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प्रचारतंत्र के दौर में इन्फ्लुएंसर्स के सहारे सरकारें

राजनीतिक पार्टियां अब अपने पक्ष में पब्लिक ओपिनियन या जनमत बनाने में इन्फ्लुएंसर्स की मदद लेने लगी हैं और जब वे जीत कर सरकार बना रही हैं तो इन्हीं इन्फ्लुएंसर्स के प्रचारभरोसे काम चला रही हैं. सरकारें अब अपने निकम्मे कर्मचारियों पर भरोसा नहीं कर रही हैं, जो प्रचार करने तक का काम ढंग से नहीं कर सकते, जिस के लिए मोटीमोटी तनख्वाहें ये सरकार से ले रहे हैं.

आज ये सरकारी कर्मचारी सरकार को इन्फ्लुएंसर्स के भरोसे बैठने की सलाह देते नजर आते हैं. वो इन्फ्लुएंसर्स जिन की रीड़ की हड्डी ही नहीं है, जो किसी संवैधानिक जिम्मेदारी से नहीं बंधे हैं, जो कुछ भी कर सकते हैं. ये इन्फ्लुएंसर्स किसी योजना के तहत ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का प्रचार करते दिखेंगे जबकि अगले ही दिन शराब पी कर लड़की को छेड़ते भी दिखाई दे सकते हैं. किसी दिन सरकारी रोड सेफ्टी विज्ञापन में दिखाई दे सकते हैं तो अगले ही दिन रैश ड्राइविंग करते भी दिखाई दे सकते हैं.

पहले जैसे वोट पाने के लिए आसाराम, राम रहीम और रामपाल जैसे बाबाओं के कार्यक्रमों में नेता जाते थे वैसे ही अब इन्फ्लुएंसर्स के फौलोअर्स के वोट लेने के लिए इन के चैनल पर जाते हैं. सच तो यह है कि अब आईटी सैल के बाद आप आने वाले वर्षों में पार्टियों के भीतर ‘इंफ्लुएंसर सैल’ देख सकते हैं.

हालांकि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर इन्फ्लुएंसर्स के जरिए प्रचार करवाना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकारें खुद जनता के बीच जा कर अपने किए कामों व अपनी योजनाओं का बखान नहीं कर सकतीं? सवाल यह कि क्या मोदीजी की ‘अपने मन की बात’ जनता पचा नहीं पा रही है? क्या प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के सरकारी भाषण उबाऊ होने लगे हैं? उस से बड़ी बात कि आम जनता को अपने नेताओं से जुड़ाव के लिए क्या इन इन्फ्लुएंसर्स का मुंह ताकना पड़ेगा?

ये सभी बातें हमारे नेताओं की काबिलीयत पर भी सवाल उठाती हैं कि वे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं और उन्हीं से डायरैक्ट जुड़ने के लिए उन्हें किसी तीसरे के सहारे की जरूरत पड़ गई है.

यूपी सरकार की डिजिटल मीडिया स्कीम

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से राज्य में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए नई योजना लौंच की गई है. इस के तहत सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स एवं यूट्यूब पर सरकारी योजनाओं और उपलब्धियों का प्रचारप्रसार करने पर इन्फ्लुएंसर्स को फौलोअर्स के अनुसार 2 लाख से 8 लाख रुपए प्रतिमाह तक नकद भुगतान किया जाएगा.

सरकार द्वारा जारी की गई नीति के अनुसार, सूचीबद्ध होने के लिए एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यू-ट्यूब में से प्रत्येक को सब्सक्राइबर व फौलोअर्स के आधार पर 4 स्लैब में बांटा गया है. एक्स, फेसबुक व इंस्टाग्राम के अकाउंट होल्डर, इन्फ्लुएंसर (प्रभाव रखने वाले) को भुगतान के लिए श्रेणीवार अधिकतम सीमा क्रमशः 5 लाख, 4 लाख, 3 लाख और 3 लाख रुपए प्रतिमाह निर्धारित की गई है. यूट्यूब पर वीडियो, शौर्ट्स, पोडकास्ट भुगतान के लिए अधिकतम सीमा क्रमशः 8 लाख, 7 लाख, 6 लाख और 4 लाख प्रतिमाह निर्धारित की गई है.

योगी सरकार का कहना है कि अपनी जनकल्याणकारी, लाभकारी योजनाओं और उपलब्धियों की जानकारी जनता तक पहुंचाने के लिए वह यह नीति ले कर आई है. इस के तहत अलगअलग सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर प्रदेश सरकार की योजनाओं व उपलब्धियों पर आधारित कंटैंट, वीडियो, ट्वीट, पोस्ट और रील को शेयर करने पर उन्हें विज्ञापन दे कर प्रोत्साहित किया जाएगा.

यानी, योगी सरकार का जितना अधिक महिमामंडन ये इन्फ्लुएंसर्स करेंगे, इन्हें उतना ही अधिक लाभ होगा. दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार ऐसे इन्फ्लुएंसर्स खड़े करना चाहती है जो इन की तारीफ करें, चापलूस बनें और युवाओं की समस्याओं पर गलती से भी कभी न बोलें क्योंकि इन का मुंह तो डायरैक्ट पैसों से बंद किया जा रहा है.

अन्य राज्यों में भी

कर्नाटक सरकार ने भी अपनी योजनाओं को प्रमोट करने के लिए इंफ्लुएंसर्स को पैसा देने की बात कही है. इस काम के लिए उन इंफ्लुएंसर्स को चुनने की बात है जिन के एक लाख से ज्यादा फौलोअर्स हैं.

यही नहीं, कर्नाटक की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर ने गृहलक्ष्मी योजना को ले कर ऐलान किया कि जो लाभार्थी सोशल मीडिया पर इस योजना के तहत मिले लाभ की रील बनाएगा तो उसे व्यूज के आधार पर उसे प्राइस मनी दी जाएगी.

पिछले साल राजस्थान सरकार ने भी सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार के लिए इन्फ्लुएंसर्स के लिए भी विज्ञापन के दरवाजे खोले थे. ऐसे ही बिहार में भी इन्फ्लुएंसर्स के लिए अवार्ड वितरण जैसे कार्यक्रम चलाए गए.

कैसे होती है इन्फ्लुएंसर्स की कमाई

फौलोअर्स या सब्‍सक्राइबर्स की 4 श्रेणियां होती हैं, जैसे कि न्‍यूनतम 10 लाख पर अधिकतम 5 लाख का विज्ञापन हर माह, 5 लाख पर 2 लाख का विज्ञापन, 1 लाख पर 50 हजार का विज्ञापन, 10 हजार पर 10 हजार का विज्ञापन.

इन में भी कई कैटेगिरी होती हैं. श्रेणी ए, बी, सी, डी एक रील या पोस्‍ट के 1,000 से ले कर 10,000 रुपए तक मिलते हैं. रील न्‍यूनतम 10 सैकंड और पोस्‍ट 3 फोटो या 3 वीडियो के साथ.

श्रेणी ए, बी, सी, डी के लिए इंस्टाग्राम पर भी कैटेगरी के अनुसार लगभग 1,000 से ले कर 10,000 रुपए तक मिलता है. यह राशि एक ट्वीट या वीडियो के लिए होती है. अब आप सोचिए कि ये लोग इस से कितना कमा रहे हैं. इस में सरकार और इंफ्लुएंसर्स दोनों का ही लाभ है. फौलोअर्स, सब्सक्राइबर्स या व्यूअर्स तो इस में कहीं हैं ही नहीं, वे बस इन के मोहरे बनने में ही योगदान देते हैं.

कैसे काम करते हैं ये इन्फ्लुएंसर्स

आज के समय में लगभग हरकोई सोशल मीडिया पर जुड़ा हुआ है और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स सीधे मतदाताओं से जुड़े हुए हैं. फिर चाहे उन का कंटैंट जैसा भी हो पर लोग इन्हीं इन्फ्लुएंसर्स को देख रहे हैं. राजनीतिक दल चाहते हैं इन इन्फ्लुएंसर्स के चैनलों का फायदा उठा लिया जाए. इस के लिए नैनो या माइक्रो-इन्फ्लुएंसर्स से स्थानीय स्तरों पर जुड़ते हैं, जबकि मैक्रो और मेगा-इन्फ्लुएंसर्स से व्यापक दर्शकों तक अपना प्रचारप्रसार करने की कोशिश करते हैं.

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की मांग बहुत बढ़ गई है और देश की 69 करोड़ से ज्यादा औनलाइन आबादी को इन के माध्यम से साधने का प्रयास किया जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पार्टी की सफलता में इन इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका को पहचानते हुए इन से और काम लेना शुरू कर दिया है. कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी ने 23 इन्फ्लुएंसर्स को ‘नैशनल क्रिएटर अवार्ड’ से सम्मानित किया. जिन में अमन गुप्ताल, पियूष पुरोहित, अंकित बेयानपुरिया, नमन देशमुख, कविता सिंह, आर जे रौनक, रणबीर अलाहबादिया, अभी और नियु इत्यादि थे.

इन में वे इन्फ्लुएंसर्स नदारद थे जो सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं. यानी, अपने पक्ष के इन्फ्लुएंसर्स को सरकार ने सम्मानित किया. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो इन्फ्लुएंसर एल्विश यादव को युवाओं का इंस्पिरेशन तक कह डाला. जबकि एल्विश यादव गुंडागर्दी, गालीगलौच, ईव टीजर और नफरत फैलाने वाले इन्फ्लुएंसरों में गिना जाता है.

ऐसे ही भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष ने एक आउटरीच कार्यकर्म (संपर्क से समर्थन अभियान) के तहत अमित भड़ाना से मुलाकात की थी. तब से ही उस के और भाजपा के साथ को हरी झंडी दिखाई जा रही है. हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी ऐसा कहना मुश्किल है. दरअसल, यूट्यूब पर अमित भडाना ने अपने नाम से ही एक ट्यूब चैनल शुरू किया है. इस पर उस के करीब 2.37 करोड़ सब्सक्राइबर हैं. अमित भडाना दिल्ली का रहने वाला है और उस ने कानून की पढ़ाई की है. इसी तरह ध्रुव राठी के ‘अभी और नियु’ को भी रजनीतिक पार्टियों से जोड़ कर देखा जाता है.
इस के आलावा भी बहुत से हास्य कलाकार, भजन गायक अनिल नागोरी, मारवाड़ी नृत्यांगना शांति चौधरी आदि के नाम भी आ रहे हैं. अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि कैसे नेता, सरकार और पार्टियां इन लोगों से काम ले रही हैं.

सोशल मीडिया के राजनीतिकरण के नकारात्मक प्रभाव

ये इन्फ्लुएंसर्स पढ़ेलिखे नहीं हैं. सहीगलत का अंतर नहीं समझते. जो बातें सरकार ने कहीं, वे इसे ही सही समझ कर प्रचार करने में लग जाते हैं. इस वजह से युवाओं तक सही जानकारी नहीं पहुंचती. कई बार तो बताना कुछ और होता है और ये बता कुछ और ही जाते हैं. इस का सब से बड़ा कारण है जानकारी का अभाव. जब इन्हें खुद ही कुछ नहीं पता तो ये आप को क्या समझाएंगे.

सरकार इन्हें समयसमय पर अवार्ड दे कर सम्मानित करती है, इसलिए ये सरकार की चाटुकारिता करते हैं और युवा अंधे बन कर इन्हीं के दिखाए रस्ते पर चल पड़ते हैं.

राजनीतिक प्रबंधन सलाहकार फर्म के सहसंस्थापक विनय देशपांडे कहते हैं, “यह एक पेशा बन गया है. मैं ऐसे किशोरों को जानता हूं जो जेबखर्च कमाने के लिए अंशकालिक रूप से यह काम कर रहे हैं.” वहीं यूट्यूबर समदीश भाटिया ने खुलासा किया कि कई राजनेताओं ने उन से संपर्क किया है, खासतौर पर इस चुनाव से पहले के महीनों में और उन्हें इंटरव्यू के लिए लाखों रुपए की पेशकश की है.

समदीश भाटिया ने कहा, “वे चाहते थे कि मैं पहले से ही सवाल साझा करूं या वीडियो को प्रकाशित होने से पहले मंजूरी दिलवा दूं.” समदीश कहते हैं उन्हें संपादकीय नियंत्रण बनाए रखना पसंद है. अब आप खुद ही सोचिए कि ऊपर बताए इन्फ्लुएंसर्स रोल मौडल बनने लायक हैं या नहीं, क्योंकि ये सिर्फ इन का प्रोफैशन है और ये पैसे ले कर अपना काम कर रहे हैं तो फिर इन के कंटैंट पर भरोसा कैसे किया जाएगा.

व्यूअर्स पर नकारात्मक प्रभाव

आज हर पार्टी सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर के साथ जुड़ना चाहती है क्योंकि अधिकांश युवा आबादी अब टीवी चैनल के बजाय सोशल मीडिया पर रील्स या यूट्यूब वीडियो या ओटीटी देखने में अधिक समय बिता रही है. राजनीतिक दल इन इंफ्लुएंसर्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर दर्शकों, खासकर युवा आबादी, तक पहुंचना चाहते हैं.

ये इंफ्लुएंसर्स यूथ के लिए कभी आवाज उठा ही नहीं सकते क्योंकि इन्हें इन की समस्या, इन की बेरोजगारी के दुख बताने से रोका जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि ये इन्फ्लुएंसर्स तो सरकारों का माल खा रहे हैं.

इस से आम युवा सिर्फ भ्रमित ही होगा. उसे सहीगलत का पता ही नहीं चलेगा क्योंकि वह तो सोशल मीडिया को फौलो करने वाली पौध है जहां जो जैसा परोसा जाएगा वह उसे ही सच मान लेगा. हालांकि, हर युवा को अपनी आंख, कान खोल कर रखने चाहिए. इन फर्जी इंफ्लुएंसर्स को अपना ‘रोलमौडल’ नहीं मानना है क्योंकि इन की बातों के पीछे कोई न कोई राज छिपा जरूर है.

पुराने औफिस की यादें अपने जेहन से कैसे निकालूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

जौब चेंज करने के बाद पुराने औफिस की याद आ रही है. ऐसा नहीं है कि पुराने औफिस से मुझे बहुत लगाव था लेकिन इतने साल एक जगह काम करतेकरते वहां का आदी हो गया था. नया औफिस अच्छा है. नए कलीग्स हैं. अभी ज्यादा सब से मिक्सअप नहीं हुआ हूं. ऐसा क्या करूं कि पुराने औफिस की यादें जेहन से निकाल दूं?

जवाब –

नई कंपनी व जौब में एडजस्ट कर पाना आसान नहीं होता है. जब आप किसी औफिस में लंबे समय तक काम करते हैं तो उसे छोड़ने के बाद यकीनन पुराने औफिस की याद सताती है. लेकिन अब आप का औफिस व पोस्ट दोनों बदल गए हैं तो जरूरी है कि कैरियर गोल्स सैट करें. कैरियर गोल्स को ध्यान में रखते हुए प्लानिंग करें. जब आप अपने कैरियर को आगे ले जाने में बिजी होंगे तो बाकी सभी बातें खुदबखुद पीछे छूट जाएंगी.

हम किसी भी पुरानी चीज या यादों में तब तक ज्यादा उलझे रहते हैं जब तक हम अपने जीवन में कुछ नया नहीं करते. ऐसा ही कुछ वर्क कल्चर में भी है. अब नया औफिस जौइन कर लिया है तो अपने कलीग्स के साथ थोड़ाबहुत ओपन होने की कोशिश करें. उन के साथ लंच करें, एकसाथ कौफी ब्रेक ले सकते हैं. इस से आप को उन के बारे में जानने व नए औफिस में कंफर्टेबल होने में आसानी होगी.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

मेरी पत्नी सैक्स के तुरंत बाद नहाने चली जाती है और मेरा मूड खराब हो जाता है.

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सवाल –

पत्नी छोटे शहर व धार्मिक प्रवृत्ति की है. पढ़ाई 12वीं तक की है. मुझे उस से कोई शिकायत नहीं है. मेरा पूरा ध्यान रखती है, सैक्स में मेरा पूरा साथ देती है. मुझे हर तरीके से खुश करने की कोशिश करती है लेकिन एक बात मुझे उस की अखरती है कि सैक्स की लास्ट स्टेज पर होते हुए वह बैड से उठ कर नहाने चली जाती है. मुझे अच्छा नहीं लगता. ऐसा महसूस होता है जैसे हम ने कोई गंदा काम किया हो. जबकि मैं सैक्स के बाद भी बिना कपड़ों के उस के साथ बैड पर लेटा रहना चाहता हूं. वह कहती है, मैं पहले नहा कर आती हूं, फिर लेट जाऊंगी. लेकिन मेरा तब तक सारा मूड खराब हो जाता है, सारा क्रेज खत्म हो जाता है. आप बताएं कि उस की यह आदत कैसे खत्म करूं?

जवाब –

वैसे आप की वाइफ सैक्स के बाद साफसफाई का ध्यान रखती है तो इस में बुराई क्या है. सैक्स के दौरान पसीना निकलता है और यही पसीना संक्रमण की वजह बनता है. इसलिए सैक्स के बाद शौवर लेना अच्छी बात है.

सैक्स के बाद महिला हो या पुरुष दोनों को अपनेअपने जेनिटल पार्ट्स की अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए. सैक्स करने के बाद अकसर थकान और आलस आ जाता है लेकिन उसे त्याग कर पार्टनर्स को तुरंत वौशरूम जाना चाहिए. खासतौर से महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी होता है. ऐसा करने से वे सभी बैक्टीरिया और कीटाणु बाहर ही रहते हैं जो आप के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. इस से महिलाओं में यूटीआई की समस्या होने का खतरा भी काफी कम हो जाता है. हां, इस से गर्भवती होने की संभावना थोड़ी कम हो जाती है.

आप को तो अपनी वाइफ की इस आदत को ऐप्रिशिएट करना चाहिए. मजे के पीछे स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. आप की वाइफ आप का हर तरीके से साथ देती है तो इतनी सी बात को ले कर अपना मूड क्यों खराब करते हैं. थोड़े इंतजार के बाद वह फिर आप के साथ, आप के पास ही तो होती है.

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ऊपर तक जाएगी : ललन ने कैसे करवाया अपना काम

‘‘बाबूजी, मुझ से खेती न होगी. थोड़े से खेत में पूरा परिवार लगा रहे, फिर भी मुश्किल से सब का पेट भरे.

‘‘मैं यह काम नहीं करूंगा. मैं तो हरि काका के साथ मछली पकड़ूंगा,’’ कहता हुआ ललन मछली रखने की टोकरी सिर पर रख कर घर से बाहर निकल गया.

ललन के बाबा बड़बड़ाए, ‘नालायक, कभी नदी में डूब कर मर न जाए.’

‘पहाडि़यों से उतरती नदी की धारा. नदी के किनारे देवदार के पेड़, कलकल करती नदियों का मधुर संगीत… कितना अच्छा नजारा है यह,’ ललन बड़बड़ाया, ‘अभी एक धमाका होगा और ढेर सारी मछलियां मेरी टोकरी में भर जाएंगी. एक घंटे में सारी मछलियां मंडी में बेच कर घर पहुंच जाऊंगा और मोबाइल फोन पर फिल्में देखूंगा… मगर यह ओमप्रकाश कहां मर गया…’

तभी ललन ने ओमप्रकाश को ढलान पर चढ़ते देखा तो वह खुश हो गया. ललन ने जल्दी से थैले में से कांच की एक बोतल निकाली और उस में कुछ बारूद जैसी चीज भरी. दोनों नदी के किनारे पहुंच कर एक बड़े से पत्थर पर बैठ गए और पानी में चारा डाल कर मछलियों के आने का इंतजार करने लगे.

दरअसल, दोनों बोतल बम बना कर जहां ढेर सारी मछलियां इकट्ठा होतीं, वहीं पानी में फेंक देते, जिस से तेज धमाका हो जाता और मछलियां घायल हो कर किनारे पर आ जातीं. दोनों झटपट उन्हें इकट्ठा कर मंडी में बेच देते, जिस से तुरंत अच्छी आमदनी हो जाती.

‘‘जब मछलियां इकट्ठा हो जाएंगी, तो मैं इशारा कर दूंगा… तू बम फेंक देना,’’ ओमप्रकाश बोला.

हरि काका इसे कुदरत के खिलाफ मानते थे. उन्हें जाल फैला कर मछली पकड़ना पसंद था, इसीलिए ललन उन के साथ मछली पकड़ने नहीं जाता था. उसे ओमप्रकाश का तरीका पसंद था.

अभी भी इक्कादुक्का मछलियां ही चारा खाने पहुंची थीं. शायद बम वाले तरीके को मछलियों ने भांप लिया था.

नदी के किनारे एक बड़ा सा पत्थर था, जिस का एक हिस्सा पानी में डूबा हुआ था. ओमप्रकाश मछलियों के न आने से निराश हो कर पत्थर पर लेट गया और आसमान की ओर देखने लगा.

ललन थोड़ी दूरी पर दूसरे पत्थर पर खड़ा था एक बोतल बम हाथ में लिए. वह ओमप्रकाश के इशारे का इंतजार कर रहा था.

तभी ओमप्रकाश को सामने की पहाड़ी की तरफ से आता एक बाज दिखा, जिस के पंजों में कुछ दबा था.

‘‘अरे, बाज के पंजों में तो सांप है,’’ ज्यों ही बाज ओमप्रकाश के ऊपर पहुंचा, उस ने पहचान लिया. वह  चिल्लाया, ‘‘ललन, बाज के पंजों में सांप…’’

ललन ने तुरंत ऊपर निगाह उठाई तो देखा कि वह सांप बाज के पंजों से छूट कर नीचे गिर रहा था. जब तक वह कुछ समझ पाता, सांप ओमप्रकाश पर गिर गया और उसे डस लिया.

डर के मारे ललन की चीख निकल गई. वह संभलता, इस से पहले बोतल बम उस के हाथ से छूट कर गिर पड़ा.

तभी जोर का धमाका हुआ. ललन को उस धमाके से एक तेज झटका लगा और ललन का बायां हाथ उस के शरीर से टूट कर दूर जा गिरा.

जब होश आया तो ललन ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. बोतल बम ने उस का हाथ छीन लिया था.

ललन ने ओमप्रकाश के बारे में पूछा. पता चला कि वह सांप के डसने से मर चुका था.

ललन के घाव भरने में महीनाभर लग गया. लेकिन अपना एक हाथ और अपने दोस्त ओमप्रकाश को खोने का दुख उसे बहुत सताता था.

‘मैं कुदरत के खिलाफ काम कर रहा था, उसी की सजा है यह. हरि काका ठीक कहते थे. मैं जिंदा बच गया. मुझे गलतियां सुधारने का मौका मिल गया. लेकिन बेचारा ओमप्रकाश…’ एक सुबह ललन यह सब सोच रहा था कि उस के बाबा उस से बोले, ‘‘ललन, घर में खाने को नहीं है. तुम्हारे इलाज में सब पैसा खर्च हो गया. अब कुछ कामधंधे की सोचो, नहीं तो एक दिन हम सब भूख से मर जाएंगे.’’

बाबा की बात से ललन को ध्यान आया कि कोई कामधंधा शुरू किया जाए, लेकिन एक हाथ से वह क्या कर सकता था?

एक दिन गांव के मुखिया से ललन को मालूम हुआ कि सरकार विकलांग लोगों को कामधंधा शुरू करने के लिए आसानी से कम ब्याज पर लोन देती है. उस ने विकलांगता का प्रमाणपत्र बनवा कर लोन के लिए अर्जी दे दी.

एक दिन बैंक से ललन को बुलावा आया. वह खुश हो गया कि उसे आज लोन मिल जाएगा और वह 2 भैंसें खरीद कर दूध बेचने का धंधा शुरू कर देगा.

‘‘लोन का 10 फीसदी मुझे पहले देना होगा तभी लोन मिलेगा,’’ बैंक मुलाजिम ने उस के कान में कहा.

‘‘यह क्या अंधेरगर्दी है, तुम लोगों को तनख्वाह नहीं मिलती क्या…’’ ललन को गुस्सा आ गया.

‘‘यहां का यही कायदा है,’’ बैंक मुलाजिम ललन को समझाने लगा, ‘‘भैया, गुस्सा क्यों करते हो? मैं कोई अकेला थोड़े ही न यह पैसा लूंगा. सब का हिस्सा बंटा होता है.’’

मायूस ललन घर की ओर लौट पड़ा. अगले दिन ललन ने कुछ पैसों का जुगाड़ किया और कलक्टर के दफ्तर पहुंच गया.

‘‘मुझे साहब से जरूरी बात करनी है,’’ ललन ने संतरी से कहा.

संतरी ने बारी आने पर ललन को साहब के कमरे में भेज दिया.

‘‘कहो, क्या बात है?’’ कलक्टर साहब ने ललन की ओर देख कर पूछा.

ललन ने तुरंत अपने गमछे में बंधे रुपयों को निकाल कर टेबल पर रख दिया और बोला, ‘‘साहब, मैं गरीब हूं. आप अपना यह हिस्सा रख लीजिए और मेरा लोन पास कर दीजिए.’’

‘‘किस ने कहा कि मैं काम कराने के बदले पैसे लेता हूं?’’ कलक्टर ने पूछा.

ललन ने बैंक मुलाजिम की बात बताते हुए कहा, ‘‘साहब, उस ने कहा था कि पैसा ऊपर तक जाएगा. इसीलिए मैं आप का हिस्सा देने आ गया.’’

‘‘ठीक है, तुम ये पैसे उठा लो और घर जाओ. तुम्हें लोन मिल जाएगा,’’ कलक्टर ने कहा.

‘‘अच्छा साहब,’’ कह कर ललन  कमरे से बाहर निकल गया.

तीसरे दिन एक सूटबूट वाला आदमी ललन को खोजता हुआ उस के घर आया. ललन को रुपयों का पैकेट पकड़ाते हुए बोला, ‘‘ऊपर से आदेश है, लोन के रुपए सीधे तुम्हारे घर पहुंचाने का, इसीलिए मैं आया हूं. ये पैसे लो.

‘‘और हां, बैंक का कोई भी काम हो तो मुझ से मिलना. मैं बैंक मैनेजर हूं. मैं ही तुम्हारा काम कर दूंगा.’’

वह बैंक मुलाजिम, जिस ने ललन से घूस मांगी थी, अब जेल में था. ललन कुछ समझ नहीं पा रहा था कि ऊपर के लोगों ने बिना रुपए लिए उस का काम कैसे कर दिया?

सरकारी अस्पताल की हवा : कैसे हुई सिट्टीपिट्टी गुम

पहले सरकार से हर रोज कोई न कोई शिकायत रहती थी. अब केवल खुद से रहने लगी है. आज तक न तो सरकार से मुझे अपनी शिकायतों का हल मिला, न ही खुद से.

सरकार द्वारा जनता की शिकायतों के हल के लिए खुले हर ‘शिकायत निवारण कक्ष’ के बाहर जब तक टांगों में दम रहा, मैं घंटों खड़ा रहा. बहुत बार तो ‘शिकायत निवारण कक्ष’ के मुंह पर

जंग लगे ताले ही लटके मिले और जो कभीकभार कोई ‘शिकायत निवारण कक्ष’ खुला भी मिला तो वहां पहले से ही शिकायत करने वालों की इतनी लंबी लाइन थी कि शिकायत लिखवाने में ही हफ्तों लग जाएं. ऐसी शिकायत का हल दोबारा जन्म लेने के बाद भी मिल जाए, तो भी तालियां.

जब मैं ने महसूस किया कि मेरी अपने से शिकायतें कुछ ज्यादा ही बढ़ रही हैं तो पड़ोस के एक गुणी ने मुझे सलाह दी, ”देखो बंधु, मैं एक बार फिर चेतावनी दे रहा हूं कि जब तक तुम्हारा समय पूरा नहीं हो जाता, ऊपर मत चल पड़ना. अगर ऐसा किया तो वहां शरणार्थी शिविर में रहना पड़ेगा और तुम शरणार्थी शिविरों की बदहाल जिंदगी के बारे तो जानते ही हो. फिर मत कहना कि. इसलिए जब तक समय पूरा नहीं हो जाता, जैसेतैसे दम साधे जीने की कोशिश करते रहो दोस्त. यही तुम्हारे लिए बेहतर है.

”तो क्यों न अब ऐसा करो कि अपना बचा समय काटने के लिए खुद को सरकारी अस्पताल में चैक करा आओ. ऐसे में थोड़ा बदलाव भी हो जाएगा और अस्पताल की भागदौड़ में 2-4 पुराने दोस्त भी मिल जाएंगे. घर में वैसे भी तुम अकेले पड़ेपड़े सड़ते रहते हो.”

उस गुणी की सलाह मुझे नेक लगी और मैं सरकारी अस्पताल को कूच कर गया.

अस्पताल गया तो पता चला कि अपने प्राइवेट क्लिनिक से बड़े दिनों बाद डाक्टर साहब वहां आए थे. हो सकता है, उन के हाथों ही मेरी मौत लिखी थी.

मेरे ऊपर जाने सौरी खुद को चैक करवाने की बारी आई तो मैं डाक्टर के पास हो लिया.

वे मुझे बड़े ही बुझे मन से चैक करते हुए पूछने लगे, ”क्या बात है? सरकारी अस्पताल ही क्यों आए हो? घर में चैन से नहीं मर सकते थे क्या?

”आजकल अजीब सा फैशन हो गया है जनता में. हर कोई घर में मरने के बदले अस्पताल में आ कर मरना चाहता है. पता नहीं, अस्पताल आ कर मरने में ऐसा क्या खास है कि. चलो, उस तरफ को लेट जाओ.”

dमैं ने उन के कहे ओर लेटते हुए कहा, ”असल में सर क्या है न कि लोगों में किसी ने यह अफवाह फैला दी है कि जो सरकारी अस्पताल में मरता है वह सीधा बैकुंठ को जाता है.”

वे चौंके, ”सच?”

”जी हुजूर, वरना सारी उम्र अपने घर में तिलतिल कर मरने के बाद आप के अस्पताल में मरने कौन बेवकूफ आता.”

”यहां आने के लिए क्या महसूस किया तुम ने?” डाक्टर ने पूछा.

”डाक्टर साहब, मन की बात कहूं तो अब सांस लेने का भी मन नहीं कर रहा है. खून की कमी तो मुझ में है ही, उस के बाद भी सिस्टम के खटमलों ने मुझे इतना चूसा कि.” मैं ने लंबी सांस लेने की नाजायज कोशिश की.

”सिस्टम में खटमल? पर सरकार तो कहती है कि सिस्टम अब खटमल फ्री हो गया है. जरा और जोर लगा कर जीने की हिम्मत करो,” डाक्टर बोले.

”नहीं सर, सच पूछो तो अभी आप के सरकारी अस्पताल के बिस्तर भी खटमल फ्री नहीं हुए हैं. पिछली दफा जब खून की कमी होने पर खून चढ़वाने आया था तो यहां से डिस्चार्ज होते वक्त 2 ग्राम खून कम हो गया था. सिस्टम की बात तो आप छोडि़ए.”

”काफी निचुड़े हुए लगते हो?” डाक्टर साहब ने हंसते हुए मुझे दूसरी ओर को पलटा, ”तो इस के सिवा और क्याक्या महसूस करते हो तुम?”

”खैर, भूख तो बहुत पहले कभी लगती थी डाक्टर साहब. जब कुछ खाने को नहीं मिला तो अब उस ने भी लगना बंद कर दिया है. शुरूशुरू में जब चक्कर आते थे तो मैं तो नहीं, पर मेरी आत्मा बहुत परेशान होती थी. पर जब लगातार चक्कर पर चक्कर आने लगे तो उस ने मेरे चक्करों के बारे में सोचना ही छोड़ दिया.

”शुरूशुरू में टांगों में कंपन हुई तो मैं बहुत घबराया. अब तो रोज ही टांगों में कंपन रहती है तो मैं ने इसे ऊपर वाले का उपहार मान लिया.”

”बड़ी हिम्मत वाले हो यार तुम. जीना है तो और हिम्मत वाले बनो,” डाक्टर साहब ने पीठ के बदले मेरा पेट थपथपाने के बाद पूछा, ”तो अब.?”

”कुछ दिनों से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. जब दिक्कत कुछ ज्यादा ही हो गई तो. पर मैं वह बंदा हूं साहब, जो बिना किसी की परवाह किए शुद्ध जल के बिना जी सकता है. शुद्ध अन्न के बिना जी सकता है, शुद्ध मन के बिना भी जी सकता है. लेकिन हवा के बिना जब जीना मुश्किल लगा तो.”

”पर यार.”

”क्या सर.” मैं ने इतना ही कहा था कि तभी सायरन बजा तो मुझे छोड़ कर भागते डाक्टर साहब से मैं ने पूछा, ”यह सायरन कैसा है सर? कोई बड़ी मुसीबत आ गई है क्या?”

”बचना है तो भाग, अस्पताल की हवा खत्म हो गई है.”

”अब सर.?”

”जो मरीज ठीक होना चाहें उन्हें मेरी सलाह है कि वे कुछ दिन अस्पताल से बाहर भी रहा करें,” कहते हुए उन्होंने अस्पताल से नौ दो ग्यारह होने के लिए कमर कसी.

”मतलब?” मैं ने फिर पूछा.

”नो मोर बकवास. जान बचानी है तो भाग पेशेंट भाग,” कह कर डाक्टर साहब नजर नहीं आए.

तपस्या भंग न कर सकी : चमेली क्या पवन को रिझा पाई

चमेली जब भी रिटायर्ड डिप्टी कलक्टर पवन के बंगले पर काम करने आती है, वह 45 साल से 30 साल की बन जाती है, क्योंकि 65 साला पवन अकेले रहते हैं. उन की पत्नी सुधा उन की रिटायरमैंट के 15 साल पहले गुजर गई थीं. तब से वे अकेले हैं. उन के एकलौता बेटा है जिस की बैंक में पोस्टिंग होने के बाद उस ने वहीं काम कर रही एक लड़की से शादी कर ली थी.

उस समय पवन की रिटायरमैंट के 3 साल बचे थे. जब तक वे सेवा में थे, तब तक उन के सरकारी बंगला था, नौकर थे, इसलिए रोटी बनाने की चिंता नहीं थी. जब भी वे भोपाल जाते बहू का रूखा बरताव देख कर भीतर ही भीतर दुखी होते.

सोचा था कि रिटायरमैंट के बाद वे अपने बेटे के पास रहेंगे. मगर बेटे का बदला बरताव देख कर उन्होंने अपना मन बदल लिया और रिटायरमैंट के बाद वे छोटा का मकान खरीद कर उसी शहर में बस गए. जिस शहर से वे रिटायर हुए थे.

रिटायरमैंट के बाद सरकारी बंगला और नौकर छूट गए थे, इसलिए वे खुद ही रोटी बनाते थे, कमरे में झाड़ू लगाते थे और कपड़े धोबी से धुलवाते थे. इस तरह वे चौकाचूल्हे में माहिर हो गए थे. मगर जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी शरीर में कमजोरी आ रही थी. रोटियां बेलने में तकलीफ होने लगी थी.

जब पवन की पत्नी सुधा गुजरी थीं तब रिश्तेदारों ने उन्हें दोबारा शादी करने की सलाह दी थी. पर तब उन्होंने मना कर दिया था. रिश्तेदार कई रिश्ते भी ले कर आए, मगर उन्होंने सभी रिश्तों को ठुकरा दिया था.

पवन तो अपने बेटे के पास ही बाकी जिंदगी बिताना चाहते थे, मगर ऐसा हो न सका. अब जा कर उन्हें एहसास हुआ कि आज वे अकेले जिंदगी काट रहे हैं.

जब उन से रोटियां नहीं बनने लगीं तब उन्होंने चमेली को रख लिया. शुरुआत में तो वह ठीकठाक रही, मगर जैसेजैसे समय बीतता गया, उस के मन के भीतर का शैतान जागता गया.

वह जानती थी, पवन का बेटा उन से दूर है इन का विश्वास जीत कर सारी धनदौलत हड़पी जा सकती है. इस के लिए उस ने योजना बना कर उसे अपने तरीके से अंजाम देना शुरू कर दिया.??

दरअसल, आदमी की सब से बड़ी कमजोरी औरत होती है, इसलिए जब भी चमेली घर का काम करने आती, अपने को बदलने लगी. वह सजधज कर आने लगी. उन्हें देख कर कामुक निगाहों से मुसकाने लगी.

पवन चमेली का यह बदला रूप देखते थे. वे अपनी नजरें फेर लेते थे. तब चमेली मन ही मन कहती थी, ‘कितने ही विश्वामित्र बन जाओ, मगर यह मेनका एक दिन तुम्हारी तपस्या भंग कर के ही रहेगी.’

इस के बाद चमेली जितनी देर घर में रहती, वह अपना आंचल गिरा देती. बरतन मांजने लगती तो पेटीकोट ऊपर चढ़ा लेती.

पवन चमेली के इस बरताव को समझ रहे थे. एक दिन वे बोले, ‘‘तुम शादीशुदा हो, ऐसा मत किया करो.’’

चमेली उस दिन तो चुप रही, फिर अगले दिन उस ने कहा, ‘‘आप को बाईजी की याद तो सताती होगी?’’

‘‘क्या मतलब है?’’ जरा नाराज हो कर पवन बोले.

‘‘मेरा मतलब यह है साहब…’’ चमेली बोली, ‘‘आप अकेले हैं तो आप को बाईजी की याद तो कभीकभी आती होगी? जब रात को अकेले सोते होंगे?

‘‘क्या कहना चाहती है तू?’’

‘‘मैं यह कहना चाहती हूं साहब, अगर आप के मन में कभी औरत की जरूरत हो…’’

‘‘चमेली, मुंह संभाल कर बोल,’’ बीच में ही बात काटते हुए पवन बोले, ‘‘मेरे सामने कभी ऐसी बात मत करना.’’

जी साहब, माफी मांगते हुए चमेली बोली, ‘‘एक दिन आप ने ही तो कहा था कि बात कहने से मन का बोझ हलका हो जाता है.’’

‘‘ठीक है ठीक है…’’ बीच में ही बात काट कर पवन बोले, ‘‘मगर मुझे किसी औरत की जरूरत नहीं है.’’

मगर पवन की समझाइश का असर चमेली पर नहीं पड़ा. उस दिन के बाद तो वह और मेनका बन गई. उस का आंचल गिराना जारी था. यह कर के वह पवन की कमजोरी पकड़ना चाहती थी. मगर उन की तरफ से कोई हलचल नहीं मचती थी. न जाने कैसा पत्थरदिल है उन का दिल. आग के सामने भी नहीं पिघलता.

ऐसे में एक दिन चमेली की सहेली लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘तेरे विश्वामित्रजी पिघले कि नहीं?’’

‘‘कहां पिघले… न जाने किस पत्थर के बने हैं.’’

‘‘इस में तेरी कमजोरी होगी.’’

‘‘सबकुछ तो कर लिया जो एक औरत को करना चाहिए. इस में मेरी कहां से कमजोरी आ गई?’’

‘‘तब तो उस की जायदाद कभी हड़प नहीं सकती है.’’

‘‘अब उस के सामने नंगी होने से तो रही.’’

‘‘तुझे नंगा होने की जरूरत ही नहीं है?’’ कह कर लक्ष्मी ने उस के कान में कुछ कहा. वह गरदन हिला कर बोली, ‘‘ठीक है.’’

चमेली ने पवन के भीतर खूब जोश पैदा करने की कोशिश की, मगर वे टस से मस नहीं हुए. जब पानी सिर से ज्यादा ही गुजरने लगा, तब पवन बोले, ‘‘देखो चमेली, मैं पहले ही कह चुका हूं. अब फिर कह रहा हूं तुम ने अपने हावभाव बदलो. मगर तुम एक कान से सुनती हो दूसरे कान से निकाल देती हो.’’

‘‘साहब, चौकाचूल्हे के काम करने में यह सब न चाहते हुए भी हो जाता है,’’ मादक मुसकान फेंकते हुए चमेली बोली.

‘‘झूठ मत बोलो, तुम यह सब जानबूझ कर करती हो.’’

‘‘नहीं साहब, ऐसा नहीं है.’’

‘‘तुम खुद को नहीं बदल सकती हो तो कल से तुम्हारी छुट्टी,’’ पवन अपना फैसला सुनाते हुए बोले.

तब चमेली बहुत चिंतित हो गई. सच तो यह है कि वह यहां काम करती है, बदले में पैसा पाती है. उस ने कभी नहीं सोचा था कि उसे यह दिन पड़ेगा.

वह तकरीबन रोते हुए बोली, ‘‘नहीं साहब, मेरे पेट पर लात मर मारो, अब कभी भी शिकायत नहीं मिलेगी.’’

‘‘ठीक है. मगर फिर शिकायत मिलेगी तब तुझे निकालने में जरा भी देर न करूंगा,’’ कह कर पवन भीतर चले गए. चमेली तिलमिलाती रह गई.

चक्कर 4 का : क्या था आखिर यह चार का चक्कर

सच पूछें, तो हमें आज तक नहीं पता चला कि यह ‘चार’ का चक्कर क्या है? जिधर जाओ चौक्का, बात ‘चार’ की. ‘चार’ से शुरू ‘चार’ पर खत्म.

दरअसल, हमारी अक्ल तो बहुत मोटी है या यों कहें कि हर वक्त घास चरने चली जाती है, इसलिए ‘चार’ दिन की जिंदगी का गहरा राज ‘चार’ दिन में कैसे समझें?

महंगाई ‘चारों’ खाने चित किए रहती है, इसलिए काजूबादामकिशमिश की बात तो छोडि़ए, आजकल तो आलूटमाटर खाने के भी लाले पड़े हैं. दालरोटी के लिए भी हमारी कलम को ‘चार’ गुना जद्दोजेहद करनी पड़ती है, ताकि शांति से जुगाड़ बैठता रहे, ‘चार’ पैसे कमाते रहें.

मुद्दे से न भटक कर दोबारा अपनी बात पर आते हैं. देश के हालात के फेर में पड़े, तो खो जाने का डर है.

हमारा लाख टके का सवाल ‘चार’ को ले कर है. आखिर क्या वजह है कि हर भारतीय ‘चार’ की ही बात करता है? हमें याद आता है कि अकसर हमारे पिताजी हमें समझाते हुए कहते थे, ‘बेटा, कभी कोई बुरा काम मत करना, वरना ‘चार’ लोग क्या कहेंगे.’

उस समय भी हम नादान थे, सो तुरंत निकल पड़ते थे कि आखिर वे ‘चार’ लोग कौन हैं, जो हर वक्त हम पर आंखें गड़ाए रहते हैं. न तो हम उस समय उन ‘चार’ की खोजखबर ले पाए और न ही आज तक उन के दर्शन मुमकिन हुए.

पिताजी कभी ऐसे भी डांटते थे, ‘चार’ किताबें क्या पढ़ लीं कि खुद को इतना बड़ा स्याना समझने लगे?’

हम हिसाब लगाते कि ‘चार’ किताबें तो दूसरीतीसरी जमात में ही पूरी हो गई थीं. अब तो तादाद 40 के पार पहुंच चुकी, फिर भी पिताजी ‘चार’ पर ही क्यों अटके रहते हैं?

‘चार’ पैसे कमाओगे तो पता चलेगा,’ यह बात कभी न कभी सब को सुननी पड़ी होगी. हमारे मन में तो स्कूलकालेज के दिनों से यह वाक्य समाया हुआ है. बात वहीं की वहीं, ढाक के तीन पात, ‘चार’ पैसे भला क्या हुआ?

कभी पिताजी ज्यादा गुस्सा हो जाते, तो कह बैठते, ‘आजकल ईमानदारी ‘चारचार’ आने में बिकती है…’

सच पूछें, तो हम उन के समझाने से समझे हों, ऐसा दावा आज भी नहीं कर सकते. वजह, कुछ काम की बात समझते, उस से पहले ही यह ‘चार’ का आंकड़ा सारा गुड़ गोबर कर देता.

‘चार’ लोगों में हमारी भी इज्जत है’ जैसा मन को भाने वाला वाक्य हमें थोड़ा संतोष तो देता है, पर गड़बड़ यह हो जाती है कि इज्जत केवल ‘चार’ लोगों में क्यों है, बाकी के लोगों में क्यों नहीं? और जिन ‘चार’ लोगों में है, वे मुए हैं कौन से? भरेपूरे महल्ले में केवल ‘चार’ लोग? जरूर कोई जादुईचमत्कारी लोग रहे होंगे.

हमारी दादी अकसर हमारी माताजी को झिड़कतीं, ‘‘चार’ लोग सुनेंगे, तो क्या सोचेंगे?’

गई भैंस पानी में. फिर से ‘चार’ लोग. ये कौन हैं, जो सिर्फ हमें ही नजर नहीं आते हैं? दुनिया के सब लोग उन से डरते हैं और हम उन के दर्शन तक नहीं कर पाते?

हमारी दादी का एक और पसंदीदा जुमला था, ‘‘चार’ दिनों की आई बहू के ऐसे नखरे…’ हम गिनती कर के हिसाब लगाते कि मां को ब्याह कर आए तो 20 साल हो गए हैं, फिर भी ‘चार’ दिन?

जरा बड़े हुए, तो ‘चार’ का चमत्कार और बड़ा होने लगा. हमारी बेरोजगारी, जो अकसर आवारागर्दी के रूप में दिखाई पड़ने लगी थी, हमारे पिताजी, फूफाजी, ताऊजी, चाचाजी को बड़ी खलती थी. सब एक सुर में नसीहतें बिखेरते, ‘‘चार’ दिन टिक कर बैठोगे, तो काम मिलेगा… समझे?’

लो कर लो बात. घर में बैठो तो आलसी, बाहर जाओ टिक कर बैठो. अकसर हम ने अपनी माताजी को पिताजी से ऐसा भी कहते सुना, ‘वह आई और ‘चार’ बातें सुना कर चली गई.’

‘चार’ बातें? क्या मां ने डायरीपैन ले कर कुशल स्टैनो की तरह हमारी बूआजी की डांट को नोट किया था, जो गिनती में ‘चार’ ही ठहरी? कुछ समझ नहीं आया.

आज भी हमारी श्रीमतीजी हमें रोज उलाहना देती हैं, ‘एक मैं ही हूं, जो आप की ‘चार’ बातें सहन कर जाती हूं. कोई और होती, तो आप की अक्ल ठिकाने लगा देती?

हम सोचने लग जाते कि हमारी ‘चार’ बातें कौन सी हैं, जो श्रीमतीजी रोज सहन करती हैं? शादीशुदा जिंदगी का राज शायद ही कभी किसी को समझ आया हो, इसलिए हम क्या समझ पाए.

पत्नीजी के साथ कभी घूमने जाते हैं, तो हमारे मुंह से भी निकल जाता है, ‘‘‘चार’ कदम भी नहीं चला जाता क्या? बड़ी नाजुक हो, जो ‘चार’ मिनट में थक गईं?’

मतलब ‘चार’ की बीमारी में हम भी जकड़े हुए हैं. देखिए, कैसा गजब है कि हम यह लेख लिख रहे हैं, तो टैलीविजन पर मधुर गीत दिखाईसुनाई पड़ रहा है, ‘‘चार’ बोतल वोदका, काम मेरा रोज का…’

लग गए न ‘चार’ चांद. अब आप ही बताइए कि हम ‘चार’ के चक्कर से कैसे पीछा छुड़ाएं?

मेरी बहन के साथ यौन शोषण हुआ था, शादी नहीं करना चाहती

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सवाल –

मेरे घर में मुझ से बड़ी एक बहन है जिस की अब शादी की उम्र हो चुकी है और उस के लिए रिश्ते भी आने लगे हैं. जब भी हम घर में उस की शादी की बात करते हैं तो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता और वह शादी की बात से ही मुंह बनाने लगती है. दरअसल, मेरी बहन का एक बौयफ्रेंड था जिस से वह बहुत प्यार करती थी पर मुझे उस लड़के के बारे में कुछ ज्यादा नहीं पता. मुझे पता है कि उन दोनों के बीच कुछ ऐसा हुआ था जिस से कि मेरी बहन को शादी के नाम से ही नफरत हो गई है. दरअसल, उस लड़के ने मेरी बहन का लंबे समय तक दुरुपयोग किया था और उस का यौन शोषण भी किया था जिस वजह से मेरी बहन को अब किसी पर भी विश्वास नहीं होता. उसे ऐसा लगता है कि सारे लड़के एकजैसे होते हैं. मैं उस से इस बारे में खुल कर बात भी नहीं कर पाता क्योंकि आखिरकार है तो वह मेरी बहन ही. कृपया बताइए कि मैं अपनी बहन को शादी के लिए कैसे मनाऊं और उसे कैसे समझाऊं कि सारे लड़के एकजैसे नहीं होते.

जवाब –

आप की और आप की बहन की मनोदशा को समझा जा सकता है. आप की बहन का डर गलत नहीं है. यौन शोषण होना किसी भी लड़की के लिए छोटी बात नहीं होती और वह भी उस लड़के से जिसे उन्होंने इतना प्यार किया हो और उस पर पूरा भरोसा किया हो. यह दिमाग पर बहुत बुरा असर करता है.

आप को अपनी बहन को प्यार से समझाना चाहिए कि उन की जो भी दिक्कत है वह आप से शेयर कर सकती है. आप को अपनी बहन को भरोसा दिलाना होगा कि आप सब उस के भले के लिए ही सोच रहे हैं. अपनी बहन के बैस्ट फ्रैंड बनने की कोशिश करें और उसे विश्वास दिलाएं कि आप जिस से भी उन की शादी कराने की सोच रहे हैं वह एक अच्छा लड़का है और उसे खूब प्यार करेगा.

अपनी बहन को बताएं कि उस की फैमिली उस के लिए कभी गलत नहीं सोच सकती और भविष्य में भी उसे कोई परेशानी हुई तो आप सब उस के साथ खड़े रहेंगे.

आप अपनी बहन का बैस्ट फ्रैंड बनने की कोशिश करें. इस का मतलब यह है कि आप को उन से हर तरीके की बात कर उन की स्थिति समझनी चाहिए. आप उन्हें प्यार से समझाएं कि सैक्सुअली असौल्ट होने का कोई भी असर शरीर पर नहीं होता और वह दिमाग से लड़कों के लिए डर निकाल दें. आप सब उन को एक अच्छा लङका और शरीफ परिवार में भेज रहे हैं, इस बात का विश्वास दिलाना बेहद जरूरी है.

आप अपने घर का माहौल खुशनुमा रखें और अपनी बहन का ध्यान रखें. अपनी बहन की इज्जत करेंगे, ध्यान रखेंगे, दोस्ताना बरताव करेंगे तो जाहिर है कि वह यह सोचने पर मजबूर हो जाएगी कि हर लङके एकजैसे नहीं होते। संभव है कि वह शादी के लिए हामी भर दे.

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ब्रैंड प्रमोटिंग के खेल में मीम्स मार्केटिंग

अभी तक टैलीविजन और अखबार पर बड़ेबडे मौडल और सैलिब्रिटीज ब्रैंड प्रमोशन किया करते थे. अब मार्केटिंग के क्षेत्र में पारंपरिक ट्रैंड से अलग सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स भी ब्रैंड प्रमोशन करने लगे हैं. ब्रैंड और इन्फ्लुएंसर्स के बीच मार्केटिंग एजेंसीज का दखल बढ़ गया है. इन के पास टीम होती है जो यह बताती है कि किस ब्रैंड का प्रमोशन, कौन सा इन्फ्लुएंसर करे और उस के मीम्स किस तरह के कंटैंट के लिए तैयार हों जिन को देखने वाले देखें और जो रील प्रमोशन के लिए बनी है वह वायरल हो. टीम वाले यह बताते हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म का उपयोग किस तरह किया जाए कि जिस के जरिए नए ग्राहकों तक सरलता से पहुंचा जा सके.

जैसेजैसे सोशल मीडिया का मार्केट बढ़ रहा है वैसेवैसे इन मार्केटिंग कंपनियों की संख्या भी बढ़ रही है. कई मार्केटिंग कंपनियां इनहाउस काम करती हैं. उन की पूरी टीम होती है जिन में कंटैंट राइटर, वीडियो फोटोग्राफर, एडिटर और ग्राफिक डिजाइनर होते हैं. इस के अलावा मार्केटिंग में काम करने वाले लोग भी होते हैं. कई मार्केटिंग कंपनियां फ्रीलांसर के साथ काम करती हैं. जैसेजैसे सोशल मीडिया के उपयोग करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसेवैसे इस सैक्टर में काम के अवसर भी बढ़ रहे हैं.

एक अनुमान के अनुसार 2024 में सोशल मीडिया उपयोग करने वालों की संख्या 517 करोड़ तक पहुंच जाएगी. बढ़ रहा कारोबार यूएस ब्यूरो औफ लेबर स्टैटिस्टिक्स का अनुमान है कि विज्ञापन, प्रचार और मार्केटिंग मैनेजरों के लिए नौकरियों में 2032 तक 6 प्रतिशत की वृद्धि होगी जो औसत से दोगुना अधिक है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म में सब से ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले प्लेटफौर्म में फेसबुक, एक्स, यूट्यूब और इंस्टाग्राम शामिल हैं. इन के अलावा व्हाट्सऐप, पिनटेरेस्ट, लिंक्डइन जैसे और प्लेटफौर्म्स हैं. आमतौर पर लोगों को यह पता नहीं होता है कि वे अपना नैटवर्क कैसे बढ़ाएं.

इस काम में मार्केटिंग कंपनियां मदद करती हैं. भारत में कई कंपनियां अच्छा काम भी कर रही हैं. पिनस्ट्रोर्म डिजिटल मार्केटिंग करती है. बीसी वैबवार सब से पुरानी डिजिटल मार्केटिंग कंपनियों में से एक है. सोशल मीडिया पर प्रचार करने के साथसाथ यह वैब डैवलपर, वैब डिजाइनिंग, औनलाइन मार्केटिंग और मोबाइल मार्केटिंग आदि भी करती है. ब्रेनवर्क टैक्नोलौजीज भी पूरे देश में मार्केटिंग का काम कर रही है. गौरैया की शुरुआत 1996 में हुई थी. यह ब्रैंड मार्केटिंग, सोशल मीडिया प्रमोशन, कंटैंट राइटिंग आदि प्रदान करने का काम करती है.

क्या कहते हैं इन्फ्लुएंसर्स

कुछ कंपनियां ऐसी हैं जो केवल इन्फ्लुएंसर्स के सहारे अपनी मार्केटिंग करती हैं. वे सोशल मीडिया पर बगुले की तरह से निशाना लगाए रहती हैं. जैसे ही कोई इन्फ्लुएंसर दिखता है वे उसे मार्केटिंग करने का औफर देते हैं. कई लोग इन्फ्लुएंसर्स को काम दिलाने के बहाने उन का शोषण भी करते हैं. लखनऊ की रहने वाली कल्पना यादव कहती हैं, ‘मेरे इंस्ट्राग्राम पर 10 हजार फौलोअर्स जैसे ही हुए तो मेरे पास एक मैसेज आया कि हम आप को काम दिलाएंगे. पहले काम के बदले प्रोडक्ट्स मिलते थे. ‘इस तरह से मैं ने ब्यूटी प्रोडक्टस के बदले काम किया. यह सिलसिला 4-5 माह तक चला. फिर मुझे पता चला कि जो मार्केटिंग कंपनी मेरा काम देख रही थी वह मेरे काम के बदले तो नकद पैसा लेती थी लेकिन मुझे कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स मिलते थे.

शुरूशुरू में बहुत अच्छा लगा लेकिन कुछ ही दिनों में इन से मन भर गया. तब मैं ने अपने मैनेजर को मना कर दिया. इस के बाद मैं ने खुद काम तलाशना शुरू किया. आज भले ही हमारे पास काम कम है लेकिन नकद पैसा मिलता है.’ इंस्ट्राग्राम पर इन्फ्लुएंसर के रूप में काम करने वाली रीता शर्मा कहती हैं, ‘मुझे मार्केटिंग कंपनी से जो विज्ञापन मिले वे सभी फैशनेबल ड्रैस के होते थे. इन के बदले कपड़े मिलते थे. शूटिंग के लिए जिसजिस तरह के औफर मिलते थे वे मुझे पसंद नहीं थे.

मार्केटिंग कंपनी दबाव डालने का काम करती थी. ऐसे में इन्फ्लुएंसर के लिए जरूरी है कि वे मार्केटिंग कंपनी की जगह पर खुद अपनी मार्केटिंग करें. इस से इन्फ्लुएंसर्स को लाभ होगा. मार्केटिंग कंपनियां इन्फ्लुएंसर्स और ब्रैंड के बीच बिचौलिए के रूप में बिजनैस कर के लाभ कमाती हैं.’ डायरैक्ट मार्केटिंग कैसे करें? डायरैक्ट मार्केटिंग करने से पहले जरूरी है कि अपनी औडियंस को अच्छी तरह से जान लें. जैसे एक कपड़ों से जुड़े बिजनैस को प्रमोट करना चाहते हैं तो सब से पहले यह जानना जरूरी है कि आप की कंपनी का उत्पाद किस तरह के लोग पहनना पसंद करेंगे. उस के हिसाब से ही टारगेट औडियंस बना कर आप किसी भी तरह का प्रमोशन अपने लिए चुन सकते हैं.

सोशल मीडिया साइट की कोई कमी नहीं है. ऐसे बहुत से प्लेटफौर्म्स हैं जहां अपने ब्रैंड के बारे में लोगों के साथ बातचीत कर सकते हैं और इस तरह की साइटें प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं. यहां पर सब से ज्यादा जरूरी चीज है कि अपने बिजनैस के हिसाब से सोशल मीडिया प्लेटफौर्म का चयन करना होगा. अगर एक टारगेट औडियंस का डाटा हो जिस से पता रहे कि आप का प्रोडक्ट किस तरह के लोग इस्तेमाल करते हैं तो उस के हिसाब से आप सोशल मीडिया का चयन करते हुए लोगों तक सोशल मीडिया मार्केटिंग कर सकते हैं. सोशल मीडिया के जरिए प्रमोशन करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी है कि आप के पास एक कैलेंडर पहले से बना होना चाहिए.

अगर आप सोच रहे हैं कि आप तुरंत किसी भी तरह का कंटैंट या किसी भी तरह की ऐड बना कर प्रमोशन शुरू कर देंगे तो वह कभी लोगों पर वैसा असर नहीं कर पाएगी जैसा कि आप चाहते हैं. इसीलिए हो सके तो हरेक सोशल मीडिया चैनल के लिए आप अलग तरह का कैलेंडर बनाएं. वीडियो कंटैंट इमेज या दिए गए लिंक के मुकाबले लोगों में बहुत ज्यादा लोकप्रिय होते हैं. वीडियो कंटैंट लोगों पर अपना असर ज्यादा दिखाता है, इसीलिए जितना ज्यादा हो सके अपने बिजनैस के बारे में वीडियो शेयर करने की कोशिश करें. इस के अलावा यह भी देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म वीडियो फौर्मेट को अपनी न्यूज फीड में ज्यादा से ज्यादा जगह देते हैं. सोशल मीडिया जगत में जो दिखता है वही बिकता है. प्रोडक्ट भले ही कितना अच्छा हो, अगर आप उस को सही तरह से लोगों के सामने सोशल मीडिया पर नहीं दिखा पा रहे हैं तो बहुत अच्छा प्रोडक्ट होते हुए भी उस के बिकने या आगे बढ़ने का स्कोप कम हो जाता है.

सोशल मीडिया पर प्रमोशन करने के बाद पौजिटिव और नैगेटिव दोनों तरह के फीडबैक का सामना करना पड़ेगा. पौजिटिव फीडबैक हर किसी को अच्छा लगता है पर हमेशा ध्यान रहे कि फीडबैक ही ऐसा है जो आप के बिजनैस को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए काम आता है, इसीलिए अगर आप को अपने कस्टमर की तरफ से किसी भी तरह का फीडबैक मिल रहा है तो जल्द से जल्द उस का समाधान करने की कोशिश करें. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर देखा गया है कि एक ही तरह की चीजों में दिलचस्पी रखने वाले लोग एकदूसरे से जुड़ना पसंद करते हैं.

ऐसे में अगर हो सके तो अपने बिजनैस से जुड़े हुए लोगों को एक कम्युनिटी में जोड़ने की कोशिश करें. जितने ज्यादा लोग आप की कम्युनिटी में होंगे उतने ही लोग आप के बिजनैस और आप के प्रोडक्ट में दिलचस्पी दिखाएंगे. मार्केट में बहुत ही उचित दामों पर ऐसे बहुत से टूल्स मिलते हैं जिन के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अपनी पोस्ट को शैड्यूल कर सकते हैं. इस में फायदा यह रहता है कि किसी भी समय अपनी पोस्ट को अपने पेज पर डाल सकते हैं. इसीलिए इस तरह के सोशल मीडिया टूल्स को इस्तेमाल करने से परहेज न करें. इन्फ्लुएंसर्स को चाहिए कि वे मार्केटिंग कंपनी के जाल में फंसने की जगह अपना बिजनैस प्रबंधन खुद करें. डायरैक्ट मार्केटिंग यानी डीएम इन्फ्लुएंसर्स के लिए बेहतर होगा.

मेरी हाल ही में शादी हुई है, पत्नी को किस तरह सैक्स में संतुष्ट रखूं ?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी उम्र 27 साल है और हाल ही में मेरी शादी हुई है. मेरी पत्नी काफी खूबसूरत है और जब से मैं ने उसे देखा था तब से ही मैं उस का दीवाना बन गया था. हम अभी कुछ दिन पहले ही हनीमून से वापस लौटे हैं. मैं चाहता हूं कि मैं अपनी पत्नी को खूब प्यार करूं ताकि उसे किसी चीज की कोई कमी महसूस न हो. मैं ने सुना है कि अगर पत्नी सैक्स करते समय संतुष्ट नहीं हो पाती तो उस का अपने पति से जल्दी ही मन भर जाता है जोकि मैं बिलकुल नहीं चाहता. मुझे बताइए कि मैं अपनी सैक्स लाइफ में किस तरह की गलतियां करने से बचूं जिस से कि मैं अपनी पत्नी के हमेशा संतुष्ट रख सकूं.

जवाब –

यह अच्छी बात है कि आप को अपनी पत्नी खूबसूरत लगती है। कहते हैं कि अगर हमारी सैक्स लाइफ अच्छी है तो हमारी मैरिड लाइफ भी काफी हद तक अच्छी गुजरती है. सैक्स एक कुदरती प्रकिया है जिसे जीवनसाथी एकदूसरे के साथ ऐंजौय करते हैं और चाहते हैं कि उन की सैक्स लाइफ सब से अच्छी हो.

जैसाकि आप ने बताया कि आप की हाल ही में शादी हुई है तो आप को अपनी सैक्स लाइफ अच्छी बनाने के लिए इन गलतियों से बचना है :

न करें सिर्फ सैक्स पर फोकस

सब से पहले तो आप को सिर्फ सैक्स पर फोकस नहीं करना है. पत्नियां तब खुश होती हैं जब उन का पति उन को जीभर कर प्यार करे. आप को सब से पहले अपनी पत्नी के साथ टाइम स्पेंड करना है. काम से लौट कर अपनी पत्नी को अटैंशन दें, उन के साथ खाना खाएं, उन के साथ ढेर सारी बातें करें, फिल्म देखें और रोमांस करने पर ध्यान दें.

करें भरपूर रोमांस

लड़कियों को रोमांटिक लड़के काफी पसंद होते हैं. आप को अपनी पत्नी के साथ खुल कर रोमांस करना है, जम कर किसिंग करनी है, उन को अपनी बांहों में जकड़ लेना है और फिर सब से अंत में सैक्स करना है. ऐसा करने से आप की पत्नी को दिखेगा कि आप उन से कितना प्यार करते हैं.

अपनी पत्नी के साथ करें सैक्सी बातें

हमेशा अपनी पत्नी के साथ रोमांटिक और सैक्सी बातें करनी चाहिए. आप को अपनी पत्नी की पसंदनापसंद के बारे में जानना होगा ताकि आप सैक्स करते समय कुछ ऐसा न करें जो आप की पत्नी को नापसंद हो.

पत्नी के साथ सैक्स की बातें करने में बिलकुल ना शरमाएं और अपनी पत्नी को भी न शरमाने दें. ऐसा करने से आप की सैक्स लाइफ और भी ज्यादा मजबूत बन जाएगी.

आप काम के बीच में भी अपनी पत्नी के साथ टच में रहें जिस से कि उन को महसूस हो कि आप काम करते समय भी उन को याद करते हैं. साथ ही अगर आप को समय मिले तो अपनी पत्नी के साथ सैक्स चैटिंग करें जिस से जब आप शाम को घर लौटेंगे तो आप दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेचैन रहेंगे.

ओरल सैक्स करें

अगर आप चाहते हैं कि आप की सैक्स लाइफ सब से बैस्ट बन जाए तो आप को सैक्स रूटीन में ओरल सैक्स जरूर ट्राई करना चाहिए. ओरल सैक्स हर पत्नी को काफी पसंद आता है.

आप अपनी पत्नी के नाजुक अंगों को सहलाएं, उन के साथ थोड़ी छेड़छाड़ करें, उन की पूरी बौडी पर चुंबन करें और उन की गरदन पर भी चुंबन जङ दें.

ऐसा करने से आप की पत्नी खुद को काफी संतुष्ट महसूस करेगी और वह भी आप को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करेगी.

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