विशाल के पिता रेलवे में हैं. उन की जौब ट्रांसफरेबल है. विशाल जब 10वीं कक्षा में पढ़ रहा था तब उस के पिता का ट्रांसफर हो गया. परिणामस्वरूप न केवल उसे अपना स्कूल छोड़ना पड़ा बल्कि अपने दोस्तों को भी अलविदा कहना पड़ा. अब उस के सामने सब से बड़ी समस्या नए शहर और नए स्कूल में नए दोस्तों के साथ सामंजस्य बैठाने की थी. शुरू में उसे नया स्कूल और वहां का माहौल अटपटा लगा, क्योंकि उसे तो अपने पुराने स्कूल की आदत थी. यहां न वह किसी को जानता था और न ही कोई उसे. उस ने आगे आ कर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और कुछ ही दिनों में यहां नए मित्र बना लिए और उन से इस कदर घुलमिल गया जैसे बरसों पुरानी दोस्ती हो.
सच भी है, नई जगह, नए स्कूल में दोस्त बनाने की पहल तो आप को ही करनी पड़ेगी. किसी से भी दोस्ती करने में कोई झिझक नहीं करनी चाहिए. इस के लिए पहले सामने वाले से हाथ मिलाएं और उसे अपना परिचय दें तथा उस का परिचय प्राप्त करें. उस पर अपनी यह मनशा जाहिर करें कि आप उस से दोस्ती करने के इच्छुक हैं और उसे दोस्त बना कर आप को खुशी होगी. नए स्कूल में अपने सहपाठियों से दोस्ती करने के लिए उन के साथ खेलेंकूदें, कार्यक्रमों में हिस्सा लें, किताबकौपियों और नोट्स का आदानप्रदान करें. जब आप उन से बात करेंगे तभी आप को एकदूसरे को जानने का मौका मिलेगा. इस से दोस्ती की राह आसान हो जाएगी.
अपने जन्मदिन या खास अवसरों पर उन्हें अपने यहां आमंत्रित करें. ईद, होली, दीपावली, क्रिसमस आदि त्योहारों पर उन्हें बधाई दें. नए स्कूल में दोस्त बनाने के लिए जरूरी है कि आप विभिन्न ऐक्टिविटीज में हिस्सा लें. इस से आप को एकदूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने का मौका मिलेगा. एनसीसी और एनएसएस ऐसे माध्यम हैं जिन से जुड़ने पर नए स्कूल में नए दोस्त बनाना आसान हो जाता है, क्योंकि ये दोनों ही संगठन सामूहिक भावना पर आधारित होते हैं. इन में एकसाथ काम करने का अवसर मिलता है. जब कभी इन के शिविर आयोजित हों, उन में अवश्य भाग लें. इन शिविरों में साथ समय बिताने से दोस्ती में मजबूती आती है. इसी प्रकार स्कूल की खेल गतिविधियों में भाग लें. इस से आप को नए दोस्त बनाने के भरपूर अवसर मिलेंगे.