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पड़ोसन की काली नजर : कैसे बरबाद हुई माला और शिवम की जिंदगी

धर्मग्रंथों के आधार पर यह माना जाता है कि लंकापति रावण का जन्म गौतमबुद्ध नगर के बिसरख गांव में हुआ था. यहीं पर रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर आराधना की थी. इस कहानी को सुना कर बिसरख गांव के लोगों को न तो दशहरे का त्यौहार मनाने दिया जाता है न ही रावण दहन करने दिया जाता है. रावण से जुड़ी इसी कपोल गाथा के कारण बिसरख के बारे में देश और दुनिया बहुत कुछ जानती है.

बिसरख इलाके में एक गांव हैबतपुर है. इसी गांव में शिवम (26) अपनी पत्नी माला (24) के साथ किराए के मकान में रहता था. माला ने जहां एमकौम की पढ़ाई की थी, वहीं शिवम ने एमबीए किया था. सन 2016 में शिवम और माला की जानपहचान फेसबुक के माध्यम से हुई थी.

बाद में दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एक ही बिरादरी के थे, लिहाजा नवंबर 2017 में दोनों ने परिजनों की सहमति से विवाह कर लिया. शादी के कुछ समय बाद शिवम ने नोएडा के एक मौल में सेल्स एग्जीक्यूटिव की नौकरी कर ली.

हालांकि शादी से पहले माला भी जौब करती थी लेकिन बाद में जब वह गर्भवती हुई तो उस ने नौकरी छोड़ दी थी. इन दिनों वह 5 माह के गर्भ से थी. ऐसे में उस ने घर से दूर जा कर नौकरी करनी जरूरी नहीं समझी. वह घर में ही बच्चों की कोचिंग के साथ पास के एक प्राइवेट स्कूल में टीचिंग जौब भी करने लगी थी.

अगर माला के पास समय बचता था तो वह क्रिश्चियन बागू कालोनी में रहने वाले अपने मातापिता के पास चली जाती थी.

माला रामअवतार और मालती देवी की 4 संतानों में सब से छोटी थी. उस की 2 बड़ी बहनें और एक भाई है.सब की शादी हो चुकी है और सभी गाजियाबाद के आसपास ही रहते हैं. शिवम के परिवार में भी उस के मातापिता के अलावा 3 भाई और एक बहन है. वे भी गाजियाबाद में ही रहते हैं.

7 अप्रैल, 2018 को शिवम रोज की तरह ड्यूटी के लिए सुबह साढ़े 10 बजे हैबतपुर स्थित घर से मोटरसाइकिल से निकला. वह अकसर रात को 9 बजे तक औफिस से घर लौटता था. शिवम का नियम था कि वह दोपहर को 2 बजे लंच टाइम में माला को फोन कर के उस की खैरियत पूछ लेता था और उस के खानपान व दवा आदि लेने की याद दिला देता था.

लेकिन उस दिन जब शिवम ने माला को फोन किया तो उस के दोनों मोबाइल फोन स्विच्ड औफ मिले. शिवम ने सोचा कि माला खाना खा कर आराम कर रही होगी. नींद में खलल से बचने के लिए उस ने मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिए होंगे.

इस के बाद उस ने करीब 5 बजे फोन किया. लेकिन इस बार भी उस के फोन स्विच्ड औफ ही मिले. इस से शिवम को माला की चिंता होने लगी. लेकिन इस के बाद व्यस्तता की वजह से रात 8 बजे तक उसे माला को फोन करने का समय नहीं मिला.

फुरसत मिलते ही शिवम ने माला को फिर फोन किया तो इस बार भी उस का फोन बंद मिला. यह देख शिवम की परेशानी चरमसीमा पर पहुंच गई. ये सारे फोन शिवम ने अपने मौल के लैंडलाइन नंबर से किए थे.

दरअसल उस के औफिस में काम के दौरान किसी को भी मोबाइल फोन रखने की इजाजत नहीं थी, इसलिए शिवम अपना मोबाइल भी घर पर माला के पास ही छोड़ कर जाता था.

हैरानी की बात यह थी कि माला के फोन के साथ उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ था. हैरानपरेशान शिवम ने 8 बजे जल्दीजल्दी काम समेटा और आधा घंटे में घर के लिए निकल पड़ा. रात 9 बजे वह घर पहुंचा तो देखा कि फ्लैट के मुख्य दरवाजे पर ताला लटका था.

सब से पहले शिवम ने मकान के पहले और तीसरे तल पर रहने वाले किराएदारों से माला के बारे में पूछा. उन लोगों ने बताया कि दोपहर से उन्होंने माला को नहीं देखा.

घर की एक चाबी शिवम के पास भी रहती थी. ताला खोल कर शिवम घर के भीतर गया तो उस का बैडरूम कुछ असामान्य सा था. बैडरूम में पड़े बैड पर काफी सामान बिखरा हुआ था और कमरे में रखी लोहे की अलमारी में भी सामान बेतरतीबी से इधरउधर डाल दिया गया था.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि माला अपने मम्मीपापा के पास चली गई हो,’’ सोच कर वह अपनी बाइक से ससुराल की तरफ चल दिया.

उस ने सासससुर से माला के बारे में पूछा तो वे चौंके, क्योंकि उस दिन माला न तो उन के पास आई थी और न ही उस दिन उस ने फोन किया था. परिवार के लोग भी परेशान थे.

इस के बाद शिवम और उस के ससुराल वालों ने दूसरे रिश्तेदारों व जानपहचान वालों को फोन कर के पूछताछ शुरू कर दी. लेकिन कहीं से भी उन्हें माला के बारे में कोई खबर नहीं मिली.

रात अधिक हो चुकी थी लिहाजा शिवम अपने ससुर व साले के साथ रात एक बजे थाना बिसरख पहुंचा. यह बात 8 अप्रैल, 2018 की है. ड्यूटी अफसर ने गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर माला के हुलिए की जानकारी वायरलैस से जिले के सभी थानों को दे दी.

पुलिस माला को अपने ढंग से तलाश कर रही थी और शिवम तथा उस के ससुराल वाले उसे अपने तरीके से ढूंढ रहे थे. इसी तरह 3 दिन गुजर गए. 11 अप्रैल की दोपहर को इंदिरापुरम पुलिस को सूचना मिली कि कनावनी में नाले के किनारे एक संदिग्ध ट्रौली बैग पड़ा है.

इस सूचना पर पुलिस वहां पहुंची. जांचपड़ताल के बाद ट्रौली बैग में एक महिला की लाश निकली, जिस के हाथपैर सूटकेस के अंदर ही बांधे गए थे. मृतका की गरदन से भी तौलिया लिपटा हुआ था, जिस से साफ लग रहा था कि उस की हत्या करने के बाद शव को ट्रौली बैग में भर कर वहां डाला गया था.

इंदिरापुरम थानाप्रभारी सचिन मलिक और क्षेत्राधिकारी धर्मेंद्र चौहान को साफ लग रहा था कि हत्या कहीं और की गई है और शव को वहां फेंका गया है. लिहाजा उन्होंने घटनास्थल व लाश की फोटो करवा कर समाचार पत्रों व टीवी चैनलों में खबरें प्रकाशित करने के लिए दे दीं.

पुलिस ने गाजियाबाद व आसपास के जिलों की पुलिस को भी लावारिस हालत में मिली महिला की लाश की सूचना दे दी ताकि जल्द से जल्द उस की पहचान हो सके. इंदिरापुरम पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम गृह में सुरक्षित रखवा दिया.

बिसरख थाने में महिला के शव मिलने की जानकारी पहुंची तो पुलिस ने उसी दिन माला के पिता रामअवतार तथा पति शिवम को फोन कर के इंदिरापुरम थाने में मिले शव के बारे में बताया. साथ ही कहा भी कि वे इंदिरापुरम पुलिस के साथ मोर्चरी जा कर वहां रखे शव को एक बार देख लें.

माला के पिता रामअवतार अपने परिवार के साथ इंदिरापुरम थाने पहुंचे और थानाप्रभारी सचिन मलिक को अपनी बेटी माला के लापता होने की बात बताई. इंदिरापुरम पुलिस उन्हें मोर्चरी ले गई.

पुलिस ने उन्हें नाले के किनारे से बरामद की गई महिला की लाश दिखाई तो रामअवतार व उन की पत्नी शव को देखते ही फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने उस की पुष्टि अपनी बेटी माला के रूप में कर दी. जिस ट्रौली बैग में माला का शव मिला था, वह उस के पिता ने शादी के वक्त माला को दी थी.

सूचना पा कर शिवम भी मोर्चरी पहुंच गया. शव को देखने के बाद उस ने भी उस की शिनाख्त अपनी पत्नी माला के रूप में कर दी. शव की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

शव की पहचान के बाद शिवम और माला के पिता इंदिरापुरम थाने पहुंच कर थानाप्रभारी से मिले. थानाप्रभारी ने उन से पूछा कि उन्हें किसी पर शक तो नहीं है. शिवम तो कुछ नहीं बता सका लेकिन माला के पिता रामअवतार ने अपने दामाद शिवम और उस के घर वालों पर शक जताया.

चूंकि मामला गंभीर था इसलिए थानाप्रभारी सचिन मलिक ने सीओ धर्मेंद्र चौहान को फोन कर के सारी बात बता दी. लिहाजा धर्मेंद्र चौहान तत्काल इंदिरापुरम थाने पहुंच गए. रामअवतार ने सीओ चौहान को बताया कि माला की शादी में उन्होंने हैसियत के अनुसार दहेज भी दिया था. लेकिन शादी के बाद से ही शिवम माला को दहेज के लिए परेशान करता था.

प्रेम विवाह करने की वजह से यह बात माला अपने परिजनों को नहीं बताती थी, लेकिन वह अपनी बहनों से अकसर शिवम की प्रताड़ना का जिक्र करती रहती थी. शिवम माला से कहता था कि वह अपने घर वालों से उसे आई10 कार व 5 लाख रुपए ला कर दे.

इस के लिए शिवम अकसर माला को ताने देता रहता था. रामअवतार ने आरोप लगाया कि शिवम ने अपने भाई तथा मांबाप के साथ मिल कर उस की हत्या की है.

रामअवतार की शिकायत पर सीओ चौहान ने उसी दिन इंदिरापुरम थाने में भादंसं की धारा 498ए (क्रूरता), 304बी (दहेज हत्या), 201 (सबूत नष्ट करने), 316 (अजन्मे बच्चे की मौत) के साथ दहेज निषेध अधिनियम 1961 के धारा 3 और 4 के तहत मुकदमा पंजीकृत करवा दिया.

चूंकि मृतका अपने पति के साथ नोएडा के हैबतपुर में रहती थी और संयोग से उस की गुमशुदगी भी उसी थाने में पहले से दर्ज थी, लिहाजा एसएसपी गाजियाबाद वैभव कृष्ण ने हत्या की जांच बिसरख थाने में स्थानांतरित करवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि मृतका माला 5 महीने की गर्भवती थी यानी ये सिर्फ एक हत्या का नहीं बल्कि एक साथ 2 हत्याओं का मामला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह भी पता चल गया कि माला की हत्या गला दबाने के कारण हुई थी.

दहेज हत्या से जुड़े मामलों की जांच चूंकि राजपत्रित अधिकारी से कराने का नियम है, इसलिए बिसरख पुलिस ने इंदिरापुरम से ट्रांसफर हो कर आए इस मामले को अपने थाने के अभिलेखों में दर्ज कर लिया, जिस की जांच बिसरख के तत्कालीन क्षेत्राधिकारी अनित कुमार सिंह को सौंप दी गई.

शिवम, उस के मातापिता और भाई को बिसरख पुलिस ने तत्काल हिरासत में ले लिया. लेकिन उन्हें जेल भेजने से पहले पुलिस को ऐसे साक्ष्य जुटाने थे, जिस से साबित होता कि वाकई शिवम व उस के परिजनों ने दहेज के लिए माला की हत्या कर के उस के शव को ठिकाने लगाया था.

शिवम नोएडा के सेक्टर-18 के एक मौल में सेल्समैन का काम करता था. लिहाजा पुलिस ने अपनी जांच वहीं से शुरू की. मौल के मैनेजर विक्रम से पूछताछ से ले कर वहां की सीसीटीवी फुटेज और बायोमेट्रिक मशीन के रिकौर्ड से पता चला कि घटना वाले दिन शिवम सुबह 9 बजे घर से आया था और रात को साढ़े 8 बजे वहां से घर जाने के लिए निकला था.

अगर वह अपनी ड्यूटी पर मौजूद था तो जाहिर है कि घटना में वह कहीं भी सक्रिय रूप से शामिल नहीं था. लिहाजा सीओ अनित कुमार सिंह ने तत्काल शिवम और उस के परिजनों की गिरफ्तारी का फैसला टाल दिया.

इस के बाद पुलिस ने शिवम के अलावा उस के मातापिता और भाई के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला कि शिवम के परिजनों को आरोपी माना जाता. लिहाजा सीओ अनित कुमार सिंह ने माला हत्याकांड के मुकदमे से दहेज हत्या की धाराएं हटा कर आगे की जांच बिसरख थानाप्रभारी अखिलेश त्रिपाठी के सुपुर्द कर दी.

थानाप्रभारी अखिलेश त्रिपाठी ने इस मुकदमे में अब भादंसं की नई धाराएं 302, 201, 316, 394, 411 जोड़ कर नए सिरे से पड़ताल शुरू कर दी. उन्होंने जानकारी जुटानी शुरू की तो पता चला कि माला के पास 2 मोबाइल फोन थे और संयोग से दोनों ही गायब थे.

शिवम ने यह भी बताया कि 7 अप्रैल को जब वह घर पहुंचा तो बाहर ताला लगा हुआ था. एक चाबी चूंकि उस के पास थी, इसलिए उस ने ताला खोल कर देखा. अंदर बैड पर अलमारी के पास सामान बिखरा पड़ा था. जबकि माला घर को करीने से सजा कर रखती थी. शिवम ने बताया कि घर से जेवरात भी गायब थे.

थानाप्रभारी ने माला के दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और फोन सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन कई दिन तक जांच के बाद भी कोई क्लू नहीं मिला. पता चला कि माला इंटरनेट का काफी इस्तेमाल करती थी, इसलिए पुलिस ने उस के वाट्सऐप और फेसबुक प्रोफाइल को भी खंगाला लेकिन उस में भी कोई सुराग नहीं मिला.

पुलिस को यह पता नहीं चला कि वह किस से बात करती थी. पुलिस को काल डिटेल्स की जांच में माला की एक सहेली के बारे में पता चला, जिस से वह जरूरत से ज्यादा बात करती थी.

लिहाजा पुलिस ने माला की उस सहेली से पूछताछ की. पता चला कि नोएडा में रहने वाली इस सहेली की भी लव मैरिज हुई थी. लेकिन पुलिस को लंबी पूछताछ के बाद भी उस से कोई जानकारी नहीं मिली.

8 अप्रैल को हुई माया की हत्या की जांच करते हुए बिसरख पुलिस को 3 महीने से ज्यादा का वक्त बीत गया था, लेकिन पुलिस को कहीं से कोई क्लू नहीं मिला.

इसी दौरान जून के आखिरी हफ्ते में गौतमबुद्ध नगर के एसएसपी डा. अजयपाल शर्मा ने क्राइम मीटिंग की समीक्षा के दौरान जब देखा कि बिसरख थाने की पुलिस माला हत्याकांड को खोलने में नाकाम रही है तो उन्होंने इस केस की जांच जिला अपराध शाखा को ट्रांसफर कर दी. जिस की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर कृष्णवीर सिंह को सौंपा गया.

इंसपेक्टर कृष्णवीर सिंह ने एक बार फिर माला हत्याकांड की जांच नए सिरे से शुरू की. उन्होंने सब से पहले माला के मातापिता के आरोपों को ध्यान में रख कर शिवम के इर्दगिर्द जांच का शिकंजा कसा.

इस के बाद माला व शिवम के विवाहेतर संबंधों को ले कर जांचपड़ताल की. तीसरे चरण में उन्होंने लूट के उद्देश्य से माला की हत्या के ऐंगल की जांच करते हुए आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछताछ की.

इसी दौरान पुलिस को माला के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों और आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ के दौरान पता चला कि गाजियाबाद के कैलाश नगर में रहने वाले माला की बुआ के लड़के मोहित और उस की पत्नी रिंकी का माला के घर काफी आनाजाना था. वारदात से एक दिन पहले भी दोनों माला के घर आए थे और 3-4 घंटे तक वहीं रहे थे.

इंसपेक्टर कृष्णवीर सिंह ने मोहित को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. उस ने बताया कि उस की पत्नी रिंकी व माला की आपस में गहरी छनती थी, इसलिए वह अकसर माला से मिलने और उस की खैरियत लेने के लिए उस के घर आताजाता रहता था. मोहित ने बताया कि आखिरी बार जब वह माला के घर उस से मिलने के लिए गया तो माला ने उस दिन उसे व रिंकी को अपने गहने और कपड़े दिखाए थे.

इस के बाद इंसपेक्टर कृष्णवीर सिंह को पूरा विश्वास हो गया कि माला के गहने देख कर शायद मोहित के मन में लालच आ गया होगा, इसलिए उन्होंने मोहित के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि मोहित की लोकेशन भी उस दिन माला के घर के आसपास नहीं थी.

इंसपेक्टर कृष्णवीर सिंह ने कई बार मोहित को पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन वह उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सके. लिहाजा उन्होंने उस की तरफ से ध्यान हटा कर दूसरे बिंदुओं पर केंद्रित कर दिया. इधर बिसरख थाने का ज्यादातर स्टाफ और थानाप्रभारी सभी बदल चुके थे.

बिसरख सर्किल के नए सीओ निशांक शर्मा को जब इस अनसुलझे केस की जानकारी मिली तो उन्होंने थानाप्रभारी अनिल कुमार शाही के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिसे इस केस को किसी भी तरह सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

इस टीम में इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) रामसजीवन, एसआई देवेंद्र कुमार राठी आदि को शामिल कर के उन बिंदुओं पर काम करने को कहा गया, जिन पर पुलिस ने अब तक गौर नहीं किया था.

इस दौरान पुलिस को हैबतपुर गांव में शिवम के घर के आसपास के लोगों से पूछताछ करने व सीसीटीवी फुटेज की पड़ताल से पता चला कि जिस दिन माला अपने घर से लापता हुई थी, कुछ लोगों ने उसी मकान में तीसरे फ्लोर पर किराए पर रहने वाले सौरभ व उस की पत्नी रितु को एक बड़े से ट्रौली बैग के साथ टैंपो से कहीं जाते देखा था.

शाम को दोनों वापस घर लौट आए थे. यह एक चौंकाने वाली जानकारी थी. शिवम से पूछताछ करने पर पता चला कि मई के महीने में सौरभ व रितु ने यह मकान खाली कर दिया था और अब वह गाजियाबाद के भीमनगर में किराए पर रहते हैं.

सीओ निशांक शर्मा ने एक पुलिस टीम को एक रणनीति के तहत सौरभ को बिना भनक लगे उस की निगरानी करने को कहा. साथ ही उन्होंने माला व शिवम के दोनों लापता मोबाइल फोन फिर से सर्विलांस पर लगवा दिए.

एक हफ्ता माला का मोबाइल फोन एक नए सिम कार्ड के साथ एक्टिव होने की जानकारी मिली. पता चला कि यह फोन अलीगढ़ के थाना पिसावा के गांव राऊपुर में रहने वाला शिवचरण दिवाकर इस्तेमाल कर रहा है.

सीओ निशांक शर्मा के निर्देश पर इंसपेक्टर रामसजीवन और एसआई देवेंद्र राठी की टीम ने उस गांव में जा कर शिवचरण को हिरासत में ले लिया. शिवचरण ने बताया कि यह फोन कुछ दिन पहले उस के बेटे सौरभ दिवाकर ने उसे दिया था.

सौरभ का नाम सामने आते ही सीओ निशांक पूरी कहानी समझ गए. उन्होंने उसी समय सौरभ को हिरासत में लेने के लिए एक टीम उस के भीमनगर स्थित घर भेज दी. सौरभ तो घर पर नहीं मिला लेकिन उस की पत्नी रितु घर पर ही मिल गई. महिला पुलिस उसे थाने ले आई.

पुलिस को देखते ही रितु के हाथपांव फूल गए. सख्ती करने पर रितु ने स्वीकार किया कि माला की हत्या उस ने ही की थी. फिर घर में लूटपाट करने के बाद शव ट्रौली बैग में रख कर कनावनी नाले के पास फेंक दिया था.

पुलिस टीम ने उसी समय माला की निशानदेही पर उस के घर से करीब 3 लाख रुपए के आभूषण, कीमती कपड़े तथा एक अन्य मोबाइल और दूसरा कीमती सामान बरामद कर लिया.

इस के बाद पुलिस सौरभ दिवाकर की तलाश में जुट गई. अगली सुबह पुलिस ने सौरभ को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि सौरभ मूलरूप से अलीगढ़ के पिसावा का रहने वाला था और माला की हत्या के समय उसी मकान में तीसरे फ्लोर पर किराए पर रहता था, जिस मकान के दूसरे फ्लोर पर शिवम और माला रहते थे.

सौरभ ने बताया कि 6 अप्रैल को माला की बुआ का लड़का मोहित व उस की पत्नी रिंकी उस से मिलने घर गए थे. घर में माला ने रिंकी को अपनी शादी के कीमती कपड़े, साडि़यां और आभूषण दिखाए थे. इसी दौरान वहां पर रितु भी पहुंच गई थी. उस ने आभूषण व कपड़े देख लिए थे. जिस के बाद रितु के मन में लालच आ गया और उस ने यह बात अपने पति सौरभ को बताई.

दोनों ने मिल कर आभूषण व महंगे कपड़े लूटने के लिए माला की हत्या की साजिश रची. सौरभ एक तो नशे का आदी था, दूसरे उस का कामधंधा ठीक नहीं चल रहा था. आर्थिक तंगी के कारण सौरभ ने माला की हत्या कर के उस के घर में चोरी की साजिश रच डाली.

7 अप्रैल, 2018 को शिवम के जाने के बाद सौरभ के कहने पर रितु ने बहाने से माला को अपने घर बुलाया. पहले उन्होंने मिल कर चाय पी और उस के बाद सौरभ ने गमछेनुमा तौलिए से माला का गला घोंट कर हत्या कर दी.

माला की लाश को अपने घर में ही छोड़ कर उस के कमरे की चाबी ले कर दोनों माला के घर पहुंचे. उन्होंने माला के घर की अलमारी में रखी 7 महंगी साडि़यां, लहंगाचुन्नी, स्वेटर और शौल निकाल लिए. साथ ही घर से मिले करीब 3 लाख रुपए के जेवर बाजार में ले जा कर बेच दिए. जबकि 35 हजार रुपए की नकदी अपने पास रख ली थी.

सौरभ ने माला के घर में रखा शिवम और माला का मोबाइल भी चुरा कर स्विच्ड औफ कर दिया. सौरभ माला के यहां से उस का ट्रौली बैग भी चुरा लाया था. बाद में इसी ट्रौली बैग में उस ने हाथपांव बांध कर माला के शव को भर दिया.

दोपहर बाद सौरभ किराए का एक टैंपो ले आया. पत्नी के साथ लाश से भरे ट्रौली बैग को ले कर वह वहां से विजयनगर के कनावनी पहुंचा, जहां उन्होंने टैंपो को छोड़ दिया. टैंपो वाले के जाने के बाद कुछ दूर तक पतिपत्नी बैग को साथ ले गए. इस के बाद मौका देख कर उन्होंने बैग सड़क से नीचे नाले के किनारे लुढ़का दिया और फिर वहां से वापस घर लौट आए.

सौरभ ने माला के घर से चुराए गए 2 मोबाइल फोन में से एक तो अपने घर में ही छिपा कर रख लिया और दूसरा अलीगढ़ में रहने वाले अपने पिता को दे दिया. कुछ दिन पहले उस ने इस मोबाइल में एक सिमकार्ड डाल कर उन्हें इस्तेमाल लिए दे दिया था.

पिछले 5 महीने से माला हत्याकांड का राज खोलने के लिए जुटी बिसरख पुलिस को इस मोबाइल की घंटी बजते ही इस हत्या का राज खोलने का रास्ता मिल गया. सौरभ दिवाकर व उस की पत्नी से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.   ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्लैकमेलर की बिसात पर शातिर हसीना की चाल

सुशील कुमार सिंह दिल्ली के चावड़ी बाजार स्थित वीनस इंटरप्राइजेज नाम की दुकान पर काम करता था. यहां उस की इसी साल नौकरी लगी थी. यह सैनिटरीवेयर की नामचीन दुकान थी. सुशील यहां एकाउंटेंट का काम करता था.

11 अगस्त, 2018 की शाम को सुशील दुकान के मालिक पवन से कह कर निकला कि वह अपने गांव जा रहा है. वहां से 2 दिन बाद लौटेगा. सुशील जब 3-4 दिन बाद भी काम पर नहीं लौटा तो पवन ने उस के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ निकला. 2-3 बार की कोशिश के बाद भी उस का फोन नहीं मिला तो पवन को सुशील पर काफी गुस्सा आया.

पवन के पास सुशील के पिता ऋषिपाल सिंह का भी फोन नंबर था. उस ने फौरन फोन लगा कर ऋषिपाल सिंह से सुशील के काम पर नहीं लौटने की शिकायत की. पवन की बात सुन कर ऋषिपाल सिंह चौंक गए, क्योंकि सुशील 11 अगस्त की शाम घर पहुंचा ही नहीं था. उन्होंने यह बात पवन को बताई तो पवन ने चिंता जाहिर करते हुए पुलिस में मामला दर्ज कराने का सुझाव दिया.

16 अगस्त, 2018 को ऋषिपाल सिंह दिल्ली के थाना हौजकाजी पहुंचे और बेटे की फोटो दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस केस की तहकीकात का जिम्मा एसआई आर.के. सिंह को दिया गया. उन्होंने ऋषिपाल सिंह से सुशील के बारे में जरूरी जानकारी लेने के बाद उस के दोस्तों व करीबियों के मोबाइल नंबर अपनी डायरी में नोट कर लिए.

एसआई आर.के. शर्मा ने डायरी में दर्ज किए सभी मोबाइल नंबरों की जांचपड़ताल शुरू की. इन में से एक मोबाइल नंबर बंद मिला तो उन्होंने उस की और गुमशुदा सुशील दोनों की काल डिटेल्स निकलवाई. उन्होंने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो पाया कि सुशील के फोन से दूसरे फोन पर काफी मैसेज भेजे गए थे.

उस फोन नंबर की पुलिस ने जांच की तो पता चला वह किसी व्यक्ति ने फरजी आधार कार्ड से लिया था. लेकिन पुलिस ने पता लगा ही लिया कि उस मोबाइल नंबर को डिंपल उर्फ डौली चौधरी नाम की लड़की इस्तेमाल कर रही थी.

इसी बीच ऋषिपाल ने हौजकाजी थाने पहुंच कर थानाप्रभारी हरिवंश और एसआई आर.के. शर्मा को बताया कि पिछले 6 साल से सुशील का अफेयर पड़ोसी गांव की डिंपल उर्फ डौली चौधरी से चल रहा था. पिछले डेढ़ साल से वह ग्रेटर नोएडा के अमित मावी नाम के किसी युवक के साथ रह रही है.

इसी वजह से सुशील और डौली के संबंध तनावपूर्ण थे. इतना ही नहीं एक दिन डौली ने उस के घर आ कर शिकायत भी की थी कि सुशील उसे बेवजह परेशान करता है.

इस बात को ले कर गांव में पंचायत भी बैठी थी. पंचायत ने सुशील को डिंपल को परेशान न करने और आगे डौली से किसी प्रकार का भी संबंध न रखने का फैसला सुनाया था.

ये बातें जान कर एसआई आर.के. शर्मा को लगने लगा कि सुशील के गायब होने के तार डौली चौधरी से जुड़े हैं. पुलिस जब किसी केस की जांच शुरू करती है तो उसे केस से जुड़े कई सिरों की जांच करनी पड़ती है.

शर्मा ने डिंपल के उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा में आने वाले गांव पिंजरी पहुंच कर उस से पूछताछ की. उस ने यह बात स्वीकार कर ली कि उक्त मोबाइल नंबर का इस्तेमाल वही कर रही है.

पुलिस ने जब उस से सुशील के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि सुशील कहां गया है, उसे इस की कोई जानकारी नहीं है. उस से विस्तार से पूछताछ करना जरूरी था, इसलिए पुलिस उसे 25 अगस्त, 2018 को दिल्ली ले आई.

पुलिस ने थाने में उस से काफी देर तक पूछताछ की मगर डौली की बातों से कहीं भी यह जाहिर नहीं हुआ कि सुशील के गायब होने में उस का कोई हाथ है. डौली ने हरेक सवाल का जवाब बड़े ही संयम से दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे घर भेज दिया. लेकिन शक होने पर पुलिस ने 30 अगस्त को डौली को फिर थाने बुला लिया. पुलिस ने उस से पूछा कि एक दिन उस के और उस के दूसरे प्रेमी मनीष चौधरी के मोबाइल फोन क्यों बंद थे.

इस सवाल का वह कोई तर्कसंगत जवाब नहीं दे पाई. मजबूर हो कर उस ने सच्चाई बता दी. डौली ने बताया कि सुशील की हत्या कर दी गई है. डौली की बात सुन कर सभी चौंके.

डिंपल उर्फ डौली चौधरी के जुर्म स्वीकारोक्ति के अनुसार 11 अगस्त की रात उस ने अपने दूसरे प्रेमी मनीष चौधरी के साथ मिल कर सुशील को बेहोशी की हालत में मथुरा के पास यमुना नदी की उफनती धारा के बीच फेंक दिया था.

सुशील कुमार की हत्या का खुलासा होते ही पुलिस ने डौली चौधरी को गिरफ्तार कर लिया. साथ ही गुमशुदगी के मामले को अपहरण में तब्दील कर दिया गया. सुशील की हत्या के बाद इस केस की जांच इंसपेक्टर (इनवैस्टीगेशन) एम.पी. सैनी को सौंप दी गई.

डौली चौधरी की निशानदेही पर पुलिस ने 2 सितंबर को इस हत्याकांड में लिप्त दूसरे आरोपी मनीष चौधरी को मथुरा के उसी होटल से गिरफ्तार कर लिया, जहां हत्या के दौरान डौली चौधरी उस के साथ ठहरी थी. पूछताछ के दौरान मनीष ने भी सुशील की हत्या में शामिल होने और उस की लाश को यमुना में फेंकने की बात मान ली.

डौली चौधरी और मनीष चौधरी की निशानदेही पर पुलिस ने मृतक सुशील कुमार सिंह की सोने की घड़ी, कपड़े, बैग आदि बरामद कर लिए. लाश की तलाश के लिए पुलिस ने 2 बार गोताखोरों को यमुना नदी में उतारा, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी.

डौली चौधरी और उस के प्रेमी मनीष चौधरी द्वारा दिए गए बयानों, पुलिस की जांच तथा मृतक सुशील के परिजनों से बातचीत के आधार पर इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर आई, वह इस प्रकार है—

23 वर्षीय सुशील कुमार सिंह उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के गांव नंगला जगदेव निवासी ऋषिपाल सिंह का बड़ा बेटा था. ग्रैजुएशन करने के बाद सुशील ने कुछ साल एक सीए के पास रह कर एकाउंट का काम सीखा.

जब वह इस काम में पारंगत हो गया तो उस ने लगभग 7 महीने पहले दिल्ली के चावड़ी बाजार स्थित पवन कुमार की हार्डवेयर की दुकान में एकाउंटेंट की नौकरी कर ली. यहां उसे अच्छी सैलरी मिलती थी, सो उस की जिंदगी मजे में कट रही थी. उस के पिता ऋषिपाल सिंह भी दिल्ली के एमटीएनएल विभाग में कार्यरत थे, इसलिए घर में किसी बात की कमी नहीं थी.

नौकरी के शुरुआती दिनों में वह रोजाना ट्रेन से दिल्ली आता और शाम को अपने घर लौट जाता था. पिछले 6 साल से सुशील अपने गांव से सटे दूसरे एक गांव पिंजरी की रहने वाली डिंपल चौधरी उर्फ डौली के साथ रिलेशनशिप में था. डौली जिन दिनों 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी, उसी दौरान दोनों के बीच प्यार का सिलसिला शुरू हुआ.

12वीं पास करने के बाद सुशील के दबाव देने पर डिंपल ने आगे की पढ़ाई छोड़ दी थी, क्योंकि सुशील ने उस से शादी कर के उसे अपना बना लेने का वादा किया था. डिंपल मौडर्न खयालों वाली खूबसूरत युवती थी, जो अपनी जिंदगी के हर पल को पूरी शिद्दत के साथ जीने का जज्बा रखती थी.

जब भी उसे किसी चीज की जरूरत होती, वह प्रेमी सुशील को बता देती थी. वह उस की हर फरमाइश पूरी करता था. जब सुशील को दिल्ली में काम करते हुए कुछ वक्त हो गया तो उस ने सबोली बाग की गली नंबर-5 में किराए पर एक कमरा ले कर रहना शुरू कर दिया. यह उस का डिंपल से मिलने का एक सुरक्षित ठिकाना बन गया. कभीकभी डौली उस के बुलाने पर कमरे पर पहुंच जाती थी.

सुशील ने एक दिन डौली को महंगा गिफ्ट दे कर उस के कुछ न्यूड फोटो अपने मोबाइल से खींच लिए थे. इस के बाद जब भी उस की डौली को बुलाने की इच्छा होती, डराधमका कर उसे बुला लेता. डौली को न चाहते हुए भी मजबूरी में उस के पास आना पड़ता था. न्यूड फोटो के कारण वह सुशील के हाथ की कठपुतली बनती गई.

इस के बाद सुशील उस के साथ मनमर्जी करने लगा. वह कभी उस के साथ मथुरा के होटलों में जा कर रुकता तो कभी उसे दिल्ली में अपने कमरे में रोक लेता था. वह उस के इशारों पर नाचने के लिए मजबूर थी. कभीकभी तो वह खून का घूंट पी कर रह जाती थी.

एक बार जब वह सुशील के बुलाने पर उस के पास नहीं पहुंची तो सुशील ने उस का न्यूड फोटो उस के ताऊ के बेटे के मोबाइल पर भेज दिया. दूसरी बार उस ने डौली का एक न्यूड फोटो उस की बड़ी बहन के मोबाइल पर भेजा, जिस की वजह से डौली के बिगड़े चालचलन के बारे में उस के घर वालों को पता चल गया.

डौली ने हिम्मत कर के सुशील के घर वालों से उस की इस हरकत की शिकायत कर दी. गांव में इस बात को ले कर पंचायत भी बैठी, जिस में सुशील और डौली को बुला कर एकदूसरे से दूर रहने को कहा गया था. उस दौरान पंचों के डर से सुशील ने उन की बात मान लेने को कह दिया था.

लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उस ने डौली को फिर से बुलाना शुरू कर दिया तो डौली ने उस की इच्छाओं के आगे समर्पण करने में ही भलाई समझी. इस तरह सुशील अपनी जिंदगी को डौली के साथ एंजौय कर रहा था. उस का सोचना था कि अब डौली आजीवन उस के हाथ की कठपुतली बन कर नाचती रहेगी.

करीब डेढ़ साल पहले डौली ने सुशील से कहा कि अब वह नौकरी करना चाहती है, तब सुशील ने उस की मुलाकात ग्रेटर नोएडा के रहने वाले अपने दोस्त बंटी से करा दी. बंटी और सुशील के बीच इतनी गहरी दोस्ती थी कि वे दोनों एकदूसरे के सभी राज जानते थे.

बंटी के कहने पर डौली एक दिन उस से मिलने ग्रेटर नोएडा पहुंची, जहां पर बंटी ने काम दिलाने के लिए उसे अपने एक करीबी दोस्त मोहित मावी से मिलवाया. पहली मुलाकात में ही मोहित डौली की खूबसूरती का कायल हो गया और उस से प्रभावित हो कर उस ने डौली को अपने ही पास रखने का फैसला कर लिया.

मोहित का चाचा लेबर कौन्ट्रैक्टर था, सो उस ने कुछ सोच कर डौली को 10 हजार रुपए प्रति महीने की नौकरी पर रख लिया. डौली उस के पास नौकरी करने लगी.

शुरू में वह अपने गांव से ग्रेटर नोएडा के अल्फा सेक्टर में नौकरी करने आती थी. बाद में मोहित ने सूरजपुर में उसे एक कमरा किराए पर दिला दिया. इस के कुछ दिन बाद मोहित मावी उस से मिलने उस के कमरे पर भी जाने लगा. उस ने अपने मन की मंशा उस पर जाहिर कर दी.

डिंपल पहले से ही मोहित की मंशा समझ चुकी थी, लेकिन जब मोहित ने उस के सामने अपना प्यार जाहिर किया तो डौली ने खुशी से उस की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद मोहित कभीकभी रात में भी डौली के कमरे पर रुकने लगा. अब डौली मोहित को खुश करती, इस के बदले में मोहित उसे महंगी शौपिंग कराने के साथ जेबखर्च के पैसे भी दे देता था. इस तरह उस की जिंदगी बड़े आराम के साथ गुजरने लगी थी.

कुछ दिनों बाद डौली ने अपने पहले प्रेमी सुशील से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब जब भी सुशील उसे मिलने के लिए अपने पास बुलाता तो वह कोई न कोई बहाना बना कर उस से कन्नी काटने का प्रयास करती थी.

कुछ लोगों की आदत होती है कि मसाला लगा कर इधर की बात उधर करते हैं. बंटी भी उन्हीं में से था. वह मोहित और सुशील दोनों का दोस्त था लेकिन वह दोनों के मन की टोह ले कर उन्हें एकदूसरे के खिलाफ भड़काने का काम करता था. इस काम में उसे बड़ा आनंद आता था.

एक दिन बंटी ने जब मोहित मावी और डौली की बढ़ती नजदीकियों की सूचना सुशील को दी तो सुशील परेशान हो गया. उसे यह शंका होने लगी कि कहीं मोहित उस की प्रेमिका से शादी न कर ले. इस के लिए उस ने डौली को मोहित से दूर रहने को कह दिया.

साथ ही वह डौली पर नौकरी छोड़ देने का दबाव भी बनाने लगा. ऐसा न करने पर उस ने डौली को उस के न्यूड फोटो इंटरनेट पर डालने की धमकी दे दी. उस की इन धमकियों से डौली तनाव में आ गई. चिंता में उसे रात भर नींद नहीं आती थी. मजबूरी में उस ने रात में नींद की गोलियां लेनी शुरू कर दीं.

मोहित मावी की पत्नी पूजा भी ग्रेटर नोएडा के अल्फा सेक्टर में रहती थी. पूजा को जब पता लगा कि उस के पति का किसी डौली नाम की लड़की से चक्कर चल रहा है तो उस ने पति को समझाया. मगर मोहित मावी डौली चौधरी के प्यार में इस कदर पागल हो चुका था कि उस ने पत्नी की बातों को अनसुना कर दिया. पति की अनदेखी से आहत हो कर करीब 2 महीने पहले पूजा ने आत्महत्या कर ली.

पूजा के भाइयों ने उस की मौत की सूचना स्थानीय पुलिस को नहीं दी. चूंकि वे दबंग थे, इसलिए मोहित को यह डर सताने लगा कि कहीं वह अपनी बहन की मौत का बदला लेने के लिए उस के दरवाजे पर न धमक जाएं. इस डर की वजह से मोहित बेंगलुरु भाग गया. लेकिन बेंगलुरु जाने के बाद भी वह डौली के साथ लगातार संपर्क में रहा.

घटना से पहले सुशील ने डौली के मोबाइल पर फोन कर के 11 अगस्त को मथुरा में मिलने और मोहित मावी के बारे में अंतिम फैसला लेने के लिए कहा तो डौली की सहनशक्ति जवाब दे गई.

डौली का एक और प्रेमी मनीष चौधरी भी था, जो मथुरा के गांव बछगांव में रहता था. 28 साल का मनीष चौधरी कुछ समय पहले डौली के गांव में जमीन खरीदने के एक मामले में सलाह लेने के लिए उस के पिता पुनीत चौधरी से मिला था. मनीष ने उन्हें 50 हजार रुपए का कर्ज भी दिया था, जिसे वह अब तक नहीं चुका पाए थे.

उसी दौरान मनीष की नजर डौली से लड़ गई तो उस ने पुनीत चौधरी के आगे डौली से शादी करने की इच्छा जाहिर कर दी. चूंकि मनीष पैसे वाला आसामी था, इसलिए पुनीत चौधरी ने सोचा कि अगर डौली की शादी मनीष से हो जाएगी तो उस का घर भी संवर जाएगा.

जब सुशील ने डौली को फिर से ब्लैकमेल किया तो डौली ने सुशील से मथुरा में मिलने की बात तो मान ली लेकिन इस बार उस ने मन ही मन सुशील को अपने रास्ते से हटाने का फैसला भी कर लिया. उस ने इस बारे में मनीष से बात की तो वह भी सुशील कुमार की हत्या में डौली का साथ देने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने सुशील की हत्या की एक फूलप्रूफ योजना बनाई.

योजना के मुताबिक 10 अगस्त, 2018 को ही मनीष मथुरा पहुंच गया और वहां के गोपी होटल में एक कमरा ले कर ठहर गया. योजना के अनुसार, डौली ने एक स्थानीय दुकान से नींद की 50 गोलियां खरीद लीं और अपनी नई स्कूटी से गोपी होटल पहुंच गई. 11 अगस्त की रात 10 बजे दोनों होटल से बाहर निकले. डिंपल ने सुशील को फोन कर के कहा कि वह उस से मिलने मथुरा आ गई है, इसलिए किसी होटल में कमरा बुक करा ले.

यह बात सुन कर सुशील बहुत खुश हुआ, उस ने वरुण रेजीडेंसी में अपनी आईडी दे कर एक कमरा बुक करा लिया. फिर डौली को वहां पहुंचने के लिए कह दिया. थोड़ी ही देर में डौली वहां पहुंच गई. डौली को सामने पा कर सुशील की आंखों में एक अनोखी चमक उभर आई. वह उसे ले कर कमरे में चला गया. कमरे में पहुंच कर उस ने कोल्डड्रिंक्स और बिरयानी का और्डर दिया.

सुशील दिल्ली से मथुरा पहुंचा था, इसलिए वह थका हुआ था. खाने के पहले वह नहा कर फ्रैश होना चाहता था. होटल का कमरा बाथरूम अटैच्ड नहीं था. बाथरूम कमरे से बाहर एक ओर बना था. वह नहाने के लिए बाथरूम में चला गया.

उसी दौरान वेटर उन के और्डर की कोल्डडिं्रक्स और बिरयानी की 2 प्लेटें कमरे में आ कर रख गया. जैसे ही सुशील बाथरूम में गया, डिंपल उर्फ डौली ने नींद की सारी गोलियां सुशील की स्प्राइट की बोतल में डाल दीं. कुछ ही देर में सारी गोलियां घुल गईं.

जब सुशील नहा कर कमरे में पहुंचा तो वह पूरी तरह से तरोताजा था. वह डिंपल की ओर देख कर मुसकराया फिर कपड़े बदल कर उस ने उस की चिकनी कमर में बांहें डाल दीं. डौली प्यार का नाटक करती हुई उस के नंगे तन से लिपट गई.

थोड़ी देर दोनों एकदूसरे के आगोश में पड़े रहे. इसी दौरान डौली ने सुशील को प्यार से अलग करते हुए स्प्राइट की बोतल पकड़ा दी और खुद पेप्सी की बोतल हाथ में ले कर पीने लगी. इस बीच दोनों मीठीमीठी बातें करते रहे.

जैसे ही सुशील की कोल्डड्रिंक्स खत्म हुई उस पर नींद की गोलियों का असर होना शुरू हो गया. जब वह पूरी तरह बेहोश हो गया तो डिंपल उर्फ डौली ने होटल के बाहर इंतजार कर रहे मनीष को फोन कर के बुला लिया और उस की मदद से बेहोश सुशील को अपनी स्कूटी तक ले जाने लगी.

जब इस में परेशानी हुई तो उस ने होटल से एक स्टाफ को यह कह कर मदद के लिए बुलाया कि उस के भाई की तबीयत अचानक खराब हो गई है, इसे अस्पताल ले जाना है.

स्टाफ की मदद से दोनों ने सुशील को स्कूटी के बीच में बिठाया. डौली अपनी स्कूटी ड्राइव करती हुई मथुरा के ओल्ड ब्रिज के बीचोबीच पहुंची और दोनों ने बेहोश सुशील को यमुना नदी की उफनती धारा में फेंक दिया. इस के बाद वे दोनों अपने कमरे में लौटे और अगले दिन अपनेअपने गांव चले गए.

विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर एम.पी. सैनी ने डिंपल उर्फ डौली और मनीष को अदालत में पेश कर के अलगअलग तिथियों में दोनों को 2 दिनों की रिमांड पर लिया.

उन की मदद से केस से संबंधित सारे साक्ष्य इकट्ठा करने के बाद उन्हें फिर से अदालत में पेश कर दिया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. चूंकि अभी सुशील की लाश बरामद नहीं हो सकी थी, इसलिए हौजकाजी थाना पुलिस सरगर्मी से लाश की तलाश में जुटी थी.

सेंट्रल दिल्ली के डीसीपी एम.एस. रंधावा ने इस बारे में मथुरा के एसपी से संपर्क स्थापित कर लाश को बरामद करने में सहयोग करने की अपील की है.

इकोनौमिकल अब्यूज : महिलाओं के खिलाफ फिजिकल अब्यूज सरीखा वेपन 

जिस तरह फिजिकल अब्यूज यानी यौन उत्पीड़न में महिला के शरीर पर चोट के निशान या दूसरे बाहरी संकेत नहीं दिखते, क्योंकि कई बार यह नजरों या बातों से किया गया उत्पीड़न होता है, ठीक वैसे ही इकोनौमिकल अब्यूज होता है, जो आज दुनियाभर की महिलाओं के साथ हो रहा है लेकिन इसे साबित करना काफी पेचीदा होता है. लिहाजा, पुरुष इस हथियार का इस्तेमाल महिलाओं को घर में कैद रखने, उन की आत्मनिर्भरता पर अंकुश लगाने या फिर व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए करते हैं.

यह एक तरह का आर्थिक शोषण है जहां आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल महिलाओं और बच्चों की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है. हाल में अभिनेत्री और पूर्व मिस इंडिया निहारिका सिंह ने देश में चल रहे मी टू अभियान से उत्साहित हो कर खुलासा किया है कि उन्हें भी मनोरंजन उद्योग में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, भूषण कुमार और साजिद खान के हाथों फिजिकल और इकोनौमिकल अब्यूज का सामना करना पड़ा है.

क्या होता है इकोनौमिकल अब्यूज

भारत में महिलाएं ही घर का बजट, राशनपानी और दूसरे खर्च संभालती हैं. पति अपनी कमाई का एक हिस्सा दे कर महीनेभरे के घरेलू काम से आजादी पा लेता है और महिलाएं, चूंकि घर का खर्च पुरुषों से ज्यादा बेहतर ढंग से चला सकती हैं, इसलिए घर के खर्चपानी के प्रबंधन से ले कर फालतू खर्चे पर रोक लगाना, आर्थिक उधारी जैसे डैबिट कार्ड या बिल चुकाने आदि को ले कर सजग रहना, निवेश और बचत में सक्रिय रहना उन की लाइफस्टाइल का हिस्सा हो जाता है. लेकिन अचानक जब पत्नियों से घर के खर्चे के लिए दी गई रकम छीन ली जाती है और उन्हें हर जरूरत के लिए आर्थिक तौर पर लाचार बना दिया जाता है, तब यह इकोनौमिकल अब्यूज का मामला हो जाता है. पति अपने पैसों का इस्तेमाल महिला को कंट्रोल करने या सबक सिखाने के लिए करे तो वह इकोनौमिकल अब्यूज कहलाता है.

इकोनौमिकल अब्यूज के बढ़ते मामले

इकोनौमिकल अब्यूज यों तो दुनियाभर में हो रहा है, लेकिन अगर भारत की बात करें तो इस के मामले आएदिन अखबारों की सुर्खियों में मिल जाते हैं जहां इकोनौमिकल अब्यूज की शिकार महिलाएं कभी अपराध, कभी तलाक तो कभी कोर्ट के दरवाजे पर खड़ी मिलती हैं. कुछ सुर्खियों पर नजर डालते हैं-

12 अगस्त, 2018 : घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने और पति के नशे का आदी होने से 3 महिलाएं मैट्रो में चोरी करने लगीं. आरोपी महिलाएं मूलरूप से महाराष्ट्र के नागपुर शहर की रहने वाली हैं.

 13 अगस्त, 2018 : हरियाणा के भिवानी इलाके में तीन तलाक का एक बेहद ही गंभीर मामला सामने आया है. जहां एक महिला ने अपने फौजी पति से घर को चलाने के लिए पैसे मांगे तो उस के जवाब में पति ने उसे चिट्ठी में तलाक लिख कर भेज दिया.

10 जुलाई, 2018 : 3 बच्चों की पढ़ाईलिखाई व घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए 27 वर्षीय रेनू ने ईरिकशा चलाना शुरू कर दिया.

4 मई, 2018 : पंजाब के बरनाला जिले के गांव सहजड़ा की लापता मांबेटी को पुलिस ने ढूंढ़ लिया और उन्हें अदालत में पेश किया. अदालत में उक्त महिला ने अपने पति पर खर्च न देने के आरोप लगाए और पति के साथ न जाने व प्रेमी के साथ जाने के बयान दर्ज करवाए हैं. जिस के बाद कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पर्चा रद्द कर दिया और महिला अपनी बेटी व प्रेमी के साथ चली गई.

सुर्खियां 4, लेकिन शोषण वही

उपरोक्त चारों मामले इकोनौमिकल अब्यूज के हैं. पहले मामले में घर का खर्च पति से नहीं मिला, सो, महिलाएं अपराध करने लगीं. अगर इन महिलाओं को अपने ही घर में इकोनौमिकल अब्यूज का शिकार नहीं होना पड़ता तो शायद ये अपराध के दलदल में न उतरतीं.

दूसरे मामले में इकोनौमिकल अब्यूज उसे तलाक के दरवाजे तक ले गया जब एक महिला को पति से घर चलाने के लिए पैसे मांगने पड़े. जाहिर है वह काफी समय से इकोनौमिकल अब्यूज का शिकार हो रही थी. और जब उस ने इस वित्तीय शोषण के खिलाफ आवाज उठाई तो उसे तलाक का तमाचा मिला.

तीसरे मामले की बात करें तो एक महिला जब लगातार इकोनौमिकल अब्यूज से जूझ रही है तो एक दिन आजिज आ कर खुद को इकोनौमिकल तौर पर मजबूत बनाने के लिए बाहर निकलती है और ईरिकशा चला कर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ लेती है. शुरुआत में समाज ताने मारता है लेकिन आखिरकार महिला अपने दम पर खड़ी हो ही जाती है.

चौथा मामला काफी अलग है. इस में महिला पर जब पति ने आर्थिक अंकुश लगाया तो उस ने एक नया प्रेमी खोज लिया जो उसे इकोनौमिकल अब्यूज से नजात दिला रहा था. पति ने कोर्ट में भी गुहार लगाई लेकिन जज का फैसला सराहनीय रहा और इकोनौमिकल अब्यूज की सजा पति को देते हुए महिला को बेटी सहित प्रेमी के साथ जाने की इजाजत दे दी.

तीसरा तरीका है तर्कसंगत

15 से 49 साल के आयुवर्ग की महिलाओं में से करीब 27 फीसदी, 15 साल की उम्र से ही घरेलू हिंसा बरदाश्त करती आ रही हैं. विडंबना यह है कि इन में से ज्यादातर को इस में कोई खास शिकायत भी नहीं है.

जाहिर है इन में ज्यादातर महिलाएं इसलिए फिजिकली अब्यूज्ड होती हैं क्योंकि इन के पास आर्थिक स्वतंत्रता नहीं है. यह कहा जा सकता है कि हर अब्यूज की जड़ इकोनौमिकल अब्यूज ही है. यह एक तरह का आर्थिक शोषण है जहां आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल महिलाओं और बच्चों की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है.

वंचित महिलाओं और लड़़कियों के लिए काम कर रहे न्यूजीलैंड के एक संगठन गुड शेफर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, 50 से अधिक फ्रंटलाइन श्रमिकों और सामुदायिक समूहों, वित्तीय संस्थानों की ओर से महिलाओं के साथ आर्थिक दुर्व्यवहार के मामले दर्ज किए जाते हैं.

इस लिहाज से यह दुनियाभर की महिलाओं की समस्या है चाहे वह कीवी महिला हो या फिर अमेरिकी या इंडियन. चूंकि महिलाओं के बारे में हमेशा से माना जाता है कि वे बहुत खर्चीली होती हैं, सजनेसंवरने, कपड़ों व जूतों पर ज्यादा पैसा खर्च करती हैं, इसलिए उन के खर्चों पर कंट्रोल कर उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि बिना पुरुषों के उन का अस्तित्व नहीं है. ऐसे में इस शोषण से निबटने का सब से तर्कसंगत तरीका तीसरा वाला है जहां 27 वर्षीय रेनू ईरिकशा चला कर अपनी आर्थिक स्वतंत्रता खरीद रही है. ऐसी हालत में अब उस के साथ कोई भी इकोनौमिकल अब्यूज नहीं कर सकता.

आर्थिक निर्भरता का मामला

दरअसल, इस समस्या के समाधान के लिए महिलाओं को शिक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर बनना होगा. अगर बिजनैस से ले कर नौकरी के क्षेत्र में इन की भागीदारी बढ़े तो पुरुषों की धारणा बदले. महिलाओं के प्रति भेदभाव और उपेक्षा को केवल साक्षरता और जागरूकता पैदा कर ही खत्म किया जा सकता है. अब महिलाएं सिर्फ घर संभालने वाली पत्नी ही नहीं, बल्कि घर और औफिस दोनों मैनेज करती हैं. हालांकि शहरों में हालात बदले हैं लेकिन आर्थिक निर्णय लेने के अधिकार अभी भी घर के पुरुषों के पास ही हैं.

पुरुषों को भी यह समझना होगा कि परदे में या दरवाजों के भीतर महिलाओं को आर्थिक तंगी में रखना ठीक नहीं है. जरूरत है उन बंद दरवाजों को खोलने की वरना ये महिलाएं अपनी आर्थिक आजादी के लिए घर और समाज की दहलीज लांघने में देर नहीं लगाएंगी. यह अलग बात है कि कई बार उन के कदम गलत दरवाजों पर जा कर रुकेंगे, लेकिन इस का कोई विकल्प भी नहीं है.

घूस पाप या जुर्म नहीं मुक्ति का उपाय है

सरकारी दफ्तरों में काम कराने का सब से आसान तरीका घूस देने को भी केंद्र सरकार ने लोगों से छीन लिया है. हर किसी का सरकारी विभागों से वास्ता पड़ता है और सभी को मालूम है कि काम तभी होगा जब घूस दी जाएगी. लोग बेफिक्र हो कर सरकारी दफ्तर कूच कर जाते थे और काम के मुताबिक 1000-500 से ले कर लाखदोलाख रुपए देंगे तो उन का काम हो जाएगा. चिंता तो इस बात की रहती थी कि कहीं बाबू या साहब ने ईमानदारी दिखाते हुए घूस के पैसे को पाप समझ लिया तो जरूर दिक्कत खड़ी हो जाएगी.

इस डर की वजह वे कानून और नियम हैं जिन को हथियार बना कर बाबू या साहब काम करने में असमर्थता जाहिर कर देते हैं. ज्यादा चिल्लपों करने पर वह दोटूक कह देता है कि अब ये नियम हम ने थोड़े बनाए हैं. आप चाहो तो ऊपर शिकायत कर दो लेकिन मैं नियमकानून तोड़ कर अपनी नौकरी से नहीं खेलूंगा.

इस ब्रह्मास्त्र के चलते ही अच्छेअच्छे हरिश्चंद्रों के आदर्श, उसूल और ईमानदारी धूल चाटते नजर आने लगते थे और वे हथियार डाल कर पूछते थे, अच्छा, तो बताइए कितने रुपए देने हैं?

इस पर ईमानदारी से सरकारी मुलाजिम बता देता था कि इतनी दक्षिणा लगेगी, तब कहीं जा कर वह नियम, कानून और अपने ईमान से खिलवाड़ करने का जोखिम उठाएगा. सौदा पहले ही झटके में हो जाता था जिस से लेने वाला भी खुश और देने वाला भी यह सोच कर खुश हो जाता था कि चलो, काम हो गया. ऊपर वाले की कृपा है कि साहब घूस लेने को तैयार हो गए वरना एडि़यां घिस जातीं. ऊपर शिकायत करने पर घूस की रकम और बढ़ जाती तथा काम आसानी से नहीं होता, सो अलग.

हजार में से एकाध सनकी सुचारु रूप से चलती इस व्यवस्था पर प्रहार करते रिश्वत मांगे जाने की शिकायत लोकायुक्त को कर डालता था जिस पर बेईमान कर्मचारी रंगेहाथ घूस लेते दबोच लिया जाता था.

अगले दिन घूसखोरी की यह खबर अखबारों में मोटीमोटी हैडिंगों में कुछ इस तरह छपती थी मानो पृथ्वी से पाप खत्म करने के लिए विष्णु ने समय से पहले ही कल्कि अवतार ले लिया हो यानी अब घूसखोरी खत्म हो गई है.

हकीकत में ऐसी खबरें दूसरे लोगों के लिए विज्ञापन का काम ज्यादा करती हैं कि बेफिक्र रहो, सरकारी दफ्तरों में घूस का लेनदेन बदस्तूर जारी है. यह तो देने वाले की चालाकी या फिर लेने वाले की लापरवाही थी, जो वह पकड़ा गया. घूसखोर के पकड़े जाने की खबर कुछकुछ वैसी ही होती है जैसे कौलगर्ल्स का गिरोह पकड़े जाने की होती है जिस से यह प्रचार ज्यादा होता है कि शहर में देहव्यापार चल रहा है, लिहाजा, शौकीनों को निराश होने की जरूरत नहीं है.

कुछ कमियों और कई ज्यादतियों के बाद भी इस सिस्टम में कोई खास खोट नहीं थी, लेकिन जाने क्यों सरकार की आंख में घूसखोरी का कांटा इतना खटक रहा था कि उस ने अब देने वाले को भी सजा देने का का प्रावधान कर दिया.

तोहफे देना भी जुर्म

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 को मंजूरी दिए जाने के साथ ही यह कानून वजूद में आ गया है. अब सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देने वाला भी बराबरी का दोषी माना जाएगा.

इसलिए उसे सजा भी दी जाएगी जिस में 10 वर्ष तक की कैद हो सकती है. इस कानून में सजा के साथसाथ जुर्माने का भी प्रावधान है और एक खास बात यह जोड़ी गई है कि सरकारीकर्मियों को रिश्वत के लिए उकसाना भी अपराध की श्रेणी में आएगा और उन्हें तोहफे देना भी जुर्म होगा.

वाकई इस कानून का वाजिब असर हुआ और घूसखोरी के कम मामले सामने आए. इस पर किसी एजेंसी की रिपोर्ट आते ही सरकार अपनी पीठ थपथपाने से चूकेगी नहीं कि देखो, कानन बनते ही घूसखोरी पर लगाम लग गई. लेकिन यह लगाम ठीक वैसी ही है जैसी नोटबंदी के बाद से सामने आ रही है कि हुआ कुछ नहीं है, बस, सरकार की जिद या मंशा, जो भी कह लें, पूरी हो गई है.

उधर, सरकार की मंशा बेहद साफ है कि जब घूसखोरी के मामले कम दर्ज होंगे तो आंकड़ों में भी भ्रष्टाचार कम दिखेगा. अब लोग यानी दोनों पक्ष घूस के लेनदेन में इतनी एहतियात बरतें कि वे पकड़े ही न जाएं, तो सरकार का इस में क्या दोष.

यह होगा असर

क्या आप घूस देने के जुर्म में 10 वर्षों के लिए जेल जाना चाहेंगे, इस सवाल के जवाब में कोई भी हां नहीं कहने वाला. ऐसे में जाहिर है लोग सुरक्षित तरीके से घूस देने के उपायों पर अमल करेंगे. गौरतलब है कि सरकार ने कानून बदला है, लेकिन सिस्टम और सरकारी कर्मचारियों के अधिकार ज्यों के त्यों हैं.

अंदेशा जताया जा रहा है कि अब दलालों के जरिए घूस लेनदेन का रिवाज बढ़ेगा. एक फिल्म में कादर खान का घूसखोर किरदार खुद घूस नहीं लेता बल्कि नगरनिगम आए बेचारे आम नागरिक को दफ्तर के बाहर चाय की दुकान वाले को भुगतान करना होता था. इस फिल्म में घूस की रकम चीनी के चम्मच के हिसाब से तय होती दिखाई गई है. मसलन, अगर घूस लेने वाला एक चम्मच चीनी डालने को बोलता है तो घूस की रकम 1 हजार रुपए होती है.

कहने का मतलब यह नहीं कि लोग यही तरीका अपनाएंगे, बल्कि होगा यह कि फाइल रुकी रहेगी और उसी दौरान घूस देने वाले को ज्ञान प्राप्त होगा कि उसे अपने काम के एवज में कितनी घूस किस तरीके से कहां चुकानी है. ऐसे कई तरीके अभी भी चलन में हैं, लेकिन अब आम हो जाएंगे. घूसखोर का साला या भतीजा रिश्वत लेगा या फिर किसी और को इस बाबत नियुक्त कर दिया जाएगा.?

इस कानून का दूसरा प्रभाव यह पड़ेगा कि लोग शिकायत करेंगे ही नहीं, क्योंकि इस से उन का काम होने की गारंटी सरकार नहीं ले रही. मसलन, अगर आप को नगरनिगम में अपने मकान का नामांतरण कराना है तो दफ्तर में बैठा बाबू आप से रिश्वत नहीं मांगेगा. वह कागजात में कमियां निकालता रहेगा. आप चाहें तो कमिश्नर से ले कर मिनिस्टर तक से शिकायत करने का अपना अधिकार या कर्तव्य इस्तेमाल कर सकते हैं. अव्वल तो जवाब मिलेगा नहीं, और मिला भी, तो यही होगा कि आप कागजात पूरे और दुरुस्त लाएं तो काम हो जाएगा.

लोग कानून को कोसते पुराना सुनहरा जमाना याद करते नजर आएंगे कि वो भी क्या दिन थे जब बगैर किसी झंझट के नामांतरण हो जाया करता था. अब यह नई बला कहां से आ गई कि पटवारी, बाबू, हवलदार से ले कर इंजीनियर, डाक्टर और कलैक्टर साहब तक घूस के नाम से नाकभौं सिकोड़ रहे हैं और कह रहे हैं कि हम क्या करें, खोट तो आप के काम में ही है, यानी आप एक गलत काम करवाने के लिए आए हैं.

अब यहां कोई ज्यादा हल्ला मचाएगा तो सरकारी कर्मचारी ही शिकायत करेगा कि उसे रिश्वत लेने के लिए उकसाया जा रहा है. इस पर देने वाला झट से नप जाएगा. फिर मोटेमोटे अक्षरों में खबर छपेगी कि घूस देने की कोशिश करने वाले को रंगेहाथ पकड़ा गया. इस कानून में पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकारी अधिकारी को घूस लेने के लिए उकसाना भी अपराध माना जाएगा. न उकसाने की स्थिति में भी वह झूठी शिकायत कर सकता है कि उस पर रिश्वत लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. अब ऐेसे में सफाई देने की जिम्मेदारी यानी बर्डन औफ प्रूफ आम आदमी का होगा कि वह साबित करे कि उस ने घूस देने की कोशिश की ही नहीं थी या इस बाबत उकसाया नहीं था.

पाप और दक्षिणा

उकसाया नहीं था यानी एक ऐसा पाप जो आप ने किया ही नहीं, उस के लिए आप को थानों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं और दक्षिणा भी चढ़ानी पड़ सकती है लेकिन इस पर वह सलीके की होगी और सलीके से ही होगी.

यहां बात या मंशा कतई अतिशयोक्ति वाली या इस कानून की आलोचना की नहीं, बल्कि ऐसे कानूनों के साइड इफैक्ट्स बता कर होशियार करने की है कि इस से भी कुछ होने वाला नहीं है.

दरअसल, केंद्र सरकार ने मान लिया है कि सब के सब पापी हैं, लेने वाला भी और देने वाला भी. ऐसे में सजा सिर्फ लेने वाले को क्यों? यही दहेज कानून में प्रावधान है कि दहेज देने वाला भी बराबरी का दोषी है लेकिन आज तक दहेज देने के लिए शायद ही किसी को सजा हुई हो.

सरकार चाहती है कि सभी धर्म के बताए रास्ते पर चलें, ईमानदारी से रहें और रहने दें. लेकिन इस के लिए दोषी सिस्टम यानी पूजापाठ, यज्ञ, हवन, आरती खत्म नहीं किए जाएंगे बल्कि दक्षिणा चढ़ाने का तरीका बदल दिया जाएगा. नए प्रावधान में होगा यह कि जो भी इन बाबुओं और साहबों यानी पंडों की शिकायत लोकायुक्त वगैरह से करेगा, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा.

सरकारी कर्मचारी को इतना भर कहना है कि उस ने किसी काम के लिए मना नहीं किया, लेकिन गलत काम करवाने के लिए उसे घूस की पेशकश की जा रही थी. तब लोग क्या करेंगे, इस तरफ सरकार का ध्यान नहीं गया या जानबूझ कर नहीं दिया गया, एक ही बात है. यह भी दिलचस्प बात है कि सरकार को पता कैसे चलेगा कि कौन, कहां घूस देने का पाप कर रहा है.

उदाहरण मकान निर्माण का ही लें. आप अपने घर के सपनों को आसानी से साकार नहीं कर सकते, क्योंकि आप का नक्शा गलत होगा. आप ने सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक रास्ता नहीं छोड़ा होगा, ड्रेनेज के इंतजाम सरकारी पैमानों पर खरे नहीं उतर रहे होंगे या फिर पर्यावरण प्रभावित हो रहा होगा. मुमकिन है जो जमीन का टुकड़ा यानी प्लौट आप ने लिया हो वह ही किसी और वजह से नाजायज करार दे दिया जाए.

तब लोगों को समझ आएगा कि घूस देना वाकई अनिवार्य पाप होता है. अब पापमुक्ति के लिए काटते रहो छोटे से बडे़ मंदिरों यानी दफ्तरों तक चक्कर. सरकार तो नोटबंदी और जीएसटी की तरह आप को सुशासन और पारदर्शिता देना चाहती है, भ्रष्टाचार खत्म करना चाहती है लेकिन वे आप के संचित पाप हैं जो इस में आड़े आ रहे हैं तो सरकार इस में क्या कर लेगी. वह पापमुक्ति का ठेका नहीं लेती. यह लाइसैंस तो पंडेपुजारियों की तरह सरकारी मुलाजिमों ने ले रखा है. तो काटो उन्हीं के चक्कर, लेकिन, भूल कर भी घूस देते हुए पकड़े मत जाना वरना.

झूठे सपने के पीछे की लीला : जब उस की बेटी पर जमने लगी बाबा की निगाह

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के थाना एमआईजी के थानाप्रभारी तहजीब काजी 15 जुलाई, 2018 को अपने कार्यालय में बैठे डीआईजी हरिनारायण चारी द्वारा आदेशित एक महिला के शिकायती पत्र को पढ़ रहे थे. निर्मला रघुवंशी नाम की उस महिला ने डीआईजी के सामने पेश हो कर तांत्रिक जगदीश पालनपुरे द्वारा शारीरिक शोषण किए जाने और लाखों रुपए ठगने की बात बताई थी.

डीआईजी ने उस का प्रार्थना पत्र उचित काररवाई के लिए थानाप्रभारी तहजीब काजी के पास भेज कर इस मामले में आरोपी तांत्रिक के खिलाफ काररवाई करने के आदेश दिए थे. प्रार्थना पत्र पढ़ने के बाद थानाप्रभारी ने निर्मला रघुवंशी से फोन पर बात की और अगले दिन उसे थाने बुला लिया.

निर्मला रघुवंशी निर्धारित समय पर एमआईजी थाने पहुंच गई. उस ने थानाप्रभारी को आपबीती सुनाई. उस से बात कर के तहजीब काजी समझ गए कि जगदीश पालनपुरे ने तंत्रमंत्र के नाम पर निर्मला की न केवल इज्जत लूटी, बल्कि पैसे हड़पने के लिए उसे अपना मकान भी बेचने के लिए मजबूर किया और फिर उस का सारा पैसा हड़प गया. उन्होंने निर्मला रघुवंशी को महिला कांस्टेबल के साथ मैडिकल जांच के लिए अस्पताल भेज दिया.

इस के बाद पुलिस ने निर्मला की रिपोर्ट पर जगदीश पालनपुरे के खिलाफ बलात्कार और धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया. रिपोर्ट दर्ज होने की भनक मिलने पर जगदीश कानून की गिरफ्त से बचने के लिए कहीं दूर भाग सकता था. यह बात ध्यान में रख कर थानाप्रभारी ने उसी समय जांच की जिम्मेदारी एसआई नितिन पटेल को सौंप कर एक पुलिस टीम जगदीश की तलाश में महेश्वर रवाना कर दी.

आरोपी जगदीश घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने लौट आई. खुद को पहुंचा हुआ तांत्रिक समझने वाले जगदीश को यह उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उस पर हाथ डाल सकती है. उस ने पहले तो थानाप्रभारी तहजीब काजी पर अपने तांत्रिक होने और मक्का सरकार का शागिर्द होने का रुआब दिखाने की कोशिश की.

इस के बाद उस ने तंत्रमंत्र की ताकत भी दिखानी चाही, लेकिन जब थानाप्रभारी ने उसे कानून की थोड़ी सी झलक दिखाई तो वह शांत हो गया. इस के बाद उस ने बिना किसी लागलपेट के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

आवारागर्द बन गया तांत्रिक

पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के उस 2 दिन की रिमांड पर ले लिया और महेश्वर स्थित उस के घर की तलाशी ली. उस के घर से बड़ी मात्रा में तंत्रमंत्र में उपयोग होने वाली सामग्री और कई अचल संपत्तियों के कागजात मिले, जो पुलिस ने कब्जे में ले लिए.

जैसे ही लोगों के कानों तक जगदीश की गिरफ्तारी की खबर पहुंची तो उस के द्वारा ठगे गए कुछ और लोग थाने पहुंच कर उस की काली करतूतों का पिटारा खोलने लगे, जिस से इस कामुक और शातिर तथाकथित तांत्रिक की कहानी कुछ इस तरह पता चली.

इंदौर के गांव महेश्वर में पैदा हुआ जगदीश पालनपुरे बचपन से ही शातिरदिमाग था. पढ़ाई में उस का मन लगता नहीं था, सो दिन भर घर के पास बनी एक मजार पर बैठ कर आवारागर्दी करता रहता था. मजार का खादिम झाड़फूंक के नाम पर न केवल लोगों को ठगा करता था, बल्कि अपनी शरण में आई युवतियों को बुरी नीयत से छू कर उन का इलाज करने का ढोंग भी करता था.

मजार का खादिम जगदीश को जिन्नात की कहानियां सुनाता रहता था. खादिम के साथ रह कर जगदीश यह बात अच्छी तरह समझ गया था कि तंत्रमंत्र और झाड़फूंक के नाम पर लोगों को आसानी से न केवल बेवकूफ बनाया जा सकता है, बल्कि मोटी कमाई भी की जा सकती है. कमाई के अलावा इस काम में खूब मौजमस्ती भी करने को मिलती है.

इस के बाद उस ने लोगों में यह अफवाह फैला दी कि उसे मक्का सरकार की सवारी आती है. लोगों ने उस की इस बात पर भरोसा करना शुरू कर दिया तो उस ने धीरेधीरे लोगों के मन में यह बात बैठा दी कि वह जिन्नात का बादशाह है. उस के कब्जे में 3 हजार जिन्नात हैं, जो उस की आज्ञा पर किसी को भी पलभर में रंक से राजा बना सकते हैं.

सीधेसादे लोग अमूमन ऐसी बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं. इस का नतीजा यह हुआ कि जगदीश की आसपास के इलाके में एक तांत्रिक के रूप में पहचान हो गई और महेश्वर में उस की अच्छीखासी दुकान जम गई. लेकिन जगदीश इस से खुश नहीं था.

वह चाहता था कि उस के हजारों मुरीद हों, जो उस के एक इशारे पर सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाएं. परेशानी यह थी कि वह जिस छोटे से कस्बे में रहता था, वहां उस के भक्तों की संख्या सीमित थी. वह अपनी दुकानदारी और बढ़ाना चाहता था, इसलिए उस ने इंदौर में अपनी गद्दी जमाने का विचार बनाया.

इंदौर के नेहरू नगर में संतोष महाराज नाम का उस का एक खास चेला रहता था. संतोष से बात करने के बाद जगदीश ने संतोष महाराज के घर पर अपनी गद्दी लगा दी. यहां आ कर उस ने अखबारों में बड़ेबड़े विज्ञापन दे कर हर समस्या को हल करने की गारंटी दी तो जल्द ही इंदौर में संतोष महाराज के घर उस के चाहने वालों की भीड़ लगनी शुरू हो गई.

निर्मला रघुवंशी पर बाबा हुआ लट्टू

नेहरू नगर में संतोष महाराज के घर के सामने निर्मला रघुवंशी अपने पति और 5 साल की बेटी के साथ रहती थी. निर्मला रघुवंशी का पति रमेश थोड़ा मंदबुद्धि था. वह लोगों के घरों में काम कर के किसी तरह परिवार का गुजारा कर रही थी. निर्मला रघुवंशी भले ही सांवली थी, लेकिन उस के नैननक्श और शरीर आकर्षक था.

अपने काम से काम रखने वाली निर्मला को तांत्रिक जगदीश के बारे में उस रोज पता चला जब एक रात उस के पति ने उसे बताया कि तांत्रिक जगदीश ने तुम्हारी किस्मत में राजयोग बताया है. कह रहे थे कि तुम्हारी पत्नी लोगों के घरों में काम करने के लिए पैदा नहीं हुई. वह रानी है उस के तो चारों तरफ दासदासियों की भीड़ लगी होनी चाहिए.

निर्मला ने पति से पूछा तो रमेश ने बताया कि जगदीश तांत्रिक संतोष महाराज के यहां आते हैं और बहुत पहुंचे हुए हैं. हजारों जिन्नात उन के गुलाम हैं. वह अपने मुंह से 1000 और 500 के नोट निकाल कर यूं ही लोगों को बांट देते हैं.

‘‘तो 2-4 हजार रुपए तुम ही ले आते. कुछ तो काम चलता.’’ वह बोली.

‘‘अरे तू 2-4 हजार की बात कर रही है, वो तो कह रहे थे कि तेरी पत्नी 2 जहान की मलिका है, बस उस का सोया भाग्य जगाना पड़ेगा. फिर देखना धनवैभव उस के कदमों में पड़ा रहेगा.’’ रमेश बोला.

रात भर निर्मला के दिमाग में पति द्वारा बताई गई बात घूमती रही. मन कहता कि बाबा सही कहता है, मैं रानी जैसी ही सुंदर तो हूं. जबकि मन यह भी कहता कि यह सब झूठ है. वह नौकरानी है और नौकरीचाकरी करतेकरते ही मर जाएगी.

लेकिन रमेश और निर्मला रघुवंशी की सोच से अलग सच्चाई कुछ और ही थी. कुछ दिन पहले आतेजाते तांत्रिक जगदीश की नजर निर्मला रघुवंशी पर पड़ गई थी. उसे देख कर जगदीश का मन डोल गया था.

तांत्रिक क्रिया के बहाने वह कई स्त्रियों के संग संबंध बना चुका था. लेकिन उन सब की सुंदरता को एक साथ जोड़ देता तो भी वे अकेली निर्मला की सुंदरता का मुकाबला नहीं कर सकती थीं, इसलिए वह निर्मला रघुवंशी को पाने के उपाय सोचने लगा था.

निर्मला गरीबी में जीवन बिता रही थी. पति भी बेहद ही सीधा था, सो बाबा ने पति को निशाना बना कर निर्मला रघुवंशी पर तीर चलाने के लिए यह पूरी कहानी रची थी. सीधासादा रमेश उस की कहानी में फंस गया था. उस ने जगदीश की बात पर भरोसा कर लिया. इतना ही नहीं, वह पत्नी पर बारबार बाबा के पास जा कर मिलने का दबाव बनाने लगा. जब पति ने ज्यादा ही जबरदस्ती की तो निर्मला एक दिन शाम के समय तांत्रिक जगदीश पालनपुरे के दरबार में पहुंच गई.

निर्मला फंस गई जाल में

बाबा तो पहले से ही निर्मला रघुवंशी के आने का इंतजार कर रहा था, इसलिए उसे आया देख बाबा खुश हो गया. उस ने पहले तो जानबूझ कर निर्मला रघुवंशी को नजरअंदाज किया. उस के बाद जब कुछ अंधेरा घिर आया, तब उस ने निर्मला को अपने सामने बैठा कर उस की किस्मत में लिखे राजयोग के बारे में बताया.

कुछ देर बाद जब निर्मला वहां से उठ कर जाने लगी तो जगदीश बाबा ने अंधेरे का फायदा उठा कर हाथ की सफाई से अपने मुंह से 5-5 सौ के 4 नए नोट निकाल कर उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘जा, जिन्न तुझ पर प्रसन्न है. यह प्रसाद लेती जा.’’

इस करिश्मे से निर्मला की आंखें फटी रह गईं. बाबा के मुंह से नोटों की बरसात होते देख वह उस के चरणों में गिर गई तो जगदीश काफी देर तक उस की पीठ पर हाथ फेरता रहा. फिर उस ने निर्मला को बाद में आने को कह कर घर भेज दिया. निर्मला पहले ऐसे बाबाओं पर भरोसा नहीं करती थी, पर वह जगदीश बाबा की मुरीद हो गई.

बाबा ने उसे अपनी लच्छेदार बातों की जो घुट्टी पिलाई थी, उस की एक खुराक से  वह खुद को रानी समझने लगी थी. वैसे भी गरीब को पैसे का लालच कम नहीं होता. बाबा के गुलाम जिन्न ने उसे 2 हजार रुपए दिए थे, जो उस जैसी गरीब औरत के लिए 50 हजार के बराबर हैसियत रखते थे. उस दिन के बाद वह अकसर जगदीश बाबा की चौकी पर जाने लगी, जहां बाबा उस से ढेर सारी बातें करता और विदा होते समय मुंह से कभी 1000 तो कभी 500 रुपए की बरसात कर के उस के हाथ पर रख देता था.

पति रमेश तो पहले से ही बाबा का भक्त था. निर्मला भी उस की मुरीद हो गई. उस के घर में जगदीश बाबा के नाम की माला जपी जाने लगी. दूसरी ओर जब जगदीश बाबा ने देखा कि निर्मला रघुवंशी उस के कब्जे में आ चुकी है तो उस ने एक दिन निर्मला से कहा, ‘‘तुम रानी हो. 2 जहान की मलिका चल कर मेरे पास आए, यह शोभा नहीं देता. इसलिए आगे से मैं खुद ही तुम्हारे घर आ जाया करूंगा.’’

यह सुन कर निर्मला गर्व से फूली नहीं समाई. उसे सब से बड़ी खुशी तो इस बात की थी कि बाबा के कदम उस के घर पर पड़ेंगे. इसलिए वह घर की साफसफाई कर के बाबा के आने का इंतजार करने लगी.

निर्मला के घर को बना लिया अड्डा

4 दिन बाद बाबा उस के घर आया. फिर वह अकसर आने लगा और फिर एक समय ऐसा भी आया कि उस ने संतोष का घर छोड़ कर निर्मला के घर में ही अपनी गद्दी जमा ली. इस के बाद उस के दूसरे भक्त भी बाबा से मिलने निर्मला रघुवंशी के घर आने लगे. यहां बाबा जिस बिस्तर पर सोता था, सुबह उस के तकिए के नीचे कभी 1000 का तो कभी 500 का नोट रखा मिलता था.

निर्मला इस के बारे में बाबा से पूछती तो वह कहता कोई जिन्न रख गया होगा, तू रख ले. बाबा ने उसे बताया कि उसे मक्का सरकार की सवारी आती है. तमाम जिन्नात उस के गुलाम हैं, जिन की मदद से वह उसे 2 जहान की मलिका बना देगा.

बाबा के पास दूसरे शहरों से भी कुछ भक्त आते थे. उन सब के सामने बाबा करोड़ों रुपए की बातें करता था. निर्मला को अपनी संपत्ति के कागजात भी दिखाता था. इस तरह कुछ ही महीनों में बाबा ने निर्मला रघुवंशी और उस के पति को पूरी तरह अपने प्रभाव में ले लिया था.

एक दिन बाबा ने अचानक निर्मला से 16 लाख रुपए की मांग की. उस ने कहा कि हालफिलहाल वह उसे 16 लाख रुपए दे दे, यह कर्ज वह जल्द ही उसे 2 जहान की मलिका बना कर उतार देगा.

निर्मला रघुवंशी बाबा पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी थी, इसलिए उस ने अपने जेवर बेच कर बाबा को 80 हजार रुपए दे दिए. लेकिन इतने पर भी बात नहीं बनी तो निर्मला ने साढ़े 13 लाख में अपना मकान बेच कर सारा पैसा बाबा को दे दिया और खुद किराए के मकान में रहने लगी.

2 जहान की रानी बनने जा रही निर्मला रघुवंशी अब खुद के मकान से निकल कर किराए के मकान में आ गई थी. लेकिन बाबा के ऊपर न तो उस का भरोसा कम हुआ था और न उस के पति का.

जब निर्मला किराए के मकान में रहने लगी तो बाबा भी उस के इसी मकान में चौकी लगाने लगा. इस तरह बाबा ने साल भर में ही निर्मला का सारा धन लूट लिया था. निर्मला के पास अब ऐसा कुछ नहीं बचा था, जिसे बेच कर वह बाबा की तिजोरी भर देती. यह बात जगदीश भी जानता था, इसलिए अब उस ने अपना पूरा ध्यान निर्मला का तन लूटने पर लगा दिया, जिस के लिए वह साल भर से अपने मन में खयाली पुलाव पका रहा था.

जब कुछ नहीं बचा तो पूजा के बहाने किया रेप

निर्मला ने पुलिस को बताया, ‘‘4 साल पहले रात के समय बाबा ने मेरे घर में एक पूजा की, जिस के बाद मंत्र पढ़ कर एक पुडि़या में कुछ बांध कर मेरे पति को दिया और उस पुडि़या को उसी समय शिप्रा नदी में विसर्जित करने को कहा. आधी रात हो चुकी थी, पति कुछ सकुचाया तो बाबा ने कहा कि डरो मत, मेरे दूसरे चेले भी तुम्हारे साथ जाएंगे. बाद में बाबा के चेले मेरे पति को ले कर चले गए.

‘‘आधी रात हो चुकी थी. घर पर मैं और बाबा ही थे. बेटी दूसरे कमरे में सो रही थी. बाबा ने फिर पूजा करने का ढोंग किया और मुझे चंदन घुले पानी से नहलाने के बाद बोला रानी यहां आओ, मेरी गोद में बैठ जाओ. आज से 2 जहान की मल्लिका बनने की तुम्हारी यात्रा शुरू हो रही है. आज तुम बाबा की गोद में बैठो, फिर जल्द ही तुम रानी बन कर राजगद्दी पर बैठोगी.

‘‘मैं सकुचाई, लेकिन उस के कहने पर उस की गोद में बैठ गई. जिस के बाद वह धीरेधीरे अपने हाथों की हरकतें बढ़ाते हुए मेरे कपड़े खोलने लगा. मैं ने ऐसा करने से मना किया तो उस ने कहा कि यह तो जिन्न सरकार की इच्छा है.

‘‘रानी बनने से पहले वह तुम्हारा शरीर शुद्ध करेंगे. ऐसा करने से पाप नहीं लगेगा, बल्कि तुम्हारी किस्मत का बंद दरवाजा खुल जाएगा. मैं बाबा का विरोध भी कर रही थी, मगर उस की इच्छा पूरी न करने पर जिन्न के नाराज हो जाने का भी डर सता रहा था.

‘‘सुबह 4 बजे जब पति लौट कर घर आया, तब तक बाबा मेरे साथ कई बार रेप कर चुका था. इस के बाद तो यह रोज का काम हो गया. बाबा पूजा करता, फिर पूजा के बहाने पति को बाहर भेजने के बाद अपनी हसरतें पूरी करता.’’

निर्मला रघुवंशी ने बताया कि इस दौरान बाबा यही कहता था कि संबंध तो उस के अंदर आया जिन्न बनाता है, इसलिए जिन्न की मरजी पूरी करने के लिए वह उस के साथ तरहतरह से अप्राकृतिक मैथुन करता. वह पिछले 4 साल से जगदीश बाबा के पाप को अपने शरीर पर ढो रही थी.

अब निर्मला को बाबा की बातों की चाल समझ आने में लगी थी. लेकिन वह अपना सब कुछ गंवा चुकी थी. उस के पास खोने के लिए कुछ और नहीं था. फिर भी वह कभीकभी सोचती थी कि शायद कोई चमत्कार हो जाए.

बेटी पर निगाह जमी तो खुलीं आंखें

बाबा की लूट अभी पूरी नहीं हुई थी. निर्मला की बेटी जो अपनी मां की तरह ही खूबसूरत थी, 10 साल की हो चुकी थी, इसलिए बाबा की नजर अब बेटी पर जम चुकी थी. यह बात निर्मला को तब समझ में आई, जब उस ने एक दिन बाबा को अपनी बेटी की पीठ पर बेशरमी से हाथ फेरते देख लिया.

उस ने बाबा की इस हरकत का विरोध किया तो जगदीश बेशरमी से बोला, ‘‘अरे तुम तो नाहक परेशान हो. तुम रानी बनोगी तो आखिर इसे भी तो राजकुमारी बनना पड़ेगा न. जिन्न के साथ सोने से तुम्हारी बेटी भी पवित्र हो जाएगी.’’

बस यहीं से बाबा जगदीश पालनपुरे के बुरे दिन शुरू हो गए. क्योंकि निर्मला किसी भी कीमत पर अपनी बेटी की इज्जत खराब नहीं करवाना चाहती थी. इन 5 सालों में उसे इतना तो समझ आ ही गया था कि बाबा केवल बातों का बाबा है.

निर्मला को यह भी जानकारी मिल चुकी थी कि बाबा कई दूसरी औरतों के साथ भी ऐसा कर चुका है. इसलिए अपनी बेटी को बचाने के लिए उस ने बाबा से दूरी बनाने की कोशिश की. अपने पति को भी इस बारे में बताया, लेकिन पति ने ध्यान नहीं दिया तो निर्मला खुद ही पुलिस के पास पहुंच गई. जिस के बाद एमआईजी थानाप्रभारी तहजीब काजी ने 24 घंटे के अंदर ही इस बलात्कारी तांत्रिक को गिरफ्तार कर लिया.

तथाकथित तांत्रिक जगदीश पालनपुरे को फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. ?

जहरीला आदमी : कौशल किशोर जैसे लोगों की कोई कमी नहीं

लगभग 40-45 साल की थुलथुल जिस्म की सुमित्रा पिछले 15-20 मिनट से राजकंवर के फ्लैट की कालबेल बजा रही थी. जब दरवाजा नहीं खुला तो वह परेशान हो गई. फिर थकहार कर वहीं बैठ गई. वह झल्लाते हुए आश्चर्य से दरवाजे की तरफ देख रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि एक बार कालबेल बजाने पर दरवाजा खोल देने वाली राजकंवर मेमसाहब दरवाजा क्यों नहीं खोल रहीं. जबकि फ्लैट के अंदर गूंजती कालबेल की आवाज उसे बाहर भी सुनाई दे रही थी.

बमुश्किल कमर पर हाथ रख कर खड़ी हुई सुमित्रा ने एक बार फिर दरवाजा खुलवाने की कोशिश में दरवाजे को हाथ से जोर से पीटा. इतना ही नहीं, उस ने मेमसाहब का नाम ले कर भी दरवाजा खोलने को कहा. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सुमित्रा राजकंवर नागर के यहां खाना बनाने, कपड़े धोने से ले कर सभी घरेलू कामकाज करती थी.

जिस फ्लैट की हम बात कर रहे हैं, वह कोटा से लगभग 100 किलोमीटर दूर शहरनुमा कस्बे इटावा की सरोवर कालोनी में स्थित स्थानीय राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल की व्याख्याता राजकंवर नागर का था, जहां वह अपने पति कौशल किशोर और 6 वर्षीय बेटे उदित के साथ किराए पर रह रही थीं.

उस दिन मंगलवार था और तारीख थी 4 सितंबर. सुबह के करीब 8 बज चुके थे. जब सुमित्रा रोजाना की तरह राजकंवर के फ्लैट पर पहुंची थी. उस तिमंजिला इमारत में राजकंवर दूसरी मंजिल के आखिरी ब्लौक में रहती थीं. सुमित्रा राजकंवर की रोजमर्रा की दिनचर्या से भलीभांति वाकिफ थी.

सुबह जिस समय सुमित्रा काम करने के लिए फ्लैट पर पहुंचती थी, राजकंवर ब्रेकफास्ट कर चुकी होती थीं और स्कूल जाने के लिए तैयार मिलती थीं. बेटे उदित को भी स्कूल जाना होता था, इसलिए वह भी उन के साथ जाने को तैयार हो चुका होता था. आमतौर पर दरवाजा राजकंवर ही खोलती थीं.

कभीकभार ही ऐसा हुआ होगा कि उबासियां और अंगड़ाइयां लेते हुए उन के पति ने दरवाजा खोला हो. जब फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो सुमित्रा को किसी अनहोनी का अंदेशा सताने लगा था. इतनी देर तक राजकंवर मेमसाहब के सोते रहने का तो कोई सवाल ही नहीं था.

राजकंवर के बगल वाले फ्लैट में रहने वाले कुंदनलाल रहेजा (परिवर्तित नाम) को न सिर्फ घंटी की आवाज सुनाई दे रही थी, बल्कि वह कामवाली बाई सुमित्रा की आवाजें भी सुन रहे थे. सब कुछ इतना संदेहास्पद था कि उन से रहा नहीं गया. रहेजा कारोबारी थे. लिहाजा उस समय वह दुकान पर जाने की तैयारी में थे.

उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि राजकंवर या उन के पति दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे. आखिरकार जब रहेजा से रहा नहीं गया तो वह अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आए, जहां उन की नजरें सामने खड़ी सुमित्रा पर पड़ीं.

रहेजा ने सुमित्रा से पूछा, ‘‘क्या बात है सुमित्रा?’’

खून से लथपथ मिलीं राजकंवर

अब तक अनहोनी के अंदेशे से सांस ऊपरनीचे करती सुमित्रा को जैसे राहत मिल गई. उस ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘देखिए सेठजी, कितनी देर से मैं घंटी बजा रही हूं, दरवाजा भी खटखटा चुकी हूं, लेकिन कोई दरवाजा खोल ही नहीं रहा.’’

अनहोनी की आशंका में डूबतेउतराते रहेजा ने भी कालबेल बजाई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उन्होंने सुमित्रा से पूछा, ‘‘मैडम का बेटा उदित भी तो होगा अंदर, उसे दरवाजा खोल देना चाहिए था.’’

‘‘साहबजी, वो तो 3-4 दिन से अपने नाना के घर गया है. वह 6 साल का ही तो है, यहां होता भी तो दरवाजा खोलना उस के वश की बात नहीं थी.’’ सुमित्रा ने बताया.

आखिर थकहार कर रहेजा ने मोबाइल पर राजकंवर का मोबाइल नंबर डायल किया. लेकिन कुछ देर रिंग जाने के बाद एक घिसीपिटी रिकौर्डिंग सुनाने के साथ ही मोबाइल बंद हो गया.

रहेजा के कानों में जैसे खतरे की घंटियां बजने लगीं. कुछ सोच कर उन्होंने सुमित्रा को वहीं रुकने को कहा और फिर अपने फ्लैट के पिछवाड़े की बालकनी की तरफ बढ़े. तब तक आवाज सुन कर इमारत के कुछ और लोग भी वहां आ गए थे.

रहेजा ने अपने नेपाली नौकर को बालकनी की परछत्ती पर चढ़ कर राजकंवर के कमरे में झांकने को कहा. बहादुर सब कुछ सुन चुका था, इसलिए वह भी घबराया हुआ था. लेकिन लोगों के हौसला दिलाने पर ऊपर चढ़ कर उस ने जो कुछ देखा, बुरी तरह सहम कर रह गया. वह घबरा कर नीचे कूदा और हांफते हुए बोला, ‘‘शाब…शाब…मेमशाब नीचे फर्श पर पड़ा है. आसपास खून फैला है.’’

बहादुर ने जो कुछ बताया, उस से वहां के माहौल में सन्नाटा खिंच गया. आगे की काररवाई की पहल भी रहेजा ने ही की. उन्होंने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया.

आधे घंटे के अंदर थानाप्रभारी संजय राय की अगुवाई में पुलिस टीम वहां पहुंच गई. पुलिस ने वहां मौजूद रहेजा और अन्य लोगों से पूछताछ की. चूंकि फ्लैट का दरवाजा बंद था, इसलिए लोगों की मौजूदगी में दरवाजा तोड़ कर थानाप्रभारी फ्लैट में घुसे तो सामने का दृश्य देख कर भौंचक रह गए. राजकंवर जमीन पर बेसुध पड़ी हुई थीं और उन के कपड़े खून से सने हुए थे.

एक बार जान बचाई पुलिस ने

थानाप्रभारी ने चैक किया तो राजकंवर की सांस फंसफंस कर आ रही थीं. यानी कि वह जीवित थीं, लेकिन जिस तरह उन की कनपटी और कलाइयों से खून रिस रहा था और साड़ीब्लाउज खून से सने थे, लगता था उन के साथ बड़ी निर्दयता से मारपीट की गई थी. संजय राय ने राजकंवर को अस्पताल भेजने का बंदोबस्त किया.

इस के बाद उन्होंने पूरे कमरे का निरीक्षण किया. सब कुछ उलटापुलटा पड़ा था. लगता था, हमलावर ने कमरे में रखे सामान पर भी अपना गुस्सा उतारा था. थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘क्या राजकंवर यहां अकेली रहती थीं?’’

‘‘नहीं सर,’’ रहेजा ने बताया, ‘‘इन का पति कौशल किशोर और करीब 6 साल का बेटा उदित भी रहता है.’’

‘‘…तो वे दोनों कहां हैं?’’ राय ने रहेजा से ही पूछा.

‘‘सर, बेटा तो 3-4 दिन पहले ही ननिहाल गया है. लेकिन पति कौशल किशोर को तो यहीं होना चाहिए था.’’ इस के साथ ही रहेजा ने इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद कहा, ‘‘वह तो कहीं नजर नहीं आ रहे. पता नहीं कहां हैं?’’

थानाप्रभारी ने रहेजा से ही पूछा, ‘‘आप के पड़ोस के फ्लैट में इतना घमासान मचा और आप को भनक तक नहीं लगी.’’

पति नहीं, कसाई था वो

त्रहेजा ने कुछ पल चुप्पी साधे रहने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘साहब, पतिपत्नी के बीच झगड़ाफसाद होना रोज की बात थी. मैडम के पति का तो स्वभाव ही बेसुरा था. किसी से बोलचाल तक नहीं थी. कोई बात करता भी और समझाता भी तो कैसे, वह तो बातबात पर खाने को दौड़ता था.

‘‘पता नहीं कोई काम करता भी था या नहीं. हम ने तो उसे कभी काम पर जाते नहीं देखा. अगर वह गायब है तो सीधा मतलब है कि मैडम की ऐसी दुर्गति उसी ने की होगी.’’

थानाप्रभारी घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के थाने लौट आए. फिर वह अस्पताल में राजकंवर को देखने पहुंचे. उन की हालत में सुधार हो रहा था. घटना के 2 दिन बाद यानी 6 सितंबर को राजकंवर बयान देने लायक हो गईं. उन्होंने बताया कि उन पर जानलेवा हमला किसी और ने नहीं, उन के पति ने ही किया था. राजकंवर ने पति के खिलाफ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई. उन्होंने अपनी जो कहानी थानाप्रभारी संजय राय को सुनाई, उस का एकएक शब्द चौंकाने वाला था.

राजस्थान के जिला कोटा के कस्बा दीगोद के रमेशचंद नागर संपन्न व्यक्ति हैं. उन के पास अच्छीखासी खेतीबाड़ी है. करीब 8 साल पहले सन 2010 में उन्होंने अपनी इकलौती बेटी राजकंवर का विवाह करीबी कस्बे अयाना के कौशल किशोर नागर से कर दिया था.

कौशल किशोर के पिता भी किसान थे. राजकंवर पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी, उस ने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और एमएड की डिग्री हासिल कर ली. नतीजतन उन्हें लेक्चरर की प्रतिष्ठित नौकरी मिल गई.

राजकंवर की पोस्टिंग नजदीक के कस्बा इटावा के राजकीय सीनियर सैकेंडरी स्कूल में हुई थी. वह पिछले डेढ़ साल से इटावा में तैनात थीं, इसलिए घर से स्कूल आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही राजकंवर को बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने उदित रखा. उदित अब 6 साल का हो गया था. उन्होंने अपने बेटे का दाखिला इटावा के एक निजी स्कूल में करा दिया था.

राजकंवर के जीवन की सब से दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी यह थी कि विवाह के कुछ ही सालों में पति कौशल किशोर और उन के दांपत्य संबंधों में तनाव आ गया था. यह तनाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. पूरा परिवार खेती पर आश्रित था, इसलिए नियमित आमदनी के लिए कौशल किशोर क्या करता है, उस ने कभी पत्नी को नहीं बताया. उस के स्वभाव को देखते हुए राजकंवर ने उस से पूछताछ नहीं की.

बेटे के जन्म पर तो लोग खुशी से दोहरे हो जाते हैं, लेकिन उदित के पैदा होने पर कौशल के चेहरे पर खुशी नहीं दिखी. इतना ही नहीं, पत्नी के प्रति कौशल की नफरत में इजाफा होता रहा. राजकंवर तीन पाटों में फंसी हुई थी. एक तरफ पति की रोजरोज की मार और दुत्कार थी तो दूसरी तरफ पारिवारिक मर्यादा और अपने पिता से सब कुछ छिपाए रखने की मजबूरी थी. और तीसरी थी पति के तौरतरीके देख कर अपने भविष्य की चिंता.

पति के जुल्म पर ससुर की खामोशी भी उसे हैरान करती थी. रोजरोज की कलह तब और ज्यादा बढ़ गई, जब कौशल ने राजकंवर के चरित्र पर लांछन लगाना शुरू कर दिया. पढ़ाई के दौरान वह किसी व्यक्ति या टीचर से बात कर लेतीं तो राजकंवर पर कौशल के लातघूंसों का कहर टूट पड़ता था.

राजकंवर जब कभी मायके में अपने मातापिता से मिलने जातीं तो चुपचाप ही रहती थीं. उन के चेहरे पर हमेशा उदासी छाई रहती थी. पिता रमेशचंद  को उड़तेउड़ते कुछ भनक लगी थी, इसलिए उन्होंने ससुरालियों के व्यवहार को ले कर बेटी से पूछताछ भी की, लेकिन राजकंवर ने उन्हें अपने दिल का दर्द कभी नहीं बताया.

पत्नी पर लगाता था निराधार आरोप

शराब के नशे में धुत पत्नी से मारपीट पर उतारू होते कौशल का यह रटारटाया इलजाम होता था कि पढ़ाई के बहाने न जाने किसकिस से पेंच लड़ाती है. राजकंवर के दिल पर ये गंदे आरोप तीर की तरह चुभते थे. नतीजतन कलह की कड़वाहट का परनाला पूरे गलीमोहल्ले में फूट पड़ता था. यह राजकंवर का दुर्भाग्य था कि उसे जुल्म से बचाने के लिए न ससुर खड़े हुए और न ही पासपड़ोस के लोग.

राजकंवर चुप्पी साधे रहीं, लेकिन जब सहनशक्ति जवाब दे गई तो रहने के लिए वह इटावा आ गईं. पति को वह साथ नहीं रखना चाहती थीं, लेकिन यह सोच कर साथ रखा कि लोगों के तानों से भी बची रहेंगी और यहां रह कर पति भी शायद सुधर जाए. लेकिन सुधरना तो दूर, पति और दरिंदा हो गया. वह यहां भी उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडि़त करता.

थानाप्रभारी ने राजकंवर के पति कौशल किशोर नागर को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया. उसे सबडिवीजनल मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया गया तो उस ने अपनी गलती की क्षमा मांगी.

मामला पारिवारिक था, इसलिए अदालत ने उसे पत्नी से अलग रहने की ताकीद करते हुए कहा कि अगर भविष्य में वह पत्नी राजकंवर के पास गया, उसे धमकाया, मारपीट या अभद्रता की तो उस के खिलाफ सख्त कानूनी काररवाई की जाएगी.

कौशल किशोर के लिए यह फैसला अंगारों पर लोटने जैसा था. कानूनी ताकीद के बावजूद अपमान से तिलमिलाता कौशल घर छोड़ कर जाती राजकंवर को धमकाने से बाज नहीं आया. उस ने कहा, ‘‘देखता हूं, तुझे मेरे पंजों से कौन सा कानून बचाता है.’’

इस घटना के बाद राजकंवर पति कौशल किशोर से अपना रिश्ता खत्म कर के अपने बेटे उदित को ले कर कोटा आ गईं और किराए का मकान ले कर रहना शुरू कर दिया. वह कोटा से ही रोजाना ड्यूटी के लिए अपडाउन करती थीं.

लेकिन राजकंवर के सिर से दुर्भाग्य की छाया अभी छंटी नहीं थी.

संजय राय अनुभवी पुलिस अधिकारी थे. राजकंवर के पति कौशल किशोर को जिस समय मजिस्ट्रैट के सामने पाबंद किया जा रहा था, संजय राय ने उस की अंगार सी सुलगती आंखों में छिपा लावा देख लिया था. वह अपने सहयोगी से अपने मन की बात कहे बिना नहीं रहे, ‘इस की आंखों में भेडि़ए की सी मक्कारी है. मैं दावे से कह सकता हूं कि इस में इंसानी जज्बा कतई नहीं है. यह शख्स कब क्या कर जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता.’

राय का सहयोगी पता नहीं उन की बात की गहराई समझा या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन राय ने जो अंदेशा जताया था, घटना के ठीक 10 दिन बाद 17 सितंबर को हो गया.

सोमवार की दोपहर जिस समय थानाप्रभारी संजय राय अपने औफिस में बैठे थे, तभी फोन की घंटी बजी. उन्होंने अनमने मन से फोन उठाया, ‘‘यस, इटावा पुलिस स्टेशन.’’

दूसरी तरफ से हड़बड़ाती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘साहब, पीपल्दा रोड पर स्थित एक निजी स्कूल के गेट पर अभीअभी एक टीचर की गला रेत कर हत्या कर दी गई है.’’

‘‘कौन? किस की?’’ पूछते हुए थानाप्रभारी चिल्लाते ही रह गए. लेकिन दूसरी से फोट कट चुका था.

काल बन गया कौशल किशोर

थानाप्रभारी तुरंत बताए गए पते की ओर रवाना हो गए. साथ ही उन्होंने एसपी (ग्रामीण) राजीव पचार को भी घटना की जानकारी दे दी.

घटनास्थल पर खासी भीड़ जुटी हुई थी. स्कूल का पूरा स्टाफ वहां मौजूद था. उन्हें जब बताया गया कि मरने वाली सीनियर सैकेंडरी स्कूल की व्याख्याता राजकंवर थीं तो संजय राय सन्न रह गए. राय ने पूछा, ‘‘लेकिन राजकंवर का इस स्कूल में क्या काम?’’

स्कूल स्टाफ ने पूरा वाकया बयान करते हुए कहा, ‘‘राजकंवर का बेटा उदित यहीं पढ़ता था. अब वह कोटा रहने लगी थीं तो बेटे का दाखिला कोटा के किसी स्कूल में कराने के लिए बेटे की टीसी लेने आई थीं.’’

‘‘…फिर?’’ राय ने बेसब्री से पूछा.

‘‘दोपहर करीब 12 बजे राजकंवर अपने स्कूल के छात्र गोलू बैरवा की मोटरसाइकिल पर यहां पहुंची थीं.’’ स्टाफ के एक व्यक्ति ने बताया.

गोलू बैरवा वहीं मौजूद था. उस ने बात पूरी करते हुए कहा, ‘‘मैडम, टीसी लेने स्कूल के भीतर चली गई थीं. लेकिन मैं ने बाहर ही इंतजार करना ठीक समझा. जैसे ही बाहर आ कर वह मेरे पास पहुंची, अचानक कोई पीछे से आया और मेरी और मैडम की आंखों में मिर्ची झोंक दी. मैं ने आंखें मलते हुए मैडम की तरफ देखा तो वह खून से लथपथ नीचे पड़ी थीं. लगता था उन का गला काट दिया गया था. गले और सीने से खून बह रहा था. मैं जोर से चिल्लाया तो लोग इकट्ठा हो गए.’’

‘‘तुम ने देखा, कौन था वो?’’ राय ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मिर्ची की जलन और दर्द के मारे चेहरा तो दूर आदमी को ही नहीं देख पाया.’’ गोलू ने बताया.

थानाप्रभारी राय ने तुरंत घायल राजकंवर को अस्पताल पहुंचाया. तब तक एसपी राजीव पचार भी मौके पर आ गए थे. छात्र गोलू बैरवा से की गई पूछताछ की बाबत राय ने एसपी साहब को जानकारी दी तो उन्होंने भी गोलू से पूछताछ की.

एसपी पचार ने गोलू को भी तुरंत अस्पताल भिजवा दिया. उसी समय उन की नजर धूप से चमकते चाकू पर पड़ी. उन्होंने राय की तरफ देख कर कहा, ‘‘यह मर्डर वेपन लगता है. जल्दी में हमलावर इसे यहीं छोड़ कर भाग गया होगा. कोटा के एसपी भार्गव को घटना की जानकारी दे कर एफएसएल टीम भिजवाने का आग्रह किया. साथ ही उन्होंने सीओ भोपाल सिंह और थानाप्रभारी राय को निर्देश दिया कि अभी हमलावर ज्यादा दूर नहीं जा पाया होगा, शहर की नाकेबंदी का बंदोबस्त करो.’’

राजकंवर ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था. चिकित्सा प्रभारी डा. के.सी. शर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मृतका के शरीर पर एक दरजन से ज्यादा घाव थे, जो किसी नुकीले हथियार से किए गए थे. लगता था ताबड़तोड़ वार किए गए थे.

पिता ने बताई हकीकत

बेटी की नृशंस हत्या की खबर पा कर इटावा पहुंचे पिता रमेशचंद नागर ने इस मामले में राजकंवर के पति कौशल किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. थानाप्रभारी राय उस समय हैरान रह गए, जब रमेशचंद नागर ने बिलखते हुए बताया कि अदालत के पाबंद करने के बावजूद कौशल किशोर राजकंवर के पीछे पड़ा हुआ था. वह मोबाइल पर उसे जान से मारने की धमकियां देता था.

केस दर्ज होने के बाद पुलिस आरोपी की तलाश में जुट गई. मुखबिर से मिली सूचना पर कौशल किशोर को तीसरे दिन इटावा के गणेशगंज चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में वह जल्दी ही टूट गया.

एसपी (देहात) राजीव पचार, सीओ भोपाल सिंह की मौजूदगी में थानाप्रभारी राय द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया कि उस ने पत्नी की आवाजाही पर नजर रखने के लिए 2 दिन तक रेकी की थी. बेटे उदित को स्कूल ले जाने वाले वैन ड्राइवर से भी जानकारी जुटाई थी.

घटना वाले दिन उस ने नकाब पहन कर उस का पीछा किया था. फिर मौका पा कर उस की आंखों में मिर्ची झोंक कर उस पर चाकू से हमला कर दिया. उस ने बताया कि पत्नी ने पुलिस से पाबंद करा कर उस का अपमान किया था, इसलिए उस ने उस के साथ ऐसा किया.

पुलिस ने कौशल किशोर नागर से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

  —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मासूम के हत्यारों को फांसी : युग गुप्ता हत्याकांड की कहानी

शिमला के जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंदर सिंह की अदालत में अंदर और बाहर 6 अगस्त, 2018 को लोगों की भीड़ को देख ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शिमला शहर ही कचहरी में उमड़ आया हो. अदालत परिसर के अंदर व बाहर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे और अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किया गया था.

दरअसल, उस दिन 4 वर्षीय युग गुप्ता के अपहरण और हत्या का फैसला सुनाया जाना था. युग का अपहरण 4 करोड़ रुपए की फिरौती के लिए किया गया था. लेकिन फिरौती की रकम न मिलने के कारण अपहर्त्ताओं ने मासूम की हत्या कर दी थी.

युग के परिजनों के अलावा पूरे राज्य को करीब पौने 2 साल से अदालत के इस फैसले का इंतजार था. यह शायद देश का एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक फैसला था, जिसे सुनने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री भी अदालत पहुंचे थे.

अपहर्त्ता कौन थे और उन्होंने युग का अपहरण कर उसे कितनी दर्दनाक मौत दी, जानने के लिए पूरी कहानी समझनी होगी.

अचानक युग हुआ गायब

बात 14 जून, 2014 की है. राजधानी शिमला के रामबाजार से एक व्यापारी विनोद कुमार गुप्ता का 4 वर्षीय बेटा युग लापता हो गया था. विनोद गुप्ता शहर के जानेमाने व्यापारी थे. शहर में उन की किराने की थोक दुकानें और गारमेंट का बिजनैस था. स्थानीय सदर थाना पुलिस ने मामले की जांच शुरू की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. बाद में नगरवासियों का आक्रोश देखते हुए यह मामला सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया था.

युग 14 जून को अचानक लापता हुआ था. इस के 13 दिन बाद 27 जून को युग का जन्मदिन था. उसी दिन विनोद गुप्ता के घर डाक से एक बड़ा पैकेट आया, जिस में युग के कपड़े थे. ये वही कपड़े थे, जो वह लापता होने वाले दिन पहने हुए था. पैकेट में एक पत्र भी था, जिस में युग को वापस लौटाने के बदले 3 करोड़ 60 लाख रुपए की मांग की गई थी. ये पैसे विनोद गुप्ता के नौकर हरिओम के माध्यम से अंबाला में देने को कहा गया था. इस पैकेट के मिलने से यह बात साफ हो गई थी कि किसी ने युग का अपहरण फिरौती के लिए किया है.

इस के एक हफ्ते बाद विनोद गुप्ता के नाम फिर एक पत्र आया, उस में 4 करोड़ रुपए की मांग की गई थी. उस के बाद फिर एक और पत्र आया, जिस में 10 करोड़ रुपए मांगे गए थे. लेकिन जब उन्होंने पैसे नहीं दिए तो घटना के 3 महीने बाद एक और पत्र आया, जिस में दोबारा 4 करोड़ की मांग की गई थी.

यह आखिरी पत्र था. इस के बाद यह मामला जब सीबीसीआईडी को ट्रांसफर हो गया तो विनोद के पास पत्र आने बंद हो गए.

सीबीसीआईडी की जांच भी लगभग 2 साल तक चलती रही, लेकिन ऐसा कोई सुराग हाथ नहीं लगा, जिस से वह अपहर्त्ताओं तक पहुंच पाती. पहले इस मामले की जांच सीबीसीआईडी के डीएसपी भूपिंदर बरागटा के नेतृत्व में गठित टीम द्वारा की जा रही थी.

लेकिन जब शहर में जनता का आक्रोश भड़का और मामले की गूंज विधानसभा से होते हुए संसद तक पहुंची तो सीबीसीआईडी के डीआईजी विनोद धवन ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. डीआईजी विनोद धवन की निगरानी में युग मामले ने रफ्तार पकड़ी और यहीं से एकएक अनसुलझी कड़ी को जोड़ कर अपराध की तह तक पहुंचा जा सका.

डीआईजी के हस्तक्षेप के बाद बढ़ी उम्मीदें

एसपी (क्राइम) अशोक कुमार, डीएसपी भूपिंदर बरागटा, एसआई सुरेश कुमार, एएसआई राजेश कुमार, अनिल, हैडकांस्टेबल रवि, उमेश्वर सिंह, कांस्टेबल दीपक के अलावा एफएसएल के डायरेक्टर डा. अरुण शर्मा, डा. जगजीत सिंह, डा. संजीव कुमार और डा. बी. पटियाल ने क्राइम सीन विजिट में वैज्ञानिक तरीके से सबूतों को एकत्रित करना शुरू किया.

सीबीसीआईडी ने कई संदिग्ध लोगों के नारको टेस्ट भी करवाए, जिन में से एक विनोद गुप्ता का नौकर हरिओम भी था. चूंकि अपहर्त्ताओं ने जब पहली बार फिरौती की मांग की थी तो अंबाला में रकम पहुंचाने के लिए उन्होंने नौकर हरिओम को ही चुना था. इस का मतलब यह था कि अपहर्त्ता हरिओम को जानते थे.

नारको टेस्ट के दौरान नौकर हरिओम बारबार चंद्र शर्मा का नाम ले रहा था. इस से जांच टीम को संदेह हो गया कि इस मामले से किसी चंद्र शर्मा का जरूर कोई वास्ता है. लेकिन चंद्र शर्मा कौन है, कहां रहता है, यह टीम को पता नहीं था.

जांच टीम ने इस के बाद चंद्र शर्मा की तलाश शुरू कर दी. इत्तफाक से उन्हीं दिनों अगस्त 2016 में न्यू शिमला में एक चोरी के मामले में चंद्र शर्मा का नाम आया. उस के साथ 2 और लोगों तेजिंदरपाल सिंह और विक्रांत बख्शी के भी नाम थे. जब तीनों आरोपियों का नाम सामने आया तो जांच टीम का शक यकीन में बदल गया.

तीनों के मोबाइल खंगाले गए. इस बीच विक्रांत बख्शी के मोबाइल से युग की 60 सैकेंड की एक वीडियो क्लिप और फोटो बरामद हुई. इस से पुष्टि हो गई कि युग के अपहरण में इन लोगों का हाथ है. इस के बाद पुलिस ने 22 अगस्त को तेजिंदर और चंद्र शर्मा को हिरासत में ले लिया.

चंद्र शर्मा, तेजिंदरपाल सिंह व विक्रांत से बरामद मोबाइल फोन सीबीसीआईडी ने कोर्ट के माध्यम से अपने कब्जे में ले लिए. फोरैंसिक टीम ने सभी फोन नंबरों का डिलीट किया गया डाटा रिकवर कर लिया. इस से युग के अपहरण का एक बड़ा सबूत जांच टीम के हाथ आ गया.

पता चला कि वे लोग बच्चे के वीडियो व औडियो दोनों बनाते थे, जो मोबाइल फोन में मिले. पकड़े जाने के डर से उन्होंने विनोद को वीडियो नहीं भेजे थे. दोषियों की निशानदेही पर टीम ने उस जगह भी छापा मारा, जहां युग को अपहरण के बाद रखा गया था. उस कमरे की तलाशी ली गई. सीबीसीआईडी की विशेष जांच के साथ फोरैंसिक टीम भी मौजूद रही.

वहां से ट्रेसिंग पेपर, अन्य पेपर, कोल्डड्रिंक व बैड के बौक्स में निशान पाए गए. इसी आधार पर दोषियों की गिरफ्तारी हुई. 20 अगस्त, 2016 को विक्रांत और 22 अगस्त को तेजिंदर और चंद्र शर्मा को पकड़ा गया.

2 साल तक लोग उस टैंक का पानी पीते रहे, जिस में युग की लाश पड़ी थी. 4 वर्षीय युग गुप्ता हत्याकांड का सब से दर्दनाक पहलू अपराधियों द्वारा वारदात को अंजाम देने का रहा. रामबाजार स्थित घर से करीब 3 किलोमीटर दूर युग को शराब पिलाने के बाद पत्थरों से बांध दिया गया था, फिर उसे केलेस्टन क्षेत्र स्थित नगर निगम के पानी के टैंक में जिंदा फेंक दिया गया.

हत्यारों ने फिरौती न मिलने का गुस्सा मासूम युग पर निकाला था. टैंक में युग की किस तरह तड़पतड़प कर मौत हुई होगी, इस की कल्पना मात्र से ही दिल दहल जाता है. उस का शव टैंक में ही पड़ा सड़ता रहा था.

इस वाटर टैंक से शिमला के कई हिस्सों केलेस्टन और भराड़ी को पेयजल सप्लाई किया जाता है. मतलब करीब 25 हजार लोगों ने 2 साल तक इस टैंक का पानी पीया था. उन्हें पता ही नहीं था कि टैंक में बच्चे का शव है. ऐसा सरकारी तंत्र की लापरवाही से हुआ. बाद में नगर निगम कर्मियों ने टैंक की सफाई की तो युग का कंकाल बरामद हुआ.

युग की हत्या ने सरकारी तंत्र के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा था. कागजों में टैंकों की सफाई हर 6 महीने में होती थी, मगर बच्चे का शव बरामद नहीं हुआ.

नगर निगम के कनिष्ठ अभियंता की मौजूदगी में टैंक की सफाई की जाती है, लेकिन नगर निगम अधिकारियों की हकीकत युग का कंकाल बरामद होने के बाद सामने आई. बहरहाल, सीबीसीआईडी ने केलेस्टन टैंक के अंदर और बाहर से युग के अवशेष बरामद कर इस केस को सुलझा दिया था.

22 अगस्त, 2016 को भराड़ी टैंक से युग का कंकाल निकाला गया था. इस के बाद अवशेषों को आईजीएमसी भेजा गया, जहां डाक्टरों ने इसे इंसानी बच्चे का कंकाल होने की पुष्टि की. इस के बाद युग के मातापिता के डीएनए से मिलान करा कर इस बात की तसदीक की गई कि बरामद कंकाल युग का ही है. इस केस की सुनवाई के दौरान अदालत में भी वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर यह साबित कर दिया गया कि टैंक से मिला कंकाल युग का ही था. युग के अवशेषों को बतौर सबूत मालखाने में जमा करवा दिया गया था. युग के परिजनों को अपने बेटे की अस्थियां अंतिम संस्कार के लिए अदालत के आदेश पर ही मिलनी थीं.

अपहर्त्ताओं ने युग का 7 दिनों तक उत्पीड़न किया था. उसे जहां रखा गया था, वहां ट्रेसिंग पेपर व दूसरे कागजात भी रखे गए थे. इस केस के मास्टरमाइंड और मुख्य आरोपी चंद्र शर्मा ने फोरैंसिक साइंस का कोर्स किया हुआ था. उसे पता था कि अगर ट्रेसिंग पेपर पर फिरौती का पत्र लिखेंगे तो हैंडराइटिंग मैच नहीं होगी. लेकिन फोरैंसिक एक्सपर्ट्स ने विनोद को फिरौती के लिए लिखे गए पत्रों से हैंडराइटिंग के नमूनों को मैच कराया तो वह चंद्र शर्मा की निकली.

आखिर हत्यारे आ ही गए पकड़ में

मासूम युग की गुमशुदगी के रहस्य को सुलझाने और आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए डीआईजी (सीबीसीआईडी) की टीम ने रातदिन एक किया था. कई बार ऐसा भी हुआ, जब जांच अधिकारियों के हौसले पस्त हो गए. लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस स्थिति में वह बारबार 4 साल के मासूम युग की फोटो देख कर प्रण लेते रहे कि इस के पीछे जो कोई भी हों और कहीं पर भी हों, उसे पकड़ कर ही दम लेंगे.

आखिरकार टीम ने कत्ल के तीनों आरोपियों को पकड़ कर ही दम लिया था. इन सब के पीछे एडीजीपी बी.एन.एस. नेगी, डीआईजी सिक्योरिटी क्राइम रहे दलजीत ठाकुर का भी अहम रोल रहा, जिन्होंने टीम के हौसले को कम नहीं होने दिया और हरसंभव मदद दी थी.

25 अक्तूबर, 2016 को जांच टीम ने जिला एवं सत्र न्यायालय में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सीबीसीआईडी ने चालान पेश करने के साथ ही अदालत में अरजी दाखिल करते हुए अनुरोध किया कि इस केस को फास्टट्रैक कोर्ट में सुना जाए, ताकि सुनवाई जल्द पूरी हो सके.

करीब पौने 2 साल तक चले इस केस के ट्रायल में कुल 135 गवाह बनाए गए थे, जिन में से 105 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे. 13 अगस्त और 21 अगस्त को सुनवाइयों के दौरान अदालत ने दोषियों के मातापिता को भी तलब किया था.

न्यायाधीश के समक्ष अपने बयान में घर वालों ने अपनी बीमारी का हवाला दिया और दोषियों की सजा कम करने की गुहार लगाई. इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले तीनों आरोपी संपन्न परिवारों से ताल्लुक रखते थे. 2 आरोपियों के घर वालों की शिमला के रामबाजार में किराने और गारमेंट्स की दुकानें हैं और वे युग के पिता विनोद गुप्ता के पड़ोसी थे.

अदालत में जज वीरेंदर सिंह ने 4 वर्षीय मासूम के हत्यारों को खड़े हो कर सजा सुनाई. एकएक कर तीनों दोषियों की सजा का ऐलान करने में जज ने मात्र 10 मिनट का वक्त लिया. सजा पर फैसला सुनाने के बाद जज वीरेंदर सिंह ने कलम तोड़ कर पीछे की ओर फेंक दी और सीधे अपने चैंबर में चले गए.

तीनों दोषियों को जब अदालत के सामने पेश किया गया तो उस समय अदालत का माहौल बिलकुल शांत था. अदालत ने एकएक कर तीनों को फांसी की सजा सुनाने की प्रक्रिया शुरू की. सब से पहले चंद्र शर्मा को फांसी की सजा सुनाई गई. इस के बाद तेजिंदर पाल और फिर विक्रांत बख्शी की सजा का ऐलान किया गया.

सजा सुन कर तीनों के चेहरे पीले पड़ गए. उन के चेहरों पर खौफ झलक रहा था. अदालत में मौजूद सभी की नजरें उस समय जज और हत्यारों पर टिकी थीं.

हत्याकांड में दोषियों की सजा पर 6 अगस्त, 2018 को सुनवाई हुई. जिला एवं सत्र न्यायालय में युग हत्याकांड के दोषियों की सजा पर एक घंटे तक बहस हुई. कोर्टरूम के बंद दरवाजे के भीतर बहस प्रक्रिया पूरी हुई. सजा पर हुई बहस की वीडियो रिकौर्डिंग भी की गई थी.

सुनवाई में तीनों आरोपियों को दोषी करार देने के बाद अदालत ने 800 पन्नों का अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बहस के दौरान तीनों दोषियों के अलावा युग के पिता विनोद गुप्ता भी वहां मौजूद रहे.

अदालत ने फांसी की सजा दे कर किया न्याय

न्यायाधीश वीरेंदर सिंह की अदालत ने इस अपराध को रेयरेस्ट औफ रेयर श्रेणी का करार दिया था. युग हत्याकांड में अदालत ने आईपीसी की धारा 302, 120बी हत्या और हत्या का षडयंत्र रचने, 364ए में फिरौती की मांग करने का दोषी करार देते हुए तीनों दोषियों को मौत की सजा सुनाई.

वहीं धारा 347 में बंधक बनाने का दोषी पाए जाने पर एक साल की सजा और 20 हजार रुपए जुरमाने की अलग सजा सुनाई गई. जुरमाना अदा न करने की सूरत में 3 माह की अतिरिक्त सजा सुनाई गई थी.

अदालत ने तीनों को धारा 201 और 120बी के तहत सबूत नष्ट करने और षडयंत्र रचने का दोषी होने पर 7 साल के कठोर कारावास, 50 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई और कहा कि जुरमाना अदा न करने पर 6 माह के अतिरिक्त कारावास की सजा होगी.

अदालत ने इन दोषियों को आईपीसी की धारा 506 और 120बी के तहत धमकियां देने और षडयंत्र रचने पर एक साल के कठोर कारावास और 10 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई. इस में जुरमाना अदा न करने की सूरत में एक महीने की अतिरिक्त जेल का प्रावधान था.

फैसला आने पर 4 साल से न्याय का इंतजार कर रहे युग की मां पिंकी, पिता विनोद कुमार और दादी चंद्रलेखा की आंखों से आंसू छलक पड़े. कोर्ट ने मौत की सजा के आदेशों को कन्फरमेशन के लिए उच्च न्यायालय भेज दिया. वहीं दोषियों को हाइकोर्ट में फैसले को ले कर अपील करने के लिए 30 दिन का समय दिया था.

भीड़ कम होने तक सुरक्षा कारणों और फैसले की प्रति देने के लिए दोषियों को कुछ देर के लिए कोर्ट में रोका गया. इस के बाद पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच तीनों को अदालत परिसर से शाम को फिर से कंडा जेल ले जाया गया. अदालत का यह फैसला लगभग पौने 2 साल बाद आया था.

4 साल के युग के लिए मांबाप ने सैकड़ों सपने देखे थे. एक दिन आंगन में खेलते हुए युग लापता हो गया था. किसी ने नहीं सोचा था कि वह कभी लौट कर नहीं आएगा. जिस दिन युग लापता हुआ, उस की मां उसी दिन से बेसुध सी हो गई थी. जिस दिन मां ने सुना कि युग इस दुनिया में नहीं है तो वह गुमसुम रहने लगी.

युग की मां भी अपने बच्चे की एक झलक देखना चाहती थी. लेकिन दरिंदों ने उसे बेरहमी से मार दिया था. मां की आंखें सिर्फ आंसुओं से भरी रहती थीं. घर में युग की एक छोटी सी फोटो को मां हमेशा सीने से लगाए रखती थी. वह हर रोज यही प्रार्थना करती थी कि उस के बेटे को मुक्ति देनी है तो हत्यारों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

जब भी कोर्ट में पेशी होती तो पूरे परिवार को उम्मीद होती कि हत्यारों को फांसी होगी. जब कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई तो बेटे की हत्या करने वाले तीनों दरिंदे अदालत में उन के सामने थे. मां की आंखों से एकदम आंसू निकल आए. उन्होंने कहा कि दोषियों को मृत्युदंड सुना कर युग के साथ इंसाफ हुआ है लेकिन वह दोषियों को कभी माफ नहीं करेंगी.

हाइवे का हत्यारा : आखिर कैसे फंसा 34 हत्याएं करने वाला आदेश

आदेश ने अब तक 34 हत्याएं करने का जुर्म कबूला है. मुमकिन है कि उस की लिस्ट में और नाम बढ़ें. लेकिन अब किसी को उतनी हैरानी नहीं होगी, जितनी सितंबर के दूसरे हफ्ते में हुई थी. इस सनकी हत्यारे ने एक के बाद एक ट्रक ड्राइवरों और क्लीनरों की हत्याओं की बात कबूली थी और यह भी बताया था कि उस ने कब कहां किस की हत्या की थी.

आदेश जब भोपाल में पकड़ा गया था, तब पुलिस को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस के हत्थे कोई मामूली मुलजिम नहीं, बल्कि एक ऐसा सीरियल किलर चढ़ा है, जिस का कत्ल करने का अपना एक अलग स्टाइल और अंदाज है. जब 34 हत्याओं की बात उस ने स्वीकारी थी तो इस स्वीकारोक्ति की गूंज न केवल देश बल्कि विदेशों तक भी पहुंच गई थी.

हर किसी की दिलचस्पी आदेश खांबरा में है, खासतौर से मनोविज्ञानियों की, जिन के लिए यह कातिल शोध का विषय हो सकता है. मध्य प्रदेश पुलिस उस के द्वारा की गई हत्याओं में सिर खपा रही है कि कैसे इस दुर्दांत और बेरहम हत्यारे द्वारा की गई हत्याओं को सूचीबद्ध कर के ऐसी चार्जशीट तैयार करे कि उस के फांसी के फंदे से बचने की रत्तीभर भी गुंजाइश न रहे.

कौन है आदेश खांबरा

लगभग 50 वर्षीय आदेश खांबरा मामूली शक्तसूरत वाला अधेड़ आदमी है. उस के चेहरे से अगर अपने जुर्मों के अनुपात में क्रूरता नहीं टपकती तो मासूमियत भी नहीं दिखती. वह बेहद सपाट चेहरे वाला तटस्थ और लगभग भावशून्य व्यक्ति है. मामूली पढ़ेलिखे आदेश खांबरा की बातों में दर्शन जरूर झलकता है. पकड़े जाने के बाद वह शायद खुद की अहमियत समझने लगा है, इसीलिए वह और भी ज्यादा लापरवाह दिखने की कोशिश करता है.

भोपाल के नजदीक औद्योगिक इलाका है मंडीदीप जो एक छोटा सा कस्बा है. यहां की फैक्ट्रियों में काम करने आए देश भर के लोग रहते हैं. इन में से अधिकांश पेशे से मजदूर हैं, जो मंडीदीप में स्थाई रूप से बस गए हैं, खांबरा परिवार उन में से एक है.

आदेश खांबरा के पूर्वज भारत पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त भोपाल आ गए थे. उस के पिता गुलाब खांबरा सेना से नायक सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे. अपना पेट पालने के लिए आदेश मंडीदीप में दरजी की छोटी सी दुकान चलाता था. उस की शादी हो चुकी है और उस के 5 बच्चे भी हैं जिन्हें वह बेहद प्यार करता है.

पुलिस इस से ज्यादा जानकारी आदेश के बारे में हासिल नहीं कर पाई है या फिर वह किन्हीं वजहों के चलते मीडिया को नहीं दे रही है. हां, पुलिस ने यह बात जरूर प्रमुखता से बताई कि आदेश के अपने पिता से बेहद कटु संबंध थे. खुद आदेश ने भी स्वीकारा कि वह इतना बेरहम हत्यारा इसलिए बना क्योंकि उसे परिवार में कभी किसी का प्यार नहीं मिला.

पिता ने तो उसे कभी चाहा ही नहीं और न ही किसी और ने उस की परवाह की. मां की मौत बचपन में ही हो चुकी थी. पिता सैन्य अनुशासन अपने घर में भी चलाते थे और जराजरा सी बात पर उसे मारते, डांटते थे. कभीकभी तो वह उसे घर से निकाल देते थे, इसलिए अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा उस ने अभावों में रहते रिश्तेदारों के यहां गुजारा था.

किशोर उम्र बड़ी नाजुक होती है आदेश का मासूम मन इन हालात को बरदाश्त नहीं कर पाया. लिहाजा एक गुस्सा उस के अंदर जमा होता गया, जिस का अहसास उसे नहीं हुआ और वह एक बेरहम हत्यारा बन गया.

ऐसे बना हत्यारा

इन दिनों आदेश को ले कर देश भर में जगहजगह घूम रही पुलिस को यह भी नहीं मालूम कि आदेश ने जुर्म की दुनिया में पहला कदम कब रखा था. लेकिन उस ने जो कबूला उस के मुताबिक साल 2010 के बाद से वह लगातार एक नियमित अंतराल से हत्याएं कर रहा था और हिम्मत बढ़ती गई.

आदेश के निशाने पर ट्रक ड्राइवर और क्लीनर ही क्यों होते थे, इस सवाल का जवाब भी उस के बयानों से मिलता है कि ये लोग सौफ्ट टारगेट होते थे. हत्याओं की शुरुआत भी उस ने भोपाल और मंडीदीप के बीच 11 मील नाम के इलाके से की थी, जो होशंगाबाद रोड पर स्थित है. यहां से एक रास्ता प्रसिद्ध भोजपुर के शंकर मंदिर की तरफ जाता है. इस इलाके में रिहायशी मकान और अपार्टमेंट बन रहे हैं, लेकिन इस के बाद भी वह इलाका सुनसान रहता है. खासतौर से रात के वक्त तो आवाजाही न के बराबर रहती है.

पैसों की तंगी दूर करने के लिए आदेश ने मेहनत करने के बजाय जुर्म का रास्ता चुना. मंडीदीप में रहने वाले आपराधिक प्रवृत्ति के कई लोगों से उस के संबंध थे. संगत रंग लाई और एक दिन उस ने 11 मील इलाके में एक ट्रक लूट लिया. अपनी पहली वारदात की वह तारीख नहीं बता पाया, लेकिन उस की बातों से लगता है कि यह बात सन 2007 की रही होगी.

पहले जुर्म में उस ने ट्रक ड्राइवर की हत्या नहीं की थी, बल्कि उसे लूट कर छोड़ दिया था. इस लूट से उस के हाथ काफी माल लगा था. मोटा माल आसानी से हाथ लगने के बाद उसे टेलरिंग बेहद घाटे वाला और बेकार का काम लगा, क्योंकि जितना पैसा वह 3-4 साल मेहनत कर के कमा पाता था, उतना एक रात में उस ने ट्रक की लूट से कमा लिया था. हालांकि लोगों को दिखाने के लिए वह अपने टेलरिंग के पेशे से चिपका रहा.

पहली बार जुर्म करने वालों की हालत अजीब होती है, कुछ दिन वे पुलिस के डर और राज खुल जाने से सहमे रहते हैं लेकिन जब 10-15 दिन गुजर जाते हैं तो फिर बेफिक्र हो जाते हैं. इसी बीच किसी तरह वे चोरीछिपे घटनास्थल का चक्कर जरूर लगाते हैं, इस के कई मनोवैज्ञानिक कारण अपनी जगह हैं.

पहली लूट पर जब कुछ नहीं बिगड़ा तो आदेश के हौसले बढ़े और दूसरी वारदात को अंजाम देने के लिए उस ने गुना जिले के राघौगढ़ कस्बे को चुना जो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का चुनाव क्षेत्र होने के चलते मशहूर है.

यह भी साल 2007-2008 के दरम्यान की बात है. राघौगढ़ में ट्रक लूट कर उस ने सबूत मिटाने की गरज से ट्रक ड्राइवर की हत्या कर दी थी. इस के बाद उस ने लगभग हर वारदात में ऐसा ही किया, जिस से पकड़ा न जाए. लगातार हत्याएं करने के बाद वह अपनी अपराध शैली में बेहद ऐहतियात बरतने लगा था.

दूसरी वारदात में भी उसे खासी रकम मिली थी. इस के बाद तो ट्रक ड्राइवरों और क्लीनरों की हत्या को उस ने अपना फुलटाइम जौब बना लिया. लंबी दूरी तक जाने वाले ट्रक ड्राइवरों के पास तो खासी नगदी होती ही है, लेकिन उसे असल आमदनी होती थी ट्रक का माल लूटने से और फिर ट्रक को भी बेच देने से. यह आदेश खांबरा के लिए बाएं हाथ का खेल बनता जा रहा था.

एक राह पकड़ी तो उसे पेशा समझ लिया

सन 2010 से ले कर 2014 तक उस ने 5 ट्रक लूटे और 8 ड्राइवरों और क्लीनरों की हत्या की. लेकिन उस की हिम्मत उस समय और बढ़ गई थी, जब वह तीसरी वारदात को अंजाम देने के लिए महाराष्ट्र के अमरावती जिले में गया था. यहां वारदात के बाद वह पकड़ा गया था और उसे डेढ़ साल की सजा भी हुई थी. जेल से रिहा होने के बाद उस ने जुर्म की दुनिया से किनारा कर लेने का इरादा भी बनाया था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. इस की 2 ही वजहें थीं. पहली यह कि जुर्म से कम समय में बहुत ज्यादा पैसा मिलता था और दूसरी बात संगत की थी.

एक बार जो अपराधी जेल हो आता है, उस के भीतर का डर मिट जाता है. वह पुलिसिया कामकाज के तौरतरीकों से भी वाकिफ हो जाता है. यही आदेश के साथ हुआ. सजा होने के कुछ दिन बाद तक उस ने भी जुर्म न करने की बात सोची, लेकिन जल्द ही जुर्म का कीड़ा उस के दिमाग में कुलबुलाने लगा. 2010 से 2014 के बीच वह एक दफा और पकड़ा गया था. इस बार जेल में रहते उस की दोस्ती तुकाराम बंजारा नाम के शख्स से हुई. दोनों ने जेल में तय कर लिया कि अब बाहर जा कर वे मिलजुल कर ट्रक लूटने और ड्राइवरों व क्लीनरों की हत्या का काम करेंगे.

इन दोनों ने जेल में रहते ही हाइवे क्राइम्स पर जैसे पीएचडी कर डाली थी. इस बात पर दोनों की राय एक थी कि मंडीदीप की फैक्ट्रियों में ट्रक ड्राइवर चोरी का माल बेच कर लाखों बनाते हैं तो हम तो उन्हें लूट कर और ज्यादा कमा सकते हैं.

महाराष्ट्र का रहने वाला तुकाराम भी कम खुराफाती और शातिर दिमाग का नहीं था. उसे आदेश जैसे किसी जोखिम उठाने वाले सहयोगी की जरूरत थी. जेल में रहते दोनों ने तरहतरह की योजनाएं बनाईं और बाहर आ कर उन पर अमल भी शुरू कर दिया.

योजनानुसार दोनों ने वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया. अब ये ट्रक ड्राइवरों को हथियारों की नोंक पर नहीं लूटते थे, बल्कि उन्हें मीठीमीठी बातों में फंसाते थे. फंसने के बाद उन्हें शराब पिलाते या फिर किसी खानेपीने की चीज में नशे की गोलियां मिला कर दे देते थे.

ड्राइवर के बेसुध हो जाने के बाद ये उसे या तो कहीं पानी में डुबो कर मार देते थे या फिर उसे रेल की पटरियों पर सुला देते थे, जिस से मामला हादसे या खुदकुशी का लगे. इन तरीकों को अपनाने के पीछे इन का मकसद पुलिस जांच का दायरा सीमित रखना था, जिस में वे कामयाब भी रहे.

जुर्म की राह की तिकड़ी

इसी दौरान जयकरण प्रजापति नाम का शख्स भी इन के गिरोह में शामिल हो गया. जयकरण मध्य प्रदेश के ही टीकमगढ़ जिले के एक गांव का रहने वाला था, जिस का मुख्य काम ट्रक ड्राइवरों से दोस्ती बढ़ाना था. ट्रक ड्राइवरों को शीशे में उतारने के बाद वह कोड वर्ड में आदेश को बताता था कि अब आगे क्या करना है.

मसलन जब वह फोन पर यह कहता था कि कुछ मीठा लाओ तो इस का सीधा सा मतलब होता था कि शिकार जाल में फंस चुका है, इसलिए उसे ठिकाने लगाने के लिए तैयार रहो. जो ड्राइवर इन का दावतनामा कबूल कर लेते थे, उन्हें ये छक कर शराब पिलाते थे और फिर कहीं सुनसान जगह ले जा कर निर्वस्त्र कर उसे रेल की पटरियों पर फेंक देते थे या फिर किसी तालाब में.

इस तिकड़ी ने 3 साल में 20 से भी ज्यादा वारदातों को अंजाम दिया था. अधिकांश हत्याएं आदेश ने ही की थीं. ऐसा लगता है कि हत्या करते वक्त उस की सनक शवाब पर होती थी और वह अब यह जुर्म लूट के लिए कम बल्कि अपना शौक पूरा करने के लिए ज्यादा करता था. ट्रक ड्राइवरों की हत्या करने में माहिर हो चले आदेश खांबरा ने एकएक कर अपने जुर्म कबूले तो देश भर में सनाका खिंच गया.

अपने द्वारा की गई हत्याओं का राज्यवार हिसाब भी उस ने दिया कि उस ने मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा 20 कत्ल किए. इन में से सब से ज्यादा कत्ल चंदेरी के नजदीक किए थे. चंदेरी साड़ी की देश भर में अलग पहचान है, जिसे हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘स्त्री’ में दिखाया भी गया है.

दरअसल, गुना, चंदेरी और राजगढ़, आगरामुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े हुए हैं. यहां हत्याएं करना और लूटपाट करना अपेक्षाकृत आसान काम है. महाराष्ट्र के अमरावती में आदेश ने 2 कत्ल किए तो छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 3 और रायपुर में 2 कत्लों की बात उस ने कबूली है.

एक हत्या उस ने मशहूर देवस्थल शिरडी के संगमनेर जंगल में करने की बात स्वीकारी. उस ने महाराष्ट्र के ही वर्धा में 2 हत्याएं की थीं. ओडिशा के संबलपुर में भी आदेश ने 2 हत्याओं की बात कबूली.

कभी मंडीदीप से शुरू हुआ एक ट्रक की लूट का सिलसिला अंतरराज्यीय बन चुका था. जिस में खास बात यह थी कि आदेश की तरफ किसी का ध्यान नहीं था क्योंकि हाइवे पर हादसे और हत्याएं आम बातें हैं. सुनसान होने के चलते ऐसी जगहों पर पुलिस को गवाह और सबूत नहीं मिलते इसलिए वह भी जांच जल्द बंद कर मामला क्लोज कर देती है.

दूसरे आमतौर पर ड्राइवरों और क्लीनरों की परवाह ट्रक मालिक भी नहीं करते, क्योंकि उन की दिलचस्पी अपने माल और ट्रक में ज्यादा रहती है, जो न मिलें तो वे पुलिस में औपचारिक रिपोर्ट दर्ज करा कर अपने काम में ऐसे लग जाते हैं कि मानो कुछ हुआ ही न हो. ट्रक ड्राइवरों के परिजन भी ज्यादा भागदौड़ नहीं कर पाते. इस सिस्टम और मानसिकता का पूरा फायदा आदेश खांबरा, जयकरण प्रजापति और तुकाराम बंजारा उठा रहे थे.

ऐसे धरा गया बेरहम हत्यारा

आदेश खांबरा यूं ही पुलिस के फंदे में नहीं आ गया, बल्कि उसे अपना दायां हाथ कहे जाने वाले जयकरण की एक भूल काफी महंगी पड़ी. महत्त्वाकांक्षी जयकरण की इच्छा खुद का अपना अलग गिरोह बना कर काम करने की थी. जयकरण के जेहन में यह खयाल आया कि क्यों न एक दफा अपने दम पर ऐसी किसी वारदात को अंजाम दे कर देखा जाए कि कितनी कामयाबी हाथ लगती है. बस इसी को हकीकत में बदलने की कोशिश में वह तो पकड़ा गया, साथ में अपने बौस आदेश खांबरा और साथी तुकाराम को भी ले डूबा.

हुआ यूं था कि अगस्त के पहले ही हफ्ते में भोपाल के बिलखिरिया थाने में बंसल कंपनी के मालिक ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उन का एक ट्रक मंडीदीप से सरिए ले कर रवाना तो हुआ है लेकिन मंजिल तक नहीं पहुंचा है. बिलखिरिया थाने के टीआई लोकेंद्र सिंह के जरिए यह बात एसपी राहुल लोढ़ा और उन से होती हुई आईजी जयदीप प्रसाद तक पहुंची तो पुलिस महकमे ने इस पर गंभीरता से काररवाई शुरू कर दी.

दरअसल, भोपाल पुलिस के आला अफसर लगातार मिल रही ऐसी रिपोर्टों और शिकायतों से परेशान हो चले थे, जिन में ट्रक रवाना तो हुआ था लेकिन अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचा था. हैरानी की बात यह थी कि ट्रक के साथसाथ उस के ड्राइवर और क्लीनरों का भी अतापता नहीं लग रहा था.

आईजी जयदीप प्रसाद ने एसपी राहुल लोढ़ा के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित कर दी, जिस में एएसपी दिनेश कौशल और तेजतर्रार सीएसपी सुश्री बिट्टू शर्मा को शामिल किया गया. इस टीम ने बंसल कंपनी के लापता हुए ट्रक को लक्ष्य बना कर जांच शुरू की तो जल्द ही सुराग भी हाथ लग गया.

तब पुलिस को इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि उस के हत्थे कौन चढ़ने वाला है. जांच में भोपाल के ही आनंद नगर इलाके के एक जगह लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में जब यह दिखा कि एक ट्रक से सरिए उतार कर दूसरे ट्रक में रखे जा रहे हैं तो पुलिस टीम को लगा कि हो न हो यह ट्रक बंसल कंपनी का ही हो.

कोशिश की गई तो भोपाल के अयोध्या नगर इलाके में एक लावारिस ट्रक खड़ा मिला. साथ ही मिल गई ट्रक ड्राइवर लखन की लाश. इस के बाद तो पुलिस वालों की बांछें खिल उठीं.

उत्साहित पुलिस वालों ने सीसीटीवी फुटेज में चोरी के सरिए खरीदने वाले को तलाश लिया. उस की मदद से असली खरीदार महेश को अपनी गिरफ्त में ले लिया. मंडीदीप निवासी महेश से जब पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने जयकरण का नाम लिया.

जयकरण को भी उठाने में पुलिस ने देर नहीं की. पूछताछ में वह जल्दी ही टूट गया और उस ने अपना गुनाह स्वीकार भी कर लिया कि ट्रक को उसी ने लूटा है. उस ने यह भी बताया कि हत्या करने के बाद ड्राइवर की लाश फेंक दी. जयकरण ने बताया कि यह ट्रक उस ने 11 मील इलाके में लूटा था और सरिया दूसरे को बेच दिए थे.

यहां जयकरण ने वह गलती की थी जो उस का उस्ताद आदेश खांबरा कभी नहीं करता था. वह गलती यह थी कि लूटे गए ट्रक को लावारिस छोड़ देना. जयकरण का इरादा पहले ट्रक बेचने का था, लेकिन उस ने बाद में अपना इरादा बदल दिया था.

जब जयकरण से पूछताछ चल रही थी, तभी इत्तफाक से मंडीदीप के ही एक ट्रांसपोर्टर मनोज शर्मा भी मिसरोद थाने पहुंच गए थे. मनोज ने पुलिस को बताया कि उन्होंने अपने ट्रक में चावल भर कर पुणे भेजे थे. ट्रक पुणे तक पहुंचा भी और वहां से चीनी ले कर वापस भोपाल के लिए रवाना भी हुआ लेकिन अभी तक यहां नहीं पहुंचा. मनोज के मुताबिक उस ट्रक में लगभग 10 लाख रुपए कीमत की चीनी थी.

जैसे ही मनोज ने ड्राइवर का नाम जयकरण बताया तो पुलिस वालों के चेहरे चमक उठे क्योंकि जयकरण पहले से ही उस की गिरफ्त में था. लेकिन नई समस्या यह थी कि बिलखिरिया थाने में बैठा जयकरण शक्कर का ट्रक कैसे उड़ा सकता था. इस बाबत जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि मनोज वाला ट्रक जिस का नंबर एमएच18बी ए 3560 है, वह तो उस ने आदेश खांबरा के हवाले कर दिया था.

जीपीएस से लगा ट्रक का सुराग

अब तसवीर साफ हो गई कि आदेश 10 लाख रुपए की शक्कर कहीं न कहीं तो जरूर बेचेगा, लेकिन इस का अंदाजा न तो पुलिस लगा पाई और न ही जयकरण कुछ बता पाया. इस वक्त ट्रक कहां होगा, यह भी पुलिस को नहीं मालूम था.

यह समस्या भी बैठेबिठाए हल हो गई, जब मनोज ने यह बताया कि उन्होंने ट्रक में एक गोपनीय जगह जीपीएस फिट कर रखा है. यह ट्रक जिस किसी टोल नाके से गुजरता था तो उस की लोकेशन उन के मोबाइल पर आ जाती थी. मनोज को अपने ट्रक की आखिरी लोकेशन झांसी की मिली थी.

उस के बाद से मैसेज आने बंद हो गए थे. इस के बाद भी उम्मीदें जिंदा थीं, इसलिए बिट्टू शर्मा हैडकांस्टेबल सचिन, आरक्षक अरुण और देवेश को ले कर रवाना हो गईं. मोबाइल फोन के जरिए अब ट्रक की लोकेशन मिलने लगी थी, लेकिन वह पलपल बदल भी रही थी.

बिट्टू शर्मा ने 10 दिन लगातार इस ट्रक का पीछा किया और आखिरकार ट्रक को उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर स्थित एक ढाबे पर देख भी लिया. इस ढाबे पर पुलिस वाले आधी रात को पहुंचे तो वहां का नजारा बेहद रंगीन था. ढाबे पर शराब सहित मौजमस्ती के तमाम इंतजाम थे जो आमतौर पर हाइवे पर होते हैं.

पर इस टीम का मकसद और निशाना आदेश खांबरा था, जिसे अंतत: सुबह तक पकड़ ही लिया गया और भोपाल ले आए. तुकाराम भी उस के साथ था. बिलखिरिया थाने में जैसे ही आदेश ने जयकरण को देखा तो उसे समझ आ गया कि खेल खत्म हो चुका है. इस के बाद भी उस ने पुलिस को बरगलाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाया.

बेटे के मोह में उलझा

आदेश का मुंह खुलवाने के लिए पुलिस ने उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया और उस के बेटे का हवाला दिया कि जिन ड्राइवरों और क्लीनरों की हत्याएं उस ने की हैं, उन की आत्माएं बदला ले रही हैं. दरअसल, पिछले कुछ दिनों से आदेश के बेटे का 3 बार एक्सीडेंट हुआ था.

डर कह लें या मजबूरी कि आदेश ने एकएक कर सारे गुनाह स्वीकार लिए तो हड़कंप मच गया. आदेश से संबंधित जानकारियां टुकड़ों में ही सही, सामने आने लगीं. उस ने बताया कि वह अपने बेटे और परिवार को बहुत चाहता है.

हैरानी की बात तो यह थी कि उस के घर वालों को नहीं मालूम था कि वह इतना खतरनाक और दुर्दांत हत्यारा है. आदेश अकसर घर से गायब रहता था और कहां और क्यों रहता है, यह सच किसी को नहीं बताता था. हां, अपने गायब रहने के बाबत बहाने बनाने में वह माहिर हो गया था. बयानों में उस ने यह बात कही भी कि अपने गुनाहों की परछाईं उस ने घर वालों पर नहीं पड़ने दी थी.

लेकिन सच यह है कि आदेश के दोनों बेटे शुभम और सुगंध अपने पिता की वास्तविकता जानते थे. नगर पालिका में काम करने वाले शुभम को अपने पिता की गिरफ्तारी की जानकारी 9 सितंबर के अखबारों से मिली थी. शुभम को यह भी मालूम था कि आदेश पर मध्य प्रदेश के गुना के अलावा महाराष्ट्र के अमरावती और संगमनेर में भी मुकदमे चल रहे हैं.

आखिरी बार आदेश 15 अगस्त के दिन घर से निकला था, क्योंकि 16 अगस्त को नागपुर अदालत में उस की पेशी थी. उस का दूसरा बेटा सुगंध एक कार मैकेनिक की दुकान पर काम करता है.

गिरफ्तारी के बाद मंडीदीप में स्वाभाविक तौर पर आदेश की चर्चा रही. जिस ने भी सुना दांतों तले अंगुली दबा ली. इस कस्बे के लोग बताते हैं कि आदेश को टेलरिंग में इतनी महारत हासिल थी कि वह ग्राहक का नाप इंचीटेप से नहीं बल्कि ‘स्त्री’ फिल्म के हीरो राजकुमार राव की तरह अपनी आंखों से ले लेता था और उसी के आधार पर एकदम फिटिंग के कपड़े सिल कर देता था.

मंडीदीप से पहले आदेश रेहटी और शाहगंज के अलावा महाराष्ट के भंडारा में भी टेलरिंग की दुकानें खोल चुका था. यहां कुछ गुंडों से झगड़ा होने के चलते उस ने पुलिस वालों पर ही हमला कर दिया था.

कोई 6 साल पहले आदेश ने भंडारा में जेडेक्स टेलर्स के नाम से अपनी दुकान खोली थी, लेकिन वहां उस का मन नहीं लगा तो वापस मंडीदीप आ गया था. हैरत की बात यह भी है कि मंडीदीप थाने में उस के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं है.

मंडीदीप के पुराने लोग ही जानते हैं कि आदेश खांबरा के दादा नारायणदास खांबरा यहां के जानेमाने और प्रतिष्ठित नागरिक हुआ करते थे. वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीवादी नेता थे और पेशे से ठेकेदार थे. उन्हें बरखेड़ा से ले कर ओबैदुल्लागंज तक रेलवे लाइन बिछाने के लिए भी लोग जानते हैं और दाहोद बांध बनाने के लिए भी.

साल 1965 में नारायणदास का नाम तब पूरे मध्य प्रदेश में गूंजा था, जब उन्होंने भोजपुर विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था और महज 3 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे.

उस जमाने में इस इलाके में कांग्रेस के अलावा हिंदू महासभा का अच्छा प्रभाव था. गुजरे कल की इन बातों और प्रतिष्ठा से कोई संबंध न रखने वाले आदेश खांबरा अपने परिवार और पूर्वजों का नाम इस तरह यानी कई घरों के चिराग बुझा कर रोशन करेगा, इस का अंदाजा किसी को नहीं था.

गिरफ्तारी के बाद

पुलिस आदेश से काफी कुछ उगलवा चुकी है, जिस से यह तो साफ हुआ कि उस के प्रत्यक्ष सहयोगी जयकरण और तुकाराम ही थे, लेकिन जाने क्यों यह बात हर किसी को हजम नहीं हो रही थी क्योंकि मामला एकदो नहीं बल्कि 34 हत्याओं का था.

ट्रक और लूट का माल बेचने में आदेश का मददगार ग्वालियर निवासी साहबजी था. मिसरोद थाने में पुलिस वाले उसे तोड़ने में तो सफल रहे, साथ ही यह जानने की भी कोशिश करते रहे कि आदेश के संबंध किन और कैसे लोगों से थे.

आदेश ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि ट्रक ड्राइवरों की जिंदगी कष्टों से भरी होती है, मैं इन्हें मुक्ति दे रहा था. उस ने स्वीकारा कि उस के संबंध दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों भाजपा और कांग्रेस के नेताओं से थे. रायसेन जिले के एक भाजपा नेता का संपत्ति विवाद सुलझाने में उस ने कथित तौर पर सुपारी ले कर हत्या भी की थी. यह कहानी लिखे जाने तक इस बात की भी जांच चल रही थी.

सबूतों के नाम पर पुलिस को उस के पास से एक अहम डायरी मिली, जिस में ज्यादा नहीं सिर्फ 50 लोगों के नाम व मोबाइल नंबर दर्ज थे. इन में से अधिकतर ट्रक ड्राइवरों के हैं या फिर उन लोगों के, जो आदेश के लूटे ट्रकों और उन का माल ठिकाने लगाने में उस के सहयोगी थे.

खास अड्डे थे शिकार फांसने के

पुलिस आदेश को ले कर वहांवहां गई, जहांजहां उस ने हत्याएं करने की बात कबूली थी. कई जगह लाशें मिलीं तो कई जगह से पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा, क्योंकि आदेश ठीकठीक जगह नहीं बता पाया कि उस ने लाश को कहां ठिकाने लगाया था.

अब से करीब 3 महीने पहले गायब हुए सीहोर के ड्राइवर राजेश पवार की लाश पुलिस ने उस की निशानदेही पर चंदेरी के निकट एक पुलिया से बरामद की, जिसे राजेश की पत्नी ने कपड़ों से पहचाना. इस रास्ते पर आदेश ने 2 ट्रक लूट कर 6 लोगों की हत्या की थी और सभी की लाशें पुलिया के नीचे पानी में फेंक दी थीं.

इन तीनों के 11 मील इलाके के कुछ ढाबे खास अड्डे थे, जहां से ये शिकार फांसते थे. आदेश की गिरफ्तारी के बाद देश भर के पुलिस थानों से भोपाल फोन आए कि कहीं उन के इलाकों में अज्ञात हत्याओं के आरोपी ये तीनों तो नहीं. यह बात भी पूछताछ में उजागर हुई कि महाराष्ट्र की तरफ की गई कुछ वारदातों को तुकाराम ने अपने दम पर अंजाम दिया था.

पुलिस हिरासत में आदेश की रंगीनमिजाज शख्सियत भी सामने आई. उस की एक प्रेमिका ग्वालियर में है तो दूसरी भिंड में. इन दोनों के नाम लिली हैं, जो अपने आशिक के पैसों पर लग्जरी जिंदगी जी रही थीं. लिली इन के असली नाम नहीं हैं, बल्कि ये नाम इन्हें आदेश ने अपनी सहूलियत के लिए दिए थे.

आदेश अपना खाली वक्त इन दोनों के साथ लेकिन अलगअलग गुजारता था. उस का कहना है कि उस की दोनों माशूकाओं को भी उस के गुनाहों की जानकारी नहीं थी. एक लिली के बारे में उस ने बताया कि वह कालेज गर्ल है जिस के बारे में चर्चा है कि वह उसे अपने धंधे में शामिल कर हाइवे क्वीन बनाने की मंशा पाले बैठा था.

पुलिस ने उस के ठिकाने पर दबिश दी लेकिन वह गायब हो चुकी थी. इसी तरह जयकरण की भी एक माशूका थी, जिस के बारे में उसे शक था कि उस के संबंध एक रिश्तेदार से हैं, जयकरण ने उस रिश्तेदार की ही हत्या कर डाली थी.

कहानी अभी बाकी है

अक्तूबर के पहले हफ्ते में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की गतिविधियां शुरू हुईं और आचार संहिता लगी तो आदेश की चर्चा भी कम हो गई. लेकिन अब तक पुलिस साहिबजी को गिरफ्तार कर भोपाल ले आई थी, जो गाजीपुर जेल में बंद था. इधर एक दूसरे पेशेवर अपराधी बिल्ला का कहना है कि वह दरअसल आदेश का गुरू है. बिल्ला का परिवार भी सालों पहले पाकिस्तान से आ कर झारखंड में बस गया था. सन 1989 में वह पंजाब से होता हुआ ग्वालियर आ गया और यहीं से आपराधिक वारदातों को अंजाम देने लगा.

बिल्ला भी ट्रक लूटता था. उस ने पहली वारदात साल 1992 में की थी. साल 2002 में वह राजगढ़ में गिरफ्तार हुआ था और सन 2007 में उस की मुलाकात आदेश से हुई थी. इस के बाद दोनों ने मिल कर हाइवे गैंग बना लिया था..

आदेश के जुर्मों की दास्तान बेहद उलझी हुई है, जिसे सुलझाने में पुलिस को पसीने आ रहे हैं. घटनाओं और पात्रों को सिलसिलेवार जमाना आसान काम नहीं रह गया है. इसी सिलसिले में 7 अक्तूबर को आदेश के मुंहबोले चाचा अशोक खांबरा का भी जिक्र हुआ, जिस की कहानी आदेश से कहीं ज्यादा दिलचस्प है. हिरासत में आदेश ने अपने मुंहबोले चाचा अशोक की बात कर के उसे अपना आदर्श बताया था.

अशोक खांबरा पर 70 हत्याएं कर ट्रक लूटने के आरोप हैं. उस की कहानी भी एकदम फिल्मी है. सन 2000 में वह बिलासपुर जेल में बंद था. पुलिस जब उसे पेशी के लिए ले जा रही थी, तब उस के गुर्गों ने फ्रूटी में नशीला पदार्थ मिला कर पुलिस वालों को पिला दी थी और अशोक फरार हो गया था.

इस के कुछ साल बाद अशोक के घर वालों ने अशोक की लाश नैनीताल के जंगलों में होने का दावा पेश कर उस का मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. जब पुलिस रिकौर्ड में वह मर गया तो उस के खिलाफ चल रहे मामलों पर भी विराम लग गया. शक इस बात का है कि वह मरा नहीं बल्कि जिंदा है यानी नैनीताल के जंगलों में जो लाश मिली थी, वह अशोक की नहीं बल्कि किसी और की थी.

अब अशोक खांबरा की फाइलें भी खुल रही हैं और पुलिस उस का और आदेश का कनेक्शन भी ढूंढ रही है. अंदाजा है कि अशोक उत्तर प्रदेश में कहीं हो सकता है. इधर आदेश ने अशोक के बाबत चुप्पी साध रखी है. यानी मामला सुलझने के बजाय और उलझता जा रहा है.

अब नएनए किरदार आदेश से जुड़ रहे हैं, इस से पुलिस की मुश्किलें बढ़ रही हैं. इस के बाद भी वह जुटी हुई है कि बिखरी हुई कडि़यां जोड़ कर मामले को सुलझाए. अब यह सब चुनाव हो जाने के बाद ही संभव हो पाएगा, तब तक नएनए खुलासे होते रहेंगे कि आदेश के कहां, किस से, कैसे ताल्लुकात थे?

आधी अधूरी प्रेम कहानी : राबिया और फाजिल की प्रेम कहानी

बात 6 अक्टूबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के थाना पाकबड़ा का एक गांव है ऊमरी सब्जीपुर. इस गांव के लोग सुबह के समय अपने खेतों की तरफ जा रहे थे. तभी उन्हें ईदगाह के पीछे नजाकत चौधरी के खेत में एक युवक की लाश पड़ी दिखी. लोग जब लाश के नजदीक पहुंचे तो पता चला, उस का गला कटा हुआ है. उस युवक को कोई भी पहचान नहीं सका. वह नीले रंग की जींस और सफेद रंग की शर्ट पहने हुए था.

जब गांव के लोगों को इस लाश की खबर मिली तो वे देखने के लिए मौके पर पहुंचे गए. कुछ ही देर में वहां काफी भीड़ जमा हो गई. सूचना पा कर पाकबड़ा के थानाप्रभारी गजेंद्र त्यागी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां मौजूद लोगों से उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

मृतक ब्रांडेड कपड़े और जूते पहने हुए था और किसी अच्छे परिवार का लग रहा था. जामातलाशी में उस की जेब से 4 हजार रुपए मिले. इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि उस की हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी थी, कुछ ही देर में एसएसपी जे. रविंद्र गौड़, एसपी (सिटी) अंकित मित्तल व सीओ (हाइवे) राजेश कुमार भी वहां पहुंच गए. सभी ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक के हाथपैरों पर चोट के निशान थे. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया था. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम गृह में रखवा दी.

मृतक की शिनाख्त कराने और केस का खुलासा करने के लिए एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने सीओ (हाइवे) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में पाकबड़ा थानाप्रभारी गजेंद्र त्यागी, एसएसआई प्रदीप कुमार, एसआई अतुल कुमार त्यागी, कांस्टेबल जावेद खां, सोनू ढाका, सुनील कुमार आदि को शामिल किया गया. टीम के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी एसपी सिटी अंकित मित्तल को सौंपी गई.

शव की हुई पहचान

पुलिस ने ऊमरी सब्जीपुर के ग्रामप्रधान शाने आलम की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. चूंकि शव की शिनाख्त नहीं हुई थी, इसलिए विभिन्न अखबारों में उस की फोटो सहित सूचना छपवाई गई. 7 अक्तूबर को थानाप्रभारी थाने में एसएसआई से इसी मसले पर चर्चा कर रहे थे, तभी कुछ लोग उन के पास पहुंचे.

उन में से एक ने बताया, ‘‘साहब, मेरा नाम नाजिम है. हम लोग बरेली जिले के कस्बा सिरौली के रहने वाले हैं. मेरा भाई फाजिल, जोकि चिकन का कारोबार करता है, 5 अक्तूबर शुक्रवार को मुर्गे खरीदने के लिए सिरौली से मुरादाबाद आया था. वह अभी तक घर नहीं लौटा. उस रात 10 बजे से उस का मोबाइल भी बंद है. अखबार पढ़ कर हम यहां आए हैं.’’

पुलिस ने एक दिन पहले जिस अज्ञात युवक की लाश बरामद की थी, थानाप्रभारी ने उस के फोटो नाजिम को दिखाए. फोटो देखते ही वह रोने लगा. बोला, ‘‘यही मेरा भाई है. मेरे भाई की यह हालत किस ने की?’’

लाश की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली और नाजिम व उस के साथ आए लोगों को एक सिपाही के साथ पोस्टमार्टम गृह भेज दिया. वहां जब उन्हें ऊमरी सब्जी गांव के पास मिली अज्ञात युवक की लाश दिखाई गई तो नाजिम ने उस की पुष्टि अपने भाई फाजिल के रूप में की.

शव की शिनाख्त के बाद जब उस के भाई नाजिम से पूछताछ की गई तो उस ने आरोप लगाया कि मेरे भाई फाजिल की हत्या मुरादाबाद के कठघर थाना क्षेत्र की रहने वाली उस की प्रेमिका राबिया के घर वालों ने की है. राबिया के भाई दिलशाद हुसैन ने फाजिल को फोन कर के मिलने के लिए बुलाया था.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी सीओ राजेश कुमार को बता दी. उन के निर्देश पर पुलिस टीम ने राबिया के मोहल्ला रहमत नगर (करूला) स्थित घर पर दबिश दी. पता चला कि मृतक फाजिल की प्रेमिका राबिया की भी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो चुकी है. उस की लाश 7 अक्तूबर को ही करबला के कब्रिस्तान में दफना दी गई थी.

चूंकि नाजिम ने सीधे आरोप लगाया था, इसलिए नाजिम के घर वालों से पूछताछ करनी जरूरी थी. राबिया का भाई दिलशाद घर पर नहीं था. पता चला कि वह हैदराबाद गया हुआ है. इस पर पुलिस उस के पिता शमशाद हुसैन को पूछताछ के लिए थाने ले आई.

थाने में जब शमशाद हुसैन से एसपी (सिटी) के सामने सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि फाजिल की हत्या उस के बेटे दिलशाद ने अपने बहनोई के साथ मिल कर की थी. इस के बाद हालात ऐसे बने कि राबिया की भी हत्या करनी पड़ी.

खुल गया हत्या का रहस्य

पुलिस फाजिल की हत्या के ही मामले की जांच कर रही थी, लेकिन अब पता चला कि इन लोगों ने हत्या एक नहीं बल्कि 2 की थीं. हत्या के बाद इन लोगों ने राबिया की मौत हार्टअटैक से होने की बात प्रचारित कर दी थी.

पुलिस के लिए अब यह मामला और ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया था. दिलशाद की लोकेशन जानने के लिए पुलिस ने उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा दिलशाद के फोन नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई.

दिलशाद की लोकेशन दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके की मिली. एसपी (सिटी) अंकित मित्तल ने 9 अक्तूबर को ही एक पुलिस टीम दिल्ली रवाना कर दी. ढूंढतेढूंढते पुलिस दिलशाद के पास पहुंच गई. दिल्ली में वह किराए का कमरा ले कर रह रहा था. उस के साथ उस का मौसेरा बहनोई उवैस भी था. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस थाना पाकबड़ा लौट आई.

मुरादाबाद शहर के रहमत नगर (करूला) निवासी शमशाद की बेटी राबिया इंटरमीडिएट के इम्तहान खत्म होने के बाद अपनी ननिहाल चली गई थी. उस की ननिहाल बरेली जिले के कस्बा सिरौली में थी. उस के नाना मुकद्दर व मामा मुख्तार गौहर उसे बहुत प्यार करते थे. ननिहाल में ही उस की मुलाकात सिरौली में ही रहने वाले फाजिल से हुई. फाजिल ने बताया कि उस की मीट शौप है.

राबिया तो खूबसूरत थी ही, फाजिल भी कम हैंडसम नहीं था. उस की आमदनी भी अच्छी थी, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. उन दोनों में पहले दोस्ती हुई. फिर धीरेधीरे दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों चोरीछिपे मिलने लगे.

ऐसी मुलाकातों में प्रेमी जोड़े साथ जीनेमरने की कसमें खा लेते हैं. फाजिल और राबिया ने भी जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का वादा किया. हालांकि वे चोरीछिपे मिलते थे. इस के बावजूद लोगों को उन के प्यार की भनक मिल ही गई. ननिहाल वालों को पता चला तो उन्होंने राबिया को उस के घर मुरादाबाद भेज दिया.

आखिर दोनों ने मिलने की राह बना ही ली

फाजिल मुरादाबाद के रहमत नगर मार्केट से अपनी दुकान के लिए मुर्गे खरीद कर लाता था. राबिया का घर भी रहमत नगर में ही था, इसलिए जब वह मुरादाबाद जाता तो उस की मुलाकात राबिया से हो जाती थी.

राबिया के ननिहाल वालों की फाजिल के घर वालों से अनबन थी. जब उन्हें पता चला कि फाजिल मुरादाबाद में भी राबिया का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो उन की फाजिल के घर वालों से आए दिन लड़ाई होने लगी.

राबिया की वजह से जब घर वालों की बदनामी होने लगी तो उन्होंने उसे बहुत समझाया. लेकिन वह फाजिल से ही निकाह करने की जिद करती रही. लेकिन इस के लिए न तो घर वाले तैयार थे और न ननिहाल वाले. घर वालों ने राबिया के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया. खोजबीन कर के उन्होंने राबिया का रिश्ता मुरादाबाद शहर के ही नागफनी क्षेत्र के मोहल्ला डहरिया के रहने वाले अशफाक हुसैन के बेटे आरिफ हुसैन के साथ तय कर दिया.

इस रिश्ते का राबिया ने विरोध भी किया. लेकिन घर वालों ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: 1 नवंबर, 2013 को उस की शादी आरिफ के साथ कर दी गई.

शादी के बाद वह आरिफ के साथ चली तो गई लेकिन उस के मन से फाजिल की यादें दूर होने का नाम नहीं ले रही थीं. रहरह कर उसे फाजिल के साथ गुजारे हुए पल याद आते थे. ससुराल में जब कभी उसे मौका मिलता, वह फाजिल से फोन पर बात कर लेती थी.

राबिया ससुराल से जब मायके आती तो उस की फाजिल से मुलाकात हो जाती थी. यानी उस की शादी आरिफ से हो जरूर गई थी लेकिन उस का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना जारी रहा.

इसी दौरान राबिया एक बेटी की मां बन गई थी, जिस का नाम महविश रखा गया था. अब वह 3 साल की है. बेटी पैदा होने के बाद आरिफ सऊदी अरब चला गया था. इस के बाद राबिया एक तरह से बेलगाम हो गई. वह बेटी को कभी ससुराल में तो कभी मायके में छोड़ कर फाजिल के साथ कईकई दिनों के लिए गायब हो जाती थी, जिस वजह से दोनों परिवारों की काफी बदनामी हो रही थी.

यह जानकारी किसी तरह सऊदी अरब में काम कर रहे उस के पति आरिफ को मिली तो उस ने फोन पर राबिया को कई बार समझाया. मायके वालों ने भी समझाया कि वह फाजिल को भूल कर अपनी गृहस्थी चलाए, लेकिन राबिया पर किसी का कोई असर नहीं हुआ.

विदेश में भी नहीं भूली प्रेमी फाजिल को

बाद में आरिफ राबिया को अपने साथ सऊदी अरब ले गया. वह वहां एक साल तक रही. वहां भी उसे रहरह कर प्रेमी की यादें आती रहीं. आखिरकार राबिया ने पति से कह दिया कि यहां उस का मन नहीं लग रहा, वह मुरादाबाद जाना चाहती है. मजबूरी में आरिफ उसे ले कर मुरादाबाद लौट आया.

मुरादाबाद आने के बाद राबिया ने फिर से अपने प्रेमी से मिलना शुरू कर दिया. वह खुले रूप से फाजिल के साथ घूमती. इसे ले कर मोहल्ले वाले राबिया से घर वालों पर ताने कसते. आरिफ उसे सऊदी अरब से हर महीने पैसे भेजता रहता था, जिन्हें वह खुले हाथों से खर्च करती थी.

घटना से 5 दिन पहले आरिफ सऊदी अरब  से वापस आया तो मोहल्ले वालों ने उस से भी राबिया की शिकायत की. आरिफ ने पत्नी को समझाया भी लेकिन राबिया नहीं मानी. दोनों के बीच फाजिल को ले कर कई बार झगड़ा भी हुआ. ऐसे में राबिया उस से तलाक देने को कहती. साथ ही यह भी कि वह फाजिल को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

फाजिल राबिया पर शादी करने का दबाव बना रहा था. इतना ही नहीं, उस ने राबिया के परिवार वालों से फोन पर कह भी दिया था कि तुम लोग ऐसे नहीं माने तो मैं राबिया की छोटी बहन को उठवा लूंगा. फाजिल की इस धमकी पर राबिया के पिता शमशाद को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने उसी समय तय कर लिया कि वह फाजिल को सबक जरूर सिखाएंगे.

इस के बाद राबिया के परिवार वालों ने एक भयंकर योजना बनाई, जिस में राबिया के पति आरिफ को भी शामिल किया गया.

बन गई हत्या की योजना

योजना के मुताबिक राबिया के भाई दिलशाद ने राबिया से कहा, ‘‘राबिया, तुम फाजिल से बहुत प्यार करती हो. परिवार के लोगों ने फैसला किया है कि निकाह के संबंध में पहले फाजिल से बात कर ली जाए.’’

राबिया को भाई की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए उस ने अब्बू से पूछा, ‘‘अब्बू, क्या आप मेरा निकाह फाजिल से करा रहे हैं?’’

‘‘मैं ने तुम्हारा निकाह आरिफ से करा तो दिया है. अब दूसरा निकाह क्यों कराऊंगा? फाजिल से निकाह करने की बात तो तुम भूल ही जाओ.’’

इस के बाद राबिया ने अपने भाई दिलशाद से बात की तो उस ने राबिया को विश्वास में ले कर कहा, ‘‘अब्बू अगर राजी नहीं हैं तो क्या, तेरा भाई तो है. मैं कराऊंगा तेरा निकाह. रही बात अब्बू की तो पाकबड़ा में मेरा एक जानकार तांत्रिक है. अब्बू को वश में करना उस के बाएं हाथ का काम है.’’

दिलशाद ने बहन से कहा, ‘‘अच्छा, फाजिल से मेरी बात करा. मैं भी तो जान लूं कि वह तैयार है या नहीं.’’

राबिया ने उसी समय फाजिल को फोन मिलाया और अपने भाई से उस की बात करा दी. दिलशाद ने फाजिल से कहा, ‘‘फाजिल, बात दरअसल यह है कि हम ने किसी तरह आरिफ को राबिया से तलाक लेने के लिए राजी कर लिया है. यह बताओ कि तुम उस से निकाह के लिए तैयार हो?’’

‘‘हां, मैं तैयार हूं.’’ फाजिल खुश हो कर बोला.

‘‘ठीक है, लेकिन निकाह में अब बस एक रुकावट है, वह यह कि हमारे अब्बा नहीं मान रहे हैं. पर तुम चिंता मत करो उन का इलाज भी मैं ने ढूंढ लिया है. तुम मुरादाबाद आ जाओ, यहीं पर बैठ कर बात होगी. रही बात अब्बा की तो मेरा एक जानकार तांत्रिक है. वह ताबीज देता है. उस के ताबीज से वह भी वश में आ जाएंगे.’’

फाजिल बोला, ‘‘फोन राबिया को दे दो.’’

फाजिल ने राबिया से पूछा, ‘‘तुम्हारा भाई दिलशाद जो कह रहा है, क्या वह ठीक है?’’

‘‘हां ठीक है. ऐसी कोई बात नहीं है तुम मुरादाबाद आ जाओ.’’ राबिया ने उसे विश्वास दिलाया.

यह बात 4 अक्तूबर, 2018 की है. फाजिल ने दिलशाद से कहा, ‘‘मैं आज तो आ नहीं पाऊंगा. हां, मैं कल जरूर तुम्हारे पास आ जाऊंगा.’’

फाजिल के आने के पहले सभी लोग योजना को सफल बनाने के लिए आपस में विचारविमर्श करने लगे. इस खौफनाक साजिश की राबिया को जानकारी नहीं थी. वह तो यही समझ रही थी कि उस का भाई सच में फाजिल से उस का निकाह कराने की कोशिश में है.

फाजिल फंस गया जाल में

5 अक्तूबर को फाजिल बरेली से अपनी काले रंग की पैशन मोटरसाइकिल नंबर यूपी25बी वाई3154 से मुरादाबाद पहुंचा. राबिया ने फोन कर के उसे रहमत नगर की गली नंबर-4 स्थित हाजी मार्केट में मिलने को कहा, क्योंकि वहीं पर दिलशाद उस का इंतजार कर रहा था.

फाजिल रात 8 बजे राबिया के बताए पते पर पहुंच गया. वहां पर उसे दिलशाद व उस का साथी मिले. दिलशाद ने फाजिल से बड़ी आत्मीयता और शालीनता से बात की. उस ने अपनी लच्छेदार बातों से फाजिल को फांस लिया था.

फाजिल ने उन लोगों पर विश्वास कर लिया था. उस ने दिलशाद से उस के साथ आए व्यक्ति का परिचय पूछा तो उस ने बताया, ‘‘यह हमारे मौसेरे जीजा उवैस हैं, यह कुंदरकी में रहते हैं. पाकबड़ा में जिस तांत्रिक के बारे में मैं बात कर रहा था, वह इन का ही जानकार है.

बहुत पहुंचा हुआ तांत्रिक हैं. हमारे घरपरिवार के सभी लोग तुम्हारे और राबिया के साथ हैं. बस अब्बा ही राजी नहीं हैं. तांत्रिक से ताबीज बनवाने के लिए अभी उस के पास पाकबड़ा चलते हैं. ताबीज बन जाएगा तो अब्बा भी वश में हो जाएंगे.’’

रात का समय था. फाजिल उन के साथ जाना नहीं चाहता था, इसलिए उस ने राबिया को फोन मिला कर पूछा कि वह दिलशाद और उवैस के साथ पाकबड़ा जाए या नहीं. राबिया ने भी कह दिया कि ताबीज बनवाने के लिए वह दिलशाद के साथ तांत्रिक के पास चला जाए. ताबीज बनने के बाद सब ठीक हो जाएगा.

फाजिल बाइक से दिलशाद व उवैस के साथ पाकबड़ा के लिए चल दिया. दिलशाद और उवैस मोटरसाइकिल नंबर यूपी25ए यू4223 पर थे.  जब ये लोग ऊमरी सब्जीपुर गांव के पास पहुंचे, तो किसी बहाने से दिलशाद और उवैस ने अपनी मोटरसाइकिल रोक ली. उन्हें रुकते देख फाजिल भी रुक गया.

दिलशाद व उवैस बात करने के बहाने फाजिल को चाकू की नोंक पर एक खेत में ले गए. पहले तो दोनों ने उस के साथ मारपीट की फिर उसे दबोच कर उस का गला रेत दिया. कुछ ही देर में फाजिल की मौत हो गई. इस के बाद दोनों फाजिल की मोटरसाइकिल ले कर घर की तरफ चल दिए.

रास्ते में दिलशाद ने अपने अब्बा शमशाद को बता दिया कि काम हो गया. हम दोनों घर आ रहे हैं. यह बात राबिया ने सुन ली. उस समय तो वह कुछ नहीं बोली लेकिन जब दिलशाद और उस का बहनोई फाजिल की बाइक ले कर घर आए तो राबिया ने फाजिल के बारे में पूछा. दोनों कोई जवाब नहीं दे सके तो वह चिल्लाने लगी. राबिया चिल्लाचिल्ला कर कह रही थी कि तुम लोगों ने फाजिल को मार दिया है, तुम्हारे कपड़ों पर लगा खून सब बता रहा है. मैं पुलिस से तुम सब की शिकायत कर के जेल भिजवा दूंगी.

दिलशाद और उवैस ने खून सने कपडे़ उतार कर दूसरे कपड़े पहन लिए. जब वे कहीं भाग जाने को हुए तो राबिया शोर मचाने लगी. यह देख दिलशाद ने राबिया के मुंह पर कपड़ा रख कर उस का गला घोंट दिया. राबिया के प्राण निकल गए. यह बात 5-6 अक्तूबर की रात डेढ़ बजे की है.

इस के बाद दिलशाद व उवैस दोनों मुरादाबाद के रोजडवेज बसअड्डे पर पहुंचे. उन्होंने फाजिल की मोटरसाइकिल बसस्टैंड के आगे खड़ी कर दी और दिल्ली जाने वाली बस में बैठ गए. दोनों हैदराबाद भाग जाना चाहते थे पर दिल्ली पहुंच कर उन्होंने अपने एक जानकार की मार्फत जामा मस्जिद के पास किराए का कमरा ले लिया और फोन से सारी गतिविधियों का पता करते रहे.

अगले दिन राबिया के अब्बा शमशाद ने मोहल्ले में यह बात फैला दी कि हार्टअटैक से राबिया की मौत हो गई है. उसी दिन आननफानन में उस की लाश भी करबला के कब्रिस्तान में दफना दी.

आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने जिलाधिकारी से राबिया की लाश कब्र से निकलवा कर उस का पोस्टमार्टम कराने का अनुरोध किया. जिलाधिकारी राकेश कुमार के आदेश पर 11 अक्तूबर, 2018 को 10 बजे मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में सुबह राबिया के शव को कब्र से निकाल कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

राबिया की हत्या की हकीकत आई सामने

डाक्टरों के पैनल ने राबिया के शव का पोस्टमार्टम किया तो पता चला, उस की मौत हार्टअटैक से नहीं, बल्कि गला घोंटने से हुई थी. पोस्टमार्टम के बाद शव को पुन: दफना दिया गया. शमशाद उस के बेटे दिलशाद और उवैस से पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर दोहरे मर्डर का राज खोला और तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जिला जेल भेज दिया.

पुलिस इस केस गंभीरता से जांच कर रही थी. जांच में वह किसी भी तरह की खामी नहीं छोड़ना चाहती थी. पुलिस ने दिलशाद के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की तो एक फुटेज में 6-7 अक्तूबर को मृतका राबिया का पति आरिफ भी दिखाई दिया.

आरिफ मुरादाबाद शहर के ही नागफनी थानाक्षेत्र के मोहल्ला डहरिया में रहता था. पुलिस ने आरिफ को भी पूछताछ के लिए बुलवा लिया.

प्रारंभिक पूछताछ में वह अपनी ससुराल में आने की बात नकारता रहा. चूंकि पुलिस के पास आरिफ के ससुराल में आने के पुख्ता सबूत थे, इसलिए उस से सख्ती से पूछताछ की गई. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि इस मामले की साजिश में वह भी शामिल था. 14 अक्तूबर को आरिफ को भी जेल भेज दिया गया.

पत्नी की प्रेम लहर में सिमट गया पति का वजूद 

इसी साल 19 सितंबर की बात है. रोशनलाल यादव को बैंक में काम करते-करते काफी देर हो गई थी. रोशनलाल जयपुर में गवर्नमेंट हौस्टलचौराहे के पास स्थित सिटी बैंक की शाखा में मैनेजर थे. वैसे तो उन्हें आमतौर पर रोजाना ही शाम के 7-8 बज जाते थे. इस की वजह यह थी कि निजी बैंकों में सरकारी बैंकों की तरह सुबह 10 से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी नहीं होती है. हालांकि निजी बैंकों में भी ड्यूटी आवर्स होते हैं, लेकिन सारी जिम्मेदारियां मैनेजर की होती हैं. इसीलिए उन्हें बैंक से निकलने में रात के साढ़े 8 बज गए थे.

दिन भर कामकाज करने और उच्चाधिकारियों के ईमेल, वाट्सऐप के जवाब देतेदेते रोशनलाल भी थक गए थे. काम की व्यस्तता में वह शाम की चाय भी नहीं पी सके थे. जोरों की भूख भी लग रही थी. वे जल्द घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद भोजन करना चाह रहे थे.

रोशनलाल ने बैंक के बाहर खड़ी अपनी कार निकाली और घर की ओर चल दिए. उन के साथ बैंक का एक कर्मचारी उन की कार में पानीपेच चौराहे तक साथ आया, वह पानीपेच चौराहे पर उतर गया.

रोशनलाल जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार कालोनी में पत्नी और बच्चों के साथ रहते थे. कोई पुराना गीत गुनगुनाते हुए रोशनलाल अपनी कार मध्यम रफ्तार से चला रहे थे. रास्ते में उन्हें सिगरेट पीने की तलब लगी तो अपने घर से करीब एक किलोमीटर पहले रास्ते में कार रोक दी. कार से उतर कर वह दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर के पास एक थड़ी पर सिगरेट लेने चले गए. सिगरेट ले कर वह अपनी कार में आ कर बैठे ही थे कि सामने से अचानक एक स्कूटी पर सवार 2 युवक तेजी से उन की कार के सामने आ गए.

स्कूटी से उतर कर एक युवक उन के पास आया और नजदीक से 2 फायर कर दिए. दोनों गोलियां रोशनलाल के सीने में लगीं यह रात करीब 9 बजे की घटना है. गोली चलते ही उस इलाके में अफरातफरी मच गई. यह इलाका रोशनलाल के घर के पास था, इसलिए कुछ लोग उन्हें जानते पहचानते थे.

आसपास के लोग रोशनलाल को उन की ही कार से नजदीकी निजी अस्पताल ले गए. निजी अस्पताल के डाक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद उन की गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जाने को कहा.

रोशनलाल को निजी अस्पताल ले जाने वाले लोग जब उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल ले जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में करधनी पुलिस थाने पर रुक कर पुलिस को इस घटना के बारे में बता दिया. थाने में ही खड़ी सरकारी एंबुलेंस से एक पुलिसकर्मी के साथ रोशनलाल को सवाई मानसिंह अस्पताल भेजा गया. साथ ही उन के परिजनों को भी सूचना दे दी गई.

सूचना मिलने पर रोशनलाल की पत्नी निर्मला यादव और कुछ सगेसंबंधी सीधे अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों ने रोशनलाल की जिंदगी बचाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन रात करीब सवा 11 बजे उन की मृत्यु हो गई.

बैंक मैनेजर रोशनलाल पर हुई फायरिंग की जानकारी मिलने पर पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर जांचपड़ताल की. पुलिस ने फायरिंग करने वाले बदमाशों का पता लगाने के लिए घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, लेकिन पुलिस को रात भर की भागदौड़ के बाद भी बदमाशों का कुछ पता नहीं चला. केवल इतना ही पता चल पाया कि बदमाश पहले से ही घात लगा कर बैठे थे. वे लोग रोशनलाल का बैंक से लौटने का इंतजार कर रहे थे.

दूसरे दिन रोशनलाल के बड़े भाई कोटपुतली निवासी रत्तीराम यादव की रिपोर्ट पर थाना करधनी में रोशनलाल की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 व 34 में दर्ज कर लिया गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने रोशनलाल का शव उन के घर वालों को सौंप दिया.

मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी निर्मला सहित परिवार के लोगों और बैंककर्मियों से पूछताछ कर के पता लगाने का प्रयास किया कि क्या उन की किसी से दुश्मनी थी. पुलिस ने बैंक के उस कर्मचारी से भी पूछताछ की, जो रोशनलाल के साथ पानीपेच चौराहे तक आया था.

उस ने बताया कि रास्ते में चिंकारा कैंटीन के पास रोशनलाल के मोबाइल पर एक फोन आया था, जिस पर वे कुछ देर तक बात करते रहे थे. फोन किस का था, यह उसे पता नहीं. वह पूरा दिन करीब सौ लोगों से पूछताछ, मौकामुआयना और कैमरों की फुटेज की जांच में निकल गया. रात तक हत्यारों के बारे में कुछ पता नहीं चला.

रोशनलाल मूलरूप से जयपुर जिले के कोटपुतली के रहने वाले थे. उन की मौत की सूचना मिलने पर उन के गांव से भी कुछ लोग जयपुर आ गए थे. पुलिस ने उन से भी पूछताछ कर के रोशनलाल के हत्यारों का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन इस से कोई खास मदद नहीं मिल सकी.

पुलिस की जांच में 2-3 बातें मुख्यरूप से सामने आईं. एक तो यह कि रोशनलाल बैंक में कामर्शियल वाहनों के लोन मंजूर करते थे. बैंक से लोन देने के अलावा वह निजी रूप से भी ब्याज पर लोगों को पैसा उधार देते थे. रोशनलाल ने कुछ लोगों को मोटी रकम भी उधार दे रखी थी. एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली कि पत्नी निर्मला से उन का अकसर झगड़ा होता रहता था. निर्मला ने करीब 4 महीने पहले मारपीट की शिकायत पुलिस को दी थी.

पुलिस इन तीनों कोणों से जांच करने में जुट गई. इस के लिए जयपुर के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) नितिन दीप ब्लग्गन के निर्देश पर पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (प्रथम) रतन सिंह और झोटवाड़ा के सहायक पुलिस आयुक्त आस मोहम्मद के सुपरविजन में करधनी थानाप्रभारी मानवेंद्र सिंह चौहान, मुरलीपुरा, झोटवाड़ा व कालवाड़ के थानाप्रभारियों और इंसपेक्टर जहीर अब्बास के नेतृत्व में अलगअलग स्पैशल टीमें गठित कीं.

इस बीच पुलिस ने रोशनलाल के मकान के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो लोगों ने उमेश शर्मा पर शक करते हुए उस के मोबाइल नंबर भी दे दिए. उमेश पहले रोशनलाल के पड़ोस में ही रहता था. पारिवारिक बातों को ले कर रोशनलाल, उन की पत्नी निर्मला और उमेश के बीच कई बार झगड़े होते थे.

बाद में उमेश वहां से अपना खुद का मकान खाली कर के जयपुर में ही मानसरोवर कालोनी में रहने लगा था. उस ने गणेश नगर विस्तार के अपने मकान के 2 कमरे किराए पर दे दिए थे. अपने मकान की देखभाल के बहाने उमेश आए दिन इस कालोनी में आता रहता था.

पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबरों की लोकेशन खंगाली तो उत्तराखंड की आई. पुलिस ने उत्तराखंड पुलिस की मदद से 21 सितंबर को उमेश और उस के 3 साथियों को अल्मोड़ा से पकड़ लिया.

मृतक की पत्नी भी थी शामिल

पुलिस इन सब को जयपुर ले आई. उमेश ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उस ने बैंक मैनेजर रोशनलाल की हत्या अपने भाई की मार्फत उत्तर प्रदेश के शूटरों को सुपारी दे कर करवाई थी.

उमेश ठेकेदारी करता था. इसी काम के बहाने वह रोशनलाल की हत्या से करीब 10 दिन पहले उत्तराखंड चला गया था. उत्तराखंड से ही वह मोबाइल के जरिए रोशनलाल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. उस ने यह काम शातिराना तरीके से इसलिए किया था, ताकि उस की लोकेशन जयपुर में न आए.

उमेश ने पुलिस को बताया कि रोशनलाल की हत्या की साजिश में उन की पत्नी निर्मला भी शामिल थी. इस पर पुलिस ने निर्मला को थाने बुला कर पूछताछ की. निर्मला और उमेश से अलगअलग और आमनेसामने बैठा कर की गई पूछताछ में रोशनलाल की हत्या का राज खुल कर सामने आ गया.

इस से यह बात भी साफ हो गई कि निर्मला ने ही उमेश के साथ मिल कर अपने बैंक मैनेजर पति की हत्या करवाई थी. निर्मला को प्रेमी के साथ पति की संपत्ति भी चाहिए थी, इसलिए उस ने रोशनलाल को तलाक देने के बजाय उन की हत्या करवा दी.

यह रोशनलाल का दुर्भाग्य था कि निर्मला की बेवफाई का पता होने के बावजूद वह अपनी जान नहीं बचा सके. उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि उन की पत्नी एक दिन उस की हत्या करा देगी. फिर भी वह इतने दरियादिल थे कि अपनी पत्नी की उस के प्रेमी से शादी कराने को भी तैयार हो गए थे. लेकिन निर्मला का प्रेमी उमेश समय पर अदालत नहीं पहुंचा, जिस से दोनों की शादी नहीं हो सकी.

निर्मला यादव और उमेश शर्मा से पूछताछ के आधार पर पुलिस के सामने जो कहानी आई, वह इस तरह थी—

रोशनलाल यादव जयपुर जिले के कोटपुतली के पवाना गांव के रहने वाले थे. सन 2004 में रोशन का विवाह निर्मला से हो गया. वह उन से उम्र में 6 साल छोटी थी. जब निर्मला की शादी हुई, तब वह 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. उन्होंने शादी के बाद निर्मला को एमए तक पढ़ाया. साथ ही फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी कराया.

नौकरी के दौरान रोशनलाल की जहां भी पोस्टिंग हुई, उन्होंने निर्मला को अपने साथ रखा. बैंक में बड़े पद पर होने के कारण रोशन की तनख्वाह भी अच्छी थी. घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं रही.

8 साल पहले सन 2010 में जयपुर में पोस्टिंग होने पर रोशनलाल ने करधनी में एक प्लौट ले कर अपना मकान बनवा लिया. उसी दौरान उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के नई आबादी रैना गांव के रहने वाले उमेश शर्मा ने भी रोशनलाल के पड़ोस में मकान बनवाया. दोनों ने एक ही दिन अपनेअपने मकान में गृह प्रवेश किया.

रोशनलाल और उमेश के बीच बन गए पारिवारिक संबंध

उमेश शर्मा 2003 के आसपास जयपुर आया था. उस समय जयपुर में प्रौपर्टी बाजार में बूम आया हुआ था. उमेश ने प्रौपर्टी में रकम लगा कर काफी पैसा कमाया. वह अमीरों की तरह जिंदगी जीता था. फिलहाल उस के पास करधनी इलाके में 2 मकान और अजमेर रोड पर बिचून में 15 बीघा जमीन थी. कई प्रौपर्टीज में उस ने मोटा पैसा लगा रखा था. अब वह ठेकेदारी का काम भी करने लगा था.

पड़ोसी होने के नाते उमेश व रोशनलाल के परिवार के बीच अच्छे संबंध थे. एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में भी काम आते थे. सन 2016 में उमेश और रोशनलाल सहित कालोनी के कई परिवार शिमला घूमने गए.

शिमला में उमेश की निर्मला से नजदीकियां बढ़ गईं. शिमला से जयपुर लौटने के कुछ दिन बाद ही निर्मला के भाई की मौत हो गई. उस समय सांत्वना देने के लिए उमेश का पूरा परिवार कई बार निर्मला के घर गया.

जनवरी 2017 में उमेश और निर्मला के बीच मोबाइल पर एसएमएस और वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग होने लगी. कभीकभी दोनों मोबाइल पर भी बातें कर लेते थे. बाद में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. पहले दोनों छिप कर मिलते थे. बाद में जब उन के संबंधों की चर्चा पासपड़ोस में होने लगी तो रोशनलाल को इस बात का पता चल गया.

उन्होंने निर्मला को काफी भलाबुरा कहा और समझाया भी. इस के बाद दोनों परिवारों में झगड़े होने लगे. निर्मला से अवैध संबंधों को ले कर कई बार उमेश और रोशनलाल के बीच मारपीट की नौबत भी आ गई थी.

बाद में नवंबर 2017 में उमेश शर्मा गणेश नगर विस्तार करधनी का अपना मकान खाली कर के मानसरोवर कालोनी में रजतपथ पर किराए के मकान में रहने लगा. उमेश ने रोशनलाल के पड़ोस का अपना मकान किराए पर दे दिया था.

उमेश भले ही रोशनलाल के मकान से 20 किलोमीटर दूर रहने लगा था, लेकिन निर्मला से उस की बातचीत होती रहती थी. इतना जरूर हुआ था कि अब निर्मला और उमेश का मिलनाजुलना कम हो गया था. फिर भी जैसे ही मौका मिलता, तब दोनों एकदूसरे से मिल लेते थे.

निर्मला करती थी पति को निपटाने की बात

निर्मला जब भी उमेश से मिलती, तो उस से अपने पति रोशनलाल को रास्ते से हटाने की बात कहती थी, ताकि दोनों बिना किसी डर के एकदूसरे के साथ रह सकें.

उमेश तो पहले से ही निर्मला के प्यार में अंधा हो चुका था. निर्मला के बारबार कहने पर उस ने इसी साल अप्रैल में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अपने सगे भाई राहुल शर्मा को रोशन की हत्या की जिम्मेदारी सौंप दी. राहुल ने रोशन की हत्या करवाने के लिए अपने भाई से 4 लाख रुपए लिए.

राहुल के खिलाफ उत्तर प्रदेश में मारपीट, लूट और वाहन चोरी के कई मामले दर्ज थे. राहुल ने जयपुर के जगतपुरा में टीएस टेक्सटाइल्स नाम से बैडशीट बनाने की फैक्ट्री लगा रखी थी, जिस में उसे काफी नुकसान हुआ था. वह कर्ज में डूबा हुआ था. राहुल भी पहले गणेश नगर विस्तार में ही रहता था. बाद में वह जगतपुरा में रहने लगा था.

राहुल ने रोशनलाल की हत्या के लिए उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू, पप्पू कश्यप और विष्णु कश्यप नाम के बदमाशों से संपर्क किया. संपर्क होने के बाद राहुल ने इन बदमाशों को जयपुर बुलाया. बदमाश हथियार ले कर जयपुर पहुंचे. राहुल ने 29 मई से 1 जून तक तीनों बदमाशों को जयपुर के एक होटल में ठहराया. राहुल ने रोशल की हत्या के लिए एडवांस के तौर पर शूटर शिवकांत को 30 हजार रुपए, विष्णु को 15 हजार और पप्पू कश्यप को 10 हजार रुपए दिए थे. राहुल ने भाई उमेश से लिए 4 लाख रुपए में से बाकी पैसे अपना कर्ज चुकाने में खर्च कर दिए थे.

इस दौरान राहुल ने इन बदमाशों से रोशनलाल की उन के मकान, सिटी बैंक और कोटपुतली के पास स्थित गांव के आसपास की रैकी करवाई. उमेश शर्मा इन शूटरों से फिरोजाबाद और जयपुर में तो मिला ही, रोशनलाल की रैकी में कई बार उन के साथ भी रहा.

रैकी के दौरान निर्मला अपने पति रोशन के आनेजाने की पूरी सूचना उमेश को देती रही. कई बार कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश से आए शूटरों को रोशनलाल की हत्या का मौका नहीं मिला. बाद में तीनों शूटर जयपुर से वापस चले गए.

2 सप्ताह बाद ही राहुल ने फिरोजाबाद से तीनों शूटरों को फिर जयपुर बुलाया. उन्हें 15 और 16 जून को गोपालपुरा के एक होटल में ठहराया गया. इस बार भी राहुल और उमेश ने रोशनलाल की रैकी करवाई, लेकिन शूटर अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके.

इस बीच उमेश शर्मा से मुलाकात होने और कई जगह रैकी में साथ रहने के दौरान फिरोजाबाद से आए शूटरों को पता चला कि राहुल तो केवल मोहरा है. रोशनलाल की जान तो उमेश शर्मा लेना चाहता है और उमेश काफी मोटी आसामी है, इसलिए शूटरों ने राहुल से रोशनलाल को मारने के एवज में अपनी डिमांड बढ़ा कर 15 लाख रुपए कर दी.

राहुल उन दिनों कर्ज में डूबा हुआ था. रोशनलाल की हत्या की सुपारी के नाम पर वह अपने भाई उमेश से 4 लाख रुपए पहले ही ले चुका था. दूसरी ओर एकएक दिन गिन रही निर्मला लगातार उमेश पर रोशन को मरवाने के लिए दबाव बना रही थी. इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल पर रोशनलाल की जल्द से जल्द हत्या करवाने या 4 लाख रुपए वापस लौटाने का दबाव बनाया.

भाई पर दबाव बना कर उमेश उत्तराखंड चला गया. उसे उम्मीद थी कि जल्दी ही रोशनलाल का खेल खत्म हो जाएगा. इसलिए अपने बचाव के लिए वह अपने साथी महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू के साथ अल्मोड़ा में कार्यरत अपने साले आकाश रावत के पास चला गया.

महेंद्र प्रताप उर्फ टीटू को रोशनलाल की हत्या की साजिश और पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. वह उमेश के गांव के पास का ही रहने वाला था और दोनों भाइयों उमेश व राहुल का खास दोस्त था. उमेश ने महेंद्र प्रताप को काफी पैसा भी दे रखा था.

निर्मला ने प्रेमी को दिया था उलाहना

18 सितंबर को निर्मला ने मोबाइल पर उमेश से बात कर के अभी तक काम न होने का उलाहना दिया. इस पर उमेश ने अपने भाई राहुल को रोशन की हत्या या पैसे वापस करने का अल्टीमेटम दे दिया. उन दिनों राहुल का भांजा फरीदाबाद निवासी मनीष उर्फ सनी जयपुर आया हुआ था. आखिरकार राहुल ने अपने भांजे के साथ मिल कर रोशनलाल की हत्या करने का फैसला किया.

राहुल ने मनीष के साथ मिल कर 19 सितंबर की रात करीब 9 बजे फायरिंग कर के रोशनलाल की हत्या कर दी. रोशन को गोलियां मारने के तुरंत बाद राहुल ने उमेश को फोन कर के बता दिया कि रोशन को मार दिया. रोशनलाल की मौत की सूचना मिलने के बाद उमेश के साले आकाश रावत ने राहुल के बैंक खाते में 20 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए.

पुलिस ने रोशनलाल की हत्या के मामले में उस की पत्नी निर्मला यादव और उस के प्रेमी उमेश शर्मा के अलावा जयपुर के करधनी इलाके में गणेश नगर विस्तार के रहने वाले महेंद्र प्रताप ओझा उर्फ टीटू, उमेश के साले आकाश रावत और फिरोजाबाद के शूटर शिवकांत उर्फ लालू को गिरफ्तार कर लिया.

इन में आकाश रावत मूलत: आगरा के सिकंदरा थानांतर्गत शास्त्रीपुरम का रहने वाला था. वह आजकल उत्तराखंड में जिला ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर में रह रहा था. पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गई राहुल की स्कूटी उस के घर से बरामद कर ली.

पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि रोशनलाल ने लोगों को करीब 50 लाख रुपए ब्याज पर दे रखे थे. निर्मला इस रकम के साथसाथ रोशनलाल की सारी संपत्तियां लेना चाहती थी. इसलिए वह रोशन से तलाक लेने के बजाय उस की हत्या करवाना चाहती थी.

उमेश ने भी रोशनलाल से मोटी रकम ब्याज पर ले रखी थी. उमेश चाहता था कि रोशनलाल मारा जाए तो पैसे नहीं चुकाने पड़ेंगे. इसलिए उस ने रोशन की मौत का सौदा किया. वह निर्मला के सामने यह दिखावा करता रहा कि वह यह सब उस के प्रेम की वजह से कर रहा है.

पत्नी के प्रेमी से शादी कराने को राजी हो गए थे रोशनलाल

उमेश और निर्मला के अवैध संबंधों के बारे में रोशनलाल को सब से पहले उमेश की पत्नी ने ही बताया था. इस के दूसरे ही दिन रोशन ने घर में नया मोबाइल चार्जिंग के लिए लगा देखा तो निर्मला से पूछा. उस ने बताया कि यह मोबाइल उमेश ने दिया है.

रोशन ने पत्नी से मोबाइल का लौक खुलवाया. मोबाइल में निर्मला और उमेश के बीच हुई वाट्सऐप चैटिंग देख कर रोशनलाल अपनी 2 बेटियों और 3 साल के बेटे के भविष्य और अपनी प्रतिष्ठा के कारण खून का घूंट पी कर रह गए.

निर्मला का उमेश के प्रति लगातार बढ़ा झुकाव देख कर रोशनलाल अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए उस की शादी उमेश से कराने को भी तैयार हो गए थे. पतिपत्नी कोर्ट में पहुंच भी गए, लेकिन वहां पर उमेश नहीं आया.

इस के कुछ दिन बाद तक रोशन के घर में शांति रही. निर्मला उमेश से नहीं मिली लेकिन कुछ दिन बाद ही वह फिर उस से मिलने लगी. एक दिन रोशन ने दोनों को देख लिया तो निर्मला ने कहा कि उमेश ने उस के साथ जबरदस्ती की है.

तब रोशन ने उस से कहा कि अगर जबरदस्ती की है तो उमेश के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराने चलो. निर्मला थाने पहुंच भी गई, लेकिन उमेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले ही वह बदल गई. वह आगे से उमेश से न मिलने का वादा कर के रोशनलाल को मना कर बिना रिपोर्ट दर्ज कराए घर वापस लौट आई.

इस के कुछ दिन बाद करीब एक साल पहले निर्मला अपने ढाईतीन साल के बेटे को गोद में ले कर प्रेमी उमेश के साथ भागने के लिए घर से निकल गई. निवारू रोड पर वह उमेश से मिलने के बाद अपने रिश्तेदार के घर चली गई. बाद में रोशन उसे समझाबुझा कर घर ले आए.

निर्मला प्रेमी के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि वह अपने प्रेमी और उस के रिश्तेदारों के जरिए पति को धमकी भरे फोन करवाती, फिर खुद ही पड़ोसियों से जा कर कहती कि पति को कोई जान से मारने की धमकी दे रहा है. हत्या से करीब एक सप्ताह पहले निर्मला और रोशनलाल के बीच झगड़ा हुआ. मामला पुलिस तक पहुंच गया.

रोशन ने मिल रही धमकियों के बारे में पुलिस को बताया. लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से न ले कर दोनों को समझा कर घर भेज दिया. पुलिस ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि धमकियां कहां से मिल रही हैं. अगर पुलिस जांच करती तो शायद रोशनलाल आज जीवित होते.

बाद में पुलिस ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के शूटर पप्पू कश्यप को भी गिरफ्तार कर लिया. पप्पू ने पुलिस को बताया कि शिवकांत के साथ उस ने और विष्णु कश्यप ने जयपुर व कोटपुतली में रोशनलाल की रैकी की थी.

उन्हें लगा कि अगर रोशन की हत्या के बाद पुलिस उन तक पहुंच गई तो वे फंस जाएंगे. इसलिए पप्पू और विष्णु कश्यप उत्तर प्रदेश में पहले से दर्ज आपराधिक मामलों में जारी वारंट की वजह से खुद ही गिरफ्तार हो गए और जमानत नहीं करवाई

कथा लिखे जाने तक इस मामले में राहुल शर्मा और उस के भांजे मनीष उर्फ सनी के अलावा एक शूटर फरार था. पुलिस इन की तलाश में जुटी थी. पुलिस ने गिरफ्तार सभी 6 आरोपियों को 30 सितंबर को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दिया.

यह विडंबना रही कि निर्मला को अपने बैंक मैनेजर पति के खून से हाथ रंगने के बाद भी प्रेमी नहीं मिल सका. अभी 6वीं और 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्मला की 2 बेटियां बड़ी होने के बाद भी अपनी मां को कभी माफ नहीं कर सकेंगी. और तो और निर्मला के 3 साल के अबोध बेटे से भी मां का आंचल छिन गया है.

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