वे काफी देर तक ऐसे बैठे रहे, जैसे रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए हों. उन्हें झकझोरा गया, तब बड़े अफसोस के साथ उन्होंने आहिस्ता से अपना सिर हिलाया. गहरे कुएं से आती हुई आवाज में वे बोले, ‘‘अच्छे दिनों के हल्ले में कैसे बुरे दिन आ गए हैं कि अभी एक दुलहन ने विवाह मंडप में शादी करने से इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि दूल्हा 15 का पहाड़ा नहीं बोल पाया. लाख मिन्नतों के बावजूद दूल्हे को बैरंग लौटना पड़ा.’’

‘‘यह कहो न कि सेर को सवा सेर मिलने की टीस है. इसे ही अच्छे दिन कहते हैं कि आज की लड़कियां होने वाले पति के हिसाबकिताब करने की ताकत को चैक कर रही हैं, वरना अभी तक तो मर्द ही औरत के हुनर का इम्तिहान लेता आया है,’’ मैं ने इतना कहा, तो उन्होंने मुझे यों घूरा, जैसे वह ठुकराया हुआ दूल्हा मैं ही होऊं. वे मुझे नीचे से ऊपर तक घूरते हुए बोले, ‘‘चलो, एकबारगी बोल भी देता तो क्या, सारे पहाड़े तो वैसे भी शादी के बाद भूल जाने थे.’’

‘‘लगता है कि एक दुलहन द्वारा ठुकराए जाने पर तुम्हारे जैसे मर्दों की मर्दानगी को ठेस पहुंची है.’’ ‘‘देखो, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. दरअसल, बात यह है कि...’’

बात को बीच में ही काटते हुए मैं ने टोका, ‘‘तो तुम क्या समझाना चाहते हो? हम जब कोई सामान खरीदते हैं, तो पहले अच्छी तरह ठोंकबजा कर देखते हैं कि नहीं? वैसे भी यह तो होना ही था. बैरंग लौटने वालों की फेहरिस्त अब बढ़ती ही जा रही है. ‘‘अभी पिछले दिनों एक दूल्हे ने वरमाला डालते समय गरदन नहीं झुकाई, तो दुलहन ने उसे चलता कर दिया. एक दूल्हे के मुंह से शराब की गंद आई, तो फेरे उलटे पड़ गए.

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