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इंग्लैंड के औलराउंडर खिलाड़ी बेन स्टोक्स की भारत के खिलाफ वनडे सीरीज में वापसी

भारत और आयरलैंड का टी20 सीरीज दौरा खत्म हो चुका है. अब सभी की नजरें आगामी भारत- इंग्लैंड दौरे पर है जिसकी शुरुआत तीन टी20 मैचों की सीरीज पर है जो कि मंगलवार 3 जुलाई को होने जा रही है. इस सीरीज में इंग्लैंड के चर्चित हरफनमौला खिलाड़ी बेन स्टोक्स पहले ही बाहर हो चुके हैं लेकिन अभी तक  इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने उनके वनडे सीरीज पर खेल पाने की स्थिति में कोई निर्णय नहीं लिया था.

अबईसीबी ने अगले माह भारत के साथ होने वाली तीन मैचों की वनडे सीरीज के लिए  बेन स्टोक्स को 14 सदस्यीय टीम में शामिल किया है. वेबसाइट ईएसपीएन क्रिकइंफो की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टोक्स मई में पाकिस्तान के खिलाफ दूसरे टेस्ट में हार्मस्ट्रिंग चोट का शिकार हो गए थे. इसके बाद वह स्कौटलैंड और औस्ट्रेलिया के खिलाफ सीमित ओवरों की सीरीज में टीम का हिस्सा नहीं थे.

दस दिन पहले ही खबर आई थी कि स्टोक्स और तेज गेंदबाज क्रिस वोक्स चोट के कारण औस्ट्रेलिया के खिलाफ मौजूदा एकदिवसीय सीरीज के अंतिम दो मैचों से बाहर हो गए हैं उसके बाद उनके भारत दौरे के  लिए उपलब्ध होने बारे में इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड को बयान देना पड़ा.

ईसीबी को स्पष्टीकरण देते हुए बताया था कि स्टोक्स की मांसपेशियों में खिंचाव आ गया है और उम्मीद जताई गई थी कि वह भारत के खिलाफ अगले महीने होने वाली टी 20 सीरीज के लिए फिट हो जाएंगे. वहीं वोक्स भारत वनडे सीरीज तक बाहर रहेंगे. लेकिन उसके बाद स्टोक्स को टी20 इंग्लैंड टीम में शामिल नहीं किया गया.

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इंग्लैंड दौरे पर भारत 12 जुलाई से तीन मैचों की वनडे सीरीज खेलेगा. लेकिन स्टोक्स इससे पहले पांच जुलाई को हेडिंग्ले में यौर्कशायर के खिलाफ डरहम के लिए मैच खेलकर अपनी फिटनेस साबित करेंगे. स्टोक्स ने घर में अपना आखिरी वनडे सितंबर 2017 में खेला था. स्टोक्स अगर वनडे सीरीज शुरू से पहले पूरी तरह से फिट हो जाते हैं तो वह भारत के खिलाफ तीन मैचों की टी-20 में भी वापसी कर सकते हैं. स्टोक्स के वापसी करने से सैम बिलिंग्स को बाहर बैठना पड़ा है जिन्होंने पिछले दो मैचों में 12 और 18 रन बनाए थे.

इंग्लैंड ने अपने 14 सदस्यीय टीम में तेज गेंदबाज क्रिस को मौका नहीं दिया है जो अभी भी चोट से उबर रहे हैं. वहीं आस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे में पदार्पण करने वाले सैम कुरेन को भी टीम में शामिल नहीं किया गया है, जबकि उनके भाई टौम कुरेन सीरीज का हिस्सा होंगे.

टीम इंडिया के लिए काफी अहम दौरा माना जा रहा है इंग्लैंड दौरा

टीम इंडिया के लिए इंग्लैंड दौरा कड़ा इम्तिहान माना जा रहा है. विराट कोहली को साबित करना है कि उनकी टीम के खिलाड़ी खासतौर पर दिग्गज बल्लेबाज घर के शेर नहीं हैं. टीम इंडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती इंग्लैंड की परिस्थितियों में ढलने की है. वहीं दूसरी ओर भारत के गेंदबाजों के लिए इंग्लैंड की स्विंग गेंदबाजी के लिए मिलने वाले अनुकूल माहौल का फायदा उठाने की भी चुनौती होने वाली है. उम्मीद की जा रही है कि भुवनेश्वर कुमार को इन हालातों का लाभ मिल सकता है और वे शानदार गेंदबाजी कर सकते हैं. भारत के रिस्ट स्पिनर्स भी आयरलैंड के खिलाफ अपने प्रदर्शन से काफी उत्साहित हैं.

टीम इंग्लैंड : इयोन मोर्गन (कप्तान), मोइन अली, जौनी बेयरस्टो, जैक बाल, जोस बटलर (विकेटकीपर), टौम कुरेन, एलेक्स हेल्स, लियाम प्लंकेट, आदिल राशिद, जो रूट, जेसन रौय, बेन स्टोक्स, डेविड विली, मार्क वुड.

भारत आयरलैंड सीरीज जीतने के बाद बढ़ी कोहली की टेंशन

भारत ने दूसरे टी-20 मैच में आयरलैंड पर 143 रन की बड़ी जीत दर्ज की. ये टी-20 क्रिकेट में भारत की सबसे बड़ी विजय रही. इसी के साथ भारत ने दो मैचों की सीरीज़ में मेजबान टीम का क्लीन स्वीप करते हुए श्रृंख्ला भी अपने नाम कर ली. लेकिन इस जीत ने भारतीय कप्तान विराट कोहली की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

सीरीज जीतने के बाद कप्तान कोहली ने कहा कि  ‘अब तो मेरा सिरदर्द शुरू हो गया है. इसकी वजह है कि किस खिलाड़ी को टीम में शामिल करूं और किसे नहीं. सभी ने शानदार बल्लेबाजी की हैं, वैसे यह अच्छी समस्या है. यह भारतीय क्रिकेट का अच्छा दौर है, जहां युवा खिलाड़ी मिले हुए मौके को दोनों हाथों से भुना रहे हैं.’

उन्होंने कहा, टीम में सभी खिलाड़ी समान रूप से मेहनत कर रहे हैं और कोई भी खिलाड़ी अपनी जगह को पक्की मानकर नहीं चलता है. सभी खिलाड़ी जिम्मेदारी उठा रहे है जो सबसे अच्छी बात है. मुझे किसी भी खिलाड़ी को प्रेरित नहीं करना होता है, सभी अपने आप बेहतर प्रदर्शन के लिए कटिबद्ध हैं.

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इसी के साथ कोहली ने कहा, हमारी बेंच स्ट्रैंथ ने दिखा दिया कि वो कितनी मजबूत है, विपक्षी टीम हमारे लिए मायने नहीं रखती है और इंग्लैंड के साथ भी ऐसा ही होगा. वहां पिचें अच्छी होगी और हमारे बल्लेबाज उनके गेंदबाजों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार रहेंगे. हमारे पास दो कलाई के स्पिनर हैं जो लाभदायक साबित होगा. यदि हमने क्षमता के अनुरुप प्रदर्शन किया तो यह सीरीज बहुत रोमांचक रहेगी. इंग्लैंड बहुत मजबूत टीम है, लेकिन हमारे पास उन्हें चुनौती देने की क्षमता है.

दूसरे टी20 मैच में भारत ने केएल राहुल को मौका दिया और राहुल ने शानदार पारी खेलते हुए 36 गेंदों में 70 रन ठोक दिए. रैना ने 69 रनों का योगदान दिया तो अंत में हार्दिक पांड्‍या ने 9 गेंदों में तूफानी अंदाज में 32 रन बनाए. वहीं गेदबाज़ी में भी टीम इंडिया ने बदलाव किया और इस मैच में उमेश यादव को  मौका दिया. उन्होंने भी बेहतरीन गेंदबाज़ी करते मेजबान टीम को दो शुरुआती झटके दिए. उमेश ने 2 ओवर में 19 रन देकर 2 विकेट लिए.

काले धन को सुरक्षित रखने के लिये इस तरीके से खोला जाता है स्विस बैंक अकाउंट

स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का पैसा वर्ष 2017 में 50 फीसदी बढ़कर 1.01 अरब सीएचएफ यानी स्विस फ्रैंक (7 हजार करोड़ रुपए) हो गया. हालांकि, वर्ष 2006 के अंत में भारतीयों का जमा पैसा 650 करोड़ स्विस फ्रैंक (23,000 करोड़ रुपए) के अपने रिकौर्ड हाई पर था. इसे देखते हुए यह सवाल उठना लाजमी है कि ऐसा क्या है, जिसकी वजह से सभी पैसे वाले लोग स्विस बैंक में ही खाता खोलते हैं.

काले धन और स्विस बैंकों को लेकर कई खबरें तो पढ़ी होंगी, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह कैसे काम करता है. सवाल यह भी है क्या केवल बड़े धन कुबेर ही स्विस बैंक में खाता खोल सकते है? जी नहीं, स्विस बैंक में कोई भी अपना खाता खोल सकता है. आइए जानते हैं स्विस बैंक में कैसे खुलवाया जा सकता है खाता.

ऐसे खुलवा सकते हैं खाता

आप स्विटजरलैंड में स्थित किसी भी बैंक में खाता खोलने के लिए औनलाइन आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए बैंक आपके पहचान संबंधी दस्तावेजों को कौरेस्पोंडेंस के जरिए मंगाता है. इसे आप ई-मेल के जरिए भी भेज सकते हैं. केवल बिना नाम वाला खाता खोलने के लिए ही आपको स्विटजरलैंड जाना जरूरी होता है.

काले धन रखने के लिए ‘नंबर अकाउंट’

इकोनौमिक टाइम्स के मुताबिक, काला धन रखने वाले जो अकाउंट खुलवाते हैं, उसे नंबर अकाउंट कहा जाता है. स्विस बैंक में अकाउंट 68 लाख रुपए से खुलता है. इसमें ट्रांसजैक्शन के वक्त कस्टमर के नाम के बजाय सिर्फ उसे दी गई नंबर आईडी का इस्तेमाल होता है. इसके लिए स्विट्जरलैंड के बैंक में फिजिकल तौर पर जाना जरूरी हो जाता है. 20,000 रुपए हर साल इस अकाउंट की मेंटनेंस के लिए जाते हैं.

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तीन तरह के खुलते हैं अकाउंट

आपके पहचान संबंधी दस्तावेजों का किसी सरकारी एजेंसी से प्रमाणित होना जरूरी है, जिसके आधार पर स्विटजरलैंड के बैंक में आप पर्सनल अकाउंट, सेविंग्स अकाउंट और इन्वेस्टमेंट अकाउंट सहित दूसरे खाते खुलवा सकते हैं. बैंक रिकौर्ड के लिए कई तरह के डौक्युमेंट्स मांगते हैं. इनमें पासपोर्ट की औथेन्टिक कौपी, कंपनी के डौक्युमेंट, प्रफेशनल लाइसेंस जरूरी होता है.

बिना नाम के भी खुलते हैं खाते

स्विट्जरलैंड में करीब 4003 बैंक हैं. ये सभी बैंक गोपनीयता कानून की धारा 47 के तहत बैंक अकाउंट खुलवाने वाले की गोपनीयता रखते हैं. अपनी गोपनीयता की वजह से दुनिया भर में लोकप्रिय स्विस बैंक ग्राहकों को नंबर के आधार पर भी खाता खोलने का मौका देते हैं, यानी कि खाते पर आपका नाम नहीं होगा.

नंबर से ही होता है सारा लेन-देन

सारा लेन-देन नंबर के आधार पर होगा, लेकिन इस तरह का खाता खोलने की प्रक्रिया काफी सख्त है. खाता खोलने वाले को खुद बैंक में जाकर अपनी पूरी जानकारी देनी पड़ती है. इसके अलावा यह खाता न्यूनतम 1 लाख डौलर की पूंजी से खोला जा सकता है. खाता धारक के नाम की जानकारी केवल बैंक के कुछ चुनिंदा वरिष्ठ अधिकारियों के पास होती है.

कोई भी वयस्क खोल सकता है खाता

कोई भी व्यक्ति, जिसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है, वह स्विस बैंक में अपना खाता खोल सकता है. भारतीय भी इसी कड़ी में अपना खाता खोल सकते हैं. हालांकि, खाता खोलने का अंतिम अधिकार दूसरे बैंकों की तरह स्विस बैंक के पास होता है. बैंक खाता खोलते वक्त खास तौर से पूंजी के स्रोत आदि पर कड़ी पड़ताल करता है, जिसमें राजनीतिक शख्सियत आदि का खाता खोलते वक्त खास पड़ताल की जाती है.

स्विटजरलैंड में हैं 400 बैंक

स्विटजरलैंड में करीब 400 बैंक हैं, जो स्विस बैंक के रूप में जाने जाते हैं. इसमें से दुनिया भर में यूनाइटेड बैंक औफ स्विटजरलैंड (यूबीएस) और क्रेडिट सुईस समूह सबसे लोकप्रिय बैंक हैं. इन बैंकों के पास स्विटजरलैंड के कुल बैंकों की 50 फीसदी से ज्यादा बैलेंसशीट है.

भारतीयों पर लगते हैं RBI और FEMA कानून

रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक, जिस भारतीय का विदेशी बैंक में खाता है, वह उसमें साल में 1.25 लाख डौलर तक जमा कर सकता है. इसके अलावा कंपनियों के खातों पर फेमा कानून लागू होता है. खाते में लेन-देने को लेकर प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को छूट मिलती है.

अब इंस्टाग्राम स्टोरीज होंगी और भी दिलचस्प

इंस्टाग्राम यूजर्स के लिए एक खुशखबरी है क्योंकि फोटो और वीडियो शेयरिंग सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इंस्टा पर एक नया फीचर आने वाला है. यह फीचर खासतौर पर स्टोरीज के लिए है जिसमें फेसबुक ने पिछले कुछ महीनों में काफी बदलाव किए हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक या इंस्टा हर जगह स्टोरी फीचर तेजी से पौपुलर हो रहे हैं.

इंस्टाग्राम ने अपने आफिशियल ब्लौगपोस्ट में कहा है कि अब यूजर्स स्टोरी में मोमेंट्स के हिसाब से साउंडट्रैक भी ऐड कर सकते हैं. कंपनी के मुताबिक हर दिन 400 मिलियन इंस्टाग्राम स्टोरीज इस्तेमाल की जाती हैं.

स्टोरीज में साउंडट्रैक ऐड करने के लिए यूजर्स को फोटो या वीडियो के बाद add sticker पर क्लिक करना होगा. यहां आपको एक नया म्यूजिक आइकान दिखेगा. इसे टैप करना और आपको हजारों गानों की लाइब्रेरी दिखेगी. आप चाहें तो गाने सर्च भी कर सकते हैं. पौपुलर टैब भी है जिनमें से आप लोकप्रिय गाने चुन सकेंगे. यहां प्रीव्यू का भी विकल्प मिलेगा ताकि आप इसे यूज करने से पहले सुन सकें. एक बार साउंड ट्रैक सेलेक्ट कर लिया है तो आप स्टोरी के बेस्ट पार्ट के लिहाज से गाने को फास्ट फौर्वर्ड और रिवाइंड भी कर सकते हैं.

फेसबुक की सहायक कंपनी इंस्टाग्राम ने कहा है कि कंपनी हर दिन म्यूज़िक लाइब्रेरी में गाने ऐड कर रही है. फिलहाल ये फीचर दुनिया भर के 51 देशों में शुरू किया जा रहा है. वीडियो कैप्चर करने से पहले गाने चुनने वाला फीचर फिलहाल आईफोन यूजर्स के लिए ही है और जल्द ही एंड्रायड में भी दिया जाएगा. कंपनी ने कहा है कि जल्द ही इसे दुनिया भर के यूजर्स को दिया जाएगा.

इतना ही नहीं इस नए फीचर के तहत अगर आप चाहें तो वीडियो कैप्चर करने से पहले ही गाने चुन सकते हैं. इसके लिए कैमरा ओपन करके रिकार्ड बटन के नीचे स्वाइप टू न्यू म्यूजिक करना है. यहां से गाने सर्च करें और जिस पार्ट को सेलेक्ट करना है उसे चुने और वीडियो रिकौर्ड करें गाना बैकग्राउंट में चलता रहेगा. यानी अगर कोई आपकी स्टोरी देख रहा है तो उसे वीडियो या फोटो के बैकग्राउंड में वो म्यूजिक भी सुनाई देगा जिसे आपने रिकार्ड किया है. गाने का टाइटल भी उन्हें उस वीडियो या फोटो पर स्टीकर्स के शक्ल में दिखेगा.

शर्मनाक : लाठीतंत्र की ओर लौटता देश

देश में ऐसी बहुत सारी घटनाएं घट रही हैं जिन को देख कर यह साफ हो जाता है कि लोकतंत्र अब लाठीतंत्र की ओर बढ़ता जा रहा है. इस के पीछे धर्म के पाखंड को मजबूत करने की सोच साफतौर पर नजर आती है. इस को धार्मिक अंधविश्वास के डंडे के जोर पर तरहतरह से थोपा जा रहा है.

साल 2012 की एक घटना है.  म्यांमार में बौद्धों और मुसलिम संघर्ष की प्रतिक्रिया उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देखने को मिली थी. कट्टरपंथियों के उकसावे पर सैकड़ों की भीड़ लखनऊ के पक्का पुल पर जमा हुई थी. लोग लाठी, लोहे की छड़, छुरे और तमंचों से लैस हो कर आए थे.

लाठीतंत्र की अगुआ बनी भीड़ ने सब से पहले बुद्धा पार्क में महात्मा बुद्ध की मूर्ति को तोड़ा. इस के बाद शहीद स्मारक पर तोड़फोड़ हुई. वहां से लोग विधानसभा के पास आए और वहां धरना दे रहे बौद्ध समाज के अशोक चंद्र से मारपीट की.

देखा जाए तो म्यांमार की घटना में न तो लखनऊ के लोग शामिल थे, न ही यहां लाठीतंत्र अपनाने से म्यांमार में कोई असर पड़ने वाला था. पक्का पुल से विधान सभा भवन की दूरी महज 6 किलोमीटर है. भीड़ इतनी दूर बाजारों में तोड़फोड़ करते हुए बढ़ रही थी और प्रशासन मजबूर था.

भीड़ ने न केवल तोड़फोड़ की बल्कि पार्क में खेल रहे बच्चों और औरतों से बदतमीजी भी की. इस मामले के 6 साल बीत जाने के बाद भी कोई इंसाफ नहीं मिल सका है.

एससीएसटी आयोग का अध्यक्ष बनने के बाद बृज लाल ने इस घटना को संज्ञान में लिया और लखनऊ के एसएसपी से घटना के बाद उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी.

घटना के समय प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी. उन पर भी घटना को दबाने का आरोप है. देखने वाली बात यह है कि अब इस मामले में क्या होता है? सरकार किसी की भी हो, लाठीतंत्र हमेशा हावी होता है. पूरे देश में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं.

इस तरह की ज्यादातर घटनाओं में धार्मिक और जातीय वजह अहम होती हैं. 1-2 घटनाओं के घटने से बाकी लोगों के हौसले बढ़ते हैं जिस से धीरेधीरे अब ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं.

बढ़ता है हौसला

इतिहास गवाह है कि लाठीतंत्र के आगे सरकारें झुकती रही हैं. वे किए गए वादों से मुकर जाती हैं. कानून अपना राज स्थापित नहीं कर पाता और प्रशासन लाचार हो जाता है. इस तरह की घटनाओं में इंसाफ नहीं मिलता. अगर मिलता भी है तो आधाअधूरा.

साल 1992 के बाद राम मंदिर का आंदोलन इस तरह के भीड़तंत्र का एक उदाहरण है. उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दे कर कहा था कि अयोध्या में कुछ नहीं होने पाएगा, पर भीड़तंत्र ने लाठीतंत्र के जोर पर विवादित ढांचा ढहा दिया.

26 साल बीत जाने के बाद भी इस का फैसला नहीं आ पाया है. ऐसी घटनाओं से लाठीतंत्र को बढ़ावा मिलता है. साल 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा इस का सब से बड़ा उदाहरण है जिस में उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गुजरात के मुख्यमंत्री को ‘राजधर्म’ का पालन करने की सीख देनी पड़ी थी.

धीरेधीरे इस तरह की घटनाओं ने तेजी पकड़नी शुरू की. इन का दायरा बढ़ने लगा. लोग एकजुट हो कर इस तरह की घटनाआें को अंजाम देने लगे.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में एक समुदाय को मारने की घटनाएं लाठीतंत्र का ही उदाहरण हैं. जहां पर एक समुदाय के खिलाफ हिंसा होती रही और बाकी समाज चुप्पी साधे रहा.

पहले इस तरह की गिनीचुनी घटनाएं घटती थीं, पर अब इन की तादाद बढ़ती जा रही है. गौरक्षा के नाम पर ऐसी तमाम घटनाएं घटी हैं जिन में लाठीतंत्र का असर देखने को मिला.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अखलाक की हत्या इस का प्रमुख उदाहरण है. उत्तर प्रदेश की ही तरह राजस्थान, हरियाणा और दूसरे प्रदेशों में भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं. इन में सरेआम लोगों की पिटाई और हत्या तक की गई.

साल 2008 में गुर्जर समाज ने पिछड़े तबके के बजाय खुद को दलित जाति में शामिल किए जाने को ले कर आंदोलन किया था. तब पुलिस और आंदोलन करने वालों के बीच हिंसक झड़पों में तकरीबन 37 लोगों की मौतें हुई थीं.

साल 2015 में गुजरात में पाटीदार समाज ने आरक्षण पाने के लिए आंदोलन किया था. 25 अगस्त को अहमदाबाद में हुए सब से बड़े प्रदर्शन में जनजीवन ठप हो गया था.

अगस्त से सितंबर तक की घटनाओं में 14 लोगों की मौतें हो गई थीं. 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. बहुत सारी बसें जला दी गई थीं. केवल अहमदाबाद शहर में ही 12 करोड़ रुपए से ऊपर का नुकसान हुआ था.

आरक्षण पाने के लिए जाट समुदाय ने साल 2016 में आंदोलन किया था. हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में 340 अरब रुपए का नुकसान हुआ था. रेलवे का तकरीबन 60 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था. तकरीबन ढाई दर्जन लोग मारे गए थे.

आंध्र प्रदेश में कापू आंदोलन हुआ. कापू समुदाय ने खुद को पिछड़ी जाति में शामिल किए जाने की मांग को ले कर आंदोलन छेड़ा और रेलवे लाइन और हाईवे को बंद कर दिया. ‘रत्नाचंल ऐक्सप्रैस’ रेलगाड़ी की कई बोगियों में आग लगा दी गई थी. इतना ही नहीं, सिक्योरिटी में लगे आरपीएफ के जवानों पर भी हमला किया गया.

अगस्त, 2017 में हरियाणा के पंचकूला में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरुमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद उपजी हिंसा में 29 लोगों की मौत और 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए.

इसी तरह फिल्म ‘पद्मावत’ के विरोध में राजस्थान में करणी सेना ने फिल्म के सैट पर तोड़फोड़ की. जनवरी, 2018 में जब यह फिल्म रिलीज हुई तो विरोध में हिंसक घटनाएं हुईं.

अप्रैल, 2018 में दलित ऐक्ट में संशोधन के विरोध में हिंसा हुई. वह भी लाठीतंत्र का ही उदाहरण है.

क्यों नहीं बदल रहे हालात

देश की आजादी के बाद भारत को एक लोकतांत्रिक देश का दर्जा मिला. शांति और अहिंसा को देश का मूल स्वरूप रखा गया. आजादी की लड़ाई के समय महात्मा गांधी ने अहिंसा का सहारा ले कर अंगरेजों को देश छोड़ने पर मजबूर किया था. गांधीजी ने कई ऐसे आंदोलन को वापस लिया जिस में हिंसा होने लगी थी.

आजादी के समय अहिंसा ने अपना काम किया और आजादी के बाद जब देश को ज्यादा संविधान का पालन करना चाहिए था तब हिंसक घटनाएं घटने लगीं. इन में देश में होने वाले चुनावों का रोल भी काफी असरदार होता है.

अगर 1977 और 1984 के चुनावों को छोड़ दें तो हर चुनाव में जातिधर्म का ही बोलबाला रहा है. राजनीति धर्म और जाति पर केंद्रित होती है. जीत के लिए जाति और धर्म का सहारा लिया जाने लगा. इस की वजह से खेमेबंदी शुरू हो गई और लाठीतंत्र के खिलाफ कदम उठाना मुश्किल हो गया.

धर्म की कहानियों से शिक्षा लेने वाले समाज को दिखता है कि धर्म में ऐसी बहुत सी घटनाएं घटी हैं जहां पर अपनी बात को मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया.

देश के सब से लोकप्रिय पौराणिक ग्रंथ ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ इस से भरे पड़े हैं. ‘रामायण’ में राजा बलि का उदाहरण देखें तो पता चलता है कि अपनी बात को मनवाने के लिए राम ने उस से युद्ध किया और उस को मार कर बलि का राज्य उस के छोटे भाई सुग्रीव को दे दिया. शूर्पणखा ने जब लक्ष्मण के सामने प्रणय निवेदन किया तो लक्ष्मण ने  सबक सिखाने के लिए उस की नाक काट ली.

धार्मिक ग्रंथों में कई ऐसी कहानियां हैं जिन में यह पता चलता है कि अपनी बात को मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लिया जाता है. इन कहानियों को पढ़ कर लोगों ने अब हिंसा का ही सहारा ले लिया है. उन को जब भी राज्य से शिकायत होती है वे हिंसा का सहारा लेते हैं.

यह बात और है कि हिंसा का सहारा ले कर चले आंदोलन कभी कामयाब नहीं होते. साल 2012 का अन्ना आंदोलन वर्तमान समय में इस का उदाहरण है.

कांग्रेस की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय में लोकपाल बिल को ले कर यह आंदोलन इतना प्रभावी हुआ कि कांग्रेस पूरी तरह से सरकार से बाहर हो गई. भाजपा कांग्रेस के विकल्प के रूप में सरकार बनाने में कामयाब हो गई.

सत्ता में आने के बाद भाजपा इस बात से अनजान है. उस के राज में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं जिन में हिंसा का सहारा लिया गया था.

भाजपा चाहती तो इन को रोक सकती थी. पर उस ने वोट बैंक का फायदा लेने के लिए ऐसा नहीं किया. आज सोशल मीडिया का दौर है जिस में किसी भी घटना की प्रतिक्रिया बड़ी तेजी से सामने आती है. इस से हिंसा और भड़क जाती है. भीड़ और लाठीतंत्र एकदूसरे के पूरक हो गए हैं.

संविधान के मुताबिक, लोकतंत्र में सभी को इज्जत और इंसाफ मिलना चाहिए. इस की हिफाजत तभी मुमकिन है जब राज करने वालों की मनमानी पर रोक लगे या उन की नीयत साफ हो. जब तक वोट बैंक और उस से होने वाले नफानुकसान को देख कर फैसले होंगे तब तक इंसाफ नहीं मिलेगा. भीड़ लाठी ले कर आएगी और अपने हिसाब से काम करने को मजबूर कर देगी. ऐसा लाठीतंत्र किसी के भी फायदे में नहीं है.

ट्रंप-किम भेंट

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बिगडै़ल देश उत्तर कोरिया को मेज पर बुला व बैठा कर उस से परमाणु नियंत्रण समझौता कर के सिद्ध कर दिया है कि आज भी अमेरिका की चल रही है और उस के जैसे सिरफिरे, बचकाने व्यवहार वाले राष्ट्रपति भी कई बार अनूठे काम कर जाते हैं. किम इल सुंग के पोते किम जोंग उन ने सिंगापुर आ कर न केवल समझौतों पर हस्ताक्षर किए, बल्कि अपने देश उत्तर कोरिया को दूसरों का खतरा न बनने देने का वादा भी किया. उत्तर कोरिया कई दशकों से परमाणु बम बना रहा था और पाकिस्तान, ईरान आदि की सहायता से दुनियाभर में हर समय एक खतरा बना हुआ था कि कहीं उस का खब्ती, जिद्दी शासक न जाने कब इन बमों का दुरुपयोग कर डाले. अमेरिका उस का दुश्मन बना हुआ था क्योंकि 1953 में उसी ने कोरिया का विभाजन किया था जब अमेरिकी सेनाओं ने उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया को जबरन कम्युनिस्ट बनाने से रोका था.

उत्तर कोरिया के शासक तभी से दक्षिण कोरिया समेत अमेरिका और पश्चिमी देशों को अपना दुश्मन मानते आ रहे हैं पर चीन से उन की लगातार बनती रही. पिछले साल तक बयानों के बमों से उत्तर कोरिया और अमेरिका सारी दुनिया को परमाणु युद्ध के खतरे से डराते रहे थे. पर इस साल के शुरू में न जाने क्यों और कैसे किम जोंग उन का हृदयपरिवर्तन हुआ और उन्होंने अमेरिकी बंदियों को छोड़ा, चीन की यात्रा की, बेहद सौहार्दपूर्ण तरीके से सीमा के निकट दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मुलाकात की और सिंगापुर में अमेरिकी राष्ट्रपति से बातचीत कर अहम फैसला लिया. ट्रंप व किम की सिंगापुर में 12 जून को हुई मुलाकात दुनियाभर में फुटबौल मैचों से ज्यादा रुचि से देखी गई. अब दुनिया राहत की सांस ले सकती है. तानाशाह सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी, ओसामा बिन लादेन की मौतों के बाद कठोर व कट्टर शासक किम का दोस्ताना हाथ बढ़ाना एक सुखद आश्चर्य की बात है. यह दिन बहुत सालों तक याद रहेगा.

उत्तर कोरिया के लिए यह समझौता वरदान साबित हो सकता है. उत्तर कोरिया के निवासी दक्षिण कोरिया में रह रहे अपने सगेसंबंधियों की तरह विकास की दौड़ में शामिल हो सकते हैं. वे हालांकि हमेशा ही पीछे रहेंगे पर फिर भी जिस 19वीं सदी में वे रह रहे हैं, वह स्थिति अब ज्यादा समय तक नहीं रहेगी. डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अपने पर लगे बहुत से धब्बों को धो लिया है और शायद वे अमेरिका में अब और ज्यादा स्वीकारे जाने लगेंगे.

सूना आसमान (अंतिम भाग) : क्या अनुज अमिता को हमसफर बना पाया

पूर्वकथा :

अमिता और अनुज दोनों बाल्यकाल से दोस्त होते हैं और धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती है, लेकिन बाद में दोनों का अलगअलग स्कूल में ऐडमिशन हो जाता है और उन का मिलनाजुलना कम हो जाता है. क्या अनुज अमिता को अपनी हमसफर बना पाया.

आगे पढ़िए…

मैं अमिता के घर कभी नहीं गया था, लेकिन बहुत सोचविचार कर एक दिन मैं उस के घर पहुंच ही गया. दरवाजे की कुंडी खटखटाते ही मेरे मन को एक अनजाने भय ने घेर लिया. इस के बावजूद मैं वहां से नहीं हटा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अमिता की मां सामने खड़ी थीं. वे मुझे देख कर हैरान रह गईं. अचानक उन के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. मैं ने अपने दिल की धड़कन को संभालते हुए उन्हें नमस्ते किया और कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’

‘‘आं… हांहां,’’ जैसे उन्हें होश आया हो, ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ,’’ अंदर घुस कर मैं ने चारों तरफ नजर डाली. साधारण घर था, जैसा कि आम मध्यवर्गीय परिवार का होता है. आंगन के बीच खड़े हो कर मैं ने अमिता के घर को देखा, बड़ा खालीखाली और वीरान सा लग रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ली और प्रश्नवाचक भाव से अमिता की मां को देखा, ‘‘सब लोग कहीं गए हुए हैं क्या,’’ मैं ने पूछा.

अमिता की मां की समझ में अभी तक नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें. मेरा प्रश्न सुन कर वे बोलीं, ‘‘हां, बस अमिता है, अपने कमरे में. अच्छा, तुम बैठो. मैं उसे बुलाती हूं,’’ उन्होंने हड़बड़ी में बरामदे में रखे तख्त की तरफ इशारा किया. तख्त पर पुराना गद्दा बिछा हुआ था, शायद रात को उस पर कोई सोता होगा. मैं ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. मैं उस के कमरे में ही जा कर मिल लेता हूं. कौन सा कमरा है?’’

अब तक शायद हमारी बातचीत की आवाज अमिता के कानों तक पहुंच चुकी थी. वह उलझी हुई सी अपने कमरे से बाहर निकली और फटीफटी आंखों से मुझे देखने लगी. वह इतनी हैरान थी कि नमस्कार करना तक भूल गई. मांबेटी की हैरानगी से मेरे दिल को थोड़ा सुकून पहुंचा और अब तक मैं ने अपने धड़कते दिल को संभाल लिया था. मैं मुसकराने लगा, तो अमिता ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया, बोली कुछ नहीं. मैं ने देखा, उस के बाल उलझे हुए थे, सलवारकुरते में सिलवटें पड़ी हुई थीं. आंखें उनींदी सी थीं, जैसे उसे कई रातों से नींद न आई हो. वह अपने प्रति लापरवाह सी दिख रही थी.

‘‘बैठो, बेटा. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? तुम पहली बार मेरे घर आए हो,’’ अमिता की मां ऐसे कह रही थीं, जैसे कोई बड़ा आदमी उन के घर पर पधारा हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मुसकराता रहा. अमिता ने एक बार फिर अपनी नजरें उठा कर गहरी निगाह से मुझे देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न डोल रहा था. मैं तुरंत उस का जवाब नहीं दे सकता था. उस की मां के सामने खुल कर बात भी नहीं कर सकता था. मैं चुप रहा तो शायद वह मेरे मन की बात समझ गई और धीरे से बोली, ‘‘आओ, मेरे कमरे में चलते हैं. मां, आप तब तक चाय बना लो,’’ अंतिम वाक्य उस ने अपनी मां से कुछ जोर से कहा था.

हम दोनों उस के कमरे में आ गए. उस ने मुझे अपने बिस्तर पर बैठा दिया, पर खुद खड़ी रही. मैं ने उस से बैठने के लिए कहा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूं,’’ मैं ने उस के कमरे में एक नजर डाली. पढ़ने की मेजकुरसी के अलावा एक साधारण बिस्तर था, एक पुरानी स्टील की अलमारी और एक तरफ हैंगर में उस के कपड़े टंगे थे. कमरा साफसुथरा था और मेज पर किताबों का ढेर लगा हुआ था, जैसे अभी भी वह किसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. छत पर एक पंखा हूम्हूम् करता हुआ हमारे विचारों की तरह घूम रहा था.

मैं ने एक गहरी सांस ली और अमिता को लगभग घूर कर देखता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’ मैं बहुत तेजी से बोल रहा था. मेरे पास समय कम था, क्योंकि किसी भी क्षण उस की मां कमरे में आ सकती थीं और मुझे काफी सारे सवालों के जवाब अमिता से चाहिए थे.

वह कुछ नहीं बोली, बस सिर नीचा किए खड़ी रही. मैं ने महसूस किया, उस के होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने के लिए बेताब हों, लेकिन भावातिरेक में शब्द मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. मैं ने उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, अमिता, मेरे पास समय कम है और तुम्हारे पास भी… मां घर पर हैं और हम खुल कर बात भी नहीं कर सकते, जो मैं पूछ रहा हूं, जल्दी से उस का जवाब दो, वरना बाद में हम दोनों ही पछताते रह जाएंगे. बताओ, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं, उस ने कहा, लेकिन उस की आवाज रोती हुई सी लगी.’’

‘‘तो, तुम मुझे प्यार करती हो? मैं ने स्पष्ट करना चाहा. कहते हुए मेरी आवाज लरज गई और दिल जोरों से धड़कने लग गया. लेकिन अमिता ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उस के पास शब्द नहीं थे. बस, उस का बदन कांप कर रह गया. मैं समझ गया.’’

‘‘तो फिर तुम ने हठ क्यों किया? अपना मान तोड़ कर एक बार मेरे पास आ जाती, मैं कोई अमानुष तो नहीं हूं. तुम थोड़ा झुकती, तो क्या मैं पिघल नहीं जाता?’’

वह फिर एक बार कांप कर रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी तरफ नहीं देखोगी?’’ उस ने तड़प कर अपना चेहरा उठाया. उस की आंखें भीगी हुई थीं और उन में एक विवशता झलक रही थी. यह कैसी विवशता थी, जो वह बयान नहीं कर सकती थी? मुझे उस के ऊपर दया आई और सोचा कि उठ कर उसे अपने अंक में समेट लूं, लेकिन संकोचवश बैठा रहा.

उस की मां एक गिलास में पानी ले कर आ गई थीं. मुझे पानी नहीं पीना था, फिर भी औपचारिकतावश मैं ने गिलास हाथ में ले लिया और एक घूंट भर कर गिलास फिर से ट्रे में रख दिया. मां भी वहीं सामने बैठ गईं और इधरउधर की बातें करने लगीं. मुझे उन की बातों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उन के सामने मैं अमिता से कुछ पूछ भी नहीं सकता था.

उस की मां वहां से नहीं हटीं और मैं अमिता से आगे कुछ नहीं पूछ सका. मैं कितनी देर तक वहां बैठ सकता था, आखिर मजबूरन उठना पड़ा, ‘‘अच्छा चाची, अब मैं चलता हूं.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ वे अभी तक नहीं समझ पाई थीं कि मैं उन के घर क्यों आया था. उन्होंने भी नहीं पूछा. इंतजार करूंगा, कह कर मैं ने एक गहरी मुसकान उस के चेहरे पर डाली. उस की आंखों में विश्वास और अविश्वास की मिलीजुली तसवीर उभर कर मिट गई. क्या उसे मेरी बात पर यकीन होगा? अगर हां, तो वह मुझ से मिलने अवश्य आएगी.

पर वह मेरे घर फिर भी नहीं आई. मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची. क्या मैं ने अमिता के दिल को इतनी गहरी चोट पहुंचाई थी कि वह उसे अभी तक भुला नहीं पाई थी. वह मुझ से मिलती तो मैं माफी मांग लेता, उसे अपने अंक में समेट लेता और अपने सच्चे प्यार का उसे एहसास कराता. लेकिन वह नहीं आई, तो मेरा दिल भी टूट गया. वह अगर स्वाभिमानी है, तो क्या मैं अपने आत्मसम्मान का त्याग कर देता?

हम दोनों ही अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. समय बिना किसी अवरोध के अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मेरी नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में लग गई और मैं अमिता को मिले बिना चंडीगढ़ चला गया. निधि को भी जौब मिल  गया, अब वह नोएडा में नौकरी कर रही थी.

इस दौरान मेरी दोनों बहनों का भी ब्याह हो गया और वे अपनीअपनी ससुराल चली गईं. जौब मिल जाने के बाद मेरे लिए भी रिश्ते आने लगे थे, लेकिन मम्मी और पापा ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया था.

निधि की मेरे प्रति दीवानगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मैं उस के प्रति समर्पित नहीं था और न उस से मिलनेजुलने के लिए इच्छुक, लेकिन निधि मकड़ी की तरह मुझे अपने जाल में फंसाती जा रही थी. वह छुट्टियों में अपने घर न जा कर मेरे पास चंडीगढ़ आ जाती और हम दोनों साथसाथ कई दिन गुजारते.

मैं निधि के चेहरे में अमिता की छवि को देखते हुए उसे प्यार करता रहा, पर मैं इतना हठी निकला कि एक बार भी मैं ने अमिता की खबर नहीं ली. पुरुष का अहम मेरे आड़े आ गया. जब अमिता को ही मेरे बारे में पता करने की फुरसत नहीं है, तो मैं उस के पीछे क्यों भागता फिरूं?

अंतत: निधि की दीवानगी ने मुझे जीत लिया. उधर मम्मीपापा भी शादी के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए जौब मिलने के सालभर बाद हम दोनों ने शादी कर ली.

निधि के साथ मैं दक्षिण भारत के शहरों में हनीमून मनाने चला गया. लगभग 15 दिन बिता कर हम दोनों अपने घर लौटे. हमारी छुट्टी अभी 15 दिन बाकी थी, अत: हम दोनों रोज बाहर घूमनेफिरने जाते, शाम को किसी होटल में खाना खाते और देर रात गए घर लौटते. कभीकभी निधि के मायके चले जाते. इसी तरह मस्ती में दिन बीत रहे थे कि एक दिन मुझे तगड़ा झटका लगा.

अमिता की मां मेरे घर आईं और रोतेरोते बता रही थीं कि अमिता के पापा ने उस के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ा था. बहुत अच्छा लड़का था, सरकारी नौकरी में था और घरपरिवार भी अच्छा था. सभी को यह रिश्ता बहुत पसंद था, लेकिन अमिता ने शादी करने से इनकार कर दिया था. घर वाले बहुत परेशान और दुखी थे, अमिता किसी भी तरह शादी के लिए मान नहीं रही थी.

‘‘शादी से इनकार करने का कोई कारण बताया उस ने,’’ मेरी मां अमिता की मम्मी से पूछ रही थीं.

‘‘नहीं, बस इतना कहती है कि शादी नहीं करेगी और पहाड़ों पर जा कर किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेगी.’’

‘‘इतनी छोटी उम्र में उसे ऐसा क्या वैराग्य हो गया,’’ मेरी मां की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. पर मैं जानता था कि अमिता ने यह कदम क्यों उठाया था? उसे मेरा इंतजार था, लेकिन मैं ने हठ में आ कर निधि से शादी कर ली थी. मैं दोबारा अमिता के पास जा कर उस से माफी मांग लेता, तो संभवत: वह मान जाती और मेरा प्यार स्वीकार कर लेती. हम दोनों ही अपनी जिद्द और अहंकार के कारण एकदूसरे से दूर हो गए थे. मुझे लगा, अमिता ने किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ अपना रिश्ता तोड़ा है.

मेरी शादी हो गई थी और मुझे अब अमिता से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए था, पर मेरा दिल उस के लिए बेचैन था. मैं उस से मिलना चाहता था, अत: मैं ने अपना हठ तोड़ा और एक बार फिर अमिता से मिलने उस के घर पहुंच गया. मैं ने उस की मां से निसंकोच कहा कि मैं उस से एकांत में बात करना चाहता हूं और इस बीच वे कमरे में न आएं.

मैं बैठा था और वह मेरे सामने खड़ी थी. उस का सुंदर मुखड़ा मुरझा कर सूखी, सफेद जमीन सा हो गया था. उस की आंखें सिकुड़ गई थीं और चेहरे की कांति को ग्रहण लग गया था. उस की सुंदर केशराशि उलझी हुई ऊन की तरह हो गई थी. मैं ने सीधे उस से कहा, ‘‘क्यों अपने को दुख दे रही हो?’’

‘‘मैं खुश हूं,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘शादी के लिए क्यों मना कर दिया?’’

‘‘यही मेरा प्रारब्ध है,’’ उस ने बिना कुछ सोचे तुरंत जवाब दिया.

‘‘यह तुम्हारा प्रारब्ध नहीं था. मेरी बात को इतना गहरे अपने दिल में क्यों उतार लिया? मैं तो तुम्हारे पास आया था, फिर तुम मेरे पास क्यों नहीं आई? आ जाती तो आज तुम मेरी पत्नी होती.’’

‘‘शायद आ जाती,’’ उस ने निसंकोच भाव से कहा, ‘‘लेकिन रात को मैं ने इस बात पर विचार किया कि आप मेरे पास क्यों आए थे. कारण मेरी समझ में आ गया था. आप मुझ से प्यार नहीं करते थे, बस तरस खा कर मेरे पास आए थे और मेरे घावों पर मरहम लगाना चाहते थे.

‘‘मैं आप का सच्चा प्यार चाहती थी, तरस भरा प्यार नहीं. मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि किसी के सामने प्यार के लिए आंचल फैला कर भीख मांगती. उस प्यार की क्या कीमत, जिस की आग किसी के सीने में न जले.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा अहंकार नहीं है?’’ उस की बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

‘‘हो सकता है, पर मुझे इसी अहंकार के साथ जीने दीजिए. मैं अब भी आप को प्यार करती हूं और जीवनभर करती रहूंगी. मैं अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए ही उस दिन आप के पास मिठाई देने के बहाने गई थी, लेकिन आप ने बिना कुछ सोचेसमझे मुझे ठुकरा दिया. मैं जानती थी कि आप दूसरी लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं, शायद उन में से किसी को प्यार भी करते हों. इस के बावजूद मैं आप को मन ही मन प्यार करने लगी थी. सोचती थी, एक दिन मैं आप को अपना बना ही लूंगी. मैं ने आप का प्यार चाहा था, लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई. फिर भी अगर आप का प्यार मेरा नहीं है तो क्या हुआ, मैं ने जिस को चाहा, उसे प्यार किया और करती रहूंगी. मेरे प्यार में कोई खोट नहीं है,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी थी.

‘‘अगर अपने हठ में आ कर मैं ने तुम्हारा प्यार कबूल नहीं किया, तो क्या दुनिया इतनी छोटी है कि तुम्हें कोई दूसरा प्यार करने वाला युवक न मिलता. मुझ से बदला लेने के लिए तुम किसी अन्य युवक से शादी कर सकती थी,’’ मैं ने उसे समझाने का प्रयास किया.

वह हंसी. बड़ी विचित्र हंसी थी उस की, जैसे किसी बावले की… जो दुनिया की नासमझी पर व्यंग्य से हंस रहा हो. वह बोली, ‘‘मैं इतनी गिरी हुई भी नहीं हूं कि अपने प्यार का बदला लेने के लिए किसी और का जीवन बरबाद करती. दुनिया में प्यार के अलावा और भी बहुत अच्छे कार्य हैं. मदर टेरेसा ने शादी नहीं की थी, फिर भी वह अनाथ बच्चों से प्यार कर के महान हो गईं. मैं भी कुंआरी रह कर किसी कौन्वैंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाऊंगी और उन के हंसतेखिलखिलाते चेहरों के बीच अपना जीवन गुजार दूंगी. मुझे कोई पछतावा नहीं है.

‘‘आप अपनी पत्नी के साथ खुश रहें, मेरी यही कामना है. मैं जहां रहूंगी, खुश रहूंगी… अकेली ही. इतना मैं जानती हूं कि बसंत में हर पेड़ पर बहार नहीं आती. अब आप के अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस की आंखों में अनोखी चमक थी और उस के शब्द तीर बन कर मेरे दिल में चुभ गए.

मुझे लगा मैं अमिता को बिलकुल भी नहीं समझ पाया था. वह मेरे बचपन की साथी अवश्य थी, पर उस के मन और स्वभाव को मैं आज तक नहीं समझ पाया था. मैं ने उसे केवल बचपन में ही जाना था. अब जवानी में जब उसे जानने का मौका मिला, तब तक सबकुछ लुट चुका था.

वह हठी ही नहीं, स्वाभिमानी भी थी. उस को उस के निर्णय से डिगा पाना इतना आसान नहीं था. मैं ने अमिता को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी. काश, मैं उस के दिल को समझ पाता, तो उस की भावनाओं को इतनी चोट न पहुंचती.

अपनी नासमझी में मैं ने उस के दिल को ठेस पहुंचाई थी, लेकिन उस ने अपने स्वाभिमान से मेरे दिल पर इतना गहरा घाव कर दिया था, जो ताउम्र भरने वाला नहीं था.

सबकुछ मेरे हाथों से छिन गया था और मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह अमिता के घर से चला आया.

शादी का पहाड़ा जो कोई बांचे

वे काफी देर तक ऐसे बैठे रहे, जैसे रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए हों. उन्हें झकझोरा गया, तब बड़े अफसोस के साथ उन्होंने आहिस्ता से अपना सिर हिलाया. गहरे कुएं से आती हुई आवाज में वे बोले, ‘‘अच्छे दिनों के हल्ले में कैसे बुरे दिन आ गए हैं कि अभी एक दुलहन ने विवाह मंडप में शादी करने से इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि दूल्हा 15 का पहाड़ा नहीं बोल पाया. लाख मिन्नतों के बावजूद दूल्हे को बैरंग लौटना पड़ा.’’

‘‘यह कहो न कि सेर को सवा सेर मिलने की टीस है. इसे ही अच्छे दिन कहते हैं कि आज की लड़कियां होने वाले पति के हिसाबकिताब करने की ताकत को चैक कर रही हैं, वरना अभी तक तो मर्द ही औरत के हुनर का इम्तिहान लेता आया है,’’ मैं ने इतना कहा, तो उन्होंने मुझे यों घूरा, जैसे वह ठुकराया हुआ दूल्हा मैं ही होऊं. वे मुझे नीचे से ऊपर तक घूरते हुए बोले, ‘‘चलो, एकबारगी बोल भी देता तो क्या, सारे पहाड़े तो वैसे भी शादी के बाद भूल जाने थे.’’

‘‘लगता है कि एक दुलहन द्वारा ठुकराए जाने पर तुम्हारे जैसे मर्दों की मर्दानगी को ठेस पहुंची है.’’ ‘‘देखो, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. दरअसल, बात यह है कि…’’

बात को बीच में ही काटते हुए मैं ने टोका, ‘‘तो तुम क्या समझाना चाहते हो? हम जब कोई सामान खरीदते हैं, तो पहले अच्छी तरह ठोंकबजा कर देखते हैं कि नहीं? वैसे भी यह तो होना ही था. बैरंग लौटने वालों की फेहरिस्त अब बढ़ती ही जा रही है. ‘‘अभी पिछले दिनों एक दूल्हे ने वरमाला डालते समय गरदन नहीं झुकाई, तो दुलहन ने उसे चलता कर दिया. एक दूल्हे के मुंह से शराब की गंद आई, तो फेरे उलटे पड़ गए.

‘‘इस से भी आगे बढ़ते हुए एक दूल्हे ने दुलहन की सहेलियों पर थोड़ा बेहूदा कमैंट कर दिया, बस फिर क्या था. दूल्हे को कमैंट करना ही भुला दिया गया, इसलिए यह वक्त चोट खाए जख्मों को सहलाने का नहीं, बल्कि सोचनेविचारने का है.’’

वे रोंआसे हो गए और अफसोस में सिर हिलाते हुए बोले, ‘‘काश, किसी ने मुझ से भी शादी के वक्त पहाड़ा बुलवाया होता.’’

‘‘अगर बुलवाया होता, तो आप तो फर्राटे से पहाड़ों के पहाड़ पर चढ़ जाते. शादी का लड्डू जो खाने को बेताब थे,’’ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा. मेरे दोस्त खिसियानी हंसी हंसते हुए कहने लगे, ‘‘बात तो तुम्हारी सच है, लेकिन क्या है कि हम गणित में बचपन से ही कमजोर थे. किसी तरह बोर्ड का वाघा बौर्डर पार कर पाए थे. हमारी किस्मत ही खराब थी, जो किसी ने मंडप में हम से पहाड़ा नहीं बुलवाया, वरना हम तो वहीं फेल हो जाते. फिर ताउम्र जिम्मेदारियों के पहाड़े रटने से छुटकारा पा जाते और इस तरह अच्छीखासी जिंदगी पहाड़ा नहीं होती.’’

उन के दर्द का समंदर जैसे बह निकला था. वे कहते गए, ‘‘सारी उम्र रिश्तों के फौर्मूले सुलझाने में गुजार दी, मगर जोड़ हमेशा गलत ही बैठा. किसी ने सही कहा है कि शादी चार दिन की चांदनी है, फिर अंधेरी रात है. चमकता जुगनू है, जिस की कुछ पलों की चमक अच्छी लगती है.’’ ‘‘दोस्त, नर हो न निराश करो मन को… धीरज धरो. वैसे, तुम क्या समझ कर शादी के झाड़ पर चढ़े थे?’’

‘‘काहे के नर, बस वानर समझो, जिन के हिस्से में उछलकूद है. किसी शायर ने सही कहा है, ‘शादी आग का दरिया है और डूब के जाना है’. कई लोग यह कह कर उकसाते पाए जाते हैं कि ‘जो डूबा सो पार गया’, लेकिन यहां जो डूबा, फिर क्या खाक उबरा. ‘‘शादीशुदा जिंदगी नदी के दो किनारों की तरह है, जो जिंदगीभर मिलने की कोशिश करते हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी मिल नहीं पाते हैं. शादी धरती व आसमान का वह किनारा है, जिस में सिर्फ मिलने का भरम है. पास जाओ, तो सबकुछ साफ है.’’

‘‘दुखी आत्मा, जिसे तुम आग का दरिया कह रहे हो, वह शादी नहीं इश्क है. दो किनारों की खूबसूरती इसी में है कि वे तमाम उम्र चाहत, जुनून और जोश के साथ मिलने की कोशिश में लगे रहें. इस से उन का आपसी खिंचाव बना रहता है.’’ ‘‘यह शादी का दार्शनिक पक्ष है जनाब, हकीकत इस के उलट है. यह ऐसा लड्डू है, जिसे देशी घी के भरम में बड़े चाव से मुंह में डालते हैं और वैजीटेबल घी से ठग लिए जाते हैं. वैसे, इश्क हो तो आग का दरिया क्या, तलवार की धार पर भी दौड़ जाएं. मेरा तो इतना कहना है कि शादी सुख का विलोम है,’’ वे बोले.

‘‘यदि यह विलोम है, तो अनुलोम का अभ्यास कर के इसे एक लय देनी चाहिए. वैसे, अनुलोमविलोम से एक लयकारी, संतुलनकारी रिद्म बनती है. शादी एक अनुशासन पर्व है, सुव्यवस्थित जीवनशैली का नाम है. लेकिन मर्दों के लंपट मन को अनुशासन में बांधना शेरों को ब्रश कराने से कम नहीं है. कोई कोशिश कर ले, तो तिलमिला जाते हैं. सबकुछ छूट रहा है, मगर हेकड़ी नहीं जाती. यही तो मर्दवादी नजरिया है.’’ वे हमारी बातें चुपचाप सुनते रहे, अफसोस में घोड़े की तरह हिनहिनाते रहे, लेकिन मानने को तैयार नहीं दिखे. जिन्हें मनाता समय है, उन्हें तो यही कह सकते हैं कि अबे, मान भी जाओ मर्द, वरना बहुत पछताओगे.

प्याज के आंसू : जब प्याज खरीदने के लिए लगी लंबी कतार

प्याज खरीदने की लंबी कतार में लगे हुए 2 घंटे से ज्यादा का समय बीत चुका था, पर बढ़ती महंगाई की तरह यह लाइन भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. किसकिस लाइन में लगे जनता? बिजली का बिल जमा करने, राशन की दुकान, रेल का टिकट, बैंक का काउंटर और सरकारी अस्पतालों की बिना बेहोशी की दवा के बेहोश करने वाली कतारें. सच, नानी याद दिला देती हैं. खैर, लाइन आगे बढ़ी. मुश्किल से 10 लोग अपने मकसद से दूर रह गए. मुझे संतोष हुआ कि चलो अब मंजिल दूर नहीं है कि तभी अचानक स्टे और्डर सा लग गया.

मालूम हुआ कि प्याज का स्टौक खत्म हो गया है. दूसरा स्टौक आने में कुछ देर लग जाएगी. तभी एक सज्जन ने हद कर दी. उन्होंने ‘हद है भैया’ कहते हुए मेरी ओर पान की पीक थूक दी, तभी आगे से एक वाक्य उछल कर मेरे कानों से टकराया, ‘अरे, आप धक्का क्यों दे रहे हैं?’

जवाब आया, ‘मैं ने कोई धक्का नहीं दिया. आप ने इतनी जोर से मेरे पेट में कुहनी मारी कि मैं गिरतेगिरते बचा.’ यह तो अच्छा हुआ कि इस धक्कामुक्की में मेरी जगह नहीं गई. इसी शोरशराबे में मेरा नंबर आ गया. मैं झपट कर पहुंचा तो देखा कि काउंटर पर निर्धन के धन की तरह मुश्किल से पावभर प्याज पड़े थे. मरता क्या न करता, प्याज के आंसू रोते हुए मैं ने झोला आगे कर दिया. आज समझ में आया कि प्याज के आंसू किसे कहते हैं. जो खरीदने से ले कर पकाने तक में सौसौ आंसू गिरवाते हैं.

प्याज खरीद कर मैं ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया. घर की घंटी बजाने से पहले ही पत्नी ने सजग द्वारपाल की तरह ऐसे दरवाजा खोल दिया, जैसे वह पहले ही से दरवाजे पर कान लगाए बैठी थी. ‘‘लो, अब तो खुश हो जाओ,’’ कहते हुए मैं ने झोला पत्नी की ओर बढ़ा दिया और मासूम सी एक मुसकान के साथ उन की ओर देखने लगा.

लेकिन पत्नी ने झोला वापस लौटाते हुए पटक दिया. 2-4 प्याज लुढ़क कर मानो मेरी ओर देखने लगे. जैसे वे कह रहे हों कि क्या बेइज्जती करवाने के लिए तुम हमें यहां लाए थे? इस से अच्छे तो हम कालाबाजारियों के यहां थे. कम से कम बोरों में बंद दूसरे साथियों के साथ सारा दिन गपशप तो होती रहती थी. ठंडीठंडी कूलिंग का मजा अलग था, वरना इस 48 डिगरी टैंपरेचर में क्या हाल होता है, जनता खूब जानती है.

दरअसल, कुछ चीजें ऐसी हैं, जो केवल और केवल जनता के ही हिस्से में आती हैं, जैसे बिन बिजली, बिन पानी सब सून. बिन सड़कें, बिन भ्रष्टाचार जीवन बेकार. बिन महंगाई, जीवन धिक्कार. अहिंसा, परमो धर्म’, ‘संतोषी सदा सुखी’. ‘न बुरा देखो, न बुरा सुनो, न बुरा कहो’. इसी में आम जनता का पूरा जीवन दर्शन छिपा है. जो इन को अपना ले, समझ लीजिए कि उस के सारे दुख खत्म हो गए. पता नहीं, लोग क्यों हर चीज के लिए इतना होहल्ला मचाते हैं? क्या मिट्टी के तेल के लिए लाइन लगाना कोई गुनाह है? आखिर बिजली के जन्म के पहले भी तो आप वहां लाइन लगाते ही थे. पहले भी तो लकड़ी के चूल्हों पर ही खाना बनता था, जो आज से कहीं ज्यादा स्वादिष्ठ और सेहतमंद होता था.

इस बात को मानने से बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इनकार नहीं कर सकता, तो क्यों भैया इस के लिए झींकते हो? 2-4 घंटे खड़े रहोगे, तो तुम्हारे पैर नहीं टूट जाएंगे. अनुशासन मुफ्त में सीखने को मिल रहा है, जो और जगह लाइन लगाने में काम आएगा. तभी श्रीमतीजी की मधुर आवाज कानों में पड़ी, ‘‘सुनते हो, खाना ले जाओ.’’

मैं विचारों से बाहर निकला और झट से थाली थाम ली. देखा तो रोटियों के साथ आधा कप प्याज खींसें निपोर रहे थे. पहला कौर खाया कि कमबख्त प्याज का तीखापन फिर आंसू रुला गया.

7 तरीके जो संवारें आप के बच्चे का भविष्य

एकल परिवारों के बढ़ते चलन और मातापिता के कामकाजी होने की वजह से बच्चों का बचपन जैसे चारदीवारी में कैद हो गया है. वे पार्क या खुली जगह खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलते हैं. उन के दोस्त हमउम्र बच्चे नहीं, बल्कि टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल हैं. इस से बच्चों के व्यवहार और उन की मानसिकता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. वे न तो सामाजिकता के गुर सीख पाते हैं और न ही उन के व्यक्तित्व का सामान्य रूप से विकास हो पाता है.

क्यों जरूरी है सोशल स्किल सही भावनात्मक विकास के लिए सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के मनोवैज्ञानिक, डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह समाज से अलग नहीं रह सकता. सफल और बेहतर जीवन के लिए जरूरी है कि बच्चों को दूसरे लोगों से तालमेल बैठाने में परेशानी न आए. जिन बच्चों में सोशल स्किल विकसित नहीं होती है उन्हें बड़ा हो कर स्वस्थ रिश्ते बनाने में समस्या आती है. सोशल स्किल बच्चों में साझेदारी की भावना विकसित करती है और आत्मकेंद्रित होने से बचाती है. उन के मन से अकेलेपन की भावना कम करती है.’’

आक्रामक व्यवहार पर लगाम कसने के लिए डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘आक्रामक व्यवहार एक ऐसी समस्या है, जो बच्चों में बड़ी आम होती जा रही है. पारिवारिक तनाव, टीवी या इंटरनैट पर हिंसक कार्यक्रम देखना, पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन का दबाव या परिवार से दूर होस्टल वगैरह में रहने वाले बच्चों में आक्रामक बरताव ज्यादा देखा जाता है. ऐसे बच्चे सब से कटेकटे रहते हैं. दूसरे बच्चों द्वारा हर्ट किए जाने पर चीखनेचिल्लाने लगते हैं. अपशब्द कहते हुए मारपीट पर उतर आते हैं. ज्यादा गुस्सा होने पर कई बार हिंसक भी हो जाते हैं.’’ बचपन से ही बच्चों को सामाजिकता का पाठ पढ़ाया जाए तो उन में इस तरह की प्रवृत्ति पैदा ही नहीं होगी.

बच्चों को सामाजिकता का पाठ एक दिन में नहीं पढ़ाया जा सकता. इस के लिए बचपन से ही उन की परवरिश पर ध्यान देना जरूरी है.

जब बच्चा छोटा हो: एकल परिवारों में रहने वाले 5 साल तक की उम्र के बच्चे आमतौर पर मांबाप या दादादादी से ही चिपके रहते हैं. इस उम्र से ही उन्हें चिपकू बने रहने के बजाय सामाजिक रूप से ऐक्टिव रहना सिखाना चाहिए.

अपने बच्चों से बातें करें: पारस ब्लिस अस्पताल की साइकोलौजिस्ट, डा. रुबी आहुजा कहती हैं, ‘‘उस समय से जब आप का बच्चा काफी छोटा हो, उसे उस के नाम से संबोधित करें, उस से बातें करते रहें. उस के आसपास की हर चीज के बारे में उसे बताते रहें. वह किसी खिलौने से खेल रहा है, तो खिलौने का नाम पूछें. खिलौना किस रंग का है, इस में क्या खूबी है जैसी बातें पूछते रहें. नएनए ढंग से खेलना सिखाएं. इस से बच्चा एकांत में खेलने की आदत से बाहर निकल पाएगा.’’

बच्चे को दोस्तों, पड़ोसियों के साथ मिलवाएं: हर रविवार कोशिश करें कि बच्चा किसी नए रिश्तेदार या पड़ोसी से मिले. पार्टी वगैरह में छोटा बच्चा एकसाथ बहुत से नए लोगों को देख कर घबरा जाता है. पर जब आप अपने खास लोगों और उन के बच्चों से उसे समयसमय मिलवाते रहेंगे तो बच्चा जैसेजैसे बड़ा होगा, इन रिश्तों में अधिक से अधिक घुलमिल कर रहना सीख जाएगा.

दूसरे बच्चों के साथ घुलनेमिलने और खेलने दें: अपने बच्चे की अपने आसपास या स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ घुलनेमिलने में मदद करें ताकि वह सहयोग के साथसाथ साझेदारी की शक्ति को भी समझ सके. जब बच्चे खेलते हैं, तो एकदूसरे से बात करते हैं. आपस में घुलतेमिलते हैं. इस से सहयोग की भावना और आत्मीयता बढ़ती है. उन का दृष्टिकोण विकसित होता है और वे दूसरों की समस्याओं को समझते हैं, दूसरे बच्चों के साथ घुलमिल कर वे जीवन के गुर सीखते हैं, जो उन के साथ उम्र भर रहते हैं. जब बच्चे बड़े हो रहे हों

परवरिश में बदलाव लाते रहें: डा. संदीप गोविल कहते हैं, ‘‘बच्चों की हर जरूरत के समय उन के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से उपलब्ध रहें, लेकिन उन्हें थोड़ा स्पेस भी दें. हमेशा उन के साथ साए की तरह न रहें. बच्चे जैसेजैसे बड़े होते हैं वैसेवैसे उन के व्यवहार में बदलाव आता है. आप 3 साल के बच्चे और 13 साल के बच्चे के साथ एक समान व्यवहार नहीं कर सकते. जैसेजैसे बच्चों के व्यवहार में बदलाव आए उस के अनुरूप उन के साथ अपने संबंधों में बदलाव लाएं. गैजेट्स के साथ कम समय बिताने दें

गैजेट्स का अधिक उपयोग करने से बच्चों का अपने परिवेश से संपर्क कट जाता है. मस्तिष्क में तनाव का स्तर बढ़ने लगता है, जिस से व्यवहार थोड़ा आक्रामक हो जाता है. इस से सामाजिक, भावनात्मक और ध्यानकेंद्रन की समस्या हो जाती है. स्क्रीन को लगातार देखने से इंटरनल क्लौक गड़बड़ा जाती है. बच्चों को गैजेट्स का उपयोग कम करने दें, क्योंकि इन के साथ अधिक समय बिताने से उन्हें खुद से जुड़ने और दूसरों से संबंध बनाने में समस्या पैदा हो सकती है. एक दिन में 2 घंटे से अधिक टीवी न देखने दें. धार्मिक गतिविधियों से दूर रखें: अपने बच्चों को शुरु से ही विज्ञान और तकनीक की बातें बताएं. उन्हें धार्मिक क्रियाकलाप, पूजापाठ, अवैज्ञानिक सोच से दूर रखें.

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