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प्रेमी प्रेमिका के चक्कर में दुल्हन का हश्र: भाग 1

उत्तर प्रदेश के कासगंज जिला मुख्यालय से कोई 14 किलोमीटर दूर है गांव होडलपुर, जो सोरों थाना क्षेत्र में आता है. होडलपुर छोटा सा गांव है. यहां के बच्चे पढ़ाई के लिए सोरों और कासगंज जाते हैं. इसी होडलपुर गांव में डालचंद का परिवार रहता है. डालचंद खातापीता किसान है.

उस के 4 बेटे और 2 बेटियां हैं. 2 विवाहित बेटे विनोद और महेंद्र हिमाचल प्रदेश में नौकरी करते हैं. दोनों बेटियों की भी शादी हो गई है. अब घर में पत्नी सोमवती और 2 बेटे कुंवरपाल और रामनरेश रहते हैं.

कुंवरपाल का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता था. हाईस्कूल पास करने के बाद वह गांव के लोगों की भैंसें दूहने का काम करने लगा, जबकि रामनरेश इंटरमीडिएट पास कर चुका था.

कुल मिला कर डालचंद की जिंदगी ठीकठाक चल रही थी पर कुंवरपाल को ले कर वह पिछले कुछ समय से चिंतित था. दरअसल, इसी गांव की दूसरी गली में रामकिशोर अपनी 6 बेटियों और पत्नी के साथ रहता था.

रामकिशोर की दूसरे नंबर की  बेटी नेहा इंटरमीडिएट पास करने के बाद आगे की पढ़ाई कर के अपना भविष्य सुधारना चाहती थी. लेकिन अचानक उस के दिल के द्वार पर कुंवरपाल ने दस्तक दे दी थी. कुंवरपाल और नेहा एकदूसरे को पसंद करने लगे. धीरेधीरे आशिकी शुरू हुई, जिस ने जल्दी ही दीवानगी का रूप ले लिया. दोनों अपनी दुनिया बसाने के सपने देखने लगे.

दोनों की जाति एक ही थी, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि आगे चल कर ये रिश्ता परवान चढ़ जाएगा. नेहा और कुंवरपाल की लुकछिप कर मुलाकातें होने लगीं. मोबाइल के जरिए दोनों एकदूसरे के संपर्क में रहते थे, पर इश्क के दुश्मन तो हर जगह होते हैं. गांव में कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने इस प्रेमी युगल की नजरों के भावों को भांप लिया.

इस के बाद गांव में उन के प्यार के चर्चे होने लगे. किसी ने यह बात रामकिशोर के चचेरे भाई कृष्णकुमार को बता दी कि उस की भतीजी नेहा का चक्कर कुंवरपाल से चल रहा है. कृष्णकुमार पेशे से डाक्टर है और उस ने गांव में ही अपना क्लिनिक बना रखा है, जो ठीकठाक चलता है.

कुंवरपाल के इस दुस्साहस पर उसे बहुत गुस्सा आया पर उस ने फिलहाल उस से कुछ नहीं कहा बल्कि एक दिन नेहा को ऊंचनीच समझाई और कहा कि वह जिस रास्ते पर जा रही है, वह ठीक नहीं है इसलिए उसे संभल जाना चाहिए.

नेहा ने चाचा से तर्क करना ठीक नहीं समझा, पर उसे चाचा की बात बिलकुल भी पसंद नहीं आई. वह जान चुकी थी कि उस के प्यार की बात उस के घर वालों तक पहुंच चुकी है, लिहाजा उस ने कुंवरपाल को फोन कर के सतर्क कर दिया.

लेकिन उस से बातचीत करनी बंद नहीं की. नेहा सोचती थी कि ये उस की अपनी जिंदगी है, इसे वो जैसे चाहेगी वैसे जिएगी. चाचा कौन होता है, उस की जिंदगी में दखल देने वाला.

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कहते हैं, इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं छिपता, कुंवरपाल और नेहा की प्रेम कहानी भी छिपी नहीं रह सकी. उन के प्रेमिल संबंधों की चर्चा गांव की गलियों में फैल गई. हालांकि दोनों अपने घर में इस बात का जिक्र करना चाहते थे कि वे दोनों अपनी दुनिया बसा कर साथसाथ जीना चाहते हैं पर जब रामकिशोर को पता चला कि नेहा कुंवरपाल से लुकछिप कर मिलती है तो उसे बहुत बुरा लगा.

वह कुंवरपाल को बिलकुल भी पसंद नहीं करता था. इस की वजह यह थी कि कुंवरपाल न तो ज्यादा पढ़ालिखा था और न ही उस के पास कोई नौकरी थी. वैसे भी गांवों में ऐसी शादियां नहीं होतीं.

रामकिशोर ने अपनी पत्नी को हिदायत दे दी थी कि वह नेहा पर नजर रखे, नहीं तो किसी दिन वह हमें डुबो देगी. नेहा की मां भी बेटी के लिए परेशान हो गईं. उस ने नेहा को समझाने की भरसक कोशिश भी की लेकिन नेहा के सिर पर तो आशिकी की दीवानगी चढ़ी हुई थी.

एक दिन रामकिशोर ने डालचंद को रोक कर टोका, ‘‘देखो डालचंद, मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं पर तुम्हें अपने लड़के कुंवरपाल को रोकना होगा. वह मेरी बेटी से मिलताजुलता है. तुम बेटे पर कंट्रोल रखो वरना अच्छा नहीं होगा.’’

रामकिशोर की धमकी से डालचंद परेशान हो गया. उस ने सोचा कि अगर कुंवरपाल की शादी कर दी जाए तो वह सुधर सकता है. अत: वह उसे शादी के बंधन में बांधने की कोशिश में लग गया. पिता का रुख देख कर कुंवरपाल के हौसले भी पस्त हो गए. इधर नेहा चाहती थी कि कुंवरपाल कुछ हिम्मत दिखाए और वे दोनों गांव की तंग गलियों से निकल कर कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लें.

एक दिन उस ने कुंवरपाल से पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है तुम्हारा, मैं अब घर वालों की बंदिशों से परेशान हो गई हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती.’’

‘‘तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं. तुम्हारे घर वाले हमें धमका रहे हैं. इस से पापा बहुत परेशान हो गए हैं.’’ कुंवरपाल बोला.

‘‘यह कोई नई बात नहीं है. प्यार करने वालों का हमेशा ही विरोध होता है. हमारा भी विरोध होगा, चलो हम यहां से भाग चलते हैं.’’ नेहा ने कहा.

‘‘लेकिन कहां जाएंगे, क्या करेंगे, क्या खाएंगे?’’ कुंवरपाल ने नेहा को समझाने का प्रयास किया, ‘‘तुम नहीं जानती नेहा, हम अगर चले गए तो पुलिस मेरे घर वालों को कितना परेशान करेगी. बेहतर यही होगा कि तुम अपने मम्मीपापा को इस रिश्ते के लिए राजी कर लो.’’

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नेहा परेशान हो गई. अपनी प्रेम कहानी को आगे ले जाने का उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. लेकिन समाज से छिप कर दोनों मिलते रहे.

इसी बीच एक मध्यस्थ के जरिए कुंवरपाल के लिए एटा जिले के गांव चांदपुर निवासी संतोष की बेटी का रिश्ता आया. संतोष गांव का खातापीता किसान था. उस की बेटी पूनम ने इंटर पास कर लिया था. हालांकि पूनम आगे भी पढ़ना चाहती थी पर संतोष ने कहा कि पढ़ाई तो तुम ससुराल में रह कर भी कर सकती हो.

संतोष को मध्यस्थ के जरिए पता चला कि सोरों के होडलपुर निवासी डालचंद का खातापीता परिवार है. वहां अगर बात बन गई तो पूनम सुखी रहेगी. बिचौलिया के जरिए बात का सिलसिला शुरू हुआ और दोनों पक्ष इस रिश्ते के लिए राजी हो गए.

क्रमश:

पति पत्नी का परायापन: भाग 2

पति पत्नी का परायापन: भाग 1

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आखिरी भाग

शैली को एकटक देखते हुए उस ने कहा, ‘‘शैली, मैं चाहता तो नहीं हूं कि तुम कहीं काम करो, लेकिन हालात को देखते हुए तुम से नौकरी करने के लिए कहना पड़ रहा है. अगर तुम्हें नौकरी करनी ही है तो कहीं पास में ही नौकरी तलाश करो.’’

पति को चिंतित देख शैली ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी चिंता मत करो, अपना अच्छाबुरा मैं अच्छी तरह जानती हूं.’’

इस के बाद वह अगले दिन से ही अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई. थोड़ी कोशिश के बाद उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अब वह भी नौकरी पर जाने लगी. पत्नी के नौकरी करने से पंकज की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी. पैसे आए तो दोनों के चेहरों पर खुशी की लाली थिरकने लगी.

कुछ महीने तक तो पंकज के घर में सब कुछ ठीक था, परंतु एक साल गुजरने के बाद शैली के रंगढंग में काफी कुछ बदलाव आ गया. उस के रहनसहन और पहनावे को देख कर लगता था कि वह मौडर्न घराने से ताल्लुक रखती है.

औफिस से घर आने में वह कई बार लेट भी हो जाती थी. पंकज ने इस दौरान महसूस किया था कि शैली की चालढाल अब वैसी नहीं रही जैसी पहले थी. अब उस के पास महंगा मोबाइल फोन आ गया था, जिस पर वह हमेशा व्यस्त रहती थी.

एक दिन पंकज शैली के मोबाइल का वाट्सऐप देख रहा था. उसे वहां कुछ ऐसे फोटो देखने को मिले, जिस में वह एक अपरिचित आदमी के साथ काफी खुश नजर आ रही थी. उस फोटो के बारे में पूछने के लिए पंकज ने शैली को अपने पास बुलाया तो उस के चेहरे की रंगत उड़ गई.

वह कहने लगी कि यह औफिस में ही काम करने वाला व्यक्ति है. मगर पंकज को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. इस के बाद उन दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर नोकझोंक होने लगी. अब तक पंकज को पूरी तरह यकीन हो गया था कि शैली फोटो में जिस व्यक्ति के साथ है, उस से उस के अवैध संबंध होंगे.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस रात शैली देर से घर लौटी थी. पंकज ने उस पर आरोप लगाया कि वह अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी, तभी घर आने में देर हो गई. पंकज ने उस समय उसे काफी भलाबुरा कहा था. शैली भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने भी कह दिया कि तुम मेरे ऊपर इतना शक करते हो तो मुझे तलाक दे दो. मेरी तुम्हारे साथ अब नहीं निभ सकती.

शैली की बात सुन कर पंकज सन्न रह गया. उसे उम्मीद नहीं थी कि शैली कभी उसे छोड़ कर सदा के लिए उस से दूर जाने का इरादा बना लेगी. लड़झगड़ कर उस रात दोनों सो गए. लेकिन उस दिन के बाद शैली हर 2-4 दिनों के बाद पंकज से तलाक ले कर अलग रहने पर दबाव बनाने लगी.

दरअसल, शैली जहां नौकरी करती थी, उस की बगल में सेक्टर-82 निवासी सुरेश सिधवानी की दुकान थी. सुरेश सिधवानी मूलरूप से राजस्थान का रहने वाला था. वह शादीशुदा था लेकिन अपनी पत्नी से अधिक शैली को प्यार करता था. जब उस की पत्नी को शैली के साथ उस के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने उसे रोकने की कोशिश की.

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लेकिन सुरेश सिधवानी के सिर पर शैली के इश्क का भूल चढ़ा था, इसलिए उस ने पत्नी की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. आखिर वह सुरेश को छोड़ कर चली गई.

पत्नी के घर छोड़ चले जाने के बाद सुरेश ने शैली को अपने पति से तलाक लेने पर जोर डालना शुरू कर दिया, ताकि दोनों हमेशा के लिए एक हो कर रह सकें. लेकिन पंकज मिश्रा इस के लिए राजी नहीं हुआ. उसे अपने बेटे और खानदान की इज्जत अधिक प्यारी थी.

जब शैली को लगा कि पंकज उसे तलाक नहीं देगा तब उस ने सुरेश से कहा, ‘‘सुरेश, अगर तुम मुझे सच में प्यार करते हो और हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हो तो पहले पंकज को खत्म करना होगा.’’

सुरेश भी यही चाहता था, इसलिए उस ने कहा कि तुम अब परेशान मत होना, मैं इस का इंतजाम कर दूंगा.

सुरेश सिधवानी के पास नगला चरणजीतदास का रहने वाला मोटर मैकेनिक इंद्रजीत आता रहता था. वह उस का विश्वासपात्र भी था. सुरेश ने पंकज की हत्या के बारे में उस से बात की. साथ ही यह भी कहा कि इस काम के एवज में वह उसे 10 लाख रुपए देगा.

इतनी बड़ी रकम के लालच में इंद्रजीत तैयार हो गया. उस ने पंकज की हत्या करने के लिए 50 हजार रुपए की पेशगी भी ले ली.

पंकज की हत्या करने की सुपारी लेने के बाद इंद्रजीत इस काम के लिए अपने दोस्त ककराला फेज-2 निवासी मोनू से मिला. उस ने मोनू से सारी बात तय कर के उसे .32 बोर की एक पिस्तौल तथा 3 गोलियां सौंप दीं.

मोनू ने गेझा, नोएडा निवासी अपने दोस्त सूरज तंवर को अपने साथ लिया. इस के बाद वे सभी पंकज की रेकी करने लगे. उन्होंने पता लगा लिया कि पंकज अपनी ड्यूटी के लिए किस रास्ते से आताजाता है. पूरी योजना बनाने के बाद 20 जून, 2019 को ये लोग पंकज का पीछा करने लगे. जैसे ही पंकज एक सुनसान जगह पर पहुंचा तो उसे रोकने के बाद गोली मार दी, जिस से घटनास्थल पर ही पंकज की मृत्यु हो गई.

पुलिस ने उन दोनों से पूछताछ के बाद इंद्रजीत, मोनू और सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर वारदात में इस्तेमाल पिस्तौल और बिना नंबर प्लेट वाली मोटरसाइकिल भी बरामद हो गई.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने पंकज हत्याकांड के पांचों आरोपियों सुरेश सिधवानी, शैली मिश्रा, इंद्रजीत, मोनू और सूरज तंवर को गौतमबुद्धनगर की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

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सूरज तंवर की उम्र 19 साल है और वह गेझा गांव के स्कूल में 12वीं का छात्र है. वह अपनी गर्लफ्रैंड की जरूरतों को पूरा करने के लालच में इस हत्याकांड में शामिल हुआ था. पंकज की हत्या और शैली मिश्रा के जेल चले जाने के बाद पंकज का 7 वर्षीय बेटा अपने चाचा के पास था.

खून से खेलता धर्म

भारतीय संस्कृति में धर्म और अंधविश्वास इस कदर लोगों के दिलोदिमाग में बसे हुए हैं कि वे आंखें बंद कर के आस्था के नाम पर कुछ भी कर गुजरते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार कुछ देवीदेवताओं को खुश करने का तरीका केवल रक्त यानी खून बहाना बताया गया है. पशु बलि से ले कर इनसानी खून तक का इस्तेमाल पत्थर की मूर्तियों को खुश करने में किया जाता है.

वैसे इन मान्यताओं का कोई ठोस आधार भले ही न हो मगर लोग इसे जीवन का एक हिस्सा मानते हैं. इस के अलावा शरीर को कष्ट पहुंचा कर अपने अपराध में आस्था दिखाना भी हिंदू मान्यता का ही एक अंग है. लोग बीमारी के इलाज से ले कर सुखशांति पाने तक के लिए किसी भी हद तक जा कर अपनेअपने भगवान को खुश करने की कोशिश करते हैं और यह सब होता है अंधविश्वास के चलते. पंडेपुजारी आम जनता को भगवान के नाम पर जम कर फुसलाते हैं. देवी- देवताओं का प्रकोप बता कर लोगों को भयभीत कर उन की अंधी आस्था से खिलवाड़ करते हैं.

उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा गांव में भी कुछ ऐसी ही परंपरा है. यहां बगवाल मेले का आयोजन किया जाता है. बगवाल पत्थर फेंकने को कहा जाता है. इसलिए इस मेले कोे बगवाल मेला कहते हैं. मान्यता के अनुसार हर साल रक्षाबंधन के दिन यहां के वाराहीदेवी मंदिर के पास अलगअलग जाति और समुदाय के लोग जमा होते हैं और 2 गुटों में बंट कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. यह मेला 13 दिन तक चलता है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन यहां खासा उत्साह देखा जाता है. इस बगवाल कार्यक्रम में दोपहर के समय 10-15 मिनट के लिए यह खूनी खेल खेला जाता है.

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परंपरा के अनुसार लोग एकदूसरे पर पत्थर फेंक कर एक इनसान के खून के बराबर खून बहाते हैं. कहा जाता है कि देवी ने जब देवीधुरा के जंगलों को 52 हजार वीर और 64 योगिनियों के आतंक से मुक्त कराया था तब नर बलि की मांग की. तब यह निश्चित हुआ था कि पत्थर मार कर एक इनसान के खून के बराबर खून बहा कर देवी को तृप्त किया जाएगा. उस समय से ही लोग हर साल यहां मैदान में जुट कर कुछ समय के लिए एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. इस खेल में जब मंदिर के पुजारी को विश्वास हो जाता है कि एक इनसान के बराबर खून बह गया है तब वह इसे रोकने की घोषणा करता है. अब कौन सा ऐसा धर्म है जो आस्था के नाम पर एक आदमी को दूसरे का खून बहाने को कहता है?

हर साल सैकड़ों की तादाद में लोग इस खूनी खेल में घायल हो जाते हैं मगर पंडेपुजारियों के बहकावे में आ कर सब भूल जाते हैं. इसी तरह का एक और मेला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में लगता है. इस मेले को गोटमार मेला कहा जाता है. यहां भी हर साल 2 गांव, पनधुरा और स्वरगांव के लोग एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. इस मेले को लगभग 300 साल पुराना बताया जाता है.

यहां मान्यता है कि पनधुरा के राजा ने जब स्वरगांव की राजकुमारी को अपने साथ ले जाना चाहा था तब स्वरगांव के लोगों ने राजा पर पत्थर से हमला किया था पर चंडी देवी की कृपा से राजा बच गया. इसी के बाद यहां देवी का एक मंदिर बना, और तब से हर साल पत्थर मारने की यह प्रथा चली आ रही है. अब इस प्रथा के जरिए दोनों गांवों के युवा, अपने लिए दुलहन जीत में हासिल करते हैं. हर साल यहां लोग नदी के पास के मैदान पर एकत्र हो कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. बताया जाता है कि पिछले साल इस खेल में लगभग 800 लोग घायल हुए थे और एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. इस को देखते हुए प्रशासन ने इस पर रोक लगा दी थी, लेकिन लोगों की मांग पर अब रोक हटा ली गई है.

हिंदू धर्म शास्त्रों में कहीं भी हिंसा को सही नहीं माना गया है. अहिंसा को ही यहां परम धर्म माना गया है. छान्दोग्य उपनिषद में भी कलियुग में हिंदू वैदिक रीति के नाम पर होने वाली हिंसा को सही नहीं ठहराया गया है. साथ ही पशु बलि का भी निषेध बताया गया है. इस के बाद भी समाज में अभी तक ऐसी मान्यताओं और इन के नाम पर होने वाली हिंसा लगातार जारी है.

इस से साफ हो जाता है कि ऐसे मेलों का आयोजन केवल रूढि़वादी मान्यताओं और झूठी कहानियों के बल पर लोगों को धर्म के नाम पर गुमराह कर केवल पैसा बटोरने की कोशिश से ज्यादा और कुछ नहीं है. ऐसे आयोजन के चलते इन जगहों पर पर्यटक पहुंचते हैं, जिस से लाखों का चढ़ावा आता है. इस के अलावा आसपास के गांवों के लोग आते हैं जिस से व्यापार बढ़ता है. इन्हीं कारणों के चलते धर्म के ठेकेदार ऐसे आयोजनों को बंद नहीं होने देना चाहते ताकि उन की धर्म की दुकान चलती रहे.

इनसान के जन्म के साथ ही धार्मिक कर्मकांडों की जो घुट्टी उसे पिलाई जाती है उस का सदियों पुराना इतिहास है. हजारों सालों से अंधविश्वास समाज और उस की मानसिकता में भरा हुआ है. अगर इस में थोड़ा सा भी परिवर्तन आने लगता है तो यही धर्म के सौदागर आगे आ कर लोगों को देवीदेवताओं के प्रकोप से डराने लगते हैं, ताकि समाज में कहीं से उन का बुना हुआ धार्मिक जाल टूटने न लगे. यह भारतीय समाज की विडंबना है कि यहां पढ़ेलिखे लोग भी इस तरह के प्रपंचों में पड़ कर अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डालते हैं.

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केवल ये उदाहरण नहीं हैं, जो भारतीय समाज और हिंदू धर्म में अंधविश्वास को दर्शाते हैं बल्कि भारत के कोनेकोने में धर्म की आड़ में दुकानदारी चल रही है. इस तरह के पाखंड समाज को दीमक की तरह चाट रहे हैं, जिन से समाज की सोचनेसमझने की ताकत खोखली होती जा रही है.

पति पत्नी का परायापन: भाग 1

पंकज कज मिश्रा उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के गांव भंगेल में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शैली मिश्रा उर्फ निधि और एक 7 साल का बेटा था. पेशे से इलैक्ट्रिशियन पंकज नोएडा के ही सेक्टर-135 में स्थित जे.पी. कौसमोस सोसायटी में नौकरी करता था.

20 जून, 2019 की सुबह 8 बजे पंकज घर से काम पर जाने के लिए साइकिल पर निकला. कुछ देर बाद जब वह सेक्टर-132 स्थित एक आईटी कंपनी के नजदीक सुनसान जगह से गुजर रहा था, तभी मोटरसाइकिल से 2 लोग उस के पास पहुंचे और उन्होंने पंकज को रुकने का इशारा किया.

पंकज ने साइकिल रोक दी. इस से पहले कि पंकज बाइक सवारों को समझ पाता, उन में से एक ने पंकज पर गोली चला दी. गोली लगते ही पंकज साइकिल सहित वहीं गिर पड़ा. वहां से गुजर रहे किसी राहगीर ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

चूंकि यह इलाका नोएडा के एक्सप्रैसवे थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना एक्सप्रैसवे थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही थोड़े ही देर में एसआई अनूप कुमार यादव, दिनेश कुमार सोलंकी, गुरविंदर सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस पंकज को नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो जेब में पहचान का कोई कागज नहीं मिला. जेब में सिर्फ एक मोबाइल फोन ही मिला. उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मोबाइल फोन में मौजूद नंबरों पर काल करनी शुरू की.

इसी प्रयास में शारदा प्रसाद मिश्रा नाम के व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई पंकज मिश्रा का है जो नोएडा के भंगेल गांव में रहता है. पुलिस ने उसे अस्पताल बुला लिया ताकि लाश की शिनाख्त हो सके. शारदा प्रसाद अस्पताल पहुंच गया. पुलिस ने जब उसे उस युवक की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पंकज मिश्रा के तौर पर कर दी.

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उस ने पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी भुवनेश कुमार को बताया कि पंकज जे.पी. कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था और घटना के समय अपने काम पर जा रहा था. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दी गई.

इस के बाद थानाप्रभारी भुवनेश कुमार फिर से वारदात वाली जगह पहुंचे. उन्होंने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि बाइक सवार 2 लोगों ने साइकिल सवार एक युवक को गोली मारी थी.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने शारदा प्रसाद मिश्रा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ पंकज मिश्रा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभवकृष्ण के निर्देश पर थानाप्रभारी भुवनेश कुमार टीम के साथ केस की जांच करने में जुट गए.

केस की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्होंने जांचपड़ताल शुरू की. क्योंकि बदमाशों ने उस से किसी प्रकार की लूटपाट नहीं की थी, इसलिए इस संभावना को बल मिल रहा था कि शायद पंकज से किसी की कोई पुरानी रंजिश रही होगी, जिस के कारण मौका ताड़ कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

पंकज भंगेल में एक किराए के मकान में रहता था. थानाप्रभारी पूछताछ के लिए उस के घर पर पहुंच गए. घर पर मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा मिली. थानाप्रभारी ने शैली मिश्रा से पंकज की दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी भी व्यक्ति के साथ रंजिश से साफ इनकार कर दिया.

मृतक के भाई शारदा प्रसाद मिश्रा से भी किसी से रंजिश आदि के बारे में पूछा गया. उस ने भी ऐसी किसी दुश्मनी से अनभिज्ञता जाहिर की. यह सब देख कर पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए अन्य संभावित कारणों के बारे में जांचपड़ताल की.

मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा से थानाप्रभारी ने और भी कई तरह के सवाल किए तो उस के बयानों में कुछ विरोधाभास मिला. इस पर पुलिस ने पंकज और शैली मिश्रा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन जांचपड़ताल की. पता चला कि शैली मिश्रा की एक मोबाइल नंबर पर अकसर बातें होती थीं.

जब उस मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो वह सुरेश सिधवानी नाम के एक युवक का निकला जो नोएडा के सेक्टर-82 में रहता था. पुलिस ने शैली से कुछ नहीं कहा, बल्कि सुरेश सिधवानी को पूछताछ के लिए उस के घर से उठा लिया. थाने में उससे सख्ती से उस के और शैली मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि पिछले 2 सालों से उस के और शैली मिश्रा के बीच गहरी दोस्ती है, जो अवैध संबंधों में बदल गई थी. उस ने और शैली ने योजना बना कर पंकज को रास्ते से हटाया है.

इस के बाद पुलिस ने शैली मिश्रा को भी भंगेल स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. वहां उस ने पहले से हिरासत में लिए गए सुरेश सिधवानी को देखा तो उस के चेहरे का रंग उतर गया. अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा पूछताछ में शैली ने भी स्वीकार कर लिया कि पंकज की हत्या उसी के इशारे पर की गई थी.

दोनों से विस्तार से पूछताछ करने पर पंकज की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली-

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या का रहने वाला पंकज मिश्रा पिछले कई सालों से अपनी पत्नी शैली और 7 साल के बेटे के साथ नोएडा के भंगेल गांव में रह रहा था. वह जे.पी. कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था.

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घरगृहस्थी चलाने में आ रही दुश्वारियों से दोनों हमेशा परेशान रहते थे. शैली सुंदर होने के साथसाथ कुछ पढ़ीलिखी भी थी. उस ने सोचा कि बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घर में अकेली पड़ीपड़ी बोर होती रहती है, इसलिए उसे कहीं पर दिन की नौकरी मिल जाए तो काफी कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी.

उस दिन जब पंकज अपनी ड्यूटी करने के बाद घर लौटा तो शैली ने उस से अपने मन की बात कही. शैली की बात सुन कर पंकज सोच में डूब गया. उस का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शैली घर की दहलीज लांघ कर कहीं नौकरी करने जाए.

लेकिन घर की परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा कर रही थीं कि उस की तनख्वाह में घर बड़ी मुश्किलों से चलता है. कई बार मुश्किलें आने पर उसे अपनी जानपहचान वालों से रुपए उधार मांगने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में चुकाना भी काफी कठिन हो जाता है.

अगले भाग में पढ़ें: शैली की नौकरी करने से पंकज को क्यों ऐतराज था ?

मोहब्बत के दुश्मन: भाग 2

मोहब्बत के दुश्मन: भाग 1

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आखिरी भाग

पूजा के धौलपुर से आने के बाद गांव में पंचायत भी हुई थी, जिस में दोनों के मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन प्रेमी युगल ने पंचायत का फरमान नहीं माना. घर वालों की बंदिशों के बाद भी पूजा छिपछिप कर श्यामवीर से मिलती रही.

26 जून, 2019 को श्यामवीर धौलपुर से गांव आया हुआ था. उस के छोटे भाई कान्हा ने पुलिस को बताया कि रात को भाई उस के साथ पशुओं के बाड़े के बाहर सो रहा था. रात लगभग 11 बजे उस के मोबाइल पर फोन आया. फोन सुन कर बिस्तर से उठ कर चला गया.

कान्हा के मुताबिक, उस ने सोचा कि कोई काम होगा इसलिए भाई कहीं चला गया होगा. इसलिए वह सो गया. श्यामवीर के गांव में आते ही पूजा के परिजन सतर्क हो गए थे. उन्हें लगता था कि पाबंदी के बाद भी पूजा श्यामवीर से बात करती है.

26 जून की रात 11 बजे पूजा ने ही श्यामवीर को फोन किया था. योजना के अनुसार दोनों पूजा के घर के पास चरी के एक खेत में मिले. प्रेमी को देखते ही पूजा उस के सीने से लग गई. उस ने श्यामवीर से कहा कि वह उसे अपने साथ ले जाए. अब वह घर वालों की पाबंदी बरदाश्त नहीं कर सकती.

हमारी जातियां अलग होने से मेरे परिवार वाले शुरू से ही हमारी शादी का विरोध कर रहे हैं. अब वह उस से एक पल भी दूर नहीं रह सकती. श्यामवीर ने पूजा को समझाया, ‘‘कुछ दिन की बात है, तुम्हारे बालिग होते ही मैं तुम्हें अपने साथ ले जा कर शादी कर लूंगा. फिर हम दोनों को कोई अलग नहीं कर सकेगा.’’

घटना के बाद पुलिस ने पूजा की मां मुनीश व बड़ी बहन रूमिका को हिरासत में ले लिया था. इस के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ दबिश दे कर पूजा के पिता मोहनलाल, भाई कमल तथा चाचा रामनिवास को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों ने पुलिस के सामने प्रेमी युगल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद पूजा ने पिता मोहनलाल ने दोनों की हत्या की वारदात की कहानी बयां करते हुए बताया कि श्यामवीर और पूजा को कई बार साथ छोड़ने को समझा चुके थे. दोनों को कई बार बात करते हुए भी पकड़ा गया. हर बार उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया, लेकिन दोनों नहीं माने.

रात डेढ़ बजे पूजा के पिता मोहनलाल की आंखें खुलीं तो देखा, पूजा बिस्तर पर नहीं थी. घर वाले उस पर पैनी नजर रख रहे थे. घर में उस की तलाश की गई. लेकिन वह नहीं मिली.

पिता ने सोचा कि पहले की तरह श्यामवीर के साथ न चली गई हो. रात में ही घर वालों को जगा कर यह बात बताई गई. इस के बाद पूरा परिवार पूजा की तलाश में जुट गया.

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दोनों घर से कुछ दूरी पर चरी के खेत में मिल गए तो दोनों को पकड़ लिया गया. इसी बीच पूजा की मां मुनीशा और बड़ी बहन रूमिका भी वहां आ गईं. पूजा को श्यामवीर के साथ देख क्रोधित घर वालों ने उसे पीटना शुरू कर दिया.

पूजा ने उसे बचाने की कोशिश की. घर वालों के सामने दोनों ने कहा कि हम साथ रहना चाहते हैं. साथ नहीं रहने दिया गया, तो जान दे देंगे. यह सुन कर घर वालों का खून खौलने लगा. श्यामवीर को भागने का मौका भी दिया गया, लेकिन वह अकेला जाने को तैयार नहीं था. इस के बाद दोनों की जम कर पिटाई की गई.

दोनों ने एक साथ भागने का प्रयास भी किया लेकिन उन के चंगुल से न छूट सके. पूजा के परिजनों ने श्यामवीर को लाठीडंडों से जम कर पीटा. उसे गिरा कर उस का मुंह जमीन में दबाया, कुछ लोग उस के ऊपर बैठ गए और उस की हत्या कर दी.

पूजा श्यामवीर को छोड़ने के लिए चीखती रही, लेकिन सुनसान इलाके में उस की चीख सुनने वाला कोई नहीं था. पूजा की आंखों के सामने ही उस के प्रेमी की हत्या कर दी गई. पूजा ने उन्हें हत्या करते देख लिया था. उन्होंने उस से पूछा कि वह क्या चाहती है, इस पर वह चीखने लगी, ‘‘अब मेरी दुनिया उजड़ गई है. मैं जिंदा नहीं रहना चाहती.’’

यह सुन कर बड़ी बहन रूमिका ने नाखूनों से उस का चेहरा नोंच लिया.  पिता ने बताया कि पूजा अगर दूसरी जगह शादी करने को तैयार हो जाती तो उसे छोड़ देते. उस के इनकार करने पर दुपट्टे से उस का भी गला घोंट दिया गया.

दोनों की हत्या के बाद उन के शव ठिकाने लगाने की तैयारी थी, लेकिन तब तक सुबह हो चुकी थी. इसलिए उन की लाशों को नाले के पास खेतों में डाल दिया गया.

दोनों की हत्या के बाद पिता व भाई घर में ताला लगा कर फरार हो गए. जाने से पहले कमल ने अपने फोन से रूमिका से 100 नंबर पर फोन कराया. उस ने अपना नाम रूमिका कुशवाहा बताते हुए पुलिस को जानकारी दी कि उस की बहन पूजा को गांव का ही रहने वाला श्यामवीर तोमर जबरदस्ती अपने साथ ले जा रहा था. गांव वालों ने दोनों को पकड़ लिया है और दोनों को पीट रहे हैं.

यह जानकारी दे कर वह अपने घर वालों को निर्दोष साबित करने के साथ ही पुलिस को गुमराह करना चाहती थी. जबकि हकीकत यह थी कि तब तक दोनों की हत्या की जा चुकी थी.

जिस समय पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, उस समय श्यामवीर का शरीर ठंडा पड़ चुका था और हाथपैर अकड़ गए थे. जबकि पूजा का शरीर गरम था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि पहले श्यामवीर की और बाद में पूजा की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी पूजा के घर वालों के कथन की पुष्टि हुई कि श्यामवीर की मौत पिटाई और पूजा की पिटाई व गला घोंटने से हुई थी.

प्रेमी श्यामवीर और प्रेमिका पूजा की प्रेम कहानी भले ही 2 साल की थी, लेकिन वे मौत के मुंह तक साथसाथ जाने की कसम खा चुके थे. बुधवार की रात को पूजा के घर वालों ने उन की हत्या से पहले दोनों को बैठा कर एकदूसरे का साथ छोड़ने को कहा था. जान से मारने की धमकी भी दी थी. मगर वे जुदा होने को तैयार नहीं हुए थे.

प्रेमी युगल की हत्या के मुकदमे में 6 नामजद हैं. पुलिस को आशंका है कि घटना में इस से अधिक लोग शामिल थे. घर वाले बेटी की प्रेम कहानी से अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे थे. उन्हें लग रहा था कि बेटी ने बिरादरी में उन की नाक कटा दी है. उन के सिर पर खून सवार था.

एसपी देहात (पश्चिम) रवि कुमार ने बताया कि आरोपी पुलिस को गुमराह कर रहे थे. पहले बता रहे थे कि सिर्फ 2 ही लोग खेत में गए थे. लगातार पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि हत्या के समय आधा दरजन से अधिक लोग खेत में मौजूद थे.

औनर किलिंग में शुक्रवार को पुलिस ने पूजा के पिता मोहनलाल, मां मुनीशा, भाई कमल, बहन रूमिका, चाचा रामनिवास को गिरफ्तार कर के न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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पुलिस चचेरे भाई हरेंद्र और ओमवीर की तलाश कर रही है. इस दोहरे मर्डर की विवेचना थाना खैरागढ़ के प्रभारी इंसपेक्टर जसवीर सिंह कर रहे हैं. पुलिस फरार चचेरे भाइयों की सरगरमी से तलाश कर रही थी.

जातिवाद के कारण एक प्रेम कहानी ने 2 परिवार तबाह कर दिए. दोनों परिवारों में जानी दुश्मनी हो गई अलग. अब जरूरत है अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों के पक्ष में एक अभियान चलाने की. यह शुरुआत कैसे होगी, यह भी प्रेम विवाह का विरोध करने वालों को तय करना होगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानी

मोहब्बत के दुश्मन: भाग 1

भाग 1

उत्तर प्रदेश के जनपद आगरा में एक थाना है कागारौल. इस थानाक्षेत्र के गांव विश्रामपुर के नाले के पास वाले खेत में 19-20 साल के एक युवक और 17-18 साल की युवती की लाशें पड़ी हुई थीं. विश्रामपुर के लोगों को यह जानकारी मिली तो लोग खेत की तरफ दौड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

2-2 लाशें मिलने पर गांव में सनसनी फैल गई. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. यह 27 जून, 2019 की सुबह की बात है.

सुबहसुबह डबल मर्डर की खबर पा कर थानाप्रभारी कागारौल अंजुल पांडेय पुलिस टीम के साथ विश्रामपुर गांव पहुंच गए. जिस समय पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तब मृत किशोरी के पास एक महिला और लड़की बैठी रो रही थीं. पास ही युवक की लाश पड़ी थी.

पता चला कि वह मृतका की मां मुनीशा और बहन रूमिका हैं. साथ ही यह भी जानकारी मिली कि मृत युवक और युवती गांव गौरऊ के रहने वाले थे. मृतका का नाम पूजा और मृतक का नाम श्यामवीर था. गांव गोरऊ थाना खैरागढ़ क्षेत्र में आता था न कि थाना कागारौल में.

इंसपेक्टर अंजुल पांडेय ने यह सूचना थाना खैरागढ़ के इंसपेक्टर जसवीर सिंह को दे दी. वह भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मुनीशा से उस की बेटी पूजा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि श्यामवीर ने उस के परिवार का जीना हराम कर दिया था. जबकि रूमिका ने बताया कि श्यामवीर पूजा से जबरन शादी करना चाहता था. रात को वह पूजा को भगा कर ले जा रहा था. गांव वालों ने दोनों को पकड़ लिया और उन के साथ मारपीट की, इसी से दोनों की मौत हो गई.

पुलिस को पता चला कि मृतक नगला गौरऊ निवासी मनेंद्र उर्फ मंगल सिंह का बेटा था. 19 वर्षीय मृत युवक का नाम श्यामवीर तोमर था. जबकि 18 साल की मृतका पूजा कुशवाह मोहन सिंह की बेटी थी. विश्रामपुर गौरऊ गांव की सीमा से सटा हुआ था.

थानाप्रभारी खैरागढ़ जसवीर सिंह ने मामले की जानकारी एसएसपी जोगेंद्र सिंह को दे दी. थोड़ी देर में वह भी मौके पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया था.

इस घटना की जानकारी मिलने पर गांव गौरऊ के प्रधान ने मृतक श्यामवीर के ताऊ फूल सिंह के घर जा कर बताया कि श्यामवीर खेत में मरा पड़ा है और वहां भीड़ जमा है. यह सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. श्यामवीर के घर वाले गांव के लोगों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

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श्यामवीर और पूजा की लाशें गांव से करीब 100 मीटर दूर एक खेत में पड़ी थीं. दिन चढ़ने के साथ श्यामवीर और पूजा की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल गई. कुछ ही देर में वहां देखने वालों का तांता लग गया. भीड़ बढ़ती देख किसी अनहोनी की आशंका से अफसरों को पुलिस फोर्स मंगानी पड़ी.

पुलिस ने लाशों का मुआयना किया तो पता चला, दोनों लाशों की गरदन, सिर व चेहरों पर चोट के निशान थे. देखने से लग रहा था कि दोनों के साथ मारपीट करने के बाद गला दबा कर हत्या की गई थी.

लाशों के पास 3 मोबाइल फोन पड़े मिले, जिन्हें पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल पर जांच कर साक्ष्य जुटाए.

पुलिस ने घटनास्थल पर आए मृतक श्यामवीर के घर वालों से पूछताछ की. श्यामवीर के ताऊ फूल सिंह तोमर, चाचा विजय सिंह व अन्य घर वालों ने बताया कि श्यामवीर और पूजा एकदूसरे से प्यार करते थे. जबकि पूजा के घर वाले इस का विरोध करते थे. वे लोग कई बार श्यामवीर को जान से मारने की भी धमकी दे चुके थे.

उन्हीं लोगों ने रात को फोन कर के धोखे से श्यामवीर को अपने घर बुलाया था. श्यामवीर के घर वाले आरोप लगा रहे थे कि पूजा के घर वालों ने इस वारदात को षडयंत्र रच कर अंजाम दिया है. श्यामवीर इतना मूर्ख नहीं था कि रात में पूजा से मिलने उस के घर पहुंच जाता.

उसे साजिश के तहत बुलवाया गया था. बाद में उसे गांव से दूर दूसरे थाने की सीमा में खेत में ले जा कर पीटा गया. पूजा ने विरोध किया होगा, इसलिए उसे भी पीटा गया. रात में ही दोनों की हत्या कर दी गई.

पुलिस को भी यह औनर किलिंग का मामला लग रहा था. पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने श्यामवीर के ताऊ फूलसिंह तोमर की तहरीर पर बलवा, मारपीट और हत्या की धाराओं के तहत पूजा के पिता मोहनलाल, भाई कमल, मां मुनीशा, बहन रूमिका, चाचा रामनिवास, चचेरे भाई हरेंद्र व ओमवीर के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. इस केस में एक अज्ञात को भी शामिल किया गया था. गांव में चर्चा थी कि घटना की पूरी साजिश पूजा के ताऊ बाबू ने रची थी.

श्यामवीर और पूजा के परिवारों में घनिष्ठ संबंध थे. दोनों परिवारों के खेत भी आपस में लगे हुए थे. यहां तक कि उन के घरों के बीच बस कुछ खेतों का फासला था. पिछले 2 वर्ष से श्यामवीर के चाचा विजय सिंह के गांव गौरऊ स्थित खेतों को पूजा के ताऊ बाबू ने बटाई पर ले रखा था.

बटाई पर खेत देने की वजह से श्यामवीर का बाबू के घर आनाजाना था. पूजा और उस के ताऊ के घर आमनेसामने थे. ताऊ के घर पर उस की पूजा से मुलाकात हो जाती थी.

श्यामवीर कदकाठी का कसा हुआ जवान था. पूजा उस की ओर आकर्षित हो गई. वह श्यामवीर को कनखियों से देखा करती थी. यह आभास श्यामवीर को भी था. वह भी मन ही मन पूजा को चाहने लगा था. जब कभी दोनों की नजरें मिलतीं तो दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे.

धीरेधीरे यह मुलाकात दोस्ती में बदल गई. फिर दोनों कभीकभी खेतों पर भी मिलने लगे. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर दे दिए थे. श्यामवीर धौलपुर में आटो चलाता था. जब वह धौलपुर चला जाता तो दोनों फोन पर बातें करते.

श्यामवीर जब धौलपुर आता तो उस का मन पूजा में ही रमा रहता. 2 साल पहले हुई दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. श्यामवीर जब भी गांव आता, तो जब तक दोनों एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता था. धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा.

हालांकि दोनों की जाति अलगअलग थीं. इस के बावजूद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था. दोनों ही बालिग होने की दहलीज पर थे, इसलिए उन्होंने सोच रखा था कि बालिग होते ही शादी कर लेंगे.

श्यामवीर के धौलपुर जाने पर पूजा का किसी काम में मन नहीं लगता था. उसे श्यामवीर के गांव लौटने का बेसब्री से इंतजार रहता था. गांव देहात में प्यारमोहब्बत की बातें ज्यादा दिनों तक नहीं छिप पातीं. अगर किसी एक व्यक्ति को ऐसी किसी बात की भनक लग जाती है तो कानाफूसी से बात पूरे मोहल्ले में ही नहीं, बल्कि गांव भर में फैल जाती है.

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पूजा के घर वालों को भी पता चल गया था कि उस का श्यामवीर के साथ चक्कर चल रहा है. लिहाजा मां और पिता ने पूजा को समझाया कि वह उस लड़के से मिलना बंद कर दे. पर उस के सिर पर तो प्यार का भूत सवार था. समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उधर श्यामवीर के घर वालों ने भी उसे समझाया कि वह पूजा से दूर रहे. लेकिन उस पर भी कोई असर नहीं हुआ. दोनों की मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा.

श्यामवीर ने सोच रखा था कि पूजा को अपने साथ ले जाएगा. दोनों धौलपुर जा कर साथ रहेंगे. वहां उन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा. पिता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी श्यामवीर पर आ गई थी. इस वजह से वह फिलहाल शादी नहीं करना चाहता था.

श्यामवीर और पूजा घटना से कुछ महीने पहले घर से भाग गए थे. बताते हैं श्यामवीर पूजा को ले कर धौलपुर चला गया था. घर वालों का सीधा शक उसी पर गया. उन्होंने उस के घर पर डेरा डाल दिया. घर वालों पर दबाव बना तो दोनों वापस लौट आए. तभी से दोनों परिवारों के बीच रंजिश हो गई थी. इस घटना के बाद पूजा पर पहरा कड़ा कर दिया गया था. वह घर में नजरबंद थी.

पूजा को गांव में छोड़ने के बाद श्यामवीर धौलपुर चला गया था. यह बात पुलिस को छानबीन में पता चली. वह धौलपुर में ही आटो चलाता था.

उस ने पूजा को एक मोबाइल दे दिया था. पूजा के घर वालों ने उस से वह मोबाइल छीन लिया था लेकिन किसी दूसरे नंबर से वह दोबारा श्यामवीर के संपर्क में आ गई थी. वह उस से छिप कर बात करने लगी थी.

श्यामवीर का परिवार जाति से ठाकुर और पेशे से किसान था. गांव में ठाकुर जाति के लड़के और कुशवाहा जाति की लड़की के प्रेम के बारे में खूब चर्चा थी. गांव के युवा दोनों को लैलामजनूं कहते थे.

अगली कड़ी में पढ़ें-  क्या पूजा और श्यामवीर  एक दूसरे को अपना बना पाए ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानी

मर्यादा की हद से आगे: भाग 2

एक रोज कल्लू के बड़े भाई दयाशंकर ने फोन पर उसे बताया कि मां की तबीयत खराब है. एक महीने से उस का बुखार नहीं उतर रहा है. मां की बीमारी की जानकारी मिलने पर कल्लू चिंतित हो उठा. उस ने अपने दोस्त पवन से विचारविमर्श किया और फिर मां का इलाज कानपुर के हैलट अस्पताल में कराने का निश्चय किया.

इस के बाद वह फैजाबाद गया और मां को कानपुर ले आया. मां की देखभाल के लिए वह बहन मानसी को भी साथ ले आया था. कल्लू ने मां को हैलट अस्पताल में दिखाया. डाक्टर ने लक्ष्मी को देख कर अस्पताल में भरती तो नहीं किया, लेकिन कुछ जांच और दवाइयां लिख दीं. इस तरह घर रह कर ही लक्ष्मी का इलाज शुरू हो गया.

कल्लू के पल्लेदार दोस्त पवन को जब पता चला कि कल्लू अपनी मां को इलाज के लिए कानपुर ले आया है तो वह उस की बीमार मां से मिलने उस के घर पहुंचा. कल्लू ने अपनी मां और बहन मानसी से उस का परिचय कराया. पवन ने खूबसूरत मानसी को देखा तो पहली ही नजर में वह उस के दिल की धड़कन बन गई. पवन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि काले कलूटे भाई की बहन इतनी खूबसूरत होगी.

पवन पाल अब कल्लू की बीमार मां को देखने के बहाने उस के घर आने लगा. जब भी वह आता, फल वगैरह ले कर आता. इस दरम्यान उस की नजरें मानसी पर ही टिकी रहतीं. जब कभी दोनों की नजरें आपस में टकरातीं तो मानसी की पलकें शरम से झुक जातीं.

पवन जब मानसी की मां लक्ष्मी से बतियाता तो वह मानसी के रूपसौंदर्य की खूब तारीफ करता. मानसी अपनी तारीफ सुन कर मन ही मन खुश होती. इस तरह आतेजाते पवन मानसी पर डोरे डालने लगा.

पवन पाल शरीर से हृष्टपुष्ट व सजीला युवक था. कमाता भी अच्छा था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. मानसी को भी पवन का घर आना अच्छा लगने लगा था. वह भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी. कभीकभी पवन बहाने से उस के अंगों को भी छूने की कोशिश करने लगा था. इस छुअन से मानसी सिहर उठती थी.

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आखिर पवन और मानसी का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभीकभी पवन पाल उस से शारीरिक छेड़छाड़ के साथ हंसीमजाक भी करने लगा था. मानसी दिखावे के लिए छेड़छाड़ का विरोध करती थी, लेकिन अंदर ही अंदर उसे सुख की अनुभूति होती थी. प्यार की बयार दोनों तरफ से बह रही थी, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत दोनों में से एक की भी नहीं थी.

आखिर जब पवन से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज एकांत पा कर मानसी का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मुझे सब कुछ सूनासूना लगता है. तुम्हारी चाहत ने मेरा दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली है.’’

मानसी अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘पवन, पहली ही मुलाकात में तुम मेरी पसंद बन गए थे. लेकिन मैं अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. अब जब तुम ने प्यार का इजहार कर ही दिया तो मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी. मुझे भी तुम्हारा प्यार स्वीकार है. मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

मानसी की बात सुन कर पवन खुशी से झूम उठा. वह उसे बांहों में भर कर बोला, ‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’

25 साल की उम्र पार कर चुकी मानसी जवान थी. आर्थिक स्थिति खराब होने से घर वाले उस के हाथ पीले नहीं कर सके थे. इस उम्र में वह पुरुष साथी की जरूरत महसूस कर रही थी. पवन का साथ उसे अच्छा लगा और उस ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. दोनों के मन मिले तो उन के तन मिलने में भी ज्यादा देर नहीं लगी.

दोस्ती के नाते मानसी पवन की बहन थी, लेकिन उन दोनों ने भाईबहन के पवित्र रिश्ते को तारतार कर दिया था. अब वह इस रिश्ते को बारबार रौंद रहे थे. इसी बीच एक रोज कल्लू ने पवन और मानसी को लिपटतेचिपटते देख लिया. यह देख उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत मानसी और पवन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों ने ही कल्लू को बरगला दिया.

कहते हैं शक का बीज बड़ी जल्दी फूलताफलता है. कल्लू के दिमाग में भी शक का बीज पड़ गया था. वह दोनों पर नजर रखने लगा. पर निगरानी के बावजूद मानसी और पवन का मिलन हो ही जाता था.

कल्लू ने अपनी बहन मानसी को डांटडपट और धमका कर दोनों के संबंध के बारे में पूछताछ की. लेकिन मानसी ने पवन को क्लीनचिट दे दी. इस से कल्लू को लगने लगा कि वह व्यर्थ में ही दोनों के संबंधों पर शक कर रहा है.

कल्लू पवन पर शक न करे और उसे घर आने के लिए मना न करे, इस के लिए पवन ने कल्लू की आर्थिक मदद करना शुरू कर दिया. यही नहीं पवन कल्लू के घर शराब की बोतल भी लाने लगा. इस का परिणाम यह हुआ कि कल्लू के घर पवन का बेरोकटोक आनाजाना होने लगा.

मानसी के पास मोबाइल नहीं था. उस ने पवन से डिमांड की तो उस ने मानसी को मोबाइल ला कर दे दिया. अब पवन को कल्लू के घर की जानकारी भी मिलने लगी और दोनों आपस में प्यार भरी रसीली बातें भी करने लगे.

पवन और मानसी के संबंधों को ले कर कल्लू के पड़ोसियों में भी कानाफूसी होने लगी थी. पड़ोसियों ने कल्लू के कान भरे और पवन के घर आने पर प्रतिबंध लगाने को कहा. इस पर कल्लू ने पवन को सख्त लहजे में मानसी से दूर रहने की चेतावनी दे दी. लेकिन पवन ने पड़ोसियों पर दोस्ती तोड़ने का आरोप लगाया और नाटक कर कल्लू को मना लिया. पवन अब तभी घर आता, जब कल्लू घर में मौजूद रहता.

लेकिन अप्रैल 2019 के पहले हफ्ते में एक रोज कल्लू ने पवन को अपनी बहन के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. दरअसल, उस रोज शाम को पवन बोतल ले कर आया और दोनों ने बैठ कर शराब पी.

कल्लू ने उस शाम कुछ ज्यादा पी ली, जिस से वह बिना खाना खाए ही चारपाई पर लुढ़क गया और खर्राटे भरने लगा. मानसी और पवन ने कल्लू की हालत देखी तो आंखों ही आंखों में इशारा कर रंगरेलियां मनाने का मन बना लिया.

मानसी और पवन रंगरेलियां मना ही रहे थे कि कल्लू की नींद खुल गई. उस ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो उस का खून खौल उठा. उस ने मानसी की पीठ पर एक लात जमाई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. पवन भी उठ बैठा.

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सामने कल्लू खड़ा था. मारे गुस्से से उस की आंखें लाल हो रही थीं. वह चीख कर बोला, ‘‘बेशर्म लड़की, शरम नहीं हाती रात के अंधेरे में गुल खिलाते हुए. मुझे शक तो पहले से ही था, पर तुम दोनों मेरी आंखों में धूल झोंकते रहे.’’

कल्लू का गुस्सा देख कर पवन तो भाग गया, पर मानसी कहां जाती. कल्लू ने उस की जम कर पिटाई की. मानसी चीखतीचिल्लाती रही और कल्लू उसे पीटता रहा. मानसी की बेहयाई और अवैध रिश्तों की बात जब लक्ष्मी को पता चली तो उस ने माथा पीट लिया. लक्ष्मी ने भी मानसी को खूब फटकार लगाई और समझाया भी.

इस घटना के बाद कल्लू और पवन की दोस्ती टूट गई. दोनों ने साथ खानापीना भी बंद कर दिया था. जब भी कल्लू का सामना पवन से हो जाता तो उस का खून खौल उठता. वह सोचता, जिस दोस्त पर वह भाई से भी ज्यादा भरोसा करता था, उसी ने उस की इज्जत पर डाका डाल दिया. ऐसे दोस्त से तो दुश्मन अच्छा होता है. वह जितना सोचता, उतनी ही दोस्त के प्रति नफरत पैदा होती.

दोस्त मर्यादा की हद से गुजर गया था. कल्लू ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. अपनी योजना के तहत कल्लू अपनी मां लक्ष्मी और बहन मानसी को अपने घर फैजाबाद छोड़ आया.

कानपुर लौट कर वह अपने काम पर लग गया. उस ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया कि उस के दोस्त पवन पाल ने उस की पीठ में विश्वासघात का छुरा घोंपा है.

उन्हीं दिनों एक शाम कल्लू पनकी पड़ाव शराब ठेके पर बैठा था. उसी टेबल पर पवन भी आ कर बैठ गया. दोनों की आंख मिली तो कल्लू ने नफरत से मुंह घुमा लिया. इस पर पवन बोला, ‘‘कल्लू भाई, मैं आप का अपराधी हूं. आप मुझे जो सजा देना चाहें, दे सकते हैं.’’

रमाशंकर उर्फ कल्लू साजिश के तहत दोस्ती करना चाहता था. अत: वह बोला, ‘‘पवन, मैं तुम्हारे अक्षम्य अपराध को माफ तो कर रहा हूं पर तुम्हारे प्रति मेरे मन में जो सम्मान था उसे भूल नहीं पाऊंगा.’’

इस के बाद दोनों गले मिले और साथ बैठ कर शराब पी. फिर तो यह सिलसिला बन गया. जब भी दोनों मिलते साथ बैठ कर खातेपीते.

पवन पाल को लगा कि कल्लू ने उसे माफ कर दिया है, पर यह उस की बड़ी भूल थी. उस ने सोचीसमझी रणनीति के तहत पवन से समझौता किया था. दोस्ती करने के बाद कल्लू अपनी योजना को सफल बनाने में जुट गया और समय का इंतजार करने लगा.

28 जून, 2019 की शाम रमाशंकर उर्फ कल्लू पनकी गल्ला गोदाम से घर वापस आ रहा था. उस के हाथ में लोहे का हुक (बोरा उठाने वाला) था. जब वह पनकी नहर पुल पर पहुंचा तभी उसे पवन पाल मिल गया. पुल पर बैठ कर दोनों कुछ देर बतियाते रहे. फिर उन का शराब पीने का प्रोग्राम बना. कल्लू बोला, ‘‘पवन, उस रोज तुम ने मुझे पिलाई थी, आज मेरी बारी है. तुम यहीं रुको, मैं शराब की बोतल, गिलास और कोल्डड्रिंक ले कर आता हूं.’’

रमाशंकर उर्फ कल्लू जब खानेपीने का सामान ले कर लौटा तब तक रात के 9 बज चुके थे. कल्लू पवन को साथ ले कर इंडस्ट्रियल एरिया के नगर निगम पार्क पहुंचा, जहां सन्नाटा पसर चुका था. कल्लू और पवन एक बेंच पर बैठ कर शराब पीने लगे. कल्लू ने अपनी योजना के तहत पवन को कुछ ज्यादा शराब पिला दी.

पवन पर जब नशा हावी हुआ तो उस के पैर लड़खड़ाने लगे. उसी समय कल्लू ने पीछे से पवन पर हमला कर दिया. वह हाथ में पकड़े लोहे के हुक से पवन के सिर पर वार पर वार करने लगा. नुकीली हुक सिर में घुसी तो सिर फट गया और खून बहने लगा. पवन वहीं लड़खड़ा कर गिर गया. कुछ ही देर बाद उस की मौत हो गई. दोस्त की हत्या करने के बाद कल्लू फरार हो गया.

इधर सुबह को मार्निंग वाक पर लोग पार्क में पहुंचे तो उन्होंने एक युवक की लाश पड़ी देखी और पनकी पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस जांच में दोस्त द्वारा दोस्त की हत्या करने की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

11 जुलाई, 2019 को थाना पनकी पुलिस ने अभियुक्त रमाशंकर उर्फ कल्लू को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

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मर्यादा की हद से आगे: भाग 1

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में मानसी परिवर्तित नाम है.

सौजन्य: मनोहर कहानी

सेक्स स्कैंडल में नेता अधिकारी

मछलियां कर रहीं थी मगरमच्छों का शिकार 

यह देह व्यापार और ब्लैकमेलिंग का वैसा और कोई छोटा मोटा मामला नहीं है जिसमें लोगों को पता चल जाये कि पकड़े गए लोगों के नाम, बल्दियत और मुकाम क्या हैं बल्कि हैरतअंगेज बात इस हाइ प्रोफाइल मामले की यह है कि इसमें उन औरतों के नाम और पहचान उजागर हो जाना है, जो अपने हुस्न के जाल में मध्यप्रदेश के कई नेताओं और आईएएस अफसरों को फंसाकर करोड़ों रुपए कमा चुकी हैं .

खूबसूरत, स्टायालिश, सेक्सी और जवान औरत किसी भी मर्द की कमजोरी होती है लेकिन जब वे मर्द अहम ओहदों पर बैठे हो तो बात चिंता की हो जाती है. क्योंकि इनकी न केवल समाज में इज्जत और रसूख होता है बल्कि ये वे लोग हैं जो सरकार की नीतियां रीतियां बनाते हैं . करोड़ों का लेनदेन इनके कहने पर होता है. सूट बूट में चमकते दमकते दिखते रहने वाले इन खास लोगों में बस एक बात आम लोगों जैसी होती है. वह है जवान औरत का चिकना शरीर देखते ही उस पर बिना सोचे समझे फिसल जाना.

फिसल तो गए लेकिन अब इनका गला सूख रहा है, नींद उड़ी हुई है और हलक के नीचे निवाला भी नहीं उतर रहा. वजह यह डर है कि खुदा न खासता अगर नाम और रंगरेलियां मनाते वीडियो उजागर और वायरल हो गए तो कहीं मुंह दिखाने काबिल नहीं रह जाएंगे. जांच एजेंसियां यह भी पूछेंगी कि इन बालाओं पर लुटाने ढेर सी रकम आई कहां से थी और ब्लैकमेलिंग से बचने इन्हें कैसे कैसे उपकृत किया गया. यानी ब्लैकमेलिंग की रकम का बड़ा हिस्सा एक तरह से सरकार दे रही थी .

यह है मामला : इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर नाम हरभजनसिंह ने 17 सितंबर को पुलिस में रिपोर्ट लिखाई थी कि 2 औरतें उसे ब्लैकमेल कर रही हैं. पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. भोपाल की आरती दयाल की हरभजन से दोस्ती थी. आरती एक एनजीओ चलाती है और कई अफसर और नेताओं से उसके नजदीकी संबंध हैं और इतने गहरे हैं कि एक आइएएस अफसर ने तो उसे मीनाल रेसीडेंसी जैसे पाश इलाके में एक महंगा फ्लैट दिला रखा था. यह आईएएस अफसर भोपाल और इंदोर का कलेक्टर भी रह चुका है.

आरती इस अफसर को ब्लैकमेल कर रही थी जिससे पीछा छुड़ाने इस अफसर ने उसे होशंगाबाद रोड पर एक प्लाट भी दिलाया था. आरती ने इसके बाद भी उसका पीछा छोड़ा या नहीं यह तो भगवान कहीं हो तो वही जानें लेकिन आरती ने दूसरा शिकार हरभजन सिंह को बनाया. उसने हरभजन की दोस्ती नरसिंहगढ़ की 18 साला छात्रा मोनिका यादव से करा दी. कम उम्र में ही दुनियादारी में माहिर हो गई मोनिका ने हरभजन को अपना दीवाना बना लिया जिसके चलते हरभजन उसका भजन करने लगा और आरती पूजा करने एक दिन उसे एक होटल के कमरे में ले गया.

मोनिका और उसकी गुरुमाता आरती ने प्यार के इस पूजा पाठ को कैमरे में कैद कर लिया ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए. उधर मोनिका के गुंदाज बदन और नई नई जवानी का रस चूस रहे हरभजन को पता ही नहीं चला कि सेक्स करते वक्त वह कैसा लगता है और कैसी कैसी हरकतें करता है. यह सब मोनिका और आरती ने उसे चलचित्र के जरिये दिखाकर अपनी दक्षिणा जिसे ब्लैकमेलिंग कहते हैं मांगी तो वह सकपका उठा.

कोई 8 महीने बेचारा साबित हो गया हरभजन ईमानदारी से पैसे देता रहा लेकिन हद तब हो गई जब इन दोनों ने और 3 करोड़ रु की मांग कर डाली. बस इस भारी भरकम मांग से उसकी सब्र टूट गई तो उसने इंदौर के पलासिया थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस को मामला इतना दिलचस्प लगा कि उसने बिना हेलमेट वालों के चालान बगैरह बनाने जैसा अपना पसंदीदा काम एक तरफ रखते तुरंत ही कार्रवाई शुरू कर दी .

ऐसे मौकों पर पुलिस जाने क्यों समझदार हो जाती है उसने प्लान बनाया और मोनिका व आरती को रकम की पहली किश्त 50 लाख रु लेने इंदौर बुलाया. ये दोनों इंदौर पहुंची तो विजय नगर इलाके में इन्हें यू आर अंडर अरेस्ट बाला फिल्मी डायलौग मारते गिरफ्तार कर लिया .

दो दो श्वेताएं : जिसे पुलिस कहानी का खत्म होना मान रही थी वह दरअसल में कहानियों की शुरुआत थी. पूछताछ में आरती ने बताया कि ब्लैकमेलिंग के इस खेल में और भी महिलाएं शामिल हैं इनमें दो के नाम एक से श्वेता जैन हैं. पहली श्वेता 39 साल की है और भोपाल के मीनाल रेसीडेंसी में रहती है उसके पति का नाम विजय जैन है और दूसरी श्वेता जैन के पति का नाम स्वप्निल जैन है. 48 साल की यह श्वेता भोपाल की सबसे महंगी टाउनशिप रिवेरा में रहती है. तलाक़शुदा आरती ने बड़ी शराफत और पूरी ईमानदारी से बताया कि वह छतरपुर की रहने बाली है और वहां भी दस लोगों को ब्लैकमेल कर चुकी है यानी यह उसका फुल टाइम जौब है.

भोपाल पुलिस ने भी सड़क चलते वाहन चालकों को बख्शते इन श्वेताओं को गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों भी बड़ी शानोशौकत वाली निकलीं. सागर की रहने वाली श्वेता जैन के यहां से पुलिस ने 14 लाख 17 हजार रुपए बरामद किए. यह श्वेता एक इलेक्ट्रिक कंपनी की भी मालकिन निकली. इसके पास से 2 महंगी कारें मर्सिडीज और औडी भी मिलीं. साल 2013 में इसने सागर विधानसभा से चुनाव लड़ने भाजपा से टिकट भी मांगा था लेकिन भाजपा के ही एक बड़े नेता ने उसका टिकट कटवा दिया था. इसके बाद भी उसके भाजपा नेताओं से अच्छे और गहरे संबंध थे.  दूसरी श्वेता (स्वप्निल बाली) के पास से भी एक औडी कार मिली. पता यह भी चला कि वह मूलतः जयपुर की रहने वाली है और उसका पति पेशे से थेरेपिस्ट है और अक्सर पब पार्टियों में देखा जाता है .

इन दोनों को भाजपा विधायक ब्रजेन्द्र सिंह ने मकान किराए पर दिया है इसके पहले ये एक दूसरे भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार के मकान में किराए से रहते थे इस मकान में इन दिनों भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा भारती रह रही हैं. पूरी छानबीन का सार यह रहा कि दोनों खूबसूरत श्वेताओं के पास बेशुमार दौलत और जायदाद है और इनके पास ऐशो आराम के तमाम सुख साधन भी मौजूद हैं .

दो दो मास्टर माइंड : इतना होने के बाद और भी महिलाओं के नाम सामने आए इनमे से असली मास्टर माइंड कौन है यह तय होना अभी बाकी है. कुछ लोग सागर बाली श्वेता को ही मास्टर माइंड मान रहे हैं तो कुछ की नजर में असली सरगना बरखा भटनागर है. बरखा अपने पहले पति को तलाक दे चुकी है और उसने दूसरी शादी अमित सोनी से की है. अमित सोनी कभी कांग्रेस के आईटी सेल से जुड़ा था और साल में 2015 में बरखा भी कांग्रेस में आ गई थी.

ये दोनों भी एक एनजीओ चलाते हैं जो एग्रीकल्चर से जुड़े प्रोजेक्ट लेता है. साल 2014 में बरखा का नाम देह व्यापार के एक मामले में आया था तब से वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गई थी. इसी दौरान उसकी मुलाकात श्वेता जैन से हुई थी. बरखा वक्त वक्त पर कई कांग्रेसी दिग्गजों के साथ अपने फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती है. सागर बाली श्वेता को एक बार सागर में एक कलेक्टर साहब के पत्नी ने रंगे हाथों पकड़ा था.

जलवा था इनका : बीएससी में पढ़ रही मोनिका यादव को आरती ने गिरोह में शामिल किया था. जो जवान थी और जल्द ही अफसरों और नेताओं को अपने हुस्न जाल में फसाने में माहिर हो गई थी. कई नेताओं के यहां भी उसका आना जाना था .

जब राज खुलना शुरू हुये तो पता यह भी चला कि इन पांचों की तूती प्रशासनिक गलियारों में भी बोलती थी इनके कहने पर तबादले होते थे, नियुक्तियां भी होतीं थीं और ठेके भी मिलते थे. ये तीन पूर्व मंत्रियों सहित सात आइएएस अफसरों को ब्लैकमेल कर रहीं थीं और पूरी दिलेरी से कर रहीं थीं. हाल तो यह भी था कि इनके पकड़े जाने के बाद कई अफसर पुलिस हेड क्वार्टर फोन कर पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि उनका नाम सामने न आए .

इनके मोबाइलों में कईयों की ब्लू फिल्में हैं .

इन पर नकाब क्यों : लेकिन पुलिस उनके नाम उजागर नहीं कर रही है आमतौर पर जैसा कि ऊपर बताया गया है ऐसे मामलों में पुलिस महिलाओं के नाम छुपाती है और पुरुषों के उजागर कर देती है पर यह मामला है जिसमें महिलाओं के नाम और फोटो उजागर किए गए और महापुरुषों के नहीं .

पुलिस क्यों इन सफेदपोशों के चेहरों पर नकाब ढके हुये है: यह बात भी साफ उजागर है कि कथित आरोपी महिलाओं को उसने गुनहगार मानते उनकी जन्म कुंडलियां मीडिया के जरिये बांच दीं लेकिन अय्याश और रंगीन मिजाज नेताओं और अफसरों को वह बचा रही है. जबकि जनता को पूरा हक है कि वह इन के बारे में जाने. ऐसा होगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि सरकार नहीं चाहती कि इन सफेदपोशों की बदनामी हो.

महज हरभजन द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर पर सारी कार्रवाई होना पुलिस की नियत और मंशा को शक के कटघरे में खड़ी कर रही है. जिन जिन रसूखदारों के साथ इनके आपत्तिजनक फोटो व वीडियो मिले हैं उनके नाम उजागर हों तो समझ आए कि वाकई ये ब्लैकमेलर हैं .            

मर्यादा की हद से आगे: भाग 1

सुबह टहलने वाले कुछ लोगों ने पनकी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित नगर निगम के पार्क में एक युवक की लाश पड़ी देखी.

पार्क में लाश पड़ी होने की खबर फैली तो वहां भीड़ जुट गई. इस भीड़ में चेयरमैन (फैक्ट्री) विजय कपूर भी मौजूद थे. उन्होंने लाश की सूचना थाना पनकी पुलिस को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण शुरू किया. युवक की लाश हरेभरे पार्क के पश्चिमी छोर की आखिरी बेंच के पास पड़ी थी. उस की हत्या किसी नुकीली चीज से सिर कूंच कर की गई थी. लकड़ी की बेंच के नीचे शराब की खाली बोतल, प्लास्टिक के 2 खाली गिलास और कोल्डड्रिंक की एक खाली बोतल पड़ी थी.

अजय प्रताप सिंह ने अनुमान लगाया कि पहले खूनी और मृतक दोनों ने शराब पी होगी. फिर किसी बात को ले कर उन में झगड़ा हुआ होगा और एक ने दूसरे की हत्या कर दी.

मृतक की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस का शरीर स्वस्थ और रंग सांवला था. वह हरे रंग की धारीदार कमीज व ग्रे कलर की पैंट पहने था. पैरों में हवाई चप्पलें थीं, जो शव के पास ही पड़ी थीं. इस के अलावा मृतक के बाएं हाथ की कलाई पर मां काली गुदा हुआ था, साथ ही दुर्गा का चित्र भी बना था. इस से स्पष्ट था कि मरने वाला युवक हिंदू था. जामातलाशी में उस की जेबों से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती.

अजय प्रताप सिंह घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह घटनास्थल पर आ गए. अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

उन्होंने थानाप्रभारी अजय प्रताप से घटना के संबंध में जानकारी ली. घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी थी. लोगों में शव देखने, शिनाख्त करने की जिज्ञासा थी. लेकिन अब तक कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया था.

कई घंटे बीतने के बाद भी युवक के शव की पहचान नहीं हो सकी. आखिर पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने फोटोग्राफर बुलवा कर शव के विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाए.

फिर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. थाना पनकी लौट कर अजय प्रताप ने वायरलैस से अज्ञात शव पाए जाने की सूचना प्रसारित करा दी. यह 29 जून, 2019 की बात है.

अज्ञात शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने क्षेत्र के शराब ठेकों, फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों तथा नहर किनारे बसी बस्तियों में लोगों को मृतक की फोटो दिखा कर पहचान कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. पुलिस हर रोज शव की शिनाख्त के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी, कोई नतीजा निकलता न देख अजय प्रताप सिंह की चिंता बढ़ती जा रही थी.

5 जुलाई, 2019 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि एक अधेड़ व्यक्ति ने उन के औफिस में प्रवेश किया. वह कुछ परेशान दिख रहा था. अजय प्रताप सिंह ने उस अधेड़ व्यक्ति को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा कर के पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं, जो भी परेशानी हो साफसाफ बताओ.’’

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‘‘सर, मेरा नाम जगत पाल है. मैं कानपुर देहात जिले के गांव दौलतपुर का रहने वाला हूं. मेरा छोटा भाई पवन पाल पनकी गल्ला मंडी में पल्लेदारी करता है. वह पनकी गंगागंज कालोनी में रहता है. पवन हफ्ते में एक बार घर जरूर आता था.

‘‘लेकिन इस बार 2 सप्ताह बीत गए, वह घर नहीं आया. उस का मोबाइल भी बंद है. आज मैं उस के क्वार्टर पर गया तो वहां ताला बंद मिला. पूछने पर पता चला कि वह सप्ताह भर से क्वार्टर में आया ही नहीं है. मुझे डर है कि कहीं… पवन को खोजने में आप मेरी मदद करने की कृपा करें.’’

जगत पाल की बात सुन कर थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने पूछा, ‘‘तुम्हारे भाई की उम्र कितनी है, वह शादीशुदा है या नहीं?’’

‘‘साहब, उस की उम्र 35-36 साल है. अभी उस की शादी नहीं हुई.’’ जगत ने बताया.

29 जून को पनकी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित नगर निगम के पार्क में लाश मिली थी. उस युवक की उम्र तुम्हारे भाई से मिलतीजुलती है. पहचान न हो पाने के कारण हम ने पोस्टमार्टम करा दिया था. लाश के कुछ फोटोग्राफ हमारे पास हैं. तुम उन्हें देख लो.’’ अजय प्रताप ने फाइल से फोटो निकाल कर जगत पाल के सामने रख दिए.

जगत पाल ने एकएक फोटो को गौर से देखा, फिर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, ये सभी फोटो मेरे छोटे भाई पवन पाल के ही हैं.’’

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने जगत पाल को धैर्य बंधाया, फिर पूछा, ‘‘जगत पाल, तुम्हारे भाई की किसी से रंजिश या फिर लेनदेन का कोई झगड़ा तो नहीं था?’’

‘‘सर, मेरा भाई सीधासादा और कमाऊ था. उस की न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का विवाद था.’’

‘‘कहीं पवन की हत्या दोस्तीयारी में तो नहीं की गई. उस का कोई दोस्त था या नहीं?’’

जगत पाल कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सर, पवन का एक दोस्त रमाशंकर निषाद है. वह भी पवन के साथ ही पल्लेदारी करता था. पवन उसे अपने साथ गांव भी लाया था. वह उसे कल्लू कह कर बुलाता था. बातचीत में पवन ने बताया था कि कल्लू नहर किनारे की कच्ची बस्ती में रहता है. पवन की तरह वह भी खानेपीने का शौकीन है.’’

मृतक पवन पाल के दोस्त कल्लू के संबंध में क्लू मिला तो अजय प्रताप सिंह ने रमाशंकर उर्फ कल्लू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने कच्ची बस्ती जा कर कल्लू पल्लेदार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नहर किनारे अपनी मां और बहन के साथ रहता है. अजय प्रताप सिंह उस के घर पहुंचे तो पता चला कि कल्लू एक हफ्ते से घर में ताला लगा कर कहीं चला गया है.

दोस्त की हत्या के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू का घर में ताला लगा कर गायब हो जाना, संदेह पैदा कर रहा था. अजय प्रताप सिंह समझ गए कि पवन की हत्या का राज उस के दोस्त कल्लू के पेट में ही छिपा है.

कल्लू शक के घेरे में आया तो उन्होंने उस की तलाश में कई संभावित स्थानों पर छापे मारे, लेकिन वह उन की पकड़ में नहीं आया. हताश हो कर उन्होंने उस की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

10 जुलाई को शाम 4 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह को बताया कि मृतक पवन पाल का दोस्त कल्लू पल्लेदार इस समय पनकी इंडस्ट्रियल एरिया के नहर पुल पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने एसआई दयाशंकर त्रिपाठी, उमेश कुमार, हैडकांस्टेबल रामकुमार और सिपाही गंगाराम को साथ लिया और जीप से नहर पुल पर जा पहुंचे.

जीप रुकते ही एक व्यक्ति तेजी से रेलवे लाइन की तरफ भागा. लेकिन पुलिस टीम ने उसे कुछ ही दूरी पर दबोच लिया. पकड़े गए व्यक्ति ने अपना नाम रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद बताया. पुलिस उसे थाना पनकी ले आई.

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थाने पर जब रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पवन पाल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘पवन पाल मेरा जिगरी दोस्त था. दोनों साथ काम करते थे और खातेपीते थे. भला मैं अपने दोस्त की हत्या क्यों करूंगा? मुझे झूठा फंसाया जा रहा है.’’

लेकिन पुलिस ने उस की बात पर यकीन नहीं किया और उस से सख्ती से पूछताछ की. कल्लू पुलिस की सख्ती ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर सका. उस ने अपने दोस्त पवन पाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

यही नहीं, कल्लू ने हत्या में इस्तेमाल लोहे का वह हुक (बोरा उठाने वाला) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर के अंदर छिपा दिया था. मृतक के मोबाइल को कल्लू ने कूंच कर नहर में फेंक दिया था, जिसे पुलिस बरामद नहीं कर सकी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने ब्लाइंड मर्डर का रहस्य उजागर करने तथा कातिल को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह थाना पनकी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने भी रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पूछताछ की. उस ने बताया कि पवन ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस ने उसे बहुत समझाया, हाथ तक जोड़े लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

रमाशंकर उर्फ कल्लू ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने मृतक पवन के बड़े भाई जगत पाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच तथा अभियुक्त के बयानों के आधार पर दोस्त द्वारा दोस्त की हत्या करने की सनसनीखेज घटना इस तरह सामने आई.

फैजाबाद शहर के थाना कैंट के अंतर्गत एक मोहल्ला है रतिया निहावा. रामप्रसाद निषाद इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा 2 बेटे दयाशंकर, रमाशंकर उर्फ कल्लू तथा 2 बेटियां रजनी व मानसी थीं. रामप्रसाद निषाद सरयू नदी में नाव चला कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

रामप्रसाद का बड़ा बेटा दयाशंकर पढ़ालिखा था. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था. उस की शादी जगदीशपुर निवासी झुनकू की बेटी वंदना से हुई थी. वंदना तेजतर्रार युवती थी.

ससुराल में वह कुछ साल तक सासससुर के साथ ठीक से रही, उस के बाद वह कलह करने लगी. कलह की सब से बड़ी वजह थी वंदना का देवर रमाशंकर उर्फ कल्लू.

कल्लू का मन न पढ़नेलिखने में लगता था और न ही किसी काम में. वह मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों के साथ घूमने लगा, जिस की वजह से वह नशे का आदी हो गया. शराब पी कर लोगों से गालीगलौज और मारपीट करना उस की दिनचर्या बन गई. आए दिन घर में कल्लू की शिकायतें आने लगीं.

वंदना भी कल्लू की हरकतों से परेशान थी. उसे यह कतई बरदाश्त नहीं था कि उस का पति कमा कर लाए और देवर मुफ्त की रोटी खाए. कलह का दूसरा कारण था, संयुक्त परिवार में रहना.

वंदना को दिन भर काम में व्यस्त रहना पड़ता था. इस सब से वह ऊब गई थी और संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती थी. वह कलह तो करती ही थी साथ ही पति दयाशंकर पर अलग रहने का दबाव  भी बनाती थी.

रामप्रसाद भी छोटे बेटे कल्लू की नशाखोरी से परेशान था. वह उसे समझाने की कोशिश करता तो वह बाप से ही भिड़ जाता था. घर की कलह और बेटे की नशाखोरी की वजह से रामप्रसाद बीमार पड़ गया. बड़े बेटे दयाशंकर ने रामप्रसाद का इलाज कराया. लेकिन वह उसे नहीं सका.

पिता की मौत पर कल्लू ने खूब ड्रामा किया. शराब पी कर उस ने भैयाभाभी को खूब खरीखोटी सुनाई. साथ ही ठीक से इलाज न कराने का इलजाम भी लगाया.

पिता की मौत के बाद मां व बहन का बोझ दयाशंकर के कंधों पर आ गया. उस की आमदनी सीमित थी और खर्चे बढ़ते जा रहे थे. ससुर की मौत के बाद वंदना ने भी कलह तेज कर दी थी. वह पति का तो खयाल रखती थी, लेकिन अन्य लोगों के खानेपीने में भेदभाव बरतती थी. सास लक्ष्मी कुछ कहती तो वंदना गुस्से से भर उठती, ‘‘मांजी, गनीमत है जो तुम्हारा बेटा तुम्हें रोटी दे रहा है. वरना तुम सब को मंदिर के बाहर भीख मांग कर पेट भरना पड़ता.’’

बहू की जलीकटी बातें सुन कर लक्ष्मी खून का घूंट पी कर रह जाती, क्योंकि वह मजबूर थी. छोटी बेटी मानसी भी जवानी की दहलीज पर खड़ी थी. उसे ले कर वह कहां जाती.

लक्ष्मी ने छोटे बेटे रमाशंकर उर्फ कल्लू को समझाया कि अब तो सुधर जाए. कुछ काम करे और चार पैसे कमा कर लाए. किसी दिन वंदना ने खानापानी बंद कर दिया तो हम सब भूखे मरेंगे. लेकिन कल्लू पर मां की बात का कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी ही मस्ती में मस्त रहा.

उन्हीं दिनों एक रोज रमाशंकर देर शाम शराब पी कर घर आया. आते ही उस ने खाना मांगा. इस पर वंदना गुस्से से बोली, ‘‘कमा कर रख गए थे, जो खाना लगाने का हुक्म दे रहे हो. आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा. एक बात कान खोल कर सुन लो. इस घर में अब तुम्हें खाना तभी मिलेगा, जब कमा कर लाओगे.’’

भाभी की बात सुन कर कल्लू को भी गुस्सा आ गया. वह घर में तोड़फोड़ करने लगा. दयाशंकर ने कल्लू को समझाने का प्रयास किया तो वह उस से भी भिड़ गया. इस पर दयाशंकर को गुस्सा आ गया. उस ने कल्लू को मारपीट कर घर से बाहर कर दिया.

भाई की पिटाई से कल्लू का नशा हिरन हो गया था. रात भर वह घर के बाहर पड़ा रहा. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह भैयाभाभी का रोटी का एक टुकड़ा भी मुंह में नहीं डालेगा. कमा कर ही खाएगा.

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वंदना की तीखी जुबान लक्ष्मी के सीने को छलनी कर देती थी. कल्लू के प्रति उस का दुर्व्यवहार भी दिल में दर्द पैदा करता था, लेकिन वह लाचार थी. अत: उस ने कल्लू को समझाया, ‘‘बेटा, तू जवान है. हट्टाकट्टा है. कहीं भी चला जा और अपमान की रोटी खाने के बजाए इज्जत की रोटी कमा कर खा.’’

मां की बात कल्लू के दिल में उतर गई. उस के बाद उस ने फैजाबाद छोड़ दिया और नौकरी की तलाश में कानपुर आ गया. कुछ दिनों के प्रयास के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू को पनकी गल्ला मंडी में पल्लेदारी का काम मिल गया. शुरू में तो कल्लू को पीठ पर बोझ लादने में परेशानी हुई, लेकिन बाद में अभ्यस्त हो गया.

गल्ला मंडी में गेहूं चावल के 3 बड़े गोदाम हैं. इन्हीं गोदामों में गेहूं चावल का भंडारण होता है. ट्रक आते ही पल्लेदार बोरा उतरवाई की मजदूरी तय कर के माल गोदाम में उतार देते हैं. रमाशंकर उर्फ कल्लू भी ट्रक से माल लोड अनलोड का काम करने लगा.

कुछ महीने बाद कल्लू की मेहनत रंग लाने लगी. अब वह मांबहन को भी पैसा भेजने लगा और खुद भी ठीक से रहने लगा. यही नहीं, जब वह घर जाता तो मांबहन के साथसाथ भैयाभाभी के लिए भी कपड़े वगैरह ले जाता.

कल्लू के काम पर लग जाने से जहां मांबहन खुश थीं, वहीं वंदना और दयाशंकर ने भी राहत की सांस ली थी. वंदना अब मन ही मन सोचने लगी थी कि जिसे वह खोटा सिक्का समझ बैठी थी, वह सोने का सिक्का निकला.

कल्लू पनकी नहर किनारे बसी कच्ची बस्ती में किराए पर रहता था. कुछ दिनों बाद मकान मालिक ने अपना कमरा 5 हजार रुपए में बेचने की पेशकश की तो जोड़जुगाड़कर के कल्लू ने कमरा खरीद लिया. इस कमरे के आगे कुछ जमीन खाली पड़ी थी.

कल्लू ने वह भी अपने कब्जे में ले ली. बाद में कल्लू ने इस खाली पड़ी जमीन पर मिट्टी का एक कमरा और बना लिया, उस कमरे की छत उस ने खपरैल की बना ली. मतलब अब उस का अपना स्थाई निवास बन गया था.

रमाशंकर उर्फ कल्लू पनकी गल्लामंडी स्थित जिस गोदाम में पल्लेदारी करता था, उसी गोदाम में पवन पाल भी पल्लेदारी करता था. पवन मूलरूप से कानपुर देहात के थाना नर्वल के अंतर्गत आने वाले गांव दौलतपुर का रहने वाला था.

पवन पाल के पिता देवी चरनपाल तहसील कर्मचारी थे, जबकि बड़ा भाई दयाशंकर खेती करता था. पवन पाल शहरी चकाचौंध से प्रभावित था. वह पल्लेदारी का काम करते हुए पनकी गंगागंज में किराए के कमरे में रहता था.

पवन व कल्लू दोनों हमउम्र थे. पल्लेदारी का काम भी साथसाथ करते थे. दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई. कल्लू भी खानेपीने का शौकीन था और पवन पाल भी. शाम को दिहाड़ी मिलने के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे जाते.

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खानेपीने का खर्चा 2 बराबर हिस्सों में बंटता था. रविवार को गोदाम बंद रहता था. उस दिन पवन पाल अपने गांव चला जाता था. कभीकभी वह कल्लू को भी अपने साथ गांव ले जाता था. वहां भी दोनों की पार्टी होती थी.

अगली कड़ी में पढ़ें:  आखिर कल्लू और पवन की दोस्ती में क्यों दरार आई?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में मानसी परिवर्तित नाम है.

सौजन्य: मनोहर कहानी

विकृति की इंतेहा: भाग 2

विकृति की इंतहा: भाग 1

आखिरी भाग

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मतलब साफ था कि फैजान की हत्या करने के बाद कातिल ने शव घर में ही छिपा कर रखा था, लेकिन पुलिस की सक्रियता के कारण उसे शव को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पाया था. लेकिन जब लाश से तेज बदबू आने लगी तो उसे ठिकाने लगाना कातिल की मजबूरी हो गई थी.

फैजान का शव जिस बोरी में मिला था, उस में धागों के टुकड़े मिले थे. बोरी का मुंह भी कपड़े की चिंदी से बांधा गया था. फैजान के घर में भी सिलाई का काम होता था. इस के अलावा मोहल्ले में अधिकांश घरों में टेलरिंग का काम होता था. इसलिए सुराग की तलाश में पुलिस ने करीब 200 घरों की गहनता से तलाशी ली.

पुलिस को पता चला कि फैजान के पड़ोस में रहने वाला 19 वर्षीय सोहेल अंसारी उर्फ मोनू घटना वाले दिन रतलाम में अपने घर पर ही था. 2 दिन बाद वह बहन की शादी में शामिल होने खंडवा चला गया था, जहां से वह 22 अप्रैल को वापस आया था.

उस के लौटने के अगले दिन ही 23 अप्रैल को सोहेल के घर से कुछ ही दूर नाले में फैजान का शव मिला था. इसलिए पुलिस ने सोहेल को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. ऐसा नहीं कि पुलिस ने सोहेल से पहले पूछताछ न की हो. घटना के ठीक बाद भी पुलिस उसे उठा कर थाने लाई थी लेकिन उस समय उस की बहन की शादी की वजह से उसे थाने से भेज दिया था.

फैजान का परिवार सोहेल पर खूब भरोसा करता था. घटना के ठीक बाद जब पुलिस मोहल्ले में घरों की तलाशी ले रही थी, तब फैजान के पिता ने खुद सोहेल के घर की तलाशी लेने से पुलिस को यह कह कर रोका था कि यह हमारे घर का ही आदमी है. अब उसी सोहेल को पुलिस ने पुख्ता शक के आधार पर हिरासत में लिया था. लेकिन सोहेल इस मामले में खुद को निर्दोष साबित करने पर तुला था.

अब तक पुलिस को इस बात की जानकारी मिल चुकी थी कि सोहेल को नशा करने के अलावा मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखने की लत थी. फैजान के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कृत्य की पुष्टि हुई थी. इसलिए पुलिस ने सोहेल के खून का सैंपल डीएनए जांच के लिए सागर भेज दिया. इस दौरान पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली, उस के घर में पुलिस को वैसा ही एक प्लास्टिक का बोरा मिला, जिस तरह के बोरे में फैजान का शव नाले में पाया गया था.

30 अप्रैल, 2019 को पुलिस को डीएनए की रिपोर्ट मिल गई, जिस से साफ हो गया कि फैजान के साथ दुष्कृत्य करने वाला सोहेल ही था. पुलिस ने उस के साथ सख्ती बरती तो उस ने न केवल अपना अपराध स्वीकार कर लिया बल्कि यह भी बता दिया कि उस ने फैजान की लाश घर में छिपा कर रखी थी. लाश को छिपाते समय उसे उस की बड़ी बहन कश्मीरा ने देख लिया था.

लेकिन कश्मीरा ने यह जानकारी किसी को देने के बजाए भाई को बचाने की कोशिश की. इतना ही नहीं, 22 अप्रैल की रात में लगभग 8 बजे सोहेल ने कश्मीरा की मदद से ही फैजान की लाश नाले में फेंकी थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने कश्मीरा को भी गिरफ्तार कर लिया. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई.

रतलाम के हाट रोड पर बसी बस्ती में ज्यादातर परिवार सिलाई के काम से जुड़े हैं. जफर कुरैशी भी यही काम करता था. जफर का इसी बस्ती में घर भी है, जिस के पड़ोस में सोहेल का परिवार रहता है. सोहेल आवारा किस्म का युवक था. बताया जाता है कि उसे 12 साल की उम्र से ही नशा और सैक्स की आदत पड़ चुकी थी.

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उस के मोबाइल में तमाम देशीविदेशी अश्लील फिल्में रहती थीं, जिन्हें वह देखता रहता था. कई बार वह नाबालिग लड़कियों की अश्लील फिल्म दिखाते हुए अश्लील हरकतें कर चुका था. जिन में से कुछ ने उस के घर जा कर इस की शिकायत भी की थी. जिस के चलते मोहल्ले में कुछ लोगों से विवाद भी हो चुका था.

उस ने पुलिस को बताया कि उन दिनों उस की छोटी बहन की शादी खंडवा में होने जा रही थी, जिस के चलते उस का पूरा परिवार 12 अप्रैल, 2019 को खंडवा चला गया था. सोहेल को भी साथ जाना था लेकिन वह 14 अप्रैल को दोस्तों के संग आने की बात कह कर घर पर रुक गया था.

13 अप्रैल को सोहेल ने पहले तो जी भर कर नशा किया फिर अपने फोन पर अश्लील फिल्में देखनेलगा. फिल्म देखतेदेखते वह इतना उत्तेजित हो गया कि गली में किसी लड़की की तलाश करने लगा. दुर्भाग्य से इसी बीच फैजान उसे अकेला दुकान की तरफ जाते दिखा.

फैजान को देख कर उस के दिमाग का शैतान जाग उठा. उस ने फैजान को आवाज दे कर अपने घर में बुला लिया. फैजान उसे भाईजान कह कर बुलाता था, इसलिए आसानी से उस के बुलाने पर नजदीक चला गया. उसे ले कर सोहेल अंदर गया और दरवाजा बंद कर उस से मीठीमीठी बातें करते हुए उस के कपड़े उतारने लगा.

मासूम फैजान कुछ समझ नहीं सका. लेकिन इतना तो जानता था कि इस तरह से कपड़े नहीं उतारे जाते. उस ने विरोध करना चाहा तो सोहेल ने घर में पड़े टेप से उस के हाथपैर बांध दिए. वह चिल्ला न सके, इस के लिए उस ने मुंह पर भी टेप चिपका दिया. फिर वह उस मासूम के साथ अप्राकृतिक रूप से अपनी वासना शांत करने में जुट गया.

उस दौरान सोहेल इतना पागल हो चुका था कि उस ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि टेप से फैजान की नाक भी बंद हो गई है. इसलिए जब तक सोहेल की वासना की आग शांत हुई, मासूम फैजान की धड़कनें भी शांत हो चुकी थीं.

यह देख कर सोहेल डरा नहीं बल्कि उस ने उसी हालत में फैजान का शव उठा कर वाशिंग मशीन में डाल दिया और खुद बाहर घूमने निकल गया. इस के बाद जब मोहल्ले में फैजान के लापता होने का हल्ला हुआ तो वह भी उस के घर पहुंच गया. सब के साथ मिल कर उस ने फैजान को खोजने का नाटक किया.

दूसरे दिन बात बढ़ी तो पुलिस ने शक के आधार पर मोहल्ले के कई बदमाशों के साथ सोहेल को भी पूछताछ के लिए उठा लिया. यह खबर उस की बहन की शादी के लिए खंडवा गए उस के परिवार को पता चली तो वहां से उस की बड़ी बहन कश्मीरा रतलाम आई.

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कश्मीरा घर पहुंची तो उस ने वाशिंग मशीन में रखा फैजान का शव देख लिया. लेकिन उस ने न तो इस बात की खबर पुलिस को दी और न ही किसी अन्य को. उलटे थाने जा कर छोटी बहन की शादी के नाम पर सोहेल को अपने साथ छुड़ा लाई और उसे ले कर खंडवा चली गई.

खंडवा से पूरा परिवार 22 अप्रैल को वापस रतलाम आया, जिस के बाद कश्मीरा और सोहेल ने मिल कर रात में लगभग ढाई बजे फैजान का शव बोरी में भर कर नाले में फेंक दिया. चूंकि फैजान का परिवार सोहेल पर काफी भरोसा करता था, इसलिए दोनों को विश्वास था कि पुलिस उन के ऊपर कभी शक नहीं करेगी.

लेकिन मोहल्ले में सोहेल 22 अप्रैल को वापस आया था और 23 को शव उस जगह मिला, जहां पहले ही पुलिस कई बार तलाश कर चुकी थी, इसलिए वह शक के घेरे में आ गया. बाकी का काम डीएनए रिपोर्ट के मिलान हो जाने से पुलिस को पुष्टि हो गई, जिस के बाद पुलिस ने दोनों भाईबहनों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

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