरूरी 37 वोटों में से केवल 28 वोट थे. बसपा के पास सपाकांग्रेस और लोकदल को मिला कर 34 वोट थे. बसपा के 2 विधायक मुख्तार अंसारी और हरिओम यादव जेल से वोट डालने नहीं आ सके. इस से बसपा के पास 32 वोट ही थे. हर दल का दांव क्रौसवोटिंग करने वालों पर था. भाजपा ने सपा नेता नरेश अग्रवाल को अपने साथ ले कर यह साफ कर दिया था कि यह चुनाव जीतना उस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है. भाजपा गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनावों में मिली हार का बदला तो लेना ही चाहती थी, साथ ही वह जनता को यह संदेश भी देना चाहती थी कि सपाबसपा गठबंधन से भाजपा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला.

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