सरकारी दफ्तरों में काम कराने का सब से आसान तरीका घूस देने को भी केंद्र सरकार ने लोगों से छीन लिया है. हर किसी का सरकारी विभागों से वास्ता पड़ता है और सभी को मालूम है कि काम तभी होगा जब घूस दी जाएगी. लोग बेफिक्र हो कर सरकारी दफ्तर कूच कर जाते थे और काम के मुताबिक 1000-500 से ले कर लाखदोलाख रुपए देंगे तो उन का काम हो जाएगा. चिंता तो इस बात की रहती थी कि कहीं बाबू या साहब ने ईमानदारी दिखाते हुए घूस के पैसे को पाप समझ लिया तो जरूर दिक्कत खड़ी हो जाएगी.

इस डर की वजह वे कानून और नियम हैं जिन को हथियार बना कर बाबू या साहब काम करने में असमर्थता जाहिर कर देते हैं. ज्यादा चिल्लपों करने पर वह दोटूक कह देता है कि अब ये नियम हम ने थोड़े बनाए हैं. आप चाहो तो ऊपर शिकायत कर दो लेकिन मैं नियमकानून तोड़ कर अपनी नौकरी से नहीं खेलूंगा.

इस ब्रह्मास्त्र के चलते ही अच्छेअच्छे हरिश्चंद्रों के आदर्श, उसूल और ईमानदारी धूल चाटते नजर आने लगते थे और वे हथियार डाल कर पूछते थे, अच्छा, तो बताइए कितने रुपए देने हैं?

इस पर ईमानदारी से सरकारी मुलाजिम बता देता था कि इतनी दक्षिणा लगेगी, तब कहीं जा कर वह नियम, कानून और अपने ईमान से खिलवाड़ करने का जोखिम उठाएगा. सौदा पहले ही झटके में हो जाता था जिस से लेने वाला भी खुश और देने वाला भी यह सोच कर खुश हो जाता था कि चलो, काम हो गया. ऊपर वाले की कृपा है कि साहब घूस लेने को तैयार हो गए वरना एडि़यां घिस जातीं. ऊपर शिकायत करने पर घूस की रकम और बढ़ जाती तथा काम आसानी से नहीं होता, सो अलग.

हजार में से एकाध सनकी सुचारु रूप से चलती इस व्यवस्था पर प्रहार करते रिश्वत मांगे जाने की शिकायत लोकायुक्त को कर डालता था जिस पर बेईमान कर्मचारी रंगेहाथ घूस लेते दबोच लिया जाता था.

अगले दिन घूसखोरी की यह खबर अखबारों में मोटीमोटी हैडिंगों में कुछ इस तरह छपती थी मानो पृथ्वी से पाप खत्म करने के लिए विष्णु ने समय से पहले ही कल्कि अवतार ले लिया हो यानी अब घूसखोरी खत्म हो गई है.

हकीकत में ऐसी खबरें दूसरे लोगों के लिए विज्ञापन का काम ज्यादा करती हैं कि बेफिक्र रहो, सरकारी दफ्तरों में घूस का लेनदेन बदस्तूर जारी है. यह तो देने वाले की चालाकी या फिर लेने वाले की लापरवाही थी, जो वह पकड़ा गया. घूसखोर के पकड़े जाने की खबर कुछकुछ वैसी ही होती है जैसे कौलगर्ल्स का गिरोह पकड़े जाने की होती है जिस से यह प्रचार ज्यादा होता है कि शहर में देहव्यापार चल रहा है, लिहाजा, शौकीनों को निराश होने की जरूरत नहीं है.

कुछ कमियों और कई ज्यादतियों के बाद भी इस सिस्टम में कोई खास खोट नहीं थी, लेकिन जाने क्यों सरकार की आंख में घूसखोरी का कांटा इतना खटक रहा था कि उस ने अब देने वाले को भी सजा देने का का प्रावधान कर दिया.

तोहफे देना भी जुर्म

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2018 को मंजूरी दिए जाने के साथ ही यह कानून वजूद में आ गया है. अब सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देने वाला भी बराबरी का दोषी माना जाएगा.

इसलिए उसे सजा भी दी जाएगी जिस में 10 वर्ष तक की कैद हो सकती है. इस कानून में सजा के साथसाथ जुर्माने का भी प्रावधान है और एक खास बात यह जोड़ी गई है कि सरकारीकर्मियों को रिश्वत के लिए उकसाना भी अपराध की श्रेणी में आएगा और उन्हें तोहफे देना भी जुर्म होगा.

वाकई इस कानून का वाजिब असर हुआ और घूसखोरी के कम मामले सामने आए. इस पर किसी एजेंसी की रिपोर्ट आते ही सरकार अपनी पीठ थपथपाने से चूकेगी नहीं कि देखो, कानन बनते ही घूसखोरी पर लगाम लग गई. लेकिन यह लगाम ठीक वैसी ही है जैसी नोटबंदी के बाद से सामने आ रही है कि हुआ कुछ नहीं है, बस, सरकार की जिद या मंशा, जो भी कह लें, पूरी हो गई है.

उधर, सरकार की मंशा बेहद साफ है कि जब घूसखोरी के मामले कम दर्ज होंगे तो आंकड़ों में भी भ्रष्टाचार कम दिखेगा. अब लोग यानी दोनों पक्ष घूस के लेनदेन में इतनी एहतियात बरतें कि वे पकड़े ही न जाएं, तो सरकार का इस में क्या दोष.

यह होगा असर

क्या आप घूस देने के जुर्म में 10 वर्षों के लिए जेल जाना चाहेंगे, इस सवाल के जवाब में कोई भी हां नहीं कहने वाला. ऐसे में जाहिर है लोग सुरक्षित तरीके से घूस देने के उपायों पर अमल करेंगे. गौरतलब है कि सरकार ने कानून बदला है, लेकिन सिस्टम और सरकारी कर्मचारियों के अधिकार ज्यों के त्यों हैं.

अंदेशा जताया जा रहा है कि अब दलालों के जरिए घूस लेनदेन का रिवाज बढ़ेगा. एक फिल्म में कादर खान का घूसखोर किरदार खुद घूस नहीं लेता बल्कि नगरनिगम आए बेचारे आम नागरिक को दफ्तर के बाहर चाय की दुकान वाले को भुगतान करना होता था. इस फिल्म में घूस की रकम चीनी के चम्मच के हिसाब से तय होती दिखाई गई है. मसलन, अगर घूस लेने वाला एक चम्मच चीनी डालने को बोलता है तो घूस की रकम 1 हजार रुपए होती है.

कहने का मतलब यह नहीं कि लोग यही तरीका अपनाएंगे, बल्कि होगा यह कि फाइल रुकी रहेगी और उसी दौरान घूस देने वाले को ज्ञान प्राप्त होगा कि उसे अपने काम के एवज में कितनी घूस किस तरीके से कहां चुकानी है. ऐसे कई तरीके अभी भी चलन में हैं, लेकिन अब आम हो जाएंगे. घूसखोर का साला या भतीजा रिश्वत लेगा या फिर किसी और को इस बाबत नियुक्त कर दिया जाएगा.?

इस कानून का दूसरा प्रभाव यह पड़ेगा कि लोग शिकायत करेंगे ही नहीं, क्योंकि इस से उन का काम होने की गारंटी सरकार नहीं ले रही. मसलन, अगर आप को नगरनिगम में अपने मकान का नामांतरण कराना है तो दफ्तर में बैठा बाबू आप से रिश्वत नहीं मांगेगा. वह कागजात में कमियां निकालता रहेगा. आप चाहें तो कमिश्नर से ले कर मिनिस्टर तक से शिकायत करने का अपना अधिकार या कर्तव्य इस्तेमाल कर सकते हैं. अव्वल तो जवाब मिलेगा नहीं, और मिला भी, तो यही होगा कि आप कागजात पूरे और दुरुस्त लाएं तो काम हो जाएगा.

लोग कानून को कोसते पुराना सुनहरा जमाना याद करते नजर आएंगे कि वो भी क्या दिन थे जब बगैर किसी झंझट के नामांतरण हो जाया करता था. अब यह नई बला कहां से आ गई कि पटवारी, बाबू, हवलदार से ले कर इंजीनियर, डाक्टर और कलैक्टर साहब तक घूस के नाम से नाकभौं सिकोड़ रहे हैं और कह रहे हैं कि हम क्या करें, खोट तो आप के काम में ही है, यानी आप एक गलत काम करवाने के लिए आए हैं.

अब यहां कोई ज्यादा हल्ला मचाएगा तो सरकारी कर्मचारी ही शिकायत करेगा कि उसे रिश्वत लेने के लिए उकसाया जा रहा है. इस पर देने वाला झट से नप जाएगा. फिर मोटेमोटे अक्षरों में खबर छपेगी कि घूस देने की कोशिश करने वाले को रंगेहाथ पकड़ा गया. इस कानून में पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकारी अधिकारी को घूस लेने के लिए उकसाना भी अपराध माना जाएगा. न उकसाने की स्थिति में भी वह झूठी शिकायत कर सकता है कि उस पर रिश्वत लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. अब ऐेसे में सफाई देने की जिम्मेदारी यानी बर्डन औफ प्रूफ आम आदमी का होगा कि वह साबित करे कि उस ने घूस देने की कोशिश की ही नहीं थी या इस बाबत उकसाया नहीं था.

पाप और दक्षिणा

उकसाया नहीं था यानी एक ऐसा पाप जो आप ने किया ही नहीं, उस के लिए आप को थानों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं और दक्षिणा भी चढ़ानी पड़ सकती है लेकिन इस पर वह सलीके की होगी और सलीके से ही होगी.

यहां बात या मंशा कतई अतिशयोक्ति वाली या इस कानून की आलोचना की नहीं, बल्कि ऐसे कानूनों के साइड इफैक्ट्स बता कर होशियार करने की है कि इस से भी कुछ होने वाला नहीं है.

दरअसल, केंद्र सरकार ने मान लिया है कि सब के सब पापी हैं, लेने वाला भी और देने वाला भी. ऐसे में सजा सिर्फ लेने वाले को क्यों? यही दहेज कानून में प्रावधान है कि दहेज देने वाला भी बराबरी का दोषी है लेकिन आज तक दहेज देने के लिए शायद ही किसी को सजा हुई हो.

सरकार चाहती है कि सभी धर्म के बताए रास्ते पर चलें, ईमानदारी से रहें और रहने दें. लेकिन इस के लिए दोषी सिस्टम यानी पूजापाठ, यज्ञ, हवन, आरती खत्म नहीं किए जाएंगे बल्कि दक्षिणा चढ़ाने का तरीका बदल दिया जाएगा. नए प्रावधान में होगा यह कि जो भी इन बाबुओं और साहबों यानी पंडों की शिकायत लोकायुक्त वगैरह से करेगा, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा.

सरकारी कर्मचारी को इतना भर कहना है कि उस ने किसी काम के लिए मना नहीं किया, लेकिन गलत काम करवाने के लिए उसे घूस की पेशकश की जा रही थी. तब लोग क्या करेंगे, इस तरफ सरकार का ध्यान नहीं गया या जानबूझ कर नहीं दिया गया, एक ही बात है. यह भी दिलचस्प बात है कि सरकार को पता कैसे चलेगा कि कौन, कहां घूस देने का पाप कर रहा है.

उदाहरण मकान निर्माण का ही लें. आप अपने घर के सपनों को आसानी से साकार नहीं कर सकते, क्योंकि आप का नक्शा गलत होगा. आप ने सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक रास्ता नहीं छोड़ा होगा, ड्रेनेज के इंतजाम सरकारी पैमानों पर खरे नहीं उतर रहे होंगे या फिर पर्यावरण प्रभावित हो रहा होगा. मुमकिन है जो जमीन का टुकड़ा यानी प्लौट आप ने लिया हो वह ही किसी और वजह से नाजायज करार दे दिया जाए.

तब लोगों को समझ आएगा कि घूस देना वाकई अनिवार्य पाप होता है. अब पापमुक्ति के लिए काटते रहो छोटे से बडे़ मंदिरों यानी दफ्तरों तक चक्कर. सरकार तो नोटबंदी और जीएसटी की तरह आप को सुशासन और पारदर्शिता देना चाहती है, भ्रष्टाचार खत्म करना चाहती है लेकिन वे आप के संचित पाप हैं जो इस में आड़े आ रहे हैं तो सरकार इस में क्या कर लेगी. वह पापमुक्ति का ठेका नहीं लेती. यह लाइसैंस तो पंडेपुजारियों की तरह सरकारी मुलाजिमों ने ले रखा है. तो काटो उन्हीं के चक्कर, लेकिन, भूल कर भी घूस देते हुए पकड़े मत जाना वरना.

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