देश में महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं. दरिंदे तो अब मासूम बच्चियों तक को नहीं छोड़ते. खुफिया एजेंसी का दावा है कि इंटरनैट का प्रयोग करने वाले 60 फीसदी लोग अश्लील साइटों का इस्तेमाल करते हैं. खुफिया विभाग ने 546 साइटों को ब्लौक करने की सिफारिश भी सरकार से की है. मनोचिकित्सक भी मानते हैं कि बारबार अश्लील साइटों को देख कर अपराधी के मन में विकार आ जाता है. वह कई बार उसी तरह से सैक्स करना चाहता है. हालांकि देखने वाली बात यह है कि बलात्कार की घटनाएं वहां होती हैं जहां इंटरनैट या फेसबुक जैसी चीजें नहीं हैं. ऐसे में केवल इंटरनैट को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता. यह भी सच है कि बीते कुछ समय में इंटरनैट और फेसबुक में अश्लील सामग्री परोसने का काम तेजी से बढ़ा है.

एक दौर ऐसा था जब सड़कों पर किताबों की दुकान लगाने वाले पीली पन्नी में बंद सैक्स की कुछ किताबें बेचते थे. ऊपर से रंगीन दिखने वाली इन किताबों के अंदर सबकुछ ब्लैक ऐंड ह्वाइट होता था. चित्रों के नाम पर खजुराहो की मूर्तियों के फोटो होते थे. सैक्स के नाम पर वात्स्यायन के 84 आसनों का जिक्र होता था. इसी दौर में मस्तराम टाइप के कुछ लेखकों की सैक्सी कहानियों वाली किताबें आने लगीं जिन के अंदर भी फोटो नहीं होते थे. कवर पर रंगीन फोटो विदेशी महिलाओं की होती थीं. 64 पन्नों की इस किताब को लोग ‘चौंसठिया किताब’ के नाम से भी जानते थे. इस तरह की किताबों में जो कहानियां होती थीं उन में फूहड़ता ज्यादा होती थी. दिल्ली के बाजार में सैकड़े के भाव में बिकने वाली ये किताबें उत्तर प्रदेश और बिहार के बाजार में 10 रुपए से ले कर 35-40 रुपए तक में बेची जाती थीं. इन किताबों में अनबिकी किताबों का कोई चक्कर नहीं होता था. सब से ज्यादा मुनाफा फुटकर बेचने वालों को होता था.

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