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किशोर पीढ़ी को चुनौती

जीवन का रंग लाल खून का ही नहीं होता पर अफसोस की बात है कि आज की प्रौढ़ व वृद्ध पीढ़ी कल की पीढ़ी को लाल रंग से रंगी दुनिया देने की तैयारी में है. हम प्रकृति के साथ भरपूर खिलवाड़ कर चुके हैं. दुनिया का आकाश जहरीले लाल धुएं से भरने लगा है. गरमी बढ़ने लगी है. नई तकनीक से जीवन सुखी हुआ है पर हवा का रंग लाल होने लगा है. इतना ही नहीं सोच भी लाल हो गई है. सारी दुनिया दहशत में जी रही है कि न जाने कब, कहां खून बिखरा दिख जाए. कश्मीर के उड़ी में 22 भारतीय जवानों का खून बहा और उन के परिवार बरबाद हो गए, क्योंकि पाकिस्तान से 4 आतंकवादी भारत में घुस आए पर यहां तो गलीकूचों में रोज खून बह रहा है. कभी गौमांस को ले कर, कभी दलितों को ले कर, कभी कावेरी के जल विवाद पर तो कभी माओवादियों द्वारा हिंसा फैला कर. यों कहना गलत नहीं होगा कि गुस्सा लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा है.

समुद्र पार तो हालात और खराब हैं. पश्चिम एशिया में धूंधूं कर लाल धुआं फैल रहा है. लोगों को सदियों पुराने अपने शहर छोड़ कर भिखारियों की तरह दूसरे शहरों में खून बहा कर भागना पड़ रहा है. यह खून कितने ही देशों में बहे जा रहा है. जहां नहीं है या कम है, उन्हें भी अब डर लग रहा है कि कहीं कोई आतंकवादी उन के किसी शहर पर हमला न कर दे.

क्या यही हमारे प्रौढ़ व वृद्ध आज के किशोरों को दे कर जाना चाहते हैं? दुनिया को इंटरनैट और सैटेलाइट्स से युवाओं ने एक किया. किशोरों ने ही सोचा कि कौन सी तकनीक का कैसे इस्तेमाल किया जाए कि जमीन पर खींची लकीरों को ही बेमतलब का कर दिया जाए. उन्होंने व्हाट्सऐप और फेसबुक का ईजाद कर लिया. ईमेल से कहीं भी सस्ते में किसी से भी बातचीत कर सकते हैं. स्काइप से दूरदराज बैठे लोग पास आ गए.

प्रौढ़ और वृद्ध पीढ़ी ने इस का दुरुपयोग किया. उन्होंने धर्म, भाषा, जाति, देश और क्षेत्र के नाम पर इस तकनीक का इस्तेमाल लड़ाइयों में करना शुरू कर दिया. जो 4 आतंकवादी उड़ी में घुसे उन के पास जीपीएस था पर खूनखराबे के लिए, दोस्त बनाने के लिए नहीं. जहां किशोर पीढ़ी बिना धर्मजाति पूछे दोस्त बनाती है, इंटरनैट पर उपलब्ध ट्रांसलेशन की सुविधा से अनजानों से दोस्ती करती है, वहीं प्रौढ़ पीढ़ी इस का इस्तेमाल अपनी ताकत बढ़ाने में कर रही है, चाहे उस के लिए खून बहे, लोगों के घर उजड़ें, पतिपत्नी अलग हों, प्रेमीप्रेमिका बिछुड़ जाएं.

आज की किशोर पीढ़ी के लिए यह चुनौती है कि जो सुविधाएं उन से पहली पीढ़ी ने पैदा की थीं, उन्हें फिर से सुबह की लालिमा लाने के लिए ही इस्तेमाल किया जाए, खून बहाने के लिए नहीं.

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गर्मी की मार से बचने के लिए ऐसे चुनें स्मार्ट एसी

चूंकि अब पूरी तरह से गर्मी आ चुकी है, तो गर्मी से बचने की तैयारी भी जबरदस्त होनी चाहिए. क्यों सही कहा ना. आपको तो मालूम ही होगी कि बाजार में हर सीजन पर खुछ ऐसे इलेक्ट्रानिक गैजट्स आते हैं, जो आपको मौसम की मार से बचाते हैं. जब मौसम में तपिश बढ़ने लगती है तो कूलर और एसी की डिमांड भी बढ़ने लगती है. हमें धीरें धीरें एसी की जरूरत महसूस होने लगती है और हम जल्द से जल्द उसे खरीदने की सोचते हैं.

ऐसे में अगर आप एयर कंडिशनर खरीदने की सोच रहे हैं और इन सवालों में उलझे हुए हैं कि कौन सा एसी खरीदा जाए? एसी की क्षमता क्या हो? और कौन सा वेरिएंट आपके लिए बेहतर होगा?तो आपके लिए हमारे पास इसके कुछ जवाब हैं.

आइये जानें वो खास बात जिनपर ध्यान देकर आप अपने लिए सही एसी का चुनाव कर सकते हैं-

साइज या कैपेसिटी

एसी खरीदते समय सबसे बड़ी उलझन उसके साइज या कैपेसिटी को लेकर होती है. यह सीधे तौर पर कमरे, हाल या उस स्थान के साइज पर निर्भर करता है, जहां एसी को लगाया जाना है. स्क्वायर फीट के लिहाज से अगर आपके कमरे का फ्लोर 90Sqft से छोटा है तो आपके लिए 0.8 टन का एसी पर्याप्त है. जबकि 90- 120Sqft वाली जगह के लिए 1.0 टन का एसी, 120-180Sqft जगह के लिए 1.5 टन का एसी और 180Sqft से बड़ी जगह के लिए 2.0 टन का एसी खरीदना सही रहेगा.

विंडो, स्प्लिट या पोर्टेबल ए.सी.

आजकल तो दुनियाभर की तमाम छोटी-बड़ी कंपनियां इनका निर्माण कर रही हैं. विंडो और स्प्लिट के बाद अब पोर्टेबल एसी भी बाजार में आ गए हैं. ए.सी. के तीनों वेरिएंट की अपनी-अपनी खूबियां हैं. तो आइये जानें कौन सा एसी आपके लिए रहेगा सही-

विंडो : यह अन्य दो वेरिएंट के मुकाले थोड़ा सस्ता होता है. लेकिन इसमें आवाज थोड़ी ज्यादा होती है. यह सिंगल रूम और छोटे कमरों के लिए सही है. आसानी से लगाया जा सकता है, लेकिन खूबसूरती के मामले में यह स्प्लि‍ट एसी से पिछड़ जाता है.

स्प्लि‍ट : एयर फ्लो ज्यादा होने के कारण यह बड़े कमरों के लिए उपयुक्त है. इसमें शोर नहीं होता और दिखने में भी खूबसूरत होता है. लेकिन विंडो ए.सी. के मुकाबले थोड़ा महंगा होता है. यह दो हिस्सों में होता है, जिसमें एक हिस्सा कमरे के बाहर या छत पर लगाया जाता है और दूसरा कमरे के अंदर.

पोर्टेबल : पोर्टेबल एसी भी इन दिनों खूब चलन में है. इसके साथ सबसे बड़ी सुविधा या खूबी यह है कि इसे सुविधा अनुसार कमरे के किसी कोने में या जरूरत के हिसाब से हाल के किसी एरिया में रखा जा सकता है. इसे लगेने का झंझट नहीं है. आप खुद भी इसे एक जगह से दूसरी जगह शि‍फ्ट कर सकते हैं.

फिल्टर, एयर फ्लो, स्विंग

एसी में बढ़ि‍या फिल्टर का लगा होना जरूरी है. एयर फ्लो यह तय करता है कि आपका एसी कितनी देर में कमरे को ठंडा कर सकता है. जरूरी है एसी में कूलिंग स्पीड को तय करने की सुविधा हो. कम से कम दो फैन की स्पीड हो, जिसे आप अपने हिसाब से आन आफ कर सकें.

अब कुछ विंडो एसी में भी यह फीचर आने लगे हैं, हांलाकि यह थोड़ा महंगा भी होता है. एसी को समय-समय पर सर्विसिंग की भी जरूरत होती है. यह न सिर्फ इसलिए जरूरी है कि आपका एसी सालों-साल चले, बल्कि इसलिए भी कि आपके ए.सी. की सफाई हो और वह स्वच्छ हवा दे.

बिजली की खपत

एसी खरीदने के क्रम में एक और सबसे जरूरी बात यह देखने की होत है कि आपका एसी कितनी बिजली खपत करता है, क्योंकि महीने के आखि‍री में बिल आपको ही चुकाना है. अच्छी बात यह है कि अब हर इलेक्ट्रानिक सामान पर बिजली की बचत को लेकर स्टार रेटिंग चस्पा होती है. जितनी ज्यादा स्टार रेटिंग उतनी ज्यादा प्रोडक्ट की कीमत. लेकिन एसी खरीदने के क्रम में कम से कम तीन स्टार रेटिंग वाला प्रोडक्ट लेना ही सही रहेगा.

वोल्टेज स्टैबेलाइजर

एसी के साथ अमूमन वोल्टेज स्टैबेलाइजर खरीदने की भी सलाह दी जाती है. यह सही भी है और जरूरी भी. एसी 0.5-0.8 टन का है तो इसके साथ 2KVA का स्टैबेलाइजर लगाएं, 1.0 टन से 1.2 टन के एसी के लिए 3KVA का, 1.2-1.6 टन के एसी के लिए 4KVA का, 2.0-2.5 टन के लिए 5KVA और 3 टन से अधिक क्षमता वाले एसी के लिए 6KVA का स्टैबेलाइजर लेना आपके लिए सही रहेगा.

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फ्लोरिंग को दें स्टाइलिश लुक

आप अपने घर में कितनी भी महंगी चीजें क्यों न रखें, जब तक घर की फ्लोरिंग सही न होगी तब तक घर का इंटीरियर अच्छा नहीं लगेगा. फर्श के तौर पर टाइल्स बेहद टिकाऊ होती हैं तथा मजबूती के मामले में भी इन का मुकाबला नहीं होता. ये पानी से जल्दी खराब नहीं होतीं और साफसफाई में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.
टाइल्स में मैट फिनिश का चलन जोरों पर है. चमचमाती या ग्लौसी टाइल्स अब चलन से आउट हो गई हैं. कई कंपनियां आप की पसंद अनुसार भी टाइल्स बनाने लगी हैं, जिन्हें कंप्यूटर की मदद से बनाया जाता है. इन में आप अपनी पसंदीदा मोटिफ्स या परिवार के फोटो भी प्रिंट करा सकती हैं. टाइल्स फ्लोरिंग कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि फ्लोरिंग आप की दीवारों से मैच करे. अगर आप के घर की दीवारें लाइट कलर की हैं, तो टाइल्स डार्क कलर की लगवाएं. अगर दीवारें डार्क कलर की हैं, तो लाइट टाइल्स लगवाएं.

कहां और कैसे लगवाएं टाइल्स

घर की अलगअलग जगहों पर टाइल्स के चयन का तरीका भी अलगअलग होता है:

– लिविंग एरिया वह स्थान होता है जहां आप अपने मेहमानों का स्वागत करती हैं, दोस्तों से मिलती हैं, उन से बातें करती हैं. इस स्थान को खास बनाना जरूरी है. यहां आप कारपेट टाइल्स लगवा सकती हैं.

– अगर आप का घर छोटा है, तो एक ही तरह की टाइल्स लगवा सकती हैं, जो घर को अच्छा लुक देती हैं. अगर घर बड़ा है तो अलगअलग डिजाइनों की टाइल्स लगवाएं. लिविंग एरिया में पैटर्न और बौर्डर वाली टाइल्स का भी ट्रैंड इन है.

– बैडरूम में कई लोग डार्क कलर फ्लोरिंग करा लेते हैं. ऐसा करने से बचें. बैडरूम में हमेशा टाइल्स फ्लोरिंग के लिए हलके और पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल करें.

– किचन छोटी हो तो दीवारों पर हलके रंग की टाइल्स लगवाना ही सही रहता है. बड़ी किचन में सौफ्ट कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. इन दिनों किचन में स्टील लुक वाली टाइल्स ट्रैंड में हैं.

– बाथरूम घर में सब से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली जगहों में से एक है. इसे सुंदर व आरामदेह बनाना बहुत जरूरी है. बाथरूम में हमेशा सौफ्ट फील वाली टाइल्स लगवाएं. ये टाइल्स नंगे पैरों को रिलैक्स फील कराती हैं. बाथरूम के लिए कई तरह की टाइल्स आती हैं. आप बौर्डर वाली, क्रिसक्रौस पैटर्न वाली टाइल्स लगवा सकती हैं.

टाइल्स कई सालों तक चलती हैं. इन्हें साफ करना भी आसान होता है. कई महिलाएं टाइल्स को साफ करने के लिए हार्ड कैमिकल का प्रयोग करती हैं. ऐसा न करें. टाइल्स को साफ करने के लिए टौयलेट क्लीनर का इस्तेमाल कर सकती हैं. सर्फ के पानी से भी टाइल्स को साफ किया जा सकता है.

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गरमियों में भी दिखें हसीन

गरमी का मौसम आते ही त्वचा में नमी की मात्रा कम होने लगती है. इस की वजह धूप, धूल, गरम हवा, प्रदूषण और पसीना आना है. त्वचा में नमी की मात्रा कम हो जाने से वह बेजान और रूखी हो जाती है. ऐसे में सही मात्रा में पानी पीना, संतुलित आहार लेना, सनस्क्रीन से खुद को प्रोटैक्ट करना, धूप से बचना आदि जरूरी है. ब्यूटी ऐक्सपर्ट आकृति कोचर कहती हैं कि गरमी के मौसम में त्वचा की नमी का ध्यान रखना जरूरी है वरना कई प्रकार के रैशेज, रैडनैस, ऐलर्जी आदि होने का खतरा रहता है. ऐसे में सनस्क्रीन और मौइश्चराइजर अच्छी कंपनी का ही लगाएं ताकि त्वचा सुरक्षित रहे. इन्हें घर से निकलने से 20 मिनट पहले लगाएं. कम से कम 15 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन त्वचा के लिए अच्छा होता है. अगर आप ने सही मात्रा वाले एसपीएफ का प्रयोग त्वचा के लिए नहीं किया, तो त्वचा की उम्र आप की उम्र से अधिक दिखेगी, इसलिए ऐक्सपर्ट की राय जरूरी है. गरमी के मौसम में सैलिब्रिटीज खासतौर पर अपनी त्वचा को ले कर संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उन्हें धूप, धूल, प्रदूषण आदि में शूटिंग करनी पड़ती है. आइए, जानें किस तरह वे गरमी का सामना करते हैं:

श्रद्धा कपूर: वीट की ब्रैंड ऐंबैसेडर अभिनेत्री श्रद्धा कपूर कहती हैं, ‘‘गरमी के मौसम में मैं बहुत ही साधारण दिनचर्या फौलो करती हूं ताकि मेरी त्वचा की खूबसूरती बनी रहे. मैं खूब पानी पीती हूं. इस के अलावा फल और सब्जियां मेरी डाइट में शामिल होती हैं. मैं अपने चेहरे को कई बार साफ पानी से धोती हूं ताकि प्रदूषण, धूलमिट्टी से बची रहूं.

‘‘मैं सनप्रोटैक्शन क्रीम लगाए बिना घर से नहीं निकलती हूं. ये सारी बातें मैं ने अपनी मां से सीखी हैं. शूटिंग के दौरान भी मैं इन बातों का खयाल रखती हूं. इस मौसम में मैं मेकअप कम करती हूं.’’

करीना कपूर खान: करीना की तरह खूबसूरत त्वचा हर लड़की चाहती है. अपनी स्किन त्वचा का श्रेय वे अपने मातापिता को देती हैं, जो उन्हें जन्म से मिली है. वे हमेशा अपनी स्किन को नमीयुक्त रखती हैं. गरमी के मौसम में वे खूब पानी, सूप, जूस आदि पीती हैं ताकि त्वचा डीहाइड्रेट न हो.

करीना कहती हैं, ‘‘मैं पंजाबी परिवार से हूं जहां खाना सब कुछ होता है. मैं भी खूब खाती हूं. पंजाब में जाने पर मैं वहां के अमृतसरी कुलचे अवश्य खाती हूं. अब मेरी जीरो फिगर में रुचि नहीं और न ही मेरी स्विमसूट पहनने की इच्छा है. यह सब मैं ने फिल्म ‘टशन’ के दौरान कर किया था. अब मैं खूब खा रही हूं और खुश रहती हूं. लेकिन वर्कआउट अवश्य करती हूं ताकि फिट रहूं. मैं मेकअप अधिक नहीं करती. धूप में निकलने पर सनस्क्रीन अवश्य लगाती हूं. रात को सोते समय मौइश्चराइजर लगाती हूं. खाने में मौसमी फल, सब्जियां अवश्य लेती हूं. इन के अलावा मैं हमेशा साधारण रहना पसंद करती हूं. घर से निकलते वक्त आंखों के मेकअप के लिए काजल और मौइश्चराइजर अपने पर्स में रखती हूं.’’

नरगिस फाखरी: त्वचा को चिकना और ग्लोइंग बनाए रखने के लिए नरगिस क्लींजिंग, फेशियल, स्क्रब, मास्क आदि का प्रयोग करती हैं. जब वे बाहर शूट करती हैं, तो वालनट स्क्रब के द्वारा मेकअप को हटाती हैं. इस से मेकअप रोमछिद्रों से बाहर निकल जाता है, साथ ही इस से चेहरे का रक्तसंचार भी बढ़ता है. वे रात में सोते समय मौइश्चराइजर लगाती हैं.

नरगिस कहती हैं, ‘‘मैं उसी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करती हूं, जो मुझ पर सूट करता है. मुझे अधिक मेकअप का शौक नहीं. धूप में अधिक नहीं जाती, संतुलित आहार लेती हूं. भारत में मैं मदर नेचर के पास हूं, जहां हर तरह की सब्जियां और फल आप के आसपास ताजा मिलते हैं. इन्हें खा कर और लगा कर मैं अपनी त्वचा को सुंदर रख सकती हूं. मुंबई में बाहर वाक या जौगिंग करना संभव नहीं, इसलिए घर पर डीवीडी लगा कर जुंबा वर्कआउट करती हूं. बालों के लिए हौट औयल मसाज अवश्य कराती हूं. अधिक शुगर नहीं लेती. भरपूर नींद लेती हूं.’’

दीपिका पादुकोण: दीपिका गरमी के मौसम में अपनी त्वचा का खास ध्यान रखती हैं. दीपिका कहती हैं, ‘‘रात में जो भी मेकअप मेरे चेहरे पर होता है, उसे मैं निकाल कर हाइड्रेटिंग क्रीम लगाती हूं. इस के अलावा खूब पानी पीती हूं. संतुलित आहार लेती हूं. नियमित वर्कआउट करती हूं और नींद पूरी करती हूं. इस मौसम में गरम और सूखी हवा से बाल बेजान से हो जाते हैं. ऐसे में सप्ताह में 1 बार टैंडर कोकोनट औयल से मसाज कराने से बाल खराब होने से बचते हैं.

‘‘मैं मेकअप अधिक पसंद नहीं करती. पर बीबी क्रीम अवश्य लगाती हूं. मुझे लाल लिपस्टिक बहुत पसंद है, जिसे लाइनर के साथ लगाती हूं.’’

गरमियों में खूबसूरत दिखने के कुछ टिप्स

– घर से बाहर निकलना हो तो सनस्क्रीन लगाएं.

– धूप में निकलते वक्त चुन्नी या दुपट्टा अथवा स्कार्फ से चेहरा ढक लें.

– ककड़ी, अंगूर, संतरा, तरबूज आदि फलों का सेवन अधिक से अधिक करें.

– बाहर निकलना हो तो पानी की बोतल साथ रखें.

द्य हफ्ते में 1 बार प्राकृतिक फेस पैक लगाएं जिस में चंदन का लेप, हलदी का लेप, ऐलोवेरा खासकर फायदेमंद होता है.

– चायकौफी का सेवन थोड़ा कम करें. ग्रीन टी पीएं.

– सोने से पहले चेहरे को धो कर मौइश्चराइजर लगाएं.

– ऐलोवेरा, रोजवाटर और ग्लिसरीन को मिला कर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाएं. इस से फ्रैश और रैडिएंस लुक मिलेगा.

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धोनी के पीठ दर्द ने बढ़ाई चेन्नई की चिंता, प्रेक्टिस सेशन में नहीं थे मौजूद

आईपीएल के इस सीजन में खिलाड़ियों की चोटों ने चेन्नई टीम की चिंता बढ़ा दी है. एक के बाद एक कई खिलाड़ी चोट के कारण टीम से बाहर होते जा रहे हैं. पहले केदार जाधव टीम से चोट के कारण बाहर हो गए, फिर टीम के सबसे खास खिलाड़ी सुरेश रैना दो तीन मैचों के लिए टीम से बाहर हो गए. अब चेन्नई की टीम पर सबसे बड़ा खतरा मंडराता दिख रहा है.

टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पीठ के दर्द से जूझ रहे हैं. पिछले मैच में वह इस दर्द के बावजूद पंजाब के खिलाफ खेलते रहे. उसी मैच में ये संदेह जताया जा रहा था कि धोनी खेल पाएंगे या नहीं. अब शुक्रवार को टीम राजस्थान रौयल्स के खिलाफ खेलेगी. लेकिन उससे पहले टीम के अभ्यास सत्र से धोनी नदारत रहे.

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चेन्नई से सभी मैच अब पुणे शिफ्ट कर दिए गए हैं. मैच से पहले प्रैक्टिस सेशन में धोनी नहीं दिखाई दिए. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान  के खिलाफ तैयारियों में जुटी चेन्नई के प्रैक्टिस सेशन से धोनी नदारद रहे. धोनी को पीठ दर्द है. हालांकि राहत की बात यह रही कि सुरेश रैना नेट प्रैक्टिस में नजर आए.

संभावना यह भी जताई जा रही है कि धोनी केवल बल्लेबाज के रूप में खेले. एन जगदीसन या अंबाती रायडू को विकेटकीपर की जिम्मेदारी सौंपी जाए. चेन्नई ने 15 अप्रैल को पंजाब के साथ अपना मुकाबला खेला था, जिसमे धोनी ने अपनी कप्तानी पारी खेलते हुए धमाकेदार 79 रन बनाए थे. इस दौरान धोनी के बैक में काफी दर्द था, लेकिन वह इसके बावजूद भी मैदान पर अपनी टीम के लिए खेल रहे थे.

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क्या स्मार्टफोन को विदा कहने का समय आ गया है?

क्या स्मार्टफोन को विदा कहने का समय आ गया है? दुनिया की कई स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां आजकल चिंतित हैं कि आखिर अचानक बढ़ती मांग क्यों रुक गई और लोगों ने नई तकनीक वाले फोन लेने क्यों कम कर दिए हैं? क्या इस का पर्सनल कंप्यूटर का सा हाल होगा जो घरों से निकल गए हैं और केवल बिजनैस टूल बन कर रह गए हैं? शायद ऐसा ही होना था. हुआ यह कि कंपनियों ने बहुत ज्यादा तकनीक स्मार्टफोनों में भर दी जिस को देख कर अच्छा लगता पर जिस की आवश्यकता नहीं थी. कंज्यूमर्स ने शुरू में तो महंगे फोन खरीदे पर जब लगा कि यह सौदा कुछ कमा कर नहीं दे रहा, तो उन्होंने इसे नकारना शुरू कर दिया है.

आईफोन की बिक्री कम होने की वजह उस की तकनीक हो सकती है. इस में इतनी सारी सुविधाएं हैं कि जब तक ग्राहक उसे समझे फोन ही पुराना होने लगता है. साधारण सा फोटो खींचने वाले कैमरों की तकनीक का आखिर कोई क्या करे? दूसरे आप के फोटो क्यों देखें और कब तक देखें? आप अपनी सैल्फी की कितनी और कब तक संभाल करेंगे? इतिहास क्या उन अरबों फोटोग्राफ्स का इस्तेमाल करेगा, जो इन करोड़ों फोनों ने दुनिया भर में खींचे हैं?

स्मार्टफोन ने जीवन सरल जरूर बनाया है पर प्राइवेसी भी समाप्त कर दी है. लोग यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उन से अपनी कमाई कैसे बढ़ाएं, कैसे सुख बढ़ाएं. हाथ में फोन होने का अर्थ यह नहीं कि आप का कार्य सुधर गया है. इस का अर्थ तो यह भी हो सकता है कि आप काम छोड़ कर बेकार के कौपीपेस्ट मैसेज पढ़ने और दोस्तों के फोटो लाइक करने में समय लगा रहे हैं. आप की उत्पादकता बढ़ने की जगह घट रही है. अनजानों के साथ दोस्ती के चक्कर में आप पास बैठे लोगों को भूल रहे हैं. आप ज्ञान की जगह चुटकुलों और बेकार के उपदेशों में अपना समय बरबाद कर रहे हैं.

स्मार्टफोन लगता है अपनी ओवर स्मार्टनैस का शिकार हो रहे हैं. पहले तार से बंधे फोन से चिपके रहने के कारण आप को भी बंधना पड़ता था, स्मार्टफोन ने उस से मुक्ति दिलाई पर आप को अब स्क्रीन में कैद कर डाला जो हर कुछ सैकंड में चमक उठती है. दुनिया को नई तकनीक चाहिए पर अच्छे प्रशासन के लिए, ज्यादा उत्पादन के लिए, फालतू की बकवास के लिए नहीं.

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पढ़ाई और जौब कैसे करें मैनेज

आज यूथ का मल्टीटास्क होना बेहद जरूरी है, क्योंकि उन्हें परिस्थितिवश कई बार अनेक कार्यों को एकसाथ हैंडिल करना पड़ता है, जैसे होस्टल में रह कर पढ़ाई के दौरान खुद ही खाना बनाना, बाहर के काम निबटाना या फिर कभीकभी पढ़ाई के साथसाथ जौब भी करनी पड़ती है ताकि खुद की पढ़ाई का खर्च तो निकाल लें साथ ही आर्थिक रूप से स्ट्रौंग भी बनें ताकि अपनी हर जरूरत के लिए पेरैंट्स पर निर्भर न रहना पड़े. कुछ युवा तो आसानी से इन सब चीजों को हैंडिल कर लेते हैं, लेकिन कुछ एकसाथ कई काम या फिर जौब व पढ़ाई को साथसाथ हैंडिल नहीं कर पाते, जिस से दोनों के ही परिणाम बिगड़ते हैं. यहां हम आप को पढ़ाई व जौब को एकसाथ मैनेज करने के टिप्स बता रहे हैं जो आप के लिए काफी मददगार साबित होंगे.

टाइम मैनेजमैंट के फंडे को समझें

लाइफ फंडों के बल पर ही चलती है. अगर एक बार फंडा क्लियर हो जाए तो समझो सारी परेशानियों का हल निकल जाता है. अगर आप भी एकसाथ दो चीजों को हैंडिल करना चाहते हैं तो टाइम मैनेज करना सीखें. जैसे हर इंसान के पास एक दिन में 24 घंटे होते हैं. अगर वह 8 घंटे की जौब भी करता है तब भी 8-9 घंटे सोने के निकालने के बावजूद 7-8 घंटे बचते हैं, जिन में से अगर 2-3 घंटे औनलाइन व मौजमस्ती करने के लिए भी निकाल दें तब भी आप के पास 4-5 घंटे बचेंगे, जिन में आप अच्छी तरह अपनी पढ़ाई को टाइम दे पाएंगे यानी टाइम मैनेज कर के चलने से आप हर चीज सही तरीके से हैंडिल कर पाएंगे.

समय की सही पहचान जरूरी

हर व्यक्ति का ध्यान और एकाग्रता का हाई और लो टाइम होता है. हाई टाइम में आप अपनी शक्ति को पढ़ाई में लगाएं और जब एकाग्रता नहीं बन पा रही है तो उस समय मनोरंजन करने लगें ताकि आप का माइंड रिलैक्स हो सके.

मल्टीटास्किंग की हो आदत

सिर्फ एक काम में उलझे रहना आज के यूथ को शोभा नहीं देता, उन्हें तो मल्टीटास्किंग बनना चाहिए. आज मल्टीटास्किंग होना समय की डिमांड है. आज औफिस में भी ऐसे कर्मचारियों को ही पसंद किया जाता है जो हर कार्य करना जानते हों न कि सिर्फ व सिर्फ एक कार्य को ही ले कर बैठे रहें. इस के लिए आप को खुद ही निश्चय करना होगा कि आप एकसाथ किनकिन कार्यों को संभाल सकते हैं. जैसे अगर आप जौब करते हैं तो उस के साथसाथ आप घर के कार्यों में भी हाथ बंटा सकते हैं व अपने छोटे भाईबहनों की भी पढ़ाई में मदद कर सकते हैं. इस से आप को एकसाथ कई चीजों को हैंडिल करना आ जाएगा, जिस से जब भी आप पर एकसाथ कई कार्यों की जिम्मेदारी आएगी तो आप उसे आसानी से निभाएंगे और घबराएंगे नहीं.

परफैक्शन की कला सीखें

कार्य में परफैक्शन लाने के लिए आप को शुरुआत में छोटेछोटे कार्यों को ही लेना चाहिए ताकि आप उन्हें परफैक्टली हैंडिल कर सकें. इस के लिए आप को शैड्यूल बना कर चलना होगा ताकि आप को पता रहे कि किस समय किस कार्य को करना है. इस से जहां आप समय के महत्त्व को जानेंगे वहीं इस से एकसाथ कई कार्यों को करने और उन में परफैक्शन लाने की कला भी आएगी जो आगे चल कर आप को बडे़ टास्क करने में भी मदद करेगी.

ऐनर्जी कैसे प्राप्त करें

जब आप को मल्टीटास्क बनना है यानी एकसाथ कई कार्यों या फिर जौब व पढ़ाई को हैंडिल करना है तो उस के लिए ऐनर्जी का होना जरूरी है. बिना ऐनर्जी के आप किसी भी कार्य में अपना मन नहीं लगा पाएंगे. इस के लिए आप हैल्दी डाइट लें. जैसे फलसब्जियां, लंच व डिनर में दालों व हरी पत्तेदार सब्जियों को महत्त्व दें. इस से आप को ऊर्जा मिलेगी और यही ऊर्जा आप को सभी कार्यों में ऐक्टिव रोल प्ले करने में मदद करेगी. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप अपनी सोच को पौजिटिव रखें, जिस से आप हर कार्य को पूरी लगन से कर पाएंगे.

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माता-पिता : बचपन के दोस्त या दुश्मन

मौजूदा पीढ़ी के बच्चों और 25-30 साल पहले के बच्चों की जिंदगी में जमीन और आसमान का फर्क है. आज जिन मध्य और उच्चमध्यवर्गीय मांबाप की उम्र 35 से 40 साल के बीच है, वे आज के बचपन को ले कर जरा सी कोई बात हुई नहीं कि इस दौर के बच्चों की सुखसुविधाओं पर अपने दौर को याद कर के ताने मारने लगते हैं. अगर सुखसुविधाओं के आंकड़ों और तथ्यों की नजर से देखें तो यह बहुत गलत भी नहीं लगता. आखिर आज 8 से 17 साल तक के उच्च और उच्चमध्यवर्गीय हिंदुस्तानी महानगरों के बच्चे सालाना 10 हजार रुपए से ले कर 50 हजार रुपए तक की पौकेट मनी पाते हैं. जबकि 90 के दशक में किए गए टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसैस व पाथ फाइंडर एजेंसी के सर्वे के मुताबिक, 80 और 90 के दशकों में भारत के आम मध्यवर्गीय शहरी बच्चे भी साल में औसतन 500 रुपए से ले कर 3 हजार रुपए तक की पौकेटमनी पाते थे.

आखिर आज 8 से 18 साल तक के बच्चों की पढ़ाईलिखाई में देश के सालाना 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो रहे हैं. यह अफ्रीका के 9 देशों के कुल सालाना बजट से भी ज्यादा बड़ी रकम है. आज शहरी बच्चों के पास तमाम तरह के गैजेट, कई तरह के फैशनेबल कपड़े, अनगिनत प्रकार की खानेपीने की चीजें, दोस्तों से लगातार संपर्क में बने रहने के लिए दर्जनों किस्म के फोन और इंटरनैट की सुविधाएं हैं.

सवाल है क्या फिर भी आज के बच्चे 25-30 साल पहले के बच्चों के मुकाबले ज्यादा सुखी, ज्यादा खुश हैं? जवाब है नहीं. आखिर क्यों? क्योंकि आज के बच्चे बेफिक्र नहीं हैं. आज के बच्चों के सिर और कंधों पर उम्मीदों व आकांक्षाओं का भारीभरकम बोझ लदा है. आज के बच्चों के पास खेलने के लिए खिलौने तो बहुत हैं लेकिन साथ में खेलने वाला कोई नहीं है. तमाम रिपोर्ट्स कहती हैं कि पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी बच्चे बहुत अकेले होते जा रहे हैं. इस की एक वजह तो मांबाप की व्यस्तता ही है. मगर उस से भी बड़ी वजह है संवेदनशील संपर्क तकनीक का हमारे जीवन में लगभग छा जाना. भूमंडलीकरण, संस्कृति और बदलता आवासीय परिदृश्य भी इस सब का एक कारण है.

दबाव पर दबाव

वास्तव में बचपन एक ऐसी उम्र होती है जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी जीने का आनंद लिया जाता है. लेकिन अब यह बात या तो किताबों में सुरक्षित है या फिर पुराने लोगों की जबान में. हालांकि नन्हें होंठों पर फूलों सी खिलती हंसी, शरारतें, रूठना, मनाना, जिद पर अड़ जाना आदि बचपन को इन्हीं तमाम बातों से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन आज की तारीख में बच्चों से एक बेफिक्र बचपन छीन लिया गया है. आज उन के चेहरों पर या तो चिंता या तनाव या फिर सजग मुसकराहट चस्पां रहती है. बच्चों की निश्छलता, कोमलता और बेफिक्री को हम ने उन की लाइफस्टाइल में कुरबान कर दिया है. एक जमाने में अपनी छोटी सी उम्र में पापा और दादा के कंधों की सवारी करने वाले बच्चों के कंधों पर आज या तो भारीभरकम बस्ता टंगा है या फिर उन में इसी कमसिन उम्र के दौरान दुनियाभर की खूबियों से लैस हो लेने का दबाव सवार है.

नजरों से गिराना

इस सब का एक बड़ा कारण यह है कि हम बच्चों को बहुतकुछ बनाने के फेर में, परफैक्ट तो कुछ बना ही नहीं पा रहे, उन से उन का अनमोल बचपन अलग से छीन ले रहे हैं. छोटी सी उम्र में ही हम उन्हें प्रतिस्पर्धाओं के क्रूर दंगल में उतार देते हैं. प्रतिस्पर्धा में असफल रहने पर हम उन्हें अपनी नजरों से ही नहीं, उन्हें खुद उन की नजरों से भी नीचे गिरा देते हैं. प्रतिस्पर्धा की कशमकश में उन का बचपन, उन की मासूमियत खो जाती है. आधुनिकता दिखाने के लिए और कमरे से बाहर न जाने की सुविधा को देखते हुए मांबाप उन्हें गिल्लीडंडे, लट्टू व बैटबौल की जगह वीडियोगेम्स व मोबाइल थमा देते हैं जो उन के दिमाग को कुंद और खूंखार बना देते हैं. बच्चों का स्वभाव उग्र हो जाता है. दिनभर अकसर वीडियो गेम से चिपके रहने वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की अपेक्षा चिड़चिड़ापन व गुस्सैल प्रवृत्ति कहीं अधिक पाई जाती है.

छुट्टियां भी हैक्टिक

हमारे दिलोदिमाग में कुछ ऐसी बात घर कर गई है कि हम आजकल अपनी हर गतिविधि को एक फायदे की गतिविधि में तबदील कर देना चाहते हैं. उसे भुनाना चाहते हैं. यहां तक की छुट्टियों को भी हम ज्यादा से ज्यादा एंजौय करना चाहते हैं. इसलिए कहीं घूमने जाते हैं तो बजाय ठीक से घूमने के, कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जगहें कवर कर लेना चाहते हैं. इसलिए छुट्टियों को भी हैक्टिक कर डालते हैं. खासकर ये बात छात्रों पर सब से ज्यादा लागू होती है. आप समर वैकेशन के बाद किसी छात्र से पूछिए कैसी रही छुट्यिं? तो ज्यादातर छात्र हिचकिचाते हुए कहेंगे, फन रहा, पर हैक्टिक रहा. आप सोचेंगे छुट्टियों का फन तो समझ में आता है मगर ये हैक्टिक…पर ऐसा है. जी हां, समर वैकेशन सचमुच अब छात्रों के लिए फन से ज्यादा हैक्टिक हो चला है. शुरू में कुछ दिन फन लगता है, लेकिन स्कूल द्वारा दिया गया ढेर सारा हौलीडे होमवर्क व प्रोजैक्ट्स छात्रों को छुट्टियों में भी चैन से नहीं जीने देते. इसलिए उन्हें छुट्टियां फन व मजेदार लगने के बजाय हैक्टिक लगती हैं. आप तो समझ गए होंगे, छुट्टियों में भी हम ने आपाधापी को आने वाली पीढ़ी के गले से बांध दिया है.

साथी भी लगता प्रतिस्पर्धी

कैरियर की क्रूर प्रतिस्पर्धा के बीच बच्चों को आजकल एक और प्रतिस्पर्धा ने जकड़ लिया है, वह है रिऐलिटी शो. जी हां, ये शो बच्चों के कोमल मन को प्रतिस्पर्धा की भावना को तोड़ देने की हद तक भर देते हैं. बच्चे इसे कुछ समझ पाएं, इस से पहले ही ये शो उन से उन का बचपन छीन लेते हैं. अब उन्हें अपने बचपन का हर साथी अपना प्रतिस्पर्धी नजर आने लगता है, जिस का बुरा से बुरा करने को वे हरदम तैयार रहते हैं. लेकिन नौकरीपेशा मातापिता ये सब जान कर भी नहीं जानना चाहते. क्योंकि यह जानना उन के सामने धर्मसंकट की स्थिति खड़ी करता है. वास्तव में आज के मांबाप को बच्चों के लिए घर के अंदर ही कई किस्म की सुविधाएं जुटा देना, उन्हें व्यस्त रखना या फिर किसी के भरोसे छोड़ना फायदे का सौदा लगता है.

दरअसल, उन के पास अपने बच्चों के लिए खाली वक्त नहीं होता है. अपने मकसद के लिए पढ़ेलिखे आधुनिक मांबाप बच्चों के बचपन को छीन कर उन्हें स्कूल, ट्यूशन, डांस क्लासेज, वीडियोगेम्स आदि में व्यस्त रखते हैं. जिस से बच्चा घर के अंदर दुबक कर अपना बचपन ही भूल जाता है. जबकि संपूर्ण विकास के लिए बच्चों को बाहर की हवा, बागबगीचे, दोस्तों के साथ मौजमस्ती यह सब चाहिए होता है. पढ़ाईलिखाई अपनी जगह है. आज के दौर में उस की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है परंतु बच्चों का बचपन भी दोबारा लौट कर नहीं आता है.

बस्ते के बोझ से स्वास्थ्य पर असर

क्या आप को पता है नर्सरी और केजी के बच्चों के लिए कानूनन बस्ते का प्रावधान नहीं है? अन्य जिन बच्चों के स्कूलबैग का प्रावधान है, वह बैग भी उस के वजन के 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए? अगर अधिक पाया जाता है तो उस स्कूल के विरुद्ध जुर्माना लगाया जा सकता है. स्कूल बैग ऐक्ट बाकायदा एक अधिनियम है. लेकिन फिर भी पूरे हिंदुस्तान में सभी स्कूल इस नियम को तोड़ते हैं. लेकिन बच्चे तो बेचारे हैं. उन के मांबाप कभी भी इस मामले में स्कूल के विरुद्ध शिकायत नहीं करते. सवाल उठता है क्यों? क्योंकि मांबाप को लगता है उन का बच्चा बैग ले कर और वह भी भारी बैग ले कर जाएगा तो शायद ज्यादा शिक्षा ले आएगा.

साल 2006 में चिल्ड्रेन स्कूल बैग ऐक्ट पारित किया गया था. इस ऐक्ट में प्रावधान है कि बच्चे के स्कूल बैग का वजन उस के वजन का 10वां हिस्सा होना चाहिए. लेकिन स्कूलों में खुलेआम इस ऐक्ट की अवहेलना होती है. इस का खमियाजा बच्चों को वर्तमान में ही नहीं, भविष्य में भी भुगतना पड़ सकता है. बस्ता अधिनियम के मुताबिक तो स्कूल में बच्चों के लिए लौकर की सुविधा होनी चाहिए. जिस से बच्चों को रोज बैग न ले कर जाना पड़े. शिक्षा के अधिकार के तहत भी इस ऐक्ट को लागू किया गया है. शिक्षा के अधिकार के तहत धारा 29 में यह निर्देश है कि बच्चे के ऊपर कम भार पड़े, इस के लिए बैग का वजन कम होना चाहिए.

बच्चों को बैग का बोझ न उठाना पड़े, इस के लिए स्कूल के गेट तक अभिभावक खुद ही बोझ उठाते हैं. लेकिन ये बच्चे जितनी ही देर बैग को अपने कंधों पर ढोते हैं, उतना भी नुकसानदायक है. इस से मसल्स पेन, बोन चटकने आदि का खतरा रहता है. शरीर में हड्डी का वजन सब से कम होता है. पूरे शरीर में कोई 3 किलो हड्डियां होती हैं. ऐसे में लो बौडी वेट वाले के ऊपर अतिरिक्त वजन डाला जाए तो इस का असर पूरे शरीर पर दिखता है. हर शरीर का अपना गुरुत्व केंद्र (सैंटर औफ ग्रैविटी) फिक्स होता है. अधिक वजन होने पर गै्रविटी पीछे की ओर शिफ्ट होने लगती है जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है क्योंकि इस से मांसपेशी और हड्डियों पर भार अधिक पड़ता है. बच्चे की पीठ और कमर में प्रौब्लम रहती है. मसल्स में दर्द के साथसाथ बोन के चटकने का खतरा भी रहता है. रीढ़ की हड्डी नीचे की ओर झुक जाती है. 10 से 12 साल के बाद गरदन और नस पर भी असर पड़ता है.

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साइबर कानून एवं अपराध

दिल्ली में एक छात्र द्वारा अपनी महिला मित्र की अश्लील तसवीरें उतार कर एमएमएस बनाने व आगे दूसरे छात्रों द्वारा उस की फिल्म बनाने एवं फिर उसे बाजी डौट कौम द्वारा बेचने का सनसनीखेज मामला एकमात्र मामला नहीं है. ऐसे सैकड़ों मामले पूरे विश्व में खतरनाक ढंग से बढ़ रहे हैं. सूचना क्रांति के विस्तार के साथ ही अपराधों में वृद्धि हुई है, ये साइबर अपराध कंप्यूटर सौफ्टवेयर्स के माध्यम से किए जाते हैं. विश्व में करोड़ों लोग जो इंटरनैट का प्रयोग करते हैं, साइबर अपराध की आशंका से ग्रस्त रहते हैं. साइबर अपराध साधारणत: किसी प्रकार की हिंसा नहीं फैलाते लेकिन लालच, सम्मान और किसी व्यक्ति के चरित्र के कमजोर पहलू के साथ खेल कर विभिन्न अपराधों को जन्म देते हैं. साइबर अपराधों में आपराधिक गतिविधियां जैसे चोरी, धोखा, गबन, अपमान करना आदि सम्मिलित हैं. साइबर अपराध वे गैरकानूनी कार्य हैं जिन में कंप्यूटर का इस्तेमाल होता है तथा इस में सूचना, तकनीकी एवं आपराधिक गतिविधियां सम्मिलित होती हैं. विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों को निम्न प्रकार से बांटा जा सकता है :

व्यक्तिगत अपराध

इस प्रकार के अपराध किसी व्यक्ति या उस की निजी संपत्ति आदि को ले कर हो सकते हैं. इन में इलैक्ट्रौनिक मेल, साइबर स्टौकिंग, अश्लील/आपत्तिजनक सामग्री के इंटरनैट द्वारा प्रसार से हैकिंग/क्रैकिंग या किसी अन्य अपराध में कंप्यूटर का प्रयोग करना, वाइरस फैलाना, इंटरनैट साइट्स पर अतिक्रमण तथा बिना स्वीकृति के किसी व्यक्ति के कंप्यूटर पर गलत या आपराधिक तरीके से कब्जा करना आदि सम्मिलित हैं.

किसी संस्था के विरुद्ध

इस प्रकार के अपराध सामान्यत: किसी सरकारी, निजी संस्था, कंपनी या किसी समूह के खिलाफ हो सकते हैं. ये अपराध भी हैकिंग, क्रैकिंग द्वारा अथवा गैरकानूनी ढंग से सूचनाओं को प्राप्त करने और उन का इस्तेमाल किसी संस्था या सरकार के विरुद्ध कर के किए जाते हैं. पाइरेटेड सौफ्टवेयर का वितरण एवं अन्य प्रकार के गैरकानूनी कंप्यूटर संबंधी कार्यों से संबंधित अपराध इस श्रेणी में आते हैं.

समाज के विरुद्ध

ये अपराध किसी व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध ही सीमित न रह कर संपूर्ण समाज को प्रभावित करते हैं. इस प्रकार के अपराधों में पोर्नोग्राफी तथा अश्लील सामग्री या ट्रैफिकिंग जैसे अपराध शामिल होते हैं.

विभिन्न प्रकार के साइबर अपराध

हैकिंग

यह सब से ज्यादा प्रचलित साइबर अपराध है. सूचना प्रौद्योगिकी ऐक्ट 2000 में इस प्रकार के अपराधों को बताते हुए कहा गया है, ‘‘जो भी जानबूझ कर या बिना जाने किसी गलत कार्य द्वारा पब्लिक या व्यक्ति को हानि पहुंचाता है अथवा पहुंचाने का प्रयास करता है उसे हैकिंग कहते हैं. इस प्रकार के अपराधों में कंप्यूटर पर ही सूचनाओं को गैरकानूनी ढंग से अधिगृहीत कर नुकसान पहुंचाने का कार्य किया जाता है.’’

सुरक्षा से संबंधित अपराध

इंटरनैट तथा नैटवर्क की तेज रफ्तार से वृद्धि के साथ नैटवर्क सुरक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण हो गई है. निजी गुप्त सूचनाओं को आमजन तक प्रचारितप्रसारित करना ही सुरक्षा व्यवस्था से संबंधित अपराधों की श्रेणी में आता है. यह कार्य नैटवर्क पौकेट स्निफर द्वारा किया जा सकता है जो संपूर्ण सूचनाओं को छोटेछोटे टुकड़ों में बांट कर उन का पुन: वितरण और प्रचारप्रसार करते हैं. ये नैटवर्क पौकेट स्निफर एक सौफ्टवेयर तकनीक को विकसित करते हैं तथा उपभोगकर्ता को उपयोगी सूचनाएं ग्रहण करने हेतु खाता संख्या एवं पासवर्ड उपलब्ध करवाते हैं. सुरक्षा व्यवस्था को इस से गंभीर खतरा उत्पन्न होता है.

इंटरनैट पर धोखाधड़ी

यह भी विशेष प्रकार का अपराध है. इंटरनैट कंपनियां इंटरनैट पर अपने उत्पादों की मार्केटिंग करती हैं. खराब उत्पादों की मार्केटिंग के लिए वे अपने ग्राहकों को गलत सूचनाएं दे कर उन्हें फंसाती हैं. इस प्रकार की कई भ्रामक और धोखाधड़ी वाली स्कीम्स को औनलाइन इंटरनैट द्वारा समाचारपत्र आदि द्वारा प्रस्तुत कर गबन करने के अनेक उदाहरण मिलते हैं.

क्रैडिट कार्ड धोखाधड़ी

यद्यपि इंटरनैट द्वारा मुद्रा का स्थानांतरण और लेनदेन करना बहुत आसान हो गया है, वहीं इस तकनीक ने कई प्रकार के साइबर अपराधों को जन्म भी दिया है. इन में मुख्य है, क्रैडिट कार्ड धोखाधड़ी. इस प्रकार के अपराध में किसी कार्डधारक के डिजिटल हस्ताक्षर बना कर उस के कोड नंबर की चोरी की जाती है. भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी ऐक्ट 2000 की धारा 73 के अनुसार इस प्रकार के अपराधों के लिए 2 वर्ष तक का कारावास या 2 लाख रुपए जुर्माना अथवा दोनों दंड निर्धारित हैं.

पोर्नोग्राफी

इंटरनैट पर अश्लील फिल्मी दृश्यों को देखना अब बहुत आसान हो गया है. युवाओं में तो पोर्नोग्राफी का बहुत के्रज है. पोर्नोग्राफी मैटीरियल आसानी से और कम पैसे में प्राप्त भी हो सकता है. मोबाइल फोन की तकनीक में विकास के कारण इन्हें भी कानून की भाषा में कंप्यूटर के समकक्ष माना गया है तथा इस से भी किसी अश्लील सामग्री की रिकौर्डिंग, संग्रहण और उस का आदानप्रदान बहुत आसान हो गया है. आजकल किसी भी फिल्म को तुरंत रिकौर्ड कर एमएमएस अथवा अन्य तरीकों से कुछ ही समय में संपूर्ण विश्व में प्रसारित कर सकते हैं. इस प्रकार इन दृश्यों में छेड़छाड़ अथवा जोड़तोड़ कर अश्लील सामग्री भी तैयार की जा सकती है. इंटरनैट और अन्य तकनीक की इस प्रगति का एक और दुष्प्रभाव इस के द्वारा अश्लील दृश्यों व फिल्मों का बच्चों तक आसानी से पहुंचना है. ऐसा करने वाले भी साइबर अपराधी कहलाते हैं.

सूचना प्रौद्योगिकी ऐक्ट 2000 और पोर्नोग्राफी

साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सूचना प्रौद्योगिकी ऐक्ट 2000 बनाया गया. इस ऐक्ट के तहत अश्लील दृश्यों का प्रचारप्रसार एक दंडनीय साइबर अपराध है. इस ऐक्ट के अनुसार‘जो भी व्यक्ति, संस्था या समूह किसी भी प्रकार की अश्लील सामग्री को प्रकाशित व प्रसारित करने का प्रयास करेगा, जिस से कि किसी व्यक्ति को पढ़ने, सुनने, देखने के लिए प्रेरित किया जा सके अथवा उस के मस्तिष्क में किसी प्रकार की विकृति उत्पन्न कर सके, को इस ऐक्ट के तहत साइबर अपराधी माना जाएगा. उसे 5 वर्ष की कैद या 1 लाख रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान है. दोबारा ऐसा प्रयास करने पर उसे 10 वर्ष के कारावास या 10 लाख रुपए जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान भी किया गया है.’

क्रिप्टोग्राफी, प्राइवेसी और राष्ट्रीय सुरक्षा

इंटरनैट द्वारा लोगों को अपना दृष्टिकोण प्रकट करने और किसी के प्रति टिप्पणी करने का विश्वव्यापी मंच प्राप्त हो गया है. लेकिन इस का अर्थ यह नहीं है कि किसी को अमर्यादित किया जाए या उन की प्राइवेसी में दखलंदाजी की जाए. अगर कोई ऐसा करता है तो वह साइबर अपराधी कहलाएगा. क्रिप्टोग्राफी वास्तव में शब्दों का प्रयोग कर संदेश को इस प्रकार प्रसारित करना है कि मात्र प्रेषक एवं संदेश प्राप्तकर्ता ही उसे समझ सके. इस प्रकार न केवल व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता बनी रहती है बल्कि दूसरों को भी इन कोड शब्दों की जानकारी प्राप्त नहीं होती. आधुनिक युग में इस प्रकार के कार्यों में भी कोडवर्ड की चोरी करने एवं उन संदेशों को गैरकानूनी ढंग से अनाधिकृत व्यक्तियों व कंपनियों तक पहुंचने से व्यावसायिक संगठनों को ही नहीं बल्कि देश की सुरक्षा एजेंसियों के गुप्त कार्यों का पता दुश्मनों को चल जाता है जिस से राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है.

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सहवाग के कहने पर प्रीति ने खरीदा था क्रिस गेल को, अब जिताए दो मैच

समय का चक्र कैसे हालात दिखा देता है इसका ताजा उदाहरण क्रिस गेल हैं. अभी चार महीने पहले ही की बात है जब आईपीएल 2018 की नीलामी में वेस्टइंडीज के धाकड़ बल्लेबाज क्रिस गेल दो करोड़ की बेस प्राइस में बिकने आए थे जिनका अब तक आईपीएल में शानदार रिकौर्ड रहा था. लेकिन दो बार उन्हें इस नीलामी में कोई खरीदार नहीं मिला था, लेकिन आज उन्होंने दो मैच खेल कर 175 रन बना डाले और दोनों में ही वे प्लेयर औफ द मैच रहे. आज क्रिस गेल आईपीएल में फर्श से अर्श पर पहुंच गए है.

गेल की इस छलांग की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. जब दो बार वे बिके बिना रह गए थे तब तीसरी बार पंजाब की मालिक प्रीति जिंटा ने उनपर दांव लगाया तो भी किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. प्रीति ने उन्हें बेस प्राइस पर ही खरीदा. यानि उस समय कोई भी उन पर बोली लगाने को तैयार नहीं था. प्रीति ने गेल पर दांव सहवाग के कहने पर ही लगाया था.

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वहीं आईपीएल में गेल का रिकौर्ड खराब नहीं बल्कि बहुत ही शानदार रहा था. पिछले साल ही एक पारी में सबसे बड़ा स्कोर (167) बनाने वाले क्रिस गेल ने आईपीएल करियर में अब तक सबसे ज्यादा 250 से भी ज्यादा छक्के लगाए थे. पंजाब के मेंटर और डायरेक्टर वीरेंद्र सहवाग ने क्रिस गेल को अंतिम क्षणों में खरीदने की वजह का खुलासा किया था. तब सहवाग ने बताया था कि उनके शानदार स्ट्रोक प्ले और विपक्षी गेंदबाजों को ध्वस्त करने की शानदार ताकत पाकर हमारी टीम एक बढ़िया पैकेज में दिखाई पड़ रही है.

सहवाग के सार अनुमान सही निकले

सहवाग का गेल के बारे में अंदाज बिलकुल सही निकला. पहले दो मैचों में नहीं खिलाने के बाद जब पंजाब ने उन्हें तीसरे मैच में उतारा तो गेल ने साबित कर दिया कि वे आज भी आईपीएल के कितने बड़े खिलाड़ी हैं और उनका वे किसी कोने से नहीं चुके हैं. बावजूद इसके कि पंजाब के पास क्रिस गेल के अलावा एरोन फिंच मार्कस स्टोनिस और डेविड मिलर जैसे खतरनाक विदेशी खिलाड़ी थे और भारतीय खिलड़ियों में टीम के पास युवराज सिंह, मयंक अग्रवाल, केएल राहुल और करुण नायर थे, गेल ने मौका मिलते ही बता दिया कि उनके जैसा अभी तो कोई नहीं है.

दो बार प्लेयर औफ द मैच

गेल ने अपने पहले ही मैच में चेन्नई के खिलाफ 33 गेंदों में 63 रनों की शानदार पारी खेल कर पंजाब की जीत सुनिश्चित की. इसके बाद दूसरे मैच में पहले तीन मैचों में अजेय रही हैदराबाद की टीम के खिलाफ शानदार नाबाद शतक बनाया और पंजाब को दूसरी जीत दिला दी. दोनों मैचों में गेल प्लेयर ऑफ द मैच के खिताब से नवाजे गए.

नीलामी के बाद आईपीएल शुरु होने से पहले गेल के बारे में सहवाग ने संकेत दिए थे कि गेल हर मैच में नहीं खेलेंगे. उन्होंने कहा था, ”क्रिस गेल की ब्रेंड वैल्यू यह बताती है कि वह इस फौर्मेट में कितने प्रभावशाली है. हमने गेल हमारी टीम में ओपनिंग बैकअप आप्शन के तौर पर रहेंगे.”

संवेदनशील पारी रही

गेल का प्रदर्शन हैदराबाद के खिलाफ बहुत ही शानदार रहा. उनके तूफानी शतक की मदद से पंजाब ने हैदराबाद की टीम को 15 रन से हराया जो हैदराबाद की इस सीजन की पहली पराजय थी. ताबड़तोड़ क्रिकेट के बेताज बादशाह क्रिस गेल ने अपने आलोचकों को करारा जवाब देते हुए 63 गेंद में 104 रन बनाए जिसमें 11 छक्के और एक चौका शामिल था. उनकी इस पारी की मदद से पंजाब ने तीन विकेट पर 193 रन बनाए. जवाब में हैदराबाद की टीम 20 ओवर में चार विकेट पर 178 रन ही बना सकी.

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