क्या स्मार्टफोन को विदा कहने का समय आ गया है? दुनिया की कई स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां आजकल चिंतित हैं कि आखिर अचानक बढ़ती मांग क्यों रुक गई और लोगों ने नई तकनीक वाले फोन लेने क्यों कम कर दिए हैं? क्या इस का पर्सनल कंप्यूटर का सा हाल होगा जो घरों से निकल गए हैं और केवल बिजनैस टूल बन कर रह गए हैं? शायद ऐसा ही होना था. हुआ यह कि कंपनियों ने बहुत ज्यादा तकनीक स्मार्टफोनों में भर दी जिस को देख कर अच्छा लगता पर जिस की आवश्यकता नहीं थी. कंज्यूमर्स ने शुरू में तो महंगे फोन खरीदे पर जब लगा कि यह सौदा कुछ कमा कर नहीं दे रहा, तो उन्होंने इसे नकारना शुरू कर दिया है.

आईफोन की बिक्री कम होने की वजह उस की तकनीक हो सकती है. इस में इतनी सारी सुविधाएं हैं कि जब तक ग्राहक उसे समझे फोन ही पुराना होने लगता है. साधारण सा फोटो खींचने वाले कैमरों की तकनीक का आखिर कोई क्या करे? दूसरे आप के फोटो क्यों देखें और कब तक देखें? आप अपनी सैल्फी की कितनी और कब तक संभाल करेंगे? इतिहास क्या उन अरबों फोटोग्राफ्स का इस्तेमाल करेगा, जो इन करोड़ों फोनों ने दुनिया भर में खींचे हैं?

स्मार्टफोन ने जीवन सरल जरूर बनाया है पर प्राइवेसी भी समाप्त कर दी है. लोग यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उन से अपनी कमाई कैसे बढ़ाएं, कैसे सुख बढ़ाएं. हाथ में फोन होने का अर्थ यह नहीं कि आप का कार्य सुधर गया है. इस का अर्थ तो यह भी हो सकता है कि आप काम छोड़ कर बेकार के कौपीपेस्ट मैसेज पढ़ने और दोस्तों के फोटो लाइक करने में समय लगा रहे हैं. आप की उत्पादकता बढ़ने की जगह घट रही है. अनजानों के साथ दोस्ती के चक्कर में आप पास बैठे लोगों को भूल रहे हैं. आप ज्ञान की जगह चुटकुलों और बेकार के उपदेशों में अपना समय बरबाद कर रहे हैं.

स्मार्टफोन लगता है अपनी ओवर स्मार्टनैस का शिकार हो रहे हैं. पहले तार से बंधे फोन से चिपके रहने के कारण आप को भी बंधना पड़ता था, स्मार्टफोन ने उस से मुक्ति दिलाई पर आप को अब स्क्रीन में कैद कर डाला जो हर कुछ सैकंड में चमक उठती है. दुनिया को नई तकनीक चाहिए पर अच्छे प्रशासन के लिए, ज्यादा उत्पादन के लिए, फालतू की बकवास के लिए नहीं.

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